राष्ट्रभाषा हिन्दी पर निबंध

Essay on Rashtrabhasha Hindi: हर देश की अपनी अलग भाषा होती है, जिसे राष्ट्रभाषा के तौर पर कहा जाता है। हर देश की अपनी अपनी अलग-अलग भाषाएं हैं। उसी प्रकार से भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी है। राष्ट्रभाषा का दर्जा किसी भी भाषा को तब दिया जाता है जब उस देश के सभी व्यक्ति उस भाषा को आसानी से लिख सकते हैं और बोल सकते हैं।

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हम यहां पर राष्ट्रभाषा हिन्दी पर निबंध (Rashtrabhasha Hindi Par Nibandh) शेयर कर रहे है। इस निबंध में राष्ट्रभाषा हिन्दी के संदर्भित सभी माहिति को आपके साथ शेयर किया गया है। यह निबंध सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए मददगार है।

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राष्ट्रभाषा हिन्दी पर निबंध | Essay on Rashtrabhasha Hindi

राष्ट्र भाषा हिन्दी पर निबंध 250 शब्दों में (rastrabhasa hindi par nibandh).

दुनिया में हर देश की अपनी भाषा है, उसे राष्ट्रभाषा कहते है। हमारे देश भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी है। यह हमारे देश में सामान्य संचार की भाषा है। यह हमारे देश की राजभाषा भी कहलाती है। 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के तुरंत बाद संविधान सभा द्वारा इसे अपनाया गया था। देश में  प्रतिवर्ष 14 सितंबर का दिन हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।

देश में राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने के लिए भी राष्ट्रभाषा की आवश्यकता होती है। राष्ट्रभाषा को बोलने से मानसिक सन्तोष का अनुभव होता है। हिंदी पूरे विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में चौथे स्थान पर है। हिंदी की लिपी देवनागरी है, जो कि देवों की लिपी है।

इस भाषा का विशेष रूप से उत्तर भारत में ज्यादा उपयोग होता है। दक्षिण भारत के लोग ज्यादातर अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल करते है, जो हिंदी को ठीक से नहीं समझते हैं। भारत में लाखों लोग अभी भी हिंदी नहीं जानते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि इसमें संस्कृत शब्दों को शामिल करने से इसे कठिन बना दिया गया है।

आज देश में हर जगह पर अंग्रेजी भाषा ने अपना कब्ज़ा जमा लिया है। इसमें कोई शक नहीं है कि अंग्रेजी अंतरराष्ट्रीय बातचीत के लिए जरुरी है लेकिन हिंदी को सिखने के लिए आज बच्चों को सख्ती से मजबूर किया जाता है। हमें अपनी राष्ट्रभाषा को बचाने के लिए कदम उठाने होंगे। हमें हिंदी को सरल बनाना होगा और इसे कठिन संस्कृत संस्करणों से मुक्त करना होगा।

अगर हमने हिंदी को बढ़ावा देने के लिए तत्काल प्रयास चालू नहीं किये तो हमें हिंदी को उसकी ही धरती यानी हिंदुस्तान में विलुप्त होते देखना होगा।

Essay on Rashtrabhasha Hindi

राष्ट्रभाषा हिंदी पर निबंध 500 शब्दों में (Rashtra Bhasha Hindi Essay in Hindi)

देश के हर राज्य की अलग भाषा है। हर राज्य में बहुत सारी भाषाएं बोली जाती है। लेकिन राष्ट्रभाषा का दर्जा सिर्फ हिंदी को ही मिला हुआ है। क्योंकि राष्ट्रभाषा का दर्जा हर किसी भाषा को नहीं मिल सकता। उस भाषा को देश का हर व्यक्ति आसानी से लिख सके और समझ सके उसे ही राष्ट्रभाषा के तौर पर चयनित किया जाता है।

हमारी राष्ट्रभाषा की विशेषता

  • हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी विषय संस्कृत की बेटी कहा जाता है। क्योंकि संस्कृत से ही हिंदी का जन्म हुआ है।
  • हिंदी भाषा समझने और लिखने के लिए बहुत ही आसान है और हिंदी व्याकरण के सभी नियमों को सिर्फ एक पन्ने पर लिखा जा सकता है।
  • आज के समय में हिंदी भाषा में बहुत सारे अनगिनत विदेशी शब्द भी शामिल हो गए हैं। शुद्ध हिंदी भाषा हर किसी को नहीं आती है।
  • हमारी भाषा हिंदी का एक विषय विद्यार्थियों को स्कूल में पढ़ाया जाता है और यूनिवर्सिटी में हिंदी साहित्य का सब्जेक्ट भी विद्यार्थियों के लिए मौजूद है, जो हमारे देश की एकता को बनाए रखता है।
  • पुरानी हिंदी भाषा में संस्कृत और देवनागरी का मिश्रण देखने को मिलता है।

हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा कब मिला

जब हमारा देश भारत आजाद हुआ तो उसके करीब 2 साल बाद 14 सितंबर 1950 को संविधान सभा में राष्ट्रभाषा की घोषणा को लेकर एक सभा का गठन किया गया और जिसमें इस बात का निर्णय लेने का प्रयास किया गया कि हमारे देश की राष्ट्रभाषा किस भाषा को चुना जाए। उस सभा में वहां पर हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा मिला था, इसीलिए आज के समय में 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।

राष्ट्रभाषा का क्या महत्व रहता है?

देश में राष्ट्रभाषा का प्रयोग करना देश की एकता का प्रतीक होता है। देश की एकता को बनाए रखने के लिए राष्ट्रभाषा का प्रयोग बेहद जरूरी है। हर व्यक्ति को राष्ट्रभाषा बोलना और समझना आना चाहिए। व्यक्ति कितना भी अंग्रेजी का ज्ञान क्यों ना झाड़ दे। लेकिन हिंदी भाषा में बात करने से जो संतुष्टि मिलती है, वह संतुष्टि अंग्रेजी में बात करने से नहीं मिलती है।

हिंदी भाषा का प्रयोग करना आपके बौद्धिक विकास के लिए बहुत ही ज्यादा जरूरी है और अपने बच्चों को भी हिंदी भाषा का ज्ञान मुख्य रूप से देना चाहिए। इतना ही नहीं हिंदी भाषा का प्रयोग करके आप भविष्य में राष्ट्र भाषा के महत्व को और अधिक बढ़ा देंगे।

भविष्य में राष्ट्रभाषा हिंदी का हाल

आज के समय में भी ज्यादातर लोग जो उच्च पदों पर कार्यरत है। यह अच्छी यूनिवर्सिटी के पढ़ाई कर चुके हैं, उनको हिंदी की बजाय अंग्रेजी में बात करना अच्छा लगता है। लेकिन आपको बताना चाहूंगा कि हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी जिसे हम कभी नहीं भूल सकते हिंदी भाषा बोलने से हमें एक सुकून की अनुभूति होती है, जो अंग्रेजी भाषा में बिल्कुल नहीं है।

यह बात बिल्कुल सच है कि अंग्रेजी भाषा अंतरराष्ट्रीय भाषा है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अंग्रेजी भाषा के साथ आप बातचीत कर सकते हैं। लेकिन ऐसे में आप देश की खुद की हिंदी भाषा को पीछे नहीं छोड़ सकते हैं। देश में रहते हुए आपको हिंदी भाषा को बढ़ावा देना चाहिए। अगर ऐसा ही चलता रहा तो भविष्य में राष्ट्रभाषा हिंदी का नामोनिशान खत्म हो जाएगा और अंग्रेजी भाषा का सिक्का जम जाएगा।

राष्ट्रभाषा हिंदी जिसका प्रयोग आज के समय में दिन-प्रतिदिन कम होते जा रहा है। क्योंकि लोगों को अंग्रेजी बोलना बहुत अच्छा लगने लग गया है। हमारी राष्ट्रभाषा को बचाने के लिए हमें निरंतर हिंदी भाषा का प्रयोग करना चाहिए और लोगों को भी हिंदी भाषा बोलने के प्रति जागरूक करना चाहिए, जिससे हमारी राष्ट्रभाषा और देश की एकता पर कोई आंच नहीं आएगी।

राष्ट्रभाषा हिन्दी पर निबंध 800 शब्दों में (Rashtrabhasha Hindi Essay)

राष्ट्रभाषा का शाब्दिक अर्थ होता है किसी राष्ट्र यानि के देश की जनता की भाषा। किसी भी व्यक्ति अपनी भावनाओं अपनी ही मातृभाषा में आसानी से व्यक्त कर सकता है। मनुष्य चाहे जितनी भी भाषाओं का ज्ञान प्राप्त कर लें लेकिन उसे मानसिक सन्तोष केवल अपनी भाषा बोलने से ही मिलता है।

हिंदी भाषा का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना है। हिन्दी विश्व की प्राचीन, समृद्ध और सरल भाषा होने के साथ-साथ हमारी ‘राष्ट्रभाषा’ भी है। पूरे विश्व में सबसे अधिक भाषा बोलने वाली सूचि में हिंदी भाषा चौथे स्थान पर है। हिन्‍दी भाषा को भारतीय विचार और संस्‍कृति का वाहक माना जाता है। हिंदी भारत की पहचान है। भारत में हिंदी लगभग 77% लोग हिंदी बोलते और समझते है।

राष्ट्रभाषा हिंदी का चुनाव

भारत देश एक विशाल और विविधता से भरपूर देश है। इस देश में अनेक जातियों, धर्मों और अलग अलग भाषाओं के लोग रहते हैं। इन सब में एकता बनाए रखना बेहद जरुरी है। अलग अलग भाषा होने के कारण ऐसी भाषा की आवश्यकता आन पड़ी, जिसके द्वारा राष्ट्र के सभी नागरिक एक दूसरे साथ आसानी से बातचीत कर सके और राष्ट्र के सभी सरकारी कार्य  भी उस भाषा के द्वारा हो सके।

भारत में राष्ट्रभाषा का चुनाव करना सबसे जटिल समस्या बन गई है। क्योंकि हर प्रांत के लोग अपनी भाषा को ही महत्व देते है। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एकमत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी  ही भारत की राजभाषा होगी। इसलिए प्रतिवर्ष 14 सितंबर का दिन हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।

हिंदी भाषा को राष्ट्र भाषा के रूप में चुना गया क्योंकि इस भाषा का इस्तेमाल देश में अधिकतर लोग करते है। हिंदी को सरलता से बोला भी जाता और सिखा भी जाता है। हिंदी एक ऐसी भाषा है, जो जिस प्रकार बोली जाती है उसी प्रकार लिखी भी जाती है। हिंदी भाषा भारत की प्राचीन भाषा संस्कृत और देवनागरी का मिश्रण है।

राष्ट्रभाषा का महत्व

देश में एकता बनाए रखने के लिए राष्ट्र भाषा बेहद जरुरी है। राष्ट्र भाषा का उपयोग हम देश के किसी भी कोने में दूसरे लोगों से अपना तालमेल बढ़ाने के लिए कर सकते है। राष्ट्र भाषा हमे मानसिक सन्तोष की अनुभूति करवाती है। हिंदी भाषा मारे जीवन मूल्यों, संस्कृति एवं संस्कारों की सच्ची संवाहक, संप्रेषक और परिचायक भी है।

किसी भी व्यक्ति के बौद्धिक विकास के लिए अपनी राष्ट्र भाषा का इस्तेमाल करना फायदेमंद रहता है। भारत के इतिहास के महान नेताओं जैसे महात्मा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री, लाला लाजपत राय, जवाहरलाल नेहरू आदि ने हिंदी को एक सशक्त भाषा के रूप में स्वीकार किया था।

वर्तमान में हिंदी का हाल

आजादी के इतने साल बाद भी हिंदी पूरी तरह से भारत की राष्ट्रभाषा नही बन पाई हैं। उत्तर भारत में हिंदी बोलने वाले लोग ज्यादा है जबकि दक्षिण भारत के लोग हिंदी के बदले अपनी मातृभाषा और अंग्रेजी का इस्तेमाल ज्यादा करते है।

टेक्नोलॉजी बढ़ने के कारण आज पूरी दुनिया एक परिवार के समान बन गई है। लोग दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने तक आसानी से अपना तालमेल बढ़ा रहे है। इसके लिए वो अंग्रेजी भाषा को इस्तेमाल कर रहे है। आर्थिक समृद्धि बढ़ने के कारण आज अंग्रेजी भाषा पूरे देश पर हावी होती जा रही है।

हिन्दी जानते हुए भी लोग हिन्दी में बोलने, पढ़ने या काम करने से हीनता की अनुभूति कर रहे है। आज के माता पिता अपने बच्चों को जबरदस्ती अंग्रेजी मीडियम में पढ़ा रहे है ताकि समाज में उनका गौरव बना रहे। हिन्दी देश की राजभाषा होने के बावजूद भी आज हर जगह अंग्रेजी भाषा ने अपना सिक्का जमा दिया है।

राष्ट्रभाषा के विकास संबंधी प्रयत्न

देश में आज हिंदी भाषा को जो अधिकार मिलना चाहिए था, वह उसकी अधिकारिणी नहीं बन पायी। आज भी अंग्रेजी बोलने वाले को लोग मान की नजरों से देखते है। पूरे देश को एकजुट होकर राष्ट्र भाषा और राजभाषा हिंदी को बचाने के लिए जरूरी प्रयास करने होंगे। सरकार भी आज हिंदी भाषा को प्रोत्साहित कर रही है। हिंदी दिवस के अवसर पर सरकारी विभागों में हिंदी की प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं।

हिंदी भाषा को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने अनेक पुरस्कार योजनाएं शुरू की हैं। सरकार द्वारा हिंदी में अच्छे कार्य के लिए ‘‘राजभाषा कीर्ति पुरस्कार योजना’’ के अंतर्गत शील्ड प्रदान की जाती है। सरकार द्वारा हिंदी में लेखन के लिए राजभाषा गौरव पुरस्कार भी प्रदान किया जाता है।

सारे देश को एकता के सूत्र में पिरोने के लिए हमें हिंदी के महत्व को समझना होगा। हिन्दी पहले राष्ट्र भाषा थी, आज भी है और आगे भी रहेगी। हिन्दी को समृद्ध करना, इसका उपयोग बढ़ाना और इसे सम्मान देना और दिलाना यह प्रत्येक भारतीय का पहला कर्तव्य है।

अगर आप चाहते हो की राजभाषा और राष्ट्र भाषा हिन्दी का अतीत शानदार हो, भविष्य भी भव्यता के साथ जानदार हो तो हमें वर्तमान के हर क्षण का उपयोग हिन्दी को सँवारने के लिए और इसकी विकास-यात्रा को आगे बढ़ाने के लिए करना होगा।

राष्ट्रभाषा हिन्दी पर निबंध pdf

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Rahul Singh Tanwar

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Comments (3).

THANK YOU SO MUCH ……

Tq so much ☺️ very useful matter

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राष्ट्रभाषा हिन्दी पर निबंध- Essay on National Language in Hindi

In this article, we are providing an Essay on National Language in Hindi / Essay on Rashtrabhasha Hindi. राष्ट्रभाषा हिन्दी पर निबंध | Nibandh in 200, 300, 500, 600, 800 words For class 3,4,5,6,7,8,9,10,11,12 Students.  

राष्ट्रभाषा हिन्दी पर निबंध- Essay on National Language in Hindi

Rashtra Bhasha Hindi Essay ( 300 words )

प्रस्तावना- हम भारतीय लोग बचपन से बोलना शुरू करते हैं तब पहला शब्द हमारा हिंदी का ही होता है और उस हिंदी भाषा के सहारे ही हम दुनिया के तमाम तरह के जज्बात, भावनाओं को व्यक्त कर पाते हैं। लेकिन जब बात आए सम्मान की तो हम हिचकते हैं हिंदी को अपनी मातृभाषा कहते हुए।

हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी पर हम सब गर्व तो करते हैं, फिर भी हिंदी को बोलने में हमें शर्म क्यों आती हैं। हम कहीं बाहर जाकर किसी से मिलते हैं तो हिंदी के बजाय अंग्रेजी में बात करने को ज्यादा मान्यता देते हैं।

दुनिया मे बोली जाने वाली अनेकों भाषाएं है, लेकिन उनमें से एक भाषा जिसमें हम बड़ी सहजता के साथ अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं  ‘हमारी राष्ट्रभाषा कहलाती है’ । हमारी राष्ट्रभाषा पूरी दुनिया मे हमारी बोली, हमारी सभ्यता को एक पहचान देती है।

14 सितंबर वर्ष 1949 में संविधान सभा ने एक बैठक में राष्ट्रभाषा के बारे में वार्तालाप की, जिसके बाद कई राजकीय भाषाओं को राष्ट्रभाषा बनाने का सुझाव दिया गया, लेकिन उस समय भी ज्यादातर लोग हिंदी के पक्ष में खड़े थे जिसके बाद बहुमत के साथ हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दे दिया गया।

प्रत्येक वर्ष हम 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाते हैं, इस दिन सरकारी और गैरसरकारी स्थानों पर आयोजन किए जाते हैं और बड़े-बड़े भाषण के साथ हिंदी को मां का दर्जा भी दिया जाता है।

उपसंहार- हमें चाहिए कि जो हम इज्जत हिंदी को दुनिया के सामने देने का ढोंग करते हैं, उसे असल जिंदगी में भी दें। जिससे हमारी हिंदी भाषा दुनिया में तरक्की कर सके बिल्कुल वैसे जैसे आज अंग्रेजी भाषा भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में अपनी पहचान बनाए हुए है।

Rashtrabhasha Hindi Par Nibandh ( 800 words )

प्रस्तावना- ‘राष्ट्र’ शब्द का प्रयोग किसी देश तथा वहाँ बसने वाले लोगों के लिए किया जाता है। प्रत्येक राष्ट्र का अपना स्वतंत्र अस्तित्व होता है। उसमें विभिन्न जातियों एवं धर्मों के लोग रहते हैं। विभिन्न स्थानों अथवा प्रांतों में रहने वाले लोगों की भाषा भी अलग-अलग होती है। इस भिन्नता के साथ-साथ उनमें एकता भी बनी रहती है। पूरे राष्ट्र के शासन का एक केद्र होता है। अत: राष्ट्र की एकता को और दृढ़ बनाने के लिए एक ऐसी भाषा की आवश्यकता होती है, जिसका प्रयोग संपूर्ण राष्ट्र में महत्वपूर्ण कार्यों के लिए किया जाता है। ऐसी व्यापक भाषा ही राष्ट्रभाषा कहलाती है। भारतवर्ष में अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं। भारतवर्ष को यदि भाषाओं का अजायबघर भी कहा जाए तो अतिशयोक्ति न होगी लेकिन एक संपर्क भाषा के बिना आज पूरे राष्ट्र का काम नहीं चल सकता।

सन 1947 में भारतवर्ष को स्वतंत्रता प्राप्त हुई। जब तक भारत में अंग्रेज़ शासक रहे, तब तक अंग्रेज़ी का बोलबाला था किंतु अंग्रेज़ों के जाने के बाद यह असंभव था की देश के सारे कार्य अंग्रेजी में हो। जब देश के सविधान का निर्माण किआ गया तो यह प्रशन भी उपस्थित हुआ कि राष्ट्र की भाषा कौन-सी होगी ? क्योंकि राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र के स्वतंत्र अस्तित्व की पहचान नहीं होगी। कुछ लोग अंग्रेज़ी भाषा को ही राष्ट्रभाषा बनाए रखने के पक्ष में थे परंतु अंग्रेज़ी को राष्ट्रभाषा इसलिए घोषित नहीं किया जा सकता था क्योंकि देश में बहुत कम लोग ऐसे थे जो अंग्रेज़ी बोल सकते थे। दूसरे, उनकी भाषा को यहाँ बनाए रखने का तात्पर्य यह था कि हम किसी-न-किसी रूप में उनकी दासता में फंसे रहें।

हिंदी को राष्ट्रभाषा  घोषित करने का प्रमुख तर्क यह है की हिंदी एक भारतीय भाषा है। दूसरे, जितनी संख्या यहां हिंदी बोलने वाले लोगों की थीं, उतनी किसी अन्य प्रांतीय भाषा बोलने वालों की नहीं। तीसरे, हिंदी समझना बहुत आसान है। देश के प्रत्येक अंचल में हिंदी सरलता से समझी जाती है, भले ही इसे बोल न सके। चौथी बात यह है कि हिंदी भाषा अन्य भारतीय भाषाओं की तुलना में सरल है, इसमें शब्दों का प्रयोग तकपूर्ण है। यह भाषा दो-तीन महीनों के अल्प समय में ही सीखी जा सकती है। इन सभी विशेषताओं के कारण भारतीय संविधान सभा ने यह निश्चय किया कि हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा तथा देवनागरी लिपि को राष्ट्रलिपि बनाया जाए।

हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित करने के बाद उसका एकदम प्रयोग करना कठिन था। अत: राजकीय कर्मचारियों को यह सुविधा दी गई थी कि सन 1965 तक केद्रीय शासन का कार्य व्यावहारिक रूप से अंग्रेज़ी में चलता रहे और पंद्रह वर्षों में हिंदी को पूर्ण – समृद्धिशाली बनाने के लिए प्रयत्न किए जाएँ। इस बीच सरकारी कर्मचारी भी हिंदी सीख लें। कर्मचारियों को हिंदी पढ़ने की विशेष सुविधाएँ दी गई। शिक्षा में हिंदी को अनिवार्य विषय बना दिया गया। शिक्षा मंत्रालय की ओर से हिंदी के पारिभाषिक शब्द-निर्माण का कार्य प्रारंभ हुआ तथा इसी प्रकार की अन्य सुविधाएँ हिंदी को दी गई ताकि हिंदी, अंग्रेज़ी का स्थान पूर्ण रूप से ग्रहण कर ले। अनेक भाषा-विशेषज्ञों की राय में यदि भारतीय भाषाओं की लिपि को देवनागरी स्वीकार कर लिया जाए तो राष्ट्रीय भावात्मक एकता स्थापित करने में सुविधा होगी। सभी भारतीय एक-दूसरे की भाषा में रचे हुए साहित्य का रसास्वादन कर सकेंगे!/

आज जहाँ शासन और जनता हिंदी को आगे बढ़ाने और उसका विकास करने के लिए प्रयत्नशील हैं वहाँ ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो उसकी टाँग पकड़कर पीछे घसीटने का प्रयत्न कर रहे हैं। इन लोगों में कुछ ऐसे भी हैं जो हिंदी को संविधान के अनुसार सरकारी भाषा बनाने से तो सहमत हैं किंतु उसे राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहते। कुछ ऐसे भी हैं जो उर्दू का निर्मूल पक्ष में समर्थन करके राज्य-कार्य में विध्न डालते रहते हैं। धीरे-धीरे पंजाब, बंगाल और चेन्नई के निवासी भी प्रांतीयता की संकीर्णता में फंसकर अपनी-अपनी भाषाओं की मांग कर रहे हैं परंतु हिंदी ही एक ऐसी भाषा है जिसके द्वारो संपूर्ण भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है।

नि:संदेह हिंदी एक ऐसी भाषा है जिसमें राष्ट्रभाषा बनने की पूर्ण क्षमता है। इसका समृद्ध साहित्य और इसके प्रतिभा संपन्न साहित्यकार इसे समूचे देश की संपर्क भाषा का दर्जा देते हैं किंतु आज हमारे सामने सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि हिंदी का प्रचार-प्रसार कैसे किया जाए ? सर्वप्रथम तो हिंदी भाषा को रोज़गार से जोड़ा जाए। हिंदी सीखने वालों को सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता दी जाए। सरकारी कायलियों तथा न्यायालयों में केवल हिंदी भाषा का ही प्रयोग होना चाहिए। अहिंदी भाषी क्षेत्रों में हिंदी का अधिकाधिक प्रचार होना चाहिए। वहाँ हिंदी की पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशकों एवं संपादकों को और आर्थिक अनुदान दिया जाए।

उपसंहार- आज हिंदी के प्रचार-प्रसार में कुछ बाधाएँ अवश्य हैं किंतु दूसरी ओर केद्रीय सरकार, राज्य सरकारें एवं जनता सभी एकजुट होकर हिंदी के विकास के लिए प्रयत्नशील हैं। सरकार द्वारा अनेक योजनाएँ बनाई गई हैं। उत्तर भारत में अधिकांश राज्यों में सरकारी कामकाज हिंदी में किया जा रहा है। राष्ट्रीयकृत बैंकों ने भी हिंदी में कार्य करना आरंभ कर दिया है। विभिन्न संस्थाओं एवं अकादमियों द्वारा हिंदी लेखकों की श्रेष्ठ पुस्तकों को पुरुस्कृत किआ जा रहा है। दूरदर्शन और आकाशवाणी द्वारा भी इस दिशा में काफी प्रयास किए जा रहे है।

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Essay on National Flag in Hindi

Essay on National Bird in Hindi

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राष्ट्रभाषा हिन्दी पर निबन्ध | Essay on Hindi : Our National Language in Hindi

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राष्ट्रभाषा हिन्दी पर निबन्ध | Essay on Hindi : Our National Language in Hindi!

राष्ट्रभाषा का अर्थ है राष्ट्र की भाषा (Language of the nation) । अर्थात् ऐसी भाषा, जिसका प्रयोग देश की हर भाषा के लोग आसानी से कर सकें, बोल सकें और लिख सकें । हमारे देश की ऐसी भाषा है हिन्दी । आजादी के पहले अंग्रेजी सरकार ने अंग्रेज के माध्यम से सारा काम चलाया किन्तु अपने देश में सबके लिए एक भाषा का होना आवश्यक है, ऐसी भाषा जो अपने देश की हो । वह भाषा केवल हिन्दी ही है ।

2. विशेषताए:

हिन्दी को संस्कृत की बड़ी बेटी कहते हैं । हिन्दी का प्रमुख गुण यह है कि यह बोलने, पढ़ने, लिखने में अत्यंत सरल है । हिन्दी के प्रसिद्ध विद्वान जॉर्ज ग्रियर्सन ने कहा है कि हिन्दी व्याकरण के मोटे नियम केवल एक पोस्टकार्ड पर लिखे जा सकते हैं ।

संसार के किसी भी देश का व्यक्ति कुछ ही समय के प्रयत्न से हिन्दी बोलना और लिखना सीख सकता है । इसकी दूसरी विशेषता है कि यह भाषा लिपि (Script) के अनुसार चलती है । इसमें जैसा लिखा जाता है, वैसा ही बोला जाता है ।

इसकी सबसे बड़ी विशेषता है कि संसार की लगभग सभी भाषाओं के शब्द इसमें घुलमिल सकते हैं । कुर्सी, आलमारी, कमीज, बटन, स्टेशन, पेंसिल, बेंच आदि अनगिनत शब्द हैं जो विदेशी भाषाओं से आकर इसके अपने शब्द बन गए हैं ।

ADVERTISEMENTS:

हिन्दी संसार के अनेक विश्वविद्यालयों (Univercities) में पढ़ाई जाती है और इसका साहित्य (Literature) भी विशाल है । इसके अलावा, हिन्दी ने देश में एकता लाने में बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है । उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक, भारत के अधिकतर विद्वानों ने भारत की एकता और अखंडता (Unity and Integrity) के लिए हिन्दी का समर्थन किया है ।

इतने अधिक गुणों से भरपूर होकर भी हिन्दी आज अंग्रेजी के पीछे क्यों चल रही है ? इसका सबसे बड़ा कारण है ऊँचे पदों पर बैठे व्यक्ति जो अंग्रेजी के पुजारी हैं वे सोचते हैं कि अंग्रेजी न रही तो देश पिछड़ जाएगा ।

अंग्रेजी देश की अधिकतर जनता के लिए कठिन है, इसलिए वे जनता पर इसके माध्यम से अपना रौब रख सकते हैं । दूसरा कारण है- क्षेत्रीय भाषाओं (Regional Languages) के मन में बैठा भय । उन्हें लगता है कि यदि हिन्दी अधिक बड़ी तो क्षेत्रीय भाषाएँ पीछे रह जाएँगी ।

वास्तव में ये दोनों विचार गलत हैं । ऊँचे पदों पर बैठे अधिकारी हिन्दी के माध्यम से देश की अधिक सेवा कर सकते हैं और जनता का प्रेम पा सकते हैं । आज अंग्रेजी क्षेत्रीय भाषाओं को पीछे धकेल (Push) रही है जबकि हिन्दी की प्रकृति (Nature) किसी को पीछे करने की नहीं, बल्कि मेलजोल की है । यदि हिन्दी का विकास होता है, तो क्षेत्रीय भाषाओं का भी विकास होगा ।

4. उपसंहार:

भारत की भूमि पर जन्म लेने के नाते हमारा यह कर्त्तव्य है कि हम भारत की भाषाओं के विकास पर बल दें और हिन्दी का विकास करके सभी भाषाओं को जोड़ने का प्रयास करें । तभी हिन्दी सचमुच राष्ट्रभाषा बन पाएगी ।

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राष्ट्रवाद पर निबंध (Nationalism Essay in Hindi)

राष्ट्रवाद

भारत एक सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई विविधता वाला देश है। राष्ट्रवाद ही वह धागा है जो लोगों को उनके विभिन्न सांस्कृतिक-जातीय पृष्ठभूमि से संबंधित होने के बावजूद एकता के सूत्र में एक साथ बांधता है। यह कश्मीर से कन्याकुमारी तक सभी भारतीयों को एकजुट करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

राष्ट्रवाद पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Nationalism in Hindi, Rashtravad par Nibandh Hindi mein)

निबंध 1  (300 शब्द).

राष्ट्रवाद एक ऐसी अवधारणा है जिसमें राष्ट्र सर्वोपरि होता है अर्थात राष्ट्र को सबसे अधिक प्राथमिकता दी जाती है। यह एक ऐसी विचारधारा है जो किसी भी देश के नागरिकों के साझा पहचान को बढ़ावा देती है। किसी भी राष्ट्र की उन्नति एवं संपन्नता के लिए नागरिकों में सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई विविधता से ऊपर उठकर राष्ट्र के प्रति गौरव की भावना को मजबूती प्रदान करना आवश्यक है और इसमें राष्ट्रवाद एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

राष्ट्र के प्रति समर्पण की भावना

राष्ट्रवाद यानि राष्ट्र के प्रति समर्पण की भावना का विकास किसी भी देश के नागरिकों की एकजुटता के लिए आवश्यक है। यही वजह है कि बचपन से ही स्कूलों में राष्ट्रगान का नियमित अभ्यास कराया जाता है और आजकल तो सिनेमाघरों में भी फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान चलाया जाता है, और साथ ही पाठ्यक्रमों में देश के महान सपूतों, वीरों एवं स्वतंत्रता सेनानियों की गाथाओं का समावेश किया जाता है।

राष्ट्रवाद ही वह भावना है जो सैनिकों को देश की सीमा पर डटे रहने की ताकत देती है। राष्ट्रवाद की वजह से ही देश के नागरिक अपने देश के लिए बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने से पीछे नहीं हटते। वह राष्ट्रवाद ही है जो किसी भी देश के नागरिकों को उनके धर्म, भाषा, जाति इत्यादि सभी संकीर्ण मनोवृत्तियों को पीछे छोड़कर देशहित में एक साथ खड़े होने की प्रेरणा देता है।

भारत समेत ऐसे कई ऐसे देश हैं जो सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई विविधता से सम्पन्न हैं और इन देशों में राष्ट्रवाद की भावना जनता के बीच आम सहमति बनाने में मदद करती है। देश के विकास के लिए प्रत्येक नागरिक को एकजुट होकर कार्य करना पड़ता है और उन्हें एक सूत्र में पिरोने का कार्य राष्ट्रवाद की भावना ही करती है।

भारतीय नागरिकों में राष्ट्रवाद की भावना सर्वोपरि है और इसीलिए जब यहां के नागरिकों से देश के राष्ट्रीय ध्वज एवं राष्ट्रगान, जो कि देश की एकता एवं अखंडता के राष्ट्रीय प्रतीक हैं, के प्रति सम्मान की अपेक्षा की जाती है तो वे पूरी एकता के साथ खुलकर इन सभी के लिए अपना सम्मान प्रकट करते हैं।

निबंध 2 (400 शब्द)

एक मां जिस प्रकार से अपने बच्चे पर प्यार, स्नेह एवं आशीर्वाद से सींचते हुए उसका लालन-पालन करती है ठीक उसी प्रकार हमारी मातृभूमि भी हमें पालती है। जिस प्रकार एक माँ अपने बच्चों की भलाई करती है और बदले में कोई अपेक्षा नहीं करती, उसी प्रकार हमारी मातृभूमि भी हम पर ममता की बारिश करते हुए बदले में कुछ भी नहीं चाहती। लेकिन हरेक भारतीय के लिए यह जरूरी है कि वे अपने राष्ट्र के प्रति गर्व एवं कृतज्ञता की भावना प्रदर्शित करें। दूसरे शब्दों में कहें तो, हमें अपने वचन एवं कार्य दोनो ही के द्वारा हम राष्ट्रवाद की भावना को अपने जीवन में उतारें।

भारत, धार्मिक एवं क्षेत्रीय विविधता के बावजूद, एक राष्ट्र है

हम सभी के अलग-अलग मान्यताओं पर विश्वास करने, भिन्न-भिन्न प्रकार के त्योहारों के मनाने एवं अलग-अलग भाषाओं के बोलने के बावजूद राष्ट्रवाद हम सभी को एकता के सूत्र में पिरोता है। यह राष्ट्रवाद की भावना ही है जो एकता और अखंडता के लिए खतरों के खिलाफ राष्ट्र की रक्षा करता है। हम सांस्कृतिक और भाषायी रूप से अलग होने के बावजूद राज्यों में रहने वाले लोग हैं एवं हमारी पहचान भी अलग है,। लेकिन एक ध्वज, राष्ट्रीय गान और राष्ट्रीय प्रतीक के तहत एक के रूप में एक साथ खड़े हो सकते हैं। हमारा देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और एक वफादार नागरिक के तौर पर हमें इसपर गर्व होना चाहिए।

हमारी मातृभूमि का महत्व जाति, पंथ, धर्म और अन्य सभी बातों से बढ़कर है। हम अपनी स्वतंत्रता जिसे हमने भारत के लाखो बेटों एवं बेटियों के सर्वोच्च बलिदान के फलस्वरूप हासिल किया है वह केवल राष्ट्रवाद और देशभक्ति की वजह से ही संभव हो पाया है। इसलिए हमें राष्ट्रवाद की भावना को कभी कमजोर नहीं करना चाहिए ताकि हम सर्वदा अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए तत्पर रह सकें।

कुछ ऐसी ताकतें हैं जो अलगाववादी भावनाओं के साथ आजादी के लिए आवाज उठा रहे हैं (जैसा कि कश्मीर और उत्तर-पूर्व भारत के अशांत इलाकों में देखा जा रहा है) एवं अपनी गतिविधियों द्वारा देश को कमजोर करना चाहते हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत में कुछ शैक्षिक संस्थान भी भारत विरोधी नारेबाजी और विरोध प्रदर्शन द्वारा भारत को दो हिस्सों में बाँटने की घिनौनी विचारधारा फैलाते हुए नजर आए हैं। केवल राष्ट्रवाद की एक अटूट भावना द्वारा ही भारत को राष्ट्र-विरोधी ताकतों की चपेट में आने से बचाया जा सकता है।

Essay on Nationalism in Hindi

निबंध 3 (450 शब्द)

हमारे हृदय में अपने वतन के प्रति सम्मान एवं प्रेम की भावना का होना ही राष्ट्रवाद कहलाता है। वैसे तो यह भावना प्राकृत्तिक रूप से हर व्यक्ति के अंदर होनी ही चाहिए, लेकिन कुछ बाहरी कारणों एवं लालन-पालन में हुई अनदेखी की वजह से बच्चों के अंदर राष्ट्र विरोधी भावनाएं पनप सकती हैं।

राष्ट्र सर्वोपरि है

प्रत्येक नागरिक के लिए अपने राष्ट्र के प्रति कृतज्ञता प्रदर्शन करना अनिवार्य है क्योंकि हमारा देश अर्थात हमारी जन्मभूमि हमारी मां ही तो होती है। जिस प्रकार माता बच्चों को जन्म देती है तथा अनेक कष्टों को सहते हुए भी अपने बच्चों की खुशी के लिए अपने सुखों का परित्याग करने में भी पीछे नहीं हटती है उसी प्रकार अपने सीने पर हल चलवाकर हमारे राष्ट्र की भूमि हमारे लिए अनाज उत्पन्न करती है, उस अनाज से हमारा पोषण होता है।

कुछ विद्वानों ने भी कहा है कि जो व्यक्ति जहां जन्म लेता है वहां की आबोहवा, वहां की वनस्पती, नदियां एवं अन्य सभी प्रकृति प्रदत्त संसाधन मिलकर हमारे जीवन को विकास के पथ पर अग्रसर करती है और हमें शारीरिक एवं मानसिक स्तर पर बलिष्ठ बनाती है। मातृभूमि के स्नेह एवं दुलार में इतनी ताकत होती है कि वह हमें अन्य राष्ट्रों के सामने मजबूती से खड़ा होने की शक्ति प्रदान करती है।

जाति, धर्म और क्षेत्रीयता की संकीर्ण मानसिकता से उपर उठकर देश के प्रति गर्व की एक गहरी भावना महसूस करना ही राष्ट्रवाद है। राम ने रावण को हराने के बाद अपने भाई लक्ष्मण से कहा था कि स्वर्ण नगरी लंका उनकी मातृभूमि के सामने तुच्छ है। उन्होंने कहा था ‘जननी-जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ अर्थात् जननी (माता) और जन्मभूमि का स्थान स्वर्ग से भी श्रेष्ठ एवं महान है।

हमारा देश किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं करता एवं वे अपने सभी अधिकारों और विशेषाधिकारों का उपयोग बिना किसी रोकटोक के करते हैं। यह हम सब की जिम्मेदारी है कि हम क्षेत्रीयता, धर्म और भाषा आदि सभी बाधाओं से उपर उठकर अपने देश में एकता और अखंडता को बढ़ावा दें।

राष्ट्रवाद का जन्म

वास्तव में, एक राष्ट्र का जन्म तभी होता है जब इसकी सीमा में रहने वाले सभी नागरिक सांस्कृतिक विरासत एवं एक दूसरे के साथ भागीदारी में एकता की भावना महसूस कर सकें। राष्ट्रवाद की भावना ही कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत को एक धागे में बांधता है। भारत जैसे विशाल देश में राष्ट्रवाद की भावना हमेशा जात-पात, पंथ और धर्म के मतभेदों से उपर उठ रही है। राष्ट्रवाद की भावना की वजह से ही भारतीयों को दुनिया के उस सबसे बड़े लोकतंत्र में रहने का गौरव प्राप्त है जो शांति, मानवता भाईचारे और सामूहिक प्रगति के अपने मूल्यों के लिए जाना जाता है।

यह राष्ट्रवाद की भावना के साथ वर्षों तक किए गए कठिन संघर्षों एवं असंख्य बलिदानों का ही परिणाम है कि अंग्रेजों से भारत को आजादी मिल पायी। उस समय भारत कई रियासतों में विभाजित होने का बवजूद स्वतंत्रता के लिए संघर्ष में एक राष्ट्र के रूप में खड़ा था। आजादी के सात दशकों बाद भी हमें राष्ट्रवाद की इस अटूट भावना को ऐसे ही बनाए रखने की आवश्यकता है क्योंकि आज भारत के भीतर और बाहर अलगाववादी एवं विघटनकारी ताकतों से राष्ट्रीय सुरक्षा और एकता पर खतरा मंडरा रहा है। केवल राष्ट्रवाद की गहरी जड़ें ही भारत को कश्मीर या उत्तर-पूर्व भारत में चल रहे विघटनकारी आंदोलनों को परास्त करने की शक्ति दे रही है और आत्मनिर्णय के अधिकार के छद्म प्रचार के नाम पर आगे होने वाले विभाजन से भारत को बचा रही है।

निबंध 4 (500 शब्द)

अपने देश के प्रति लगाव एवं समर्पण की भावना राष्ट्रवाद कहलाती है। राष्ट्रवाद ही तो है जो किसी भी देश के सभी नागरिकों को परम्परा, भाषा, जातीयता एवं संस्कृति की विभिन्नताओं के बावजूद उन्हें एकसूत्र में बांध कर रखता है।

मां के साथ राष्ट्र की तुलना

हमारे देश में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में राष्ट्र की तुलना मां से की जाती रही है। जिस प्रकार मां अपने बच्चों का भरण-पोषण करती है उसी प्रकार एक राष्ट्र भी अपने नागरिकों के जीवन की विभिन्न आवश्यकताओं को अपने प्राकृतिक संसाधनो द्वारा पूरा करती है। हम राष्ट्रवाद की भावना द्वारा ही वर्गीय, जातिगत एवं धार्मिक विभाजनों कई मतभेदों को भुलाने में कामयाब होते हैं और ऐसा देखा गया है कि जब भी किन्हीं दो देशों में युद्ध की स्थिति पैदा होती है तो उन देशों के सभी नागरिक एकजुट होकर देशहित में राष्ट्रवाद की भावना के साथ अपने-अपने देश के सैनिकों की हौसला अफजाई करते हैं।

राष्ट्रवाद देश को एकसूत्र में बांधता है

राष्ट्रवाद एक ऐसी सामूहिक भावना है जिसकी ताकत का अंदाज़ा इस हकीकत से लगाया जा सकता है कि इसके आधार पर बने देश की सीमाओं में रहने वाले लोग अपनी विभिन्न अस्मिताओं के ऊपर राष्ट्र के प्रति निष्ठा को ही अहमियत देते हैं और आवश्यकता पड़ने पर देश के लिए प्राणों का बलिदान भी देने में नहीं हिचकिचाते। राष्ट्रवाद की भावना की वजह से ही एक-दूसरे से कभी न मिलने वाले और एक-दूसरे से पूरी तरह अपरिचित लोग भी राष्ट्रीय एकता के सूत्रमें बँध जाते हैं। विश्व के सभी देशों मे राष्ट्रवाद के ज़रिये ही नागरिकों में राष्ट्र से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर सहमति बनाने में कामयाब हो पाए हैं।

राष्ट्रवाद एवं वैश्वीकरण

कुछ विद्वानों के अनुसार भूमण्डलीकरण की प्रक्रिया ने राष्ट्रवादी चिंतन को काभी हद तक प्रभावित किया है और अब क्योंकि राष्ट्रीय सीमाओं के कोई ख़ास मायने नहीं रह गये हैं और इस स्थिति ने राष्ट्रवाद की भावना को चुनौती पेश की है। उनका तर्क यह है कि भूमण्डलीकरण के अलावा इंटरनेट और मोबाइल फोन जैसी प्रौद्योगिकीय प्रगति ने दुनिया में फासलों को बहुत कम कर दिया है, हालांकि राष्ट्रवाद की यह व्याख्या सारहीन है।

किसी भी राष्ट्र की प्रगति के लिए उसके नागरिकों में राष्ट्रवाद की भावना का होना जरूरी है। राष्ट्रवाद की महत्ता को समझते हुए और अपने नागरिकों में देशप्रेम की भावना की पुनरावृत्ति करने के उद्देश्य से पूरे विश्व में सभी सरकारें अनिवार्य रूप से राष्ट्रीय पर्वों का आयोजन करती है। इन कार्यक्रमों के दौरान राष्ट्रीय ध्वज के प्रति सम्मान व्यक्त किया जाता है। कुल मिलाकर किसी भी राष्ट्र की प्रगति के लिए नागरिकों की एकता एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और राष्ट्रवाद ही वह भावना है जो लोगों को धर्म, जाति एवं ऊंच-नीच के बंधनों को समाप्त करते हुए एकता के सूत्र में पिरोती है।

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Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Rashtra Bhasha Hindi”, ”राष्ट्र भाषा हिन्दी” Complete Hindi Essay for Class 8, 9, 10, Class 12 and Graduation and other classes.

Essay No. 1

राष्ट्रभाषा हिन्दी

“ निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल । बिन निज भाषा ज्ञान के मिटै न हिय को सूल ॥”

वस्तुतः वह भाषा ही है जो मन के भावों को प्रकट कर चित्त को शान्ति देती है। यही कारण है कि किसी भी देश में अधिकतर आबादी द्वारा दैनिक जीवन में बोली जाने वाली भाषा को ही राष्ट्रभाषा का सम्मान प्राप्त होता है। भारत में इसी लिहाज से ‘हिन्दी’ को ‘राष्ट्रभाषा’ की उपाधि से अलंकृत किया गया है।

राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी के महत्त्व को समझते हुए इसको विकसित करना सरकार का धर्म हैं। हिन्दी के साहित्य को समृद्ध करना साहित्यकारों का दायित्व है। दैनिक जीवन में अधिकाधिक रूप में हिन्दी का प्रयोग करना जनता का कर्त्तव्य है। ईमानदारी से हिन्दी-ज्ञान का वितरण, विस्तार और हिन्दी को एकरूपता प्रदान करना हिन्दी के माध्यम से रोटी कमाने वालों का नैतिक दायित्व है। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व भारतवर्ष की पवित्र भूमि विदेशियों से पदाक्रांत थी। उन्हीं के रीति-रिवाज तथा उन्हीं की सभ्यता को प्रधानता दी जाती थी। तब भारतीय अंग्रेजी भाषा पढ़ने, लिखने और बोलने में अपना गौरव समझते थे। राज्य के समस्त कार्यों की भाषा अंग्रेजी ही थी। हिन्दी भाषा को कहीं कोई स्थान नहीं था। हिन्दी में लिखे गए प्रार्थना पत्रों तक को फाड़ कर रद्दी की टोकरी में डाल दिया जाता था। बेचारे भारतीय विवश होकर अच्छी नौकरी की लालसा से अंग्रेजी पढ़ते थे।

भारत राजनीतिक रूप से गुलाम था। तो दुष्परिणाम यह भी हुआ कि यह आर्थिक गुलामी में भी फंसा था और भाषाई गुलामी से भी इसे निजात नहीं मिल पा रहा था। लेकिन भारतवर्ष के भाग्य ने पलटा खाया। 15 अगस्त 1947 को भारत को स्वाधीनता मिली। देश में, अंग्रेजों के जाने के पश्चात् यह आवश्यक नहीं था कि देश के सारे राजकीय कार्य अंग्रेजी में हो। अन्त में जब देश का संविधान बनने लगा तो देश की राष्ट्रभाषा पर विचार होने लगा। क्योंकि बिना राष्ट्रभाषा के कोई भी देश स्वतंत्र होने का दावा नहीं कर सकता। राष्ट्रभाषा समूचे राष्ट्र की आत्मा को शक्ति सम्पन्न बनाती है। रूस, अमेरिका, जापान, ब्रिटेन आदि सभी स्वतंत्र देशों में अपनी-अपनी राष्ट्रभाषाएँ हैं।

भारतवर्ष की राष्ट्रभाषा हिन्दी के सिवा कोई भाषा नहीं हो सकती है क्योंकि इसके बोलने-लिखने, पढ़ने-समझने वाले लोगों की संख्या इस देश में सर्वाधिक है। कई बड़े-बड़े प्रदेश तो हिन्दी भाषी प्रदेश कहलाते है। लेकिन इनके बावजूद कुछ लोगों ने राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी का घोर विरोध किया। इस विचारधारा के पीछे क्षुद्र स्वार्थ था। भारतवर्ष में लगभग सौ से अधिक भाषाएँ हैं जिनमें हिन्दी, उर्दू, मराठी, पंजाबी, बंगाली, तमिल, तेलगु, आदि प्रमुख हैं। बहुत वाद-विवाद के उपरान्त हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने पर विचार किया जाने लगा। इसके पक्ष में अनेक तर्क दिए गए-सर्वप्रथम तो यह एक भारतीय भाषा है, दूसरी बात कि जितनी संख्या हिन्दी भाषा-भाषियों की इस देश में है, उतनी किसी अन्य प्रान्तीय भाषा की नहीं। तीसरी बात यह कि हिन्दी बोलने वाले चाहे जितने ही हों समझने वाले बहुत अधिक संख्या में है। चौथी बात यह है कि हिन्दी भाषा अन्य भारतीय भाषाओं की तुलना में सरल है। यह दो तीन महीनों में सीखी व समझी जा सकती है। पांचवी विशेषता यह है कि इसकी लिपि वैज्ञानिक है और सुबोध है। यह जैसी बोली जाती है, वैसी ही लिखी जाती है इसकी सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें राजनीतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक तथा शैक्षिणक सभी प्रकार के कार्य-व्यवहारों के संचालन की पूर्ण क्षमता है। इन्हीं विशेषताओं के आधार पर हिन्दी को भारत की राष्ट्रभाषा तथा देवनागरी लिपि को राष्ट्रलिपि बनाने का निश्चय किया गया। कालान्तर में ‘हिन्दी’ राष्ट्र की भाषा निश्चित हो गई ।

संविधान में यह पारित हो गया कि समस्त भारत को एक सूत्र में बाँधने के लिए तथा राष्ट्र में एकता स्थापित करने के लिए यह आवश्यक है कि राष्ट्र की अपनी एक भाषा हो और वह भाषा है ‘हिन्दी’ । हिन्दी संविधान द्वारा राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकृत है। इतना होने पर भी आज तक उसको उसका उचित स्थान नहीं मिल सका है। आज राष्ट्रभाषा हिन्दी को लेकर पूरा देश एकमत नहीं है। इसमें दक्षिण भारत का सहयोग नहीं मिल रहा है। दक्षिण भारत का जनमानस ऐसा सोचने लगता है कि भाषा उस पर थोपी जा रही है। इस भ्रांति को दूर करने के लिए हिन्दी के साहित्यकारों तथा पत्रकारों का अहिन्दी भाषियों के साथ घनिष्ठ सम्पर्क स्थापित करने का सक्रिय प्रयास करना चाहिए। यदि अहिन्दी भाषियों के मन में हिन्दी के प्रति राग-द्वेष तथा भाषाई प्रतिस्पर्धा को समाप्त किया जा सके तो राष्ट्रभाषा का मान-सम्मान तथा क्षेत्र-विस्तार अवश्य बढ़ेगा। हिन्दी भाषी दक्षिण की भाषा पढ़ें, अहिन्दी भाषी हिन्दी को अपनाएं, तो सभी समस्याएं स्वयं हल हो जाएंगी तथा हिन्दी पूरे राष्ट्र की भाषा बन जाएगी।

हिन्दी भाषा की उन्नति के लिए यह परमावश्यक है कि हिन्दी को मौलिकता के आधार पर गौरवान्वित किया जाए। हिन्दी कानून से आगे नहीं बढ़ सकती। इसके विकास के लिए हमें सरकार, साहित्यकारों, जनता, हिन्दी प्रेमियों के सहयोग की आवश्यकता है। हिन्दी की प्रगति तभी होगी जब हिन्दी भाषी तथा हिन्दी के विद्वान् हिन्दी के प्रति सेवा-भाव से काम करेंगे तथा उनके मन में हिन्दी के प्रति पूर्ण श्रद्धा होगी। राष्ट्रभाषा के उचित विकास का एक मात्र साधन है उसका सशक्त साहित्य। हिन्दी भाषा में सशक्त साहित्य की कमी भी नहीं है, कमी है तो एक बात की कि हिन्दी को लोग गंवारों की भाषा मानते हैं, हिन्दी बोलने में अपमान का अनुभव करते हैं। फैशनपरस्ती और पाश्चात्य प्रभाव का यह भीषण दुष्परिणाम जिससे हमें बचना होगा।

राष्ट्रभाषा की उन्नति के लिए यह आवश्यक है कि हिन्दी में हो रहे अव्यावहारिक तथा गलत प्रयोग पर कड़ा अंकुश लगाया जाए। हिन्दी में अन्य भाषाओं के शब्द अपनाकर हिन्दी का शब्दकोष और समृद्ध करने की आवश्यकता है। हिन्दी में अन्य भाषाओं के शब्दों का समावेश करके उसकी समस्त शक्ति को बढ़ाया जा सकता है। ऐसा होने पर हिन्दी विश्व-भाषा का रूप ग्रहण कर सकती है। हिन्दी के विकास में यह अनुमान किया जाता है कि अध्यापक, प्राध्यापक, हिन्दी अधिकारी, पत्र-पत्रिकाओं के लेखक व सम्पादक- यही वर्ग हिन्दी के विकास में सर्वाधिक योगदान कर सकते हैं।

अहिन्दी भाषी प्रान्तों से पत्र-व्यवहार मात्र हिन्दी में हो-इतना अवश्य किया जाए। अहिन्दी भाषी प्रान्तों तथा विश्व के राष्ट्रों में महत्त्वपूर्ण हिन्दी पुस्तकें तथा पत्र-पत्रिकाएं सैकड़ों की संख्या में निःशुल्क भेजी जाएं-यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए। कार्यालयों तथा अधिकारियों के नामपट्ट अवश्य हिन्दी में ही हों। विभाग, संस्था तथा अभिकरणों (एजेंसीज) के नाम हिन्दी में हों, जैसे- टेलिफोन के बदले ‘दूरभाष’ रेडियो के बदले, ‘आकाशवाणी’ इत्यादि।

आशा है राष्ट्रभाषा हिन्दी सदस्य देश को एक सूत्र में आबद्ध कर नए राष्ट्र के निर्माण में अपना पूर्ण सहयोग प्रदान कर सकेगी। परन्तु दुर्भाग्य है कि भारतवासियों के हृदय में हिन्दी के प्रति जो प्रेम सन् 1947 से पहले था वह आज नहीं है। अतः समय तथा राष्ट्र की आवश्यकता को पहचान कर राष्ट्रभाषा हिन्दी को विकसित करने का हर सम्भव प्रयत्न करना चाहिए। जनता तथा सत्ता, दोनों मिलकर जब हिन्दी को सच्चे हृदय से अपनाएंगे, राजनीति के छल-कपट से दूर रखेंगे, तो निश्चय ही हिन्दी का विकास द्रुतगति से होगा और माँ-भारती का सुन्दर शृगार होगा।

Essay No. 2

राष्ट्र भाषा हिन्दी

Rashtra Bhasha Hindi

संसार के सभी स्वतंत्र एवं आत्माभिमानी देशों की अपनी राष्ट्र भाषा होती है। सभी स्वतंत्र राष्ट्र अपने देश का कार्य अपनी राष्ट्र भाषा में ही करते हैं। किसी भी देश की राष्ट्र भाषा उस देश की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक विचार धाराओं की वाहिनी होती है। बिना अपनी राष्ट्रभाषा के कोई भी देश न तो विकास कर सकता है न ही जीवित रह सकता है।

जिस प्रकार चीन की राष्ट्र भाषा चीनी है, फ्रांस की फ्रैंच है, इंग्लैण्ड की अंग्रेजी है, जापान की जापानी है, उसी प्रकार भारत की राष्ट्रभाषा भी। इस देश की ही भाषा हो सकती है। राष्ट्र भाषा वही भाषा बनसकती है, जो देशमें सर्वाधिक व्यापक हो।

भारत एक विशाल देश है। यहाँ अनेकों सशक्त एवं समर्थ भाषाएँ हैं। लोकतंत्र में हर एक विषय का निर्णय बहुमत से होता है। भारतीय संविधान बनाते समय राष्ट्रभाषा के निर्णय पर भी विचार किया गया। सभी भाषाओं को राष्ट्र भाषा के लिए विचार करने पर कुछ तथ्य सामने आए। कुछ लोगों के विचार से अंग्रेजी को ही राष्ट्र भाषा मानना उचित था पर बहुमत इसके पक्ष में न था। किसी विदेशी भाषा को देश की राष्ट्रभाषा मानना देश का अपमान था। भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में उस समय एक करोड़ जनता भी अंग्रेजी से परिचित नहीं थी।

उस समय हिन्दी को ही राष्ट्र भाषा चुना गया। हिन्दी के पक्ष में कई बातें थी। अन्य प्रान्तीय भाषा बोलने और समझने वालों की संख्या सीमिति थी। उस भाषा का अपने प्रान्त के अतिरिक्त अन्यप्रदेश में प्रचलन नहीं था। हिन्दी को क्षेत्र व्यापक है। उस भाषा को मातृभाषा मानने वालों की संख्या उस समय 15 करोड़ थी, जो सभी प्रान्तीय भाषा जानने वालों की संख्या सेभी बहुत अधिक थी। इसके अतिरिक्त प्राय सभी प्रान्तों में इसको समझने वालों की संख्या भी पर्याप्त थी।

हिन्दी का संबंध देश की सभी प्रान्तीय भाषाओं से होने के कारण इसको सरलता से सीखा जा सकता हैं। सभी भाषाओं की मूल संस्कृत होने के कारण हिन्दी के शब्दों का पर्याप्त प्रतिशत भारतीय भाषाओं में पाया जाता है। इसकी लिपि देवनागरी है जो भारत की अधिकांश प्रान्तीय भाषाओं की भी है।

हिन्दी में भारतीय राजनीति, धार्मिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक सभी प्रकार के कार्य व्यवहार की संचालन क्षमता हैं। संविधान में उपरोक्त कारणों को ध्यान में रखते हुए हिन्दी को राष्ट्र भाषा का गौरव प्रदान किया गया।

कोई भाषा एकाएक ही प्रयोग नहीं की जा सकती। उसके लिए तैयारी की आवश्यकता होती है। अतएवं 15 वर्षों का समय दिया गया ताकि कर्मचारी इस समय में भाषा सीख कर अपने कार्य में कुशल बन जाए। 1965 से हिन्दी को अंग्रेजी का स्थान दे देने की योजना थी।

इसके लिए सरकार ने केन्द्रीय कार्यालयों के कर्मचारियों को हिन्दी में काम करने के लिए हिन्दी के वर्ग चलाए। उनको अनेक पारितोषिक देकर हिन्दी सीखने की रुचि बढ़ाई। हिन्दी का विकास करने की योजनाएँ भी चलाई। हिन्दी का पारिभाषिक शब्द कोश तैयार किया गया, हिन्दी को समृद्ध बनाने के लिए उसमें प्रादेशिक भाषाओं के शब्दों को भी ग्रहण किया गया।

केन्द्रीय सरकार ने हिन्दी निदेशालय खोलकर हिन्दी के विकास कार्य को आगे बढ़ाया है। केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों में अब तक पर्याप्त कार्य हिन्दी में होने लगा है। हिन्दी भाषी प्रान्तों में तो सरकारी कार्य लगभग पूर्ण रूप से हिन्दी में ही होने लगा है। हिन्दी में टंकन यंत्र, आशुलिपि का भी चलन हो चुका है। कम्प्यूटर भी हिन्दी में आ चुके हैं।

दक्षिण भारत में कुछ राजनीतिक कारणों से हिन्दी को राष्ट्र भाषा के रूप में प्रयोग करने का विरोध, सामने आरहा है। यह देश की एकता एवं उन्नति में बाधक है। दक्षिण भारतीय अंग्रेजी को ही पकड़े हुए हैं। उनका विचार है कि अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। सभी देश इसका उपयोग करते है। अतएव हिन्दी के स्थान पर अंग्रेजी का प्रयोग जारी रखा जाए। पर उनका तर्क कसौटी पर खरा नहीं उतरता। क्या चीन, जापान, रूस, जर्मनी आदि उन्नत देश अंग्रेजी के द्वारा ही समृद्ध हुए हैं। नहीं, वे अपनी ही भाषा को प्रयोग में लाते हैं।

हम कह सकते हैं कि इन वर्षों में हिन्दी ने लगातार उन्नति की है। यद्यपि उसकी गति धीमी है पर देश को साथ लेकर चलना ही श्रेयस्कर है। आगामी वर्षों में हिन्दी राष्ट्र भाषा के रूप में अधिकाधिक प्रयोग में आएगी, उसका भविष्य उज्वल है।

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राष्ट्रभाषा की महत्ता एवं हिंदी पर निबंध : Essay On Rashtrabhasha Hindi

Dr. Mulla Adam Ali

मानव समाज में रहता है और समाज में रहने के कारण उसे समाज के अन्य व्यक्तियों के साथ अपने विचारों का आदान प्रदान करना पड़ता है। बिना विचार-विनिमय के उसके कार्य सुचारु रूप से नहीं चल सकते। मानव सर्वश्रेष्ठ प्राणी है, उसने अपने विचारों और भावों को अभिव्यक्त करने के लिए भाषा का विकास किया है। श्री शैलेश मटियानी की मान्यता है कि “bhasha ke boote hi aadmi is bhautik jagat ka ek maatr naamdhaari hai."

राष्ट्रभाषा हिंदी:-

किसी भी देश के अधिकतर निवासियों द्वारा बोली एवं समझी जाती है, वह राष्ट्रभाषा कहलाती है। प्रत्येक राष्ट्र की कोई न कोई राष्ट्रभाषा अवश्य होती है, भाषा ही है जो सम्पूर्ण राष्ट्र को एकता के सूत्र में बांधकर रखती है। उनमें राष्ट्रीयता का भाव जागृत करती है। हमारे देश भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी है जो भारत के अधिकतर राज्यों के प्रजा के द्वारा बोली एवं समझी जाती है।

राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन दौरान राष्ट्रीय नेताओं ने अपने भाषणों में हिन्दी का प्रयोग किया, जिसके कारण हिन्दी ने व्यापक रूप से जन सम्पर्क भाषा का रूप धारण कर किया। भारत 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्र हुआ। 14 सितंबर 1949 को भारत की संविधान ने हिन्दी को भारत संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया। संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी है। इस प्रकार हिन्दी भारत संघ की राजभाषा के साथ-साथ अनेक राज्यों की राजभाषा तो है ही, साथ ही संपर्क भाषा के रूप में भी इसका प्रयोग देश के लगभग सभी क्षेत्रों में होता है। हिन्दी संपर्क भाषा के रूप में न केवल भारत में विकसित हो रही हैं, बल्कि विदेशों में भी बहुतायत में पढ़ी जा रही है।

Hindi Bhasha ke sandarbh mein Bharatendu Harishchandra (भारतेंदु हरिश्चन्द्र) kahate hai-

“nij bhaasha unnati ahai, sab unnati mool.

bin nij bhaasha-gyaan ke, mitat na hiy ko shool..

vividh kala shiksha amit, gyaan anek prakaar.

sab desan se lai karahu, bhaasha maahee prachaar..

शब्दार्थ:-

निज यानी अपनी मूल भाषा से ही उन्नति संभव है, क्योंकि यही सारी हमारी मूल भाषा ही सभी उन्नतियों का मूलाधार है। मातृभाषा के ज्ञान के बिना हृदय की पीड़ा का निवारण संभव नही है। हमें विभिन्न प्रकार की कलाएँ, असीमित शिक्षा तथा अनेक प्रकार का ज्ञान सभी देशों से जरूर लेना चाहिए, परन्तु उनका प्रचार मातृभाषा में ही करना चाहिए।

राष्ट्रभाषा का महत्व:-

• हिन्दी शब्द उत्पत्ति संस्कृत भाषा के सिन्धु शब्द से हुई है, सिन्धु नदी के क्षेत्र में आने कारण ईरानी लोग सिन्धु न कहकर हिन्दू कहने लगे जिसके कारण यहाँ के लोग हिंद, हिन्दू और हिन्दुस्तान कहने लगे।

• हिन्दी भाषा का शब्दकोश बहुत ही बड़ा हैं, हिन्दी भाषा में अपनी किसी भी एक भावना को व्यक्त करने के लिए अनेक शब्द है जो की अन्य भाषाओं की तुलना में अपने आप में निराली है।

• हिन्दी वर्णमाला दुनिया की सर्वाधिक व्यवस्थित वर्णमाला है।

• हिन्दी दुनिया की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा हैं।

• हिन्दी सबसे सरल और लचीली-(flexible) भाषा हैं।

• हिन्दी एक सुसंपन्न, एक विश्व भाषा के रूप में अपने आपको स्थापित कर चुकी है।

• हिन्दी को अन्तर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में प्रसारित तथा संयुक्त राष्ट्रसंघ की अधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दिलाने हेतु 10 जनवरी 1975 को नागपुर में प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन आयोजित किया गया है। अभी तक 9 विश्व हिन्दी सम्मेलन विभिन्न देशों में आयोजित हो चुके है।

• हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, राष्ट्र भाषा प्रचार समिति, वर्धा, नागरी प्रचारणी सभा, वाराणसी एवं केंद्रीय सचिवालय परिषद, दिल्ली के द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर सेमिनार तथा अधिवेशन कर हिन्दी में कार्य कर रहे हैं।

• हिन्दी ज्ञान-विज्ञान, वाणिज्य-व्यापार, प्रशासन और रोजगार की भाषा बनती जा रही है, यह अत्यंत समृद्ध, विकासशील भाषा है।

• बैंक, मीडिया, फ़िल्म उद्योग आदि क्षेत्रों में हिन्दी की उपयोगिता दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही हैं।

• हिन्दी भाषा इन्टरनेट की दुनिया में इतनी तेजी से बढ़ा हैं की इन्टरनेट पर लाखों सजाल (Website), चिट्ठे (Blogs), गपशप (Chats), विपत्र (Email), वेबखोज (Search Engine), मोबाइल संदेश (SMS) अनेक प्रकार के मोबाइल एप्प मौजूद है।

•  हिन्दी ही हमारी राष्ट्रीय अस्मिता हैं, पहचान हैं।

हिन्दी से अपना भविष्य निर्माण करने वालों के लिए

www.rajbhasha.nic.in

www.ibps.in

www.ildc.gov.in

www.bhashaindia.com

www.ssc.nic.in

www.parliamentofindia.nic.in

www.kshindia.org

www.hindinideshalaya.nic.in

आदि वेबसाइट सेवा में तत्पर हैं।

राष्ट्रभाषा हिन्दी पर महापुरुषों के कुछ लोकप्रिय श्रेष्ठ विचार :-

• “Akbar se lekar Aurangzeb tak mugalon ne jis desh bhasha ka swagat kiya vah Braj Bhasha thee.“ - Ramchandra Shukla

• “Rastriya ekta ki kadi hindi jod sakati hain.“ - Bal Krishna Sharma Naveen

• “Bharat ke paramparaagat Rastra bhasha hindi hain.“ - Nalin Vilochan Sharma

• “Hindi ko rastra bhasha banaane mein praanteey bhashaon ko haani nahin varna laabh hoga.“ – M. A. Ayyangar

• “Hindi ka bhavishy ujval hain, ismen koi sandeh nahin.“ - Anant Gopal Shevade

• “Hindi Sanskrit kee betiyon mein sabase achchhe aur shiromani hain.“ – Grierson

• “hindi vah bhasha hai jo maatu bhasha roopee phool pirokar bharat maata ke liye sundar haar ka srijan karegee.“ – Dr. Zakir Husain

      हिन्दी सरल और सुबोध भाषा हैं। यह एक वैज्ञानिक भाषा है। इसमें जो बोला जाता है वही लिखा जाता है। इसका साहित्य समृद्ध है। हिन्दी ही हमारी राष्ट्रीय अस्मिता है, पहचान है।

ये भी पढ़ें;

✓ हिंदी भाषा की विश्वव्यापकता : डॉ. ऋषभदेव शर्मा

✓ मीडिया में भाषा का प्रयोग जनसंचार माध्यमों में हिंदी

✓ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में हिंदी - बी. एल. आच्छा

राष्ट्रभाषा की महत्ता एवं हिंदी पर निबंध : Essay On Rashtrabhasha Hindi

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Rashtrabhasha Hindi Nibandh

Rashtrabhasha Hindi Nibandh: राष्ट्रभाषा हिन्दी पर निबंध

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Rashtrabhasha Hindi Nibandh

यहां हम आपको “ Rashtrabhasha Hindi Nibandh ” उपलब्ध करा रहे हैं. इस निबंध/ स्पीच को अपने स्कूल या कॉलेज के लिए या अपने किसी प्रोजेक्ट के लिए उपयोग कर सकते हैं. इसके साथ ही यदि आपको किसी प्रतियोगिता के लिए भी Rashtrabhasha Hindi Ke Upar Nibandh तैयार करना है तो आपको यह आर्टिकल पूरा बिल्कुल ध्यान से पढ़ना चाहिए.

Essay On Rashtrabhasha Hindi (200 words)

इस विश्व में जितने भी देश हैं, उन सभी देशों की अपनी एक राष्ट्रभाषा होती है। राष्ट्रभाषा उसे कहा जाता है, जिस भाषा को देश का हर नागरिक आसानी से लिख पढ़ लेता हो और बोल सकता हूं। ऐसे ही हमारे भारत देश की राष्ट्रभाषा हिंदी है। हमारे भारत देश में कई सारी संस्कृति या मौजूद है और उन सभी संस्कृतियों में अलग-अलग भाषा जैसे कि हिंदी पंजाबी, संस्कृत, तेलुगू, तमिल कन्नड़, मराठी, बिहारी, बुंदेलखंडी इत्यादि भाषा बोली जाती हैं।

लेकिन इन सभी भाषाओं से अधिक सभी संस्कृतियों में हिंदी भाषा का उपयोग किया जाता है, इसीलिए हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा कहा जाता है। देश में मौजूद अलग-अलग भाषाओं में से एक सामान्य भाषा हिंदी है जिसे सभी लोग लिख पर और बोल लेते हैं। हमारे देश में प्रतिवर्ष 14 सितंबर को राष्ट्रीय हिंदी दिवस मनाया जाता है। देश में एकता और प्रेम बनाए रखने के लिए एक सरल और शुद्ध भाषा की आवश्यकता होती है जिसे राष्ट्रभाषा कहते हैं। भारत के अलावा विश्व के कई देशों में हिंदी बोली जाती है हिंदी विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली चौथी भाषा है। इसे देवनागरी लिपि के नाम से भी जानते हैं क्योंकि यह देवों की लिपि है।

Rashtrabhasha Hindi Nibandh

Essay on Hindi language (300 words)

प्रस्तावना .

दो लोगों को आपस में बात करने के लिए एक सामान्य भाषा की आवश्यकता होती है जिससे वह दोनों एक दूजे की बात को समझ सके और अपना संवाद आगे बढ़ा सके। आज हमारे भारत देश में हर राज्य में अलग-अलग भाषा बोली जाती है लेकिन इन सभी भाषाओं में से सबसे ज्यादा प्राथमिकता हिंदी भाषा को दी जाती है। भारत के सभी राज्यों में अधिकतर हिंदी भाषा बोली जाती है।इसीलिए इसे राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया गया है। भारत देश में आज भी ऐसे करोड़ों लोग मौजूद थे जिन्हें हिंदी बोलना नहीं आती क्योंकि हिंदी में संस्कृत के शब्द शामिल है। इसलिए भाषा थोड़ी कठिन हो जाती है।

हिंदी भाषा का महत्व (Importance Of Hindi)

भारत की संस्कृति में हिंदी भाषा का काफी महत्व माना जाता है क्योंकि हिंदी भाषा एकमात्र ऐसी भाषा है जिसे देश के अधिकतर नागरिक समझते हैं। प्राचीन काल में भारत में संस्कृत भाषा संवाद के लिए उपयोग की जाती थी इसके अलावा संस्कृत में ही सभी वेद पुराणों की पढ़ाई की जाती थी। लेकिन संस्कृत भाषा को पढ़ना और सीखना काफी मुश्किल होता था इसीलिए संस्कृत से ही हिंदी भाषा का जन्म हुआ जिसे पढ़ना और समझना काफी आसान होता है। आज भारत में हिंदी भाषा सबसे अधिक बोली जाती है। भारत में मौजूद सभी राज्यों की अपनी एक अलग भाषा है लेकिन वहां भी हिंदी भाषा ही बोली जाती है। हिंदी भाषा को प्रेम की बोली कहां जाता है जिसे हर इंसान आसानी से समझ लेता है।

मेरा भारत महान पर निबंध स्वच्छ भारत अभियान पर निबंध समाचार पत्र पर निबंध सड़क सुरक्षा पर निबंध

उपसंहार (Conclusion)

पहले देश में संस्कृत भाषा बोली जाती थी लेकिन समय के साथ-साथ लोगों ने संस्कृत में से हिंदी भाषा को ढूंढ लिया और उसे राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया। लेकिन अब लोग अपनी संस्कृति और भाषा को छोड़कर दूसरी संस्कृति और भाषा के पीछे भाग रहे हैं आजकल सभी लोग अंग्रेजी भाषा बोलने के शौकीन हो रहे हैं और अपनी राष्ट्रभाषा को पीछे छोड़ रहे हैं। हमें अपनी राष्ट्रभाषा को बचाए रखना होगा इसके लिए हमें लोगों को हिंदी भाषा के महत्व के बारे में बताना चाहिए और ज्यादा से ज्यादा अपनी भाषा का उपयोग करके लोगों को हिंदी बोलने के प्रति जागरूक करना चाहिए।

राष्ट्रभाषा हिंदी का महत्व निबंध (400 words)

प्रस्तावना:.

राष्ट्रभाषा का अर्थ होता है वह भाषा जिसे राष्ट्र में सबसे ज्यादा बोला जाता है देश की जनता जिस भाषा का उपयोग करती है उसे राष्ट्रभाषा कहते हैं। कोई भी व्यक्ति किसी भी व्यक्ति के सामने अपनी भावनाओं को अपनी मातृभाषा की सहायता से आसानी से व्यक्त कर सकता है मनुष्य चाहे कितनी ही दूसरी भाषाएं सीख ले लेकिन उससे मानसिक संतोष सिर्फ अपनी मातृभाषा बोलने पर ही प्राप्त होता है। हमारी हिंदी भाषा का इतिहास कई हजार साल पुराना है हिंदी विश्व की दूसरी सबसे प्राचीन समृद्ध और सरल भाषा मानी जाती है। आज भारत में लगभग 80% लोग हिंदी भाषा बोलते हैं।

भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी को संस्कृत की बेटी भी कहा जाता है क्योंकि हिंदी भाषा का जन्म संस्कृत भाषा से ही हुआ है। हिंदी भाषा भारत में सबसे सरल भाषा मानी जाती है क्योंकि हिंदी व्याकरण के सभी नियमों को एक पन्ने में लिखकर आसानी से सीखा जा सकता है। आज हमारी हिंदी भाषा में कुछ विदेशी शब्द भी शामिल हो चुके हैं जिसके कारण हमारी हिंदी भाषा थोड़ी मेली हो चुकी है। हिंदी भाषा में ही देश के सभी विद्यालयों में बड़े-बड़े साहित्य और ग्रंथों को पढ़ाया जाता है। आज भारत में हिंदी भाषा एकता का प्रतीक बन चुकी है। हिंदी भाषा पुरानी भाषा संस्कृत और देवनागरी का मिश्रण है।

हिंदी को राष्ट्रभाषा कब बनाया गया? (When was Hindi made the national language?)

1947 में जब भारत अंग्रेजों से आजाद हुआ था उसके बाद से भारत में सभी लोग अपने अपने राज्य की भाषा को प्राथमिकता देते थे। भारत का संविधान एक होने के बावजूद भी भारत में हर हिस्से में अलग-अलग भाषा बोली जा रही थी जिसके बाद सभा का गठन किया गया उन्होंने निर्णय लिया कि भारत में एक मुख्य भाषा होगी जिसका उपयोग सभी लोग करेंगे। उसके बाद 14 सितंबर 1950 को भारत में हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया गया। अब भारत में हिंदी भाषा को बाकी अन्य भाषाओं से अधिक प्राथमिकता दी जाती है और भारत के सभी लोग हिंदी बोलने में काफी गर्व महसूस करते हैं।

भारत में हर साल 14 सितंबर के दिन हिंदी दिवस मनाया जाता है लेकिन फिर भी आज भारत में हिंदी भाषा का हाल काफी बुरा हो चुका है। हमारे देश की युवा बड़ी विदेशी भाषा और संस्कृति को अपनाने में लगी हुई है। और उन्हें आज हिंदी भाषा बोलने में शर्म आती है। हमें अपने युवा पीढ़ी को हिंदी भाषा के महत्व के बारे में बताना चाहिए। जिससे सभी युवा अपनी भाषा को बोलने में गर्व महसूस करें, और सारे विश्व में अपनी राष्ट्रभाषा का प्रचार कर सके। राष्ट्रभाषा देश की एकता का प्रतीक होता है इसलिए सभी लोगों को अपनी राष्ट्रभाषा को बोलने में गर्व  महसूस करना चाहिए।

हमारे सभी प्रिय विद्यार्थियों को इस “ Rashtrabhasha Hindi Nibandh ” जरूर मदद हुई होगी यदि आपको यह Rashtrabhasha Hindi Nibandh Lekhan अच्छा लगा है तो कमेंट करके जरूर बताएं कि आपको यह Rashtrabhasha Hindi Par Nibandh कैसा लगा? हमें आपके कमेंट का इंतजार रहेगा और आपको अगला Essay या Speech कौन से टॉपिक पर चाहिए. इस बारे में भी आप कमेंट बॉक्स में बता सकते हैं ताकि हम आपके अनुसार ही अगले टॉपिक पर आपके लिए निबंध ला सकें.

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राष्ट्रभाषा हिन्दी – निबंध

“राष्ट्रभाषा हिन्दी” नामक निबंध के निबंध लेखन ( Nibandh Lekhan ) से अन्य सम्बन्धित शीर्षक, अर्थात “राष्ट्रभाषा हिन्दी” से मिलता जुलता हुआ कोई शीर्षक आपकी परीक्षा में पूछा जाता है तो इसी प्रकार से निबंध लिखा जाएगा। ‘राष्ट्रभाषा हिन्दी’ से मिलते जुलते शीर्षक इस प्रकार हैं-

  • राष्ट्रीय एकता और हिन्दी
  • हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी

राष्ट्रभाषा की समस्या

  • राष्ट्रभाषा का प्रश्न

Rashtrabhasha Hindi

निबंध की रूपरेखा

राष्ट्रभाषा का अर्थ, भारत की राष्ट्रभाषा.

  • राष्ट्रभाषा हिन्दी की विशेषताएँ

राष्ट्रभाषा और स्वाभिमान

  • राष्ट्रभाषा और राजभाषा
  • हिन्दी के विरोध के कारण
  • अंग्रेजी बनाम हिन्दी

हिन्दी की सामर्थ्य

हिन्दी के प्रति हमारा कर्तव्य.

  • राष्ट्रभाषा हिन्दी

भारत एक बहुभाषी राष्ट्र है। देश के विभिन्न प्रान्तों में अलग-अलग भाषाओं का बोलबाला है। हिन्दी , पंजाबी, सिन्धी, उड़िया, बंगला, असमिया, गुजराती, मराठी, तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और मलयालम भारत की प्रमुख भाषाएं हैं। ऐसी स्थिति में कौन-सी भाषा राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठित की जाए, यह प्रश्न विवाद का विषय बन गया है।

किसी देश की राष्ट्रभाषा वही हो सकती है, जिसका अपने देश की संस्कृति और साहित्य से गहरा सम्बन्ध हो। राष्ट्रभाषा बनने के लिए यह भी आवश्यक है कि उसे देश की बहुसंख्यक जनता बोलती-समझती हो तथा वह अन्य प्रान्तीय भाषाओं के साथ भी घनिष्ठ सम्बन्ध रखती हो। उसके शब्दों को पचाने की क्षमता भी उस भाषा में होनी चाहिए। इस दृष्टि से विचार करने पर स्पष्ट हो जाता है कि हिन्दी के अतिरिक्त अन्य भाषाएं केवल अपने-अपने प्रान्त में सिमटी हुई हैं, उन्हें बोलने वालों की संख्या भी सीमित है। दसरी ओर हिन्दी का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है।

भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी ही है, क्योंकि यह बहुसंख्यक लोगों की भाषा है तथा इसका क्षेत्र व्यापक है। मोटे तौर पर हिन्दी भाषा क्षेत्र के अन्तर्गत हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और राजस्थान राज्य आते हैं। इन राज्यों में तो हिन्दी का बोलबाला है ही, इसके अतिरिक्त महाराष्ट्र, गजरात, पंजाब, कश्मीर में भी हिन्दी बोलने-समझने वाले लोग निवास करते हैं।

देश के अन्य प्रान्तो में भी हिन्दी बोलने वालों की संख्या एक सीमित प्रतिशत में है। उक्त विवेचन से स्पष्ट है कि हिन्दी भारत के बहुसंख्यक लोगों की भाषा है। अनुमानतः 50 करोड़ लोग हिन्दी भाषा-भाषी हैं, अतः हिन्दी के अतिरिक्त किसी अन्य भाषा को भारत की राष्ट्रभाषा के पद पर सुशोभित नहीं किया जा सकता।

राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी की विशेषताएँ

हिन्दी भारतीय संस्कृति, सभ्यता से भी जुड़ी हुई है, इसका साहित्य उच्चकोटि का है और जातीय गौरव को बढ़ाने वाला है। भारत की प्राचीन भाषाओं , संस्कृत , प्राकृत ,  पालि और अपभ्रंश से इसका निकट सम्बन्ध है। संस्कत के बहुत सारे शब्द हिन्दी में प्रचलित हैं और आज नए शब्दों का गठन संस्कृत व्याकरण के आधार पर हिन्दी में किया जा रहा है। हिन्दी का शब्द भण्डार पर्याप्त समृद्ध है तथा इसमें अन्य प्रान्तीय भाषाओं के शब्दों को पचाने की सामर्थ्य भी है, अतः हिन्दी में वे सभी गुण विद्यमान हैं जिनके आधार पर किसी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया जाता है।

जब तक हम राष्टभाषा के प्रश्न को राष्ट्रीय स्वाभिमान से नहीं जोड़ते, तब तक हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं बन सकती। जिस प्रकार राष्ट्रगान, राष्ट्रीय ध्वज किसी स्वतन्त्र राष्ट्र के गौरव, स्वाभिमान एवं अस्मिता के प्रतीक होते हैं. उसी प्रकार राष्ट्रभाषा भी किसी राष्ट्र के स्वाभिमान की वाहक होती है। जिस प्रकार देश के नागरिक अपने राष्टगीत एवं राष्ट्रीय झण्डे से प्यार करते हैं, उसी प्रकार उन्हें अपनी राष्ट्रभाषा से भी प्रेम करना चाहिए। भारत की स्वतन्त्रता के उपरान्त जब राष्ट्रभाषा का सवाल उठा तो हमारे दूरदर्शी नेताओं ने एक स्वर से हिन्दी को इस पद पर प्रतिष्ठित किया। गांधीजी, नेहरूजी, राजगोपालचारी, मौलाना अबुलकलाम आजाद, गोविन्द वल्लभ पन्त आदि ने हिन्दी को ही यह सम्मान देने का वकालत की।

राष्ट्रभाषा एवं राजभाषा

बहुसंख्यक लोगों की भाषा को राष्ट्रभाषा कहा जाता है, जो देश के विस्तृत भू-भाग में बोली-समझी जाती है जबकि संविधान द्वारा स्वीकृत सरकारी राजकाज की भाषा को राजभाषा कहा जाता है। हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा भी है तथा राजभाषा भी। भारतीय संविधान की धारा 343 के अन्तर्गत हिन्दी को देश की राजभाषा के पद पर प्रतिष्ठित किया गया है तथा धारा 351 के अन्तर्गत यह प्रावधान किया गया है कि संघ हिन्दी के प्रचार-प्रसार एवं विकास के लिए प्रयासरत रहेगा। ‘ केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय ‘ का गठन इसी प्रावधान के अन्तर्गत किया गया है तथा हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए सरकार की ओर से अनेक कार्य भी किए गए हैं।

हिन्दी-विरोध के कारण

हिन्दी को राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठित करने का विरोध दक्षिण भारत, विशेषतः तमिलनाडु में हुआ। वहां के राजनीतिक दल तो हिन्दी विरोध पर ही राजनीति करते हैं। “ हिन्दी थोपी नहीं जाएगी ” इस प्रकार का नारा देकर उन्होंने हिन्दी विरोधी आन्दोलन भी चलाए हैं। कैसी विडम्बना है कि वे एक भारतीय भाषा का तो विरोध करते हैं, किन्तु विदेशी भाषा अंग्रेजी के समर्थक हैं।

आज हिन्दी को उन तथाकथित काले अंग्रेजों का विरोध झेलना पड़ रहा है जो अंग्रेजी सभ्यता, संस्कृति के गुलाम बन चके हैं। देश की स्वतन्त्रता के बाद भी वे मानसिक गुलामी से मुक्त नहीं हुए और अभी भी अंग्रेजी वर्चस्व बनाए रखने की चेष्टा कर रहे हैं। वे अंग्रेजी के नाम पर सामान्य जनता का शोषण करते हैं और सरकारी कामकाज की भाषा के रूप में अंग्रेजी के पक्षधर हैं। उच्चपदासीन अधिकारीगण अंग्रेजी भाषा के मोह से अभी तक मुक्त नहीं हो सके हैं। उन्हें भय है कि यदि हिन्दी में कार्य करना अनिवार्य कर दिया गया तो वे जनता को मूर्ख नहीं बना पाएंगे। कैसी विडम्बना है कि जो भाषा भारत के दो प्रतिशत लोग भी नहीं बोल पाते, वही सरकारी कार्यालयों में छायी हुई है।

अंग्रेजी बनाम हिन्दी का संघर्ष

यह अत्यन्त खेदजनक है कि लोग हिन्दी का विरोध करते हैं और उसके स्थान पर किसी अन्य भारतीय भाषा की वकालत न करके अंग्रेजी का समर्थन करते हैं। आज हिन्दी की प्रतिद्वन्द्रिता किसी अन्य भारतीय भाषा से न होकर अंग्रेजी से है।

अंग्रेजी को लोग पढे-लिखों की भाषा समझते हैं और अंग्रेजी बोलने वालों को आदर-सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। वह उच्च वर्ग की भाषा समझी जाती है। यही कारण है कि अभी तक अंग्रेजी के पैर नहीं उखड पाए हैं किन्तु जिस दिन से लोग अपनी भाषा के प्रति स्नेह करने लगेगे, उस दिन से अंग्रेजी समाप्त हो जाएगी। अंगरेजी की इस स्थिति को समाप्त करना ही होगा क्योकि अपनी भाषा की उन्नति से ही देश की उन्नति हो सकती हैं। भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र ने इसीलिए कहा था-

निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल। बिनु निज भाषा ज्ञान के मिटै न हिय को शूल।।

अग्रेजी देश को एकता के सूत्र में नहीं बांध सकती। यह कार्य तो हिन्दी को ही करना है, अतः राष्ट्रीय एकता की दृष्टि से भी हमें हिन्दी को ही अपनाना पड़ेगा। अंग्रेजी भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता से जुडी हुई नहीं है अतः उसके वर्चस्व को समाप्त करना ही होगा।

प्रायः लोग यही समझते हैं कि अंग्रेजी विश्व की भाषा है, किन्तु यह नितान्त भ्रमपूर्ण है। रूस, चीन, जापान, जर्मन, फ्रांस की अपनी-अपनी भाषाएं हैं और इनके नेता विदेशों में अपने देश की भाषा में बोलते हैं। भारत के नेताओं को भी विदेशों में अपने देश की भाषा में बोलना चाहिए, अंग्रेजी में नहीं।

हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा पद के लिए पूर्णतः उपयुक्त भाषा है। इसमें वह सामर्थ्य एवं क्षमता विद्यमान है जो किसी देश की राष्ट्रभाषा में होनी चाहिए। हिन्दी ने वह क्षमता भी ग्रहण कर ली है जिससे वह उच्च शिक्षा का माध्यम बन सकने में समर्थ हो सकी है। आज हिन्दी की शब्द सम्पदा बढ़ी है। वैज्ञानिक, तकनीकी, विधि, सरकारी, शब्दावली से सम्बन्धित हिन्दी के शब्दकोश प्रकाशित हो चुके हैं तथा इस दिशा में निरन्तर कार्य हो रहा है।

प्रत्येक स्वाभिमानी नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह हिन्दी का अधिकाधिक व्यवहार करे, हिन्दी में पत्र लिखे, हिन्दी में हस्ताक्षर करे और हिन्दी में भाषण दे। वे सरकारी कर्मचारी जो हिन्दी जानते हैं, सारा कामकाज हिन्दी में करें। जब हिन्दी हमारे मन-प्राण से जुड़ जाएगी, तभी वह सच्चे अर्थों में राष्ट्रभाषा बन सकेगी।

महात्मा गांधी जैसे नेता ने हिन्दी को भारत की आत्मा के रूप में पहचाना था और वे उसी का उपयोग देश की जनता के साथ सम्पर्क हेतु करते थे। विभिन्न प्रान्तों के लोग हिन्दी भाषा सीखें और हिन्दी का अधिकाधिक व्यवहार करें। हिन्दी का प्रयोग करने में हीनता का अनुभव करना जिस दिन भारतवासी छोड़ देंगे, और उसका प्रयोग करने में गौरव एवं गर्व का अनुभव करने लगेंगे, उसी दिन से हिन्दी का उत्कर्ष प्रारम्भ होगा, और वह सच्चे अर्थों में भारत की राष्ट्रभाषा बन जाएगी।

निबंध लेखन के अन्य महत्वपूर्ण टॉपिक देखें

हिन्दी के निबंध लेखन की महत्वपूर्ण जानकारी जैसे कि एक अच्छा निबंध कैसे लिखे? निबंध की क्या विशेषताएँ होती हैं? आदि सभी जानकारी तथा हिन्दी के महत्वपूर्ण निबंधो की सूची देखनें के लिए ‘ Nibandh Lekhan ‘ पर जाएँ। जहां पर सभी महत्वपूर्ण निबंध एवं निबंध की विशेषताएँ, प्रकार आदि सभी दिये हुए हैं।

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Hindi Essay on “Rashtrabhasha – Hindi Bhasha”, “राष्ट्रभाषा : हिंदी भाषा”, Hindi Nibandh for Class 5, 6, 7, 8, 9 and Class 10 Students, Board Examinations.

राष्ट्रभाषा : हिंदी भाषा

Rashtrabhasha – Hindi Bhasha

अपने विचारों के आदान-प्रदान का सर्वोत्तम साधन है। हर राष्ट्र की अपनी विशेष परंपराएँ, साहित्य, ज्ञान-भंडार व भाषा आदि होते हैं। भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी है। यह देवनागरी लिपि में लिखी जाती है।

राष्ट्रभाषा किसी भी देश के अधिकांश क्षेत्रों में बोली व समझी जाती है। शब्दों के फेर-बदल से कुछ क्षेत्रों में इसकी उपभाषाएँ बन जाती हैं। राष्ट्रभाषा में सभी सरकारी व औपचारिक काम किए जाते हैं।

14 सितंबर 1949 को भारत जैसे भिन्न क्षेत्रों वाले देश को एक भाषा के माध्यम से बाँधा गया था। हिंदी के अलावा संस्कृत, तमिल, तेलुगु, पंजाबी इत्यादि को भी पहचाना गया है।

हिंदी भाषा में साहित्य का बहुत विकास हुआ है। चिरकाल से ज्ञानी कथाओं व कविताओं का विस्तार हिंदी भाषा द्वारा ही करते आए हैं। आर्यभट्ट जैसे विद्वानों ने अपनी खोजों का वर्णन इसी माध्यम से किया है।

कुछ लोग हिंदी भाषा को अति सरल मानते हैं। उनका यह भी विचार है कि विश्व में खड़े होने के लिए हर भारतीय को अंग्रेजी का अनुभव अधिक आवश्यक है। परंतु किसी भी राष्ट्र की संस्कृति की पहचान अपनी भाषा से होती है। हमें भी प्रतिदिन व्यवहार में हिंदी का प्रयोग करने में उतना ही गर्व प्रतीत होना चाहिए जितना अंग्रेजी या अन्य किसी भाषा का।

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राष्ट्रभाषा हिंदी – रचना | Raashtrabhaasha Hindi Rachana

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राष्ट्रभाषा हिंदी

भारतवर्ष कई शताब्दियों तक दासता की बेड़ियों में जकड़ा रहा। विदेशी शासकों ने हमारे देश की धन-संपत्ति को तो लूटा ही, इसके साथ-साथ हमारी भाषा एवं संस्कृति का विनाश भी खूब किया। पहले मुसलमानों ने ‘हम पर उर्दू, फारसी को लादा फिर अंग्रेजों ने अपनी अंग्रेजी को हम पर लाद दिया। लार्ड मैकाले की सलाह पर भारत में शिक्षा का अंग्रेजीकरण कर दिया गया। भारतवर्ष को स्वतंत्रता प्राप्त किए पचास वर्ष से भी अधिक समय हो गया है, पर हम अभी तक मानसिक पराधीनता से स्वयं को मुक्त नहीं कर पाए हैं। विदेशी भाषके प्रति हमारा आकर्षण बढ़ता ही जा रहा है।

स्वतंत्रता मिलने पर संविधान सभा ने एकमत होकर स्वकार किया था- ‘संघ की ने राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी।’ इसके साथ-साथ सोलह प्रादेशिक भाषाओं को भी मान्यता दी गई थी। हिंदी भाषा को पूर्ण स्थान प्रदान करने के लिए पंद्रह वर्ष का समय निश्चित किया गया। सरकार ने इसके लिए अपने प्रयत्न भी आरंभ कर दिए थे, पर भारतीय राजनीति एवं सरकार के उच्च पदस्थ अधिकारियों को यह अच्छा नहीं लगा। राजनीतिक नेताओं ने अपने स्वार्थ देखे। दक्षिण भारत के लोगों के मन में यह भय बिठा दिया गया कि उन पर हिंदी लादी जा रही है। कुछ लोगों का कहना था कि अंग्रेजी के अभाव में उनके बच्चे नौकरियों में पिछड़ जाएंगे।

मातृभाषा के प्रति हीन भाव एवं अंग्रेजी के प्रति उच्च भाव हमारी मानसिक दासता का प्रतीक है। हमारे मन में अंग्रेजी वेशभूषा, रहन-सहन एवं अंग्रेजी भाषा का आतंक बना हुआ। चिरकाल तक पराधीन रहकर हमने राष्ट्रीयता के विधायक तत्वों को ही भूला दिया है। आधुनिकता के मोह में हममें स्वभाव, स्वसंस्कृति एवं स्वसाहित्य के प्रति कोई मोह नहीं रह गया है। अंग्रेजी भाषा को ज्ञान-विज्ञान का वातायन कहा जाने लगा है, जो तर्क संगत नहीं है।

हिंदी भारत के सर्वाधिक लोगों की भाषा है। अन्य सभी प्रादेशिक भाषाएं लोकप्रियता के आधार पर काफी पीछे हैं। हिंदी समझने में सरल है। यह तर्कपूर्ण वैज्ञानिक भाषा है। इसकी लिपि देवनागरी सुबोध, वैज्ञानिक एवं सरल है। कोई भी राष्ट्र तब तक स्वतंत्र होने का दावा नहीं कर सकता है। राष्ट्रभाषा समूचे राष्ट्र की शक्ति होती है। भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी है, अतः इसी को पूरी तरह अपनाया जाना चाहिए। हिंदी ही समस्त राष्ट्र को एकता के सूत्र में बांध सकेगी। हिंदी के प्रति हमारे हृदय में उच्च भाव होना चाहिए। हिंदी के प्रयोग में हमें गौरवान्वित होना चाहिए। विदेशी भाषा और विदेशी संस्कृति हमें कभी आदर नहीं दिला सकती। हमें इस स्थिति को समझना और स्वीकार करना है। नवयुवकों को अंग्रेजी सीखनी चाहिए, पर उसके मोहपाश में नहीं फंसना चाहिए। हिंदी की उन्नति से हमारा स्वाभिमान जागृत होगा।

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राष्ट्रभाषा और राजभाषा किसे कहते हैं?

राष्ट्रभाषा और राजभाषा में अंतर बताते हुए राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी को स्पष्ट करें।

अपने विचारों को हम लोगों के साथ जिस माध्यम से आदान-प्रदान करते हैं, उसे भाषा कहते हैं। प्रत्येक देश या राज्य में कोई-न-कोई राष्ट्रभाषा और राजभाषा होती है। और आज हम इसी के बारे में विस्तार से बात करेंगे कि राष्ट्रभाषा और राजभाषा किसे कहते हैं? Difference between Rashtrabhasha and Rajbhasha in Hindi के साथ ही हम राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी को भी स्पष्ट करेंगे।

समाज में जिस भाषा का प्रयोग होता है, साहित्य की भाषा उसी का परिष्कृत रूप है। भाषा का आदर्श रूप वही है जिसमें विशाल समुदाय अपने विचार प्रकट करता है। अर्थात् वह उसका शिक्षा, शासन और साहित्य की रचना के लिए प्रयोग करता है। इन्हीं कारणों से जब भाषा का क्षेत्र अधिक व्यापक और विस्तृत होकर समस्त राष्ट्र में व्याप्त हो जाता है तब वह भाषा ‘राष्ट्रभाषा’ कहलाती है।

Table of Contents

राष्ट्रभाषा किसे कहते हैं?

‘राष्ट्रभाषा’ का सीधा अर्थ है राष्ट्र की वह भाषा, जिसके माध्यम से पूरे राष्ट्र में विचार विनिमय एवं सम्पर्क किया जा सके। जब किसी देश में कोई भाषा अपने क्षेत्र की सीमा को लाँघकर अन्य भाषा के क्षेत्रों में प्रवेश करके वहाँ के जनमानस के भाव और विचारों का माध्यम बन जाती हैं तब वह राष्ट्रभाषा के रूप में स्थान प्राप्त करती हैं।

वही भाषा सच्ची राष्ट्रभाषा हो सकती है, जिसकी प्रवृत्ति सारे राष्ट्र की प्रवृत्ति हो जिस पर समस्त राष्ट्र का प्रेम हो। राष्ट्र के अधिकाधिक क्षेत्रों में बोली जाने वाली तथा समझी जाने वाली भाषा ही राष्ट्रभाषा कहलाती है। राष्ट्रभाषा में समस्त राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधने, राष्ट्रीय भावना को जागृत करने तथा राष्ट्रीय गौरव की भावना को संहवन करने की शक्ति होती है।

राष्ट्रभाषा में समस्त राष्ट्र के जन-जीवन की आशाओं, आकांक्षाओं, भावनाओं एवं आदर्शों को चित्रित करने की अद्भुत शक्ति होती है। एक देश में कई भाषाएँ बोली जाती है परंतु उनमें से किसी एक भाषा को ही राष्ट्रभाषा राष्ट्र के बहुसंख्यक लोगों के द्वारा समझी और बोली जाने वाली भाषा होती है।

राजभाषा किसे कहते हैं?

‘राजभाषा’ का सामान्य अर्थ है- राजकाज की भाषा । दूसरे शब्दों में जिस भाषा के द्वारा राजकीय कार्य संपादित किए जाएँ वही ‘राजभाषा’ कहलाती है। भारत जैसी जनतंत्रात्मक प्रणाली में दोहरी शासन पद्धति होती है:

  • केंद्र की शासन पद्धति 
  • राज्य की शासन पद्धति 

इस कारण राजभाषा की स्थिति भी दो प्रकार की होती है। प्रथम केंद्रीय अथवा संघ की राजभाषा तथा द्वितीय राज्यों की राजभाषा। आचार्य नंददुलारे वाजपेयी ने ‘राजभाषा’ को परिभाषित करते हुए कहा है: ‘राजभाषा उसे कहते हैं जो केंद्रीय और प्रादेशिक सरकारों द्वारा पत्र-व्यवहार, राजकाज और सरकारी लिखा-पढ़ी के काम में लाई जाए।’

भारत की संवैधानिक राजभाषा और राष्ट्रभाषा

उल्लेखनीय बात यह है कि संविधान में ‘राष्ट्रभाषा’ शब्द का कहीं प्रयोग नहीं किया गया है। संविधान के भाग-17 का शीर्षक है ‘ राजभाषा ‘। इसका अध्याय-1 ‘ संघ की भाषा ‘ के विषय में हैं। इसके अनुच्छेद 343 में संघ की राजभाषा का उल्लेख है और अनुच्छेद 344 ‘राजभाषा’ के संबंध में आयोग और संसद की समिति के बारे में है।

अध्याय-2 का शीर्षक है:- ‘ प्रादेशिक भाषाएँ’ । इसके अंतर्गत अनुच्छेद 345 ‘राज्य की राजभाषा या राजभाषाएँ’ संबंधी है, अनुच्छेद 346 ‘एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच या किसी राज्य और संघ के बीच पत्रादि की राजभाषा’ विषयक है।

इन अनुच्छेदों में कहीं किसी भाषा को राष्ट्रीय भाषा भी नहीं कहा गया है। परंतु उसके अनुच्छेद 351 में हिंदी के ‘राष्ट्रभाषा’ रूप की ही कल्पना की गई है। राजभाषा आयोग की सिफ़ारिश पर जो वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग बना, उसने शब्दावली इस प्रकार तैयार की हैं कि वह केवल हिंदी भाषा के लिए ही काम न आए बल्कि उसका प्रयोग सामान्यतः अन्य भाषाओं में भी हो सके। जिन दिनों संविधान सभा में भाषा के सम्बंध में विस्तृत चर्चा हुई, अनेक सदस्यों ने हिंदी के लिए राष्ट्रभाषा शब्द का प्रयोग किया। इससे संविधान सभा के सदस्यों की भावना का पता चलता है।

इसे भी पढ़ें: देवनागरी लिपि का उद्भव और विकास

राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी को स्पष्ट करें।

हिंदी का लगभग एक हजार वर्ष का इतिहास इस बात का साक्षी है कि हिंदी ग्यारहवीं शताब्दी से ही प्रायः अक्षुण्ण रूप से राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित रही है। चाहे राजकीय प्रशासन के स्तर पर कभी संस्कृत कभी फ़ारसी और बाद में अंग्रेजी को मान्यता प्राप्त रही। किंतु समूचे राष्ट्र के जन समुदाय के आपसी संवाद संचार, विचार-विमर्श, सांस्कृतिक ऐक्य और जीवन-व्यवहार का माध्यम हिंदी ही रही।

ग्यारहवीं सदी में हिंदी के आविर्भाव से लेकर आज तक राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी की विकास परंपरा को मुख्यतः तीन सोपानों में बाँटा जा सकता है- आदिकाल, मध्यकाल और आधुनिक काल। आदिकाल के आरंभ में तेरहवीं सदी तक भारत में जिन लोक बोलियों का प्रयोग होता था, वे प्रायः संस्कृत की उत्तराधिकारिणी, प्राकृत और अपभ्रंश से विकसित हुई थी। कहीं उन्हें देशी भाषा कहा गया, कहीं अवहट्ट और कहीं डींगल या पिंगल।

ये उपभाषाएँ बोलचाल, लोकगीतों, लोकवार्ताओं तथा कहीं-कहीं काव्य रचना का भी माध्यम थीं, बौद्ध मत के अनुयायी भिक्षुओं, जैन-साधुओं नाथपंथियों जोगियों और महात्माओं ने विभिन्न प्रदेशों में घूम-घूम कर वहाँ की स्थानीय बोलियों या उपभाषाओं में अपने विचार और सिद्धांतों को प्रचारित-प्रसारित किया, असम और बंगाल से लेकर पंजाब तक और हिमालय से लेकर महाराष्ट्र तक सर्वत्र इन सिद्ध साधुओं।

मुनियों-योगियों ने जनता के मध्य जिन धार्मिक आध्यात्मिक-सांस्कृतिक चेतना का संचार किया उसका माध्यम लोक-बोलियाँ जा जनभाषाएँ ही थी, जिन्हें पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी, राहुल सांकृत्ययन तथा आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी जैसे विद्वानों ने ‘पुरानी हिंदी’ का नाम दिया है। इन्हीं के समानांतर मैथिली-कोकिल विद्यापति ने जिस सुललित मधुर भाषा में राधाकृष्ण प्रणय संबंधी सरस पदावली की रचना की, उसे उन्होंने ‘देसिल बअना’ (देशी भाषा) या अवहट्ट कहा।

पंजाब के अट्टहमाण ने ‘संदेश रासक’ की रचना परवर्ती अपभ्रंश में की, जिसे पुरानी हिंदी का ही पूर्ववर्ती रूप माना जा सकता है। रासो काव्यों की भाषा डींगल मानी गई जो वास्तव में पुरानी हिंदी का ही एक प्रकार है। सबसे पहले इसी पुरानी हिंदी को ‘हिंदई’, ‘हिंदवी’, अथवा ‘हिंदी’ के नाम से पहचान दी अमीर खुसरो ने।

राष्ट्रभाषा हिंदी का इतिहास

वस्तुतः आदिकाल में लोकस्तर से लेकर शासन स्तर तक और सामाजिक सांस्कृतिक क्षेत्र से लेकर साहित्यिक क्षेत्र तक हिंदी राष्ट्रभाषा की कोटिक्ति ओर अग्रसर हो रही थी।

मध्यकाल में भक्ति आंदोलन के प्रभाव से हिंदी भारत के एक छोर से दूसरे छोर तक जनभाषा बन गई। भारत के विभिन्न वर्गों और क्षेत्रों में सांस्कृतिक ऐक्य के सूत्र होने का श्रेय हिंदी को ही है। दक्षिण के विभिन्न दार्शनिक आचार्यों ने उत्तर भारत में आकार संस्कृत का दार्शनिक चिंतन हिंदी के माध्यम से लोक मानस में संचारित किया। दूसरे शब्दों में कहें तो हिंदी व्यावहारिक रूप से राष्ट्रभाषा बन गई।

आधुनिक काल में हिंदी भारत की राष्ट्रीय अस्मिता का प्रतीक बन गई। वर्षों पहले अंग्रेजों द्वारा फैलाया गया भाषाई कूटनीति का जाल हमारी भाषा के लिए रक्षाकवच बन गया, विदेशी, अंग्रेजी शासकों को समूचे भारत राष्ट्र में जिस भाषा का सर्वाधिक प्रयोग प्रसार और प्रभाव दिखाई दिया, वह हिंदी थी। जिसे वे लोग हिंदुस्तानी कहते थे।

चाहे पत्रकारिता का क्षेत्र हो चाहे स्वाधीनता संग्राम का, हर जगह हिंदी ही जनता के भाव विनिमय का माध्यम बनी। भारतेंदु हरिश्चंद्र, स्वामी दयानंद सरस्वती, महात्मा गाँधी सरीखे राष्ट्रपुरुषों ने राष्ट्रभाषा हिंदी के ही ज़रिए समूचे राष्ट्र से सम्पर्क किया और सफल रहे। तभी तो आजादी के बाद संविधान सभा ने बहुमत से ‘हिंदी’ को राजभाषा का दर्जा देने का निर्णय लिया था।

हिंदी भारत की राजभाषा कैसे बनी?

भारत की राष्ट्रभाषा के संबंध में महात्मा गाँधी ने इंदौर में 20 अप्रैल 1935 को हिंदी साहित्य सम्मेलन के चौबीसवे अधिवेशन की अध्यक्षता करते हुआ कहा था: ‘अंग्रेजी राष्ट्रभाषा कभी नहीं बन सकती। आज इसका साम्राज्य सा ज़रूर दिखाई देता है।

  • इससे बचने के लिए काफ़ी प्रयत्न करते हुए भी हमारे राष्ट्रीय कार्यों में अंग्रेजी ने बहुत स्थान ले रखा हैं लेकिन इससे हमें इस भ्रम में कभी न पड़ना चाहिए कि अंग्रेजी राष्ट्रभाषा बन रही है।
  • इसकी परीक्षा प्रत्येक प्रांतों में हम आसानी से करते हैं। बंगाल अथवा दक्षिण भारत को ही लीजिए जहाँ अंग्रेजी का प्रभाव सबसे अधिक है।
  • वहाँ यदि जनता की मार्फ़त हम कुछ भी काम करना चाहते हैं तो वह आज हिंदी द्वारा भले ही न कर सकें, पर अंग्रेजी द्वारा कर ही देंगे।
  • पर अंग्रेजी से तो इतना भी नहीं कर सकते। हिंदुस्तान को अगर सचमुच एक राष्ट्र बनाना है तो चाहे कोई माने या न माने राष्ट्रभाषा तो हिंदी ही बन सकती है क्योंकि जो स्थान हिंदी को प्राप्त है वह किसी दूसरी भाषा को कभी नहीं मिल सकता।’

संविधान सभा द्वारा राजभाषा संबंधी निर्णय होने के कुछ सप्ताह बाद ही एक समारोह के लिए तत्कालीन उप-प्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने 23 अक्टूबर, 1949 को अपने संदेश में लिखा था- ‘विधान परिषद ने राष्ट्रभाषा के विषय में निर्णय कर लिया है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि कुछ व्यक्तियों को इस फ़ैसले से दुःख हुआ।

कुछ संस्थानों ने भी इसका विरोध किया है। परंतु जिस प्रकार और बातों में मतभेद हो सकता है, उसी प्रकार इस विषय में यदि मतभेद है और रहे तो उसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। विधान में कई ऐसी बातें हैं जिनसे सबका संतोष होना असंभव है। परंतु एक बार यदि विधान में कोई चीज़ शामिल हो जाए तो उसको स्वीकार कर लेना सबका कर्तव्य है, कम-से-कम जब तक कि ऐसी स्थिति पैदा न हो जाए जिसमें सर्वसम्मति से या बहुमत से फिर कोई तब्दीली हो सके।

अब जबकि हिंदी को राष्ट्रभाषा की पदवी मिल गई है (यद्यपि कुछ वर्षों के लिए एक विदेशी भाषा के साथ-साथ उसको यह गौरव प्राप्त हुआ है), हर व्यक्ति का कर्तव्य है कि राष्ट्रभाषा की उन्नति करे और उसकी सेवा करे जिससे कि सारे भारत में वह बिना किसी संकोच या संदेह के स्वीकृत हो। हिंदी का पट महासागर की तरह विस्तृत होना चाहिए जिसमें मिलकर और भाषाएँ अपना बहुमूल्य भाग ले सकें।

राष्ट्रभाषा न तो किसी प्रांत की है न किसी जाति की है, वह सारे भारत की भाषा हैं, और उसके लिए यह आवश्यक है कि सारे भारत के लोग उसको समझ सकें और अपनाने का गौरव हासिल कर सकें।

इसे भी पढ़ें: निबंध की परिभाषा, प्रकार और जरुरी तत्त्व 

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भारतीय राजभाषा हिन्दी पर निबंध Essay on Rajbhasha Hindi

इस लेख में हमने भारतीय राजभाषा हिन्दी पर निबंध Essay on Rajbhasha Hindi लिखा है। इसे कब घोषित किया गया था, राजभाषा और राष्ट्र भाषा में अंतर, इसके विकास में किए गए कार्य तथा इसके महत्व से जुड़ी सभी जानकारी इस लेख में आप पढ़ेंगे।

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दोस्तों वैसे तो संसार में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में मैंडेरिन चीनी , अंग्रेजी और स्पैनिश के बाद हिन्दी चौथे स्थान पर अपना स्थान सुनिश्चित करती हैl

परन्तु दूसरी भाषा के रूप में प्रयोग में लायी जाने वाली भाषा के रूप में देखा जाये तो पूरे विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में अंग्रेजी के बाद हिन्दी का ही नाम आता हैl आज हम बात करेंगे कि हिंदी को राजभाषा का दर्जा कैसे प्राप्त हुआ और राज भाषा क्या होती है और इससे सम्बंधित सभी अवयवो की, तो दोस्तों शुरू करते है – 

हिंदी को राजभाषा कब घोषित किया गया When Was Hindi Declared as Rajbhasha

भारत में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा हिंदी है और इसे राजभाषा का दर्जा 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा द्वारा दिया गया था। अत: प्रतिवर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।

वैसे तो भारत देश में बहुत भाषायें बोली जाती है परन्तु हिंदी भाषा का अपना ही एक महत्व है जिसके कारण यह लोगो के हृदय में एक महत्वपूर्ण स्थान लिए हुए है l

क्योंकि पूर्व में काफी लम्बे समय से हिंदी भाषा का उपयोग होता आ रहा हैl भक्तिकाल में पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण तक चारों दिशाओ में अनेक सन्तों द्वारा हिन्दी भाषा में ही रचनाएँ कीं गयी है।

स्वतंत्रता के समय के राजनेताओ जैसे राजा राममोहन राय , स्वामी दयानन्द सरस्वती , महात्मा गांधी , सुभाष चन्द्र बोस , सुब्रह्मण्य भारती आदि द्वारा हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने का सपना देखा गया था।

अधिकांश भारतीयों द्वारा बोली जाने के कारण हिंदी को महात्मा गाँधी ने 1917 में गुजरात के सम्मेंलन में राजभाषा के रूप में स्वीकारे जाने के लिए ज़ोर दिया था।

राष्ट्रभाषा बनाम राजभाषा Rashtrabhasha Vs Rajbhasha

समाज में जिस भाषा का प्रयोग करके एक बहुत सारे लोग अपने विचार प्रकट करते है और उस भाषा का प्रभाव क्षेत्र और अधिक विस्तृत होकर पुरे राष्ट्र में फ़ैल जाता है तब वह भाषा ‘ राष्ट्रभाषा ’  कहलाती है।

अर्थात राष्ट्रीय भाषा का अर्थ उस भाषा से है जिस भाषा का उपयोग करके विचारो का आदान प्रदान किया जाता हैl जिस भाषा का इस्तेमाल राजकीय कार्यो में किया जाता है उसी भाषा को राजभाषा कहा जाता है l

आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी द्वारा परिभाषित ‘ राजभाषा ’ की परिभाषा इस प्रकार है – ‘ जिस भाषा का प्रयोग केन्द्रीय और प्रादेशिक सरकार द्वारा पत्र-व्यवहार , राजकाज और सरकारी लिखा-पढ़ी में किया जाये उसे राजभाषा कहा जाता हैl’

राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी Hindi Language as Rashtra Bhasha

हिन्दी भाषा का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना है यह करीब 11वीं शताब्दी से ही राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित रही है। उस समय भले ही राजकीय कार्य संस्कृत, फरासी, अंग्रजी में होते रहे हो परन्तु सम्पूर्ण राष्ट्र में आपसी सम्पर्क , संवाद-संचार , विचार-विमर्श , जीवन-व्यवहार का माध्यम हिन्दी ही रही है।

चाहे वो पत्रकारिता का, स्वाधीनता संग्राम का , क्षेत्र क्यों न हो हर जगह हिन्दी ही जनता के विचार-विनिमय का साधन बनी है।

अतीत के महापुरुषो जैसे भारतेन्दु हरिश्चन्द्र , स्वामी दयानन्द सरस्वती , महात्मा गाँधी जैसो ने राष्ट्रभाषा हिन्दी के माध्यम से ही सम्पूर्ण राष्ट्र से सम्पर्क किया और सफलता हासिल की इसी के कारण आजादी के पश्चात संविधान-सभा द्वारा बहुमत से ‘ हिन्दी ’ को राजभाषा का दर्जा देने का निर्णय किया था।

जैसे जैसे भाषा का विस्तार क्षेत्र बढ़ता जाता है वो भाषा उतने ही अलग अलग रूप में विकसित होना शुरू हो जाती है, यही हाल हिंदी भाषा के साथ हुआ क्योकि यह भाषा पहले केवल बोलचाल की भाषा में ही सीमित थी । उसके बाद वह साहित्यिक भाषा के क्षेत्र में इसका विकास हुआ फिर समाचार-पत्रों में ‘ पत्रकारिता हिन्दी ’ का विकास हुआ ‘ खेलकूद की हिन्दी ’, ‘ बाजार की हिन्दी ’ भी सामने आई।

अत: अपने लगातार विकास के कारण स्वतन्त्रता के बाद हिन्दी, भारत की राजभाषा घोषित की गई तथा उसका प्रयोग कार्यालयों में होने लगा और एक राजभाषा का रूप विकसित हो गया। ‘ राजाभाषा ’ भाषा के उस रूप को कहा जाता है जो राजकाज में प्रयुक्त की जाती है।

स्वतंत्रता के बाद राजभाषा आयोग द्वारा यह निर्णय लिया गया कि हिन्दी को भारत की राजभाषा बनाया जाए। इस निर्णय के बाद ही संविधान ने इसे राजभाषा घोषित किया था। प्रादेशिक प्रशासन में हिमाचल प्रदेश , उत्तराखण्ड , मध्यप्रदेश , हरियाणा , राजस्थान , छत्तीसगढ़ , बिहार , झारखण्ड राजभाषा हिन्दी का प्रयोग कर रहे हैं।

साथ ही दिल्ली में भी इसका प्रयोग हो रहा है और केन्द्रीय सरकार भी अपने अनेक कार्यो में इनके प्रयोग को बढ़वा दे रही है।

राजभाषा हिन्दी की विशेषताएँ Features of Rajbhasha Hindi

नीचे हमने राजभाषा हिन्दी के कुछ मुख्य विशेषताएं बताया है-

  • अन्य भाषाओ के शब्द हिंदी भाषा में भी समाहित है l
  • इस भाषा को समझना और सीखना आसान है l
  • इस भाषा को अल्प काल में ही लिखना पढना सीखा जा सकता है l  
  • इस भाषा को जैसा लिखा जाता है वैसा ही पढ़ा जाता है यही इसकी मुख्य विशेषता है l
  • इस भाषा को संस्कृत भाषा की बेटी कहा जाता हैं l
  • इसके साहित्य का क्षेत्र भी विशाल हैं |

क्यों है हिंदी हमारी राजभाषा? Why Hindi Is Selected as Rajbhasha in India?

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा किसी भाषा को राजभाषा होने के लिए निम्नलिखित लक्षण बताए गये है –

  • आसान होना चाहिए- राजभाषा होने के लिए वो भाषा का आसान होना आवश्यक हैl
  • सरल होना चाहिए- प्रयोग करने वालों के लिए वह भाषा सरल होनी चाहिए।
  • बोलने वालो की संख्या अधिक हो – उस भाषा को बोलने वालो की संख्या अधिक होनी चाहिए l

उपयुक्त लक्षणों के कारण ही हिंदी भाषा को राजभाषा का दर्जा दिया गया।

हिंदी को राजभाषा बनाने के लिए संघर्ष व इतिहास Struggle to Make Hindi Language as Rajbhasha

हिंदी भाषा को देश की राष्ट्रभाषा बनाने के लिए दयानंद सरस्वती, महात्मा गांधीजी और अन्य द्वारा कई आंदोलन किये गयेl सन 1918 में हिन्दी साहित्य सम्मेलन में भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए एक पहला प्रयास किया गया, इन्होने ही हिंदी को जनमानस की भाषा भी बताया था।

इस विचार पर सन 1949 में काफी विचार विमर्श के बाद 14 सितंबर 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्रदान किया गयाl उसके बाद 26 जनवरी, 1950 को हमारे देश का संविधान बनाl

उस संविधान में इस भाषा को राजभाषा का दर्जा दिया गया और इसे भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय की धारा 343(1) में निहित किया गया साथ ही बताया गया है कि राष्ट्र की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी।

14 सितंबर हिंदी को राजभाषा का दर्जा देने के कारण इस दिन को हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता हैl परन्तु हिंदी को राजभाषा के रूप में चुने जाने के कारण गैर हिन्दी भाषी राज्य खासकर दक्षिण भारत के लोगों ने इसका विरोध किया परिणाम स्वरुप अंग्रेजी को भी राजभाषा का दर्जा देना पड़ा।

राजभाषा हिंदी के विकास के लिए कार्य Works Done for Improvement in Rajbhasha Hindi

हिंदी भाषा का विकास और प्रसार करने के उद्देश से संविधान के अनुच्छेद 351 में संघ के कर्तव्य के रूप में राज्य को यह निर्देश दिए गये है कि वो हिन्दी भाषा भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बने और उनका विकास करेंl

इसके प्रचार प्रसार के उद्देश से हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य में कई कार्यक्रम आयोजित किये जाते है। जिसमें हिन्दी निबंध लेखन, वाद-विवाद हिन्दी टंकण आदि प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता हैl सरकार द्वारा भी हिन्दी दिवस से सम्बंधित आयोजन बड़े पैमाने पर किये जाते है और इन आयोजनों पर अच्छी-खासी रक़म भी खर्च की जाती हैl

सामान्यतः हर सरकारी अर्ध-सरकारी संस्थान हिन्दी दिवस पर कोई न कोई आयोजन करती है l इस अवसार पर कई पुरस्कार भी वितरित किये जाते हैं l

हिन्दी भाषा की अजीब विडम्बना We Have to Respect Our Rajbhasha Hindi

वैसे तो भारत देश की राजभाषा के रूप में हिंदी बोली जाती है l राजभाषा होने के बावजूद हिन्दी बोलने-लिखने वालों को एक अलग ही दृष्टि से देखा जाता है जिसके कारण एक हिंदी बोलने वाला व्यक्ति अपने आप को हीन समझता है।

शैक्षणिक संस्थानों में भी प्रवेश के समय अंग्रेजी भाषा का बोल बाला देखने को मिलता है चाहते वो एडमिशन के लिए हो या फिर किसी जॉब के लिए न जाने कितनी बार ही फिल्मों में काम करने वाले कलाकार जब कभी फिल्म के बारे में या अपने बारे में कोई इंटरव्यू देते हैं तो उनकी भाषा आमतौर पर अंग्रेजी ही होती है।

सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा होने के बावजूद इसके , हिन्दी को आज भी संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा का दर्जा प्राप्त नही है , जबकि इससे कहीं कम बोली जाने वाली अरबी और फ्रेंच भाषाओं को यह सम्मान हासिल है।

ऐसा क्यों ? शायद हमने ही हिन्दी को वो सम्मान और स्थान नही दिया जो उसे दिया जाना चाहिए तो फिर दुसरो से कैसे समर्थन की उम्मीद रखेl यदि हम चाहते है कि हिंदी भाषा का सम्मान और स्थान बना रहे तो हमें अंग्रेजी की तरफ ज्यादा आकर्षित न होकर हिंदी की हो उसे उसका सम्मान दिलाने का प्रयास करना चाहिए तभी हम हिंदी भाषा को आने वाले समय में राज भाषा का जो दर्जा प्राप्त है उसे निरंतर रख पाएंगे l

निष्कर्ष Conclusion

राजभाषा का दर्जा प्राप्त कर चुकी हिंदी भाषा लोगों के बीच से कहीं-न-कहीं गायब होती जा रही है और इंग्लिश ने अपना प्रभुत्व जमा लिया है। यदि स्थिति इसी प्रकार रही तो वो दिन ज्यादा दूर नही जब हिंदी भाषा राजभाषा से हमारे बीच से ओझल हो जाएगीl

यदि हम सच में चाहते है कि हिंदी भाषा का प्रभुत्व राज भाषा के रूप में बना रहे तो हमें प्रचार-प्रसार को बढ़ाबा देना होगा। सरकारी कामकाज में हिंदी को प्राथमिकता देनी होगी तभी हिंदी भाषा को जिंदा रखा जा सकता है और इसका प्रभुत्व कायम भीl आशा करते हैं आपको भारतीय राजभाषा हिन्दी पर निबंध Essay on Rajbhasha Hindi अच्छा लगा होगा।

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नमस्कार रीडर्स, मैं बिजय कुमार, 1Hindi का फाउंडर हूँ। मैं एक प्रोफेशनल Blogger हूँ। मैं अपने इस Hindi Website पर Motivational, Self Development और Online Technology, Health से जुड़े अपने Knowledge को Share करता हूँ।

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Rajbhasha Aur Rashtrabhasha | राजभाषा और राष्ट्रभाषा

Rajbhasha Aur Rashtrabhasha | राजभाषा और राष्ट्रभाषा : नमस्कार दोस्तों ! आज के नोट्स में हम राज भाषा और राष्ट्र भाषा के अर्थ एवं परिभाषा तथा इनके अंतर पर प्रकाश डाल रहे है। साथ ही राजभाषा हिंदी और संवैधानिक प्रावधान के बारे में भी विस्तार से बात कर रहे है। चलिए जानते है :

Rajbhasha |राजभाषा : अर्थ एवं परिभाषा

राजभाषा का अर्थ है – संविधान द्वारा स्वीकृत सरकारी कामकाज की भाषा या संवैधानिक आवरण पहने हुए विधि निषेधों का पालन करने वाली भाषा राजभाषा कहलाती है I

राज्य सरकार द्वारा प्राधिकृत भाषा राजभाषा होती है I किसी देश का सरकारी कामकाज जिस भाषा में करने का कोई निर्देश संविधान के प्रावधानों द्वारा दिया जाए वही उस देश की राजभाषा कहलाती है I

भारत के संविधान में हिंदी भाषा को राजभाषा का दर्जा प्रदान किया गया है परंतु साथ में यह प्रावधान भी किया गया कि अंग्रेजी भाषा में भी केंद्र सरकार अपना कामकाज तब तक कर सकती है जब तक हिंदी पूरी तरह राजभाषा के रूप में स्वीकार्य नहीं की जाती है I

प्रारंभ में संविधान लागू होते समय 1950 में यह समय सीमा 15 वर्ष के लिए अर्थात अंग्रेजी का प्रयोग सरकारी कामकाज के लिए 1965 तक ही हो सकता था I परंतु बाद में संविधान संशोधन के द्वारा इस अवधि को अनिश्चितकाल तक के लिए बढ़ा दिया गया I

यही कारण है कि हिंदी राजभाषा होते हुए भी केंद्र सरकार का कामकाज अंग्रेजी में हो रहा है I वह अपना वर्चस्व बनाए हुए हैं I कुछ राज्यों की इस भाषा के रूप में हिंदी का प्रयोग स्वीकृत है I

जिन राज्यों की राजभाषा हिंदी है वेे है : राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़ I

इन राज्यों के अलावा अन्य राज्यों ने अपने प्रादेशिक भाषा को राजभाषा का दर्जा दिया है यथा – पंजाब की राजभाषा – पंजाबी , बंगाल की बंगला , कर्नाटक की कन्नड़ आदि प्रांतों में भी सरकारी कामकाज प्रांतीय भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेजी में ही हो रहा है I

Rashtrabhasha | राष्ट्रभाषा : अर्थ एवं परिभाषा

किसी भी देश के बहुसंख्यक लोगों के द्वारा बोली जाने वाली भाषा राष्ट्रभाषा कही जाती है I हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है I कोई भी भाषा अपने महत्व के कारण किसी राष्ट्र के विस्तृत भू-भाग द्वारा अपना ली जाती है तो वह भाषा स्वतः ही उस राष्ट्र की राष्ट्रभाषा बन जाती है I

हिंदी भारत में राजभाषा तो है परंतु साथ ही साथ राष्ट्र के बहुसंख्यक वर्ग की भाषा होने के कारण राष्ट्रभाषा भी है I राजभाषा जहां स्थानीय रूप से मान्यता प्राप्त भाषा को ही माना जाता है वहां राष्ट्रभाषा का देश के संविधान से कोई संबंध नहीं होता है I

Rajbhasha Aur Rashtrabhasha | राज भाषा और राष्ट्र भाषा में अंतर

Rajbhasha Aur Rashtrabhasha | राज भाषा और राष्ट्र भाषा में अंतर : इनमे अंतर निम्नप्रकार से है –

अंतर सूची – 1.

अंतर सूची – 2., राजभाषा हिंदी और संवैधानिक प्रावधान.

भारतीय संविधान सभा के सम्मुख महत्वपूर्ण प्रश्न यह था कि भारत की राजभाषा किस भाषा को बनाया जाए I पर्याप्त विचार-विमर्श के बाद 14 सितंबर 1949 को सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि भारत की राज भाषा हिंदी होगी I इसलिए 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाते हैंI

भारतीय संविधान के भाग 5 , भाग 6, भाग 17 में राजभाषा संबंधी उपबंध मिलते हैं I संविधान के भाग 17 में 4 अध्याय हैं I अनुच्छेद 343 से 351 के अंतर्गत समाहित है :

संविधान के भाग 17 के अध्याय 1 की धारा 343 (i ) के अनुसार “

संघ की राज भाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी , संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा”

अनुच्छेद 344 –

  • राष्ट्रपति द्वारा राज्य भाषा आयोग एवं समिति के गठन से संबंधित है I

अनुच्छेद 345, 346, 347

  • इसमें प्रादेशिक भाषाओं का प्रावधान है I

अनुच्छेद 348 –

  • इसमें उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायलयों, संसद और विधानमंडलों में प्रस्तुत विधायकों की भाषा के संबंध में विस्तार से प्रकाश डाला गया है I

अनुच्छेद 349 –

  • इसमें भाषा से सम्बंधित विधिया अधिनियमित करने प्रक्रिया का वर्णन है I

अनुच्छेद 350 –

  • इसमें आवेदन में प्रयुक्त भाषा शिकायते तथा प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा सुविधाएं देने और भाषाई अल्पसंख्यको के बारे में दिशानिर्देश का प्रावधान किया गया है I

अनुच्छेद 351-

  • हिंदी के प्रचार-प्रसार और विकास में सरकार के कर्तव्यों और दायित्वों का उल्लेख किया गया है I

ये भी अच्छे से जाने :

  • हिंदी साहित्य का इतिहास
  • प्लेटो का अनुकरण सिद्धांत
  • हिंदी साहित्य के नाटक
  • हिन्‍दी भाषा और उसका विकास

एक गुजारिश :

दोस्तों ! आशा करते है कि आपको “ Rajbhasha Aur Rashtrabhasha | राजभाषा और राष्ट्रभाषा “ के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I

नोट्स अच्छे लगे हो तो अपने दोस्तों को सोशल मीडिया पर शेयर करना न भूले I नोट्स पढ़ने और हमारी वेबसाइट पर बने रहने के लिए आपका धन्यवाद..!

Meera Muktavali Explanation मीरा मुक्तावली शब्दार्थ व्याख्या (91-95)

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मीरा मुक्तावली का शब्दार्थ सार Meera Muktavali (86-90)

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मीरा मुक्तावली का शब्दार्थ भाव Meera Muktavali (81-85)

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मीरा मुक्तावली शब्दार्थ व्याख्या Meera Muktavali (76-80)

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मीरा मुक्तावली के पद Meera Muktavali (71-75)

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मीरा मुक्तावली का सार Meera Muktavali (66-70)

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मीरा मुक्तावली का भाव Meera Muktavali (61-65)

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मीरा मुक्तावली का भावार्थ Meera Muktavali (56-60)

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मीरा मुक्तावली का अर्थ Meera Muktavali (51-55)

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मीरा मुक्तावली की व्याख्या Meera Muktavali (46-50)

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Rashtra Bhasha Hindi

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Book Source: Digital Library of India Item 2015.308295

dc.contributor.author: Suman dc.date.accessioned: 2015-08-10T13:06:50Z dc.date.available: 2015-08-10T13:06:50Z dc.date.copyright: 1948 dc.date.digitalpublicationdate: 2011/08 dc.date.citation: 1948 dc.identifier.barcode: 99999990314337 dc.identifier.origpath: /data14/upload/0005/167 dc.identifier.copyno: 1 dc.identifier.uri: http://www.new.dli.ernet.in/handle/2015/308295 dc.description.scanningcentre: Banasthali University dc.description.main: 1 dc.description.tagged: 0 dc.description.totalpages: 228 dc.format.mimetype: application/pdf dc.language.iso: Hindi dc.publisher.digitalrepublisher: Digital Library Of India dc.publisher: Delhi, Rajkamal Publications Ltd. dc.source.library: Shree Jubilee Naagari Bhandar Bikaner dc.title: Rashtra Bhasha Hindi dc.type: Print - Paper

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