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Case Study Ka Prarup

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केस स्टडी का प्रारूप

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केस स्टडी का प्रारूप

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केस स्टडी विधि (Case-Study Method) : आइए आखिर जाने कि केस स्टडी है क्या?

केस स्टडी से तात्पर्य है किसी भी वस्तु, स्थिति का भलीभांति बारीकी से जांच पड़ताल करना व जानना। इसका बुनियादी आधार विद्यार्थी की जिज्ञासु प्रवृत्ति को माना जाता है। दूसरे शब्दों में मनुष्य का सम्पूर्ण ज्ञान उसकी जिज्ञासु प्रवृत्ति का परिणाम है और केस स्टडी किसी ज्ञान, अनुभव को पाने का साधन है। इस विधि में विद्यार्थी की स्वयं समाधान ढूंढने में सक्रिय भूमिका रहती है , जबकि अध्यापक की भूमिका विद्यार्थियों को समस्या से भलीभांति परिचित कराना है।
व्यक्तिगत अध्ययन अपने में एक पहेली (समस्या) होती है जिसे हल किया जा सकता है। इस पहेली में ब हुत सी सूचनायें समाहित रहती है। इन सूचनाओं का विशलेषण कर हल निकाला जा सकता है। केस स्टडी की विषय वस्तु व्यक्ति, स्थान या सत्य घटना पर आधारित होती है। यह किसी एक इकाई का सम्पूर्ण विश्लेषण होता है। 
यंग के अनुसार ‘‘ केस स्टडी किसी इकाई के जीवन का गवेषणा तथा विश्लेषण की पद्धति है चाहें वह एक व्यक्ति, परिवार, संस्था हस्पताल, सांस्कृतिक समूह या सम्पूर्ण समुदाय हो।’’

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वर्तमान शिक्षा प्रणाली में शिक्षक का उत्तर दायित्व बढ़ गया है और उसकी स्वतंत्रता कम कर दी गयी है। शिक्षक की भूमिका ‘‘छात्रों के अधिगम’’ के लिए एक व्यवस्थापक की होती है। शिक्षक एक सलाहकार एवं मार्गदर्शक के रूप में होता है। शिक्षक को अपनी कक्षा में समस्यात्मक बालकों से रूबरू होना पड़ता है। ऐसे बालकों के सुधार के लिए शिक्षक को हमेशा तत्पर रहना चाहिए। इसके लिए शिक्षक ‘समस्यात्मक बालक’ के सुधार के लिए उसके पूर्व इतिहास को स्वयं उसके परिवार से, उसके मित्रों से पूछताछ करके तथ्यों का संकलन करता है। इस अध्ययन द्वारा वह उन कारणों को खोजता है। जिसके फलस्वरूप उसका आचरण व व्यवहार असमान्य होता है। प्राप्त कारणों के आधार पर शिक्षक समस्यात्मक बालक का उपचार करता है।

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Lesson plan | Path Yojna | B.ED Lesson plan| D.EL.ED Lesson plan|  Path Yojana

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पाठ योजना क्या है? How to Make a Lesson Plan: पाठ योजना की निर्माण विधि व क्रम

पाठ योजना में शिक्षक अपनी विशेष सामग्री और छात्रों के बारे में जो कुछ भी जानता है, उन बातों का प्रयोग सुव्यवस्थित ढंग से करता है। by सिम्पसन

case study lesson plan in hindi

  • शिक्षक पाठ योजना में शिक्षण को एक दिशा प्रदान करता है.
  • पाठ योजना कक्षा नियंत्रण में सहायता प्रदान करती है.
  • पाठ योजना की सहायता से शिक्षक छात्रों की व्यक्तिगत विभिन्नता के आधार पर शिक्षण प्रक्रिया को आसानी से नियोजित कर पाठ को पढ़ा लेता है.
  • शिक्षक पाठ योजना के आधार पर शैक्षिक लक्ष्य को आसानी से प्राप्त कर लेता है.
  • पाठ योजना शिक्षकों की सफलता एवं प्रभावी रूप से प्रदान करने हेतु अत्यंत सहायक होती है.
  • पाठ योजना के आधार पर शिक्षक पाठ को पढ़ाने की क्रम व्यवस्था को बनाए रखता है जोकि बच्चों के विकास के लिए आवश्यक है.
  • एक अच्छी पाठ योजना शिक्षक के लिए पथ प्रदर्शन का काम करती है.
  • पाठ योजना के माध्यम से शिक्षा में शिक्षण की क्रियाओं की सम्पूर्ण जानकारी मिला जाती है.
  • पाठ योजना से पाठ को पढ़ाने हेतु सहायक सामग्री(टीचिंग एड्स) की भी पूर्ण जानकारी हो जाती है
  • कक्षा में शिक्षण के दौरान होने वाली सभी क्रियाओं पूर्ण जानकारी कराना।
  • कक्षा में शिक्षण के दौरान प्रयुक्त होने वाली सभी सहायक सामग्री की जानकारी कराना।
  • पाठ्य वस्तु के सभी तत्वों का विवेचन करना।
  • पाठ के प्रस्तुतीकरण के क्रम तथा पाठ्य वस्तु के रूप में निश्चितता की जानकारी कराना।
  • पाठ योजना के प्रयोग से कक्षा शिक्षण के समय शिक्षक के विस्मृति की संभावना कम हो जाती है.
  • एक अच्छी पाठ योजना से शिक्षण अधिगम, सहायक सामग्री के प्रयोग के स्थल,शिक्षण विधि तथा प्रविधियों का निर्धारण होता है.
  • प्रभावी ढंग से संवाद करने के लिए छात्र की क्षमता में सुधार करने के लिए।
  • समझ विकसित करने के लिए
  • रचनात्मक आत्म-अभिव्यक्ति में संलग्न होने के लिए छात्रों के लिए अवसर पैदा करना
  • वैज्ञानिक जांच प्रक्रियाओं का ज्ञान और समझ विकसित करने के लिए
  • बुनियादी सिद्धांतों पर विचार करने के लिए
  • सीखने के मूल तत्वों का परिचय देने के लिए
  • सामान्य सूचना (General information)
  • सामान्य उद्देश्य (General Purpose)
  • विशिष्ट उद्देश्य (specific objective)
  • शिक्षण सहायक सामग्री (Teaching aids)
  • पूर्व ज्ञान (previous knowledge)
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  • उद्देश्य कथन (purpose statement)
  • शिक्षण विधि (Teaching method)
  • प्रस्तुतीकरण (Submission)
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  • श्यामपट कार्य (Blackboard work)
  • कक्षा कार्य -(C.W)- Class work
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  • मूल्यांकन प्रश्न (Evaluation)
  • पुनरावृत्ति प्रश्न (Repetition question)
  • गृह कार्य (Home work)
  • ज्ञानात्मक
  • बोधात्मक
  • प्रयोगात्मक
  • कौशलात्मक
  • कक्षा प्राथमिक स्तर (1-5) तक की कक्षाओं के लिए शिक्षण बिंदु प्रश्नोत्तर विधि पर आधारित होता है.
  • उच्च प्राथमिक स्तर(6-8) से प्रस्तुतीकरण में पाठ योजना (लेसन प्लान) बनाते समय प्रस्तुतीकरण के अंतर्गत न्यूनतम 3 शिक्षण बिंदुओं पर प्रस्तुतीकरण बनाना चाहिए.अध्यापक को इन कक्षाओं में विकासात्मक प्रश्न से शिक्षण बिंदु की शुरुआत करनी चाहिए.
  • प्रश्नोत्तरी विधि से पूर्व ज्ञान जांचते समय जब समस्यात्मक उत्तर विद्यार्थियों द्वारा आ जाता है. तब उस शिक्षण बिंदु का स्पष्टीकरण छात्र अध्यापक/ अध्यापिका द्वारा करना चाहिए.

case study lesson plan in hindi

Very nice..congratulations...

case study lesson plan in hindi

Very nice. Good knowledge.

Good knowledge

आप साधारण एवम सरल भाषा मे lesson plan का ब्याख्या किये है।जो बहुत ही अकल्पनीय है। धन्यवाद......

Very usefull

Bht Accha lga.

Very useful and simple language 🙏

Great explanation 👍

thank u 👍🏻👍🏻👍🏻

Pathyojana ki aatma kise kahenge????

Path Yojana Nirman mein samanya vishisht uddeshy kis sambandhit hote Hain

English m kya ise lesson units kahenge

Thank you so Much Very nice deeply solution

Normally kitne prastavana prashna puch skte hai

Thank sir it's very helpful for me ☺️

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Listrovert

Case Study in Hindi Explained – केस स्टडी क्या है और कैसे करें

Tomy Jackson

आपने अक्सर अपने स्कूल या कॉलेज में केस स्टडी के बारे में सुना होगा । खासकर कि Business Studies और Law की पढ़ाई पढ़ रहे छात्रों को कैसे स्टडी करने के लिए कहा जाता है । पर case study kya hai ? इसे कैसे करते हैं , इसके फायदे क्या हैं ? इस आर्टिकल में आप इन सभी प्रश्नों के बारे में विस्तार से जानेंगे ।

Case study in Hindi explained के इस पोस्ट में आप न सिर्फ केस स्टडी के बारे में विस्तार से जानेंगे बल्कि इसके उदाहरणों और प्रकार को भी आप विस्तार से समझेंगे । यह जरूरी है कि आप इसके बारे में सही और विस्तृत जानकारी प्राप्त करें ताकि आपको कभी कोई समस्या न हो । तो चलिए विस्तार से इसके बारे में जानते हैं :

Case Study in Hindi

Case Study एक व्यक्ति , समूह या घटना का गहन अध्ययन है । एक केस स्टडी में , किसी भी घटना या व्यक्ति का सूक्ष्म अध्ययन करके उसके व्यवहार के बारे में पता लगाया जाता है । एजुकेशन , बिजनेस , कानून , मेडिकल इत्यादि क्षेत्रों में केस स्टडी की जाती है ।

case study सिर्फ और सिर्फ एक व्यक्ति , घटना या समूह को केंद्र में रखकर किया जाता है और यह उचित भी है । इसकी मदद से आप सभी के लिए एक ही निष्कर्ष नहीं निकाल सकते । उदहारण के तौर पर , एक बिजनेस जो लगातार घाटा झेल रहा है उसकी केस स्टडी की जा सकती है । इसमें सभी तथ्यों को मिलाकर , परखकर यह जानने की कोशिश होती है कि क्यों बिजनेस लगातार loss में जा रही है ।

परंतु , जरूरी नहीं कि जिस वजह से यह पार्टिकुलर कम्पनी घाटा झेल रही हो , अन्य कंपनियों के घाटे में जाने की यही वजह हो । इसलिए कहा जाता है कि किसी एक मामले के अध्ययन से निकले निष्कर्ष को किसी अन्य मामले पर थोपा नहीं जा सकता । इस तरह आप case study meaning in Hindi समझ गए होंगे ।

Case Study examples in Hindi

अब जबकि आपने case study kya hai के बारे में जान लिया है तो चलिए इसके कुछ उदाहरणों को भी देख लेते हैं । इससे आपको केस स्टडी के बारे में जानने में अधिक मदद मिलेगी ।

ऊपर के उदाहरण को देख कर आप समझ सकते हैं कि case study क्या होती है । अब आप ऊपर दिए case पर अच्छे से study करेंगे तो यह केस स्टडी कहलाएगी यानि किसी मामले का अध्ययन । पर केस स्टडी कैसे करें ? अगर हमारे पास ऊपर दिए उदाहरण का केस स्टडी करने को दिया जाए तो यह कैसे करना होगा ? चलिए जानते हैं :

Case Study कैसे करें ?

अब यह जानना जरूरी है कि एक case study आखिर करते कैसे हैं और किन tools का उपयोग किया जाता है । तो एक केस स्टडी करने के लिए आपको ये steps फॉलो करना चाहिए :

Infographic on case study in Hindi

1. सबसे पहले केस को अच्छे से समझें

अगर आप किसी भी केस पर स्टडी करना चाहते हैं तो आपको सबसे पहले उसकी बारीकियों और हर एक डिटेल पर ध्यान देना चाहिए । तभी आप आगे बढ़ पाएंगे और सही निर्णय भी ले पाएंगे । Case को अच्छे से समझने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसपर स्टडी करते समय आपको ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती । केस को अच्छे से समझने के लिए आप यह कर सकते हैं :

  • Important points को हाईलाइट करें
  • जरूरी समस्याओं को अंडरलाइन करें
  • जरूरी और बारीकियों का नोट्स तैयार करें

2. अपने विश्लेषण पर ध्यान दें

Case Study करने के लिए जरूरी है कि आप अपने analysis पर ध्यान दें ताकि बढ़िया रिजल्ट मिल सके । इसके लिए आप विषय के 2 से 5 मुख्य बिंदुओं / समस्याओं को उठाएं और बारीकी से उनके बारे में जानकारी इकट्ठा करें । इसके बारे में पता करें कि ये क्यों exist करती है और संस्था पर इनका क्या प्रभाव है ।

आप उन समस्याओं के लिए जिम्मेदार कारकों पर भी नजर डालें और सभी चीजों को ढंग से समझने की कोशिश करें तभी जाकर आप सही मायने में case study कर पाएंगे ।

3. संभव समाधानों के बारे में सोचें

किसी भी केस स्टडी का तीसरा महत्वपूर्ण पड़ाव है कि आप समस्या के संभावित समाधानों के बारे में सोचें ।इसके लिए आप discussions , research और अपने अनुभव की मदद ले सकते हैं । ध्यान रहें कि सभी समाधान संभव हों ताकि उन्हें लागू किया जा सके ।

4. बेहतरीन समाधान का चुनाव करें

केस स्टडी का अंतिम पड़ाव मौजूदा समाधानों में से एक सबसे बेहतरीन समाधान का चुनाव करना है । आप सभी समाधानों को एक साथ तो बिल्कुल भी implement नहीं कर सकते इसलिए जरूरी है कि बेहतरीन को चुनें ।

Case Study format

case study lesson plan in hindi

अगर आप YouTube video की मदद से देखकर सीखना चाहते हैं कि Case Study कैसे बनाएं तो नीचे दिए गए Ujjwal Patni की वीडियो देख सकते हैं ।

इस पोस्ट में आपने विस्तार से case study meaning in Hindi के बारे में जाना । अगर कोई प्वाइंट छूट गया हो तो कॉमेंट में जरूर बताएं और साथ ही पोस्ट से जुड़ी राय या सुझाव भी आप कॉमेंट में दे सकते हैं । पोस्ट पसंद आया हो और हेल्पफुल साबित हुई हो तो शेयर जरूर करें ।

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  • Blog meaning in Hindi क्या है

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I have always had a passion for writing and hence I ventured into blogging. In addition to writing, I enjoy reading and watching movies. I am inactive on social media so if you like the content then share it as much as possible .

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Escrow account meaning in hindi – एस्क्रो अकाउंट क्या है, personality development course free in hindi – पर्सनैलिटी डेवलपमेंट, iso certificate क्या होता है आईएसओ सर्टिफिकेट के फायदे और उपयोग.

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nice info sir thanks

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Thanks. It is really very helpful.

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I’m glad to know that you found this post about case study helpful! Keep visiting.

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Home » Pedagogy » पाठ योजना का अर्थ, महत्व, उपागम, पाठ योजना के सोपान एवं विशेषताएँ

पाठ योजना का अर्थ, महत्व, उपागम, पाठ योजना के सोपान एवं विशेषताएँ

Table of Contents

पाठ योजना की आवश्यकता (Need of Lesson Plan)

अध्यापन कार्य एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। शिक्षण का सम्बन्ध अधिगम या सीखने से है। सिखाना या सीखने को प्रेरित करना एक चुनौती है। यदि हमें इस चुनौती को स्वीकार करना है तो उससे पहले हमें सिखाने की विधियों के प्रति आश्वस्त होना पड़ेगा और हम इन विधियों या रीतियों के प्रति उन पर गम्भीरता से विचार कर यह निर्धारित करें कि सिखाने के लिये अपनाया जा रहा तरीका उपयुक्त है। अत: इन तथ्यों से स्पष्ट है कि सीखने के लिये प्रेरित करने और सिखाने से पूर्व गहरा चिन्तन तथा मनन करना पड़ता है। एक कुशल, सचेत और प्रतिबद्ध शिक्षक अध्यापन करवाने से पूर्व शिक्षण के विभिन्न पहलुओं पर विचार करता है, चिन्तन करता है, फिर उस चिन्तन, विचार और अपने अनुभवों के आधार पर वह अपने शिक्षण की योजना बनाता है। अध्यापक द्वारा चिन्तन करना और योजना बनाना शिक्षण कार्य को सफल बनाने हेतु किये गये शिक्षण के पूर्व का कार्य है। शिक्षण की सफलता और असफलता इन कार्यों पर निर्भर करती हैं। अध्यापक जब कक्षा में शिक्षण करवाने के लिये जाये तो उसे पूर्व तैयारी के साथ जाना चाहिये। अध्यापक को अपना पाठ पढ़ाने से पूर्व निम्नलिखित दृष्टिकोणों से गम्भीरतापूर्वक विचार एवं चिन्तन कर लेना चाहिये-

(1) पाठ्यवस्तु से सम्बन्धित छात्रों का पूर्व ज्ञान क्या है? (2) विद्यार्थियों का मानसिक स्तर क्या है? (3) पाठ्यवस्तु को किस प्रकार प्रस्तुत किया जायेगा? (4) पाठ्यवस्तु का शिक्षण करवाने के पश्चात् कौन-कौन से व्यवहारगत परिवर्तन विद्यार्थी में हो सकेंगे? (5) शिक्षण के समय विद्यार्थी और अध्यापक के मध्य कौन-कौन-सी क्रियाएँ होंगी? (6) विषयवस्तु को स्पष्ट करने के लिये कौन-कौन-सी शिक्षण सहायक सामग्री की आवश्यकता होगी? (7) इस शिक्षण सहायक सामग्री को कहाँ से तथा किस प्रकार जुटाया जायेगा? (8) पाठ्यवस्तु का शिक्षण करवाते समय शिक्षण सहायक सामग्री का उपयोग कब एवं किस प्रकार किया जायेगा? (9) पाठ्यवस्तु की और विद्यार्थियों को उदीप्त या उत्तेजित कैसे रखा जायेगा? (10) पाठ का प्रारम्भ कैसे किया जायेगा? (11) शिक्षण करवाते समय श्यामपट्ट पर क्या-क्या लिखा जायेगा? (12) शिक्षण करवाते समय यह कैसे जाना जायेगा कि विद्यार्थी सीख पा रहे हैं या नहीं? (13) शिक्षण करवाने के पश्चात् पूर्व निर्धारित व्यवहारगत परिवर्तन हुए या नहीं इसका पता कैसे लगाया जायेगा? (14) पाठ्यवस्तु पढ़ाने के बाद विद्यार्थियों को गृहकार्य क्या दिया जायेगा? जब शिक्षक इन सभी दृष्टिकोणों पर विचार कर और निर्णयों पर पहुँच जाता है तब वह कक्षा में पढ़ाने के लिये एक कालांश की पाठ्यवस्तु के लिये अपनी योजना को लिखित रूप प्रदान करता है, इसे पाठ योजना (Lesson Plan) कहते हैं।

पाठ योजना का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Lesson Plan)

पाठ योजना शिक्षक द्वारा अपनी पाठ्यवस्तु, अधिगम तथा शिक्षण-सिद्धान्तों को ध्यान में रखकर शिक्षण पूर्व चिन्तन के आधार पर बनायी गयी लिखित योजना है। पाठ की सभी आवश्यकताओं, उद्देश्यों पर भली प्रकार से विचार करने के बाद अध्यापक उस पाठ-योजना को लिखित रूप प्रदान करता है, जिसमें वह सबसे पहले सामान्य जानकारियों के बाद व्यवहारगत परिवर्तनों को उद्देश्य के रूप में लिखता है। बाद में पूर्वज्ञान को आधार बनाते हुए पाठ को प्रस्तावना लिखता है। उसके पश्चात् प्रस्तुतीकरण, शिक्षक शिक्षार्थी अन्त:क्रिया, श्यामपट्ट कार्य एवं पाठान्तर्गत मूल्यांकन आदि को लिखता चला जाता है। पाठ के अन्त में अध्यापक पाठोपरान्त मूल्यांकन तथा गृहकार्य का उल्लेख करता है। यहाँ हमें यह ध्यान सदैव रखना चहिये कि, पाठ-योजना केवल आधार पत्र (ब्ल्यू प्रिन्ट) नहीं है, जिसका अन्धानुकरण किया जाय अपितु यह शिक्षण कार्य को सुचारु रूप से सम्पन्न करने का माध्यम है। यह शिक्षण को सरल, सुबोध और प्रभावी बनाने का तरीका है। शिक्षण को यान्त्रिक क्रिया नहीं बनाया जा सकता। अत: हमें पाठ-योजना को एक पथ-प्रदर्शक के रूप में ग्रहण करना चाहिये। शिक्षक अपने शिक्षण को सफल बनाने के लिये विवेकपूर्ण योजना निर्माण करने के लिये स्वतन्त्र है। पाठ-योजना शिक्षक के लिये साधन है न कि साध्य । वह शिक्षण को केन्द्रित और उद्देश्यपूर्ण बनाकर मूल्यांकन में सहायक है। पाठ-योजना की शिक्षाशास्त्रियों ने अनेक परिभाषाएँ दी हैं, इनमें से कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

(1) बोसिंग के अनुसार, “पाठ-योजना उस विवरण का नाम है, जिसमें यह स्पष्ट किया जाता है कि किस पाठ से क्या उपलब्धियाँ प्राप्त करनी है और उन्हें किन साधनों द्वारा कक्षा की क्रियाओं के फलस्वरूप प्राप्त किया जा सकता है?” (2) डेविस के अनुसार, शिक्षण व्यवस्था के सभी पक्षों का व्यावहारिक रूप का आलेख ही पाठ योजना है।” (3) बाईनिंग एवं बाईनिंग के अनुसार, “दैनिक पाठ-योजना के निर्माण में उद्देश्यों को परिभाषित करना, पाठ्यवस्तु का चयन करना, उसे क्रमबद्ध रूप में व्यवस्थित करना और प्रस्तुतीकरण की विधियों तथा प्रतिक्रियाओं का निर्धारण करना है।” (4) आइवर के. डेवीज के अनुसार, ”शिक्षण व्यवस्था के सभी पक्षों में व्यवहारिक रूप का आलेख पाठ-योजना है। कक्षा-शिक्षण की पूर्व अवस्था (Preactive Stage) ही पाठ योजना है।” (5) डॉ. श्रीमती आर. ए. शर्मा के अनुसार, “शिक्षण के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये शिक्षक जिन क्रियाओं का नियोजन करता है, उनके आलेख को पाठ-योजना की संज्ञा दी जाती है।” उपर्युक्त परिभाषाओं के प्रकाश में भी हम देख सकते हैं कि शिक्षण को व्यवस्थित रूप से सम्पन्न करवाने के लिये शिक्षण सिद्धान्तों के आधार पर पूर्व में किये गये प्रयासों और विचारों को व्यवस्थित रूप से लिखित रूप में दे देना पाठ-योजना है। यह योजना है अध्यापक के लिये पथ-प्रदर्शक का कार्य करती है लेकिन शिक्षक को इसका अन्धानुकरण नहीं करना चाहिये क्योंकि शिक्षण कोई यान्त्रिक क्रिया नहीं है। अत: कक्षा-अध्यापन करवाते समय अध्यापक को कक्षा की स्थिति के अनुरूप ही पाठ-योजना का अनुसरण करना चाहिये।

पाठ योजना का अर्थ, महत्व, उपागम, पाठ योजना के सोपान एवं विशेषताएँ

पाठ योजना की उपयोगिता एवं महत्व (Utility and Importance of Lesson Plan)

नियोजित शिक्षा का अर्थ है- निश्चित उद्देश्य, निश्चित पाठ्यचर्या और नियोजित शिक्षण। नियोजित शिक्षण में पाठ-योजना का बड़ा महत्व है। मरसेल के शब्दों में पाठ-योजना के दो विशेष लाभ हैं, एक तो यह उत्तम शिक्षण में योग देती है और दूसरा उत्तम शिक्षण का निर्माण करती है। पाठ योजना के महत्व और उपयोगिता को हम निम्नलिखित प्रकार से देख सकते हैं-

1. शिक्षण के उद्देश्यों की स्पष्टता- पाठ-योजना का अध्यापक को सबसे बड़ा लाभ यह है कि वह इसमें शिक्षण के उद्देश्यों को स्पष्ट करता है। शिक्षण के उद्देश्यों की स्पष्टता पर शिक्षण की बड़ी प्रक्रिया आधारित होती है। पाठ योजना में शिक्षक अपनी पढ़ायी जाने वाली विषयवस्तु के उद्देश्यों को स्पष्ट कर उन्हें लिखित स्वरूप प्रदान करता है। 2. विषयवस्तु की स्पष्टता – पाठ-योजना में अध्यापक अपनी विषयवस्तु को भी स्पष्ट करता है। वह भली प्रकार से इस पर विचार कर लेता है कि मुझको क्या पढ़ाना है? और कितना पढ़ाना है? इस तरह से अध्यापक पाठ्यवस्तु को स्पष्ट कर उसका विश्लेषण कर लेता है और पाठ-योजना में निर्धारित स्थान पर उसका उल्लेख करता है। 3. शिक्षण विधि का चयन- पाठ योजना निर्माण से पूर्व अध्यापक को क्या पढ़ाना है?तथा क्यों पढ़ाना है? के साथ-साथ किस प्रकार पढ़ाना है? पर भी विचार करता है और यह विचार अध्यापक से उपयुक्त शिक्षण विधि का चयन करवाता है। अध्यापक को निर्धारित किये गये उद्देश्य शिक्षण विधि के चयन के लिये आधार बनते हैं। 4. शिक्षण सहायक सामग्री का चयन एवं निर्धारण- अध्यापक जब अपने पाठ के शिक्षण पर पूर्व विचार करता है तब वह इस बात पर सोचता है कि शिक्षण करवाते समय किन साधनों का उपयोग किया जा सकता है ? जो शिक्षण को प्रभावी तथा रुचिकर एवं सरल बना सकते हैं। इन साधनों के चयन के पश्चात् अध्यापक को इस पर भी सोचना होता है कि उसका उपयोग कहाँ तथा किस प्रकार किया जायेगा? शिक्षक को लिखित रूप में इसका उल्लेख अपनी पाठ योजना में करना होता है। 5. शिक्षक तथा शिक्षार्थी क्रियाओं का निर्धारण- पाठ-योजना बनाते समय अध्यापक शिक्षक तथा शिक्षार्थी क्रियाओं का निर्धारण कर लेता है। उसको स्वयं किस समय कौन सी क्रिया करनी है और विद्यार्थी को कौन सी? इसका निधारण हो जाने से शिक्षण कार्य व्यवस्थित हो जाता है। 6. पाठ से पूर्व शिक्षक की तैयारी- अपना पाठ पढ़ाने से पूर्व शिक्षक जब विभिन्न पहलुओं पर विचार करता है तब वह अपने पाठ की तैयारी भी भली प्रकार से कर लेता है। अपनी पाठ्यवस्तु का विश्लेषण कर लेने से उसे अध्यापन करवाते समय किसी प्रकार की कठिनाई अनुभव नहीं होती। 7. समय और शक्ति का सदुपयोग- पाठ-योजना निर्माण करने के पश्चात् शिक्षक का कार्य व्यवस्थित और उद्देश्यपूर्ण हो जाता है, फिर शिक्षक के भटकने की गुंजाइश नहीं रहती। वह कक्षा अध्यापन करवाते समय क्रमबद्ध रूप से आगे बढ़ता जाता है। इससे कम समय में अधिक कार्य होने की गुंजाइश रहती है। इसमें समय और शक्ति दोनों की बचत होती है और उनका सही-सही उपयोग होता है। 8. मूल्यांकन सम्भव- पाठ योजना निर्माण करते समय अध्यापक को इस पर भी विचार करना होता है कि वह पढ़ायी गयी विषयवस्तु का मूल्यांकन किस प्रकार करेगा? शिक्षकों को पाठ-योजना में मूल्यांकन का उल्लेख करना होता है। इस दृष्टि से पाठ-योजना का बहुत महत्व है। 9. गृहकार्य – पाठ योजना में गृहकार्य का प्रावधान भी होता है। शिक्षक को योजना में उल्लेख करना होता है कि गृहकार्य के रूप में छात्र को क्या कार्य दिया जायेगा?

इस प्रकार से हम देखते हैं कि प्रतिबद्ध शिक्षक के लिये पाठ-योजना का अत्यन्त महत्व है। पाठ-योजना के अभाव में शिक्षण उद्देश्यपूर्ण, व्यवस्थित और प्रभावी नहीं हो सकता शिक्षण को सफल बनाने में पाठ-योजना की अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका है।

पाठ योजना की उपयोगिता एवं महत्व (Utility and Importance of Lesson Plan)

पाठ योजना के उपागम (Approaches of Lesson Plan)

पाठ योजना निर्माण में अनेक उपागमों को प्रयुक्त किया जाता है। इन उपागमों में हरबर्ट   उपागम , मूल्यांकन उपागम (ब्लूम उपागम), ड्यूवी तथा किलपेट्रिक उपागम, मॉरीसन उपागम, अमेरिकन उपागमन तथा ब्रिटिश उपागम इत्यादि प्रमुख उपागम है।

हरबर्ट उपागम (Herbartian Approach)

प्रारम्भ में भारत में हरबर्ट की पंचपदी प्रणाली पर आधारित पाठ-योजना बनायी जाती थी। हरबर्ट की पंचपदी प्रणाली के पद निम्नलिखित प्रकार हैं-

(1) प्रस्तावना (2) प्रस्तुतीकरण (3) व्यवस्था (4) तुलना (5) मूल्यांकन

हरबर्ट द्वारा प्रतिपादित पाठ-योजना के ये पाँचों सोपान बड़े महत्वपूर्ण हैं। आज भी इनका अनुसरण किसी-न-किसी रूप में लिया जाता है। हमारे देश में अधिकतर पाठ-योजनाएँ हरबर्ट उपगाम के आधार पर ही बनायी जाती हैं। हालांकि ब्रिटिश उपागम और अमेरिकन उपागम का भी प्रभाव योजनाओं पर रहता है।

मूल्यांकन उपागम (Evaluation Approach)

मूल्यांकन उपागम बी. एस. ब्लूम की देन है। मूल्यांकन उपागम में शिक्षण के पश्चात् विद्यार्थी के व्यवहारगत परिवर्तनों का मूल्यांकन किया जाता है। इन व्यवहारगत परिवर्तनों का मूल्यांकन भली प्रकार तभी सम्भव है, जब उद्देश्यों का निर्धारण भली प्रकार से किया गया हो। इस उपागम में पाठ-योजना के उद्देश्यों को बहुत महत्व दिया जाता है। पाठ योजना के उद्देश्य जितने स्पष्ट होंगे, उतना ही स्पष्ट उसका मूल्यांकन होगा। इस उपागम का विशेष प्रभाव पाठ-योजना के उद्देश्यों तथा मूल्यांकन पर ही पड़ा है। उद्देश्य का स्पष्ट निर्धारण एवं विभाजन तथा उनके आधार मूल्यांकन इस उपागम द्वारा निर्मित पाठ-योजनाओं की विशेषता है।

ड्यूवी तथा किलपेट्रिक उपागम (Dewey and Kilpatric Approach)

यह उपागम अधिगम अनुभवों के आधार पर ज्ञान देने का पक्षधर है। ड्यूवी और किलपेट्रिक का मानना है कि विद्यार्थी अपने जीवन की समस्याओं को सुलझाते हुए अनेक प्रकार के अनुभव प्राप्त करते हैं। इसी प्रकार के जीवन से सम्बन्ध रखने वाली योजनाओं के माध्यम से हमें छात्रों को ज्ञान देना चाहिये। इनके अनुसार अधिगम का आधार प्रायोजना है। किलपेट्रिक ने प्रायोजना विधि के सात पद सुझाये हैं- (1) परिस्थिति उत्पन्न करना। (2) योजना का चयन। (3) योजना का उद्देश्य। (4) योजना-नियोजन। (5) योजना का क्रियान्वयन। (6) कार्यों का मूल्यांकन। (7) योजना पूर्ण होने पर लेखा लिखना।

मॉरीसन उपागम (Morrison Approach)

इस उपागम के प्रवर्तक एच. सी. मॉरीसन हैं। मॉरीसन ने अपने इस उपागम में डीवी तथा हरबर्ट उपागमों का समन्वय किया है। इस उपागम में शिक्षण की एक चक्रीय योजना (cycle plan of teaching) का निर्माण किया जाता है, जिसमें निम्नलिखित पाँच पदों का अनुसरण किया जाता है- (1) अन्वेषण (Exploration) (2) प्रस्तुतीकरण (Presentation) (3) आत्मीकरण (Assimilation) (4) व्याख्या (Organisation) (5) वर्णन (Recitation) इस उपागम में इकाई पद्धति (Unit Method) को महत्वपूर्ण माना गया है। इकाई पद्धति विद्यार्थी केन्द्रित होती है। इकाई का निर्माण निद्यार्थियों की सहायता से शिक्षक द्वारा किया जाता है। इसमें उनकी रुचि एवं आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जाता है।

ब्रिटिश उपागम (British Approach)

इस उपागम में केन्द्र बिन्दु शिक्षक है। इस प्रणाली पर आधारित पाठ-योजना बनाते समय शिक्षक की क्रियाओं तथा विद्यार्थी के मूल्यांकन पर विशेष बल दिया जाता है। इस उपागम के अनुसार शिक्षक को प्रभावशाली क्रियाओं पर शिक्षण निर्भर करता है। शिक्षक की क्रियाएँ जितनी अधिक प्रभावी होंगी. शिक्षार्थी उतनी ही भली प्रकार सीखेगा।

अमेरिकन उपागम (American Approach)

इस उपागम में अधिगम उद्देश्यों पर बल दिया जाता है। उद्देश्य को भली प्रकार स्पष्ट एवं परिभाषित करने के बाद शिक्षक विद्यार्थी अन्त: क्रियाओं को इस प्रकार व्यवस्थित किया जाता है कि वे निर्धारित उद्देश्यों को सरलता से प्राप्त कर सके। इसमें (1) उद्देश्य, (2) व्यवहार तथा (3) मूल्यांकन का प्रमुख स्थान है।

भारतीय उपागम (Indian Approach)

भारतीय उपागम पर ब्रिटिश उपागम तथा अमेरिकन उपागम का प्रभाव है। सन् 1960 के बाद राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण संस्थान तथा उच्च शिक्षा संस्थान द्वारा पाठ-योजना पर अनेक प्रयोग किये गये, “जिसके परिणामस्वरूप पाठ-योजना बनाने का एक नवीन उपागम प्रस्तुत किया गया जिसमें-(1) शिक्षण उद्देश्यों, (2) शिक्षक क्रियाओं तथा (3) छात्र के मूल्यांकन को महत्व दिया गया। उपर्युक्त कुछ प्रमुख उपागम हैं. जिनका प्रयोग भारत में पाठ-योजनाएँ बनाते समय किया जाता है। वास्तव में दैनिक पाठ योजना का स्वरूप यन्त्रवत नहीं हो सकता क्योंकि शिक्षण क्रिया यान्त्रिक क्रिया नहीं है। पाठ-योजना शिक्षण प्रक्रिया को समझने में सहायक है। वह साध्य नहीं, साधन है, साधारणत: हम शिक्षण प्रक्रिया में निम्नलिखित बिन्दुओं को सम्मिलित करते हैं।

  • शिक्षण उद्देश्य
  • अध्ययन-अध्यापन संस्थितियाँ
  • मूल्यांकन प्रविधियाँ

जब हम प्रचलित उपागमों पर आधारित पाठ योजनाओं को देखते हैं तो पाते हैं कि पाठ योजना का कोई भी प्रारूप उपर्युक्त तीनों तथ्यों की परिधि से बाहर नहीं हो सकता।

पाठ योजना के सोपान (Steps of Lesson Plan)

ऊपर शिक्षण प्रक्रिया को भारतीय उपागम में तीन तथ्यों  द्वारा स्पष्ट किया गया है। यदि एक शिक्षण इन तीनों बिन्दुओं के सम्बन्ध में एकदम स्पष्ट हो तो उसे अपना पाठ व्यवस्थित रूप से बनाने और अध्यापन करने में कोई परेशानी नहीं होगी। पाठ योजना के विभिन्न उपागमों की चर्चा पहले की जा चुकी है उस आधार पर पाठ योजना के अलग-अलग सोपान हो सकते हैं। हरर्बट की पंचपदीय पद्धति पर आधारित भारतीय उपागम की जो पाठ योजनाएँ हैं, उनमें सामान्यत: निम्नलिखित सोपानों का अनुसरण किया जाता है- (1) परिचयात्मक सूचनाएँ (2) उद्देश्य (3) शिक्षण सहायक सामग्री (4) पूर्वज्ञान (5) प्रस्तावना (6) प्रकरणाभिसूचन या पाठ्याभिसूचन (7) पाठ का विकास (8) श्यामपट्ट कार्य (9) मूल्यांकन (10) गृह कार्य इन सभी सोपानों को हम निम्नलिखित प्रकार से समझ सकते हैं-

परिचयात्मक सूचनाएँ

दैनिक पाठ योजना बनाते समय अध्यापक को विद्यालय का नाम, कक्षा, वर्ग, कालांश अवधि, विषय एवं प्रकरण आदि का उल्लेख पाठ योजना के प्रारम्भ में करना होता है। स्पष्ट है कि यह सूचनाएँ परिचयात्मक हैं, इन्हें सामान्य सूचनाएँ भी कहा जाता है। इन सूचनाओं के आधार पर भविष्य में उस पाठ योजना का उपयोग किया जा सकता है, दूसरे शिक्षक भी उससे लाभ ले सकते हैं। परिचयात्म्क या सामान्य सूचनाएँ देते समय शिक्षक को यह ध्यान रखना चाहिये कि सूचनाएँ स्पष्ट तथा संक्षिप्त हों।

यह दैनिक पाठ योजना का सर्वाधिक महत्वपूर्ण सोपान होता है क्योंकि पाठ योजना की अध्ययन-अध्यापन संस्थितियाँ और मूल्यांकन प्रविधियाँ दोनों इन उद्देश्यों पर निर्भर करती है। उद्देश्यों का भली प्रकार से स्पष्ट हो जाने का अर्थ पाठ योजना की नींव का मजबूत हो जाना होता है। इस दृष्टि से हम उद्देश्यों को दैनिक पाठ योजना का आधार कह सकते हैं। सामान्यत: पाठ के दो प्रकार के उद्देश्य निर्धारित किये जाते हैं, सामान्य तथा विशिष्ट। दैनिक पाठ-योजना पूर्णतः क्रियात्मक योजना होती है। अतः उसमें सामान्य उद्देश्यों को न रखकर विशिष्ट उद्देश्यों को रखना चाहिये क्योंकि सामान्य उद्देश्य तो वार्षिक पाठ-योजना में भी सम्मिलित किये जाते हैं। अतः पाठ की योजना बनाते समय विशिष्ट उद्देश्यों पर बल देना चाहिये ताकि उनका मूल्यांकन भी पाठ की समाप्ति पर हो सके। उद्देश्यों का निर्धारण करते समय यह बात आवश्यक रूप से ध्यान रखनी चाहिये कि वे उद्देश्य कालांश की ‘अवधि में प्राप्य हों, जो उद्देश्य कालांश की अवधि में प्राप्य न हो उनका उल्लेख पाठ योजना में अनावश्यक रूप से नहीं करना चाहिये। विषय की प्रकृति के अनुसार निर्धारण उद्देश्यों को व्यवहारगत परिवर्तन के रूप में लिखना चाहिये।

सहायक सामग्री

इस सोपान में शिक्षक को पाठ में उपयोग ली जा रही शिक्षण सहायक सामग्री का उल्लेख करना होता है। किस विषय के किस पाठ में कौन-सी सहायक सामग्री काम में ली जाय? इसका निर्धारण विषय तथा प्रकरण की प्रकृति के अनुसार ही होता। कुछ सहायक सामग्री श्रव्य एवं दृश्य-श्रव्य साधनों के रूप में उपलब्ध रहती है तो कुछ अध्यापक को अपने प्रकरण की प्रकृति के अनुरूप बनानी पड़ती है। शिक्षक को सामान्यत: कम खर्चीली, वातावरण के साधनों से उपलब्ध, सहज, सरल एवं स्पष्ट सहायक सामग्री का निर्माण करना चाहिये। सहायक सामग्री का उपयोग पाठ में क्यों? कब कैसे? तथा कहाँ करना है ? आदि प्रश्नों पर शिक्षक को भली प्रकार से विचार कर लेना चाहिये। सहायक सामग्री को बनाना या उसका चयन करना ही पर्याप्त नहीं है। बल्कि उसका सही समय पर सही तरीके से उपयोग करना ही उसकी सार्थकता है। पाठ-योजना निर्माण करते समय अध्यापक को अपने पाठ में प्रयोग ली जा रही शिक्षण सहायक सहायक सामग्री का लघुरूप भी संलग्न करना चाहिये। कुछ अध्यापक खड़िया झाड़न आदि का उल्लेख भी पाठ योजना निर्माण करते समय सहायक सामग्री के रूप में करते हैं। इस दृष्टि से तो भी श्यामपट्ट का उल्लेख भी सहायक सामग्री के रूप में किया जाना चाहिये। यहाँ हमें यह ध्यान रखना चाहिये कि अध्यापन करवाते समय कक्षा में जो उपकरण दैनिक रूप से काम में आते हैं। वे सहायक सामग्री में नहीं आते, जैसे चॉक एवं झाड़न(Duster), संकेतक(Pointer) आदि। हाँ यदि अध्यापक ‘न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण नियम’ पढ़ा रहा है और उसने कक्षा में चॉक के ऊपर उछालकर विषय वस्तु को समझाने के रूप में काम में लिया है तो चॉक शिक्षण सहायक सामग्री होगा। अत: हमें चॉक, झाड़न एवं संकेतन आदि उल्लेख सहायक सामग्री के रूप में नहीं करना चाहिये।

पूर्व ज्ञान

शिक्षक विद्यार्थी को जो विषयवस्तु पढ़ा रहा है उसका विद्यार्थी के पूर्वज्ञान से सम्बन्ध होना आवश्यक है क्योंकि विद्यार्थी पूर्व अनुभव के आधार पर ही नवीन विषयवस्तु ग्रहण करता है। एक कुशल अध्यापक में यह गुण होता है कि वह विद्यार्थियों के पूर्व अनुभवों का लाभ उठाते हुए अपनी विषयवस्तु सहज, सरल, रोचक एवं प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करता है। यह पाठ की सफलता का आधार है। पूर्वज्ञान की वह प्रस्तावना बिन्दु है, जहाँ से विद्यार्थी नये पाठ की विषयवस्तु को खरीदने के लिये आगे बढ़ता है। अत: पूर्व ज्ञान की जानकारी रखना तथा पाठ-योजना में इस सोपान पर इसका उल्लेख करना आवश्यक है।

विद्यार्थी के पूर्व ज्ञान का लाभ उठाते हुए अध्यापक पढ़ायी जाने वाली विषयवस्तु के प्रति छात्रों को कितना उद्दीप्त कर पाता है ? यह पाठ की प्रस्तावना पर निर्भर होता है। इस सोपान पर शिक्षक कक्षा में ऐसी परिस्थिति का निर्माण करता है, जिसके द्वारा वह विद्यार्थियों को नवीन ज्ञान प्राप्त करने के लिये कर लेता है। इस परिस्थिति द्वारा विद्यार्थियों के पूर्व ज्ञान की पुनर्रचना हो जाती है और वे अपने पुराने ज्ञान का तादात्म्य नये ज्ञान के साथ करके नया ज्ञान प्राप्त करने के लिये अभिप्रेरित हो जाते हैं। पाठ की प्रस्तावना जितनी सहज, सरल, रोचक और प्रभावी होगी। उतनी ही सहजता, सरल एवं रोचकता से छात्र विषयवस्तु को ग्रहण करने के लिये उद्दीप्त होंगे। पाठ की प्रस्तावना विषयवस्तु की प्रकृति एवं विद्यार्थी के पूर्व अनुभव एवं उसके मानसिक स्तर को ध्यान में रखते हुए तैयार की जाती है। प्रस्तावना का मुख्य उद्देश्य बालकों को पढ़ाये जाने वाले पाठ पर केन्द्रित करना है। पाठ की प्रस्तावना का कोई एक तरीका नहीं है, इसको अनेक प्रकार से तैयार किया जा सकता है। एक ही प्रकरण को अनेक प्रकार से तैयार किया जा सकता है। साधारणतया प्रस्तावना प्रश्नों, दृश्य, श्रव्य संसाधनों, अध्यापक कथन, लघु कथा, कवितांश एवं प्रेरक प्रसंग आदि के माध्यम से तैयार की जाती है।

पाठ्याभिसूचन या प्रकरणाभिसूचन

प्रस्तावना के पश्चात् शिक्षक पाठ्याभिसूचन या प्रकरणाभिसूचन करता है। ऐसा इसलिये किया जाता है कि विद्यार्थियों को यह स्पष्टत: ज्ञात हो जाय कि उन्हें किस प्रकरण का अध्ययन करना है? इस कथन से संदिग्धता की स्थिति समाप्त हो जाती है तथा विद्यार्थी निश्चित दिशा में बढ़ने की ओर अग्रसर होने लगते हैं। कुछ लोग इसी बात को ध्यान में रखते हुए प्रकरणाभिसूचक को उद्देश्य कथन भी कह देते हैं। प्रकरणाभिसूचन पाठ की प्रस्तावना और पाठ के विकास के बीच की कड़ी है। यहाँ हमें यह बात ध्यान रखनी चाहिये कि केवल प्रकरण की सूचना देना मात्र पाठ्याभिसूचन या प्रकरणाभिसूचन नहीं है बल्कि वह पाठ की रोचकता बढ़ाने वाला तथा पढ़ाये जा रहे पाठ के केन्द्रीय भाव को स्पष्ट करने वाला कथन है। आजकल कुछ अध्यापक इसे केवल औपचारिकता पूरा करने वाला कथन समझते हैं। इसका कारण है-अध्यापकों द्वारा रोज प्रस्तावना के बाद यह कहना कि ‘आज हम यह पढ़ायेंगे’। यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि किसी बात को बार-बार उसी रूप में दोहराना रुचिकर और आकर्षक नहीं होता। कुशल शिक्षक सदैव ऐसी स्थिति से बचता है। वह अपने प्रकरणाभिसूचन को भिन्न वाक्यों द्वारा बदल-बदल कर रोचक ढंग से प्रस्तुत करता है। कभी-कभी पाठ का उद्देश्य केवल शीर्षक बता देने मात्र से पूरा नहीं होता। ऐसी स्थिति में उस प्रकरण का केन्द्रीय भाव प्रकरणाभिसूचन या पाट्याभिसूचन में स्पष्ट कर देना चाहिये। प्रकरणाभिसूचन विद्यार्थियों के सामने एकदम स्पष्ट होना चाहिये। यह आवश्यक है कि प्रकरणाभिसूचन सरल और स्पष्ट शब्दों में किया जाना चाहिये ताकि अनिश्चितता की स्थिति समाप्त हो जाय और शिक्षण कार्य अभीष्ट दिशा की ओर सहज भाव से अग्रसर हो सके।

पाठ का विकास

प्रकरणाभिसूचक या पाठ्याभिसूचन के पश्चात् अध्यापक पाठ का विकास करता है। पाठ का विकास पाठ-योजना में निर्धारित किये गये उद्देश्यों के अनुसार ही किया जाता है। पाठ के विकास में अध्यापक क्रिया, छात्र क्रिया एवं अध्ययन-अध्यापन संस्थितियाँ आदि का उल्लेख किया जाता है। यहाँ पर अध्यापक को पढ़ायी जा रही विषयवस्तु को भी शिक्षण बिन्दुओं के रूप में लिखना चाहिये। पाठ के विकास को विभिन्न सोपानों में विभाजित करना उपयुक्त रहता है क्योंकि इससे प्रत्येक सोपान की समाप्ति पर बोध प्रश्न पूछकर पाठान्तर्गत मूल्यांकन का अवसर अध्यापक को मिल जाता है, जो कि विद्यार्थी के अधिगम को स्थायी करने की दृष्टि से अत्यन्त उपयोगी है। साथ ही अध्यापक को भी इस बात का पता भली प्रकार से लग जाता है कि विद्यार्थी पढ़ायी जा रही विषयवस्तु को सीख पाया या नहीं। यह अध्यापक की कुशलता पर निर्भर करता है कि वह अपने पाठ का विकास किस प्रकार करता है? पाठ के विकास की कसौटी उद्देश्यों के अनुरूप चुनी गयी शिक्षण युकिायाँ होती हैं। ये शिक्षण युक्तियाँ विषय तथा प्रकरण की प्रकृति पर भी निर्भर करती है। भाषाओं के पाठों में गद्य, पद्य, नाटक एवं कहानी आदि का विकास अलग-अलग ढंग से किया जाता है। इसी तरह से सामाजिक विज्ञान, विज्ञान एवं गणित के पाठ का विकास भिन्न-भिन्न तरह से किया जाता है। अत: सभी शिक्षकों को विभिन्न विषयों के पाठों के विकास की भिन्नताओं एवं समानताओं को बारीकी से समझना चाहिये।

श्यामपट्ट-सार

पूरे पाठ का सार लिखने के लिये शिक्षक को सहज सुलभ साधन श्यामपट्ट होता है। इसी कारण इस प्रक्रिया का नाम श्यामपट्ट सार हो गया है। अध्यापक को श्यामपट्ट सार लिखने के अनेक लाभ हैं। प्रमुख लाभों को हम निम्नलिखित प्रकार से देख सकते हैं- (1) सारांश लिखने से पूरे पाठ का चित्र मस्तिष्क में उभर आता है, जो विषयवस्तु समझने में सहायक होता है। (2) श्यामपट्ट सार से विद्यार्थियों में ग्रहण किया गया ज्ञान स्थायी होता है। (3) श्यामपट्ट सार को विद्यार्थियों द्वारा अपनी अभ्यास पुस्तिका में लिखा जाता है, जिससे वह स्मृति में स्थायी बनता है। (4) श्यामपट्ट सार विद्यार्थी के पास लिखित अभिलेख के रूप में रहता है। (5) श्यामपट्ट सार से विद्यार्थियों की लेखन क्षमता का विकास होता है। (6) यह अध्यापक के लिये पाठ को पुनरावृत्ति में सहयोगी है। इस प्रकार से हम देखते हैं कि पाठ-योजना में श्यामपट्ट सार का महत्व है। अतः अध्यापक को इस पर भली प्रकार से विचार करके इसको पाठ-योजना के इस सोपान में स्पष्ट दर्शाना चाहिये। अध्यापक को श्यामपट्ट सार किस प्रकार देना चाहिये? इस सम्बन्ध में कोई एक मत नहीं है। श्यामपट्ट सार देने के कुछ तरीके निम्नानुसार हो सकते हैं-

(क) पाठ के विकास के साथ- शिक्षक पाठ के विकास के साथ-साथ क्रमबद्ध रूप से एक ओर मुख्य शिक्षण बिन्दुओं को लिखता चला जाता है और शेष हिस्से में चित्र, लेखाचित्र अन्य या बिन्दु या विवरण लिखता रहता है। श्यामपट्ट सार के विकास में विद्यार्थियों का सहयोग लिया जाता है।

(ख) पाठ के अन्त में श्यामपट्ट सार का विकास- इस तरीके में पुनरावृत्ति के प्रश्नों के साथ शिक्षक श्यामपट्ट सार मुख्य-मुख्य बिन्दुओं के रूप में लिखता चला जाता है। यह तरीका अध्यापक के लिये सुविधाजनक रहता है।

(ग) लपेटफलक पर पूर्व तैयारी- यह ढंग प्रायः तब काम में लिया जाता है जब या तो अध्यापक का लेख सुन्दन न हो या फिर विषयवस्तु बहुत बड़ी हो और उसे कम समय में श्यामपट्ट पर लिखना सम्भव न हो। भाषा शिक्षण में भी कवित पढ़ाते समय यह तरीका काम में लिया जाता है। इस तरीके में अध्यापक लपेटफलक पर श्यामपट्ट सार लिखकर ले आता है और अवसर आने पर उसे टाँगकर विद्यार्थियों को लिखवा देता है। (घ) विद्यार्थी स्वयं पाठ का सारांश लिखें- इस तरीके में पुनरावृत्ति प्रश्नों के साथ विद्यार्थियों द्वारा श्यामपट्ट सार लिखवाया जाता है। बड़ी कक्षाओं में यह दंग अपनाया जा सकता है। श्यामपट्ट सार देते समय अध्यापक को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिये- (1) श्यामपट्ट सार सम्पूर्ण पाठ पर आधारित होना चाहिये। (2) श्यामपट्ट सार मुख्य-मुख्य बिन्दुओं के रूप में दिया जाना चाहिये। (3) श्यामपट्ट सार का विकास विद्यार्थियों के सहयोग से किया जाना चाहिये। (4) श्यामपट्ट सार क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित रूप से होना चाहिये। (5) श्यामपट्ट सार का लेख स्पष्ट एवं सुन्दर होना चाहिये।

पाठ की समाप्ति के बाद निर्धारित विशिष्ट उद्देश्यों की प्राप्ति हुई या नहीं, इसका मूल्यांकन आवश्यक है। मूल्यांकन लिखित एवं मौखिक दोनों प्रकार का हो सकता है। इस सोपान में मूल्यांकन का उल्लेख किया जाता है। अपने कालांश की अवधि के अन्त में 5-7 मिनट अध्यापक को मूल्यांकन के लिये देने चाहिये। इस अवधि में सम्पूर्ण पाठ में से अध्यापक को प्रश्न पूछने चाहिये। इसके लिये अध्यापक को उद्देश्य आधारित विभिन्न प्रकार के प्रश्न पूछने या लिखवाने चाहिये। मूल्यांकन प्रश्न बनाते समय अध्यापक को यह ध्यान रखना चाहिये कि कोई उद्देश्य छूट न जाय। कम-से-कम एक-एक प्रश्न प्रत्येक उद्देश्य से सम्बन्धित होना चाहिये। अध्यापक के प्रश्न के साथ इस उद्देश्य का भी संकेत दे देना चाहिये, जिस उद्देश्य की पूर्ति वह प्रश्न कर रहा है।

यह पाठ-योजना का अन्तिम सोपान होता है। गृहकार्य पाठ-योजना का आवश्यक अंग होता है। इस सोपान में अध्यापक को पाठ-योजना में विद्यार्थियों को दिये गये नियम कार्य (गृहकार्य) का उल्लेख करना होता है। गृहकार्य से विद्यार्थियों में अधिगम स्थायी होता है और विद्यार्थी के शैक्षिक विकास में सहायता अच्छे एवं योजनाबद्ध नियम कार्य में निम्नांकित विशेषताएँ होनी चाहिये- (1) नियत कार्य का पठित प्रकरण से सीधा सम्बन्ध होना चाहिये। (2) नियत कार्य द्वारा प्रकरण से सम्बन्धित उद्देश्यों की पूर्ति होनी चाहिये। (3) नियत कार्य विद्यार्थी की वैयक्तिक योग्यतानुसार दिया जाना चाहिये। (4) नियत कार्य व्यावहारिक एवं जीवनोपयोगी होना चाहिये। (5) नियत कार्य विद्यार्थियों की रुचि के अनुरूप दिया जाना चाहिये। (6) नियत कार्य की भाषा सरल, स्पष्ट एवं बोधगम्य होनी चाहिये। (7) नियत कार्य की मात्रा सामान्यत: अधिक नहीं होनी चाहिये। (8) अध्यापक का प्रयास यह होना चाहिये कि विद्यार्थी को इस प्रकार का नियत कार्य दिया जाय, जिसमें विद्यार्थी अपनी मौलिकता का उपयोग कर सके। (9) विद्यार्थी को दिये जाने वाला नियत कार्य विद्यार्थी को सृजनात्मक क्षमताओं का उपयोग करने वाला होना चाहिये।

उत्तम पाठ योजना की विशेषताएँ (Characteristics of Good Lesson Plan)

(1) पाठ योजना में परिचयात्मक या सामान्य सूचनाओं का उल्लेख होना चाहिये। (2) पाठ योजना में उद्देश्यों का स्पष्ट निर्धारण करके उन्हें व्यवहारगत परिवर्तन के रूप में स्पष्ट लिखना चाहिये। (3) शिक्षण करवाते समय अध्यापक क्रियाएँ कौन कौन-सी होंगी ? इसका स्पष्ट उल्लेख हो। (4) शिक्षण करवाते समय विद्यार्थी क्रियाएँ कौन-कौन-सी होंगी? इसका स्पष्ट उल्लेख हो। (5) शिक्षण करवाते समय शिक्षक विद्यार्थी अन्त:क्रियाएँ कौन-कौन-सी होंगी? इसका स्पष्ट उल्लेख हो। (6) पाठ से सम्बन्धित प्रत्येक क्रिया निर्धारित उद्देश्यों पर आधारित हो। (7) छात्रों की पाठ सम्बन्धी कठिनाई को किस प्रकार दूर किया जायेगा? इसका वर्णन पाठ-योजना में हो। (8) पाठ योजना में संक्षेप में यह भी वर्णित हो कि उसमें किस स्थान पर कौन-से सीखने के नियम, कौन-से सिद्धान्त और शिक्षण सूत्रों को ध्यान में रखा जायेगा? (9) पाठ योजना में इसका स्पष्ट उल्लेख हो कि शिक्षक कौन-सी सहायक सामग्री को कहाँ तथा किस प्रकार प्रयोग में लायेगा? (10) पाठ योजना बनाते समय शिक्षक द्वारा इस बात का ध्यान रखा गया हो कि छात्र पाठ में अधिक-से-अधिक रुचि ले सकें। (11) पाठ योजना में लिखित या वर्णित सभी क्रियाएँ छात्रों का ध्यान विषयवस्तु पर केन्द्रित करने वाली हो। (12) पाठ योजना की प्रायः सभी क्रियाएँ एक ओर छात्रों के जीवन की घटनाओं से तथा दूसरी ओर पाठ से सम्बन्धित हों। (13) पाठ योजना में पढ़ायी जा रही विषयवस्तु का उल्लेख भी संकेत रूप में अवश्य होना चाहिये। (14) पाठ योजना में इस बात का भी पता लगाया जाय कि पाठ के जो उद्देश्य निर्धारित किये गये थे, उनकी पूर्ति हुई या नहीं और यदि हुई तो किस सीमा तक? (15) पाठ योजना के अन्त में इस बात का उल्लेख होना चाहिये कि छात्रों को गृहकार्य के रूप में क्या दिया जाय और किस प्रकार दिया जाय?

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12th notes in hindi

पाठ योजना के हर्बर्ट पांच चरणों , पाठ योजना के चरण क्या हैं ? steps of lesson plan in hindi write steps

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steps of lesson plan in hindi write steps पाठ योजना के हर्बर्ट पांच चरणों , पाठ योजना के चरण क्या हैं ?

टिप्पणी लिखिये-पाठ योजना के सोपान। Write short note on Steps of Lesson Plan. उत्तर- पाट-योजना के सोपान-जे. एफ. हरबर्ट ने पाठ योजना के कुछ सोपान बताये हैं जिन्हें ‘हरबर्ट की पंच-पद प्रणाली‘ के नाम से जाना जाता है। ये निम्नलिखित हैं- 1. तैयारी (Preparation)- इसमें अध्यापक नवीन ज्ञान देने के लिए भूमिका बनाता है। वह अपने छात्रों को इस प्रकार से उत्तेजित करता है कि वे नया ज्ञान सीखने का आवश्यकता का अनुभव करें। यह कार्य उनके पूर्व ज्ञान सम्बन्धी प्रश्नों का मूल्यांकन करके, मौखिक प्रश्न पूछकर, कहानियों के माध्यम से अथवा चास मॉडल, पिक्चर्स आदि का योग करके किया जा सकता है । प्रस्तावना आकर्षक ढंग से प्रस्तुत की जाती है ताकि छात्रों की पाठ में रुचि शीघ्रता से जाग्रत की जा सके। 2. प्रस्तुतीकरण (Presention)- इस पद के अन्तर्गत ही छात्रों को नवीन ज्ञान दिया जाता है। इसमें छात्र तथ्यों का अवलोकन एवं निरीक्षण करता है. साथ ही तथ्यों के बीच सम्बन्ध भी स्थापित करता है। इन सम्बन्धों के आधार पर वह सामान्य नियम, सूत्र एवं निष्कर्ष निकालता है। प्रश्नों के पूछने में अध्यापक को प्रश्नों की उपयुक्तता, छात्रों का मानसिक स्तर, प्रश्नों की सरल एवं स्पष्ट भाषा तथा प्रश्नों का समान वितरण (Evenly distributed) आदि बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। समय-समय पर सहायक सामग्री का प्रयोग करते जाना चाहिए। श्यामपट्ट सारांश (Black&Board Summary) भी साथ-साथ लिखा जाता है। 3. तुलना (Comparison)- छात्र जो भी ज्ञान प्राप्त करते हैं वे उस ज्ञान की सत्यता की परख प्राप्त करने को समान परिस्थितियों में रखकर करते हैं। इससे नवीन ज्ञान स्थायी अंग बन जाता है। 4. सामान्यीकरण (Generalçation) – सामान्यीकरण की इस प्रक्रिया में छात्रों का सक्रिय सहयोग प्राप्त करते हुए किसी सूत्र, नियम अथवा सिद्धान्त की स्थापना की जाती है। सामान्यीकरण का प्रयोग उन पाठों में किया जाता है जिसमें आगमन एवं निगमन विधियों का प्रयोग किया जाता है, जैसे किसी सूत्र की स्थापना करना। 5. अनुप्रयोग (Application)- पढ़ाये गये पाठ को स्थायी अंग बनाने के लिए ‘सीखने का हस्तान्तरण‘ (Transfer of Training) करने के लिए प्रस्तुतीकरण के पश्चात अनुप्रयोग के लिए अभ्यासार्थ कक्षा-कार्य देना चाहिए। उसे विद्यार्थियों के सही कार्यों की प्रशंसा करनी चाहिए। ऐसा करने से उन्हें प्रोत्साहन मिलेगा तथा उनमें स्पर्धा की भावना पैदा होगी और वे जीवन की वास्तविक समस्याओं के हल में वैज्ञानिक ज्ञान का प्रयोग कर सकेंगे। अध्यापक को विद्यार्थियों की गलतियाँ भी ध्यान से देखनी चाहिये। यथासम्भव छोटी-छोटी गलतियाँ को विद्यार्थी के पास जाकर तथा बड़ी गलतियों को श्यामपट्ट पर हल करके बतलाना चाहिये। 6. संक्षिप्त पूर्व विवरण देना (Recapitulation)- ये पाठ-योजना का अन्तिम सोपान है। इसके माध्यम से अध्यापक को यह जानने में सहायता मिलती है कि उसके छात्रों ने क्या सीखा है, उनके बौद्धिक स्तर में कहाँ तक विकास हुआ है तथा छात्रों में अपेक्षित (वांछित) व्यवहारिक सुधारों को लाने में कहाँ तक सफलता प्राप्त हुई है । इसका मुख्य उद्देश्य शिक्षण की सफलता का पता लगाना है। प्रकरण की मुख्य-मुख्य बातें संक्षेप में प्रश्न पूछ कर दोहरायी जाती है। प्रश्न 8. रसायन शिक्षक के सामान्य व विशेष गुणों के बारे में उल्लेख कीजिये? रसायन विज्ञान शिक्षक के क्या कर्तव्य होते हैं, स्पष्ट कीजिये। Explain Normal and Specific qualities of chemistry teacher ?k~ What are duties of a Chemistry teacher. उत्तर-प्रत्येक विषय में अध्यापक का बहुत महत्व है रसायन विज्ञान में तो यह स्थान और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि उसे छात्रों को विषय का ज्ञान देने के अलावा निम्न कार्य भी करने होते हैं- 1. रसायन विज्ञान शिक्षण द्वारा सोचने समझने, निरीक्षण, विश्लेषण, तर्क-नियतांक आदि का विकास करना। 2. छात्रों में आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता, निष्पक्षता आदि का विकास करना। 3. छात्रों में निर्णय लेने की क्षमता, अनुसंधान की प्रवृत्ति विकसित करना । 4. छात्रों में स्वयं कार्य करने, वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करना। उपरोक्त गुणों के विकास हेतु रसायन अध्यापक में निम्न सामान्य गुणों का आवश्यक है- रसायन विज्ञान अध्यापक के सामान्य गुण (1) प्रभावशील व्यक्तित्व-शिक्षक को मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ होने चाहिये। उनके विचार, बातचीत का ढंग, रहन-सहन, व्यवहार इत्यादि छात्रों के लिए आदर्श होने चाहिये, जिससे उसका प्रभाव छात्रों पर अच्छा पढ़ सके। (2) आत्मविश्वासी-अध्यापक को अपनी शक्तियों व योग्यताओं पर पूरा-पूरा विश्वास होना चाहिये। जिसका विचार विचलित होता है वह चाहे कितना ही विद्वान क्यों ना हो. छात्रों को ठीक प्रकार से ज्ञान नहीं दे सकता। अतः अध्यापक को आत्मविश्वासी होना चाहिये। (3) नेतृत्व की क्षमता-छात्रों को सही ढंग से कार्य करने की आदत डालने व उचित ढंग से व्यवहार प्रदर्शन करने आदि में शिक्षक बहुत अच्छी भूमिका अदा करता है। अध्यापक ही छात्रों का नायक होता है। (4) कार्य के प्रति लगाव-अध्यापक को अपने विषय व अध्यापन में पूर्ण रुचि होनी चाहिये। छात्रों के साथ मित्र, हितैषी, पथ-प्रदर्शक का उत्तरदायित्व ठीक प्रकार से निभाना चाहिये। (5) सहनशीलता-अध्यापक के अन्दर इस गुण का होना अति आवश्यक है। छात्रों को ठीक प्रकार से उत्तर न देने पर अथवा एक या दो बार समझाने के बाद अध्यापक अपना संयम खो देते हैं और छात्र को डरा, धमका कर बैठा देते हैं जिससे वह छात्र उस अध्यापक के साथ उसके विषय से भी घृणा करने लगता है। उपर्युक्त गुणों के अतिरिक्त भी उनमें बहुत से गुण जैसे विनोदप्रियता का होना लाने से प्रेम करना, आशावादी दृष्टिकोण उत्पन्न करना आदि होने चाहिये। यदि इन सभी से वह परिपूर्ण है तो निःसन्देह वह एक कुशल अध्यापक होगा तथा छात्रों के बीच लोक होगा। (6) विनोदप्रिय-रसायन विज्ञान कोई नीरस विषय नहीं है। अध्यापक को स्वभाव का होना चाहिये। प्रायः देखा जाता है कि छात्र अध्यापक से डरे-डरे रहते हैं और कोई कठिनाई पूछने में संकोच करते हैं। छात्रों को यह लगना चाहिये कि अध्यापक उनकी समस्या या कठिनाई का निवारण बिना डांटे कर देंगे तभी रसायन शिक्षक का सही औचि होगा। रसायन विज्ञान अध्यापक के विशेष गुण 1. मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण-अध्यापक मनोविज्ञान का अच्छा ज्ञाता होना चाहिये, जिससे वह छात्रों की रुचियों, भावनाओं व विचारों का अध्ययन कर सके। गणित को बाल केन्द्रित शिक्षा बनाने के लिए यह अति आवश्यक है। 2. अपने विषय का पंडित-रसायन विज्ञान अध्यापक को अपने विषय की गहराई, बारीकी, कठिनाई इत्यादि की पूरी जानकारी होनी चाहिये क्योंकि पढ़ाते समय विभिन्न भागों में विभिन्न नियमों, सिद्धान्तों का प्रयोग करने की आवश्यकता पड़ती है। अतः उसे पूर्ण सफलता के न इन सभी बातों का पूर्ण ज्ञान लिये होना चाहिये। 3. प्रयोग करने की योग्यता-रसायन विज्ञान अध्यापक में प्रयोग करने की योग्यता अवश्य होना चाहिये, क्योंकि रसायन शिक्षण में प्रयोग का महत्वपूर्ण स्थान है । प्रयोगशाला में जहां तक सम्भव हो, उसे प्रयोग अत्यन्त सावधानी से करने चाहिये। 4. अध्यापन कार्य में रुचि-प्रायः देखा गया है कि जब नवयुवकों को कहीं नौकरी नहीं प्राप्त होती है तब वे अध्यापन व्यवसाय को अपनाते हैं। इस प्रकार के अध्यापक रसायन विज्ञान का अध्यापन अत्यन्त अरुचि से करते हैं। वे केवल पाठ्यपुस्तक से पढ़ाना ही अपना कर्तव्य समझते हैं। अतः यह आवश्यक है कि रसायन का अध्यापक अध्यापन-कार्य में भी रुचि ले। वह जब कक्षा में प्रवेश करे तो अपने अन्दर हीनता और उदासीनता की भावना न आने दे । यदि वह अध्यापन में रुचि प्रदर्शित करेगा तो कक्षा में शिक्षण का स्तर तो उठेगा ही साथ ही छात्र भी रुचि लेने लगेंगे। 5. शिक्षण कला का ज्ञाता-रसायन का पंडित होने पर भी यदि वह शिक्षण को कला से अनभिज्ञ है तो वह छात्रों को उस विषय का ज्ञान तो प्रदान कर सकता है परन्तु न तो बालकों में वांछित गुणों का विकास हो सकेगा और ना ही वे प्रशिक्षित हो सकेगें। अतः उसे शिक्षण-कला का ज्ञाता भी होना आवश्यक है। 6. निष्पक्ष दृष्टिकोण-अध्यापक का सभी बालकों के प्रति पक्षपात और द्वेष रहित समान व्यवहार होना चाहिये। उसे किसी के बारे में पूर्व धारणा नहीं बना लेनी चाहिये । बालकों की परीक्षा लेते समय उसे पूर्ण न्यायाधीश होना चाहिये। 7. प्रयोगशाला संचालन की योग्यता-रसायन अध्यापक में प्रयोगशाला के संचालन की विशेष योग्यता होनी चाहिये। वह विभिन्न यंत्रों का प्रयोग करना भली-भांति जानता हो तथा आवश्यकता पड़ने पर उन्हें ठीक भी कर लेता हो। इसी प्रकार उसे प्रयोगशाला विधि का भी ज्ञान होना चाहिये। 8. स्पष्टवादिता-यह सबसे महत्वपूर्ण गुण होता है। अपनी अज्ञानता, अपूर्ण तैयारी या कमजोरी को छिपाना नहीं चाहिये। अक्सर यह देखा जाता है कि शिक्षक पढ़ाते समय कुछ भूल जाता है । अतः छात्रों से यह बात नहीं छुपानी चाहिये और उन्हें स्पष्ट कह देना चाहिये कि यह बिन्दु हम आपको कल बतायेंगे इससे छात्र में विश्वास बढ़ता है। 9. परिश्रमी व उत्साही-एक योग्य रसायन अध्यापक अपना कार्य अत्यन्त उत्साह के साथ करता है। इसके विपरीत निरुत्साही अध्यापक का प्रत्येक कार्य अपूर्ण तथा आगे के लिये पड़ा रहता है। वास्तव में वही शिक्षक सफल हो सकता है जो अपने अन्दर उत्साह का अनुभव करता है। इसके लिए एक विद्वान का मत है कि “रसायन विज्ञान का पूर्ण पण्डित और अध्ययन-विषयों का पूर्ण ज्ञान होने पर भी कोई अध्यापक रसायन-शिक्षण में तब कर सफलता प्राप्त नहीं कर सकता जब तक उसमें अपने विषय के लिये पूरा-पूरा उत्साह न हो। रसायन-शिक्षण के लिये अपूर्व उत्साह, लगन और वैज्ञानिक अभिवृत्ति की जरूरत होती है। रसायन शिक्षक यदि अपने छात्रों में रसायन में रुचि, अन्वेषण कार्य में जोश और निष्पक्ष भाव के निष्कर्षों पर पहुंचने की क्षमता का विकास करना चाहता है तो उसमें भी इसी प्रकार की रुचि, जोश और क्षमता का होना जरूरी है। 10. अन्य विषयों का ज्ञान-रसायन अध्यापक को अपने विषय का ज्ञान तो होना ही चाहिये साथ ही उसे दूसरे विषयों का भी ज्ञान होना चाहिये। यदि विभिन्न विषयों का उसे सामान्य ज्ञान होगा तो वह रसायन विज्ञान का अन्य विषयों के साथ समन्वय करके अपने शिक्षण को प्रभावशाली बना लेगा। गणित के ज्ञान बिना वह रसायन की विभिन्न समस्याओं को हल नहीं कर सकेगा। एक विद्वान के मतानुसार, “अपने विषय का ज्ञान होने के अतिरिक्त उसको दूसरे विषयों का ज्ञान होना भी आवश्यक है। दूसरे विषयों की सहायता से अपने विषय को सरल बनाया जा सकता है। उदाहरण के लिये यदि रसायन में आयतन पढ़ाना पड़ता है तब उसके प्रश्न गणित की सहायता से हल हो सकते हैं। इसलिए यदि उसको गणित का ज्ञान नहीं होगा तो वह अधिक कुछ नहीं पढ़ा सकेगा।

पाठ योजना का महत्व importance of lesson plan in hindi

पाठ योजना का लाभ (path yojna ka mahatva) .

१. पाठ योजना अध्यापक के कक्षा कार्य को निश्चित करके उसे शिक्षण पथ से विचलित नहीं होने देती है।

२. पाठ योजना शिक्षक को संगठित एवं सुव्यवस्थित रुप से सोचने के लिए उत्तेजित करती है।

३. पाठ योजना के द्वारा शिक्षक पाठ के उद्देश्य को भलीभांति समझ लेते हैं।

इसे भी पढ़िए: पाठ योजना का अर्थ, परिभाषा, प्रारूप, शर्तें, विशेषता

४. यह शिक्षक को उसके कार्य मेन निस्तर प्रगति पर बल देते हैं।

५. यह अध्यापक को छात्रों के ज्ञान आदत और योग्यता की जानकारी प्रदान करते हैं।

६. यह नये पाठ का ज्ञान के साथ संबंध स्थापित करता है।

७. यह शिक्षक को सर्वोत्तम विधि सुनाने बनाने में सहायता प्रदान करता है।

८. पाठ योजना प्रत्येक शिक्षक के लिए सही मार्ग का प्रदर्शक करता है।

९. यह अध्यापक को उपयुक्त प्रश्न पूछने तथा श्रव्य दृश्य सामग्री का प्रयोग करने की प्रेरणा देती है।

१०. पाठ योजना अध्यापकों में आत्मविश्वास कायम रखती है।

११. यस शिक्षक को व्यक्तिगत विविधता को ध्यान में रखकर पढ़ाने के लिए प्रेरित करती हैं।

१२. यह अध्यापक को अपने शिक्षण में सहायता एवं असफलता का ज्ञान कराता है।

१३. पाठ योजना शिक्षक को अस्त व्यस्त और निरर्थक पुनरावृति से बचाता है।

१४. पाठ योजना शिक्षक को अमूर्त वस्तुओं के शिक्षण में सहायता देती है।

१५. यह निर्देशात्मक सामग्री पर जोर देती हैं।

१६. पाठ योजना अध्यापक के चिंतन में निश्चिंतता नियमितता आती है।

१७. यार एक ही विषय के विभिन्न पाठों में संबंध स्थापित करके शैक्षिक प्रक्रिया को निरंतरता प्रदान करती है।

१८. अगले पाठों में सुधार लाने का प्रयास करती है।

पाठ योजना की सीमाएं या पाठ योजना की दोष

१. योजना शिक्षक को चारों ओर घेर लेती हैं।

२. यह कभी-कभी शिक्षक की स्वतंत्रता में बाधक बनती हैं।

३. पाठ योजना से शिक्षण प्रक्रिया जटिल हो जाती हैं।

४. पाठ योजना में ज्ञान का शोषण होता है।

५. इसके निर्माण में अधिक समय लगता है।

पाठ योजना बनाने के पूर्व सावधानियां

१. शिक्षक जिस पाठ को पढ़ाने जा रहा हो उस पाठ से संबंधित पाठ विषय तथा व्यवहारिक विषयों पर उसका पूर्ण अधिपत्य होना चाहिए।

२. शिक्षक को मनोविज्ञान का ज्ञान होना चाहिए। उसे बालकों के मनोविज्ञान के अनुसार अपना पाठ योजना तैयार करना चाहिए।

३. छात्रा अध्यापकों को शिक्षा के दर्शनिक तथा सामाजिक आधारों का ज्ञान अवश्य होना चाहिए।

४. शिक्षकों को व्यक्तिगत विभिन्नता का भी ध्यान होना चाहिए।

५. शिक्षक को शिक्षण विधियों का ज्ञान होना चाहिए।

६. शिक्षक सहायक सामग्री का सही चुनाव करना चाहिए।

७. पाठ योजना के उद्देश्यों को स्पष्ट रूप से लिखना चाहिए।

८. अध्यापन की सभी क्रियाएं वचन लेखन शिक्षक कथन छात्र क्रिया श्यामपट्ट कार्य मूल्यांकन पुनरावृति एवं गृह कार्य पाठ के उद्देश्यों पर आधारित होनी चाहिए।

९. पाठ योजना में पूछे जाने वाले प्रश्न पाठ से संबंधित हो।

१०. पाठ योजना में क्रमबद्धता होनी चाहिए।

११. प्रस्तावना अधिक लंबा नहीं होना चाहिए।

१२. प्रस्तुतीकरण के अंतर्गत जो कुछ भी किया जाए वह पाठ के उद्देश्यों पर आधारित होना चाहिए।

१३.योजना अधिक लंबा या अधिक छोटी नहीं होनी चाहिए।

१४. पाठ योजना से पूर्व विद्यालय के क्लांस अर्थात समय पता लगा लेना चाहिए।

१५. पाठ योजना बनाने से पूर्व जहां पर पाठ करना है स्कूल की समय तालिका जानकारी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

१६. पाठ योजना बनाने से पूर्व प्रवेक्षक द्वारा दिए गए पाठ का अनुकरण करना चाहिए।

१७. पाठ योजना बनाने से पूर्व प्रवेक्षक के दिशा निर्देश पर ही पाठ योजना बनाना चाहिए अन्यथा बाद में अंतिम पाठ योजना में आपको कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।

पाठ योजना की आवश्यकता (need of lesson plan in hindi)

  • अच्छी पाठ योजना की सहायता से एक अध्यापक अपने कार्यों को सो संगठित और क्रमबद्ध रूप से संपादित करता है।
  • पाठ योजना की सहायता से एक अध्यापक को यह ज्ञान हो जाता है कि उसने अपने शिक्षण उद्देश्यों को कहां तक प्राप्त किया है।
  • पाठ योजना एक अध्यापक को अपने उद्देश्य से भटकने से तथा समय की बर्बाद से भी उन्हें बचाता है।
  • पाठ योजना बनाने का सबसे बड़ा फायदा पाठ्य विषय को संगठित या व्यवस्थित कर विद्यार्थियों को उनकी शैक्षिक उद्देश्यों को प्राप्त करने में मदद मिलती है।
  • पाठ योजना बना लेने से क्लास में अध्यापन का एक अलग ही मजा या आनंद होता है।
  • शिक्षण की सफलता का मूल्यांकन करने के लिए भी पाठ योजना की आवश्यकता होती है।
  • पाठ्यवस्तु को सीमित कर विद्यार्थियों के सामने प्रस्तुत करने के लिए हमें पाठ योजना बनाना आवश्यक हो जाता है।
  • पाठ योजना बना लेने से कक्षा में प्रवेश करने के बाद अध्यापक की आत्मविश्वास बढ़ जाता है इसलिए एक शिक्षक को या अध्यापक को कक्षा में जाने से पहले अच्छी तरह पाठ योजना तैयार कर लेनी चाहिए।

पाठ योजना के प्रकार (types of lesson plan in hindi)

पाठ योजना के प्रकारों को समझे बिना तैयारी नहीं की जा सकती पाठ्यवस्तु और समय अवधि के आधार पर पाठ योजना के चार प्रकार है:-

१. वार्षिक पाठ योजना (Annual lesson plan)

२. अर्धवार्षिक पाठ योजना (half yearly lesson plan)

३. इकाई पाठ योजना (unit lesson plan)

४. दैनिक पाठ योजना (Daily lesson plan)

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[Free] Hindi Lesson Plan For B.Ed And DELED | हिंदी पाठ योजना

Hindi Lesson Plans For B.Ed And Deled 1st 2nd Year, School Teachers Class 4th To 12th Download PDF Free | हिंदी पाठ योजना | Hindi Path Yojna | हिंदी लेसन प्लान | Hindi Lesson Plans Class 1st 2nd 3rd 4th 5th 6th 7th 8th 9th 10th 11th 12th

Free Download PDF Of Best And Latest Hindi Lesson Plan (हिंदी पाठ योजना) Collection 2022-2023 For B.Ed , D.El.Ed, BTC / BSTC, BELED, NIOS, M.Ed First And Second Year/Sem, NCERT CBSE School And College Teachers And Trainees Of All Teaching Courses. | Hindi Vyakran, Hindi Grammar, Hindi Kavya, Hindi Kavita, Hindi Poem, Hindi Story, Hindi Kahani, Hindi Gadhya, Hindi Padya, Hindi Sahitya Lesson Plan In Hindi

Hello Friends, हमारी वेबसाइट Pupils Tutor में आपका स्वागत है। कैसे है आप? आशा है कि आप अच्छा कर रहे हैं,

जैसा की आप सब जानते है, एक अध्यापक के लिए पाठ योजना (Lesson Plan) का निर्माण उतना ही आवश्यक है जितनी की एक इंजीनियर को भवन निर्माण के लिए मानचित्र या ब्लूप्रिंट की आवश्यक होती है|

शिक्षक एक पाठ या अध्याय पढ़ाने के लिए उसे छोटी-छोटी इकाइयों में बांट लेता है| जिसे हम प्रकरण (टॉपिक) कहते हैं| एक इकाई की विषय-वस्तु को एक Period में पढ़ाया जाता है| इस विषय वस्तु को पढ़ाने के लिए शिक्षक द्वारा एक विस्तृत रूपरेखा तैयार की जाती है| जिसे हम पाठ योजना (लेसन प्लानिंग) कहते हैं|

तो दोस्तों, अगर आप भी Teaching Of Hindi Lesson Plan (हिंदी शिक्षण का लेसन प्लान) ढूंढ रहे है, तो आप सही जगह पर आये है| यहाँ हमने बी.एड, डीएलएड, BTC, M.Ed और सभी कक्षाओं के शिक्षकों के लिए हिन्दी के बहुत सारे लेसन प्लान शेयर किये है| निचे दिए गए Links से आप सभी Hindi Ki Path Yojna ब्राउज करे सकते है|

  • हिंदी की सभी पाठ योजनाओं की सूची (List Of All Hindi Lesson Plans)
  • बी.एड में हिंदी शिक्षण पाठ योजना क्या होती है? (What Is Hindi Lesson Plan In B.Ed?)
  • हिंदी पाठ योजना के घटक (Components Of A Well-Structured Lesson Plan Of Hindi)
  • हिन्दी  शिक्षण के लिए पाठ योजना का महत्व (Importance Of Lesson Planning For Hindi Teaching )
  • अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

List Of All Hindi Lesson Plans

हिंदी पाठ योजना क्या होती है.

हिंदी शिक्षण पाठ योजना एक विस्तृत अवलोकन (Outline) या मार्गदर्शिका (Guide) है जो शिक्षकों या B.Ed, DELED डिग्री कर रहे छात्र-शिक्षकों द्वारा तैयार की जाती है। यह कक्षा में प्रभावी पाठों को व्यवस्थित करने और वितरित (Deliver) करने के लिए एक Roadmap के रूप में कार्य करती है।

हिंदी के एक सुव्यवस्थित लेसन प्लान में निम्नलिखित तत्व शामिल होते हैं:

  • Learning Objectives (सीखने के उद्देश्य),
  • Instructional Strategies (पढ़ाने के तरीके),
  • Assessment Methods (मूल्यांकन के तरीके), और Resources (संसाधन)

यह शिक्षकों को यह सुनिश्चित करने में मदद करते है कि उनके पाठ, शैक्षिक मानकों (Educational Standards) के अनुरूप हैं, छात्रों के जुड़ाव को बढ़ावा देते हैं, और सार्थक सीखने के अनुभवों की सुविधा प्रदान करते हैं।

हिन्दी पाठ योजनाएं (Hindi Lesson Plans) प्रभावी शिक्षण के लिए आवश्यक उपकरण (Tool) हैं और Teachers के लिए पाठ्यक्रम सामग्री को प्रभावी ढंग से प्रदान करने और वांछित (Desired) शिक्षण परिणाम प्राप्त करने के लिए एक संदर्भ के रूप में काम करती हैं।

एक अच्छी ढंग से संरचित हिंदी की पाठ योजना के महत्वपूर्ण घटक

हिंदी की अच्छी ढंग से संरचित पाठ योजना में कई महत्वपूर्ण घटक (Elements) शामिल होते हैं, जो प्रभावी शिक्षण को सुनिश्चित करते हैं। यहाँ एक अच्छी ढंग से संरचित हिंदी स्कूल शिक्षण योजना के आवश्यक तत्व हैं:

शिक्षक अपनी पाठ योजनाओं में इन घटकों को शामिल करके हिंदी पाठों की गुणवत्ता बढ़ा सकते हैं। इसके परिणामस्वरूप छात्रों को सीखने का आकर्षक और प्रभावी अनुभव प्राप्त होगा।

हिंदी शिक्षण के लिए पाठ योजना का महत्व

पाठ योजना शिक्षण का एक अनिवार्य घटक है, क्योंकि यह शिक्षकों को अपने पाठों को प्रभावी ढंग से वितरित करने में मदद करता है। बीएड के सन्दर्भ में हिंदी पाठ योजना का विशेष महत्व है।

यहां कुछ प्मुख कारण दिए गए हैं कि यह क्यों महत्वपूर्ण है :

1. संगठन और संरचना (Organization And Structure):

पाठ योजनाएं शिक्षकों को उनके विचारों, सामग्री और गतिविधियों को एक क्रमिक तरीके से व्यवस्थित करने में मदद करती हैं, जिससे छात्रों को संरचित और सुगठित सीखने का अनुभव मिलता है।

2. स्पष्टता और ध्यान (Clarity And Focus):

हिंदी के पाठों को पहले से योजना बनाकर, शिक्षक स्पष्ट रूप से अवधारित शिक्षा उद्देश्यों को परिभाषित कर सकते हैं, जिससे पाठ में ध्यान केंद्रित रहता है और पाठ कार्यक्रम के लक्ष्यों के साथ मेल खाता है।

3. समय प्रबंधन (Time Management):

पाठ योजनाएं शिक्षकों को प्रत्येक गतिविधि के लिए उचित समय आवंटित करने में सक्षम बनाती है, जिससे उपलब्ध कक्षा के समय में सभी आवश्यक सामग्री Cover की जा सकती है।

4. विभेदन (Differentiation):

प्रभावी पाठ योजना शिक्षकों को अपने छात्रों की विविधताओं और क्षमताओं को ध्यान में रखने की अनुमति देती है, जिससे व्यक्तिगत सीखने की शैलियों को पूरा करने के लिए विभेदित शिक्षण को सुविधाजनक बनाया जा सकता है।

5. मूल्यांकन (Assessment And Evaluation):

हिंदी पाठ योजनाएं समारूपी और संकल्पात्मक मूल्यांकन के अवसर प्रदान करती हैं, जिससे शिक्षक छात्रों की प्रगति का निरीक्षण कर सकते हैं और अपनी शिक्षण पद्धतियों को अनुकूलित कर सकते हैं।

Frequently Asked Questions (FAQs):

प्रश्न 1: हिंदी पाठ योजना का उद्देश्य क्या है.

उत्तर 1: हिंदी पाठ योजना का उद्देश्य शिक्षकों को पाठों को संगठित करने और प्रभावी ढंग से प्रदान करने के लिए एक संरचित ढांचा प्रदान करना है। यह शिक्षकों को उनके उद्देश्यों, मूल्यांकन विधियों और संसाधनों को शेयर करने में मदद करती है, ताकि एक समग्र और संरचित शिक्षण और सीखने का अनुभव हो सके।

प्रश्न 2: हिन्दी पाठ योजना लिखना कैसे शुरू करें?

उत्तर 2: हिन्दी की पाठ योजना लिखने के लिए, पहले पाठ का शीर्षक (Title) या उद्देश्य को स्पष्ट रूप से परिभाषित करें। स्वयंस्थापन (Self-Actualization) के स्तर, पूर्व ज्ञान और पाठ्यक्रम की आवश्यकताओं को ध्यान रखते हुए निश्चित शिक्षा-लक्ष्यों की पहचान करें। फिर, उन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए शिक्षानियों, गतिविधियों और मूल्यांकन की योजना बनाएं।

प्रश्न 3: B.Ed के लिए हिंदी पाठ योजना में क्या शामिल होना चाहिए?

उत्तर 3: B.Ed के हिंदी पाठ योजना में निम्नलिखित घटक शामिल होने चाहिए:

  • पाठ का शीर्षक और प्रसंग (Lesson Title And Context)
  • सीखने के उद्देश्य (Learning Objectives)
  • पूर्व ज्ञान का मूल्यांकन (Prior Knowledge Assessment)
  • शिक्षण सामग्री और संसाधन (Instructional Materials And Resources)
  • परिचय या आकर्षण की गतिविधि (Introduction Or Engagement Activity)
  • पाठ विकास या शिक्षण रणनीतियाँ (Lesson Development Or Teaching Strategies)
  • विभेदन (Differentiation Strategies)
  • मूल्यांकन और मूल्यांकन विधियाँ (Assessment And Evaluation Methods)
  • समापन या संक्षेप गतिविधि (Closure Or Summary Activity)
  • होमवर्क या विस्तार गतिविधियाँ (Homework Or Extension Activities)
  • समय प्रबंधन के विचार (Time Management Considerations)

प्रश्न 4: कैसे हम अपनी हिंदी बी.एड पाठ योजना फ़ाइल को अधिक प्रभावी बना सकते है?

उत्तर 4: अपनी B.Ed अंतिम वर्ष की हिंदी शिक्षण पाठ योजना फ़ाइल और नोट्स को अधिक प्रभावी बनाने के लिए निम्नलिखित सुझावों का ध्यान दें:

  • अपने शिक्षा-लक्ष्यों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करें और इन्हें पाठ्यक्रम मानकों के साथ मेल करें।
  • छात्रों को सक्रिय शिक्षा रणनीतियों का उपयोग करके आकर्षित करें और उनकी भागीदारी को बढ़ावा दें।
  • विभिन्न शिक्षानियों की जरूरतों को पूरा करने के लिए विभिन्न संसाधनों का उपयोग करें।
  • छात्रों की विभिन्न सीखने की आवश्यकताओं और क्षमताओं को सम्मिलित करने के लिए विभेदन का समावेश करें।
  • पाठ के दौरान छात्रों के समझ का मूल्यांकन करने के लिए निर्धारित समय-समय पर मूल्यांकन का उपयोग करें।
  • महत्वपूर्ण बिंदुओं का संक्षेपण करें और छात्रों को यहां क्या सीखा है उसके बारे में सोचने के अवसर प्रदान करें।
  • अपनी हिंदी इकाई योजना को सुधारने के लिए सहयोगी और सलाहकारों से प्रतिक्रिया लें।

प्रश्न 5: क्या B.Ed के शिक्षण प्रक्रिया में हिन्दी पाठ योजना को संशोधित किया जा सकता है?

उत्तर 5: हां, पाठ योजनाएं तय नहीं होती हैं और छात्रों की आवश्यकताओं और प्रगति के आधार पर समायोजित या संशोधित की जा सकती हैं। छात्रों की आवश्यकताओं और प्रगति के आधार पर पाठ योजना में आवश्यक बदलाव करना महत्वपूर्ण होता है।

प्रश्न 6: कैसे मैं हिंदी पाठ योजना PDF डाउनलोड कर सकता हूँ?

उत्तर 6: बस हमारी वेबसाइट www.pupilstutor.com पर जाएं और उस अनुभाग पर Navigate करें जहां हिंदी बीएड पाठ योजना पीडीएफ (Hindi Lesson Plan PDF) उपलब्ध है। वहां से, आप वांछित पाठ योजना का चयन कर सकते हैं और अंग्रेजी और हिंदी दोनों भाषाओं में पहले और दूसरे वर्ष के शिक्षण के लिए पीडीएफ फाइल डाउनलोड कर सकते हैं।

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Further Reference

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यह सभी Hindi Ke Lesson Plan विशेष रूप से बीएड प्रथम और द्वितीय वर्ष (B.Ed 1st And 2nd Year) के छात्रों के लिए बनाये गए है, लेकिन सभी कक्षाओं के प्रशिक्षु शिक्षक (Trainee Teachers) और स्कूल शिक्षक (School Teachers) इन Sample Lesson Plans की सहायता से अपनी दैनिक शिक्षण योजना (Daily Teaching Plan) बहुत आसानी से तैयार कर सकते हैं।

हिंदी की इन सभी पाठ योजनाओ में आपको सभी Skills जैसे की माइक्रो-टीचिंग (Micro Teaching), मेगा टीचिंग (Mega Teaching), डिस्कशन स्किल (Discussion), रियल स्कूल टीचिंग एंड प्रैक्टिस (Real School Teaching), Simulated और ऑब्जरवेशन स्किल के Teaching Plan मिल जायेंगे| जिसकी सहायता से आप अपनी Hindi Lesson Plan की फाइल को बहुत थोड़ा समय में बड़ी ही आसानी से तैयार कर सकते है|

अगर आपको हमारे यह Lesson Plan In Hindi पसंद आये हो तो कृपया हमारे प्रयासों को अपने दोस्तों के साथ भी Share करें।

अन्य Students और Teachers की सहायता के लिए आप अपनी पाठ योजनाएं, असाइनमेंट, फाइलें, पेपर और नोट्स भी हमारे साथ Share कर सकते हैं। शेयर/अपलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

What Is Hindi B.Ed Lesson Plan?

A Hindi Lesson Plan For B.Ed Is A Detailed Outline Or Guide Created By Teachers Or Student Teachers Pursuing A Bachelor Of Education (B.Ed) Degree. It Serves As A Roadmap For Organizing And Delivering Effective Lessons In The Classroom.

A Well-Structured Lesson Plan Of Hindi Language Includes Learning Objectives,Instructional Strategies,Assessment Methods, And Resources To Support Student Learning.It Helps Teachers Ensure That Their Lessons Are Aligned With Educational Standards, Promote Student Engagement, And Facilitate Meaningful Learning Experiences.Hindi Shikshan Lesson Plans PDF Download Are Essential Tools For Effective Teaching And Serve As A Reference For Teachers To Effectively Deliver Curriculum Content And Achieve Desired Learning Outcomes.

Components of lesson plan of hindi:.

A Well-Structured Hindi Language Lesson Plan For B.Ed Consists Of Several Key Components That Ensure Effective Teaching And Learning. Here Are The Essential Elements Of A Well-Structured Hindi Subject School Teaching Plan:

  • Lesson Title : Clearly State The Title Or Topic Of The Lesson.
  • Lesson Context: Provide A Brief Overview Of The Lesson's Purpose And Its Connection To The Curriculum Or Learning Objectives.
  • Clearly Define The Specific Learning Objectives That Students Are Expected To Achieve By The End Of The Lesson.
  • Objectives Should Be Specific, Measurable, Achievable, Relevant, And Time-Bound (SMART).
  • Assess And Acknowledge Students' Prior Knowledge Or Prerequisite Skills Related To The Lesson Topic.
  • This Helps To Build Connections And Facilitate Meaningful Learning Experiences.
  • Worksheets,
  • Multimedia Tools, Or Manipulatives.
  • Engage Students And Capture Their Interest By Introducing The Lesson In An Exciting And Relatable Way.
  • This Can Include Asking Thought-Provoking Questions, Sharing A Real-Life Scenario, Or Using Multimedia Presentations.
  • Outline The Teaching Strategies And Instructional Methods That Will Be Employed To Deliver The Hindi Lesson Content.
  • This May Involve A Combination Of Lectures, Discussions, Group Work, Hands-On Activities, Demonstrations, Or Multimedia Presentations.
  • Incorporate Strategies To Address The Diverse Learning Needs Of Students, Including Those With Special Educational Needs Or English Language Learners.
  • Provide Options For Different Learning Styles, Abilities, And Interests.
  • Describe The Methods Or Tools That Will Be Used To Assess Student Learning And Understanding During And At The End Of The Lesson.
  • This Can Include Formative Assessments (e.g., Questioning, Observations, Quizzes) And Summative Assessments (e.g., Tests, Projects, Presentations).
  • Summarize The Main Points Of The Lesson And Provide Opportunities For Students To Reflect On What They Have Learned.
  • This Can Be Done Through A Class Discussion, A Short Quiz, Or A Reflective Writing Activity.
  • Assign Relevant Homework Or Extension Activities That Reinforce And Extend The Concepts Covered In The Lesson.
  • This Helps To Promote Independent Learning And Further Engagement With The Topic.
  • Time Management: Allocate Specific Time Frames For Each Component Of The Lesson To Ensure That It Can Be Completed Within The Designated Class Period.

By Incorporating These Components Into A Lesson Plan For Hindi, Educators Can Create Engaging And Effective Learning Experiences For Their Students.

Importance Of  Hindi Lesson Plan

Lesson Plan Is A Vital Aspect Of Teaching As It Provides A Roadmap For Teachers To Deliver Their Lessons Effectively. Here Are Some Key Reasons Why Hindi Lesson Planning (Hindi Shikshan Path Yojna) In B.Ed Is Important:

1. Organization And Structure: Lesson Plans Help Teachers Organize Their Thoughts, Materials, And Activities In A Sequential Manner, Ensuring A Structured And Coherent Learning Experience For Students.

2. Clarity And Focus: By Planning Lessons Of Hindi In Advance, Teachers Can Define The Learning Objectives Clearly, Ensuring That The Lesson Remains Focused And Aligned With The Curriculum Goals.

3. Time Management: Lesson Plans Enable Teachers To Allocate Appropriate Time For Each Activity, Ensuring That All The Necessary Content Is Covered Within The Available Class Time.

4. Differentiation: Effective Lesson Planning Allows Teachers To Consider The Diverse Needs And Abilities Of Their Students, Thereby Facilitating Differentiated Instruction To Meet Individual Learning Styles.

5. Assessment And Evaluation:Hindi Lesson Plans Provide Opportunities For Formative And Summative Assessments, Allowing Teachers To Monitor Student Progress And Adjust Their Teaching Strategies Accordingly.

List Of The Topics Covered:

Q1: what is the purpose of a hindi lesson plan.

A1: The Purpose Of A Hindi Lesson Plan Is To Provide A Structured Framework For Teachers To Organize And Deliver Effective Lessons. It Helps Teachers Outline Their Objectives, Instructional Strategies, Assessment Methods, And Resources To Ensure A Comprehensive And Well-Organized Teaching And Learning Experience.

Q2: How Do I Start Writing A Hindi Lesson Plan?

A2: To Start Writing A Lesson Plan Of Hindi Bhasha, Begin By Clearly Defining The Lesson Topic Or Objective. Identify The Specific Learning Outcomes You Want To Achieve, Considering The Students' Grade Level, Prior Knowledge, And Curriculum Requirements. Then, Plan The Instructional Strategies, Activities, And Assessments That Will Help Students Meet Those Outcomes.

Q3: What Should Be Included In A Hindi Lesson Plan For B.Ed?

A3: A Hindi Language Lesson Plan Of B.Ed Should Include The Following Components:

  • Lesson Title And Context
  • Learning Objectives
  • Prior Knowledge Assessment
  • Instructional Materials And Resources
  • Introduction Or Engagement Activity
  • Lesson Development Or Teaching Strategies
  • Differentiation Strategies
  • Assessment And Evaluation Methods
  • Closure Or Summary Activity
  • Homework Or Extension Activities
  • Time Management Considerations

Q4: How Can I Make My Hindi B.Ed Lesson Plan File More Effective?

A4: To Make Your BEd Final Year Hindi Lesson Plan File And Notes PDF More Effective, Consider The Following Tips:

  • Clearly Define Your Learning Objectives And Align Them With The Curriculum Standards.
  • Incorporate Active Learning Strategies To Engage Students And Promote Their Participation.
  • Use A Variety Of Instructional Materials And Resources To Cater To Different Learning Styles.
  • Differentiate Instruction To Accommodate Students' Diverse Needs And Abilities.
  • Include Formative Assessments Throughout The Lesson To Gauge Student Understanding.
  • Provide Opportunities For Reflection And Summarization To Reinforce Key Concepts.
  • Seek Feedback From Colleagues Or Mentors To Improve And Refine Your Hindi Unit Plan.

Q5: Can I Modify My Hindi Lesson Plan During The Teaching Process In B.Ed?

A5: Yes, Lesson Plans Are Not Set In Stone And Can Be Adjusted Or Modified Based On The Needs And Progress Of Students. It's Important To Be Flexible And Responsive To Student Learning, Making Any Necessary Adaptations Or Changes To The Lesson Plan As You Teach.

Q6: How Can I Access The Hindi Lesson Plan PDF For Download?

A6: Simply Visit Our Website www.pupilstutor.com And Navigate To The Section Where The Hindi B.Ed Lesson Plan PDF Are Available. From There, You Can Select The Desired Lesson Plan And Download The PDF File For 1st And 2nd Year Teaching In Both English And Hindi Language.

Q7: How Can I Create A B.Ed Lesson Plan Of Hindi?

A7: To Create A B.Ed Lesson Plan For Hindi Teaching, Start By Identifying The Learning Objectives, Selecting Appropriate Teaching Strategies, Designing Engaging Activities, And Incorporating Assessment Methods. Consider The Needs Of Your Students And Align The Lesson Plan With Curriculum Standards.

Q8: Is It Possible To Download Hindi Lesson Plans As Well?

A8: Yes, We Provide Hindi B.Ed Lesson Plan For Download. You Can Access A Wide Range Of Topics And Subjects Language To Suit Your Teaching Requirements.

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FLN refers to a child's ability to read simple sentences with meaning and solve basic math problems by the end of Class 3. These are critical gateway skills that help children learn meaningfully in higher classes and help them acquire 21st Century skills like critical thinking and problem solving which are imperative to succeed in the long run.

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These teacher resources aid in implementing competency based education in the classrooms. These grade-wise resources in Science and Mathematics (TERMs) are aligned to NCERT learning outcomes and textbooks. And provide teachers with exemplar assessments and strategies.

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Sample Lesson Plans have been created to support teachers to implement competency-based education principles into their teaching and assessment. This document is a compilation of ten sample lesson plans from class VI to class X.

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This resource is aimed at supporting teachers to incorporate Learning Outcomes (mapped to the NCERT framework) in their day-to-day teaching and learning activities with children.

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Class 10 Hindi B Language Lesson Plan

Cbse class 10 hindi 'b' chapter-wise lesson plans.

There are many advantages to having a Hindi B Lesson Plan. A Lesson Plan allows the teachers to translate the curriculum into overall activities. It helps in aligning the TLM (Teacher Learning Material). Teachers can also map their activities with learning outcomes as well as learning objectives for assessment purposes. 

In the table given below, we have provided the links to download chapter-wise lesson plan sources from the DIKSHA Platform for Class 10 Hindi B Language. With these, we hope to make the work of school teachers easier.

Class 10 Hindi B - Sanchayan Bhag 2  Lesson Plan

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Class 10 Hindi B -  Sparsh Bhag 2  Lesson Plan

Class 10 Hindi 'B' is essential for students as well as teachers to make the learning experience more engaging and interesting for students. An effective lesson plan will help students in developing an interest in Hindi or any subject.

It is necessary to curate a well-structured lesson plan that has a balance of language skills, literature, and grammar to help students develop a comprehensive understanding and make them prepare for the exam. We hope that the above lesson plans will prove to be beneficial for teachers as well as the student

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Internship Lesson Plan Formats in Hindi

नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका Lesson Plan World पर | दोस्तों यदि आप कोई भी शिक्षक प्रशिक्षण कोर्स जैसे कि बीएड, बीएसटीसी, बीटीसी आदि में कई प्रकार के लेसन प्लान , इंटर्नशिप प्रारूप की आवश्यकता होती है, जिनके माध्यम से हम अपने प्रारूप करते है | लेकिन हमारे पास सही प्रारूप नहीं होने के कारण हम उन्हें बना नहीं पाते है तो आज हम इसी क्रम में B.ed 1st and 2nd Year, BSTC/Deled 1st and Year, BTC 1st, 2nd, 3rd, and 4th Semester आदि के लिए हमने निम्न प्रारूप शेयर किये है |

  • केस स्टडी प्रारूप (Case Study Format)

इकाई योजना प्रारूप (Unit Plan Format)

कक्षा अवलोकन प्रारूप (class observation format).

  • क्रियात्मक अनुसंधान प्रारूप (Action Research Format)
  • पाठ योजना प्रारूप (Lesson Plan Format)

नवाचारी केंद्र का भ्रमण प्रारूप (Navachari Kendra Ka Bhraman Praroop)

  • पर्येवेक्षण आकलन प्रारूप (Supervision Assessment Format)

इसे भी देखे:- Final Lesson Plan Tips in Hindi

केस स्टडी प्रारूप (Case Study Format)_1

केस स्टडी के मुख्य बिदु:-

  • कवर पेज या मुख्य पृष्ट
  • विषयवस्तु (केस की पहचान से सम्बन्धित आंकड़े)
  • केस स्टडी के उद्देश्य

केस स्टडी प्रारूप (Case Study Format)

केस स्टडी प्रारूप (Case Study Format)_2

केस स्टडी प्रारूप (Case Study Format)_2

इकाई योजना के मुख्य बिदु:-

  • इकाई का नाम
  • उपइकाई या विषयवस्तु
  • आवश्यक पाठों की संख्या
  • शीर्षक का नाम
  • अधिगम उद्देश्य और कौशल प्रक्रिया
  • शैक्षिक विधि या पद्धति का नाम
  • शिक्षण अधिगम सहायक सामग्री
  • मूल्याकन या आकलन

इकाई योजना प्रारूप (Unit Plan Format)

इसे भी देखे:- इकाई योजना और पाठ योजना में अंतर

कक्षा अवलोकन के मुख्य घटक:-

  • योजना – यूनिट/पाठ
  • पाठों का प्रस्तुतीकरण
  • कक्षा प्रबंधन
  • अधिगम की सम्प्राप्तियाँ
  • फीडबैक या अनुसरण

कक्षा अवलोकन प्रारूप (Class Observation Format)

क्रियात्मक अनुसंधान प्रारूप (Action Research Format)_1

क्रियात्मक अनुसंधान के मुख्य बिदु:-

  • समस्या की समीक्षा
  • प्रक्रियाएं
  • विचार-विमर्श

क्रियात्मक अनुसंधान प्रारूप (Action Research Format)_1

क्रियात्मक अनुसंधान प्रारूप (Action Research Format)_2

क्रियात्मक अनुसंधान प्रारूप (Action Research Format)_2

पाठ योजना प्रारूप (Lesson Plan Format)_1

पाठ योजना प्रारूप (Lesson Plan Format)_1

पाठ योजना प्रारूप (Lesson Plan Format)_2

पाठ योजना प्रारूप (Lesson Plan Format)_2

पर्येवेक्षण आकलन प्रारूप (Supervision Assessment Format)_1

आकलन के कुछ प्रमुख बिंदु निम्न है-

  • पहले कुछ महत्वपूर्ण जानकारियाँ भरनी होगी

जैसे कि:- कक्षा, दिनांक, विषय, इकाई, पाठ, कालांश, पाठ्यांश, समयावधि आदि |

  • आकलन में मापदण्ड के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं को शामिल किया जाता है

जैसे कि:- प्रस्तावना, प्रस्तुतीकरण, कक्षा प्रबंधन, अधिगम सामग्री का प्रबंधन, श्यामपट्ट कार्य, व्यक्तित्व, पाठ योजना का समापन |

  • इसमें मापदण्ड के पहलुओं के आधार पर फीडबैक एवं सुझाव दिए जाते है |
  • आकलन का स्तर अंको के आधार पर तथा ग्रेड के आधार पर निर्धारित किया जाता है |

अंकों के आधार पर :- 1(निम्न स्तर), 2, 3, 4, 5(उच्च स्तर) ग्रेड के आधार पर:- A, B, C, D, E

पर्येवेक्षण आकलन प्रारूप (Supervision Assessment Format)_1

पर्येवेक्षण आकलन प्रारूप (Supervision Assessment Format)_2

पर्येवेक्षण आकलन प्रारूप (Supervision Assessment Format)_2

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B.Ed Lesson Plan in Hindi | बी.एड हिंदी पाठ योजना

Bed 1st and 2nd year / semester lesson plan in hindi  - बी एड लेसन प्लान [पाठ योजना] हिंदी में कैसे बनाये .

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Social Science B.Ed Lesson Plan in Hindi on Parliament ( Sansad Bhawan)

बी.एड हिंदी पाठ योजना, बी एड लेसन प्लान इन हिंदी, बीएड लेसन प्लान, बी एड लेसन प्लान इन हिंदी

  • कक्षा - 6, 7 , 8,9,10
  • विषय- सामाजिक अध्ययन / सामाजिक विज्ञान
  • प्रकरण (Topic ) - संसद (पार्लियामेंट)

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  • शिक्षार्थियों में सामाजिक कुशलता का विकास कराना।
  • शिक्षार्थियों में राजनीतिक ज्ञान को विकसित कराना।
  • शिक्षार्थियों को सरकार के गठन से संबंधित जानकारी उपलब्ध कराना।
  • पाठ अध्ययन के उपरांत छात्रों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे संसद से संबंधित कुछ जानकारी दे सकेंगे।
  • छात्र संसद को परिभाषित कर सकेंगे।
  • छात्र संसद के संदर्भ में कथन दे सकेंगे।
  • छात्र संसद का वर्गीकरण कर सकेंगे।
  • छात्र संसद की व्याख्या कर सकेंगे।
  • छात्र संसद शब्द का प्रयोग कर सकेंगे।
  • छात्र संसद के बारे में भविष्यकाल कथन दे सकेंगे।
  • सदन कितने होते हैं?
  • संसद का ऊपरी सदन कौन सा होता है?
  • लोकसभा के सदस्य की क्या-क्या योग्यताएं होती हैं?

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