सिनेमा या चलचित्र पर निबंध / Essay on Cinema in Hindi

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सिनेमा या चलचित्र पर निबंध / Essay on Cinema in Hindi!

सिनेमा आधुनिक युग में मनोरंजन का सबसे लोकप्रिय साधन बन गया है । सिनेमा की शुरूआत भारत में परतंत्रता काल में हुई । दादा साहेब फाल्के जैसे जुझारू लोगों ने निजी प्रयत्नों से सिनेमा को भारत में प्रतिष्ठित किया । फिर धीरे- धीरे लोगों का सिनेमा के प्रति आकर्षण बढ़ा । आज भारत का चलचित्र उद्‌योग विश्व सिनेमा से प्रतिस्पर्धा कर रहा है ।

सिनेमा विज्ञान की अद्‌भुत देन है । फिल्मों के निर्माण में अनेक प्रकार के वैज्ञानिक यंत्रों का प्रयोग होता है । शक्तिशाली कैमरे, स्टूडियो, कंप्यूटर, संगीत के उपकरणों आदि के मेल से फिल्मों का निर्माण होता है । इसे पूर्णता प्रदान करने में तकनीकी-विशेषज्ञों, साज-सज्जा और प्रकाश-व्यवस्था की बड़ी भूमिका होती है । फिल्म बनाने में हजारों लोगों का सहयोग लेना पड़ता है । यह जोखिम भी होता है कि लोग इसे पसंद करते हैं या नापसंद करते हैं । अत: सिनेमा क्षेत्र में एक व्यवसाय की सभी विशेषताएँ पायी जाती हैं ।

शुरूआत में मूक सिनेमा का प्रचलन था । अर्थात् सिनेमा मैं किसी प्रकार की आवाज नहीं होती थी । लोग केवल चलता-फिरता चित्र देख सकते थे । बाद में आवाज वाली फिल्में बनने लगीं । चित्र के साथ ध्वनि के मिश्रण से इस क्षेत्र में क्रांति आई । इससे फिल्मों में गीत-संगीत का दौर आरंभ हुआ । लोगों का भरपूर मनोरंजन होने लगा । नौटंकी, थियेटर आदि मनोरंजन के परंपरागत साधन पीछे छूटने लगे । सिनेमाघरों का फैलाव महानगरों से लेकर छोटे-बड़े शहरों तक हो गया । बाद में श्वेत-श्याम फिल्मों की जगह जब रंगीन फिल्में बनने लगीं तो सिनेमा-उद्‌योग ने नई ऊँचाइयों को छूआ ।

सिनेमा का विश्व- भर में प्रसार हुआ है । दुनिया की लगभग सभी भाषाओं में फिल्में बन रही हैं । भारत में भी सभी प्रमुख भाषाओं में फिल्में बनती हैं । इनमें भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी में बनी फिल्मों का सबसे अधिक बोलबाला है । भारत की व्यवसायिक राजधानी मुंबई इसका केन्द्र है । इसीलिए यह मायानगरी के नाम से प्रसिद्ध है ।

ADVERTISEMENTS:

सिनेमा आम लोगों में बहुत लोकप्रिय है । लोग सिनेमाघर या टेलीविजन पर बहुत सारी फिल्में देखते हैं । युवा वर्ग हर नई फिल्म को देखना चाहता है । लोग फिल्मों के गाने भी पसंद करते हैं । पुरानी फिल्मों के गाने तो लोगों की जुबान पर होते हैं । नए गाने युवाओं को बहुत भाते हैं । विवाह, जन्मदिन और किसी विशेष अवसर पर लोग रेडियो और टेलीविजन पर फिल्मों के गाने सुनते हैं । टेलीविजन पर फिल्मों तथा फिल्म आधारित कार्यक्रमों का प्रसारण होता ही रहता है ।

सिनेमा को समाज का दर्पण माना जाता है । ममाज में जो कुछ अच्छी-बुरी घटनाएँ घटती हैं उनकी झलक फिल्मों में देखी जा सकती है । साथ ही साथ इनमें कल्पनागत बहुत सी ऐसी बातें दिखाई जाती हैं जिससे दर्शकों में भ्रम पैदा होता है । हिंसा और अश्लीलता की भी सिनेमा में प्रचुरता होती है । चूँकि युवा वर्ग नए फैशन की नकल करता है इसलिए उस पर सिनेमा का अत्यधिक प्रभाव पडता है । जहाँ लोग सिनेमा से अच्छी बातें सीखते हैं वहीं दूसरी ओर इसके बुरे प्रभाव से भी अछूते नहीं रहते ।

सिनेमा का निर्माण एक कला है । यह एक महँगी कला है । एक फिल्म के निर्माण में ही करोड़ों रुपये व्यय किए जाते हैं । फिल्म की कहानी तैयार की जाती है फिर इसमें काम करने वाले लोगों का चुनाव किया जाता है । फिल्म की कमान निर्देशक के हाथ में होती है । साथ ही आभीनेता, अभिनेत्री, सह- अभिनेता और अन्य कलाकार अपने-अपने अभिनय से फिल्म में जान डालने का कार्य करते हैं । गीत-संगीत देने वालों का भी प्रमुख स्थान होता है । अच्छी पटकथा तथा अच्छे निर्देशन से फिल्म सफल हो जाती है । फिल्म सफल होने पर निर्माता को अच्छी कमाई होती है ।

फिल्मों की लोकप्रियता के साथ-साथ फिल्मी कलाकारों की भी समाज में बहुत प्रतिष्ठा है । लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी, किशोर कुमार, मुकेश, मन्ना डे, आशा भोंसले जैसे गायक-गायिकाओं को उनके सुमधुर गीतों के कारण याद किया जाता है । दिलीप कुमार, अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना, वहीदा रहमान, हेमा मालिनी जैसे कलाकारों से जनता लगाव महसूस करती है ।

इस तरह सिनेमा वर्तमान समय में मनोरंजन का सबसे बड़ा साधन बना हुआ है । सिनेमा उद्‌योग निरंतर फल-फूल रहा है । आनेवाले समय में इसके विकास की ढेरों संभावनाएँ हैं ।

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जीवन में सिनेमा के प्रभाव पर निबंध (Impact of Cinema in Life Essay in Hindi)

हम सभी को फिल्में देखना काफी पसंद होता है और हम में से कई लोग तो नई फिल्म की रिलीज के लिए पागल रहते हैं। यह मनोरंजन का सबसे बेहतर स्रोत है और हम अपने सप्ताहांत पर फिल्में देखना पसंद करते हैं। किसी तरह यह हमारे जीवन के साथ-साथ समाज को भी कई मायनों में प्रभावित करता है। हमारे जीवन में सिनेमा के प्रभाव को जानने के लिए हम आपके लिए कुछ निबंध लेकर आये हैं।

जीवन में सिनेमा के प्रभाव पर लघु और दीर्घ निबंध (Short and Long Essays on Impact of Cinema in Life in Hindi, Jivan mein Cinema ke Prabhav par Nibandh Hindi mein)

निबंध 1 (250 शब्द) – जीवन में सिनेमा का प्रभाव.

सिनेमा केवल मनोरंजन का सबसे अच्छा साधन ही नहीं है बल्कि ये हमें सिखाता भी हैं और हम इससे बहुत कुछ सीखते हैं। या तो यह एक अच्छी आदत हो या बुरी क्योंकि ये सब कुछ दिखाते हैं और यह हमारे ऊपर है कि हम किस तरह की आदत का चुनाव करते हैं। मैं कह सकता हूं कि इसने वास्तव में हमें प्रभावित किया है और इसका प्रभाव हमारे समाज के साथ-साथ हम पर भी आसानी से देखा जा सकता है। हम सभी को फिल्में देखना बहुत पसंद है और वास्तव में सिनेमाघरों के बिना जीवन की कल्पना कुछ अधूरी सी लगती है।

सिनेमा का प्रभाव

यह कहना गलत नहीं होगा कि हमने काफी कुछ विकास किया है और हमारे विकास का विश्लेषण करने का सबसे अच्छा तरीका सिनेमा है। आप 90 के दशक की फिल्म देख सकते हैं और फिर नवीनतम रिलीज़ हुई फिल्मों को देखिये अंतर आपके सामने होगा।

  • छात्रों पर सिनेमा का प्रभाव

छात्र चीजों को जल्दी सीखते हैं और जब भी कोई चरित्र लोकप्रिय होता है; इसके संवाद और नाम छात्रों के बीच स्वतः ही लोकप्रिय हो जाते हैं। कुछ फिल्में कल्पना के बारे में हैं और एक लेखक एक कहानी लिखता है और एक निर्देशक फिल्म के रूप में कहानी को समाज के बीच रखता है। कभी-कभी वे विज्ञान कथाओं पर फिल्में भी बनाते हैं और इससे छात्रों को अपनी कल्पना शक्ति बढ़ाने और कुछ नया बनाने में मदद मिलती है। मैं यह कह सकता हूं कि छात्र इन फिल्मों से काफी ज्यादा प्रभावित होते है, वे सिनेमा से सभी अच्छी और बुरी आदतों की तरफ झुकते हैं।

  • सामान्य लोगों पर सिनेमा का प्रभाव

वे एक फिल्म में विभिन्न प्रकार के सामाजिक मुद्दे दिखाते हैं और यह लोगों को सीधे प्रभावित करता है। यह उन्हें सोचने और कुछ करने में मदद करता है। बहुत अच्छे उदाहरणों में से एक हमारी पुलिस है, इतिहास की पुलिस में अतीत में रिश्वत लेने या डॉन की तरह व्यवहार करने की बहुत खराब छवि थी। लेकिन फिल्मों को धन्यवाद जिसने इस छवि को बदला है और अब लोग जानते हैं कि हर पुलिस अधिकारी एक जैसा नहीं होता है। कुछ लोगों के वजह से, पूरी व्यवस्था ख़राब हो गई थी।

यह दर्शाता है कि फिल्में हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। लोग आसानी से इससे प्रभावित होते हैं और फिल्मों के साथ हेरफेर करते हैं। यही कारण है कि कुछ फिल्मों पर प्रतिबंध लग जाता है और उनमें से कुछ का जोरदार विरोध होता है। कुल मिलाकर, मैं यह कह सकता हूं कि वे अच्छी हैं और व्यक्ति को वास्तव में उनसे सीखना चाहिए।

निबंध 2 (300 शब्द) – सिनेमा के कुछ सकारात्मक और नकारात्मक पहलू

मुझे फिल्में देखना बहुत पसंद है और कभी-कभी एक रोमांचक कहानी गुदगुदा देती है जबकि कभी-कभी यह मुझे रुला भी देती है। कहानी के आधार पर, निर्देशक इसे वास्तविक बनाते हैं और इसे सिनेमा या फिल्म कहा जाता है। फिल्में विभिन्न प्रकार की होती हैं कुछ कार्टून फिल्में होती हैं जबकि कुछ वास्तविक कहानी पर आधारित होती हैं, हम कुछ कहानियों को अपने रोजमर्रा के जीवन से भी जोड़ सकते हैं।

सिनेमा के सकारात्मक पहलू

कई फिल्में या कहानियां प्रेरणादायक होती हैं और वे हमें कई तरह से प्रभावित करती हैं। हम उससे बहुत कुछ सीखते हैं; वास्तव में आप कह सकते हैं कि फिल्में समाज का दर्पण होती हैं। कभी-कभी कहानियाँ हमें प्रेरित करती हैं जबकि कभी-कभी यह खुशी से भरी होती है।

  • हम फिल्मों से नए विचारों को सीखते हैं क्योंकि वे कुछ आभासी तकनीक को दिखाते हैं जो हमें उन्हें बनाने और नए विचार देने के लिए प्रेरित करती हैं।
  • हम नवीनतम चलन को भी जानते हैं, या तो यह फैशन है या कुछ और है, सस्बे पहले यह फिल्मों में देखा जाता है और फिर यह वायरल हो जाता है।
  • कुछ फिल्में हमें बहुत प्रेरित करती हैं और कभी-कभी यह हमारे जीवन को भी बदल देती है और हमें नई आशा से भर देती है।
  • कुछ फिल्में हमारे समाज में वर्जनाओं पर एक व्यंग्य के रूप में बनती हैं जो हमें अपनी मानसिकता बदलने और समाज में बदलाव लाने में मदद करती हैं।
  • फिल्मों को स्ट्रेस बस्टर यानी तनाव को ख़त्म करने के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि हम खुद को भूल जाते हैं और दूसरी कहानी में जीते हैं, जो कभी हमें हंसाती भी है और कभी हमें रुलाती भी है।

सिनेमा के नकारात्मक पहलू

इसमें कोई संदेह नहीं है कि फिल्में कई मायनों में अच्छी हैं फिर भी कुछ कारक ऐसे हैं जो हमें और हमारे समाज को सीधे प्रभावित करते हैं, उनमें से कुछ का उल्लेख मैंने यहाँ नीचे किया है;

  • कुछ लोगों को फिल्मों की लत लग जाती है और यह अच्छी बात नहीं है क्योंकि सब कुछ एक सीमा में होना चाहिए। किसी भी चीज की अधिकता स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
  • वे फिल्म में सब कुछ दिखाते हैं जैसे नशा, शराब, आदि; कभी-कभी युवाओं और छात्रों को इन चीजों से खतरा होता है और यह उनके जीवन को बुरी तरह प्रभावित करता है।
  • फिल्में विभिन्न श्रेणियों की होती हैं और कुछ वयस्क फिल्में बच्चों को बुरी तरह प्रभावित करती हैं। इसलिए, बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए माता-पिता को हमेशा उनपर नज़र रखनी चाहिए।

आजकल सिनेमा केवल मनोरंजन का एक माध्यम नहीं है, बल्कि वे हमारे समाज को शिक्षित करता है और परिवर्तन भी लाता हैं। ऐसी हजारों फिल्में हैं जिन्होंने लोगों की मदद की है और उनमें नई उम्मीद भी जगाई है। वास्तव में हमारी फिल्म इंडस्ट्री बहुत अच्छा काम कर रही है और हमें उनका सम्मान करना चाहिए।

Essay on Impact of Cinema in Life

निबंध 3 (600 शब्द) – सिनेमा क्या है और यह हमें कैसे प्रभावित कर रहा है?

हमारे जीवन में मनोरंजन के विभिन्न माध्यम हैं, कभी हम एक किताब पढ़ना पसंद करते हैं जबकि कभी हम एक फिल्म देखते हैं। फिल्में हममें से अधिकांश लोगों के लिए सबसे अच्छे और कभी न खत्म होने वाले मज़े में से एक हैं। फिल्म देखते हुए हमें अपना समय बिताना पसंद होता है।

फिल्में क्या हैं और यह अस्तित्व में कैसे आई ?

फिल्में एक छोटी कहानियां होती हैं जहाँ कुछ लोग साथ साथ काम करते हैं। कभी-कभी वे कुछ सच्ची कहानियों पर आधारित होते हैं जबकि कभी वे सिर्फ कल्पना मात्र पर आधारित होते हैं।

वर्ष 1888 में बनी पहली चलित फिल्म राउंड गार्डन सीन थी और वर्ष 1913 में बनी भारतीय फिल्म राजा हरिश्चंद्र थी। हम उस युग की फिल्मों में अपने समाज के प्रभाव को आसानी से देख सकते हैं।

फिल्मों को समाज का दर्पण कहा जा सकता है और वे दिखाते हैं कि समाज में क्या चल रहा है। कुछ फिल्में कुछ बुरी संस्कृतियों पर व्यंग्य करती हैं या हमारे समाज में जो कुछ भी गलत हो रहा है; जबकि कुछ फिल्में बस हमें मनोरंजन करने के लिए निर्देशित की जाती हैं।

फिल्में हमारे समाज को कैसे प्रभावित करती हैं

फिल्में हमारे समाज के निर्माण में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं; ऐसी कई फिल्में हैं जो समाज में चल रही घटनाओं को दर्शाती हैं जैसे जाति व्यवस्था, दहेज प्रथा, बालिकाओं की हत्या, आदि। कई फिल्में समाज को सिखाने के लिए बनाई गई थीं और वास्तव में, उन्होंने बदलाव लाने में बहुत मदद की।

जब लोग देखते हैं, महसूस करते हैं और समझते हैं, तो यह स्वचालित रूप से उनके अन्दर बदलाव लाने में मदद करता है। आज लड़कियों की साक्षरता दर, बालिकाओं की हत्या, आदि के अनुपात में भारी बदलाव आया है, फिल्मों ने समाज से इन वर्जनाओं को खत्म करने में बेहद प्रमुख भूमिका निभाई है।

फिल्में हमारे युवाओं को कैसे प्रभावित करती हैं

फिल्मों ने हमारी मानसिकता को बदलने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हम कह सकते हैं हमारे युवा तेजी से पश्चिमी संस्कृति, पोशाक को अपना रहे हैं। आजकल फिल्में अन्य संस्कृतियों को जानने का मुख्य स्रोत हैं। हॉलीवुड फिल्में भारत में बहुत प्रसिद्ध हैं और हम भी उनकी तरह बनना चाहते हैं।

इसलिए, मैं कह सकता हूं कि हमारे युवा तेजी से एक और परंपरा को स्वीकार कर रहे हैं और कहीं न कहीं यह अच्छी बात नहीं है। सब कुछ एक सीमा में होना चाहिए; अपनी जड़ों और परंपराओं को नहीं भूलना चाहिए। हमारे युवाओं को अपनी संस्कृति के महत्व को समझना चाहिए।

नई चीजें सीखना अच्छा है लेकिन अपनी संस्कृति के बारे में भी सोचना चाहिए। हमारे युवा पश्चिम की ओर तेजी से उन्मुख हो रहे है और फिल्मों ने हमारी संस्कृति को बुरी तरह प्रभावित किया है। उदाहरण के लिए, अगर घर से बाहर जूते खोलने की परंपरा है तो इसका मतलब है कि इसके पीछे के विज्ञान को समझना चाहिए। असल में, हमारे जूते बहुत सारे बैक्टीरिया को अपने साथ अंदर ले जाते हैं इसलिए उन्हें बाहर उतरना एक बेहतर विकल्प होता है।

फिल्में हमारे जीवन को कैसे प्रभावित करती हैं

यह मानव स्वभाव है कि हम एक सख्त नियम का पालन नहीं करना चाहते हैं; किसी विशेष कार्य को करने का हम एक आसान तरीका ढूंढने की पूरी कोशिश करते हैं। नतीजतन, हम अपने कुछ संस्कारों को छोड़ते जा रहे हैं।

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने हमारे समाज को विकसित करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है या तो यह विकास सामाजिक रूप से हो या फिर व्यक्तिगत। हमने इन माध्यमों की वजह से दिन-प्रतिदिन नई चीजें सीखते हुए बहुत कुछ बदल दिया है। इन माध्यमों ने फिल्मों तक पहुँच आसान कर दी है जिसके परिणामस्वरूप कोई भी कहीं से भी फिल्म देख सकता है।

हमने तकनीक विकसित की है, और हम स्मार्ट और परिष्कृत भी दिखना चाहते हैं। नया हेयर स्टाइल या बालों का नया रंग एक दिन में मशहूर हो जाता है और लोग इसी तरह की चीजें खरीदने के लिए दुकानों की ओर दौड़ पड़ते हैं। मैं कह सकता हूं कि ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया था। यह हमारे जीवन में सिनेमा का प्रभाव है।

बदलाव करना काफी अच्छा है लेकिन अपनी परंपरा और संस्कृति को नहीं भूलना चाहिए। हमारी बढ़ते कदम को भी हमारी परंपरा को बढ़ावा देना चाहिए। फिल्मों में सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव दोनों होते हैं और हमें अपने बच्चों को अच्छी आदतें सिखानी चाहिए।

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हिन्दी सिनेमा का समाज पर प्रभाव पर निबंध | Impact Of Cinema On Society Essay In Hindi

आज का निबंध हिन्दी सिनेमा का समाज पर प्रभाव Impact Of Cinema On Society Essay In Hindi पर दिया गया हैं. भारतीय समाज और जीवन (Life) पर फ़िल्मी दुनिया ने आइडियल की तरह रोल अदा किया हैं.

फैशन से लेकर लोगों की जीवन शैली भी सिनेमा से प्रभावित हुई हैं इसके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलू हैं समाज पर सिनेमा के प्रभाव को इस निबंध में जानेगे.

सिनेमा का समाज पर प्रभाव पर निबंध Impact Of Cinema On Society Essay In Hindi

सिनेमा का समाज पर प्रभाव पर निबंध Impact Of Cinema On Society Essay In Hindi

सिनेमा जनसंचार एवं मनोरंजन का एक लोकप्रिय माध्यम हैं. जिस तरह साहित्य समाज का दर्पण होता है, उसी तरह सिनेमा भी समाज को प्रतिबिम्बित करता हैं.

भारतीय युवाओं में प्रेम के प्रति आकर्षण उत्पन्न करने की बात हो या सिनेमा के कलाकारों के पहनावे के अनुरूप फैशन का प्रचलन, ये सभी सिनेमा के समाज पर प्रभाव ही हैं.

सिनेमा का अर्थ चलचित्र का आविष्कार उन्नीसवी शताब्दी के उतराध में हुआ. चित्रों को संयोजित कर उन्हें दिखाने को ही चलचित्र कहते हैं.

इसके लिए प्रयास तो 1870 के आस पास शुरू हो गया था किन्तु इस स्वप्न को साकार करने में विश्व विख्यात वैज्ञानिक एडिसन एवं फ़्रांस के ल्युमिर बन्धुओं का प्रमुख योगदान था.

ल्युमिर बन्धुओं ने 1895 में एडिसन के सिनेमैटोग्राफी यंत्र पर आधारित एक यंत्र की सहायता से चित्रों को चलते हुए प्रदर्शित करने में सफलता पाई. इस तरह सिनेमा का आविष्कार हुआ.

अपने आविष्कार के बाद लगभग तीन दशकों तक सिनेमा मूक बना रहा. सन 1927 ई में वार्नर ब्रदर्स ने आंशिक रूप से सवाक् फिल्म जाज सिंगर बनाने में सफलता अर्जित की. इसके बाद 1928 में पहली पूर्ण सवाक् फिल्म लाइट्स ऑफ न्यूयार्क का निर्माण हुआ.

सिनेमा के आविष्कार के बाद से इसमें कई परिवर्तन होते रहे और इसमें नवीन तकनीकों का प्रयोग होता रहा. अब फिल्म निर्माण तकनीक अत्यधिक विकसित हो चुकी हैं. इसलिए आधुनिक समय में निर्मित सिनेमा के द्रश्य और ध्वनि बिलकुल स्पष्ट होते हैं.

सिनेमा की शुरुआत से ही इसका समाज के साथ गहरा सम्बन्ध रहा हैं. प्रारम्भ में इसका उद्देश्य मात्र लोगों का मनोरंजन करना था. अभी भी अधिकतर फ़िल्में इसी उद्देश्य को लेकर बनाई जाती हैं.

लेकिन मूल उद्देश्य मनोरंजन होने के बावजूद सिनेमा का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता हैं. कुछ लोगों का मानना है कि सिनेमा का समाज पर बुरा प्रभाव पड़ता है एवं इसके कारण अपसंस्कृति को बढ़ावा मिलता हैं.

समाज में फिल्मो के प्रभाव से फैली अश्लीलता एवं फैशन के नाम पर नंगेपन को इसके उदहारण के रूप में प्रस्तुत किया जाता हैं.

किन्तु सिनेमा के बारे में यह कहना कि यह केवल बुराई फैलाता है, सिनेमा के साथ अन्याय करने जैसा ही होगा. सिनेमा का प्रभाव समाज पर कैसा पड़ता हैं.

यह समाज की मानसिकता पर निर्भर करता हैं, सिनेमा में प्रायः अच्छे एवं बुरे दोनों पहलुओं को दर्शाया जाता हैं. समाज यदि बुरे पहलुओं को आत्मसात करे, तो इसमें भला सिनेमा का क्या दोष हैं.

द्वितीय विश्वयुद्ध के समय ऐसी फिल्मो का निर्माण हुआ, जो युद्ध की त्रासदी को प्रदर्शित करने में सक्षम थी. ऐसी फिल्मों से समाज को एक सार्थक संदेश मिलता हैं. सामाजिक बुराइयों को दूर करने में सिनेमा सक्षम हैं.

दहेज प्रथा और इस जैसी अन्य सामाजिक समस्याओं का फिल्मों में चित्रण कर कई बार परम्परागत बुराइयों का विरोध किया गया हैं. समसामयिक विषयों को लेकर भी सिनेमा निर्माण सामान्यतया होता रहा हैं.

भारत की पहली फिल्म राजा हरिश्चन्द्र थी, प्रारम्भिक दौर में पौराणिक एवं रोमांटिक फिल्मों का बोलबाला रहा, किन्तु समय के साथ ऐसे सिनेमा भी बनाए गये जो साहित्य पर आधारित थे एवं जिन्होंने समाज पर व्यापक प्रभाव डाला.

उन्नीसवीं सदी के साठ सत्तर एवं उसके बाद के कुछ दशकों में अनेक ऐसे भारतीय फिल्मकार हुए जिन्होंने सार्थक एवं समाजोपयोगी फिल्मों का निर्माण किया.

सत्यजीत राय (पाथेर पाचाली, चारुलता, शतरंज के खिलाड़ी) ऋत्विक घटक (मेघा ढाके तारा), मृगाल सेन (ओकी उरी कथा), अडूर गोपाल कृष्णन (स्वयंवरम), श्याम बेनेगल (अंकुर, निशांत, सूरज का सांतवा घोड़ा), बासु भट्टाचार्य (तीसरी कसम), गुरुदत्त (प्यासा, कागज के फूल, साहब, बीबी और गुलाम), विमल राय (दो बीघा जमीन, बन्दिनी, मधुमती) भारत के कुछ ऐसे ही फिल्मकार थे.

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भारतीय सिनेमा पर निबंध | essay on indian cinema in hindi | सिनेमा पर निबंध हिंदी में

समय समय पर हमें छोटी कक्षाओं में या बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं में निबंध लिखने को दिए जाते हैं। निबंध हमारे जीवन के विचारों एवं क्रियाकलापों से जुड़े होते है। आज hindiamrit.com   आपको निबंध की श्रृंखला में  भारतीय सिनेमा पर निबंध | essay on indian cinema in hindi | सिनेमा पर निबंध हिंदी में प्रस्तुत करता है।

इस निबंध के अन्य शीर्षक / नाम

(1) चलचित्र का समाज पर प्रभाव पर निबंध (2) सिनेमा : वरदान और अभिशाप पर निबंध (3) चलचित्र : लाभ-हानि पर निबंध (4) चलचित्र और युवा पीढ़ी पर निबंध

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पहले जान लेते है भारतीय सिनेमा पर निबंध | essay on indian cinema in hindi | सिनेमा पर निबंध हिंदी में की रूपरेखा ।

निबंध की रूपरेखा

(1) प्रस्तावना (2) सिनेमा एक  मनोरंजन का साधन (3) सिनेमा के सामाजिक लाभ (4) सिनेमा की  सामाजिक आलोचना (5) सिनेमा के दुष्प्रभाव (6) सिनेमा से अन्य हानियाँ (7) उपसंहार

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चलचित्र का विचित्र आविष्यकार आधुनिक समाज के दैनिक उपयोग, विलास और उपभोग की वस्तु है।

हमारे सामाजिक जीवन में चलचित्र ने इतना महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया है कि उसके बिना सामाजिक जीवन कुछ अधूरा-सा मालूम पड़ता है।

सिनेमा देखना जनता के जीवन की भोजन और पानी की तरह दैनिक क्रिया हो गयी है। प्रतिदिन शाम को चित्रपट गृहों के सामने एकत्रित जनसमुदाय, नर-नारियों को समवाय देख कर चित्रपट की जनप्रियता तथा उपयोगिता का अनुमान लगाया जा सकता है।

मनोरंजन सिनेमा का मुख्य प्रयोजन है, परन्तु मनोरंजन के अतिरिक्त भी जीवन में इसका बहुत महत्त्व है। इसके अनेक लाभ हैं।

“आविष्कारों की धरती पर, मानव ने नव गौरव पाया। सजग, सवाक, रंगीली झाँकी,चलचित्रों की अद्भुत छाया॥ आलोचक, निर्देशक भी औ,पथदर्शक चहुँदिशि यश फैला। किन्तु पतन की अनल-लपट,औ नव-समाज के लिए विषैला।।”

सिनेमा एक मनोरंजन का साधन 

आधुनिक काल में मानव जीवन बहुत व्यस्त हो गया है। उसकी आवश्यकताएँ बहुत बढ़ गयी हैं। व्यस्तता के इस युग में मनुष्य के पास मनोरंजन का समय नहीं है।

यह सभी जानते हैं कि मनुष्य भोजन के बिना चाहे कुछ समय तक स्वस्थ रह जाये किन्तु मनोरंजन के बिना यह स्वस्थ नहीं रह सकता है।

चित्रपट मनुष्य की इस महती आवश्यकता की पूर्ति करता है। यह मानव जीवन की उदासीनता और खिन्नता को दूर कर ताजगी और नवजीवन प्रदान करता है।

दिनभर कार्य में व्यस्त, थके को सिनेमा हाल में बैठकर आनन्दमग्न हो जाते हैं और दिनभर की थकान को भूल जाते हैं। चित्रपट पर हम सिनेमा हाल में बैठे दिल्ली के जुलूस, हिमालय के हिमाच्छादित शिखर, समुद्र के अतल-गर्भ के दृश्य तथा हिंसक वन्य जन्तु आदि वे चीजें देख सकते हैं जिनको देखने की हम कल्पना भी नहीं कर सकते। इससे मनोरंजन तो होता ही है, हमारे ज्ञान में भी पर्याप्त वृद्धि होती है।

सिनेमा (चित्रपट) के सामाजिक लाभ

मनोरंजन के अतिरिक्त सिनेमा से समाज को और भी अनेक लाभ होते हैं। यह शिक्षा का अत्युत्तम साधन है। यह निम्न श्रेणी के लोगों का स्तर ऊँचा उठाता है और उच्च श्रेणी के लोगों को उचित स्तर पर लाकर विषमता की भावना को दूर करता है।

यह कल्पना को वास्तविकता का रूप देकर समाज को उन्नत करने का प्रयास करता है। इतिहास भूगोल विज्ञान तथा मनोविज्ञान आदि की शिक्षा का यह उत्तम साधन है ।

ऐतिहासिक-घटनाओं को पर्दे पर सजीव देखकर जैसे सरलता से थोड़े समय में जो ज्ञान हो सकता है वह ज्ञान पुस्तकों के पढ़ने से नहीं हो सकता।

भिन्न-भिन्न प्रदेशों के दृश्य सिनेमा पर साक्षात् देखकर बहाँ की प्राकृतिक रचना, जनता का रहन-सहन तथा उद्योगों आदि का जैसा ज्ञान हो सकता है वह भूगोल की पुस्तक पढ़ने से कदापि सम्भव नहीं है।

इसी प्रकार अन्य विषयों की शिक्षा भी सिनेमा द्वारा सरलता से दी जा सकती है।

सिनेमा के पर्दे पर भिन्न-भिन्न स्थानों, भिन्न-भिन्न जातियों तथा विविध विचारों की जनता के रहन-सहन, रीति-रिवाज आदि को देखकर हमारा ज्ञान बढ़ता है, सहानुभूति की भावना विस्तृत होती है तथा हमारा दृष्टिकोण विकसित होता है।

इस प्रकार चित्रपट मनुष्यों को एक-दूसरे के निकट लाता है। इतना ही नहीं, जागृति के समान शिक्षाप्रद चित्रों से एक उच्च शिक्षा प्राप्त होती है।

अमर ज्योति,सन्त तुलसीदास, सन्त तुकाराम आदि कुछ ऐसे चित्र हैं जो समाज को पतन से उत्थान की ओर ले जाते हैं।

सिनेमा की सामाजिक-आलोचना | सिनेमा से सामाजिक हानियां

सिनेमा सामाजिक आलोचक के रूप में भी सेवा करता है। जब यह उत्तम तथा निकृष्ट घटनाओं अथवा व्यक्तियों के चरित्रों की तुलना करता है तब यह निश्चित ही जनता में उच्चता की भावना जाग्रत करता है।

सामाजिक कुप्रभावों तथा दोषों की जड़ उखाड़ने में चित्रपट महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है। यह समाज की कुप्रथाओं को पर्दे पर प्रस्तुत करता है और जनता के हृदय में उनके प्रति घृणा का भाव पैदा करता है।

हम चित्रपट पर दहेज, बाल-विवाह, पद्दा प्रथा तथा मद्यपान से होने वाले दुष्परिणामों को देखते हैं तो हमारे मन में उनके प्रति घृपा की भावना पैदा हो जाती है।

हम उन प्रथाओं को समूल नष्ट करने की शपथ लेने को तैयार हो जाते हैं। इस प्रकार चित्रपट समाज की आलोचना करता है और एक हुए नर-नारी समाज सुधारक का काम भी करता है।

सिनेमा (चित्रपट) के दुष्परिणाम

प्रत्येक वस्तु गुणों के साथ-साथ दोष भी रखती है। सिनेमा में जहाँ अनेक गुण तथा लाभ देखने को मिलते हैं वहाँ उससे हानियाँ भी कम नहीं होती हैं।

आजकल जितने भी चित्र तैयार हो रहे हैं वे अधिकतर प्रेम और वासनामय हैं। इनमें वासनात्मक प्रेम एवं यौन सम्बन्धों का अश्लील चित्रण होता है जिनका देश के युवकों तथा युवतियों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।

कालेज की लड़कियाँ तथा लड़के सिनेमा के भददे अश्लील गाने गाते हुए सड़को पर दिखाई पड़ते हैं।

इन गानों के दुष्प्रभाव से युवक समाज का मानसिक तथा आत्मिक पतन होता है। वे गन्धर्व विवाह जैसे कार्य करने को तत्पर होने लगते है।

सिनेमा से अन्य हानियाँ

इसके अतिरिक्त सिनेमा से और भी हानियाँ हो सकती हैं। जब यह व्यसन के रूप में देखा जाता है – धन, समय तथा शक्ति का अपव्यय होता है।

जनता के मास्तिष्क में विषैली भावना पैदा करने तथा गुमराह करने में भी सिनेमा का दुरुपयोग किया जा सकता है ।

हिटलर ने सिनेमा की इसी शक्ति का प्रयोग कर जर्मनों की जनता को भड़काया था ।

हमे इस बात का स्मरण रखना चाहिए कि कोई भी वस्तु स्वय न अच्छी होती है, न बुरी। वस्तु का अच्छा या बुरा होना उसके उपयोग पर निर्भर करता है ।

यदि चित्रपट का विचारपूर्वक सही प्रयोग किया जाये तो मानव जाति के लिए यह बहुत लाभदायक हो सकता है तथा इसके सब दोषों से बचा जा सकता है।

सेन्सर बोर्ड को चाहिए कि वह अच्छे, शिक्षाप्रद तथा आदर्श चित्र प्रस्तुत करने का प्रयत्न करे।

चित्रों में किसी महापुरुष को नायक होना चाहिए क्योंकि बच्चे स्वभाव से ही नायक का अनुसरण किया करते हैं। भद्दे, अश्लील तथा बुरा प्रभाव डालने वाले चित्रों पर कानूनी रोक लगायी जानी चाहिए।

इस प्रकार सिनेमा समाज के लिए तथा देश के लिए एक हितकारी और लाभदायक साधन हो सकता है।

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सिनेमा के प्रभाव पर निबंध

cinema essay in hindi

By विकास सिंह

Essay on Impact of Cinema in Life in hindi

सिनेमा दुनिया भर में मनोरंजन का एक बेहद लोकप्रिय स्रोत है। प्रत्येक वर्ष कई फिल्में बनाई जाती हैं और लोग बड़ी संख्या में इन्हें देखते हैं। सिनेमा हमारे जीवन को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह से प्रभावित करता है।

इस दुनिया में हर चीज की तरह ही सिनेमा का भी सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है। जबकि कुछ फिल्में अच्छे लोगों के लिए हमारी सोच को बदल सकती हैं, एक भावना या दर्द या भय को आमंत्रित कर सकती हैं।

सिनेमा के प्रभाव पर निबंध, Essay on Impact of Cinema in Life in hindi (200 शब्द)

मानव अस्तित्व की शुरुआत के बाद से, मनुष्य मनोरंजन के लिए विभिन्न तरीकों की खोज कर रहा है। वह किसी ऐसी चीज की तलाश में है जो दिनभर के थका देने वाले शेड्यूल से थोड़ा ब्रेक देती है। सिनेमा एक सदी के आसपास से मनोरंजन के एक शानदार तरीके के रूप में आगे आया है। इसकी स्थापना के बाद से यह सबसे अधिक पसंद किए जाने वाले अतीत में से एक रहा है।

शुरुआत में सिनेमाघरों में सिनेमाघर तक पहुंचने का एकमात्र रास्ता था, लेकिन टेलीविजन और केबल टीवी की लोकप्रियता के साथ, फिल्में देखना आसान हो गया। इंटरनेट और मोबाइल फोन के आगमन के साथ, अब हम अपने मोबाइल स्क्रीन पर सिनेमा तक पहुँच प्राप्त कर सकते हैं और उन्हें कहीं भी और कभी भी देख सकते हैं।

आज हर कोई कमोबेश सिनेमा से जुड़ा हुआ है। जब हम फिल्मों में दिखाई गई कुछ घटनाओं को देखते हैं, जो हम स्वाभाविक रूप से संबंधित कर सकते हैं तो उन्हें हमारे मन-मस्तिष्क और विचार प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। हम फिल्मों के कुछ पात्रों और परिदृश्यों को भी आदर्श बनाते हैं। हम चाहते हैं कि हमारा व्यक्तित्व और जीवन वैसा ही हो जैसा कि हम फिल्म के चरित्र के जीवन को आदर्श बनाते हैं। कुछ लोग इन चरित्रों से इतने घुलमिल जाते हैं कि वे उनके जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन जाते हैं।

इस प्रकार, हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि सिनेमा का लोगों और समाज के जीवन पर बहुत प्रभाव है। यह ठीक ही कहा गया है कि हम जिस तरह की फिल्में देखते हैं, गाने सुनते हैं और जो किताबें हम पढ़ते हैं, उसी तरह के हम बन जाते हैं।

सिनेमा के प्रभाव पर निबंध, 300 शब्द :

प्रस्तावना :.

फिल्मों की दीक्षा के बाद से सिनेमा की दुनिया की खोज युवा पीढ़ी के लिए एक सनक रही है। वे इसे एक जुनून की तरह पालन करते हैं और इस तरह युवा पीढ़ी ज्यादातर किशोर सिनेमा से प्रभावित होते हैं। यह मुख्य रूप से है क्योंकि यह एक ऐसी उम्र है जिसमें वे दर्जनों धारणाओं और कई बार अनुचित आशावाद के साथ वास्तविक दुनिया में कदम रखने वाले हैं और फिल्में उनके लिए खानपान में प्रमुख भूमिका निभाती हैं।

छात्रों पर सिनेमा के सकारात्मक प्रभाव :

सभी प्रकार की फिल्में विभिन्न प्रकार के दर्शकों की रुचि को पूरा करने के लिए बनाई जाती हैं। ऐसी फिल्में हैं जिनमें शिक्षाप्रद सामग्री शामिल है। ऐसी फिल्में देखने से छात्रों का ज्ञान बढ़ता है और उन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। छात्रों को अपनी पढ़ाई, पाठ्येतर गतिविधियों और प्रतियोगिताओं के बीच बाजी मारने की जरूरत है। इस तरह की पागल भीड़ और बढ़ती प्रतिस्पर्धा के बीच, उन्हें विश्राम के लिए कुछ चाहिए और फिल्में आराम करने का एक अच्छा तरीका है। छात्र अपने परिवार और विस्तारित परिवार के साथ भी अच्छी तरह से बांड कर सकते हैं क्योंकि वे सिनेमा देखने के लिए उनके साथ बाहर जाने की योजना बनाते हैं।

छात्रों पर सिनेमा का नकारात्मक प्रभाव :

जबकि सिनेमा शिक्षाप्रद हो सकता है, बहुत अधिक देखना छात्रों के लिए समय की बर्बादी साबित हो सकता है। कई छात्रों को फिल्मों की लत लग जाती है और वे अपना कीमती समय पढ़ाई के बजाय फिल्में देखने में बिताते हैं। कुछ फिल्मों में अनुचित सामग्री होती है जैसे कि हिंसा और अन्य ए-रेटेड दृश्य जो छात्रों पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।

बहुत अधिक सिनेमा और अन्य वीडियो सामग्री देखने से छात्रों की नज़र कमजोर हो सकती है और ध्यान केंद्रित करने की उनकी शक्ति भी बाधित होती है।

निष्कर्ष :

किसी भी फिल्म के बारे में शायद, किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि एक फिल्म लेखक की कल्पना का एक चित्रण है जब तक कि यह एक बायोपिक नहीं है। किसी को भी उनका अनुसरण नहीं करना चाहिए। छात्रों को यह महसूस करना होगा कि यह उनके जीवन और स्थितियों के लिए आवश्यक नहीं है कि फिल्म के साथ समानता हो।

उन्हें रील लाइफ और वास्तविक जीवन के बीच के अंतर को समझना और जानना चाहिए और सिनेमा के केवल सकारात्मक पहलुओं को अपनाने की कोशिश करनी चाहिए।

सिनेमा के प्रभाव पर निबंध, Essay on Impact of Cinema in Life in hindi (400 शब्द)

सिनेमा दुनिया भर के हर आयु वर्ग के लोगों के मनोरंजन का एक प्रमुख स्रोत रहा है। फिल्मों की विभिन्न शैलियों का निर्माण किया जाता है और ये विभिन्न तरीकों से जनता को प्रभावित करती हैं। चूंकि फिल्में सभी द्वारा खोजी जाती हैं, वे समाज को बहुत प्रभावित करते हैं। यह प्रभाव नकारात्मक और सकारात्मक दोनों हो  सकते हैं।

सोसाइटी पर सिनेमा का सकारात्मक प्रभाव :

यहाँ समाज पर सिनेमा के सकारात्मक प्रभाव पर एक नज़र है:

सिनेमा का समाज पर एक बड़ा प्रभाव है। इसलिए इसे जन जागरूकता पैदा करने के लिए एक प्रमुख उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। टॉयलेट: एक प्रेम कथा, तारे जमीं पर और स्वदेस जैसी बॉलीवुड फिल्मों ने समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में मदद की है।

कुछ अच्छी फिल्में और बायोपिक्स सही मायने में दर्शक के मन को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती हैं और उसे जीवन में कड़ी मेहनत करने के लिए प्रेरित कर सकती हैं।

फिल्में और गाने दर्शकों में देशभक्ति की भावना को जन्म दे सकते हैं। एक फिल्म हमेशा एक अच्छा मनोरंजन होता है। यह आपको अपनी सभी समस्याओं को भूल जाने देता है और आपको कल्पना की एक नई दुनिया में ले जा सकता है, जो कई बार लाभकारी हो सकती है।

कई बार फिल्में भी अपनी शैली के अनुसार आपके ज्ञान के दायरे को बढ़ा सकती हैं। एक ऐतिहासिक फिल्म इतिहास में आपके ज्ञान में सुधार कर सकती है; एक विज्ञान फाई फिल्म आपको विज्ञान आदि के कुछ ज्ञान से छू सकती है।

अच्छी कॉमेडी फिल्मों में आपको हंसाने की ताकत होती है और इस तरह से आप अपना मूड बढ़ा सकते हैं। साहसिक फिल्में आप में साहस और प्रेरणा की भावना पैदा कर सकती हैं।

सोसाइटी पर सिनेमा का नकारात्मक प्रभाव :

यहाँ समाज पर सिनेमा के नकारात्मक प्रभाव पर एक नज़र है:

आजकल ज्यादातर फिल्में हिंसा दिखाती हैं जो जनता को नकारात्मक तरीके से प्रभावित कर सकती हैं। यह अप्रत्यक्ष रूप से विशेष रूप से युवाओं में एक के मन में हिंसक विचारों में योगदान कर सकता है।

फिल्मों में दिखाई गई कुछ सामग्री कुछ लोगों के लिए उपयुक्त नहीं है। यह वास्तव में उनके दिमाग के साथ खिलवाड़ कर सकता है। कई बार लोग फिल्म और वास्तविकता के बीच अंतर करने में असफल हो जाते हैं। वे इसमें इतने तल्लीन हो जाते हैं कि वे किसी तरह यह मानने लगते हैं कि वास्तविकता फिल्म में चित्रित की गई है, जिसके अवांछनीय दुष्प्रभाव हो सकते हैं।

यह एक ऐसी दुनिया है जिसमें हर किसी का अपना अलग दृष्टिकोण है जो दूसरों के दृष्टिकोण से सही नहीं हो सकता है। कुछ फिल्में इस प्रकार कुछ दर्शकों की भावनाओं को आहत कर सकती हैं। कुछ फिल्मों ने लोगों की धार्मिक भावनाओं को आहत किया है और यहां तक ​​कि दंगों के परिणामस्वरूप भी।

इस प्रकार, हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि फिल्में दर्शकों के दिमाग पर बहुत प्रभाव डाल सकती हैं। यह टीम का नैतिक कर्तव्य बन जाता है कि वह उस सामग्री को तैयार करे जो उचित हो और समाज पर सकारात्मक प्रभाव डाले।

सिनेमा का युवाओं पर प्रभाव, 500 शब्द :

यह एक सर्वविदित तथ्य है कि कोई भी चीज़ों को आसानी से सीख और याद रख सकता है अगर उसे केवल ऑडियो के बजाय ऑडियो और विजुअल दोनों सहायक मिल गए हों। इस बात को ध्यान में रखते हुए, कई अध्ययन सत्र लिए जाते हैं जहाँ छात्रों को वीडियो की मदद से पढ़ाया जाता है।

सिनेमा शुरू से ही लोकप्रिय रहा है। लोगों को यह पता चला कि छात्र केवल मौखिक सत्रों की तुलना में वीडियो के माध्यम से अधिक याद कर सकते हैं क्योंकि उन्होंने बच्चों को एक सप्ताह पहले देखी गई फिल्म के संवाद को याद करते हुए देखा था, लेकिन सुबह में उन्होंने जो व्याख्यान दिया उसमें से कुछ भी नहीं था।

युवा मनुष्‍य जो देखते हैं उससे प्रभावित होते हैं :

लंबे समय तक जिस व्यक्ति के साथ होते हैं, उसके बात करने, चलने और व्यवहार करने के तरीके को अपनाने की प्रवृत्ति मनुष्य के पास होती है। एक व्यक्ति हमेशा अपने व्यवहार के अनुसार दूसरे व्यक्ति के सिर में निशान छोड़ता है।

यह धारणा किशोर से संबंधित लोगों के बीच अधिक लोकप्रिय है और 13 साल से कम उम्र के बच्चों के बीच भी है क्योंकि उनके पास बड़े पैमाने पर ताकत है। वे सिनेमा, हेयर स्टाइल, फैशन, एक्शन, बॉडी लैंग्वेज, बात करने के तरीके, हर चीज को देखकर उसकी नकल और नकल करना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि यह सब करने से वे लोकप्रिय और शांत बन सकते हैं जो आज के युवाओं के लिए महत्वपूर्ण है।

सिनेमा का युवाओं पर एक बड़ा प्रभाव है

सिनेमा को मूल रूप से मनोरंजन के सभी साधनों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। युवा आराम करने और मनोरंजन करने के लिए सिनेमा देखते हैं, हालांकि इसके साथ ही वे कई नई चीजें सीखते हैं। सामान्य मानव प्रवृत्ति इन चीजों को अपने जीवन में भी लागू करना है। इसलिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि वे सिनेमाघरों से केवल सकारात्मक बिंदुओं को पकड़ें।

चूंकि युवा किसी भी राष्ट्र का भविष्य हैं, इसलिए यह आवश्यक है कि वे एक सकारात्मक मानसिकता का निर्माण करें। इस प्रकार उनके लिए सिनेमा की अच्छी गुणवत्ता देखना आवश्यक है जो उन्हें मानसिक रूप से बढ़ने में मदद करता है और उन्हें अधिक जानकार और परिपक्व बनाता है। न केवल क्रियाएं और बॉडी लैंग्वेज, बल्कि भाषा पर उनकी कमांड का स्तर भी सिनेमा से प्रभावित होता है।

इसके अलावा, कई फिल्में सिर्फ मनोरंजन नहीं करती हैं, बल्कि जीवन के विभिन्न पहलुओं के बारे में बहुत सारी जानकारी प्रदान करती हैं। यह युवाओं को एक खुली मानसिकता विकसित करने में भी मदद करता है जो जीवन में उनकी प्रगति के लिए बहुत सहायक हो सकता है।

युवाओं पर सिनेमा का नकारात्मक प्रभाव :

सिनेमा का युवाओं पर नकारात्मक और सकारात्मक प्रभाव है। एक्शन के रूप में, लोगों को मारने के विभिन्न तरीके दिखाना इन दिनों फिल्मों में एक आम दृश्य है। यह चीजें मनोवैज्ञानिक स्तर पर इसे देखने वाले लोगों को प्रभावित करती हैं। वे युवाओं में एक मानसिकता बनाते हैं कि शक्ति दिखाने के लिए आपको कुछ से लड़ने की जरूरत है, कुछ को मारना है या कुछ पर हावी होना है। यह बहुत गलत धारणा है।

इतना ही नहीं, यहां तक ​​कि सेक्स सहित वयस्क दृश्य भी उन युवाओं के लिए गुमराह करने वाले हैं जिन्हें यह समझने के लिए यौन शिक्षा नहीं दी गई है कि क्या गलत है और क्या सही है। नग्नता और वासना की अधिकता दिखाने से वे ऐसे काम कर सकते हैं जो उनकी उम्र में नहीं होने चाहिए। इसके अलावा, सिनेमा देखने पर भी बहुत समय और पैसा बर्बाद होता है।

इसलिए, सिनेमा विभिन्न तरीकों से युवाओं को प्रभावित करता है। हालांकि, यह उनकी परिपक्वता और समझ पर निर्भर करता है कि वे सबसे ज्यादा क्या अपनाते हैं।

सिनेमा के प्रभाव पर निबंध, Essay on Impact of Cinema in Life in hindi (600 शब्द)

सिनेमा दुनिया भर के लाखों लोगों के मनोरंजन का साधन है। यह ऊब के खिलाफ एक उपकरण और नीरस जीवन से भागने का काम करता है। एक अच्छी फिल्म एक आरामदायक और मनोरंजक अनुभव प्रदान करती है। यह आपको सभी परेशानियों से दूर, कल्पना की एक नई दुनिया में ले जाता है। इसमें आपके दिमाग को तरोताजा और फिर से जीवंत करने की शक्ति है। हालाँकि, इससे जुड़े कुछ निश्चित नुकसान भी हैं। सिनेमा के नुकसान के साथ-साथ फायदे पर एक नज़र है:

सिनेमा के फायदे :

यहाँ सिनेमा द्वारा दिए गए लाभों पर एक नज़र है:

सामाजिक लाभ :

किशोरावस्था में फिल्मों को देखने का चलन एक जुनून के रूप में है। व्यक्ति जिस प्रकार की फिल्में देखना पसंद करता है, उसे देखकर उसकी पसंद और व्यक्तित्व का अंदाजा लगाया जा सकता है। फ़िल्में समाजीकरण में मदद करती हैं क्योंकि वे चर्चा का एक सामान्य आधार प्रदान करती हैं। आप हमेशा समूह में या पार्टियों में बैठकर आपके द्वारा देखी गई सामग्री के बारे में चर्चा कर सकते हैं। यह एक अच्छी बातचीत स्टार्टर के रूप में पेश करता है। यह राजनीति और खेल के विपरीत एक दिलचस्प विषय है जो बहुत से लोगों को उबाऊ लगता है।

कल्पना को प्रेरित करता है :

कई बार फिल्में लेखक की सबसे अजीब कल्पना दिखाती हैं। यह दुनिया को दिखाता है कि उन्नत ग्राफिक तकनीक के साथ अनदेखी और अस्पष्टीकृत है जो हमें अपनी कल्पना को बढ़ाने में भी मदद कर सकता है।

दुनिया के विभिन्न हिस्सों की कला और संस्कृति का प्रतिबिंब :

विभिन्न फिल्मों में विभिन्न भूखंड होते हैं जो विभिन्न संस्कृतियों और दुनिया भर में विभिन्न स्थानों से संबंधित लोगों के आसपास सेट होते हैं। यह दुनिया के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले लोगों और उनके जीने के तरीके के बारे में उनके ज्ञान को व्यापक बनाने में मदद करता है।

सोच क्षमता में सुधार :

सफलता की कहानियां और आत्मकथाएँ लोगों को जीवन में हार न मानने के लिए प्रेरित कर सकती हैं। फिल्मों में कुछ ऐसे दृश्य होते हैं जिनमें आपात स्थिति जैसे आग, बम विस्फोट, डकैती आदि दिखाए जाते हैं। हम शायद यह नहीं जानते कि अगर हम कभी भी उनके सामने आते हैं तो वास्तविक जीवन में ऐसे क्षणों में क्या करना है। फिल्में हमारी सोचने की क्षमता को सुधारने में मदद कर सकती हैं और हमें यह समझने में मदद कर सकती हैं कि ऐसी स्थितियों में कैसे कार्य करें।

सिनेमा के नुकसान

झूठी धारणा बनाता है:.

विशेष रूप से बच्चों में झूठी धारणा बनाने की दिशा में फिल्में बहुत योगदान देती हैं। दुनिया के हर हिस्से में स्थितियां और समाज अलग-अलग हैं। लोग स्क्रीन पर और वास्तविकता में अलग हैं। हालांकि, कई लोग फिल्म की दुनिया और वास्तविकता के बीच की खाई को महसूस करने में असफल हो जाते हैं जो समस्याओं का कारण बनता है।

पैसे और समय की बर्बादी : मूवी लेखक के विचारों और कल्पना का एक मात्र प्रतिनिधित्व है और वे हमेशा हमारे समय और धन के लायक नहीं होते हैं। अगर यह हमारे समय के लायक नहीं है और हम इसके अंत में निराश महसूस करते हैं तो किसी चीज में निवेश करने का क्या मतलब है?

हिंसक और वयस्क सामग्री :

एक फिल्म लाने के लिए हिंसा, कार्रवाई, नग्नता और अश्लीलता के अनावश्यक लाभ को जोड़ दिया जाता है, जिससे यह बच्चों और युवा वयस्कों के लिए अनुपयुक्त हो जाता है। यह उनके दिमाग पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।

लत लग जाती है :

कुछ लोगों के लिए फिल्में कई बार नशे की लत साबित हुई हैं। हर फिल्म देखने लायक नहीं होती। बेकार फिल्मों पर अनावश्यक रूप से समय बर्बाद करने के अलावा जीवन में कई अन्य उत्पादक और दिलचस्प चीजें हैं। कुछ हद तक फिल्मों में भागीदारी ठीक है, लेकिन सिनेमा के लिए अनुचित सनक और अधिक फिल्मों के लिए पैसे बर्बाद करना बेहतर नहीं है।

एक चीज के हमेशा दो पहलू होते हैं – एक सकारात्मक और एक नकारात्मक। फिल्मों को अवश्य देखना चाहिए और अपने सभी नकारात्मक पहलुओं से बचने के लिए उन्हें एक सीमा तक प्रभावित करने देना चाहिए।

जैसा कि यह ठीक कहा गया है, सीमा में किया गया सब कुछ लाभार्थी है। इसी तरह, ऐसी फ़िल्मों में समय लगाना जो देखने लायक हैं, ठीक हैं, लेकिन उनकी लत लगने से बचना चाहिए, क्योंकि इससे न केवल हमारा समय बर्बाद होगा, बल्कि हम उन अन्य चीजों को भी याद करेंगे जो वास्तव में हमारे समय के लायक हैं।

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विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.

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Essay on Cinema in Hindi 500 Words

सिनेमा पर निबंध

मानव सभ्यता के विकास के साथ-साथ भौतिक सख-साधनों में उत्तरोत्तर वृद्धि होती गई। छाया चित्रों का भी क्रमिक विकास हुआ। फिर इन चित्रों में गति उत्पन्न हुई। धीरे-धीरे ये मूक चित्र बोलने व चलने-फिरने लगे और चलचित्रों का जन्म हुआ। इस आविष्कार ने संसारभर की मनुष्य जाति के मन-मस्तिष्क पर अपना साम्राज्य बना लिया और आज चलचित्रों के प्रभाव से कोई भी अछूता नहीं है।

प्रकाश, ध्वनि व चित्रों की सहायता से किया गया यह अनुपम आविष्कार आज मनोरंजन का प्रमुख साधन है। आरंभ में मूक चित्रों का निर्माण किया गया। फिर श्वेत-श्याम ध्वनियुक्त चलचित्र प्रकाश में आए। भारत में प्रथम महायुद्ध के समय इस आविष्कार ने अपना प्रभाव जमाना आरंभ किया। नाटक, कहानी, प्रहसन का आनंद लोगों को चलचित्र में मिलने लगा। धीरे-धीरे छोटे-बड़े सभी शहरों और कस्बों में चलचित्रों की लोकप्रियता बढ़ती गई।

चलचित्र मनोरंजन का उत्तम साधन है। इसके द्वारा अपने देश की संस्कृति व सभ्यता को जीवित रखा जा सकता है। पौराणिक कथाओं पर आधारित चलचित्रों के माध्यम से समाज में आदर्शात्मक गुणों की स्थापना की जा सकती है।

चलचित्रों के माध्यम से देश की कठिन-से-कठिन समस्याओं को सुलझाने में मदद मिल सकती है। सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध अभियान छेड़ने में चलचित्र प्रमुख भूमिका निभाते हैं। भावात्मक कथाप्रधान चलचित्रों के माध्यम से समाज की बुराइयों व कुप्रथाओं को दूर किया जा सकता है। चलचित्रों द्वारा किसी भी प्रथा के कारण, कार्य व परिणाम दिखाकर दर्शकों के विवेक को झकझोरा जा सकता है। अनेक गंभीर समस्याओं को कथाओं के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाकर उन्हें जागरूक व सचेष्ट किया जा सकता है। वर्तमान में बढ़ रही मद्यपान, मादक द्रव्यों का सेवन, दहेज-प्रथा, रिश्वत, भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं के प्रति जनमानस की विचारधारा को आंदोलित करने में चलचित्रों की भूमिका सराहनीय हो सकती है।

चलचित्र जीवन का व्यावहारिक ज्ञान देते हैं। किसी भी विषय पर बना चलचित्र दर्शकों को उनकी रुचि के अनुकूल आनंद व शिक्षा प्रदान करता है। देश-विदेश के चलचित्रों को देखकर लोग न केवल दूसरों के रहन-सहन से परिचित होते हैं अपितु उनकी जीवन-शैली और विचारधारा प्रेक्षकों की कार्यप्रणाली को प्रभावित करती है। देशभक्ति की भावना से पूर्ण चलचित्रों का युवाओं के मन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। वे देशसेवा के कार्यों में जुटने की प्रेरणा प्राप्त करते हैं।

चलचित्रों का प्रयोग शिक्षा के प्रसार हेतु भी किया जा सकता है। आजकल गणित, भूगोल, इतिहास तथा तकनीकी शिक्षा देने के लिए भी चलचित्र उत्तम माध्यम माने जा रहे हैं। दृश्य व श्रव्य होने के कारण ये छात्रों के मन में ज्ञान व व्यवहार संबंधी अमिट प्रभाव छोड़ते हैं। डॉक्यूमेंट्री चलचित्रों द्वारा देश की विभिन्न समस्याओं, दुर्गम दर्शनीय स्थलों, विभिन्न कार्य योजनाओं के विषय में विस्तृत जानकारी दी जा रही है।

देश में आर्थिक संपन्नता लाने में भी चलचित्रों का बड़ा योगदान है। विश्वभर में भारतीय विचारधारा, कला, संस्कृति, धर्म, दर्शन का प्रचार-प्रसार करने में चलचित्रों की विशेष भूमिका है। प्रचारको व विज्ञापनदाताओं के लिए तो चलचित्र वरदान सिद्ध हुए हैं।

चलचित्र मनोरजन तथा ज्ञान-वृधि के उत्तम साधन हैं। कछ लोगों का मानना है कि मनोरंजन के लिए विकसित इस कला ने अब विकृत रूप धारण कर लिया है। हिंसा से भरे, अश्लील व भौंडे दृश्यों के माध्यम से चलाचत्र-निर्माता सस्ती लोकप्रियता व धनार्जन करना चाहते हैं। इस प्रकार से बने चलचित्र युवाओं में अनेक मानसिक विकृतियों को जन्म देते हैं।

चलचित्रों के पक्ष व विपक्ष में अनेक प्रकार के विचार समाज में उपलब्ध हैं। चलचित्रों के लाभ सैद्धांतिक हैं, परंतु व्यावहारिक रूप में इसकी हानियाँ ही अधिक प्रकाश में आ रही हैं। कला की उन्नति व चलचित्रों की विधा का समाज को भरपूर लाभ मिले, इसके लिए सामाजिक, सरकारी व व्यक्तिगत प्रत्येक स्तर पर भरपूर प्रयास की आवश्यकता है ताकि मनोरंजन के इस उत्तम साधन का समाज व राष्ट्रहितार्थ सदुपयोग संभव हो सके।

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सिनेमा बनाम समाज

आज हम जिस समाज में रह रहे हैं वह सूचना का सजग युग है। यह शताब्दी संचार-क्रांति की महान शताब्दी है। आज पूरे विश्व को सूचना एवं संचार के एक सूत्र में पूर्णत: पिरोया जा चुका है। आज हर देश, बाकी देशों से इसी के माध्यम से जुड़ा हुआ है। विश्व के किसी भी कोने में अगर कोई घटना घटती है तो वह क्षणभर में पूरे विश्व में फैल जाती है। विश्व के किसी भी कोने में प्रायोजित किए जाने वाले कार्यक्रम आज हम घर बैठे देख सकते हैं। यह मानव सभ्यता की जितनी बड़ी उपलब्धि है, उतनी ही महान एक क्रांति भी है।

आज मनुष्य अपनी वैचारिक एवं भावनात्मक जरुरतों को पूरा करने के लिए टी-वी अथवा सिनेमा के साथ जुड़ा हुआ है। उस पर दिखाये जाने वाले कार्यक्रम उसकी मनोरंजन की चेष्टा एवं जरुरत को पूर्ण करते हैं। सिनेमा आज आदमी के जीवन का नितांत अनिवार्य और अपरिहार्य अंग बन गया है’: यह कहना समसामयिक प्रवृतियां एवं सिनेमा की सामाजिकभूमिका को देखने के उपरांत, कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा। सिनेमा आज आदमी की औसतन आवश्यकताओं को पूरा करता है। उसे विश्व की अनेक जानकारियों की प्राप्ति तो सिनेमा के ही माध्यम से होती है।

हम ‘दूरदूर्शन’ देखते हैं, उसके चैनल पर प्रायोजित होने वाले कार्यक्रम प्रमुखत: ज्ञान-विज्ञान, सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक विषय, नवीनतम सूचना एवं जानकारियों आदि से संबंध रखने के साथ ही बालकों, वयस्कों आदि के मनोरंजन से भी संबध रखते हैं। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि सिनेमा आज अपने व्यापक प्रसार में मानवीय जीवन के बहुतांश को अपने में समेट लेता है। वस्तुत: सिनेमा का समाज पर पड़ने वाला प्रभाव अत्यधिक व्यापक होता है। अगर कहा जाए कि सिनेमा आज हमारे समाज का न केवल प्रतिबिंब बन गया है। अपितु वह हमारे समाज का सजग प्रतिनिधित्व भी करता है – तो कुछ गलत न होगा और न ही यह कोई अतिशयोक्ति होगी। सिनेमा से समाज में आने वाले परिवर्तनों एवं प्रभावों को कुछ इस प्रकार समझा जा सकता है।

एक समय था, जब समाज अथवा समस्त मानव-समुदाय सामान्य जानकारियाँ प्राप्त करने के लिए कुछ एक गिने-चुने माध्यमों पर ही अवलम्बित रहता था। समाज के कुछ एक जागरुक लोग सम्पूर्ण समाज को सम्बोधित किया करते थे। वे उन्हें जिस प्रकार से बातें बताते अथवा सिखाते थे वे उन्हें वैसा ही मानते थे। किन्तु आज सिनेमा ने मानव-समाज को प्रत्यक्ष रूप से सम्बोधित करना आरम्भ कर दिया है। वह जनता को राजनीति की तमाम घटनाओं, उनके कारणों एवं उन घटनाओं के फलस्वरुप उत्पन्न होने वाले परिणामों को सीधे जनता के सामने रख देता है। इससे जनता में गहरी राजनैतिक-चेतना पैदा होती है। जनता में राजनैतिक चेतना पैदा करना सिनेमा का समाज पर पड़ने वाला एक अत्यंत महत्वपूर्ण सकारात्मक प्रभाव कहा जाना चाहिए।

इसी के साथ सिनेमा आदमी को उसके आस-पास के सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश एव वातावरण की सूक्ष्मता से जानकारी प्रदान करता है। इससे उसमें समाजिकता का विकास होता है। वह अपने देश की सांस्कृतिक-परम्परा एवं उसके समग्र इतिहास से परिचित होता है। उसमे सामाजिक-चेतना का विकास होता है। इसी के साथ दूरदर्शन पर अनेक ऐसे कार्यक्रम प्रस्तुत किये जाते हैं जो अर्थव्यवस्था और हमारी कृषि-व्यवस्था आदि से संबंधित होते हैं। हम दूरदर्शन पर प्रस्तुत होने वाला कृषि-दर्शन कार्यक्रम भी देखते हैं। इस कार्यक्रम से किसानों को अपरिमित लाभ पहुंचा है। उन्होंने इस कार्यक्रम के माध्यम से अनेक ऐसे यंत्रों, साधनों एवं बीजों के बारे में जानकारियां को प्राप्त की हैं, जिनका उपयोग करके वे अपनी कृषि उत्पादन कई गुना बढ़ा सकते हैं।

इसी के साथ दूरदर्शन का एक और महत्वपूर्ण प्रभाव सामाजिक – पारिवारिक संबंधों पर भी पड़ता है। दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले मनोरंजन कार्यक्रम हमारा मनोरंजन करने के साथ-साथ हमारे भीतर नैतिक मूल्य और आदर्श भी भरते हैं।

इस प्रकार सिनेमा और दूरदर्शन ने हमारे समसामयिक जीवन को अत्यंत व्यापक रूप से प्रभावित किया है। इसलिए उसे हमारे समाज का सच्चा पथ प्रदर्शक कहना ही चाहिए।

Essay on television in Hindi

Essay on Value of Progress in Hindi

डिजिटल सिनेमा पर निबंध 600 Words

हमारे देश के सिनेमा जगत में पायरेसी एक बहुत बड़ी समस्या है। पायरेसी के द्वारा बॉलीवुड लगभग 50 प्रतिशत तक का नुकसान होता है।

फिल्म उद्योग से जुड़े लोग नई फिल्म को दूर-दराज के इलाको में इसलिए रिलीज नहीं करते कि वहां से उनकी नई फिल्म की पायरेसी हो जायेगी। पायरेसी से निपटने के लिए विकसित देशो में डिजिटल तकनीकि का प्रयोग किया जाता है, जिससे वहां एक साथ फिल्म के ढेर सारा प्रिंट रिलीज होते हैं और उनकी आमदनी भी अधिक होती है। अमेरिका में फिल्म के 2000 प्रिंट एक साथ रिलीज होते हैं और पहले ही सप्ताहांत (शनिवार-रविवार) में फिल्म 100 करोड़ डॉलर (करीब 500 करोड़ रुपये) तक का कारोबार कर डालती है। भारत के सालाना फिल्म कारोबार (4600 करोड़ रुपये) को अगर फिक्की के आकलन के अनुसार, 2009 तक 12,900 करोड़ रुपये तक पहुँचना है तो इसे भी डिजिटल तकनीक को अपनाना होगा। इस तकनीक को अपनाने की पैरवी कुछ कम्पनियां कर भी रही हैं। ये कम्पनियां डिजिटल सिनेमा के क्षेत्र में उतर चुकी हैं या जल्द उतरने वाली हैं। इनका दावा है कि पायरेसी का नामोनिशान मिटा देंगे और फिल्मों के प्रिंट बनाने के खर्च को इतना सस्ता कर देंगे कि हॉलीवुड की तरह बॉलीवुड भी नई फिल्म के 1000-2000 प्रिंट रिलीज कर के कम दिनों में ज्यादा कमाई कर सकेगा।

यह एक ऐसी केन्द्रीकृत तकनीक है, जिससे सिनेमा हॉल को जोड़ देने से सेटेलाइट के जरिए किसी फिल्म के प्रिंट को सिनेमा हॉल में जरूरत पड़ने पर किसी भी वक्त पहुँचाया जा सकता है।

इस तकनीक को अपनाने वाली कंपनी सबसे पहले फिल्म निर्माता से उनकी फिल्म को एमपीईजी 3 तकनीक से डिजिटल बनाने की अनुमति लेती है। फिर इनको वह कम्पनी अपने सेन्ट्रल मर्वर में अपलोड कर देती है। उसके बाद उसे उन सिनेमा हॉलों में ऑनलाइन वितरित कर देती है, जहाँ डिजिटल फिल्मों को रिसीव करने की तकनीक लगी हुई है। इस तकनीक में मारे सिस्टम को इनक्रिप्ट कर दिया जाता है, ताकि फिल्म की पायरेसी न हो सके।

मीडिया बजट (8 से 10 करोड़ रुपये) की फिल्में बनाने के लिए फिल्मकार नई फिल्म को औसतन 200 से 250 सिनेमाहॉल में रिलीज करते हैं। एक प्रिंट बनाने में 60,000 रुपये का खर्च आता है। अब अगर वे नई फिल्म को एक साथ 200 सिनेमाहॉल में लीज कर रहे हैं तो फिल्म के 200 प्रिंट बनाने का खर्च एक करोड़ बीस लाख रुपये हो जाता है। प्रिंट दिने ज्यादा होंगे बजट भी उसी हिसाब से आगे जायेगा। इसलिए ज्यादातर निर्माता अपनी फिल्मों को बड़े शहरों में पहले रिलीज करते हैं और फिर एक हफ्ते बाद उसी प्रिंट को छोटे शहरों में रिलीज करते हैं। लेकिन तब तक पायरेसी से उनकी फिल्में देश भर में सीडी-डीवीडी पर उपलब्ध हो जाती हैं। डिजिटल सिनेमा प्रिंट के इस खर्चे को एक चौथाई से भी कम कर देता है। कोई निर्माता जो अपने खर्चे बचाने के लिए अपनी नई फिल्म के कम प्रिंट रिलीज करता है, वह अब उसी खर्चे में चार गुना अधिक प्रिंट रिलीज कर सकता है। सामान्य सिनेमाहॉल को डिजिटल बनाने का खर्च 10 से 15 लाख तक आता है। डिजिटल तकनीक से बॉलीवड की कुछ फिल्म रिलीज भी की जा चुकी हैं।

डिजिटल तकनीक निश्चित रुप से बॉलीवट की तकदीर बदल सकती हैं। इससे बालीवु को कम खर्च में अधिक लाभ प्राप्त होगा तथा इस तरह के प्रिंट को सालों साल तक सुरक्षित रखा जा सकेगा। सेटेलाइट तकनीक से 100 से अधिक शहरों में बिना अतिरिक्त खर्च के फिल्म प्रिंट भेजे जा सकते हैं। कहा जा सकता है कि आने वाले समय में डिजिटल सिनेमा बॉलीवुड के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगा।

सिनेमा पर निबंध Essay on Cinema in Hindi 700 Words

सिनेमा का प्रभाव

साहित्य और कला का रचनात्मक माध्यम और स्वरुप चाहे कैसा और कोई भी क्यों न हो; उसकी सफलता का मूल्याँकन समाज का दर्पण बन कर उसके अन्त:-बाह्य को प्रकट करने की क्षमता से ही किया जाता है। जो साहित्य और कला-रूप इस मापदंड पर खरा नहीं उतर पाता, उसे व्यर्थ की कोशिश से अधिक कुछ भी माना नहीं जाता। साहित्य और विविध कलाएँ अपनी वास्तविक सृजन-प्रक्रिया द्वारा जीवन और समाज का दर्पण तो बन ही सकती है, अपनी स्वभावगत मनोरंजन और आनंददायिनी प्रवृत्ति से जन-शिक्षण तथा जन-समस्याओं के निराकरण में भी अपना महत्त्वपूर्ण योगदान कर सकती हैं, ऐसा प्रत्येक जन-हितैषी एवं समझदार व्यक्ति का स्पष्ट विचार है। लेकिन आज का सर्वाधिक सुलभ, सस्ता और लोकप्रिय दृश्य-श्रव्य माध्यम, कला-रूप सिनेमा तकनीकी स्तर पर बहुत आगे बढ़ कर भी समाजिक जीवन का हित-साधन तो क्या, उसके वास्तविक स्वरुप का दर्पण तक बन पाने में असमर्थ हो रहा है।

भारत में पहले मूक और फिर बोलते चित्र के रूप में सिनेमा की शुरुआत बींसवी शताब्दी के लगभग तीसरे दशक से शुरू हो सकी। तब से लेकर लगभग पांचवे-छठे दशक तक वह वास्तव में जीवन और समाज के व्यावहारिक एवं आवश्यक पक्षों का रोचक चित्रण करता रहा। यही नहीं, स्वतंत्रता-संघर्ष के दिनों में सिनेमा जनमानस को स्वतंत्रता संघर्ष में सम्मिलत करने, भाईचारा, पारस्परिक प्रेम ओर एकता का प्रचार-प्रसार करने की दिशा में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका प्रदान करता रहा। लगभग सातवें दशक के सिनेमा में भी सामाजिक संबंधों का न्यूनाधिक उभार देखने को मिल जाता है। उसके बाद से संसार का वह सबसे लोकप्रिय और मजबूत माध्यम जन-समाज के वास्तविक आयामों से लगातार अलग होता गया, आधुनिक सिनेमा का तो हमारे व्यावहारिक जीवन-समाज से कहीं दूर का भी कोई संबंध नहीं रह गया है, यह तथ्य दु:ख के साथ स्वीकारना पड़ता है।

आधुनिक सिनेमा में जिस तरह के कृत्रिम लोग, कृत्रिम कहानियाँ, कृत्रिम वातावरण प्रस्तुत, किया जाता है और जो बनावटी परिणाम सामने लाए जाते हैं, इन सबका समाज के व्यवहारिक, जीवन से कहीं दूर का भी संबंध नहीं होता और भविष्य में भी कभी समाज वैसा बन सकेगा इसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती। अश्लीलता, नग्नता, हिंसा, खाली सपनों की बनावट और विकृति जिस आयातित अपसंकृति का प्रचार-प्रसार आज का सिनेमा कर रहा है वह भारतीय जीवन-समाज को पतन के किस गर्त में ले जायेगा, आज उसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती। कोरे सपनों के सौदागर सिनेमा, ने आज के भारतीय समाज को अपराधी मनोवृत्तियों वाला बना कर रख दिया है। आधुनिकता के नाम पर वह घर-परिवार से कटता हुआ मात्र सिनेमाई बनता जा रहा है। किशोरों की बात तो दूर नन्हें-मुन्ने बच्चे तक सिनेमाई अपसंस्कृति के प्रभाव से बुरी तरह प्रभावित होकर अनेक प्रकार के दोषों-बीमारियों का शिकार होते जा रहे हैं। जो मजबूत दृश्य-श्रव्य मीडिया संक्रमण करके इस दौर में जीवन और समाज के नव निर्माण में सहयोगी हो सकता था वही उसे उजाड़ कर किसी घोर अमानवीय बियावान में ले जाकर जंगली दरिंदों की हिंसा का शिकार हो जाने के लिए छोड़ देना चाहता है।

आज के सिनमा में कुछ भी तो स्वाभाविक नहीं होता। गाँव-खेत हर चीज बनावटी होती है – महल, झाड़ियों और बनावटी घिनौने फार्मूले, बनावटी अस्पताल, डॉक्टर, नर्से ओर बनावटी ही पुलिस यहां तक कि नायक-नायिका का बातें और व्यवहार तक बनावटी और अनैतिक। ऐसे में सिनेमा से भला जीवन-समाज के लाभ या भले की आशा क्या और कैसे की जा सकती है? अकेला दबला-पतला नायक, पहलवान टाईप के बीसियों आदमियों को मार गिराता है। क्या जीवन और समाज में कभी ऐसा हुआ या हो सकता है? सिनेमा में डॉक्टरों नर्सी, पुलिस वालों को जितना स्वाभाविक और सहृदय दिखाया जाता है, यदि व्यवहार में भी वे वेसे हो जाएँ, तो हमारा सामाजिक ढाँचा वास्तव में स्वर्ग बन जाए।

आज का प्रत्येक चलचित्र प्रायः एक जैसी हिंसा, अश्लील और नग्न, मारधाड़, बलात्कार, नृत्य द्विअर्थक गंदी भाषा आदि दिखाकर आखिर किस तरह के समाज का निर्माण करना चाहता है? घिनौने और भौडे मनोरंजन के नाम पर वह हमें दे ही क्या रहा है – वह भी जनता की माँग पर उसी के माथे पर अपनी कुरुचियों का भाँडा फोड़कर, यह सोचने-विचारने की बात है। यदि यही सब जीवन और समाज के लिए परोसे जाते रहना है, तो उचित यही है कि इस माध्यम को बंद ही कर दिया जाए या फिर इसका दुरुपयोग रोकने के लिए नियमों की सख्त पाबंदी लगाई जाए। तभी यह कलात्मक माध्यम शायद समाज और जीवन का वास्तविक दर्पण बन सके।

Essay on Internet in Hindi

Essay on Newspaper in Hindi

सिनेमा पर निबंध Essay on Cinema in Hindi 1000 Words

सिनेमा का समाज पर प्रभाव 

सिनेमा चलचित्र विज्ञान की देन है। कैमरे और बिजली के आविष्कार ने इसके जन्म में सहायता दी है। 1860 के लगभग इस दिशा में प्रयत्न आरम्भ हो गए है। सर्वप्रथम मूक चलचित्र आरम्भ हुए। छोटी-छोटी फिल्में होती थीं जिन में संवाद नहीं होते थे। 1917 में पहली बोलने वाली फिल्म बनी। अभी भी इस क्षेत्र में नए नए प्रयोग चल रहे हैं। रंगदार और सिनेमास्कोप तो अब आम हो चुके हैं। ‘थ्री डाइमॅशनल’ फिल्मों का प्रयोग भी हुआ है जो पूरी तरह से सफल नहीं हो पाया।

पुराने समय में नाटक, नाच-गाना, बाजीगरों और मदारियों के तमाशे जनता के मनोरंजन का मुख्य साधन थे। आज ये सब पीछे छूट गये हैं और सिनेमा मनोरंजन का मुख्य साधन बन चुका है। छोटे-छोटे नगरों में भी सिनेमा हाल हैं। गांवों में भी चलती-फिरती टाकियां पहुंच जाती हैं। बड़े-बड़े शहरों में तो अनेक एयरकंडीशंड सिनेमा हाल होते हैं। हर बच्चा, बूढ़ा, जवान सिनेमा में रुचि रखता है। आज जीवन का कोई क्षेत्र ऐसा नहीं, जहां चलचित्रों का प्रभाव न पड़ा हो। रहनसहन, खान-पान, वेश-भूषा, साज-सज्जा, सब कुछ सिनेमा से प्रभावित हैं।

रेडियो से प्रसारित हो रहे अन्य कार्यक्रमों को शायद ही युवक पसन्द करते हों। वे विविध भारती या कोई और ऐसा स्टेशन ढूंढते हैं, जहां से फिल्म संगीत और फिल्मी कहानी का प्रसारण हो रहा हो। फिल्मी गानों की लोकप्रियता को देख कर मन्दिरों और जागरणों में उन्हीं की तर्ज पर लिखे गये धार्मिक गीत या भेटें गाई जाती हैं। पुराने समय में सामाजिक तथा पारिवारिक उत्सवों पर लोक गीत गाने का रिवाज था। सिनेमा के प्रभाव ने इस रिवाज को भी मिटा दिया है। अब मुंडन हो या सगाई, यज्ञोपवीत हो या विवाह, वहां फिल्मी गानों के रिकार्ड ही सुनाई देते हैं। सामाजिक सभा या राजनीतिक जलसा आरम्भ करने से पूर्व भीड़ इकट्ठी करने के लिए फिल्मी गाने बजाये जाते हैं। जनता की संगीत सम्बन्धी रुचि को सिनेमा ने प्रभावित किया है।

फिल्म में किसी अभिनेता या अभिनेत्री ने यदि कोई नए डिजाइन का कपड़ा पहन लिया तो रातों-रात वह फैशन चल पड़ता है। मिलें धड़ाधड़ वैसा कपड़ा बनाने लगती हैं और दर्जी भी नये कपड़े सीने में लग जाते हैं। किसी अभिनेता ने बाल बढ़ा लिए, दाढ़ी-मूंछ रख ली तो सभी युवक उसके पीछे विश्वास पात्र चेलों की तरह चल पड़ते हैं। किसी फिल्म सुन्दरी ने माथे पर लट डाल ली, एक ओर बाल कुछ कटवा लिए या बाल छोटे करवा लिए या खुले छोड़ लिए तो नगरों की किशोरियां कुछ दिनों में उसी रंग ढंग को अपनाए दिखाई देंगी। कहने का भाव यह है कि रहन-सहन और वेश-भूषा पर सिनेमा का प्रभाव पड़ता है।

आजकल प्राय: प्रेम की भावुकतापूर्ण कहानियों पर फिल्में बनती हैं और हमारे युवक-युवतियों के मन पर उनकी गहरी छाप पड़ती है। वे पारिवारिक जीवन की जगह वैसा ही अनिश्चित और निठल्ला जीवन चाहते हैं। फिल्मों के संवाद उनके लिए शास्त्रों के वाक्य बन जाते हैं। आजकल बनने वाली फिल्मों में तस्कर व्यापार, हिंसक और नग्नता का प्रदर्शन होता है। अनेक प्रकार के अपराध दिखाए जाते हैं। इन सब बुराइयों का युवा मन पर प्रभाव पड़ता है। ऐसी खबरें आई हैं जहां अपराधियों ने स्वयं स्वीकार किया है उन्होंने अमुक फिल्म से सीख कर यह अपराध किया था। इसका अभिप्राय यह नहीं कि सिनेमा बुरा है और बुरा प्रभाव ही डालता है। वस्तुत: दृश्य होने के कारण चित्रों और शब्दों का मिला जुला प्रभाव हर बात को मन मस्तिष्क तक पहुंचा देता है। अच्छी फिल्में अच्छे आदर्शों की शिक्षा भी दे सकती हैं।

सिनेमा के इस प्रभाव तथा वर्तमान दशा को देखते हुए अब भारतीय सैंसर बोर्ड ने कुछ कठोर नियम बनाए हैं। नग्नता, मद्यपान, निरर्थक आलिंगन, चुम्बन, क्रूरतापूर्ण हत्या तथा अन्य अनेक अपराधों आदि को फिल्मों में दिखाना वर्जित कर दिया गया है। हां, यदि कहानी की आवश्यकता के अनुसार ऐसे प्रसंग जरूरी हों तो उन्हें शिष्टता और संयम से दिखाया जाना चाहिए।

सिनेमा जगत के लोगों को व्यवसाय के साथ-साथ जनता और कला का भी ध्यान रखना चाहिए। फिल्म को हिट बनाने के लिए कई तरह के टोटकों का उपयोग किया जाता है जो कुरुचि को बढ़ाते हैं। लेखकों और निर्देशकों को इस सम्बन्ध में सचेत रहना चाहिए। समाजवादी देशों में सिनेमा द्वारा जनता को शिक्षित बनाने का काम लिया गया है, वही ध्येय हमारे सामने भी होना चाहिए। उस अवस्था में सिनेमा समाज पर स्वस्थ प्रभाव डालेगा और हितकारी सिद्ध होगा।

कई फिल्में अच्छी होते हुए भी सफल नहीं होतीं। लेकिन चरित्र प्रधान फिल्में समाज को नई दिशा देती हैं। भारत सरकार को चाहिए कि अच्छी फिल्में बनाने वालों को पुरस्कार दे और आर्थिक सहायता भी दे। प्रयत्न यही करना चाहिए कि बेकार, उद्देश्यहीन फिल्मों को प्रोत्साहन न दिया जाए। शिक्षित व्यक्तियों को तथा अच्छे नेताओं को चाहिए कि वे अच्छी फिल्मों को प्रोत्साहन दें। बुरी फिल्मों की कटु आलोचना करना और अच्छी फिल्मों की अच्छी आलोचना करना, यह कार्य पत्रकारों का है।

चीन और पाकिस्तान के आक्रमण के पश्चात् फिल्मों का उत्तरदायित्व और भी बढ़ गया है। अब उचित यही है कि ऐसी फिल्में बनें जो समाज का चरित्र-निर्माण करें, गृहस्थ धर्म की शिक्षा दें और भारतीय संस्कृति के अनुसार आदर्श युक्त हों। स्वतन्त्र भारत में जहां एक ओर लोगों का उत्तरदायित्व है, वहां निर्माताओं का भी उत्तरदायित्व है। उनका कर्तव्य है कि वे केवल व्यावसायिक दृष्टि को मद्दे नजर रख कर ही फिल्मों का निर्माण न करें बल्कि राष्ट्रीय चरित्र और देश प्रेम, मानवता एवं समाज सेवा, पर आधारित फिल्मों का भी निर्माण करें।

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समाज पर सिनेमा का प्रभाव पर निबंध | Impact Cinema On Society Essay in Hindi | Essay in Hindi | Hindi Nibandh | हिंदी निबंध | निबंध लेखन | Essay on Cinema and Society in Hindi

By: savita mittal

सिनेमा का आविष्कार और इसका विकास | समाज पर सिनेमा का प्रभाव पर निबंध

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विज्ञान ने जहाँ मानव को सुविधापूर्वक बड़े-बड़े काम करने के साधन उपलब्ध कराए हैं, वहीं खाली समय में मनोरंजन के अवसर भी उपलब्ध कराए हैं। सिनेमा ऐसा ही एक लोकप्रिय साधन है। जिस तरह से साहित्य समाज का दर्पण होता है, उसी तरह से सिनेमा भी समाज को प्रतिबिम्बित करता है। भारतीय युवाओं में प्रेम के प्रति आकर्षण उत्पन्न करने की बात हो या सिनेमा के कलाकारों के पहनावे के अनुरूप फैशन का प्रचलन, ये सभी सिनेमा के प्रभाव ही है।

सिनेमा अर्थात् चलचित्र का आविष्कार उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हुआ था। चित्रों को संयोजित कर उन्हें दिखाने को ही चलचित्र कहते हैं। इसके लिए प्रयास तो 1870 ई. के आस-पास ही शुरू हो गए थे, किन्तु इस स्वप्न को साकार करने में विश्वविख्यात वैज्ञानिक एडीसन एवं फ्रांस के ल्यूमिर बन्धुओं का योगदान प्रमुख था। ल्यूमिर बन्धुओं ने 1895 ई. में एडीसन के सिनेमैटोग्राफी पर आधारित एक यन्त्र की सहायता से चित्रों को चलते हुए प्रदर्शित करने में सफलता पाई और इस तरह सिनेमा का आविष्कार हुआ।

अपने आविष्कार के बाद लगभग तीन दशकों तक सिनेमा मूक बना रहा। वर्ष 1927 में वार्नर ब्रदर्स ने आंशिक रूप से सवाक फिल्म ‘जाज सिंगर बनाने में सफलता पाई। इसके बाद वर्ष 1928 में पहली पूर्ण सचाकू फिल्म ‘लाइट्स ऑफ न्यूयॉर्क’ का निर्माण हुआ। सिनेमा के आविष्कार के बाद से इसमें कई परिवर्तन होते रहे और इसमें नवीन तकनीकों का प्रयोग होता रहा। अब फिल्म निर्माण तकनीक अत्यधिक विकसित हो चुकी है, इसलिए आधुनिक समय में निर्मित सिनेमा के दृश्य एवं ध्वनि बिल्कुल स्पष्ट होते हैं।

सिनेमा की शुरुआत से ही इसका समाज के साथ गहरा सम्बन्ध रहा है। प्रारम्भ में इसका उद्देश्य मात्र लोगों का मनोरंजन करना था। अभी भी अधिकतर फिल्में इसी उद्देश्य को लेकर बनाई जाती हैं, इसके बावजूद सिनेमा का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। कुछ लोगों का मानना है कि सिनेमा समाज के लिए अहितकर है एवं इसके कारण अपसंस्कृति को बढ़ावा मिलता है। 

समाज में फिल्मों के प्रभाव से फैली अश्लीलता एवं फैशन के नाम पर नंगेपन को इसके उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, किन्तु सिनेमा के बारे में यह कहना कि यह केवल बुराई फैलाता है, सिनेमा के साथ अन्याय करने के तुल्य होगा। सिनेमा का प्रभाव समाज पर कैसा पड़ता है, यह समाज की मानसिकता पर निर्भर करता है। सिनेमा में प्रायः अच्छे एवं बुरे दोनों पहलुओं को दर्शाया जाता है। समाज यदि बुरे पहलुओं को आत्मसात् करे, तो इसमें सिनेमा का क्या दोष है।

विवेकानन्द ने कहा था “संसार की प्रत्येक चीज अच्छी है, पवित्र है और सुन्दर है। यदि आपको कुछ बुरा दिखाई देता है, तो इसका अर्थ यह नहीं कि वह चीज बुरी है। इसका अर्थ यह है कि आपने उसे सही रोशनी में नहीं देखा।” द्वितीय विश्वयुद्ध के समय ऐसी फिल्मों का निर्माण हुआ , जो युद्ध की त्रासदी को प्रदर्शित करने में सक्षम थीं। ऐसी फिल्मों से समाज को एक सार्थक सन्देश मिलता है। सामाजिक बुराइयों को दूर करने में सिनेमा सक्षम है। दहेज प्रथा, बाल विवाह इस जैसी अन्य सामाजिक समस्याओं का फिल्मों में चित्रण कर कई बार परम्परागत बुराइयों का विरोध किया गया है। समसामयिक विषयों को लेकर भी सिनेमा निर्माण सामान्यतया होता रहा है।

भारत की पहली फिल्म ‘राजा हरिश्चन्द्र’ थी । दादा साहब फाल्के द्वारा यह मूक फिल्म वर्ष 1913 में बनाई गई थी। उन दिनों फिल्मों में काम करना अच्छा नहीं समझा जाता था, तब महिला किरदार भी पुरुष ही निभाते थे। जब फाल्के जो से कोई यह पूछता कि आप क्या करते हैं, तब वे कहते थे “एक हरिश्चन्द्र की फैक्ट्री है, हम उसी में काम करते हैं। उन्होंने फिल्म में काम करने बाले सभी पुरुषकर्मियों को भी यही कहने की सलाह दे रखी थी, किन्तु धीरे-धीरे फिल्मों का समाज पर सकारात्मक प्रमाण देख इनके प्रति लोगों का दृष्टिकोण भी सकारात्मक होता गया। 

भारत में इम्पीरियल फिल्लमा कम्पनी द्वारा आर्देशिर ईरानी के निर्देशन में वर्ष 1981 में पहली बोलती फिल्म ‘आलमआरा’ बनाई गई। प्रारम्भिक दौर में भारत में पौराणिक एवं ऐतिहासिक फिल्मों का बोलबाला रहा, किन्तु समय बीतने के साथ-साथ सामाजिक, राजनीतिक एवं साहित्यिक फिल्मों का भी बड़ी संख्या में निर्माण किया जाने लगा।

छत्रपति शिवाजी, झाँसी की रानी, मुगले आजम, मदर इण्डिया आदि फिल्मों ने समाज पर अपना गहरा प्रभाव डाला। उन्नीसमी सदी के साठ-सत्तर एवं उसके बाद के कुछ दशकों में अनेक ऐसे भारतीय फिल्मकार हुए, जिन्होंने कई सार्थक एवं समाजोपयोगौ फिल्मों का निर्माण किया। 

सत्यजीत राय (पाथेर पांचाली, चारुलता, शतरंज के खिलाड़ी), बी. शान्ताराम (डॉ. कोटनिस की अमर कहानी, दो आँखें बारह हाथ, शकुन्तला ), ऋत्विक घटक (मेघा ढाके तारा), मृणाल सेन (ओकी ओं कथा), अडूर गोपाल कृष्णन (स्वयंवरम्), श्याम बेनेगल (अंकुर, निशान्त, सूरज का सातवाँ घोड़ा), बासु भट्टाचार्य (तीसरी कसम), गुरुदत्त (प्यासा, कागज के फूल, साहब बीबी और गुलाम) और विमल राय (दो बीघा जमीन, बन्दिनी, मधुमती) भारत के कुछ ऐसे ही प्रसिद्ध फिल्मकार है।

सिनेमा का उद्देश्य मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञान में वृद्धि करना भी होता है, किन्तु सिनेमा के निर्माण में निर्माता को अत्यधिक धन निवेश करना पड़ता है, इसलिए वह लाभ अर्जित करने के उद्देश्य से कुछ ऐसी बातों, स्थानों आदि को भी सिनेमा में जगह देता है या देना शुरू करता है, जो भले ही समाज का स्वच्छ मनोरंजन न करती हों, पर जिन्हें देखने वाले लोगों की संख्या अधिक हो। 

गीत-संगीत, नाटकीयता एवं मार-धाड़ से भरपूर फिल्मों का निर्माण भी अधिक दर्शक संख्या को ध्यान में रखकर किया जाता है। सार्थक और समाजोपयोगी सिनेमा आम आदमी की समझ से भी बाहर होता है एवं ऐसे सिनेमा में आम आदमी की रुचि भी नहीं होती, इसलिए समाजोपयोगी सिनेमा के निर्माण में लगे धन की वापसी की प्राय: कोई सम्भावना नहीं होती।

इन्हीं कारणों से निर्माता ऐसी फिल्मों के निर्माण से बचते हैं। बावजूद इसके कुछ ऐसे निर्माता भी हैं, जिन्होंने समाज के विशेष वर्ग को ध्यान में रखकर सिनेमा का निर्माण किया, जिससे न केवल सिनेमा का, बल्कि समाज का भी भला हुआ। ऐसी कई फिल्मों के बारे में सत्यजीत राय कहते हैं, “देश में प्रदर्शित किए जाने पर मेरी जो फिल्में लागत भी नहीं बसूल पार्ती, उनका प्रदर्शन विदेश में किया जाता है, जिससे बाटे की भरपाई हो जाती है।” वर्तमान समय में ऐसे फिल्म निर्माताओं में प्रकाश झा एवं मधुर भण्डारकर का नाम लिया जा सकता है। इनकी फिल्मों में भी आधुनिक समाज को भली-भाँति प्रतिबिम्बित किया जाता है, जिससे व्यक्ति के ज्ञानकोष में वृद्धि होती है।

Impact Cinema On Society Essay in Hindi

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सिनेमा देखते समय मनुष्य अपने जीवन की वास्तविक कठिनाइयों और कटुता को भुलाकर कल्पनामय सुखद लोक में विचरण करने लगता है। उसके जीवन की एकरसता दूर हो जाती है। साधारण व्यक्ति का जीवन संघर्षमय एवं कठिनाई से भरा होता है। इस नीरसता को दूर करने में सिनेमा बड़ी प्रभावशाली भूमिका निभाता है। गरीब से गरीब व्यक्ति अपने जीवन के सभी अभावों एवं कटुताओं को कुछ समय के लिए भूलकर कल्पना लोक में भ्रमण करने लगता है।

इस प्रकार, समाज के प्रत्येक वर्ग के लोगों का मनोरंजन करने का यह बड़ा सशक्त और सुगम साधन है। पर्दे पर देश-विदेश के मनोहारी दृश्य, हैरतअंगेज कारनामे, रोमांस का बातावरण और सुन्दर तथा विशाल अट्टालिकाएँ आदि देखकर सभी व्यक्ति पुलकित और आनन्दित हो उठते हैं।

सिनेमा केवल मनोरंजन का साधन ही नहीं है, अपितु इसके अनेक लाभ भी हैं। इसने रंगमंच का विकास किया है। नाटकों में बहुत से दृश्यों को आसानी से नहीं दिखाया जा सकता है, उन्हें सिनेमा बड़ी सरलता से दिखाने में सफल होता है। सिनेमा के माध्यम से अनेक कलाओं का विकास हुआ है। बड़े-बड़े सेटों के सजने में मूर्तिकला एवं वास्तुकला के विकास में भी सिनेमा ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। संगीत, नृत्य, काव्यकला, कथोपकथन आदि कलाओं की व्यापक उन्नति सिनेमा की ही देन है।

शिक्षा की दृष्टि से भी सिनेमा बड़ा ही उपयोगी सिद्ध हुआ है। सामाजिक बुराइयों को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करके सिनेमा अपने दर्शकों को उनके प्रति सचेत करता है। सिनेमा सामाजिक बुराइयों को दूर करके और उपाय सुझाकर हमारी ज्ञान वृद्धि में सहायक सिद्ध हुआ है। वास्तविक जीवन में भूत, वर्तमान और भविष्य को एकसाथ देखना सम्भव नहीं होता है। 

सिनेमा के पर्दे पर हम इसे आसानी से देख सकते हैं। पुस्तक पढ़ने की अपेक्षा सिनेमा के पर्दे पर देखी गई बातों का प्रभाव अधिक व्यापक, स्थायी और प्रत्यक्ष होता है। जो बातें सप्ताहों तक पुस्तकों को पढ़कर हम आत्मसात् नहीं कर पाते हैं, उन्हें सिनेमा द्वारा कुछ घण्टों में ही आसानी से समझ सकते हैं। समाज की मनोवृत्ति को बदलने में सिनेमा बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

सिनेमा प्रचार का बड़ा सशक्त माध्यम है। किसी सन्देश को व्यापक रूप से प्रसारित करने में सिनेमा बड़ा उपयोगी सिद्ध होता है। युद्ध या किसी राष्ट्रीय संकट काल में प्रभावी चलचित्रों के माध्यम से जनता का मनोबल बढ़ाकर उनमें जागृति लाई जा सकती है। सिनेमा द्वारा विज्ञापन बड़े आकर्षक ढंग से किया जा सकता है। चलचित्र के प्रारम्भ में स्लाइडों तथा विशेष रूप से तैयार किए गए लघु चित्र दिखाकर वस्तु की उपयोगिता बड़ी आसानी से समझाई जा सकती है। जनता मे नई-नई वस्तुओं का अधिकाधिक प्रचार करने में सिनेमा मुख्य भूमिका निभाता है।

सिनेमा का एक बड़ा लाभ यह भी है कि इसके माध्यम से देश-विदेश के महान साहित्य को केबल शिक्षित लोगों के एकाधिकार से निकालकर सामान्य जनता के समक्ष लाया जा सकता है। रामचरितमानस, शकुन्तला, गोदान, चित्रलेखा, देवदास, माँ जैसी प्रसिद्ध रचनाएँ, जो कुछ समय पहले कुछ पढ़े-लिखे लोगों तक सीमित थीं, आज सिनेमा की बदौलत जन-जन तक पहुँच गई हैं। सिनेमा में अनेक वर्गों और हितों के दृष्टिकोणों को प्रभावशली ढंग से प्रस्तुत किया जाता है। समस्या के दोनों पक्षों का इस प्रकार चित्रण किया जाता है कि दर्शक समस्या का समाधान खोज सकें। इससे जनता में संकीर्णता दूर होती है और उनका दृष्टिकोण उदार और व्यापक बन जाता है।

वर्तमान में परम्परागत फिल्मों से हटकर सामाजिक सरोकारिता वाली फिल्मों का निर्माण बड़े पैमाने पर हो रहा है। टॉयलेट-एक प्रेम कथा, न्यूटन, कड़वी हवा, क्वीन, पैडमैन, आर्टिकल 15 आदि इस श्रृंखला की फिल्में हैं। इन सभी फिल्मों में विभिन्न सामाजिक समस्याओं की तरफ ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की गई है।

ऐसी फिल्मों का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है एवं लोग सिनेमा से शिक्षा ग्रहण कर समाज सुधार के लिए कटिबद्ध होते हैं। इस प्रकार, आज भारत में बनाई जाने वाली फिल्में सामाजिक व सांस्कृतिक मूल्यों को पुनर्स्थापित करने की दिशा में भी कारगर सिद्ध हो रही हैं। ऐसे में भारतीय फिल्म निर्माताओं द्वारा निर्मित की जा रही फिल्मों से देशवासियों की उम्मीदें काफी बढ़ गई है, जो भारतीय फिल्म उद्योग के लिए सकारात्मक भी हैं।

सिनेमा से जहाँ अनेक लाभ हैं, वहीं कुछ हानियाँ भी हैं। सिनेमा देखकर दर्शक जीवन की वास्तविकता से दूर होकर हवाई किले बनाने लगता है। भारत के चलचित्रों में अधिकांशतः प्रेम कहानियाँ दिखाई जाती है। पिछले कुछ दशकों से भारतीय समाज में राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक बुराइयाँ, भ्रष्टाचार आदि में वृद्धि हुई है, इसका प्रभाव इस दौरान निर्मित फिल्मों पर भी दिखाई पड़ा है। 

फिल्मों में आजकल सेक्स और हिंसा को कहानी का आधार बनाया जाने लगा है। तकनीकी दृष्टिकोण से देखा जाए, तो हिंसा एवं सेक्स को अन्य रूप में भी कहानी का हिस्सा बनाया जा सकता है, किन्तु युवा वर्ग को आकर्षित कर धन कमाने के उद्देश्य से जान-बूझकर सिनेमा में इस प्रकार के चित्रांकन पर बल दिया जाता है। इसका कुप्रभाव समाज पर भी पड़ता है। 

दुर्बल चरित्र वाले लोग फिल्मों में दिखाए जाने वाले अश्लील एवं हिंसात्मक दृश्यों को देखकर व्यावहारिक दुनिया में भी गलत-व्यग्रहार करने लगते हैं। इस प्रकार, नकारात्मक फिल्मों से समाज में अपराध का ग्राफ भी प्रभावित होने लगता है। इसका किशोर मन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। वे छोटी उम्र में ही अपने आवेगों पर से नियन्त्रण खो बैठते हैं। सिनेमा की चकाचौंध से प्रभावित होकर बहुत से लोग बुरे कार्यों में लिप्त होकर अपने शौक को पूरा करने के लिए धन जुटाने लगते हैं।

इसके साथ ही, मार-काट, हिंसा, बलात्कार, चोरी और डकैती आदि के व्यापक प्रदर्शन से बाल युवा मन पर बढ़ा प्रभाव पड़ता है। इसके फलस्वरूप वर्तमान समाज में हिंसा और अव्यवस्था फैलती जा रही है, जो समाज को कुप्रभावित कर रहा है। सिनेमा का स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। बन्द हॉल में घण्टों तक स्वच्छ वायु नहीं मिलती है। इसमें साँस लेकर हमारे फेफड़े कमजोर हो जाते हैं। हमारी आँखों पर भी सिनेमा के पर्दे पर पड़ने वाली तेज रोशनी का बुरा प्रभाव पड़ता है।

वर्ष 2018 के दादा साहेब फाल्के पुरस्कार विजेता अमिताभ बच्चन और ऐश्वर्या राय द्वारा पोलियो मुक्ति अभियान के अन्तर्गत कहे गए शब्दों ‘दो बूँद जिन्दगी की’ का समाज पर स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है। लता मंगेशकर, आशा. भोसले, मोहम्मद रफी, मुकेश आदि फिल्म से जुड़े गायक-गायिकाओं के गाए गीत लोगों की जुबान पर सहज ही आ जाते है। स्वतन्त्रता दिवस हो, गणतन्त्र दिवस हो या फिर रक्षाबन्धन जैसे अन्य त्योहार, इन अवसरों पर भारतीय फिल्मों के गीतों का बजना या गाया जाना हमारी संस्कृति का अंग बन चुका है।

वर्तमान समय में भारतीय फिल्म उद्योग विश्व में दूसरे स्थान पर है। आज हमारी फिल्मों को ऑस्कर पुरस्कार मिल रहे हैं। यह हम भारतीयों के लिए गर्व की बात है। निर्देशन, तकनीक, फिल्मांकन, लेखन, संगीत आदि सभी स्तरों पर हमारी फिल्में विश्वस्तरीय है। आज हमारे निर्देशकों, अभिनय करने वाले कलाकारों आदि को न केवल हॉलीवुड में काम करने का अवसर मिल रहा है, बल्कि धीरे-धीरे में विश्व स्तर पर स्थापित भी होने लगे हैं। आज आम भारतीयों द्वारा फिल्मों से जुड़े लोगों को काफी महत्त्व दिया जाता है।

सामाजिक मुद्दों पर निबंध | Samajik nyay

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मेरा नाम सविता मित्तल है। मैं एक लेखक (content writer) हूँ। मेैं हिंदी और अंग्रेजी भाषा मे लिखने के साथ-साथ एक एसईओ (SEO) के पद पर भी काम करती हूँ। मैंने अभी तक कई विषयों पर आर्टिकल लिखे हैं जैसे- स्किन केयर, हेयर केयर, योगा । मुझे लिखना बहुत पसंद हैं।

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सिनेमा का जीवन पर प्रभाव निबंध Essay on Impact of Cinema in Life Hindi

सिनेमा का जीवन पर प्रभाव निबंध Essay Impact of Cinema in Life Hindi

इस लेख में हिंदी में सिनेमा का जीवन पर प्रभाव निबंध (Essay on Impact of Cinema in Life Hindi) को बेहतरीन ढंग से समझाया गया है। 

इसमें सिनेमा का जीवन पर प्रभाव, सिनेमा का बच्चों पर प्रभाव, सिनेमा का युवाओं पर प्रभाव, सिनेमा देखने के फायदे व नुकसान और किस प्रकार के सिनेमा बनाए जाने चाहिए इत्यादि के विषय में चर्चा किया गया है। 

Table of Content

आज के आधुनिक जमाने में सिनेमा का हमारे जीवन पर बहुत प्रभाव बढ़ गया है। अब हर दिन नये नये मल्टीप्लेक्स, माल्स खुल रहे है जिसमे हर हफ्ते नई नई फिल्मे दिखाई जाती है।

इंटरनेट तकनीक सुलभ हो जाने से और नये नये स्मार्टफोन आ जाने की वजह से आज हर बच्चा, बूढ़ा या जवान अपने मोबाइल फोन में ही सिनेमा देख सकता है। आज हम अपने टीवी , कम्प्यूटर , लैपटॉप , फोन में सिनेमा देख सकते हैं। इस तरह इसका प्रभाव और भी व्यापक हो गया है।

पिछले 50 सालों में यह देश में मनोरंजन का सशक्त साधन बनकर उभरा है। अब भारत में सिनेमा का व्यवसाय हर साल 13800 करोड़ से अधिक रुपये का है। इसमें लाखो लोगो को रोजगार मिला हुआ है।

पूरे विश्व में भारत का सिनेमा उद्द्योग अमेरिका के उद्द्योग के बाद दूसरे नम्बर पर आता है। सब तरफ इसकी तारीफ़ हो रही है।

सिनेमा का जीवन पर प्रभाव Effect of Cinema on Life in Hindi

आज का दौर नवीनता के उत्थान का समय है। जहां कल्पना से निर्मित चीजों को लोगों के बीच एक मनोरंजन की तरह परोसा जा रहा है। 

सिनेमा यह समाज का एक दर्पण स्वरूप होता है, जो कलात्मक ही सही लेकिन समाज में रही हर एक छोटी से छोटी प्रतिबिंब को दर्शाता है। आज के दौर में सिनेमा हर इंसान के जीवन पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डाल रहा है।

जिस तरह एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं, उसी प्रकार सिनेमा भी समाज पर नकारात्मक व सकारात्मक दोनों ही तरह से प्रभाव छोड़ता है। आधुनिक समय में दूषित तथा अच्छी दोनों ही तरह की फिल्में बनाई जाती हैं, लेकिन यह दर्शकों पर निर्भर करता है कि वह कैसी फिल्मों को देखें। 

सिनेमा का बच्चों पर प्रभाव Effect of Cinema on Children in Hindi

जब भी इंडस्ट्री में कोई नई फिल्म आने वाली होती है, तो ज्यादातर बच्चे ही इसके लिए बड़े उत्सुक होते हैं। इतना उत्साह तो बच्चों को पढ़ाई लिखाई में भी नहीं आता जितना कि सिनेमा देखने में मिलता है। 

लेकिन मनोरंजन के प्रति यह व्यवहार जीवन का आदत बन सकता है, जिससे शिक्षा पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

बच्चे किसी भी नई चीज को सीखने में बड़े माहिर होते हैं। सिनेमा जगत में ऐसी केवल गिनती भर की फिल्में है, जो बच्चों के लिए अच्छी मानी जा सकती हैं। 

ऐसे कई संवेदनशील दृश्यों को फिल्मों में प्रदर्शित किया जाता है, जो बच्चों को कतई नहीं देखनी चाहिए। माता पिता को हमेशा अपने मौजूदगी में ही बच्चों को सिनेमा देखने देना चाहिए।

बच्चे किसी भी देश का भविष्य होते हैं। वे नहीं जानते कि उन्हें क्या देखना चाहिए और क्या नहीं लेकिन सिनेमा जगत आज बुरी तरह से दूषित हो चुका है, इसीलिए बच्चे किसी भी कीमत पर ऐसी फिल्मों के प्रभाव के दायरे में नहीं आने चाहिए। 

सिनेमा का युवाओं पर प्रभाव Impact of Cinema on Youth in Hindi

यह एक दुखद सच है कि आज की युवा पीढ़ी चकाचौंध से भरे पड़े सिनेमा जगत के सितारों को अपना आदर्श मान रही है। उठते-बैठते, सोते-जागते हर समय लोग इन्हीं आदर्शों की तरह व्यवहार करना चाहते हैं।

इस बात से यह अंदाजा लगाया जा सकता है, कि सिनेमा युवाओं के मस्तिष्क तक कितना घर कर गई है, कि यह उनके रोजमर्रा के आदतों में भी समा चुकी है।

किसी भी चीज को पूरी तरह से नकार देना यह सही बात नहीं है। हम जानते हैं कि सिनेमा जगत में ऐसी हजारों फिल्में बनाई गई हैं, जो लोगों को उत्साहित और संघर्ष करने के लिए प्रेरणा देती हैं। 

लेकिन यह भी असलियत है कि आज का सिनेमा जगत लोगों को गुमराह कर रहा है। चंद मुनाफे के लिए यही तथा कथित आदर्श जन युवाओं को किसी मदारी की तरह नचा रहे हैं। 

उदाहरण के तौर पर कई फिल्मी अभिनेता जिनकी फैन फॉलोइंग करोड़ों में है, लेकीन वे विमल गुटखा और नशीली खाद्य सामग्रियों का प्रचार प्रसार करते हुए साफ़ देखे जा सकते हैं। यह आम बात है कि ऐसे कलाकारों को आदर्श मानने वाले युवाओं को उनके जैसे बर्ताव करने में गर्व महसूस होगा।

सिनेमा देखने के फायदे व नुकसान Advantages and Disadvantages of Watching Movies in Hindi

सिनेमा देखने के फायदे advantages of watching movies in hindi, रचनात्मक विचार.

अपनी कल्पना शक्ति बढ़ाने की इच्छा रखने वाले लोगों को अच्छी फिल्में जरूर देखना चाहिए। यह सिर्फ मनोरंजन का साधन ही नहीं, बल्कि ऐसी मजेदार चीजों को प्रस्तुत करता है जिनसे हमारे स्वयं के विचारों में भी बदलाव आते हैं। 

अक्सर यह देखा गया है की बेहतरीन और शिक्षा देने वाली फिल्में देखने से लोगों के विचार शक्ति में सकारात्मक बदलाव आता है, जो रचनात्मकता को बढ़ावा देता है।

सामाजिक समस्याओं का आइना 

लोगों के पास आज के समय में अलग से समय निकालकर सामाजिक मुद्दों पर बातचीत करने का जरा भी समय नहीं है। ऐसे में सिनेमा किसी रामबाण की तरह कार्य करता है, जो मनोरंजन के साथ ही लोगों को सामाजिक समस्याओं से भी रूबरू कराता है। 

टॉयलेट एक प्रेम कथा, पैडमैन, और छपाक जैसे ढेरों ऐसी फिल्में है, जो समाज का प्रतिबिंब बनकर लोगों को इसके विषय में जागरूक बनाती है।

मनोरंजन का साधन

दुनिया की अधिकतर आबादी के लिए मनोरंजन का सबसे अच्छा विकल्प सिनेमा ही माना जाता है। लोग नई फिल्में रिलीज होने के लिए लंबे समय से इंतजार करते हैं। बच्चे, बड़े और बूढ़ो सभी उम्र के लोगों को फिल्म देखना बेहद पसंद होता है।

लोगों के लिए रोजगार

सिनेमा हमारे मनोरंजन के साथ ही लाखों लोगों के लिए रोजगार का काम भी करता है। एक फिल्म के निर्माण में कई लोग साथ मिलकर काम करते हैं, इसके लिए उन्हें उनके काम के अनुसार पैसे भी दिए जाते हैं। 

इसके अलावा ही जब भी कोई नई फिल्म रिलीज होती है, तो सिनेमा घर के बाहर प्रतिदिन हजारों लोगों का आवागमन बना रहता है, जिससे वहां के स्थानीय  विक्रेताओं को भी मुनाफा मिलता है।

विभिन्न संस्कृतियों का परिचय

सिनेमा एक नहीं बल्कि विभिन्न पहलुओं से लाभदायक है। क्योंकि इससे हमें ऐसी नई संस्कृतियों व भाषाओं के बारे में पता चलता है, जिसके विषय में शायद आपने कभी नहीं सुना होगा। इस प्रकार सिनेमा विभिन्न संस्कृतियों का परिचय कराने के लिए भी फायदेमंद है।

नए समाज के निर्माण में भूमिका

फिल्मों में किरदार निभाने वाले कलाकारों का जितना प्रभाव बच्चों और युवाओं पर पड़ता है, उतना शायद किसी दूसरे का नहीं होता। वर्तमान पीढ़ी अधिकतर सिनेमा को अपना आदर्श बनाए बैठी है। 

ऐसे में यह सबसे बड़ा अवसर है कि इन बड़े कलाकारों द्वारा समाज को एक सही राह दिखाया जाए, जिससे भटकी हुई पीढ़ी भी अपनी राह पर चलने लगे।

प्रेरणादायक कहानियां

महापुरुषों की प्रेरणादायक जीवनी से लेकर संघर्ष करके लोगों के सामने एक मिसाल पेश करने वाले लोगों के ऊपर सिनेमा में कई फिल्में बनाई जाती है। यह न केवल दिलचस्प होती है, बल्कि प्रेरणादायक भी होती हैं।

नए स्थलों की जानकारियाँ

एक फिल्म की शूटिंग के लिए अलग-अलग जगहों को चुना जाता है। अक्सर हम फिल्मों में नई नई जगह के बारे में सुनते और देखते हैं। इससे हमें उन स्थलों के बारे में पता चलता है। इस तरह नए स्थलों की जानकारियों के लिए सिनेमा देखना बहुत ही अच्छा विकल्प हो सकता है।

तनाव को कम करने में सहायक

आज इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में हर कोई किसी न किसी कारण से तनाव में रहता है। ऐसे में मन को फ्रेश और ऊर्जावान महसूस करवाने के लिए फिल्में देखना असरदार हो सकता है। 

कॉमेडी, थ्रिलर और सस्पेंस से भरी हुई मजेदार फिल्में हमारे मन को शांत कर देती हैं और कुछ देर के लिए ही सही तनाव को भी पूरी तरह से मिटा देती हैं।

जागरूकता बढ़ाने में सक्षम

फिल्में देखना तो हर किसी को पसंद होता है। यह आश्चर्य की बात है की वर्तमान पीढ़ी पर सिनेमा उतना ही प्रभाव छोड़ती हैं, जितना कि किसी स्थल पर प्राकृतिक आपदाएं। समाज में जागरूकता फैलाने के लिए सिनेमा किसी ब्रह्मास्त्र से कम नहीं है।

सिनेमा देखने के नुकसान Disadvantages of Watching Cinemas in Hindi

अपराध का कारण.

पहले बताया गया की आधुनिक युवा पीढ़ी सिनेमा से सबसे ज्यादा प्रभावित रहती है। इस कारण फिल्मों में अच्छी चीजों के अलावा चोरी, डकैती, लूटमार, हत्या, इत्यादि जैसे अनगिनत अपराध भी दिखाई जाते हैं। 

जाहिर सी बात है की ऐसी चीजें भी लोगों के दिमाग में वेग की त्रिविता से घर कर जाती हैं, जो उनके जीवन की आदत बन जाती हैं। आज बढ़ते अपराध का एक कारण सिनेमा को भी माना जा सकता है।

शिक्षा पर नाकारात्मक प्रभाव

यह एक कड़वी सच्चाई है कि छात्रों को अपने पाठ्यक्रम का अता पता हो, कि नहीं लेकिन फिल्मों के डायलॉग्स जरूर याद होता है। अभद्रता और गालियों से भरी हुई फिल्मों को युवा पीढ़ी द्वारा देखा जा रहा है। ऐसे में सिनेमा के कारण शिक्षा की दुनिया धुंधली पड़ती जा रही है।

संस्कारों का नाश

एक समय हुआ करता था जब फिल्में लोगों की भावनाओं के रंग में रंग जाती थी। जहां बड़े ही सभ्यता और मजेदार तरीके से फिल्में परोसी जाती थी। लेकिन आज का वक्त बिल्कुल विपरीत है। 

आज की फिल्मों में जितने अभद्र भाषा, अश्लीलता को प्रस्तुत किया जाता है वो फिल्में उतनी ही लोगों द्वारा पसंद की जाती हैं। यह सीधे तौर पर संस्कारों का नाश है।

सिनेमा देखने की लत

सिनेमा देखने का यह एक नकारात्मक पहलू है कि जब भी कोई फिल्म या सीरीज दर्शक देखने लगते हैं, तो उन्हें इसकी लत लग जाती है। सुनने में तो यह किसी आम शब्द के जैसा है, लेकिन यह कब आपका जीवन और स्वास्थ्य खराब कर दे कोई भी गारंटी नहीं है।

समय, धन और ऊर्जा का व्यय

ऐसी फिल्में देखना एक प्रकार से समय , धन और ऊर्जा का बेफिजूल खर्च ही होगा, जिससे आपको कुछ सीखने और नया जानने को ना मिले। आज की अधिकतर फिल्में इसी रोड मैप को अपनाकर काम कर रहे हैं।

भारतीय संस्कृति का परित्याग

यह खेद की बात है कि जहां भारतीय फिल्में अपनी संस्कृति को बनाए रखकर प्रस्तुत किए जाते थे, वही आज पाश्चात्य संस्कृति की तौर-तरीकों पर बनाए जा रहे हैं। सिनेमा जगत में बनाई जा रही अधिकतर फिल्में पाश्चात्य सभ्यता के नक्शे कदम पर चल रहे हैं।

वयस्क सामग्री का प्रदर्शन

इस दूषित युग में सिनेमा इंडस्ट्री भी पूरी तरह से दूषित हो चुकी है। यहां संगीत के नाम पर कर्कश, असंगत, और भड़कीले गाने बनाए जाते हैं, जिन्हें लोग भी ख़ूब पसंद करते हैं। 

वयस्क सामग्रीयों को आज मनोरंजन के नाम पर खुलेआम प्रस्तुत किया जा रहा है। यह किसी भी मायने में एक अच्छे समाज के निर्माण में कामगार नहीं साबित हो सकता।

झूठी धारणाओं का प्रचलन

सिनेमा के शौकीन लोगों को इसके द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले झूठे धारणाओं से बचने की सख्त आवश्यकता है। कई बार इसी कारण देश में हिंसक वातावरण भी बन जाते हैं। इस तरह सिनेमा के सबसे नकारात्मक पहलुओं में झूठी धारणाओं का प्रचलन भी शामिल है।

नशीली सामग्रियों का खुला प्रचार

अक्सर फिल्मों में कई ऐसे किरदार होते हैं, जो नशीली पदार्थों का सेवन करते हुए दिखाई जाते हैं। इसकी पूरी संभावना है कि युवा जो उन किरदार को निभाने वाले अभिनेता या अभिनेत्रियों को आदर्श मानते हैं वह भी उनकी तरह वास्तविक जिंदगी में नशीली सामग्रियों का सेवन करेंगे। 

चंद पैसों के लिए तथाकथित मनोरंजन करने वाले ऐसे लोगों को ऐसी सामग्रियों का खुला प्रचार बंद करना चाहिए।

धर्म विशेष का आपत्तिजनक प्रदर्शन

यह एक ट्रेंड बन गया है कि फिल्म इंडस्ट्री में किसी समुदाय अथवा धर्म विशेष के ऊपर आपत्तिजनक दृश्य या वाक्य को प्रदर्शित करके प्रसिद्धि बटोरी जा रही है, भले ही वह नकारात्मक ही क्यों न हो। सिनेमा जगत को ऐसे संवेदनशील मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए और अपने सीमा में रहते हुए अपना कार्य करना चाहिए।

किस प्रकार के सिनेमा बनाए जाने चाहिए? What Kind of Cinema Should be Made?

  • ऐसी फिल्में जो शिक्षा को बढ़ावा दे
  • महिलाओं के अधिकारों के संबंध में जागरूकता फैलाएं
  • सामाजिक मुद्दों पर खुलकर बात करे
  • पुरानी रूढ़िवादी प्रथाओं के विरुद्ध जागरूकता बढ़ाए
  • भारतीय संस्कृति को बढ़ावा दे
  • नशीली सामग्रियों के खिलाफ उदाहरण पेश करे

निष्कर्ष Conclusion

इस लेख में आपने सिनेमा का जीवन पर प्रभाव निबंध (Essay on impact of cinema on life in Hindi) को पढ़ा। आशा है यह लेख आपको जानकारी से भरपूर लगा होगा। अगर यह लेख आपको अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें।

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this is very nice

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सिनेमा के लाभ और हानि हिंदी निबंध Cinema Boon or Bane Essay in Hindi

सिनेमा के लाभ और हानि हिंदी निबंध Cinema Boon or Bane Essay in Hindi: आज का युग चलचित्रों का युग है। आए दिन नए-नए चलचित्र प्रदर्शित होते रहते हैं। आधुनिक विज्ञान का यह सबसे दिलचस्प आविष्कार हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गया है। बड़े-बड़े शहरों से लेकर कस्बों और गाँवों में भी सिनेमा-घर खुल गए हैं। अमीर और गरीब सभी उसके आशिक हैं।

सिनेमा के लाभ और हानि हिंदी निबंध Cinema Boon or Bane Essay in Hindi

मनोरंजन का प्रमुख साधन

चलचित्र मनोरंजन का सबसे लोकप्रिय साधन है । भिन्न-भिन्न रुचिवाले सभी स्तर के लोग चलचित्रों से अपने मनोरंजन की भूख मिटाते हैं । चलचित्र को दिलचस्प कहानी, मधुर गीत-संगीत और निर्माण कला देखकर हमारी ऊब और थकान गायब हो जाती है। हम अपनी चिंता-व्यथा भूलकर ताजगी अनुभव करते हैं।

सामाजिक समस्याओं का समाधान

कुछ उत्तम कोटि के चलचित्र समाज-सुधार का अनोखा काम करते हैं। डाकू-समस्या, बेकारी, विधवा-विवाह, दहेज, भ्रष्टाचार, श्रम की महिमा, देशप्रेम, भाईचारा आदि पर बने चित्र लोगों को सुधार की प्रेरणा देते हैं।

शैक्षणिक योगदान

चलचित्र शिक्षा के प्रसार में भी बड़े उपयोगी हैं। इसके द्वारा वैज्ञानिक और भौगोलिक ज्ञान को अच्छी तरह प्रस्तुत किया जा सकता है। रामायण और महाभारत के प्रसंगों पर बने चित्र लोगों को सत्य, सदाचार और न्याय की प्रेरणा देते हैं । ऐतिहासिक फिल्में अपने युग का आइना बनकर हमें प्रभावित करती हैं । चलचित्र राष्ट्रीय एकता बढ़ाते और राष्ट्रभाषा का प्रचार भी करते हैं।

समाज पर बुरे परिणाम

सस्ते और रोमांचक चलचित्र समाज पर बुरा असर भी डालते हैं। इनके कारण समाज में फैशन, दिखावा और निरंकुशता की वृत्तियाँ फैलती हैं । सिनेमा के अश्लील और हिंसात्मक दृश्यो, भद्दे गीतों और पाश्चात्य नृत्यों के कारण लोगों में बुरे संस्कार पैदा होते हैं। कुछ फिल्में लोगों को हत्या, शोषण, चोरी, डकैती, तस्करी जैसी बुराइयों की ओर ले जाती हैं । सचमुच, ऐसी फिल्मों से लोगों के चरित्र का पतन होता है।

शासन का कर्तव्य

यदि हमारी सरकार और निर्माता अच्छे और सोद्देश्य चलचित्र बनाएँ तो निस्संदेह वे राष्ट्र और समाज के उत्थान का सबल साधन बन सकते हैं। जो काम बड़े-बड़े उपदेशक नहीं कर सकते, वह चलचित्र सरलता से कर सकते हैं। समाज को प्रगति की और ले जाने में नेता भले असफल रहें, पर अभिनेता इस कार्य में पूरी तरह सफल हो सकते है।

Rakesh More

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सिनेमा पर निबंध

Essay on Cinema in Hindi: हम यहां पर सिनेमा पर निबंध शेयर कर रहे है। इस निबंध में सिनेमा के संदर्भित सभी माहिति को आपके साथ शेअर किया गया है। यह निबंध सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए मददगार है।

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सिनेमा पर निबंध | Essay on Cinema in Hindi

सिनेमा पर निबंध (250 शब्द).

भारतीय सिनेमा मनोरंजन का एक बहुत अच्छा सस्ता और बढ़िया साधन है। इसमें मानव के जीवन के नाटक और हमारे समाज में हो रही बुराई अच्छाइयों का दृश्य देखने को मिलता है। फिल्म के दृश्य और गाने बहुत अधिक सुहावने लगते हैं। हमारे देश में बहुत बड़ी संख्या में हर साल बहुत फिल्में बनाई जाती है। भारतीय सिनेमा को विज्ञान के उपायों में एक बहुत ही सुंदर उपहार माना गया है इसीलिए आज भारतीय सिनेमा बहुत ही लोकप्रिय है।

जिस तरह सिनेमा जनसंसार मनोरंजन का एक लोकप्रिय माध्यम है, उसी प्रकार साहित्य समाज का दर्पण होता है। भारतीय सिनेमा में समाज को प्रतिबंधित किया है। भारतीय युवाओं के मन में प्रेम के प्रति आकर्षण उत्पन्न करने की बात हो या सिनेमा के कलाकारों के पहनावे के अनुसार फैशन का प्रचलन। इन सभी का हमारे समाज पर सिनेमा के द्वारा ही प्रभाव पड़ता है।

सिनेमा उद्योग भारत का सबसे पुराना उद्योग रहा है और आज भी सिनेमा ने बहुत बड़ा रूप ले लिया है। सिनेमा के माध्यम से देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी करोड़ों लोगों की आजीविका चलती है। आज हमारे भारतीय सिनेमा की सबसे महत्वपूर्ण देन हिंदी फिल्में रही है। उन्होंने हिंदी को ना केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारतीय सिनेमा ने बहुत महत्वपूर्ण स्थान दिलाया है।

भारत की आजादी के पश्चात सिनेमा जगत में देशभक्ति की जो भी फिल्में थी, उन्होंने लोगों के दिलों में देशभक्ति की भावना को जला कर रखा हुआ है। आज भी जब हम पुराने जितने भी देश भक्ति गाने सुनते हैं, उनसे हमारा मन देशभक्ति के लिए ओतप्रोत हो जाता है। भारतीय सिनेमा ने अपनी फिल्मों के माध्यम से ही देश की सभ्यता और संस्कृति को अभी तक जिंदा कर रखा है।

सिनेमा पर निबंध  (800 शब्द)

सिनेमा का आविष्कार आधुनिक समाज के दैनिक उपयोग और विलास की वस्तु है। हमारे सामाजिक जीवन में सिनेमा ने इतना महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है कि, उसके बिना सामाजिक जो जीवन है वह अधूरा अधूरा सा लगता है। सिनेमा देखना लोगों के जीवन की दैनिक क्रिया की तरह हो गया है। जैसे शाम को सिनेमा घर के सामने एकत्रित होकर सब ही लोग सीरियल, धार्मिक नाटक, फिल्में एक साथ देखते हैं। उससे सिनेमा की उपयोगिता का अनुमान लगाया जा सकता है। मनोरंजन सिनेमा का मुख्य प्रयोजन रहा है। दूसरे मनोरंजन के अतिरिक्त भी जीवन में सिनेमा का बहुत महत्व है और इसके बहुत से लाभ भी है।

सिनेमा का इतिहास

19वीं शताब्दी में अमेरिका के थॉमस अल्वा एडिसन ने सिनेमा का आविष्कार किया था। इन्होंने सन 1890 में सिनेमा को हमारे सामने प्रस्तुत किया था। पहले सिनेमा लंदन में कुमार नामक वैज्ञानिक के द्वारा दिखाया गया था। भारत में 1913 में दादा साहेब फाल्के के द्वारा सिनेमा बनाया गया, जिसकी बहुत प्रशंसा हुई। फिर इसके बाद तो बहुत सारे सिनेमा बनते चले गए। लेकिन सबसे जरूरी बात इसमें यह रही कि भारत का स्थान सिनेमा के महत्व की दिशा में विश्व में अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर आता है।

सिनेमा एक मनोरंजन का साधन

आज के समय में मानव अपने जीवन में इतना व्यस्त हो गया कि उसकी आवश्यकताएं भी बहुत बढ़ गई है। व्यस्तता के कारण मनुष्य के पास मनोरंजन के लिए बिल्कुल भी समय नहीं है। सभी लोग जानते हैं कि मनुष्य बिना भोजन के साथ कुछ समय तक स्वस्थ रह पाए। परंतु बिना मनोरंजन के साथ खुद को शारीरिक और मानसिक रूप से बिल्कुल स्वस्थ नहीं रख सकता। सिनेमा मनुष्य की बहुत जरूरी आवश्यकता की पूर्ति करता है। मानव के जीवन की उदासीनता और तनाव को दूर कर उसके अंदर ताजगी और दिन भर की थकान को भी मिटा देता है।

सिनेमा के लाभ

भारत में फिल्म जगत में उद्योग का भी दर्जा प्राप्त है।सिनेमा इंसान के पैसे कमाने का एक बहुत अच्छा साधन है। सिनेमा को बनाने से लेकर उसके विवरण और प्रदर्शन तक हर स्थान पर व्यवसायिकता का नाम देखा गया है। सिनेमाघरों में व्यापारिक विज्ञापन भी बहुत दिखाए जाते हैं क्योंकि जब सिनेमाघरों में बड़ी संख्या में लोग फिल्मों को देखने के लिए पहुंचते हैं। इससे जो भी व्यापारिक  विज्ञापन दिखाए जाते हैं उनके बारे में जानकारी सभी लोगों को मिल जाती है। व्यापारी वर्ग अपने विज्ञापन देकर अपने अपने व्यापार को बढ़ाने में सफल हुए है।

सिनेमा की हानि

जहां लोगों को सिनेमा के द्वारा लाभ होते हैं, वहां सिनेमा के द्वारा बहुत सी हानियां भी देखने को मिलती है। जब हम सिनेमा देखते हैं, तो स्वास्थ्य की दृष्टि से आंखों के लिए बहुत हानिकारक होता है। इसकी वजह से व्यक्ति की आंखों की रोशनी को नुकसान होता है और साथ में धन और समय दोनों ही बर्बाद होते है। इसके अलावा सिनेमा में अश्लील और सस्ते उत्तेजना पूर्ण चित्रों को देखने पर खुद के चरित्र का भी नुकसान होता है।

दुर्भाग्यवश यह कहने में कोई बुराई नहीं है, कि आज सिनेमा का प्रभाव मानव के जीवन में बहुत गलत हो गया है। क्योंकि इससे मनुष्य के अंदर कामुकता बनाने वाले अश्लील चित्र संवाद और गंदे गाने आदि बहुत गलत चीजें होती हैं और भारतीय सिनेमा के द्वारा ही धोखाधड़ी, फैशन, शराब, जुआ, मारधाड़, हिंसा, अपहरण बलात्कार, तस्करी, लूटपाट आदि जो भी समाज विरोधी दृश्यों को इसमें दिखाया जाता हैं। उन सब से युवक, बच्चे सभी लोग अनुशासनहीनता हो गए हैं।

आज के युवा वर्ग की मांग यह है कि वह दर्शकों को अपने देश की सभ्यता संस्कृति और गौरवपूर्ण परंपरा के दर्शन सिनेमा के माध्यम से कराएं। अच्छे चित्रों का निर्माण करके उनमें भारतीय संस्कृति सामाजिकता और नैतिक परंपराएं दिखाई जाए। जिससे दर्शकों के मन में अच्छी भावनाएं समाज और देश के प्रति आएंगे । जो फिल्म सेंसर बोर्ड है, उसको अपना कठोर रुख अपनाना चाहिए, जिससे की अश्लील और कामुकता और विलास से भरी जो भी फिल्में है वह संपूर्ण जनमानस में अश्लीलता कामुकता और विलास की भावना को बढ़ावा ना दें और इसके साथ ही सही शब्दों में सिनेमा एक वरदान के रूप में सिद्ध हो।

आज के आर्टिकल में हमने  सिनेमा पर निबंध ( Essay on Cinema in Hindi) के बारे में बात की है। मुझे पूरी उम्मीद है की हमारे द्वारा इस आर्टिकल में जानकारी आप तक पहुंचाई गयी है, वह पसंद आई होगी। यदि किसी व्यक्ति को इस आर्टिकल से सम्बंधित कोई भी सवाल है। तो वह हमें कमेंट में बता सकता है।

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Hindi Commercial Cinema: Bollywood Movies Essay

Introduction, importance of a topic.

Today, people get a good opportunity to learn about Indian society and its cultural peculiarities from a well-developed Hindi commercial film industry. In the chapter under analysis, Hasan (2010) examines Bollywood and Indian popular culture, focusing on complex relationships between the Indian state and the indigenous people who live in North-East India. Several key points make up the argument about the impact of commercial films and the role of the local identity of filmmakers. The author investigates the historical relationships between different regions of India, cultural assimilation, personal identity, political implications, and the creativity of Bollywood. Hindi commercial cinema is predetermined by past achievements, while modern producers use Bollywood as their form of cultural survival.

The author of the chosen reading aims at discussing the role of commercial movies in understanding Indian cultures in several regions. The relationships between North-East India and other parts of the Indian state were complex and characterized by inequality and dominance, and locally produced films show the creativity of indigenous filmmakers. In Bollywood, the imagination of producers threatened peripheral indigenous cultures but also promoted the recognition of a national cultural identity (Hasan, 2010). People believed that there was no need to borrow methods from the world but develop local traditions and share stories about Indians from different parts of the state.

Several critical issues prove how influential Hindi popular culture can be concerning the film industry. In India, many ethnic groups exist, and their development depends on different historical achievements and political decisions. Jawaharlal Nehru, the first Prime Minister in India, believed that North-East India had its future based on the policy of integration for indigenous societies (Hasan, 2010). This territory was represented as an amorphous mass, which explained the differences between people. The cultural autonomy of the region was recognized, but it was necessary to create one cultural identity where the representatives of different regional groups could cooperate. According to Hasan (2010), commercial movies were a serious step in this direction because local producers and filmmakers wanted to combine their cultural standards with indigenous beliefs and open the discourse of entertainment through assimilation. It was planned to obtain a balance and use Bollywood as a mediator in such complex relationships. Hindi movies introduced North-East India, underling the principles of nationalism and patriotism and showing the power of nostalgic vision. The promotion of digital technologies was another means to tell stories with clear pictures and pleasant music.

In general, the impact of Hindi commercial cinema on Indian cultures remains great. The industry consists of Bollywood movies and regional works and becomes one of the most meaningful art spheres in the whole world. Although filmmakers continue producing thousands of films annually, questioning their quality and context, millions of people can watch Indian movies and investigate the complex world of India. Bollywood producers consider their opportunities to reveal traditions, respect cultures, and underline the worth of contemporary social issues on the screen.

Hasan, D. (2010). Talking back to ‘Bollywood’: Hindi commercial cinema in North-East India. In S. Banaji (Ed.), South Asian media cultures: Audiences, representations, contexts (pp. 29-50). Anthem Press.

  • Chicago (A-D)
  • Chicago (N-B)

IvyPanda. (2022, October 11). Hindi Commercial Cinema: Bollywood Movies. https://ivypanda.com/essays/hindi-commercial-cinema-bollywood-movies/

"Hindi Commercial Cinema: Bollywood Movies." IvyPanda , 11 Oct. 2022, ivypanda.com/essays/hindi-commercial-cinema-bollywood-movies/.

IvyPanda . (2022) 'Hindi Commercial Cinema: Bollywood Movies'. 11 October.

IvyPanda . 2022. "Hindi Commercial Cinema: Bollywood Movies." October 11, 2022. https://ivypanda.com/essays/hindi-commercial-cinema-bollywood-movies/.

1. IvyPanda . "Hindi Commercial Cinema: Bollywood Movies." October 11, 2022. https://ivypanda.com/essays/hindi-commercial-cinema-bollywood-movies/.

Bibliography

IvyPanda . "Hindi Commercial Cinema: Bollywood Movies." October 11, 2022. https://ivypanda.com/essays/hindi-commercial-cinema-bollywood-movies/.

  • Bollywood Movies: History and the ‘Bollywood Movement’
  • Bollywood Film Industry Specifics
  • Bollywood Film Industry
  • Traffic Congestion and Hindi FM
  • "Bombay Talkies": The Celebration of Hindi Film Industry
  • Studio Frowns on Bollywood 'Button': Disregard for Copyright Issues in India
  • Globalization of Bollywood and Its Effects on the UAE
  • Bollywood's Cinema: Movies Marketing
  • Ethnicity Studies: Hindi Culture and Issues in the US
  • Pakistan: Culture and History
  • "V Is for Vendetta" Movie Analysis
  • Indiana Jones and the Raiders of the Lost Ark
  • Hirokazu Koreeda’s 'Nobody Knows' Movie Analysis
  • Love Conquers Everything: 'The Notebook' Movie by Cassavetes
  • Visual Screenwriting of Quentin Tarantino

Essay on Impact of Cinema in Life for Students and Children

500 words essay on impact of cinema in life.

Cinema has been a part of the entertainment industry for a long time. It creates a massive impact on people all over the world. In other words, it helps them give a break from monotony. It has evolved greatly in recent years too. Cinema is a great escape from real life.

essay on impact of cinema in life

Furthermore, it helps in rejuvenating the mind of a person. It surely is beneficial in many ways, however, it is also creating a negative impact on people and society. We need to be able to identify the right from wrong and make decisions accordingly.

Advantages of Cinema

Cinema has a lot of advantages if we look at the positive side. It is said to be a reflection of the society only. So, it helps us come face to face with the actuality of what’s happening in our society. It portrays things as they are and helps in opening our eyes to issues we may have well ignored in the past.

Similarly, it helps people socialize better. It connects people and helps break the ice. People often discuss cinema to start a conversation or more. Moreover, it is also very interesting to talk about rather than politics and sports which is often divided.

Above all, it also enhances the imagination powers of people. Cinema is a way of showing the world from the perspective of the director, thus it inspires other people too to broaden their thinking and imagination.

Most importantly, cinema brings to us different cultures of the world. It introduces us to various art forms and helps us in gaining knowledge about how different people lead their lives.

In a way, it brings us closer and makes us more accepting of different art forms and cultures. Cinema also teaches us a thing or two about practical life. Incidents are shown in movies of emergencies like robbery, fire, kidnapping and more help us learn things which we can apply in real life to save ourselves. Thus, it makes us more aware and teaches us to improvise.

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Disadvantages of Cinema

While cinema may be beneficial in many ways, it is also very damaging in various areas. Firstly, it stereotypes a lot of things including gender roles, religious practices, communities and more. This creates a false notion and a negative impact against that certain group of people.

People also consider it to be a waste of time and money as most of the movies nowadays are not showing or teaching anything valuable. It is just trash content with objectification and lies. Moreover, it also makes people addicts because you must have seen movie buffs flocking to the theatre every weekend to just watch the latest movie for the sake of it.

Most importantly, cinema shows pretty violent and sexual content. It contributes to the vulgarity and eve-teasing present in our society today. Thus, it harms the young minds of the world very gravely.

Q.1 How does cinema benefit us?

A.1 Cinema has a positive impact on society as it helps us in connecting to people of other cultures. It reflects the issues of society and makes us familiar with them. Moreover, it also makes us more aware and helps to improvise in emergency situations.

Q.2 What are the disadvantages of cinema?

A.2 Often cinema stereotypes various things and creates false notions of people and communities. It is also considered to be a waste of time and money as some movies are pure trash and don’t teach something valuable. Most importantly, it also demonstrates sexual and violent content which has a bad impact on young minds.

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The Influence of Hindi and Bollywood Cinema

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हिंदी निबंध (Hindi Nibandh / Essay in Hindi) - हिंदी निबंध लेखन, हिंदी निबंध 100, 200, 300, 500 शब्दों में

हिंदी में निबंध (Essay in Hindi) - छात्र जीवन में विभिन्न विषयों पर हिंदी निबंध (essay in hindi) लिखने की आवश्यकता होती है। हिंदी निबंध लेखन (essay writing in hindi) के कई फायदे हैं। हिंदी निबंध से किसी विषय से जुड़ी जानकारी को व्यवस्थित रूप देना आ जाता है तथा विचारों को अभिव्यक्त करने का कौशल विकसित होता है। हिंदी निबंध (hindi nibandh) लिखने की गतिविधि से इन विषयों पर छात्रों के ज्ञान के दायरे का विस्तार होता है जो कि शिक्षा के अहम उद्देश्यों में से एक है। हिंदी में निबंध या लेख लिखने से विषय के बारे में समालोचनात्मक दृष्टिकोण विकसित होता है। साथ ही अच्छा हिंदी निबंध (hindi nibandh) लिखने पर अंक भी अच्छे प्राप्त होते हैं। इसके अलावा हिंदी निबंध (hindi nibandh) किसी विषय से जुड़े आपके पूर्वाग्रहों को दूर कर सटीक जानकारी प्रदान करते हैं जिससे अज्ञानता की वजह से हम लोगों के सामने शर्मिंदा होने से बच जाते हैं।

आइए सबसे पहले जानते हैं कि हिंदी में निबंध की परिभाषा (definition of essay) क्या होती है?

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हिंदी निबंध (Hindi Nibandh / Essay in Hindi) - हिंदी निबंध लेखन, हिंदी निबंध 100, 200, 300, 500 शब्दों में

कुछ सामान्य विषयों (common topics) पर जानकारी जुटाने में छात्रों की सहायता करने के उद्देश्य से हमने हिंदी में निबंध (Essay in Hindi) और भाषणों के रूप में कई लेख तैयार किए हैं। स्कूली छात्रों (कक्षा 1 से 12 तक) एवं प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में लगे विद्यार्थियों के लिए उपयोगी हिंदी निबंध (hindi nibandh), भाषण तथा कविता (useful essays, speeches and poems) से उनको बहुत मदद मिलेगी तथा उनके ज्ञान के दायरे में विस्तार होगा। ऐसे में यदि कभी परीक्षा में इससे संबंधित निबंध आ जाए या भाषण देना होगा, तो छात्र उन परिस्थितियों / प्रतियोगिता में बेहतर प्रदर्शन कर पाएँगे।

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छात्र जीवन प्रत्येक व्यक्ति के जीवन के सबसे सुनहरे समय में से एक होता है जिसमें उसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है। वास्तव में जीवन की आपाधापी और चिंताओं से परे मस्ती से भरा छात्र जीवन ज्ञान अर्जित करने को समर्पित होता है। छात्र जीवन में अर्जित ज्ञान भावी जीवन तथा करियर के लिए सशक्त आधार तैयार करने का काम करता है। नींव जितनी अच्छी और मजबूत होगी उस पर तैयार होने वाला भवन भी उतना ही मजबूत होगा और जीवन उतना ही सुखद और चिंतारहित होगा। इसे देखते हुए स्कूलों में शिक्षक छात्रों को विषयों से संबंधित अकादमिक ज्ञान से लैस करने के साथ ही विभिन्न प्रकार की पाठ्येतर गतिविधियों के जरिए उनके ज्ञान के दायरे का विस्तार करने का प्रयास करते हैं। इन पाठ्येतर गतिविधियों में समय-समय पर हिंदी निबंध (hindi nibandh) या लेख और भाषण प्रतियोगिताओं का आयोजन करना शामिल है।

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निबंध, गद्य विधा की एक लेखन शैली है। हिंदी साहित्य कोष के अनुसार निबंध ‘किसी विषय या वस्तु पर उसके स्वरूप, प्रकृति, गुण-दोष आदि की दृष्टि से लेखक की गद्यात्मक अभिव्यक्ति है।’ एक अन्य परिभाषा में सीमित समय और सीमित शब्दों में क्रमबद्ध विचारों की अभिव्यक्ति को निबंध की संज्ञा दी गई है। इस तरह कह सकते हैं कि मोटे तौर पर किसी विषय पर अपने विचारों को लिखकर की गई अभिव्यक्ति ही निबंध है।

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आइए अब जानते हैं कि निबंध के कितने अंग होते हैं और इन्हें किस प्रकार प्रभावपूर्ण ढंग से लिखकर आकर्षक बनाया जा सकता है। किसी भी हिंदी निबंध (Essay in hindi) के मोटे तौर पर तीन भाग होते हैं। ये हैं - प्रस्तावना या भूमिका, विषय विस्तार और उपसंहार।

प्रस्तावना (भूमिका)- हिंदी निबंध के इस हिस्से में विषय से पाठकों का परिचय कराया जाता है। निबंध की भूमिका या प्रस्तावना, इसका बेहद अहम हिस्सा होती है। जितनी अच्छी भूमिका होगी पाठकों की रुचि भी निबंध में उतनी ही अधिक होगी। प्रस्तावना छोटी और सटीक होनी चाहिए ताकि पाठक संपूर्ण हिंदी लेख (hindi me lekh) पढ़ने को प्रेरित हों और जुड़ाव बना सकें।

विषय विस्तार- निबंध का यह मुख्य भाग होता है जिसमें विषय के बारे में विस्तार से जानकारी दी जाती है। इसमें इसके सभी संभव पहलुओं की जानकारी दी जाती है। हिंदी निबंध (hindi nibandh) के इस हिस्से में अपने विचारों को सिलसिलेवार ढंग से लिखकर अभिव्यक्त करने की खूबी का प्रदर्शन करना होता है।

उपसंहार- निबंध का यह अंतिम भाग होता है, इसमें हिंदी निबंध (hindi nibandh) के विषय पर अपने विचारों का सार रखते हुए पाठक के सामने निष्कर्ष रखा जाता है।

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अंत में यह जानना भी अत्यधिक आवश्यक है कि निबंध कितने प्रकार के होते हैं। मोटे तौर निबंध को निम्नलिखित श्रेणियों में रखा जाता है-

वर्णनात्मक निबंध - इस तरह के निबंधों में किसी घटना, वस्तु, स्थान, यात्रा आदि का वर्णन किया जाता है। इसमें त्योहार, यात्रा, आयोजन आदि पर लेखन शामिल है। इनमें घटनाओं का एक क्रम होता है और इस तरह के निबंध लिखने आसान होते हैं।

विचारात्मक निबंध - इस तरह के निबंधों में मनन-चिंतन की अधिक आवश्यकता होती है। अक्सर ये किसी समस्या – सामाजिक, राजनीतिक या व्यक्तिगत- पर लिखे जाते हैं। विज्ञान वरदान या अभिशाप, राष्ट्रीय एकता की समस्या, बेरोजगारी की समस्या आदि ऐसे विषय हो सकते हैं। इन हिंदी निबंधों (hindi nibandh) में विषय के अच्छे-बुरे पहलुओं पर विचार व्यक्त किया जाता है और समस्या को दूर करने के उपाय भी सुझाए जाते हैं।

भावात्मक निबंध - ऐसे निबंध जिनमें भावनाओं को व्यक्त करने की अधिक स्वतंत्रता होती है। इनमें कल्पनाशीलता के लिए अधिक छूट होती है। भाव की प्रधानता के कारण इन निबंधों में लेखक की आत्मीयता झलकती है। मेरा प्रिय मित्र, यदि मैं डॉक्टर होता जैसे विषय इस श्रेणी में रखे जा सकते हैं।

इसके साथ ही विषय वस्तु की दृष्टि से भी निबंधों को सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, खेल, विज्ञान और प्रौद्योगिकी जैसी बहुत सी श्रेणियों में बाँटा जा सकता है।

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जिस प्रकार बातचीत को आकर्षक और प्रभावी बनाने के लिए लोग मुहावरे, लोकोक्तियों, सूक्तियों, दोहों, कविताओं आदि की मदद लेते हैं, ठीक उसी तरह निबंध को भी प्रभावी बनाने के लिए इनकी सहायता ली जानी चाहिए। उदाहरण के लिए मित्रता पर हिंदी निबंध (hindi nibandh) लिखते समय तुलसीदास जी की इन पंक्तियों की मदद ले सकते हैं -

जे न मित्र दुख होंहि दुखारी, तिन्हिं बिलोकत पातक भारी।

यानि कि जो व्यक्ति मित्र के दुख से दुखी नहीं होता है, उनको देखने से बड़ा पाप होता है।

हिंदी या मातृभाषा पर निबंध लिखते समय भारतेंदु हरिश्चंद्र की पंक्तियों का प्रयोग करने से चार चाँद लग जाएगा-

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल

बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।

प्रासंगिकता और अपने विवेक के अनुसार लेखक निबंधों में ऐसी सामग्री का उपयोग निबंध को प्रभावी बनाने के लिए कर सकते हैं। इनका भंडार तैयार करने के लिए जब कभी कोई पंक्ति या उद्धरण अच्छा लगे, तो एकत्रित करते रहें और समय-समय पर इनको दोहराते रहें।

उपरोक्त सभी प्रारूपों का उपयोग कर छात्रों के लिए हमने निम्नलिखित हिंदी में निबंध (Essay in Hindi) तैयार किए हैं -

दुनिया के कई देशों में मजदूरों और श्रमिकों को सम्मान देने के उद्देश्य से हर वर्ष 1 मई को मजदूर दिवस मनाया जाता है। इसे लेबर डे, श्रमिक दिवस या मई डे भी कहा जाता है। श्रम दिवस एक विशेष दिन है जो मजदूरों और श्रम वर्ग को समर्पित है। यह मजदूरों की कड़ी मेहनत को सम्मानित करने का दिन है। ज्यादातर देशों में इसे 1 मई को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाता है। श्रम दिवस का इतिहास और उत्पत्ति अलग-अलग देशों में अलग-अलग है। विद्यार्थियों को कक्षा में मजदूर दिवस पर निबंध लिखने, मजदूर दिवस पर भाषण देने के लिए कहा जाता है। इस निबंध की मदद से विद्यार्थी अपनी तैयारी कर सकते हैं।

सुभाष चंद्र बोस ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सुभाष चंद्र बोस भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) के नेता थे और बाद में उन्होंने फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन किया। इसके माध्यम से भारत में सभी ब्रिटिश विरोधी ताकतों को एकजुट करने की पहल की थी। बोस ब्रिटिश सरकार के मुखर आलोचक थे और स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए और अधिक आक्रामक कार्रवाई की वकालत करते थे। विद्यार्थियों को अक्सर कक्षा और परीक्षा में सुभाष चंद्र बोस जयंती (subhash chandra bose jayanti) या सुभाष चंद्र बोस पर हिंदी में निबंध (subhash chandra bose essay in hindi) लिखने को कहा जाता है। यहां सुभाष चंद्र बोस पर 100, 200 और 500 शब्दों का निबंध दिया गया है।

भारत में 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ। इस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। गणतंत्र दिवस के सम्मान में स्कूलों में विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। गणतंत्र दिवस के दिन सभी स्कूलों, सरकारी व गैर सरकारी दफ्तरों में झंडोत्तोलन होता है। राष्ट्रगान गाया जाता है। मिठाईयां बांटी जाती है और अवकाश रहता है। छात्रों और बच्चों के लिए 100, 200 और 500 शब्दों में गणतंत्र दिवस पर निबंध पढ़ें।

26 जनवरी, 1950 को हमारे देश का संविधान लागू किया गया, इसमें भारत को गणतांत्रिक व्यवस्था वाला देश बनाने की राह तैयार की गई। गणतंत्र दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में भाषण (रिपब्लिक डे स्पीच) देने के लिए हिंदी भाषण की उपयुक्त सामग्री (Republic Day Speech Ideas) की यदि आपको भी तलाश है तो समझ लीजिए कि गणतंत्र दिवस पर भाषण (Republic Day speech in Hindi) की आपकी तलाश यहां खत्म होती है। इस राष्ट्रीय पर्व के बारे में विद्यार्थियों को जागरूक बनाने और उनके ज्ञान को परखने के लिए गणतत्र दिवस पर निबंध (Republic day essay) लिखने का प्रश्न भी परीक्षाओं में पूछा जाता है। इस लेख में दी गई जानकारी की मदद से Gantantra Diwas par nibandh लिखने में भी मदद मिलेगी। Gantantra Diwas par lekh bhashan तैयार करने में इस लेख में दी गई जानकारी की मदद लें और अच्छा प्रदर्शन करें।

मोबाइल फ़ोन को सेल्युलर फ़ोन भी कहा जाता है। मोबाइल आज आधुनिक प्रौद्योगिकी का एक अहम हिस्सा है जिसने दुनिया को एक साथ लाकर हमारे जीवन को बहुत प्रभावित किया है। मोबाइल हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गया है। मोबाइल में इंटरनेट के इस्तेमाल ने कई कामों को बेहद आसान कर दिया है। मनोरंजन, संचार के साथ रोजमर्रा के कामों में भी इसकी अहम भूमिका हो गई है। इस निबंध में मोबाइल फोन के बारे में बताया गया है।

भारत में प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। 14 सितंबर, 1949 को संविधान सभा ने जनभाषा हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्रदान किया। इस दिन की याद में हर वर्ष 14 सितंबर को राष्ट्रीय हिंदी दिवस मनाया जाता है। वहीं हिंदी भाषा को सम्मान देने के लिए 10 जनवरी को प्रतिवर्ष विश्व हिंदी दिवस (World Hindi Diwas) मनाया जाता है। इस लेख में राष्ट्रीय हिंदी दिवस (14 सितंबर) और विश्व हिंदी दिवस (10 जनवरी) के बारे में चर्चा की गई है।

मकर संक्रांति का त्योहार यूपी, बिहार, दिल्ली, राजस्थान, मध्यप्रदेश सहित देश के विभिन्न राज्यों में 14 जनवरी को मनाया जाता है। इसे खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान के बाद पूजा करके दान करते हैं। इस दिन खिचड़ी, तिल-गुड, चिउड़ा-दही खाने का रिवाज है। प्रयागराज में इस दिन से कुंभ मेला आरंभ होता है। इस लेख में मकर संक्रांति के बारे में बताया गया है।

पर्यावरण से संबंधित मुद्दों की चर्चा करते समय ग्लोबल वार्मिंग की चर्चा अक्सर होती है। ग्लोबल वार्मिंग का संबंध वैश्विक तापमान में वृद्धि से है। इसके अनेक कारण हैं। इनमें वनों का लगातार कम होना और ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन प्रमुख है। वनों का विस्तार करके और ग्रीन हाउस गैसों पर नियंत्रण करके हम ग्लोबल वार्मिंग की समस्या के समाधान की दिशा में कदम उठा सकते हैं। ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध- कारण और समाधान में इस विषय पर चर्चा की गई है।

भारत में भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या है। समाचारों में अक्सर भ्रष्टाचार से जुड़े मामले प्रकाश में आते रहते हैं। सरकार ने भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के लिए कई उपाय किए हैं। अलग-अलग एजेंसियां भ्रष्टाचार करने वालों पर कार्रवाई करती रहती हैं। फिर भी आम जनता को भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ता है। हालांकि डिजीटल इंडिया की पहल के बाद कई मामलों में पारदर्शिता आई है। लेकिन भ्रष्टाचार के मामले कम हुए है, समाप्त नहीं हुए हैं। भ्रष्टाचार पर निबंध के माध्यम से आपको इस विषय पर सभी पहलुओं की जानकारी मिलेगी।

समय-समय पर ईश्वरीय शक्ति का एहसास कराने के लिए संत-महापुरुषों का जन्म होता रहा है। गुरु नानक भी ऐसे ही विभूति थे। उन्होंने अपने कार्यों से लोगों को चमत्कृत कर दिया। गुरु नानक की तर्कसम्मत बातों से आम जनमानस उनका मुरीद हो गया। उन्होंने दुनिया को मानवता, प्रेम और भाईचारे का संदेश दिया। भारत, पाकिस्तान, अरब और अन्य जगहों पर वर्षों तक यात्रा की और लोगों को उपदेश दिए। गुरु नानक जयंती पर निबंध से आपको उनके व्यक्तित्व और कृतित्व की जानकारी मिलेगी।

कुत्ता हमारे आसपास रहने वाला जानवर है। सड़कों पर, गलियों में कहीं भी कुत्ते घूमते हुए दिख जाते हैं। शौक से लोग कुत्तों को पालते भी हैं। क्योंकि वे घर की रखवाली में सहायक होते हैं। बच्चों को अक्सर परीक्षा में मेरा पालतू कुत्ता विषय पर निबंध लिखने को कहा जाता है। यह लेख बच्चों को मेरा पालतू कुत्ता विषय पर निबंध लिखने में सहायक होगा।

स्वामी विवेकानंद जी हमारे देश का गौरव हैं। विश्व-पटल पर वास्तविक भारत को उजागर करने का कार्य सबसे पहले किसी ने किया तो वें स्वामी विवेकानंद जी ही थे। उन्होंने ही विश्व को भारतीय मानसिकता, विचार, धर्म, और प्रवृति से परिचित करवाया। स्वामी विवेकानंद जी के बारे में जानने के लिए आपको इस लेख को पढ़ना चाहिए। यह लेख निश्चित रूप से आपके व्यक्तित्व में सकारात्मक परिवर्तन करेगा।

हम सभी ने "महिला सशक्तिकरण" या नारी सशक्तिकरण के बारे में सुना होगा। "महिला सशक्तिकरण"(mahila sashaktikaran essay) समाज में महिलाओं की स्थिति को सुदृढ़ बनाने और सभी लैंगिक असमानताओं को कम करने के लिए किए गए कार्यों को संदर्भित करता है। व्यापक अर्थ में, यह विभिन्न नीतिगत उपायों को लागू करके महिलाओं के आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण से संबंधित है। प्रत्येक बालिका की स्कूल में उपस्थिति सुनिश्चित करना और उनकी शिक्षा को अनिवार्य बनाना, महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस लेख में "महिला सशक्तिकरण"(mahila sashaktikaran essay) पर कुछ सैंपल निबंध दिए गए हैं, जो निश्चित रूप से सभी के लिए सहायक होंगे।

भगत सिंह एक युवा क्रांतिकारी थे जिन्होंने भारत की आजादी के लिए लड़ते हुए बहुत कम उम्र में ही अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। देश के लिए उनकी भक्ति निर्विवाद है। शहीद भगत सिंह महज 23 साल की उम्र में शहीद हो गए। उन्होंने न केवल भारत की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी, बल्कि वह इसे हासिल करने के लिए अपनी जान जोखिम में डालने को भी तैयार थे। उनके निधन से पूरे देश में देशभक्ति की भावना प्रबल हो गई। उनके समर्थकों द्वारा उन्हें शहीद के रूप में सम्मानित किया गया था। वह हमेशा हमारे बीच शहीद भगत सिंह के नाम से ही जाने जाएंगे। भगत सिंह के जीवन परिचय के लिए अक्सर छोटी कक्षा के छात्रों को भगत सिंह पर निबंध तैयार करने को कहा जाता है। इस लेख के माध्यम से आपको भगत सिंह पर निबंध तैयार करने में सहायता मिलेगी।

वसुधैव कुटुंबकम एक संस्कृत वाक्यांश है जिसका अर्थ है "संपूर्ण विश्व एक परिवार है"। यह महा उपनिषद् से लिया गया है। वसुधैव कुटुंबकम वह दार्शनिक अवधारणा है जो सार्वभौमिक भाईचारे और सभी प्राणियों के परस्पर संबंध के विचार को पोषित करती है। यह वाक्यांश संदेश देता है कि प्रत्येक व्यक्ति वैश्विक समुदाय का सदस्य है और हमें एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए, सभी की गरिमा का ध्यान रखने के साथ ही सबके प्रति दयाभाव रखना चाहिए। वसुधैव कुटुंबकम की भावना को पोषित करने की आवश्यकता सदैव रही है पर इसकी आवश्यकता इस समय में पहले से कहीं अधिक है। समय की जरूरत को देखते हुए इसके महत्व से भावी नागरिकों को अवगत कराने के लिए वसुधैव कुटुंबकम विषय पर निबंध या भाषणों का आयोजन भी स्कूलों में किया जाता है। कॅरियर्स360 के द्वारा छात्रों की इसी आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए वसुधैव कुटुंबकम विषय पर यह लेख तैयार किया गया है।

गाय भारत के एक बेहद महत्वपूर्ण पशु में से एक है जिस पर न जाने कितने ही लोगों की आजीविका आश्रित है क्योंकि गाय के शरीर से प्राप्त होने वाली हर वस्तु का उपयोग भारतीय लोगों द्वारा किसी न किसी रूप में किया जाता है। ना सिर्फ आजीविका के लिहाज से, बल्कि आस्था के दृष्टिकोण से भी भारत में गाय एक महत्वपूर्ण पशु है क्योंकि भारत में मौजूद सबसे बड़ी आबादी यानी हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले लोगों के लिए गाय आस्था का प्रतीक है। ऐसे में विद्यालयों में गाय को लेकर निबंध लिखने का कार्य दिया जाना आम है। गाय के इस निबंध के माध्यम से छात्रों को परीक्षा में पूछे जाने वाले गाय पर निबंध को लिखने में भी सहायता मिलेगी।

क्रिसमस (christmas in hindi) भारत सहित दुनिया भर में मनाए जाने वाले बेहद महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह ईसाइयों का प्रमुख त्योहार है। प्रत्येक वर्ष इसे 25 दिसंबर को मनाया जाता है। क्रिसमस का महत्व समझाने के लिए कई बार स्कूलों में बच्चों को क्रिसमस पर निबंध (christmas in hindi) लिखने का कार्य दिया जाता है। क्रिसमस पर एग्जाम के लिए प्रभावी निबंध तैयार करने का तरीका सीखें।

रक्षाबंधन हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह पर्व पूरी तरह से भाई और बहन के रिश्ते को समर्पित त्योहार है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षाबंधन बांध कर उनके लंबी उम्र की कामना करती हैं। वहीं भाई अपनी बहनों को कोई तोहफा देने के साथ ही जीवन भर उनके सुख-दुख में उनका साथ देने का वचन देते हैं। इस दिन छोटी बच्चियाँ देश के प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति को राखी बांधती हैं। रक्षाबंधन पर हिंदी में निबंध (essay on rakshabandhan in hindi) आधारित इस लेख से विद्यार्थियों को रक्षाबंधन के त्योहार पर न सिर्फ लेख लिखने में सहायता प्राप्त होगी, बल्कि वे इसकी सहायता से रक्षाबंधन के पर्व का महत्व भी समझ सकेंगे।

होली त्योहार जल्द ही देश भर में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाने वाला है। होली आकर्षक और मनोहर रंगों का त्योहार है, यह एक ऐसा त्योहार है जो हर धर्म, संप्रदाय, जाति के बंधन की सीमा से परे जाकर लोगों को भाई-चारे का संदेश देता है। होली अंदर के अहंकार और बुराई को मिटा कर सभी के साथ हिल-मिलकर, भाई-चारे, प्रेम और सौहार्द्र के साथ रहने का त्योहार है। होली पर हिंदी में निबंध (hindi mein holi par nibandh) को पढ़ने से होली के सभी पहलुओं को जानने में मदद मिलेगी और यदि परीक्षा में holi par hindi mein nibandh लिखने को आया तो अच्छा अंक लाने में भी सहायता मिलेगी।

दशहरा हिंदू धर्म में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है। बच्चों को विद्यालयों में दशहरा पर निबंध (Essay in hindi on Dussehra) लिखने को भी कहा जाता है, जिससे उनकी दशहरा के प्रति उत्सुकता बनी रहे और उन्हें दशहरा के बारे पूर्ण जानकारी भी मिले। दशहरा पर निबंध (Essay on Dussehra in Hindi) के इस लेख में हम देखेंगे कि लोग दशहरा कैसे और क्यों मनाते हैं, इसलिए हिंदी में दशहरा पर निबंध (Essay on Dussehra in Hindi) के इस लेख को पूरा जरूर पढ़ें।

हमें उम्मीद है कि दीवाली त्योहार पर हिंदी में निबंध उन युवा शिक्षार्थियों के लिए फायदेमंद साबित होगा जो इस विषय पर निबंध लिखना चाहते हैं। हमने नीचे दिए गए निबंध में शुभ दिवाली त्योहार (Diwali Festival) के सार को सही ठहराने के लिए अपनी ओर से एक मामूली प्रयास किया है। बच्चे दिवाली पर हिंदी के इस निबंध से कुछ सीख कर लाभ उठा सकते हैं कि वाक्यों को कैसे तैयार किया जाए, Class 1 से 10 तक के लिए दीपावली पर निबंध हिंदी में तैयार करने के लिए इसके लिंक पर जाएँ।

बाल दिवस पर भाषण (Children's Day Speech In Hindi), बाल दिवस पर हिंदी में निबंध (Children's Day essay In Hindi), बाल दिवस गीत, कविता पाठ, चित्रकला, खेलकूद आदि से जुड़ी प्रतियोगिताएं बाल दिवस के मौके पर आयोजित की जाती हैं। स्कूलों में बाल दिवस पर भाषण देने और बाल दिवस पर हिंदी में निबंध लिखने के लिए उपयोगी सामग्री इस लेख में मिलेगी जिसकी मदद से बाल दिवस पर भाषण देने और बाल दिवस के लिए निबंध तैयार करने में मदद मिलेगी। कई बार तो परीक्षाओं में भी बाल दिवस पर लेख लिखने का प्रश्न पूछा जाता है। इसमें भी यह लेख मददगार होगा।

हिंदी दिवस हर साल 14 सितंबर को मनाया जाता है। भारत देश अनेकता में एकता वाला देश है। अपने विविध धर्म, संस्कृति, भाषाओं और परंपराओं के साथ, भारत के लोग सद्भाव, एकता और सौहार्द के साथ रहते हैं। भारत में बोली जाने वाली विभिन्न भाषाओं में, हिंदी सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली और बोली जाने वाली भाषा है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार 14 सितंबर 1949 को हिंदी भाषा को राजभाषा के रूप में अपनाया गया था। हमारी मातृभाषा हिंदी और देश के प्रति सम्मान दिखाने के लिए हिंदी दिवस का आयोजन किया जाता है। हिंदी दिवस पर भाषण के लिए उपयोगी जानकारी इस लेख में मिलेगी।

हिन्दी में कवियों की परम्परा बहुत लम्बी है। हिंदी के महान कवियों ने कालजयी रचनाएं लिखी हैं। हिंदी में निबंध और वाद-विवाद आदि का जितना महत्व है उतना ही महत्व हिंदी कविताओं और कविता-पाठ का भी है। हिंदी दिवस पर विद्यालय या अन्य किसी आयोजन पर हिंदी कविता भी चार चाँद लगाने का काम करेगी। हिंदी दिवस कविता के इस लेख में हम हिंदी भाषा के सम्मान में रचित, हिंदी का महत्व बतलाती विभिन्न कविताओं की जानकारी दी गई है।

15 अगस्त, 1947 को हमारा देश भारत 200 सालों के अंग्रेजी हुकूमत से आजाद हुआ था। यही वजह है कि यह दिन इतिहास में दर्ज हो गया और इसे भारत के स्वतंत्रता दिवस के तौर पर मनाया जाने लगा। इस दिन देश के प्रधानमंत्री लालकिले पर राष्ट्रीय ध्वज फहराते तो हैं ही और साथ ही इसके बाद वे पूरे देश को लालकिले से संबोधित भी करते हैं। इस दौरान प्रधानमंत्री का पूरा भाषण टीवी व रेडियो के माध्यम से पूरे देश में प्रसारित किया जाता है। इसके अलावा देश भर में इस दिन सभी कार्यालयों में छुट्टी होती है। स्कूल्स व कॉलेज में रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। स्वतंत्रता दिवस से संबंधित संपूर्ण जानकारी आपको इस लेख में मिलेगी जो निश्चित तौर पर आपके लिए लेख लिखने में सहायक सिद्ध होगी।

प्रदूषण पृथ्वी पर वर्तमान के उन प्रमुख मुद्दों में से एक है, जो हमारी पृथ्वी को व्यापक स्तर पर प्रभावित कर रहा है। यह एक ऐसा मुद्दा है जो लंबे समय से चर्चा में है, 21वीं सदी में इसका हानिकारक प्रभाव बड़े पैमाने पर महसूस किया जा रहा है। हालांकि विभिन्न देशों की सरकारों ने इन प्रभावों को रोकने के लिए कई बड़े कदम उठाए हैं, लेकिन अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना बाकी है। इससे कई प्राकृतिक प्रक्रियाओं में गड़बड़ी आती है। इतना ही नहीं, आज कई वनस्पतियां और जीव-जंतु या तो विलुप्त हो चुके हैं या विलुप्त होने की कगार पर हैं। प्रदूषण की मात्रा में तेजी से वृद्धि के कारण पशु तेजी से न सिर्फ अपना घर खो रहे हैं, बल्कि जीने लायक प्रकृति को भी खो रहे हैं। प्रदूषण ने दुनिया भर के कई प्रमुख शहरों को प्रभावित किया है। इन प्रदूषित शहरों में से अधिकांश भारत में ही स्थित हैं। दुनिया के कुछ सबसे प्रदूषित शहरों में दिल्ली, कानपुर, बामेंडा, मॉस्को, हेज़, चेरनोबिल, बीजिंग शामिल हैं। हालांकि इन शहरों ने प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए कई कदम उठाए हैं, लेकिन अभी बहुत कुछ और बहुत ही तेजी के साथ किए जाने की जरूरत है।

वायु प्रदूषण पर हिंदी में निबंध के ज़रिए हम इसके बारे में थोड़ा गहराई से जानेंगे। वायु प्रदूषण पर लेख (Essay on Air Pollution) से इस समस्या को जहाँ समझने में आसानी होगी वहीं हम वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार पहलुओं के बारे में भी जान सकेंगे। इससे स्कूली विद्यार्थियों को वायु प्रदूषण पर निबंध (Essay on Air Pollution) तैयार करने में भी मदद होगी। हिंदी में वायु प्रदूषण पर निबंध से परीक्षा में बेहतर स्कोर लाने में मदद मिलेगी।

एक बड़े भू-क्षेत्र में लंबे समय तक रहने वाले मौसम की औसत स्थिति को जलवायु की संज्ञा दी जाती है। किसी भू-भाग की जलवायु पर उसकी भौगोलिक स्थिति का सर्वाधिक असर पड़ता है। पृथ्वी ग्रह का बुखार (तापमान) लगातार बढ़ रहा है। सरकारों को इसमें नागरिकों की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त कदम उठाने होंगे। जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए सरकारों को सतत विकास के उपायों में निवेश करने, ग्रीन जॉब, हरित अर्थव्यवस्था के निर्माण की ओर आगे बढ़ने की जरूरत है। पृथ्वी पर जीवन को बचाए रखने, इसे स्वस्थ रखने और ग्लोबल वार्मिंग के खतरों से निपटने के लिए सभी देशों को मिलकर ईमानदारी से काम करना होगा। ग्लोबल वार्मिंग या जलवायु परिवर्तन पर निबंध के जरिए छात्रों को इस विषय और इससे जुड़ी समस्याओं और समाधान के बारे में जानने को मिलेगा।

हमारी यह पृथ्वी जिस पर हम सभी निवास करते हैं इसके पर्यावरण के संरक्षण के लिए विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) हर साल 5 जून को मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 1972 में मानव पर्यावरण पर आयोजित संयुक्त राष्ट्र सम्मलेन के दौरान हुई थी। पहला विश्व पर्यावरण दिवस (Environment Day) 5 जून 1974 को “केवल एक पृथ्वी” (Only One Earth) स्लोगन/थीम के साथ मनाया गया था, जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने भी भाग लिया था। इसी सम्मलेन में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की भी स्थापना की गई थी। इस विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) को मनाने का उद्देश्य विश्व के लोगों के भीतर पर्यावरण (Environment) के प्रति जागरूकता लाना और साथ ही प्रकृति के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वहन करना भी है। इसी विषय पर विचार करते हुए 19 नवंबर, 1986 को पर्यवरण संरक्षण अधिनियम लागू किया गया तथा 1987 से हर वर्ष पर्यावरण दिवस की मेजबानी करने के लिए अलग-अलग देश को चुना गया।

आज के युग में जब हम अपना अधिकतर समय पढाई पर केंद्रित करने का प्रयास करते नजर आते हैं और साथ ही अपना ज़्यादातर समय ऑनलाइन रह कर व्यतीत करना पसंद करते हैं, ऐसे में हमारे जीवन में खेलों का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। खेल हमारे लिए केवल मनोरंजन का साधन ही नहीं, अपितु हमारे सर्वांगीण विकास का एक माध्यम भी है। हमारे जीवन में खेल उतना ही जरूरी है, जितना पढाई करना। आज कल के युग में मानव जीवन में शारीरिक कार्य की तुलना में मानसिक कार्य में बढ़ोतरी हुई है और हमारी जीवन शैली भी बदल गई है, हम रात को देर से सोते हैं और साथ ही सुबह देर से उठते हैं। जाहिर है कि यह दिनचर्या स्वास्थ्य के लिए अच्छी नहीं है और इसके साथ ही कार्य या पढाई की वजह से मानसिक तनाव पहले की तुलना में वृद्धि महसूस की जा सकती है। ऐसी स्थिति में जब हमारे जीवन में शारीरिक परिश्रम अधिक नहीं है, तो हमारे जीवन में खेलो का महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है।

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हमेशा से कहा जाता रहा है कि ‘आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है’, जैसे-जैसे मानव की आवश्यकता बढती गई, वैसे-वैसे उसने अपनी सुविधा के लिए अविष्कार करना आरंभ किया। विज्ञान से तात्पर्य एक ऐसे व्यवस्थित ज्ञान से है जो विचार, अवलोकन तथा प्रयोगों से प्राप्त किया जाता है, जो कि किसी अध्ययन की प्रकृति या सिद्धांतों की जानकारी प्राप्त करने के लिए किए जाते हैं। विज्ञान शब्द का प्रयोग ज्ञान की ऐसी शाखा के लिए भी किया जाता है, जो तथ्य, सिद्धांत और तरीकों का प्रयोग और परिकल्पना से स्थापित और व्यवस्थित करता है।

शिक्षक अपने शिष्य के जीवन के साथ साथ उसके चरित्र निर्माण में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। कहा जाता है कि सबसे पहली गुरु माँ होती है, जो अपने बच्चों को जीवन प्रदान करने के साथ-साथ जीवन के आधार का ज्ञान भी देती है। इसके बाद अन्य शिक्षकों का स्थान होता है। किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण करना बहुत ही बड़ा और कठिन कार्य है। व्यक्ति को शिक्षा प्रदान करने के साथ-साथ उसके चरित्र और व्यक्तित्व का निर्माण करना भी उसी प्रकार का कार्य है, जैसे कोई कुम्हार मिट्टी से बर्तन बनाने का कार्य करता है। इसी प्रकार शिक्षक अपने छात्रों को शिक्षा प्रदान करने के साथ साथ उसके व्यक्तित्व का निर्माण भी करते हैं।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत 1908 में हुई थी, जब न्यूयॉर्क शहर की सड़को पर हजारों महिलाएं घंटों काम के लिए बेहतर वेतन और सम्मान तथा समानता के अधिकार को प्राप्त करने के लिए उतरी थीं। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाने का प्रस्ताव क्लारा जेटकिन का था जिन्होंने 1910 में यह प्रस्ताव रखा था। पहला अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्ज़रलैंड में मनाया गया था।

हम उम्मीद करते हैं कि स्कूली छात्रों के लिए तैयार उपयोगी हिंदी में निबंध, भाषण और कविता (Essays, speech and poems for school students) के इस संकलन से निश्चित तौर पर छात्रों को मदद मिलेगी।

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बाल श्रम को बच्चो द्वारा रोजगार के लिए किसी भी प्रकार के कार्य को करने के रूप में परिभाषित किया गया है जो उनके शारीरिक और मानसिक विकास में बाधा डालता है और उन्हें मूलभूत शैक्षिक और मनोरंजक जरूरतों तक पहुंच से वंचित करता है। एक बच्चे को आम तौर व्यस्क तब माना जाता है जब वह पंद्रह वर्ष या उससे अधिक का हो जाता है। इस आयु सीमा से कम के बच्चों को किसी भी प्रकार के जबरन रोजगार में संलग्न होने की अनुमति नहीं है। बाल श्रम बच्चों को सामान्य परवरिश का अनुभव करने, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने और उनके शारीरिक और भावनात्मक विकास में बाधा के रूप में देखा जाता है। जानिए कैसे तैयार करें बाल श्रम या फिर कहें तो बाल मजदूरी पर निबंध।

एपीजे अब्दुल कलाम की गिनती आला दर्जे के वैज्ञानिक होने के साथ ही प्रभावी नेता के तौर पर भी होती है। वह 21वीं सदी के प्रसिद्ध वैज्ञानिकों में से एक हैं। कलाम देश के 11वें राष्ट्रपति बने, अपने कार्यकाल में समाज को लाभ पहुंचाने वाली कई पहलों की शुरुआत की। मेरा प्रिय नेता विषय पर अक्सर परीक्षा में निबंध लिखने का प्रश्न पूछा जाता है। जानिए कैसे तैयार करें अपने प्रिय नेता: एपीजे अब्दुल कलाम पर निबंध।

हमारे जीवन में बहुत सारे लोग आते हैं। उनमें से कई को भुला दिया जाता है, लेकिन कुछ का हम पर स्थायी प्रभाव पड़ता है। भले ही हमारे कई दोस्त हों, उनमें से कम ही हमारे अच्छे दोस्त होते हैं। कहा भी जाता है कि सौ दोस्तों की भीड़ के मुक़ाबले जीवन में एक सच्चा/अच्छा दोस्त होना काफी है। यह लेख छात्रों को 'मेरे प्रिय मित्र'(My Best Friend Nibandh) पर निबंध तैयार करने में सहायता करेगा।

3 फरवरी, 1879 को भारत के हैदराबाद में एक बंगाली परिवार ने सरोजिनी नायडू का दुनिया में स्वागत किया। उन्होंने कम उम्र में ही कविता लिखना शुरू कर दिया था। उन्होंने कैम्ब्रिज में किंग्स कॉलेज और गिर्टन, दोनों ही पाठ्यक्रमों में दाखिला लेकर अपनी पढ़ाई पूरी की। जब वह एक बच्ची थी, तो कुछ भारतीय परिवारों ने अपनी बेटियों को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया। हालाँकि, सरोजिनी नायडू के परिवार ने लगातार उदार मूल्यों का समर्थन किया। वह न्याय की लड़ाई में विरोध की प्रभावशीलता पर विश्वास करते हुए बड़ी हुई। सरोजिनी नायडू से संबंधित अधिक जानकारी के लिए इस लेख को पढ़ें।

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Frequently Asked Question (FAQs)

किसी भी हिंदी निबंध (Essay in hindi) को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है- ये हैं- प्रस्तावना या भूमिका, विषय विस्तार और उपसंहार (conclusion)।

हिंदी निबंध लेखन शैली की दृष्टि से मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं-

वर्णनात्मक हिंदी निबंध - इस तरह के निबंधों में किसी घटना, वस्तु, स्थान, यात्रा आदि का वर्णन किया जाता है।

विचारात्मक निबंध - इस तरह के निबंधों में मनन-चिंतन की अधिक आवश्यकता होती है।

भावात्मक निबंध - ऐसे निबंध जिनमें भावनाओं को व्यक्त करने की अधिक स्वतंत्रता होती है।

विषय वस्तु की दृष्टि से भी निबंधों को सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, खेल, विज्ञान और प्रौद्योगिकी जैसी बहुत सी श्रेणियों में बाँटा जा सकता है।

निबंध में समुचित जगहों पर मुहावरे, लोकोक्तियों, सूक्तियों, दोहों, कविता का प्रयोग करके इसे प्रभावी बनाने में मदद मिलती है। हिंदी निबंध के प्रभावी होने पर न केवल बेहतर अंक मिलेंगी बल्कि असल जीवन में अपनी बात रखने का कौशल भी विकसित होगा।

कुछ उपयोगी विषयों पर हिंदी में निबंध के लिए ऊपर लेख में दिए गए लिंक्स की मदद ली जा सकती है।

निबंध, गद्य विधा की एक लेखन शैली है। हिंदी साहित्य कोष के अनुसार निबंध ‘किसी विषय या वस्तु पर उसके स्वरूप, प्रकृति, गुण-दोष आदि की दृष्टि से लेखक की गद्यात्मक अभिव्यक्ति है।’ एक अन्य परिभाषा में सीमित समय और सीमित शब्दों में क्रमबद्ध विचारों की अभिव्यक्ति को निबंध की संज्ञा दी गई है। इस तरह कह सकते हैं कि मोटे तौर पर किसी विषय पर अपने विचारों को लिखकर की गई अभिव्यक्ति निबंध है।

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Cinema in Essay Hindi

सिनेमा या चलचित्र पर निबंध – Cinema Essay In Hindi

सिनेमा या चलचित्र पर निबंध। essay on cinema in hindi.

संकेत बिंदु –

  • फ़िल्म की कहानी
  • कथानक एवं दृश्य
  • फ़िल्म के दृश्य, पात्र एवं संवाद

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न  हिंदी निबंध  विषय पा सकते हैं।

प्रस्तावना – मनुष्य किसी-न-किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए श्रम करता है। श्रम के उपरांत थकान एवं तनाव होना स्वाभाविक है। इससे छुटकारा पाने के लिए अनेक तरीके अपनाता है। वह खेल-तमाशे, नाटक, फ़िल्म, देखता है तथा पत्र-पत्रिकाएँ पढ़कर तरोताज़ा महसूस करता है। इनमें फ़िल्म देखना सबसे लोकप्रिय तरीका है जिससे तनाव-थकान से मुक्ति के अलावा ज्ञानवर्धन एवं मनोरंजन भी होता है। मैंने भी अपने मित्रों के साथ जो फ़िल्म देखी, वह थी- चक दे इंडिया जो मुझे अच्छी और प्रेरणादायक लगी।

कथानक एवं दृश्य – इस फ़िल्म के प्रदर्शन के बाद से ही इसकी काफ़ी चर्चा थी। मेरे मित्र भी इस फ़िल्म का बखान करते थे कि यह प्रेरणादायी फ़िल्म है। मैंने अपने मित्रों के साथ इस फ़िल्म को देखा।

इस फ़िल्म में अभिनेता शाहरुख खान ने मुख्य भूमिका निभाई है। इसमें भारतीय महिला हाकी टीम की तत्कालीन दशा को मुख्य विषय बनाया गया है। फ़िल्म में खेल और राजनीति का संबंध, खेल भावना का परिचय, सांप्रदायिक तनाव, खेल में अधिकारियों का हस्तक्षेप, कभी गुस्साई और कभी हर्षित जनता की प्रतिक्रिया सब कुछ वास्तविक-सा लगता है।

फ़िल्म की कहानी – इस फ़िल्म में शाहरुख खान को भारतीय हॉकी टीम के कप्तान के रूप दर्शाया गया है। वह पठान मुसलमान है। उनकी टीम चिर-परिचित प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के विरुद्ध मैच खेल रही है। मैच में भारतीय टीम 1-0 से पिछड़ रही है। भारतीय खिलाड़ी जोरदार प्रदर्शन करते हैं और पेनाल्टी कार्नर का मौका टीम को मिल जाता है। इस पेनाल्टी कार्नर को गोल में बदलने में शाहरुख खान असफल रहते हैं। खेल जारी रहता है पर समाप्ति पर भारत वह मैच 1-0 से हार जाता है।

इसी दृश्य से पूर्व भारतीय कप्तान और पाकिस्तानी कप्तान को आपस में बातचीत करते दर्शा दिया जाता है। चूँकि भारत यह मैच हार चुका था इसलिए मीडिया इस मुलाकात का गलत अर्थ निकालती है और इस घटना के षड्यंत्र के साथ पेश करती है। ऐसे में देश की जनता भड़क जाती है। भारत में कप्तान की छवि खराब हो जाती है। कुछ उपद्रवी खेल प्रेमी उनका मकान नष्ट कर देते हैं। देश की जनता उन्हें गद्दार कहती है। वे धीरे-धीरे गुमनामी के अंधकार में खो जाते हैं।

इस घटना के पाँच, छह वर्ष बाद यह दिखाया जाता है कि भारतीय महिला हॉकी टीम की स्थिति इतनी खराब है कि कोई कोच बनने के लिए तैयार नहीं है। ऐसे में शाहरुख खान कोच की भूमिका निभाने के लिए आगे आते हैं। भारत के अलग-अलग राज्यों से आईं खिलाड़ियों के बीच समस्या-ही-समस्या है। सबकी अलग-अलग भाषा, रहन-सहन, तौर-तरीके सब अलग हैं। उनको एकता के सूत्र में बाँधना चुनौती है। ये महिला खिलाड़ी आपस में लड़ जाती हैं और कोच को हटाने की माँग करती हैं। संयोग से एक विदाई समारोह में इन खिलाड़ियों में एकता हो जाती है।

इसी बीच शाहरुख खान (कोच) भारतीय पुरुष एवं महिला हॉकी टीमों के बीच मुकाबला करवाते हैं। इस मुकाबले से महिला टीम की योग्यता सभी के सामने आ जाती है। अब टीम को विश्व कप प्रतियोगिता में भेजा जाता है जहाँ वह पहला मैच 7-1 से हार जाती है। यह हार उनके लिए टॉनिक का काम करती है और जीत दर्ज करते-करते विश्वकप जीत लेती है। अब वही मीडिया और भारतीय जनता शाहरुख खान को सिर पर बिठा लेती है।

फ़िल्म के दृश्य, पात्र एवं संवाद – यह फ़िल्म इतनी प्रभावी है कि दर्शकों को अंत तक बाँधे रखती है। फ़िल्म में मारपीट, खीझ, गुस्सा, संघर्ष, प्रतिशोध, एकता, साहस, हार से सबक, जीत की खुशी आदि को अच्छे ढंग से दर्शाया गया है। इसमें शाहरुख का अभिनय दर्शनीय है। खिलाड़ियों में जीत की चाह देखते ही बनती है जो अंत में उनकी विजय के लिए वरदान बन जाती है।

उपसंहार- ‘चक दे इंडिया’ वास्तविक-सी लगने वाली कहानी पर बनी फ़िल्म है जो हार से मिली असफलता से निराश न होने तथा पुनः प्रयास कर आगे बढ़ने का संदेश देती है। यह फ़िल्म एकता एवं सौहार्द बढ़ाने में भी सहायक है। इस फ़िल्म का संदेश है, मुसीबत से हार न मानकर सफलता की ओर बढ़ते जाना, यही जीवन की सच्चाई है।

The Best Hindi Movies on Netflix Right Now

Wanna take a short break from Hollywood? These Indian films will keep you hooked!

India is a land of diversity and culture, and the same is reflected in their movies , full of drama, romance, action, and of course, the iconic dance numbers. Indian films are some of the most entertaining movies you’ll ever watch, and some of them are quite good and highly underrated. If you have a taste for learning about different cultures and looking for an outlandish adventure, we’ve got you covered. We’ve collected an ensemble of the best Hindi movies available on U.S. Netflix that will entail all of your needs. So grab some pakoras and get ready to take a dive into the kaleidoscopic world of Hindi cinema with the best Hindi movies on Netflix.

For more recommendations, check out our lists of the best movies on Netflix , best Korean movies on Netflix , and best Japanese movies on Netflix .

Editor's note: This article was updated June 2022 to include Mission Manju.

3 Idiots (2009)

Run Time: 2 hr 43 min | Genre : Comedy Drama | Director: Rajkumar Hirani

Cast: Aamir Khan, R. Madhavan, Sharman Joshi, Kareena Kapoor

3 Idiots is a coming-of-age comedy-drama that focuses on the pressure faced by youths freshly out of school and points out the flaws in the educational system. It raises a major question about the purpose of higher studies, is it for knowledge or just to secure jobs? Loosely adapted from the novel Five Point Someone , written by one of the most famous Indian novelists, Chetan Bhagat , the film talks about the story of three young engineering students, who, after qualifying for one of the toughest entrance exams held in India, are admitted to a prestigious engineering college called the ICE (Imperial College of Engineering).

The three ‘idiots’ go through an arduous and comical journey trying to survive the intense pressure of college, balancing their personal life, and forming a strong bond at the same time. The film ends with a sweet note to the viewers, urging them to pursue a career they are passionate about instead of following the herd because it is your happiness that counts at the end of the day. 3 Idiots is one of those films that is sure to lift your spirits, and deserves a spot on your watchlist.

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Mission Majnu (2023)

Run Time : 2 hr 9 min | Genre : Action, Historical Drama | Director : Shantanu Bagchi

Cast : Sidharth Malhotra, Rashmika Mandanna, Parmeet Sethi

Set during the Indo-Pakistani War of 1971, Mission Majnu is a spy thriller with big action set pieces and tight storytelling on the level of the early Mission: Impossible movies. Director Shantanu Bagchi puts together a sleek historical fiction tale that sensationalizes the conflict, showing the stakes of the nuclear arms race from the Indian perspective. Leading this mission of national security is the indomitably charming Sidharth Malhotra ( Shershaah ) as Amandeep Singh, who perfectly balances his character’s daring spy persona with the dedication and conflicted love he has for his blind and pregnant cover wife, played by Rashmika Mandanna ( Sita Ramam ). – Tauri Miller

Doctor G (2022)

Run Time : 2 hrs 4 min | Genre : Comedy | Director : Anubhuti Kashyap

Cast : Ayushmann Khurrana, Rakul Preet Singh, Shefali Shah

Anubhuti Kashyap directs the uproariously clever medical comedy Doctor G , which stars Ayushmann Khurrana , Rakul Preet Singh , and Shefali Shah . Khurrana plays Uday Gupta, a medical student who intends to specialize in orthopedics but instead begins his training in the female-dominated department of Gynaecology. Bursting with entertaining hijinks, Doctor G finds genuine moments as well as humorous ones through the chaos and confusion of Dr. Gupta’s education. With a script that leans into relevant medical scenarios for an audience of women, Doctor G manages to balance the truth with comedy and even a bit of romance . – Yael Tygiel

Run Time: 3 hr 7 min | Genre : Action Drama | Director: S.S. Rajamouli

Cast: N.T. Rama Rao Jr., Ram Charan, Ajay Devgn

Set in 1920s India, RRR is a drama featuring jaw-dropping action sequences proving its value as India’s largest budget film released and securing award nominations it will surely receive. RRR follows a couple of real-life legendary revolutionaries in a fictional story chronicling an adventure during their uprising against the tyrannical British government ruling over India. After the sadistic Governor Scott Buxton and his equally evil wife Catherine kidnap a young girl with a beautiful voice, Komaram Bheem ( N.T. Rama Rao Jr. ) and Alluri Sitarama Raju ( Ram Charan ) launch into action to find and rescue the missing girl. RRR is a beautifully shot specimen of cinema with, of course, a magnificent musical number. – Yael Tygiel

Queen (2013)

Run Time: 2 hr 26 min | Genre : Drama | Director: Vikas Bahl

Cast: Kangana Ranaut, Lisa Haydon, Rajkummar Rao

Queen is a woman-centric film set in a conservative society. It is all about women's empowerment, showcasing the kind of changes that are needed in the mindset of the Indian community, that has traditionally followed patriarchy. Yes, India is changing, it is developing, but most Indian women still don’t feel as free as women from more developed parts of the world. The protagonist of the story named Rani (Queen) gets dumped by her fiancé because she’s too “conservative” for him. She embarks on a solo trip of her own, traveling to Paris and Amsterdam, learns what it means to be independent. She experiences something she had never truly felt before: freedom. Towards the end of the film, she visualizes how she wants to live her life, and decides to live it like a Queen .

Kabhi Khushi Kabhie Gham (Sometimes There is Joy, Sometimes There is Sorrow…) (2001)

Run Time: 3 hr 30 min | Genre : Drama | Director: Karan Johar

Cast: Amitabh Bachchan, Jaya Bachchan, Shah Rukh Khan, Kajol, Hrithik Roshan, Kareena Kapoor

One of the best movies directed and written by Karan Johar , Kabhi Khushi Kabhi Gham ( Sometimes there is joy, sometimes there is sorrow ) is set in a traditional Indian patriarchal society. Bejeweled with some of the finest and most famous actors from India’s Bollywood industry, the film shows how and why some traditional Indian perspectives need to be changed.

The film tells the story of a rich Indian family that is highly patriarchal and strictly follows traditions. The family consists of a very conservative father, a meek but loving mother, and two sons, the elder one being adopted. The adopted son falls in love with a girl from a low-income background, which is forbidden according to the traditional family rules, and is thus disowned by the father after he refuses to give up on her. 10 years later, the younger son schemes to bring them all together after seeing the pain hidden behind the pride of his parents. The well-timed comedy and the emotional scenes from the film will make your heart melt and is definitely worth a watch.

Kuch Kuch Hota Hai (Something Happens) (1998)

Run Time: 3 hr 5 min | Genre : Romance Comedy | Director: Karan Johar

Cast: Shah Rukh Khan, Kajol, Rani Mukherji

One of the most famous rom-com Indian films of all time, Kuch Kuch Hota Hai was Karan Johar's directorial debut and a massive hit. The plot combines two love triangles set almost a decade apart. The first one involves two best friends at a college, Rahul ( Shah Rukh Khan ) and Anjali ( Kajol ), Anjali falls for Rahul but he falls in love with someone else and is oblivious to Anjali feelings. Fast forward, ten years later, the guy is a widower, with a little daughter who comes to know of her dad's best friend, and she sets out on a quest to get them back together in a more romantic way. However, the second half also consists of another love triangle, this time involving the duo and Anjali's fiancé. The sweet and emotional ending of the film leaves you with a strange sense of content and delight, and is definitely worth a watch.

Run Time: 2 hr 25 min | Genre : Sci-Fi Satire Comedy | Director: Rajkumar Hirani

Cast: Aamir Khan, Anushka Sharma, Sushant Singh Rajput, Sanjay Dutt

PK is a sci-fi satirical comedy that questions moral values and their intangibility to religion. It stresses the fact that humanity is greater than any religion. The film begins with an innocent humanoid alien arriving on planet earth, landing in India. He is left behind by his peers with a communication device to research about earth’s people and culture. However, his device is stolen and he has to go through several hilarious and often dangerous ordeals to get it back. His quests get him into trouble with various religious preachers, one of whom possesses the device he is after and refuses to give it back to him, claiming it was “a gift from god”. The film is sure to make you laugh till your tummy hurts, and the emotional finale will remind you what it really means to be a human. Definitely one of the most rewatchable movies on this list.

Baahubali (2015)

Run Time: 2 hr 39 min | Genre : Action War | Director: S. S. Rajamouli

Cast: Prabhas, Rana Daggubati, Anushka Shetty, Tamannaah, Ramya Krishna

Baahubali is one of the most successful Indian movies that is actually not from Bollywood. Originally filmed in Telugu and Tamil languages, it was dubbed into Hindi and broke the Indian box office. Taking inspiration from the Indian epic Mahabharata , the story is divided into two films: Bahubali: The Beginning and Bahubali: The Conclusion , both of them equally enjoyable and satisfying. It tells the story of an ancient kingdom of Mahishmati, where the rightful heir to the throne is forced to live in exile after his uncle tries to kill him as a baby to capture the throne. He is rescued by some villagers, who adopt him and raise him as their own son.

Two decades later, he accidentally stumbles upon the story of his past while trying to help his crush, who happens to be a member of a rebel group that is trying to rescue the queen, his mom, from captivity. The unbelievable twists and mesmerizing VFX keep you hooked till the end of the second movie, and will make you feel like you are reading directly from the pages of an ancient manuscript.

Khoobsurat (Beautiful) (2014)

Run Time: 2 hr 1 min | Genre : Romance | Director: Shashanka Ghosh

Cast: Sonam Kapoor, Fawad Khan, Kirron Kher, Ratna Pathak, Aamir Raza Hussain

Khoobsurat is the Indian version of a Disney princess story. Yes, you heard it right! Produced under the Walt Disney banners, Khoobsurat is loosely based on the 1980 film of the same name. The film narrates the story of a young and lively physiotherapist, who gets a job offer to work for an Indian royal family, but the dull and strict environment at the palace depresses her. She tries to breathe life into their sad lives with her hard work and cheerful demeanor, but things don’t always go her way. While working at the palace, she falls in love with the young prince but gets rejected. However, her efforts begin to bear fruit as the family slowly gets back together in a fairy-tale fashion and brings a smile to everyone’s face.

Pad Man (2018)

Run Time: 2 hr 10 min | Genre : Biography Comedy Drama | Director: R. Balki

Cast: Akshay Kumar, Sonam Kapoor, Radhika Apte

Pad Man is the story of an Indian hero, but not in the sense you might think. In several rural Indian households, menstruation is seen as a taboo subject, much like everything related to sex, and is something that is looked down upon. Due to the lack of proper sex education, women often have to face unhygienic conditions, and sometimes it goes to an extreme, where they are kept away from the house during the days when they need their families the most. Periods are seen as something impure, a woman’s fault for being a woman, and our hero sets on a journey to change those views.

The film is inspired by the life of a real-life social activist Arunachalam Muruganantham , who sets out on a quest to learn how to make affordable, reliable, and hygienic sanitary pads after seeing his wife suffer due to the lack of education and a chronic case of superstition in his family and village. The story is a saga of true love and dedication set in a more realistic rural world and inspires you to take a stand against similar social issues.

Drishyam (Visual) (2015)

Run Time: 2 hr 43 min | Genre : Crime Thriller | Director: Nishikant Kamat

Cast: Ajay Devgn, Tabu, Shriya Saran

One of the best-written Indian films, Drishyam is one of a kind crime thriller that will keep you glued to your TV screen till the very end. A remake of the 2013 Malayalam-language film of the same name, Drishyam tells the story of a father’s ordeal to protect his family, and the lengths he is willing to go to do the same. The family is held suspect in a criminal investigation, the murder of the son of Inspector General of Goa Police. They are scrutinized and tortured by the police but to no avail. The story slowly unfolds through various gripping twists and turns, much like an episode of CSI , and will make you chow down on several helpings of popcorn in anticipation by the time you reach the end.

Jodhaa Akbar (2008)

Run Time: 3 hr 33 min | Genre : History Romance | Director: Ashutosh Gowariker

Cast: Hrithik Roshan, Aishwarya Rai Bachchan, Sonu Sood

A historical movie at its core, Jodhaa Akbar mixes elements of fiction and romance and takes you back to the medieval period when Mughals ruled over much of India. It narrates the story of the Mughal Emporer Jalal-ud-din Muhammad Akbar and the Hindu Princess Jodhaa Bai, who are married as a result of diplomatic ties and territory expansion between Mughals and a section of the Rajputs (warrior kings of Rajasthan, an Indian state). Akbar has been portrayed as a ruthless conqueror by some and a brilliant statesman by others in history books, but here you see his romantic demeanor as he gradually falls in love with Jodha Bai. The film is filled with great action, VFX, amazing scores, and an intriguing plot line, making it one of the best Indian historical movies to date.

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Taare Zameen Par (Like Stars on Earth) (2007)

Run Time: 2 hr 44 min | Genre : Psychological Drama | Director: Aamir Khan

Cast: Amir Khan, Darsheel Safary, Tanay Chheda, Sachet Engineer, Vipin Sharma, Tisca Chopra

Taare Zameen Par is a psychological drama and proved to be an educational film about dyslexia at a time when there was not much awareness about the disorder in India. The film tells the story of an 8-year-old dyslexic child, who is misunderstood by his family for failing in class, labeled as good-for-nothing by them, his teachers, and his friends. He is admitted to a boarding school as punishment, where his life changes after he makes a friend and meets a new teacher, who himself has suffered through the same problem. The teacher discovers his hidden potential in arts and brings out the best in him by working together, functioning as a guiding light. This film is an eye-opener to the struggles dyslexic individuals, especially children, face in real life.

Kal Ho Naa Ho (Tomorrow May Never Come) (2003)

Run Time: 3 hr 6 min | Genre : Romantic Drama | Director: Karan Johar

Cast: Jaya Bachchan, Shah Rukh Khan, Saif Ali Khan, Preity Zinta

Kal Ho Naa Ho is a romantic drama with a tragic underlying story. It tells the story of a pessimistic young woman studying in the US, whose father killed himself when she was young and has been depressed ever since. Her life is changed with the entry of her new next-door neighbor, who teaches her the meaning of life and alters her views. They both fall in love, but he refuses to admit it because he has a fatal heart condition and does not have long to live. He tries to hook her up with the girl’s best friend, who he knows is secretly in love with her, and believes will take good care of her after he is gone. The movie goes through several transformations in its tone, from bleak to comic, hopeful to tragic, but ends on a sweet note: “Make the most of your life today, because there may not be a tomorrow”.

Saaho (2019)

Run Time: 2 hr 30 min | Genre : Action Thriller | Director: Sujeeth

Cast: Prabhas, Shraddha Kapoor, Jackie Shroff, Neil Nitin Mukesh

If you are looking for an awesome action-thriller laced with a carefully concocted mix of suspense and mystery, Saaho is exactly the film you should watch. One of the most expensive Indian films ever made, Saaho was filmed simultaneously in Telugu, Tamil, and Hindi languages. The movie depicts the story of Saaho, the son of an underworld boss, who carefully orchestrates a plan to avenge his father by going after the rival gangs responsible for his death. He tricks the police into helping him, fights off hoards of bad guys like a superhero, and rises to power after killing off his father’s murderer. With several unexpected twists and turns, popping item numbers, and out-of-the-world action sequences, Saaho is a wild ride and sure to keep you entertained for over two and a half hours!

Run Time: 2 hr 26 min | Genre : Crime Thriller Drama | Director: Ravi Udyawar

Cast: Sridevi, Nawazuddin Siddiqui, Akshaye Khanna, Sajal Ali, Adnan Siddiqui

Mom is a crime thriller drama that focuses on an issue that has been a major concern all over the world in one way or another: the safety of women. The film shows what goes through the minds of the victims and their family, and why stricter laws are necessary to prevent crimes against women. Mom is the story of a mother’s crusade, seeking justice for her young stepdaughter after she is sexually assaulted by a group of men after a party. She is failed by the judiciary system after the criminals are set free due to the lack of evidence. She goes after them herself, exacting revenge for her daughter, with some help, and shows why a mother’s love is second to none.

Toilet: Ek Prem Katha (Toilet: A Love Story) (2017)

Run Time: 2 hr 35 min | Genre : Satire Comedy | Director: Shree Narayan Singh

Cast: Akshay Kumar, Bhumi Pednekar, Anupam Kher, Sudhir Pandey, Divyendu Sharma

Toilet: Ek Prem Katha is a satirical comedy that highlights the dire situation of the lack of proper sanitation facilities in Indian rural areas. It tells the story of a young man from an Indian rural area who falls in love with a city girl, and the couple moves to the village after they marry. The village is quite under-developed and its residents are uneducated and superstitious, and the government’s negligence only makes the situation worse. The spouse is horrified by the lack of proper toilets in her house and in the village and files a divorce. The case attracts media attention which ultimately forces the government to build proper sanitization arrangements in the village. The love birds manage to reconcile and encourage you to take a stand against similar practices that we often ignore due to negligence.

Main Hoon Na (I Am Here) (2004)

Run Time: 3 hr 2 min | Genre : Action Comedy Romance Drama | Director: Farah Khan

Cast: Shah Rukh Khan, Sushmita Sen, Sunil Shetty, Amrita Rao, Zayed Khan

Bollywood is known for its masala movies, i.e. films that don’t belong to a specific genre but flaunt a mix of action, romance, comedy, drama and are lined with iconic item songs. The movie narrates the story of a young Major in the Indian Army, who is sent back to college on two missions: One, to protect the daughter of his senior officer, and Two, to reconcile with his stepmom and stepbrother after the death of his father. His journey takes him through several amusing, romantic, and Rambo -like adventures until he finds the person responsible for his father’s death. Main Hoon Na will surely make you miss your college days, or make you wish you had attended one, and the amazing dance numbers will force you to get off the couch and shake a leg with your loved ones.

Shaandaar (Magnificent) (2015)

Run Time: 3 hr 26 min | Genre : Romance Comedy | Director: Vikas Bahl

Cast: Shahid Kapoor, Alia Bhatt, Pankaj Kapoor, Sanjay Kapoor

Shaandaar is a rom-com drama that primarily focuses on the importance of self-worth. Arranged marriages are quite common in India and the entire film circles around the concept. A young orphan girl who suffers from terrible insomnia is adopted by a rich businessman, whose wife and mother hate the idea and think she is a bad investment. She grows up to be an amazing person under the care of her adoptive father and sister, who dote on her.

However, the family goes bankrupt, and the biological daughter is asked to marry into a wealthy family in hopes of getting some financial stability. She agrees, and the marriage arrangements begin to take shape until she meets the guy she is supposed to marry. He is a condescending fitness freak, who constantly fat-shames her and is quite disrespectful towards her. With the help of her adopted sister and the event organizer, she learns to value herself and ultimately calls off the wedding.

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