Name of the Book
Total Number of Chapters
Durva
28
Bal Ram Katha
12
Vasanth
17
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9. How many chapters are available in the NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant?
The NCERT Book for Class 6 Hindi is Vasant. The book consists of chapters that help students enhance their skills involving comprehension, imagination, and vocabulary. NCERT also provides students with questions from each chapter for quick revision and thorough understanding. In order to provide students with extra assistance while answering these questions, NCERT Solutions for all 17 chapters in Class 6 Hindi Vasant are provided on the official website of Vedantu.
Essay writing definition, tips, examples, निबंध लेखन की परिभाषा, निबंध लेखन के उदाहरण.
निबंध लेखन Essay Writing in Hindi – इस लेख में हम निबंध लेखन के बारे में जानेंगे। निबंध होता क्या है? निबंध के मुख्य अंग कौन-कौन से हैं? पाठ्यक्रम में निबन्ध-लेखन को क्यों जोड़ा गया है? निबंध कितनी प्रकार के होते हैं और उन्हें लिखते समय किन विभागों में बाँटना चाहिए जिससे उन्हें लिखने में आसानी हो? निबंध को लिखते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? इन सभी प्रश्नों को जब आप अच्छे से समझ जाएँगे, तो आपको कभी भी किसी भी निबंध को लिखने में कोई भी परेशानी नहीं होगी।
निबंध की परिभाषा (definition of essay), निबंध के विषय (essay topics in hindi), निबंध के अंग (parts of an essay), निबंध के प्रकार (types of essays).
कई बार लोगों द्वारा यह प्रश्न पूछा जाता है कि आखिर निबंध क्या है? और निबंध की परिभाषा क्या है? वास्तव में निबंध एक प्रकार की गद्य रचना होती है। जिसे क्रमबद्ध तरीके से लिखा गया हो।
निबंध किसी भी विषय के मुख्य विचार और नज़रिए का एक सुव्यवस्थित रूप है । निबंध किसी एक विशेष विषय पर आधारित होता है। निबंध जानकारी, विचार या भावनाओं के संचार का एक प्रबल माध्यम है । निबंध के द्वारा व्यक्ति अपने विचारों का संचार करने में समर्थ हो सकता है। निबंध लेखन आपको एक ऐसा सुअवसर प्रदान करता है, जिससे आप अपने ज्ञान को दूसरों के सम्मुख प्रकट करते हैं। Top Related – Essays in Hindi
अपने मानसिक भावों या विचारों को संक्षिप्त रूप से तथा नियन्त्रित ढंग से लिखना ‘निबन्ध’ कहलाता है। दूसरे शब्दों में – किसी विषय पर अपने भावों को पूर्ण रूप से क्रमानुसार लिपिबद्ध करना ही ‘निबंध’ कहलाता है।
‘निबंध’ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है- नि + बंध। इसका अर्थ है भली प्रकार से बंधी हुई रचना। अर्थात वह रचना जो विचारपूर्वक, क्रमबद्ध रूप से लिखी गई हो। इसके आधार पर हम सरल शब्दों में कह सकते हैं – ‘निबंध वह गद्य रचना है, जो किसी विषय पर क्रमबद्ध रूप से लिखी गई हो।’ Top Related – Soil Pollution Essay in Hindi
साधारण रूप से निबंध के विषय परिचित विषय होते हैं, यानी जिनके बारे में हम सुनते, देखते व पढ़ते रहते हैं; जैसे – धार्मिक त्योहार, राष्ट्रीय त्योहार, विभिन्न प्रकार की समस्याएँ, मौसम आदि। जीवन के सभी क्षेत्रों में सफल विचार-विमर्श के लिए हमें श्रेष्ठ निबंध लेखन की आवश्वयकता होती है। निबंध किसी भी विषय पर लिखा जा सकता है। आज सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और वैज्ञानिक विषयों पर निबंध लिखे जा रहे हैं। संसार का हर विषय, हर वस्तु, व्यक्ति एक निबंध का केंद्र हो सकता है। हिंदी के प्रमुख साहित्यकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने निबन्ध को परिभाषित करते हुए कहा है- “निबन्ध लेखन में लेखक अपने मन की प्रवृत्ति के अनुसार स्वच्छंद गति से इधर-उधर फूटी हुई सूत्र शाखाओं पर विचरता चलता है।”
उपरोक्त परिभाषा का अर्थ है कि निबन्ध लेखक के मन की प्रवृत्ति के अनुरूप ही होना चाहिए और निबन्ध का लेखन स्वच्छन्द गति पर आधारित हो अर्थात निबंध ऐसा लिखना चाहिए कि लेखक का चिंतन, वैचारिक स्तर, विषय पर उसकी स्वयं की विचारधारा स्पष्ट हो जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त लेखक को नदी की धारा के समान बहना चाहिए, किसी अन्य के मत से प्रभावित हुए बिना। यह अत्यन्त आवश्यक है कि लेखक का व्यक्तिगत परिचय या स्वार्थ विषय-वस्तु को प्रभावित न करे। ज़रूरी नहीं कि आप जो भी लिखें वो सभी को स्वीकार्य हो, ज़रूरी ये है कि आप निष्पक्ष हो कर लिखें क्योंकि निष्पक्षता ही किसी निबंध की प्रथम और अंतिम कसौटी है। Top Related – Essay on Women Empowerment in Hindi
निबंध के चार अंग निश्चित किए गए-
(1) शीर्षक – शीर्षक आकर्षक होना चाहिए, ताकि लोगों में निबंध पढ़ने की उत्सुकता पैदा हो जाए। परन्तु यदि आप परीक्षा में बैठे हैं, तो आपको शीर्षक पहले से ही दिया गया होगा।
(2) प्रस्तावना – निबंध की श्रेष्ठता की यह नींव होती है। इसे भूमिका भी कहा जाता है। यह अत्यंत रोचक और आकर्षक होनी चाहिए परन्तु यह बहुत लम्बी नहीं होनी चाहिए। भूमिका इस प्रकार की हो जो विषयवस्तु की झलक प्रस्तुत कर सकें। जो कि पाठक को निबंध पढ़ने के लिए प्रेरित कर सके। निबंध की शुरुआत किसी सूक्ति, श्लोक या किसी उदाहरण से करनी चाहिए। अच्छी प्रभावोत्पादक पंक्तियों का प्रयोग परीक्षक पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा जिससे विद्यार्थी को अच्छे अंक प्राप्त करने में मदद मिलेगी। आकर्षक प्रारम्भ पाठक या परीक्षक के मन में निबंध को आगे पढ़ने के लिए उत्सुकता जगाता है। निबंध में विषय का संक्षिप्त परिचय और वर्तमान स्वरूप भी विद्यार्थी को भूमिका खंड में देना चाहिए। भूमिका लिखते समय यह बात ध्यान रखनी बहुत आवश्यक है कि भूमिका का विषय से सीधा जुड़ाव होना चाहिए।
(3) विषय-विस्तार – इसमें तीन से चार अनुच्छेदों में विषय के विभिन्न पहलुओं पर अपने विचार प्रकट किए जाते हैं। प्रत्येक अनुच्छेद में एक-एक पहलू पर विचार लिखा जाते है। यह निबंध का सर्वप्रमुख अंश है। इनका संतुलित होना अत्यंत आवश्यक है। यहीं निबंधकार अपना दृष्टिकोण प्रगट करता है। जब कोई निबंध लिखना हो तो रफ लिख लेना चाहिए कि, पहले क्या बताना है, फिर प्वाइंट बना लो, इसके बाद उन्हें पैराग्राफ में लिखो।
(4) उपसंहार – यह निबंध के अंत में लिखा जाता है। इस अंग में निबंध में लिखी गई बातों को सार के रूप में एक अनुच्छेद में लिखा जाता है। इसमें संदेश भी लिखा जा सकता है। उपदेश, दूसरे के विचारों को उद्घृत कर (लिख कर) या कविता की पंक्ति के माध्यम से निबंध समाप्त किया जा सकता है। Top
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निबंध के प्रकार और उन्हें किन विभागों में बाँटा जा सकता है जिससे निबंध लेखन सरल हो सके –
विषय के अनुसार प्रायः सभी निबंध तीन प्रकार के होते हैं –
(1) वर्णनात्मक – किसी सजीव या निर्जीव पदार्थ का वर्णन वर्णनात्मक निबंध कहलाता है। ये निबंध स्थान, दृश्य, परिस्थिति, व्यक्ति, वस्तु आदि को आधार बनाकर लिखे जाते हैं। वर्णनात्मक निबंध के लिए अपने विषय को निम्नलिखित विभागों में बाँटना चाहिए-
1. यदि विषय कोई ‘प्राणी’ हो – (i) श्रेणी (ii) प्राप्तिस्थान (iii) आकार-प्रकार (iv) स्वभाव (v) विचित्रता (vi) उपसंहार
2. यदि विषय कोई ‘मनुष्य’ हो – (i) परिचय (ii) प्राचीन इतिहास (iii) वंश-परंपरा (iv) भाषा और धर्म (v) सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन
3. यदि विषय कोई ‘स्थान’ हो (i) अवस्थिति (ii) नामकरण (iii) इतिहास (iv) जलवायु (v) शिल्प (vi) व्यापार (vii) जाति-धर्म (viii) दर्शनीय स्थान (ix ) उपसंहार
4. यदि विषय कोई ‘वस्तु’ हो (i) उत्पत्ति (ii) प्राकृतिक या कृत्रिम (iii) प्राप्तिस्थान (iv) किस अवस्था में पाई जाती है (v) कृत्रिमता का इतिहास (vi) उपसंहार
5. यदि विषय ‘पहाड़’ हो (i) परिचय (ii) पौधे, जीव, वन आदि (iii) गुफाएँ, नदियाँ, झीलें आदि (iv) देश, नगर, तीर्थ आदि (v) उपकरण एवं शोभा (vi) वहाँ बसनेवाले मानव और उनका जीवन
(2) विवरणात्मक – किसी ऐतिहासिक, पौराणिक या आकस्मिक घटना का वर्णन विवरणात्मक निबंध कहलाता है। यात्रा, घटना, मैच, मेला, ऋतु, संस्मरण आदि का विवरण लिखा जाता है।
विवरणात्मक निबंध लिखने के लिए दिए गए विषय को निम्नलिखित विभागों में बाँटना चाहिए-
1. यदि विषय ‘ऐतिहासिक’ हो – (i) घटना का समय एवं स्थान (ii) ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (iii) कारण, वर्णन एवं फलाफल (iv) इष्ट-अनिष्ट की समालोचना एवं आपका मंतव्य
2. यदि विषय ‘जीवन-चरित्र’ हो – (i) परिचय, जन्म, वंश, माता-पिता, बचपन (ii) विद्या, कार्यकाल, यश, पेशा आदि (iii) देश के लिए योगदान (iv) गुण-दोष (v) मृत्यु, उपसंहार (vi) भावी पीढ़ी के लिए उनका आदर्श
3. यदि विषय ‘भ्रमण-वृत्तांत’ हो – (i) परिचय, उद्देश्य, समय, आरंभ (ii) यात्रा का विवरण (iii) हानि-लाभ (iv) सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, व्यापारिक एवं कला-संस्कृति का विवरण (v) समालोचना एवं उपसंहार
4. यदि विषय ‘आकस्मिक घटना’ हो – (i) परिचय (ii) तारीख स्थान एवं कारण (iii) विवरण एवं अन्त (iv) फलाफल (v) समालोचना (व्यक्ति एवं समाज आदि पर कैसा प्रभाव ?)
(3) विचारात्मक – किसी गुण, दोष, धर्म या फलाफल का वर्णन विचारात्मक निबंध कहलाता है।
इस निबंध में किसी देखी या सुनी हुई बात का वर्णन नहीं होता; इसमें केवल कल्पना और चिंतनशक्ति से काम लिया जाता है। विचारात्मक निबंध उक्त दोनों प्रकारों से अधिक श्रमसाध्य होता है। अतएव, इसके लिए विशेष रूप से अभ्यास की आवश्यकता होती है।
विचारात्मक निबंध लिखने के लिए दिए गए विषय को निम्नलखित विभागों में बाँटना चाहिए-
(i) अर्थ, परिभाषा, भूमिका और परिचय (ii) सार्वजनिक या सामाजिक, स्वाभाविक या अभ्यासलभ्य कारण (iii) संचय, तुलना, गुण एवं दोष (iv) हानि-लाभ (v) दृष्टांत, प्रमाण आदि (vi) उपसंहार
पाठ्यक्रम में निबन्ध-लेखन को क्यों समाहित किया गया – 1. विद्यार्थी अपने विचारों को एकत्र करना सीख पाए। 2. विचारों को संतुलित तरीके से व्यक्त कर पाएं। 3. भाषा को उपयुक्त रूप से प्रयोग करना सीख पाएं। 4. किसी भी विषय पर छात्रों के स्वयं के विचार हों। 5. उनका वैचारिक स्तर निश्चित हो सके। 6. संवेदनात्मक व वैचारिक स्तर पर परिपक्व हो सके। 7. वे अपने विचारों को सकारात्मक दिशा दे पाए। 8. अपने विचारों को दृढ़ता से रखना सीख सके। 9. आलोचनात्मक दृष्टिकोण विकसित हो सके। 10. रटन्तू तोता न बन विचारशील प्राणी बन सके। Top
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निबन्ध लिखते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए- (1) निबन्ध लिखने से पूर्व सम्बन्धित विषय का पर्याप्त ज्ञान होना चाहिए। (2) क्रमबद्ध रूप से विचारों को लिखा जाये। (3) निबन्ध की भाषा रोचक एवं सरल होनी चाहिए। (4) निबन्ध के वाक्य छोटे-छोटे तथा प्रभावशाली होने चाहिए। (5) निबन्ध संक्षिप्त होना चाहिए। अनावश्यक बातें नहीं लिखनी चाहिए। (6) व्याकरण के नियमों और विरामादि चिह्नों का उचित प्रयोग होना चाहिए। (7) विषय के अनुसार निबन्ध में मुहावरों का भी प्रयोग करना चाहिए। मुहावरों के प्रयोग से निबन्ध सशक्त बनता है। (8) निबंध के विषय पर अतिरिक्त जानकारी प्राप्त करें। (9) आरंभ, मध्य अथवा अंत में किसी उक्ति अथवा विषय से संबंधित कविता की पंक्तियों का उल्लेख करें। (10) निबंध की शब्द-सीमा का ध्यान रखें और व्यर्थ की बातें न लिखें अर्थात विषय से न हटें। (11) विषय से संबंधित सभी पहलुओं पर अपने विचार प्रकट करें। (12) सभी अनुच्छेद एक दूसरे से जुड़े हों। (13) वर्तनी व भाषा की शुद्धता, लेख की स्वच्छ्ता एवं विराम-चिह्नों पर ध्यान दें।
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August 28, 2019 by Rama Krishna
CBSE Class 6 Hindi अनुच्छेद-लेखन Pdf free download is part of NCERT Solutions for Class 6 Hindi . Here we have given NCERT Class 6 Hindi Unseen Passages अनुच्छेद-लेखन.
किसी विषय के सभी बिंदुओं को अत्यंत सारगर्भित ढंग से एक ही अनुच्छेद में प्रस्तुत करने को अनुच्छेद कहा जाता है। अनुच्छेद ‘निबंध’ का संक्षिप्त रूप होता है। इसमें किसी विषय के किसी एक पक्ष पर 75 से 100 शब्दों में अपने विचार दिए जाते हैं। अनुच्छेद लिखते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए।
1. प्रार्थना प्रार्थना का सामान्य अर्थ है-किसी के प्रति श्रद्धावान रहते हुए, सच्चे शुद्ध तथा सरल मन से उद्गार प्रकट करना। यह केवल ईश्वर का ध्यान करने के लिए ही नहीं होती, बल्कि यह हमें अनुशासन भी सिखाती है। इसके अतिरिक्त प्रार्थना’ व्यक्ति की विनयशीलता, अहंकार शून्यता तथा विनम्रता का प्रतीक है। प्रार्थना का प्रभाव प्रार्थना करने वाले तथा सुनने वाले-दोनों पर पड़ता है। प्रार्थना करने से इसे करने वाले का मन पवित्र होता है तथा इससे सुनने वाले के हृदय में सहानुभूति दया और स्नेह के भाव जाग्रत होते हैं। जब हम परमात्मा से कुछ प्रार्थना करते हैं, तो ईश्वर के प्रति आस्था के भाव जाग्रत होते हैं, कभी-कभी किसी अनुचित कार्य को करने के बाद भी उसे क्षमा कर देने तथा प्रायश्चित स्वरूप प्रार्थना की जाती है। इससे व्यक्ति का अहंकार, दंश तथा नास्तिकता की भावनाओं का अंत होता है।
2. बस्ते का बोझ आज के समय में शिक्षा का पूरे देश में प्रचार-प्रसार हुआ है। शहरों में ही नहीं बल्कि गाँवों में भी बच्चे विद्यालय जा रहे हैं, किंतु यह दुर्भाग्य की बात है कि कोमल के बचपन की पीठ पर भारी-भरकम बस्ते लदे हुए हैं। इस भारी-भरकम बस्तों का बोझ होते हुए बचपन को देखना वास्तव में दुखद है। पुराने जमाने में प्राइमरी कक्षाओं की पढ़ाई तो तीन-चार किताबों से ही हो जाती थी, लेकिन आज प्राइमरी कक्षाओं में एक दर्जन से भी अधिक किताबें होती हैं, जिन्हें पीठ पर ढोकर लाना बच्चों के साथ ज्यादती है। भारी होते बस्ते की परेशानी से आज बचपन दुखी है। जरूरत है कि समय रहते हम इस समस्या को समझें और समाधान खोजें क्योंकि बस्ते का यह भारी बोझ कहीं देश के नौनिहालों के मन में शिक्षा के प्रति अरुचि न पैदा कर दे।
3. परोपकार ‘परोपकार’ दो शब्दांशों पर + उपकार से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है-दूसरे की भलाई करना। परोपकारी मनुष्य ही सच्चे अर्थों में मनुष्य है क्योंकि वह केवल अपने लिए नहीं जीता, वह पूरे समाज का भला चाहता है। संपूर्ण संसार के कल्याण में वह अपना जीवन अर्पित कर देता है। यही कारण है कि परहित अथवा परोपकार को सबसे बड़ा धर्म माना गया है। वास्तविक मनुष्य वह है जो अपने सुख से अधिक दूसरे के सुख को महत्त्व दे। मानव संस्कृति की प्राचीनता व निरंतरता का कारण परोपकार है। परोपकार प्रकृति भी करती है। नदी मानव कल्याण के लिए बहती है। वृक्ष दूसरों के लिए फल उत्पन्न करते हैं, मेघ प्राणी जगत के लिए बरसते हैं। ऋषि दधीचि, राजा शिवि, महादानी कर्ण, महात्मा बुद्ध, गांधी, लेनिन आदि ने मानव कल्याण के लिए अपना जीवन अर्पित कर दिया। अतः परोपकार में संकोच नहीं करना चाहिए। हमें व्यक्तिगत हानि-लाभ से ऊपर उठकर जन-कल्याण की भावना से कर्म करना चाहिए।
4. पढ़ेगा इंडिया, बढ़ेगा इंडिया किसी देश की उन्नति का सबसे सही माध्यम शिक्षा ही है। देश का हर नागरिक जितना अधिक शिक्षित होगा, देश उतनी ही तेज़ी से तरक्की करेगा। सरकार ने इस बात को जान लिया है, इसी कारण देश में सभी को शिक्षित व साक्षर बनाने के लिए अनकानेक योजनाएँ चलाई जा रही हैं। बच्चों के हाथों में पुस्तकें देखकर कितनी खुशी मिलती है, किंतु देश का दुर्भाग्य है कि आज भी हर बच्चों के पास पुस्तक नहीं है, पुस्तकों की जगह उनके हाथों में फावड़ा, बर्तन, कूड़े की पन्नियाँ आदि हैं। ‘बालश्रम एक अपराध है’ यह वाक्य बस कहने भर को है, सच्चाई इसके ठीक विपरीत है। आज भी धनी घरों में नन्हें हाथ मजबूरी में फ र्श पर पोंछा लगाते हुए दिखाई दे जाते हैं या जूतों की पॉलिश को चमकाते हुए। अतः हम सब यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि बिना पढ़ लिखकर देश की सही उन्नति नहीं हो सकती।।
5. परिश्रम का महत्त्व मानव जीवन में परिश्रम का अत्यधिक महत्त्व है। यह सभी प्रकार की उपलब्धि अथवा सफ लता का आधार है। परिश्रमी मनुष्यों ने मानव-जाति के उत्थान में अतीव योगदान दिया है। हमारी वैज्ञानिक उन्नति के पीछे अथक परिश्रम का बहुत बड़ा योगदान रहा है। अपने परिश्रम के सहारे मानव सुदूर अंतरिक्ष में जा पहुँचा है। अतः परिश्रम से बचने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। जिसे राष्ट्र के नागरिक परिश्रम को महत्त्व नहीं देते, वह राष्ट्र संसार के अन्य देशों से पिछड़ जाता है। यही कारण है कि हमारे महापुरुषों ने लोगों को परिश्रम करते रहने की सलाह दी है। कोई भी कार्य परिश्रम करने से ही पूरा होता है। केवल इच्छा करने से नहीं बल्कि किसी ध्येय की प्राप्ति के लिए परिश्रम करना अत्यावश्यक है।
6. मीठी वाणी का महत्त्व ‘वाणी’ ही मनुष्य को लोकप्रिय बनाती है। यदि मनुष्य मीठी वाणी बोले, तो वह सबका प्यारा बन जाता है और जिसमें अनेक गुण होते हुए भी यदि उसकी ‘बाणी’ मीठी नहीं है तो उसे कोई पसंद नहीं करता। इस उदाहरण को कोयल और कौआ के तथ्य से अच्छी तरह से समझा जा सकता है। दोनों देखने में एक समान होते हैं, परंतु कौए की कर्कश आवाज़ और कोयल की मधुर वाणी दोनों की अलग-अलग पहचान बनती है, इसलिए कौआ सबको अप्रिय और कोयल सबको प्रिय लगती है। मीठी वाणी बोलने वाले कभी क्रोध नहीं करते बल्कि प्रेम सौहार्द से समाज में मेल-जोल बढ़ाते हैं।
7. क्रिसमस ‘क्रिसमस’ ईसाइयों का प्रमुख त्योहार है। यह ईसाई धर्म के प्रवर्तक ईसा मसीह के जन्म-दिन के उपलक्ष्य में प्रतिवर्ष 25 दिसंबर को दुनियाभर में अत्यंत धूमधाम, उल्लास एवं उत्साह से मनाया जाता है। क्रिसमस की तैयारियाँ काफ़ी दिन पूर्व शुरू हो जाती हैं। इस अवसर पर ईसाई लोग नए-नए वस्त्र पहनते हैं, अपने घरों को सजाते हैं तथा अपने मित्रों एवं संबंधियों को शुभकामनाएँ तथा उपहार भेजते हैं। गिरजाघरों में विशेष प्रार्थनाएँ आयोजित की जाती हैं। ‘वेटिकन सिटी’ में ईसाइयों के सबसे बड़े धर्म गुरु ‘पोप’ लोगों को दर्शन तथा अपना संदेश देते हैं। इस अवसर पर घरों में क्रिसमस ट्री’ बनाया जाता है। बच्चे ‘सांता क्लॉज’ की प्रतीक्षा करते हैं। यह त्योहार प्रेम, शांति, क्षमा तथा भाईचारे का संदेश देता है।
8. प्रात:कालीन सैर प्रात:काल की सैर का आनंद अनूठा होता है। इस समय वातावरण शांत एवं स्वच्छ होने से तन-मन को अद्भुत शांति एवं राहत मिलती है। प्रात:कालीन की सैर से व्यक्ति निरोगी रहता है। दिन भर कार्य करने की ताकत एवं स्फूर्ति मिल जाती है। कार्य करने में मन लगता है और थकावट नहीं होती है। प्रात:कालीन सैर से अनेक रोगों का निवारण होता है। शरीर को शुद्ध, प्रदूषण रहित हवा प्राप्त होती है। पाचन शक्ति बढ़ती है। मोटापा, मधुमेह इत्यादि बीमारियों से मुक्ति मिल सकती है। अतः प्रात:काल की सैर अनेक रूपों में लाभदायक सिद्ध होती है। हमें प्रात:काल की सैर को आनंद अवश्य उठाना चाहिए।
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Understanding the basics of Hindi, Grammar, and use of Varnamala is the major area of concern for Class 6 Hindi Subject. Let us now discuss the CBSE Class 6 Hindi Syllabus with topics to be covered.
1 | वह चिड़िया जो (कविता) |
2 | बचपन (संस्मरण) |
3 | नादान दोस्त (कहानी) |
4 | चाँद से थोड़ी-सी गप्पे (कविता) |
5 | अक्षरो का महत्त्व (निबंध) |
6 | पार नजर के (कहानी) |
7 | साथी हाथ बढ़ाना – एक दौड़ ऐसी भी (केवल पढ़ने के लिए) |
8 | एस – एस (एकांकी) |
9 | टिकेट – एल्बम (कहानी) |
10 | झांसी की रानी (कविता) |
11 | जो देखकर भी नहीं देखते (निबंध) – छूना और देखना (केवल पढ़ने के लिए) |
12 | संसार पुस्तक है (पत्र) |
13 | मैं सबसे छोटी होऊं (कविता) |
14 | लोकगीत (निबंध) – दो हरियाणवी लोक गीत (केवल पढ़ने के लिए) |
15 | नोकर (निबंध) |
16 | वन के मार्ग में (कविता) |
17 | साँस – साँस मे बाँस (निबंध) – पेपरमेशी (केवल पढ़ने के लिए) |
1 | कलम | 2 | किताब |
3 | घर | 4 | पतंग |
5 | भालू | 6 | झरना |
7 | धनुष | 8 | रुमाल |
9 | कक्षा | 10 | गुब्बारा |
11 | पर्वत | 12 | हमारा घर |
13 | कपडे की दूकान | 14 | फूल |
15 | बातचीत | 16 | शिलांग से फ़ोन |
17 | तितली | 18 | ईश्वरचन्द्र विद्यासागर |
19 | प्रदर्शनी | 20 | चिट्ठी |
21 | अंगुलिमाल | 22 | यात्रा की तैयारी |
23 | हाथी | 24 | डॉक्टर के पास |
25 | जयपुर से पत्र | 26 | बढे चलो |
27 | व्यर्थ की शंका | 28 | गधा और सियार |
1 | आवध्पुरि मे राम |
2 | जंगल और जनकपुर |
3 | दो वर्दान |
4 | राम का वन-गमन |
5 | चित्रकूट में भरत |
6 | दंडक वन में दस वर्ष |
7 | सोन॓ का हिरण |
8 | सीता की खोज |
9 | राम और सुग्रीव |
10 | लंका में हनुमान |
11 | लंका विजय |
12 | राम का राज्याभिशेक |
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समय का सदुपयोग
Samay ka Sadupyog
निबंध नंबर : 01
समय एक ऐसा अमूल्य धन है जिसका लौटकर आना असंभव है। हर दिन हम अनेक वस्तुएँ खोकर पा सकते हैं, उन्हें बढ़ा सकते हैं परंतु खोया समय कभी लौट कर नहीं आता।
समय का उचित प्रयोग ही सदुपयोग है। अपने सभी कार्य सही समय पर करना व खाली समय का प्रयोग कुछ नया सीखने के लिए करना, सदुपयोग है।
समय का महत्त्व समझने पर हम निरंतर सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते जाते समय पर कार्य न करने वाले समय की तेज गति से पीछे रह जाते हैं। समय पर निकल जाने पर हाथ मलते रहने से कुछ नहीं मिलता, जैसे कहा भी गया है, ‘अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत’।
महान आविष्कारक जेम्सवाट, मैडम क्यूरी, एडीसन, सभी दिन-रात एक कर परिश्रम करते थे। सूर्य, धरती, चंद्रमा, ऋतुएँ सभी समय के अनुसार कार्य करती हैं। सही समय पर यदि कोई ऋतु न आए तो उसका भरपूर आनंद नहीं आता।
विद्यार्थी जीवन सीखने का समय है। हमें दुनिया की कई नई पुरानी बातें, ज्ञान-विज्ञान, खेल-कूद आदि सीखने हैं। अत: जो सभी समय हमारे पास है उसका सही-सही उपयोग कर ही हम पढ़ाई व अन्य क्षेत्रों में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
निबंध नंबर: 02
भूमिका- मानव जीवन में समय का बड़ा महत्त्व है। यह एक बहुमूल्य वस्तु है। बीता हुआ समय कभी लौट कर नहीं आता। क्षण-क्षण द्वारा निर्मित जीवन समय की धारा में वह जाता है। अतः जीवन के लिए एक-एक क्षण बड़ा महत्त्व रखता है। समय किसी का दास नहीं है वह अपनी गति से चलता है। समय का महत्त्व न पहचानने वाला व्यक्ति अपना ही सत्यानाश करता है। किसी ने सच ही कहा है- बीता वक्त हाथ नहीं आता।
समय एक अमूल्य धन- समय एक ईश्वरीय वरदान है। हमारा फर्ज बनता है कि सुबह उठ कर जो कार्य करना है उसको निश्चित कर लें और दिन भर कार्य करके उसे समाप्त कर डालें। विद्यालय में जो समय बचता है उसका सदुपयोग अन्य कलाओं को सीखने में व्यस्त करें। व्यर्थ की गप्पों से अपने समय को बर्बाद न करें। आज का काम कल पर नहीं छोड़ना चाहिए। समय कभी आता नहीं, यह तो जाता है। यह वह हिरण है जो एक बार हाथ से निकल गया तो लाख हरी-हरी पत्तियां दिखाने पर भी हाथ नहीं आएगा यह वह धन है जिसकी एक-एक कोड़ी करोड़ों कीमत की है। समय को खोना और जीवन से हाथ धोना एक ही बात है। भविष्य में क्या होगा, यह कहा नहीं जा सकता। इसलिए मानव को चाहिए कि वह अपने सभी कार्य नियत समय पर करता रहे।
समय एक ऐसा अमूल्य धन है जिसे खोना नहीं चाहिए। समय बहुतजल्दी व्यतीत हो जाता है। बाल्य काल म बालक नासमझ होता है। यौवन में जीवन की व्यवस्थाएं इतनी होती हैं कि वह कर्त्तव्य की ओर ध्यान ही नहीं दता और वृद्धावस्था में उसमें इतनी शक्ति नहीं होती। समय निकल जाने पर वह पश्चाताप करता है। समय को अमूल्य धन इसलिए कहा गया कि धन की हानि हो जाए तो उसकी क्षति पति हो सकती है। पर समय की हानि हो जाए तो उसकी क्षति पूर्ति नहीं हो सकती। एक बार एक मित्र ने दूसरे से पूछा कि तुम्हारे जीवन का क्या लक्ष्य है तो वह कहता है, कि मजे से समय गुजार रहे हैं। पता नहीं मजे का अर्थ वे क्या समझते हैं, पर जिसने समय के मूल्य को नहीं समझा, समझो उसने कुछ नहीं किया। इस तहरह मजे से रहने से समय गुजारना कोई महत्त्वपूर्ण बात नहीं है। कौआ भी जीता है, वह भी अपना पेट भरता है। आदर्श महापुरुषों की जीवनी पढ़िए, वे अपना एक क्षण का समय भी व्यर्थ नहीं गुजारते थे। देश-विदेश में लोग समय का कितना ध्यान रखते थे, ये उनके इतिहास से हमें ज्ञात होता है। जो समय का सदुपयोग करता है, जो सदा उद्योग में लगा रहता है, जो जीवन में देश या समाज के लिए कुछ करके दिखाता है। वह मरने पर अमर हो जाता है। महात्मा कबीर जी ने आलसी व्यक्ति को चेतावनी देते हुए कहा है- जो व्यक्ति रात सोकर, दिन खाकर गवां देते हैं। वे इस हीरे जैसे जीवन को व्यर्थ में गवां रहे हैं। इस प्रकार समय का ध्यान न रखने वाला मनुष्य पश्चाताप करता है।
सुखों की प्राप्ति- समय का सदुपयोग करने वाले को सभी सुखों की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति अपना कार्य समय पर करता है उसेकोई व्यग्रता नहीं रहती। समय पर कार्य करने वाला व्यक्ति अपना ही भला नहीं करता वरन् अपने परिवार, ग्राम तथा राष्ट्र को उन्नति में भी सहायक होता है। समय के सदुपयोग से मानव धनवान, अकलमन्द तथा शक्तिशाली हो सकता है। लक्ष्मी उसकी दासी बन जाती है। यदि ध्यानपूर्वक अपने इतिहास पर दृष्टि दौड़ाएं तो पता चलता है कि जितने भी महान् व्यक्ति हुए हैं उनकी महानता के पीछे समय का मूल मन्त्र छिपा हुआ है।
समय का प्रत्येक क्षण बहुमूल्य- समय का मूल्य समय के बीत जाने पर ज्ञात होता है। समय की एक क्षण की देर भी कभी-कभी बड़ी महंगी पड़ती है। वायुयान, रेलगाड़ी एवं बस आदि वाहन कभी भी किसी की प्रतीक्षा नहीं करते। समय के दुरुपयोग से दु:ख और दरिद्र ही हाथ लगते है। आज बहुत से नवयुवक अवकाश के दिनों में निठल्ले घर पर बैठे रहते हैं अथवा बुरी संगति में पड़ कर अपने समय को बर्बाद कर देते हैं। समय का दुरुपयोग एक पाप है जो इस पाप के कीचड़ में गिर जाता है, उसका उद्धार भी नहीं हो सकता। लखपति व्यापारी समय के चूक जाने से भिखारी बन सकता है। पाँच मिन्ट देर से स्टेशन पर पहंचने से गाड़ी छट जाती है और सारे कार्यक्रम धूल में मिल जाते हैं। देरी से गया हुआ छात्र परीक्षा में नहीं बैठ सकता। हमें सदा समय के दुरूपयोग से बचना। चाहिए।
समय का सदुपयोग वाल्यकाल से ही करना चाहिए – समय का महत्त्व समझते हुए, हमें इसका सदुपयोग। बचपन से ही करना चाहिए। हमें वाल्यकाल से ही सदुपयोग की आदत डालनी चाहिए। पढ़ने के समय पढ़ना चाहिए और खेलने के समय खेलना चाहिए। जो व्यक्ति स्वयं को दैनिक कार्यों में व्यस्त रखेगा, वह व्यक्ति कभी व्यर्थ केकामों के समय नष्ट नहीं करेगा।
उपसंहार- समय का सदपयोग प्रत्येक विद्यार्थी को नहीं अपित प्रत्येक व्यक्ति को भी करना चाहिए। जिस प्रकार तार और गोली निकल जाने पर वे वापिस नहीं आती हैं, उसी प्रकार बीता हआ समय वापिस नहीं आता है। मनुष्य का जीवन बड़ा छोटा है। इसे गंवाना नहीं चाहिए।
निबंध नंबर : 03
समय का सदुपयोग का अर्थ है-समय को बर्बाद न करना और उसे अच्छे कामों में लगाना। इसी के पालन द्वारा मानव अपने जीवन को सफल बना सकता है। विद्यार्थियों पुजारी होने से वे नियमति रूप से अध्ययन करते हैं। वे ठीक समय पर विद्यालय पहुंचते हैं। उन्हें परीक्षा के अवसर पर अधिक परिश्रम नहीं करना क्योंकि वे समय को गपशप या बेकार में बरबाद नहीं करते। जब भी खाली समय मिलता है, वे उसे पढ़ने में लगा देते हैं। और अन्त में परीक्षा में अव्वल आते हैं।
अध्ययन के उपरान्त वे कोई व्यवसाय, व्यापार या नौकरी करते हैं। हर काम में समय की पाबंदी आवश्यक होती है। आप डॉक्टर या वकील के व्यवसाय को ही लीजिए। यदि डॉक्टर ठीक समय पर औषधालय न खोले तो रोगी दूसरे डॉक्टर के पास चले जाते हैं या ईलाज के अभाव में रोगी अपने प्राण गँवा बैठते हैं। और डॉक्टर को अपने यश एवं धन की क्षति उठानी पड़ती है। यही स्थिति वकीलों की भी है, यदि वे समय पर अपने चैंबर में न बैठे या अदालत न पहुँचे तो उनका हाल भी डॉक्टर जैसा ही होता है।
इसी प्रकार एक व्यापारी तभी उन्नति कर सकता है जब वह समय पर दुकान खोलता या बन्द करता है। नौकरी में तो समय की पाबंदी न करने से मालिक या अधिकारी नाराज़ हो जाते हैं और तंग आकर उसे नौकरी से निकाल देते हैं। उसकी इस गंदी आदत का दंड बेचारे उसके अबोध बच्चों पर पड़ता है जो कि पिता के रोज़गार के अभाव में भूखों मरते हैं। अतः प्रत्येक व्यक्ति को समयनिष्ठ होना चाहिए।
समयनिष्ठा मनुष्य के लिए अत्यंत उपयोगी है। समय के पाबंद व्यक्ति के पास कभी भी समय का अभाव नहीं रहता। उसके सभी काम ठीक समय पर पूर्ण हो जाते हैं। वह समाज का सच्चा सेवक और विश्वासपात्र बन जाता है। जो मनुष्य समय का महत्व नहीं समझता, वह अपना जीवन कभी सुखी नहीं बना सकता।
अभिभावकों का घर पर और शिक्षकों का विद्यालय में यह है कि उनके बच्चे कभी आलसी न बनें। वे समय-समय पर अपने व को समय के सदुपयोग का पाठ पढ़ाते रहें।
समय का कोई मूल्य नहीं होता। वह अमूल्य होता है। अतः प्रत्येक विवेकशील व्यक्ति को समय का मूल्य समझकर उसका सदेव सदपयोग करना चाहिए।
निबंध नंबर : 04
समय एक अनमोल वस्तु है। संसार में खोई हुई वस्तु मिल सकती है, लेकिन खोया हुआ समय फिर हाथ नहीं आता। संसार में अभी तक ऐसी घड़ी नहीं बनी है, जो बीते हुए समय को वापस दिखा दे। हमें समय के एक-एक क्षण का सदुपयोग करना चाहिए। ईश्वर की ओर से हमें इस संसार में जो भी निश्चित समय दिया गया है, उसे बढ़ाना या कम करना हमारे वश में नहीं है, पर समय का सदुपयोग करना तो हमारे वश में है। समय सबके लिए महत्वपूर्ण है, चाहे वह छात्र हो या कर्मचारी, चाहे वह कोई भी काम क्यों न करता हो।
दुख की बात यह है कि कई लोग समय का दुरूपयोग करते हैं। सुबह आठ बजे तक तो वे नींद में ही डूबे रहते हैं। फिर उठते ही आधा घंटा आलस्य उतारने में चला जाता है। दिन में जितने घंटे काम करते हैं उससे अधिक समय वे फिजूल बातों में व्यर्थ करते हैं। कई लोग तो सारा दिन ताश और शतरंज की बाजी में उलझे रहते हैं। एक बार एक व्यक्ति ने गांधी जी से पूछा कि जीवन में ऊँचा उठने के लिए सबसे पहले क्या करना चाहिए-शिक्षा, शक्ति या धन? गांधी जी ने उत्तर दिया ये वस्तुएं जीवन को उठाने में सहायक अवश्य होती है, लेकिन मेरे विचार से जो सबसे महत्वपूर्ण है वह है-समय की परख। यदि आपने समय को परखने की कला सीख ली तो फिर आपको किसी प्रसन्नता या सफलता की खोज में इधर-उधर भटकना नहीं पड़ेगा। वे व्यक्ति जो अपने समय का एक-एक क्षण उपयोग में बिताते हैं, वे ही भाग्यवान हैं। ऐसे व्यक्ति ही जीवन में प्रसन्न, संतुष्ट और सुखी रहते है।
विद्यार्थी के लिए समय का सदुपयोग करना बहुत आवश्यक है। जो विद्यार्थी समय का सदुपयोग नहीं करते, वे अपना जीवन बिगाड़ लेते हैं। अंत में पश्चाताप के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं रह जाता, यदि आरंभ से ही विद्यार्थी समय की उपयोगिता को समझने लगे, तो वह अपने जीवन में उन्नति के शिखर पर पहुँच जाएंगे।
पंडित जवाहर लाल नेहरू, महात्मा गांधी, राजेन्द्र प्रसाद, जगदीश चन्द्र बसु, रवीन्द्रनाथ टैगोर आदि अनेक नेता समय का सदुपयोग करते थे। वाटरलू के युद्ध में यदि एक सरदार चंद घडियों की देरी न करता तो नेपोलियन अपनी घोर पराजय से बच जाता। महर्षि अरविंद तो वर्ष भर ही साधना में लगे रहते थे। पंडित नेहरू प्रातः से रात के बारह बजे तक निरन्तर कार्य करते थे। उन्होंने जेल में रहकर भी अपना समय व्यर्थ नहीं खोया।
समय का सुदपयोग करने के लिए हमें प्रत्येक कार्य निश्चित समय में ही पूरा करने का प्रयास करना चाहिए। कुछ दिनों के निरंतर अभ्यास से हमें समय का उचित उपयोग करने की आदत पड़ जाएगी और हमें जीवन को सफल बनाने की कुंजी मिल जाएगी।
समय के विभाजन से हम अध्ययन, मनोरंजन, सत्संग, व्यायाम, समाजसेवा आदि अनेक कार्य सरलतापूर्वक कर सकते हैं। इससे न तो हमें समय बोझ प्रतीत होगा और न कौन-सा काम करे, यह सोचने में समय नष्ट होगा। कबीर जी ने अपने दोहे में लिखा है कि
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब। पल में परलै होएगी, बहुरि करेगा कब।।
अर्थात जो काम तम्हें कल करना है. उसे आज की कर लें और जो काम आज करना है, उसे अभी समाप्त कर लें किसी पल में क्या घटित हो जाए कुछ पता नहीं फिर कब करोगे। जब बहुत काम इकट्ठा हो जाएगा तो कैसे करोगे। यदि हमें अपने जीवन से प्रेम है, तो अपने बहुमूल्य समय को नष्ट नहीं करना चाहिए। जो समय को नष्ट करता है, समय उसे ही नष्ट कर देता है। अतः समय के महत्व को ध्यान में रखकर जो व्यक्ति कार्य करते हैं, वे समाज में पथ-प्रदर्शक बनते हैं, समय के सदुपयोग में जो व्यक्ति जितना कुशल होता है, वह जीवन में उतनी अधिक उन्नति करता है। समय में शिथिलता चरित्र को बहुत बड़ी दुर्बलता हे. प्रत्येक व्यक्ति को समय की उपयोगिता का ध्यान रखना चाहिए। इसी में राष्ट्र की भलाई है। इसी से राष्ट्र उन्नति के शिखर पर पहुंच सकता है। यदि आप समय का सदुपयोग करेंगे तो आप निरंतर उन्नति करते जाएँगे।
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Samaya ka sadupayog Class 9th Hindi
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In this article, we are providing Rani Laxmi Bai Essay in Hindi | Rani Laxmi Bai Par Nibandh रानी लक्ष्मी बाई पर निबंध हिंदी | Nibandh in 100, 200, 250, 300, 500 words For Students & Children.
दोस्तों आज हमने Rani Lakshmi Bai Essay in Hindi लिखा है रानी लक्ष्मी बाई पर निबंध हिंदी में कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, और 11, 12 के विद्यार्थियों के लिए है। Rani Lakshmi Bai information in Hindi essay & Speech.
रानी लक्ष्मी बाई पर निबंध- Short Essay on Rani Laxmi Bai in Hindi ( 150 words )
‘खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी’ – झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई को बच्चा-बच्चा जानता है।
लक्ष्मीबाई का बचपन का नाम मन था। उनका जन्म सन 1835 में बनारस में हुआ था। उनके पिता का नाम मोरोपंत तांबे और माता का नाम भागीरथी बाई था।
मनु को घुड़सवारी, तलवार चलाना और तीर चलाना अच्छा लगता था। सब उसे छबीली भी कहते थे।
मनु बहुत चतुर थी। उसने बचपन में ही संस्कृत, हिंदी और मराठी सीख ली थी। सन् 1842 में उसका विवाह झाँसी के राजा गंगाधर राव के साथ हुआ। रानी ने दामोदर राव नाम के एक बालक को गोद लिया। अंग्रेज़ उनके राज्य को हड़पना चाहते थे। रानी ने स्वतंत्रता संग्राम आरम्भ किया। देश के लिए लड़ते-लड़ते वह शहीद हो गईं। 17 जून, 1857 की शाम देश कभी भुला नहीं सकता। देश ने एक वीरांगना को खो दिया।
जरूर पढ़े- 10 Lines on Rani Lakshmi Bai in Hindi
रानी लक्ष्मी बाई पर निबंध- Rani Laxmi Bai Essay in Hindi ( 300 words )
भारत की वीर नारियों में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम बड़े गर्व से लिया जाता है। देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाली लक्ष्मीबाई पर भारत माता को गर्व है। भारत के इतिहास में ऐसी वीरांगना का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है।
लक्ष्मीबाई का बचपन का नाम मनु था। इनका जन्म 1835 ई. में सतारा के निकट बाई नामक स्थान पर हुआ। इनकी माता का नाम भागीरथी था जो मनु को चार वर्ष की अवस्था में छोड़कर चल बसी थीं। मनु के पिता का नाम मोरो पंत था। वे बिठूर के पेशवा के यहाँ नौकरी करते थे। मनु बचपन में पेशवा बाजीराव के पुत्र नाना साहब के साथ खेला करती थी। बचपन में मनु को पुरुषों के खेलों में रुचि थी। तीर चलाना, तलवार चलाना और घुड़सवारी मनु ने बचपन में सीख लिया था ।
मनु का विवाह बचपन में झाँसी के राजा गंगाधर राव के साथ हो गया। इस प्रकार वह मनु के स्थान पर झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई कहलाई। जिनका एक पुत्र भी ची हुआ किन्तु उसकी जल्दी मृत्यु हो गई। इस आघात को गंगाधर राव न सहन कर सके, और स्वर्ग सिधार, गए। उन्होंने एक बालक दामोदर राव को दत्तक पुत्र बनाया। अंग्रेजों ने इसकी आज्ञान न दी। अतः अंग्रेजों से लोहा लेने की वे प्रतीक्षा करने लगी।
सन् 1857 में विदेशी शासन के विरुद्ध आग भड़क उठी-मेरठ, कानपुर लखनऊोआदि मे क्रांति की ज्वाला भड़क ऊठी | इस अवसर पर लक्ष्मीबाई के सैनिकों और तोपचियों ने अंग्रेजी सेना के जनरल हयूरोज को छठी का दूध याद करा दिया। कालपी जाते समय लक्ष्मीबाई का मुकाबला जनरल बौकर ने किया। उसे भी मुँह की खानी पड़ी। सेना के लिए साधन जुटाने के लिए रानी ने ग्वालियर के, विलासी राजा से दुर्ग छीन प्लिया और अपनी, सेना संगठित की। दामोदर राव को पीछे बाँधे दोनों में हाथों में तलवार लिये और मुँह में घोड़े की लगाम, लिए वह शत्रुओं का डटकर मुकाबला करती रही। युद्ध में बहुत घायल होने पर वह अपने घोड़े को लेकर एक और निकल गई। रानी का नया घोड़ा नाला पार न कर सका। एक साधु की कुटिया के पास रानी ने अपने प्राण त्याग दिए। रानी द्वारा लगाई आजादी की चिंगारी धीरे-धीरे सुलगती रही और अन्त में देश 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्र हो गया।
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई पर निबंध- Long Rani Laxmi Bai Essay in Hindi ( 600 words )
भूमिका
अनेक भारतीय वीरांगनाओं ने देश के हित के लिए अपने प्राणों की आहुति दी, उन्हीं में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम भी अमर है । इतिहास इस बात का साक्षी है कि सन् 1857 में सुलगती हुई स्वतन्त्रता की चिनगारी 1950 ई० में पूर्णतया प्रकाशित हो उठी थी।
जन्म और शैशवकाल
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का जन्म सन् 1835 ई० को ‘सतारा के समीप ‘बाई’ नामक ग्राम में हुआ था। इनका नाम मनुबाई था। इनके पिता मोरोपंतबिठुर के पेशवा बाजीराव के विश्वासपात्र कर्मचारी थे। उनकी माता भागीरथी देवी का स्नेहांचल चार वर्ष की अल्पावस्था में ही इनके सिर से उठ गया था । इनका बचपन वाजीराव पेशवा के पुत्र नाना साहब के साथ बीता । वे अपनी इस मुंहबोली बहन को छबीली कह कर पुकारते थे। इन्हें शैशवकाल से ही पुरुषों के खेलों में रुचि थी। ये शैशवावस्था में ही शस्त्र विद्या और शास्त्र विद्या में पूर्णतया दक्ष हो गई थी।
विवाह | पुत्र और पति की मृत्यु
16 वर्ष की अवस्था में इनका विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव के साथ हो गया । इस प्रकार छबीली ने झांसी की रानी बनकर झांसी के दुर्ग में प्रवेश किया। इन्होंने राजसी सुख भोगते हुए एक पुत्र को जन्म दिया पर विधाता ने उसे अधिक दिन तक जीवित नहीं रखा । राजा गंगाधर राव वृद्धावस्था में पुत्र के वियोग को सहन न कर सके । कुछ ही दिन के बाद वे भी चल बसे । महारानी ने दत्तक पुत्र दामोदर राव को गद्दी पर बिठाया। इसे अंग्रेज सरकार सहन न कर सकी । लार्ड डलहौजी ने झांसी को अपने राज्य में मिलाने की आज्ञा दे दी और रानी लक्ष्मीबाई की पेंशन बांध दी। रानी लक्ष्मीबाई हुंकार उठी, ‘मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी।’ इसके साथ ही वे अवसर की ताक में रहने लगीं।
अंग्रेजों से टक्कर | झांसी, कालपी और ग्वालियर में संघर्ष
इसी बीच सन् 1857 की प्रथम क्रांति आरम्भ हो गई । भारतीय सपूतों ने राष्ट्र को स्वतन्त्र कराने की ठान ली। सारे राष्ट्र में विद्रोहाग्नि भड़क उठी। सेना ने विद्रोह कर दिया । कानपुर, लखनऊ, मेरठ, भोपाल आदि नगरों में यह अग्नि भयंकर रूप से भड़क उठी । भारतीय सपूतों ने दिल्ली के लालकिले पर अधिकार कर लिया । रानी लक्ष्मीबाई ने भी इस अवसर से लाभ उठाया । सैनिक पहले से ही तैयार बैठे थे। संकेत पाते ही उन्होंने और तोपचियों ने शत्रु सेना के जनरल ह्यू रोज को छठी का दूध याद करा दिया। रानी ने रणचण्डी का रूप धारण किया तभी कालपी से तात्या टोपे 20 सहस्र सैनिक लेकर झांसी की रानी की सहायता के लिए आए पर दुर्भाग्य ने इनका साथ नहीं दिया। उस समय भी जयचन्दों की कमी नहीं थी। नत्थे खां ने अंग्रेजों को झांसी के दुर्ग का भेद दे दिया । फलतः रानी को दुर्ग छोड़ना पड़ा और ये अपने वीरों के साथ कालपी की ओर बढ़ी । जनरल वोकर ने इनका पीछा किया, उसे मुंह की खानी पड़ी।
उधर ह्यू रोज भी रानी लक्ष्मीबाई का पीछा करता हुआ कालपी आ पहुंचा। झांसी की रानी ने उसका डट कर समाना किया और फिर अपने साथियों के साथ ग्वालियर की ओर बढ़ी । ग्वालियर नरेश विलासी और अंग्रेजों का पक्षपाती था। रानी ने उससे. दुर्ग छीन लिया और सैन्य संगठन में जुट गई । कुछ ही दिनों बाद इनका पता ह्यू रोज को लग गया। वह अपमान का बदला लेने के लिए विशाल सेना के साथ वहां पहुंच गया।
गति
रानी लक्ष्मीबाई ने रणचण्डी बनकर अंग्रेजों से लोहा लिया। घोड़े पर सवार रानी के मुख में लगाम थी, दोनों हाथों में तलवार थी और पीछे पीठ पर दामोदर राव को बांध रखा था। रानी अधिक देर तक विशाल सेना का सामना न कर सकी। घायलावस्था में विवश होकर घोड़ा दौड़ना पड़ा। दो अंग्रेज इनका पीछा कर रहे थे। घोड़ा नया होने के कारण नाले पर पहुंच कर रुक गया। इस विवशता में रानी ने उन दोनों अंग्रेजों का सामना किया। उन्हें मार कर स्वंय भी बेदम हो गई। पास में ही साधु की कुटिया थी। उसने रानी का दाह संस्कार कर दिया।
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इस लेख के माध्यम से हमने Rani Laxmi Bai Par Nibandh | Essay on Rani Lakshmi Bai in Hindi का वर्णन किया है और आप यह निबंध नीचे दिए गए विषयों पर भी इस्तेमाल कर सकते है।
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Hindi essay, nibandh on “pratah kaal ka bhraman”, “प्रातःकाल का भ्रमण” hindi paragraph, speech for class 6, 7, 8, 9, 10 and 12 students..
प्रातःकाल का भ्रमण
Pratah Kaal Ka Bhraman
स्वस्थ और शक्तिशाली प्राणी ही इस पृथ्वी पर सभी प्रकार के सुखों का भोग कर सकता है तथा अपने सभी प्रकार के कर्तव्यों को भलीभाँति पूर्ण कर सकता है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है। अतः शरीर को स्वस्थ बनाए रखना परमावश्यक है। अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति के अनेक उपाय हैं-व्यायाम, खेलकूद, यौगिक क्रियाएँ तथा प्रात:भ्रमण। प्रात:भ्रमण भी व्यायाम का ही एक रूप है। प्रात:काल का मौसम अत्यंत सुहावना होता है। प्रातःकालीन वायु शीतल तथा सुगंध भरी होती है। उषा काल की इस मनोरम वेला पर मनुष्य को आलस्य त्याग कर भ्रमण करना चाहिए तथा प्रकृति के निःशुल्क अनुपम देन से लाभ उठाना चाहिए। प्रात:कालीन वेला में न तो प्रदूषण होता है और न ही शोरशराबा। इस समय तो प्राकृतिक छटा बिखरी होती है, जो अत्यंत स्फूर्तिदायक और स्वास्थ्यवर्धक होती है। प्रातःकालीन भ्रमण से शरीर में नए रक्त का संचार होता है, चेहरा प्रदीप्त हो उठता है तथा पाचन शक्ति का विकास होता है। इस समय की शुद्ध वायु का सेवन करने से हृदय और फेफड़ों को बल मिलता है। इस समय नंगे पाँव हरी-हरी घास पर चलने से नेत्रों की ज्योति बढ़ती है। बुद्धि विकसित होती है तथा शरीर में ताजगी आती है, आलस्य कोसों दूर भागता है तथा दिन भर कार्य करने की शक्ति आती है। प्रात:काल के समय को भारतीय संस्कृति में ‘ब्रह्म मुहूर्त’ कहा जाता है। ऐसा समझा जाता है कि यह समय देवी-देवताओं के जागरण या भ्रमण का समय होता है। विद्यार्थियों के लिए तो प्रात:भ्रमण करना विशेष उपयोगी है। इससे उनकी स्मरण शक्ति बढ़ती है; अतः स्पष्ट है कि प्रात:भ्रमण शरीर को नीरोग, सुंदर तथा तेजमय रखने की निःशल्क औषधि है।
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Updated On: July 15, 2024 01:03 pm IST
रक्षाबंधन पर निबंध (Essay on Raksha Bandhan): श्रावणी पूर्णिमा के दिन रेशम के धागे से बहन द्वारा भाई के कलाई पर बंधन बांधे जाने की रीत को 'रक्षा बंधन' कहते हैं। पहले के समय में, रक्षा के वचन का यह पर्व विभिन्न रिश्तों के अंतर्गत निभाया जाता था पर समय बीतने के साथ यह भाई बहन के बीच का प्यार बन गया है। जिसे बड़ी ही खुशी के साथ मनाया जाता है। इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है, जिससे भाई उसकी सुरक्षा का वचन देता है। यह पर्व उनके प्यार और संबंध को मजबूती देता है। इसके साथ ही भाई बहनों को उपहार भी देते हैं और खुशियों का त्योहार मनाते हैं। यह पर्व हमारे संबंधों को मजबूत बनाने का एक अच्छा मौका लेकर आता है और परिवार के बंधनों को मजबूत बनाता है। ये भी पढ़ें - महात्मा गांधी पर निबंध
रक्षाबंधन पर निबंध 200 शब्दों में कुछ इस प्रकार है-
“रक्षाबंधन” भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है जो भाई-बहन के प्यार और संबंध को मनाता है। यह पर्व श्रावण मास के पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है, जिसका मतलब होता है कि भाई अपनी बहन की रक्षा करेगा। इसके साथ भाई अपनी बहन को उपहार भी देता है।
राखी का यह परंपरागत आचरण भाई-बहन के प्यार और संबंध की महत्वपूर्णता को प्रकट करता है। रक्षाबंधन एक परिवार में खुशियों और एकता की भावना को बढ़ावा देता है। यह दिन भाई-बहन के बीच विशेष संबंध को मजबूती देता है और उनके प्यार को और भी गहराई देता है। इसके साथ ही, यह पर्व भाई-बहन के आपसी समर्थन और साथीपन की महत्वपूर्णता को भी प्रकट करता है। इस दिन प्रातः स्नानादि करके लड़कियाँ और महिलाएँ पूजा की थाली सजाती हैं। थाली में राखी के साथ रोली या हल्दी, चावल, दीपक, मिठाई, फूल और कुछ पैसे भी होते हैं। लड़के और पुरुष तैयार होकर टीका करवाने के लिये पूजा या किसी उपयुक्त स्थान पर बैठते हैं। पहले अभीष्ट देवता की पूजा की जाती है, इसके बाद रोली या हल्दी से भाई का टीका करके चावल को टीके पर लगाया जाता है और सिर पर फूलों को छिड़का जाता है, उसकी आरती उतारी जाती है और दाहिनी कलाई पर राखी बाँधी जाती है। भाई बहन को उपहार या धन देता है। इस प्रकार रक्षाबन्धन के अनुष्ठान को पूरा करने के बाद ही भोजन किया जाता है। प्रत्येक पर्व की तरह उपहारों और खाने-पीने के विशेष पकवानों का महत्त्व रक्षाबन्धन में भी होता है। आमतौर पर दोपहर का भोजन महत्त्वपूर्ण होता है और रक्षाबन्धन का अनुष्ठान पूरा होने तक बहनों द्वारा व्रत रखने की भी परम्परा है। यह पर्व भारतीय समाज में इतनी व्यापकता और गहराई से समाया हुआ है कि इसका सामाजिक महत्त्व तो है ही, धर्म, पुराण, इतिहास, साहित्य और फ़िल्में भी इससे अछूते नहीं हैं। यह बहुत ही खास त्योहार होता है। इस त्योहार को बहुत खुशी से मनाते है और सभी रश्में पूरी करते है।
समारोह और खास त्योहारी व्यंजन इस दिन को और भी ज्यादा यादगार बनाते हैं। रक्षाबंधन के माध्यम से हम अपने परिवार के महत्वपूर्ण सदस्यों के साथ समय बिता सकते हैं और उनके साथ खुशियाँ मना सकते हैं। समानता, समर्पण और प्यार की भावना से भरपूर यह पर्व हमें एक दूसरे के प्रति आदर्श संबंधों की महत्वपूर्णता को याद दिलाता है। इस त्योहार के माध्यम से हम भाई-बहन के बंधन को मजबूती देने के साथ-साथ परिवार के बंधनों की महत्वपूर्णता को भी समझते हैं। भाषण पर हिंदी में लेख पढ़ें-
हमारा देश अनेक रिश्तों के बंधनों में बंधा हुआ देश है, जिसमें से एक पवित्र रिश्ता भाई और बहन का भी है, जो प्रेम की एक ऐसी अटूट डोर से बंधा हुआ है जिसे चाह कर भी कभी तोड़ा नहीं जा सकता। रक्षाबंधन के दिन राखी का विशेष महत्त्व होता है। वैसे तो राखी कच्चे धागे से बनी होती है, पर जब ये रक्षाबंधन पर्व के दिन भाई की दाहिनी कलाई में बंधती है, तो वह बहन का रक्षासूत्र बन जाती है। जिसमें बहनें अपने भाइयों की दीर्घायु की कामना करती हैं और भाई भी जीवनभर अपनी बहनों की रक्षा करने का वचन देते हैं। श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाये जाने वाले रक्षाबंधन के पर्व को राखी (Rakhi) का त्योहार भी कहते हैं।
रक्षाबन्धन भारतीय धर्म संस्कृति के अनुसार रक्षाबन्धन का त्योहार श्रावण माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह त्योहार भाई-बहन को स्नेह की डोर में बांधता है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार रक्षाबंधन श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है वहीं अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह तिथि अगस्त के महीने में आती है। इस दिन बहन अपने भाई के मस्तक पर टीका लगाकर रक्षा का बन्धन बांधती है, जिसे राखी कहते हैं। यह एक हिन्दू व जैन त्योहार है जो प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। श्रावण (सावन) में मनाये जाने के कारण इसे श्रावणी (सावनी) भी कहते हैं। रक्षाबन्धन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्त्व होता है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चाँदी जैसी मँहगी वस्तु तक की हो सकती है। राखी सामान्यतः बहनें भाई को ही बाँधती हैं परन्तु ब्राह्मणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा सम्मानित सम्बंधियों (जैसे पुत्री द्वारा पिता को) भी बाँधी जाती है। कभी-कभी सार्वजनिक रूप से किसी नेता या प्रतिष्ठित व्यक्ति को भी राखी बाँधी जाती है। रक्षाबंधन के दिन बाजार मे कई सारे उपहार बिकते है, उपहार और नए कपड़े खरीदने के लिए बाज़ार मे लोगों की सुबह से शाम तक भीड़ होती है और घर मे मेहमानों का आना जाना रहता है।
रक्षाबंधन का पर्व भाई और बहन के बीच पवित्र प्रेम के प्रतीक को सदियों से दर्शाता हुआ चला आ रहा है। रक्षाबंधन का अर्थ होता है रक्षा का बंधन। जब एक भाई रक्षासूत्र के समान राखी अपनी कलाई में बांध लेता है, तो वह इस पवित्र प्रेम बंधन से बंध जाता है और अपने प्राणों की चिंता किये बिना भी हर हाल में अपनी बहन की रक्षा करता है। रक्षाबंधन भाई और बहन के पवित्र प्रेम के प्रतीक के साथ-साथ भाई-बहन के रिश्ते की अटूट डोर का भी प्रतीक है। रक्षाबंधन का त्योहार भावनाओं और संवेदनाओ का त्योहार है, जिसमें हर भाई अपनी बहन की रक्षा करने का वचन उसे देता है। हर भाई-बहन को रक्षाबंधन के दिन का बेसब्री से इंतजार रहता है जिसे बड़ें ही खुशियों के साथ मनाते है।
इस दिन बहने प्रात: काल में स्नानादि करके, कई प्रकार के पकवान बनाती है, इसके बाद पूजा की थाली सजाई जाती है। पूजा की थाली में राखी के साथ कुमकुम रोली, हल्दी, चावल, दीपक, अगरबती, मिठाई रखी जाती है। भाई को बिठाने के लिये उपयुक्त स्थान का चयन किया जाता है।
सबसे पहले अपने ईष्ट देव की पूजा की जाती है। भाई को चयनित स्थान पर बिठाया जाता है, इसके बाद कुमकुम हल्दी से भाई का टीका करके चावल का टीका लगाया जाता है और अक्षत सिर पर छिडके जाते है, आरती उतारी जाती है और भाई की दाहिनी कलाई पर राखी बांधी जाती है। सब अनूष्ठान पूरा करने के बाद ही भोजन ग्रहण करती है। भारत के अन्य त्यौहारों की तरह इस त्यौहार पर भी उपहार और पकवान अपना विशेष महत्व रखते है।
रक्षा बंधन का पर्व विशेष रुप से भावनाओं और संवेदनाओं का पर्व है, यह एक ऐसा बंधन है जो दो जनों को स्नेह की धागे से बांधता है। रक्षा बंधन को भाई - बहन तक ही सीमित रखना सही नहीं होगा बल्कि ऐसा कोई भी बंधन जो किसी को भी बांध सकता है। भाई - बहन के रिश्तों की सीमाओं से आगे बढ़ते हुए यह बंधन आज गुरु का शिष्य को राखी बांधना, एक भाई का दूसरे भाई को, बहनों का आपस में राखी बांधना और दो मित्रों का एक-दूसरे को राखी बांधना, माता-पिता का संतान को राखी बांधना हो सकता है। आज के परिपेक्ष्य में राखी केवल बहन का रिश्ता स्वीकारना नहीं है अपितु राखी का अर्थ है, जो यह श्रद्धा व विश्वास का धागा बांधता है वह राखी बंधवाने वाले व्यक्ति के दायित्वों को स्वीकार करता है उस रिश्ते को पूरी निष्ठा से निभाने की कोशिश करता है।
राखी का त्योहार कब शुरू हुआ यह कोई नहीं जानता। लेकिन भविष्य पुराण में वर्णन मिलता है कि देव और दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ तब दानव हावी होते नज़र आने लगे। एक बार दैत्य वृत्रासुर ने इंद्र का सिंहासन हासिल करने के लिए स्वर्ग पर चढ़ाई कर दी, वृत्रासुर बहुत ताकतवर था और उसे हराना आसान नहीं था। युद्ध में देवराज इंद्र की रक्षा के लिए उनकी बहन इंद्राणी ने अपने तपोबल से एक रक्षासूत्र तैयार किया और इंद्र की कलाई पर बांध दिया। युद्ध में देवराज इंद्र की रक्षा के लिए उनकी बहन इंद्राणी ने अपने तपोबल से एक रक्षासूत्र तैयार किया और इंद्र की कलाई पर बांध दिया।संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। लोगों का विश्वास है कि इन्द्र इस लड़ाई में इसी धागे की मन्त्र शक्ति से ही विजयी हुए थे। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बाँधने की प्रथा चली आ रही है। यह धागा धन, शक्ति, हर्ष और विजय देने में पूरी तरह समर्थ माना जाता है। इतिहास में श्री कृष्ण और द्रौपदी की कहानी भी प्रसिद्ध है, जिसमें जब कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई। द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उँगली पर पट्टी बाँध दी, और इस उपकार के बदले श्री कृष्ण ने द्रौपदी को किसी भी संकट में द्रौपदी की सहायता करने का वचन दिया था और उसी के चलते कृष्ण ने इस उपकार का बदला बाद में चीरहरण के समय उनकी साड़ी को बढ़ाकर चुकाया। कहते हैं परस्पर एक दूसरे की रक्षा और सहयोग की भावना रक्षाबन्धन के पर्व में यहीं से प्रारम्भ हुई।
रक्षाबंधन का साहित्यिक प्रसंग (literary context of raksha-bandhan), रक्षाबंधन का सामाजिक प्रसंग (social context of raksha bandhan).
ऐसा माना जाता है कि राखी के रंगबिरंगे धागे भाई-बहन के प्यार के बन्धन को मज़बूत करते है। यह एक ऐसा पावन पर्व है जो भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को पूरा आदर और सम्मान देता है। रक्षाबन्धन आत्मीयता और स्नेह के बन्धन से रिश्तों को मज़बूती प्रदान करने का पर्व है। रक्षाबन्धन आत्मीयता और स्नेह के बन्धन से रिश्तों को मज़बूती प्रदान करने का पर्व है। यही कारण है कि इस अवसर पर न केवल बहन भाई को ही अपितु अन्य सम्बन्धों में भी रक्षा (या राखी) बाँधने का प्रचलन है। गुरु शिष्य को रक्षासूत्र बाँधता है तो शिष्य गुरु को। भारत में प्राचीन काल में जब स्नातक अपनी शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात गुरुकुल से विदा लेता था तो वह आचार्य का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उसे रक्षासूत्र बाँधता था। जबकि आचार्य अपने विद्यार्थी को इस कामना के साथ रक्षासूत्र बाँधता था कि उसने जो ज्ञान प्राप्त किया है वह अपने भावी जीवन में उसका समुचित ढंग से प्रयोग करे ताकि वह अपने ज्ञान के साथ-साथ आचार्य की गरिमा की रक्षा करने में भी सफल हो। इसी परम्परा के अनुरूप आज भी किसी धार्मिक विधि विधान से पूर्व पुरोहित यजमान को रक्षासूत्र बाँधता है और यजमान पुरोहित को। इस प्रकार दोनों एक दूसरे के सम्मान की रक्षा करने के लिये परस्पर एक दूसरे को अपने बन्धन में बाँधते हैं। रक्षाबन्धन पर्व सामाजिक और पारिवारिक एकबद्धता या एकसूत्रता का सांस्कृतिक उपाय रहा है।
स्वतंत्रता संग्राम काल में रक्षाबंधन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है, जो भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान राष्ट्रीय एकता और आत्मनिर्भरता को संरक्षित करता था।
राष्ट्रीय एकता को समर्थन: स्वतंत्रता संग्राम के समय, रक्षा बंधन ने लोगों को राष्ट्रीय एकता और समरसता की भावना के साथ एकजुट किया। भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में भारतीयों ने एकत्र होकर विदेशी शासन से मुक्ति के लिए संघर्ष किया। रक्षा बंधन के अवसर पर भाई-बहन एक-दूसरे के साथ आदर्श एकता का प्रतीक बन जाते थे। राष्ट्रीय भाव को उत्साहित करना: रक्षा बंधन स्वतंत्रता संग्राम के समय राष्ट्रीय भाव को उत्साहित करता था। भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों ने देश की आजादी के लिए जान की बाजी लगाई थी, और रक्षा बंधन के अवसर पर उन्हें समर्थन मिलता था और उनके लिए दुआएं बनती थी।
आत्मनिर्भरता की प्रेरणा: स्वतंत्रता संग्राम के समय रक्षा बंधन ने भारतीयों को आत्मनिर्भरता की प्रेरणा दी। देश को स्वतंत्र बनाने के लिए, भारतीयों को अपने आप को सशक्त बनाने और देश के लिए स्वयं को समर्पित करने की जरूरत थी। रक्षा बंधन ने इस आत्मनिर्भरता की भावना को प्रोत्साहित किया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को शक्तिशाली बनाया। संबंधों को मजबूत करना: रक्षा बंधन के त्योहार ने भारतीयों के संबंधों को मजबूत किया। भाई-बहन के प्रेम और सम्मान को बढ़ावा देने से उनके बीच एक गहरा बंधन बनता था, जो आपसी समरसता को बढ़ावा देता था।
भारत सरकार द्वारा रक्षा बंधन के अवसर पर डाक सेवा पर छूट दी जाती है। इस दिन के लिए खास तौर पर 10 रुपये वाले लिफाफे की बिक्री की जाती है। इस 50 ग्राम के लिफाफे में बहनें एक साथ 4-5 राखी भाई को भेज सकती हैं। जबकी सामान्य 20 ग्राम के लिफाफे में एक राखी ही भेजी जा सकती है। यह ऑफर डॉक विभाग द्वारा बहनों को भेट है अतः यह सुविधा रक्षाबंधन तक ही अपलब्ध रहता है। और दिल्ली में बस, ट्रेन तथा मेट्रो में राखी के अवसर पर महिलाओं से टिकट नहीं लिया जाता है। इसके अलावा और भी प्रदेशों में राखी के दिन महिलाओं के लिए बस की सुविधा फ्री की जाती है।
आज के आधुनिक तकनीकी युग एवं सूचना सम्प्रेषण युग का प्रभाव राखी जैसे त्योहार पर भी पड़ा है। बहुत सारे भारतीय आजकल विदेश में रहते हैं एवं उनके परिवार वाले (भाई एवं बहन) अभी भी भारत या अन्य देशों में हैं। इण्टरनेट के आने के बाद कई सारी ई-कॉमर्स साइट खुल गयी हैं, जो ऑनलाइन आर्डर लेकर राखी दिये गये पते पर पहुँचाती है। इससे देश-विदेश रहने वाले भाई-बहनों के लिए भी यह त्योहार मनाना आसान हो गया है। इस तरह आज के आधुनिक विकास के कारण दूर-दराज़ में रहने वाले भाई-बहन जो राखी पर मिल नहीं सकते, आधुनिक तरीकों से एक दूसरे को देख और सुन कर इस पर्व को सहर्ष मनाते हैं।
रक्षाबंधन पर निबंध 10 लाइनों में (raksha bandhan essay in hindi in 10 lines).
अतः रक्षाबंधन आपसी प्यार सम्मान और एकजुटता को दर्शाने वाला त्यौहार है जिसके मनाने के तर्क तो बहुत है परंतु सब का उद्देश्य आपसी प्यार ही है। भाई बहन को मिलकर इस त्यौहार को बड़े प्यार से और अपनेपन के साथ पुराने सभी गिले-शिकवे भुलाते हुए मनाना चाहिए। समग्रता और सामाजिक सद्भावना के साथ, रक्षाबंधन एक परिवार के बंधनों को मजबूत करने का अद्वितीय अवसर प्रदान करता है। इस त्योहार से हमें यह सीखने को मिलता है कि परिवार के सदस्यों के साथ समय बिताना कितना महत्वपूर्ण है और हमें उनके साथ खुशियाँ मनानी चाहिए। ऐसे ही और निबंध के लिए CollegeDekho के साथ जुड़ें रहें। निबंध संबधित आर्टिकल्स पढ़ें-
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Say goodbye to confusion and hello to a bright future!
रक्षाबंधन 30 और 31 अगस्त दोनों ही दिन मनाया जायेगा लेकिन भद्रा के साए की वजह से शुभ मुहूर्त का खास ख्याल रखना होगा। 30 अगस्त को लगभग पूरे दिन ही भद्रा का साया रहेगा और 31 अगस्त को राखी बांधने का शुभ मुहूर्त सिर्फ सुबह कुछ देर तक ही है।
रक्षाबंधन का पर्व प्रेम और पवित्रता का पर्व है। यह पर्व भाई और बहनों के लिए एक दूसरे की लंबी उम्र और सुखद जीवन की कामना करने का दिन होता है। इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं और उनके लंबी उम्र की कामना करती हैं। वहीं भाई उन्हें कोई तोहफा देने के साथ-साथ जीवन भर के सुख-दुख में उनका साथ देने का वादा करते हैं। इस पर्व की वजह से भाई-बहनों के रिश्तों में और मजबूती आती है।
क्षा बंधन मनाने के पीछे की कहानी यह है कि जब यमुना ने यम को राखी बांधी, तो मृत्यु के देवता ने उसे अमरता प्रदान की। ऐसा कहा जाता है कि वह इस भाव से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने घोषणा की कि जो भी भाई राखी बांधेगा और अपनी बहन की रक्षा करने की पेशकश करेगा, वह भी अमर हो जाएगा।
राखी बांधने के बाद बहनें अपने भाइयों को रोली (लाल तिलक), अक्षत और दीपक लगाती हैं। इस अवसर पर बहनें अपने भाइयों की कलाई पर पवित्र धागा बांधती हैं, ऐसा माना जाता है कि इससे भाई-बहन का रिश्ता मजबूत होता है। बदले में, भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं और जीवन भर उनकी रक्षा करने का वादा करते हैं।
इतिहास के पन्नों को देखें तो इस त्योहार की शुरुआत की उत्पत्ति लगभग 6 हजार साल पहले बताई गई है। इसके कई साक्ष्य भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। रक्षाबंधन की शुरुआत का सबसे पहला साक्ष्य रानी कर्णावती व सम्राट हुमायूँ हैं।
रक्षा बंधन का शाब्दिक अर्थ रक्षा करने वाला बंधन है। इस पर्व में बहनें अपने भाई के कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती हैं और बदले में भाई जीवन भर उनकी रक्षा करने का वचन देते हैं। रक्षा बंधन को राखी या सावन के महिने में पड़ने के वजह से श्रावणी व सलोनी भी कहा जाता है।
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Former President Donald J. Trump was declared “fine” by his campaign, and the gunman was killed by Secret Service snipers. The explosion of political violence further inflamed the campaign for the White House.
By Peter Baker , Simon J. Levien and Michael Gold
Peter Baker reported from Washington and Simon J. Levien reported from the Trump rally in Butler, Pa. Michael Gold reported from Pittsburgh.
Follow the latest news on the Trump assassination attempt .
The shots rang out at 6:10 p.m. Former President Donald J. Trump clutched his right ear as blood spurted out, then ducked for cover as supporters screamed and Secret Service agents raced to surround and protect him.
Within moments, someone shouted “shooter down” and the agents, agitated but in control, began moving Mr. Trump offstage to safety. “Wait, wait, wait, wait,” he called out, then made a point of pumping his fist at the crowd and seemed to defiantly shout, “Fight! Fight!” The crowd roared and responded with chants of “U.S.A.! U.S.A.!”
For the first time in more than four decades, a man who was elected president of the United States was wounded in an assassination attempt when a gunman who appeared to have crawled onto a nearby roof opened fire at Mr. Trump at a rally in Butler, Pa., on Saturday evening. The explosion of political violence came at an especially volatile moment in American history and further inflamed an already stormy campaign for the White House.
After Secret Service snipers killed the shooter, the former president and putative Republican presidential nominee was taken to a nearby hospital for treatment and declared “fine” by his campaign. But a male spectator at the rally was killed and two other men were critically wounded, authorities said. The motivation for the attack remained under investigation.
“I knew immediately that something was wrong in that I heard a whizzing sound, shots, and immediately felt the bullet ripping through the skin,” Mr. Trump wrote later on his social media site. “Much bleeding took place, so I realized then what was happening.” Mr. Trump said he was “shot with a bullet that pierced the upper part of my right ear.”
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