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डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन पर निबंध (Sarvepalli Radhakrishnan Essay in Hindi)

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान व्यक्ति और प्रसिद्ध शिक्षक थे। इनकी विद्वता के कारण ये स्वतंत्र भारत के पहले उपराष्ट्रपति चुने गये थे। वो एक व्यापक दृष्टीकोण वाले नियमों और सिद्धान्तों को मानने वाले व्यक्ति थे जिन्होंने भारत के प्रमुख कार्यकारी की भूमिका का निर्वहन किया। वो देश की एक महान शख़्सियत थे, जिसका जन्मदिवस भारत में शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाता है। वो एक सम्मानित व्यक्ति थे जिन्हें हम शिक्षक दिवस मनाने के द्वारा आज भी याद रखते हैं।

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Sarvepalli Radhakrishnan, Sarvepalli Radhakrishnan par Nibandh Hindi mein)

यहाँ बहुत ही आसान भाषा में डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन पर हिंदी में निबंध पायें:

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन – निबंध 1 (250 शब्द)

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म भारत के तमिलनाडु राज्य के तिरुतनि में 5 सितंबर 1888 को हुआ था। इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा तमिलनाडु के क्रिश्चन मिशनरी संस्थान से पूरी की और अपनी बी.ए. और एम.ए. की डिग्री मद्रास क्रिश्चन कॉलेज से प्राप्त की। इनको मद्रास प्रेसिडेंसी कॉलेज में सहायक लेक्चरार के रुप में और मैसूर यूनिवर्सिटी में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर के रुप में नौकरी मिली। 30 वर्ष की उम्र में, इन्हें सर आशुतोष मुखर्जी (कलकत्ता विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर) के द्वारा मानसिक और नैतिक विज्ञान के किंग जार्ज वी चेयर से सम्मानित किया गया।

डॉ. राधकृष्णन आंध्र यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर बने और बाद में तीन वर्ष के लिये पूर्वी धर्म और नीतिशास्त्र में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर भी रहे। ये 1939 से 1948 तक बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर भी रहे। डॉ. राधाकृष्णन एक अच्छे लेखक भी थे जिन्होंने भारतीय परंपरा, धर्म और दर्शन पर कई लेख और किताबें लिखी है।

वो 1952 से 1962 तक भारत के उप राष्ट्रपति थे और 1962 से 1967 तक भारत के राष्ट्रपति रहे तथा सी.राजगोपालचारी और सी.वी.रमन के साथ भारत रत्न से सम्मानित किये गये। वो एक महान शिक्षाविद् और मानवतावादी थे इसी वजह से शिक्षकों के प्रति प्यार और सम्मान प्रदर्शित करने के लिये पूरे देश भर में विद्यार्थियों के द्वारा हर वर्ष शिक्षक दिवस के रुप में उनके जन्म दिवस को मनाया जाता है।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म दिवस शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाता है – निबंध 2 (300 शब्द)

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक प्रसिद्ध शिक्षक और लेखक थे। वर्ष 1888 में 5 सितंबर को एक गरीब ब्राह्मण परिवार में भारत के तिरुतनि में इनका जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम सर्वपल्ली वीरास्वामी था जो कम मानदेय पर जमींदारी का कार्य करते थे। इनकी माँ का नाम सीतांमा था। खराब आर्थिक स्थिति के कारण इन्होंने अपनी शिक्षा छात्रवृत्ति के आधार पर पूरी की।

इन्होंने सफलतापूर्वक अपनी स्कूली शिक्षा तिरुतनि और लूथेरन मिशनरी स्कूल, तिरुपति से पूरी की। डॉ. राधाकृष्णन ने अपनी बी.ए. और एम.ए. की डिग्री दर्शनशास्त्र में प्राप्त की। 16 वर्ष की आयु में इन्होंने सिवाकामू से विवाह किया। 1909 में मद्रास प्रेसिडेंसी कॉलेज में ये सहायक लेक्चरार बन गये। इन्हें उपनिषद, ब्रह्मसूत्र, भगवत-गीता, शंकर, माधव, रामानुजन की व्याख्या और बुद्धिष्ठ और जैन दर्शन की अच्छी जानकारी थी।

अपने बाद के जीवन में, डॉ. साहब ने प्लेटो, कांट, ब्रैडले, प्लॉटिनस, बर्गसन, मार्कसिज़्म और अस्तित्ववाद की दार्शनिक व्याख्या को पढ़ा। राधाकृष्णन के आशीर्वाद को पाने के लिये अध्ययन के लिये कैंब्रिज़ को छोड़ने के दौरान 1914 में श्रीनिवासन रामानुजन नामक प्रतिभाशाली गणितज्ञ से वो मिले। 1918 में मैसूर यूनिवर्सिटी में डॉ. राधाकृष्णन दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर बने। वो एक प्रसिद्ध लेखक भी थे और द फिलॉसोफी ऑफ रबीन्द्रनाथ टैगोर द क्वेस्ट, द राइन ऑफ रिलीजन इन कॉनटेम्पोरेरी फिलॉसोफी, द इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एथिक्स, जर्नल ऑफ फिलोसोफी आदि नामक ख़्यातिप्राप्त जर्नल के लिये कई सारे आर्टिकल लिखे।

उनके प्रसिद्ध लेखन ने आशुतोष मुखर्जी के दृष्टिकोण पर ध्यान आकृष्ट किया (कलकत्ता विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर) और 1921 में कलकत्ता यूनिवर्सिटी में दर्शनशास्त्र के जार्ज वी प्रोफेसर के लिये नामित किये गये। उन्होंने दर्शनशास्त्र की लाइब्रेरी के लिये प्रोफेसर जे.एच.मूरहेड के द्वारा निवेदन किये जाने पर भारतीय दर्शनशास्त्र नामक दूसरी किताब लिखी जो 1923 में प्रकाशित हुयी। डॉ. राधाकृष्णन के महान कार्यों को श्रद्धांजलि देने के लिये सम्मान प्रदर्शित करने के लिये हर वर्ष इनके जन्म दिवस को शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाता है। 17 अप्रैल 1975 को इस महापुरुष का निधन हो गया।

Sarvepalli Radhakrishnan Essay

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन: भारत के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति – निबंध 3 (400 शब्द)

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान व्यक्ति थे जो दो कार्यकाल तक भारत के पहले उपराष्ट्रपति और उसके बाद देश के दूसरे राष्ट्रपति बने। वो एक अच्छे शिक्षक, दर्शनशास्त्री और लेखक भी थे। विद्यार्थियों के द्वारा शिक्षक दिवस के रुप में 5 सितंबर को भारत में हर वर्ष उनके जन्मदिन को मनाया जाता है। इनका जन्म एक बेहद गरीब ब्राह्मण परिवार में 5 सितंबर 1888 को मद्रास के तिरुतनि में हुआ था। घर की माली हालत के चलते इन्होंने अपनी शिक्षा छात्रवृत्ति की सहायता से पूरी की। डॉ. राधाकृष्णन ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गोवडिह स्कूल, तिरुवेल्लूर, लूथरेन मिशनरी स्कूल, तिरुपति, वूरहिज़ कॉलेज, वेल्लोर और उसके बाद मद्रास क्रिश्चन कॉलेज से प्राप्त की। उन्हें दर्शनशास्त्र में बहुत रुचि थी इसलिये इन्होंने अपनी बी.ए. और एम.ए. की डिग्री दर्शनशास्त्र में ली।

मद्रास प्रेसिडेंसी कॉलेज में, एम.ए की डिग्री पूरी करने के बाद 1909 में सहायक लेक्चरर के रुप में इनको रखा गया। हिन्दू दर्शनशास्त्र के क्लासिक्स की विशेषज्ञता इनके पास थी जैसे उपनिषद, भागवत गीता, शंकर, माधव, रामुनुजा आदि। पश्चिमी विचारकों के दर्शनशास्त्रों के साथ ही साथ बुद्धिष्ठ और जैन दर्शनशास्त्र के भी ये अच्छे जानकार थे। 1918 में मैसूर यूनिवर्सिटी में ये दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर बने और जल्द ही 1921 में कलकत्ता यूनिवर्सिटी में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर के लिये नामित हुए। हिन्दू दर्शनशास्त्र पर लेक्चर देने के लिये बाद में इन्हें ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से बुलावा आया। डॉ. राधकृष्णन ने अपने कड़े प्रयासों के द्वारा, दुनिया के मानचित्रों पर भारतीय दर्शनशास्त्र को रखने में सक्षम हुए।

बाद में 1931 में, 1939 में ये आंध्र विश्वविद्यालय और बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर के रुप में चुने गये। इनको 1946 में यूनेस्को 1949 में सोवियत यूनियन के एंबेस्डर के रुप में भी नियुक्त किया गया। डॉ. राधाकृष्णन 1952 में भारत के पहले उपराष्ट्रपति बने और 1954 में भारत रत्न से सम्मानित किये गये। भारत के उपराष्ट्रपति के रुप में दो कार्यकाल तक देश की सेवा करने के बाद 1962 में भारत के राष्ट्रपति के पद को सुशोभित किया और 1967 में सेवानिवृत्त हुए। वर्षों तक देश को अपनी महान सेवा देने के बाद 17 अप्रैल 1975 को इनका देहांत हो गया।

डॉ. राधकृष्णन ने 1975 में टेम्प्लेटन पुरस्कार (लेकिन इन्होंने इसको ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी को दान कर दिया), 1961 में जर्मन बुक ट्रेड का शांति पुरस्कार आदि भी जीता। इनको श्रद्धांजलि देने के लिये 1989 में यूनिवर्सिटी ने राधाकृष्णन छात्रवृत्ति की शुरुआत की जिसे बाद में राधाकृष्णन चिवनिंग स्कॉलरशिप्स का नाम दिया गया।

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डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन पर निबंध (Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Essay in Hindi)

Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Essay in Hindi

In this Article

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन पर 10 लाइन (10 Lines on Dr. Sarvepalli Radhakrishnan)

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन पर छोटा निबंध 200-300 शब्दों में (short essay on dr. sarvepalli radhakrishnan in hindi 200-300 words), डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन पर निबंध 400-500 शब्दों में (essay on dr. sarvepalli radhakrishnan in hindi 400-500 words), डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के बारे में रोचक तथ्य (interesting facts about dr. sarvepalli radhakrishnan in hindi), डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (faqs), डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के निबंध से बच्चों को क्या सीख मिलती है (what will your child learn from the essay).

आज के लेख का विषय डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के बारे में हैं जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कार्य किए। उन्होंने अपने जीवन में शिक्षा के क्षेत्र में कई सम्मान प्राप्त किए जो एक सामान्य मनुष्य के लिए संभव नहीं हो सकता है। उनके जीवनी से बच्चों को काफी प्रेरणा मिलती हैं। उनमें से एक प्रेरणा यह है कि चाहे परिस्थितियां कैसी भी हो अगर आपको कुछ बनने की चाह हो तो आप कुछ भी बन सकते हैं। आज के लेख में हम इन्हीं के बारे में निबंध लिखना सिखायेंगें। आज के लेख में हम कक्षा 1, 2 और 3 के बच्चों के लिए डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के बारे में सरल शब्दों में निबंध लिखना बतायेंगें। यदि आप इसके बारे में जानना चाहते हैं तो इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें।

अगर डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के बारे में सरल शब्दों में बिल्कुल सटीक जानकारी चाहिए तो आगे हमने 10 लाइन में इसकी जानकारी दी है इसे पढ़ें।

  • डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन बहुत बड़े विद्वान और एक बेहतरीन शिक्षक थे।
  • इनका जन्म भारत के तमिलनाडु राज्य में स्थित तिरुतनि में 5 सितम्बर 1888 को हुआ था।
  • इनका जन्म एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था लेकिन इनके पिता काफी ज्ञानी थे।
  • इन्होंने अपनी शुरूआती शिक्षा अपने गांव के ही मिसनरी स्कूल में की।
  • बी.ए. और एम.ए. की पढ़ाई उन्होंने मद्रास के क्रिस्चियन कॉलेज से की।
  • इसके बाद उन्होंने मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज में एक सहायक लेक्चरर के रूप में काम करना शुरू किया।
  • ये पढ़ाई में इतने अच्छे थे कि 30 वर्ष की आयु में कलकत्ता के वाईस चांसलर ने इन्हें सम्मानित किया था।
  • डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन हमारे देश के प्रथम उपराष्ट्रपति बने।
  • इन्हीं के याद में हम 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस मनाते हैं क्योंकि इनका शिक्षा के क्षेत्र में बहुत बड़ा योगदान था।
  • इनकी मृत्यु की दुखद घटना 17 अप्रैल 1975 को हुई थी।

अभी टीचर्स डे पास है ऐसे में हर स्कूल में टीचर्स डे या फिर शिक्षक दिवस के बारे में जरूर लिखने को मिलता है। यदि आपका बच्चा काफी छोटा है और उसे स्कूल में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन पर निबंध लिखने को मिला है तो हमने बिलकुल सरल शब्दों में इस विषय के बारे में आगे का लेख प्रस्तुत किया है, इसे पढ़ें:

हर व्यक्ति अपने में ही बहुत खास होता है। डॉ. सर्वपल्ली राधा कृष्णन एक बहुत ही अच्छे शिक्षक, मानवतावादी और दार्शनिक थे। वे एक बहुत बड़े विद्वान थे और दिल के भी काफी अच्छे थे। इनका नजरिया दूसरों से अलग था और काफी विनम्र थे। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरूतनि में एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम सर्वपल्ली वीरास्वामी था जो गरीब होने के बावजूद अपने उसूलों पर चलना पसंद करते थे। उनकी मां का नाम सीतम्मा था। उनके पिता की इच्छा थी कि उनका बेटा पंडित बने। लेकिन पढ़ाई में होनहार होने के कारण छात्रवृत्ति पाकर अपनी पढ़ाई पूरी की। अपनी प्राथमिक शिक्षा अपने गांव से की और बाद में वेल्लोर गए। बी.ए. और एम.ए. की पढ़ाई उन्होंने मद्रास में पूरी की। उसके बाद उन्होंने सहायक शिक्षक के रूप में काम करना शुरू किया है। तत्पश्चात उन्हें दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में मैसूर यूनिवर्सिटी में नौकरी करने का मौका मिला। इन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में भी अपना अध्यापन कार्य किया। उसके बाद ये 1939-1948 तक बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी वाइस चांसलर भी बनें। ये इतने अच्छे अध्यापक थे कि सब उन्हें बड़ा प्यार करते थे। उसके बाद वो आजाद भारत के पहले उपराष्ट्रपति बनकर देश की सेवा की। आज इनकी जन्म दिवस को हम शिक्षक दिवस के रूप में मनाते हैं ताकि हम उन्हें अपना आभार व्यक्त कर सके।

निबंध के कई सारे विषय हो सकते हैं। स्कूलों में वीर, विद्वान, पर्व आदि के बारे में निबंध लिखने पर दिया जाता है। यदि आपको डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के बारे में लगभग 500 शब्दों में एक प्रभावशाली निबंध लिखने को मिला है तो इसके लिए परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। आगे इनके बारे में हमने आपके चाह के अनुसार निबंध लिखा है, इसे पढ़कर मदद जरूर लें:

शिक्षक दिवस जो बच्चों के द्वारा अपने शिक्षक को आभार व्यक्त करने का मौका होता है वो किसके उपलक्ष्य में मनाया जाता है क्या आपको पता है? इस दिन हमारे महान लेखक और दार्शनिक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म हुआ था। वो एक बहुत ही अच्छे अध्यापक थे। जिनसे बच्चे बहुत प्रभावित होते थे। उन्हें लिखना बहुत पसंद था। उन्होंने कई ऐसी पुस्तकें लिखीं जो मानव जीवन के लिए प्रेरणा स्त्रोत है।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जीवन परिचय (Life Introduction of Dr. Sarvepalli Radhakrishnan)

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ब्राह्मण परिवार से थे। इनका जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु के एक गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम सर्वपल्ली वीरास्वामी था जो काफी गरीब थे। उनकी माता का नाम सीतम्मा था। वो एक गृहिणी थी। उनके पिता की इच्छा थी सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक विद्वान पंडित बने लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। उनका विवाह बहुत छोटे में ही हो गया था। इनकी पत्नी का नाम शिवकामु था और इनकी पांच बेटियां और एक बेटा था।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की शिक्षा (Education of Dr. Sarvepalli Radhakrishnan)

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन पढ़ाई में काफी होशियार थे। जिसके कारण उनकी पूरी पढ़ाई छात्रवृति के माध्यम से हुई। शुरुआत की पढ़ाई अपने गांव से की और उसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए वेल्लोर गए। 17 साल की छोटी उम्र में ही शिक्षा के लिए मद्रास चले गयें। 1906 में इन्होने दर्शनशास्त्र में एम.ए. किया। उसके बाद मद्रास के ही एक कॉलेज में सहायक प्रोफेसर के रूप में काम शुरू किया। 1931 में इनके अध्यापन कार्य को देखते हुए नाईट की उपाधि दी गई।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का राजनीतिक जीवन (Political Life of Dr. Sarvepalli  Radhakrishnan)

1946 में इन्हें संविधान सभा में स्थान मिला। यहीं से इनके राजनितिक जीवन का प्रारम्भ हुआ। इसके बाद इनके राजनितिक जीवन में बदलाव आते गए। उन्होंने यूनेस्को और मास्को में भारत के एजेंट के रूप में कार्य किया। इनकी सूझबूझ और शिक्षा को देखकर इन्हें 1952 में भारत का प्रथम उपराष्ट्रपति बनाया गया। पद पर रहते हुई उन्होंने कई सराहनीय कार्य किए। वे अपने वेतन में से 2500 रु रखकर बाकि के रुपये प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा करा देते थे जो एक सच्चा महापुरुष ही कर सकता है। 1962 में ये भारत के दूसरे राष्ट्रपति बनें और अपने कार्यों के लिए भारत का सबसे बड़ा सम्मान भारत रत्न से पुरस्कृत किया गया।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के उपलब्धियां (Achievements of Dr. Sarvepalli Radhakrishnan)

अपने पूरे कार्यकाल में उन्होंने कई सारे उपलब्धियां प्राप्त किए। जैसे की कलकत्ता विश्वविद्यालय का कुलपति बनना। उसके बाद कई सालों तक उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में भी शिक्षण कार्य किया। इसके बाद वो भारत के नामी विश्वविद्यालयों में से एक बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में कुलपति बने। आजादी के पहले इन्हें केवल सर्वपल्ली राधाकृष्णन के नाम से जाना जाता था। लेकिन आजादी के बाद इनके नाम में डॉ. जुड़ गया और ये डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन से पुकारा जाने लगा। इन्हीं के जन्मदिन को आज हम शिक्षक दिवस के रूप में मनाते हैं जो बच्चों के लिए बहुत खुशी का दिन होता है।

हर किसी के बारे में कुछ रोचक बातें होती हैं। यदि आप डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के बारे में रोचक बातों के बारे में जानना चाहते हैं तो इसके लिए आगे जरूर पढ़ें।

  • डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति बनें।
  • वे अपनी वेतन में से 2500 रुपए रखकर बाकी सारे रुपए प्रधानमंत्री राहतकोष में जमा करा देते थे।
  • डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन पहले ऐसे व्यक्ति थे जो हेलीकॉप्टर से व्हाइट हाउस, यूनाइटेड स्टेट्स गए थे।
  • डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन पढ़ाई को लेकर गंभीर रहते थे लेकिन इनका हास्यवृत्ति काफी अच्छा था।
  • डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन बच्चों को इतना अच्छा पढ़ाते थे कि इन्हें ब्रिटिश सम्राट के द्वारा ‘नाइटहुड’ की उपाधि दी गई थी।

इनके बारे में कुछ सवाल हैं जिसका जवाब सभी को पता होना चाहिए ताकि अगर कोई पूछे तो हम उनका जवाब दे सकें। ऐसे ही कुछ सवाल और उसके जवाब आगे दिए गए हैं, इसे जरूर पढ़ें।

1. भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति कौन थे?

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन।

2. डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म कब हुआ था?

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का जन्म 5 सितंबर 1888 को हुआ था।

3. टीचर्स डे क्यों मनाया जाता है?

टीचर्स डे डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जयंती के तौर पर मनाया जाता है।

4. डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को भारत रत्न से कब नवाजा गया?

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को भारत रत्न से साल 1954 में नवाजा गया।

5. डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी का वाइस चांसलर (कुलपति) कब बनाया गया?

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी का वाइस चांसलर (कुलपति) 1939 में बनाया गया।

इस निबंध से बच्चें यह सीख सकते हैं कि निर्धन परिवार से होने के बावजूद भी अगर मेहनत और लगन सच्ची हो तो इंसान कोई भी मुकाम हासिल कर सकता है। उनके पिता निर्धन थे बावजूद इसके उन्होंने छात्रवृति से अपनी पढ़ाई की और एक बहुत बड़े विद्वान और दार्शनिक बनें। वो भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति और द्वितीय प्रधानमंत्री बनें। लेकिन इस बात का उन्हें कभी घमंड नहीं हुआ। बच्चे इस लेख से यह भी सीख सकते हैं चाहे वो कितने ही ऊपर क्यों न पहुंच जाएं अपनी जड़ों को नहीं भूलना चाहिए। हमेशा विनम्र भाव रखना चाहिए न कि उस पर अहंकार करना चाहिए।

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डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन पर निबन्ध | Dr Sarvepalli Radhakrishnan Essay in Hindi | Essay in Hindi | Hindi Nibandh | हिंदी निबंध | निबंध लेखन | Essay on Dr Sarvepalli Radhakrishnan in Hindi

By: savita mittal

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन पर निबन्ध | Dr Sarvepalli Radhakrishnan Essay in Hindi

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बीसवी सदी की शुरुआत में जब वैज्ञानिक प्रगति अपने चरम पर थी, तब विश्व को अपने दर्शन से प्रभावित करने वाले महान आध्यात्मिक नेताओं में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन सर्वप्रमुख थे। उन्होंने कहा- “चिड़ियों की तरह हया में हुना और मछलियों की तरह पानी में तैरना सीखने के बाद, अब हमें मनुष्य की तरह जमीन पर चलना भी सीखना है।” इसी क्रम में मानवता की आवश्यकता पर जोर देते हुए उन्होंने कहा- “मानव का दानय बन जाना, उसकी पराजय है, मानव का महामानव होना, उसका चमत्कार और मानव का मानव होना उसकी विजय है।”

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जीवन परिचय डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 8 सितम्बर, 1888 को मद्रास (चेन्नई) शहर से लगभग 50 किमी दूर तमिलनाडु राज्य के तिरुतनी नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम सर्वपल्ली बीरास्वामी तथा माता का नाम सिताम्मा था। इसके पूर्वजों का गाँव ‘सर्वपल्ली था, जिसके कारण उन्हें अपने नाम के आगे ‘सर्वपल्ली विरासत में मिला। उनका परिवार अत्यन्त धार्मिक था।

उन्होंने प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा मिशन स्कूल, तिरुपति तथा वेल्लीर कॉलेज, वेल्लौर में प्राप्त की। वर्ष 1908 में उन्होंने मद्रास के क्रिश्चियन कॉलेज में प्रवेश लिया और यहाँ से बीए तथा एम ए की उपाधि प्राप्त की।

ये अपनी संस्कृति और कला से लगाव रखने वाले ऐसे महान आध्यात्मिक राजनेता में, जो सभी धमविलम्बियों के प्रति गहरा आदरभाव रखते थे। राधाकृष्णन ने अपने जीवनकाल में कई राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों तथा ण्डल का नेतृत्व किया। 21 वर्ष की अल्पायु में ही वर्ष 1909 में वे मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के जयापक नियुक्त हुए। बाद में उन्होंने मैसूर एवं कलकत्ता विश्वविद्यालयों में भी दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में कार्य किया। इसके बाद कुछ समय तक वे आन्ध्र विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे।

इसके अतिरिक्त, काशी विश्वविद्यालय में भी उन्होंने कुलपति के पद को सुशोभित किया। वर्ष 1939 में उन्हें ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्राच्य धर्म और आचार विभाग का विभागाध्यक्ष बना दिया गया। ये वर्ष 1948-49 में यूनेस्कों के एक्जीक्यूटिस बोर्ड के अध्यक्ष रहे। वर्ष 1950 में उन्हें रूस में भारत का राजदूत नियुक्त किया गया था। वर्ष 1952-60 की अवधि में ये भारत के उपराष्ट्रपति रहे। बाद में वे वर्ष 1962 में राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित हुए और इस पद पर वर्ष 1967 तक बने रहे।

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राधाकृष्णन ने दर्शन और संस्कृति पर अनेक ग्रन्थों की रचना की, जिनमें ‘दें फिलॉसफी ऑफ द उपनिषद्स’, ईस्ट एण्ड बेस्ट-सम रिफ्लेक्स’ ‘ईस्टर्न रिलीजन एण्ड वेस्टर्न थॉट’, ‘इण्डियन फिलॉसफी’, ‘एनः ऑफ लाइफ’ ‘हिन्दू व्यू ऑफ लाइफ’ इत्यादि प्रमुख हैं। भारतीय संस्कृति, सत्य की खोज एवं समाज हिन्दी में अनुवादित उनकी लोकप्रिय एवं महत्त्वपूर्ण पुस्तकें हैं।

डॉ. राधाकृष्णन ने अपने जीवनकाल 150 पुस्तकों का लेखन तथा सम्पादन किया था। गीता का अनुवाद’ नामक कृति को उन्होंने बापू को समर्पित प्रथम पुस्तक का नाम था- द फिलॉसॉफी ऑफ रवीन्द्रनाथ टैगोर’।टाइम्स’ तथा ‘अभ्युदय’ का सम्पादन भी किया। इस प्रकार उन्होंने भारतीय पत्रकारिता को नया आयाम प्रदान करते हुए अपना अविस्मरणीय योगदान दिया। सम्पादक की स्वतन्त्रता और लेखन की गरिमा के प्रबल समर्थक इस भारतीय मनीषी ने पत्रकारिता के साथ-साथ वकालत की पढाई भी की और इस क्षेत्र में भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। 1899 ई में मालवीयजी ने वकालत की परीक्षा पास की और हाइकोर्ट में प्रैक्टिस आरम्भ कर दी।

स्वाभिमानी मालवीयजी अपने नियमों और सिद्धान्तों के इतने पक्के थे कि किसी भी परिस्थिति में झूठे मुकदमों की पैरवी नहीं करते थे, परन्तु कुछ समय पश्चात् सामाजिक कार्यों में व्यस्तता बढ़ जाने के कारण बकालत छोड़ दी। परन्तु जब गोरखपुर के ऐतिहासिक चौरीचौरा काण्ड में 170 लोगों को फाँसी की सजा हुई तब उन्होंने वकालत छोड़ने के 20 वर्षों के अन्तराल के बाबजूद भी इलाहाबाद हाइकोर्ट में अद्भुत बहस की और 150 लोगों को फांसी से बचा लिया।

इस मुकदमे में मालवीयजी ने इतने प्रभावशाली ढंग से आरोपियों की पैरवी की कि उनसे प्रभावित होकर मुख्य न्यायाधीश ने उन्हें अदालत में ही बधाई दे दी। इसके अतिरिक्त, मालवीयजी ने विधवाओं के पुनर्विवाह का समर्थन और बाल विवाह का विरोध भी किया।

समाज-सुधार के क्षेत्र में काम करते हुए उन्होंने महिलाओं की शिक्षा के लिए भी कार्य किया। श्रीमद्भागवत और गीता के विख्यात व्याख्याकार के रूप में मालवीयजी की आध्यात्मिक ऊर्जा और बौद्धिक कौशल को सभी नमन करते हैं।

वह दक्षिणपन्थी हिन्दू महासभा के आरम्भिक नेताओं में से एक थे और उदात्वादी हिन्दुत्व के समर्थक थे। गंगा के प्रति मालवीयजी का प्रेम और श्रद्धा अत्यधिक थी। इसलिए जब अंग्रेज सरकार द्वारा गंगोत्री से निकली गंगा की धारा को अवरुद्ध करने की कोशिश की गई, तो उन्होंने गंगा महासभा की ओर से व्यापक सत्याग्रह अभियान चलाया। इसका परिणाम यह हुआ कि अंग्रेज सरकार को झुकना पड़ा और उत्तराखण्ड में गंगा की धारा पर कोई भी बाँध या फैक्ट्री न बनाने का फैसला किया।

महामना ने अनेक रूपों में देश की सेवा की और अपने जीवन के अन्त तक किसी-न-किसी रूप में सक्रिय रहे, परन्तु बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की चर्चा किए बिना उनके योगदान का उल्लेख अधूरा है। मालवीयजी शिक्षा के बिना व्यक्ति के विकास को असम्भव मानते थे। उनका कहना था- “शिक्षा के बिना मनुष्य पशुतुल्य होता है।” देश के युवक-युवतियों को देश में ही उच्च गुणवत्ता की शिक्षा देने के उद्देश्य से उन्होंने एक विश्वविद्यालय की स्थापना का स्वप्न देखा और अपने इस स्वप्न को 4 फरवरी, 1916 के दिन बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय का शिलान्यास करके साकार किया।

वर्तमान समय में यह लगभग 30 हजार विद्यार्थियों और दो हजार प्रतिभाशाली अध्यापकों के साथ एशिया का सबसे बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय है। अपने आरम्भ काल से ही शिक्षा-संस्कृति और बौद्धिक विमर्श का महत्त्वपूर्ण केन्द्र रहा वह विश्वविद्यालय आज देश-विदेश के प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थानों में गिना जाता है।

मालवीयजी उच्च शिक्षा के आधुनिकतम विषयों, विज्ञान की विभिन्न शाखाओं और पद्धतियों के साथ ही भारतीय ज्ञान परम्परा-बेद, शास्त्र, दर्शन, साहित्य और कला के अध्ययन के वैश्विक केन्द्र बिन्दु के रूप में इस विश्वविद्यालय को विकसित करना चाहते थे और ऐसा करने में वे सफल भी रहे। आज यहाँ इजीनियरिंग, अन्तरिक्ष प्रौद्योगिकी, आधुनिक चिकित्सा प्रणाली से लेकर वेद, उपनिषद, वैदिक कर्मकाण्ड, साहित्य आदि सभी प्राचीन भारतीय धाराओं की पढ़ाई होती. है और देश-विदेश के विद्यार्थी इस विश्वविद्यालय में प्रवेश प्राप्त करना एक बड़ी उपलब्धि मानते हैं।

लगभग 4,060 एकड़ में फैले इस विशाल विश्वविद्यालय की स्थापना एक सरल कार्य नहीं था। सम्भवतः इस कठिनतम कार्य को महामना ही कर सकते थे। इस कार्य के लिए उन्होंने तत्कालीन समय में एक करोड़ रुपये की धनराशि जुटाई और इससे भी बड़ा आश्चर्य यह है कि उन्होंने यह सारा धन दान और चन्दे के माध्यम से जुटाया था।

अपने हाथो से दान का एक भी पैसा न छूने की प्रतिज्ञा कर चुके मालवीयजी अपने गमछे (तौलिया) में विश्वविद्यालय के लिए धन-संग्रह करते रहे।लगभग 12-13 वर्षों तक देश के प्रत्येक दानी के यहाँ दस्तक दे-देकर, पैसा-पैसा जोड़कर यह करिश्मा का जिसे दूसरों ने असम्भव फरार दे दिया था। इसीलिए मिक्षारन और अनुदान के रूप में मिले पैसों से ज्ञान का इन्दर खड़ा करने वाले इस ‘महामना’ को ‘किंग ऑफ बैगर्स’ (भिखारियों का राजा) भी कहा गया, परन्तु इन्होंने अपने अन्य को पूरा किया। आज बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय और मालवीयजी के बिना आधुनिक भारत की कल्पना करना भी कठिन है। मानवीयजी ने लगभग तीन दशक तक इसके कुलपति का पदभार भी संभाला और इसकी वैचारिक नींव को सुहृद किया।

महामना मदन मोहन मालवीय जी का नाम जितना बड़ा है, उससे कहीं वहीं इनकी उपलब्धियों और योगदान है, दिनको शब्दों में व्यक्त करना आसान काम नहीं है। इसीलिए कवियर स्वीन्द्रनाथ टैगोर ने इन्हें सबसे पहले महामना के जाम से पुकारा। बाद में महात्मा गाँधी ने भी इन्हें ‘महामना-अ मैन ऑफ लार्ज हार्ट कहकर सम्मानित किया। यह एक विडम्बना ही कही जाएगी कि भारतीयता का सच्चा प्रतिबिम्ब यह युग पुरुष आजीवन देशसेवा में समर्पित रहा, परन्तु अवासना भारत में साँस लेने का सौभाग्य उन्हें प्राप्त नहीं हुआ। 12 नवम्बर, 1946 को भारत के महान विभूति महामना का निधन हो गया।

महामना मालवीयजी का जीवन भारतीयों के लिए प्रेरणादायक है और भारत हमेशा उनका ऋणी रहेगा। मालवीयजी सम्मानित करने के उद्देश्य से भारत सरकार ने 25 दिसम्बर, 2014 को उनके 153वें जन्मदिन पर भारत रत्न से वास्तव में मालवीयजी को भारत रत्न देकर सरकार ने स्वयं और भारत रत्न को ही सम्मानित किया है, क्योंकि उनका जीवन-चरित्र भारत रत्न से भी अधिक सम्माननीय है।

यदि वास्तव में हमें इस ज्ञान के पुजारी को सम्मान और श्रद्धाजलि देनी है, तो हमे अपने देश में शिक्षा सम्बन्धी व्यवस्था में सुधार करना होगा। हमें समाज के प्रत्येक वर्ग के बच्चे के लिए समुचित शिक्षा की व्यवस्था करनी होगी, ताकि राष्ट्र निर्माण में सभी बच्चे भागीदार बनें और थान का महामना मदन मोहन मालवीयजी का सपना साकार हो।

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dr radhakrishnan essay in hindi

मेरा नाम सविता मित्तल है। मैं एक लेखक (content writer) हूँ। मेैं हिंदी और अंग्रेजी भाषा मे लिखने के साथ-साथ एक एसईओ (SEO) के पद पर भी काम करती हूँ। मैंने अभी तक कई विषयों पर आर्टिकल लिखे हैं जैसे- स्किन केयर, हेयर केयर, योगा । मुझे लिखना बहुत पसंद हैं।

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दा इंडियन वायर

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन पर निबंध

dr radhakrishnan essay in hindi

By विकास सिंह

essay on sarvepalli radhakrishnan in hindi

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान व्यक्ति और प्रसिद्ध शिक्षक थे। उन्ही की जयंती पर हर साल शिक्षक दिवस मनाया जाता है।

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन पर निबंध, essay on sarvepalli radhakrishnan in hindi (100 शब्द)

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक प्रसिद्ध शिक्षक थे। उनका जन्म 1888 में 5 सितंबर को भारत के मद्रास के तिरुतनी में गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बाद में अपने जीवन में वह देश के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति बने। वे एक अच्छे दार्शनिक, व्यक्ति, आदर्शवादी, शिक्षक और प्रसिद्ध लेखक थे।

वह दृष्टि, मिशन और सिद्धांतों के व्यक्ति थे जिन्होंने भारत के एक कार्यकारी प्रमुख की भूमिका निभाई। वह देश के एक महान व्यक्तित्व थे, जिनके जन्मदिन को भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। वह सम्मान के व्यक्ति थे जिन्हें हम आज भी शिक्षक दिवस मनाकर याद करते हैं।

सर्वपल्ली राधाकृष्णन पर निबंध, 150 शब्द :

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर को 1888 में तिरुत्लानी (वर्तमान में आंध्र प्रदेश), भारत में हुआ था। वह एक प्रसिद्ध शिक्षक थे और भारत के सबसे सम्मानित विद्वानों और राजनेताओं में से एक बन गए। उन्होंने गरीब ब्राह्मण परिवार में जन्म लिया।

वे शैक्षणिक क्षेत्र में बहुत अच्छे थे और आंध्र, मैसूर और कलकत्ता के विश्वविद्यालयों में दर्शनशास्त्र पढ़ाते थे। वह ऑक्सफोर्ड में प्रोफेसर भी बने। अपने अच्छे अकादमिक करियर के कारण वह दिल्ली विश्वविद्यालय में चांसलर और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में कुलपति बने।

उन्होंने भारतीय परंपराओं को लोकप्रिय बनाने के साथ-साथ जातिविहीन और वर्गविहीन समाज की स्थापना पर जोर देने के लिए कई किताबें लिखीं। वह एक अच्छे दार्शनिक थे और हिंदू धर्म के आधुनिक स्वरूप का समर्थन करते थे। उनकी कुछ प्रसिद्ध पुस्तकें द फिलॉसफी ऑफ उपनिषद, पूर्व और पश्चिम: कुछ प्रतिबिंब, पूर्वी धर्म और पश्चिमी विचार, और बहुत सारे लेख लिखे। उनकी जयंती पर, उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए 5 सितंबर शिक्षक दिवस मनाया जाता है।

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन पर निबंध, essay on sarvepalli radhakrishnan in hindi (200 शब्द)

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान व्यक्ति और प्रसिद्ध शिक्षक थे। उनकी जयंती हर साल 5 सितंबर को पूरे देश में छात्रों द्वारा उन्हें हमेशा के लिए श्रद्धांजलि देने के लिए मनाई जाती है। यह देश के सभी शिक्षकों को उनके महान और समर्पित पेशे के लिए सम्मान देने के लिए भी मनाया जाता है।

उनका जन्म 5 सितंबर 1888 को दक्षिण भारत के मद्रास (उत्तर-पूर्व में 40 मील दूर) तिरुतनी में गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी इसलिए उन्होंने अपनी अधिकांश शिक्षा छात्रवृत्ति से पूरी की।

उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से बीए और एमए स्नातक की पढ़ाई पूरी की। उन्होंने “द एथिक्स ऑफ द वेदांता एंड इट्स मेटाफिजिकल प्रेजापोसिशन” शीर्षक के तहत वेदांत की नैतिकता पर एक थीसिस लिखी, जो बाद में बहुत प्रसिद्ध और प्रकाशित हुई। 1909 में मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज में, उन्हें दर्शनशास्त्र विभाग में नियुक्त किया गया और बाद में 1918 में मैसूर विश्वविद्यालय में एक शिक्षक और दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर बने।

उन्होंने 1926 में ब्रिटिश साम्राज्य के विश्वविद्यालयों और कांग्रेस के साथ-साथ 1926 में हार्वर्ड विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय दर्शन की कांग्रेस की बैठक में कलकत्ता विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व किया था। अपने महान कार्यों के साथ देश की सेवा करने के बाद, 17 अप्रैल 17 को उनका निधन हो गया। 1975 में।

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन पर निबंध, 250 शब्द:

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 1888 में 5 सितंबर को तमिलनाडु के तिरुतलानी, भारत में हुआ था। वह एक महान व्यक्तित्व और प्रसिद्ध शिक्षक थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा तमिलनाडु के ईसाई मिशनरी संस्थान से की और बी.ए. और मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से एम. ए. की।

उन्होंने मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज में लॉजिस्टिक्स में असिस्टेंट लेक्चरर की नौकरी और मैसूर विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में नौकरी प्राप्त की। 30 साल की उम्र में, उन्हें सर आशुतोष मुखर्जी (कोलकाता विश्वविद्यालय में कुलपति) द्वारा मानसिक और नैतिक विज्ञान की किंग-जॉर्ज कुर्सी से सम्मानित किया गया था।

वह आंध्र विश्वविद्यालय में कुलपति बने और बाद में तीन साल के लिए पूर्वी धर्म और नैतिकता में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे। वह 1939 से 1948 तक बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में कुलपति भी बने। वह एक लेखक भी थे और उन्होंने भारतीय परंपरा, धर्म और दर्शन पर कई लेख और किताबें लिखीं।

वे 1952 से 1962 तक भारत के उपराष्ट्रपति और 1962 से 1967 तक भारत के राष्ट्रपति बने और 1954 में भारत रत्न से सम्मानित हुए और सी. राजगोपालाचारी और सी.वी. रमन भी उस समय भारत रत्न से सम्मान्नित हुए थे। वह एक महान शिक्षाविद और मानवतावादी थे, इसीलिए उनकी जन्मदिन की वर्षगांठ हर साल शिक्षक दिवस के रूप में पूरे देश में छात्रों द्वारा शिक्षकों के प्रति प्रेम और सम्मान दिखाने के लिए मनाई जाती है।

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन पर निबंध, 300 शब्द:

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक प्रसिद्ध शिक्षक और लेखक थे। उन्होंने 1888 में 5 सितंबर को भारत के तिरुतनी में गरीब ब्राह्मण परिवार में जन्म लिया। उनके पिता का नाम सर्वपल्ली वीरस्वामी था जो बहुत कम वेतन पर जमींदारी में नौकरी कर रहे थे। उनकी माता का नाम सीताम्मा था। आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण उन्होंने अपनी शिक्षा छात्रवृत्ति पर की। उन्होंने तिरुपति और लुथेरन मिशन स्कूल, तिरुपति से अपनी स्कूली शिक्षा सफलतापूर्वक पूरी की।

उन्होंने बी.ए. और दर्शनशास्त्र में M.A. की डिग्री। उन्होंने अपने 16 वर्ष की आयु में शिवकमुअम्मा से शादी कर ली। वे 1909 में मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज में असिस्टेंट लेक्चररशिप बन गए। वह उपनिषदों, ब्रह्मसूत्र, भगवद गीता, सांकरा के टीकाकारों, माधव, रामानुज और बौद्ध और जैन दर्शन के साथ अच्छी तरह से परिचित थे।

अपने बाद के जीवन में, उन्होंने प्लेटो, कांट, ब्रैडली, प्लोटिनस, बर्गसन, मार्क्सवाद और अस्तित्ववाद की दार्शनिक टिप्पणियों को पढ़ा। उन्होंने राधाकृष्णन का आशीर्वाद लेने के लिए अध्ययन के लिए कैम्ब्रिज जाते समय 1914 में श्रीनिवास रामानुजन नामक गणितीय प्रतिभा से मुलाकात की। वे 1918 में मैसूर विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक बने।

वे एक प्रसिद्ध लेखक भी बने और उन्होंने द फिलॉसफी ऑफ रबिन्द्रनाथ टैगोर, द क्वेस्ट, द रीन ऑफ रिलिजन इन कंटेम्पररी फिलॉसफी, इंटरनेशनल जर्नल नैतिकता, जर्नल ऑफ फिलॉसफी, आदि किताबें लिखी। उनके प्रसिद्ध लेखन ने आशुतोष मुकर्जी (कलकत्ता विश्वविद्यालय में कुलपति) की दृष्टि खींची थी और 1921 में कलकत्ता विश्वविद्यालय में जॉर्ज वी में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर के लिए नामांकित हुए थे।

उन्होंने प्रो। जेएच मुइरहेड के अनुरोध पर भारतीय दर्शन के लिए एक और पुस्तक लिखी थी। 1923 में प्रकाशित की गई द लाइब्रेरी ऑफ़ द फिलॉसफी। उनकी जन्मदिन की सालगिरह 5 सितंबर को हर साल मनाई जाती है। 17 अप्रैल को 1975 में उनका निधन हो गया।

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन पर निबंध, long essay on sarvepalli radhakrishnan in hindi (400 शब्द)

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान व्यक्ति थे जो बाद में भारत के पहले उपराष्ट्रपति और भारत के दूसरे राष्ट्रपति बने। वे एक अच्छे शिक्षक, दार्शनिक और लेखक भी थे। उनका जन्मदिन भारत में हर साल 5 सितंबर को छात्रों द्वारा शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।

उनका जन्म 5 सितंबर, 1888 को तिरुतनी, मद्रास में एक बहुत गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था। अपने परिवार की खराब आर्थिक स्थिति के कारण उन्होंने छात्रवृत्ति के समर्थन से अध्ययन किया। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गौड़ी स्कूल, तिरुवल्लूर, लुथेरन मिशन स्कूल, तिरुपति, वूरही कॉलेज, वेल्लोर और फिर मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से प्राप्त की। वह दर्शनशास्त्र में बहुत रुचि रखते थे और उन्होंने दर्शनशास्त्र में बी.ए. और M.A. की डिग्री की।

मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज में, उन्हें एमए की डिग्री पूरी करने के बाद 1909 में एक सहायक व्याख्यान का पद सौंपा गया था। उन्होंने उपनिषद, ब्रह्मसूत्र, भगवद गीता, सांकरा, माधव, रामानुज के भाष्य आदि जैसे हिंदू दर्शन के क्लासिक्स में महारत हासिल की थी, वे बौद्ध और जैन धर्म के साथ-साथ पश्चिमी विचारकों के दर्शन से भी अच्छी तरह परिचित थे।

वह 1918 में मैसूर विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर बने और जल्द ही 1921 में कलकत्ता विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर के लिए नामांकित हुए। हिंदू दर्शन पर व्याख्यान देने के लिए, उन्हें बाद में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में बुलाया गया। अपने कई कठिन प्रयासों के माध्यम से, वह भारतीय दर्शन को विश्व मानचित्र पर लाने में सक्षम हुए।

बाद में 1931 में, उन्हें आंध्र विश्वविद्यालय के कुलपति और 1939 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में चुना गया। उन्होंने 1946 में यूनेस्को के राजदूत और 1949 में सोवियत संघ के राजदूत के रूप में भी नियुक्त किया। बाद में वे पहले उपाध्यक्ष बने।

उन्होंने 1975 में टेम्पलटन पुरस्कार भी जीता (लेकिन उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय को टेम्पलटन पुरस्कार दिया), 1961 में जर्मन बुक ट्रेड का शांति पुरस्कार, आदि पुरूस्कार उन्होंने जीते थे। उन्हें हमेशा के लिए सम्मान देने के लिए, विश्वविद्यालय ने 1989 में राधाकृष्णन छात्रवृत्ति शुरू की जिसे बाद में राधाकृष्णन शेवनिंग स्कॉलरशिप नाम दिया गया।

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विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.

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डॉ. राधाकृष्णन सर्वपल्ली का जीवन परिचय | Dr. Radhakrishnan Biography In Hindi | शिक्षा में योगदान, पुस्तकें, शैक्षणिक विचार, राष्ट्रपति के रूप में कार्यकाल

Dr. Radhakrishnan Biography in Hindi

Dr. Radhakrishnan Biography in Hindi:- हम डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति के रूप में जानते है। डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को 1975 में मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया है। सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु के तुर्माणी नाम के गांव में हुआ था। राधाकृष्णन का परिवारिक ब्राह्मण गरीब परिवार था उनके पिता सर्वपल्ली वीरास्वामी अपने गांव के सबसे ज्ञानी पंडित माने जाते थे। यही कारण था कि सर्वपल्ली राधाकृष्णन को बचपन से ही ज्यादा सुख सुविधाएं तो नहीं मिल सकी मगर ज्ञान अपने परिवार से बहुत मिला उन्हें बचपन से ही अलग अलग तरह की किताबें पढ़ने का शौक था। धीरे-धीरे उन्होंने अपने ज्ञान का वर्चस्व पूरे विश्वभर में इस प्रकार बिखेरा की एक पक्ष नेता राजनेता किया और अब भारत के सबसे महान राष्ट्रपति के रूप में उनका नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा गया।

अगर आप Dr. Radhakrishnan Sarvepalli Biography ढूंढ रहे हैं तो आज इस लेख में हम डॉक्टर सर्वपल्ली के बारे में कुछ ऐसी जानकारियां से आपको अवगत करवाएंगे जिसे जानकर आप हैरान हो जाएंगे। हम शिक्षक दिवस के पीछे का कारण भी आपको बताना चाहेंगे कि आखिर क्यों 1962 से शिक्षक दिवस की परंपरा को सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस पर शुरू किया गया। भारत के महान राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के बारे में अधिक जानकारी जानने के लिए हमारे लेख के साथ अंत तक बने रहे। 

Dr. Radhakrishnan Biography in Hindi- Overview

Teachers day 2023 | डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जीवनी, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जीवन | dr. radhakrshanan parichay.

Dr. Radhakrishnan Biography in Hindi:- सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को भारत के तमिलनाडु में स्थित एक छोटे से गांव तुर्माणी में हुआ था। सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखते थे जिस वजह से उनके परिवार में अधिक सुख सुविधाएं नहीं थी मगर उनके पिता गांव के सबसे बड़े ज्ञानी माने जाते थे जिनकी संगत में सर्वपल्ली राधाकृष्णन को बचपन से ही किताबें पढ़ने का शौक हुआ था। 

अलग-अलग तरह के धर्म ग्रंथ के अलावा उस जमाने के अंग्रेजी किताबों को भी उन्होंने पढ़ना शुरू किया। मगर गांव में अच्छी शिक्षा की व्यवस्था ना होने के कारण उनके पिता ने तिरुपति के लूथरसन मिशन में अपने बच्चे का दाखिला करवा दिया। 1886 ताकत तिरुपति में रहकर उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा को पूर्ण किया। जब वह तिरुपति में पढ़ाई कर रहे थे तो उसी दौरान महज 16 साल की आयु में उनका विवाह उनकी दूर की चचेरी बहन सिवकमू से करा दिया गया। इनसे उन्हें पांच बेटी और एक बेटा हुआ। इनके बेटे सर्वपल्ली गोपाल भारत के बहुत जाने-माने इतिहासकार बने। भारत के प्रचलित क्रिकेटर वीवीएस लक्ष्मण इन्ही के खानदान से ताल्लुक रखते थे।

Dr. Radhakrishnan Short Biography | Dr. Radhakrshanan Jivan Parichay in Hindi

Dr. Radhakrshanan Jeevan Parichay:- इसके बाद 1900 तक वेल्लूर में जाकर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने अपनी कॉलेज की शिक्षा को पूरा किया। यहां उन्होंने राजनीति में स्नातक की डिग्री हासिल की इसके बाद 1906 में मद्रास यूनिवर्सिटी से उन्होंने दर्शनशास्त्र में MA की डिग्री को हासिल किया। उन्होंने अपनी पूरी शिक्षा छात्रवृति से प्राप्त की इसके बाद उन्होंने 1909 में मद्रास प्रेसिडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के अध्यापक के रूप में चुने गए। इसके बाद 1916 में मद्रास प्रेसिडेंसी कॉलेज में वाइस प्रिंसिपल के पद पर नियुक्त हुए। इनके पढ़ाने के तरीके इतने प्रचलित हो चुके थे कि इन्हें ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाने के लिए बुलाया गया और वहां के बच्चों को इनके पढ़ाने का तरीका इतना पसंद आया कि सर्वपल्ली राधाकृष्णन को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में दर्शनशास्त्र के अध्यापक के रूप में नियुक्त किया गया।

मगर विदेश में उनका मन नहीं लगा इस वजह से वह वापस मद्रास के उसी कॉलेज में लौट आए जहां से उन्होंने MA की डिग्री की थी। उनकी प्रतिभा को देखते हुए मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज में उन्हें वाइस चांसलर बना दिया गया मगर 1 साल के अंदर उन्होंने इस कॉलेज को छोड़ दिया और बनारस विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर के रूप में नियुक्त हुए। इस तरह शिक्षा के क्षेत्र में उन्नति करते हुए जवाहरलाल नेहरू के आग्रह पर सर्वपल्ली राधाकृष्णन राजनीति में कदम रखते हैं और भारत के दूसरे राष्ट्रपति के रूप में देश को अपना जीवन समर्पित करते हैं। 

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का परिवार | Dr. Radhakrshanan Family

जैसा कि हमने आपको बताया सर्वपल्ली राधाकृष्णन का विवाह उनके दूर के चचेरी बहन शिवकामू से करा दिया गया था। जिनसे उन्हें पांच बेटी और एक बेटा हुआ था उनके बेटे का नाम सर्वपल्ली गोपाल था जो भारत के प्रचलित इतिहासकार बने थे। इसके बाद भारत के प्रचलित क्रिकेटर वी एस लक्ष्मण सर्वपल्ली राधाकृष्णन के परिवार से ही ताल्लुक रखते थे। उनके परिवार में मुख्य रूप से उनके माता-पिता पत्नी 5 बेटी और एक बेटा था।

तमिलनाडु के एक छोटे से गांव में वह अपने बड़े से परिवार में रहते थे। सर्वपल्ली राधाकृष्णन ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में जब पढ़ने गए तो कुछ साल के लिए अपनी पत्नी और बच्चों के साथ वहीं बस गए थे। मगर उन्हें विदेश उतना रास नहीं आया इस वजह से अपने परिवार के साथ हो वापस मद्रास अपने गांव लौट आए थे।

डॉक्टर राधाकृष्णन सर्वपल्ली का शिक्षा में योगदान

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान दार्शनिक थे। दर्शनशास्त्र के क्षेत्र में स्वामी विवेकानंद उनके आदर्श थे। उन्होंने दर्शनशास्त्र को समझाने के लिए स्वामी विवेकानंद के तरीके का इस्तेमाल किया जिस तरह से स्वामी विवेकानंद उस वक्त अपने भाषण दिया करते थे सर्वपल्ली राधाकृष्णन उसी से प्रभावित होकर दर्शनशास्त्र पढ़ाने का प्रयास करते थे।

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन राजनीति और दर्शनशास्त्र में स्नातक और पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की थी। शिक्षा को एक बेहतरीन ढंग से बच्चों के बीच लाने की कोशिश की थी जिसके लिए हर शिक्षक उन्हें अपना आदर्श मानने लगा था। उस वक्त दर्शनशास्त्र इतने बेहतरीन तरीके से सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने पढ़ाया था कि अमेरिका के ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के तरफ से उन्हें दर्शनशास्त्र पढ़ाने के लिए बुलाया गया था।

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के पुस्तकें | Dr. Radhakrshanan Books

Dr. Radhakrishnan Sarvepalli Books:- जैसा कि हमने आपको बताया डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक दार्शनिक थे। जिन्होंने अलग-अलग विश्वविद्यालय और कॉलेज में दर्शनशास्त्र की शिक्षा दी है। उन्होंने अपने करियर में दर्शनशास्त्र की अलग-अलग पुस्तकों को भी लिखा है।

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने अपने पूरे जीवन में 60 से अधिक दर्शनशास्त्र की किताबों को लिखा है। आज भी सर्वपल्ली राधाकृष्णन के द्वारा लिखी गई दर्शनशास्त्र के किताबों को अलग-अलग कॉलेज और विश्वविद्यालय में पढ़ाया जाता है। सभी पुस्तकों में से तीन पुस्तकें विश्व भर में बहुत प्रचलित हुई थी – 

  • 1923 में लिखी गई पुस्तक The Indian Philosophy डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन
  • महात्मा गांधी बाय डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन
  • 1948 में लिखी गई पुस्तक भगवत गीता, बाय सर्वपल्ली राधाकृष्णन

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के शैक्षणिक विचार

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन अपने बढ़ाने की प्रक्रिया में कुछ बेहतरीन शिक्षण विचारों को बच्चों को समझाते थे। उनके शैक्षणिक विचार को नीचे सूचीबद्ध किया गया है ताकि आप इस महान शिक्षक के विचारों को समझ सके और उसके आधार पर अपने जीवन में को निर्मित कर सकें – 

  • एक शिक्षक वह नहीं जो छात्रों के दिमाग में तथ्य ठूस दें, बल्कि एक अच्छा शिक्षक वह है जो बच्चों को आने वाली चुनौतियों के लिए तैयार कर सके।
  • अगर हम विश्व इतिहास को ध्यान से देखें तो पाएंगे कि वास्तविक सभ्यता का निर्माण उन लोगों के हाथों से हुआ है जो स्वयं विचार करने का सामर्थ्य रखते हैं, जो देश और काल की गहराइयों में प्रवेश करते है और अपने ज्ञान का इस्तेमाल लोक कल्याण के लिए करते हैं।
  • कोई भी आजादी तब तक सच्ची आजादी नहीं है जब तक विचार करने की आजादी ना मिले, और किसी भी परिस्थिति में आपके विचारों को आजादी आपके ज्ञान या अनुभव के आधार पर दी जाती है। जीवन में आप जितना अधिक ज्ञान हासिल करेंगे उतनी ही अधिक आजादी के हकदार होंगे।
  • पुस्तक वह साधन है जिसके इस्तेमाल से हम विभिन्न संस्कृति के बीच एक पुल का निर्माण करते हैं।

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का विद्यार्थियों को संदेश

सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने बच्चों को शिक्षा देने के दौरान विभिन्न प्रकार का संदेश भी देते थे वह अपने संदेश में बताते थे कि किस प्रकार जीवन को ज्यादा सुखद और बेहतर बनाया जा सकता है। उन्होंने अपने छात्र छात्राओं को विभिन्न प्रकार का ज्ञान दिया है जिसमें से कुछ बेहतरीन संदेश की सूची नीचे प्रस्तुत की गई है – 

  • सर्वपल्ली राधाकृष्णन कहते थे कि ज्ञान सबसे बड़ा धन है जिसे कोई चुरा नहीं सकता इसलिए आपको धन संचय के रूप में ज्ञान का संचय करना चाहिए।
  • जीवन में सुख आजादी से आता है सबसे बड़ी आजादी आपके विचारों की आजादी होती है। किसी भी परिस्थिति में या जीवन के किसी भी मोड़ पर आपको विचारों की आजादी आपके अनुभव और ज्ञान के आधार पर दी जाती है। आपके पास जिस परिस्थिति का जितना अधिक अनुभव या जितना अधिक ज्ञान होगा आप उस परिस्थिति में उतने ही अधिक आजादी के हकदार होंगे। अगर जीवन की परिस्थिति में खुश रहना है और बेहतरीन जीवन को पाना है तो अपने अनुभव और अपने ज्ञान को बढ़ाइए।
  • ज्ञान और विज्ञान दो अलग चीजें हैं और दोनों पर आप जितना अधिक काबू करेंगे आपका जीवन उतना ही आनंद में होगा। 

डॉ राधाकृष्णन का राष्ट्रपति के रूप में कार्यकाल

1947 में जब देश आजाद हुआ तब देश के नियम कानून और गणतंत्र मजबूत नहीं थे इस वजह से जवाहरलाल नेहरू के आग्रह पर एक सफल व्यक्ति के रूप में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को राजनीति में आने का निमंत्रण दिया गया। डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने 1947 से 1949 तक स्वाधीनता निर्मात्री सभा में राजदूत के रूप में काम किया और सोवियत संघ रूस के एक राजदूत के रूप में भारत के तरफ से भारत का प्रतिनिधित्व किया। 

इसके बाद 13 मई 1952 से 13 मई 1962 तक लगातार दो बार भारत के उपराष्ट्रपति बने और भारतीय राजनीति में उस वक्त जितने भी लोग थे सब डॉक्टर सर्वपल्ली से बहुत प्रभावित थे और उनकी प्रशंसा करते थे। इसी दौरान 5 सितंबर 1962 को उनके जन्म दिवस को बड़े ही हर्षोल्लास से मनाने की तैयारी की जा रही थी जिस वक्त उन्होंने अपने जन्मदिवस को देश के सभी शिक्षकों को समर्पित करने का निवेदन किया। जिसके बाद 5 सितम्बर 1962 से डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस पर शिक्षक दिवस मनाने की परंपरा शुरू हुई।

इसके बाद 1962 में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को भारत का दूसरा राष्ट्रपति नियुक्त किया गया। मगर डॉ राजेंद्र प्रसाद की तुलना में इनका कार्यकाल ज्यादा चुनौती भरा था क्योंकि यह वह दौर था जब भारत पाकिस्तान और चीन से लड़ाई लड़ रहा था। 1962 में चीन के साथ भारत का एक युद्ध हुआ जिसमें भारत को हार का सामना करना पड़ा और उसी दौरान पाकिस्तान से लगातार दो बार भारत को युद्ध करना पड़ा। हालांकि पाकिस्तान के साथ भारत ने दोनों बार जीत हासिल की और उसके बाद भारत के 2 प्रधानमंत्री का निधन सर्वपल्ली राधाकृष्णन के कार्यकाल के दौरान ही हुआ जिस वजह से बहुत सारे राजनीतिक गतिविधियों में उन्हें अलग-अलग प्रकार के विवाद का सामना करना पड़ा।

मगर 1972 में उन्होंने स्वयं को राजनीति से अलग कर लिया और बहुत अधिक बीमार रहने लगे मगर 13 अप्रैल 1975 को वे बीमारी के साथ अपनी जंग हार गए और परम समाधि में लीन हो गए। उसी साल मरणोपरांत उन्हें भारत का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 

FAQ’s: Dr. Radhakrishnan Biography in Hindi

Q. डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म कब हुआ.

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु के तुर्माणी गांव में हुआ था।

Q. डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की पत्नी कौन थी?

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का विवाह महज 16 वर्ष की उम्र में शिवमुक से हुआ था जिनसे उन्हें पांच बेटी और एक बेटा हुआ।  

Q. सर्वपल्ली राधाकृष्णन कहां के शिक्षक थे?

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन मद्रास प्रेसिडेंसी कॉलेज के शिक्षक रहे इसके बाद उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में दर्शनशास्त्र पढ़ाया और इसके बाद मद्रास यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर और बनारस यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर रहे।

Q. शिक्षक दिवस कब से मनाया जा रहा है?

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस 5 सितंबर 1962 से भारत में इस दिन को शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जा रहा है।

आशिक में हमने आपको Dr. Radhakrishnan Biography in Hindi सरल शब्दों में समझाने का प्रयास किया। उम्मीद करते हैं इस लेख को पढ़ने के बाद अब डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जीवन को एक नए नजरिए से देख पाए होंगे उन्होंने अपने पूरे जीवन काल में शिक्षा और दर्शनशास्त्र को एक अलग मुकाम पर पहुंचाया। साथ ही चुनौती भरे वक्त में भारत के एक बेहतरीन राष्ट्रपति के रूप में भारत का नेतृत्व भी किया। अगर इस लेख को पढ़ने के बाद डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जीवन से आप कुछ सीख पाए हैं तो इसे अपने मित्रों के साथ साझा करें साथी अपने सुझाव और विचार को कमेंट में बताना ना भूलें।

इस ब्लॉग पोस्ट पर आपका कीमती समय देने के लिए धन्यवाद। इसी प्रकार के बेहतरीन सूचनाप्रद एवं ज्ञानवर्धक लेख easyhindi.in पर पढ़ते रहने के लिए इस वेबसाइट को बुकमार्क कर सकते हैं

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Dr. Sarvepalli Radhakrishnan (डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन)

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डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन पर निबंध

'ज्यों की त्यों घर दीन्हीं नादीया' कबीर की इस उक्ति को चरितार्थ करते थे- भारत के द्वितीय राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन। जिस परम पवित्र रूप में वह इस पृथ्वी पर आए थे बिना किसी दाग-धब्बे के, उसी पावन रूप में उन्होंने इस वसुन्धरा से विदाई ली। लम्बे समय तक भारत के उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति रहकर जब वह दिल्ली से विदा हुए, तो प्रत्येक दिल ने उनका अभिनन्दन किया। भारत के राष्ट्रपति पद की सीमा उन्हीं जैसे सादगी की ऊँची जिन्दगी जीने वाले महामानव से सार्थक हुई। अपनी ऋजुल, सौम्यता और संस्कारिता के कारण वह अजातशत्रु हो गए थे। वह उन राजनेताओं में से एक थे, जिन्हें अपनी संस्कृति एवं कला से अपार लगाव होता है। वह भारतीय सामाजिक संस्कृति से ओतप्रोत आस्थावान हिन्दू थे। इसके साथ ही अन्य समस्त धर्मावलम्बियों के प्रति भी गहरा आदर भाव रखते थे। जो लोग उनसे वैचारिक मतभेद रखते थे। उनकी बात भी वह बड़े सम्मान एवं धैर्य के साथ सुनते थे। कभी-कभी उनकी इस विनम्रता को लोग उनकी कमजोरी समझने की भूल करते थे, परन्तु यह उदारता, उनकी दृढ निष्ठा से पैदा हुई थी। उनका जन्म 5 सितम्बर, 1888 को तमिलनाडु राज्य के तिरूतनी नामक गाँव में हुआ था। जो मद्रास शहर से लगभग 50 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। उनका परिवार अत्यन्त धार्मिक था और उनके माता-पिता सगुन उपासक थे। उन्होंने प्राथमिक तथा माध्यमिक शिक्षा मिशन स्कूल तिरूपति तथा बेलौर कॉलेज, बेलौर में प्राप्त की। सन् 1905 में उन्होंने मद्रास के क्रिश्चियन कॉलेज में प्रवेश किया। बी ए. और एम. ए. की उपाधि उन्होंने इसी कॉलेज से प्राप्त की। सन् 1909 में मद्रास के ही एक कॉलेज में दर्शनशास्त्र के अध्यापक नियुक्त हुए। इसके बाद वह प्रगति के पथ पर लगातार आगे बढ़ते गए तथा मैसूर एवं कलकत्ता विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में कार्य किया। इसके बाद डॉ. राधाकृष्णन ने आन्ध्र विश्व विद्यालय के कुलपति के पद पर कार्य किया। लम्बी अवधि तक वह आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर रहे। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में उन्होंने कुलपति के पद को भी सुशोभित किया। सोवियत संघ में डॉ. राधाकृष्णन भारत के राजदूत भी रहे। अनेक राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों तथा शिष्टमण्डलों का उन्होंने नेतृत्व किया। यूनेस्को के एक्जीक्यूटिव बोर्ड के अध्यक्ष के पद को उन्होंने 1948-49 में गौरवान्वित किया। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का यह एक अत्यन्त महत्वपूर्ण पद हैं। 1952-62 की अवधि में वह भारत के उपराष्ट्रपति तथा 1962 से 1967 तक राष्ट्रपति रहे। 1962 में भारत-चीन युद्ध तथा 1965 में भारत-पाक युद्ध उन्हीं राष्ट्रपति काल में लड़ा गया था। अपने ओजस्वी भाषणों से भारतीय सैनिकों के मनोबल को ऊँचा उठाने में उनका योगदान सराहनीय था। डॉ. राधाकृष्णन भाषण कला के आचार्य थे। विश्व के विभिन्न देशों में भारतीय तथा पाश्चात्य दर्शन पर भाषण देने के लिए उन्हें आमंत्रित किया गया। श्रोता तो उनके भाषणों से मंत्रमुग्ध ही रह जाते थे। डॉ. राधाकृष्णन में विचारों, कल्पना तथा भाषा द्वारा विचित्र ताना-बाना बुनने की अदभुत क्षमता थी। वस्तुतः उनके प्रवचनों की वास्तविक महत्ता उनके अन्तर में निवास करती थी, जिसकी व्याख्या नहीं की जा सकती है। उनकी यही आध्यात्मिक शक्ति सबको प्रभावित करती थी, अपनी ओर आकर्षित करती थी और संकुचित क्षेत्र से उठाकर उन्मुक्त वातावरण में ले जाती थी। हाजिर जवाबी में तो डॉ. राधाकृष्णन गजब के थे। एक बार वह इंग्लैण्ड गए। विश्व में उन्हें हिन्दुत्व के परम् विद्वान के रूप में जाना जाता था। तब देश परतंत्र था। बड़ी संख्या में लोग उनका भाषण सुनने के लिए आए थे। भोजन के दौरान एक अंग्रेज ने डॉ. राधाकृष्णन से पूछा, 'क्या हिन्दू नाम का कोई समाज है ? कोई संस्कृति है ? तुम कितने बिखरे हुए हो ? तुम्हारा एक सा रंग नहीं, कोई गोरा, कोई काला, कोई बौना, कोई धोती पहनता है, कोई लुंगी कोई कुर्ता तो कोई कमीज, देखो, हम अंग्रेज एक जैसे हैं सब गोरे-गोरे, लाल-लाल। इस पर डॉ. राधाकृष्णन ने तपाक से उत्तर दिया, 'घोड़े अलग-अलग रंग रूप के होते हैं, पर गधे एक जैसे होते हैं। अलग-अलग रंग और विविधता विकास के लक्षण है। गीता में प्रतिपादित कर्मयोग के सिद्धान्तों के अनुसार वे एक निर्विवाद निष्काम कर्मयोगी थे। भारतीय संस्कृति के उपासक तथा राजनीतिज्ञ। इन दोनों ही रूपों में उन्होंने यह प्रयत्न किया कि वह सम्पूर्ण मानव समाज का प्रतिनिधित्व कर सकें और विश्व के नागरिक कहे जा सके। वह एक महान शिक्षाविद थे और शिक्षक होने का उन्हें गर्व था। उन्होंने अपने राष्ट्रपतित्व काल में अपने जन्म दिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की इच्छा प्रकट की थी। तभी 5 सितम्बर को 'शिक्षक दिवस' के रूप में मनाया जाता है। डॉ. राधाकृष्णन गौतम बुद्ध की तरह हृदय में अपार करूणा लेकर आए थे। उनका दीप्तिमय तथा उज्ज्वल आलोक, भारत के आकाश में तो फैला ही, विश्व की धरती भी उनकी रश्मियों के स्पर्श से धन्य हो गई। पूर्ण आयु एवं यशस्वी जीवन का लाभ प्राप्त करने के बाद, 17 अप्रैल, 1975 को ब्रह्मलीन हो गए। कठिन से कठिन परिस्थितियों में, निष्काम एवं समर्पण भाव से कर्म करने के मार्ग को डॉ. राधाकृष्णन, पुरुषार्थ का प्रशस्त मार्ग बताते थे। सदैव परमात्मा को स्मरण रखने का अर्थ ही विश्व सत्ता के साथ स्वयं को जोड़े रखना है। समष्टि की चेतना से अपने को जोड़े रखना, जिससे व्यष्टि का अभिमान कंधे पर सवार न होने पाए और अपने कर्तव्य को प्रभु की विधि मानना भी सक्रिय विसर्जन का मार्ग प्रशस्त करने के लिए है। डॉ. राधाकृष्णन हिन्दुस्तान के साधारण आदमी के विश्वास, समझदारी, उदारता, कर्तव्यपरायणता, सनातन मंगल भावना, ईमानदारी और सहजता इन सबके आकार प्रतिबिम्ब थे। उन्हें बड़े देश का प्रथम नागरिक होने का बोध और अधिक विनम्र बनाता था। उन्हें ऊँचे से ऊँचे पद ने और अधिक सामान्य बनाया तथा राजनीति के हर दाव-पेंच ने और अधिक निश्चल बनाया।

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महान शिक्षाविद डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन – जीवन परिचय.

Last Updated: September 10, 2021 By Gopal Mishra 47 Comments

Dr. Sarvepalli Radhakrishan Essay & Biography in Hindi

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जीवनी व निबंध .

महान शिक्षाविद, महान दार्शनिक, महान वक्ता, विचारक एवं भारतीय संस्कृति के ज्ञानी डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। भारत को शिक्षा के क्षेत्र में नई ऊँचाइयों पर ले जाने वाले महान शिक्षक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन प्रतिवर्ष 5 सितंबर को शिक्षकों के सम्मान के रूप में सम्पूर्ण भारत में मनाया जाता है।

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Dr. Sarvepalli Radhakrishan Essay & Biography in Hindi

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन

बचपन से किताबें पढने के शौकीन राधाकृष्णन का जन्म तमिलनाडु के तिरुतनी गॉव में 5 सितंबर 1888 को हुआ था। साधारण परिवार में जन्में राधाकृष्णन का बचपन तिरूतनी एवं तिरूपति जैसे धार्मिक स्थलों पर बीता । वह शुरू से ही पढाई-लिखाई में काफी रूचि रखते थे, उनकी प्राम्भिक शिक्षा क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल में हुई और आगे की पढाई मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में पूरी हुई। स्कूल के दिनों में ही डॉक्टर राधाकृष्णन ने बाइबिल के महत्त्वपूर्ण अंश कंठस्थ कर लिए थे , जिसके लिए उन्हें विशिष्ट योग्यता का सम्मान दिया गया था।

कम उम्र में ही आपने स्वामी विवेकानंद और वीर सावरकर को पढा तथा उनके विचारों को आत्मसात भी किया। आपने 1902 में मैट्रिक स्तर की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और छात्रवृत्ति भी प्राप्त की । क्रिश्चियन कॉलेज, मद्रास ने भी उनकी विशेष योग्यता के कारण छात्रवृत्ति प्रदान की। डॉ राधाकृष्णन ने 1916 में दर्शन शास्त्र में एम.ए. किया और मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में इसी विषय के सहायक प्राध्यापक का पद संभाला।

डॉ. राधाकृष्णन के नाम में पहले सर्वपल्ली का सम्बोधन उन्हे विरासत में मिला था। राधाकृष्णन के पूर्वज ‘सर्वपल्ली’ नामक गॉव में रहते थे और 18वीं शताब्दी के मध्य में वे तिरूतनी गॉव में बस गये। लेकिन उनके पूर्वज चाहते थे कि, उनके नाम के साथ उनके जन्मस्थल के गॉव का बोध भी सदैव रहना चाहिए। इसी कारण सभी परिजन अपने नाम के पूर्व ‘सर्वपल्ली’ धारण करने लगे थे।

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डॉक्टर राधाकृष्णन पूरी दुनिया को ही एक विद्यालय के रूप में देखते थे । उनका विचार था कि शिक्षा के द्वारा ही मानव मस्तिष्क का सही उपयोग किया जा सकता है। अत: विश्व को एक ही इकाई मानकर शिक्षा का प्रबंधन करना चाहिए।

अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से भारतीय दर्शन शास्त्र कों विश्व के समक्ष रखने में डॉ. राधाकृष्णन का महत्त्वपूर्ण योगदान है। सारे विश्व में उनके लेखों की प्रशंसा की गई। किसी भी बात को सरल और विनोदपूर्ण तरीके से कहने में उन्हें महारथ हांसिल था , यही कारण है की फिलोसोफी जैसे कठिन विषय को भी वो रोचक बना देते थे। वह नैतिकता व आध्यात्म पर विशेष जोर देते थे; उनका कहना था कि, “आध्यात्मक जीवन भारत की प्रतिभा है।“

1915 में डॉ.राधाकृष्णन की मुलाकात महात्मा गाँधी जी से हुई। उनके विचारों से प्रभावित होकर राधाकृष्णन ने राष्ट्रीय आन्दोलन के समर्थन में अनेक लेख लिखे। 1918 में मैसूर में वे रवीन्द्रनाथ टैगोर से मिले । टैगोर ने उन्हें बहुत प्रभावित किया , यही कारण था कि उनके विचारों की अभिव्यक्ति हेतु डॉक्टर राधाकृष्णन ने 1918 में ‘रवीन्द्रनाथ टैगोर का दर्शन’ शीर्षक से एक पुस्तक प्रकाशित की। वे किताबों को बहुत अधिक महत्त्व देते थे, उनका मानना था कि, “पुस्तकें वो साधन हैं जिनके माध्यम से हम विभिन्न संस्कृतियों के बीच पुल का निर्माण कर सकते हैं।“ उनकी लिखी किताब ‘द रीन आफ रिलीजन इन कंटेंपॅररी फिलॉस्फी’ से उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली ।

गुरु और शिष्य की अनूठी परंपरा के प्रवर्तक डॉ.राधाकृष्णन अपने विद्यार्थियों का स्वागत हाँथ मिलाकर करते थे। मैसूर से कोलकता आते वक्त मैसूर स्टेशन डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जय-जयकार से गूँज उठा था। ये वो पल था जहाँ हर किसी की आँखे उनकी विदाई पर नम थीं। उनके व्यक्तित्व का प्रभाव केवल छात्राओं पर ही नही वरन देश-विदेश के अनेक प्रबुद्ध लोगों पर भी पङा। रूसी नेता स्टालिन के ह्रदय में फिलॉफ्सर राजदूत डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के प्रति बहुत सम्मान था। राष्ट्रपति के पद पर रहते हुए डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन अनेक देशों की यात्रा किये। हर जगह उनका स्वागत अत्यधिक सम्मान एवं आदर से किया गया। अमेरिका के व्हाईट हाउस में अतिथी के रूप में हेलिकॉप्टर से पहुँचने वाले वे विश्व के पहले व्यक्ति थे।

डॉ. राधाकृष्णन ने कई विश्वविद्यालयों को शिक्षा का केंद्र बनाने में अपना योगदान दिया। वे देश की तीन प्रमुख यूनिवर्सिटीज में कार्यरत रहे :

  • 1931 -1936 :वाइस चांसलर , आंध्र प्रदेश विश्वविद्यालय
  • 1939 -1948 : चांसलर , बनारस के हिन्दू विश्वविद्यालय
  • 1953 – 1962 :चांसलर ,दिल्ली विश्वविद्यालय

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की प्रतिभा का ही असर था कि, उन्हें स्वतंत्रता के बाद संविधान निर्मात्री सभा का सदस्य बनाया गया। 1952 में जवाहरलाल नेहरू के आग्रह पर राधाकृष्णन सोवियत संघ के विशिष्ट राजदूत बने और इसी साल वे उपराष्ट्रपति के पद के लिये निर्वाचित हुए।

1954 में उन्हें भारत के सबसे बड़े नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

1962 में राजेन्द्र प्रसाद का कार्यकाल समाप्त होने के बाद राधाकृष्णन ने राष्ट्रपति का पद संभाला। 13 मई, 1962 को 31 तोपों की सलामी के साथ ही डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की राष्ट्रपति के पद पर ताजपोशी हुई।

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प्रसिद्द दार्शनिक बर्टेड रसेल ने डॉ राधाकृष्णन के राष्ट्रपति बनने पर कहा था – “यह विश्व के दर्शन शास्त्र का सम्मान है कि महान भारतीय गणराज्य ने डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को राष्ट्रपति के रूप में चुना और एक दार्शनिक होने के नाते मैं विशेषत: खुश हूँ। प्लेटो ने कहा था कि दार्शनिकों को राजा होना चाहिए और महान भारतीय गणराज्य ने एक दार्शनिक को राष्ट्रपति बनाकर प्लेटो को सच्ची श्रृद्धांजलि अर्पित की है।“

बच्चों को भी इस महान शिक्षक से विशेष लगाव था , यही कारण था कि उनके राष्ट्रपति बनने के कुछ समय बाद विद्यार्थियों का एक दल उनके पास पहुंचा और उनसे आग्रह किया कि वे ५ सितम्बर उनके जन्मदिन को टीचर्स डे यानि शिक्षक दिवस के रूप में मनाना चाहते हैं। डॉक्टर राधाकृष्णन इस बात से अभिभूत हो गए और कहा, ‘मेरा जन्मदिन ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाने के आपके निश्चय से मैं स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करूँगा।’  तभी से 5 सितंबर देश भर में शिक्षक दिवस या Teachers Day के रूप में मनाया जा रहा है।

डॉ. राधाकृष्णन 1962 से 1967 तक भारत के राष्ट्रपति रहे , और कार्यकाल पूरा होने के बाद मद्रास चले गए। वहाँ उन्होंने पूर्ण अवकाशकालीन जीवन व्यतीत किया। उनका पहनावा सरल और परम्परागत था , वे अक्सर सफ़ेद कपडे पहनते थे और दक्षिण भारतीय पगड़ी का प्रयोग करते थे। इस तरह उन्होंने भारतीय परिधानों को भी पूरी दुनिया में पहचान दिलाई। डॉ राधाकृष्णन की प्रतिभा का लोहा सिर्फ देश में नहीं विदेशों में भी माना जाता था। विभिन्न विषयों पर विदेशों में दिए गए उनके लेक्चर्स की हर जगह प्रशंशा होती थी ।

अपने जीवन काल और मरणोपरांत भी उन्हें बहुत से सम्मानो से नवाजा गया , आइये उनपे एक नज़र डालते हैं :

1931: नाइट बैचलर / सर की उपाधि , आजादी के बाद उन्होंने इसे लौटा दिया 1938: फेलो ऑफ़ दी ब्रिटिश एकेडमी . 1954: भारत रत्न 1954: जर्मन “आर्डर पौर ले मेरिट फॉर आर्ट्स एंड साइंस ” 1961: पीस प्राइज ऑफ़ थे जर्मन बुक ट्रेड . 1962: उनका जन्मदिन ५ सितम्बर शिक्षक दिवस में मानाने की शुरुआत 1963: ब्रिटिश आर्डर ऑफ़ मेरिट . 1968: साहित्य अकादमी फ़ेलोशिप , डॉ राधाकृष्णन इसे पाने वाले पहले व्यक्ति थे 1975: टेम्प्लेटों प्राइज ( मरणोपरांत ) 1989: ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा उनके नाम से Scholarship की शुरुआत

“ मौत कभी अंत या बाधा नहीं है बल्कि अधिक से अधिक नए कदमो की शुरुआत है।” ऐसे सकारात्मक विचारों को जीवन में अपनाने वाले असीम प्रतिभा का धनी सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन लम्बी बीमारी के बाद 17 अप्रैल, 1975 को प्रातःकाल इहलोक लोक छोङकर परलोक सिधार गये। देश के लिए यह अपूर्णीय क्षति थी। परंतु अपने समय के महान दार्शनिक तथा शिक्षाविद् के रूप में वे आज भी अमर हैं। शिक्षा को मानव व समाज का सबसे बड़ा आधार मानने वाले डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन का शैक्षिक जगत में अविस्मरणीय व अतुलनीय योगदान सदैव अविस्मरणीय रहेगा। उनके अमुल्य विचार के साथ अपनी कलम को यहीं विराम देते हैं। सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन का कहना है कि,

जीवन का सबसे बड़ा उपहार एक उच्च जीवन का सपना है.

Anita Sharma Voice For Blind

अनिता जी दृष्टिबाधित लोगों की सेवा में तत्पर हैं। उनके बारे में अधिक जानने के लिए पढ़ें –  नेत्रहीन लोगों के जीवन में प्रकाश बिखेरती अनिता शर्मा और  उनसे जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

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dr radhakrishnan essay in hindi

August 8, 2019 at 10:13 am

bahut hi achha laga do. radhakrshin ka jivan introduction thanks

dr radhakrishnan essay in hindi

September 5, 2018 at 10:30 am

bhut hi gyanbardhak hai.

dr radhakrishnan essay in hindi

September 4, 2018 at 4:28 pm

बहूत ही अच्छी पोस्ट और पूरी knowledge शेयर की है डॉ.राधाकृष्णन का जीवन परिचय को पढ़कर अच्छा लगा

September 3, 2018 at 7:52 pm

Dr sarvepali radakrishnan ke janam divs ke bare me jivni Jane eskeliye apko dhanevadh

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डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जीवनी Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Biography in Hindi

इस पृष्ट में आप डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जीवनी (Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Biography in Hindi) पढेंगे। इसमें हमने उनके जन्म, विद्यार्थी, राजनीति और निजी जीवन, पुरस्कार और मृत्यु से जुडी सभी जानकारियाँ दी है।

क्या आप जानते हैं डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन कौन थे? Do you want to read Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Biography Hindi language?

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कौन थे डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी? Who was Dr. Sarvepalli Radhakrishnan?

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति और द्वितीय राष्ट्रपति थे। वो एक आदर्श शिक्षक, महान दार्शनिक और हिंदू विचारक थे। उनके श्रेष्ठ गुणों के कारण भारत सरकार ने सन 1954 में आपको देश के सर्व्वोच सम्मान “भारत रत्न” से सम्मानित किया। वो यह पुरस्कार पाने वाले देश के पहले व्यक्ति थे। आपका जन्मदिन 5 सितंबर को होता है जो पूरे देश में “शिक्षक दिवस” के रूप में मनाया जाता है।

आईये शुरू करते हैं डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी की जीवनी (Dr Sarvepalli Radhakrishnan Biography in Hindi) . . .

सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का जन्म और प्रारंभिक जीवन Birth and Early Life

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरूतनी ग्राम (मद्रास) में एक ब्राहमण परिवार में हुआ था। उनके पुरखे सर्वपल्ली नामक गाँव में रहते थे इसलिए राधाकृष्णन के परिवार के सभी लोग अपने नामो के आगे सर्वपल्ली उपनाम लगाते थे। आपके पिता का नाम ‘सर्वपल्ली वीरास्वामी’ और माता का नाम ‘सीताम्मा’ था। राधाकृष्णन के 4 भाई और 1 बहन थी।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का विद्दार्थी जीवन Student life of Dr. S. Radhakrishnan

राधाकृष्णन बचपन से ही मेधावी छात्र थे। उनको क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल, तिरूपति में 1896-1900 के मध्य पढ़ने के लिए भेजा गया। मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज, मद्रास से उन्होंने स्नातक की शिक्षा प्राप्त की।

स्नातक की परीक्षा 1904 में कला वर्ग में प्रथम श्रेणी में पास की। मनोविज्ञान, इतिहास और गणित विषय में विशेष योग्यता प्राप्त की। उन्होंने “बाईबिल” का अध्ययन भी किया। क्रिश्चियन कॉलेज में आपको छात्रवृत्ति मिली।

1916 में राधाकृष्णन ने दर्शनशास्त्र में एम० ए० किया और मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक पद पर नौकरी पा ली। अपने लेखो के द्वारा पूरी दुनिया को भारतीय दर्शन शास्त्र से परिचित करवाया।

राधाकृष्णन जी वैवाहिक जीवन Marital life of Radhakrishnan Ji

उस जमाने में कम उम्र में शादियाँ होती थी। 1903 में 16 वर्ष की कम आयु में ही उनका विवाह ‘सिवाकामू’ से हो गया। उस समय उनकी पत्नी की आयु मात्र 10 वर्ष की थी। उनको तेलुगु भाषा का अच्छा ज्ञान था। वह अंग्रेजी भाषा भी जानती थी। 1908 में राधाकृष्णन दम्पति को एक पुत्री का जन्म हुआ।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का राजनितिक जीवन Dr. Sarvepalli Radhakrishnan’s Political life

1947 में अपने ज्ञान और प्रतिभा के कारण डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन को संविधान निर्मात्री सभा का सदस्य बनाया गया। उनको अनेक विश्वविद्दालय का चेयरमैन बनाया गया।

पंडित जवाहरलाल नेहरु 14 -15 अगस्त की रात्रि 12 बजे आजादी की घोषणा करने वाले थे पर इसकी जानकरी सिर्फ राधाकृष्णन को थी। वे एक गैर परम्परावादी राजनयिक थे। जो मीटिंग देर रात तक चलती थी उसने डॉ॰ राधाकृष्णन रात 10 बजे तक ही हिस्सा लेते थे क्यूंकि उनके सोने का वक्त हो जाता था।

उपराष्ट्रपति के पद पर कार्यकाल Appointed as Vice President of India

1952 में सोवियत संघ बनने के बाद डॉ॰ राधाकृष्णन को संविधान के अंतर्गत उपराष्ट्रपति का एक नया पद सृजित करके उपराष्ट्रपति बनाया गया। पंडित नेहरु ने उनको यह पद देकर सभी को चौंका दिया। सभी लोग सोच रहे थे की कांग्रेस पार्टी का कोई नेता उपराष्ट्रपति बनेगा।

सभी लोगो को उनके कार्य को लेकर संशय था, पर डॉ॰ राधाकृष्णन ने कुशलतापूर्वक अपना कार्य किया। संसद में सभी सदस्यों ने उनके काम की सराहना की। इनके विनोदी स्वभाव के कारण लोग आज भी इनको याद करते है।

भारत के द्वितीय राष्ट्रपति के रूप में कार्यकाल Elected as Second President of India

सन 1962–1967 तक डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने भारत के द्वितीय राष्ट्रपति के रूप में कार्यकाल संभाला।

विश्व के जाने-माने दार्शनिक बर्टेड रसेल ने डॉ० राधाकृष्णन के राष्ट्रपति बनने पर अपनी प्रतिक्रिया इस तरह दी –

“यह विश्व के दर्शन शास्त्र का सम्मान है कि महान् भारतीय गणराज्य ने डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को राष्ट्रपति के रूप में चुना और एक दार्शनिक होने के नाते मैं विशेषत: खुश हूँ। प्लेटो ने कहा था कि दार्शनिकों को राजा होना चाहिए और महान् भारतीय गणराज्य ने एक दार्शनिक को राष्ट्रपति बनाकर प्लेटो को सच्ची श्रृद्धांजलि अर्पित की है”

सप्ताह में 2 दिन कोई भी व्यक्ति बिना किसी अपोइंटमेंट के उनसे मिल सकता था। भारत के दूसरे राष्ट्रपति बनने के बाद डॉ० राधाकृष्णन हेलिकॉप्टर से अमेरिका के व्हाईट हाउस पहुंचे। इससे पहले कोई भी व्हाईट हाउस में हेलीकॉप्टर से नही गया था।

मानद उपाधियाँ Doctorate Degrees Awarded

अमेरिका और यूरोप प्रवास से लौटने पर देश के अनेक प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों ने आपको मानद उपाधि देकर उनकी विद्वता का सम्मान किया –

  • सन् 1931 से 36 तक आन्ध्र विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर रहे।
  • ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में 1936 से 1952 तक प्राध्यापक रहे।
  • कलकत्ता विश्वविद्यालय के अन्तर्गत आने वाले जॉर्ज पंचम कॉलेज के प्रोफेसर के रूप में 1937 से 1941 तक कार्य किया।
  • सन् 1939 से 48 तक काशी हिंदू  विश्वविद्यालय के चांसलर रहे।
  • 1946 में यूनेस्को में भारतीय प्रतिनिधि के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
  • 1953 से 1962 तक  दिल्ली विश्वविद्यालय के चांसलर रहे।

भारत रत्न एवं अन्य पुरस्कार Bharat Ratna and Other Awards

ब्रिटिश सरकार ने 1913 में डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन  को “सर” की उपाधि प्रदान की। 1954 में उपराष्ट्रपति बनने पर आपको भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने देश का सर्वोच्च्य सम्मान “भारत रत्न” से पुरस्कृत किया गया। 1975 में आपको अमेरिकी सरकार द्वारा टेम्पलटन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस पुरस्कार को पाने वाले वह पहले गैर- ईसाई व्यक्ति है।

मृत्यु Death

डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की मृत्यु 17 अप्रैल 1975 को एक लम्बी बिमारी के बाद हुई। शिक्षा के क्षेत्र में उनका योगदान हमेशा सराहा जाएगा। उनको सम्मान देने के लिए हर साल 5 सितंबर को “शिक्षक दिवस” पूरे देश में मनाया जाता है। इस दिन देश के श्रेष्ठ शिक्षको को सम्मानित किया जाता है।

शिक्षक दिवस का उत्सव Teachers Day Celebration

आपके जन्मदिन के अवसर पर हर साल 5 सितंबर को “शिक्षक दिवस” मनाया जाता है। वो शिक्षा को नियमो में नही बांधना चाहते थे। खुद एक शिक्षक होने पर भी वो विश्वविद्यालय में अपनी कक्षा में कभी देर से आते तो कभी जल्दी चले जाते। उनका कहना था की जो लेक्चर उनको देना था उसके लिए 20 मिनट का समय ही पर्याप्त है। वो सभी छात्र छात्राओं के प्रिय थे।

डॉ. राधाकृष्णन के अनमोल विचार Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Quotes in Hindi

  •        ज्ञान हमे शक्ति देता है, प्रेम हमे परिपूर्णता देता है।
  •        शिक्षा का परिणाम एक मुक्त रचनात्मक व्यक्ति होना चाहिये जो ऐतिहासिक परिस्थितियों और प्राकृतिक आपदाओं के विरुद्ध लड़ सके।
  •        पुस्तकें वह साधन हैं जिनके माध्यम से हम विभिन्न संस्कृतियों के बीच पुल का निर्माण कर सकते हैं।
  •        किताबें पढ़ने से हमें एकांत में विचार करने की आदत और सच्ची खुशी मिलती है।
  •         शिक्षक वह नहीं जो छात्र के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूंसे, बल्कि वास्तविक शिक्षक तो वह है जो उसे आने वाले कल की चुनौतियों के लिए तैयार करें।
  •        भगवान की पूजा नहीं होती बल्कि उन लोगों की पूजा होती है जो उनके नाम पर बोलने का दावा करते हैं।

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श्री डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के विषय में कुछ महत्वपूर्ण बातें interesting facts regarding dr. sarvapalli radhakrishnan.

  • शिक्षा के क्षेत्र में उन्हें बहुत ही उच्च पुरस्कार “भारत रत्न” से नवाज़ा गया है।
  • 1931 में उन्हें राजा जॉर्ज भी से उन्हें टेम्पलटन पुरस्कार (Templeton Prize) दिया था हलाकि उस स्कोलोर्शिप की पूरी राशी को ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी को दान कर दिया
  • उनके आखरी समय 1975 में डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को।
  • उनके पिताजी उनकी शिक्षा का विरोध करते थे। तमिलनाडू और अन्द्रप्रदेश बॉर्डर के एक गाँव वे रहते थे। अत्यधिक गरीबी के कारण उनके पिता चाहते थे की उनका बेटा पढाई ना करके मंदिर में पुजारी बने। डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी तिरुथानी के स्कूल में पढने लगे और वे वहां पर सबसे अच्छा पढाई करते थे।
  • मैसूर यूनिवर्सिटी में अपने शिक्षण के बाद, जब डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी अपने दुसरे लेक्चर के लिए कलकत्ता जा रहे थे तो यूनिवर्सिटी के बच्चों ने राधाकृष्णन जी को फूलों की सवारी में रेलवे स्टेशन पहुँचाया।
  • 20वीं सदी के सबसे नामी अंग्रेजी के विद्यार्थी H.N Spalding उनके बहुत ही अच्छे प्रसंशक बन गए जब उन्होंने इंग्लैंड में अपना स्पीच दिया साथ ही उनके सकारात्मक विचारों से उनको बहुत प्रेरणा भी मिली। इसीलिए उन्होंने विश्व के सबसे बड़े यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऑक्सफ़ोर्ड में डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को जगह भी दिया, पूर्वी धर्म और नैतिकता के सम्मान में।
  • कहा जाता है लन्दन में एक रात्रि के खाने के समय एक ब्रिटिश नागरिक नें टिप्पणी किया की भारतीय काली चमड़ी के होते हैं। यह सुन कर डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी नें धीरे से उत्तर दिया – भगवान नें एक बार एक ब्रेड के टुकड़े को पकाया, जो जरूरत से ज्यादा पक गया, वो नीग्रो कहलाते हैं। उसके बाद भगवान नें दोबारा एक ब्रेड को पकाया इस बार कुछ अधपका पका, वो कहलाते हैं यूरोपियन। उसके बाद भगवान् नें सही तरीके से सही समय तक उस ब्रेड को पकाया जो अच्छे तरीके से पका उन्हें कहते हैं भारतीय।
  • दावा किया जाता है कि जब संसद भवन में दो राजनीतिक पार्टियों के बिच गरम माहोल रहता था या उनमें बहस छिड जाता था Dr. Radhakrishnan उन्हें बहुत ही आसानी से संभाल लेते थे और शांति की बाते किया करते थे। उन्होंने कहा कि भगवद गीता या बाइबिल से छंद सुनाना भीड़ के भीतर अनुशासन पैदा करने के लिए होता है। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जी कहना था कि Dr. Radhakrishnan हमेशा संसदीय सत्र को पारिवारिक सभा में बदल देते थे।

Featured Image – File:Madapati with Dr. Sarvepalli Radhakrishnan (Wikimedia)

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12 Comments

Bahut he acche baat hai sir

Nice statement

Thanku sooo much speech bahut bada hai aur. achha bhi

Dr sarve palli Radha Krishnan me bare me ho game jankariya diye

He is best jivni

Dr sarve palli Radha krishnan’s speech is impressed the people of indian democracy and wil thanks to indian politics for selection of the day for this.

Happy teachers day

Thanks for speech,

Thanku soo much speech bahut he acche baat hai sir.

Bahut Sundar jankari Dene ke liye dhanyavaad sir ji

Ye speech meri beti ko bohuth kaam ayaa Thank you so much

bahut acchi speech he. Thank you so much.

dr radhakrishnan essay in hindi

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन पर निबंध (Dr Sarvepalli Radhakrishnan Essay In Hindi)

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन पर निबंध (Dr Sarvepalli Radhakrishnan Essay In Hindi)

आज   हम डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन पर निबंध (Essay On Dr Sarvepalli Radhakrishnan In Hindi) लिखेंगे। डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन पर लिखा यह निबंध बच्चो (kids) और class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए लिखा गया है।

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन पर लिखा हुआ यह निबंध (Essay On Doctor Sarvepalli Radhakrishnan In Hindi) आप अपने स्कूल या फिर कॉलेज प्रोजेक्ट के लिए इस्तेमाल कर सकते है। आपको हमारे इस वेबसाइट पर और भी कई विषयो पर हिंदी में निबंध मिलेंगे , जिन्हे आप पढ़ सकते है।

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन पर निबंध (Doctor Sarvepalli Radhakrishnan Essay In Hindi)

भारत में शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म दिन 5 सितंबर को मनाया जाता है। उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। 2021 में सर्वपल्ली राधाकृष्णन की 59 वी जयंती मनाई गयी।

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की शिक्षा के क्षेत्र में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यही वजह है कि इनके जन्मदिन को देशवासी शिक्षक दिवस के रूप में मनाते हैं। इनका जन्म 5 सितंबर 1888 को हुआ था। डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक शिक्षक होने के साथ ही एक दार्शनिक और विद्वान भी थे। इन्होंने युवाओं को आगे बढ़ने के लिए काफी प्रोत्साहित किया। आज सभी छात्रो के लिए डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक प्रेरणा के स्रोत है।

पारिवारिक पृष्ठभूमि

तमिलनाडु में 5 सितंबर 1888 को जन्मे डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म स्थान तिरुत्तनी है। इनके पिता का नाम सर्वपल्ली वीरस्वामी और माता का नाम सीताम्मा था। डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का विवाह शिवकामु से हुआ और वे पांच बेटियों और एक बेटे के पिता थे।

महान शिक्षक डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की शैक्षिक योग्यता

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के शैक्षणिक समय में उन्हें कई छात्रवृत्तिओ से सम्मानित किया गया। डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने वेल्लोर में वूरहिस कॉलेज में दाखिला लिया था , लेकिन बाद में वे 17 वर्ष की उम्र में मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में पढ़ने चले गए।

1906 में इन्होंने दर्शनशास्त्र में मास्टर डिग्री अर्जित की और प्रोफेसर बन गए। वहीं 1931 में इनको नाइट की उपाधि प्रदान की गई।

सर्वपल्ली राधाकृष्णन को डॉक्टर पुकारे जाने की वजह

स्वतंत्रता प्राप्ति तक उन्हें सर्वपल्ली राधाकृष्णन के नाम से संबोधित किया जाता था , लेकिन आजादी के बाद उन्हें डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के नाम से पुकारा जाने लगा और वे एक महान शिक्षक के रूप में प्रसिद्ध हो गए। 1936 में उन्हें ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पूर्वी धर्म और नैतिकता के स्पैल्डिंग प्रोफेसर के रूप में नामित किया गया था। इसके अलावा ऑल सोल्स कॉलेज के फेलो के रूप में भी इन्हे चुना गया।

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जीवनकाल में मिले पुरस्कार

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को 1946 में संविधान सभा के लिए चुना गया। डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने यूनेस्को और बाद में मास्को में राजपूत के तौर पर कार्य किया। 1952 में ये भारत के पहले उपराष्ट्रपति बनाए गए थे। 1954 में भारत सरकार ने इन्हे देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा।

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को सन् 1961 में जर्मन बुक ट्रेड के शांति पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया था। 1963 में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को ऑर्डर ऑफ मेरिट और 1975 में टेम्पलटन पुरस्कार प्रदान किया गया। इसमें से आश्चर्यजनक बात यह थी कि डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने अपनी पुरस्कार की राशि ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी को दान स्वरूप दे दी।

शैक्षिक उपलब्धियां और नियुक्तियां

कोलकाता विश्वविद्यालय में शामिल होने के लिए डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को मैसूर विश्वविद्यालय को छोड़ना पड़ा था। इस पर मैसूर विश्वविद्यालय के छात्रों ने डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को फूलों से सजी एक गाड़ी में , उन्हें स्टेशन तक उनके सम्मान में ले गए थे।

1931 और 1936 के मध्य वे आंध्र प्रदेश विश्वविद्यालय में कुलपति बने रहे और दिल्ली विश्वविद्यालय में इन्हे 1953 से 1962 तक कुलाधिपति बनाया गया था। डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जैसे महान शिक्षक और उनके योगदान को याद रखने के लिए ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने राधाकृष्णन शेवनिंग स्कॉलरशिप और राधाकृष्णन मेमोरियल अवार्ड प्रारंभ किया।

हेल्पएज इंडिया संस्था की स्थापना

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने हेल्पएज इंडिया नामक संस्था की स्थापना की , जिसके अंतर्गत बुजुर्गों और वंचित लोगों को सहायता दी जाती है। यह एक गैर सरकारी लाभकारी संगठन है।

वेतन का एक चौथाई हिस्सा ही स्वीकार किया

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की महानता का परिचय आप ऐसे लगा सकते हैं कि , जब वे भारत के राष्ट्रपति बने तो उस दौरान उनको ₹10,000 का वेतन प्रदान किया जाता था। जिनमें से वे सिर्फ ₹2500 ही स्वीकार किया करते थे और बाकी शेष बची राशि वह हर महीने प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में जमा कर देते थे।

17 अप्रैल 1975 को डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का निधन हुआ था। उन्होंने अपने पूरे जीवन काल में देश के हित में कार्य किए और शिक्षा को बढ़ाने के लिए जीवन भर प्रयासरत रहे। ऐसे महान शिक्षक को हमें जीवन भर याद रखना चाहिए और उनसे समय – समय पर प्रेरणा लेते रहना चाहिए।

छात्रवृत्ति से लेकर राष्ट्रपति तक का सफर

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने अपने शैक्षिक जीवन काल में कई प्रकार की छात्रवृत्तियां प्राप्त की। उन्होंने तिरुपति और फिर वेल्लोर के स्कूल में अध्ययन किया था। डॉ राधाकृष्णन ने क्रिश्चियन कॉलेज , मद्रास कॉलेज से दर्शनशास्र का अध्ययन किया था। डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को भारत के इतिहास में अब तक के सबसे महान दार्शनिकों और शिक्षाविद् के रूप में जाना जाता है।

अपनी डिग्री हासिल करने के बाद वे मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्र के प्रोफेसर के तौर पर तैनात रहे। इसके बाद उन्हें मैसूर विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर बनाया गया। डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को 1962 में भारत के दूसरे राष्ट्रपति के रूप में नियुक्त किया गया। उसके बाद उन्होंने राष्ट्रपति का कार्यकाल 1967 तक संभाला था।

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की मुख्य रचनाएं

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने रविन्द्र नाथ टैगोर का दर्शन , समकालीन दर्शन में धर्म का शासन आदि के अलावा अन्य कृतियों में जीवन का हिंदू दृष्टिकोण , जीवन का एक आदर्शवादी दृष्टिकोण , कल्कि या सभ्यता का भविष्य , धर्म हमें चाहिए , गौतम बुद्ध , भारत और चीन जैसी महत्वपूर्ण रचनाएं की है।

शिक्षा के क्षेत्र में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का अतुलनीय योगदान रहा है , जोकि हमेशा अविस्मरणीय रहेगा। डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन प्रति बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे न केवल शिक्षक बल्कि विद्वान , वक्ता , प्रशासक और राजनयिक के अलावा एक देशभक्त और शिक्षा शास्त्री भी थे।

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन अपने जीवन के उत्तरार्ध में अनेक बड़े पदों पर कार्यरत रहे और शिक्षा के क्षेत्र में अपना योगदान सतत देते रहे। डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की विचारधारा थी कि यदि सही तरीके से शिक्षा दी जाए , तो समाज में व्याप्त अनेक बुराइयों को दूर किया जा सकता है।

इन्हे भी पढ़े :-

  • ए. पी. जे. अब्दुल कलाम पर निबंध (Dr. APJ Abdul Kalam Essay In Hindi)
  • राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी पर निबंध (Mahatma Gandhi Essay In Hindi)
  • पंडित जवाहरलाल नेहरू पर निबंध (Pandit Jawaharlal Nehru Essay In Hindi)
  • रबीन्द्रनाथ टैगोर पर निबंध (Rabindranath Tagore Essay In Hindi)

तो यह था डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन   पर निबंध (Dr Sarvepalli Radhakrishnan Essay In Hindi) , आशा करता हूं कि डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन पर हिंदी में लिखा निबंध (Hindi Essay On Doctor Sarvepalli Radhakrishnan) आपको पसंद आया होगा। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा है , तो इस लेख को सभी के साथ शेयर करे।

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Essay on Sarvepalli Radhakrishnan for Students and Children

500+ words essay on sarvepalli radhakrishnan.

DR. Sarvepalli Radhakrishnan was a great person. He became the first vice-president of the country and the second president of free India . Besides, before being a vice-president and president he was a philosopher , a teacher, and an author. In addition, his birthday 5th September is celebrated as Teachers day in India every year. He was among one of the great leaders of the country and due to his contribution to education his birthday is often called teachers’ day .

Essay on Sarvepalli Radhakrishnan

Life of Sarvepalli Radhakrishnan

He was born in 1888 in Madras in a very poor Brahmin Family. Due to the poor economic status of his family, he completed his studies with the help and support of scholarship. He completed his early education from various missionary schools spread across the geographical boundaries of the city. Besides, he takes much interest in philosophy and completed his bachelor’s and masters’ degrees from philosophy.

After completing his M.A. degree he started working as an assistant lecturer in the Madras Presidency College. Also, he had an interest in religious mythologies and he mastered the class Hindu philosophy such as Bhagavad Gita, Brahmasutra, Commentaries of Sankara, Upanishads, Ramanuja, and Madhava. Besides these, he mastered many other classic Hindu philosophies too.

In addition, he was well familiar with the philosophies of Jain and Buddhist . Also, he was well aware of the thinkers of the western world.

In 1918, he became a professor at the University of Mysore and soon after that, Calcutta University nominated him for the professor of philosophy. Later on his life, he was called from Oxford University to deliver lectures on Hindu Philosophy. Furthermore, after many of his hard efforts, he was able to put Indian philosophy on the world map. It is because of his attempts that the Indian Philosophy is able to put a mark on the world.

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His life after the 1930s

After the 1930s his life took many big turns and he became the vice-chancellor of many Universities that includes Banaras Hindu University and Andhra University. Later on, sometime prior to Indian independence he was appointed as the ambassador of UNESCO (United Nations Educational, Scientific, and Cultural Organization). And, after independence, he became the ambassador of the Soviet Union.

Furthermore, in 1952, he became the vice-president of India and in 1954; he received the Bharat Ratna award . In addition, he served as the vice-president of India for two complete terms and in 1962 he became the President of India. He retired soon after completing his term as the President of India. He serves the country with his great work and the nobleman died in 1975.

Awards and Memorial

Besides Bharat Ratna, he also won many awards throughout his life. He won the Templeton award which he donated to Oxford University. Furthermore, he also won the Peace Prize of the German Book Trade. In order to pay him honor forever, the university started Radhakrishnan Scholarship which they later renamed as Radhakrishnan Chevening Scholarship.

To sum it up we can say that, Dr. Sarvepalli Radhakrishnan was a great man who loved to teach. For his efforts in teaching, we celebrate his birthday as Teacher’s Day in India. Besides, he was a great teacher, philosopher, and author.

Q.1 Why we celebrate 5th September as Teachers day? A.1 We celebrate teacher day on 5th September to remember the birth of our former president Dr. Sarvepalli Radhakrishnan. He was the scholar, promoter of education, and a teacher.

Q.2 How did Dr. Sarvepalli Radhakrishnan serve the country? A.2 He serves the country by educating the students, as they are the future of the country.

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Dr Sarvepalli Radhakrishnan Speech in Hindi

Dr Sarvepalli Radhakrishnan Speech in Hindi

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Speech on Dr. Sarvepalli Radhakrishnan (Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Short Speech)

सबसे पहले मैं यहां उपस्थित सभी माननीय अतिथिगण, प्रधानाचार्य एवं शिक्षकों का अभिवादन करती हूं। आज हम सभी यहां शिक्षक दिवस मनाने के लिए एकत्रित हुए हैं। आज के दिन डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का जन्म हुआ था। राधाकृष्णन जी एक महान व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति थे। वे एक व्यापक दृष्टिकोण रखने वाले, नियमों एवं सिद्धांतों को मानने वाले व्यक्ति थे।

जिसके कारण उन्हें स्वतंत्र भारत के पहले उपराष्ट्रपति के रूप में चुना गया था। राधाकृष्ण जी एक प्रख्यात शिक्षक भी थे और वह देश में शिक्षकों की भूमिका को भली-भांति समझते थे। इसलिए ही उन्होंने अपने जन्मदिन को शिक्षक दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा था। डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के कारण ही आज संपूर्ण देश में हर साल 5 सितंबर के दिन शिक्षक दिवस मनाया जाता है। शिक्षक दिवस के मौके पर मैं सभी को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए अपनी स्पीच को विराम देती हूं।

शिक्षक दिवस भाषण हिंदी में डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन पर निबंध Teacher’s Day Essay in English Teacher’s Day Speech in English शिक्षक पर 10 लाइन निबंध 10 Lines on Teacher’s Day in English शिक्षक दिवस पर निबंध Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Essay

Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Short Speech 

आज के इस शिक्षक दिवस समारोह में, मैं सभी अतिथिगणों, शिक्षकों, प्रधानाचार्य का स्वागत करती हूं। आज के दिन हमारे देश के महान विभूति डॉ श्री सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का जन्म हुआ था। राधाकृष्णन जी एक महान व्यक्तित्व के धनी और सिद्धांतों वाले इंसान थे। वे एक प्रसिद्ध शिक्षक थे। उनकी बुद्धिमता और व्यक्तित्व के कारण उन्हें स्वतंत्र भारत के पहले उपराष्ट्रपति के रूप में चुना गया था। उनका जन्म 5 सितंबर 1888 के दिन हुआ था। 

वे एक प्रसिद्ध शिक्षक और लेखक थे। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद राधाकृष्ण जी ने कई वर्षों तक मैसूर विश्वविद्यालय से लेकर कोलकाता विश्वविद्यालय के साथ विभिन्न कॉलेजों में पढ़ाया। राधाकृष्णन जी को साल 1954 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया था। सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने एक शिक्षक राजनेता और समाज सेवक के रूप में बहुत बड़ा योगदान दिया है। अपने राष्ट्रपति के कार्यकाल के दौरान भी राधाकृष्ण जी विनम्र बने रहे। वे अपने वेतन का बहुत बड़ा हिस्सा  राष्ट्रपति राहत कोष में जमा कर दिया करते थे ताकि वह देश की उन्नति में लगाया जा सके। भारत को आज राधा कृष्ण जी जैसे राजनेता ही आवश्यकता की है, जो विभिन्न क्षेत्रों में भारत की तरक्की को सुनिश्चित कर सके। इन्हीं शब्दों के साथ अब अपनी स्पीच को विराम देती हूं। आप सभी का धन्यवाद!

Dr Sarvepalli Radhakrishnan Speech in Hindi (2-minute Speech on Sarvepalli Radhakrishnan)

यहां उपस्थित सभी अतिथिगणों, प्रधानाचार्य, शिक्षकों एवं साथियों को मेरा नमस्कार। आज शिक्षक दिवस के अवसर पर हम सभी इस सभागृह में उपस्थित हुए हैं। आज का दिन बहुत खास है, क्योंकि आज शिक्षक दिवस होने के साथ-साथ महान दार्शनिक, शिक्षाविद और राजनेता डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी की जयंती भी है। जिनके जन्मदिन को ही आज टीचर्स डे के रूप में मनाया जाता है। सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का जन्म 5 सितंबर 1888 को आंध्रप्रदेश में हुआ था। राधाकृष्णन जी अपने व्यक्तित्व एवं विद्वता के लिए जाने जाते थे एक बार की बात है, डॉक्टर सर्वपल्ली जी इंग्लैंड में भारतीय दर्शन के संबंध में व्याख्यान देने पहुंचे। जहां पर बड़ी तादाद में लोग उन्हें सुनने के लिए आए थे।

व्याख्यान के दौरान जब एक अंग्रेज व्यक्ति ने राधाकृष्ण जी से पूछा की क्या हिंदू नाम का कोई समाज है? कोई संस्कृति है? तुम कितने बिखरे हुए हो, तुम्हारे एक जैसा कोई रंग नहीं है, कोई गोरा है, तो कोई काला है, कोई धोती पहनाता है, तो कोई लूंगी, कोई कुर्ता पहना है, तो कोई कमीज। देखो हम सभी अंग्रेज एक जैसे हैं, एक ही रंग के हैं और एक जैसा पहनावा पहनते हैं। यह सुनकर डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने इसके जवाब में कहा था कि घोड़े तो अलग-अलग रंग और रूप के होते हैं लेकिन गधे सभी के सभी एक जैसे ही होते हैं।

सर्वपल्ली जी बड़े कुशाग्र बुद्धि महान व्यक्तित्व के धनी थे। एक बार सर्वपल्ली जी के कुछ छात्रों एवं मित्रों ने उनका जन्मदिन मनाने का आग्रह किया तब सर्वपल्ली जी ने कहा कि इस दिन को मेरे व्यक्तिगत जन्मदिन के रूप में ना बनाकर अगर शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाएगा तो मुझे बहुत गर्व महसूस होगा उसे दिन से लेकर आज तक 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। जिससे न केवल डॉक्टर राधाकृष्णन जी को याद किया जाता है, बल्कि देश के सभी शिक्षकों के प्रति सम्मान एवं आदर व्यक्त किया जाता है। इन्हीं शब्दों के साथ अब अपनी स्पीच को विराम देती हूं, एक बार फिर से आप सभी को शिक्षक दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएं। 

Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Speech in Hindi (3-minute Speech on Sarvepalli Radhakrishnan)

माननीय अतिथिगण, मुख्याध्यापक, आदरणीय शिक्षकगण एवं मेरे प्रिय साथियों को मेरा नमस्कार! आज डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का जन्मदिन है, जो कि भारत के एक महान शिक्षक थे। सर्वपल्ली जी के जन्मदिन के अवसर पर ही शिक्षक दिवस मनाया जाता है। वे स्वतंत्र भारत के पहले उपराष्ट्रपति एवं दूसरे राष्ट्रपति रह चुके हैं। राधाकृष्णन जी ने अपने जीवन के लगभग 40 साल अध्यापन क्षेत्र में दिए थे। डॉ सर्वपल्ली जी ने राजनेता और शिक्षक के रूप में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया है। राधाकृष्णन जी ने जब अपनी शिक्षा पूरी की तो उनके पिताजी उन्हें आगे पढ़ने के बजाय मंदिर का पुजारी बनाना चाहते थे लेकिन सर्वपल्ली जी आगे पढ़ना चाहते थे। इसलिए उन्होंने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से एक छात्रवृत्ति प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत की और उसकी मदद से अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की।

साल 1906 में सर्वपल्ली जी ने प्रथम श्रेणी के साथ बी.ए पास की। राधाकृष्ण जी विज्ञान विषय से अपना पोस्ट ग्रेजुएशन करना चाहते थे लेकिन जब उन्हें अपने चचेरे भाई से दर्शनशास्त्र विषय की पाठ्य पुस्तक प्राप्त हुई तो उन्होंने दर्शनशास्त्र से अपना एम.ए पूरा किया। सर्वपल्ली जी ने कोलकाता में रविंद्र नाथ टैगोर जी के साथ भी कुछ समय व्यतीत किया था। वे नोबेल पुरस्कार विजेता टैगोर जी के संग से बहुत प्रभावित हुए थे और उन्होंने इसी दौरान अपनी पहली पुस्तक लिखने का फैसला किया। उन्होंने मैनचेस्टर कॉलेज एवं शिकागो में हॉस्टल में भी व्याख्यान दिया था इसके साथ ही उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पूर्वी धर्म के स्पैल्डिंग प्रोफेसर के तौर पर भी कार्य किया था। सन 1962 में डॉक्टर राधाकृष्णन सर्वपल्ली जी को स्वतंत्र भारत के राष्ट्रपति के रूप में चुना गया था।

अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान जब सर्वपल्ली जी के पास कुछ छात्रों ने आकर उनके जन्मदिन मनाने का अनुरोध किया तो उन्होंने अपने जन्म दिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाए जाने कब प्रस्ताव दिया था। जिसके बाद से आज तक हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। सर्वपल्ली जी के कार्यों के कारण उनका नाम लगातार पांच वर्षों तक साहित्य के नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था लेकिन उन्हें कभी भी नोबेल पुरस्कार नहीं दिया गया साल 1956 में राधा कृष्ण जी ने भारत रत्न सहित कई अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कार एवं किताब जीते थे। शिक्षा के क्षेत्र में राधा कृष्ण जी का योगदान देखते हुए सन 1931 में जॉर्ज पंचम ने उनकी सेवाओं के चलते उन्हें नाइट की उपाधि से सम्मानित किया था। राधाकृष्णन जी ने सर की उपाधि का उपयोग करना बंद कर दिया था एवं भारत के स्वतंत्रता के बाद उन्होंने अपने नाम के आगे अकादमी का शीर्षक डॉक्टर का उपयोग करना चुना था।

सन 1975 में राधा कृष्ण जी ने टेंपलटन पुरस्कार जीता था और इसकी पूरी राशि उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी को दान कर दी थी। जिसे देखते हुए ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने ‘राधाकृष्णन शेवनिंग स्कॉलरशिप’ नाम की एक छात्रवृत्ति की स्थापना भी की है। भारत का राष्ट्रपति बनने के बाद भी राधा कृष्ण जी ने अपने वेतन में से केवल बहुत थोड़े  रुपए ही स्वीकार करते थे, और शेष बची राशि को हर महीने प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में दान कर दिया करते थे। राधाकृष्णन जी जैसे राजनेता और महान व्यक्तित्व के धनी शख्सियत के कारण ही 200 साल की गुलामी के बाद भी भारत इतनी तरक्की कर पाया है। राधाकृष्णन जी के योगदान एवं सेवाओं के लिए भारत उन्हें हमेशा याद रखेगा। बस इन्हीं शब्दों के साथ अपनी स्पीच को विराम देना चाहूंगा। धन्यवाद!

हमारे सभी प्रिय विद्यार्थियों को इस “Dr Sarvepalli Radhakrishnan Speech in Hindi” जरूर मदद हुई होगी यदि आपको यह Essay on Teacher’s Day in Hindi अच्छा लगा है तो कमेंट करके जरूर बताएं कि आपको यह Dr Sarvepalli Radhakrishnan Speech in Hindi   कैसा लगा? हमें आपके कमेंट का इंतजार रहेगा और आपको अगला Essay या Speech कौन से टॉपिक पर चाहिए. इस बारे में भी आप कमेंट बॉक्स में बता सकते हैं ताकि हम आपके अनुसार ही अगले टॉपिक पर आपके लिए निबंध ला सकें.

शिक्षक दिवस भाषण हिंदी में Teacher’s Day Essay in English Teacher’s Day Speech in English शिक्षक पर 10 लाइन निबंध 10 Lines on Teacher’s Day in English शिक्षक दिवस पर निबंध Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Essay

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100, 200, 250, 300, 400 & 500 Words Essay on Dr. Sarvepalli Radhakrishnan in Hindi & English

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Table of Contents

Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Essay in English 100 words

Dr. Sarvepalli Radhakrishnan, an eminent philosopher, scholar, and teacher, was born on September 5, 1888. He was a significant figure in the field of education and served as the second president of India. Dr. Radhakrishnan played a pivotal role in shaping the educational system of India and advocated for the importance of education in the development of a nation. His philosophy was deeply rooted in Indian spirituality, and he believed in the integration of Eastern and Western philosophies. Driven by his love of knowledge and wisdom, he wrote numerous books and delivered insightful lectures on various subjects. Dr. Sarvepalli Radhakrishnan’s contributions to education and philosophy continue to inspire generations.

Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Essay in English 200 words

Dr. Sarvepalli Radhakrishnan was a distinguished Indian philosopher, statesman, and the second President of India. He was born on September 5, 1888, in Thiruttani, Tamil Nadu. Dr. Radhakrishnan played a pivotal role in shaping the educational system of India and promoting peace and mutual understanding among different cultures.

As a philosopher, Dr. Radhakrishnan made valuable contributions to reconciling Eastern and Western philosophies. His works, such as “Indian Philosophy” and “The Hindu View of Life,” are considered seminal in the field. Dr. Radhakrishnan’s teachings emphasize the importance of spiritual and moral values in one’s life, promoting the idea of universal brotherhood and harmony.

Prior to his presidency, Dr. Radhakrishnan was a renowned professor of philosophy. He held numerous esteemed positions, including Vice-Chancellor of Banaras Hindu University and the Spalding Professor of Eastern Religions and Ethics at the University of Oxford. His dedication and passion for education were evident in his efforts to promote intellectual and cultural exchange.

Dr. Sarvepalli Radhakrishnan’s contributions to India are immeasurable. He was an advocate for education as a means of social upliftment and a firm believer in the power of knowledge. His work continues to inspire generations, and his birth anniversary is celebrated as Teacher’s Day in honor of his lifelong commitment to education.

In conclusion, Dr. Sarvepalli Radhakrishnan’s life and legacy serve as an inspiration to all. His intellectual prowess, philosophical insights, and unwavering belief in education have left an indelible mark on Indian society. Dr. Radhakrishnan’s teachings continue to guide us towards a more enlightened and harmonious world.

Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Essay in English 250 words

Dr. Sarvepalli Radhakrishnan was a renowned Indian philosopher, scholar, and statesman. Born on September 5, 1888, he became the first Vice President and second President of independent India. Known for his impeccable knowledge and philosophy, he was a prominent figure in shaping modern Indian thought. Radhakrishnan’s influential works on comparative religion and philosophy garnered him international recognition.

As an academician, Dr. Radhakrishnan played a crucial role in promoting the study of Indian philosophy and culture. His commitment to education led him to become an influential professor at various universities, including the University of Oxford. His lectures and writings on the Vedanta philosophy appealed to both Eastern and Western audiences, making him an esteemed authority on Indian spirituality.

Dr. Sarvepalli Radhakrishnan’s contributions to the Indian political landscape cannot be overlooked. Serving as President of India from 1962 to 1967, he embodied integrity, wisdom, and humility. During his tenure, he emphasized the importance of education, urging the nation to focus on nurturing intellectual growth.

Furthermore, Dr. Radhakrishnan’s ardent belief in promoting peace and understanding between different cultures and religions earned him global admiration. He advocated for mutual respect and dialogue among nations, highlighting the significance of cultural diversity in building harmonious societies.

In conclusion, Dr. Sarvepalli Radhakrishnan’s significant achievements and contributions in the fields of philosophy, education, and politics make him an inspirational figure. Through his profound wisdom and extraordinary charisma, he continues to inspire and shape the minds of countless individuals. His legacy serves as a reminder of the importance of intellectual pursuit, respect for diversity, and the pursuit of peace.

Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Essay in English 300 words

Dr. Sarvepalli Radhakrishnan was a renowned Indian philosopher, statesman, and academic who served as the first Vice President of India and the second President of India. He was born on September 5, 1888, in a small village in Tamil Nadu. Dr. Radhakrishnan was known for his vast knowledge of philosophy and education, and he made significant contributions to these fields.

He began his career as a professor of philosophy and went on to become one of the most respected scholars in India. His teachings and writings on Indian philosophy played a crucial role in promoting Indian culture and heritage. Dr. Radhakrishnan’s belief in the importance of education led him to establish various institutions that focused on providing quality education for all.

As President of India, Dr. Sarvepalli Radhakrishnan was known for his humility and wisdom. He strongly believed in the power of dialogue and understanding to resolve conflicts. He worked towards fostering friendly relations with other nations and was highly respected on the international stage.

Dr. Sarvepalli Radhakrishnan’s contributions to Indian society and his immense knowledge continue to inspire generations of students and scholars. His legacy lives on, reminding us of the importance of education, philosophy, and the values he cherished. He is truly one of the greatest intellectuals that India has ever produced.

In conclusion, Dr. Sarvepalli Radhakrishnan was a visionary leader, an eminent philosopher, and a dedicated educator. His teachings and writings have left an indelible mark on Indian society and continue to be a source of inspiration for all. He will always be remembered as a great scholar and a true ambassador of Indian wisdom and culture.

Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Essay in English 400 words

Dr. Sarvepalli Radhakrishnan was a renowned Indian philosopher, scholar, and the second President of India. Born on September 5, 1888, he played a significant role in shaping the educational and intellectual landscape of the country. His contributions to the fields of philosophy and education are widely acknowledged, making him an influential figure in Indian history.

Radhakrishnan was known for his deep understanding of Indian philosophy and his ability to bridge the gap between Eastern and Western philosophical thoughts. He firmly believed that knowledge should not be confined to one particular tradition but must embrace the best of all cultures. His remarkable work in comparative religion and philosophy earned him recognition both in India and abroad.

A great advocate of education, Radhakrishnan served as the Vice Chancellor of Andhra University and later as the Vice Chancellor of Banaras Hindu University. His educational reforms laid the foundation for a more inclusive and comprehensive system of education in India. Under his leadership, Indian universities witnessed significant transformations, with an emphasis on subjects like philosophy, literature, and the social sciences.

Dr. Radhakrishnan’s love for teaching and his dedication to his students were evident in his approach as an educator. He firmly believed that teachers played a crucial role in shaping the future of the nation and that they must strive for excellence. In honor of his birthday, which falls on September 5th, Teachers’ Day is celebrated in India to acknowledge and express gratitude for the invaluable contributions of teachers to society.

Apart from his academic achievements, Dr. Sarvepalli Radhakrishnan served as the first Vice President of India from 1952 to 1962 and subsequently as President of India from 1962 to 1967. During his presidency, he made significant contributions to the field of foreign policy, particularly in strengthening India’s relationship with other nations.

Dr. Radhakrishnan’s intellectual and philosophical insights continue to inspire generations of students and scholars. His ideas about ethics, education, and the importance of an inclusive approach to knowledge remain relevant even today. His life and work are a testament to the power of education and the significance of fostering a deep understanding of different cultures and philosophies.

In conclusion, Dr. Sarvepalli Radhakrishnan was a visionary intellectual and a great philosopher who left an indelible mark on Indian history. His emphasis on knowledge, education, and a global understanding of diverse traditions continues to shape the minds of individuals worldwide. He will always be remembered as a passionate educator and a distinguished statesman who dedicated his life to the pursuit of wisdom and to the betterment of society.

Human Rights Violation Definition in Life Orientation Notes for Grades 12, 11, 10, 9, 8, 7, 6 & 5

5, 10, 15 & 20 Lines on Dr. Sarvepalli Radhakrishnan

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