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पहला विश्व युद्ध क्यों शुरु हुआ?
- Updated on
- फरवरी 3, 2024
प्रथम विश्व युद्ध से पहले किसी को यह अंदाज़ा नहीं होगा कि लगभग सभी देश एक साथ इस युद्ध में कूदेंगे। इस युद्ध में मरने वालों की संख्या से इस युद्ध की बर्बादी का हिसाब लगाया जा सकता था। इससे पहले सिर्फ लड़ाइयां होती थी, यह एक भीषण युद्ध था। युद्ध से सिर्फ युद्ध ही उत्पन्न हुआ है और ऐसा हुआ कि आज के समय में पता नहीं तीसरा विश्वयुद्ध कब हो उठे। चलिए, देते हैं आपको First World War in Hindi के बारे में विस्तार से जानकारी।
This Blog Includes:
पहला विश्व युद्ध कब शुरू हुआ, पहला विश्व युद्ध दो शक्तियों के बीच का युद्ध, विभिन्न संधियां यानि गठबंधन प्रणाली, साम्राज्यवाद, महत्वपूर्ण कारण, युद्ध के चरण, भारत का किरदार, युद्ध समाप्ति और परिणाम, प्रथम विश्व युद्ध के आर्थिक परिणाम, विश्वयुद्ध के बाद संधियां, वर्साय की संधि (1919), राष्ट्र संघ की विफलता, 1929 की महामंदी, प्रथम विश्व युद्ध के लिए प्रश्नोत्तर.
पहला विश्व युद्ध 28 जुलाई 1914 को शुरू हुआ था। इस विश्व युद्ध को ग्रेट वार या ग्लोबल वार भी कहा जाता है। उस समय ऐसा माना गया कि इस युद्ध के बाद सारे युद्ध ख़त्म हो जायेंगे, इसे ‘वॉर टू एंड आल वार्स’ भी कहा गया पर इस युद्ध के 20 साल बाद ही द्वितीय विश्व युद्ध भी हुआ।
First World War in Hindi उस समय दुनिया की 2 बड़ी शक्तियों के बीच का युद्ध था। प्रथम विश्व युद्ध में एक तरफ अलाइड शक्ति और दूसरी तरफ सेंट्रल शक्ति थे। अलाइड शक्ति में रूस, फ्रांस, ब्रिटेन, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका और जापान आदि देश थे। अमेरिका इस युद्ध में साल 1917-18 में उतरा था। सेंट्रल शक्ति में केवल 3 देश मौजूद थे। ये तीन देश ऑस्ट्रो- हंगेरियन, जर्मनी और ओटोमन एम्पायर था। उस समय ऑस्ट्रो-हंगरी में हब्स्बर्ग नामक वंश का शासन था। ओटोमन आज ओटोमन तुर्की का इलाक़ा है।
युद्ध के प्रमुख कारण
इस खतरनाक विश्व युद्ध में युद्ध का कोई एक कारण नहीं हो सकता था। इसमें कई कारण थे, जिन्होंने दुनिया को देखने और समझने का तरीका पूरी तरह से बदल दिया था। तो आइए, जानते हैं First World War in Hindi के युद्ध के कारण-
हर देश ने खुद को आधुनिक हथियारों से लैस करने का प्रयास किया। सभी देशों ने उस समय आविष्कार होने वाले मशीन गन, टैंक, बन्दुक, 3 बड़े जहाज़, बड़ी आर्मी का कांसेप्ट आदि लाया गया। इन सभी चीज़ों में ब्रिटेन और जर्मनी दोनों काफ़ी आगे थे। इनके आगे होने की वजह इन देशों में औद्योगिक क्रांति का बढ़ना था। औद्योगिक क्रांति से यह देश बहुत अधिक विकसित हुए और अपनी सैन्य क्षमता को बढाया। इन दोनों देशों ने अपने इंडस्ट्रियल कोम्प्लेक्सेस का इस्तेमाल अपनी सैन्य क्षमता को बढाने के लिए किया, जैसे बड़ी बड़ी विभिन्न कम्पनियों में मशीन गन का, टैंक आदि के निर्माण कार्य चलने लगे। यहीं से ही मॉडर्न आर्मी का कांसेप्ट शुरू हुआ था।
यूरोप में 19वीं शताब्दी के दौरान शक्ति में संतुलन स्थापित करने के लिए विभिन्न देशों ने अलायन्स अथवा संधियां बनानी शुरू की। इस समय कई तरह की संधियां गुप्त रूप से होती थी। तो आइए, बताते हैं आपको First World War in Hindi में हुई इन संधियों के बारे में –
- साल 1882 का ट्रिपल अलायन्स : 1882 में जर्मनी ऑस्ट्रिया-हंगरी और इटली के बीच संधि हुई थी।
- साल 1907 का ट्रिपल इंटेंट : 1907 में फ्रांस, ब्रिटेन और रूस के बीच ट्रिपल इंटेंट हुआ। साल 1904 में ब्रिटेन और रूस के बीच कोर्दिअल इंटेंट नामक संधि हुई। इसके साथ रूस जुड़ने के बाद ट्रिपल इंटेंट के नाम से जाना गया।
उस समय पश्चिमी यूरोपीय देश चाहते थे कि उनके कॉलोनिस या विस्तार अफ्रीका और एशिया में भी फैले। इस घटना को ‘स्क्रेम्बल ऑफ़ अफ्रीका’ यानि अफ्रीका की दौड़ भी कहा गया, मतलब था कि अफ्रिका अपने जितने अधिक क्षेत्र बचा सकता है बचा ले, क्योंकि उस समय अफ्रीका का क्षेत्र बहुत बड़ा था। यह समय 1880 के बाद का था जब सभी बड़े देश अफ्रीका पर क़ब्ज़ा कर रहे थे। इन देशों में फ्रांस, जर्मनी, होलैंड बेल्जियम आदि थे। इन सभी देशों का नेतृत्व ब्रिटेन कर रहा था। ब्रिटेन का उस समय काफी देशों पर कब्ज़ा था और वह काफ़ी सफ़ल देश था। पूरी दुनिया के 25% हिस्से पर ब्रिटिश शासन का राजस्व था। इस 25% क्षेत्र की वजह से इनके पास बहुत अधिक संसाधन आ गए थे। इसकी वजह से इनकी सैन्य क्षमता में भी खूब वृद्धि हुई।
उन्नीसवीं शताब्दी मे देशभक्ति की भावना ने पूरे यूरोप को अपने पाले में लिया था। जर्मनी, इटली, अन्य बोल्टिक देश आदि जगह पर राष्ट्रवाद पूरी तरह से फ़ैल चुका था। इसी वजह से यह युद्ध ‘ग्लोरी ऑफ़ वार’ कहलाया था। इन देशों को लगने लगा कि कोई भी देश लड़ाई लड़ के और जीत के ही महान बन सकता है। इस तरह से देश की महानता को उसके क्षेत्रफल से जोड़ के देखा जाने लगा।
आर्कड्यूक फ्रान्ज़ फर्डीनांड ऑस्ट्रिया के राजकुमार थे। इन पर जून 1914 को गर्विलो प्रिंसेप नामक आदमी ने हमला कर इन्हें मार दिया था। इस हत्या के बाद साइबेरिया को धमकियाँ मिलनी शुरू हुई। ऑस्ट्रिया को ऐसा लगता था कि साइबेरिया जो कि बोस्निया को आज़ादी दिलाने में मदद कर रहा था, इस हत्या में शामिल है। ऑस्ट्रिया ने इस हत्या के बाद साइबेरिया को अल्टीमेटम दिया कि वे जल्द ही आत्मसमर्पण कर दें और साइबेरिया ऑस्ट्रिया के अधीन हो जाए। इस मसले पर साइबेरिया ने रूस से मदद माँगी और रूस को बाल्टिक्स में हस्तक्षेप करने का एक और मौक़ा मिल गया। ऐसा होते देख धीरे-धीरे यह दो देशों की लड़ाई न होकर विश्व युद्ध में बदल गया। वहीँ दूसरी और बाल्कन छेत्र में भी अस्थिरता थी, उसे यूरोप का पाउडर केग कहा जाता है। पाउडर केग का मतलब बारूद से भरा कंटेनर होता है, जिसमें कभी भी आग लग सकती है।
प्रथम विश्व युद्ध में युद्ध के चरण दिए गए हैं-
- यूरोप, अफ्रीका और एशिया में कई मोर्चों पर संघर्ष शुरू हुआ। पश्चिमी मोर्चों में जर्मनों ने ब्रिटेन, फ्रांस और वर्ष 1917 के बाद अमेरिकियों के साथ संघर्ष किया। पूर्वी मोर्चा में रूसियों ने जर्मनी और ऑस्ट्रो-हंगेरियन सेनाओं के खिलाफ युद्ध लड़ा।
- वर्ष 1914 में थोड़े समय के लिए जर्मनी को युद्ध में बढ़त हासिल हुई, उसके बाद पश्चिमी मोर्चा स्थिर हो गया और एक लंबा तथा क्रूर युद्ध शुरू हो गया। इस बीच पूर्वी मोर्चे पर जर्मनी की स्थिति मज़बूत हो गई लेकिन निर्णायक रूप से ऐसा नहीं हुआ।
- वर्ष 1917 में दो घटनाएँ घटित हुईं जिन्होंने संपूर्ण युद्ध का रुख ही बदल दिया। अमेरिका मित्र राष्ट्रों के बेड़े में शामिल हो गया, वहीं दूसरी ओर रूसी क्रांति के बाद रूस युद्ध से बाहर हो गया और उसने एक अलग शांति समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए।
इस युद्ध में लगभग 13 लाख भारतीय ब्रिटिश आर्मी की तरफ़ से लड़ रहे थे। यह भारतीय सैनिक फ्रांस, इराक, ईजिप्ट आदि जगहों पर लड़े, जिसमें लगभग 50,000 सैनिकों को शहादत मिली। तीसरे एंग्लो अफ़ग़ान वार और प्रथम विश्व युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की याद में इंडिया गेट का निर्माण किया गया। एक भारतीय पैदल सैनिक का मासिक वेतन उस समय महज़ 11 रुपए था, युद्ध में भाग लेने से यह आय बढ़ा दी गई थी। First World War in Hindi में भारत का रोल भी अहम था।
First World War in Hindi में युद्ध की समाप्ति और परिणाम बहुत ही भयावह रहे थे। 1918 में जर्मन आक्रमण के बाद मित्र देशों के पलटवार ने जर्मन सेना को निर्णायक वापसी हेतु मजबूर कर दिया। अक्तूबर-नवंबर 1918 में क्रमशः तुर्की और ऑस्ट्रिया ने आत्मसमर्पण कर दिया, जिससे जर्मनी अकेला पड़ गया। बाद में जर्मनी की हार हुई और वहां सत्ता भी बदली, नई सत्ता के आने से जर्मनी ने युद्धविराम के घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए और यह प्रथम विश्वयुद्ध 11 नवंबर 1918 को जाकर खत्म हुआ। इस विश्वयुद्ध में एक करोड़ दस लाख सिपाही और लगभग 60 लाख आम नागरिक मारे गए। इसमें मरने वालों की संख्या एक करोड़ सत्तर लाख थी वहीं 2 करोड़ घायल हुए थे। इस युद्ध ने पूरी दुनिया को आर्थिक मंदी में भी ला दिया था। इस युद्ध के बाद अमेरिका एक विश्व शक्ति बन के उभरा था।
यहाँ प्रथम विश्व युद्ध के आर्थिक परिणामों के बारे में बताया जा रहा है :
- वित्तीय बोझ : प्रथम विश्व युद्ध देशों को भारी वित्तीय बोझ के नीचे दबा दिया। युद्ध सामग्री और सैनिकों के वेतन के कारण युद्ध में भाग लेने वाले देशों को अपनी अर्थव्यवस्था को सुधारने में लंबा समय लगा।
- उत्पादन में कमी : प्रथम विश्वयुद्ध के कारण औद्योगिक उत्पादन में भारी गिरावट आई थी। कारखानों को युद्ध सामग्री बनाने के लिए उपयोग किया गया था। इसके अलावा किसानों को ज़बरदस्ती सैनिक बनाकर युद्ध में लड़ने के लिए भेजा गया था। इस कारण से कृषि उत्पादन में भी कमी हुई।
- व्यापार में गिरावट : प्रथम विश्व युद्ध के कारण व्यापार में भी गिरावट आई क्योंकि कई देशों ने अपनी सीमाओं को बंद कर दिया था जिस कारण से देशों के बीच आपस में होने वाले व्यापार पर रोक लग गई।
- महंगाई : प्रथम विश्व युद्ध के कारण महंगाई भी बढ़ी क्योंकि युद्ध में भाग लेने वाले देशों में संसाधनों की कमी हो गई थी जिसके कारण उन देशों में महंगाई बढ़ गई।
- बेरोजगारी : प्रथम विश्व युद्ध में भाग लेने वाले देशों में युद्ध में भाग लेने के कारण उद्योग धंधे बंद पड़ गए थे और उनकी अर्थव्यवस्था भी बुरी तरह से चरमरा गई थी। इस कारण से इन देशों में बेरोजगारी चरम पर पहुँच गई थी।
प्रथम विश्व युद्ध के बाद भाईचारा और शांति बनी रहे इसलिए कुछ शांति समझौते हुए थे। First World War in Hindi के बाद निम्नलिखित संधियां हुई थी-
- पेरिस शांति सम्मेलन: विश्व युद्ध में जर्मनी एवं उसके सहयोगी देश ऑस्ट्रिया, तुर्की, हंगरी आदि की हार हुई तथा इस युद्ध का अंत पेरिस शांति सम्मेलन के साथ हुआ जिसमें पराजित राष्ट्रों के साथ समझौते के रूप में पांच संधियां की गई।
- वर्साय की संधि: सभी संधियों में सबसे महत्वपूर्ण थी वर्साय की संधि, जिसे ब्रिटेन ने जर्मनी के साथ किया। इसकी सभी शर्तों को जर्मनी के लिए स्वीकार करना अनिवार्य कर दिया।
दूसरा विश्वयुद्ध होने के कारण
दूसरे विश्वयुद्ध होने के कई कारण थे। कोई एक कारण ऐसे में नहीं हो सकता था। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद दुनिया में आए आर्थिक संकट के साथ और भी कारण थे। आइए, जानते हैं पहला विश्व युद्ध कैसे दूसरे विश्व युद्ध होने का कारण बना-
- प्रथम विश्व युद्ध के बाद विजयी मित्र राष्ट्रों ने जर्मनी के भविष्य का फैसला किया। जर्मनी को वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर करने के लिये मज़बूर किया गया था।
- इस संधि के तहत जर्मनी को युद्ध का दोषी मानकर उस पर आर्थिक दंड लगाया गया।
- राष्ट्र संघ (League of Nations) की स्थापना वर्ष 1919 में एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन के रूप में विश्व शांति को बनाए रखने के लिए की गई थी।
- इसमें सभी देश इसमें शामिल नहीं हो सके।
- सबसे बड़ा विफलता का कारण यह भी था कि पहला विश्व युद्ध भी देशों को एक साथ नहीं ला सका जो इसकी असफलता का कारण था।
- जब देशों अपने दायरे को विस्तार करने के लिए दूसरों पर हमला करना शुरू किया, तो लीग के पास उन्हें रोकने की कोई शक्ति नहीं थी।
- वर्ष 1930 के दशक की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी ने यूरोप और एशिया में अलग-अलग तरीकों से अपना प्रभाव डाला।
- यूरोप की अधिकांश राजनीतिक शक्तियां जैसे- जर्मनी, इटली, स्पेन आदि अधिनायकवादी और साम्राज्यवादी सरकारों में स्थानांतरित हो गईं।
प्रथम विश्वयुद्ध यूरोप महाद्वीप के कई देशों के बीच लड़ा गया था। भारत प्रथम विश्वयुद्ध में शामिल नहीं था, क्योंकि उस समय भारत में ब्रिटिश-शासन था और ब्रिटेन स्वयं प्रथम विश्वयुद्ध का एक बड़ा हिस्सा था। भारत का प्रथम विश्व युद्ध कब हुआ था इसका कोई सार्थक अंतर नहीं है।
प्रथम विश्वयुद्ध की शुरुआत 1914 को हुई थी। इस समय भारत के वायसराय लॉर्ड हार्डिंग थे जो 1914 से 1916 तक भारत के वायसराय थे। इसके बाद 1916 से 1918 तक लॉर्ड चेम्सफोर्ड भारत के वायसराय थे।
प्रथम विश्व युद्ध के समय अमेरिका के राष्ट्रपति वुडरो विल्सन थे, जो 1913 से 1921 तक अमेरिका के शासन पद पर कार्य किए थे।
प्रथम विश्वयुद्ध में इंग्लैंड, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस तथा फ्रांस जैसे देश मित्र राष्ट्र में शामिल थे। जबकि जर्मनी, ऑस्ट्रिया, हंगरी, जापान, इटली, बुल्गारिया और ओटोमान साम्राज्य केंद्रीय शक्ति के रूप में शामिल थे।
उत्तर – प्रथम विश्व युद्ध के समय इंग्लैंड के प्रधानमंत्री एच. एच. आस्किथ और डेविड लॉयड जार्ज थे। इसके अलावा मोनार्क जॉर्ज फ्रेडरिक थे।
प्रथम विश्वयुद्ध का जनसामान्य पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ा। इस विश्व युद्ध में करोड़ों लोग मारे गए। लाखों लोगों का जीवन बेघर हो गया। इस विश्व युद्ध का प्रभाव यूरोप, एशिया, अफ्रीका तीनों महाद्वीपों पर पड़ा। यूरोप के अधिकांश लोगों का जीवन गरीबी में बीतने लगा।
विश्व युद्ध के समय जर्मनी का सम्राट विल्हेम द्वितीय था।
प्रथम विश्व युद्ध के समय रूस का शासक जार निकोलस द्वितीय था।
प्रथम विश्व युद्ध के बाद जर्मनी में वाइमर गणतंत्र की स्थापना हुई, साथ ही नई सरकार ने 11 नवंबर, 1918 को युद्ध विराम के घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए और यह प्रलयंकारी प्रथम विश्व युद्ध समाप्त हो गया।
पहले विश्व युद्ध में 30 ज्यादा देश शामिल हुए थे, जिसमें सर्बिया, ब्रिटेन, जापान, रूस, फ्रांस, इटली और अमेरिका समेत करीब 17 मित्र देश थे। दूसरी ओर जर्मनी, ऑस्ट्रिया, हंगरी, बुल्गारिया और ओटोमन जैसे राज्य थे। युद्ध यूरोप, अफ्रीका, एशिया और उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप में लड़ा गया।
इटली की नाराजगी का लाभ उठाकर बिस्मार्क ने 1882 में इटली, जर्मनी और ऑस्ट्रिया के बीच त्रिगुट संधि (Triple Alliance) को अंजाम दिया।
प्रथम विश्व युद्ध के लिए यूं तो 28 जून 1914 को ऑस्ट्रिया-हंगरी साम्राज्य के उत्तराधिकारी आर्चड्युक फर्डिनेंड की हत्या को प्रमुख और तात्कालिक कारण माना जाता है, लेकिन इतने बड़े युद्ध के लिए सिर्फ यही वजह नहीं थी बल्कि इसके कई और घटनाक्रम थे, जो विश्व युद्ध के लिए जिम्मेदार थे।
द्वितीय विश्व युद्ध 1 सितंबर 1939 को शुरू हुआ था।
प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी की हार हुई। इसके बाद विजयी मित्र राष्ट्र जिसमें ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, अमेरिका और जापान आदि देश शामिल थे, उन्होंने जर्मनी को वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया।
प्रथम विश्व युद्ध मित्र राष्ट्रों द्वारा जीता गया था जिसमें यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, इटली शामिल थे।
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारत का वायसराय लॉर्ड हार्डिंग-द्वितीय (1910-1916) थे।
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देवांग मैत्रे
स्टडी अब्रॉड फील्ड के हिंदी एडिटर देवांग मैत्रे को कंटेंट और एडिटिंग में आधिकारिक तौर पर 6 वर्षों से ऊपर का अनुभव है। वह पूर्व में पोलिटिकल एडिटर-रणनीतिकार, एसोसिएट प्रोड्यूसर और कंटेंट राइटर रह चुके हैं। पत्रकारिता से अलग इन्हें अन्य क्षेत्रों में भी काम करने का अनुभव है। देवांग को काम से अलग आप नियो-नोयर फिल्म्स, सीरीज व ट्विटर पर गंभीर चिंतन करते हुए ढूंढ सकते हैं।
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आपका बहुत-बहुत आभार।
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प्रथम विश्व युद्ध के कारण, परिणाम एवं प्रभाव पर निबंध | First World War Kyo Aur Kab Hua, History, Eassy in Hindi
प्रथम विश्व युद्ध के कारण, परिणाम, प्रभाव, निष्कर्ष, इतिहास (First World War Kyo Aur Kab Hua, History, Eassy In Hindi) Pratham Vishwa Yudh Kab Hua Tha, 1st world war in hindi
First World War in Hindi – विश्व के इतिहास में ऐसी कुछ घटनाएं घटी है जिसको न तो भुलाया जा सकता है और न ही उसे अनदेखा किया जा सकता है क्योकि उससे हमें कई बातों को समझने का अवसर मिलता है। वे घटनाएं ऐसी रही है जो, मानव सभ्यताओं को झकझोड़ कर रख दिया था। इतिहास की ऐसी ही एक घटना है जिसको, हम प्रथम विश्वयुद्ध ( First World War in Hind i) के नाम से जानते है।
आज के इस आर्टिकल में हम आपको प्रथम विश्व युद्ध के कारण, परिणाम एवं प्रभाव पर निबंध (First World War Kyo Aur Kab Hua, History, Eassy in Hindi) के बारें में पूरी जानकारी देने वाले है।
Table of Contents
प्रथम विश्व युद्ध विवरण (World War 1 in Hindi )
प्रथम विश्व युद्ध क्यों हुआ (first world war in hindi).
प्रथम विश्वयुद्ध का कार्यकाल 28 जुलाई 1914 से 11 नवम्बर 1918 तक था। इस काल में होने वाले देशो के बीच को विश्व युद्ध इसलिए कहा गया क्योंकि यह युद्ध उस समय तक के सबसे अधिक विनाशकारी थे और इसमें कई देशो ने भाग लिया था। माना तो यह भी जाता है कि प्रथम विश्व युद्ध के कारण आधी से ज्यादा दुनियां इसके युद्ध की अग्नि में जल रही थी। प्रथम विश्व युद्ध ( First World War in Hindi ) यूरोप, एशिया व अफ्रीका महादेशो के बीच हुआ था। मगर फिर भी इसे मुख्य रूप से यूरोप का ही युद्ध कहा गया है। यह युद्ध इतना विनाशकारी था कि इसका प्रभाव पूरी दुनियां पर पड़ा था। यह युद्ध मानव सभ्यता की जड़ को हिला कर रख दिया था। प्रथम विश्व युद्ध एक साथ धरती, समुद्र और आकाश में लड़ा गया था। इस युद्ध में उस समय के विकसित सबसे आधुनिकतम अस्त्र शस्त्र का प्रयोग किया गया था।
प्रथम विश्व युद्ध में विश्व के कई देश दो गुटों में बट गए थे। मित्र राष्ट्र (Allied Powers) और केन्द्रीय शक्ति (Central Power)। मित्र राष्ट्रों का नेतृत्व ब्रिटेन, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, रूस और फ्रांस कर रहे थे। जबकि केन्द्रीय शक्ति का नेतृत्व जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी ऑटोमन साम्राज्य और बुल्गारिया कर रहे थे। चार वर्षो तक चलने वाला यह युद्ध इतना भयानक था कि इसमें लगभग एक करोड़ से ज्यादा लोग मारे गए थे जबकि इससे दोगुना लोग घायल हुए थे। यह महाविनाशकारी युद्ध 52 महीने तक चला था। इस महाविनाशकारी युद्ध के बाद विश्व में कई बदलाव देखे गए। कई देश बर्बाद हो गए तो कुछ देश आगे बढ़ गए। इसी युद्ध के बाद अमेरिका विश्व में सुपर पॉवर बनकर उभरा।
यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की का जीवन परिचय
प्रथम विश्व युद्ध के कारण (Cause of First World War in Hindi)
प्रथम विश्व युद्ध के यदि कारण पर विचार किया जाएं तो यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि इसके कोई एक दो कारण नहीं थे बल्कि अनेक कारण थे। कई कारण ऐसे थे जिनके बीज बहुत पहले ही बो दिए गए थे जबकि कुछ कारण तात्कालिक थे। फिर भी इन कारणों को मुख्य रूप से प्रथम विश्व युद्ध का जिम्मेदार माना गया है।
यूरोपीय देशो के बीच हथियारों की होड़
प्रथम विश्व के कई कारणों में से एक प्रमुख कारण पश्चिमी देशो में हथियारो की होड़ थी। सभी एक बढ़कर एक हथियार को विकसित करने में लगे थे। यूरोपीय देशो में मशीन गन, टैंक, बड़े बड़े जहाजी बेड़े विकसित कर चुके थे। उनके पास एक बड़ी सेना की टुकड़ी भी थी। क्योकि कई देशो ने भविष्य में होने वाले युद्धों की तैयारी को ध्यान में रखते हुए अपनी सेनाओ की संख्या में बहुत अधिक वृद्धि कर ली थी। इन में जर्मनी और इंग्लैंड सबसे आगे थे।
यूरोप में होने वाली औद्योगिक क्रांति
विश्व में सबसे पहले यूरोप में ही औद्योगिक क्रांति हुई थी। औद्योगिक क्रांति के कारण उन्हें जहाँ एक ओर कच्चे माल की आवश्यकता थी तो वही तैयार माल को बेचने के लिए एक बड़े बाजार की आवश्यकता भी थी। परिणाम यह हुआ कि वे दूसरे देशो पर आक्रमण करने की तैयारी में जुट गए। जो विश्व युद्ध का कारण बना।
राष्ट्रों के बीच गुप्त संधियां
प्रथम विश्व युद्ध का एक प्रमुख कारण राष्ट्रों के बीच होने वाली गुप्त संधियां भी थी। राष्ट्रों के बीच होने वाली गुप्त संधियों ने विभिन्न देशो को एक दूसरे के प्रति अविश्वास की स्थिति उत्पन्न कर दी। इस कारण यूरोपीय देशो में डर और अविश्वास का वातावरण बन गया।
साम्राज्यवाद की प्रवृति
प्रथम विश्व युद्ध का एक प्रमुख कारण यूरोपीय देशो में साम्राज्यवाद की प्रवृति रही थी। सभी देश चाहते थे कि उनका अधिक से अधिक देशो पर अधिकार हो जाए। वे एशिया और अफ्रीका के अधिक से अधिक देशो पर शासन करना चाहते थे। इनमे इंग्लैंड सबसे आगे था। साम्राज्यवाद की प्रवृति के कारण वे हथियारों पर अधिक धन व्यय करने लग गए। उन्होंने इसके लिए सेनाओ की संख्या में बेतहासा वृद्धि कर ली। जो बाद में विश्वयुद्ध का कारण बना।
तात्कालिक कारण
प्रथम विश्व युद्ध का तात्कालिक कारण आर्चड्यूक फर्डिनेंड और उनकी पत्नी की हत्या था। आर्कड्यूक फर्डिनेंड ऑस्ट्रिया के प्रिंस थे और वे ऑस्ट्रिया के राजा बनने वाले थे। उस समय वे अपनी पत्नी के साथ सेराजेवो, जो बोस्नियां में है, वहां घूमने आये हुए थे जहाँ, 28 जून, 1914 में उन दोनों की हत्या कर दी गई। इस हत्या के बाद समूचा यूरोप स्तब्ध था और वे सभी इसके लिए सर्विया को जिम्मेदार ठहराया। इस घटना के बाद ऑस्ट्रिया ने सर्विया को समर्पण करने को कहा। ऑस्ट्रिया को ऐसा लगता था कि साइबेरिया जो कि बोस्निया को स्वतंत्रता प्राप्ति में सहायता कर रहा था, इस हत्या में शामिल है। परन्तु साइबेरिया ने रूस से सहायता मांगी और फिर रूस के हस्तक्षेप से स्थिति और बिगड़ गई। इस घटना के एक महीने बाद ही अर्थात 28 जुलाई, 1914 को ऑस्ट्रिया ने सर्बिया पर आक्रमण कर दिया। इसके बाद इन दो देशो के युद्ध में विभिन्न देश शामिल होते चले गए और धीरे धीरे यह एक महाविनाशकारी विश्व युद्ध का स्वरुप ले लिया।
प्रथम विश्व युद्ध के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु (Important Points of World War I)
- प्रथम विश्व युद्ध का आरम्भ 28 जुलाई, 1914 को हुआ था।
- यह युद्ध 4 वर्षो तक चला था, अर्थात यह महाविनाशकारी युद्ध 52 महीने तक चला था।
- प्रथम विश्व युद्ध में 37 देशो ने भाग लिया था।
- प्रथम विश्व युद्ध का तात्कालिक कारण बोस्निया में ऑस्ट्रिया के राजकुमार की हुई हत्या था।
- प्रथम विश्व युद्ध में दुनिया दो गुटों में बटी थी – मित्र राष्ट्र शक्ति (Allied Powers) और केन्द्रीय शक्ति (Central Power)।
- मित्र राष्ट्रों में इंग्लैंड, जापान, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, रूस और फ्रांस थे।
- धुरी राष्ट्रों का नेतृत्व जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी ऑटोमन साम्राज्य और बुल्गारिया कर रहे थे।
- प्रथम विश्व युद्ध का एक प्रमुख कारण राष्ट्रों के बीच होने वाली गुप्त संधियां था।
- प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति 11 नवम्बर, 1918 को जर्मनी के आत्मसमर्पण के साथ हो गई ।
- युद्ध के हर्जाने के रूप में जर्मनी से 6 अरब 50 करोड़ राशि की मांग की गई थी।
- इस युद्ध के बाद दो प्रमुख बदलाव हुए, पहला – राष्ट्रसंघ का निर्माण और दूसरा – अमरीका विश्व में सबसे अधिक शक्तिशाली देश के रूप में उभर कर आया।
प्रथम विश्व युद्ध का अंत (End of First World war in Hindi)
इस युद्ध ने जर्मनी को बर्बाद कर दिया था। परिणामतः उसके पास आत्मसमर्पण के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं बचा था। अंततः 11 नवम्बर 1918 को आधिकारिक रूप से जर्मनी ने आत्मसमर्पण कर दिया। जर्मनी के आत्मसमर्पण के साथ ही प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति हो गई। इसके बाद 28 जून, 1919 को जर्मनी ने वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर किये। इस संधि के बाद कहने को तो सब शांत हो गए थे मगर सच्चाई यह थी कि यही संधि द्वितीय विश्व युद्ध का एक प्रमुख कारण बना। क्योकि जर्मनी इस संधि को एक अपमानजनक संधि मानता था। इस संधि के शर्त के अनुसार जर्मनी को अपनी ही भूमि के एक बड़े से भू-भाग से हाथ धोना पड़ा। जर्मनी को दूसरे देशो पर अधिकार करने पर भी रोक लगा दी गई। साथ ही उसे अपनी सेना का आकार भी काफी सीमित करना पड़ा। इस तरह इतिहासकार का मानना है कि इस संधि के द्वारा द्वितीय विश्व युद्ध के बीज प्रथम विश्व युद्ध में ही रोप दिए गए थे।
इस युद्ध के समाप्त होते होते विश्व में बहुत से बदलाव हुए। रूस, जर्मनी, ऑस्ट्रिया जैसे देशो का विनाश हो गया। यूरोप की सीमाओं का फिर से निर्धारण हुआ लेकिन इस युद्ध में सबसे अधिक लाभ अमेरिका को हुआ। प्रथम विश्व युद्ध के बाद ही अमेरिका विश्व में एक सुपरपॉवर के बनकर उभरा।
प्रथम विश्वयुद्ध में भारत की भूमिका
प्रथम विश्वयुद्ध के समय भारत पर इंग्लैंड का अधिकार था। इस कारण यहाँ के लोगो को भी इंग्लैंड की ओर से लड़ाई में जाना पड़ा। अंग्रेज बड़ी संख्या में भारत के लोगो को सेना में भर्ती करके विभिन्न देशो के युद्धग्रस्त क्षेत्रो में भेज दिया था। बताया जाता है कि वर्ष 1914 से लेकर वर्ष 1918 तक इन चार वर्षो में भारत से 11 लाख सैनिको को इंग्लैंड के द्वारा युद्धग्रस्त देशो में भेजा गया था। बताया ये भी जाता है उन 11 लाख भारतीय सैनिको में से 74,000 हजार ऐसे भी सैनिक थे जो फिर कभी लौट कर भारत नहीं आ पाएं। उनकी मृत्यु वही लड़ते हुए हो गई। लौटने वाले अन्य भारतीय सैनिको में से 70,000 हजार भारतीय सैनिक ऐसे थे जो, स्थायी तौर पर विकलांग हो चुके थे। अंग्रेज भारत से न केवल सैनिक के नाम पर लोगो को ले गए बल्कि इसके अलावा वे ऐसे लोगो को भी ले गए जो, अन्य किसी महत्वपूर्ण रोजगार से जुड़े हुए थे। अंग्रेज बड़ी संख्या में धोबी, नाई, मजदूर को भी विदेश ले गए थे। भले ही भारत इस युद्ध में प्रत्यक्ष रूप से नहीं लड़ रहा था मगर इंग्लैण्ड के अधीन होने के कारण उसे अप्रत्यक्ष रूप से भाग लेना ही पड़ा था और इस कारण इस युद्ध में भारत को भी एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी। प्रथम विश्व युद्ध में भारत को बड़ी संख्या में न केवल अपनों को खोना पड़ा था बल्कि भारत को बहुत बड़ी आर्थिक क्षति भी हुई थी। उस युद्ध में भारत की ओर से आठ करोड़ पाउंड के उपकरण और लगभग 15 करोड़ पाउंड की सीधी आर्थिक सहायता के रूप में इंग्लैंड को देने पड़े थे। इस तरह से प्रथम विश्व युद्ध भारत के लिए भी विनाशकारी रहा और भारत ने इस युद्ध में बहुत कुछ गवांया।
प्रथम विश्वयुद्ध के परिणाम (Result of First World war in Hindi)
प्रथम विश्वयुद्ध ने पुरे विश्व की आर्थिक, सामाजिक और राजनितिक दिशा और दशा दोनों को बदलकर रख दिया था. जिनका परिणाम निम्नलिखित है-
आर्थिक परिणाम – प्रथम विश्वयुद्ध के बाद विश्व के सभी देशों को आर्थिक क्षति का काफी सामना करना पड़ा था. जन धन की अपार क्षति हुई. लाखो लोग मारे गए, कई हज़ार करोडो की सम्पति नष्ट हो गई और कई हजारों फेक्ट्री बंद हो गई. आर्थिक संकट उत्पन होने से वस्तुओं की मूल्य में बढ़ोतरी हो गई जिससे मुद्रा स्थिति की समस्या उत्पन हो गई.
सामाजिक परिणाम – प्रथम विश्वयुद्ध के बाद कई तरह के सामाजिक परिणाम सामने आये है जिसमे काले गोरे का भेद, जनसंख्या की क्षति, मजदूरों की स्थिति में सुधार , सामाजिक मान्यताओ में काफी बदलाव और स्त्रियों के सामाजिक स्तर में सुधार आदि थे.
राजनितिक परिणाम – प्रथम विश्वयुद्ध में बड़े बड़े साम्राज्य और देश बिखर गए. विश्व के मानचित्र में बदलाव देखने को मिला. प्रथम विश्वयुद्ध के पहले राजनीति स्तर में यूरोप का दबदबा था लेकिन 1918 के बाद यूरोप का दबदबा ख़त्म हो गया और अमेरिका शक्तिशाली देश बन गया.
निष्कर्ष – तो आज के इस लेख में आपने जाना प्रथम विश्वयुद्ध (First World War in Hindi) के बारे में. उम्मीद करते है आपको यह जानकारी जरूर पसंद आई होगी. अगर आपका कोई सुझाव है तो कमेंट करके जरूर बताइए. अगर आपको लेख अच्छा लगा हो तो रेटिंग देकर हमें प्रोत्साहित करें.
Q : प्रथम विश्वयुद्ध कब हुआ? Ans : 28 जुलाई 1914 से लेकर 11 November नवम्बर 1918 तक।
Q : द्वितीय विश्व युद्ध कब हुआ? Ans : 1 सितंबर 1939 से लेकर 2 सितंबर 1945 तक।
Q : कितने विश्व युद्ध हुए हैं? Ans : अब तो 2 विश्व युद्ध हुए हुए. प्रथम विश्व युद्ध 1914 से लेकर 1918 के बीच और द्वितीय विश्व युद्ध 1 सितंबर 1939 से लेकर 2 सितंबर 1945 तक हुआ।
Q : प्रथम विश्व युद्ध में कितने देश शामिल थे? Ans : प्रथम विश्व युद्ध में 30 से ज्यादा देश शामिल थे।
- पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच युद्ध
- द्वितीय विश्व युद्ध के कारण
- रूस और यूक्रेन का विवाद
- शीत युद्ध किसे कहते हैं
- 1962 भारत-चीन युद्ध
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प्रथम विश्व युद्ध कारण प्रभाव और परिणाम | First World War In Hindi
प्रथम विश्व युद्ध कारण प्रभाव और परिणाम First World War In Hindi : सन 1914 से 1918 ई. तक लड़ा गया प्रथम विश्व युद्ध विश्व इतिहास की महत्वपूर्ण घटना है.
इस युद्ध का प्रभाव सम्पूर्ण विश्व पर पड़ा. इस युद्ध से विश्व में कई क्रांतिकारी परिवर्तन हुए. विश्व के दो गुटों में बटने के साथ ही हथियारों की होड़ भी तीव्र हो गई थी.
प्रथम विश्व युद्ध को ग्रेट वार अथवा ग्लोबल वार भी कहा जाता था.इस लेख में फर्स्ट वर्ल्ड वॉर के कारण तथा प्रभाव व परिणाम की विस्तृत चर्चा एवं जानकारी दी गई है.
प्रथम विश्व युद्ध कारण प्रभाव और परिणाम First World War In Hindi
आज से तक़रीबन 104 वर्ष पूर्व एक ऐसा महायुद्ध लड़ा गया, जिसके परिणाम के स्वरूप विश्व के तीन महाद्वीपों के देशों के नक्शों तथा हालात पहले से पूरी तरह बदल गये.
यह पहला विश्व युद्ध था. को 28 जुलाई 1914 से 1919 तक यानि चार साल और चार महीने तक धरती एवं आसमान और समुद्र में लड़ा गया था.
युद्ध का परिणाम बड़ी तबाही, कुपोषण, आर्थिक हालात का जंजर स्वरूप के रूप में सामने आया. आज हम इस विश्व युद्ध के प्रमुख कारण के बारे में जानेगे.
ग्लोबल वॉर या महायुद्ध की संज्ञा दिए जाने वाले पहले विश्व युद्ध को वॉर टू एंड आल वार्स भी कहा गया हैं.
अब तक विश्व के इतिहास में इतनी बड़ी लड़ाई कभी नहीं हुई थी. युद्ध के बाद आए आंकड़ों में सामने आई कि इस महायुद्ध में एक करोड़ 70 लाख लोग मौत के मुहं में चले गये जबकि 2 करोड़ से अधिक लोग घायल हो गये, मरने वाले तथा घायल होने वाले लोगों में सबसे बड़ी संख्या साधारण नागरिकों की थी.
किसके बिच लड़ा गया first world war in hindi
यह महायुद्ध केन्द्रीय शक्तियाँ व मित्र राष्ट्रों की संयुक्त सेनाओं के मध्य लड़ा गया था. जिसमें एक तरफ रूस, फ्रांस, ब्रिटेन, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका और जापान की सेनाए थी तो दूसरी तरफ ऑस्ट्रो- हंगेरियन, जर्मनी और टर्की थे.
यूरोप, एशिया व अफ़्रीका इन तीन महाद्वीपों के जल थल वायु क्षेत्र में लड़े गये युद्ध में शुरूआती जीत जर्मनी ने 1917 में हासिल की, वाकई में यह जीत नहीं जर्मनी की तबाही का कारण ही थी,
जिसने अमेरिका के जलपोतों को डुबो दिया था. जिसके परिणामस्वरूप अमेरिका भी इस महायुद्ध में प्रत्यक्ष रूप से शामिल हो गया. उसी समय 1917 में रुसी क्रांति के चलते सोवियत रूस पीछे हट गया तथा अपना ध्यान आंतरिक स्थिति पर देने लगा.
तीन बड़े देशों ब्रिटेन , फ़्रांस और अमरीका ने आखिर 1918 के अंतिम दौर में जर्मनी को हरा दिया तथा आस्ट्रिया के साथ मिलकर उसने युद्ध विराम की संधि पर दस्तखत कर दिए.
प्रथम विश्व युद्ध के कारण (Causes Of The First World War In Hindi)
इस महायुद्ध के मुख्य कारण निम्नलिखित थे.
जर्मनी की पूर्वी नीति – जर्मनी किसी तरह अपने साम्राज्य को बड़ा करना चाहता था मगर पश्चिम यूरोप के अधिकतर देश एक दूसरे से मिल चुकी थे,
अतः उसने पूर्व को अपना रास्ता चुना तथा टर्की के साथ अपने सम्बन्ध मजबूत किये उसने आस्ट्रिया तथा के साथ भी अच्छे रिश्ते बनाएं इस कारण से विश्व में दो गुट तैयार हो गये जिसके आपसी विवादों के चलते प्रथम विश्व युद्ध का जन्म हो गया.
रूस फ़्रांस तथा इंग्लैंड की संधि – पहले विश्व युद्ध का मूल कारण फ़्रांस और जर्मनी की आपसी कटुता थी. 1900 तक जर्मनी का शासक बिस्मार्क रूस का अच्छा दोस्त था.
मगर इस संधि के समापन के बाद विलियम द्वितीय ने रूस के साथ सम्बन्ध बनाने की बजाय आस्ट्रिया तथा टर्की को अहमियत दी, जिसका नतीजा यह हुआ कि रूस फ़्रांस के साथ चला गया तथा 1893 में उन्होंने एक संधि कर दी.
उधर भले ही फ्रांस और ब्रिटेन एक समय एक दुसरे के दुश्मन थे. मगर जर्मनी के प्रभुत्व के सामने दोनों एक हो गये तथा 1904 में फ्रांस और ब्रिटेन के मध्य एक समझौता हो गया,
इसके तीन साल बाद 1907 में तीनों राष्ट्र फ्रांस रूस तथा ब्रिटेन के मध्य एक साझा करार हो गया, जिसके परिणामस्वरूप यूरोप दो भागों में विभाजित हो गया.
गुप्त संधियाँ एवं दो गुटों का निर्माण – प्रथम विश्व युद्ध से पूर्व जर्मनी के बिस्मार्क ने कुटनीतिक संधियों द्वारा फ्रांस को अकेला कर दिया.
फ्रांस ने रूस व इंग्लैंड के साथ संधि करके जर्मनी, आस्ट्रिया, इटली के त्रिगुट के विरुद्ध अपना त्रिगुट संघ बना लिया. विश्व दो गुटों में बट गया. प्रथम विश्व युद्ध इन दोनों गुटों की शक्ति का प्रदर्शन था.
इन्हें गुप्त नीतियों का जन्मदाता भी कहा जाता हैं. जर्मनी ने फ़्रांस पर हमला कर दो बड़े प्रदेशों को अपने साथ मिला लिया. फ़्रांस अपने प्रतिशोध की निरंतर योजनाएं तैयार कर रहा था.
वह किसी भी कीमत पर अपने खोये हुए प्रदेशों को प्राप्त करना चाहता था. दूसरी तरफ फ्रांस पर दवाब बढाने के लिए जर्मनी ने रूस, आस्ट्रिया और इटली के साथ संधि कर दी. मदद के लिए अब फ़्रांस को अमेरिका रूस एवं ब्रिटेन के पास जाने के सिवाय और कोई रास्ता नहीं था.
शस्त्रीकरण व सैन्यवाद – 19 वीं शताब्दी के उतरार्द में यूरोप के अधिकाँश देश ने अपने शस्त्र बढ़ाने एवं सैन्यवाद को प्रोत्साहन दिया.
सैनिक शक्ति के बल पर जर्मनी ने आस्ट्रिया को पराजित किया. अब फ्रांस, रूस व इंग्लैंड ने भी अपनी सैनिक शक्ति बढ़ाना आरम्भ कर दिया. ऐसी स्थति में युद्ध होना ही था.
सम्राज्यवाद का प्रभाव – औद्योगिक क्रांति के बाद यूरोपीय देशों में समर्द्धशाली बनने की महत्वकांक्षा बढ़ने लगी. कच्चा माल प्राप्त करने तथा पक्का माल बेचने के लिए अपने उपनिवेश स्थापित करने लगे जिसने साम्राज्यवाद को प्रोत्साहन दिया.
इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, इटली आदि देशों ने कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, भारत, अफ्रीका व एशिया के देशों पर अधिकार कर अपने सम्राज्य का विस्तार किया. सम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा ने भी यूरोपीय देशों मर संघर्ष की स्थति उत्पन्न की.
समाचार पत्रों का प्रभाव – इस समय यूरोप में समाचार पत्रों में भी युद्ध को प्रोत्साहन देने वाले समाचारों की अधिकता रही.
इन समाचार पत्रों में एक दूसरे देशों पर दोषारोपण को बढ़ावा दिया जाने लगा और भड़काने वाले लेख प्रकाशित किये जाने लगे. एक समाचार पत्र की पक्तियाँ थी- ”रूस तैयार है, फ्रांस को भी तैयार रहना चाहिए”
उग्र राष्ट्रीयता की भावना – राष्ट्रवाद की भावना के बल पर उग्र राष्ट्रीयता की भावना बढ़ने लगी. प्रत्येक राष्ट्र अपने विकास, विस्तार, सम्मान व गौरव के लिए अन्य देशों को नष्ट करने के लिए तैयार रहते थे.
फ्रांस, अल्लास व लोरेन प्रदेश चाहता था जबकि राष्ट्रीयता की भावना के आधार पर पोल, चेक, सर्ब तथा बल्गर लोग आस्ट्रिया से अलग होना चाहते थे.
२० वीं सदी के शुरूआती दशकों में यूरोप के देशों में राष्ट्रीयता की भावना चरम पर थी. विभिन्न राज्यों में इस भावना ने बेहद उग्र रूप धारण कर लिया था.
सभी देश अपनी प्रगति तथा विस्तार पर ध्यान दे रहे थे. अपने हितों की पूर्ति के लिए वे किसी भी सीमा को पार करने के लिए तैयार थे,
यही वजह थी कि राष्ट्रों के आपसी हितों में टकराव के कारण युद्धों की स्थिति तैयार कर दी. अपने देश को युद्ध जीताकार सभी देश अपनी सीमाओं की वृद्धि की महत्वकांक्षी थे.
केसर विलियम की महत्वकांक्षा – जर्मन सम्राट केसर विलियम जर्मनी को विश्व शक्ति बनाना चाहता था. तुर्की से समझौता करके उसने बगदाद बर्लिन रेलवे लाइन का निर्माण करवाया.
नौसेना में विकास को लेकर उसने इंग्लैंड को नाराज कर दिया, उसने विचार प्रकट किया कि समुद्री विस्तार जर्मनी की महानता के लिए अनिवार्य नियति है.
यह जर्मनी का महत्वकांक्षी शासक था, जो अमेरिका व रूस की तरह जर्मनी को अंतर्राष्ट्रीय शक्ति बनाने का इच्छुक था. वह अपने साम्राज्य के विकास के लिए अपना अधिकाँश व्यय सेना पर करता था.
उसने कई बड़े जलपोतों का निर्माण करवाया, ब्रिटेन ने सम्राट को ऐसे न करने का सुझाव भी दिया मगर वह किसी कि नही सुनता था. अतः ब्रिटेन को मजबूरी में अमेरिका और रूस की तरफ जाना पड़ा.
अंतर्राष्ट्रीय संस्था का अभाव – FIRST WORLD WAR के समय ऐसी कोई अंतर्राष्ट्रीय संस्था नही थी. जो यूरोपीय देशों के आपसी विवादों को सुलाझाकर उन्हें युद्ध से विमुख कर दे. प्रथम विश्वयुद्ध के बाद ऐसी संस्थाओं का विकास हुआ.
अंतर्राष्ट्रीय संकट एवं बाल्कन युद्ध का प्रभाव – 20 वीं शताब्दी के अंतर्राष्ट्रीय घटनाकर्मों से विश्व के राष्ट्र एक दूसरे के विरोधी हो गये थे और दो सशस्त्र गुटों में बट गये. 1904-05 ई में जापान युद्ध, मोरक्को व अगाडीर संकट, आस्ट्रिया द्वारा बेसिन्या व हर्जगोविना पर अधिकार व बाल्कन युद्ध 1912-13 इसी प्रकार के संकट थे.
तात्कालिक कारण – बोसिन्या व हर्जगोविना को लेकर सर्बिया में आस्ट्रिया विरोधी भावना थी. ऐसें में आस्ट्रिया का राजकुमार फर्डीनेड व उसकी पत्नी की बोसिन्या की राजधानी साराजेवो में दो सर्ब युवकों ने 28 जून 1914 को सरे आम हत्या कर दी.
इसी बात को लेकर 28 जुलाई 1914 को आस्ट्रिया ने सर्बिया पर आक्रमण कर दिया. रूस ने सर्बिया के समर्थन में युद्ध प्रारम्भ कर दिया. जर्मनी ने भी रूस के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी. इसी के साथ ‘ प्रथम विश्व युद्ध (First World War)’ की शुरुवात हो गई.
अन्य कारण- 18 जून 1914 को आस्ट्रिया के उत्तराधिकारी आर्कड्यूक फ्रांसिस की हत्या प्रथम विश्व युद्ध का बड़ा कारण था. जिसका शक ब्रिटेन फ्रांस और रूस के संयुक्त मौर्चे पर गया.
इस वर्ल्ड वॉर का एक अन्य सबसे बड़ा कारण सैन्य शक्ति था. दोनों गुटों के देश अपनी अपनी सेना को आधुनिक हथियारों से लैस कर रहे थे.
हथियारों की इस होड़ ने विश्व शांति पर खतरा पैदा कर दिया आगे जाकर यह एक भयानक महासंग्राम में तब्दील हो गई जिन्हें हम प्रथम विश्व युद्ध कहते हैं.
प्रथम विश्व युद्ध की प्रकृति (How Did The First World War Start)
इस युद्ध में एक तरफ मित्र राष्ट्र थे. एवं दूसरी तरफ धुरी राष्ट्र. मित्र राष्ट्रों में इंग्लैंड, फ़्रांस, रूस, जापान, अमेरिका, इटली, सर्बिया, पुर्तगाल, रूमानिया, चीन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और दक्षिण अफ्रीका शामिल थे.
धुरी राष्ट्रों में जर्मनी, आस्ट्रिया, हंगरी, टर्की व बल्गेरिया आदि शामिल थे. युद्ध के प्रारम्भिक वर्षों में धुरी राष्ट्र हावी रहे, इसी बिच रूस युद्ध से अलग हो गया और 1918 में जर्मनी के साथ ब्रेस्ट लिटोवस्क की संधि कर ली.
मित्र राष्ट्रों की विजय के साथ 11 नवम्बर 1918 को प्रात 11 बजे प्रथम विश्वयुद्ध समाप्त हुआ. युद्ध की समाप्ति के बाद पेरिस शान्ति समझोता हुआ और विभिन्न देशों के साथ अलग अलग संधियाँ हुई. जर्मनी के साथ वर्साय की संधि की गई.
प्रथम विश्व युद्ध के परिणाम (First World War Reasons And Results In Hindi)
- युद्ध में अपार जन धन की हानि हुई, छ करोड़ सैनिकों ने भाग लिया. जिनमे से 1 करोड़ तीस लाख सैनिक मारे गये और 2 करोड़ 20 लाख सैनिक घायल हो गये थे. युद्ध में लगभग एक खरब 86 अरब डॉलर खर्च हुए और लगभग एक खरब डॉलर की सम्पति नष्ट हुई.
- जर्मनी, रूस, आस्ट्रिया में निरंकुश राजतन्त्रो की समाप्ति हुई.
- युद्ध के बाद शांति संधियों के माध्यम से अनेक परिवर्तन हुए. चेकोस्लोवाकिया, युगोस्लाविया, लिथुआनिया, लेटविया, एस्टोनिया, फिनलैंड, पोलेंड आदि देशों में नये राज्यों का उदय हुआ.
- विभिन्न विचारधाराओं पर आधारित सरकारों की स्थापना हुई. रूस में साम्यवादी सरकार, जर्मनी की नाजीवादी, इटली की फासीवादी सरकारों की स्थापना हुई.
- अमेरिका ने युद्धकाल में बड़ी मात्रा में मित्र राष्ट्रों को ऋण देकर आर्थिक सहयोग किया था. पेरिस शान्ति सम्मेलन में भी अमेरिकी राष्ट्रपति विल्सन की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी. इस युद्ध से अमेरिका के प्रभाव में वृद्धि हुई.
- युद्ध के समय घरेलू मौर्चे व चिकित्सा क्षेत्र में स्त्रियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही. अतः स्त्रियों की स्थति में सुधार आया.
- द्वितीय विश्व युद्ध का बीजारोपण भी इसी युद्ध के परिणामस्वरूप हुआ. वर्साय की संधि से असंतुष्ट होकर जर्मनी व इटली ने विश्व को दूसरे विश्वयुद्ध की ओर धकेल दिया.
- अमेरिकी राष्ट्रपति विल्सन के प्रयासों से विभिन्न देशों के विवादों को सुलझाने के लिए राष्ट्रसंघ की स्थापना की गई. यदपि “ प्रथम विश्व युद्ध ” विवादों को सुलझाने में संस्था सफल नही हुई.
- प्रथम विश्व युद्ध के कारण
- द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण स्वरूप
- युद्ध और शांति पर भाषण
उम्मीद करता हूँ दोस्तों प्रथम विश्व युद्ध कारण प्रभाव और परिणाम First World War In Hindi का यह लेख आपको पसंद आया होगा.
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One comment
It very amazing
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- सामान्य ज्ञान
- First World War History in Hindi: प्रथम विश्व युद्ध का इतिहास
History of The First World War in Hindi
28 जुलाई का दिन विश्व इतिहास के एक अत्यंत महत्वपूर्ण दिन के रूप में याद रखा जाता है, क्योंकि इसी दिन First World War यानि प्रथम विश्व युद्ध आरम्भ हुआ था। दो देशों के बीच हुई एक हल्की झड़प ने किस तरह सम्पूर्ण विश्व को एक खतरनाक और अनिश्चितकाल काल की त्रासदी में फँसा दिया था, यह युद्ध उसका ज्वलंत उदाहरण है। वर्ल्ड वार या विश्व युद्ध से तात्पर्य एक ऐसे युद्ध से है जिसमे कई देश एक दूसरे से अपने-अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति हेतु लडे थे और जिसमे अनेक देशों को अभूतपूर्व क्षति उठानी पड़ी थी।
जब चार वर्ष के लम्बे अंतराल के पश्चात प्रथम विश्व युद्ध (First World War) समाप्त हुआ, तब तक संसार के चार बड़े साम्राज्य बर्बादी की हालत मे पहुँच गये थे। लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका एक महाशक्ति बनकर उभरा और समूचे यूरोप की सीमाएँ फिर से निर्धारित हुई। पराजित राष्ट्रों को अपमानजनक संधियाँ स्वीकार करने को विवश किया गया और उनका समस्त गौरव और अहंकार धूल-धूसरित हो गया।
चूँकि सभ्यता के इतिहास में प्रथम विश्व युद्ध ( First World War ) एक अविस्मरणीय घटना है, इसीलिये आज हम आपको इस युद्ध की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं से संबंधित तथ्यों और सूचनाओं के बारे में बताने जा रहे हैं और साथ ही यह भी बतायेंगे कि आखिर यह विनाशकारी युद्ध हुआ ही क्यों –
भारत के 100 सबसे महान स्वतंत्रता सेनानी – 100 Freedom Fighters of India in Hindi
First World War Reasons in Hindi
1. First World War की शुरुआत के पीछे दो कारण बताये जाते हैं, जिनमे से तात्कालिक कारण था – ऑस्ट्रिया के आर्कड्यूक फ्रान्ज़ फर्डीनेंड और उनकी गर्भवती पत्नी सोफी का वध। इन दोनों की 28 जून 1914 के दिन, बोस्निया की राजधानी साराजेवो में एक सर्बियाई राष्ट्रवादी द्वारा हत्या कर दी गई, जिसके फलस्वरूप ऑस्ट्रिया और हंगरी ने 28 जुलाई को सर्बिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। इनकी हत्या ने युद्ध को भड़काने में चिंगारी का काम किया।
2. फ्रान्ज़ फर्डीनेंड सम्राट फ्रेंज जोसफ के भतीजे थे और वह ऑस्ट्रिया और हंगरी की राजगद्दी के वारिस थे। इनकी हत्या की योजना एक सर्बियाई आतंकवादी संगठन ब्लैक हैण्ड ने बनायीं थी। जिस आदमी ने युवराज और उनकी पत्नी की हत्या की थी, वह गव्रिलो प्रिंसिप नाम का एक बोस्नियाई क्रांतिकारी था।
First World War History प्रथम विश्व युद्ध का इतिहास
3. लेकिन First World War के आरम्भ होने का सर्वप्रमुख कारण था – यूरोपीय देशों की अनियंत्रित महत्वाकांक्षा। औद्योगिक क्रांति के कारण सभी बड़े देश ऐसे उपनिवेश चाहते थे, जहाँ से वह कच्चा माल पा सकें और फिर अपने देश में मशीनों से बनाई हुई चीजों को दूसरे देशों में बेच सकें। इस उद्देश्य को हासिल करने के लिए हर देश, दूसरे देश पर साम्राज्य करने की चाहत पालने लगा।
4. फिर ऐसा करने के लिये सैनिक शक्ति बढ़ाई गई और गुप्त कूटनीतिक संधियाँ की गईं। इससे राष्ट्रों में अविश्वास और वैमनस्य बढ़ा और युद्ध अनिवार्य हो गया। साम्राज्य विस्तार की आग में पहले से ही सुलग रहा यूरोप युद्ध के मुहाने पर खड़ा ही था कि उसी समय ऑस्ट्रिया के युवराज की हत्या हो गयी। इस तरह वर्ल्ड वार छिड़ने के लिये जिस चिंगारी की जरुरत थी, वह इस घटना ने पूरी कर दी।
5. हर देश पिछली पराजयों में खोये क्षेत्रों को कब्जाना चाहता था और अपना साम्राज्य बढ़ाना चाहता था। ऑस्ट्रिया भी इससे अछूता नहीं रहा था। सर्बिया के नाराज होने का मुख्य कारण यही था कि ऑस्ट्रिया और हंगरी ने सन 1909 में बोस्निया पर कब्ज़ा कर लिया था।
6. इसके अलावा जर्मनी भी बहुत नाखुश था, क्योंकि फ्रांस ने मोरक्को पर कब्ज़ा कर लिया था। इस घटना के कारण सन 1911 से ही जर्मनी, फ्रांस के खिलाफ लगातार विरोध प्रकट कर रहा था।
7. शुरुआत में संयुक्त राज्य अमेरिका युद्ध से अलग था, पर जब जर्मनी की एक पनडुब्बी ने इंगलैण्ड के लुसिटिनिया जहाज़ को, जिसमे 125 अमेरिकी नागरिक समेत 1195 यात्री सवार थे, डूबो दिया तो अमरीका भी ब्रिटेन की ओर से First World War में कूद पड़ा।
भारत से जुडी सामान्य ज्ञान की यह जरुरी बातें हर किसी को जाननी चाहियें – India General Knowledge Facts in Hindi
First World War Progress in Hindi
8. पहला विश्व युद्ध 28 जुलाई सन 1914 के दिन आरंभ हुआ था और चार वर्ष बाद 11 नवंबर सन 1918 में जाकर समाप्त हुआ। इस तरह First World War लगभग 52 महीने तक चला था। यह युद्ध एशिया, यूरोप और अफ्रीका इन तीन महाद्वीपों में जल, थल तथा आकाश में लड़ा गया था।
9. सन 1915 में लुसिटानिया के डूबने पर अमेरिका भी युद्ध में कूद पड़ा। हालाँकि अमेरिका युद्ध नहीं चाहता था, वह सिर्फ इसका शांतिपूर्ण हल चाहता था। लेकिन जब जर्मनों ने धमकी दी कि वह ब्रिटेन जाने वाले हर जहाज को डुबो देंगे, तो नागरिकों के विरोध के कारण अमेरिका को मजबूरन युद्ध में उतरना ही पड़ा। अमेरिका ने 6 अप्रैल 1917 को युद्ध में सक्रिय रूप से प्रवेश किया।
10. दुनिया के लगभग सभी शक्तिशाली देश First World War में शामिल थे। इस युद्ध में दो पक्ष थे एक केंद्रीय शक्तियाँ और दूसरे मित्र राष्ट्र। जर्मनी, ऑस्ट्रिया, हंगरी, तुर्की और उस्मानिया केंद्रीय शक्तियाँ थीं।
11. जबकि ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, इटली, सर्बिया, पुर्तगाल, यूनान, बेल्जियम मित्र राष्ट्र थे। बाद में संयुक्त राज्य अमेरिका भी मित्र राष्ट्रों की ओर से फर्स्ट वर्ल्ड वार में शामिल हो गया था।
इस तरह आगे बढ़ा था फर्स्ट वर्ल्ड वार
12. First World War को सभी युद्धों को खत्म करने वाला युद्ध (The War to End All Wars), राष्ट्रों का युद्ध (The War of the Nations) और महायुद्ध (The Great War) के नाम से भी जाना जाता है।
13. First World War के मुख्य नेता थे – केसर विल्हेल्म II, रूस का जार निकोलस II, सर्बिया के राजकुमार एलेग्जेंडर, अमेरिकी राष्ट्रपति विल्सन, ब्रिटेन के विदेश सचिव एडवर्ड ग्रे और डेविड लियोड जॉर्ज।
14. रूस विश्व युद्ध की शुरुआत से ही ऑस्ट्रिया-हंगरी के साथ आ गया था, लेकिन रूसी क्रांति के कारण वह First World War के इस महायुद्ध से अलग हो गया।
15. प्रारंभ में जर्मनी की जीत हुई। 1917 में जर्मनी ने अनेक व्यापारी जहाज़ों को डुबोया। 1918 ई. में ब्रिटेन , फ़्रांस और अमरीका ने जर्मनी आदि राष्ट्रों को पराजित किया।
16. जर्मनी और आस्ट्रिया की प्रार्थना पर 11 नवम्बर 1918 को प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति हुई।
17. First World War ख़त्म होते-होते चार बड़े साम्राज्य रूस, जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी और उस्मानिया ढह गए। यूरोप की सीमाएँ फिर से निर्धारित हुई और अमेरिका एक महाशक्ति बन कर उभरा।
ब्रह्माण्ड से जुड़े 40 अविश्वसनीय तथ्य – Universe Facts and Meaning in Hindi
First World War Casualities in Hindi
18. प्रथम विश्व युद्ध क्रूरता, आतंक और इंसानी बुराइयों का नंगा नाच था, जिसमे मानवता अपनी बेबसी पर आँसू बहा रही थी। हर देश उन निर्दोष सैनिकों के खून की होली खेलने पर आमादा था, जो मूर्ख और लोभी शासकों की लिप्सा पर अपनी जान की बाजी लगाने को मजबूर थे। इस भीषण युद्ध में जितने मरे वह सब मजबूर और दूसरों के निर्देशों के गुलाम थे, लेकिन जिन्होंने युद्ध की आग भड़काई उन्हें कुछ नहीं हुआ।
19. First World War के दौरान 30 देशों के 6.5 करोड़ से ज्यादा सिपाहियों को युद्ध क्षेत्र में भेजा गया, जिनमे से 60 लाख तो सिर्फ यूरोपीय देशों से ही थे। इनमे से 1 करोड़ से ज्यादा सैनिकों की मौत हो गयी और लगभग 2 करोड़ 10 लाख सिपाही जख्मी हुए। इनमे से मित्र राष्ट्रों के 60 लाख सैनिकों की मौत हुई और केन्द्रीय शक्तियों के 40 लाख लोग सैनिक मरे।
20. रूस ने First World War में अपने 1 करोड़ 20 लाख सैनिक भेजे थे, और रूसी सेना युद्ध की सबसे बड़ी सेना थी। युद्ध में तीन चौथाई से ज्यादा रूसी सैनिक मारे गये, घायल हुए या फिर युद्ध क्षेत्र में ही लापता हो गये। संयुक्त राज्य अमेरिका First World War के अंतिम वर्ष और लड़ाई के बीच में सम्मिलित हुआ था।
21. First World War के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका सिर्फ साढ़े सात महीनों की अवधि के लिये ही सक्रिय होकर लड़ा था, लेकिन इतने ही वक्त में उसके 116,000 सैनिकों को अपनी जान गँवानी पड़ी और 204,000 सैनिक गंभीर रूप से जख्मी हुए।
भीषण नरसंहार हुआ था फर्स्ट वर्ल्ड वार में
22. First World War के दौरान 75 लाख सिविलियन (आम लोगों) की भी मौत हुई जिनका युद्ध से कोई वास्ता ही नहीं था। पूरे First World War के दौरान मरने वाले लोगों की कुल संख्या 1.8 करोड़ से भी ज्यादा मानी जाती है, जबकि घायल लोगों की संख्या 2 करोड़ से उपर थी।
23. 1 जुलाई 1916 को, जिस दिन सोम्मे के युद्ध (Battle of the Somme) की शुरुआत हुई, पहले ही दिन 58,000 ब्रिटिश सैनिकों की मौत हो गयी और 2000 से भी ज्यादा घायल हुए। मिलिटरी के इतिहास में यह युद्ध के एक ही दिन में होने वाला सबसे बड़ा नुकसान रहा था।
24. First World War की सबसे भीषण लड़ाई ‘हंड्रेड डे ओफेन्सिव’ था। सन 1916 में शुरू हुई इस लड़ाई में सिर्फ कुछ महीने के दौरान ही 18 लाख से ज्यादा लोगों/सैनिकों ने अपने प्राण गंवायें थे।
25. First World War प्रत्येक देश के सैनिकों के लिये एक बुरा स्वप्न और कालदूत बनकर आया। युद्ध के समाप्त होने तक लगभग 250,000 जख्मी ब्रिटिश सैनिक या तो पूर्ण रूप से या फिर आंशिक रूप से अपंग हो गये थे।
26. विश्व युद्ध के दौरान सर्बिया ने अपने लगभग 850,000 खोये, जो युद्ध से पूर्व इसकी एक चौथाई जनसँख्या थी।
इंसानों का अनिवार्य काल था फर्स्ट वर्ल्ड वार
27. First World War में वेस्टर्न फ्रंट पर लगभग 80 लाख लोगों की मौत हुई थी, आश्चर्यजनक रूप से लगभग इतनी ही संख्या मरने वाले घोड़ों की भी थी।
28. सन 1918 में फैली इन्फ्लुएंजा की महामारी ने दुनियाभर में लगभग 3 करोड़ से ज्यादा लोगों को मौत की नींद सुला दिया, जो प्रथम विश्व युद्ध से भी कहीं ज्यादा घातक थी।
29. अगस्त 1914 में जर्मन सैनिकों ने एर्सचोट में 150 नागरिकों की इसलिये हत्या कर दी, ताकि जीते हुए क्षेत्रों के निवासी बाद में उनके विरुद्ध विद्रोह न कर सकें। यह उनकी युद्धनीति का ही एक हिस्सा था।
30. फ्रांस First World War में सबसे ज्यादा नुकसान उठाने वाला देश था, क्योंकि इस महायुद्ध में फ्रांस की लगभग 11 प्रतिशत आबादी या तो खत्म हो गयी थी या फिर वह गंभीर रूप से जख्मी थी।
31. उधर मिडिल ईस्ट में भी युद्ध चरम पर और भीषणतम होता चला जा रहा था। यहाँ मित्र राष्ट्रों को गल्लीपोली अभियान की असफ़लता के दौरान तुर्कों के खिलाफ 250,000 सैनिकों को खोना पड़ा।
32. First World War के दौरान स्पेनिश फ्लू के कारण लगभग एक तिहाई सैनिकों की मौतें हुई थीं। इस बीमारी से एक ही वर्ष में इतने लोगों की मौत हुई थी, जितने की प्लेग से 1347 से 1351 तक, चार साल में भी नहीं हुई थी।
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First World War Death Toll in Hindi
33. युद्ध की विभीषिका सैनकों के सिर्फ शरीर छलनी नहीं कर रही थी, बल्कि उनके मन में भी युद्ध और मौत का खौफ पसरने लग गया था। इसकी पुष्टि इस बात से होती है कि विश्व युद्ध में लगभग 10 लाख से भी ज्यादा सैनिकों को शेल-शॉक अर्थात बंदूकों और गोलियों के खौफ से भयंकर कष्ट उठाना पड़ा था।
34. आँकड़ों के अनुसार First World War में 4 लाख से ज्यादा सैनिकों की मौत शेल-शॉक से हुई थी, अर्थात उनके शरीर पर कोई गोली नहीं लगी थी। लेकिन वह युद्ध के तनाव से उपजने वाली समस्यों जैसे कि अनियंत्रित हैजा, अनिद्रा, स्तब्धता, सुन्नपन और घंटों रहने वाली कंपकपाहट से धीरे-धीरे काल के गाल में समा गये। इनमे से 80,000 ब्रिटिश सैनिक थे।
35. First World War के दौरान तुर्कों ने लगभग 15 लाख आर्मेनियनों का क़त्ल कर दिया। इस व्यापक नरसंहार ने बाद में शायद हिटलर का भी ध्यान खींचा होगा और कहा जा सकता है कि इस घटना ने ही आगे चलकर उस विध्वंसक प्रचंड विनाश के बीज बोये जो फिर Second World War में देखने को मिला था।
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फर्स्ट वर्ल्ड वार में उड़ाया गया था मानवता का मजाक
36. First World War के दौरान जहाज आरएमएस लुसिटानिया के रवाना होने से 16 दिन पहले ही, जर्मनी ने प्रतिष्ठित अमेरिकी अखबार न्यू यॉर्क टाइम्स में एक चेतावनी छपवाई थी जिसके अनुसार अगर जहाज ब्रिटेन की तरफ चला तो वह उसे डुबो देंगे। लेकिन उनकी चेतावनी पर किसी ने ध्यान नहीं दिया और जहाज पर सवार 1198 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।
37. First World War के दौरान जर्मनों ने 68 हजार टन गैस का हथियार के रूप में इस्तेमाल किया, वहीँ ब्रिटेन और फ्रांस ने लगभग 51 हजार गैस छोड़ी थी। कुल मिलाकर दोनों तरफ के लगभग 12 लाख सैनिक गैस से प्रभावित हुए थे, जिनमे से लगभग 91,200 की बहुत दर्दनाक तरीके से मौत हुई थी।
38. युद्ध के दौरान एक तिहाई लोग बीमारियों और संक्रमण फैलने से मरे। सैनिकों की वासनाओं को संतुष्ट करने के लिये मोर्चे से थोडा पीछे छोटे-छोटे वेश्यालय भी खोले गये थे, जहाँ से मिले गुप्त रोगों से लगभग 150,000 ब्रिटिश सैनिकों की मौत हुई।
39. गर्भनिरोध निषेध कानून (Anti-contraception Laws) के चलते अमेरिका में कंडोम पर प्रतिबन्ध लगा हुआ था, जो सन 1972 तक बरकरार रहा। इसकी वजह से First World War में अमेरिकी सैनिकों में यौन संचारित रोगों (Sexually Transmitted Disease) की दर बहुत ज्यादा बढ़ गयी थी।
40. First World War में जिन खाइयों का निर्माण युद्ध की व्यूह रचना के आवश्यक अंग के रूप में हुआ था, वह भी एक खतरनाक हत्यारा सिद्ध हुई। 200,000 से भी ज्यादा सैनिकों की मौत इन खाइयों में हुई थी।
41. यह खाइयाँ, लाखों चूहों, मेंढकों, जूंओं और अनगिनत बैक्टीरिया का वास-स्थान थीं जो सैनिक युद्ध क्षेत्र में घायल होकर पड़े रहे। उन्हें इन जीवों के कारण फैलने वाली जानलेवा बीमारियाँ और संक्रमण बेवक्त लील गये।
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Soldiers and First World War in Hindi
42. First World War के ज्यादातर युद्ध कीचड और खंदकों (ट्रेंच) के अन्दर रहकर लडे गये थे, लेकिन एक बेहद अलग तरह का युद्ध सैनिकों के पैरों के नीचे भी लड़ा गया था। आप सोच रहे होंगे आखिर यह कैसे हो सकता है। दरअसल इसका राज छिपा है, उन बारुदी सुरंगों के अन्दर जिन्हें पूरी गोपनीयता बरतते हुए, जमीन से लगभग 100 फीट नीचे की गहराई में, दुश्मन पक्ष की खाइयों के नीचे खोदा गया था।
43. जिनमें बड़ी मात्रा में खतरनाक विस्फोटक भरकर उन्हें उड़ा दिया जाता था। इसमें सबसे बड़ी सफलता मिली, बेल्जियम की मेस्सिंस रिज में, जहाँ 19 भूमिगत सुरंगों में लगभग 410 टन विस्फोटक में लगातार धमाके किये गये। इन धमाकों से जर्मनी की अग्रिम सैन्य पंक्ति लगभग पूरी तरह से ध्वस्त हो गयी थी, क्योंकि इसमें 10000 जर्मन सैनिक मारे गये थे।
44. यह धमाके इतने तेज थे कि इनकी गूँज वहाँ से 235 किमी दूर लंदन में भी सुनायी दी थी। शांति का तालाब, बेल्जियम के शहर मेस्सिनेस के पास एक 12 मीटर गहरी झील है जो उस क्रेटर को भरती है जिसका निर्माण तब हुआ था, जब ब्रिटेन ने यह विस्फोट किया था।
प्रथम विश्व युद्ध में सैनिकों का जीवन
45. First World War के दौरान 16,000 ब्रिटिश सैनिक ऐसे भी थे, जिन्होंने लड़ने से मना कर दिया था। इनमे से कई को सफेद पंख प्रदान किये गये जो कायरता का प्रतीक था। कुछ को युद्ध से इतर भूमिका सौंपी गयी और कुछ को जेल में डाल दिया गया।
46. प्रथम विश्व युद्ध में कुल 628 सैनिकों को विक्टोरिया क्रॉस प्रदान किया गया था। जिसमे से सबसे कम उम्र का सैनिक था, जैक कॉर्नवेल जो जूटलैंड के युद्ध के दौरान घायल होने के बावजूद मोर्चे पर डटा रहा था।
47. लगभग 350 ब्रिटिश सैनिकों को उनकी अपनी ही सेनाओं ने धोखे से गफलत में मार डाला था। कुछ को फील्ड में मिलने वाली सजा के रूप में दुश्मन की सीमा में जाकर बन्दूक के साथ घूमना पड़ता था।
48. First World War के दौरान एक सैनिक साल में औसतन 55 दिन अग्रिम मोर्चे पर तैनात रहता था, पर एक बार में यह कभी भी 15 दिन से ज्यादा नहीं होता था।
49. खंदकों में रहने के दौरान औसत जीवन प्रत्याशा सिर्फ छह सप्ताह यानि 42 दिन थी। सबसे ज्यादा खतरा जूनियर अफसरों और स्ट्रेच लाने-ले जाने वालों को रहता था।
प्रथम विश्व युद्ध के साहसी वीर
50. First World War में हवाई युद्ध में भी दोनों तरफ का कौशल देखने को मिला। जर्मनी के फाइटर पायलट मन्फ्रेड फ्रेहर्र वों रिचथोफेन First World War के सबसे सफल पायलट थे, जिन्हें लाल नवाब (Red Baron) कहा जाता था। इन्होने मित्र राष्ट्रों के 80 एयरक्राफ्ट मार गिराये थे।
51. उधर मित्र देशों के सबसे सफल पायलट थे, फ्रांस के रेने फोंक्क जिन्होंने दुश्मनों के 75 जहाज मार गिराये थे। ब्रिटिश मेजर एडवर्ड मंनोक्क ने भी दुश्मन देशों के 61 लड़ाकू विमान उड़ा दिये थे। हालाँकि रेने फोंक्क को छोड़कर, बाकी दोनों जाँबाज युद्ध में ही मारे गये।
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Weapons in First World War in Hindi
फर्स्ट वर्ल्ड वार के रासायनिक हथियार.
52. First World War के दौरान दुश्मन फौजों के खिलाफ गैस हथियार का इस्तेमाल करने वाला पहला देश फ्रांस था, न कि जर्मनी। अगस्त 1914 में उन्होंने पहली बार आँसूं गैस के ग्रेनेडों (जैलिल ब्रोमाइड) का जर्मनों के खिलाफ इस्तेमाल किया था। जनवरी 1915 में जर्मनी ने पहली बार अश्रु गैस का उपयोग रूसी सेना के खिलाफ किया था, लेकिन ठंडी हवा होने के कारण गैस द्रव में बदल गयी। पहली बार जहरीली क्लोरीन गैस का इस्तेमाल अप्रैल 1915 में जर्मन सेना ने किया था।
53. First World War में लगभग 30 अलग-अलग जहरीली गैसों का इस्तेमाल हुआ था। आपात स्थिति में इन गैसों के आक्रमण से बचने के लिये सैनिकों को अपने पेशाब से ढका कप अपने मुँह पर बाँधना पड़ता था। क्योंकि फिल्टर से युक्त गैस मास्क जो एक प्रभावशाली सुरक्षा मुहैया कराते थे, सन 1918 तक ही मिलने शुरू हो पाये थे। युद्ध के समाप्त होने के बाद कई देशों ने रासायनिक हथियार को इस्तेमाल से बाहर करने के लिये एक संधि पर हस्ताक्षर किये थे।
54. फर्स्ट वर्ल्ड वार में खुलकर मशीन गनों, तोपों, और रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल हुआ। विजय हासिल करने के लिये एक पक्ष दूसरे पक्ष को जिस किसी तरह से जितना ज्यादा नुकसान पहुँचा सकता था, उसे निःसंकोच अंजाम दिया गया।
55. First World War से ही पहली बार युद्ध में मस्टर्ड गैस जैसे रासायनिक हथियारों के प्रयोग की शुरुआत हुई, जिसका प्रयोग पहली बार जर्मनी ने किया था। इसके अलावा उन्होंने क्लोरीन गैस का भी इस्तेमाल किया था।
56. पहले तो अंग्रेज भी जर्मनी के रासायनिक हथियारों के प्रयोग करने के कारण भौचक्के रह गये, लेकिन फिर उन्होंने भी घातक गैसों का हथियार के रूप में प्रयोग किया।
57. मस्टर्ड गैस जिसे इसका निर्माण करने वाले युद्ध में विजय हासिल करने वाले हथियार के रूप में देख रहे थे, अविश्वसनीय सिद्ध हुआ और न तो First World War के चरम पर और न ही Second World War में इसका इस्तेमाल हुआ।
फर्स्ट वर्ल्ड वार के स्वचालित हथियार
58. First World War में मशीन गन का भरपूर इस्तेमाल हुआ था। इस शस्त्र का पेटेंट अमेरिका में हिरम मैक्सिम ने सन 1884 में कराया था। मैक्सिम का वजन लगभग 45 किलो था और यह पानी से ठंडी की जाती थी। यह एक मिनट में 450 से 600 राउंड फायर कर सकती थी। First World War की ज्यादातर मशीने मैक्सिम डिजाईन पर ही बनी हुई थीं।
59. बिग बार्था एक 48 टन वजनी होवित्ज़र थी, जिसका इस्तेमाल जर्मनी ने First World War में किया था। इसका नाम इसके डिजाईनर गुस्ताव कृप्प की पत्नी के नाम पर रखा गया था। यह लगभग 930 किलो विस्फोटक 15 किमी की दूरी तक फेंक सकती थी। हालाँकि इस मशीन को जोड़ने में 200 लोगों को छह घंटे का समय लगता था। जर्मनी के पास उस समय ऐसी 13 विशाल बंदूकें थीं, जिन्हें वह वंडर वेपन कहते थे।
60. जर्मनी की सेना अगर दुश्मन के किसी हथियार से सबसे ज्यादा खौफ खाती थी, तो वह थी फ़्रांसिसी सेना की एक तोप जिसे जर्मन डेविल गन के नाम से पुकारते थे। यह तोप 4 मील दूर से भी सही निशाना लगा सकती थी। फ्रेंच मिलिटरी के कमांडर अपनी इस डेविल गन को ही First World War में जीत का श्रेय देते थे।
61. सन 1914 तक किसी भी सैनिक के पास धातु का हेलमेट नहीं था। सन 1915 में पहली बार फ्रेंच लोगों ने धातु का हेलमेट बनाया। सन 1916 में मोर्चे पर लड़ते हुए ब्रिटेन के भविष्य के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने भी वह हेलमेट पहना था।
फर्स्ट वर्ल्ड वार के विशेष हथियार
62. फर्स्ट वर्ल्ड वार में अलग तरह की मशीने भी इजाद की गयीं, जैसे कि पेरिस्कोप राइफलों को इसलिये विकसित किया गया कि 12 फुट ऊँची खंदकों के उपर से भी देखा जा सके। इसके अतिरिक्त धुआं फेंकने वाले उपकरणों और टैंको का भी आविष्कार हुआ।
63. First World War में आग फेंकने वाले उपकरण (Flamethrowers) का प्रयोग सबसे पहले जर्मनी ने किया था। उनके फ्लेमथ्रोअर 40 मीटर की दूरी तक आग की लपटें फेंक सकते थे।
64. टैंकों को पहले ‘लैंडशिप’ अर्थात ‘धरती के जहाज’ कहा जाता था। हालाँकि हथियार के रूप में प्रचारित करने के बजाय, उन्हें पानी का भण्डारण करने वाले टैंक कहकर दुश्मनों की नजर से छिपाया गया। इसके लिये ब्रिटिश सेना ने उनका कोड नाम टैंक रखा था।
65. First World War के दौरान ही पहले टैंक का आविष्कार हुआ था जिसका नाम था, लिटिल विल्ली जो सन 1915 में बना था। इसमें तीन लोग बैठ सकते थे और यह लगभग 4.8 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चल सकता था।
66. First World War में ब्रिटेन ने अपने टैंकों को दो वर्गों – पुरुष और स्त्री में बाँटा था। जहाँ पुरुष टैंकों पर तोपें लगी रहती थीं, वहीँ स्त्री टैंकों पर भारी मशीन गन लगी रहती थी।
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Indians in First World War in Hindi
67. First World War के दौरान भारतीय सेना ने भी हिस्सा लिया था। यहाँ तक कि युद्ध की शुरुआत में तो भारतीय सैनिकों की संख्या ब्रिटिश सैनिकों से भी ज्यादा थी। आँकड़ों के अनुसार भारत से लगभग 13 लाख सैनिकों और श्रमिकों को यूरोप, अफ्रीका और मध्य-पूर्व के युद्ध क्षेत्रों में भेजा गया था, क्योंकि यह युद्ध कई मोर्चों पर लड़ा जा रहा था।
68. इसके अलावा भारत से बड़ी मात्रा में रसद, पैसा और हथियार भी भेजा गया। इन सैनिकों में से लगभग 140,000 सैनिक पश्चिमी छोर (Western Front) और 700,000 मध्य-पूर्व (Middle East) में डटे थे।
69. भारत के सिपाही फ्रांस और बेल्जियम ,अदन, अरब, पूर्वी अफ्रीका, गाली पोली, मिस्र, मेसोपेाटामिया, फिलिस्तीन, ईरान और सालोनिका के साथ-साथ दुनिया भर में विभिन्न लड़ाई के मैदानों में बड़े सम्मान के साथ लड़े। गढ़वाल राईफल्स रेजिमेंट के दो सिपाहियो को युद्ध में उच्च श्रेणी का साहस दिखाने के लिये उच्चतम पदक, विक्टोरिया क्रॉस भी मिला था।
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फर्स्ट वर्ल्ड वार में धोखा दिया था अंग्रेजों ने
70. बहुत से लोगों का विचार था कि यदि ब्रिटेन First World War में लग गया, तो भारत के क्रान्तिकारी इस अवसर का लाभ उठाकर देश से अंग्रेजों को उखाड़ फेंकने में सफल हो जाएंगे। किन्तु इसके उल्टा, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेताओं का मत था, स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए इस समय ब्रिटेन की सहायता की जानी चाहिए।
71. First World War के कारण भारत की अर्थव्यवस्था लगभग दिवालिया हो गयी थी। भारत के नेताओं को आशा थी कि युद्ध में ब्रिटेन के समर्थन से ख़ुश होकर अंग्रेज़ भारत को इनाम के रूप में स्वतंत्रता दे देंगे या कम से कम स्वशासन का अधिकार देंगे, किन्तु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। उलटे अंग्रेज़ों ने जलियाँवाला बाग़ नरसंहार जैसे घिनौने कृत्य से भारत के मुँह पर तमाचा मारा।
72. जब 4 अगस्त को प्रथम विश्व युद्ध आरम्भ हुआ, तो ब्रिटेन ने भारत के नेताओं को अपने पक्ष में कर लिया। रियासतों के राजाओं ने इस युद्ध में दिल खोलकर ब्रिटेन की आर्थिक और सैनिक सहायता की।
73. First World War के समाप्त होने तक लगभग 48,000 भारतीय सैनिक मारे गये और 66000 से ज्यादा घायल हुए।
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Superpowers in First World War in Hindi
फर्स्ट वर्ल्ड वार में ब्रिटेन ने बरती थी चालाकी.
74. First World War में बहुत से लोगों का ऐसा मानना था कि ब्रिटिश जनरल और उच्च सैन्यधिकारी लड़ाई के मोर्चे पर जाने से डरते हैं, लेकिन ऐसा नहीं था। दरअसल वह लोग तो लड़ना चाहते थे, लेकिन सम्राट और राजतन्त्र ने उनके लड़ने पर इसलिये प्रतिंबंध लगा दिया था कि कहीं उनके मरने पर फिर युद्ध में सेना का नेतृत्व करने वाला ही कोई न बचे और युद्ध में टिके रहना ही असंभव हो जाय।
75. इतने वर्षों तक युद्ध लड़ने के पश्चात भी सबसे कम हानि ब्रिटिश सेना को ही हुई, क्योंकि सीधे मोर्चे पर वह कम ही जाते थे। उनका ज्यादातर समय खाइयों और खंदकों से गुजरने में ही बीत जाता था। रूटीन जॉब और दूसरे काम ही उनके जिम्मे रहते थे।
76. एक स्रोत के अनुसार 10 में से 9 अंग्रेज सैनिक First World War से जीवित बचकर लौट आये थे। यह घटना बताने के लिये काफी है कि अंग्रेज जाति का इतिहास ही षडयंत्र और चालबाजी से परिपूर्ण रहा है।
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फर्स्ट वर्ल्ड वार के अंत में जुडा था अमेरिका
77. First World War की शुरुआत में अमेरिका युद्ध में शामिल नहीं हुआ था, इसलिये कुछ अमेरिकी नाराज हो गये और वह ब्रिटिश, फ्रेंच और कनाडा की सेनाओं में शामिल हो गये। यहाँ तक कि अमेरिकी वायु सेना के कुछ पायलट भी फ्रांस की वायु सेना में शामिल हो गये थे।
78. अमेरिका में किसानों को युद्ध में जाने से छूट मिली हुई थी, जिसका फायदा कुछ ऐसे लोगों ने भी उठाया जो युद्ध में नहीं जाना चाहते थे। मिन्नी स्चोंबर्ग जो अपने दो बेटों को युद्ध में नहीं भेजना चाहती थी, ने एक फार्म खरीदकर अपने बेटों को जबरदस्ती इसलिये काम पर लगा दिया, ताकि उन्हें युद्ध में न जाना पड़े।
79. First World War चलते रहने के दौरान भी, जर्मन भाषा संयुक्त राज्य अमेरिका की दूसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा बनी हुई थी। यहाँ तक कि लोकल गवर्नमेंट, स्कूल और कई अख़बारों में भी जर्मन भाषा का ही चलन था। लेकिन सरकार के दबाव पर इसका उपयोग में लाया जाना बलपूर्वक बंद करा दिया गया।
80. अमेरिकी सेना में सैनिकों की संख्या बढ़ाने के लिये कांग्रेस ने 1917 में Selective Service Act पास किया था। विश्व युद्ध के समाप्त होने तक लगभग 27 लाख लोगों ने अपने नाम भेजे थे, जबकि 13 लाख स्वयंसेवक के रूप में कार्य कर रहे थे।
81. First World War के दौरान अमेरिका में जर्मन मूल के लोगों को सन्देश की नजर से देखा जाता था। यहाँ तक कि कई बार तो जर्मनों के खिलाफ उग्र विद्रोह तक हुए, जिसमे जर्मन पुस्तकों को जलाना और जर्मन शेफर्ड कुत्तों को मारना तक शामिल था।
82. अमेरिकन सेना ने First World War के दौरान अपनी पहली लड़ाई 2 नवम्बर 1917 को फ्रांस में बार्थलमेंट की खंदकों में लड़ी थी।
83. First World War के दौरान अमेरिका के राष्ट्रपति रहे वुडरो विल्सन, श्वेत लोगों के पक्षधर (White Supremacist) थे।
84. युद्ध के कारण अमेरिका के हजारों सैनिक अपंग और विकृत चेहरे वाले हो गये। उनके चेहरों को ठीक करने के लिये सर्जरी की गयी, लेकिन फिर भी कुछ के चेहरे इतने बिगड़ चुके थे कि उन्हें मास्क से ढकना पड़ता था। यहाँ तक कि कुछ सैनिक तो अपनी पूरी जिंदगी नर्सिंग होम में ही रहे थे।
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End of First World War in Hindi
85. सन 1918 में जर्मनी में युद्ध के विरोध में जगह-जगह विरोध प्रदर्शन होने लगे, क्योंकि ब्रिटिश नेवी ने लगभग हर बंदरगाह पर कब्ज़ा कर लिया था और जर्मनवासी भूखे मरने लगे थे इसके अतिरिक्त अर्थव्यवस्था भी दिवालियेपन के कगार पर आकर खड़ी हो गयी थी।
86. 9 नवम्बर सन 1918 को जर्मन सम्राट केसर विल्हेल्म 2 को गद्दी से उतार दिया गया। दोनों तरफ के नेतागण फ्रांस के कोम्पिएग्ने में आकर मिले और युद्ध विराम के घोषणा पत्र पर 11 नवम्बर 1918 को दस्तखत हुए।
87. 11 नवम्बर 1918 के दिन 11 बजे जब बन्दूक नीचे रखने के साथ First World War थमा, तब जॉर्ज एडविन विल्सन का नाम इतिहास में अमर हो गया, क्योंकि First World War में मरने वाले वह आखिरी ब्रिटिश सैनिक थे।
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प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति से जुडी जरुरी बातें
88. हालाँकि युद्ध समाप्ति की घोषणा, अल सुबह 5 बजे ही हो गयी थी, लेकिन उसके कुछ देर तक भी झडपें होती रहीं। पर सिर्फ इन पाँच घंटों में ही 11,000 सैनिकों की जीवन लीला समाप्त हो गयी। अंततः 11 बजे युद्ध पर पूर्ण विराम लग ही गया।
89. आधिकारिक रूप से First World War 28 जून सन 1919 को समाप्त हुआ, अर्थात ऑस्ट्रिया के राजकुमार की हत्या के ठीक पाँच साल बाद। 11 नवम्बर 1918 को युद्ध विराम की घोषणा के पश्चात युद्ध तो बंद हो गया, लेकिन शांति कायम करने में और वर्साय की संधि की शर्तें तैयार करने में छह महीने से ज्यादा का समय लग गया।
90. वर्साय की संधि के अनुसार जर्मनी को युद्ध छेड़ने का दोषी माना गया और उसे इसकी पूरी जिम्मेदारी स्वीकार करनी पड़ी उसे न सिर्फ अपनी मिलिटरी/सेना का आकार घटाना पड़ा, बल्कि अपने कुछ क्षेत्रों और कालोनियों से अधिकार को भी त्यागना पड़ा।
91. वर्साय की सन्धि में जर्मनी पर कड़ी शर्तें लादी गईं। इसका बुरा परिणाम Second World War के रूप में प्रकट हुआ और राष्ट्रसंघ की स्थापना के प्रमुख उद्देश्य की पूर्ति न हो सकी।
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प्रथम विश्व युद्ध पर आये खर्च से संबंधित कुछ आँकड़ें
92. 20वीं शताब्दी में ब्रिटेन एक आर्थिक महाशक्ति (Economic Superpower) के रूप में उभर रहा था, लेकिन 1st World War से लगभग सभी देशों की अर्थव्यवस्था हिल गयी थी और ब्रिटेन भी इससे अछूता नहीं रहा था। उदाहरण के लिये सितंबर 1918 में 24 घंटे की अवधि में बरसने वाली गोलियों का खर्च लगभग 40 लाख पौंड था।
93. सन 1918 तक ब्रिटेन First World War पर हर रोज 60 लाख पौंड खर्च कर रहा था। पूरे युद्ध पर आयी सम्पूर्ण लागत लगभग 910 करोड़ पौंड थी।
94. First World War में वैश्विक अर्थव्यवस्था में ब्रिटेन का नेतृत्व हमेशा के लिये चला गया, क्योंकि इस पर भारी कर्ज चढ़ गया था, बेरोजगारी आसमान छूने लगी और उन्नति मंद पड़ गयी।
95. फ्रांस की भी कुछ ऐसी ही दशा हुई, इसने रूस को जो कर्जा दिया था, वह इसे कभी वापस नहीं मिला। मुद्रास्फीति बहुत तेज और लगभग स्थायी हो गयी। इसके अलावा देश का एक बड़ा हिस्सा पूरी तरह से कंगाल हो गया।
96. First World War पर अमेरिका का कुल खर्च 30 अरब डॉलर से भी ज्यादा था।
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Impact of First World War in Hindi
97. First World War ने राजतन्त्र को कमजोर करने और प्रजातंत्र को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई। क्योंकि युद्ध होने का सबसे बड़ा कारण राज्य की इसके नागरिकों पर असीमित और प्रभुत्वकारी शक्ति का होना था। First World War के कारण ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, बेल्जियम, स्पेन, तुर्की, जापान और जर्मनी जैसे कई देशों में राजशाही के अधिकार बेहद सीमित कर दिए गये और वास्तविक सत्ता का हस्तांतरण प्रजा के हाथों में आ गया।
98. First World War से दुनिया को पहली बार किसी बड़े युद्ध के भीषण परिणामों का पता चला। भविष्य में ऐसे किसी भी युद्ध की नौबत न आये, इसके लिये लीग ऑफ नेशन्स (League of Nations) की स्थपाना की गयी जो आगे चलकर संयुक्त राष्ट्र संघ के रूप में परिणत हो गयी।
99. First World War ने ही रूस को USSR के रूप में एक नयी महाशक्ति को जन्म दिया और यह संसार का पहला कम्युनिस्ट देश बना और विश्व इतिहास में इसने एक अभूतपूर्व प्रगति की।
100. First World War ने संयुक्त राज्य अमेरिका को, संसार की सबसे बड़ी मिलिटरी ताकत बना दिया।
101. First World War के बाद फिनलैंड, एस्टोनिया, लिथुअनिया और पोलैंड स्वतंत्र राष्ट्रों के रूप में उभरे।
दुनिया के सबसे रहस्मय स्थानों में से एक है एरिया 51 – Area 51 Facts in Hindi
लीग ऑफ नेशन्स और प्रथम विश्व युद्ध
102. लीग ऑफ नेशन्स ने यूरोप को फिर से खड़ा होने में मदद की और सन 1923 तक 53 देशों ने इसकी सदस्यता ले ली, लेकिन अमेरिकी सीनेट के दबाव के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका, इसमें शामिल नहीं हुआ। अमेरिकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन जो इस लीग के मुख्य सूत्रधार थे, उन्हें इससे बड़ा गहरा धक्का लगा और वह अपने बाकी के कार्यकाल में सही प्रकार से कार्य करने में अक्षम हो गये।
103. सन 1926 में जर्मनी भी लीग ऑफ नेशन्स में सम्मिलित हो गया। लेकिन वर्साय की संधि से जर्मनी और जापान दोनों ही बहुत अपमानित महसूस कर रहे थे, इसीलिये सन 1933 में उन्होंने लीग छोड़ दी। सन 1936 में इटली ने भी लीग का बहिष्कार कर दिया।
104. लीग ऑफ नेशन्स भी इटली, जापान और जर्मनी को अपनी शक्ति का विस्तार करने से नहीं रोक सकी और उन्होंने दूसरे छोटे देशों पर अधिकार करना शुरू कर दिया। कई लोगों का तो यहाँ तक मानना है कि First World War का अंत ही नहीं हुआ था और Second World War सिर्फ उसका विस्तार ही था।
फर्स्ट वर्ल्ड वार के दस सबसे भीषण युद्ध
First World War के दस सबसे खतरनाक युद्ध क्रमशः इस प्रकार हैं – 1. हंड्रेड डे ओफेन्सिव (Hundred Day Offensive) – 1,855,369 2. स्प्रिंग ओफेन्सिव (Spring Offensive) – 1,539,715 4. वेर्दुं का युद्ध (Battle of Verdun) – 1,163,000 5. पासचेंडेले का युद्ध (Battle of Passchendaele) – 848,614 6. सर्बिया अभियान (Serbian Campaign) – 633,500 7. मर्नेस का प्रथम युद्ध ((First Battle of Marnes) – 483,000 8. गल्लीपोली का युद्ध (Battle of Gallipoli) – 473,000 9. अरास का युद्ध (Battle of Arras) – 278,000 10. टेनिनबर्ग का युद्ध (Battle of Tannenberg) – 182,000
References:
1. साइमन एडम्स, प्रथम विश्व युद्ध, डी. के. पब्लिकेशन, 2007 2. जॉन हैमिलटन, प्रथम विश्व युद्ध के हथियार, 2004 3. डेविड क्रो, यूरोप का इतिहास, 2001 4. डेविड टेलर, प्रथम विश्व युद्ध की प्रमुख लडाइयां, 2001 5. लियोनोर्ड पोर्टर, जर्मनी के साथ युद्ध 6. प्रथम विश्व युद्ध, विकिपीडिया 7. जेसन टर्नर, प्रथम विश्व युद्ध, 2008 8. गॉर्डन मार्टेल, प्रथम विश्व युद्ध की उत्पत्ति, 2003 9. जेराल्ड मेयर, महान युद्ध की कहानी, 2006 10. इन्टरनेट पर उपलब्ध स्रोत 1 11. इन्टरनेट पर उपलब्ध स्रोत 2 12. इन्टरनेट पर उपलब्ध स्रोत 3 13. इन्टरनेट पर उपलब्ध स्रोत 4
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प्रथम विश्वयुद्ध के प्रभाव/परिणाम | Effect of First World War in Hindi
प्रथम विश्वयुद्ध के प्रभाव/परिणाम.
प्रथम विश्वयुद्ध 4 वर्ष, 3 महीने और 11 दिन तक चला। विश्व के इतिहास में यह एक भयावह युद्ध था। इससे पूर्व विश्व के किसी भी युद्ध में इतनी संख्या में सैनिकों ने भाग नहीं लिया था। इस युद्ध में विजेता और पराजित दोनों पक्षों को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी। युद्ध क्षेत्र में मारे जाने वाले सैनिकों की संख्या लगभग 79,40,000 थी और लगभग 1,95,36,000 व्यक्ति घायल हुए। संपत्ति एवं अर्थव्यवस्था को भी इस युद्ध ने भारी क्षति पहुचाई। कुल मिलाकर विभिन्न राष्ट्रों को 35,000 करोड़ पौंड का आर्थिक बोझ उठाना पड़ा।
इस युद्ध में नवीनतम और विनाशकारी हथियारों का इस्तेमाल किया गया। टैंकों, हवाई जहाज़ों तथा पनडुब्बियों के द्वारा भंयकर विनाश किया गया, जिससे आम जन भी अछूता न रह पाया। राजनीतिक दृष्टि से भी विश्वयुद्ध के परिणाम महत्वपूर्ण थे। इसके फलस्वरूप चार साम्राज्यों (जर्मन, ऑस्ट्रिया, रूस, तुर्की) में राजवंशों को उखाड़ फेंका गया तथा सात नए राज्यों का उदय हुआ।
प्रथम विश्वयुद्ध के प्रभाव/ परिणाम
1. आर्थिक प्रभाव.
- आर्थिक विनाश : इस युद्ध में 10 खरब रुपए प्रत्यक्ष रूप में खर्च हुए तथा जान-माल की परोक्ष हानि का तो कोई अनुमान ही नहीं लगाया जा सकता। इस युद्ध में एक तिहाई खर्च जर्मनी एवं उसके साथी राष्ट्रों का हुआ तथा दो तिहाई मित्र राष्ट्रों का। इस अनियंत्रित खर्चे के कारण युद्ध में शामिल देशों की अर्थव्यवस्था चरमरा गई और लोककल्याण के कार्य बाधित हुए।
- जनशक्ति का विनाश : सवा चार वर्ष के युद्ध में 79,40,000 मृतकों एवं 1,95,36,000 घायलों ने साबित कर दिया कि यह एक विध्वंसक युद्ध था। इस समयावधि में 7,000 व्यक्ति प्रतिदिन मारे गए। जर्मनी में सबसे ज्यादा 18,08,000 लोग मारे गए, वहीं रूस में सबसे ज्यादा 49,50,000 लोग घायल हुए। दोनों पक्षों की ओर से 6 करोड़ सैनिकों ने युद्ध में भाग लिया।
- युद्ध ऋण : 1914 में दोनों पक्षों के प्रमुख राज्यों का कुल सार्वजनिक ऋण 8,000 करोड़ था, जो 1918 में बढ़कर 40,000 करोड हो गया। इसमें करोड़ों रुपए की संपत्ति नष्ट हुई। जिसके कारण युद्ध में शामिल राष्ट्रों में आर्थिक संकट का खतरा उत्पन्न हो गया। मित्र राष्ट्रों को युद्ध से होने वाले अपार खर्च के लिए संयुक्त राष्ट्र से भारी ऋण लेना पड़ा।
- अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर प्रभाव : युद्ध काल में अंतरराष्ट्रीय सहयोग का महत्व स्पष्ट हुआ। युद्ध काल में बढ़ते औद्योगिकीकरण से अंतरराष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि हुई। अंतर्राष्ट्रीय सहयोग राजनीति से भी ज्यादा यथार्थवादी आधार पर आर्थिक क्षेत्र में प्रारंभ हुआ। व्यवसाय अब अनिवार्यतः अंतरराष्ट्रीय हो गया था। परिणामस्वरूप अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग तथा नीति निर्धारण के तत्व हर राष्ट्र की विदेश नीति के आधारभूत सिद्धांत बन गए।
- मुद्रास्फीति : विश्वयुद्ध के दौरान दोनों पक्षों का खरबों रुपया खर्च हुआ। यह खर्च किसी उत्पादन कार्य में न लगाकर विनाश में हुआ। इसके साथ ही युद्ध काल में यूरोपीय राष्ट्रों के औद्योगिक क्षेत्रों, प्रतिष्ठानों, संचार एवं यातायात को भारी नुक्सान हुआ। कर्ज की अदायगी हेतु बेहिसाब कागजी मुद्रा जारी कर दी गई, जिससे वस्तुओं के मूल्य आसमान छूने लगे। मुद्रास्फीति ने संपूर्ण यूरोप को आर्थिक संकट में डाल दिया, जिसके गंभीर परिणाम विश्व आर्थिक मंदी के रूप में सामने आये।
- मज़दूर आंदोलन : मजदूर वर्ग की स्थिति पर भी प्रथम विश्वयुद्ध का क्रांतिकारी प्रभाव दृष्टिगत हुआ। युद्धकाल में उत्पादन बहुत वृद्धि हुई। इसलिए मजदूरों की संख्या के साथ-साथ उनकी शक्ति भी बढ़ने लगी। रूस में ‘मजदूरों का राज्य’ स्थापित हो जाने के बाद अन्य देशों के मज़दूर खामोश नहीं रह सकते थे, उनका आंदोलन आक्रामक और बड़ा होने लगा। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का प्रभाव एवं महत्व बढ़ने लगा। मज़दूरी, श्रम के लिए अनुकूल स्थितियां, सुरक्षा, बीमा इत्यादि क्षेत्रों में महत्वपूर्ण सुधार हुआ।
2. राजनीतिक प्रभाव
- निरंकुश राजतंत्रों का अंत : राजनीतिक दृष्टि से भी इस विश्वयुद्ध के परिणाम सामने आये। इसके परिणामस्वरूप जर्मनी, ऑस्ट्रिया, हंगरी, रूस, तुर्की, बल्गरिया के राजतंत्रों का अंत हो गया। साथ ही जर्मनी के होहेनजोलर्न, ऑस्ट्रिया-हंगरी के हैप्सबर्ग, रूस के रोमेनाफ और तुर्की के उस्मानिया राजवंशों का भी अंत हो गया।
- लघु राज्यों का उदय : विश्वयुद्ध के बाद यूरोप में कई छोटे राज्य अस्तित्व में आए, जैसे- ऑस्ट्रिया, हंगरी, चेकोस्लोवाकिया, युगोस्लाविया, एस्टोनिया, लेटविया, पोलैंड इत्यादि।
- राष्ट्र वादी विचारधारा का प्रसार : लोकतन्त्रों की असफलता से ही युद्ध के पश्चात इटली में फासीवाद तथा जर्मनी में नात्सीवाद का उद्भव एवं विकास हुआ। युद्ध के दौरान राष्ट्रवादिता के सिद्धांत का दोनों ही पक्षों ने समर्थन करने की घोषणा की थी, परंतु इस सिद्धांत को यूरोप के बाहर लागू करने से इन विजेताओं ने इंकार कर दिया। इस तरह पश्चिमी देशों का लोकतान्त्रिक चेहरा बेनकाब हो गया तथा संपूर्ण एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में राष्ट्रवादी प्रवृत्ति उदय हुई। अंतरराष्ट्रीय राजनीति अब यूरोप के देशों के विदेशी संबंधों तक ही सीमित नहीं रह गई। अब विश्व के उन देशों को भी विश्व राजनीति में महत्व प्राप्त होने लगा, जिन्हें उपेक्षित समझा जाता था।
- यू रोप में अमेरिकी प्रभाव में वृद्धि : प्रथम विश्व युद्ध के बाद अमेरिका यूरोपीय देशों का साहूकार बनकर उभरा। यूरोप के विभिन्न राष्ट्रों पर उसका एक खरब बीस लाख डॉलर का कर्जा था।अब अमेरिका विश्व के प्रथम दर्जे की शक्ति के रूप में प्रतिस्थापित हो गया।
- समाजवाद का विकास तथा विस्तार : विश्वयुद्ध का सर्वाधिक महत्वपूर्ण परिवर्तन था, युद्ध के दौरान रूस में हुई क्रांति के परिणामस्वरूप नवीन आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक प्रणाली की स्थापना। रूसी समाजवादी व्यवस्था ने पहली बार समाज में आमूल परिवर्तन से शोषण पर आधारित समाज का अंत कर दिया। धीरे-धीरे विश्व में समाजवादी आंदोलन का तेजी से विस्तार होता है। विश्व की राजनीति में पूंजीवादी साम्राज्यवादी शक्तियों का एकाधिकार समाप्त हो गया।
- राष्ट्रसंघ का निर्माण : विश्वयुद्ध की समयावधि में अंतरराष्ट्रीय सहयोग का महत्व स्पष्ट हुआ। इसलिए व्यापक स्तर पर सहयोग का सूत्रपात हुआ तथा अमेरिका के राष्ट्रपति विल्सन की प्रेरणा एवं पहल से राष्ट्रसंघ की स्थापना हुई। छोटे स्तर पर परस्पर सहयोग को प्राथमिकता दिए जाने तथा गुप्त संधियों की नीति के घातक परिणामों के कारण ‘खुले कूटनीतिक’ संबंधों एवं संधियों का शुभारंभ हुआ।
3. सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव
- युवाओं और महिलाओं की दशा में परिवर्तन : मज़दूरों की तरह युवा आंदोलनों को भी बल प्राप्त हुआ। समस्त विश्व में युवा एवं विद्यार्थी अब सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों में सक्रिय भागीदारी करने लगे। युद्धकाल की आवश्यकताओं एवं विवशताओं ने महिलाओं को रसोई घर से निकालकर कार्यालयों तथा कारखानों में काम करने के लिए प्रोत्साहित किया। इससे महिला स्वतंत्रता आंदोलन को बल प्राप्त हुआ। धीरे-धीरे महिलाओ को हर क्षेत्र में बराबरी के अधिकार एवं हिस्सेदारी मिलने लगे।
- नवीन संस्कृति का उदय : विश्व युद्ध ने सांस्कृतिक जगत को भी प्रभावित किया। शिक्षा का स्वरूप परिवर्तित होने लगा। साहित्य जगत में नवीनता का सूत्रपात हुआ। छोटे नाटकों एवं कहानियों को बड़े उपन्यासों तथा नाटकों के स्थान पर ज्यादा पढ़ा जाने लगा। साहित्य, कला, संगीत, रेडियो तथा सिनेमा के माध्यम से नवीन संस्कृति का विकास एवं विस्तार हुआ।
- कला का विनाश : इस युद्ध में कला को भारी नुकसान हुआ। पुस्तकालयों, पुरानी कलाकृतियों, ऐतिहासिक और धार्मिक इमारतों आदि को ध्वस्त कर दिया गया।
- वैज्ञानिक प्रगति : विश्वयुद्ध ने असंख्य युद्धकालीन अविष्कारों के माध्यम से दुनिया को नवीन एवं यांत्रिक शक्ति प्रदान की।जहां एक तरफ वैज्ञानिकों ने टैंकों, हवाई जहाज़ों, पनडुब्बियों इत्यादि के रूप में दुनिया को नए हथियार उपलब्ध कराएं, वहीं दूसरी ओर यातायात के साधनों में भी क्रांतिकारी परिवर्तन किए। नए-नए रासायनिक हथियार बनाएं तो औषधियों की भी खोज की। युद्धकालीन आवश्यकताओं के लिए वैज्ञानिकों द्वारा किये गए त्वरित अविष्कारों से दुनिया में विकास के पहिये को गति मिली।
4. पर्यावरणीय प्रभाव
पर्यावरणीय प्रभाव के विषय में प्रथम विश्वयुद्ध खाई-युद्धनीति के कारण हुए भू-दृश्य परिवर्तनों के कारण सर्वाधिक विनाशकारी सिद्ध हुआ। खाइयों की खुदाई घास के मैदानों को रौंदने, वृक्षों एवं जानवरों के विनाश तथा मिट्टी के मंथन का कारण बनी। खाइयों के संजाल के विस्तार के लिए जंगलों की कटाई से मिट्टी का क्षरण हुआ।
वहीं विषैली गैसों का प्रयोग एक और विध्वंसकारी प्रभाव था। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान प्रयुक्त गैसों में आंसू गैस, मस्टर्ड गैस, कार्बोनिल क्लोराइड इत्यादि कुछ प्रमुख है। इन गैसों के प्रयोग से युद्धक्षेत्र प्रदूषित हुए और अधिकांश गैस वायुमंडल में घुल गई। युद्ध के बाद अविस्फोटित गोला बारूद, भूतपूर्व युद्ध क्षेत्र में भारी समस्याएं उत्पन्न करते रहे। अतः सफाई अभियान एक महंगा अभियान था जो अब तक बना हुआ है।
अतः हम कह सकते है कि 1914 का विश्वयुद्ध इतिहास की बहुत भंयकर एवं विनाशकारी घटना थी। इस युद्ध में लाखों लोग मारे गए और करोड़ों घायल हुए। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद लोकतान्त्रिक मूल्यों में कमी आई तथा मानवतावादी विचारधारा और समाजवादी विचारधारा को फलने-फूलने का भरपूर अवसर मिला। राष्ट्रवादी विचारधारा का विकास हुआ। इसी प्रकार प्रथम विश्वयुद्ध के महत्वपूर्ण परिणाम आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में दृष्टिगोचर हुए।
“मुफ्त शिक्षा सबका अधिकार आओ सब मिलकर करें इस सपने को साकार”
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- प्रथम विश्वयुद्ध के कारण
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- द्वितीय विश्व युद्ध क्यों हुआ, कारण
- रूसी क्रांति के कारण
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प्रथम विश्व युद्ध के कारण एवं परिणाम पर निबंध| First World War Kyu Hua, history, Reason, Result essay in Hindi
प्रथम विश्व युद्ध का कारण और उसके बारे में जानकारी (first world war kyu hua, world war 1 history, reason, result in hindi).
प्रथम विश्व युद्ध को ग्रेट वार अथवा ग्लोबल वार भी कहा जाता है. उस समय ऐसा माना गया कि इस युद्ध के बाद सारे युद्ध ख़त्म हो जायेंगे, अतः इसे ‘वॉर टू एंड आल वार्स’ भी कहा गया. किन्तु ऐसा कुछ हुआ नहीं और इस युद्ध के कुछ सालों बाद द्वितीय विश्व युद्ध भी हुआ. इसे ग्रेट वार इसलिए कहा गया है कि इस समय तक इससे बड़ा युद्ध नहीं हुआ था. यह लड़ाई 28 जुलाई 1914 से लेकर 11 नवम्बर 1918 तक चली थी, जिसमे मरने वालों की संख्या एक करोड़ सत्तर लाख थी. इस आंकड़े में एक करोड़ दस लाख सिपाही और लगभग 60 लाख आम नागरिक मारे गये. इस युद्ध में ज़ख़्मी लोगों की संख्या 2 करोड़ थी.
प्रथम विश्व युद्ध में दो योद्धा दल (F irst World War Two Powers)
इस युद्ध में एक तरफ अलाइड शक्ति और दूसरी तरफ सेंट्रल शक्ति थे. अलाइड शक्ति में रूस, फ्रांस, ब्रिटेन, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका और जापान था. संयुक्त राष्ट्र अमेरिका इस युद्ध में साल 1917- 18 के दौरान संलग्न रहा. सेंट्रल शक्ति में केवल 3 देश मौजूद थे. ये तीन देश ऑस्ट्रो- हंगेरियन, जर्मनी और ओटोमन एम्पायर था. इस समय ऑस्ट्रो- हंगरी में हब्स्बर्ग नामक वंश का शासन था. ओटोमन आज के समय में ओटोमन तुर्की का इलाक़ा है.
प्रथम विश्व युद्ध के कारण (F irst World War Reason in hindi)
प्रथम विश्व युद्ध के चार मुख्य कारण हैं. इन कारणों को MAIN के रूप में याद रखा जाता है. इस शब्द में M मिलिट्रीज्म, A अलायन्स सिस्टम, I इम्पेरिअलिस्म और N नेशनलिज्म के लिए आया है.
- मिलिट्रीज्म : मिलिट्रीज्म में हर देश ने ख़ुद को हर तरह के आधुनिक हथियारों से लैस करने का प्रयास किया. इस प्रयास के अंतर्गत सभी देशों ने अपने अपने देश में इस समय आविष्कार होने वाले मशीन गन, टैंक, बन्दुक लगे 3 बड़े जहाज़, बड़ी आर्मी का कांसेप्ट आदि का आविर्भाव हुआ. कई देशों ने भविष्य के युद्धों की तैयारी में बड़े बड़े आर्मी तैयार कर दिए. इन सभी चीज़ों में ब्रिटेन और जर्मनी दोनों काफ़ी आगे थे. इनके आगे होने की वजह इन देशों में औद्योगिक क्रांति का बढ़ना था. औद्योगिक क्रान्ति की वजह से यह देश बहुत अधिक विकसित हुए और अपनी सैन्य क्षमता को बढाया. इन दोनों देशों ने अपने इंडस्ट्रियल कोम्प्लेक्सेस का इस्तेमाल अपनी सैन्य क्षमता को बढाने के लिए किया, जैसे बड़ी बड़ी विभिन्न कम्पनियों में मशीन गन का, टैंक आदि के निर्माण कार्य चलने लगे. इस समय विश्व के अन्य देश चाहते थे कि वे ब्रिटेन और जर्मनी की बराबरी कर लें किन्तु ऐसा होना बहुत मुश्किल था. मिलिट्रीज्म की वजह से कुछ देशों में ये अवधारणा बन गयी कि उनकी सैन्य क्षमता अति उत्कृष्ट है और उन्हें कोई किसी भी तरह से हरा नहीं सकता है. ये एक ग़लत अवधारणा थी और इसी अवधारणा के पीछे कई लोगों ने अपनी मिलिट्री का आकार बड़ा किया. अतः मॉडर्न आर्मी का कांसेप्ट यहीं से शुरू हुआ.
- विभिन्न संधीयाँ यानि गठबंधन प्रणाली : यूरोप में 19वीं शताब्दी के दौरान शक्ति में संतुलन स्थापित करने के लिए विभिन्न देशों ने अलायन्स अथवा संधियाँ बनानी शुरू की. इस समय कई तरह की संधियाँ गुप्त रूप से हो रही थी. जैसे किसी तीसरे देश को ये पता नहीं चलता था कि उनके सामने के दो देशों के मध्य क्या संधि हुई है. इस समय में मुख्य तौर पर दो संधियाँ हुई, जिसके दूरगामी परिणाम हुए. इन दोनों संधि के विषय में दिया जा रहा है,
- साल 1882 का ट्रिपल अलायन्स : साल 1882 में जर्मनी ऑस्ट्रिया- हंगरी और इटली के बीच संधि हुई थी.
- साल 1907 का ट्रिपल इंटेंट : साल 1907 में फ्रांस, ब्रिटेन और रूस के बीच ट्रिपल इंटेंट हुआ. साल 1904 में ब्रिटेन और रूस के बीच कोर्दिअल इंटेंट नामक संधि हुई. इसके साथ रूस जुड़ने के बाद ट्रिपल इंटेंट के नाम से जाना गया.
यद्यपि इटली, जर्मनी और ऑस्ट्रिया- हंगरी के साथ था किन्तु युद्ध के दौरान इसने अपना पाला बदल लिया था और फ्रांस एवं ब्रिटेन के साथ लड़ाई लड़नी शुरू की.
- साम्राज्यवाद : इस समय जितने भी पश्चिमी यूरोप के देश हैं वो चाहते थे, कि उनके कॉलोनिस या विस्तार अफ्रीका और एशिया में भी फैले. इस घटना को ‘स्क्रेम्बल ऑफ़ अफ्रीका’ यानि अफ्रीका की दौड़ भी कहा गया, इसका मतलब ये था कि अफ्रिका अपने जितने अधिक क्षेत्र बचा सकता है बचा ले, क्योंकि इस समय अफ्रीका का क्षेत्र बहुत बड़ा था. यह समय 1880 के बाद का था जब सभी बड़े देश अफ्रीका पर क़ब्ज़ा कर रहे थे. इन देशों में फ्रांस, जर्मनी, होलैंड बेल्जियम आदि थे. इन सभी देशों का नेतृत्व ब्रिटेन कर रहा था. इस नेतृत्व की वजह ये थी कि ब्रिटेन इस समय काफ़ी सफ़ल देश था और बाक़ी देश इसके विकास मॉडल को कॉपी करना चाहते थे. पूरी दुनिया के 25% हिस्से पर एक समय ब्रिटिश शासन का राजस्व था. इस 25% क्षेत्र की वजह से इनके पास बहुत अधिक संसाधन आ गये थे. इसकी वजह से इनकी सैन्य क्षमता में भी खूब वृद्धि हुई. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भारत से 13 लाख सैनिकों ने प्रथम विश्व युद्ध में लड़ाई लड़ने के लिए भेजे गये. ब्रिटेन आर्मी में जितनी भारतीय सेना थी, उतनी ब्रिटेन सेना नहीं थी. भारतीय सेना द्वारा हुई सर्जिकल स्ट्राइक यहाँ पढ़ें.
- राष्ट्रवाद : उन्नसवीं शताब्दी मे देश भक्ति की भावना ने पूरे यूरोप को अपने कब्जे में कर लिया. जर्मनी, इटली, अन्य बोल्टिक देश आदि जगह पर राष्ट्रवाद पूरी तरह से फ़ैल चूका था. इस वजह से ये लड़ाई एक ग्लोरिअस लड़ाई के रूप मे भी सामने आई और ये लड़ाई ‘ग्लोरी ऑफ़ वार’ कहलाई. इन देशों को लगने लगा कि कोई भी देश लड़ाई लड़ के और जीत के ही महान बन सकता है. इस तरह से देश की महानता को उसके क्षेत्रफल से जोड़ के देखा जाने लगा.
प्रथम विश्वयुद्ध के पहले एक पोस्टर बना था, जिसमे कई देश एक दुसरे के पीछे से प्रहार करते हुए नज़र आये. इसमें साइबेरिया को सबसे छोते बच्चे के रूप में दिखाया गया. इस पोस्टर में साइबेरिया अपने पीछे खड़े ऑस्ट्रिया को कह रहा था यदि तुम मुझे मारोगे तो रूस तुम्हे मारेगा. इसी तरह यदि रूस ऑस्ट्रिया को मरता है तो जर्मनी रूस को मारेगा. इस तरह सभी एक दुसरे के दुश्मन हो गये, जबकि झगड़ा सिर्फ साइबेरिया और ऑस्ट्रिया के बीच में था.
प्रथम विश्व युद्ध सम्बंधित धारणाये (F irst World War Immediate Cause)
इस समय यूरोप में युद्ध संबधित धारणाएँ बनी कि तकनीकी विकास होने की वजह से जिस तरह शस्त्र वगैरह तैयार हुए हैं, उनकी वजह से अब यदि युद्ध हुए तो बहुत कम समय में युद्ध ख़त्म हो जाएगा, किन्तु ऐसा हुआ नहीं. इस समय युद्ध को अलग अलग अखबारों, लेखकों ने गौरव से जोड़ना शुरू किया. उनके अनुसार युद्ध किसी भी देश के निर्माण के लिए बहुत ज़रूरी है, बिना किसी युद्ध के न तो कोई देश बन सकता है और न ही किसी तरह से भी महान हो सकता है और न ही तरक्की कर सकता है. अतः युद्ध अनिवार्य है.
प्रथम विश्व युद्ध में यूरोप का पाउडर केग (F irst World War Europe Balkans)
बाल्कन को यूरोप का पाउडर केग कहा जाता है. पाउडर केग का मतलब बारूद से भरा कंटेनर होता है, जिसमे कभी भी आग लग सकती है. बाल्कन देशों के बीच साल 1890 से 1912 के बीच वर्चास्व की लड़ाईयां चलीं. इन युद्ध में साइबेरिया, बोस्निया, क्रोएसिया, मॉन्टेंगरो, अल्बानिया, रोमानिया और बल्गारिया आदि देश दिखे थे. ये सभी देश पहले ओटोमन एम्पायर के अंतर्गत आता था, किन्तु उन्नीसवीं सदी के दौरान इन देशों के अन्दर भी `स्वतंत्र होने की भावना जागी और इन्होने ख़ुद को बल्गेरिया से आज़ाद कर लिया. इस वजह से बाल्कन मे हमेशा लड़ाइयाँ जारी रहीं. इस 22 वर्षों में तीन अलग अलग लड़ाईयां लड़ी गयीं.
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान आर्कड्यूक फ्रान्ज़ फर्डीनांड की हत्या (F irst World War Austrian Prince Death)
आर्कड्यूक फ्रान्ज़ फर्डीनांड ऑस्ट्रिया के प्रिन्स थे और इस राज्य के अगले राजा बनने वाले थे. इस समय ये साराजेवो, जो कि बोस्निया में है, वहाँ अपनी पत्नी के साथ घुमने आये थे. ये समय जून 1914 का था. इन पर यहीं गर्विलो प्रिंसेप नामक आदमी ने हमला किया और इन्हें मार दिया. इनकी हत्या में एक ‘ब्लैक हैण्ड’ नामक संस्था का भी हाथ था. इस हत्या के बाद साइबेरिया को धमकियाँ मिलनी शुरू हुई. ऑस्ट्रिया को ऐसा लगता था कि साइबेरिया जो कि बोस्निया को आज़ादी दिलाने में मदद कर रहा था, इस हत्या में शामिल है.
प्रथम विश्व युद्ध के मुख्य वजह और जुलाई क्राइसिस (F irst World War July Crisis)
ऑस्ट्रिया ने इस हत्या के बाद साइबेरिया को अल्टीमेटम दिया कि वे जल्द ही आत्मसमर्पण कर दें और साइबेरिया ऑस्ट्रिया के अधीन हो जाए. इस मसले पर साइबेरिया ने रूस से मदद माँगी और रूस को बाल्टिक्स में हस्तक्षेप करने का एक और मौक़ा मिल गया. रूस का साइबेरिया को मदद करने का एक कारण स्लाविक साइबेरिया को सपोर्ट करना भी था. रूस और साइबेरिया दोनों में रहने वाले लोग को स्लाविक कहा जाता है. इसी समय ऑस्ट्रिया हंगरी ने जर्मनी से मदद मांगनी शुरू की. इस पर जर्मनी ने ऑस्ट्रिया हंगरी को एक ‘ब्लेंक चेक’ देने की बात कही और कहा कि आप जो करना चाहते हों करें जर्मनी आपको पूरा सहयोग देगा. जर्मनी का समर्थन पा कर ऑस्ट्रिया हंगरी ने साइबेरिया पर हमला करना शुरू किया. इसके बाद रूस ने जर्मनी से लड़ाई की घोषणा की. फिर कुछ दिन बाद फ्रांस ने भी जर्मनी से लड़ाई की घोषणा कर दी. फ्रांस के लड़ने की वजह ट्रिपल इंटेंट संधि थी. इस समय तक ब्रिटेन इस युद्ध में शामिल नहीं हुआ था तब इटली ने भी युद्ध करने से मना कर दिया था. इटली का कहना था कि ट्रिपल इंटेंट के तहत यदि कोई और हम तीनों में से किसी पर हमला करता है तब हम इकट्ठे होंगे न कि किसी दुसरे देश के लिए.
प्रथम विश्व युद्ध का समय (F irst World War Time)
जुलाई क्राइसिस के बाद अगस्त में युद्ध शुरू हो गया. इस समय जर्मनी ने एक योजना बनायी, जिसके तहत उसने पहले फ्रांस को हराने की सोची. इसके लिए उन्होंने बेल्जियम का रास्ता चुना. जैसे ही जर्मनी की मिलिट्री ने बेल्जियम में प्रवेश किया, उधर से ब्रिटेन ने जर्मनी पर हमला कर दिया. इसकी वजह ये थी कि बेल्जियम और ब्रिटेन के बीच सन 1839 में एक समझौता हुआ था. जर्मनी इस समय फ्रांस में घुसने में सफ़ल रहे हालाँकि पेरिस तक नहीं पहुँच पाए. इसके बाद जर्मनी की सेनाओं ने ईस्ट फ्रंट पर रूस को हरा दिया. यहाँ पर लगभग 3 लाख रूसी सैनिक शहीद हुए. इस दौरान ओटोमन एम्पायर ने भी रूस पर हमला कर दिया. इसकी एक वजह ये भी थी कि ओटोमन और रूस दोनों लम्बे समय से एक दुसरे के दुश्मन रहे थे. इसी के साथ ओटोमन ने सुएज कैनाल पर भी हमला कर दिया. इसकी वजह ये थी कि ब्रिटेन आइलैंड को भारत से जोड़ने के लिए एक बहुत बड़ी कड़ी थी. यदि इस सुरंग पर ओटोमन का अधिपत्य हो जाता तो ब्रिटेन प्रथम विश्व युद्ध हार भी सकता था. हालाँकि सुएज कैनाल बचा लिया गया.
प्रथम विश्व युद्ध के समय के ट्रेंच (F irst World War Trenches)
ट्रेंच युद्ध में वो जगह होती है, जहाँ पर सैनिक रहते हैं, जहाँ से लड़ाई लड़ते हैं, खाना पीना और सोना भी इसी जगह पर होता है. प्रथम विश्व युद्ध में पहली बार इतने लम्बे ट्रेंच बनाए गये. फ्रांस और जर्मनी फ्रंट 3 साल तक ऐसे ही आमने सामने रहे. न तो फ्रांस को आगे बढ़ने का मौक़ा मिला और न ही जर्मनी को. ट्रेंच बनाने का मुख्य कारण आर्टिलरी शेल्लिंग से बचना था. इसकी सहायता से आर्टिलरी गोलों से बचने में मदद मिलती थी, किन्तु बारिश और अन्य मौसमी मार की वजह से कई सारे सैनिक सिर्फ बीमारी से मारे गये. जिस भी समय कोई सैनिक ट्रेंच से बाहर निकलता था, उसी समय दुसरी तरफ से मशीन गन से गोलीबारी शुरू हो जाती और सैनिक मारे जाते. सन 1916 में एक सोम की लड़ाई हुई थी जिसमे एक दिन में 80,000 सैनिक मारे गये. इसमें अधिकतर ब्रिटेन और कनाडा के सैनिक मौजूद थे. कुल मिलाकर इस युद्ध में 3 लाख सैनिक मारे गये.
प्रथम विश्व युद्ध ग्लोबल वार क्यों कहा जाता है (W hy was World War One The First Global War)
इस समय लगभग पूरी दुनिया में लड़ाई छिड़ी हुई थी. इस वहज से इसे ग्लोबल वर कहा जाता है. अफ्रीका स्थित जर्मनी की कॉलोनिस जैसे टोगो, तंज़ानिया और कैमरून आदि जगहों पर फ्रांस ने हमला कर दिया. इसके अलावा माइक्रोनेशिया और चीनी जर्मन कॉलोनिस पर जापान ने हमला कर दिया. इस युद्ध में जापान के शामिल होने की वजह ब्रिटेन और जापान के बीच का समझौता था. इसके साथ ही ओटोमन जहाज़ों ने ब्लैक सागर के रूसी बंदरगाहों पर हमले करना शुरू कर दिया. ब्लैक सी में स्थित सेवास्तापोल रूस का सबसे महत्वपूर्ण नवल बेस है. गल्लिपोली टर्की में स्थित एक राज्य है, जहाँ पर अलाइड बलों ने हमले शुरू कर दिए. यहाँ पर ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैण्ड के सैन्य बल लड़ रहे थे. इस आर्मी को अन्ज़क आर्मी कहा जाता था. हालाँकि यहाँ पर इस आर्मी को किसी तरह की सफलता नहीं मिली. इस युद्ध की याद में आज भी ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैण्ड के बीच अन्ज़क डे मनाया जाता है.
इसी के साथ कई बड़े महासागरों में भी नेवी युद्ध शुरू हुए. इसके बाद जर्मनी ने एक पनडुब्बी तैयार किया था जिसका नाम था यू बोट. इस यू बोट ने सभी अलाइड जहाजों पर हमला करना शुरू कर दिया. शुरू में जर्मन के इस यू बोट ने सिर्फ नेवी जहाज़ों पर हमले किये किन्तु बाद में इस जहाज ने आम नागरिकों के जहाजों पर भी हमला करना शुरू कर दिया. ऐसा ही एक हमला लूसीतानिया नामक एक जहाज़ जो कि अमेरिका से यूरोप के बीच आम लोगों को लाने ले जाने का काम करती थी, उस पर हमला हुआ और लगभग 1200 लोग मारे गये. ये घटना अटलांटिक महासागर में हुई थी. इस हमले के बाद ही अमेरिका साल 1917 में प्रथम विश्व युद्ध में शामिल हो गया और अलाइड शक्तियों का साथ देने लगा. इस समय अमेरिका के राष्ट्रपति वूड्रो विल्सन थे. हालाँकि शुरू में अमेरिका किसी भी तरह से यूरोप की इस लड़ाई में शामिल नहीं होना चाहता था, किन्तु अंततः इसे भी इस युद्ध में शामिल होना पड़ा.
प्रथम विश्व युद्ध में भारत का प्रदर्शन (F irst World War Indian Army)
प्रथम विश्व युद्ध में लगभग 13 लाख भारतीय ब्रिटिश आर्मी की तरफ़ से लड़ रहे थे. ये भारतीय सैनिक फ्रांस, इराक, ईजिप्ट आदि जगहों पर लडे, जिसमे लगभग 50,000 सैनिकों को शहादत मिली. तीसरे एंग्लो अफ़ग़ान वार और प्रथम विश्व युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की याद में इंडिया गेट का निर्माण किया गया.
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प्रथम, द्वितीय और तृतीय विश्व युद्ध Essay World War 1, 2, 3 in Hindi
प्रथम, द्वितीय और तृतीय विश्व युद्ध (World War 1, 2, and 3 in Hindi) का इतिहास पर गहरा प्रभाव पड़ा है। इन वैश्विक संघर्षों ने दुनिया भर के देशों के राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य को आकार दिया है।
यह निबंध युद्धों के कारणों, प्रभावों, परिणामों और महत्व की पड़ताल करता है, जिसका उद्देश्य इन विश्व-परिवर्तनकारी घटनाओं के आसपास की जटिलताओं के बारे में हमारी समझ को गहरा करना है।
Table of Content
प्रथम विश्व युद्ध की जानकारी World War 1 Information in Hindi
प्रथम विश्व युद्ध, जिसे महान युद्ध के रूप में भी जाना जाता है, 28 जुलाई 1914 से 11 नवंबर 1918 तक चला। इस युद्ध में कई देश शामिल थे, जिनमें जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी जैसी प्रमुख शक्तियां और एक तरफ ओटोमन साम्राज्य (केंद्रीय शक्तियों के रूप में जाना जाता है) शामिल थे, और दूसरी ओर फ्रांस, ब्रिटेन और रूस (मित्र राष्ट्रों के रूप में जाने जाते हैं)।
युद्ध मुख्य रूप से सैन्यवाद, साम्राज्यवाद, राष्ट्रवाद और ऑस्ट्रिया-हंगरी के आर्कड्यूक फ्रांज फर्डिनेंड की हत्या सहित कारकों के एक जटिल जाल के कारण हुआ था।
युद्ध समाप्त होने के बाद, कई देशों और क्षेत्रों को विभाजित किया गया या नए सिरे से बनाया गया। ऑस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य को भंग कर दिया गया, जिससे ऑस्ट्रिया, हंगरी, चेकोस्लोवाकिया और यूगोस्लाविया जैसे नए राष्ट्रों का निर्माण हुआ।
ओटोमन साम्राज्य को भी नष्ट कर दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप आधुनिक तुर्की और विभिन्न मध्य पूर्वी देशों की स्थापना हुई। इसके अतिरिक्त, जर्मनी को महत्वपूर्ण क्षेत्रीय नुकसान का सामना करना पड़ा और वर्साय की संधि के तहत युद्ध के लिए पूरी जिम्मेदारी स्वीकार करनी पड़ी।
वर्साय की संधि के परिणाम दूरगामी थे। इसने जर्मनी पर भारी मुआवज़ा लगाया और उसकी सैन्य क्षमताओं को सीमित कर दिया। इससे जर्मनी में आर्थिक अस्थिरता पैदा हुई और राजनीतिक अशांति पैदा हुई जिसने अंततः द्वितीय विश्व युद्ध का मार्ग प्रशस्त किया।
प्रथम विश्व युद्ध का कारण Causes of World War 1 in Hindi
जानें प्रथम विश्व युद्ध के प्रमुख कारण:
- राष्ट्रवाद: अपने राष्ट्र के प्रति गहन गौरव और निष्ठा ने देशों के बीच प्रतिद्वंद्विता और प्रतिस्पर्धा को जन्म दिया, तनाव और संघर्ष को बढ़ावा दिया।
- साम्राज्यवाद: उपनिवेशों और संसाधनों के लिए संघर्ष ने यूरोपीय शक्तियों के बीच एक दौड़ पैदा कर दी, जिससे क्षेत्रीय विवाद और सत्ता संघर्ष शुरू हो गए।
- सैन्यवाद: सैन्य शक्ति के महत्व में विश्वास से प्रेरित राष्ट्रों के बीच हथियारों की होड़ ने तनाव बढ़ा दिया और एक अस्थिर माहौल बनाया।
- गठबंधन प्रणाली: ट्रिपल एंटेंटे और केंद्रीय शक्तियों जैसे देशों के बीच बने गठबंधनों के जटिल जाल ने एक नाजुक संतुलन बनाया, जिसे आसानी से तोड़ा जा सकता था।
- आर्चड्यूक फ्रांज फर्डिनेंड की हत्या: 1914 में एक सर्बियाई राष्ट्रवादी द्वारा ऑस्ट्रो-हंगेरियन सिंहासन के उत्तराधिकारी की हत्या ने राजनयिक संकटों की एक श्रृंखला शुरू कर दी जो अंततः युद्ध में बदल गई।
- बाल्कन युद्ध: 1912-1913 में दो बाल्कन युद्धों ने क्षेत्र में जातीय तनाव को बढ़ा दिया, जिससे यूरोप और अधिक अस्थिर हो गया और बड़े संघर्षों के लिए मंच तैयार हो गया।
- आर्थिक प्रतिद्वंद्विता: राष्ट्रों के बीच आर्थिक प्रतिस्पर्धा, विशेष रूप से बाजारों और संसाधनों पर, मौजूदा प्रतिद्वंद्विता बढ़ गई और युद्ध के लिए आर्थिक प्रेरणाएँ जुड़ गईं।
- कूटनीति की विफलता: संघर्षों को हल करने के राजनयिक प्रयास अक्सर अप्रभावी या अपर्याप्त थे, जिसके कारण वार्ता विफल हो गई और शत्रुता में वृद्धि हुई।
- राष्ट्रवादी प्रचार: सरकारों ने जनमत में हेरफेर करने और राष्ट्रवादी उत्साह को बढ़ावा देने के लिए प्रचार का इस्तेमाल किया, जिससे उनकी आबादी के बीच युद्ध के लिए समर्थन जुटाना आसान हो गया।
- गठबंधन की प्रणाली: गठबंधन की कठोर प्रणाली का मतलब था कि इन समझौतों के तहत अपने दायित्वों के कारण दो देशों के बीच कोई भी संघर्ष तेजी से बड़े पैमाने पर युद्ध में बदल सकता है, जिसमें कई देश शामिल होंगे।
प्रथम विश्व युद्ध का प्रभाव Effects of World War 1 in Hindi
जानें प्रथम विश्व युद्ध के प्रभाव:
- आर्कड्यूक फ्रांज फर्डिनेंड की हत्या: 1914 में आर्कड्यूक फ्रांज फर्डिनेंड की हत्या से घटनाओं की एक श्रृंखला शुरू हो गई जिसके कारण प्रथम विश्व युद्ध छिड़ गया, जो 1918 तक चला।
- कई शक्तियों के बीच युद्ध: युद्ध में प्रमुख वैश्विक शक्तियाँ शामिल थीं, जिनमें मित्र राष्ट्र (जैसे ब्रिटेन, फ्रांस और रूस) और केंद्रीय शक्तियाँ (जैसे जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी और ओटोमन साम्राज्य) शामिल थीं।
- सैनिकों की कठोर परिस्थितियाँ: ट्रेंच युद्ध प्रथम विश्व युद्ध की एक निर्णायक विशेषता बन गई, जिसमें दोनों पक्षों के सैनिकों को कठोर परिस्थितियों और भारी हताहतों का सामना करना पड़ा।
- नई नए हथियारों के विकास: इस अवधि के दौरान मशीन गन, जहरीली गैस, टैंक और विमान जैसी तकनीकी प्रगति ने युद्ध में क्रांति ला दी।
- मुख्य युद्ध: युद्ध में कई महत्वपूर्ण लड़ाइयाँ और आक्रमण हुए, जैसे सोम्मे की लड़ाई (1916) और वर्दुन की लड़ाई (1916), जिसके परिणामस्वरूप भारी जानमाल की हानि हुई।
- जर्मनी और रूस के बीच युद्ध: रूसी क्रांति के कारण हुए आंतरिक संघर्षों के कारण रूस के पीछे हटने से पहले पूर्वी मोर्चे पर 1914 से 1917 तक जर्मनी और रूस के बीच तीव्र लड़ाई देखी गई।
- अमेरिका भी युद्ध में शामिल: 1917 में अमेरिकी जहाजों पर जर्मन पनडुब्बी के हमलों के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका ने युद्ध में प्रवेश किया और मित्र राष्ट्रों के पक्ष में संतुलन बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- सामाजिक परिवर्तन: प्रथम विश्व युद्ध ने महत्वपूर्ण सामाजिक परिवर्तन लाए, जिनमें कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि और मताधिकार आंदोलनों का गति प्राप्त करना शामिल है।
- वर्साय की संधि: 1919 में हस्ताक्षरित वर्साय की संधि ने आधिकारिक तौर पर प्रथम विश्व युद्ध को समाप्त कर दिया, लेकिन जर्मनी पर कठोर शर्तें लगा दीं, जो बाद में द्वितीय विश्व युद्ध के कारण बढ़ते तनाव में योगदान देंगी।
- कई साम्राज्यों का विनाश: युद्ध ने ऑस्ट्रो-हंगेरियन, ओटोमन, रूसी और जर्मन उपनिवेशों जैसे साम्राज्यों को नष्ट कर दिया, जबकि यूरोप भर में सीमाओं को फिर से परिभाषित किया और राष्ट्रवादी आंदोलनों को जन्म दिया।
प्रथम विश्व युद्ध का परिणाम व अंत Result and End of World War 1 in Hindi
जानें प्रथम विश्व युद्ध के अंतिम परिणाम:
- वर्साय की संधि और प्रथम विश्व युद्ध का अंत: 28 जून, 1919 को वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर, जिसने आधिकारिक तौर पर युद्ध को समाप्त कर दिया और जर्मनी पर कठोर शर्तें लगा दीं।
- नए राष्ट्रों का उदय: चार प्रमुख साम्राज्यों – जर्मन, ऑस्ट्रो-हंगेरियन, रूसी और ओटोमन साम्राज्य – के विघटन से नए राष्ट्रों और सीमाओं का उदय हुआ।
- राष्ट्र संघ की स्थापना: राष्ट्र संघ की स्थापना जनवरी 1920 में एक अंतरराष्ट्रीय संगठन के रूप में की गई थी जिसका उद्देश्य शांति बनाए रखना और भविष्य के संघर्षों को रोकना था।
- लाखों लोगों की मृत्यु: युद्ध के परिणामस्वरूप भारी जनहानि हुई, लाखों सैनिक और नागरिक मारे गए, जिससे दुनिया भर के समाजों पर गहरा प्रभाव पड़ा।
- युद्धग्रस्त देशों में आर्थिक तंगी: आर्थिक रूप से, युद्धग्रस्त देशों को भारी चुनौतियों का सामना करना पड़ा क्योंकि वे अपने बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण और संघर्ष के विनाशकारी प्रभावों से उबरने के लिए संघर्ष कर रहे थे।
- महिलाओं की भूमिकाओं में सकारात्मक बदलाव: सामाजिक रूप से, महिलाओं की भूमिकाएँ महत्वपूर्ण रूप से बदलने लगीं क्योंकि उन्होंने युद्ध प्रयासों के दौरान अधिक जिम्मेदारियाँ संभालीं, जिससे महिला अधिकार आंदोलनों में प्रगति हुई।
- नई तकनीकों में प्रगति: युद्ध के दौरान हुई तकनीकी प्रगति, जैसे बेहतर संचार प्रणाली और हथियार नवाचार, ने सैन्य रणनीतियों और नागरिक जीवन को आकार देना जारी रखा।
- राजनीतिक क्षेत्र में कई बदलाव: युद्ध ने कई देशों में राजनीतिक उथल-पुथल भी मचाई, जिसमें रूस (1917) और जर्मनी (1918-1919) की क्रांतियां भी शामिल थीं, जिससे सत्ता की गतिशीलता में महत्वपूर्ण बदलाव आया।
- नए स्वतंत्र राष्ट्र का निर्माण: आत्मनिर्णय की अवधारणा को प्रमुखता मिली क्योंकि राष्ट्रों ने औपनिवेशिक शक्तियों से स्वतंत्रता की मांग की या जातीय या सांस्कृतिक पहचान के आधार पर राष्ट्रीय सीमाओं को फिर से निर्धारित करने की मांग की।
- द्वितीय विश्व युद्ध होने की संभावनाएं: प्रथम विश्व युद्ध के परिणाम ने असंतोष और अनसुलझे तनाव के बीज बोकर भविष्य के संघर्षों के लिए मंच तैयार किया जो अंततः दो दशक बाद द्वितीय विश्व युद्ध का कारण बना।
द्वितीय विश्व युद्ध की जानकारी World War 2 Information in Hindi
द्वितीय विश्व युद्ध, एक वैश्विक संघर्ष था जो 1939 से 1945 तक चला। इसमें कई महत्वपूर्ण घटनाएं और लड़ाइयाँ शामिल थीं जिन्होंने इतिहास के पाठ्यक्रम को आकार दिया।
युद्ध सितंबर 1939 में पोलैंड पर जर्मन आक्रमण के साथ शुरू हुआ, जिसके बाद ब्रिटेन और फ्रांस ने जर्मनी के खिलाफ युद्ध की घोषणा की।
जैसे-जैसे संघर्ष बढ़ता गया, सोवियत संघ, संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान जैसी अन्य प्रमुख शक्तियाँ इसमें शामिल हो गईं।
द्वितीय विश्व युद्ध की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक 1942-1943 में स्टेलिनग्राद की लड़ाई थी। नाज़ी जर्मनी और सोवियत संघ के बीच इस क्रूर टकराव के परिणामस्वरूप दोनों पक्षों को भारी नुकसान हुआ लेकिन अंततः मित्र राष्ट्रों के पक्ष में एक निर्णायक मोड़ आया।
एक और महत्वपूर्ण घटना डी-डे थी, जो 6 जून, 1944 को हुई थी। नॉर्मंडी के समुद्र तटों पर मित्र देशों की सेनाओं के इस विशाल जलथलचर आक्रमण ने पश्चिमी यूरोप को जर्मन कब्जे से मुक्त कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, होलोकॉस्ट जैसी उल्लेखनीय घटनाएँ भी हुईं, जहाँ लाखों यहूदियों और अन्य अल्पसंख्यक समूहों को नाज़ी जर्मनी द्वारा व्यवस्थित रूप से सताया गया और मार दिया गया।
संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा हिरोशिमा और नागासाकी पर विनाशकारी बमबारी के बाद जर्मनी और जापान के बिना शर्त आत्मसमर्पण के साथ 1945 में युद्ध समाप्त हो गया।
द्वितीय विश्व युद्ध के दूरगामी परिणाम हुए जिसने राजनीतिक सीमाओं को नया आकार दिया, प्रौद्योगिकी और चिकित्सा में प्रगति हुई और संयुक्त राष्ट्र जैसे नए अंतर्राष्ट्रीय संगठन स्थापित हुए।
द्वितीय विश्व युद्ध का कारण Causes of World War 2 in Hindi
जानें द्वितीय विश्व युद्ध के प्रमुख कारण:
- वर्साय की संधि: प्रथम विश्व युद्ध के बाद जर्मनी पर लगाई गई कठोर शर्तें, जिनमें बड़े पैमाने पर क्षतिपूर्ति और क्षेत्रीय नुकसान शामिल थे, ने असंतोष और आर्थिक अस्थिरता की भावना पैदा की, जिसने भविष्य के संघर्षों की नींव रखी।
- फासीवाद का उदय: बेनिटो मुसोलिनी के तहत इटली में और एडॉल्फ हिटलर के तहत जर्मनी में फासीवादी शासन के उद्भव ने आक्रामक विस्तारवादी नीतियों और विचारधाराओं को बढ़ावा दिया जो अन्य देशों पर हावी होने की कोशिश कर रहे थे।-
- तुष्टिकरण की नीति: नाजी जर्मनी जैसी आक्रामक शक्तियों की मांगों को मानकर संघर्ष से बचने के लिए पश्चिमी शक्तियों, विशेष रूप से ब्रिटेन और फ्रांस द्वारा अपनाई गई नीति ने केवल उनकी महत्वाकांक्षाओं को बढ़ाया और अंततः शांति बनाए रखने में विफल रही।
- राष्ट्र संघ की विफलता: प्रथम विश्व युद्ध के बाद शांति बनाए रखने और संघर्षों को रोकने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय संगठन के रूप में स्थापित राष्ट्र संघ की जापान, इटली और जर्मनी की आक्रामकता को प्रभावी ढंग से संबोधित करने में असमर्थता ने इसकी विश्वसनीयता को कम कर दिया।
- आर्थिक मंदी: 1930 के दशक में आई महामंदी के कारण वैश्विक स्तर पर बड़े पैमाने पर बेरोजगारी , गरीबी और सामाजिक अशांति फैल गई। इन गंभीर आर्थिक परिस्थितियों ने चरमपंथी विचारधाराओं को समर्थन हासिल करने के लिए उपजाऊ जमीन प्रदान की।
- जापानी विस्तारवाद: प्राकृतिक संसाधनों और क्षेत्र के लिए जापान की इच्छा के कारण 1931 में मंचूरिया पर आक्रमण हुआ और उसके बाद चीन में आक्रामकता हुई, जिससे क्षेत्रीय तनाव पैदा हुआ जो अंततः एक वैश्विक संघर्ष में बदल गया।
- सामूहिक सुरक्षा की विफलता: आक्रामक कृत्यों के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की एकीकृत प्रतिक्रिया की कमी ने जापान, इटली और जर्मनी जैसे देशों को अपनी विस्तारवादी नीतियों को अनियंत्रित रूप से जारी रखने की अनुमति दी।
- यहूदी विरोधी भावना और प्रलय: हिटलर की यहूदी विरोधी मान्यताओं ने जर्मनी के भीतर यहूदियों पर उसके उत्पीड़न को बढ़ावा दिया, जो अंततः व्यवस्थित नरसंहार में बदल गया, जिसे होलोकॉस्ट के रूप में जाना जाता है, जिससे अत्यधिक पीड़ा हुई और वैश्विक तनाव और गहरा हो गया।
- ऑस्ट्रिया का एंस्क्लस (एनेक्सेशन): 1938 में ऑस्ट्रिया पर हिटलर के कब्जे ने अंतरराष्ट्रीय समझौतों का उल्लंघन किया, लेकिन अन्य देशों से न्यूनतम विरोध का सामना करना पड़ा, जिससे क्षेत्रीय विजय के लिए उसकी महत्वाकांक्षाएं बढ़ गईं।
- कूटनीति की विफलता: संघर्षों को सुलझाने और युद्ध को रोकने के कूटनीतिक प्रयास, जैसे कि 1938 में म्यूनिख समझौता, अप्रभावी साबित हुए क्योंकि हिटलर ने अपनी आक्रामक विस्तारवादी नीतियों को जारी रखा, जिससे अंततः द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया।
द्वितीय विश्व युद्ध का प्रभाव Effects of World War 2 in Hindi
जानें द्वितीय विश्व युद्ध के प्रभाव:
- वैश्विक राजनीति पर गहरा प्रभाव: द्वितीय विश्व युद्ध के कारण हुई तबाही का वैश्विक राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप 1945 में संयुक्त राष्ट्र की स्थापना हुई। इस अंतर्राष्ट्रीय संगठन का उद्देश्य राष्ट्रों के बीच कूटनीति और सहयोग के माध्यम से भविष्य के संघर्षों को रोकना था।
- पश्चिमी यूरोप में नाज़ियों से मुक्ति: यूरोप युद्ध के दौरान प्रमुख लड़ाइयों का केंद्र था, जिसमें स्टेलिनग्राद की लड़ाई (1942-1943) सहित प्रमुख संघर्ष शामिल थे, जो मित्र राष्ट्रों के पक्ष में एक निर्णायक मोड़ था, और डी-डे आक्रमण (1944), जिसके कारण पश्चिमी यूरोप को नाज़ी नियंत्रण से मुक्त कराने के लिए।
- जर्मनी का भारी विनाश: युद्ध का जर्मनी पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा, क्योंकि उसे भारी विनाश का सामना करना पड़ा और अंततः पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी में विभाजित हो गया। 1945-1946 में आयोजित नूर्नबर्ग परीक्षणों में नाजी युद्ध अपराधियों को न्याय के कटघरे में लाने की मांग की गई थी।
- पर्ल हार्बर और जापान पर नूक्लीअर अटैक: एशिया में, जापान के आक्रामक विस्तारवाद के कारण कई संघर्ष हुए, जैसे 1941 में पर्ल हार्बर पर कुख्यात हमला। प्रशांत क्षेत्र में मिडवे की लड़ाई (1942) और ओकिनावा की लड़ाई (1945) जैसी प्रमुख लड़ाइयाँ देखी गईं, जिनकी परिणति जापान में हुई हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बमबारी के बाद आत्मसमर्पण।
- संयुक्त राज्य अमेरिका का निर्माण: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका एक महाशक्ति के रूप में उभरा, जिसने संयुक्त राष्ट्र और नाटो जैसी युद्धोत्तर संस्थाओं को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- भू-राजनीतिक विभजान: युद्ध के परिणामस्वरूप महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक परिवर्तन भी हुए, जैसे शीत युद्ध के दौरान यूरोप का पूर्वी और पश्चिमी गुटों में विभाजन।
- आर्थिक विकास में तेजी: आर्थिक परिणाम दुनिया भर में महसूस किए गए, ब्रिटेन जैसे देशों को युद्ध के बाद गंभीर मितव्ययिता उपायों का सामना करना पड़ा, जबकि अन्य देशों ने तेजी से पुनर्निर्माण और आर्थिक विकास का अनुभव किया।
- उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन: द्वितीय विश्व युद्ध ने अफ्रीका, एशिया और मध्य पूर्व में उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलनों का मार्ग प्रशस्त किया क्योंकि युद्ध में शामिल होने के कारण यूरोपीय शक्तियां कमजोर हो गईं।
- हिटलर के तानाशाही का अंत: नाजी जर्मनी द्वारा किए गए नरसंहार अत्याचारों के कारण मानवाधिकारों के उल्लंघन के बारे में जागरूकता बढ़ी और नरसंहार के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय कानूनों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जर्मनी में तानाशाह हिटलर के आत्मसमर्पण के पश्चात द्वितीय विश्वयुद्ध का मुख्य रूप से अंत माना गया था।
- विनाश का लंबा असर: द्वितीय विश्व युद्ध के दीर्घकालिक प्रभाव आज भी वैश्विक राजनीति को आकार दे रहे हैं, जो हमें विनाश के लिए मानवता की क्षमता और पुनर्निर्माण और सहयोग की क्षमता दोनों की याद दिलाते हैं।
द्वितीय विश्व युद्ध का परिणाम व अंत Result and End of World War 2 in Hindi
जानें द्वितीय विश्व युद्ध के परिणाम क्या हुए:
- संयुक्त राष्ट्र की स्थापना: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, संयुक्त राष्ट्र की स्थापना 1945 में एक अंतरराष्ट्रीय संगठन के रूप में की गई थी जिसका उद्देश्य राष्ट्रों के बीच शांति, सहयोग और कूटनीति को बढ़ावा देना था। इसने असफल राष्ट्र संघ का स्थान ले लिया और वैश्विक संवाद और संघर्षों के समाधान के लिए एक मंच बन गया।
- जर्मनी का विभाजन: द्वितीय विश्व युद्ध के परिणामस्वरूप जर्मनी दो अलग-अलग देशों में विभाजित हो गया – पश्चिमी जर्मनी (जर्मनी का संघीय गणराज्य) और पूर्वी जर्मनी (जर्मन लोकतांत्रिक गणराज्य)। यह विभाजन मुख्य रूप से पश्चिमी सहयोगियों (यूएसए, यूके, फ्रांस) और सोवियत संघ के बीच वैचारिक मतभेदों से प्रेरित था, जिसके कारण बर्लिन भी विभाजित हो गया।
- शीत युद्ध का युग: द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में एक तरफ संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगियों और दूसरी तरफ सोवियत संघ और उसके सहयोगियों के बीच शीत युद्ध की शुरुआत हुई। इस वैचारिक गतिरोध के कारण हथियारों की होड़, विभिन्न क्षेत्रों में छद्म युद्ध और वैश्विक शक्ति संघर्ष शुरू हुआ जिसने दशकों तक अंतरराष्ट्रीय संबंधों को आकार दिया।
- विउपनिवेशीकरण आंदोलन: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पूरे अफ्रीका, एशिया और मध्य पूर्व में विउपनिवेशीकरण आंदोलनों में वृद्धि देखी गई। पूर्व उपनिवेशों ने ब्रिटेन, फ्रांस, बेल्जियम और पुर्तगाल जैसी यूरोपीय शक्तियों से स्वतंत्रता की मांग की। उपनिवेशीकरण की इस लहर ने वैश्विक राजनीति को नया आकार दिया और नए राष्ट्र-राज्यों को जन्म दिया।
- मार्शल योजना: 1948 में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने यूरोप के युद्ध के बाद के पुनर्निर्माण प्रयासों में सहायता के लिए मार्शल योजना शुरू की। इस विशाल आर्थिक सहायता कार्यक्रम ने युद्धग्रस्त देशों को उनके बुनियादी ढांचे, उद्योगों और अर्थव्यवस्थाओं के पुनर्निर्माण के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की। इसने यूरोप को तबाही से उबरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- नाटो की स्थापना: 1949 में, पश्चिमी यूरोपीय देशों ने संभावित सोवियत आक्रमण के खिलाफ एक सामूहिक रक्षा गठबंधन के रूप में उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) का गठन किया। इस सैन्य गठबंधन का उद्देश्य सामूहिक रक्षा उपायों के माध्यम से सदस्य देशों के बीच पारस्परिक सुरक्षा सुनिश्चित करना था।
- इज़राइल का निर्माण: 1948 में, इज़राइल राज्य की स्थापना की गई, जिसने प्रलय के बाद यहूदी लोगों को एक मातृभूमि प्रदान की। इस घटना के महत्वपूर्ण भूराजनीतिक निहितार्थ थे, जिससे मध्य पूर्व में चल रहे संघर्ष और आज तक क्षेत्रीय गतिशीलता को आकार मिल रहा है।
- परमाणु युग का उदय: द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बमों का विस्फोट देखा गया। इसने मानवता के लिए विनाशकारी परिणामों के साथ परमाणु युग की शुरुआत को चिह्नित किया। परमाणु हथियारों का विकास और प्रसार वैश्विक सुरक्षा के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय बन गया।
- आर्थिक गठबंधनों का गठन: आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने और भविष्य के संघर्षों को रोकने के प्रयास में, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद क्षेत्रीय आर्थिक गठबंधनों का गठन किया गया। उदाहरणों में यूरोपीय कोयला और इस्पात समुदाय (यूरोपीय संघ का पूर्ववर्ती) शामिल है, जिसका उद्देश्य यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं और दक्षिण पूर्व एशिया में आसियान जैसे संगठनों को एकीकृत करना था।
- तकनीकी प्रगति: द्वितीय विश्व युद्ध ने विमानन, चिकित्सा, संचार और कंप्यूटिंग जैसे विभिन्न क्षेत्रों में तकनीकी प्रगति को गति दी। इस अवधि के दौरान जेट इंजन, पेनिसिलिन, रडार सिस्टम और प्रारंभिक कंप्यूटर जैसे नवाचार उभरे, जिन्होंने समाज को बदल दिया और भविष्य की वैज्ञानिक सफलताओं का मार्ग प्रशस्त किया।
तृतीय विश्व युद्ध की जानकारी World War 3 Information in Hindi
तृतीय विश्व युद्ध कब हो सकता है when will world war 3 happen.
तीसरे विश्व युद्ध के सटीक समय की भविष्यवाणी करना असंभव है क्योंकि यह भू-राजनीतिक तनाव, अंतर्राष्ट्रीय संबंध और अप्रत्याशित घटनाओं जैसे कई जटिल कारकों पर निर्भर करता है।
हालाँकि हमें सतर्क रहना चाहिए और वैश्विक शांति की दिशा में काम करना चाहिए, लेकिन ऐसी विनाशकारी घटना को होने से रोकने के लिए कूटनीति और संघर्ष समाधान पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है।
तृतीय विश्व युद्ध के क्या कारण हो सकते हैं? What Could Be the Reasons for the Third World War? In Hindi
तीसरे विश्व युद्ध के संभावित कारण बहुआयामी और परस्पर जुड़े हुए हैं, जिनमें चल रहे संघर्ष, परमाणु प्रसार, जैविक युद्ध संबंधी चिंताएँ और भू-राजनीतिक तनाव जैसे विभिन्न कारक शामिल हैं।
गठबंधनों या निहित स्वार्थों के कारण विभिन्न क्षेत्रों में चल रहे युद्धों के बढ़ने और प्रमुख वैश्विक शक्तियों को इसमें शामिल करने की क्षमता है।
इसके अतिरिक्त, परमाणु हथियारों का खतरा बड़ा है, क्योंकि कई देशों द्वारा ऐसे हथियारों के कब्जे और विकास से भविष्य के संघर्ष में उनके उपयोग का खतरा बढ़ जाता है।
इसके अलावा, जैविक युद्ध क्षमताओं का उद्भव चिंता का एक नया आयाम प्रस्तुत करता है, क्योंकि जैव प्रौद्योगिकी में प्रगति संभावित रूप से वैश्विक स्तर पर विनाशकारी हमलों को सक्षम कर सकती है।
अंत में, क्षेत्रीय विवादों, संसाधन प्रतिस्पर्धा या वैचारिक मतभेदों से उत्पन्न होने वाले भू-राजनीतिक तनाव मौजूदा संघर्षों को बढ़ा सकते हैं और यदि प्रभावी ढंग से प्रबंधित नहीं किया गया तो संभावित रूप से व्यापक वैश्विक संघर्ष शुरू हो सकता है।
तृतीय विश्व युद्ध के क्या परिणाम हो सकते हैं? What Could Be the Results of World War 3?
यदि ऐसा हुआ, तो विश्व युद्ध 3 के निस्संदेह वैश्विक स्तर पर दूरगामी परिणाम होंगे। हालांकि सटीक परिणामों की भविष्यवाणी करना चुनौतीपूर्ण है, प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध के प्रभावों का विश्लेषण कुछ अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकता है।
अपने पूर्ववर्तियों की तुलना में, प्रौद्योगिकी और हथियार में प्रगति के कारण तीसरे विश्व युद्ध के संभावित रूप से और भी अधिक विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं।
उदाहरण के लिए, परमाणु हथियारों के उपयोग से अद्वितीय विनाश और जीवन की हानि हो सकती है। इस तरह के संघर्ष के परिणाम में संभवतः गंभीर पर्यावरणीय क्षति, लंबे समय तक चलने वाले विकिरण प्रभाव और महत्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक व्यवधान शामिल होंगे।
इसके अतिरिक्त, पिछले दो विश्व युद्धों की तुलना में, तीसरे विश्व युद्ध में अभूतपूर्व वैश्विक अंतर्संबंध देखने को मिलेगा।
इंटरनेट और सोशल मीडिया के आगमन से सूचना का प्रसार त्वरित और व्यापक होगा। इससे संघर्ष के दौरान जनता में घबराहट और भय बढ़ सकता है, जिससे इसके परिणाम और भी गंभीर हो सकते हैं।
इसके अलावा, आज मौजूद अंतरराष्ट्रीय गठबंधनों और निर्भरताओं के जटिल जाल को देखते हुए, तीसरे विश्व युद्ध के परिणामस्वरूप व्यापक भू-राजनीतिक पुनर्गठन होने की संभावना है।
जैसे ही नए गठबंधन बनते हैं या मौजूदा गठबंधन टूटते हैं, राष्ट्रों के बीच शक्ति संतुलन नाटकीय रूप से बदल सकता है। व्यापार मार्ग बाधित होने और देशों द्वारा संसाधनों को सैन्य प्रयासों की ओर मोड़ने से वैश्विक अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान होगा।
निष्कर्ष (Conclusion)
यदि तीसरा विश्व युद्ध होता है, तो तकनीकी प्रगति और बढ़ती वैश्विक अंतरसंबद्धता के कारण इसके परिणाम प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध की तुलना में कहीं अधिक विनाशकारी होंगे।
गंभीर पर्यावरणीय क्षति के साथ परमाणु हथियारों का संभावित उपयोग मानवता पर स्थायी प्रभाव छोड़ेगा। इसके अलावा, भू-राजनीतिक परिदृश्य और वैश्विक अर्थव्यवस्था महत्वपूर्ण परिवर्तनों से गुजरेगी क्योंकि राष्ट्र ऐसे विनाशकारी संघर्ष के परिणामों से जूझ रहे हैं।
1 thought on “प्रथम, द्वितीय और तृतीय विश्व युद्ध Essay World War 1, 2, 3 in Hindi”
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