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Essay on Lohri in Hindi – लोहड़ी पर निबंध
January 6, 2018 by essaykiduniya
Here you will get Paragraph and Short Essay on Lohri in Hindi Language/ Lohri Festival in Hindi Language for students of all Classes in 100, 200, 300, 500 and 700 words. यहां आपको सभी कक्षाओं के छात्रों के लिए हिंदी भाषा में लोहड़ी पर निबंध मिलेगा।
Short Essay on Lohri in Hindi Language – लोहड़ी पर निबंध ( 100 words )
लोहड़ी उतर भारत में मनाया जाने वाला त्योहार है जो कि विशेष रूप से पंजाब में मनाया जाता है। लोहड़ी पौष माह की अंतिम रात्रि को मनाई जाती है जो कि हर वर्ष 13 जनवरी को होती है। लोहड़ी के पर्व की शुरूआत सिंधु घाटी से हुई थी। लोहड़ी के पर्व पर लोग आग जलाकर उसकी परिक्रमा करते है और रेवड़ी , मुँगफली आदि की आहुति देते हैं। लोहड़ी पर लोक गीत और लोकनृत्य का आयोजन होता है। इस दिन बेटियों के लिए उपहार भेजे जाते हैं। घरों में तरह तरह के वंजन बनाए जाते हैं और दान पुण्य भी किया जाता है। लोहड़ी का पर्व सभी को एक कर जाता है और सबके दिलों को खुशियों से भर जाता है।
Short Essay on Lohri in Hindi Language – लोहड़ी पर निबंध (200 Words)
लोहड़ी भारतीय संस्कृति का पवित्र और महत्वपूर्ण त्यौहार माना जाता है। यह प्रतिवर्ष 13 जनवरी को संपूर्ण भारत वर्ष में बड़े हर्षोंल्लास ऐवं मौज – मस्ती के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष मैंने लोहड़ी का त्यौहार अपने मामा जी के घर अमृतसर में मनाया। मैं एक दिन पहले ही अपने मामा जी के घर पहुँच गया था। लोहड़ी वाले दिन सुबह से ही ढोल – नगाड़े बजने प्रारंभ हो गए थे। सबने एक – दूसरे को गले मिलकर इस पावन पर्व की बधाइयाँ दी।
सब लोग एक – दूसरे के घर मिठाइयाँ, रेवड़ी, मूँगफली बांट रहे थे। उस दिन शाम को मोहल्ले के बीच में सबने अपने – अपने घर से लकड़ियाँ लाकर बड़ा ढेर लगा दिया। सभी उसके चारों तरफ़ इकट्ठे हो गए। पूरी श्रद्धा ऐवं आनंद के साथ लकड़ियों में अग्नि प्रज्वलित की गई। तत्पश्चात सबने लोहड़ी की पूजा अर्चना की। सब उसकी परिक्रमा कर रहे थे और गीत गा रहे थे।
पूजा के बाद सबको रेवड़ी, मूँगफली आदि का प्रसाद बांटा गया। इसके बाद ढोल – नगाड़े बजने लगे तो सभी लोग झूम उठे। लड़कियाँ गिददा पाने लगीं तो लड़के भांगड़ा करने लगे। सचमुच यह लोहड़ी का त्यौहार मैंने ख़ूब आनंदपूर्वक मनाया। यह मेरे लिए अविस्मरणीय रहेगा।
Essay on Lohri in Hindi Language – लोहड़ी पर निबंध ( 300 words )
भारत पर्वों का देश है जहाँ पर सभी त्योहार बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ धुमधाम से मनाए जाते हैं। लोहड़ी का पर्व उतर भारत का मुख्य त्योहार है जो कि विशेष रूप सो पंजाब में मनाया जाता है। लोहड़ी का पर्व पौष माह की अंतिम रात्रि और मकर संक्राति से पूर्व संध्या के मनाया जाता है। यह हर वर्ष 13 जनवरी को ही मनाया जाता है और इस समय सर्दी अपनी चरम सीमा पर होती है। । लोहड़ी का पर्व खुशियों का पर्व है और इसकी तैयारी 10 दिन पहले ही शुरू कर दी जाती है। लोहड़ी के पर्व का आरंभ सिंधु घाटी सभ्यता से हुई थी।
लोहड़ी के पर्व पर रात के समय सभी लोग आग के सामने बैठते हैं और मुँगफली, रेवड़ी आदि खाते हैं। पंजाब में लोग लोहड़ी के दिन अपने सांस्कृतिक वस्त्र पहनते हैं और गीत आदि गाते हैं। पुरूषों के द्वारा भंगड़ा किया जाता है और महिलाएँ अपना पंजाबी लोक नृत्य गिद्दा करती है। लोहड़ी के पर्व पर बेटियों को उपहार दिए जाते हैं। उनके लिए वस्त्र, मिठाईयाँ, मुँगफली, रेवड़ी आदि भेजी जाती है। लोहड़ी के पर्व पर जिसके घर में नई शादी होती है या पुत्र होता है तो उनके घर से पैसे या मिठाई ली जाती है और लिए हुए पैसों से सामुहिक लोहड़ी मनाई जाती है।
प्रत्येक परिवार लोहड़ी की आग की परिक्रमा करता है। इस दिन लोग बहुत से दान पुण्य भी करते हैं। लोहड़ी के पर्व पर घरों में विभिन्न तरह के व्यंजन भी बनाए जाते हैं। लोहड़ी की अग्नि के दो चार कोयले घर पर ले जाने की भी प्रथा है। लोहड़े से मिलते जुलते त्योहार दक्षिण में भी अलग अलग नामों से बनाए जाते हैं। लोहड़ी का पर्व अपने साथ बहुत सारी खुशियाँ लेकर आता है और सबके दिलों को मिठास से भर जाता है।
Essay on Lohri in Hindi Language – लोहड़ी पर निबंध ( 500 Words )
भूमिका – हर देश में त्योहारों और पर्वों का बड़ा महत्व होता है। ये पर्व और त्योहार किसी देश या जाति की संस्कृति का चित्र पेश करते हैं। इन त्योहारों को बड़े उत्साह से मनाया जाता है। लोहड़ी भी हमारे देश का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पर्व सारे देश में बड़ी धूम – धाम से मनाया जाता है। पंजाब में तो इसे एक विशेष ढंग से मनाया जाता है।
समय और स्थान –
यह पर्व माघ महीने की मकर सक्रांति (माघी) से एक दिन पहले मनाया जाता है। सर्दी का मौसम होता है। रात को खुले स्थान पर लोग इकठे होते हैं और गोल दायरे में बैठकर इसे मनाते हैं। बीच में लकड़ियों और गोबर के उपलों का ढेर चिन लिया जाता है। फिर ढेर को आग लगा दी जाती है।
मनाने की विधि –
आग के ढेर पर अनेक वस्तुए डाली जाती हैं, उनमें तिल, गुड़ और रेवड़ियाँ प्रधान होती हैं। कुछ लोग गायत्री मन्त्र पढ़कर आहुतियाँ देते हैं। फिर अग्नि की परिक्रमा करते हैं। सब लोग मिलकर रेवड़ियाँ खाते हैं और ढोल ढमाका होता हैं , भंगड़े डाले जाते हैं। जिनके घर बच्चे ने जन्म लिया होता है, वहाँ लोहड़ी बड़े उत्साह से मनाई जाती है।
सती – दहन से सम्बन्ध –
ऐसा भी कहा जाता है कि शंकर जी की पत्नी सती अपने पिता से नाराज़ होकर आग में कूद पड़ी और भस्म हो गई। शंकर जी को क्रोध आया। प्रजापति ने क्षमा मांग ली। तब शंकर जी ने क्षमा कर दिया दक्ष ने शंकर जी को विदा करते समय बहुत कुछ भेंट किया।
सुन्दरी – मुन्दरी की कथा –
ऐसा सुना जाता है की मुग़ल काल में किसी ब्राह्मण की दो लड़कियाँ थीं जिनका नाम सुन्दरी और मुन्दरी था। उन दोनो का रिश्ता किन्हीं ब्राह्मण युवकों से कर दिया गया था। कोई मुग़ल शासक उनसे विवाह करना चाहता था। ब्राह्मण युवक डर गये। उन्होंने उन लड़कीयों से विवाह करने से इनकार कर दिया। तब दुल्ला भट्टी नामक डाकू से किसी एकान्त प्रदेश में पिता बनकर उन दोनों लड़कियों का विवाह उन्हीं नोजवान युवक ब्राह्मणों से किया और शगुन में शक्कर दी।
लोहड़ी देवी से सम्बन्ध –
ऐसा कहा जाता है कि इस दिन लोहड़ी देवी ने एक क्रूर दैत्य को जलाकर भस्म कर दिया था। उसकी याद में यह दिन मनाया जाता है। मनाने के अन्य कारण – लोहड़ी का सम्बन्ध कृषि से भी है। इस दिन किसान आग के पास बैठ कर छः महीने का हिसाब – किताब करते हैं।
क्योंकि इन दिनों नई फ़सल घर आई होती है। इसका सम्बन्ध शीत ऋतु से भी है। अमीर – ग़रीब सब लोग तिल, चावल, रेवड़ियाँ आदि खाकर सर्दी मिटाते हैं और ऊँच – नीच का भेद – भाव मिट जाता है। इसका सम्बन्ध धर्म से भी है। इस दिन लोग हवन करके देवताओं को प्रसन्न करते हैं और जलती हुई आग की शिखा ऊपर उठने का संदेश देती है।
उपसंहार – लोहड़ी का त्योहार हमें एकता का सन्देश देता है। धनी अथवा निर्धन मिल – बैठकर एकता को बढ़ाना भी इस पर्व का उद्देश्य है।
Long Essay on Lohri in Hindi Language – लोहड़ी पर निबंध (700 words)
लोहड़ी पंजाब का एक खास त्योहार है, लेकिन यह प्रांतीय बाधाओं को पार कर गया है और हरियाणा, हिमाचल और दिल्ली में लोकप्रियता हासिल की है। लोहड़ी एक सर्दियों का त्योहार है और हर साल 13 जनवरी को आता है। यह पंजाबी संस्कृति में निहित है और हमें अवशोषित पंजाब के दिनों की याद दिलाता है। यह एक मौसमी त्योहार है जो हमें सर्दियों के उपहारों का आनंद लेने के लिए बोली लगा रहा है।
यहां तक कि लोहड़ी के कुछ दिन पहले, छोटे लड़के और लड़कियों को छोटे-छोटे समूहों में दरवाजे से दरवाजे पर जाने के लिए पैसे के रूप में लोहरि उपहार मांगने, गोबर के केक और अग्नि-लकड़ी के रूप में देखा जाता है। वे लोहड़ी दिन पर जश्न मनाने के लिए इन चीजों को जमा कर देते हैं। लोहड़ी दिवस पर, बच्चों को सड़कों में सुबह की शुरुआत में चलते देखा जाना चाहिए। वे हर दरवाजे पर जाते हैं और सुन्दर, मुंद्री और दुल्ला भट्टी के गीत को गाते हैं।
एक लड़का मुखड़ा गाता है और अन्य बस कोरस में जवाब देते हैं। यह वाकई एक अजीब गीत है जो एक अजीब तरीके से गाया जाता है। लड़कियों के बेवी एक अलग गाना गाने के बारे में जाते हैं। ये सभी गीत नए विवाहित जोड़े और नए जन्मजात पुत्रों की प्रशंसा में हैं बदले में, इन गायकों को सिक्कों के उपहार, उबला हुआ या छिद्रित मक्का और रीरिस और चिदवास प्राप्त होते हैं।
शाम मजेदार और उत्साह से चिह्नित है चावल और सरसों का सामान हर घर में पकाया जाता है। सड़क के किनारों पर खुशहाली और खुशहाल और सुखी घरों में हल्का प्रकाश डाला जाता है। दोस्तों, रिश्तेदारों और पड़ोसियों को समारोह में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया जाता है। महिलाएं गायन और नृत्य करने में मुख्य भूमिका निभाती हैं। बाजारों को स्वाद से सजाया गया है रीरिस, चिदव और पेर्ग मूंगफली की मांग बहुत ज्यादा है। रात के खाने में मक्के की रोटी, सरसो का साग, गज्जक, तिल, पॉपकॉर्न, गुड, मूंगफली आदि खाते हैं।
गांवों में, लोहारि त्योहारों पर पीने के लिए काफी आम है। किसान अमीर मक्का, धान, कपास और गन्ना फसलों के कारण खुश हैं। गन्ना के रस से कई तैयारियां बनाई गई हैं ड्रम को पीटा जाता है और भांगड़ा नृत्य किया जाता है। शक्कर के टुकड़ों को भस्म में गरम किया जाता है और जब वे धरती पर मारते हैं तो वे बम की तरह विस्फोट करते हैं। गर्म शर्करा नरम होता है और यह माना जाता है कि यह पुरानी खांसी और ठंड का इलाज करता है। लोहड़ी खुशी और दावत का एक त्योहार है। यह लोगों को खाने, पीने और आनंद लेने के लिए कहता है।
लोहड़ी की उत्पत्ति के बारे में बहुत कुछ पता नहीं है। फिर भी, यह बहुत उत्साह और उत्साह के साथ पंजाब में मनाया जाता है। माघी लोहड़ी की अगली कड़ी है। यह बहुत ही अगले दिन आता है। हरियाणा में, माघी को लोहड़ी से अधिक उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह शक्रति या माघ के बिक्रमी माह का पहला दिन है। लोहड़ी की शाम को पकाया जाने वाला चावल दलिया माघी सुबह को वितरित और खाया जाता है। यह मज़ेदार और उत्साह के अंत का प्रतीक है और लोगों को नए सिरे से शक्ति और जीवन शक्ति के साथ सही काम में अपने काम के लिए निर्धारित किया गया है। एक पंजाबी पंजाबी नहीं है, अगर वह लोहड़ी नहीं मनाते हैं। विदेशों में रहने वाले पंजाब भी लोहड़ी को समान उत्साह और उत्साह के साथ मनाते हैं।
हम आशा करते हैं कि आप इस निबंध ( Essay on Lohri in Hindi – लोहड़ी पर निबंध ) को पसंद करेंगे।
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लोहड़ी पर निबंध (Essay On Lohri In Hindi)- हमारा देश त्योहारों (Festivals) का देश है और हमारे देश की खास बात यह है कि यहाँ के लोग सभी त्योहार मिलजुल कर मनाते हैं। हमारे देश के सभी त्योहार हम सभी में एक नई खुशी और उमंग भर देते हैं। साल की शुरुआत लोहड़ी के त्योहार (Lohri Festival) से होती है, यानी कि साल में सबसे पहले लोहड़ी का त्योहार (Celebration Of Lohri) मनाया जाता है। अगर आप जानना चाहते हैं कि लोहड़ी क्यों मनाई जाती है, लोहड़ी कैसे मनाई जाती है, लोहड़ी माता की कथा क्या है, लोहड़ी का इतिहास क्या है, तो आपको हमारा लोहड़ी पर निबंध हिंदी में (Lohri Essay in Hindi) पढ़ना होगा।
Essay On Lohri In Hindi
ये तो हम सभी जानते हैं कि हर साल लोहड़ी का त्योहार (Festival of Lohri) मकर संक्रांति (Makar Sankranti) से एक दिन पहले यानी 13 जनवरी को मनाया जाता है। लेकिन लोहरी (Lohri) के बारे में संपूर्ण जानकारी (About Lohri in Hindi) प्राप्त करने के लिए आप इस पेज पर दिए गए Lohri Essay को पूरा पढ़ सकते हैं। इसके अलावा आप लोहरी त्यौहार से जुड़ी लोहड़ी की हार्दिक शुभकामनाएं, हैप्पी लोहड़ी विशेज, लोहड़ी कब है, लोहड़ी माता की कहानी भी Lohri Festival Essay in Hindi में पढ़ सकते हैं। Lohri in Hindi में निबंध नीचे से पढ़ें।
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लोहड़ी निबंध
हर त्योहार का अपना-अपना महत्त्व होता है और उसको मनाने के पीछे कोई-न-कोई ऐतिहासिक संदर्भ भी जरूर होता है। इसी तरह से लोहड़ी का भी अपना महत्त्व और इतिहास है, जिसे हम सभी को और खासकर बच्चों को जानना बहुत ज़रूरी है ताकि वह हिंदी में लोहड़ी पर निबंध (Essay On Lohri In Hindi) प्रतियोगिता में भाग ले सकें और लोहड़ी पर एक अच्छा निबंध प्रस्तुत कर सकें। ऐसा तभी होगा जब आपके पास लोहड़ी के बारे में पूरी जानकारी होगी। इसीलिए नीचे से लोहड़ी पर हिंदी में निबंध (lohri festival essay in hindi) को पूरा और ध्यानपूर्वक पढ़ें।
लोहड़ी पर निबंध Lohri Essay in Hindi
लोहड़ी (Lohri) पंजाबियों का मुख्य त्योहार है, जो विशेषकर उत्तर भारत के पंजाब प्रांत में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। लोहड़ी को मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है। लोहड़ी का पर्व मनाने के पीछे बहुत सी ऐतिहासिक कथाएं प्रचलित है। लोहड़ी के दिन पंजाब में फसल काटी जाती है और नई फसल बोई जाती है। इसे किसानों का नया साल भी कहा जाता है। लोहड़ी के पर्व को मनाने के पीछे धार्मिक कथाओं को भी महत्व दिया जाता है।
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लोहड़ी कैसे मनाई जाती है?
पंजाबियों के लिए लोहड़ी का खास महत्व होता है। लोहड़ी से कुछ दिन पहले से ही छोटे बच्चे लोहड़ी के गीत गाकर लोहड़ी के लिए लकड़ियां, मेवे, रेवड़ियां, मूंगफली आदि इकट्ठा करने लग जाते हैं। फिर जिस दिन लोहड़ी होती है उसकी शाम को आग जलाई जाती है। सभी लोग अग्नि के चारो ओर चक्कर काटते हुए नाचते-गाते हैं व आग मे रेवड़ी, मूंगफली, खील, मक्की के दानों की आहुति देते हैं। आग के चारों ओर बैठकर लोग आग सेकते हैं व रेवड़ी, खील, गज्जक, मक्का खाने का आनंद लेते हैं। जिस घर में नई शादी हुई हो या बच्चा हुआ हो उन्हें विशेष तौर पर बधाई दी जाती है।
भारत के पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड, बंगाल, ओडिशा आदि इन सभी राज्यों में लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है की लोहड़ी के पर्व से दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं। सिखों के इस त्योहार को हिंदू धर्म के लोग भी उतनी ही आस्था और धूमधाम के साथ मनाते हैं। यह त्योहार अन्य त्योहारों की तरह ही खुशी और उल्लास के साथ भारत में मनाया जाता है। यह ऐसा त्योहार है जिसे परिवार के सभी सदस्यों, रिश्तेदारों और दोस्तों एक साथ मिलकर मनाते हैं। लोहड़ी के दिन सभी लोग एक-दूसरे मिलते हैं और मिठाई बांटकर आनंद लेते हैं। यह सबसे प्रसिद्ध फसल कटाई का त्योहार है जो किसानों के लिए बहुत महत्व रखता है। लोग इस दिन आलाव जलाते हैं, गाना गाते हैं और उसके चारों ओर नाचते हैं।
लोहड़ी का महत्व बहुत अधिक है। लोहड़ी मनाने के पीछे कई महत्व बातें सुनने को मिलती हैं जैसे सर्दियों की मुख्य फसल गेहूँ है जो अक्टूबर मे बोई जाती है जबकि मार्च के अंत में और अप्रैल की शुरुआत में काटी जाती है। फसल काटने और इकट्ठा करके घर लाने से पहले किसान इस लोहड़ी त्योहार का आनंद मनाते हैं। यह हिन्दू कैलेंडर के अनुसार जनवरी के मध्य में पड़ता है, जब सूर्य पृथ्वी से दूर होता है। लोहड़ी का त्योहार सर्दी खत्म होने और वसंत के शुरू होने का भी सूचक है। हर कोई पूरे जीवन में सुख और समृद्धि पाने के लिए इस त्योहार का जश्न मनाते हैं।
लोहड़ी का इतिहास
अब हम जानते हैं कि लोहड़ी क्यों मनाई जाती है और लोहड़ी का इतिहास क्या है? लोहड़ी या लोहरी को पहले तिलोड़ी के नाम से जाना जाता था। यह शब्द तिल तथा रोडी (गुड़ की रोड़ी) शब्दों के मेल से बना है, जिसे अब हम सब लोहड़ी बोलते और लिखते हैं।
एक समय में सुंदरी और मुंदरी नाम की दो अनाथ लड़कियां थीं जिनको उनका चाचा विधिवत शादी न करके एक राजा को भेंट कर देना चाहता था। उसी समय में दुल्ला भट्टी नाम का एक नामी डाकू हुआ करता था। उसने दोनों लड़कियों, सुंदरी एवं मुंदरी को जालिमों से छुड़ाकर उन की शादियां की। इस मुसीबत की घड़ी में दुल्ला भट्टी ने लड़कियों की मदद की और लड़के वालों को मना कर एक जंगल में आग जला कर सुंदरी और मुंदरी का विवाह करवाया। दुल्ले ने खुद ही उन दोनों का कन्यादान किया।
कहते हैं कि दुल्ले ने शगुन के रूप में उनको शक्कर दी थी। दुल्ले ने उन लड़कियों की झोली में एक सेर शक्कर डालकर ही उनको विदा कर दिया। डाकू होकर भी दुल्ला भट्टी ने निर्धन लड़कियों के लिए पिता की भूमिका निभाई। यह भी कहा जाता है कि संत कबीर की पत्नी लोई की याद में भी यह पर्व मनाया जाता है, इसीलिए इसे लोई भी कहते हैं। इस तरह से यह त्योहार पूरे उत्तर भारत में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है।
लोहड़ी माता की कथा
लोहड़ी माता की कथा जानने से पहले आप सभी को नरवर किले के बारे में जानना जरूरी है। नरवर किला एक ऐतिहासिक किला माना गया है जिसके ऊपर बहुत ही प्राचीन कथाएं हैं जिनमें से एक लोहड़ी माता की कहानी भी है। लोहड़ी माता के बारे में विख्यात रूप से तो कोई भी नहीं बता सका है लेकिन ऐसा कहा जाता है कि नरवर किला और लोहड़ी माता का इतिहास ग्वालियर से करीब 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जिला शिवपुरी के नरवर शहर से संबंधित है।
नरवर का इतिहास करीब 200 वर्ष पुराना है। उस समय नल नामक एक राजा हुआ करते थे। 19वीं सदी में नरवर राजा ‘नल’ की राजधानी हुआ करती थी। नरवर जोकि बीसवीं शताब्दी में नल पुर निसदपुर नाम से भी जाना जाता था। बताया जाता है कि नरवर का किला समुद्र से 1600 और भू तल से 5 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। नरवर किले का क्षेत्रफल करीब 7 किलोमीटर में फैला हुआ है और इसी नरवर किले के सबसे नीचे वाले हिस्से में लोहड़ी माता का मंदिर है। वहां का लोहड़ी माता का मंदिर बहुत ही विख्यात है और प्रसिद्धि के साथ वहां बहुत लोग दर्शन करने जाते हैं। उत्तर भारत और मध्य भारत में लोहड़ी माता की काफी अधिक प्रसिद्धि है।
नल राजा को जुआ सट्टा खेलने की बहुत ही गंदी लत थी जिसके कारण नरवर राज्य अपने जिले में सारी की सारी संपत्ति हार गया था। बाद में राजा नल के पुत्र मारू ने नरवर को जीता और वहां राजकीय नरम मारू एक बहुत ही अच्छा राजा माना गया था। वहीं पर लोहड़ी माता का मंदिर बना हुआ है। इस मंदिर का इतिहास भी राजा नल के इतिहास से जुड़ा हुआ है। नरवर की स्थानीय कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि लोहड़ी माता समुदाय से ताल्लुक नहीं रखती थीं। बताया जाता है कि लोहड़ी माता को तांत्रिक विद्या में महारत हासिल थी। वह धागे के ऊपर चलने का असंभव सा काम भी किया करती थीं।
जब लोहड़ी माता ने अपना कारनामा राजा नल के भरे दरबार में दिखाया, तो राजा नल के मंत्री ने लोहड़ी माता से जलन के कारण वह धागा काट दिया जिसके कारण लोहड़ी माता की अकाल मृत्यु हो गयी। तभी से लोहड़ी माता के श्राप से नरवर का किला खंडहर में बदल गया। वर्तमान समय में लोहड़ी माता का मंदिर, लोहड़ी माता के भक्तों ने बनवाया है। यहां पूजा करने के लिए साल भर लाखों श्रद्धालुओं का तांता लग जाता है। लोहड़ी माता की मान्यता बहुत दूर-दूर तक है और प्रत्येक वर्ष हजारों लाखों की तादाद में लोग लोहड़ी माता के दर्शन करने जाते हैं।
लोहड़ी रेवड़ी, मूंगफली, गजक आदि बांटने के साथ-साथ खुशियाँ बांटने का भी त्योहार है। सिख धर्म के इस त्योहार का हम सभी को सम्मान करना चाहिए और आपस में मिलकर खुशी के साथ मनाना चाहिए। साथियों अगर आपको हमारा यह निबंध पढ़ने में अच्छा लगा हो और आपको लोहड़ी के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी मिली हो, तो इसे अपने दोस्तों के साथ साझा जरूर करें, ताकि वह भी जानकारी प्राप्त कर सकें।
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लोहड़ी की हार्दिक शुभकामनाएं
1. हम आपके दिल में रहते हैं,
इसलिए हर गम सहते हैं,
कोई हम से पहले न कह दे आप को,
इसलिए एक दिन पहले ही आपको
हैप्पी लोहड़ी कहते हैं ॥
2. दिल की ख़ुशी और अपनों का प्यार;
मुबारक हो आपको लोहड़ी का त्यौहार ||
लोहड़ी की शुभकामनाएं!
3. मीठे गुड़ में मिल गया तिल,
उड़ी पतंग और खिल गया दिल,
आपके जीवन में आये हर दिन सुख और शांति,
विश यू अ हैप्पी लोहड़ी॥
4. चाँद को चांदनी मुबारक,
दोस्त को दोस्ती मुबारक,
मुझको आप मुबारक,
मेरी तरफ से आपको लोहड़ी मुबारक॥
5. पॉपकॉर्न की खुशबू, मूंगफली रेवड़ी की बहार,
लोहरी का त्यौहार और अपनों का प्यार,
थोड़ी सी मस्ती, थोड़ा प्यार,
कुछ दिन पहले से आपको मुबारक हो
लोहड़ी का त्यौहार, हैप्पी लोहड़ी ||
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प्रश्न- लोहड़ी क्यों मनाते हैं?
उत्तरः लोहड़ी पारंपरिक तौर पर फसल की बुआई और उसकी कटाई से जुड़ा एक ख़ास त्योहार है। इस मौके पर पंजाब में नई फसल की पूजा करने की परंपरा है। इस दिन लड़के आग के पास भांगड़ा करते हैं, वहीं लड़कियां गिद्दा करती हैं। लोग दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ मिलकर धूम-धाम से लोहड़ी का जश्न मनाते हैं।
प्रश्न- लोहड़ी कैसे जलाते हैं?
उत्तरः इस दिन सभी अपने घरों और चौराहों के बाहर लोहड़ी जलाते हैं। आग का घेरा बनाकर दुल्ला भट्टी की कहानी सुनाते हुए रेवड़ी, मूंगफली और लावा खाते हैं। लोहड़ी (Lohri) का त्योहार शरद ऋतु के अंत में मनाया जाता है।
प्रश्न- लोहड़ी कब की है?
उत्तरः 13 जनवरी।
प्रश्न- लोहरी कहाँ मनाया जाता है?
उत्तर- यह लोहड़ी का त्यौहार पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू काश्मीर और हिमांचल में धूम धाम तथा हर्षोलास से मनाया जाता है। यह त्यौहार मकर संक्राति से एक दिन पहले 13 जनवरी को हर वर्ष मनाया जाता है।
प्रश्न- लोहड़ी क्यों मनाई जाती है बताइए?
उत्तर- लोहड़ी पारंपरिक तौर पर फसल की बुआई और उसकी कटाई से जुड़ा एक ख़ास त्योहार है। इस मौके पर पंजाब में नई फसल की पूजा करने की परंपरा है। इस दिन लड़के आग के पास भांगड़ा करते हैं, वहीं लड़कियां गिद्दा करती हैं।
प्रश्न- लोहड़ी का मतलब क्या होता है?
उत्तर- लोहड़ी शब्द तीन अक्षरों से मिलकर बना है ल से लकड़ी, ओह से गोहा यानि जलते हुए उपले व ड़ी से रेवड़ी। लोहड़ी को लाल लाही, लोहिता व खिचड़वार नाम से भी जाना जाता है। सिन्धी समाज भी इसे लाल लाही पर्व के रूप में मनाया जाता है। लोहड़ी की लोह मतलब अग्नि दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के योगाग्नि-दहन की याद में जलाई जाती है।
प्रश्न- लोहड़ी की पूजा कैसे की जाती है?
उत्तर- इस दिन श्रीकृष्ण, आदिशक्ति और अग्निदेव की विशेषतौर पर पूजा की जाती है। लोहड़ी के दिन घर में पश्चिम दिशा में आदिशक्ति की प्रतिमा या फिर चित्र स्थापित करें और सरसों के तेल का दीपक जलाएं। इसके बाद प्रतिमा पर सिंदूर और बेलपत्र चढ़ाएं। भोग में प्रभु को तिल के लड्डू चढ़ाएं।
प्रश्न- पंजाब में लोहड़ी को क्यों और किस प्रकार मनाया जाता है?
उत्तर- पारंपरिक तौर पर लोहड़ी फसल की बुआई और उसकी कटाई से जुड़ा एक विशेष त्यौहार है। इस अवसर पर पंजाब में नई फसल की पूजा करने की परंपरा है। इस दिन चौराहों पर लोहड़ी जलाई जाती है। सभी रिश्तेदार एक साथ मिलकर डांस करते हुए बहुत धूम-धाम से लोहड़ी का जश्न मनाते हैं।
प्रश्न- 13 जनवरी को कौन सा त्यौहार मनाया जाता है?
उत्तर- लोहड़ी पौष के अंतिम दिन, सूर्यास्त के बाद (माघ संक्रांति से पहली रात) यह पर्व मनाया जाता है। यह प्राय: 12 या 13 जनवरी को पड़ता है।
parikshapoint.com की तरफ से आपको और आपके पूरे परिवार को लोहड़ी 2024 की हार्दिक शुभकामनाएं।
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लोहड़ी पर निबंध
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रूपरेखा : प्रस्तावना - लोहड़ी कब है - लोहड़ी क्यों मनायी जाती है - लोहड़ी मनाने के पीछे का इतिहास - लोहड़ी कैसे मनाते है - आज की लोहड़ी - लोहड़ी मनाने का महत्व - उपसंहार।
लोहड़ी भारत के प्रसिद्ध त्योहारों में से एक त्यौहार है। यह पंजाब का सबसे लोकप्रिय त्यौहार है जिसे पंजाबी धर्म के लोगो द्वारा प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है। यह त्यौहार सर्दियों के महीने में मनाया जाता है। लोहड़ी के दिन माना जाता है की जब दिन साल का सबसे छोटा दिन और रात साल की सबसे बड़ी रात होती है । इस दिन आलाव जलाकर नृत्य और दुल्हा बत्ती के प्रशंसा गायन द्वारा किसानी त्यौहार के रूप मे मनाया जाता है। यह पंजाबियों का त्यौहार है किन्तु आज इसे भारत के उत्तरी राज्य जैसे हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, आदि राज्यो में रहने वाले लोगो के द्वारा भी मनाया जाता है।
वर्ष 2022 में लोहड़ी का त्योहार 13 जनवरी, गुरुवार के दिन मनाया गया ।
लोहड़ी पंजाब का सबसे लोकप्रिय त्यौहार है। पंजाबियों में लोहड़ी मनाने की बहुत सारी किस्से है जैसे माना जाता है कि नाम लोहड़ी शब्द "लोई" (संत कबीर की पत्नी) से उत्पन्न हुआ था। कुछ का कहना है कि यह शब्द "लोह" (चपाती बनाने के लिए प्रयुक्त उपकरण) से उत्पन्न हुआ था। लोहड़ी का त्योहार मनाने का एक और विश्वास है, कि लोहड़ी का जन्म होलिका की बहन के नाम पर हुआ लोग मानते है कि होलिका की बहन बच गयी थी, हालांकि होलिका खुद आग मे जल कर मर गयी। कई लोगों का मान्यता है कि लोहड़ी शब्द तिलोरही (तिल का और रोरही एक संयोजन) से उत्पन्न हुआ था। देश के किसान नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत के रूप में लोहड़ी मनाते हैं।
लोहङी मनाने के पीछे का इतिहास बहुत पुराना है। यह नए साल की निशानी है तथा वसंत के मौसम के शुरू होने के साथ ही सर्दी के मौसम के अंत का प्रतीक है। लोगो की मान्यता है कि लोहड़ी की रात साल की सबसे लंबी रात होती है, तब से प्रत्येक दिन बड़ा और रातें धीरे-धीरे छोटी होना शुरू हो जाती है। यह दुल्हा बत्ती की प्रशंसा में बड़े उत्साह में मनाया जाता है। राजा अकबर के समय में एक डाकू था जो अमीर लोगों के घरो से धन चोरी करता था और गरीब लोगों को बांट देता था। वह गरीब लोगों और असहाय लोगों के नायक की तरह था, उसने विभिन्न लड़कियों के जीवन को बचाया जो अजनबियों द्वारा जबरन अपने घर से दूर ले जायी गयी थी। उसने असहाय लड़कियों की उनके विवाह में दहेज का भुगतान करके मदद की। उसके महान कार्यों के लिए दुल्हा भट्टी की प्रशंसा मे लोहड़ी त्योहार मनाना शुरू कर दिया। लोहड़ी के दिन दक्षिण से उत्तर की दिशा में सूर्य की गति को इंगित करती है, और कर्क रेखा से मकर रेखा को प्रवेश करती है। लोहड़ी त्योहार भगवान सूर्य और आग को समर्पित है। यह हर पंजाबी के लिए खुशी का दिन होता है। लोहड़ी सिखों और हिंदुओं धर्मों के लोगों द्वारा मनाया जाता है।
यह त्यौहार अन्य त्योहारों की तरह ही बहुत सारी खुशी और उल्लास के साथ भारत में लोगों द्वारा मनाया जाता है। यह ऐसा त्यौहार है जहां परिवार के सभी सदस्यों, रिश्तेदारों और दोस्तों एक साथ मिलकर मनाते है। लोहड़ी के दिन सभी लोग एक-दूसरे मिलते है और मिठाई बॉटकर आनंद लेते है। यह सबसे प्रसिद्ध फसल कटाई का त्योहार है जो किसानों के लिए बहुत महत्व रखता है। लोग इस दिन आलाव जलाते है, गाना गाते है और उस के चारो ओर नाचते है। आलाव के चारो ओर गाते और नाचते समय आग मे कुछ टॉफी, तिल के बीज, गुड अन्य चीज़ें आग मे डालते है।
यह भारत के विभिन्न प्रांतो मे अलग अलग नामो से मनाया जाता है, जैसे आंध्र प्रदेश मे भोगी, असम मे मेघ बिहू, उत्तरप्रदेश, बिहार और कर्नाटक मे मकर संक्रांति, तमिलनाडू मे पोंगल आदि। इस दिन सभी सुन्दर और रंग बिरंगे कपडे पहनते है और ढोल (एक संगीत यंत्र) की थाप पर भांगड़ा(गिद्दा) करते है। शाम को एक पूजा समारोह रखा जाता है जिसमे लोग अग्नि की पूजा करते है और आलाव के चारो ओर परिक्रमा करते है भविष्य की समृद्धि के लिए आशीर्वाद प्राप्त करते है। तत्पश्चात लोग स्वादिष्ट भोजन जैसे मक्के की रोटी, सरसो का साग, तिल, गुड, आदि खाने का आनंद लेते है। लोहडी का त्योहार किसानों के लिए नए वित्तीय वर्ष के लिए एक प्रारंभिक रूप का प्रतीक है। यह भारत और विदेशो मे रहने वाले सभी पंजाबियो द्वारा प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है।
लोहडी का त्यौहार नवविवाहित जोडे के लिये उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि घर मे जन्मे पहले बच्चे के लिये। इस दिन, दुल्हन नई चूड़ियाँ, कपड़े, अच्छी बिंदी, मेंहदी, नए साड़ी पहनकर तैयार होती है वही दूसरी ओर नए कपडे और रंगीन पगड़ी पहने पति तैयार होता है। इस दिन हर नई दुल्हन को उसकी ससुराल की तरफ से नए कपड़े और गहने सहित बहुत से तोहफे दिये जाते है। दोनों परिवार (दूल्हे और दुल्हन) के सदस्यों की ओर से और अन्य मुख्य अतिथियो को इस भव्य समारोह में एक साथ आमंत्रित किया जाता है। नवविवाहित जोडा एक स्थान पर बैठा दिया जाता है और परिवार के अन्य सदस्यों, पड़ोसियों, दोस्तों, रिश्तेदारों द्वारा उन्हें कुछ उपहार दिये जाते है। वे सब उनके बेहतर जीवन और उज्जवल भविष्य के लिए नये जोड़े को आशीर्वाद देते है।
आज कल लोहङी उत्सव का आधुनिकीकरण हो गया है। पहले लोग उपहार देने के लिए गुड़ और तिल इस्तेमाल करते थे तथापि, आधुनिक लोगों ने चॉकलेट केक और चॉकलेट जैसे उपहार देना शुरू कर दिया है। क्योंकि वातावरण में बढ़ रहे प्रदूषण के कारण, लोग लोहङी मनाते समय पर्यावरण संरक्षण और इसकी सुरक्षा के बारे में अत्यधिक जागरूक और बहुत सचेत है। आलाव जलाने के लिए बहुत वृक्ष काटने के बजाय वृक्षारोपण कर के नए तरीके से लोहड़ी त्यौहार का आनंद लेते है।
लोहड़ी मनाने का कई महत्व बताई जाती है जैसे सर्दियों की मुख्य फसल गेहूँ है जो अक्टूबर मे बोई जाती है जबकि, मार्च के अंत मे और अप्रैल की शुरुआत मे काटी जाती है। फसल काटने और इकट्ठा करके घर लाने से पहले, किसान इस लोहड़ी त्योहार का आनंद मनाते हैं। यह हिन्दू कैलेंडर के अनुसार जनवरी के मध्य मे पङता है जब सूर्य पृथ्वी से दूर होता है। लोहङी का त्यौहार सर्दी खत्म होने और वसंत के शुरु होने का सूचक है। हर कोई पूरे जीवन मे सुख और समृद्धि पाने के लिए इस त्योहार का जश्न मनाने है। यह सबसे शुभ दिन माना है जो मकर राशि में सूर्य के प्रवेश को इंगित करता है।
लोहड़ी के दिन घर के बच्चे कुछ पैसे और खाद्य सामग्रियों की मांग करते है। शाम को सूर्यास्त के बाद, लोग एक साथ कटी हुई फसल के खेत मे एक बहुत बङा आलाव जलाते है। लोग आलाव के चारो ओर घेरा बनाकर गीत गाते और नाचते है और सुख समृद्धि के लिए अपने भगवान अग्नि और सूर्य से प्रार्थना करते हैं। पूजा समारोह के बाद वे अपने मित्रो, रिश्तेदारो, पङोसियो आदि से मिलते है और बधाई व बहुत सारी सुभकामनाओं के साथ उपहार, प्रसाद वितरित करते है। लोहड़ी के बाद का दिन माघ महीने की शुरुआत का संकेत है जो माघी दिन कहा जाता है। इस पवित्र दिन पर लोग गंगा मे डुबकी लगाते है और गरीबो को कुछ दान देते है। वे घर में नए बच्चे के जन्म और नवविवाहित जोङे के लिए एक बड़ी दावत की व्यवस्था करते है। यह एक महान पर्व है जब लोग अपने व्यस्त कार्यक्रम या जॉब से एक अल्प विराम लेकर एक दूसरे के साथ का आनंद लेते है। यह बहुत बड़ा उत्सव है जो सभी के लिए एकता और भाईचारे की भावना लाता है। पृथ्वी पर खुश और समृद्ध जीवन देने के लिए लोग अपने भगवान को धन्यवाद देते है।
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लोहड़ी पर निबंध | Essay on Lohori
लोहड़ी पर निबंध | Essay on Lohori!
मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व उत्तर भारत विशेषत: पंजाब में लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाता है । किसी न किसी नाम से मकर संक्रांति के दिन या उससे आस-पास भारत के विभिन्न प्रदेशों में कोई न कोई त्यौहार मनाया जाता है । मकर संक्रांति के दिन तमिल हिंदू पोंगल का त्यौहार मनाते हैं । इस प्रकार लगभग पूर्ण भारत में यह विविध रूपों में मनाया जाता है ।
मकर संक्रांति की पूर्व संध्या को पंजाब, हरियाणा व पड़ोसी राज्यों में बड़ी धूम-धाम से लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाता है । पंजाबियों के लिए लोहड़ी खास महत्व रखती है । लोहड़ी से कुछ दिन पहले से ही छोटे बच्चे लोहड़ी के गीत गाकर लोहड़ी हेतु लकड़ियां, मेवे, रेवडियां, मूंगफली इकट्ठा करने लग जाते है । लोहड़ी की संध्या को आग जलाई जाती है ।
लोग अग्नि के चारो ओर चक्कर काटते हुए नाचते-गाते हैं व आग मे रेवड़ी, मूंगफली, खील, मक्की के दानों की आहुति देते हैं । आग के चारो ओर बैठकर लोग आग सेंकते हैं व रेवड़ी, खील, गज्जक, मक्का खाने का आनंद लेते हैं । जिस घर में नई शादी हुई हो या बच्चा हुआ हो उन्हें विशेष तौर पर बधाई दी जाती है ।
ADVERTISEMENTS:
लोहड़ी को पहले तिलोडी कहा जाता था । यह शब्द तिल तथा रोडी (गुड की रोडी) शब्दों के मेल से बना है, जो समय के साथ बदल कर लोहडी के रुप में प्रसिद्ध हो गया ।
ऐतिहासिक संदर्भ
किसी समय में सुंदरी एवं मुंदरी नाम की दो अनाथ लड्कियां थीं जिनको उनका चाचा विधिवत शादी न करके एक राजा को भेंट कर देना चाहता था । उसी समय में दुल्ला भट्टी नाम का एक नामी डाकू द्दुआ है । उसने दोनों लड़कियों, सुंदरी एवं मुंदरी को जालिमों से छुडा कर उन की शादियां कीं । इस मुसीबत की घडी में दुल्ला भट्टी ने लड़कियों की मदद की और लडके वालों को मना कर एक जंगल में आग जला कर सुंदरी और मुंदरी का विवाह करवाया । दुल्ले ने खुद ही उन दोनों का कन्यादान किया । कहते हैं दुल्ले ने शगुन के रूप में उनको शक्कर दी थी ।
जल्दी-जल्दी में शादी की धूमधाम का इंतजाम भी न हो सका तो दुल्ले ने उन लड़कियों की झोली में एक सेर शक्कर डालकर ही उनको विदा कर दिया । भावार्थ यह है कि डाकू हो कर भी दुल्ला भट्टी ने निर्धन लड़कियों के लिए पिता की भूमिका निभाई ।
यह भी कहा जाता है कि संत कबीर की पत्नी लोई की याद में यह पर्व मनाया जाता है, इसीलिए इसे लोई भी कहा जाता है । इस प्रकार यह त्योहार पूरे उत्तर भारत में धूमधाम से मनाया जाता है ।
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लोहड़ी पर निबंध | Essay on Lohri in Hindi PDF
लोहणी उत्तर भारत के पंजाब राज्य का एक प्रमुख त्योहार है। जिसे पंजाब के लोग बहुत हर्षोल्लास के साथ मनाते है। हमारे देश में मकर संक्रांति के एक दिन पहले कई राज्य के लोग कोई ना कोई त्योहार मनाते है। और ये सभी त्योहार मकर संक्रांति का ही दूसरा रूप है। जिसका हर प्रांत में नाम तो बदल जाता है परंतु मनाने की आस्था एक जैसी ही होती है। मकर संक्रांति की पूर्व संध्या को पंजाब, हरियाणा राज्यों में लोहड़ी का त्योहार बहुत धूमधाम से मनाते है। हमारे देश में त्योहार कोई सा भी हो पर उसकी रौनक देखते ही बनती है। ऐसे ही नही हमारे देश की संस्कृति और परंपरा को लोग दूर दूर से देखने के लिए आते
लोहड़ी कैसे मनाते है
लोहड़ी के कुछ दिन पहले से ही पंजाब में छोटे छोटे बच्चे लोहड़ी के गीत गाकर लकड़ी, रेवड़ी, मूंगफली को इकट्ठा करने लगते है और लोहड़ी की शाम को आग जलाकर उसके चारो ओर घूमकर उसकी आहुति देते है और नाचते है और हाथ सेकते है। मंगल गीत गाते है और एक दूसरे को बधाइयां देते है। आग के चारोतरफ बैठकर रेवड़ी, तिल, गजक खाते है। लोहड़ी के दिन उस घर में कुछ ज्यादा ही रौनक देखने को मिलती है जिस घर में नई नई शादी हुई हो। उनके इस पहली लोहड़ी के दिन नए वर वधु अग्नि के चारो और घूमकर अपने आने वाले जीवन के लिए खुशियों की मंगल कामना करते है। और आस पडोस के बड़े बुजुर्गो के चरणस्पर्श करके उनसे आशीर्वाद लेते है। और लोहड़ी की खुशियां मनाते है।
लोहड़ी कब मनाया जाता है
लोहड़ी का त्योहार पौष माह की अंतिम रात एवं मकर संक्रांति की सुबह तक मनाया जाता है। ये त्यौहार प्रति वर्ष मकर सक्रांति के एक दिन पहले पंजाबियों के द्वारा बहुत ही हर्षोल्लास के साथ खुशी से मनाया जाता है।
लोहड़ी पर्व की पौराणिक कथा अनुसार
ये माना माना जाता है कि लोहड़ी की आग दक्ष प्रजापति की पुत्री माता सती की याद में जलाई जाती है। एक बार दक्षा प्रजापति में एक बहुत बड़ा यज्ञ रखा था जिसमें सभी को बुलाया किंतु शंकर जी का आमंत्रित नहीं करा था। क्योंकि दक्ष प्रजापति शंकर जी से नफरत करते थ।
इस अपमान को माता सती सहन नहीं कर पाई। और यज्ञ के हवन में अपनी आहुति दे दी। दक्ष प्रजापति की पुत्री माता सती कोई और नहीं बल्कि शंकर जी अर्धांगिनी माता पार्वती थी। माता सती की याद में तब से हर वर्ष लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाता है। यह त्यौहार जनवरी माह में आता है और हर वर्ष मकर संक्रांति त्योहार को मनाने से एक दिन पूर्व मनाया जाता है।
इसलिए पंजाबी समाज वाले इस दिन लकड़ी, रेवड़ी और मूंगफली की आहुति माता सती की याद में देते हैं।
एक और मान्यता के अनुसार लोहड़ी के दिन कंस को मारने के लिए लोहिता नाम की राक्षसी को गोकुल भेजा था। जिसे श्री कृष्ण ने खेल खेल में ही मार दिया था। और कहा जाता है कि तब सही लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाता है।
पढ़ें… महात्मा गांधी पर निबंध | Mahatma Gandhi essay in Hindi पढ़ें… क्रिसमस पर निबंध | Essay on Christmas day in Hindi
लोहड़ी के त्यौहार का महत्व
लोहड़ी के त्यौहार का पारंपरिक रूप से महत्व देखा जाए तो फसल की कटाई और नई फसल की बुवाई से जोड़ा जाता है। लोहड़ी के त्यौहार के दिन सूर्य देव और अग्नि देव के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है। उनकी कृपा से फसल अच्छी हुई और हर साल अच्छी होती रहे। और खेती में कोई समस्या ना आए इसी वजह से लोहड़ी की अग्नि में रवि की फसल के तौर पर तिल, रेवड़ी, गुड़, मूंगफली आदि चीजों को अग्नि को अर्पित किया जाता है। जिस तरह खेती की नई पैदावार की पूजा की जाती है। उसी प्रकार घर में आए कोई भी नए मेहमान जैसे कोई छोटा बच्चा, कोई नववधू, फसल के स्वागत के साथ-साथ उनका भी परिवार में स्वागत किया जाता है।
लोहड़ी के त्यौहार के पकवान
लोहड़ी का त्यौहार साल का सबसे पहला और बड़ा त्योहार माना जाता है। जिसे बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। पंजाब हरियाणा और दिल्ली में सिखों की तादाद ज्यादा है इसलिए इस त्यौहार की रोनक वहां सबसे ज्यादा देखी जा सकती है। लोहड़ी के त्यौहार में व्यंजन के रूप में रेवड़ी, गुड़, मूंगफली की गजक, मक्के दी रोटी सरसों का साग, दही भल्ला, आटे के लड्डू लोहड़ी के त्यौहार के विशेष व्यंजन और पकवान होते हैं।
लोहड़ी के त्यौहार में ऊंच-नीच जात पात आदि का भेदभाव नहीं किया जाता क्या छोटा क्या बड़ा क्या अमीर क्या गरीब सब इकट्ठे होकर एक साथ खाना खाते हैं। और साथ में मिलकर इसका लुफ्त उठाते हैं। इस त्यौहार में हवन करके देवताओं को खुश किया जाता है। सती द्वारा अपने पति के लिए अपना बलिदान और पंजाब के वीर सपूत दुल्ला भट्टी को याद करते हैं। यह त्यौहार एकता का प्रतीक है। और यह संदेश देता है कि राष्ट्र और समाज के लिए बड़ा सा बड़ा बलिदान देने के लिए हमेशा तैयार रहें और इसके लिए जरा भी संकोच ना करें। इसके साथ ही नई फसल की पैदावार की खुशियों को सबके साथ बनाने की परंपरा है इस लोहड़ी के त्यौहार में।
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- हिंदी निबंध संग्रह - Hindi Essay Collection
लोहड़ी पर निबंध – Lohri Essay In Hindi
Essay on Lohri in Hindi / Lohri par nibandh – जैसा कि हम जानते हैं कि भारत को त्योहारों का देश (Country of festivals) कहा जाता है क्योंकि भारत में विभिन्न धर्मों और समुदायों के लोगों द्वारा विभिन्न प्रकार के त्योहार मनाए जाते हैं.
नए साल की शुरुआत से लेकर साल के अंत तक, देश के सभी हिस्सों में राष्ट्रीय स्तर पर या क्षेत्रीय स्तर पर कोई न कोई त्योहार अलग-अलग समय पर मनाया जाता रहता है.
इसी तरह लोहड़ी का पर्व (Lohri festival) भी भारत देश में मनाया जाने वाला एक प्रमुख पर्व (Festival) है, जो अंग्रेजी वर्ष के पहले महीने यानी जनवरी में मनाया जाता है.
यह त्यौहार विशेष रूप से पंजाबी लोग (Punjabi people) मनाते हैं, लेकिन कुछ अन्य स्थानों पर भी लोहड़ी का त्यौहार बहुत ही धूमधाम और उल्लास के साथ मनाया जाता है.
यहां इस लेख में हम आपको लोहड़ी पर निबंध (Essay on Lohri) के माध्यम से लोहड़ी पर्व से जुड़ी सभी जानकारियां देने जा रहे हैं, जैसे कि लोहड़ी का पर्व क्या है और इसे क्यों मनाया जाता है? यह त्योहार कौन लोग मनाते है? और इस पर्व से जुड़ी प्रचलित कथा क्या है? इन सभी के बारे में हम आपको विस्तार से जानकारी देने जा रहे हैं.
यदि आप भी निबंध लेखन या भाषण के लिए लोहड़ी पर्व के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं, तो हमारे द्वारा लोहड़ी पर निबंध / लोहड़ी पर्व पर निबंध / Lohri Essay in Hindi से संबंधित जानकारी को अंत तक ध्यान से पढ़ें.
यह निबंध सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए उपयोगी है.
Table of Contents
लोहड़ी पर निबंध – Lohri Essay in Hindi
आपको बता दें कि लोहड़ी का त्योहार उत्तर भारत का खासकर पंजाब प्रांत और पंजाब के लोगों का प्रमुख त्योहार है. ढोल-नगाड़ों की थाप पर नाच-गाकर इस पर्व को बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है.
हर साल यह पर्व मकर संक्रांति (Makar Sankranti) से एक दिन पहले मनाया जाता है. लोहड़ी पौष महीने की आखिरी रात और मकर संक्रांति की सुबह तक मनाई जाती है.
लोहड़ी का त्योहार मनाने के पीछे कई ऐतिहासिक और धार्मिक कथाओं को महत्व दिया जाता है, जैसे सुंदरी-मुंदरी और डाकू दुल्ला भट्टी की कहानी, भगवान श्री कृष्ण और राक्षसी लोहिता की कहानी, संत कबीर दास की पत्नी लोई की याद में, आदि.
लोहड़ी पर्व से जुड़ी पौराणिक कथा – Legend related to Lohri festival
बताया जाता है कि बहुत समय पहले उत्तर भारत में कहीं दो अनाथ लड़कियां रहती थीं जिनमें से एक लड़की का नाम “सुंदरी” और दूसरी का नाम “मुंदरी” था.
सुंदरी और मुंदरी के एक चाचा भी थे जो धन-दौलत के लालच में उन दोनों बहनों की विधिवत शादी कराने के बजाय उन्हें एक राजा को उपहार के रूप में देना चाहते थे.
लेकिन उसी समय दुल्ला भट्टी (Dulla Bhatti) नाम का एक डाकू हुआ करता था, जिसने न केवल उन अनाथ लड़कियों को राजा को उपहार में दिए जाने से बचाया, बल्कि उनके लिए उपयुक्त वर भी ढूंढे और उनका विधिवत विवाह करवाया और उनका कन्यादान भी स्वयं किया.
यह भी कहा जाता है कि दुल्ला भट्टी ने शगुन के तौर पर उन लड़कियों को शक्कर भेंट की थी. दरअसल, आनन-फानन में शादी के धूमधाम के इंतजाम न हो सके, इसलिए दुल्ला ने उन लड़कियों की झोली में सेर शक्कर भरकर उनको विदा किया. तात्पर्य यह है कि दुल्ला भट्टी ने डाकू होने के बावजूद अनाथ लड़कियों के पिता की भूमिका निभाई.
लोहड़ी पर्व मनाने के पीछे और भी कई कथाएं प्रचलित हैं. कुछ लोगों का मानना है कि यह त्योहार संत कबीर दास जी (Saint Kabir Das) की पत्नी “लोही (Lohi)” की याद में मनाया जाता है, इसी तरह यह भी कहा जाता है कि लोहड़ी इसलिए मनाई जाती है क्योंकि महाराज कंस ने “लोहिता (Lohita)” नाम की राक्षसी को बालक रूप भगवान श्री कृष्ण को मारने के उद्देश्य से भेजा था, लेकिन भगवान श्री कृष्ण ने खेलते-खेलते उस राक्षसी का ही वध कर दिया.
लोहड़ी का त्यौहार कब और कैसे मनाया जाता है? When and how is the festival of Lohri celebrated?
लोहड़ी का त्यौहार हर साल मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है क्योंकि हर साल मकर संक्रांति 14 जनवरी को पड़ती है, इस तरह लोहड़ी 13 जनवरी को मनाई जाती है. माना जाता है कि उसी समय से दिन छोटे और रातें बड़ी होने लगती हैं.
- यह नए साल की शुरुआत का प्रतीक है और वसंत के मौसम की शुरुआत के साथ-साथ सर्दियों के मौसम के अंत का भी प्रतीक है.
छोटे बच्चे लोहड़ी के कुछ दिन पहले से ही लोहड़ी की तैयारी शुरू कर देते हैं, वे लोहड़ी के लिए लकड़ियां, सूखे मेवे, रेवड़ी, मूंगफली आदि इकट्ठा करना शुरू कर देते हैं.
लोहड़ी के दिन, सभी नए कपड़े पहनते हैं और जश्न मनाने के लिए ढोल की थाप पर एक साथ नृत्य करते हैं, इस शुभ दिन का आनंद लेते हैं और पारंपरिक नृत्य यानी भांगड़ा (Bhangra) भी करते हैं.
लोहड़ी की असली रौनक तो शाम के समय होती है, जिसे मनाने के लिए लोग पहले एक स्थान पर गोबर के उपले और लकड़ियां इकट्ठा करते हैं और उनका ढेर बनाते हैं और फिर अंधेरा होते ही उन्हें जलाकर उनकी परिक्रमा करते हैं.
सभी माताएं अपने छोटे-छोटे बच्चों को गोद में लेकर लोहड़ी की अग्नि-परिक्रमा करती हैं और अग्नि में मूंगफली, रेवड़ी, सूखे मेवे, गजक, मक्का के दाने आदि की आहुति देती हैं. ऐसा करने के पीछे मान्यता यह है कि लोहड़ी की परिक्रमा करने से बच्चे को नजर नहीं लगती है.
किसान उपहार के रूप में अग्नि देवता को अपनी नई फसल की आंशिक आहुति देते हैं. प्रसाद के रूप में रेवड़ी, मक्का के दाने, मूंगफली, सूखे मेवे, लावा, तिल आदि का मिश्रण सभी लोगों में बांटा जाता है.
यह दिन नवविवाहित जोड़ों और नवजात शिशुओं के लिए भी बेहद खास माना जाता है. जिसके घर में शादी के बाद पहली लोहड़ी या बच्चे की पहली लोहड़ी होती है, उसे विशेष बधाई दी जाती है.
नवविवाहित दूल्हा-दुल्हन अग्नि की परिक्रमा करते हुए अपने सुखी जीवन की कामना करते हैं और बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. इस दिन लड़की के घरवाले मूंगफली, रेवड़ी, सूखे मेवे, मक्का, कपड़े और मिठाई उसके ससुराल भेजते हैं.
- इस अवसर पर हर कोई अपने और अपने परिवार के सुखी जीवन की कामना करता है.
फसल की कटाई और बुआई से जुड़ा है लोहड़ी का यह त्यौहार.
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि पंजाब के लगभग सभी लोग किसी न किसी रूप में खेती से जुड़े हुए हैं. यही कारण है कि पंजाब में बड़ी संख्या में ऐसे किसान हैं जो अपनी खेती में कड़ी मेहनत भी करते हैं.
लोहड़ी का त्योहार किसानों द्वारा अपनी फसल के कटने की खुशी के साथ-साथ नई फसल बोने की खुशी में मनाया जाता है. लोहड़ी को किसानों का नववर्ष (New year) भी कहा जाता है.
सभी किसान भाई और उनके परिवार इस दिन को हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं, भांगड़ा करते हैं और एक साथ बोलियों में गीत गाते हैं.
लोहड़ी विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा और आसपास के राज्यों में मनाई जाती है. लोहड़ी मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है. यह पंजाब के लोगों के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है और इसे पंजाबी किसानों का नया साल भी कहा जाता है.
लोहड़ी पर 10 पंक्तियां हिंदी में (10 Lines on Lohri in Hindi)
- लोहड़ी त्योहार उत्तर भारत का खासकर पंजाब के लोगों का प्रमुख त्योहार है. पहले लोहड़ी के त्योहार को “तिरोड़ी” के नाम से जाना जाता था.
- यह पर्व “मकर संक्रांति” से एक दिन पहले मनाया जाता है.
- छोटे बच्चे लोहड़ी के कुछ दिन पहले से ही लोहड़ी की तैयारी शुरू कर देते हैं.
- शाम को अंधेरा होते ही गोबर के उपले और लकड़ी जलाकर उनकी परिक्रमा की जाती है.
- सभी माताएं अपने छोटे-छोटे बच्चों को गोद में लेकर लोहड़ी की अग्नि-परिक्रमा करती हैं.
- किसान उपहार के रूप में अग्नि देवता को अपनी नई फसल की आंशिक आहुति देते हैं.
- ढोल-नगाड़ों की थाप पर नाच-गाकर इस पर्व को बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है और पारंपरिक नृत्य यानी भांगड़ा भी किया जाता हैं.
- प्रसाद के रूप में रेवड़ी, मक्का के दाने, मूंगफली, सूखे मेवे, लावा, तिल आदि का मिश्रण सभी लोगों में बांटा जाता है.
Q: लोहड़ी का त्यौहार कब मनाया जाता है?
A: लोहड़ी का त्योहार हर साल 13 जनवरी को मनाया जाता है.
Q: भारत में किन-किन जगहों पर लोहड़ी मनाई जाती है?
A: लोहड़ी भारत में मुख्य रूप से पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, जम्मू और कश्मीर, बंगाल, हिमाचल प्रदेश और ओडिशा, आदि में बड़े पैमाने पर मनाई जाती है.
Q: लोहड़ी का पूर्व नाम क्या था?
A: पहले लोहड़ी के त्योहार को “तिरोड़ी (Tirodi)” के नाम से जाना जाता था. तिरोड़ी शब्द “तिल” और “रोड़ी” (गुड़ की रोड़ी) इन दो शब्दों से मिलकर बना है. लेकिन अब इस त्योहार का नाम बदलकर लोहड़ी कर दिया गया है और अब पूरे भारत में इसे लोहड़ी के नाम से ही जाना जाता है.
Q: दुल्ला भट्टी कौन था?
A: लोहड़ी का त्योहार दुल्ला भट्टी नाम के एक शख्स की कहानी से जुड़ा है. लोहड़ी के सभी गीत दुल्ला भट्टी के संदर्भ में गाए जाते हैं और यह भी कहा जाता है कि दुल्ला भट्टी को लोहड़ी गीतों का केंद्र बिंदु बनाया गया था.
ऐसा माना जाता है कि दुल्ला भट्टी मुगल सम्राट अकबर के समय में पंजाब में रहता था और वह एक लुटेरा था. उसे पंजाब के “नायक” की उपाधि से सम्मानित किया गया था.
उस समय कुछ लोग धन-दौलत की लालच में लड़कियों को जबरदस्ती अमीर लोगों के पास गुलामी के लिए बेच देते थे. इसके लिए दुल्ला भट्टी ने न सिर्फ एक योजना के तहत लड़कियों को आजाद कराया बल्कि उनकी हिंदू लड़कों से शादी भी करा दी.
इन्हीं ऐतिहासिक कारणों से पंजाब में लोहड़ी का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है और दुल्ला भट्टी का नाम आज भी लोक कथाओं में लिया जाता है.
Q: लोहड़ी के त्योहार के लिए प्रसाद बनाने के लिए कौन सी चीजें जरूरी हैं?
A: लोहड़ी का प्रसाद बनाने के लिए कुछ मुख्य चीजों का मिश्रण बनाया जाता है जैसे- रेवड़ी, मूंगफली, मक्का, मेवा, लावा, तिल आदि.
Q: लोहड़ी व्याहना रस्म क्या है?
A: इस पर्व पर कुछ शरारती युवक दूसरे मोहल्ले में जाते हैं और जहां लोहड़ी जलती हुई नजर आती है, वहां से जलती लकड़ी उठाकर अपने मोहल्ले की लोहड़ी की आग में डाल देते हैं, इसे लोहड़ी व्याहना कहते हैं.
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Essay on Lohri in Hindi । लोहड़ी पर निबंध हिंदी में
Essay on Lohri in Hindi । लोहड़ी निबंध हिंदी में
लोहड़ी पर निबंध हिंदी में । Essay on Lohri in Hindi
Hindi Essay: आज हम Essay on Lohri in Hindi | लोहड़ी निबंध हिंदी में पढ़ेंगे। लोहड़ी पर लिखा यह निबंध (Lohri Nibandh) बच्चों (kids) जो class 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 के विद्यार्थियों के लिए फायदेमंद हो सकता है. इसे speech, Paragraph और Nibandh के रूप में भी प्रस्तुत कर सकते हैं। आओ पढ़ते हैं लोहड़ी पर निबंध Essay on Lohri in Hindi is Important for all classes 3rd to 12th.
लोहड़ी पर निबंध (Essay on Lohri in Hindi, Lohri Par Nibandh Hindi mein)
भूमिका- पंजाब मेलों और त्योहारों का राज्य है। यहां आए दिन कहीं न कहीं कोई न कोई मेला या त्योहार देखने को मिलता है। वास्तव में, ये मेले और त्यौहार पंजाबियों का आत्मा भोजन हैं। क्योंकि पंजाबी इतने खुले विचारों वाले होते हैं कि नाच-गाकर हर खुशी का इजहार करना चाहते हैं। यह मेले और त्यौहार उनकी खुशी व्यक्त करने का एक बहाना है।
लोहड़ी का अर्थ- लोहड़ी शब्द की उत्पत्ति तिल रोड़ी से हुई है। पहले यह नाम ‘तिलोढ़ी’ प्रचलित हुआ जो बाद में लोहड़ी बन गया।
पंजाब का लोहड़ी पर्व- वैसे तो पंजाब में हर त्योहार पूरे जोश के साथ मनाया जाता है। 23 लाहरी का त्योहार सिर्फ पंजाबी अलग-अलग अंदाज में नाच-गाकर मनाते हैं। 31 वैसे तो यह पर्व सभी भागों में मनाया जाता है कहां – जहां पंजाबी रहते हैं। आजकल पंजाबियों को देखते हुए दूसरे लोग भी इसे मनाने लगे हैं। क्योंकि यह पर्व खुशियों का पर्व है। यह हर साल तेरी जनवरी को मनाया जाता है और अगले दिन माघी उत्सव आयोजित किया जाता है।
हर्षोल्लास का पर्व- लोहड़ी का पर्व हर्षोल्लास का पर्व है। वैसे तो यह सभी लोगों द्वारा मनाया जाता है, लेकिन जिन लोगों के बेटे का जन्म हुआ या पिछले साल किसी के बेटे की शादी हुई, वे लोग इसे खास तरीके से मनाते हैं और लोहड़ी बांटते हैं। गांवों में इस पर्व की तैयारियां कई दिन पहले से ही शुरू हो जाती हैं। महिलाओं को एक बड़ी सभा में एक साथ इकट्ठा होते हुए, सुंदर कपड़े पहने, सिर पर परात लिए, टोकरियाँ लिए और घर-घर में नाड़ी बांटते हुए देखना आम बात है। लोग अपने रिश्तेदारों मित्रों आदि को रायद, मूंगफली, चिराड, बिस्कुट, फल आदि बांटते हैं। रात में वे अपने घरों में आग जलाते हैं और सभी रिश्तेदारों को घर बुलाते हैं। लोग तिल आदि को धुएँ में फेंक देते हैं। लोग आधी रात तक इस धुनी का आनंद लेते हैं। धूनी के आसपास गिद्धों का बड़ा शोर है। आजकल वगैरा के साथ सिर्फ तलाक ही अच्छा डांस करते हैं।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि- लोहड़ी के पर्व से एक घटना भी जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि एक ब्राह्मण की दो बेटियां सुंदरी और मुंदरी थीं।उनका रिश्ता पास के एक गांव में था। लेकिन उस गांव का शासक उन लड़कियों पर बुरी नजर रखता था लड़के उस शासक से डरते थे। इस वजह से लड़कों ने ब्राह्मणों की बेटियों से शादी करने से मना कर दिया। दुल्ला भट्टी एक डकैत था लेकिन वह गरीबों के प्रति सहानुभूति रखता था। बहमन ने अपनी कहानी दुल्ला को सुनाई। सुस्त ने उस रात ब्राह्मण लड़कियों को जंगल में आमंत्रित किया। लड़कों को भी वहीं बुलाया गया। उसने ब्राह्मण लड़कियों को अपनी धार्मिक बहनें बनायीं और उनसे शादी कर ली। उन्होंने उनकी गोद में थोड़ा सा शंकर रखा और उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी ली। उस दिन से यह गाना लोकप्रिय हो गया
‘सुन्दर- मुंदरिये तेरा कोण विचारा, दुल्ला भट्टी वाला ………………….
बच्चों का लोहड़ी मांगने जाना- गांवों में बच्चे कई दिन पहले से ही ग्रुप बनाकर लोहड़ी मांगने लगते हैं। वे सुंदरी और मुंदरी या दुल्ला-भट्टी का गीत गाकर लोहड़ी मांगते हैं। घरवाले उन्हें पैसे देते हैं, रेवड़ियां, मूंगफली आदि देते हैं। लोहड़ी रात में खुली जगह पर जलाई जाती है। लोग यहां जमा होते हैं। आग आधी रात तक जलती रहती है। लोग उसमें तिल आदि फेंकते हैं और कहते हैं, ‘ईशवरआये, दलीदर जाए।’ लोगों का मानना है कि इस दिन के बाद ठंड कम होगी और अच्छा मौसम आएगा। इसलिए वे राख को धुएँ में जलाते हैं।
सारांश- लोहड़ी का पर्व हर्षोल्लास का पर्व है। पहले लोहड़ी लड़के का जन्म मनाने की प्रथा थी, लेकिन अब लोग बेटी के जन्म का भी जश्न मनाकर खुशी का इजहार करते हैं। जो बहुत ही सराहनीय कार्य है। इसी के साथ लड़का-लड़की का भेद खत्म हो रहा है और यह खुशी का त्योहार बेटा-बेटी दोनों का खुशी का त्योहार बन गया है।
हमें उम्मीद है आपको इस पोस्ट में लोहड़ी पर निबंध (Essay on Lohri in Hindi) हिन्दी में अच्छा लगा होगा। स्कूल के विद्यार्थी जो लोहड़ी पर निबंध की खोज में हैं वे इस लोहड़ी पर सुंदर निबंध की मदद ले सकते हैं। यह लोहड़ी पर निबंध Essay on Lohri in Hindi Class 3, 4, 5, 6 , 7, 8, 9, 10 मे पूछा जा सकता है।
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लोहड़ी पर निबंध essay on lohri in hindi.
Hello, guys today we are going to discuss essay Lohri in Hindi. साइबर सुरक्षा पर निबंध। Lohri essay in Hindi was asked in many competitive exams as well as classes in 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12. Read an essay on Lohri in Hindi to get better results in your exams.
Essay on Lohri in Hindi लोहड़ी पर निबंध
Essay on Lohri in Hindi 200 Words
‘लोहड़ी पंजाबी लोगों का एक प्रसिद्व त्यौहार है। यह उत्तर भारत में पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू राज्यों में मनाया जाता हैं। यह जनवरी के 13 वें दिन मनाया जाता हैं जो हिन्दू कैलेंडर के अनुसार पौष या मग के महीने में पड़ता है। इसके अलावा लोग इस दिन नए कपड़े भी पहनते हैं और भंगडा करते हैं जो पंजाब का लोक नृत्य है। ऐसा माना जाता है कि यह त्यौहार उस दिन मनाया जाता है जब दिन छोटे हो जाते है और रातें लम्बी होती हैं। लोहड़ी से कुछ दिन पहले छोटे लड़को और लड़कियों को छोटे समूहों में दरवाजे से दरवाजे पर घूमते देखा जा सकता हैं, जो लोहड़ी के पैसे, गोबर के कंडे और लकडी मांगते है।
लोहड़ी का मुख्यत यह विश्वास है कि लोहड़ी सर्दी में संक्रांति का सांस्कृतिक उत्सव है। इस त्यौहार पर लोग आग जलाकर चारों तरफ इक्टठा होते हैं, रेवडी, फूले आग में फेकते है और लोकप्रिय गाने गाते हैं और सबको बधाई देते हैं। प्रसाद में छः मुख्य चीजें शामिल है – तिल, गाजक, गुड, मूंगफली, फूलिया और पॉपकॉर्न। भारत के लोग लोहड़ी को अन्य त्योहारों की तरह खुशीयों के साथ मनाते हैं।
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Essay on Lohri in Hindi 700 Words
हमारे भारत देश में सभी त्योहार बड़े उत्साह से मनाये जाते हैं। लोहड़ी देश का विशेषकर पंजाब का प्रसिद्ध त्योहार है। लोहड़ी शब्द दो शब्दों के मेल से बना है- तिल+रोड़ी=तिलोड़ी बाद में यह शब्द बिगड़कर लोहड़ी, लोही और लोई के नाम से मशहूर हो गया। यह त्योहार माघ मास को मकर संक्रान्ति से एक दिन पहले रात के समय मनाया जाता है।
यह त्योहार वैदिक काल से चला आ रहा है। पुराने समय में देवताओं को खुश रखने के लिए आर्य लोग हवन-यज्ञ किया करते थे। हवन से सारा वातावरण कीयणु रहित और शुद्ध हो जाता एवं यह वर्षा करने में भी सहयोग देते हैं जिससे किसानों की खेती भी भरपूर होती थी।
‘सती दहन’ की पौराणिक कथा से भी यह त्योहार जुड़ा हुआ है। लोहड़ी के त्योहार पर वधुपक्ष वाले वर पक्ष वालों का खूब आदर-सत्कार करके उन्हें रेवड़ी, मिठाई, कपड़े आदि उपहार के रूप में देते हैं।
इस त्योहार का सम्बन्ध मुग़ल काल के डाकू दुल्ला भट्टी से भी जुड़ा हुआ है। जो अमीरों के प्रति क्रूर व ग़रीबों के प्रति दयालु था। एक दिन जंगल में दुल्ला भट्टी ने ग़रीब ब्राह्मण को रोते हुए गुज़रते देखा। उसने ब्राह्मण के रोने का कारण पूछा। ब्राह्मण ने बताया कि उसकी सुन्दरी और मुन्दरी नाम की दो सुन्दर कन्याएँ है। राजा दोनों कन्याओं को प्राप्त करना चाहता है। उसकी राम कहानी सुनकर डाकू का दिल पसीज गया। उसने ब्राह्मण को धीरज बँधाया। |
राजा को कानों-कान ख़बर न हो इसलिए जंगल में रात के अंधेरे में आग जलाकर गाँव के सब लोग इकट्ठे हो गए। दुल्ला भट्टी ने धर्म-पिता बनकर सुन्दरी और मुन्दरी का कन्यादान किया। भाँवर के समय उनके द्वारा ओढ़े हुए सालू (दुपट्टे) भी फटे हुए थे। ग़रीब ब्राह्मण के पास देने के लिए कुछ नहीं था। गाँव वालों ने भरपूर सहायता की। जिनके वहाँ पुत्रों का विवाह या पुत्र / पौत्र पैदा हुए थे उन्होंने कन्याओं को खुशी में विशेष उपहार दिए। दुल्ला भट्टी के पास उस समय केवल सेर (1000 ग्राम) शक्कर थी। उसने शगुन में वही दी। इस घटना के बाद हर वर्ष लोहड़ी आग जलाकर मनाई जाती है। आज भी माँबाप अपनी बेटियों को उपहार स्वरूप सामग्री भेंट करते है।
लोहड़ी बाँटना और माँगना
इन दिनों मकई, दालें, बाजरा, तिलहन, मूंगफली आदि फसलें घर आ जाती है। नाई, धोबी, ग्वाला, कुम्हार, कहार आदि सेवकों और ग़रीबों को दान दिया जाता है। फ़सल का कुछ अंश अग्नि में आहुति के रूप में डाला जाता है। इस त्योहार में अमीर-गरीब, छोटे-बड़े, हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख-ईसाई का कोई भेदभाव नहीं होता।
कई दिन पहले से ही लड़के-लड़कियाँ टोलियाँ बनाकर यह लोकगीत गाकर घर-घर लोहड़ी माँगने जाते हैं। लोहड़ी माँगते समय गाये जाने वाले लोकगीत इस प्रकार हैं…..
”दे माई पाथी, तेरा पुत चढूगा हाथी। हाथी हेठ कटोरा, तेरे पुत जम्मूगा गोरा। गोरे ने खादी टिक्की, तेरे पुत-पौत्रे इक्की इक्कियां ने कीती कमाई, सानू टोकरा भरके पाईं।”
सुन्दर मुन्दरीये-हो, तेरा कौन विचारा हो, दुल्ला भट्टी वाला हो, दुल्ले दी धी ब्याही हो, सेर शक्कर पाई हो, कुड़ी दा सालू पाटा हो, कुड़ी का जीवे चाचा हो, चाचा चूरी कुट्टी हो, लम्बरदारा लुट्टी हो, गिन-गिन पोले लाए हो, इक पोला रह गया हो, सिपाही फड़ के लै गया हो…
” साडे पैरा हेठ सलाइयां, असी केहड़े वेले दीया आइयां। साडे पैरा हेठ रोड़, सानू छेती-छेती तोर।”
मनाने का ढंग
लोग लोहड़ी के रूप में पैसे मूंगफली, रेवड़ी, उपले, लकड़ियां इत्यादि देते हैं। जिनके यहां उस वर्ष लड़के की नई शादी या फिर पुत्र/पौत्र आदि पैदा हुआ होता है, उनके घरों से विशेष तौर पर बधाई माँगी जाती है। उनसे हठ करके ज्यादा पैसे और सामान की माँग की जाती है। पड़ोसियों एवं रिश्तेदारों के साथ मिलकर फिर रात को गोलाकार में उपले ओर लकड़ियां लगाकर फिर उन्हें जलाया जाता है। उसमें आहुति के रूप में घी, तिल, चिड़वे आदि डालते हुए गाया जाता है –
“ईशर आ दलिद्र जा, दलिद्र दी जड़, चुल्हे पा।”
फिर गली-मुहल्ले वाले सब मिलकर रेवड़ी, भुग्गा, मूंगफली, गच्चक, खीलें और पकवान खाते हैं। यह त्योहार आमतौर पर 13 जनवरी के आस-पास होता है। ‘लोहड़ी पाला खोड़ी’ कहा जाता है। आजकल जलती हुई आग के निकट बैठकर लोग लोकगीत गाते हैं और गिद्धा, भंगड़ा आदि लोकनृत्य करते हैं, जिससे इस त्योहार का आनंद और बढ़ जाता है।
जलती हुई आग़ की शिखा भेदभाव से ऊपर उठने की प्रेरणा देती है। लोहड़ी का त्योहार गुड़ और तिल की तरह एक हो जाने, प्यार, हँसी और खुशी से एकता को बढ़ाने का संदेश देता है।
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Hindi Essay on “Lohri”, “लोहड़ी” Complete Essay, Paragraph, Speech for Class 7, 8, 9, 10, 12 Students.
पंजाब की धरती उत्सवों तथा त्यौहारों की धरती है। यही धरती जहा एक ओर धन-वैभव से भरपूर है, वहीं दूसरी ओर उत्सवों एवं त्यौहारों द्वारा लोगों को एक आदर्श का मीठा सन्देश भी देती है। लोहडी उत्तर भारत का एक लोकप्रिय त्यौहार है। आपसी प्रेम और भाईचारे की उदाहरण कायम रखने वाला एक अनूठा पर्व है लोहडी जोकि प्रतिवर्ष 13 जनवरी को (अथवा मकर संक्रान्ति से एक दिन पूर्व) मनाया जाता है।
इसकी शुरूआत कैसे हुई इस सम्बन्ध में एक कथा है- इस माह में सूर्य देव दक्षिण में चले जाते हैं जिससे रातें लम्बी और दिन छोटे हो जाते हैं।
दूसरा यह भी कहा जाता है कि पुराने समय में ऋषि-मनि, देवताओं को प्रसन्न करने के लिए इस दिन यज्ञ-हवन आदि का आरम्भ किया करते थे।
ऐसा भी सुनने में आता है कि लोहडी के दिन अरणी मंथन के द्वारा अग्नि प्रज्वलित करने की प्रथा थी। इसलिए हमारे ऋषि-मुनि अरणी मंथन के लिए सभी घरों से अरणी नामक ईंधन (अरणी का अर्थ हैं जंगल से बीनी हुई सूखी लकड़ी व गोबर के उपले) मांग कर एक जगह जमा करते थे तथा लोहड़ी के दिन वैदिक मन्त्रों से अग्नि प्रज्वलित करते थे। उस पवित्र अग्नि में तिल, गुड़, चावल, सूखे मेवे तथा घी की आहुति देते थे।
लोहड़ी का सम्बन्ध सुन्दरी नामक कन्या तथा दुल्ला भट्टी नामक एक डाकू से भी जोड़ा जाता है। इस सम्बन्ध में प्रचलित ऐतिहासिक कथा के अनुसार गंजीबार क्षेत्र में एक ब्राह्मण रहता था जिसकी सन्दरी नामक अति सुन्दर कन्या थी। गंजीबार के राजा को जब यह मालूम हुआ तो उसने सुन्दरी को अपने महल की शोभा बनाने का निश्चय किया तथा तरह-तरह के प्रलोभन दिए। ब्राह्मण को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। तब वह ब्राह्मण जंगल में रहने वाले वीर योद्धा दुल्ला भट्टी नामक डाकू से मिला और अपनी सारी कथा सुनाई। यद्यपि दुल्ला भट्टी एक डाकू था परन्तु वह गरीबों की सहायता करने के लिए सदा तैयार रहता था। दुल्ला भट्टी ने उसी रात अपनी बेटी की तरह एक सयोग्य ब्राह्मण के साथ सुन्दरी का विवाह करवा कर उसका कन्यादान कर दिया। उस समय उसके पास सुन्दरी को देने के लिए थोड़ी सी शक्कर थी। जब राजा को इस बात का पता चला तो उसने दुल्ला भट्टी को ठिकाने लगाने के लिए अपनी सेना भेजी। दुल्ला भट्टी और उसके साथियों ने अपनी पूरी ताकत से राजा के सैनिकों को मार भगाया। इसी खुशी में लोगों ने अलाव जलाए और दुल्ला भट्टी की प्रशंसा के गीत गाकर नृत्य किया।
कहा जाता है कि तभी से लोहडी के अवसर पर गाए जाने वाले गीतों में सुन्दरी और दुल्ला भट्टी को विशेष तौर पर याद किया जाने लगा।
यह गीत इस प्रकार है –
सुन्दर मुन्दरीए , हो , तेरा कौन विचारा , हो दुल्ला भट्टी वाला , हो , दुल्ले धी बिआई , हो सेर शक्कर पाई , हो , कुडी दा सालू पाटा , हो सालू कौन समेटे , हो , कुड़ी दा जीवे चाचा , हो चाचा चूरी कुट्टी , हो , जिमींदारा लुट्टी , हो जिमींदार सदाए , हो , गिन – गिन माल्ले लाए हो इक माल्ला रह गया , सिपाही फड़के ले गया , हो सानू दे लोहड़ी , माई तेरी जीवे जोड़ी॥
मनाने का ढंग – लोहड़ी वाले दिन लोग अपने घरों के बाहर अलाव जला कर अग्नि की पूजा करते हैं। पंजाबी समुदाय में जिस घर में नई शादी हुई हो, शादी की पहली वर्षगांठ हो या किसी के घर में पुत्र पैदा हुआ हो, वहाँ तो लोहडी का विशेष महत्त्व है। ऐसे घरों से उनको लोहड़ी के रूप में रुपए, मूंगफली, रेवड़ियाँ व मक्का की खीलें मिलती हैं। लोहड़ी के कुछ दिन पहले ही गली मुहल्ले के लडके लड़कियाँ घर-घर जाकर लोहड़ी के गीत गाकर लोहड़ी माँगने लगते हैं।
समय परिवर्तनशील है। समय के बदलाव के साथ-साथ यद्यपि घर-घर से लकडिकयाँ व उपले माँगकर लाने की परम्परा समाप्त होती जा रही है, लेकिन लोहडी के दिन रात के उत्सव की तैयारियाँ आरम्भ हो जाती हैं। रात के समय लोग अपने-अपने घरों के बाहर अलाव जलाकर उसकी परिक्रमा करते हए उसमें तिल, गुड, रेवड़ी, चिड़वे इत्यादि डालते हैं और माथा टेकते हैं। उसके बाद अलाव के पास बैठकर आग सेकते हैं। फिर गिद्दे और नृत्य-गानों का कार्यक्रम शरु हो जाता है जो देर रात तक चलता रहता है।
इस प्रकार लोहड़ी का त्यौहार सारे भारतवर्ष में बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है। आपसी प्रेम और भाईचारे की उदाहरण स्थापित करने वाला यह एक अनूठा पर्व है। यह त्यौहार हमारी एक सांस्कृतिक और सामाजिक धरोहर है। इस धरोहर को हमें सम्भाल कर रखना चाहिए।
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Essay on Lohri in Hindi- लोहड़ी पर निबंध
इस निबंध में आपको पता लगेगा की हम लोहड़ी त्यौहार कब, क्यों और कैसे मानते है। इस त्यौहार को पंजाब, हरियाणा और हिमाचल में बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। In this article we are providing essay on Lohri in Hindi. In this essay, you get to know- why we celebrate lohri and history of Lohri in Hindi.
लोहड़ी पर निबंध- Essay on Lohri in Hindi
भूमिका- पंजाब की धरती और जीवन सभ्यता और संस्कृति अनेक विशेषताओं से विभूषित है। इन्द्रधनुष के सात रंगों के समान पंजाब की संस्कृति भी अनेक रंगी है। एक ओर धन-धान्य से सम्पूर्ण धरा तो दूसरी ओर गुरुओं के त्याग, आदर्श और शिक्षाओं की गाथाएँ। एक ओर नदियों की पवित्र धाराएँ तो दूसरी ओर लहलहाती फसलों से भरे खेत। एक ओर त्यौहारों और मेलों की धूम तो दूसरी ओर नाच और नृत्य तथा गीतों के मधुर स्वर। लोहड़ी पंजाब का एक विशेष त्यौहार है यद्यपि यह सारे देश में धूमधाम से मनाया जाता है, परन्तु पंजाब में इसके अपने ही स्वर और अपने ही रंग हैं।
पृष्ठभूमि ( Why we celebrate Lohri festival )-
लोहड़ी शब्द का मूल ‘तिल+रोड़ी” है जिससे तिलौड़ी बना है और आगे चलकर इसका रूप लोहड़ी बन गया। कई स्थानों पर लोहड़ी को लोही या लोई भी कहा जाता है। लोग इस त्यौहार को बड़ी धूम धाम से मानते है।
लोहड़ी का धार्मिक व पौराणिक महत्व- ( Religious and mythological significance of Lohri )
लोहड़ी का पर्व मनाने की परम्परा वैदिक काल में भी दिखाई पड़ती है। प्राचीन काल में ऋषि देवताओं को प्रसन्न करने के लिए हवन करते थे। यह एक ऐसा धार्मिक कार्य था, जिसमें परिवार के लोग परस्पर मिलकर एक-दूसरे का सुख-दु:ख बांटते थे। घी, शहद, तिल, गुड़ आदि डाल कर हवन करने से उठता हुआ धुआँ सारे वातावरण को कीटाणु रहित और शुद्ध करता था। यह वर्षा करने में भी सहयोग देता था।
लोहड़ी त्यौहार मनाने की कहानियां -( Story behind celebration of lohri in Hindi )
इस त्यौहार से सम्बन्धित कथाएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि इस दिन लोहनी देवी ने एक क्रूर दैत्य को जला कर राख कर दिया था। उस दिन की याद को ताज़ा करने के लिए हर साल आग जला कर खुशियां मनाई जाती हैं।
इस त्यौहार का सम्बन्ध एक पौराणिक कथा ‘सती दहन’ से भी जोड़ा जाता है। भगवान शंकर की पहली पत्नी सती दक्ष प्रजापति की कन्या थी। एक बार प्रजापति दक्ष देवताओं के सम्मेलन में भाग लेने गए। वहाँ पहुँचने पर सभी देवताओं ने खड़े होकर उनका स्वागत किया, परन्तु शिव जी बैठे रहे। प्रजापति दक्ष ने इसे अपना अपमान समझा। रुष्ट होकर उन्होंने शिव को खूब जली कटी सुनाई। अपमान का बदला लेने के लिए उन्होंने एक महान् यज्ञ का आयोजन किया। यज्ञ में भगवान शंकर को छोड़कर सब देवताओं को बुलाया गया। अपने पिता के घर हो रहे यज्ञ का समाचार सुनकर सती ने वहाँ जाने की जिद्द की। भगवान शंकर के बहुत समझाने पर भी वह न मानी। विवश होकर उन्होंने अपने गणों के साथ सती को यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी।
सती जब अपने पिता दक्ष के यहाँ पहुँची तो प्रजापति दक्ष ने उससे बात तक न की। उल्टे उसका तिरस्कार किया और शिव जी को भी बुरा-भला कहा। सती इस अपमान को सहन न कर सकी और यज्ञ की अग्नि में ही छलाँग लगाकर भस्म हो गई। भगवान शंकर को जब वह समाचार मिला तो उनके क्रोध का ठिकाना न रहा। प्रजापति उनके चरणों में गिर पड़ा। देवताओं ने भी उनकी स्तुति की। भगवान शंकर का क्रोध शान्त हो गया और उन्होंने दक्ष को क्षमा कर दिया। दक्ष ने पूर्ण-आहुति डालकर यज्ञ को पूरा किया।
इस पर्व का सम्बन्ध लोक गीत के आधार पर भी माना जाता है। लड़के घर-घर जा कर यह पंजाबी लोक गीत गाते हैं- ( Lohri Song lines in Hindi )
सुन्दर मुन्दरीये, हो; तेरा कौन बचारा, हो;
दुल्ला भट्टी वाला, हो; दुल्ले धी व्याही, हो;
सेर शक्कर पाई, हो; कुड़ी दा सालू पाटा, हो;
कुड्री दा जीवे चाचा, हो; चाचा चूरी कुट्टे, हो;
नंबरदारा लुट्टी, हो; गिन-गिन भाल्ले लाए, हो;
इक भाला रह गया, हो; सिपाही फड़ के ले गया, हो;
इस लोक गीत के आधार पर घटना इस प्रकार है- ( Dulla Bhatti Story Legend of Lohri in Hindi )
एक गरीब ब्राह्मण था। उसकी सुन्दरी और मुन्दरी नाम की दो लड़कियाँ थीं। उनकी सगाई पास के गाँव में पक्की हो गई, दोनों लड़कियाँ सुन्दर थीं। उस इलाके के हाकिम को जब उन लड़कियों की सुन्दरता का समाचार मिला तो उसने उन्हें प्राप्त करना चाहा। वह गरीब ब्राह्मण लड़के वालों के यहाँ गया। उसने प्रार्थना की कि आप विवाह से पहले ही इन लड़कियों को अपने घर ले आओ, नहीं तो दुष्ट हाकिम इन्हें न छोड़ेगा। परन्तु वे भी हाकिम से डरते थे। उन्होंने ऐसा करने से साफ इन्कार कर दिया।
निराशा में डूबा ब्राह्मण जंगल से गुज़रता हुआ अपने घर की ओर लौट रहा था। रास्ते में उसे दुल्ला भट्टी मिला। दुल्ला डाकू होते हुए भी दीन दुखियों का सहायक था, अमीरों के प्रति वह जितना क्रूर था, गरीबों के प्रति वह उतना ही दयालु था। ब्राह्मण ने जब अपनी राम कहानी सुनाई तो दुल्ला पसीज गया। उसने उसे सांत्वना दी और सहायता का वचन देते हुए कहा, “ब्राह्मण देवता आप निश्चिन्त रहे। गांव की बेटी मेरी बेटी है, उनकी शादी मैं करूंगा। इसके लिए भले ही मुझे अपनी जान की बाज़ी क्यों न लगानी पड़े।”
दुल्ला स्वयं लड़के वालों के यहां गया, उनको तसल्ली देकर विवाह की तिथि पक्की कर दी। इलाके के हाकिम के भय से जंगल में ही रात के उस घटाटोप अंधेरे में भी आग जलाई गई। गाँव के सब लोग इकट्ठे हो गये। दुल्ला भट्टी ने स्वयं धर्म पिता बनकर सुन्दरी और मुन्दरी का कन्या दान किया। गरीब ब्राह्मण दहेज में कुछ न दे सका। यहां तक की भाँवरों के समय उन लड़कियों द्वारा ओढ़े हुए सालू भी फटे हुए थे। गाँव बालों ने उसकी भरपूर सहायता की। जिनके यहां पुत्र का विवाह या पुत्र पैदा हुआ था, उन्होंने ने इन कन्याओं का विशेष उपहार दिए। दुल्ला भट्टी के पास उस समय और कुछ न था, केवल शक्कर थी। उसने वही कन्याओं को शगन के रूप में दी।
इस घटना के बाद हर साल लोहड़ी का त्यौहार आग जलाकर इसी रूप में मनाया जाने लगा। यह त्यौहार हिन्दु-मुस्लिम का भेद मिटा कर एकता और दया का संचार करने लगा।
कृषि और ऋतु से सम्बन्ध- भारतीय जन-जीवन कृषि पर आश्रित है। इन दिनों मकई, तिलहन, दाले, मूंगफली, बाजरा आदि फसलें घर में आ जाती हैं। पिछले छ: महीनों का हिसाब उस आग के पास बैठकर किया जाता है। नाई, धोबी, माली, ग्वाला आदि सेवकों और गरीबों को दान दिया जाता है। उस फसल के कुछ अंश उस जलती हुई आग में डाल कर दान किया जाता है। इस त्यौहार का सम्बन्ध ऋतु से भी है। माघ के महीने में सर्दी ज़ोरों पर होती है। हवा के ठण्डे झोंके सारे वातावरण को शीतल कर देते हैं। यहां तक कि पानी भी जम जाता है। सर्दी से बचने के लिए इन दिनों तिल-गुड़ खाना अनिवार्य माना गया है। इस दिन गरीब से गरीब भी गुड़-तिल से बनी रेवड़ियां खाता है।
मनाने का ढंग ( How we celebrate Lohri )- यह त्यौहार माघ मास की मकर संक्रान्ति (माघी) से एक दिन पहले रात के समय मनाया जाता है। लड़के-लड़कियां, चाहे वे गरीब के हों या धनी परिवार के, कई दिन पहले से ही इसको मनाने की तैयारियां शुरु कर देते हैं। वे अपनी-अपनी टोलियां बना कर लोक-गीत गाते हुए घर-घर जाते हैं। वे लकड़ी और गोबर के उपले मांग कर लाते है। उन्हे एक स्थान पर इकट्ठा कर लेते हैं। लोहड़ी के दिन, जिनके यहां लड़के की नई शादी होती है या लड़का पैदा हुआ होता है, वे उनके घर जाकर लोक-गीत गाकर बधाई देते हैं। घर वाले उन्हें रेवड़ियां, गजक आदि देते हैं। इन्हें वे इकट्ठा बैठ कर खाते हैं। सायंकाल होने पर गोलाकार में लकड़ियां तथा गोबर के उपले चिन कर उस पर झण्डा लगा देते हैं। आग लगाने से पहले ढोल ढमाके बजते हैं। मुहल्ले के सभी लोग इकट्ठे रेवड़ियां आदि डाल कर हवन किया जाता है। कुछ लोग गायत्री मंत्र पढ़ कर आग में आहुतियां डालते हैं। फिर वे अग्नि की परिक्रमा करते हैं और आग के चारो ओर बैठकर रेवड़ियां खाते है।
त्योहार के अन्य पक्ष- बच्चों पर वायु का प्रकोप अधिक होता है। कफ से उनकी छाती जम जाती है। इससे उन पर औषधि का भी कम प्रभाव होता है। यदि वे ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाएंगे तो उनकी छाती गर्म होगी। उससे ठण्ड का प्रभाव कम हो जाएगा। यही कारण है कि इन दिनों बच्चों को शोर मचाने की खुली छूट दे दी जाती है।
उपसंहार- इस त्यौहार के दिन हम हवन करके देवताओं को खुश करते है। सती के अपने पति के लिए महान् बलिदान और पंजाब के वीर सपूत दुल्ला भट्टी को याद करते हैं। यह त्यौहार एकता का प्रतीक है। क्या छोटा, क्या बड़ा, क्या अमीर, क्या गरीब सब इकट्ठे बैठकर खाते हैं, आनन्द मनाते हैं। जलती हुई आग की शिखा ऊपर उठने का संदेश देती है। राष्ट्र और समाज के लिये बड़े से बड़ा बलिदान देने के लिये हमें प्रेरित करती है।
हिंदी में लोहड़ी त्यौहार पर निबंध- Long essay on Lohri festival in Hindi
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लोहड़ी पर निबंध – Essay on Lohri in Hindi – Lohri Festival Punjabi – 13 January 2022
Lohri Hindi Essay लोहड़ी 13 January : भारत में अधिकतर किसानी के त्योहारों की तरह, लोहड़ी भी किसानों की फ़सल कटने पर मनाया जाने वाला उत्सव से संबंधित है। यह पंजाब में फसल कटाई के मौसम और सर्दी के मौसम के अंत के तौर पर मनाया जाता है। पंजाब के अलावा यह त्यौहार हरयाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर व दिल्ली में भी मनाया जाता है| लोहरी आमतौर पर देश के अधिकांश हिस्सों में मकर संक्रांति के रूप में जाने वाले दिन यानी की पौष के अंतिम दिन आता है।
आज हम आपके लिए लाये हैं lohri festival essay, लोहड़ी पर निबंध (Lohri par nibandh) hindi language, hindi font यानी की हिंदी भाषा में जिसमे शामिल होगी इस त्यौहार की जानकारी जैसे की समारोह, लोहड़ी परंपरा, अनुष्ठान, lohri food, लोहड़ी उत्सव, आदि|
लोहरी के पर्व की आपको बहुत शुभकामना | इस पर्व पर आप अपने परिवार, रिश्तेदार, भाई, बहन, मम्मी, पापा, आदि दोस्तों के साथ शायरी , एसएमएस एवं विशेष साझा करे|
लोहरी का इतिहास
इस दिन बहुत से स्कूल या विश्वविद्यालय में स्पीच या निबंध प्रतियोगिता होती है| आप चाहे तो इन कविताओं की मदद से जानकारी ले सकते है|
आज के समय में बहुत से लोग अपने व्हाट्सप्प या फेसबुक पर festiv status लगते है| आप इन लोहरी स्टेटस को शेयर कर सकते है|
पंजाबी किसान भी लोहड़ी (माघी) को वित्तीय दिवस के रूप में देखते हैं। इस समय किसान भाई फसल काटने से पहले फसल के लिए भगवान की प्रार्थना और धन्यवाद करते हैं। इस त्यौहार को पंजाब में बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है, यह त्यौहार किसानों के लिए उनके प्रभु व गुरु को धन्यवाद करने का एक दिन है। चांद कैलेंडर के अनुसार लोहड़ी की रात को वर्ष की सबसे लंबी रात माना जाता है।इस साल यह त्यौहार शनिवार, 13 जनवरी 2022 को मनाया जाएगा|
लोहड़ी क्यों मनाई जाती है | Why is Lohri Celebrated
लोहरी का त्यौहार पंजाब व आसपास के प्रदेशो में खुशहाली के साथ मनाया जाता है | यह रबी फसलों की फसल काटने का अवसर है, जो कि सर्दियों में बोई गयी जाता है। तो इस त्योहार का मुख्य आकर्षण सर्दियों के भोजन जैसे सरसों का साग (सरसों दा साग), मक्के दी रोटी, तिल, रेवड़ी, गजक आदि होते हैं। तिल और गुड़ को पारंपरिक भोजन के रूप में खाया जाता है | तिल और रोरि (गुड) के शब्दों को एक साथ मिलाकर ‘तिलोही’ बनता हैं, और अंततः इस त्यौहार को लोहड़ी के नाम से जाना जाता है।
अलाव इस त्योहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। अलाव अग्नि का प्रतीक है, लोग इस अलाव के चारों ओर इकट्ठा होते हैं, गीत गाते हैं और गजक, चिक्की, फूला हुआ चावल, पॉपकॉर्न, रेवड़ी, तिल के बीज, गुड़, मूंगफली और गन्ने को आग में अर्पित करते हैं। त्योहार के बाद लोग रात्रि में भोज करते है जिसमे स्वादिष्ट पकवान बने होते है जैसे की ‘ सरसों का साग और मक्के की रोटी ‘|
लोहरी पर निबंध इन हिंदी
इन निबंधों में शामिल है Happy Lohri Festival 2022 wishes, लेख एसेज, anuched, short paragraphs, Composition, Paragraph, Article हिंदी, निबन्ध (Nibandh), क्यों हम लोहड़ी का जश्न मनाने, यानी की निबंध को हिंदी, पंजाबी, गुजराती (gujarati), मराठी आदि भाषा के अलावा wikipedia, लोहड़ी पर कविता, english pdf में भी डाउनलोड कर सकते हैं|
लोहड़ी पारंपरिक गीत LOHRI TRADITIONAL SONG
सुंदर मुंदरिये, होए Sunder mundariye, Hoye तेरा की विचारा, होए Tera ki vichara, Hoye दुल्ला भट्टी वाला, होए Dulla bhatti vala, Hoye दुल्ले दी धी वियाई, होए Dulle di dhi viyai, Hoy! सेर शकर पाई, होए Ser shaker pai, Hoye
लोहड़ी त्यौहार पर निबंध
मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व उत्तर भारत विशेषत: पंजाब में लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाता है । किसी न किसी नाम से मकर संक्रांति के दिन या उससे आस-पास भारत के विभिन्न प्रदेशों में कोई न कोई त्यौहार मनाया जाता है । मकर संक्रांति के दिन तमिल हिंदू पोंगल का त्यौहार मनाते हैं । इस प्रकार लगभग पूर्ण भारत में यह विविध रूपों में मनाया जाता है । मकर संक्रांति की पूर्व संध्या को पंजाब, हरियाणा व पड़ोसी राज्यों में बड़ी धूम-धाम से लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाता है । पंजाबियों के लिए लोहड़ी खास महत्व रखती है । लोहड़ी से कुछ दिन पहले से ही छोटे बच्चे लोहड़ी के गीत गाकर लोहड़ी हेतु लकड़ियां, मेवे, रेवडियां, मूंगफली इकट्ठा करने लग जाते हैं । लोहड़ी की संध्या को आग जलाई जाती है । लोग अग्नि के चारो ओर चक्कर काटते हुए नाचते-गाते हैं व आग मे रेवड़ी, मूंगफली, खील, मक्की के दानों की आहुति देते हैं । आग के चारो ओर बैठकर लोग आग सेंकते हैं व रेवड़ी, खील, गज्जक, मक्का खाने का आनंद लेते हैं । जिस घर में नई शादी हुई हो या बच्चा हुआ हो उन्हें विशेष तौर पर बधाई दी जाती है । प्राय: घर में नाव वधू या और बच्चे की पहली लोहड़ी बहुत विशेष होती है । लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहा जाता था । यह शब्द तिल तथा रोडी (गुड़ की रोड़ी) शब्दों के मेल से बना है, जो समय के साथ बदल कर लोहड़ी के रुप में प्रसिद्ध हो गया ।
Lohri par nibandh in hindi
Lohri लोहड़ी का त्यौहार खासकर प्रतिवर्ष जनवरी 13 को मनाया जाता है। यह त्यौहार मकर संक्रांति Makar Sankranti से एक दिन पहले मनाया जाता है।Lohri festival, को Sindhi लोग लाल लोई Lal Loi के नाम से मनाते हैं। भारत में यह कुछ उत्तरी राज्यों जैसे हरयाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश में भी धूम धाम से मनाया जाता है परन्तु पंजाब में इसको सबसे ज्यादा मान्यता दिया जाता है।इस दिन पारंपरिक गीतों और शानदार नृत्यों के साथ-साथ बेहेतरीन दावत भी दिए जाते हैं। इस त्यौहार को खुशियों का त्यौहार मन जाता है जिसमें सभी दुखों को भुला कर ख़ुशी और प्रेम की नयी शुरुवात होती है। इस त्यौहार की शुरुवात अग्नि की पूजा करके की जाती है।यह त्यौहार के दिन तरह-तरह के अनाज जैसे तिल की मिठाई, पॉपकॉर्न, मूंगफल्ली, और मुरमुरे को अग्नि में भेट चढ़ाया जाता है। साथ ही उस अग्नि के चारों और प्रार्थना करते हुए सभी लोग इन अनाज को अग्नि में फैंक कर भेंट करते हैं।पूजा के बाद सभी लोगों को प्रसाद में खासकर गुड, गज़क और रेवड़ी दी जाती है। किसी भी नवजात शिशु या नव विवाहित लोगों के लिए यह दिन बहुत ही मायने रखता है। वे इस दिन को बहुत ही अच्छे और पूजा के साथ इस दिन को मनाते हैं।इस दिन एक मुख्य भोजन मक्के की रोटी या बाजरे की रोटी, सरसों के साग के साथ ना होने से जैसे यह त्यौहार अधुरा सा होता है।
Lohri festival essay in punjabi
पंजाबी भाषा में निबन्ध हमने नीचे दर्शाये है| लोग मकर संक्रांति के एस्से भी सर्च करते है |
Short Paragraph on Lohri Festival – short Essay on Lohri – 100 words
लोहड़ी पंजाबी और हरियाणवी लोग बहुत उल्लास से मनाते हैं. यह देश के उत्तर प्रान्त में ज्यादा मनाया जाता हैं. इन दिनों पुरे देश में पतंगों का ताता लगा रहता हैं. पुरे देश में भिन्न-भिन्न मान्यताओं के साथ इन दिनों त्यौहार का आनंद लिया जाता हैं|लोहड़ी पौष माह की अंतिम रात को एवम मकर संक्राति की सुबह तक मनाया जाता हैं यह 12 अथवा 13 जनवरी को प्रति वर्ष मनाया जाता हैं. इस साल 2022 में यह त्यौहार 13 जनवरी, दिन बुधवार को मानाया जायेगा| त्यौहार भारत देश की शान हैं हर एक प्रान्त के अपने कुछ विशेष त्यौहार हैं. इन में से एक हैं लोहड़ी. लोहड़ी पंजाब प्रान्त के मुख्य त्यौहारों में से एक हैं जिन्हें पंजाबी बड़े जोरो शोरो से मनाते हैं. लोहड़ी की धूम कई दिनों पहले से ही शुरू हो जाती हैं. यह समय देश के हर हिस्से में अलग- अलग नाम से त्यौहार मनाये जाते हैं जैसे मध्य भारत में मकर संक्रांति, दक्षिण भारत में पोंगल एवम काईट फेस्टिवल भी देश के कई हिस्सों में मनाया जाता हैं. मुख्यतः यह सभी त्यौहार परिवार जनों के साथ मिल जुलकर मनाये जाते हैं जो आपसी बैर को खत्म करते हैं|
पंजाबी लोहड़ी गीत (Punjabi Traditional Lohri Song)
लोहड़ी आने के कई दिनों पहले ही युवा एवम बच्चे लोहड़ी के गीत गाते हैं. पन्द्रह दिनों पहले यह गीत गाना शुरू कर दिया जाता हैं जिन्हें घर-घर जाकर गया जाता हैं.इन गीतों में वीर शहीदों को याद किया जाता हैं जिनमे दुल्ला भट्टी के नाम विशेष रूप से लिया जाता हैं
Lohri essay in written in punjabi
इसके अलावा लोग इस त्यौहार के बारे में lohri festival 2022 (लोहरी त्यौहार, लोहड़ी 2022) lines on lohri in punjabi language व history of lohri in punjabi language भी सर्च करते हैं|
13 ਜਨਵਰੀ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕ ਹਰ ਸਾਲ ਬਹੁਤ ਮਿਹਨਤ ਨਾਲ ਲੋਹੜੀ ਮਨਾਉਂਦੇ ਹਨ. ਇਹ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਤਿਉਹਾਰ ਉਸ ਦਿਨ ਮਨਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਜਦੋਂ ਦਿਨ ਛੋਟਾ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਰਾਤ ਹੋਰ ਲੰਬੇ ਬਣਨ ਲੱਗਦੀ ਹੈ. ਇਹ ਤਿਉਹਾਰ ਫਸਲਾਂ ਦੇ ਤਿਉਹਾਰ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਮਨਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਇਸ ਦਿਨ ਲੋਕ ਦੁਪਹਿਰ ਦੇ ਖਾਣੇ ਵਿਚ ਦੁਪਹਿਰ ਦੇ ਖਾਣੇ ਵਿਚ ਦੁਪਹਿਰ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੁਪਹਿਰ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੁਪਹਿਰ ਦੇ ਖਾਣੇ ਵਿਚ ਮੱਥਾ ਟੇਕਦੇ ਹਨ. ਹਾਲਾਂਕਿ, ਇਹ ਪੰਜਾਬੀਆਂ ਦਾ ਮੁੱਖ ਤਿਉਹਾਰ ਹੈ ਪਰ ਭਾਰਤ ਦੇ ਕੁਝ ਉੱਤਰੀ ਰਾਜ ਵੀ ਇਸ ਤਿਉਹਾਰ ਨੂੰ ਮਨਾਉਂਦੇ ਹਨ, ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਹਿਮਾਚਲ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ ਅਤੇ ਹਰਿਆਣਾ ਸ਼ਾਮਲ ਹਨ. ਸਿੰਧੀ ਭਾਈਚਾਰੇ ਦੇ ਲੋਕ ਇਸ ਤਿਉਹਾਰ ਨੂੰ “ਲਾਲ ਲੋਈ” ਮੰਨਦੇ ਹਨ. ਦੁਨੀਆ ਦੇ ਵੱਖ ਵੱਖ ਹਿੱਸਿਆਂ ਵਿਚ ਰਹਿ ਰਹੇ ਪੰਜਾਬੀ ਲੋਕ ਵੀ ਲੋਹੜੀ ਨੂੰ ਉਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦਾ ਉਤਸ਼ਾਹ ਨਾਲ ਮਨਾਉਂਦੇ ਹਨ.
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लोहड़ी त्यौहार पर निबंध (Lohri Festival Essay In Hindi)
आज हम लोहड़ी त्यौहार पर निबंध (Essay On Lohri Festival In Hindi) लिखेंगे। लोहड़ी त्यौहार पर लिखा यह निबंध बच्चो (kids) और class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए लिखा गया है।
लोहड़ी त्यौहार पर लिखा हुआ यह निबंध (Essay On Lohri Festival In Hindi) आप अपने स्कूल या फिर कॉलेज प्रोजेक्ट के लिए इस्तेमाल कर सकते है। आपको हमारे इस वेबसाइट पर और भी कई विषयो पर हिंदी में निबंध मिलेंगे , जिन्हे आप पढ़ सकते है।
भारत को त्योहारों का देश माना जाता है। साल भर में सैकड़ों त्योहार है। इन त्योहारो का अपना विशेष आनंद होता है। यह त्यौहार कुछ समय के लिए हमे एकदम अलग अनुभव का अहसास कराते है। वैसे तो त्योहार को अलग अलग समुदाय के लोग अपने विशेष तरीके से मनाते है, लेकिन इसमें एक चीज जोकि सामान्य होती है और वह है आनंद।
सभी पर्व को मनाने में खुशी मिलती है। इस ख़ुशी को सिर्फ महसूस किया जा सकता है, इसे शब्दो से जाहिर करना थोड़ा मुश्किल कार्य है। कुछ ऐसे भी त्योहार होते है जिनकी जानकारी हमे विद्यालय जाने पर ही होती है। जैसे की बाल दिवस, शिक्षक दिवस और इनके अलावा गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस।
कुछ ऐसे भी पर्व है जो हमारी संस्कृति से जुड़े होते है। विद्यार्थीयो को त्योहार के विषय में जानकारी बहुत अधिक नहीं होती है, लेकिन जैसे वह बड़ा होता जाता है उसके आस पास रह रहे लोगो के अलग अलग तरह से पर्व मनाये जाने की जानकारी उसे होना शुरू हो जाती है।
दक्षिणी देशों में मनाए जाने वाले पर्वो में क्रिसमस, न्यू ईयर और वेलेंटाइन डे आदि शामिल है। आपके पास पड़ोस में लगभग सभी धर्म के लोग रहते है। वो अपने धार्मिक मान्यता के जीवन जीते है और हमारी भी कही ना कही दिलचस्पी होती है।
जैसे की पंजाबी समुदाय के लोग लोहरी त्योहार को मनाते है। वैसे तो पंजाबी समुदाय के और भी कई चर्चित त्योहार है, जिनमे गुरु पर्व, बैसाखी के अलावा पंजाबी लोगो के दसवें गुरु के जन्म दिवस पर मनाई जाने वाली जयंती भी शामिल है।
लोहड़ी फसलों का पर्व
पंजाब के लोग इस पर्व को पूरे जोश में मनाते है। यह हर साल 13 जनवरी को बड़े ही उत्साह से मनाया जाता है। इस पर्व को उस दिन मनाया जाता है, जब दिन पहले की अपेक्षा छोटे होने लगते है और राते लंबी होने लग जाती है। यह एक प्रकार से फसलों का उत्सव होता है।
पंजाब में रह रहे लोग दुलारी बत्ती सम्मान में खुशी को जाहिर करने के लिए अलाव जलाते है। एक जुट होकर साथ मिलकर नाचते और गाते भी है। यह पंजाबियों का मुख्य पर्व है, लेकिन भारत के कुछ उत्तरी राज्य के लोग भी इस पर्व को मनाते हैं। उन राज्यो में हिमाचल प्रदेश, हरियाणा भी शामिल है।
इसी पर्व को सिंधी समुदाय के लोग “लाल लोई” के रूप में बड़े ही चाव से मनाते है। दुनिया के हर हिस्से में रहने वाले पंजाबी लोहड़ी के त्योहार को बहुत ही गर्मजोशी से मनाते है।
लोहड़ी त्यौहार कैसे मनाया जाता है?
भारत में किसी भी उत्सव को बड़े ही जोरो शोरो से मनाया जाता है। यह अन्य त्योहारों की तरह लोगो को हसीं और उल्लास से भर देता है। इस त्योहार को मनाने के लिए परिवार के साथ साथ दोस्तो का जमावड़ा भी हो जाता है, क्योंकि इसमें सबलोग एकजुट हो जाते है।
यही अवसर होता है जब सब एक साथ मिलकर एक दूसरे का सुख दुख साझा करते है। इस पर्व में अपनो के बीच बड़े से बड़े दिलो के फासले मिट जाते है। इस पर्व के मौके पर लोगो को मिठाई दी जाती है। यह मुख्य रूप से किसान भाईयो का पर्व है। क्योंकि यह फसल पर आधारित पर्व है। एक वजह है कि इस पर्व को फसल वाला मौसम के रूप में भी जाना जाता है।
लोग अलाव जलाकर बड़े ही धूम धाम से नाचते गाते है और पंजाबी लोग आग के चारो ओर नाचने गाने के दौरान पॉपकॉर्न, गुड़, रेवड़ी, चीनी-कैंडी और तिल अर्पित करते है।
लोहड़ी के पर्व पर खान पान
वही शाम के समय लोग अपने अपने घरों में पूजा समारोह आयोजित करते है। यह वह समय होता है जब लोग परिक्रमा करके और पूजा अर्चना करके ईश्वर से आशीर्वाद प्राप्त करते है। रीति रिवाज के अनुसार यह वह दिन होता है जब लोग सरसो का साग, गुड, गजक, तिल, मूंगफली, फूलिया और प्रसाद के रूप में मक्के की रोटी बड़े चाव से खाते है।
इस दिन खाने के साथ साथ लोग नए कपड़े भी पहनना पसंद करते है। भांगड़ा पंजाब का नित्य है और इस दिन लोग धमाल मचाते है। किसानो के लिए लोहड़ी का दिन नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है।
नवविवाहित जोड़े को उपहार देने का रिवाज
इस दिन नवविवाहित जोड़े और नवजात शिशुओं के लिए भी बहुत खास पर्व होता है। नवविवाहित दुल्हनों को परिवार के सभी सदस्यों से उपहार प्राप्त होते है, जिसमे गहने भी शामिल होते है।
लोहड़ी पर्व मनाए जाने की अहम वजह
पंजाब में लोहड़ी पर्व को मनाने के पीछे लोगो की अलग अलग धारणाएं है। एक मान्यता के अनुसार लोहड़ी शब्द को “लोई“ से लिया गया है। ये महान संत कबीर की पत्नी थी। वही कुछ लोगो के अनुसार यह शब्द “लोह” से उत्पन्न हुआ है ऐसा माना जाता है। यह पत्तियों को बनाने के लिए उपयोग किया जाने वाला उपकरण होता है।
एक अन्य मान्यता के मुताबिक कुछ लोगो की विचारधारा के अनुसार लोहड़ी शब्द की उत्पत्ति तिलोरी शब्द से हुई है ऐसा माना जाता है। यह रोरी और तिल शब्द के मेल से बनता है। इस त्योहार को मनाने का अपना अलग ही आनंद होता है। यह देश के विभिन्न हिस्सों में अलग अलग नामों से जाना जाता है। इस दिन का लोग बहुत ही उत्सुकता से इंतजार करते है।
लोहड़ी त्यौहार के विभिन्न नाम राज्यो के अनुसार कुछ इस प्रकार है। आंध्र प्रदेश में इस पर्व को भोगी के नाम से जानते है। तो असम, तमिलनाडु और केरल में इसको माघ बिहू, पोंगल और ताई पोंगल के नामो से जाना जाता है। वही महाराष्ट्र, यूपी और बिहार राज्य के निवासी इस पर्व को मकर संक्रांति के नाम से जानते है।
लोहड़ी के पर्व से होने वाला प्रदूषण
पहले के समय में लोग एक दूसरे को उपहार के रूप में गजट देकर इस पर्व को मनाते थे। वही समय के साथ अब धीरे धीरे काफी परिवर्तन हो रहा है। लोग गजक के साथ चॉकलेट और केक को उपहार के रूप में देने लगे है। आज की स्थिति को देखते हुए लोग प्रकृति के प्रति जागरूक हो गए है। यही वजह है कि लोग अलाव को जलाने से बचने लगे है।
इस पर्व को मनाए जाने के पीछे वजह अब तक आपको पता चल गयी होगी। इसके अलावा इस त्यौहार को कौन से राज्य में किस नाम से जानते है यह भी हमे पता चल गया है। यह पर्व खाने पीने के शौक वालो के लिए काफी महत्व रखता है। इस पर्व को मनाने के लिए मित्रो के साथ साथ रिश्तेदार भी एकजुट होते है।
इससे उनके अंदर प्रेम और सहयोग की भावना का जन्म होता है। इस पर्व को सांस्कृतिक पर्व कहे तो इसमें कोई बुराई न होगी। क्योंकि इस पर्व को लोग बड़े ही रीति रिवाज के साथ मनाते है। अलाव जलाने से लेकर नित्य करना इसमें शामिल है, जोकि भारतीय संस्कृति को दर्शाता है।
इन्हे भी पढ़े :-
- भारत के त्यौहार पर निबंध (Indian Festivals Essay In Hindi)
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- होली त्यौहार पर निबंध (Holi Festival Essay In Hindi Language)
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तो यह था लोहड़ी त्यौहार पर निबंध (Lohri Festival Essay In Hindi) , आशा करता हूं कि लोहड़ी त्यौहार पर हिंदी में लिखा निबंध (Hindi Essay On Lohri Festival) आपको पसंद आया होगा। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा है , तो इस लेख को सभी के साथ शेयर करे।
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लोहड़ी पर निबंध
Essay on Lohri in Hindi: उत्तर भारत के लोगों के प्रमुख त्योहारों में से एक लोहड़ी का त्योहार है। इसको लोग मकर सक्रांति की पूर्व संध्या को मनाते हैं। लोहड़ी विशेषकर पंजाब, हरियाणा और आसपास के राज्य में मनाया जाता है।
हम यहां पर लोहड़ी पर निबंध हिंदी में (Lohri Essay in Hindi) शेयर कर रहे है। इस निबंध में लोहड़ी के संदर्भित सभी माहिति को आपके साथ शेयर किया गया है। यह निबंध सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए मददगार है।
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लोहड़ी पर निबंध | Essay on Lohri in Hindi
लोहड़ी पर निबंध 250 शब्द.
मकर सक्रांति के एक दिन पहले उत्तर भारत के पंजाब राज्य में लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाता है। यह त्यौहार मकर सक्रांति के एक दिन पहले मनाया जाता है। इसके अलावा यह त्योहार भारत के विभिन्न प्रदेशों में भी मनाया जाता है।
मकर सक्रांति के दिन तमिलनाडू में हिंदू लोग पोंगल का त्यौहार मनाते है। संपूर्ण भारत में हर राज्यों में किसी भी प्रकार से अलग अलग नाम से त्यौहार के रूप में मनाया जाता है।
मकर सक्रांति की पूर्व संध्या में पंजाब, हरियाणा और पड़ोसी राज्यों में बहुत ही धूमधाम और उत्साह के साथ लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाता है। पंजाबियों के लिए इस त्यौहार का अधिक महत्व है। लोहड़ी के कुछ दिन पहले से ही जो छोटे-छोटे बच्चे हैं, वह लोहड़ी के गीत गाकर लकड़ी, रेवड़ी, मूंगफली को इकट्ठा करने लग जाते हैं क्योंकि लोहड़ी की शाम को आग जलाई जाती है।
उस अग्नि के चारों तरफ चक्कर काटते हुए नाचते, गाते और आग में रेवड़ी, मूंगफली, गज्जक, मक्का के दाने की आहुति देते हैं और आग के चारों तरफ लोग हाथ सेकते हैं। रेवड़ी की गजक, मक्का आदि खाने का भी आनंद लेते हैं और जिस घर में नई शादी होती है या फिर बच्चा हुआ होता है, वहां पर तो यह बहुत विशेष बड़े उत्सव के रूप में मनाया जाता है।
लोहड़ी पर निबंध 850 शब्द
पूरे भारतवर्ष में लोहड़ी को सभी लोग बड़ी उत्सुकता और भरपूर उत्साह के साथ मनाते है। वैसे लोहड़ी सिखों का त्यौहार होता है, लेकिन हिंदू लोग भी इस त्यौहार को बहुत आस्था के साथ मनाते हैं। लोहरी पंजाब में बहुत ज्यादा धूमधाम से मनाई जाती है। पंजाब के साथ-साथ यह आजकल पूरे देश में धूमधाम के साथ मनाई जाती है।
मकर सक्रांति के दिन लोग अलग-अलग त्योहारों को मनाते हैं। जैसे दक्षिण भारत में तमिल हिंदू संक्रांति के दिन पोंगल का त्यौहार मनाते हैं। उसी प्रकार उत्तर भारत में लोहड़ी को विशेषकर पंजाब, हरियाणा और आसपास के सभी राज्यों में मनाया जाता है।
कैसे मनाई जाती लोहड़ी
लोहड़ी का त्यौहार विशेष कर पंजाबियों के लिए बहुत खास महत्व रखता है। लोहड़ी में छोटे बच्चे कुछ दिन पहले से ही लोहड़ी की तैयारी में लग जाते हैं। लोहड़ी के लिए लकड़ी, मेवा, रेवड़ी, मूंगफली आदि को इकट्ठा करने लगते हैं और लोहड़ी वाले दिन शाम को सभी एक साथ इकट्ठा होते हैं और आग जलाई जाती है।
इस अवसर पर लोग मंगल गीत भी गाते हैं और एक दूसरे को बधाइयां देते हैं। अग्नि के चारों तरफ लोग चक्कर लगाते हैं, नाचते हैं, गाते हैं और आग में रेवड़ी, मूंगफली, खील मक्का के दाने आदि की आहुतियां देते हैं।
आग के चारों तरफ बैठकर वो रेवड़ी तिल, गजक, मक्का खाते हैं। लोहड़ी का त्यौहार उन घरों में ज्यादा उत्साह पूर्ण बनाया जाता है, जहां पर किसी की नई शादी हुई हो या बच्चा हुआ हो। उनकी वह पहली होली बहुत ही जोश और उत्साह के साथ मनाई जाती है।
उस में नव वर-वधू आज के चारों तरफ घूमते हैं और अपने आने वाले जीवन के लिए खुशियों की दुआ मांगते हैं और अपने घर के आस पड़ोस के बड़े बुजुर्गों के पैर छूकर आशीर्वाद भी लेते हैं।
पहले कहते थे तिरोड़ी
पहले लोग लोहड़ी को तिरोड़ी कहते थे। तिरोड़ी शब्द ‘तिल’ और ‘रोटी’, जो गुड़ की बनी होती है। इन दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है। अब इसका नाम बदलकर लोहरी रख दिया है और अब संपूर्ण भारतवर्ष में यह त्यौहार लोहड़ी के नाम से ही जाना जाता है।
ऐसा भी माना जाता है कि लोहड़ी शब्द “लोई” से लिया गया है, जो कि महान संत कबीर की पत्नी थी। जबकि कुछ लोगों का मानना है कि यह शब्द “लोह” से उत्पन्न हुआ है, जो कि चपातियों को बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक उपकरण है।
लोहड़ी का इतिहास
लोहड़ी का त्यौहार दुल्ला भट्टी की कहानी से जोड़ा गया है। लोहड़ी के सभी गानों को दुल्ला भट्टी से ही गाया जाता है और यह भी कहा जाता है कि लोहड़ी के गानों का केंद्र बिंदु दुल्ला भट्टी को ही बनाया गया था। दुल्ला भट्टी मुगल शासक अकबर के समय में पंजाब में रहता था।
यह एक लुटेरा था। उसे पंजाब के नायक की उपाधि से सम्मानित किया गया था। उस समय संदल बार के जगह पर लड़कियों को गुलामी के लिए बलपूर्वक अमीर लोगों के पास में भेज दिया जाता था। इसके लिए दुल्ला भट्टी ने एक योजना के तहत लड़कियों को मुक्ति नहीं करवाया बल्कि हिंदू लड़कों के साथ में उनकी शादी भी करवाई।
दुल्ला भट्टी एक विद्रोही था। उनकी वंशावली बंटी राजपूत थे। उनके जो पूर्वज थे, वह पिंडी भट्टियन के शासक थे, जोकि संदल बार में थे। अब इस समय संदल बार पाकिस्तान में चला गया है। वह सभी पंजाबियों का नायक था। इन ऐतिहासिक कारणों के चलते पंजाब में लोहड़ी का त्यौहार बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। दुल्ला भट्टी का नाम आज भी लोकगीतों में लिया जाता है।
सुंदर मुंदरिये हो…… तेरा कौन बेचारा हो….दुल्ला भट्टी वाला, ………. हो दुल्ले घी व्याही, …………. सेर शक्कर आई, ………….. हो कुड़ी दे बाझे पाई, ………….. हो कुड़ी दा लाल पटारा हो……….
आधुनिक जमाने में लोहड़ी उत्सव
पहले के समय में लोग एक दूसरे को गजक गिफ्ट करके लोहड़ी मनाते थे, लेकिन जैसे-जैसे समय का बदलाव हुआ तो लोग गजब की जगह चॉकलेट और केक गिफ्ट करना पसंद करते हैं। अब लोग पेड़ों को भी काटना पसंद नहीं करते।
लोहड़ी पर आग जलाने के लिए लोग अधिक पेड़ पौधों को काटने से बचते हैं क्योंकि इसके बजाय तो वह अधिक से अधिक पेड़ लगाकर लोहड़ी मनाते हैं ताकि लंबे समय तक पर्यावरण संरक्षण में भी लोहड़ी का योगदान दे।
लोहड़ी का त्यौहार पंजाब में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इसके अलावा इस परिवार को पूरे देश में मनाया जाता है। लेकिन सभी जगह इसको अलग-अलग नाम से मनाया जाता है। लोहरी मकर सक्रांति के एक दिन पहले मनाया जाता है और यह पंजाबी लोगों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार होता है।
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Essay on Lohri Festival in Hindi – लोहड़ी पर निबंध
- Posted On: June 16, 2020
- Posted By: Kunji Team
- Comments: 0
लोहड़ी पर निबंध – Essay on Lohri in Hindi
Essay on lohri festival in hindi.
भूमिका: हमारे भारत देश में सभी त्योहार बड़े उत्साह से मनाये जाते हैं। लोहड़ी देश का विशेषकर पंजाब का प्रसिद्ध त्योहार है। लोहड़ी शब्द दो शब्दों के मेल से बना है- तिल़रोड़ीत्रतिलोड़ी बाद में यह शब्द बिगड़कर लोहड़ी, लोही और लोई के नाम से मशहूर हो गया। यह त्योहार माघ मास को मकर संक्रान्ति से एक दिन पहले रात के समय मनाया जाता है।
महत्व: यह त्योहार वैदिक काल से चला आ रहा है। पुराने समय में देवताओं को खुश रखने के लिए आर्य लोग हवन-यज्ञ किया करते थे। हवन से सारा वातावरण कीटाणु रहित और शुद्ध हो जाता एवं यह वर्षा करने में भी सहयोग देते हैं जिससे किसानों की खेती भी भरपूर होती थी।
इतिहास: ‘सती दहन’ की पौराणिक कथा से भी यह त्योहार जुड़ा हुआ है। लोहड़ी के त्योहार पर वधुपक्ष वाले वर पक्ष वालों का खूब आदर-सत्कार करके उन्हें रेवड़ी, मिठाई, कपड़े आदि उपहार के रूप में देते हैं।
इस त्योहार का सम्बन्ध मुग़ल काल के डाकू दुल्ला भट्टी से भी जुड़ा हुआ है। जो अमीरों के प्रति क्रूर व ग़रीबों के प्रति दयालु था। एक दिन जंगल में दुल्ला भट्टी ने ग़रीब ब्राह्मण को रोते हुए गुज़रते देखा। उसने ब्राह्मण के रोने का कारण पूछा। ब्राह्मण ने बताया कि उसकी सुन्दरी और मुन्दरी नाम की दो सुन्दर कन्याएँ हैं। राजा दोनों कन्याओं को प्राप्त करना चाहता है। उसकी राम कहानी सुनकर डाकू का दिल पसीज गया। उसने ब्राह्मण को धीरज बँधाया।
राजा को कानों-कान ख़बर न हो इसलिए जंगल में रात के अंधेरे में आग जलाकर गाँव के सब लोग इकट्ठे हो गए। दुल्ला भट्टी ने धर्म-पिता बनकर सुन्दरी और मुन्दरी का कन्यादान किया। भाँवर के समय उनके द्वारा ओढ़े हुए सालू (दुपट्टे) भी फटे हुए थे। ग़रीब ब्राह्मण के पास देने के लिए कुछ नहीं था। गाँव वालों ने भरपूर सहायता की। जिनके वहाँ पुत्रों का विवाह या पुत्र/पौत्र पैदा हुए थे उन्होंने कन्याओं को खुशी में विशेष उपहार दिए। दुल्ला भट्टी के पास उस समय केवल सेर (1000 ग्राम) शक्कर थी। उसने शगुन में वही दी। इस घटना के बाद हर वर्ष लोहड़ी आग जलाकर मनाई जाती है। आज भी माँ-बाप अपनी बेटियों को उपहार स्वरूप सामग्री भेंट करते हैं।
लोहड़ी बाँटना और माँगना: इन दिनों मकई, दालें, बाजरा, तिलहन, मूँगफली आदि फसलें घर आ जाती हैं। नाई, धोबी, ग्वाला, कुम्हार, कहार आदि सेवकों और ग़रीबों को दान दिया जाता है। फ़सल का कुछ अंश अग्नि में आहुति के रूप में डाला जाता है। इस त्योहार में अमीर-गरीब, छोटे-बड़े, हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख-ईसाई का कोई भेद-भाव नहीं होता।
कई दिन पहले से ही लड़के-लड़कियाँ टोलियाँ बनाकर यह लोकगीत गाकर घर-घर लोहड़ी माँगने जाते हैं। लोहड़ी माँगते समय गाये जाने वाले लोकगीत इस प्रकार हैं………..
‘दे माई पाथी, तेरा पुत चढूगा हाथी। हाथी हेठ कटोरा, तेरे पुत जम्मूगा गोरा। गोरे ने खादी टिक्की, तेरे पुत-पौत्रे इक्की इक्कियां ने कीती कमाई, सानूं टोकरा भरके पाईं।’’
सुन्दर मुन्दरीये-हो, तेरा कौन विचारा हो, दुल्ला भट्टी वाला हो, दुल्ले दी धी ब्याही हो, सेर शक्कर पाई हो, कुड़ी दा सालू पाटा हो, कुड़ी दा जीवे चाचा हो, चाचा चूरी कुट्टी हो, लम्बरदारा लुट्टी हो, गिन-गिन पोले लाए हो, इक पोला रह गया हो, सिपाही फड़ के लै गया हो……..
‘‘साडे पैरां हेठ सलाइयां, असी केहड़े वेले दीया आइयां। साडे पैरा हेठ रोड़, सानू छेती-छेती तोर।’’
मनाने का ढंग: लोग लोहड़ी के रूप में पैसे मूँगफली, रेवड़ी, उपले, लकड़ियां इत्यादि देते हैं। जिनके यहां उस वर्ष लड़के की नई शादी या फिर पुत्र/पौत्र आदि पैदा हुआ होता है, उनके घरों में विशेष तौर पर बधाई माँगी जाती है। उनसे हठ करके ज़्यादा पैसे और सामान की माँग की जाती है। पड़ोसियों एवं रिश्तेदारों के साथ मिलकर फिर रात को गोलाकार में उपले और लकड़ियां लगाकर फिर उन्हें जलाया जाता है। उसमें आहुति के रूप में घी, तिल, चिड़वे आदि डालते हुए गाया जाता है-
‘‘ईशर आ दलिद्र जा, दलिद्र दी जड़, चुल्हे पा।’’
फिर गली-मुहल्ले वाले सब मिलकर रेवड़ी, भुग्गा, मूंगफली, गच्चक, खीलें और पकवान खाते हैं। यह त्योहार आमतौर पर 13 जनवरी के आस-पास होता है। ‘लोहड़ी पाला खोड़ी’ कहा जाता है।
आजकल जलती हुई आग के निकट बैठकर लोग लोकगीत गाते हैं और गिद्धा, भंगड़ा आदि लोकनृत्य करते हैं, जिससे इस त्योहार का आनंद और बढ़ जाता है।
उपसंहार: जलती हुई आग़ की शिखा भेदभाव से ऊपर उठने की प्रेरणा देती है। लोहड़ी का त्योहार गुड़ और तिल की तरह एक हो जाने, प्यार, हँसी और खुशी से एकता को बढ़ाने का संदेश देता है।
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English Essay, Paragraph, Speech on “Lohri Festival” for Kids, Students of Class 6, 7, 8, 9, 10 and 12 Board Examination.
Essay on “lohri” festival.
Lohri is a festival of harvest. This seasonal celebration falls on the thirteenth day of January in North India. The states of Punjab and Haryana generally observe the festival. Almost all communities of these states hold festivities with much fun and feasting. It is an evening festival. After the sunset, a huge bonfire is collected and lit.
People of all ages gather around the bonfire in gay clothes and begin to dance joyfully. In the bonfire, sugarcane stalks and parched rice goods are thrown. The menfolk perform their foot-tapping ‘Bhangra dance. They move to the beat of the dholaks but the women enact the more gentle ‘Gidda’ dance. People offer rewards such as peanuts, popcorn, podded rice, and other sweets to one another. Lohri is considered as a good luck day for farmers. The farmers celebrate a better harvest and get ready for the next sowing season. On this day, children are free to engage in flying kites. Lohri is a fun-filled festival for everyone.
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- School Education /
Essay on Lohri in 100, 200 and 300 Words in English
- Updated on
- Jan 12, 2024
Essay on Lohri: India is a land of festivals. From Diwali´s colorful lights to Holi´s vibrant colors, every festival summarises its rich heritage. Rooted in history and spiritual learning, the festivals bring communities together and go beyond regional and religious boundaries.
Among the list of Indian festivals, Lohri is a festival that goes beyond festivals. It not only symbolizes the rich culture of the nation but also highlights the unity in diversity and creates a sense of the warmth of traditions and collective heritage.
Table of Contents
- 1 Essay on Lohri in 100 Words in English
- 2 Essay on Lohri in 200 Words in English
- 3 Essay on Lohri in 300 Words in English
Essay on Lohri in 100 Words in English
Lohri is a popular harvesting festival in Punjab that holds its cultural importance. It is celebrated in the middle of January each year with pomp and show. The festival has its unique importance as it marks the end of winter and the beginning of summer in the north. The people dance around the bonfires sing songs and distribute festive treats like sesame seed sweets and peanuts.
The objective of the festival is to express their gratitude for the sun and its important role in agriculture. In other words, the festival holds significance for a new beginning of Rabi crops and wishes for the fruitful harvesting of crops throughout the year.
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Essay on Lohri in 200 Words in English
Lohri, which is also known as the harvesting festival, is celebrated in the middle of January every year. The festival holds historical and cultural significance in India, particularly in Punjab, Haryana, and Himachal Pradesh. As a harvesting festival, Lohri marks the shift from winter to spring, signifying longer days and shorter nights.
It is a festival celebrated that includes bonfires, dancing to the beats of dhol, and lots of traditional dishes and folk songs. Men and women enjoy the festival by participating in bhangra. Children go door to door and receive and sing folk songs. In return, they receive offerings with the blessing of the elders.
Lohri revolves around the worship of the sun and fire. The festival emphasises the reunion of families, love exchanges, and the strengthening of bonds among them. In Punjab, Lohri holds special importance by uniting people across religious lines to celebrate the festival of harvesting.
The celebration of the festival is enhanced by narrating the legendary tale of Dulla Bhatti, who is also referred to as the Robin Hood of Punjab because of his acts of bravery, generosity, and standing up against injustice.
Lohri, the festival of harvesting and bonfires, is not just a festival; it is a culture that shows unity and joy through the sharing of religious and cultural differences. With historical roots, vibrant celebrations, and diverse participation, Lohri stands as a symbol of communal harmony in India´s rich festival land.
Happy Lohri! We pray that there is joy and good health everywhere. May this special occasion further compassion and kindness all across. — Narendra Modi (@narendramodi) January 13, 2021
Essay on Lohri in 300 Words in English
Lohri is a festival that brings joy and celebration to the farmers of India. It is a special festival that holds a special place in the hearts of the people of India. It is primarily celebrated in the northern states of Punjab, Haryana, and Himachal Pradesh. The festival celebrates waiving goodbye to the winter season and welcoming the longer days of summer. Lohri is a cultural festival that is incomplete without the lighting of bonfires, traditional music, and lots of festive foods.
Lohri is celebrated in Punjab with agrarian traditions, which means a major portion of the income for the farmers of Punjab comes from agriculture. To return this with gratitude, the farmers gather around the bonfires, sing traditional songs, and perform the energetic bhangra.
Every festival has a story behind it; similarly, Lohri too celebrates the story of Dulla Bhatti behind it. Dulla Bhatti, also known as the Robinhood of Punjab, was the real hero of the local people. During the reign of the Mughals, he helped rescue some unmarried girls. Because of his brave act and helping people, he marks parts of the Lohri festival as an act of bravery. People celebrate and sing songs for the brave acts of Dulla Batti and praise him in their celebration.
In conclusion, Lohri, the festival of happiness and celebration, symbolises the richness and diversity of India. With variation in celebrations, each state adds uniqueness to the celebration. To add more colour to the festival, school students are encouraged to involve themselves in celebrations not only in traditional ways but also using social media posts. Also, the families share the warmth of Christmas with friends and family across the world using video calls. With this advancement, Lohri successfully continues to connect generations and welcomes the changes as well.
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The festival is associated with the reverence of Dulha Bhati, who was a legendary hero who helped the poor during the reign of the Mughal Emperor.
The message of Lohri revolves around the celebration of the harvesting season, an abundance of crops and the blessing of prosperity.
Lohri does not belong to a specific religion. It is a festival primarily that is celebrated particularly in the northern region of India.
The name Lohri is derived from the word ¨Loi,¨ which means the end of the winter season. Another story suggests that the name of Lohri comes from the word ¨Loh¨ which means, a thick iron griddle or tava used for making chapatis.
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Deepika Joshi
Deepika Joshi is an experienced content writer with expertise in creating educational and informative content. She has a year of experience writing content for speeches, essays, NCERT, study abroad and EdTech SaaS. Her strengths lie in conducting thorough research and ananlysis to provide accurate and up-to-date information to readers. She enjoys staying updated on new skills and knowledge, particulary in education domain. In her free time, she loves to read articles, and blogs with related to her field to further expand her expertise. In personal life, she loves creative writing and aspire to connect with innovative people who have fresh ideas to offer.
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