वैश्विक जल संकट पर निबंध (Global Water Crisis Essay in Hindi)
जल समस्त सृष्टि तथा उसमें उपस्थित जीव-जंतु एवं वनस्पतियों के जीवन के मूल आधारों में से एक है, जल के बिना जीवन की कल्पना करना भी असम्भव है, यह मानव को जन्म से लेकर मृत्यु तक पोषित करता रहता है, इसके बदले में इसने मानव से कभी कोई शुल्क नहीं लिया फिर भी सृष्टि के सबसे समझदार प्राणी के पास तो इसके बारे में सोचने का समय ही नहीं था। लोग ठीक ही कहते हैं कि किसी भी चीज की कीमत हमें तब समझ आती है जब वो हमसे दूर चली जाती है। ठीक ऐसा ही जल के साथ हुआ, इसकी कीमत लोगों को तब समझ आयी जब देश तथा विदेश के कई शहर ज़ीरो ग्राउंड वाटर लेवल पर आकर खड़े हो गए। आज पूरा विश्व पीने के पानी के संकट से जूझ रहा है, अनियंत्रित पानी की खपत से ग्राउंड वाटर लेवल तेजी से नीचे जा रहा है।
वैश्विक जल संकट पर छोटे एवं बड़े निबंध (Short and Long Essays on Global Water Crisis in Hindi, Vaishwik Jal Sankat par Nibandh Hindi mein)
नमस्कार साथियों आज मैं वैश्विक जल संकट पर छोटे एवं बड़े निबंध प्रस्तुत कर रहा हूँ, मुझे आशा है की इसके माध्यम से दी गई जानकारी आपको पसंद आयेगी तथा आप इसको यथा संभव उपयोग भी कर सकेंगे।
वैश्विक जल संकट पर निबंध (250 – 300 शब्द)
जब किसी क्षेत्र में जल उपयोग की माँग बढ़ जाये तथा आपूर्ति कम हो जाये एवं जल संसाधनों द्वारा भी इसकी पूर्ति न की जा सके, तो उस क्षेत्र में निवास करने वाले लोग पानी की कमी से जूझने लगते हैं। पानी की इस कमी को जल संकट के नाम से जाना जाता है। वर्तमान समय में भारत के 21 शहर लगभग ज़ीरोग्राउंड वाटर लेवल से जूझ रहे हैं।
वैश्विक जल संकट के कारण
वैश्विक जल संकट के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-
- वर्षा की मात्रा में कमी।
- अनियंत्रित पानी की खपत।
- जनसंख्या में वृद्धि।
- उचित जल संरक्षण तकनीक का अभाव।
- जागरूकता का अभाव।
- उचित एवं दण्डात्मक कानून का अभाव। इत्यादि
वैश्विक जल संकट के प्रभाव
वैश्विक जल संकट के कुछ प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित हैं-
- कृषि उत्पादन में जल की मुख्य भूमिका होती है जिसके फलस्वरूप कृषि उत्पादन प्रभावित होता है।
- जल संकट से आजीविका का खतरा उत्पन्न होता है, जो व्यक्ति के प्रवासन के लिए जिम्मेदार होता है।
- जल की कमी से देशों की GDP प्रभावित होती है।
- वैश्विक जल संकट का प्रत्यक्ष एवं नकारात्मक प्रभाव जैव विविधता पर पड़ता है।
- जल संकट वाले क्षेत्रों में सीमित जल स्रोतों पर अधिकार के लिए हिंसक झड़प एवं कानून व्यवस्था बिगड़ने की संभावना रहती है। इत्यादि।
जल संकट को दूर करने के उपाय
- खेती में उन फसलों के उत्पादन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, जिनके उत्पादन में कम पानी की आवश्यकता होती है।
- वर्षा के जल को संग्रहीत करने हेतु टैंकों, चेक-डैम और तालाबों आदि की व्यवस्था की जानी चाहिए।
- नुक्कड़ नाटकों, अखबारों तथा टेलीविज़न आदि के माध्यम से लोगों में जागरूकता लाकर।
- दैनिक जीवन में होने वाले खपत को नियंत्रित करके, इत्यादि।
वर्तमान समय में जल संकट ने सम्पूर्ण विश्व में हाहाकार मचाया हुआ है। राष्ट्रीय ही नहीं अन्तराष्ट्रीय स्तर पर भी यह एक ज्वलंत मुद्दा बना हुआ है। सरकारें इससे निपटने के लिए योजनाएं बना रही हैं, सामाजिक कार्यकर्ता लोगों को जागरूक कर रहे हैं तथा वैज्ञानिक इसके विकल्प तलाशने में लगे हैं। उम्मीदों पर कायम इस दुनिया के ज्यादातर लोग जल संकट से जंग लड़ रहे हैं, इस उम्मीद के साथ की जीत उनकी होगी।
वैश्विक जल संकट पर बड़ा निबंध – 1100 शब्द
प्रस्तावना ( जल संकट का अर्थ )
सामान्य शब्दों में कहे तो जल संकट का सीधा सा अर्थ होगा पीने योग्य पानी की कमी अर्थात जब किसी क्षेत्र में पानी की मांग बढ़ जाए और जल संसाधनों द्वारा उसकी आपूर्ति न हो पाये तो हम कहेंगे की वह क्षेत्र जल संकट से जूझ रहा है। ऐसे क्षेत्रों में पानी की कमी से कृषि एवं व्यापार दोनों प्रभावित होता है और लोगों का जीवन बेहाल हो जाता है, मजबूरन उन्हें पलायन करना पड़ता है।
वैश्विक जल संकट के आंकड़े
कितने आश्चर्य की बात है कि धरातल का एक बड़ा भाग (लगभग 70 प्रतिशत) जल से घिरा हुआ है फिर भी यहाँ पीने के पानी की कमी है। वास्तव में बात यह है कि धरातल का भले ही 70 प्रतिशत भाग जल से घिरा है परन्तु पीने योग्य पानी कुल जल का मात्र 3 प्रतिशत ही है, उसमें भी मानव सिर्फ 1 प्रतिशत मीठे जल का उपयोग पीने के रूप में कर पाता है। जल संकट से संबंधित कुछ आंकड़े निम्नलिखित है-
- संयुक्त राष्ट्र ने अपने एक रिपोर्ट में बताया है कि पिछले 100 वर्षों में पानी का खपत छः गुणा बढ़ गया है।
- नीति आयोग द्वारा 2018 में एक अध्ययन किया गया जिसमें 122 देशों के जल संकट की सूची में भारत का 120वाँ स्थान था।
- वैश्विक जल संकट का सामना कर रहे दुनिया के 400 शहरों में से, शीर्ष 20 में भारत के 4 शहर (मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, तथा चेन्नई ) उपस्थित है।
- संयुक्त जल प्रबंधन सूचकांक हमें बताता है कि जल्द ही भारत के लगभग 21 शहर शुन्य भू-जल स्तर पर पहुचँने वाले है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार एक व्यक्ति को अपने दैनिक कार्यों के लिए लगभग 25 लीटर पानी की जरूरत होती है परन्तु दिल्ली, मुम्बई जैसे बड़े शहरों में प्रति व्यक्ति खपत 150 लीटर से भी ज्यादा है, इत्यादि।
भारत में जल संकट के कारण
भारत में जल संकट केकुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित है-
- भौगोलिक स्थिति
जल संकट की समस्या भारत के दक्षिणी एवं उत्तर-पश्चिमी भागों में मुख्य रूप से विद्यमान है क्योंकि इन क्षेत्रों की विशेष भौगोलिक स्थिति के कारण यहाँ वर्षा काफी कम मात्रा में होती है जिसके फलस्वरूप यहाँ का भू-जल स्तर गिरता जाता है और एक समय के बाद यहाँलोग जल संकट से जूझने लगते हैं।
- मानसून की अस्थिरता
मानसून की अस्थिरता भारत में जल संकट का एक बड़ा कारण है। हाल ही में एल निनो- El Niño (गर्म जलधारा) के प्रभाव से वर्षा की मात्रा में कमी हुई है।
- कृषि पारिस्थितिकी
भारतीय कृषि क्षेत्र का भी जल संकट को बढ़ावा देने में योगदान रहा है क्योंकि यहाँ की कृषि परिस्थितिकी उन फसलों के अनुकूल है जिनके पैदावार में अत्यधिक जल की जरूरत होती है।
- पुर्नउपयोग के प्रयास का अभाव
वर्तमान में भारत के शहरों में जल संकट ने विकट रूप धारण कर लिया है इसके बावजूद भी शहरी क्षेत्रों में जल संसाधन के पुर्नउपयोग का प्रयास नहीं किया गया है, यहाँ आज भी उपयोग के बाद जल को नदियों में बहा दिया जाता है।
- जागरूकता का अभाव
लोगों में जल के संरक्षण एवं उसके सीमित संसाधनों आदि के प्रति जागरूकता का आभाव दिखता है, जिसके कारण जल संकट की समस्या गहराती जा रही है।
गांव में पानी की समस्या
ग्रामीण क्षेत्रों में जल संरक्षण का उचित प्रबंध न होने के कारण कुछ गाँवों का जल स्तर लगभग 300 फीट से भी नीचे चला गया है तथा कुछ गाँवों में भू-जल के रूप में खारा जल उपस्थित है। बादली प्रोजेक्ट और रेनीवेल परियोजनाओं (Badli Project And Rainiwell Projects) के बावजूद भी यहाँ के लोगों के जीवन में कुछ खास परिवर्तन नहीं आया है। आज भी जल संकट से जूझते इन गाँवों की महिलाएं कोसों दूर से जल लाने को मजबूर हैं।
शहरों में पानी की समस्या
देश के लगभग सभी युवाओं का सपना होता है कि उनका शहर में अपना एक घर हो क्योंकि वहाँ का जीवन काफी आसान एवं आराम दायक होता है। वहाँ शिक्षा, स्वास्थ्य, नौकरी तथा व्यापार आदि के लिए उत्तम साधन उपलब्ध होते हैं, यही कारण है कि वहाँ पर लोग गाँवों से जाकर बसते जा रहे हैं परन्तु जनसंख्या ज्यादा तथा जल संसाधनों के सीमित होने के कारण वहाँ भी जल संकट गहराता जा रहा है। 2001 में शहरों में निवास करने वाले लोगों की संख्या 28 करोड़ थी, 2011 में बढ़ कर यह 37.7 करोड़ हो गई थी, ऐसा अनुमान है कि 2030 में यह आंकड़ा 60 करोड़ को पार कर लेगा।
वैश्विक जल संकट का दुष्प्रभाव
- जल की कमी (जल संकट) के कारण अनेक पावर प्लांट बंद हो गए तथा कई बंदी की कगार पर हैं, जिससे बिजली की उत्पादन एवं आपूर्ति दोनों प्रभावित हुई है।
- जल संकट ने कृषि को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित किया है, क्योंकि भारतीय जलवायु के अनुसार यहाँ अत्यधिक पानी में पैदा होने वाली फसलें उगाई जाती हैं।
- ग्रामीण लोग जल संकट से परेशान होकर शहरों की ओर प्रस्थान करने को मजबूर हो जाते हैं।
- जल की कमी अधिकांश जीवों के मृत्यु का कारण भी बनती है, जो जैव विविधता के लिए हानिकारक सिद्ध होता है।
- जल संकट देश की GDP को बुरी तरह से प्रभावित करता है क्योंकि अधिकतर उत्पादन कार्यों में जल की आवश्यकता होता है, इत्यादि।
वैश्विक जल संकट से बचने के उपाय
जल संकट से निपटने के लिए हमें निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए-
- वर्षा जल संचयन
जल वर्षा संचयन एक ऐसी तकनीक है जिसमें वर्षा के जल द्वारा ग्राउण्ड वाटर को रिचार्ज किया जाता है, वर्षा जल का संचयन निम्न विधियों द्वारा किया जा सकता है-
- सतही जल संग्रह प्रणाली
- बांध बनाकर
- भूमिगत टैंक , इत्यादि
- रीसाइक्लिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से उपयोग किये गए जल को शोधित करके पुनः उसे उपयोग में लाया जाता है।
- कम पानी वाले फसलों का उपयोग करके।
- लोगों में जागरूकता लाकर। इत्यादि
जल संरक्षण के फायदे
- मानव स्वास्थ्य की दृष्टि से।
- कृषि में पैदावार की दृष्टि से।
- पानी की बचत से उर्जा की बचत होती है।
- जल संरक्षण के माध्यम से हम पर्यावरण को भी संरक्षित कर सकते हैं।
- जल का संरक्षण जैव विविधता के दृष्टि से अत्यधिक है।
- वर्षा के मौसम में जगह-जगह जल के जमाव से मुक्ति।
- ग्राउण्ड वाटर रिचार्ज होता रहता है। इत्यादि
उपरोक्त बातें जल की कीमत और मानव जीवन में उसकी उपयोगिता को सिद्ध करती हैं तथा साथ ही ये भी बताती हैं की वर्तमान में उसका क्या हाल है, लोगों ने कैसे मनमानी ढंग से उसका उपयोग किया है और आज खुद जलसंकट से जूझ रहे हैं। हालांकि सरकार तथा लोगों ने समय रहते इसकी सुध ले ली तथा रेनीवेल एवं बादली प्रोजेक्ट जैसे अनेक योजनोओं की भी शुरूआत की परन्तु अभी तक जल संकट से निपटने की कोई सटीक तकनीक विकसित नहीं हुई है जो मानव को पूर्ण रूप में इससे छुटकारा दिला सके।
मैं आशा करता हूँ कि वैश्विक जल संकट पर प्रस्तुत यह निबंध आपको पसंद आया होगा तथा साथ ही साथ मुझे उम्मीद है कि ये आपके स्कूल आदि जगहों पर आपके लिए उपयोगी भी सिद्ध होगा।
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वैश्विक जल संकट पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (Frequently Asked Questions on Global Water Crisis in Hindi)
उत्तर- 1993
उत्तर- 22 मार्च (22 nd March)
उत्तर- 21 शहर
उत्तर- इसका मुख्यालय फरीदाबाद में स्थित है।
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जल संकट समस्या और समाधान - Water Crisis Problem and Solution - Hindi Nibandh - Essay in Hindi
जल संकट: समस्या और समाधान (Water Crisis: Problem and Solution)
जल संकट: समस्या और समाधान - water crisis: problem and solution, प्रस्तावना.
जल, जीवन के लिए एक अनिवार्य तत्व है। यह पृथ्वी पर सभी जीवों के अस्तित्व का आधार है। फिर भी, आज जल संकट एक गंभीर वैश्विक समस्या बन चुका है। जल संकट का मतलब है पानी की कमी, जिसके कारण न केवल लोगों की जीवन-शैली प्रभावित हो रही है बल्कि सामाजिक और आर्थिक विकास भी रुक रहा है। इस निबंध में, हम जल संकट की समस्या को समझेंगे और इसके समाधान के उपायों पर चर्चा करेंगे।
जल संकट की समस्या
जल संकट का मुख्य कारण तेजी से बढ़ती जनसंख्या और अव्यवस्थित जल उपयोग है। कई क्षेत्रों में जल की उपलब्धता घट रही है, जिससे जीवन की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। जल संकट की समस्या को विभिन्न पहलुओं से समझा जा सकता है:
जल की कमी: कई देशों और क्षेत्रों में जल की कमी हो रही है। यह प्राकृतिक कारणों जैसे सूखा और मानव गतिविधियों जैसे अत्यधिक जल उपयोग का परिणाम है। पानी की कमी के कारण कृषि, उद्योग और पीने के पानी की उपलब्धता प्रभावित हो रही है।
जल प्रदूषण: जल प्रदूषण एक गंभीर समस्या है। उद्योगों और घरेलू अपशिष्ट के कारण नदियाँ, झीलें और अन्य जल स्रोत प्रदूषित हो रहे हैं। प्रदूषित पानी पीने से स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न होती हैं और पारिस्थितिकी तंत्र पर असर पड़ता है।
वृक्षों की कमी: वृक्षों की अंधाधुंध कटाई के कारण भूमि पर पानी का अवशोषण कम हो रहा है, जिससे जल स्तर में कमी आ रही है। पेड़-पौधे न केवल पर्यावरण को शुद्ध करते हैं, बल्कि वे जल स्राव को भी नियंत्रित करते हैं।
जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश की मात्रा और पैटर्न में बदलाव आ रहा है। असमान बारिश, सूखा और बाढ़ जैसी घटनाएँ जल संकट को बढ़ा रही हैं।
जल संकट के कारण
जल संकट के पीछे कई कारण हैं, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
जनसंख्या वृद्धि: दुनिया की जनसंख्या लगातार बढ़ रही है, जिससे पानी की मांग में इजाफा हो रहा है। यह बढ़ती मांग जल स्रोतों पर दबाव डालती है और पानी की कमी का कारण बनती है।
अविवेकपूर्ण जल उपयोग: जल का अत्यधिक और अव्यवस्थित उपयोग जैसे कृषि, उद्योग और घरेलू उपयोग के कारण जल स्रोतों की कमी हो रही है।
जल प्रदूषण: उद्योगों, कृषि और घरेलू अपशिष्ट से निकलने वाला प्रदूषण जल स्रोतों को प्रदूषित कर देता है, जिससे जल की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
वृक्षों की कटाई: वनों की अंधाधुंध कटाई के कारण जल स्राव की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है, जिससे जल स्रोतों का पुनर्भरण कम हो रहा है।
जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा के पैटर्न और जलवायु में बदलाव आ रहा है, जिससे सूखा और बाढ़ जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं।
समाधान
जल संकट का समाधान कई पहलुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है। कुछ प्रमुख समाधान निम्नलिखित हैं:
जल संरक्षण: जल संरक्षण के उपायों को अपनाना अत्यंत आवश्यक है। घरेलू, कृषि और औद्योगिक स्तर पर जल का सही तरीके से उपयोग करने की आवश्यकता है। वॉटर सेविंग उपकरणों का उपयोग, वर्षा जल संचयन और पानी का पुनर्चक्रण इसके महत्वपूर्ण उपाय हैं।
जल पुनर्चक्रण: जल पुनर्चक्रण के माध्यम से उपयोग किए गए पानी को साफ करके दोबारा उपयोग में लाया जा सकता है। यह विशेष रूप से औद्योगिक और नगर निगम क्षेत्रों में महत्वपूर्ण है।
वृक्षारोपण: अधिक से अधिक पेड़ लगाने से जल स्राव की प्रक्रिया में सुधार होता है। वृक्षों की कटाई को नियंत्रित करके और नए वृक्षों को लगाने से जल स्रोतों की रक्षा होती है।
जल प्रदूषण नियंत्रण: जल प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए उचित कचरा प्रबंधन, उद्योगों की निगरानी और स्वच्छता अभियान की आवश्यकता है। प्रदूषण कम करने के उपायों को लागू करके जल स्रोतों को संरक्षित किया जा सकता है।
सार्वजनिक जागरूकता: लोगों को जल संकट और इसके महत्व के बारे में जागरूक करना बहुत जरूरी है। शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों को जल संरक्षण के उपायों के बारे में जानकारी देना आवश्यक है।
नीति और प्रबंधन: सरकार को जल प्रबंधन के लिए सख्त नीतियों को लागू करने की आवश्यकता है। जल संसाधनों का उचित वितरण और प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए कानूनों और योजनाओं का निर्माण करना होगा।
निष्कर्ष
जल संकट एक गंभीर समस्या है जिसका समाधान समय पर और प्रभावी ढंग से करना आवश्यक है। जल हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा है और इसकी कमी से कई समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। इसके लिए हमें व्यक्तिगत, सामुदायिक और सरकारी स्तर पर ठोस कदम उठाने होंगे। जल संरक्षण, पुनर्चक्रण और प्रदूषण नियंत्रण के उपायों को अपनाकर ही हम जल संकट का समाधान कर सकते हैं। एक स्वस्थ और समृद्ध भविष्य के लिए हमें जल के महत्व को समझना और इसे बचाने के लिए सक्रिय प्रयास करने की आवश्यकता है।
Water Crisis: Problems and Solutions
Introduction
Water is an essential element for life. It forms the basis of all living organisms on Earth. Yet, today, the water crisis has become a serious global issue. The term "water crisis" refers to the shortage of water, which not only impacts people’s lifestyles but also halts social and economic development. In this essay, we will explore the issue of water scarcity and discuss potential solutions.
Importance of Water Conservation
Water conservation is crucial for ensuring that future generations can benefit from this vital resource. Water is fundamental to maintaining balance in our lives. It provides us with essential resources such as clean air, water, and food.
Clean Air and Water: Clean water sources and air quality are directly influenced by a healthy environment. Plants absorb carbon dioxide and release oxygen, which we breathe. Water bodies like rivers and lakes provide us with drinking water, essential for survival.
Biodiversity: Water plays a key role in maintaining biodiversity. Various plants, animals, and microorganisms are part of ecosystems and rely on each other. Damage to water resources can disrupt this balance, affecting all forms of life.
Prevention of Natural Disasters: A healthy environment helps in mitigating natural disasters. For instance, dense forests can prevent floods and soil erosion. Similarly, a healthy marine ecosystem protects coastal areas from storm surges.
Causes of Water Crisis
The causes of the water crisis are multifaceted, including:
Population Growth: The growing global population increases the demand for water, putting pressure on existing resources and leading to water shortages.
Unsustainable Water Use: Excessive and inefficient water use in agriculture, industry, and domestic settings depletes water sources.
Water Pollution: Pollution from industrial activities, agricultural runoff, and domestic waste contaminates water bodies, rendering water sources unsafe and unusable.
Deforestation: The excessive cutting down of forests affects water absorption and reduces the replenishment of water sources.
Climate Change: Changes in climate patterns, such as altered rainfall and increased frequency of droughts and floods, exacerbate water scarcity.
Solutions to Water Crisis
Addressing the water crisis requires a multi-faceted approach. Some key solutions include:
Water Conservation: Implementing water-saving practices is essential. This includes using water-efficient appliances, reducing wastage, and promoting rainwater harvesting.
Water Recycling: Recycling used water for various purposes can reduce the demand for fresh water. This is particularly important in industrial and urban settings.
Afforestation: Planting trees and preventing deforestation helps in maintaining water cycles and increasing water retention in the soil.
Pollution Control: Implementing effective waste management practices and regulations to prevent industrial and domestic waste from contaminating water bodies is crucial.
Public Awareness: Educating people about the importance of water conservation and involving communities in conservation efforts can lead to more sustainable water use.
Policy and Management: Governments need to enforce strict water management policies and regulations. Effective distribution and management of water resources are necessary to ensure equitable access.
The water crisis is a significant issue that requires immediate and effective action. Water is a fundamental part of our existence, and its scarcity can lead to severe problems. It is essential to take steps at the individual, community, and governmental levels to address this crisis. By adopting conservation practices, recycling, and controlling pollution, we can work towards solving the water crisis. Understanding the importance of water and taking proactive measures will ensure a sustainable future for all.
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जल संरक्षण पर निबंध (Save Water Essay in Hindi) - 100, 200 और 500 शब्दों में निबंध
जल संरक्षण पर निबंध: पृथ्वी पर सभी के जीवन के अस्तित्व के लिए पानी आवश्यक है। हम खाना के बिना तो कुछ दिनों तक जिंदा रह सकते हैं, लेकिन पानी के बिना तीन दिन से अधिक जिंदा नहीं रह सकते है। यदि हम जल संरक्षण (Jal Sanrakshan) को प्राथमिकता नहीं देंगे तो हमारे बच्चे और आने वाली पीढ़ी पानी की कमी से पीड़ित रहेगी। यहां जल संरक्षण (Jal Sanrakshan) पर 100, 200 और 500 शब्दों में निबंध दिए गए हैं। हिंदी में पत्र लेखन सीखें ।
100 शब्दों का जल संरक्षण पर निबंध (100 words Water conservation Essay in Hindi)
200 शब्दों का जल संरक्षण पर निबंध (200 words save water essay in hindi), 500 शब्दों का जल संरक्षण पर निबंध (500 words save water essay in hindi).
हम जानते हैं कि पृथ्वी का 70% भाग पानी से ढका हुआ है, जिससे अंतरिक्ष से पृथ्वी एक नीले ग्रह के रूप में दिखाई देती है। हालांकि पृथ्वी पर पानी प्रचुर मात्रा में है, लेकिन इसका अधिकांश भाग समुद्र में मौजूद है, जो खारा है। इससे हमें ताजे पानी के लिए महासागरों के अलावा अन्य स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ता है। हम मनुष्य अपने अस्तित्व के लिए मुख्य रूप से कुओं के भूजल पर निर्भर हैं, लेकिन जैसे-जैसे जल प्रदूषण बढ़ता जा रहा है, हमारे पास ताजे पानी की कमी होती जा रही है। इस लेख में जल संरक्षण (Jal Sanrakshan) पर कुछ सैंपल निबंध दिए गए हैं, जिसकी सहायता से छात्र जल संरक्षण पर निबंध (Essay on Save Water in hindi) लिख सकेंगे।
महत्वपूर्ण लेख :
- गणतंत्र दिवस पर भाषण
- प्रदूषण पर निबंध
- वायु प्रदूषण पर हिंदी में निबंध
हम सभी यह कहावत जानते हैं कि जल अनमोल है। जल इतना कीमती है कि पृथ्वी पर उपलब्ध कुल जल में से केवल 1% ही पीने योग्य है। एक औसत इंसान को प्रतिदिन लगभग 250- 400 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त, हमारा शरीर 70% पानी से बना है, इसलिए प्रतिदिन 2-3 लीटर ताजे पानी की आवश्यकता होती है। आम तौर पर यह कहा जाता है कि एक इंसान बिना पानी के तीन दिन तक जीवित रह सकता है। हालांकि यह किसी किसी के लिए दो दिन से एक सप्ताह का हो सकता है। लेकिन आम तौर पर कहा जाता है कि इंसान हवा यानी ऑक्सीजन के बिना तीन मिनट, पानी के बिना 3 दिन और खाने के बिना तीन हफ्ते तक जिंदा रह सकता है।
एक सदी पहले, मनुष्यों की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त जल था, लेकिन जैसे-जैसे आबादी बढ़ी, मांग काफी बढ़ गई, जिससे 25% लोगों के पास ताजे पानी तक पहुंच नहीं रह गई। यदि जल प्रदूषण के साथ-साथ जल के उपयोग की ये प्रवृत्तियाँ जारी रहीं, तो जल्द ही हमारे पास मीठे पानी के भंडार ख़त्म हो सकते हैं, जिससे हर साल लाखों लोगों की मृत्यु हो सकती है।
अन्य लेख पढ़ें-
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- दशहरा पर निबंध
जब हमें प्यास लगती है तो हम पानी पीते हैं। हमारी दैनिक गतिविधियों को पूरा करने के लिए हमारे आसपास पर्याप्त पानी हो सकता है। यह जानना दिलचस्प है कि दुनिया की 25% आबादी को पीने का अच्छा पानी उपलब्ध नहीं है और कमजोर अर्थव्यवस्था वाले 6% लोग पानी की कमी के कारण मर जाते हैं। हम जानते हैं कि पृथ्वी मुख्यतः पानी से घिरी हुई है, लेकिन फिर भी, मानव उपयोग के लिए पर्याप्त पानी नहीं है। इसकी वजह यह है कि ये पानी पीने लायक नहीं है। मनुष्य की मांग को पूरा करने के लिए पृथ्वी पर केवल 3% पानी उपलब्ध है।
- जलवायु परिवर्तन पर हिंदी में निबंध
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जल की कमी के कारण
जल की कमी कई कारणों से होती है। कुछ कारण नीचे दिए गए है:
उनमें से एक है हमारे घरों और उद्योगों में पानी का व्यापक उपयोग।
दूसरा, कारखानों द्वारा जल निकायों में डाले गए अनुपचारित पानी के कारण होने वाला जल प्रदूषण हो सकता है। कृषि प्रौद्योगिकियों में बदलाव और उर्वरकों के व्यापक उपयोग ने जल निकायों में प्रवेश कर उन्हें प्रदूषित कर दिया है और उन्हें नियमित उपयोग के लिए अनुपयुक्त बना दिया है।
ग्लोबल वार्मिंग जैसी स्थितियों ने विभिन्न क्षेत्रों में जलवायु परिस्थितियों को बदल दिया है, जिसके परिणामस्वरूप अनियमित वर्षा होती है, जिससे पानी की अनियमित उपलब्धता होती है।
यदि हम जल संरक्षण (Jal Sanrakshan) के लिए जरूरी कदम नहीं उठाएंगे तो पानी की कमी से मानवता खत्म हो सकती है।
- बाल दिवस पर हिंदी में भाषण
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- इंजीनियर कैसे बन सकते हैं?
जल पृथ्वी पर मानव जीवन के हर पहलू के लिए महत्वपूर्ण है। अत: जल का महत्व वायु के समान ही माना जा सकता है। इस परिभाषा में मनुष्य, जानवर और पौधे समान रूप से शामिल हैं।
जल का उपयोग
हर किसी का जीवन स्वच्छ, पीने योग्य पानी पर निर्भर है। परिणामस्वरूप, जल संरक्षण का जीवन बचाने पर निबंध मानव अस्तित्व में पानी द्वारा निभाई जाने वाली कुछ अमूर्त लेकिन महत्वपूर्ण भूमिकाओं पर प्रकाश डालता है।
पृथ्वी पर जीवन के लिए पानी से भी अधिक महत्वपूर्ण वायु है। पानी का उपयोग जलयोजन से कहीं आगे तक फैला हुआ है। इसका अर्थ है बर्तन धोना, कपड़े धोना, सफ़ाई करना आदि। पानी सिर्फ मानव अस्तित्व के लिए आवश्यक नहीं है। यह पौधों और पेड़ों के निरंतर अस्तित्व के लिए भी महत्वपूर्ण है। कृषि और अन्य औद्योगिक क्षेत्र भी इस मूल्यवान धातु पर निर्भर हैं।
जल संरक्षण की आवश्यकता क्यों है?
भूजल संसाधनों की कमी और अपर्याप्त वर्षा के स्तर के कारण दुनिया के कई क्षेत्र अब पानी की गंभीर कमी का सामना कर रहे हैं।
भूजल का अत्यधिक दोहन और प्रदूषण विश्व में विकराल समस्या बन चुकी हैं। इन कारणों से सूखे की स्थिति अपरिहार्य है और कुछ क्षेत्रों में पानी की कमी पहले से ही एक वास्तविकता है।
जनसंख्या की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए भूजल का अत्यधिक उपयोग किया गया है, और शहरीकरण और औद्योगीकरण ने स्थिति को और खराब कर दिया है।
वर्तमान में, पृथ्वी पर पानी की गंभीर कमी ग्लोबल वार्मिंग से संबंधित सबसे गंभीर मुद्दा है। अनुचित पाइपलाइन से बर्बाद होने वाला पानी इस समस्या में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
वर्तमान जल संकट को कम करने के लिए लोगों को जल संरक्षण (Jal Sanrakshan) करना तत्काल आवश्यक है। चूंकि स्वच्छ जल की आपूर्ति मानव आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आवश्यक है, इसलिए उनका मूल्यह्रास लोगों के लिए भारी विनाशकारी घटनाओं का कारण बन सकता है।
यह स्पष्ट है कि भविष्य में हमें पानी की कमी का सामना करना होगा। इसके अलावा, जल संरक्षण (Jal Sanrakshan) के लिए एक तत्काल कार्य योजना की आवश्यकता है ताकि इस महत्वपूर्ण संसाधन को वर्तमान और भविष्य दोनों उपयोगों के लिए संरक्षित किया जा सके।
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जल संरक्षण के लिए की गई पहल
जलभराव को रोकने और नाली के रिसाव की मरम्मत करके, पंजाब सरकार ने जल आपूर्ति को बचाने में मदद की।
छोटे-छोटे तालाब बनाने के सरकार के प्रयास से राजस्थान के लोगों को काफी लाभ हुआ है।
वर्षा के जल को बाद में उपयोग करने तथा संग्रहीत करने के लिए तेलंगाना के ग्रामीण इलाकों में टैंक बनाए गए हैं।
मेरी कहानी | इन सभी से प्रेरणा लेकर मैंने पंचायत सदस्यों की मदद से अपने इलाके में एक अभियान चलाया है। अभियान का उद्देश्य इलाके के विभिन्न घरों का दौरा करना और लोगों को उनके घरों में जल संरक्षण (Jal Sanrakshan) की सलाह देना है। यह उनकी जल उपलब्धता और उपयोग पैटर्न को समझने से संभव हुआ। इसके माध्यम से, हम उन्हें उन विभिन्न बिंदुओं से अवगत कराने में सक्षम हुए है कि कैसे पानी की बर्बादी होती है तथा किस तरह पानी की बर्बादी को रोका जा सकता है। अभियान ने परिवारों को अपने पानी के उपयोग को अनुकूलित करने में मदद की।
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जल के बिना हम विश्व की कल्पना नहीं कर सकते। यह शर्म की बात है कि लोगों ने इस ईश्वरीय उपहार को नजरअंदाज कर दिया है। यदि आप लोगों को जीवित रखना चाहते हैं, तो आपको जल संरक्षण (Jal Sanrakshan) करना होगा। पृथ्वी पर जल सभी के जीवन के अस्तित्व के लिए आवश्यक है। यदि हम जल संरक्षण को प्राथमिकता नहीं देंगे तो हमारे बच्चे और आने वाली पीढ़ी को इसकी कमी का सामना करना होगा।
इन्हें भी देखें :
सीबीएसई क्लास 10वीं सैंपल पेपर
यूके बोर्ड 10वीं डेट शीट
यूपी बोर्ड 10वीं एडमिट कार्ड
आरबीएसई 10वीं का सिलेबस
महत्वपूर्ण प्रश्न :
हमें जल संरक्षण क्यों करना चाहिए?
जल हमारी मूलभूत आवश्यकता है। इसके बिना हम जीवन की कल्पना नहीं कर सकते। जल हमारे जीवन के लिए जरूरी है और इसका भंडार भी सीमित है इसलिए इसका संरक्षण आवश्यक है। जल का संरक्षण नहीं होने पर हमें उसकी किल्लत से जूझना पड़ेगा और जीवन में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।
जल संरक्षण के उपाय बताएं?
जल संरक्षण के लिए हम कई उपाय अपना सकते हैं, जैसे कि:
- बारिश के जल के संरक्षण का उपाय करें जिससे भूजल स्तर बढ़ सके।
- दाढ़ी बनाते समय, ब्रश करते समय, सिंक में बर्तन धोते समय, नल तभी खोलें जब ज़रूरत हो।
- नल से पानी टपक रहा हो तो ठीक करवाएं।
- पानी के नलों को इस्तेमाल करने के बाद तुरंत बंद कर दें, अन्यथा पानी व्यर्थ बर्बाद होगा।
- नहाने के लिए शॉवर की जगह बाल्टी और मग का इस्तेमाल करें। इससे पानी की बचत होगी।
- गाड़ी धोते समय पाइप की जगह बाल्टी और मग का इस्तेमाल कर पानी बचा सकते हैं।
- कपड़े धोने के बाद बचा हुआ पानी घर में सफाई के काम आ सकता है।
- कम प्रवाह वाले शॉवर हेड और नल एरेटर का इस्तेमाल करें।
- वॉशिंग मशीन और डिशवॉशर को तभी चलाएं जब उसमें पूरा लोड हो।
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वैश्विक जल संकट पर निबंध Essay on Global Water Crisis in Hindi
इस लेख में आप वैश्विक जल संकट पर निबंध हिंदी में (The Essay on Global Water Crisis in Hindi) पढ़ेंगे। जिसमें वैश्विक जल संकट का अर्थ, कारण, प्रभाव व दूर करने के उपाय को बेहद सरल और आकर्षक रूप से लिखा गया है।
Table of Content
आज वैश्विक जल संकट एक प्रमुख विषय बन चुका है क्योंकि जल ही जीवन है । अगर मनुष्य को अपने भविष्य को सुरक्षित और सुंदर बनाना है तो जल संकट को दूर करने के उपायों पर ज्यादा ज़ोर देना होगा।
वैश्विक जल संकट का अर्थ Meaning of Global Water Crisis in Hindi
मनुष्य के लिए जल सबसे कीमती प्राकृतिक अनुदानों में से एक है। प्राकृतिक विरासत को दो मुख्य भागों में बांटा जाता है। पुनः प्राप्य और पुनः अप्राप्य।
पुनः प्राप्य में ऐसे संसाधनों को शामिल किया जाता है जिन्हें एक बार समाप्त होने पर फिर से बनाकर उपयोग में लिया जा सके।
वहीं दूसरी ओर पुनः अप्राप्य स्त्रोतों के समाप्त होने के बाद उन्हें किसी प्रकार से उपयोग में नहीं लिया जा सकता। अर्थात वे धरती पर बेहद ही सीमित मात्रा में मौजूद हैं उदाहरण के तौर पर जल, पेट्रोलियम, कोयला इत्यादि।
जल को जीवन कह कर संबोधित किया जाता है क्योंकि यह सजीव और निर्जीव सभी के लिए बेहद ही जरूरी है। जल के बेतहाशा दुरुपयोग के कारण यह अपनी सतह से बेहद नीचे की तरफ खिसकता जा रहा है।
जिसके कारण दुनिया के कई स्थानों पर जल संकट उत्पन्न हो गया है, जब यह जल संकट वैश्विक स्तर पर बढ़ जाता है तो इससे वैश्विक जल संकट कहां जाता है।
पढ़ें: जल संरक्षण पर निबंध
वैश्विक जल संकट के कारण Due to Global Water Crisis in Hindi
प्रकृति ने इंसानों को सभी प्रकार के अनुदानों से नवाजा है, लेकिन इंसान अपने स्वार्थ लोलुपता के कारण प्रकृति का ही दोहन करने लगा है। नतीजतन इंसान अपनी तथा धरती के अन्य जीवो के जान को जोखिम में डाल रहा है।
शहरीकरण और विकास के नाम पर दुनिया के हजारों लाखों वृक्षों को बेधड़क काटा जा रहा है। जिसके कारण पर्यावरण संतुलन को अधिक नुकसान हो रहा है। पर्यावरण असंतुलन के कारण धरती पर महामारी तथा विनाश जैसी परिस्थितियां बनने लगी है।
पढ़ें: पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध
वैश्विक जल संकट के सबसे बड़े कारण के रूप में इंसान के लोभ-लालच को ही माना जाता है। क्योंकि अधिक पाने की लालसा के कारण वह जल जैसे अमूल्य संपत्ति को दूषित कर रहा है।
वैश्विक जल संकट के कारणों में कुछ बड़े कारण निम्नलिखित हैं:
1. पर्यावरण के तरफ उदासीनता
आज मानव अपने कर्तव्य को भूलकर प्रकृति का लगातार दोहन कर रहा है। चंद रुपयों के लिए वह जल जैसे अमूल्य संपत्ति को बेतहाशा प्रदूषित कर रहा है।
उदाहरण के तौर पर ऐसे मील और कारखाने जो निकले हुए केमिकल्स को कहीं दूर निष्क्रिय करने के बजाए नजदीक के नदियों तथा नालों में छोड़ देते हैं, जिनका परिणाम बेहद गंभीर निकलता है।
दूसरी ओर विकासशील तथा गरीब देश के ज्यादातर लोग अपने रोजमर्रा के लिए नदियों पर ही निर्भर होते हैं। जिसके कारण प्रदूषित कचरे का एक बड़ा भाग नदियों में बहा दिया जाता है। वही कचरा समुद्र में जाकर मिल जाता है जिसके कारण पर्यावरण असंतुलन में वृद्धि होती है।
2. वायु प्रदूषण
जल प्रदूषण कहीं न कहीं वायु प्रदूषण के साथ जुड़ा हुआ है। क्योंकि जल का सबसे बड़ा स्त्रोत वर्षा है, जो पूरी तरह से वायु तथा बादलों से जुड़ा हुआ है। आज लाखों-करोड़ों टन कार्बन वाहनों के धुएं के रूप में निकलता है।
जो कहीं ना कहीं धरती के ओजोन स्तर को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि अम्लीय वर्षा के लिए भी जवाबदार होता है। अम्लीय वर्षा से धरती के पेड़-पौधे तथा जमीन को ज्यादा प्रदूषण का सामना करना पड़ता है।
बड़ी-बड़ी कंपनियां तथा कारखाने निकले हुए प्रदूषित धुएं को बड़ी आसानी से आसमान में छोड़ देते हैं। वही धुएं वायु प्रदूषण के स्तर को बढ़ाते हैं इसका सीधा असर जल पर पड़ता है।
3. ग्लोबल वार्मिग
वैश्विक जल संकट सबसे बड़े कारण के रूप में ग्लोबल वार्मिंग को लिया जा सकता है। पर्यावरण असंतुलन के कारण धरती पर ग्लोबल वार्मिंग की समस्या भी बढ़ चुकी है। जिसके कारण ग्लेशियर बड़ी तेजी से पिघल रहे हैं।
इसलिए सुनामी तथा बाढ़ जैसी समस्याएं देखने को मिलती हैं। ऐसी घटनाओं से जल का एक बड़ा भाग दूषित होता है जो लंबे समय तक पर्यावरण के लिए हानिकारक बना रहता है।
4. जवाबदारी की कमी
दुनिया के विकसित देश हो या विकासशील जब बात विश्वव्यापी जल संकट से उभरने की आती है तो सभी देशों में जवाबदारी की कमी देखने को मिलती है।
उदाहरण के तौर पर दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश चीन है जहां पर प्रदूषण का स्तर भी ज्यादा देखने को मिलता है लेकिन वैश्विक स्तर पर चीन इन बातों को एक सिरे से नकार देता है।
वहीं दूसरी तरफ पाश्चात्य देश जो खुद को सुखी और संपन्न बताने में कोई कसर नहीं छोड़ते वह भी इन जवाबदारियो को लेने से बचते हैं। अगर वैश्विक जल संकट से निपटना है तो सभी देशों को जवाबदारी लेनी पड़ेगी।
5. कड़े नियमों का अभाव
कानून में कई ऐसे नियम है जिन्हे ताक पर रखकर कई लोग जल को बड़ी मात्रा में प्रदूषित कर रहे हैं। इसलिए ऐसे कड़े कानून बनाने तथा पालन करने की जरूरत है, जो जल को प्रदूषित करने वाले दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दे सके।
वैश्विक जल संकट के प्रभाव Effects of global water crisis in Hindi
वैश्विक जल संकट के कारण दुनिया के कई देशों में शुद्ध जल की कमी देखने को मिलती है। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार साल 2030 तक कई देशों में पानी का स्तर बेहद ही नीचे गिर सकता है।
भारत जैसे बड़े देशों में कई ऐसे जिले हैं जहां पर पानी सतह से बेहद नीचे जा चुका है। इसलिए वहां के रहने वाले लोगों को जल की आपूर्ति बेहद मुश्किल से हो पाती है। जिसके कारण किसान फसल के लिए जरूरी जल के अभाव में नुकसान के भागीदार बनते हैं।
वैश्विक जल संकट के सबसे बड़े प्रभाव के रूप में प्राकृतिक आपदाओं को शामिल किया जा सकता है। हर वर्ष कहीं ना कहीं प्राकृतिक आपदाएं देखने को मिलती है जिसके कारण दुनिया की अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
पर्यावरण जल पर निर्भर है। अगर जल की गुणवत्ता अच्छी नहीं होगी तो उससे सजीव निर्जीव दोनों को हानी उठानी पड़ेगी। दुनिया के कई ऐसे देश है जहां से लोगों का पलायन हो रहा है क्योंकि वहां पर जल की मात्रा बेहद कम हो चुकी है।
दूषित जल का उपयोग करने के कारण दुनिया की एक बड़ी आबादी गंभीर रोगों में से पीड़ित हो चुकी है। इसलिए वैश्विक जल संकट को रोकने की सबसे अधिक जरूरत है।
पूरे विश्व में उपलब्ध जल का 4% भाग भारत में पाया जाता है जो दुनिया भर के 17% आबादी की जरूरतों को पूरा करता है। रिपोर्ट के अनुसार साल 2030 तक भारत की लगभग 40% आबादी साफ पानी से वंचित हो जाएगी।
वैश्विक जल संकट को दूर करने के उपाय Measures to solve the global water crisis in Hindi
वैश्विक जल संकट को दूर करने के लिए दुनिया के सभी देशों को एक साथ मिलकर प्रयास करना होगा। जल संकट से निपटने के लिए पर्यावरण संतुलन को बनाए रखना एक मुख्य कार्य होगा।
वृक्ष पर्यावरण को संतुलित करने तथा वर्षा लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा वायुमंडल में नमी बनाए रखने तथा तापमान को नियंत्रित करने में भी सहायक होते हैं। इसलिए वैश्विक जल संकट से निपटने के लिए वृक्षारोपण करने की अति आवश्यकता है।
इंसान अपने रहने के लिए नदियों के नजदीक वाले आवास को पसंद करता है। इसलिए कहा जा सकता है कि नदियां मनुष्य के लिए बेहद जरूरी है, क्योंकि इससे न वह सिर्फ स्वयं के लिए जल का प्रबंधन करता है बल्कि अपने व्यवसाय के लिए भी जल की आपूर्ति करता है।
लेकिन उद्योगों के जरिए शहरों की नालियों के गंदे पानी को भी प्रायः नदियों में ही बहा दिया जाता है। इसलिए ऐसे कठोर कानून व्यवस्था बनाने की जरूरत है जो इन गंदे पानी को नदियों में जाने से रोक सके।
इसके अलावा जल को संचय के माध्यम से दूसरे जरूरी कामों में लिया जा सकता है। जिससे वैश्विक जल संकट में काफी कमी देखने को मिल सकती है। विदेशों में वर्षा के पानी को संरक्षित कर जरूरी कार्यों में लिया जाने लगा है जिससे जल के व्यय में कमी आई है।
विश्वव्यापी जल संकट को दूर करने के लिए जल के व्यय करना पड़ेगा। लोगों में जागरूकता फैलानी पड़ेगी ताकि वे अपने घरों में पानी को बचाकर जल संकट से सामूहिक तौर पर सामना करें।
वैश्विक जल संकट से निपटने के लिए गांव में बड़े-बड़े तालाब तथा नहरों का निर्माण किया जाना चाहिए ताकि उनमें वर्षा के जल को संरक्षित किया जा सके और जरूरत हो तो उसका प्रयोग सिंचाई में किया जा सके। इससे न सिर्फ जरूरतें पूरी होगी बल्कि भूमिगत जल के स्तर में वृद्धि होगी।
ऐसे बड़े संकटों से निपटने के लिए भूतकाल में की हुई गलतियों से सीखकर भविष्य में उसे न दोहराने का प्रण लेना चाहिए। इसलिए विद्यालयों में जल संरक्षण और वैश्विक जल संकट से जुड़े जरूरी मुद्दों को पढ़ाना चाहिए।
निष्कर्ष Conclusion
इस लेख में आपने वैश्विक जल संकट पर निबंध हिंदी में (Essay on Global Water Crisis in Hindi) पढ़ा। आशा है यह लेख आपको सरल लगा हो। अगर यह लेख आपको अच्छा लगा हो तो शेयर जरूर करें।
नमस्कार रीडर्स, मैं बिजय कुमार, 1Hindi का फाउंडर हूँ। मैं एक प्रोफेशनल Blogger हूँ। मैं अपने इस Hindi Website पर Motivational, Self Development और Online Technology, Health से जुड़े अपने Knowledge को Share करता हूँ।
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भारत में जल की समस्या पर निबंध (Essay on water problem in India)
पिछले कुछ दशकों से जल संकट भारत के लिये बहुत बड़ी समस्या है। इन दिनों जल संरक्षण शोधकर्ताओं के लिये मुख्य विषय है। जल संरक्षण की बहुत सी विधियाँ सफल हो रही हैं। जल संकट और जल संरक्षण से सम्बन्धित अनेक विषयों पर इस लेख में विचार किया गया है। Abstract - Water crisis has been a huge problem for past few decades in India. Water conservation is an investigative area for researchers these days. There are many successful methods implemented so for to conserve water. Various issues related to water crisis & its conservation has been discussed briefly in this paper. आधारभूत पंचतत्वों में से एक जल हमारे जीवन का आधार है। जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। इसलिये कवि रहीम ने कहा है- ‘‘रहिमन पानी राखिये बिना पानी सब सून। पानी गये न उबरै मोती मानुष चून।’’ यदि जल न होता तो सृष्टि का निर्माण सम्भव न होता। यही कारण है कि यह एक ऐसा प्राकृतिक संसाधन है जिसका कोई मोल नहीं है जीवन के लिये जल की महत्ता को इसी से समझा जा सकता है कि बड़ी-बड़ी सभ्यताएँ नदियों के तट पर ही विकसित हुई और अधिकांश प्राचीन नगर नदियों के तट पर ही बसे। जल की उपादेयता को ध्यान में रखकर यह अत्यन्त आवश्यक है कि हम न सिर्फ जल का संरक्षण करें बल्कि उसे प्रदूषित होने से भी बचायें। इस सम्बन्ध में भारत के जल संरक्षण की एक समृद्ध परम्परा रही है और जीवन के बनाये रखने वाले कारक के रूप में हमारे वेद-शास्त्र जल की महिमा से भरे पड़े हैं। ऋग्वेद में जल को अमृत के समतुल्य बताते हुए कहा गया है- अप्सु अन्तः अमतं अप्सु भेषनं। जल की संरचना - पूर्णतः शुद्ध जल रंगहीन, गंधहीन व स्वादहीन होता है इसका रासायनिक सूत्र H 2 O है। ऑक्सीजन के एक परमाणु तथा हाइड्रोजन के दो परमाणु बनने से H 2 O अर्थात जल का एक अणु बनता है। जल एक अणु में जहाँ एक ओर धनावेश होता है वहीं दूसरी ओर ऋणावेश होता है। जल की ध्रुवीय संरचना के कारण इसके अणु कड़ी के रूप में जुड़े रहते हैं। वायुमण्डल में जल तरल, ठोस तथा वाष्प तीन स्वरूपों में पाया जाता है। पदार्थों को घोलने की विशिष्ट क्षमता के कारण जल को सार्वभौमिक विलायक कहा जाता है। मानव शरीर का लगभग 66 प्रतिशत भाग पानी से बना है तथा एक औसत वयस्क के शरीर में पानी की कुल मात्रा 37 लीटर होती है। मानव मस्तिष्क का 75 प्रतिशत हिस्सा जल होता है। इसी प्रकार मनुष्य के रक्त में 83 प्रतिशत मात्रा जल की होती है। शरीर में जल की मात्रा शरीर के तापमान को सामान्य बनाये रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जल संकट और भारत - आबादी के लिहाज से विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश भारत भी जल संकट से जूझ रहा है। यहाँ जल संकट की समस्या विकराल हो चुकी है। न सिर्फ शहरी क्षेत्रों में बल्कि ग्रामीण अंचलों में भी जल संकट बढ़ा है। वर्तमान में 20 करोड़ भारतीयों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं हो पाता है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में जहाँ पानी की कमी बढ़ी है, वहीं राज्यों के मध्य पानी से जुड़े विवाद भी गहराए हैं। भूगर्भीय जल का अत्यधिक दोहन होने के कारण धरती की कोख सूख रही है। जहाँ मीठे पानी का प्रतिशत कम हुआ है वहीं जल की लवणीयता बढ़ने से भी समस्या विकट हुई है। भूगर्भीय जल का अनियंत्रित दोहन तथा इस पर बढ़ती हमारी निर्भरता पारम्परिक जलस्रोतों व जल तकनीकों की उपेक्षा तथा जल संरक्षण और प्रबन्ध की उन्नत व उपयोगी तकनीकों का अभाव, जल शिक्षा का अभाव, भारतीय संविधान में जल के मुद्दे का राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में रखा जाना, निवेश की कमी तथा सुचिंतित योजनाओं का अभाव आदि ऐसे अनेक कारण हैं जिसकी वजह से भारत में जल संकट बढ़ा है। भारत में जनसंख्या विस्फोट ने जहाँ अनेक समस्याएँ उत्पन्न की हैं, वहीं पानी की कमी को भी बढ़ाया है। वर्तमान समय में देश की जनसंख्या प्रतिवर्ष 1.5 करोड़ प्रतिशत बढ़ रही है। ऐसे में वर्ष 2050 तक भारत की जनसंख्या 150 से 180 करोड़ के बीच पहुँचने की सम्भावना है। ऐसे में जल की उपलब्धता को सुनिश्चित करना कितना दुरुह होगा, समझा जा सकता है। आंकड़े बताते हैं कि स्वतंत्रता के बाद प्रतिव्यक्ति पानी की उपलब्धता में 60 प्रतिशत की कमी आयी है। जल संरक्षण एवं संचय के उपाय - जल जीवन का आधार है और यदि हमें जीवन को बचाना है तो जल संरक्षण और संचय के उपाय करने ही होंगे। जल की उपलब्धता घट रही है और मारामारी बढ़ रही है। ऐसे में संकट का सही समाधान खोजना प्रत्येक मनुष्य का दायित्व बनता है। यही हमारी राष्ट्रीय जिम्मेदारी भी बनती है और हम अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से भी ऐसी ही जिम्मेदारी की अपेक्षा करते हैं। जल के स्रोत सीमित हैं। नये स्रोत हैं नहीं, ऐसे में जलस्रोतों को संरक्षित रखकर एवं जल का संचय कर हम जल संकट का मुकाबला कर सकते हैं। इसके लिये हमें अपनी भोगवादी प्रवित्तियों पर अंकुश लगाना पड़ेगा और जल के उपयोग में मितव्ययी बनना पड़ेगा। जलीय कुप्रबंधन को दूर कर भी हम इस समस्या से निपट सकते हैं। यदि वर्षाजल का समुचित संग्रह हो सके और जल के प्रत्येक बूँद को अनमोल मानकर उसका संरक्षण किया जाये तो कोई कारण नहीं है कि वैश्विक जल संकट का समाधान न प्राप्त किया जा सके। जल के संकट से निपटने के लिये कुछ महत्त्वपूर्ण सुझाव यहाँ बिन्दुवार दिये जा रहे हैं- 1. प्रत्येक फसल के लिये ईष्टतम जल की आवश्यकता का निर्धारण किया जाना चाहिए तद्नुसार सिंचाई की योजना बनानी चाहिए। सिंचाई कार्यों के लिये स्प्रिंकलर और ड्रिप सिंचाई जैसे पानी की कम खपत वाली प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहित करना चाहिए। कृषि में औसत व द्वितीयक गुणवत्ता वाले पानी के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, विशेष रूप से पानी के अभाव वाले क्षेत्रों में। 2. विभिन्न फसलों के लिये पानी की कम खपत वाले तथा अधिक पैदावार वाले बीजों के लिये अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। 3. जहाँ तक सम्भव हो ऐसे खाद्य उत्पादों का प्रयोग करना चाहिए जिसमें पानी का कम प्रयोग होता है। खाद्य पदार्थों की अनावश्यक बर्बादी में कमी लाना भी आवश्यक है। विश्व में उत्पादित होने वाला लगभग 30 प्रतिशत खाना खाया नहीं जाता है और यह बेकार हो जाता है। इस प्रकार इसके उत्पादन में प्रयुक्त हुआ पानी भी व्यर्थ चला जाता है। 4. जल संकट से निपटने के लिये हमें वर्षाजल भण्डारण पर विशेष ध्यान देना होगा। वाष्पन या प्रवाह द्वारा जल खत्म होने से पूर्व सतह या उपसतह पर इसका संग्रह करने की तकनीक को वर्षाजल भण्डारण कहते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि तकनीक को न सिर्फ अधिकाधिक विकसित किया जाय बल्कि ज्यादा से ज्यादा अपनाया भी जाय। यह एक ऐसी आसान विधि है जिसमें न तो अतिरिक्त जगह की जरूरत होती है और न ही आबादी विस्थापन की। इससे मिट्टी का कटाव भी रुक जाता है तथा पर्यावरण भी संतुलित रहता है। बंद एवं बेकार पड़े कुँओं, पुनर्भरण पिट, पुनर्भरण खाई तथा पुनर्भरण शॉफ्ट आदि तरीकों से वर्षाजल का बेहतर संचय कर हम पानी की समस्या से उबर सकते हैं। 5. वर्षाजल प्रबंधन और मानसून प्रबंधन को बढ़ावा दिया जाय और इससे जुड़े शोध कार्यों को प्रोत्साहित किया जाय। जल शिक्षा को अनिवार्य रूप से पाठ्यक्रम में जगह दी जाय। 6. जल प्रबंधन और जल संरक्षण की दिशा में जन जागरुकता को बढ़ाने का प्रयास हो। जल प्रशिक्षण को बढ़ावा दिया जाय तथा संकट से निपटने के लिये इनकी सेवाएँ ली जाय। 7. पानी के इस्तेमाल में हमें मितव्ययी बनना होगा। छोटे-छोटे उपाय कर जल की बड़ी बचत की जा सकती है। मसलन हम दैनिक जीवन में पानी की बर्बादी कतई न करें और एक-एक बूँद की बचत करें। बागवानी जैसे कार्यों में भी जल के दुरुपयोग को रोकें। 8. औद्योगिक विकास और व्यावहारिक गतिविधियों की आड़ में जल के अंधाधुंध दोहन को रोकने के लिये तथा इस प्रकार से होने वाले जल प्रदूषण को रोकने के लिये कड़े व पारदर्शी कानून बनाये जाएँ। 9. जल संरक्षण के लिये पर्यावरण संरक्षण जरूरी है। जब पर्यावरण बचेगा तभी जल बचेगा। पर्यावरण असंतुलन भी जल संकट का एक बड़ा कारण है। इसे इस उदाहरण से समझ सकते हैं। हिमालय पर्यावरण के कारण सिकुड़ने लगे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार सन 2030 तक ये ग्लेशियर काफी अधिक सिकुड़ सकते हैं। इस तरह हमें जल क्षति भी होगी। पर्यावरण संरक्षण के लिये हमें वानिकी को नष्ट होने से बचाना होगा। 10. हमें ऐसी विधियाँ और तकनीकें विकसित करनी होगी जिनसे लवणीय और खारे पानी को मीठा बनाकर उपयोग में लाया जा सके। इसके लिये हमें विशेष रूप से तैयार किये गये वाटर प्लांटों को स्थापित करना होगा। चेन्नई में यह प्रयोग बेहद सफल रहा जहाँ इस तरह स्थापित किये गये वाटर प्लांट से रोजाना 100 मिलियन लीटर पानी पीने योग्य पानी तैयार किया जाता है। 11. प्रदूषित जल का उचित उपचार किया जाय तथा इस उपचारित जल की आपूर्ति औद्योगिक इकाईयों को की जाय। 12. जल प्रबंधन व शोध कार्यों के लिये निवेश को बढ़ाया जाय। 13. जनसंख्या बढ़ने से जल उपभोग भी बढ़ता है ऐसे में विशिष्ट जल उपलब्धता (प्रतिव्यक्ति नवीनीकृत जल संसाधन की उपलब्धता) कम हो जाती है। अतएव इस परिप्रेक्ष्य में हमें जनसंख्या पर भी ध्यान देना होगा। 14. हमें पानी के कुशल उपयोग पर ध्यान केन्द्रित करना होगा। जल वितरण में असमानता को दूर करने के लिये जल कानून बनाने होंगे।
जल संचय की विधियाँ
नलकूपों द्वारा रिचार्जिंग - छत से एकत्र पानी को स्टोरेज टैंक तक पहुँचाया जाता है। स्टोरेज टैंक का फिल्टर किया हुआ पानी नलकूपों तक पहुँचाकर गहराई में स्थित जलवाही स्तर को रिचार्ज किया जाता है। उपयोग न किये जाने वाले नलकूप से भी रिचार्ज किया जा सकता है। गड्ढे खोदकर - ईंटों के बने ये किसी भी आकार के गड्ढे का मुँह पक्की फर्श से बंद कर दिया जाता है। इनकी दीवारों में थोड़ी-थोड़ी दूर पर सुराख बनाये जाते हैं इसकी तलहटी में फिल्टर करने वाली वस्तुएँ डाल दी जाती हैं। सोक वेज या रिचार्ज साफ्टस - इनका उपयोग वहाँ किया जाता है जहाँ मिट्टी जलोढ़ होती है। इसमें 30 सेमी व्यास वाले 10 से 15 मीटर गहरे छेद बनाये जाते हैं, इसके प्रवेश द्वार पर जल एकत्र करने के लिये एक बड़ा आयताकार गड्ढा बनाया जाता है। इसका मुुँह पक्की फर्श से बन्द कर दिया जाता है। इस गड्ढे में बजरी, रोड़ी, बालू, इत्यादि डाले जाते हैं। खोदे कुएँ द्वारा रिचार्जिंग - छत के पानी को फिल्ट्रेशन बेड से गुजारने के बाद कुओं तक पहुँचाया जाता है। इस तरीके में रिचार्ज गति को बनाये रखने के लिये कुएँ की लगातार सफाई करनी होती है। खाई बनाकर - जिस क्षेत्र में जमीन की ऊपरी पर्त कठोर और छिछली होती है वहाँ इसका उपयोग किया जाता है। जमीन पर खाई खोदकर उसमें बजरी, ईंट के टुकड़े आदि को भर दिया जाता है। यह तरीका छोटे मकानों, खेल के मैदानों, पार्कों इत्यादि के लिये उपयुक्त होता है। रिसाव टैंक - ये कृत्रिम रूप से सतह पर निर्मित जल निकाय होते हैं। बारिश के पानी को यहाँ जमा किया जाता है। इससे संचित जल रिसकर धरती के भीतर जाता है। जिससे भूजलस्तर ऊपर उठता है। संग्रहित जल को सीधे बागवानी इत्यादि कार्यों में प्रयोग किया जा सकता है। रिसाव टैंकों को बगीचों, खुले स्थानों और सड़क के किनारे हरित पट्टी क्षेत्र में बनाया जाना चाहिए। सरफेस रनऑफ हार्वेस्टिंग - शहरी क्षेत्रों में सतह माध्यम से पानी बहकर बेकार हो जाता है। इस बहते जल को एकत्र करके कई माध्यम से धरती के जलवाही स्तर को रिचार्ज किया जाता है। रूफ टॉप रेनवाटर हार्वेस्टिंग - इस प्रणाली के तहत वर्षा का पानी जहाँ गिरता है वहीं उसे एकत्र कर लिया जाता है। रूफ टॉप हार्वेस्टिंग में घर की छत ही कैचमेन्ट क्षेत्र का काम करती है। बारिश के पानी को घर की छत पर ही एकत्र किया जाता है। इस पानी को या तो टैंक में संग्रह किया जाता है या फिर इसे कृत्रिम रिचार्ज प्रणाली में भेजा जाता है। यह तरीका कम खर्चीला और अधिक प्रभावकारी है। वास्तव में यह आज की जरूरत है कि हम वर्षाजल का पूर्ण रूप से संचय करें। यह ध्यान रखना होगा कि बारिश की एक बूँद भी व्यर्थ न जाए। इसके लिये रेन वॉटर हार्वेस्टिंग एक अच्छा माध्यम हो सकता है। आवश्यकता है इसे और विकसित व प्रोत्साहित करने की। इसके प्रति जनजागृति और जागरुकता को भी बढ़ाना समाज की आवश्यकता है। सन्दर्भ 1. अग्रवाल, अनिल (2014-15) परीक्षा मंथन पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी, इलाहाबाद, पृ.-207। 2. ‘‘पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी’’ अरिहन्त प्रकाशन, वर्ष 2014 पृ. 180। 3. प्रसाद, अनिरुद्ध (2009) पर्यावरण एवं पर्यावरणीय संरक्षण विधि की रूपरेखा सेण्ट्रल लॉ पब्लिकेशन, इलाहाबाद- पृ.-41। 4. श्रीवास्तव, डी.के. एवं राव, वी.पी. (1998) पर्यावरण और पारिस्थितिकी, पृ.-259। 5. विज्ञान प्रगति-वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद, भारत, अक्टूबर 2011, पृ. 17-18।
राजीव कुमार सिंह असिस्टेंट प्रोफेसर, गणित विभाग पी.बी.पी.जी. कॉलेज, प्रतापगढ़ सिटी,- प्रतापगढ़-230002 उ.प्र., भारत [email protected] Rejeeve Kumar Singh Assistant Professor, Department of Mathematics P.B.P.G. College, Pratapgarh City, Pratapgarh-230002, U.P., India, Email- [email protected] प्राप्त तिथि - 23.07.2016 स्वीकृत तिथि - 14.09.2016
जल संकट पर निबंध
By विकास सिंह
विषय-सूचि
जल संकट पर निबंध, water crisis essay in hindi (500 शब्द)
भारत में कई सामाजिक समस्याएं हैं और कई राज्यों में जल संकट उनमें से एक है। लोगों के आरामदायक जीवन के लिए भोजन और पीने का पानी काफी आवश्यक है। जब ये दोनों दुर्लभ होते हैं तो कभी-कभी लोगों को अनकही पीड़ाएं झेलनी पड़ती हैं।
इस तथ्य के बावजूद कि कई बड़ी नदियाँ, उनमें से कुछ बारहमासी नदियाँ भारत के कुछ हिस्सों से होकर बहती हैं, भारत खेती और पीने के लिए पानी की कमी से ग्रस्त है। दक्षिण में कृष्णा, गोदावरी, कावेरी, ताम्रपर्णी, पेरिल्या और अन्य नदियाँ हैं। उत्तर में शक्तिशाली गंगा , ब्रह्मपुत्र, सिंधु, महानदी और अन्य नदियाँ हैं।
बहुत सारा पानी अप्रयुक्त समुद्र में चला जाता है। हालांकि हमारे पास बहुत सारे प्राकृतिक संसाधन हैं जैसे कि पानी, खनिज, बहुतायत से उगने वाली फसलें और इतने पर, हम अभी भी पीड़ित हैं, क्योंकि इन प्राकृतिक संसाधनों का अधिकतम लाभ के लिए उपयोग करने का हमारा ज्ञान अपर्याप्त है।
कभी-कभी पानी की कमी से जूझने वाले दो राज्य तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश हैं। कई शहरों और शहरों में पानी के जलाशय एक छोटी आबादी के लिए थे। यहां तक कि सीवेज पानी ले जाने के लिए नालियों की योजना बनाई गई थी और एक छोटी आबादी के लिए बनाई गई थी। बढ़ती आबादी के साथ उपलब्ध पानी लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए अपर्याप्त है। जांच की जानी चाहिए कि लोगों को पीने के पानी की आपूर्ति बढ़ाने के लिए अधिक जलाशय बनाए जा सकते हैं या नहीं।
जब गर्मी काफी गंभीर होती है तो कभी-कभी पानी का एक बड़ा भंडार एक कुंड में सिकुड़ जाता है। इंसान और जानवर दोनों पानी के लिए तड़पते हैं। अगर बारिश होती है तो इतनी बारिश होती है की बाढ़ आती है। थैच से बने घर पानी में डूब जाते हैं। जब फसलों की अपर्याप्त उपज होती है तो अकाल पड़ता है। चावल, गेहूं, राग और गन्ना दुर्लभ हैं। वास्तव में हर प्रकार के अनाज में कमी है।
भारत में दो चरम सीमाएं हैं। राष्ट्र में पानी ख़त्म हो जाता है या भारी वर्षा होती है जिससे बाढ़ आती है। जबकि उत्तर कभी बाढ़ से ग्रस्त है, कभी-कभी दक्षिण अपर्याप्त जल आपूर्ति से ग्रस्त है। खेती किए गए खेतों में पर्याप्त पानी नहीं है और फसलों की उपज अपर्याप्त है। पर्याप्त पेयजल के बिना लोग पीड़ित हैं।
यदि उत्तरी और दक्षिणी नदियों को जोड़ा जा सकता है तो सभी राज्यों को बारहमासी पानी की आपूर्ति होगी। पहले दक्षिण की नदियों को जोड़ना होगा और फिर उत्तर की नदियों को जोड़ना होगा। फिर दक्षिणी और उत्तरी दोनों नदियों को जोड़ना होगा। यह एक विशाल परियोजना है। इस परियोजना में अरबों रुपये का खर्चा शामिल है।
भले ही नदियों को जोड़ने की परियोजना को इस साल पूरा कर लिया जाए, लेकिन इस परियोजना को पूरा होने में कई साल लग जाएंगे। परियोजना को एक बड़े वित्तीय परिव्यय की आवश्यकता हो सकती है। नदियों को जोड़ने में इंजीनियरिंग की समस्याएं हो सकती हैं क्योंकि एक नदी और दूसरे के बीच विशाल स्तर की भिन्नताएं हो सकती हैं। यदि भारत की नदियाँ आपस में जुड़ी हुई हैं तो यह एक बेहतरीन इंजीनियरिंग उपलब्धि होगी।
जल संकट पर निबंध, water crisis essay in hindi (800 शब्द)
पानी हमारे जीवन का केंद्र है, लेकिन हमारी योजना में केंद्र बिंदु नहीं रहा है जबकि हम तेजी से शहरी समाज में विकसित हुए हैं।
समय के माध्यम से, प्रारंभिक समाजों ने पानी के महत्व और आवश्यकता को समझा और इसके चारों ओर अपने जीवन की योजना बनाई। सभ्यताएँ पानी के कारण पैदा हुईं और खो गईं। आज, हमारे पास इस ज्ञान का लाभ है और हम अभी भी इसे महत्व देने और इसके आसपास के समाजों की योजना बनाने में विफल हैं।
भारत पर ध्यान दें। दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता सिंधु और गंगा के आसपास विकसित हुई और अभी भी संपन्न है। लेकिन बहुत लम्बे समय के लिए नहीं। स्वतंत्रता के बाद, बड़े बांधों के माध्यम से पानी के नियंत्रण और भंडारण के माध्यम से पानी की शक्ति का दोहन करने के लिए उचित महत्व दिया गया था।
वह तो क्षण की माँग थी। हालाँकि, हमारे शहरों और कस्बों में बाद में पानी की जरूरत बनाम पानी की उपलब्धता की योजना के बिना विकास हुआ है। 1951 में, प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता लगभग 5177 घन मीटर थी। यह अब 2011 में घटकर लगभग 1545 हो गया है (स्रोत: जल संसाधन प्रभाग, TERI)
भारत में पानी की कमी के कारण
अधिक जनसंख्या वृद्धि और जल संसाधनों के कुप्रबंधन के कारण पानी की कमी ज्यादातर लोगों को होती है। पानी की कमी के कुछ प्रमुख कारण हैं:
- कृषि के लिए पानी का अकुशल उपयोग। भारत दुनिया में कृषि उपज के शीर्ष उत्पादकों में शामिल है और इसलिए सिंचाई के लिए पानी की खपत सबसे अधिक है। सिंचाई की पारंपरिक तकनीकों में वाष्पीकरण, जल निकासी, छिद्र, पानी के प्रवाह और भूजल के अधिक उपयोग के कारण अधिकतम पानी की हानि होती है।
- जैसे-जैसे अधिक क्षेत्र पारंपरिक सिंचाई तकनीकों के तहत आते हैं, अन्य उद्देश्यों के लिए उपलब्ध पानी के लिए तनाव जारी रहेगा। समाधान सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों जैसे ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई के व्यापक उपयोग में है। पारंपरिक जल रिचार्जिंग क्षेत्रों में कमी।
- तेजी से निर्माण पारंपरिक जल निकायों की अनदेखी कर रहा है जिन्होंने भूजल रिचार्जिंग तंत्र के रूप में भी काम किया है। हमें नए लोगों को लागू करते समय पारंपरिक जलवाही स्तर को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। पारंपरिक जल निकायों में जल निकासी और अपशिष्ट जल निकासी।
- इस समस्या से निपटने के लिए स्रोत पर सरकारी हस्तक्षेप की तत्काल आवश्यकता है। नदियों, नालों और तालाबों में रसायनों और अपशिष्टों को छोड़ना। सरकार, गैर सरकारी संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा कानूनों की सख्त निगरानी और कार्यान्वयन की आवश्यकता है।
- मॉनसून के दौरान पानी के भंडारण की क्षमता को बढ़ाने वाले बड़े जल निकायों में समय पर डी-सिल्टिंग संचालन में कमी। यह आश्चर्य की बात है कि राज्य स्तर पर सरकारों ने इसे वार्षिक अभ्यास के रूप में प्राथमिकता पर नहीं लिया है। यह कार्य अकेले पानी के भंडारण के स्तर को जोड़ सकता है।
- कुशल जल प्रबंधन और शहरी उपभोक्ताओं, कृषि क्षेत्र और उद्योग के बीच पानी के वितरण में कमी। सरकार को प्रौद्योगिकी में अपने निवेश को बढ़ाने और मौजूदा संसाधनों के अनुकूलन को सुनिश्चित करने के लिए योजना स्तर पर सभी हितधारकों को शामिल करने की आवश्यकता है।
शहरी विकास के कारण समस्या बढ़ गई है, जिसके कारण भूजल संसाधन प्रभावित हुए हैं। पानी को न तो रीचार्ज किया जा रहा है और न ही उन तरीकों से संग्रहित किया जा रहा है जो पानी के प्राकृतिक अवयवों को बनाए रखते हुए इसके उपयोग का अनुकूलन करते हैं।
इसके अलावा, जल निकायों में सीवेज और औद्योगिक अपशिष्ट का प्रवेश पीने योग्य पानी की उपलब्धता को गंभीर रूप से सिकोड़ रहा है। समुद्री जीवन ज्यादातर इन क्षेत्रों में पहले से ही खो गया है। यह एक बहुत गंभीर उभरते हुए संकट की उत्पत्ति है। यदि हम समस्या के स्रोत को नहीं समझते हैं तो हम कभी भी स्थायी समाधान नहीं खोज पाएंगे।
एक उदाहरण के रूप में, हैदराबाद को लें। निज़ामों के इस शहर में समय के माध्यम से कई जल एक्वीफ़र्स और जल निकाय थे। उस्मानसागर और हिमायतसागर झीलें बनाई गईं और सौ वर्षों से शहर को पीने का पानी मुहैया करा रही हैं। सभी दिशाओं में अनियोजित निर्माण के साथ शहर में आबादी के अत्यधिक प्रवास ने पारंपरिक जलभृत पैदा किया, जो शहर के आसपास और आसपास मौजूद था।
राज्य के स्वामित्व वाले HMWS & SB द्वारा संचालित 50,000 से अधिक बोरवेल हैं और भूजल खींचने वाले निजी मालिक हैं। स्तर अब काफी गिर गए हैं। यदि भूजल पुनर्भरण नहीं कर सकता है, तो आपूर्ति ख़त्म हो जाएगी। संग्रह, भंडारण, उत्थान और वितरण के दौरान पानी की मांग लगातार बढ़ रही है।
पानी की कमी की समस्याओं को दूर करने के उपाय:
हमारे घरों में वाटर फ्री ‘पुरुष मूत्रालय का एक साधारण जोड़ प्रति वर्ष प्रति घर 25,000 लीटर पानी से अच्छी तरह से बचा सकता है। पारंपरिक फ्लश लगभग छह लीटर पानी बहाता है। अगर घर के लड़कों सहित सभी पुरुष सदस्य पारंपरिक फ्लश खींचने के बजाय वाटर फ्री यूरिनल ’का उपयोग करते हैं, तो पानी की मांग पर सामूहिक प्रभाव काफी कम हो जाएगा। इसे कानून द्वारा अनिवार्य किया जाना चाहिए और इसके बाद शिक्षा और जागरूकता दोनों घर और स्कूल में होनी चाहिए।
घर पर पकवान धोने के दौरान बर्बाद होने वाले पानी की मात्रा महत्वपूर्ण है। हमें अपने डिश धोने के तरीकों को बदलने और पानी को चालू रखने की आदत को कम करने की आवश्यकता है। यहां एक छोटा कदम पानी की खपत में महत्वपूर्ण बचत कर सकता है।
प्रत्येक स्वतंत्र घर / फ्लैट और समूह हाउसिंग कॉलोनी में वर्षा जल संचयन की सुविधा होनी चाहिए। यदि कुशलता से डिजाइन और ठीक से प्रबंधित किया जाता है, तो यह अकेले पानी की मांग को काफी कम कर सकता है।
गैर-पीने के प्रयोजनों के लिए अपशिष्ट जल उपचार और रीसाइक्लिंग। कई कम लागत वाली प्रौद्योगिकियां उपलब्ध हैं जिन्हें समूह आवास क्षेत्रों में लागू किया जा सकता है।
बहुत बार, हम अपने घरों में, सार्वजनिक क्षेत्रों और कॉलोनियों में पानी लीक करते हुए देखते हैं। एक छोटे से स्थिर पानी के रिसाव से प्रति वर्ष 226,800 लीटर पानी का नुकसान हो सकता है! जब तक हम पानी की बर्बादी के बारे में जागरूक और सचेत नहीं होंगे, तब तक हम अपने सामान्य जीवन के साथ पानी की बुनियादी मात्रा का लाभ नहीं उठा पाएंगे।
गहराता जल संकट पर निबंध, water crisis in india essay in hindi (1000 शब्द)
जबकि पानी एक अक्षय संसाधन है, यह एक सीमित संसाधन है। ग्लोब पर उपलब्ध पानी की कुल मात्रा वही है जो दो हजार साल पहले थी।
पानी की कमी:
इस तथ्य की सराहना करना महत्वपूर्ण है कि दुनिया का केवल 3 प्रतिशत पानी ताजा है और लगभग एक-तिहाई यह दुर्गम है। बाकी बहुत असमान रूप से वितरित किया गया है और उपलब्ध आपूर्ति उद्योग, कृषि और घरों से अपशिष्ट और प्रदूषण से दूषित हो रही है।
इन वर्षों में, बढ़ती आबादी, बढ़ते औद्योगीकरण, कृषि का विस्तार और जीवन के बढ़ते मानकों ने पानी की मांग को बढ़ा दिया है। बांध और जलाशयों का निर्माण और कुओं जैसे भूजल संरचनाओं का निर्माण करके पानी एकत्र करने का प्रयास किया गया है। पुनर्चक्रण और पानी का विलवणीकरण अन्य विकल्प हैं लेकिन इसमें शामिल लागत बहुत अधिक है।
हालाँकि, इस बात का एहसास बढ़ रहा है कि ‘और अधिक पानी खोजने’ की सीमाएँ हैं और लंबे समय में, हमें उस पानी की मात्रा को जानना होगा जिससे हम उचित रूप से टैप करने की उम्मीद कर सकते हैं और इसे और अधिक कुशलता से उपयोग करना सीख सकते हैं।
यह मानव स्वभाव है कि हम चीजों को तभी महत्व देते हैं जब वे दुर्लभ हों या कम आपूर्ति में हों। जैसे कि हम नदियों, जलाशयों, तालाबों, कुओं आदि के सूख जाने पर पानी के मूल्य की सराहना करते हैं। हमारे जल संसाधन अब बिखराव के युग में प्रवेश कर चुके हैं। यह अनुमान है कि अब से तीस साल बाद, हमारी आबादी का लगभग एक-तिहाई हिस्सा पानी की कमी से पीड़ित होगा।
हमारी बढ़ती आबादी और प्रदूषण के कारण मौजूदा जल संसाधनों की घटती गुणवत्ता के कारण ताजे जल संसाधनों की बढ़ती माँगों और औद्योगिक और कृषि विकास को बढ़ावा देने की अतिरिक्त आवश्यकताओं के कारण ऐसी स्थिति पैदा हो गई है जहाँ पानी की खपत तेजी से बढ़ रही है और आपूर्ति बढ़ रही है ताजा पानी कम या ज्यादा स्थिर रहता है।
यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि हमारे पास उपलब्ध पानी वैसा ही है जैसा पहले था, लेकिन जनसंख्या और परिणामस्वरूप पानी की मांग कई गुना बढ़ गई है। शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में कमी के परिणाम अधिक कठोर होंगे। पानी की कमी तेजी से बढ़ते तटीय क्षेत्रों और बड़े शहरों में भी महसूस की जाएगी। कई शहर पहले से ही हैं, या होंगे, अपने निवासियों को सुरक्षित पानी और स्वच्छता सुविधाएं प्रदान करने की मांग का सामना करने में असमर्थ हैं।
पानी के तनाव और कमी के संकेतक आम तौर पर किसी देश या क्षेत्र में पानी की उपलब्धता को प्रतिबिंबित करने के लिए उपयोग किए जाते हैं। जब किसी देश या क्षेत्र में नवीकरणीय ताजे पानी की वार्षिक प्रति व्यक्ति 1,700 क्यूबिक मीटर से कम हो जाती है, तो इसे पानी के तनाव की स्थिति में रखा जाता है। यदि उपलब्धता 1,000 क्यूबिक मीटर से कम है, तो स्थिति को पानी की कमी के रूप में चिह्नित किया जाता है।
और जब प्रति व्यक्ति उपलब्धता 500 क्यूबिक मीटर से कम हो जाती है, तो यह पूर्ण कमी (एंगेलमैन और रॉय, 1993) की स्थिति कहा जाता है। ये टाटा एनर्जी रिसर्च इंस्टीट्यूट (टीईआरआई) द्वारा किए गए एक अध्ययन की निधि भी हैं। इस अवधारणा को मालिन फ़ॉकेंमार्क द्वारा इस आधार पर प्रतिपादित किया गया है कि 100 लीटर एक दिन (36.5 क्यूबिक मीटर प्रति वर्ष) बुनियादी घरेलू आवश्यकताओं के लिए लगभग प्रति व्यक्ति न्यूनतम आवश्यकता है और अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए, लगभग 5 से 20 गुना राशि की आवश्यकता होती है।
स्वतंत्रता के समय, यानी, 1,947 में, भारत में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 6,008 क्यूबिक मीटर प्रति वर्ष थी। यह 1951 में एक साल में घटकर 5,177 क्यूबिक मीटर और 2001 में एक साल में 1,820 क्यूबिक मीटर पर आ गया। 10 वीं योजना के मध्यावधि मूल्यांकन (एमटीए) के अनुसार, 2025 में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1,340 क्यूबिक मीटर तक गिरने की संभावना है।
2001 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, भारत की 77.9 प्रतिशत आबादी के पास सुरक्षित पेयजल है। 90.0 प्रतिशत पर, शहरी आबादी 73.2 प्रतिशत ग्रामीण आबादी से बेहतर थी। हालाँकि, ये आंकड़े भ्रामक हो सकते हैं और वास्तविक तस्वीर तभी सामने आती है जब हम अलग-अलग शहरों को देखते हैं।
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (TISS) द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, हैदराबाद, कानपुर और मदुरै में 50 लाख घरों में पानी की कमी देखी गई है (तालिका 16.5 देखें)। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) निर्दिष्ट करता है कि पानी की न्यूनतम आवश्यकता प्रति दिन 100-200 लीटर होनी चाहिए। यह औसत शहरी आंकड़ा, 90 लीटर से ऊपर का है।
तालिका 16.6 से पता चलता है कि कई शहरों विशेषकर दक्षिणी शहरों में पानी की सबसे अधिक कमी है। चेन्नई और बैंगलोर क्रमशः 53.8 और 39.5 प्रतिशत की कमी से पीड़ित हैं। आंध्र प्रदेश में भी चरम सीमा है: हैदराबाद में कमी 24.2 प्रतिशत, वैजाग में 91.8 प्रतिशत है। उत्तर में, दिल्ली में पानी की कमी 29.8 और लखनऊ में 27.3 प्रतिशत दर्ज की गई है।
मध्य भारत व्यापक क्षेत्रीय विविधताओं के साथ उत्तर की तुलना में अधिक पानी की कमी वाला है। उदाहरण के लिए, भोपाल में 26.4 प्रतिशत पानी की कमी है जबकि इंदौर और जबलपुर में क्रमशः 72.8 और 65.4 प्रतिशत की रिकॉर्ड दर है। पश्चिम में मुंबई, 43.3 प्रतिशत की कमी दर के साथ, इसी तरह कोलकाता में स्थित है, जो 44 प्रतिशत पर है।
शहरी भारत में लगभग 40 प्रतिशत पानी की माँग भूजल से पूरी होती है। इसलिए अधिकांश शहरों में भूजल तालिकाएं प्रति वर्ष 2-3 मीटर की खतरनाक दर से गिर रही हैं। एक अन्य कारक पानी का रिसाव है। दिल्ली अपने 83.0 किलोमीटर लंबे पाइपलाइन नेटवर्क में रिसाव के कारण कम से कम 30 प्रतिशत पानी खो देता है। मुंबई रिसाव के कारण अपना लगभग 20 प्रतिशत पानी खो देता है।
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विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.
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जल संकट (Water Scarcity in Hindi) एक प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों घटना है। ग्रह पर सात अरब लोगों के लिए पर्याप्त ताज़ा पानी है। फिर भी, ... UPSC Previous Year Papers.
Abstract - Water crisis has been a huge problem for past few decades in India. Water conservation is an investigative area for researchers these days. There are many successful methods implemented so for to conserve water. Various issues related to water crisis & its conservation has been discussed briefly in this paper.
जल संकट पर निबंध, water crisis essay in hindi (800 शब्द) पानी हमारे जीवन का केंद्र है, लेकिन हमारी योजना में केंद्र बिंदु नहीं रहा है जबकि हम तेजी से शहरी समाज में विकसित हुए ...