निबन्ध:मेरा प्रिय नेता- महात्मा गांधी | essay on Mahatma Gandhi in Hindi | मेरे प्रिय नेता
By: Amit Singh
महात्मा गांधी पर निबंध/Mahatma Gandhi par nibandh/Essay on Mahatma Gandhi/Mahatma Gandhi Hindi Essay – video
मेरे प्रिय नेता महात्मा गांधी जी हैं। महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास करमचन्द्र गांधी है। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। उनके पिता का नाम करमचन्द्र गांधी और माता का नाम पुतली बाई था।
गांधी जी ने राजकोट के अल्फर्ड हाई स्कूल से पढ़ाई पूरी करने के बाद शामलदास आर्ट कॉलेज से स्नातक किया। जिसके बाद गांधी जी ने लंदन के विश्वविद्यालय से कानून में डिग्री हासिल की।
महात्मा गांधी का विवाह 13 साल की उम्र में कस्तूरबा गांधी से हुआ था। गांधी जी के चार बेटे हैं, जिनके नाम हरिलाल, मणिलाल, देवदास और रामदास
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अप्रैल 1893 में 23 साल के गांधी जी वकालत पूरी करने के बाद दक्षिण अफ्रीका पहुंचे। 21 सालों तक दक्षिण अफ्रीका में रहने के दौरान गांधी जी ने भेद-भाव और मानवाधिकारों के खिलाफ आवाज बुलंद की। इसी समय गांधी ने सत्याग्रह की पहल की थी। गांधी जी के अनुसार – “खुद को खोजने का सबसे अच्छा तरीका है, खुद को दूसरों की सेवा में खो दो”
महात्मा गांधी 1915 में भारत वापस लौटे , जिसके बाद उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नरमदलीय नेता गोपाल कृष्ण गोखले को अपना राजनीतिक गुरु बनाया।
महात्मा गांधी ने 1917 में पहली बार बिहार के चंपारण जिले में सत्याग्रह का आगाज किया। जिसमें कई स्थानीय किसानों ने भाग लिया था। चंपारण सत्याग्रह भारत में गांधी जी का पहला सफल अभियान था।
इसके बाद उन्होंने 1918 में गुजरात में अहमदाबाद मिल आंदोलन शुरु किया। इसी साल गांधी जी ने गुजरात में खेड़ा सत्याग्रह का भी आगाज किया। दोनों की आंदोलन अपने हितों को साधने में कामयाब रहे।
वहीं गांधी जी ने 1919 में रालेट एक्ट का भी खुलकर विरोध किया और जलियावाला बाग हत्याकांड के विरोध में उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के द्वारा दी गयी केसर-ए-हिंद की उपाधि भी वापस लौटा दी।
महात्मा गांधी ने 1921 को राष्ट्रीय स्तर पर असहयोग आंदोलन का आगाज किया, जिसे खिलाफत आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है। गांधी जी का यह पहला आह्वाहन था, जिसमें देश के हर वर्ग मसलन अमीर, गरीब, किसान, छात्र, सरकारी कार्यकर्ता, वकील, शिक्षकों, डॉक्टरों सहित कई तबकों ने अपना योगदान दिया था। वहीं पहली बार मुस्लिम वर्ग ने भी खिलाफत आंदोलन के रुप में असहयोग आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी।
हालांकि उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में स्थित चौरी-चौरा नाम जगह पर यह अहिंसक आंदोलन हिसां में तब्दील हो गया, जिसके बाद गांधी जी ने असहयोग आंदोलन वापस लेने का एलान कर दिया। गांधी जी का मानना था कि- आपको “मानवता” में विश्वास नहीं खोना चाहिए। मानवता एक समुद्र है; अगर सागर की कुछ बूँदें गन्दी हैं, तो पूरा सागर गंदा नहीं हो जाता है।
आंदोलन केअंत के साथ ही ब्रिटिश सरकार ने गांधी जी सहित असहयोग आंदोलन के कई नेताओं को हिरासत में ले लिया और नतीजतन गांधी जी आने वाले कई सालों तक सक्रिय राजनीति से दूर रहे। हालांकि उन्होंने 1927 में भारत आने वाले साइमन कमीशन का पुरजोर विरोध किया।
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महात्मा गांधी ने 26 जनवरी 1929 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन के दौरान पहली बार पूर्ण स्वराज का नारा देते हुए इस दिन को स्वतंत्रता दिवस घोषित किया। जिसके बाद गांधी जी ने 12 मार्च 1930 को नमक सत्याग्रह शुरु किया। गांधी जी यह यात्रा डांडी मार्च के नाम से जानी जाती है। इस यात्रा में गांधी ने 78 लोगों के साथ गुजराज के साबरमती आश्रम से डांडी गांव तक 240 मील का सफर तय करने का एलाम किया था। गांधी जी ने 6 अप्रैल 1930 को गुजरात के डांडी पहुंच कर नमक कानून तोड़ाते हुए सविनय अविज्ञा आंदोलन का आगाज किया।
गांधी जी द्वारा नमक सत्याग्रह पूरा होने के बाद देश में कई प्रसिद्ध नेताओं के नेतृत्व में नमक सत्याग्रह फैलने लगा। जिसके कारण ब्रिटिश सरकार के वायसराय लॉर्ड इरविन ने गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया।
कांग्रेस द्वारा पहले गोलमेज सम्मेलन का बहिष्कार करने के बाद गांध-इरविन समझौता हुआ। इस समझौते के अंतर्गत गांधी जी सविनय अविज्ञा आंदोलन वापस लेने पर राजी हो गए। जिसके बाद गांधी जी ने लंदन में आयोजित दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भी भाग लिया।
महात्मा गांधी ने 1942 में कांग्रेस के बंबई अधिवेशन में भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की। इस आंदोलन का उद्देश्य पूरी तरह से ब्रिटिश सरकार और ब्रितानी वस्तुओं का बहिष्कार करना था। इसी दौरान गांधी जी ने सामूहिक सत्याग्रह के स्थान पर व्यक्तिगत सत्याग्रह की पहल की, जिसमें विनोबा भावे पहले और जवाहरलाल नेहरु दूसरे सत्याग्रही बने। भारतीय स्वतंत्रता के विषय में गांधी जी कहते थे कि – पहले वो आपकी उपेक्षा करेंगे, फिर आप पर हसेंगे, फिर आपसे लड़ेंगे और अंत में आप जीत जायेंगे
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ही गांधी जी ने ‘करो या मरो’ का नारा दिया। वहीं आंदोलन की प्रसिद्धि के चलते ब्रिटिश सरकार ने गांधी जी सहित आंदोलन के मुख्य नेताओं को गिरफ्तार कर पुणे रवाना कर दिया। जिसके बाद कई स्थानीय नेताओं ने आंदोलन का नेतृत्व किया।
आखिरकार 15 अगस्त 1947 को देश की आजादी की घोषणा हुई, जिसके साथ ही विभाजन की विभीषिका का मंजर दिल दहला देने वाला था। वहीं गांधी जी देश के विभाजन के पूरी तरह से खिलाफ थे। इस दौरान गांधी जी बंगाल के नोआखली में भड़के दंगों को शांत कराने और जरुरतमंदों को राहत मुहैया कराने में जुट गये। गांधी जी के शब्दों में – आपको “मानवता” में विश्वास नहीं खोना चाहिए। मानवता एक समुद्र है; अगर सागर की कुछ बूँदें गन्दी हैं, तो पूरा सागर गंदा नहीं हो जाता है।
वहीं आजादी के महज कुछ महीनों बाद ही 30 जनवरी 1948 को एक हिन्दू राष्ट्रवादी नाथूराम गोडसे ने बड़ला हाउस में गोली मारकर गांधी जी की हत्या कर दी और महात्मा गांधी ने गोली लगने के साथ ही इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। जिस जगह गांधी जी को गोली लगी थी, उसे गांधी स्मृति के नाम से जाना जाता है। गांधी जी के शब्दों में – “ जियो ऐसे जैसे कल आपका आखिरी दिन हो, जी भर जियो और सीखो ऐसे जैसे कि आपको यहां हमेशा रहना है।“
गांधी जी भले ही इस दुनिया से चले गए, लेकिन उनकी सीख, उनके सत्य, शांति और अंहिसा के विचार वर्तमान हालातों पर भी बिल्कुल सटीक बैठते हैं। आतंकवाद के रुप में अंहिसा से लेकर झूठ, फरेब, धोखाधड़ी से भरपूर इस दुनिया को गांधी के आदर्शों पर चलने की बेहद जरुरत है। गांधी जी का मानना था कि- आप जो सुधार दुनियाँ में देखना चाहते हो, आप खुद उस सुधार का हिस्सा होने चाहिए।
गांधी जी मर कर भी हमेशा के लिए दुनिया में अमर हो गए। उनका कथन- मेरा जीवन मेरा संदेश है, जो वाकई वर्तमान में एक कठोर सच्चाई है।
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2 thoughts on “निबन्ध:मेरा प्रिय नेता- महात्मा गांधी | essay on Mahatma Gandhi in Hindi | मेरे प्रिय नेता”
Sir Mahatma Gandhi ka birth 1869 ko hua tha. Or aap essay me likh rahe ho ki 1969 ki hua tha, to phir death kab hui thi
Thank you for pointing out. It has now been corrected.
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मेरे प्रिय नेता पर निबंध- Mera Priya Neta Nibandh in Hindi
इस निबंध में हम सुभाष चंद्र बोस, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, लोकमान्य टिळक, मोदी जी , डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जी के बारे में पढ़ेंगे। यह निबंध Class 5, 6, 7, 8, 9, 10th, 11th और 12th के लिए लिखा गया है और सभी निबंध को श्रेणी अनुशार रखा गया है। “ मेरे प्रिय नेता पर निबंध (My Favourite Leader Essay in hindi) ” सभी कक्षाओं में बहुत बार पूछा जाता है यहाँ से आप निबंध को पढ़ कर अपने कार्य को पूरा कर सकते है.
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मेरे प्रिय नेता: नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर निबंध | Netaji Subhash chandra bose
नेता वही कहलाता है जो किसी देश या किसी भी संगठन का भली -भाँती नेतृत्व करे, साथ ही देश और लोगो को एक साथ एकता के साथ बांधे रखे। मेरे प्रिय नेता है नेताजी सुभाष चंद्र बोस । नेता जी के बारे में लगभग हम सभी भारतीय जानते है। उनका लोकप्रिय नारा “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूंगा के” विषय में सभी जानते है। नेताजी एक महान भारतीय राष्ट्रवादी सोच और विचारधारा के व्यक्ति थे। सभी लोग जानते है, वह अपने देश से कितना प्रेम करते थे। नेताजी का जन्म 1897 में 23 जनवरी को हुआ था। सबसे ज़्यादा अत्याचारी और कट्टर ब्रिटिश शासन के खिलाफ वे बहादुरी के साथ लड़े। सुभाष चंद्र बोस निश्चित रूप से एक क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने अपने देश के लिए अपना परिवार को भी समर्पित कर दिया था।
नेताजी के पिताजी का नाम जानकीनाथ बोस था। उनके पिताजी उच्च स्तर के वकील थे। उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा कटक में प्राप्त की। नेताजी ने अपने आगे की शिक्षा प्रेसीडेंसी कॉलेज से प्राप्त की। उसके पश्चात आई सी एस की परीक्षा देने के लिए इंग्लैंड चले गए। आई सी ए स की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वह चाहते तो आराम और सुख सुविधा पूर्ण जीवनयापन कर सकते थे। परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया। उनके मन में देश को आज़ाद कराने की लौ जल रही थी। नेताजी ने भारत को स्वतंत्र कराने के लिए त्याग और बलिदान का मार्ग चुना। वे अपने देश से असीम और अनंत प्रेम करते थे, जिसके लिए उन्होंने अपने जीवन में सारे सुख सुविधाओं का त्याग किया।
नेताजी भगवत गीता में काफी विश्वास रखते थे जिससे उन्हें अंग्रेज़ो के खिलाफ लड़ने की प्रेरणा मिलती थी। स्वामी विवेकानंद के सिखाये हुए मार्ग यानी उनकी शिक्षाओं का नेताजी अनुकरण किया करते थे।
राजनीति में उन्होंने अपना पहला कदम, असहयोग आंदोलन से किया था। नेताजी ने नमक आंदोलन का नेतृत्व सन 1930 में किया था। नेताजी ने प्रिंस ऑफ़ वेल्स के आगमन पर विरोध आंदोलन किया था। इसके लिए उन्हें सरकार की तरफ से छह महीने का दंड दिया गया। नेताजी ने ब्रिटिश सरकार को सबक सिखाने के लिए कई तरह की राजनितिक गतिविधियों में भाग लेने लगे थे। जनता के मन में नेताजी ने घर बना लिया था।
सुभाष चंद्र बोस ने सिविल डिसओबेडिएंस मूवमेंट में भाग लिया था। यही से सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा बन गए थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य नेताजी बन गए। इसके पश्चात वह, 1939 में पार्टी के अध्यक्ष बने। यह सिर्फ केवल थोड़े समय के लिए था। बाद में उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया था।
ब्रिटिश को नेताजी से बड़ी परेशानी थी। नेताजी से मन ही मन वे डरते थे। इसलिए ब्रिटिश सरकार ने नेताजी को घर पर नज़र बंद करके रखा था। लेकिन नेताजी ने अपनी चतुराई से वहां से निकल पड़े और सन 1941 को वह रहस्मयी तरीके से देश से बाहर चले गए। लेकिन इसके पीछे उनका एक ही उद्देश्य था, देश को आज़ादी दिलाना।
फिर वह अंग्रेजों के खिलाफ मदद मांगने के लिए वे यूरोप गए। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ने हेतु रूस और जर्मनों जैसे देशो से की मदद मांगी। नेताजी सन 1943 में जापान गए थे। ऐसा इसलिए था क्योंकि जापानियों ने भारत को आज़ाद करवाने का उनका प्रस्ताव मंज़ूर किया। जापान में सुभाष चंद्र बोस ने भारतीय राष्ट्रीय सेना के गठन का आरम्भ कर दिया था।
बोस लगातार दूसरे बार कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए थे। लेकिन गांधी और कांग्रेस के साथ उनके कुछ मतभेद हो गए, जिसके कारण बोस ने इस्तीफा दे दिया। बोस महात्मा गांधी के अहिंसा के दृष्टिकोण से असहमत थे । गाँधी जी और नेहरू का भली भांति समर्थन ना मिलने का कारण नेताजी ने इस्तीफा दे दिया था।
भारतीय राष्ट्रीय सेना ने भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्सों पर हमला किया। यह हमला सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में हुआ। आई-एन-ए कुछ भागों को लेने में सफल रहा। हालांकि, बोस ने आत्मसमर्पण करने से इनकार कर दिया। नेताजी विमान में बच कर निकल रहे थे, लेकिन कुछ तकनीकी खराबी के कारण विमान संभवतः दुर्घटनाग्रस्त हो गया। कहा जाता है 18 अगस्त 1945 को सुभाष चंद्र बोस का निधन हो गया। लेकिन नेताजी की मौत को लेकर अभी भी संदेह बना हुआ है।
कांग्रेस की विचारधाराओं से वे कुछ ख़ास सहमत नहीं थे। इसलिए उन्होंने आज़ाद हिन्द फ़ौज का गठन किया था। देश के लोगो ने सुभाष चंद्र बोस के फ़ौज की गठन के लिए काफी मदद की।
निष्कर्ष सुभाष चंद्र बोस के चले जाने से देश को काफी झटका लगा। वे निडर होकर देश की सेवा में लगे रहे। उन्होंने कई कठिनाईओं का सामना किया। नेताजी वीर राष्ट्र नेता थे और आज भी हम सबके दिलो में ज़िंदा है। देशवासी आज भी देशभक्त नेताजी को उतना ही प्यार और सम्मान देते थे, जितना की पहले। ऐसे सच्चे नेताओं की ज़रूरत आज देश को है। हम अपने आपको भाग्यशाली मानते है, नेताजी जैसे नेता ने हमारे देश का नेतृत्व किया और अपने सारे इच्छाओं की कुर्बानी देकर, देश हित को सर्वप्रथम रखा। हम सर झुकाकर ऐसे देशभक्त का नमन करते है। नेताजी के इन्ही गुणों के कारण वह मेरे प्रिय नेता है।
मेरे प्रिय नेता: महात्मा गांधी पर निबंध | Mahatma Gandhi ji
प्रस्तावना : महात्मा गांधी, जिन्हें राष्ट्रपिता के रूप में भारतीयों ने सम्मान दिया है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता और आदर्श मानवीयता के प्रतीक थे। उनकी अहिंसा, सत्य और आत्म-नियंत्रण की प्रेरणा ने दुनियाभर के लोगों को प्रभावित किया और उनका योगदान आज भी हमारे समाज में महत्वपूर्ण है।
महात्मा गांधी का जीवन: मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर, गुजरात में हुआ था। वे एक संगीतकार के पुत्र थे और उनका बचपन आसपास की गांवों में बीता। उन्होंने विद्या प्राप्त की और वकालत की पढ़ाई की, परंतु उनकी आत्म-अभिवादना के चलते उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ सत्याग्रह आरंभ किया।
सत्याग्रह और अहिंसा के प्रयोग: महात्मा गांधी ने अहिंसा और सत्य के माध्यम से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की मार्गदर्शन की। उन्होंने विभाजन और शांति के लिए सत्याग्रह का सिद्धांत प्रस्तुत किया और उनके नेतृत्व में भारतीय जनता ने अपनी आवाज उठाई और स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए संघर्ष किया।
नमक-चक्र और खिलाफत आंदोलन: महात्मा गांधी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपनी अनूठी तकनीकें अपनाई, जैसे कि नमक-चक्र और खिलाफत आंदोलन। वे विभाजन को समाप्त करने और हिन्दू-मुस्लिम एकता को स्थापित करने के प्रयासों में भी सक्रिय रहे।
स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता: महात्मा गांधी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता के रूप में अपनी प्रमुखता और दृढ संकल्प दिखाई। उन्होंने सत्य और अहिंसा के प्रति अपने अटूट संकल्प के लिए प्रसिद्धता प्राप्त की और उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दिलाई।
स्वतंत्रता की प्राप्ति: महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम ने अंग्रेज साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष किया और उसने अपनी अहिंसा और सत्य के सिद्धांतों के माध्यम से भारत को स्वतंत्रता दिलाने का कार्य किया। 1947 में भारत ने आजाद होकर स्वतंत्रता प्राप्त की और महात्मा गांधी की मेहनत और संघर्ष की भूमिका महत्वपूर्ण थी।
समाज सुधार और आदर्श मानवता : महात्मा गांधी के योगदान का केंद्रिय हिस्सा समाज में सुधार और आदर्श मानवता की प्रोत्साहना था। उन्होंने विभिन्न समाजिक मुद्दों पर अपने विचार और क्रियाएँ साझा की, जैसे कि वर्ण व्यवस्था, असहमति का मूल्यांकन आदि।
आखिरी शब्द: महात्मा गांधी के विचार, सिद्धांत और योगदान ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नया दिशा दिलाया और उनका प्रेरणास्त्रोत बनकर लोग आज भी उनके महान कार्यों को याद करते हैं। उनकी आदर्श मानवता, सत्य और अहिंसा की प्रेरणा हमें आज भी सही मार्ग दिखाती है और हमें उनके योगदान के प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए।
मेरा प्रिय नेता: पंडित जवाहरलाल नेहरू पर निबंध | Pt. Jawaharlal Nehru
प्रस्तावना : पंडित जवाहरलाल नेहरू भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता और पहले प्रधानमंत्री थे। उनका नाम भारतीय राजनीति और स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्थायी रूप से स्थापित है। मैं उनकी सोच, कर्मठता और देश के प्रति समर्पण को सराहता हूँ और उनके प्रति आदरभावना रखता हूँ।
पंडित जवाहरलाल नेहरू का जीवन : पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवम्बर 1889 को इलाहाबाद में हुआ था। उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की और फिर इंग्लैंड में आईआईटी कॉलेज से कानून की पढ़ाई की।
नेहरू जी का संघर्ष : नेहरू जी ने गांधी जी के प्रेरणास्त्रोत बनकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और उन्होंने भारतीय युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने बच्चों के प्रति अपनी विशेष स्नेहभावना के लिए भी प्रसिद्ध थे और उन्हें ‘चाचा नेहरू’ के रूप में संदर्भित किया जाता है।
प्रथम प्रधानमंत्री: भारत की स्वतंत्रता के बाद, पंडित नेहरू ने पहले प्रधानमंत्री के रूप में देश की कई महत्वपूर्ण पहलुओं को संचालित किया। उन्होंने भारत की सामाजिक, आर्थिक और विज्ञानिक दिशा में विकास की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए।
शिक्षा और विज्ञान में दृष्टिकोण: नेहरू जी ने शिक्षा को महत्वपूर्ण साधना मानते थे और उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में नई दिशाएँ देखने की प्रेरणा दी। उन्हें बच्चों के विकास की ओर महत्वपूर्ण कदम उठाने का विशेष ध्यान था, जिसका परिणाम स्थानीय और विशेषज्ञ शिक्षा के क्षेत्र में उनके प्रति महत्वपूर्ण योगदान के रूप में दिखाई दिया।
नेहरू जी और शांति: नेहरू जी ने विश्वयुद्ध के बाद भारत को शांति और सहयोग की दिशा में अग्रसर करने के लिए कई महत्वपूर्ण पहलुओं का समर्थन किया। उन्हें विश्वयुद्ध के दुखों और त्रासदियों के बावजूद भारत को विकास और प्रगति की दिशा में आगे बढ़ने की दिशा में नेतृत्व करने का महत्वपूर्ण काम था।
निष्कर्ष : पंडित जवाहरलाल नेहरू भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता, शिक्षाविद्, और दृढ शांतिप्रेमी थे। उनके नेतृत्व में भारत ने विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनाई और विकास की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए। उनकी विचारधारा, दृढता और देशभक्ति हम सभी के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं।
मेरा प्रिय नेता: लोकमान्य टिळक पर निबंध | Lokmanya Balgangadhar Tilak
प्रस्तावना : लोकमान्य बाल गंगाधर टिळक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता और विचारक थे। उनका नाम भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के उद्घाटनकर्ता के रूप में महत्वपूर्ण है। वे गांधीजी के साथ स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण प्रमुख रहे हैं। मैं उनकी सोच, कार्यक्षमता और देशप्रेम को सराहता हूँ और उनके प्रति आदरभावना रखता हूँ।
लोकमान्य टिळक का जीवन: लोकमान्य टिळक का जन्म 23 जुलाई, 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के चुंद्रपूर गांव में हुआ था। उन्होंने अपनी शिक्षा पुणे और बेनारस विश्वविद्यालय से प्राप्त की। उन्होंने विशेष रूप से संस्कृत और वेदांत की अध्ययन किया और उन्हें विचारधारा में मजबूती प्राप्त हुई।
विचारों का प्रवर्धन : लोकमान्य टिळक ने ‘स्वराज्य हमारी जन्मसिद्ध हक्क आहे, आणि तो मिलेल’ (स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध हक्क है, और वह मिलेगा) यह उक्ति देशभक्ति और स्वतंत्रता के प्रति उनके प्रतिबद्धन का प्रतीक है। उन्होंने देशभक्ति के उद्देश्य के लिए महाराष्ट्रीय लोगों को उत्तेजित किया और स्वतंत्रता संग्राम के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान: लोकमान्य टिळक ने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ सख्त विरोध किया और उन्होंने विशेष रूप से स्वतंत्रता संग्राम के अभियानों का संचालन किया। उन्होंने ‘केसरी’ और ‘मराठा’ नामक पत्रिकाओं के माध्यम से लोगों को जागरूक किया और उन्हें आजादी की दिशा में प्रेरित किया।
शिक्षा के प्रति समर्पण: लोकमान्य टिळक ने शिक्षा को एक महत्वपूर्ण उपाय मानते थे जो लोगों को आदर्श नागरिक बनाता है। उन्होंने विशेष रूप से महिलाओं की शिक्षा को महत्व दिया और उन्हें समाज में समानता की दिशा में अग्रसर करने के लिए उत्साहित किया।
निष्कर्ष : लोकमान्य बाल गंगाधर टिळक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महान नेता और विचारक थे। उनके नेतृत्व में लोगों की आवश्यकताओं की पहचान होती थी और उन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्धता से काम किया। उनका योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमर है और हम सभी को उनके महान कार्यों का सम्मान करना चाहिए।
मेरे प्रिय नेता: नरेंद्र मोदी पर निबंध | Narendra Modi
प्रस्तावना : नेता वह व्यक्ति होता है जिसका दिल देश और समाज की सेवा में लगा रहता है। एक अच्छा नेता अपने लोगों के प्रति कर्तव्यभावना और समर्पण से भरपूर होता है और वह उनके सुख-समृद्धि की प्राथमिकता को समझता है। मेरे प्रिय नेता के बारे में यह निबंध लिखने जा रहा हूँ, जिनका मैं गहरा समर्थन करता हूँ और उनकी सोच, कार्यक्षमता और नेतृत्व को प्रेरणा स्रोत मानता हूँ।
मेरे प्रिय नेता – नरेंद्र मोदी: मेरे प्रिय नेता के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम आता है। वह भारतीय राजनीति में अपने प्रगतिशील सोच और कर्मठता से प्रसिद्ध हैं। मैं उनके दृढ़ नेतृत्व को सलाही देता हूँ, जिनसे वह देश की सर्वांगीण विकास की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं।
नरेंद्र मोदी जी का जन्म 17 सितंबर, 1950 को गुजरात के वडनगर जिले के वडनगर गांव में हुआ था। उन्होंने अपनी जीवनी में गरीबी और संघर्षों से गुजरकर कड़ी मेहनत और समर्पण से अपने लक्ष्यों को प्राप्त किया। उनका संघर्ष एक सामाजिक कार्यकर्ता से राष्ट्रीय स्तर के नेता बनने की उनकी कड़ी मेहनत और निष्ठा का प्रतीक है।
नरेंद्र मोदी जी का नेतृत्व उनके सकारात्मक दृष्टिकोण, विकास के प्रति अपनी संकल्पित भावना और निष्ठा में छिपा होता है। उन्होंने ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ के सिद्धांत के साथ देश के विकास में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
नरेंद्र मोदी जी का सपना ‘न्यू इंडिया’ की रचना करना है, जिसमें देश का युवा पीढ़ी विश्वस्तरीय तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त करे और उच्चतम आदर्शों का पालन करने में समर्थ हो। उनके नेतृत्व में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसे महत्वपूर्ण समाजिक योजनाओं की शुरुआत हुई, जो समाज में समानता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं।
नरेंद्र मोदी जी का सख्त नेतृत्व और समर्पण देश को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर गर्वित करता है। उन्होंने भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान की शुरुआत की, जिससे देश की आर्थिक मजबूती में सुधार हुआ है।
नागरिकों के प्रति उनकी सेवा भावना और देश के विकास के प्रति उनकी समर्पणशीलता ने मुझे उन्हें मेरे प्रिय नेता के रूप में चुनने के लिए प्रेरित किया है।
निष्कर्ष : मेरे प्रिय नेता नरेंद्र मोदी जी के दृढ नेतृत्व, सकारात्मक सोच और कठिनाइयों का सामना करने की क्षमता ने मुझे आदर्श और प्रेरणा स्रोत के रूप में प्राप्त किया है। उनके कार्यों से पता चलता है कि सच्चे नेता किस प्रकार से देश के विकास में योगदान कर सकते हैं।
इस प्रकार, मेरे प्रिय नेता नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में भारत को विकास और समृद्धि की दिशा में मजबूत कदम बढ़ाते देखने में मुझे गर्व होता है।
मेरा प्रिय नेता: डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर पर निबंध | Dr BabaSaheb Ambedkar
प्रस्तावना : डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर, जिन्हें हम सम्मान से डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के नाम से जानते हैं, एक महान समाजसेवी, विचारक और भारतीय संविधान के मुख्य निर्माता रहे हैं। उनके योगदान ने भारतीय समाज को सामाजिक और आर्थिक उत्थान की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाने में मदद की है।
जीवनी : डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को महाराष्ट्र के माऊ गांव में हुआ था। वे दलित समुदाय से संबंधित थे और उन्होंने अपने जीवन में दलितों के अधिकारों की रक्षा करने का संकल्प लिया। उन्होंने अपनी मेहनत और प्रतिबद्धता से शिक्षा प्राप्त की और बाद में विदेश में पढ़ाई की।
समाजसुधारक दृष्टिकोण: बाबासाहेब आंबेडकर ने समाज की बदलावपूर्ण सोच और समाज सुधार के प्रति अपनी समर्पितता के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने दलित समुदाय के अधिकारों की रक्षा करने के लिए संघर्ष किया और उन्होंने उन्हें उनके अधिकारों की जानकारी देने के लिए जागरूक किया।
भारतीय संविधान के मुख्य निर्माता: डॉ. आंबेडकर का सबसे महत्वपूर्ण योगदान भारतीय संविधान की तैयारी में था। उन्होंने संविधान समिति के अध्यक्ष के रूप में काम किया और संविधान के निर्माण में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने समाज में समानता, न्याय और स्वतंत्रता के मूल अधिकारों की रक्षा की और भारतीय संविधान को सम्पूर्णता से तैयार किया।
शिक्षा के प्रति समर्पण: डॉ. आंबेडकर ने शिक्षा को एक महत्वपूर्ण साधना माना और उन्होंने दलित समुदाय के लोगों को शिक्षा प्रदान करने के लिए कई प्रयास किए। उन्होंने उन्हें जागरूक किया कि शिक्षा केवल ज्ञान का स्रोत नहीं होती, बल्कि यह समाज में उन्नति और समाज सुधार की दिशा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
निष्कर्ष : डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर भारतीय समाज के उत्थान और समाजिक सुधार के प्रति अपने अद्भुत संकल्प और समर्पण के लिए प्रसिद्ध हैं। उनका योगदान भारतीय समाज को समाजिक और आर्थिक समानता की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान के रूप में स्मृति में बना रहेगा।
मेरा प्रिय नेता: ए.पी.जे. अब्दुल कलाम पर निबंध | APJ Abdul Kamal Azad
प्रस्तावना : भारतीय ग्यारहवें राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम को हम सर्वप्रिय नेता के रूप में सम्मान देते हैं। उनका जीवन और उनके योगदान ने हम सभी को प्रेरित किया है और उनके नेतृत्व में भारत ने विज्ञान, प्रौद्योगिकी और शिक्षा के क्षेत्र में अनेक महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
जीवनी: ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम गांव में हुआ था। उन्होंने अपनी शिक्षा तमिलनाडु में पूरी की और फिर विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक की डिग्री प्राप्त की।
वैज्ञानिक योगदान : अब्दुल कलाम ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अपने योगदानों से दुनियाभर में पहचान बनाई। उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के नेतृत्व में कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं का संचालन किया, जैसे कि चंद्रयान-1 और अग्नि मिसाइल के विकास में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा।
शिक्षाकर्म : अब्दुल कलाम ने शिक्षा के क्षेत्र में भी अपना सकारात्मक प्रभाव दिखाया। उन्होंने शिक्षा के महत्व को समझाया और छात्रों को यह सिखाया कि वे अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए कठिनाइयों का सामना करें। उनकी मोतिवेशनल कविताएँ और उनके शिक्षानिष्ठ भाषण हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा प्रदान करते हैं।
परम्परागत संविधान के पक्षधर: अब्दुल कलाम का आदर्श और संविधान ने हमें दिखाया कि व्यक्तिगत और व्यक्तिगत सीमाओं से ऊपर उठकर समाज में सकारात्मक परिवर्तन की दिशा में काम करना चाहिए। उन्होंने युवा पीढ़ी से प्रेरित किया कि वे अपने सपनों को पूरा करने के लिए कठिनाइयों का सामना करें और समाज में उन्हें सकारात्मक परिवर्तन की दिशा में जुटने की प्रेरणा दी।
निष्कर्ष : ए.पी.जे. अब्दुल कलाम हमारे समय के एक महान नेता थे जिन्होंने विज्ञान, प्रौद्योगिकी और शिक्षा के क्षेत्र में अपने योगदानों से हमारे देश का मानविक और वैज्ञानिक उत्थान किया। उनकी दृढ़ इच्छा, प्रेरणादायक वाणी और सेवाभावी मानसिकता ने हमें सही दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। वे एक सजीव उदाहरण थे कि संघर्ष और मेहनत से किसी भी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।
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1 thought on “मेरे प्रिय नेता पर निबंध- Mera Priya Neta Nibandh in Hindi”
Your easy was super and I got more knowledge about the topic thankyou very much for such a nice information about the topic from you 👍❤️😄
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मेरा प्रिय नेता पर निबंध (Mera Priya Neta Essay In Hindi)
आज हम मेरा प्रिय नेता पर निबंध (Essay On Mera Priya Neta In Hindi) लिखेंगे। मेरा प्रिय नेता पर लिखा यह निबंध बच्चो (kids) और class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए लिखा गया है।
मेरा प्रिय नेता पर लिखा हुआ यह निबंध (Essay On Mera Priya Neta In Hindi) आप अपने स्कूल या फिर कॉलेज प्रोजेक्ट के लिए इस्तेमाल कर सकते है। आपको हमारे इस वेबसाइट पर और भी कई विषयो पर हिंदी में निबंध मिलेंगे , जिन्हे आप पढ़ सकते है।
मेरे प्रिय नेता सुभाष चंद्र बोस है। नेता का अर्थ नेतृत्व करना होता है। किसी भी देश या संगठन के उन्नति की बागडोर नेता के हाथ में होती है। पूरे देश को एकता के सूत्र में बांधने के लिए और भाईचारे का संदेश देने के लिए भी एक अच्छे नेता का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नाम तो आप सभी ने सुना होगा। उन्होंने देश को आजादी दिलाने के लिए अथक प्रयास किया। इन्हीं की बदौलत आज हम अमन चैन से भारत में जी रहे है।नेताजी का लोकप्रिय नारा “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूंगा” के बारे में सभी को पता है।
मेरे प्रिय नेता एक क्रांतिकारी सेनानी
मेरे प्रिय नेताजी एक महान भारतीय राष्ट्रवादी सोच और विचारधारा के व्यक्ति थे। उनके अंदर देशभक्ति की भावना कूट कूट कर भरी हुई थी। मेरे प्रिय नेता सुभाष चंद्र बोस का जन्म 1897 में 23 जनवरी को हुआ था।
देश को आजादी दिलाने में इन्होंने लंबी लड़ाई लड़ी। सुभाष चंद्र बोस एक सच्चे देशभक्त होने के साथ ही एक क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी भी थे। मेरे प्रिय नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पिताजी का नाम जानकीनाथ बोस था। उस समय के ये जाने माने वकील थे।
मेरे प्रिय नेता एक सच्चे देशभक्त
नेताजी की शुरुआती शिक्षा कटक में हुई थी। आगे की शिक्षा इन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज से प्राप्त की। इसके पश्चात आई सी एस की परीक्षा देने के लिए इनको इंग्लैंड जाना पड़ा। आई सी ए स की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उनके पास एक सुनहरा अवसर था एक आराम और विलासिता पूर्वक जीवन जीने का।
लेकिन इन्होंने देशभक्ति को ही चुना। देशभक्ति की भावना की मानो इनके मन में लौ जल रही थी। जब तक इन्होंने देश को आजाद नही कराया, इन्होंने चैन की सांस नही ली। मेरे प्रिय नेताजी ने देश को आजाद कराने के लिए त्याग और बलिदान का रास्ता चुना।
मेरे प्रिय नेताजी का राजनीति में प्रवेश
नेताजी ने राजनीति में दस्तक असहयोग आंदोलन से दि थी। उन्होंने नमक आंदोलन का नेतृत्व सन् 1930 में किया था। उस समय प्रिंस ऑफ वेल्स के आगमन पर विरोध आंदोलन चल रहा था। इस पर नेताजी को सरकार की और से छह महीने की सजा भी दी गई थी।
नेताजी समय आने पर ब्रिटिश सरकार को सबक सिखाने के लिए विभिन्न राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा लेने लगे। मेरे प्रिय नेताजी को देशवासी नेताजी को काफी स्नेह दिया करते थे।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने
मेरे प्रिय नेताजी ने सिविल डिसओबेडिएंस मूवमेंट में हिस्सा लिया था। इसके बाद से ही मेरे प्रिय नेता सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा बन गए थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य और नेताजी के रूप में लोग इनको जानने लगे।
इसके कुछ समय के बाद नेताजी 1939 में पार्टी के अध्यक्ष बन गए। इस पद पर उन्होंने कुछ समय तक कार्य किया और उसके बाद उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।
ब्रिटिश के चंगुल से मुक्ति
ब्रिटिश नेताजी से काफी परेशान थे और उनके मन में नेताजी के प्रति खौफ था। यही वजह है कि ब्रिटिश सरकार ने नेताजी को घर पर नजर बंद करके रखा था। लेकिन उन्होंने अपने विवेक का इस्तेमाल किया और वहां से निकल गए।
उसके बाद सुभाष चंद्र बोस सन् 1941 को रहस्यमय तरीके से देश से बाहर चले गए। लेकिन इस सब के पीछे उनका एक मूल उद्देश था, जो था देश को ब्रिटिश के चंगुल से मुक्ति दिलाना।
भारतीय राष्ट्रीय सेना का गठन
मेरे प्रिय नेता सुभाष चंद्र बोस अंग्रेजो के विरुद्ध मदद मांगने के लिए यूरोप तक गए। उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ लड़ने के लिए रूस और जर्मनी जैसे देशों से सहायता मांगी। नेताजी सन् 1943 में जापान भी गए थे।
इसके पीछे मुख्य वजह यह थी कि जापानियों ने भारत को आजाद करवाने में उनके दिए गए प्रस्ताव को स्वीकृत कर लिया था। जापान में रहकर मेरे प्रिय नेता सुभाष चंद्र बोस जी ने, भारतीय राष्ट्रीय सेना का गठन करने का कार्य आरंभ कर दिया।
मेरे प्रिय नेता अहिंसावादी विचारो से असहमत
सुभाष चंद्र बोस लगातार दूसरी बार भी कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए थे। लेकिन उसी दौरान गांधीजी और कांग्रेस के साथ उनके कुछ मतभेद उत्पन्न हो गए। इसी के कारण सुभाष चंद्र बोस जी ने इस्तीफा दे दिया था।
सुभाष चंद्र बोस महात्मा गांधी के अहिंसावादी विचारो से असहमत थे। गांधीजी और नेहरू जी के अहिंसावादी विचारो के चलते सुभाष चंद्र बोस को उनका उचित समर्थन न मिला। और इसी के कारण नेताजी ने इस्तीफा दे दिया था।
मेरे प्रिय नेताजी की मृत्यु
भारतीय राष्ट्रीय सेना ने भारत के उत्तर -पूर्वी भागो पर हमला किया था। इस हमले का नेतृत्व सुभाष चंद्र बोस कर रहे थे। आई-एन-ए कुछ हिस्सा लेने में सफल रहे। सुभाष चंद्र बोस जी ने आत्मसमर्पण करने से मना कर दिया।
नेताजी विमान में बच कर निकल रहे थे कि कुछ तकनीकी खराबी की वजह से, विमान संभवतः दुर्घटना का शिकार हो गया। ऐसा कहा जाता है कि 18 अगस्त 1945 को सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु हो गई थी। हालाकि इनकी मृत्यु को लेकर आज भी संदेह बरकरार है।
आजाद हिंद फौज का गठन
मेरे प्रिय नेता सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस की विचारधाराएं से कुछ हद तक असहमत थे। उन्होंने अहिंसा का मार्ग ना अपनाकर आजाद हिंद फौज का गठन किया था। भारतीय देशवासियों ने सुभाष चंद्र बोस की फौज के गठन में काफी सहायता की थी।
मेरे प्रिय नेता सुभाष चंद्र बोस जैसे महान देशभक्त नेता खोने से पूरे भारतवर्ष के लोगो को काफी धक्का लगा था। नेताजी ने अपना पूरा जीवन देश को आजाद कराने में लगा दिया।आज हम जो अमन और शांति से भारत वर्ष में जी रहे है, उसमे इनकी बहुत बड़ी कुर्बानी शामिल है। इसलिए यह बेहद आवश्यक है कि हम उनका अपने जीवन में अनुकरण करे।
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तो यह था मेरा प्रिय नेता पर निबंध (Mera Priya Neta Essay In Hindi) , आशा करता हूं कि मेरा प्रिय नेता पर हिंदी में लिखा निबंध (Hindi Essay On Mera Priya Neta) आपको पसंद आया होगा। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा है , तो इस लेख को सभी के साथ शेयर करे।
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मेरा प्रिय नेता पर निबंध
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रूपरेखा : प्रस्तावना - मेरा प्रिय नेता कौन है - उनकी अद्भुत नेतृत्व क्षमता - हमारे आदर्श नेता - उनका समाज-सुधार का कार्य करना - उनके अनेक गुण - उपसंहार।
भारत महापुरुषों का देश है। यहाँ अनेक नेता ने हमारे देश के तरक्की में अपना सहयोग दिए है। नेता जैसे बाल गंगाधर टिळक, महादेव गोविंद रानडे, गोपाळकृष्ण गोखले, महात्मा गांधी, सरदार वल्लभभाई पटेल, सुभाषचंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू आदि अनेक नेताओं ने हमारे इतिहास की शोभा बढ़ाई है।
इन सभी के प्रति मैं पूरा आदरभाव रखता हूँ और उनका सम्मान करता हूँ परंतु मेरे सबसे अधिक प्रिय नेता तो हमारे देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ही हैं। महात्मा गाँधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गाँधी है। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 में गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। महात्मा गाँधी को महात्मा उनके महान कार्यो और उनके महानता के लिए कहा जाता है। महात्मा गाँधी एक महान स्वंतंत्रता सेनानी और अहिंसक कार्यकर्ता थे।
गांधीजी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी। सीधी-सादी सरल भाषा में दिए गए उनके भाषण देशवासियों पर जादू-सा असर करते थे। उनकी एक पुकार पर आजादी के दीवानों की टोलियाँ मातृभूमि पर बलिदान देने के लिए निकल पड़ती थीं। पच्चीस वर्षों से भी अधिक समय तक उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध कई अहिंसक आंदोलन चलाए। अंत में अंग्रेज शासकों की लाठियों, बंदूकों, तोपों और बमों पर अहिंसा ने विजय पाई। सदियों से गुलाम रहा भारत आजाद हुआ। इसीलिए गांधीजी 'युगपुरुष' कहलाए।
गांधीजी आज के मत बटोरने वाले नेताओं की तरह दिखावा पसंद नहीं करते थे। उनके मन, वचन और कर्म में एकरूपता थी। गांधीजी में देशसेवा की सच्ची लगन थी। वे लोकसेवा के बल पर नेता बने थे। इसीलिए वह सभी के लिए एक आदर्श नेता थे।
भारत को स्वतंत्र कराना गांधीजी का सबसे प्रमुख लक्ष्य था, किंतु उनके प्रयत्न इस लक्ष्य तक ही सीमित नहीं रहे। वे इस देश में रामराज्य देखना चाहते थे, इसीलिए उन्होंने समाज-सुधार का भी कार्य किया। उन्होंने गरीब भारत को तकली और चरखे द्वारा रोजी-रोटी दी। शराब-बंदी, निरक्षरता-निवारण, स्त्री-शिक्षा, ग्रामोद्धार आदि के लिए हर संभव प्रयत्न किए। देश को एक सूत्र में बाँधने के लिए उन्होंने राष्ट्रभाषा का प्रचार किया। हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए वे आजीवन प्रयत्न करते रहे। उन्होंने अछूतों को 'हरिजन' नाम देकर उनका सम्मान किया।
गांधीजी सत्य और अहिंसा के पुजारी थे। उनके जीवन में सादगी थी। दुर्बल शरीर और घुटनों तक ऊँची धोती पहनने वाले गांधीजी भारत की आम जनता के प्रतीक थे। उनके हृदय से दया, धर्म और प्रेम की त्रिवेणी लगातार बहती रहती थी। इस अर्थ में वे सचमुच 'महात्मा' थे। जिस तरह एक पिता अपने परिवार को सुखी देखना चाहता है, उसी तरह गांधीजी सारे देश को सुखी एवं समृद्ध देखना चाहते थे। इसीलिए लोगों ने उन्हें राष्ट्रपिता' कहकर उनका आदर किया। सचमुच, वे सारे देश के प्यारे 'बापू' थे। आज भी देश में उनको बापू के नाम से याद करते है।
गांधीजी ने अपना सब कुछ न्योछावर कर भारत का नवनिर्माण किया। वे भारत के ही नहीं, सारे विश्व के नेता थे। ऐसे महान देशभक्त और महामानव को यदि मैं अपना प्रिय नेता मानें तो इसमें आश्चर्य ही क्या है। मेरे लिए सचमुच सबसे प्रिय नेता महात्मा गाँधी जी है।
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महात्मा गांधी पर निबंध | Essay On Mahatma Gandhi
Essay on Mahatma Gandhi in Hindi
महात्मा गांधी एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने जिंदगीभर भारत को आज़ादी दिलाने के लिये संघर्ष किया। महात्मा गांधी एक ऐसे महापुरुष थे जो प्राचीन काल से भारतीयों के दिल में रह रहे है। भारत का हर एक व्यक्ति और बच्चा-बच्चा उन्हें बापू और राष्ट्रपिता के नाम से जानता है।
2 अक्टूबर को पूरे भारतवर्ष में गांधी जयंती मनाई जाती हैं एवं इस दिन को पूरे विश्व में अहिंसा दिवस के रुप में भी मनाया जाता है। इस मौके पर राष्ट्रपिता के प्रति सम्मान व्यक्त करने एवं उन्हें सच्चे मन से श्रद्धांजली अर्पित करने के लिए स्कूल, कॉलेज, सरकारी दफ्तरों आदि में कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन होता है।
इन कार्यक्रमों के माध्यम से आज की युवा पीढ़ी को महात्मा गांधी जी के महत्व को बताने के लिए निबंध लेखन प्रतियोगिताएं भी आयोजित करवाई जाती हैं।
इसलिए आज हम आपको देश के राष्ट्रपितामह एवं बापू जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए अलग-अलग शब्द सीमा में कुछ निबंध उपलब्ध करवा रहे हैं, जिनका इस्तेमाल आप अपनी जरूरत के मुताबिक कर सकते हैं-
महात्मा गांधी पर निबंध – Essay on Mahatma Gandhi in Hindi
महात्मा गांधी अपने अतुल्य योगदान के लिये ज्यादातर “ राष्ट्रपिता और बापू ” के नाम से जाने जाते है। वे एक ऐसे महापुरुष थे जो अहिंसा और सामाजिक एकता पर विश्वास करते थे। उन्होंने भारत में ग्रामीण भागो के सामाजिक विकास के लिये आवाज़ उठाई थी, उन्होंने भारतीयों को स्वदेशी वस्तुओ के उपयोग के लिये प्रेरित किया और बहोत से सामाजिक मुद्दों पर भी उन्होंने ब्रिटिशो के खिलाफ आवाज़ उठायी। वे भारतीय संस्कृति से अछूत और भेदभाव की परंपरा को नष्ट करना चाहते थे। बाद में वे भारतीय स्वतंत्रता अभियान में शामिल होकर संघर्ष करने लगे।
भारतीय इतिहास में वे एक ऐसे महापुरुष थे जिन्होंने भारतीयों की आज़ादी के सपने को सच्चाई में बदला था। आज भी लोग उन्हें उनके महान और अतुल्य कार्यो के लिये याद करते है। आज भी लोगो को उनके जीवन की मिसाल दी जाती है। वे जन्म से ही सत्य और अहिंसावादी नही थे बल्कि उन्होंने अपने आप को अहिंसावादी बनाया था।
राजा हरिशचंद्र के जीवन का उनपर काफी प्रभाव पड़ा। स्कूल के बाद उन्होंने अपनी लॉ की पढाई इंग्लैंड से पूरी की और वकीली के पेशे की शुरुवात की। अपने जीवन में उन्होंने काफी मुसीबतों का सामना किया लेकिन उन्होंने कभी हार नही मानी वे हमेशा आगे बढ़ते रहे।
उन्होंने काफी अभियानों की शुरुवात की जैसे 1920 में असहयोग आन्दोलन, 1930 में नगरी अवज्ञा अभियान और अंत में 1942 में भारत छोडो आंदोलन और उनके द्वारा किये गये ये सभी आन्दोलन भारत को आज़ादी दिलाने में कारगार साबित हुए। अंततः उनके द्वारा किये गये संघर्षो की बदौलत भारत को ब्रिटिश राज से आज़ादी मिल ही गयी।
महात्मा गांधी का जीवन काफी साधारण ही था वे रंगभेद और जातिभेद को नही मानते थे। उन्होंने भारतीय समाज से अछूत की परंपरा को नष्ट करने के लिये भी काफी प्रयास किये और इसके चलते उन्होंने अछूतों को “हरिजन” का नाम भी दिया था जिसका अर्थ “भगवान के लोग” था।
महात्मा गाँधी एक महान समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी थे और भारत को आज़ादी दिलाना ही उनके जीवन का उद्देश्य था। उन्होंने काफी भारतीयों को प्रेरित भी किया और उनका विश्वास था की इंसान को साधारण जीवन ही जीना चाहिये और स्वावलंबी होना चाहिये।
गांधीजी विदेशी वस्तुओ के खिलाफ थे इसीलिये वे भारत में स्वदेशी वस्तुओ को प्राधान्य देते थे। इतना ही नही बल्कि वे खुद चरखा चलाते थे। वे भारत में खेती का और स्वदेशी वस्तुओ का विस्तार करना चाहते थे। वे एक आध्यात्मिक पुरुष थे और भारतीय राजनीती में वे आध्यात्मिकता को बढ़ावा देते थे।
महात्मा गांधी का देश के लिए किया गया अहिंसात्मक संघर्ष कभी भुलाया नहीं जा सकता। उन्होंने पूरा जीवन देश को स्वतंत्रता दिलाने में व्यतीत किया। और देशसेवा करते करते ही 30 जनवरी 1948 को इस महात्मा की मृत्यु हो गयी और राजघाट, दिल्ली में लाखोँ समर्थकों के हाजिरी में उनका अंतिम संस्कार किया गया। आज भारत में 30 जनवरी को उनकी याद में शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।
“भविष्य में क्या होगा, यह मै कभी नहीं सोचना चाहता, मुझे बस वर्तमान की चिंता है, भगवान् ने मुझे आने वाले क्षणों पर कोई नियंत्रण नहीं दिया है।”
महात्मा गांधी जी आजादी की लड़ाई के महानायक थे, जिन्हें उनके महान कामों के कारण राष्ट्रपिता और महात्मा की उपाधि दी गई। स्वतंत्रता संग्राम में उनके द्धारा किए गए महत्वपूर्ण योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता।
आज उनके अथक प्रयासों, त्याग, बलिदान और समर्पण की बल पर ही हम सभी भारतीय आजाद भारत में चैन की सांस ले रहे हैं।
वे सत्य और अहिंसा के ऐसे पुजारी थे, जिन्होंने शांति के मार्ग पर चलते हुए अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था, वे हर किसी के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं। महात्मा गांधी जी के महान विचारों से देश का हर व्यक्ति प्रभावित है।
महात्मा गांधी जी का प्रारंभिक जीवन, परिवार एवं शिक्षा – Mahatma Gandhi Information
स्वतंत्रता संग्राम के मुख्य सूत्रधार माने जाने वाले महात्मा गांधी जी गुजरात के पोरबंदर में 2 अक्टूबर 1869 को एक साधारण परिवार में जन्में थे। गांधी का जी पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था।
उनके पिता जी करम चन्द गांधी ब्रिटिश शासनकाल के समय राजकोट के ‘दीवान’ थे। उनकी माता का नाम पुतलीबाई था जो कि धार्मिक विचारों वाली एक कर्तव्यपरायण महिला थी, जिनके विचारों का गांधी जी पर गहरा प्रभाव पड़ा था।
वहीं जब वे 13 साल के थे, तब बाल विवाह की प्रथा के तहत उनकी शादी कस्तूरबा से कर दी गई थी, जिन्हें लोग प्यार से ”बा” कहकर पुकारते थे।
गांधी जी बचपन से ही बेहद अनुशासित एवं आज्ञाकारी बालक थे। उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा गुजरात में रहकर ही पूरी की और फिर वे कानून की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड चले गए, जहां से लौटकर उन्होंने भारत में वकाकलत का काम शुरु किया, हालांकि, वकालत में वे ज्यादा दिन तक टिक नहीं पाए।
महात्मा गांधी जी के राजनैतिक जीवन की शुरुआत – Mahatma Gandhi Political Career
अपनी वकालत की पढ़ाई के दौरान ही गांधी जी को दक्षिण अफ्रीका में रंगभेदभाव का शिकार होना पड़ा था। गांधी जी के साथ घटित एक घटना के मुताबिक एक बार जब वे ट्रेन की प्रथम श्रेणी के डिब्बे में बैठ गए थे, तब उन्हें ट्रेन के डिब्बे से धक्का मारकर बाहर निकाल दिया गया था।
इसके साथ ही उन्हें दक्षिण अफ्रीका के कई बड़े होटलों में जाने से भी रोक दिया गया था। जिसके बाद गांधी जी ने रंगभेदभाव के खिलाफ जमकर संघर्ष किया।
वे भारतीयों के साथ हो रहे भेदभाव को मिटाने के उद्देश्य से राजनीति में घुसे और फिर अपने सूझबूझ और उचित राजनैतिक कौशल से देश की राजनीति को एक नया आयाम दिया एवं स्वतंत्रता सेनानी के रुप में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सैद्धान्तवादी एवं आदर्शवादी महानायक के रुप में महात्मा गांधी:
महात्मा गांधी जी बेहद सैद्धांन्तवादी एवं आदर्शवादी नेता थे। वे सादा जीवन, उच्च विचार वाले महान व्यक्तित्व थे, उनके इसी स्वभाव की वजह से उन्हें लोग ”महात्मा” कहकर बुलाते थे।
उनके महान विचारों और आदर्श व्यत्तित्व का अनुसरण अल्बर्ट आइंसटाइन, राजेन्द्र प्रसाद, सरोजनी नायडू, नेल्सन मंडेला, मार्टिन लूथर किंग जैसे कई महान लोगों ने भी किया है।
ये लोग गांधी जी के कट्टर समर्थक थे। गांधी जी के महान व्यक्तित्व का प्रभाव सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी था।
सत्य और अहिंसा उनके दो सशक्त हथियार थे, और इन्ही हथियारों के बल पर उन्होंने अंग्रजों को भारत छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था।
वे एक महान स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता होने के साथ-साथ समाजसेवक भी थे, जिन्होंने भारत में फैले जातिवाद, छूआछूत, लिंग भेदभाव आदि को दूर करने के लिए भी सराहनीय प्रयास किए थे।
अपने पूरे जीवन भर राष्ट्र की सेवा में लगे रहे गांधी जी की देश की आजादी के कुछ समय बाद ही 30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे द्धारा हत्या कर दी गई थी।
वे एक महान शख्सियत और युग पुरुष थे, जिन्होंने कठिन से कठिन परिस्थिति में भी कभी भी सत्य का साथ नहीं छोड़ा और कठोर दृढ़संकल्प के साथ अडिग होकर अपने लक्ष्य को पाने के लिए आगे बढ़ते रहे। उनके जीवन से हर किसी को सीख लेने की जरूरत है।
महात्मा गांधी पर निबंध – Mahatma Gandhi par Nibandh
प्रस्तावना-
2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात के पोरबंदर में जन्में महात्मा गांधी जी द्धारा राष्ट्र के लिए किए गए त्याग, बलिदान और समर्पण को कभी नहीं भुलाया जा सकता।
वे एक एक महापुरुष थे, जिन्होंने देश को गुलामी की बेड़ियों से आजाद करवाने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। गांधी जी का महान और प्रभावशाली व्यक्तित्व हर किसी को प्रभावित करता है।
महात्मा गांधी जी की स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका – Mahatma Gandhi as a Freedom Fighter
दक्षिण अफ्रीका में रंगभेदभाव के खिलाफ तमाम संघर्षों के बाद जब वे अपने स्वदेश भारत लौटे तो उन्होंने देखा कि क्रूर ब्रिटिश हुकूमत बेकसूर भारतीयों पर अपने अमानवीय अत्याचार कर रही थी और देश की जनता गरीबी और भुखमरी से तड़प रही थी।
जिसके बाद उन्होंने क्रूर ब्रिटिशों को भारत से बाहर निकाल फेंकने का संकल्प लिया और फिर वे आजादी पाने के अपने दृढ़निश्चयी एवं अडिग लक्ष्य के साथ स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े।
महात्मा गांधी जी द्धारा चलाए गए प्रमुख आंदोलन:
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महात्मा गांधी जी ने सत्य और अहिंसा का मार्ग अपनाते हुए अंग्रेजों के खिलाफ कई बड़े आंदोलन चलाए। उनके शांतिपूर्ण ढंग से चलाए गए आंदोलनों ने न सिर्फ भारत में ब्रिटिश सरकार की नींव कमजोर कर दी थीं, बल्कि उन्हें भारत छोड़ने के लिए भी विवश कर दिया था। उनके द्धारा चलाए गए कुछ मुख्य आंदोलन इस प्रकार हैं-
चंपारण और खेड़ा आंदोलन – Kheda Movement
साल 1917 में जब अंग्रेज अपनी दमनकारी नीतियों के तहत चंपारण के किसानों का शोषण कर रहे थे, उस दौरान कुछ किसान ज्यादा कर देने में समर्थ नहीं थे।
जिसके चलते गरीबी और भुखमरी जैसे भयावह हालात पैदा हो गए थे, जिसे देखते हुए गांधी जी ने अंग्रेजों के खिलाफ शांतिपूर्ण ढंग से चंपारण आंदोलन किया, इस आंदोलन के परिणामस्वरुप वे किसानों को करीब 25 फीसदी धनराशि वापस दिलवाने में सफल रहे।
साल 1918 में गुजरात के खेड़ा में भीषण बाढ़ आने से वहां के लोगों पर अकाली का पहाड़ टूट पड़ा था, ऐसे में किसान अंग्रेजों को भारी कर देने में असमर्थ थे।
जिसे देख गांधी जी ने अंग्रेजों से किसानों की लगान माफ करने की मांग करते हुए उनके खिलाफ अहिंसात्मक आंदोलन छेड़ दिया, जिसके बाद ब्रिटिश हुकूमत को उनकी मांगे माननी पड़ी और वहां के किसानों को कर में छूट देनी पड़ी।
महात्मा गांधी जी के इस आंदोलन को खेड़ा सत्याग्रह आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है।
महात्मा गांधी जी का असहयोग आंदोलन – Asahyog Movement
अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों एवं जलियावाला बाग हत्याकांड में मारे गए बेकसूर लोगों को देखकर गांधी जी को गहरा दुख पहुंचा था और उनके ह्रद्य में अंग्रेजों के अत्याचारों से देश को मुक्त करवाने की ज्वाला और अधिक तेज हो गई थी।
जिसके चलते उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर असहयोग आंदोलन करने का फैसला लिया। इस आंदोलन के तहत उन्होंने भारतीय जनता से अंग्रेजी हुकूमत का समर्थन नहीं देने की अपील की।
गांधी जी के इस आंदोलन में बड़े स्तर पर भारतीयों ने समर्थन दिया और ब्रिटिश सरकार के अधीन पदों जैसे कि शिक्षक, प्रशासनिक व्यवस्था और अन्य सरकारी पदों से इस्तीफा देना शुरु कर दिया साथ ही सरकारी स्कूल, कॉलजों एवं सरकारी संस्थानों का जमकर बहिष्कार किया।
इस दौरान लोगों ने विदेशी कपड़ों की होली जलाई और खादी वस्त्रों एवं स्वदेशी वस्तुओं को अपनाना शुरु कर दिया। गांधी जी के असहयोग आंदोलन ने भारत में ब्रिटिश हुकूमत की नींव को कमजोर कर दिया था।
सविनय अवज्ञा आंदोलन/डंडी यात्रा/नमक सत्याग्रह(1930) – Savinay Avagya Andolan
महात्मा गांधी ने यह आंदोलन ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों के खिलाफ चलाया था। उन्होंने ब्रटिश सरकार के नमक कानून का उल्लंघन करने के लिए इसके तहत पैदल यात्रा की थी।
गांधी जी ने 12 मार्च 1930 को अपने कुछ अनुयायियों के साथ सावरमती आश्रम से पैदल यात्रा शुरु की थी। इसके बाद करीब 6 अप्रैल को गांधी जी ने दांडी पहुंचकर समुद्र के किनारे नमक बनाकर ब्रिटिश सरकार के नमक कानून की अवहेलना की थी।
नमक सत्याग्रह के तहत भारतीय लोगों ने ब्रिटिश सरकार के आदेशों के खिलाफ जाकर खुद नमक बनाना एवमं बेचना शुरु कर दिया।
गांधी जी के इस अहिंसक आंदोलन से ब्रिटिश सरकार के हौसले कमजोर पड़ गए थे और गुलाम भारत को अंग्रेजों क चंगुल से आजाद करवाने का रास्ता साफ और मजबूत हो गया था।
महात्मा गांधी जी का भारत छोड़ो आंदोलन(1942)
अंग्रेजों को भारत से बाहर खदेड़ने के उद्देश्य से महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ साल 1942 में ”भारत छोड़ो आंदोलन” की शुरुआत की थी। इस आंदोलन के कुछ साल बाद ही भारत ब्रिटिश शासकों की गुलामी से आजाद हो गया था।
आपको बता दें जब गांधी जी ने इस आंदोलन की शुरुआत की थी, उस समय दूसरे विश्वयुद्ध का समय था और ब्रिटेन पहले से जर्मनी के साथ युद्ध में उलझा हुआ था, ऐसी स्थिति का बापू जी ने फायदा उठाया। गांधी जी के इस आंदोलन में बड़े पैमाने पर भारत की जनता ने एकत्र होकर अपना समर्थन दिया।
इस आंदोलन का इतना ज्यादा प्रभाव पड़ा कि ब्रिटिश सरकार को भारत को स्वतंत्रता देने का वादा करना पड़ा। इस तरह से यह आंदोलन, भारत में ब्रिटिश हुकूमत के ताबूत में आखिरी कील साबित हुआ।
इस तरह महात्मा गांधी जी द्धारा सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलाए गए आंदोलनो ने गुलाम भारत को आजाद करवाने में अपनी महत्पूर्ण भूमिका निभाई और हर किसी के जीवन में गहरा प्रभाव छोड़ा है।
वहीं उनके आंदोलनों की खास बात यह रही कि उन्होंने बेहद शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन चलाए और आंदोलन के दौरान किसी भी तरह की हिंसात्मक गतिविधि होने पर उनके आंदोलन बीच में ही रद्द कर दिए गए।
- Mahatma Gandhi Slogan
महात्मा गांधी जी ने जिस तरह राष्ट्र के लिए खुद को पूरी तरह समर्पित कर दिया एवं सच्चाई और अहिंसा के मार्ग पर चलकर देश को आजादी दिलवाने के लिए कई बड़े आंदोलन चलाए, उनसे हर किसी को प्रेरणा लेने की जरूरत है। वहीं आज जिस तरह हिंसात्मक गतिविधियां बढ़ रही हैं, ऐसे में गांधी जी के महान विचारों को जन-जन तक पहुंचाने की जरूरत है। तभी देश-दुनिया में हिंसा कम हो सकेगी और देश तरक्की के पथ पर आगे बढ़ सकेगा।
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60 thoughts on “महात्मा गांधी पर निबंध | Essay On Mahatma Gandhi”
Gandhi ji is my favorite
अपने अलग अलग तरह से गाँधी जी के कार्यो को बताया है बहुत अच्छा
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महात्मा गांधी पर निबंध (Mahatma Gandhi Essay in Hindi)
उद्देश्यपूर्ण विचारधारा से ओतप्रोत महात्मा गाँधी का व्यक्तित्व आदर्शवाद की दृष्टि से श्रेष्ठ था। इस युग के युग पुरुष की उपाधि से सम्मानित महात्मा गाँधी को समाज सुधारक के रूप में जाना जाता है पर महात्मा गाँधी के अनुसार समाजिक उत्थान हेतु समाज में शिक्षा का योगदान आवश्यक है। 2 अक्टुबर 1869 को महात्मा गाँधी का जन्म गुजरात के पोरबंदर में हुआ। यह जन्म से सामान्य थे पर अपने कर्मों से महान बने। रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा इन्हें एक पत्र में “महात्मा” गाँधी कह कर संबोधित किया गया। तब से संसार इन्हें मिस्टर गाँधी के स्थान पर महात्मा गाँधी कहने लगा।
महात्मा गांधी पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Mahatma Gandhi in Hindi, Mahatma Gandhi par Nibandh Hindi mein)
महात्मा गांधी पर निबंध – 1 (250 – 300 शब्द).
“अहिंसा परमो धर्मः” के सिद्धांत को नींव बना कर, विभिन्न आंदोलनों के माध्यम से महात्मा गाँधी ने देश को गुलामी के जंजीर से आजाद कराया। वह अच्छे राजनीतिज्ञ के साथ ही साथ बहुत अच्छे वक्ता भी थे। उनके द्वारा बोले गए वचनों को आज भी लोगों द्वारा दोहराया जाता है।
महात्मा गाँधी का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा दीक्षा
महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर सन् 1869 को, पश्चिम भारत (वर्तमान गुजरात) के एक तटीय शहर में हुआ। इनके पिता का नाम करमचंद गाँधी तथा माता का नाम पुतलीबाई था। आस्था में लीन माता और जैन धर्म के परंपराओं के कारण गाँधी जी के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा। 13 वर्ष की आयु में गाँधी जी का विवाह कस्तूरबा से करवा दिया गया था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा पोरबंदर से हुई, हाईस्कूल की परीक्षा इन्होंने राजकोट से दिया, और मैट्रीक के लिए इन्हें अहमदाबाद भेज दिया गया। बाद में वकालत इन्होंने लंदन से किया।
महात्मा गाँधी का शिक्षा और स्वतंत्रता में योगदान
महात्मा गाँधी का यह मानना था की भारतीय शिक्षा सरकार के नहीं अपितु समाज के अधीन है। इसलिए महात्मा गाँधी भारतीय शिक्षा को ‘द ब्यूटिफुल ट्री’ कहा करते थे। शिक्षा के क्षेत्र में उनका विशेष योगदान रहा। भारत का हर नागरिक शिक्षित हो यही उनकी इच्छा थी। गाँधी जी का मूल मंत्र ‘शोषण विहिन समाज की स्थापना’ करना था। उनका कहना था की 7 से 14 वर्ष के बच्चों को निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा मिलनी चाहिए। शिक्षा का माध्यम मातृभाषा हो। साक्षरता को शिक्षा नहीं कहा जा सकता। शिक्षा बालक के मानवीय गुणों का विकास करता है।
बचपन में गाँधी जी को मंदबुद्धि समझा जाता था। पर आगे चल कर इन्होंने भारतीय शिक्षा में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। हम महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता के रूप में सम्बोधित करते है और भारत की स्वतंत्रता में उनके योगदान के लिए सदा उनके आभारी रहेंगे।
इसे यूट्यूब पर देखें : Mahatma Gandhi par Nibandh
Mahatma Gandhi par Nibandh – निबंध 2 (400 शब्द)
देश की आजादी में मूलभूत भूमिका निभाने वाले तथा सभी को सत्य और अहिंसा का मार्ग दिखाने वाले बापू को सर्वप्रथम बापू कहकर, राजवैद्य जीवराम कालिदास ने 1915 में संबोधित किया। आज दशकों बाद भी संसार उन्हें बापू के नाम से पुकारता हैं।
बापू को ‘फ ा दर ऑफ नेशन ’ (राष्ट्रपिता) की उपाधि किसने दिया ?
महात्मा गाँधी को पहली बार फादर ऑफ नेशन कहकर किसने संबोधित किया, इसके संबंध में कोई स्पष्ठ जानकारी प्राप्त नहीं है पर 1999 में गुजरात की हाईकोर्ट में दाखिल एक मुकदमे के वजह से जस्टिस बेविस पारदीवाला ने सभी टेस्टबुक में, रवींद्रनाथ टैगोर ने पहली बार गाँधी जी को फादर ऑफ नेशन कहा, यह जानकारी देने का आदेश जारी किया।
महात्मा गाँधी द्वारा किये गये आंदोलन
निम्नलिखित बापू द्वारा देश की आजादी के लिए लड़े गए प्रमुख आंदोलन-
- असहयोग आंदोलन
जलियांवाला बाग नरसंहार से गाँधी जी को यह ज्ञात हो गया था की ब्रिटिश सरकार से न्याय की अपेक्षा करना व्यर्थ है। अतः उन्होंने सितंबर 1920 से फरवरी 1922 के मध्य भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन चलाया। लाखों भारतीय के सहयोग मिलने से यह आंदोलन अत्यधिक सफल रहा। और इससे ब्रिटिश सरकार को भारी झटका लगा।
- नमक सत्याग्रह
12 मार्च 1930 से साबरमती आश्रम (अहमदाबाद में स्थित स्थान) से दांडी गांव तक 24 दिनों का पैदल मार्च निकाला गया। यह आंदोलन ब्रिटिश सरकार के नमक पर एकाधिकार के खिलाफ छेड़ा गया। गाँधी जी द्वारा किये गए आंदोलनों में यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण आंदोलन था।
- दलित आंदोलन
गाँधी जी द्वारा 1932 में अखिल भारतीय छुआछूत विरोधी लीग की स्थापना हुई और उन्होंने छुआछूत विरोधी आंदोलन की शुरूआत 8 मई 1933 में की।
- भारत छोड़ो आंदोलन
ब्रिटिश साम्राज्य से भारत को तुरंत आजाद करने के लिए महात्मा गाँधी द्वारा अखिल भारतीय कांग्रेस के मुम्बई अधिवेशन से द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 8 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन आरम्भ किया गया।
- चंपारण सत्याग्रह
ब्रिटिश ज़मींदार गरीब किसानो से अत्यधिक कम मूल्य पर जबरन नील की खेती करा रहे थे। इससे किसानों में भूखे मरने की स्थिति पैदा हो गई थी। यह आंदोलन बिहार के चंपारण जिले से 1917 में प्रारंभ किया गया। और यह उनकी भारत में पहली राजनैतिक जीत थी।
महात्मा गाँधी के शब्दों में “कुछ ऐसा जीवन जियो जैसे की तुम कल मरने वाले हो, कुछ ऐसा सीखो जिससे कि तुम हमेशा के लिए जीने वाले”। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी इन्हीं सिद्धान्तों पर जीवन व्यतीत करते हुए भारत की आजादी के लिए ब्रिटिस साम्राज्य के खिलाफ अनेक आंदोलन लड़े।
Essay on Mahatma Gandhi in Hindi – निबंध 3 (500 शब्द)
“कमजोर कभी माफ़ी नहीं मांगते, क्षमा करना तो ताकतवर व्यक्ति की विशेषता है” – महात्मा गाँधी
गाँधी जी के वचनों का समाज पर गहरा प्रभाव आज भी देखा जा सकता है। वह मानवीय शरीर में जन्में पुन्य आत्मा थे। जिन्होंने अपने सूज-बूझ से भारत को एकता के डोर में बांधा और समाज में व्याप्त जातिवाद जैसे कुरीति का नाश किया।
गाँधी जी की अफ्रीका यात्रा
दक्षिण अफ्रीका में गाँधी जी को भारतीय पर हो रहे प्रताड़ना को सहना पड़ा। फर्स्ट क्लास की ट्रेन की टिकट होने के बावजूद उन्हें थर्ड क्लास में जाने के लिए कहा गया। और उनके विरोध करने पर उन्हें अपमानित कर चलती ट्रेन से नीचे फेक दिया गया। इतना ही नहीं दक्षिण अफ्रीका में कई होटल में उनका प्रवेश वर्जित कर दिया गया।
बापू की अफ्रीका से भारत वापसी
वर्ष 1914 में उदारवादी कांग्रेस नेता गोपाल कृष्ण गोखले के बुलावे पर गाँधी भारत वापस आए। इस समय तक बापू भारत में राष्ट्रवाद नेता और संयोजक के रूप में प्रसिद्ध हो गए थे। उन्होंने देश की मौजूदा हालात समझने के लिए सर्वप्रथम भारत भ्रमण किया।
गाँधी, कुशल राजनीतिज्ञ के साथ बेहतरीन लेखक
गाँधी एक कुशल राजनीतिज्ञ के साथ बहुत अच्छे लेखक भी थे। उन्होंने जीवन के उतार चढ़ाव को कलम की सहायता से बखूबी पन्ने पर उतारा है। महात्मा गाँधी ने, हरिजन, इंडियन ओपिनियन, यंग इंडिया में संपादक के तौर पर काम किया। तथा इनके द्वारा लिखी प्रमुख पुस्तक हिंद स्वराज (1909), दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह (इसमें उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में अपने संघर्ष का वर्णन किया है), मेरे सपनों का भारत तथा ग्राम स्वराज हैं। यह गाँधीवाद धारा से ओतप्रोत पुस्तक आज भी समाज में नागरिक का मार्ग दर्शन करती हैं।
गाँधीवाद विचार धारा का महत्व
दलाई लामा के शब्दों में, “आज विश्व शांति और विश्व युद्ध, अध्यात्म और भौतिकवाद, लोकतंत्र व अधिनायकवाद के मध्य एक बड़ा युद्ध चल रहा है” इस अदृश्य युद्ध को जड़ से खत्म करने के लिए गाँधीवाद विचारधार को अपनाया जाना आवश्यक है। विश्व प्रसिद्ध समाज सुधारकों में, संयुक्त राज्य अमेरिका के मार्टिन लूथर किंग, दक्षिण अमेरिका के नेल्सन मंडेला और म्यांमार के आंग सान सू के जैसे ही लोक नेतृत्व के क्षेत्र में गाँधीवाद विचारधारा सफलता पूर्वक लागू किया गया है।
गाँधी जी एक नेतृत्व कर्ता के रूप में
भारत वापस लौटने के बाद गाँधी जी ने ब्रिटिश साम्राज्य से भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई का नेतृत्व किया। उन्होंने कई अहिंसक सविनय अवज्ञा अभियान आयोजित किए, अनेक बार जेल गए। महात्मा गाँधी से प्रभावित होकर लोगों का एक बड़ा समूह, ब्रिटिश सरकार का काम करने से इनकार करना, अदालतों का बहिष्कार करना जैसा कार्य करने लगा। यह प्रत्येक विरोध ब्रिटिश सरकार के शक्ति के समक्ष छोटा लग सकता है लेकिन जब अधिकांश लोगों द्वारा यह विरोध किया जाता है तो समाज पर इसका व्यापक प्रभाव पड़ता है।
प्रिय बापू का निधन
30 जनवरी 1948 की शाम दिल्ली स्थित बिड़ला भवन में मोहनदास करमचंद गाँधी की नाथूराम गोडसे द्वारा बैरटा पिस्तौल से गोली मार कर हत्या कर दी गई। इस हत्याकांड में नाथूराम सहित 7 लोगों को दोषी पाया गया। गाँधी जी की शव यात्रा 8 किलो मीटर तक निकाली गई। यह देश के लिए दुःख का क्षण था।
आश्चर्य की बात है, शांति के “नोबल पुरस्कार” के लिए पांच बार नॉमिनेट होने के बाद भी आज तक गाँधी जी को यह नहीं मिला। सब को अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले प्रिय बापू अब हमारे बीच नहीं हैं पर उनके सिद्धान्त सदैव हमारा मार्ग दर्शन करते रहेंगे।
FAQs: महात्मा गांधी पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
उत्तर. अल्फ्रेड हाई स्कूल को अब मोहनदास हाई स्कूल के नाम से जाना जाता है।
उत्तर. 30 जनवरी1948 को शाम 5.17 बजे गांधीजी की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
उत्तर. नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने उन्हें बापू के नाम से सम्बोधित किया।
उत्तर. बेरेटा 1934. 38 कैलिबर पिस्तौल का इस्तेमाल नाथूराम गोडसे ने महात्मा गाँधी को मारने के लिए किया था।
उत्तर. ऐसा माना जाता है कि भारत रत्न और नोबेल पुरस्कार महात्मा गांधी से बड़ा नहीं है।
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- Essays in Hindi /
Mahatma Gandhi Essay in Hindi | स्कूली छात्रों के लिए महात्मा गांधी पर निबंध
- Updated on
- जनवरी 22, 2024
भारत के स्वतंत्रता सेनानी और बापू के तौर पर अपनी पहचान बनाने वाले मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। उन्होंने अंग्रेज़ों की गुलामी से भारत को आज़ाद कराने के लिए अपना पूरा जीवन दे दिया था। आज़ादी के लिए उन्होंने चंपारण, खेड़ा, आंदोलन, आंदोलन और भारत छोड़ो आदि आंदोलन किए। ऐसे में कई बार विद्यार्थियों को महात्मा गांधी पर निबंध तैयार करने को दिया जाता है। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि महात्मा गांधी पर एक सूचनात्मक निबंध कैसे लिखें। यहाँ आपको 100, 200 और 500 शब्दों में Mahatma Gandhi Essay in Hindi के कुछ सैम्पल्स दिए गए हैं। आईये पढ़ते हैं उन सैम्पल्स को।
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महात्मा गांधी पर निबंध लिखने के लिए, आपको उनके बारे में निम्नलिखित विवरणों का उल्लेख करना होगा।
- देश के लिए योग
- आजादी के लिए निभाया कर्तव्य
महात्मा गांधी पर 100 शब्दों में निबंध इस प्रकार हैः
महात्मा गांधी पर 200 शब्दों में निबंध इस प्रकार हैः
महात्मा गांधी को महात्मा , ‘महान आत्मा’ और कुछ लोगों द्वारा उन्हें बापू के नाम से जाना जाता है। महात्मा गांधी वह नेता थे जिन्होंने 200 से अधिक वर्षों से भारतीय जनता पर ब्रिटिश उपनिवेशवाद की बेड़ियों से भारत को मुक्त कराया था। 2 अक्टूबर, 1869 को भारत के पोरबंदर में जन्मे महात्मा गांधी का असली नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। गांधी बचपन से ही न तो कक्षा में मेधावी थे और न ही खेल के मैदान में बेहतर थे। उस समय किसी ने अनुमान नहीं लगाया होगा कि लड़का देश में लाखों लोगों को एक कर देगा और दुनिया भर में लाखों लोगों का नेतृत्व करेगा।
वहीं विश्व स्तर पर प्रसिद्ध व्यक्ति, महात्मा गांधी को उनकी अहिंसक, अत्यधिक बौद्धिक और सुधारवादी विचारधाराओं के लिए जाना जाता है। महान व्यक्तित्वों में माने जाने वाले, भारतीय समाज में गांधी का कद बेजोड़ है क्योंकि उन्हें भारत के स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व करने के उनके श्रमसाध्य प्रयासों के लिए ‘राष्ट्रपिता’ के रूप में जाना जाता है। गांधी जी की शिक्षा का विचार मुख्य रूप से चरित्र निर्माण, नैतिक मूल्यों, नैतिकता और मुक्त शिक्षा पर केंद्रित था। वह इस बात की वकालत करने वाले पहले लोगों में से थे कि शिक्षा को सभी के लिए मुफ्त और सभी के लिए सुलभ बनाया जाना चाहिए, चाहे वह किसी भी वर्ग का हो।
महात्मा गांधी पर निबंध 400 शब्दों में
महात्मा गांधी पर निबंध- 400 शब्दों में इस प्रकार है:
देश की आजादी में मूलभूत भूमिका निभाने वाले तथा सभी को सत्य और अहिंसा का मार्ग दिखाने वाले बापू को सर्वप्रथम बापू कहकर, राजवैद्य जीवराम कालिदास ने 1915 में संबोधित किया। आज दशकों बाद भी संसार उन्हें बापू के नाम से पुकारता है।
महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ। इनके पिता का नाम करमचंद गाँधी तथा माता का नाम पुतलीबाई था। महात्मा गाँधी के पिता कठियावाड़ के छोटे से रियासत (पोरबंदर) के दिवान थे। आस्था में लीन माता और उस क्षेत्र के जैन धर्म के परंपराओं के कारण गाँधी जी के जीवन पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा, जैसे की आत्मा की शुद्धि के लिए उपवास करना आदि। 13 वर्ष की आयु में गांधी जी का विवाह कस्तूरबा से करा दिया गया था।
असहयोग आंदोलन
जलियांवाला बाग नरसंहार से गाँधी जी को यह ज्ञात हो गया था कि ब्रिटिश सरकार से न्याय की अपेक्षा करना व्यर्थ है। अतः उन्होंने सितंबर 1920 से फरवरी 1922 के मध्य भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन चलाया। लाखों भारतीय के सहयोग मिलने से यह आंदोलन अत्यधिक सफल रहा। और इससे ब्रिटिश सरकार को भारी झटका लगा।
नमक सत्याग्रह
12 मार्च 1930 से साबरमती आश्रम (अहमदाबाद में स्थित स्थान) से दांडी गांव तक 24 दिनों का पैदल मार्च निकाला गया। यह आंदोलन ब्रिटिश सरकार के नमक पर एकाधिकार के खिलाफ छेड़ा गया। गाँधी जी द्वारा किए गए आंदोलनों में यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण आंदोलन था।
दलित आंदोलन
गाँधी जी द्वारा 1932 में अखिल भारतीय छुआछूत विरोधी लीग की स्थापना की गई और उन्होंने छुआछूत विरोधी आंदोलन की शुरूआत 8 मई 1933 में की।
भारत छोड़ो आंदोलन
ब्रिटिश साम्राज्य से भारत को तुरंत आजाद करने के लिए महात्मा गाँधी द्वारा अखिल भारतीय कांग्रेस के बॉम्बे अधिवेशन से द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 8 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन आरम्भ किया गया।
चंपारण सत्याग्रह
ब्रिटिश ज़मींदार गरीब किसानों से अत्यधिक कम मूल्य पर जबरन नील की खेती करा रहे थे। इससे किसानों में भूखे मरने की स्थिति पैदा हो गई थी। यह आंदोलन बिहार के चंपारण जिले से 1917 में प्रारंभ किया गया। और यह उनकी भारत में पहली राजनैतिक जीत थी।
महात्मा गांधी के शब्दों में “कुछ ऐसा जीवन जियो जैसे की तुम कल मरने वाले हो, कुछ ऐसा सीखो जिससे कि तुम हमेशा के लिए जीने वाले”। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी इन्हीं सिद्धान्तों पर जीवन व्यतीत करते हुए भारत की आजादी के लिए ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ अनेक आंदोलन लड़े।
महात्मा गांधी पर निबंध 500 शब्दों में
500 शब्दों में Mahatma Gandhi Essay in Hindi इस प्रकार हैः
गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। भारत को स्वतंत्रता दिलवाने में उन्होंने एहम भूमिका निभायी थी। 2 अक्टूबर को हम उन्हीं की याद में गांधी जयंती मनाते है। वह सत्य के पुजारी थे। गांधीजी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था।
गांधी जी के पिता का नाम करमचंद उत्तमचंद गांधी था और वह राजकोट के दीवान रह चुके थे। गांधी जी की माता का नाम पुतलीबाई था और वह धर्मिक विचारों और नियमों का पालन करती थीं। कस्तूरबा गांधी उनकी पत्नी का नाम था वह उनसे 6 माह बड़ी थीं। कस्तूरबा और गांधी जी के पिता मित्र थे, इसलिए उन्होंने अपनी दोस्ती को रिश्तेदारी में बदल दी। कस्तूरबा गांधी ने हर आंदोलन में गांधी जी का सहयोग दिया था।
गांधी जी ने पोरबंदर में पढ़ाई की थी और फिर माध्यमिक परीक्षा के लिए राजकोट गए थे। वह अपनी वकालत की आगे की पढ़ाई पूरी करने के लिए इंग्लैंड चले गए। गांधी जी ने 1891 में अपनी वकालत की शिक्षा पूरी की। लेकिन किसी कारण वश उन्हें अपने कानूनी केस के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। वहां जाकर उन्होंने रंग के चलते हो रहे भेद-भाव को महसूस किया और उसके खिलाफ अपनी आवाज़ उठाने की सोची। वहां के लोग लोगों पर ज़ुल्म करते थे और उनके साथ दुर्व्यवहार करते थे।
भारत वापस आने के बाद उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत की तानाशाह को जवाब देने के लिए और अपने लिखे समाज को एकजुट करने के बारे में सोचा। इसी दौरान उन्होंने कई आंदोलन किये जिसके लिए वे कई बार जेल भी जा चुके थे। गाँधी जी ने बिहार के चम्पारण जिले में जाकर किसानों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद की। यह आंदोलन उन्होंने जमींदार और अंग्रेज़ों के खिलाफ किया था। एक बार गाँधीजी को स्वयं एक गोरे ने ट्रेन से उठाकर बाहर फेंक दिया क्योंकि उस श्रेणी में केवल गोरे यात्रा करना अपना अधिकार समझते थे परंतु गांधी जी उस श्रेणी में यात्रा कर रहे थे।
गांधी जी ने प्रण लिया कि वह काले लोगों और भारतीयों के लिए संघर्ष करेंगे। उन्होंने वहाँ रहने वाले भारतीयों के जीवन सुधार के लिए कई आन्दोलन किये । दक्षिण अफ्रीका में आन्दोलन के दौरान उन्हें सत्य और अहिंसा का महत्त्व समझ में आया। जब वह भारत वापस आए तब उन्होंने वही स्थिति यहां पर भी देखी, जो वह दक्षिण अफ्रीका में देखकर आए थे। 1920 में उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाया और अंग्रेजों को ललकारा।
1930 में गांधी जी ने असहयोग आंदोलन चलाया और 1942 में उन्होंने अंग्रेजों से भारत छोड़ने का आह्वान किया। अपने इन आन्दोलन के दौरान वह कई बार जेल गए। हमारा भारत 1947 में आजाद हुआ, लेकिन 30 जनवरी 1948 को गोली मारकर महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई, जब वह संध्या प्रार्थना के लिए जा रहे थे।
Mahatma Gandhi Essay in Hindi में हम महात्मा गांधी के कुछ अनमोल विचार के बारे में जानेंगे जो आपको अपना जीवन बदलने की राह आसान करेंगेः
- “एक कायर प्यार का प्रदर्शन करने में असमर्थ होता है, प्रेम बहादुरों का विशेषाधिकार है।”
- “मेरा धर्म सत्य और अहिंसा पर आधारित है। सत्य मेरा भगवान है, अहिंसा उसे पाने का साधन।”
- “किसी चीज में यकीन करना और उसे ना जीना बेईमानी है।”
- “राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना देश की उन्नति के लिए आवश्यक है।”
- “पृथ्वी सभी मनुष्यों की ज़रुरत पूरी करने के लिए पर्याप्त संसाधन प्रदान करती है, लेकिन लालच पूरी करने के लिए नहीं।”
- “प्रेम दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति है और फिर भी हम जिसकी कल्पना कर सकते हैं उसमे सबसे नम्र है।”
- “एक राष्ट्र की संस्कृति उसमे रहने वाले लोगों के दिलों में और आत्मा में रहती है।”
- “जहाँ प्रेम है वहां जीवन है।”
- “सत्य बिना जन समर्थन के भी खड़ा रहता है, वह आत्मनिर्भर है।”
- “एक धर्म जो व्यावहारिक मामलों के कोई दिलचस्पी नहीं लेता है और उन्हें हल करने में कोई मदद नहीं करता है वह कोई धर्म नहीं है।”
Mahatma Gandhi Essay in Hindi जानने के साथ ही हमें महात्मा गांधी के बारे में रोचक तथ्यों के बारे में जानना चाहिए, जोकि इस प्रकार हैंः
- महात्मा गांधी की मातृ-भाषा गुजराती थी।
- महात्मा गांधी ने राजकोट के अल्फ्रेड हाई स्कूल से पढ़ाई की थी।
- महात्मा गांधी के जन्मदिन 2 अक्टूबर को ही अंतरराष्ट्रीय अंहिसा दिवस के रूप मे विश्वभर में मनाया जाता है।
- वह अपने माता-पिता के सबसे छोटी संतान थे उनके दो भाई और एक बहन थी।
- माधव देसाई, गांधी जी के निजी सचिव थे।
- महात्मा गांधी की हत्या बिरला भवन के बगीचे में हुई थी।
- महात्मा गांधी और प्रसिध्द लेखक लियो टॉलस्टॉय के बीच लगातार पत्र व्यवहार होता था।
- महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह संघर्ष के दोरान, जोहांसबर्ग से 21 मील दूर एक 1100 एकड़ की छोटी सी कालोनी, टॉलस्टॉय फार्म स्थापित की थी।
- महात्मा गांधी का जन्म शुक्रवार को हुआ था, भारत को स्वतंत्रता भी शुक्रवार को ही मिली थी तथा महात्मा गांधी की हत्या भी शुक्रवार को ही हुई थी।
- महात्मा गांधी के पास नकली दांतों का एक सेट हमेशा मौजूद रहता था।
महात्मा गांधी जी के सिद्धांत, प्रथा और विश्वास
गांधी जी के बयानों, पत्रों और जीवन के सिद्धांतों, प्रथाओं और विश्वासों ने राजनीतिज्ञों और विद्वानों को आकर्षित किया है, जिसमें उन्हें प्रभावित किया है। कुछ लेखक उन्हें नैतिक जीवन और शांतिवाद के प्रतिमान के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जबकि अन्य उन्हें उनकी संस्कृति और परिस्थितियों से प्रभावित एक अधिक जटिल, विरोधाभासी और विकसित चरित्र के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जिसकी जानकारी नीचे दी गई है:
सत्य और सत्याग्रह
गांधी ने अपना जीवन सत्य की खोज और पीछा करने के लिए समर्पित कर दिया, और अपने आंदोलन को सत्याग्रह कहा, जिसका अर्थ है “सत्य के लिए अपील करना, आग्रह करना या उस पर भरोसा करना”। एक राजनीतिक आंदोलन और सिद्धांत के रूप में सत्याग्रह का पहला सूत्रीकरण 1920 में हुआ, जिसे उन्होंने उस वर्ष सितंबर में भारतीय कांग्रेस के एक सत्र से पहले ” असहयोग पर संकल्प ” के रूप में पेश किया।
हालांकि अहिंसा के सिद्धांत को जन्म देने वाले गांधी जी नहीं थे, वे इसे बड़े पैमाने पर राजनीतिक क्षेत्र में लागू करने वाले पहले व्यक्ति थे। अहिंसा की अवधारणा का भारतीय धार्मिक विचार में एक लंबा इतिहास रहा है, इसे सर्वोच्च धर्म माना जाता है।
गांधीवादी अर्थशास्त्र
गांधी जी सर्वोदय आर्थिक मॉडल में विश्वास करते थे, जिसका शाब्दिक अर्थ है “कल्याण, सभी का उत्थान”। समाजवाद मॉडल की तुलना में एक बहुत अलग आर्थिक मॉडल था।
बौद्ध, जैन और सिख
गांधी जी का मानना था कि बौद्ध, जैन और सिख धर्म हिंदू धर्म की परंपराएं हैं, जिनका साझा इतिहास, संस्कार और विचार हैं।
मुस्लिम
गांधी के इस्लाम के बारे में आम तौर पर सकारात्मक और सहानुभूतिपूर्ण विचार थे और उन्होंने बड़े पैमाने पर कुरान का अध्ययन किया। उन्होंने इस्लाम को एक ऐसे विश्वास के रूप में देखा जिसने शांति को सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया, और महसूस किया कि कुरान में अहिंसा का प्रमुख स्थान है।
गांधी ने ईसाई धर्म की प्रशंसा की। वह ब्रिटिश भारत में ईसाई मिशनरी प्रयासों के आलोचक थे, क्योंकि वे चिकित्सा या शिक्षा सहायता को इस मांग के साथ मिलते थे कि लाभार्थी ईसाई धर्म में परिवर्तित हो जाए। सीधे शब्दों में समझें तो गांधीजी हर धर्म का सम्मान और विश्वास करते थे।
गांधी जी ने महिलाओं की मुक्ति का पुरजोर समर्थन किया, और “महिलाओं को अपने स्वयं के विकास के लिए लड़ने के लिए” आग्रह किया। उन्होंने पर्दा, बाल विवाह, दहेज और सती प्रथा का विरोध किया।
अस्पृश्यता और जातियां
गांधी जी ने अपने जीवन के शुरुआती दिनों में अस्पृश्यता के खिलाफ बात की थी।
नई शिक्षा प्रणाली, बुनियादी शिक्षा
गांधी जी ने शिक्षा प्रणाली के औपनिवेशिक पश्चिमी प्रारूप को खारिज कर दिया।
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सादा जीवन, उच्च विचार।
महात्मा गांधी जी को भारत में राष्ट्रपिता के रूप में सम्मानित किया जाता है। स्वतंत्र भारत के संविधान द्वारा महात्मा को राष्ट्रपिता की उपाधि प्रदान किए जाने से बहुत पहले, नेताजी सुभाष चंद्र बोस ही थे।
गांधी की मां पुतलीबाई अत्यधिक धार्मिक थीं। उनकी दिनचर्या घर और मंदिर में बंटी हुई थी। वह नियमित रूप से उपवास रखती थीं और परिवार में किसी के बीमार पड़ने पर उसकी सेवा सुश्रुषा में दिन-रात एक कर देती थीं।
गाँधी का मत था स्वराज का अर्थ है जनप्रतिनिधियों द्वारा संचालित ऐसी व्यवस्था जो जन-आवश्यकताओं तथा जन-आकांक्षाओं के अनुरूप हो।
इसका सूत्रपात सर्वप्रथम महात्मा गांधी ने 1894 ई. में दक्षिण अफ़्रीका में किया था।
महात्मा गांधी, मोहनदास करमचंद गांधी के नाम से, (जन्म 2 अक्टूबर, 1869, पोरबंदर, भारत- मृत्यु 30 जनवरी, 1948, दिल्ली), भारतीय वकील, राजनीतिज्ञ, सामाजिक कार्यकर्ता, और लेखक जो अंग्रेजों के खिलाफ राष्ट्रवादी आंदोलन के नेता बने।
महात्मा गांधी
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रश्मि पटेल विविध एजुकेशनल बैकग्राउंड रखने वाली एक पैशनेट राइटर और एडिटर हैं। उनके पास Diploma in Computer Science और BA in Public Administration and Sociology की डिग्री है, जिसका ज्ञान उन्हें UPSC व अन्य ब्लॉग लिखने और एडिट करने में मदद करता है। वर्तमान में, वह हिंदी साहित्य में अपनी दूसरी बैचलर की डिग्री हासिल कर रही हैं, जो भाषा और इसकी समृद्ध साहित्यिक परंपरा के प्रति उनके प्रेम से प्रेरित है। लीवरेज एडु में एडिटर के रूप में 2 साल से ज़्यादा अनुभव के साथ, रश्मि ने छात्रों को मूल्यवान मार्गदर्शन प्रदान करने में अपनी स्किल्स को निखारा है। उन्होंने छात्रों के प्रश्नों को संबोधित करते हुए 1000 से अधिक ब्लॉग लिखे हैं और 2000 से अधिक ब्लॉग को एडिट किया है। रश्मि ने कक्षा 1 से ले कर PhD विद्यार्थियों तक के लिए ब्लॉग लिखे हैं जिन में उन्होंने कोर्स चयन से ले कर एग्जाम प्रिपरेशन, कॉलेज सिलेक्शन, छात्र जीवन से जुड़े मुद्दे, एजुकेशन लोन्स और अन्य कई मुद्दों पर बात की है। Leverage Edu पर उनके ब्लॉग 50 लाख से भी ज़्यादा बार पढ़े जा चुके हैं। रश्मि को नए SEO टूल की खोज व उनका उपयोग करने और लेटेस्ट ट्रेंड्स के साथ अपडेट रहने में गहरी रुचि है। लेखन और संगठन के अलावा, रश्मि पटेल की प्राथमिक रुचि किताबें पढ़ना, कविता लिखना, शब्दों की सुंदरता की सराहना करना है।
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Mahatma Gandhi essay in Hindi | महात्मा गाँधी पर निबंध 200, 300, 500 और 1000 word मे
Mahatma Gandhi essay in Hindi : महात्मा गांधी भारत के राष्ट्रपिता और एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होने सत्य और अहिंसा के सिद्धांत पर कई आंदोलन चलाए थे। उनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी ( Mohandas Karamchand Gandhi ) था, जिनका जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। गांधी जी ने अहिंसा के मार्ग पर चलकर भारत को ब्रिटिश शासन (अंग्रेजों) से आजाद कराया था।
गांधी जी एक महान विचारक और समाज सुधारक भी थे, जिन्होने सामाजिक कुरितियों जैसे जातिवाद, छुआछुत और बाल विवाह के खिलाफ आवाज उठाई थी। इसके अलावा उन्होने स्वदेशी आंदोलन का भी नेतृत्व किया था। ऐसे महान व्यक्ति के बारे में आपको जरूर पढ़ना चाहिए।
स्कूलों में अक्सर Mahatma Gandhi Essay in Hindi में लिखने के लिए कहा जाता है। इसलिए मैं आपको महात्मा गाँधी पर निबंध 200, 300, 500 और 1000 word मे लिखकर दूंगा, जिससे निबंध प्रतियोगिता में बहुत अच्छे अंक ला सकते है।
महात्मा गांधी पर निबंध – Mahatma Gandhi essay in Hindi
महात्मा गांधी, जिन्हें भारत में “ बापू ” या “ राष्ट्रपिता ” के नाम से भी जाना जाता है, वे भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी और महान विचारक थे। उन्होंने अहिंसा, सत्य और प्रेम के सिद्धांतों के आधार पर भारत को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 में गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। उन्होंने इंग्लैंड में कानून (वकालत) की पढ़ाई की और फिर भारत लौटने के बाद एक वकील के रूप में काम किया। 1893 में, वे दक्षिण अफ्रीका चले गए, जहां उन्होंने भारतीय समुदाय के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी थी।
1915 में भारत लौटने के बाद, गांधी जी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व किया। उन्होंने भारत में कई महत्वपूर्ण आंदोलनों का नेतृत्व किया था, जिनमें दांडी यात्रा, सविनय अवज्ञा आंदोलन, असहयोग आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन शामिल थें।
महात्मा गांधी के सफल आंदलनों की वजह से ब्रिटिश शासन काफी कमजोर हुआ, और अंतत: 1947 में उन्हे भारत छोड़ना पड़ा। इस तरह भारत को अंग्रेजों से आजादी दिलाने में गांधी जी का काफी योगदान था। गांधी जी एक महान सत्य और अहिंसा प्रचारक थे, जिन्होने अपनी पूरी जिंदगी में इन सिद्धांतों का पालन किया और दुनिया भर के लोगों को भी प्रेरित किया।
महात्मा गांधी पर निबंध 300 शब्दों में – Gandhi Jayanti per Nibandh Hindi
प्रस्तावना.
महात्मा गांधी एक महान व्यक्तित्व वाले व्यक्ति है जिन्हे भारत में “बापू” या “राष्ट्रपिता” के रूप में जाना जाता है। गांधी जी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी है। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 में भारत के पोरबंदर स्थान पर हुआ था। उन्होने अपनी पूरी जिंदगी में केवल अहिंसा और सत्य के सिद्धांतो पर कार्य किया।
गांधी जी भारत के एक महान स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक थे, जिनका भारत की आजादी में काफी बड़ा योगदान रहा है। उन्होने काफी सारे सफल आंदोलनों का नेतृत्व किया हैं।
महात्मा गांधी का जीवन
गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था, जिनके पिता का नाम करमचंद गांधी और माता का नाम पुतली बाई था। गांधी जी ने प्रारंभिक जीवन में हिंदू शिक्षा प्राप्त की, जिसमें उन्होने संस्कृत, हिंदी और गुजराती भाषाओं का अध्ययन किया।
1888 में, गांधी जी कानून की पढ़ाई के लिए लंदन गए, जहां पढ़ाई पूरी करने के बाद वे दक्षिण अफ्रीका में एक भारतीय कंपनी में काम करने गए। वहां पर उन्होने भारतीयों के साथ हो रहे भेदभाव पर एक सफल आंदोलन किया।
इसके बाद गांधी जी 1915 में भारत लौटे और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का नेतृत्व संभाला। और फिर गांधी जी ने भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए काई आंदोलनों का नेतृत्व किया, जैसे- सविनय अवज्ञा आंदोलन, दांडी यात्रा, भारत छोड़ो आंदोलन आदि।
महात्मा गांधी राष्ट्रपिता के रूप में
महात्मा गांधी को भारत के राष्ट्रपिता का दर्जा दिया गया है, क्योंकि उन्होने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में काफी बड़ा योगदान दिया था, और इसके अलावा उन्होने भारत को अहिंसा, सत्य और प्रेम की शिक्षा भी दी है।
उपसंहार
महात्मा गांधी काफी महान व्यक्ति थे, जिन्होने भारत देश को आजादी दिलाने में काफी बड़ा योगदान दिया। इसके अलावा भारत को एक स्वतंत्र, लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष देश के रूप में स्थापित किया। उन्होने पूरे विश्व में लोगों के बीच समानता और भाईचारे को बढ़ावा देने की शिक्षा। और एक सादा और स्वेदशी जीवन जीने का उदाहरण प्रस्तुत किया।
महात्मा गांधी पर निबंध 500 शब्दों में
महात्मा गांधी काफी एक बहुत ही महान पुरुष थे जिन्होने पूरे विश्व को अहिंसा, सत्य और प्यार का पाठ पढ़ाया था। गांधी जी के इन्ही सिद्धांतों की वजह से उन्हे केवल भारत में ही नही बल्कि पूरे संसार में महान पुरुष माना जाता है।
गांधी जी ने काफी सारे शांतिपूर्वक आंदोलन किए थे, जिसकी वजह से अंग्रेजो को भारत को छोड़ना पड़ा था। गांधी जी एक स्वतंत्रता सेनानी थे, और इसके साथ – साथ एक अच्छे समाज सुधारक भी थे। उन्होने अपनी पूरी जिंदगी में लोगों के बीच समानता और भाईचारा लाने का काम किया। उन्होने महिलाओं के अधिकारों, दलितों के अधिकारों और श्रमिकों के अधिकारों के लिए भी काम किया।
गांधी जी का परिवार
महात्मा गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात में पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ था। इनका पूरा नाम मोहनदा करमचंद गांधी है और इनके पिता का नाम करमचंद गांधी है। इसके अलाव इनकी माता का नाम पुतलीबाई है। गांधी जी अपने पिता की चौथी पत्नी की अंतिम संतान थे।
गांधी जी की माता अत्यधिक धार्मिक महिला थी, जिनकी दिनचर्या घर और मंदिर में बंटी हुई थी। इसके अलावा गांधी जी के पिता, करमचंद गांधी ब्रिटिश आधिपत्य के तहत पश्चिमी भारत की एक छोटी सी रियासत पोरबंदर के दिवान थे।
गांधी जी के परिवार में 4 बेटे और 13 पोते-पोतियां हैं। अगर आज के समय की बात करें तो उनके पोते-पोतियां और उनके 154 वंशज आज 6 देशों रह रहे हैं।
महात्मा गांधी की शिक्षा
गांधी जी ने प्रारंभिक शिक्षा पोरबंदर से ही प्राप्त की थी, जहां उन्होंने संस्कृत, हिंदी और गुजराती भाषओं का अध्ययन किया। इसके बाद 1888 में गांधी जी कानून की पढ़ाई के लंदन गए। वे लंदन विश्वविद्यालय में कानून की पढ़ाई पूरी करके दक्षिण अफ्रीका गए, जहां उन्होने एक भारतीय कंपनी में काम किया।
दक्षिण अफ्रीका में सक्रियता
जब गांधी जी दक्षिण अफ्रीका गए तब उन्होने देखा कि वहां भारतीय लोगों के साथ भेदभाव हो रहा है। वहां पर नस्लीय भेदभाव भी हो रहा था। उस समय महात्मा गांधी ने अहिंसा और सत्य के सिद्धातों से एक आंदोलन का नेतृत्व किया, जिससे दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों को भी अधिकार मिले।
स्वदेश आगमन
दक्षिण अफ्रीका में सफल आंदोलन करने के बाद गांधी जी 1915 में स्वदेश लौट आए। इसके बाद उन्होने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व संभाला और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को एक नयी दिशा दी। उन्होने अहिंसा और सत्य के सिद्धांतों पर एक स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व किया, जिसने ब्रिटिश शासन काफी प्रभावित किया।
गांधी जी ने भारत आने के बाद काफी सारे आंदोलन किए, और सभी आंदोलन अंहिसा और शांतिपूर्वक तरीके से किए थे, जिससे उनके अधिकतर सभी आंदोलन सफल हुए थे।
महात्मा गांधी का जीवन काफी शिक्षाप्रद था। उन्होने पूरे विश्व को कई शिक्षाएं दी, जैसे- अहिंसा, सत्य, सादगी, स्वदेश प्रेम, सेवा। गांधी जी की शिक्षाएँ दुनिया भर के लोगों के लिए प्रेरणाएं है, जिससे एक बेहतर और अधिक न्यायपूर्ण दुनिया बनायी जा सकती है। इसलिए हम सभी को महात्मा गांधी जी की शिक्षाओं को अपनाना चाहिए।
महात्मा गांधी पर निबंध 1000 शब्दों में – Mahatma Gandhi essay in 1000 Word
महात्मा गांधी ( Mahatma Gandhi ) एक अच्छे समाज सुधारक, स्वतंत्रता सेनानी और आध्यात्मिक नेता थे। इसी वजह से गांधी जी को भारत में “ राष्ट्रपिता” और “ बापू” के नाम से जाना जाता है। उन्होने काफी सारे अंदोलन किए थे, और सभी आंदोलन अहिंसा, सत्य और प्रेम के सिद्धांतों पर आधारित थे।
महात्मा गांधी जी का जन्म
महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम करमचंद गांधी था, जो राजकोट राज्य के दिवान थे। और उनकी माता का नाम पुतली बाई था, जो एक धार्मिक गृहिणी थी। महात्मा गांधी जी अपने परिवार में सबसे छोटे थे।
महात्मा गांधी जी की शिक्षा
महात्मा गांधी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पोरबंदर में ही प्राप्त की थी। उन्होने संस्कृत, हिंदी और गुजराती भाषाओं का अध्ययन किया था, और सा एक पारंपरिक हिंदू शिक्षा प्राप्त की। गांधी जी ने पुरस्कार और छात्रवृत्तियां भी जीती।
गांधी जी की तेरह वर्ष में पोरबंदर के एक व्यापारी की पुत्री कस्तूरबा के साथ विवाह करवा दिया गया था, जब वे स्कूल में पढ़ते थे। युवा अवस्था में गांधी जी ने 1887 में जैसे-तैसे ‘मुबंई यूनिवर्सिटी’ की मैट्रिक की परीक्षा पास की और भावनगर स्थित ‘सामलदास कॉलेज’ में दाखिला लिया।
गांधी जी एक डॉक्टर बनना चाहते थे, लेकिन वैष्णव परिवार में चीर-फाड़ की इजाजत नही थी, इसलिए उन्हे बैरिस्टर (कानून) की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड जाना पड़ा।
महात्मा गांधी जी की विदेश यात्रा
सितंबर 1888 में, गांधी जी लंदन (इंग्लैंड) पहुंच गए। वहां पर उन्होने चार लॉ कॉलेज में से एक ‘इनर टेंपल’ कानून महाविद्यालय में प्रवेश लिया। उन्होने 1890 में, लंदन विश्वविद्यालय में मैट्रिक की परीक्षा दी।
गांधी जी ने अपनी लॉ की पढ़ाई को काफी गंभीरता से लिया। उन्होने लंदन में शाकाहारी रेस्तरां के लिए हड़ताल भी की थी। गांधी जी लंदन वेजिटेरियन सोसाइटी में कार्यकारी समिति के सदस्य बने थे।
दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह आंदोलन
महात्मा गांधी थोड़े समय के लिए इंग्लैंड से भारत आए थे, तब वे अब्दुल्ला के चचेरे भाई के लिए वकील बनने के लिए दक्षिण अफ्रीका चले गए, जो दक्षिण अफ्रीका के शिपिंग व्यापारी थे। लेकिन वहां उन्होने देखा कि वहां पर भारतीय लोगों के साथ भेदभाव किया जा रहा है।
गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में एक सत्याग्रह आंदोलन चलाया ताकि वहां रहने वाले भारतीयों को न्यायपूर्ण अधिकार मिले। यह सत्याग्रह आंदोलन अफ्रीका में सात वर्षों से अधिक समय तक चला। इसमें उतार-चढ़ाव आते रहे, लेकिन गांधी जी के नेतृत्व में सभी भारतीय अल्पसंख्यकों के छोटे से समुदाय ने संघर्ष जारी रखा।
अंतत: दक्षिण अफ्रीका में सभी भारतीयों को न्यायपूर्ण अधिकार मिले।
महात्मा गांधी द्वारा किए गए आंदोलन
दक्षिण अफ्रीका में सफल आंदोलन करने के बाद गांधी जी सन् 1914 में भारत लौट आए। उस समय सभी देशवासियों ने गांधी जी को महात्मा कहकर पुकारना शुरू कर दिया। इसके बाद गांधी जी ने चार वर्ष बारतीय स्थिति का अध्ययन किया।
गांधी जी ने भारत में कई आंदोलनों का सफल नेतृत्व किया था।
1. चंपारण सत्याग्रह आंदोलन
चंपारण सत्याग्रह आंदोलन महात्मा गांधी के नेतृत्व में 1917 में बिहार के चंपारण जिले में शुरू हुआ था। यह आंदोलन ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आम जनता के अहिंसक प्रतिरोध पर आधारित था।
2. खेड़ा आंदोलन
एक बार गुजरात का एक गांव काफी बुरी तरह से बाढ़ की चपेट में आ गया था, तो स्थानीय किसानों ने कर माफी के लिए शासकों से अपील की। लेकिन शासकों ने उनकी अपील को नही स्वीकारा। इसके बाद गांधी जी ने खेड़ा आंदोलन शुरू किया गया, जिसकी वजह से 1918 में सरकार ने अकाल समाप्ति तक राजस्व कर के भुगतान की शर्तों पर ढील दी।
3. रॉलेट ऐक्ट के विरुद्ध आंदोलन
अंग्रेजों ने भारत में उठ रही आजादी की आवाज को दबाने के लिए 1919 में एक रॉलेट ऐक्ट लगाया था, जिसे काले कानून के नाम से भी जाना जाता था। इस ऐक्ट से ब्रिटिश सरकार किसी भी भारतीय व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती थी।
उस समय महात्मा गांधी के नेतृत्व में रॉलेट ऐक्ट के विरोध हुए आंदोलन में पूरा देश शामिल हुआ था।
4. असहयोग आंदोलन
असहयोग आंदोलन काफी महत्वपूर्ण आंदोलन है, जो महात्मा गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में 1920 में शुरू किया गया था। इस आंदोलन से सभी भारतीयों में स्वतंत्रता के लिए एक नई जागृति पैदा हुई। इस आंदोलन का उद्देश्य था कि ब्रिटिश स्रकार से राष्ट्र के सहयोग को वापिस लेना।
5. नमक सत्याग्रह आंदोलन
महात्मा गांधी के सभी आंदोलनों में से एक सबसे महत्वपूर्ण आंदोलन यह भी था। यह आंदोलन 12 मार्च 1930 में साबरमती आश्रम जो कि अहमदाबाद में है, से शुरू हुआ, और दांडी गांव तक 24 दिनों तक पैदल मार्च के रूप में चला। यह आंदोलन ब्रिटिश राज के एकाधिकार के खिलाफ आंदोलन था।
6. दलित आंदोलन
महात्मा गांधी एक अच्छे समाज सुधारक भी थे, जिन्होने देश में फैल रहे छुआछुत के विरोध में 8 मई 1933 को आंदोलन शुरू किया था। इस आंदोलन ने पूरे देश में काफी हद तक छुआछुत को कम किया था। इसके बाद गांधी जी ने 1932 में छुआछुत विरोधी लीग की स्थापना की थी।
7. भारत छोड़ो आंदोलन
महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ 1942 में एक बहुत बडा आंदोलन छेड़ा, जिसका नाम, भारत छोड़ो आंदोलन था। इस आंदोलन से गांधी जी ने अंग्रेजो को भारत छोड़ने पर मजबुर किया। इसके साथ ही गांधी जी ने एक सामूहिक नागरिक अवज्ञा आंदोलन करो या मरो भी शुरू किया, जिससे इस आंदोलन को और मजबूती मिली।
इस आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार की हुकूम को काफी कमजोर कर दिया था।
महान बलिदान
भारत छोड़ो आंदोलन के बाद बाद ब्रिटिश हुकूमत काफी कमजोर हुई और अंतत: 1947 में पूरा भारत स्वतंत्र हो गया। लेकिन गांधी जब तक जिंदी थे, तब तक देश के उद्धार के लिए काम करते रहे। गांधी जी ने हिंदु और मुस्लिम एकता का अभियान शुरू किया था, लेकिन इससे कुछ लोग खुश नही थे।
30 जनवरी, 1948 को दिल्ली के बिरला भवन में सभा के समय नाथूराम गोड़से ने मौका देखकर गांधी जी को गोली मार दी। हालांकि गांधी जी के मरने के बाद भी उनके आदर्श और उपदेश हमेशा जिंदा है।
महात्मा गांधी सच में एक महान पुरुष थे, जिन्होने अच्छी तरह से स्वतंत्र सेनानी और समाज सेवक का रोल निभाया। गांधी जी ने शांति और अहिंसा के आधार पर आंदोलन किया और अंग्रेजो को भारत छोड़ने पर मजबूर किया।
महात्मा गांधी सिर्फ एक नाम नही बल्कि पूरे विश्व पटल पर शांति और अहिंसा का प्रतीक है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी वर्ष 2007 से गांधी जयंती पर ‘विश्व अहिंसा दिवस’ के रूप मनाने की घोषणा की।
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मेरा प्रिय नेता पर निबंध Mera Priya Neta Essay In Hindi
Mera Priya Neta Essay In Hindi – Mera Priya Neta Nibandh दोस्तों आज हम आपको इस ब्लॉग में मेरे प्रिय नेता पर निबंध किस प्रकार से लिखा जाता है इस विषय पर जानकारी एवं निबंध लिख कर दूंगा ताकि आपको आसानी हो सके कि किस प्रकार से निबंध लिखा जाता है और क्या-क्या शब्द इस निबंध में अपने प्रिय नेता के बारे में लिखते हैं वह सब भी बताने वाला हूं अगर आपको इस विषय पर निबंध लिखने को दिया गया है तो इस ब्लॉग को अंत तक अवश्य पढ़ें
चलिए शुरू करते हैं
मेरा प्रिय नेता पर निबंध – Mera Priya Neta Essay In Hindi
Mera priya neta nibandh.
भारत देश में वर्तमान समय में जितने भी नेता है वह सभी भ्रष्टाचार से भरे हुए हैं जिस वजह से इस समय के लोग को उसके अंदर नेता का शब्द सुनते ही एक अलग सा ही गुस्सा दौड़ होता है क्योंकि वह सभी मात्र अपने मतलब के लिए हमारे देश में नेता बने हुए हैं ताकि उनके पास पावर पैसा बना रहे लेकिन जो हमारा देश ब्रिटिश सरकार का गुलाम था तब जितने भी नेता थे वह सभी हमारे देश को आजादी दिलाने एवं जन कल्याण के लिए कार्य किया करते थे इसलिए उस समय के नेता मुझे बहुत ज्यादा पसंद थे वर्तमान समय के नेताओं के मुकाबले।
वर्तमान समय में जितना भी भ्रष्टाचार बढ़ रहा है उसमें से लगभग 90% नेताओं का योगदान है क्योंकि यदि किसी के परिवार में कोई नेता है तब उसके परिवार में किसी को भी संविधान के कानूनों से कुछ फर्क नहीं पड़ता वह बहुत ही आसानी से जुर्म करके बच जाते हैं।
वर्तमान समय में नेता बनना मतलब खुद के बारे में पहले सोचना जैसा हो गया है लोग दूसरे को बारे में बिल्कुल भी विचार नहीं करते वहां अपने परिवार एवं अपनी सुख-सुविधाओं का पहले ख्याल करते हैं। इसलिए यह इनमें से कोई भी नेता मेरे प्रिय नेता नहीं है मेरे प्रिय नेता दो है जो मुझे बहुत ज्यादा पसंद है पहले सुभाष चंद्र बोस तथा महात्मा गांधी यह दोनों नेता देश को आजादी दिलाने के लिए कड़ी संघर्ष एवं ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जंग लड़ी थी।
मैं महात्मा गांधी से ज्यादा नेता सुभाष चंद्र बोस जी को प्रेम करता हूं क्योंकि मुझे भी यह लगता है कि किसी भी कार्य को हम शांति से नहीं कर सकते जब तक हम सामने वाले से लड़ेंगे नहीं तब तक किसी भी कार्य को अंजाम तक नहीं पहुंचाया जा सकता इसलिए नेता सुभाष चंद्र बोस मेरे पसंदीदा नेता है जिनका जन्म 23 जनवरी सन 18 सो 97 में हुआ था यह अत्याचार के खिलाफ बहुत ही सख्त थे और यह ब्रिटिश सरकार से बहुत ही बहादुर के साथ जंग लड़ी थी और अंत में एक समय ऐसा आया था जब यह ब्रिटिश सरकार के द्वारा पकड़े जाते तब उन्होंने स्वयं को गोली मारकर शहीद कर दिया।
नेता सुभाष चंद्र बोस पढ़ने में बहुत अधिक होशियार थे और उन्होंने अपनी आरंभिक शिक्षा अपने ही स्थानीय विद्यालय से प्राप्त की थी उसके पश्चात यह प्रेसिडेंसी कॉलेज में अपना दाखिला कराएं और वहां पर पढ़ना आरंभ किए वहां पर पढ़ाई संपन्न करने के पश्चात इन्होंने आईसीएस की परीक्षा के लिए इंग्लैंड गए और उन्होंने इस परीक्षा को अच्छे तरीके से उत्तीर्ण कर लिया उन्होंने जब यह परीक्षा उत्तीर्ण की तब उनको एक बहुत ही अच्छी नौकरी प्राप्त हो जाती जिसके पश्चात वह सारे सुख सुविधाओं के साथ अपना जीवन सरलता से जी सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और देश को आजादी दिलाने के लिए अपना सब कुछ त्याग कर आजादी की राह पर चलने लगे
जरूर पढिये:
Mera Priya Neta Hindi Nibandh
नेता सुभाष चंद्र बोस स्वामी विवेकानंद को अपने गुरु मानते थे उनके द्वारा बताए गए हर एक मार्ग को वहां अपनाया करते थे तथा इसके साथ साथ हुआ श्रीमद्भागवत गीता में भी यकीन रखते थे जिससे उनको बहुत हौसला और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लड़ने की प्रेरणा प्राप्त होती थी।
नेता सुभाष चंद्र बोस अपना राजनीतिक कदम असहयोग आंदोलन से आरंभ किया था उसके पश्चात उन्होंने कई सारे आंदोलनों का नेतृत्व एवं सारे आंदोलन में हिस्सा लिया ऐसे नमक आंदोलन उसके पश्चात प्रिंस ऑफ वेल्स का आगमन भारत में हो रहा था तब उसके विरोध में आंदोलन किया था उसमें भी नेता सुभाष चंद्र बोस बहुत बढ़ चढ़कर हिस्सा लिए थे और इस वजह से उनको ब्रिटिश सरकार की तरफ से सजा भी दी गई थी लेकिन उनके द्वारा किए गए कार्य एवं लोगों की मदद ने नेता सुभाष चंद्र बोस को बहुत ही कम समय में लोगों के दिलों पर राज करने लगे थे
सुभाष चंद्र बोस हमारे देश को आजाद कराने के लिए बहुत सारे आंदोलन में हिस्सा लिया और हमारी सबसे पुरानी राष्ट्रीय पार्टी राष्ट्रीय कांग्रेस के यह एक सदस्य बने उसके पश्चात पार्टी का अध्यक्ष सन 1939 में बनाया गया लेकिन इस पद पर वह अधिक समय तक कार्यरत ना रह सके और कुछ समय पश्चात ही उन्होंने इस पद को छोड़ दिया था। सुभाष चंद्र बोस एक बहुत ही साहसी स्वतंत्रता सेनानी थे जिस वजह से ब्रिटिश सरकार की परेशानी बढ़ गई थी वह इनसे बहुत अधिक डरते थे और इसी वजह से नेता सुभाष चंद्र बोस को नजरबंद करके रखा गया था लेकिन वहां से भी सुभाष भाग निकले
नेता सुभाष चंद्र बोस महात्मा गांधी के अहिंसा वादी होने से परेशान थे उनका मानना था कि अहिंसा से हम अपने देश को आजाद नहीं करा सकते इस वजह से उनके मध्य मतभेद होता था और यही कारण है कि जब वह दूसरी बार कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे उसके पश्चात भी इन्होंने उस पद को छोड़कर इस्तीफा दिया। नेता सुभाष चंद्र बोस रूस और जर्मनी को भी देश को आजादी के लिए मांग की थी लेकिन कुछ खास मदद नहीं मिली उसके पश्चात वह जापान के लोगों से मदद मांगी और उन्होंने इनकी मांग को पूरा करने का प्रस्ताव किया और वहां पर नेता सुभाष चंद्र बोस ने राष्ट्रीय सेना की शुरुआत की।
नेता सुभाष चंद्र बोस एक बहुत ही प्रसिद्ध नेता थे जिनको हम प्रतिवर्ष बहुत ज्यादा सम्मान के साथ याद करते हैं क्योंकि इनका पूरे जीवन में मात्र एक ही मकसद था हमारे देश को आजादी दिलाना।
दोस्तों अभी हमने आपको इस ब्लॉग में मेरे प्रिय नेता पर निबंध लिखकर बताएं अगर आपको यह पसंद आया हो तो आपसे अपने दोस्तों के साथ भी साझा करें और यदि आपका कोई सवाल है तो आप उनसे कमेंट में अवश्य पूछे एवं अपने सुझाव को आप हमें कमेंट करके दे।
अगर हमारे द्वारा Mera Priya Neta Essay In Hindi में दी गई जानकारी में कुछ भी गलत है तो आप हमें तुरंत Comment बॉक्स और Email में लिखकर सूचित करें। यदि आपके द्वारा दी गई जानकारी सही है, तो हम इसे निश्चित रूप से बदल देंगे। दोस्तों अगर आपके पास Mera Priya Neta Nibandh In Hindi के बारे में हिंदी में और जानकारी है तो हमें कमेंट बॉक्स में बताएं। हम Hindi Essay On Mera Priya Neta इसमे जरूर बदलाव करेंगे। और ऐसेही रोमांचक जानकारी को पाने के लीएं HINDI.WIKILIV.COM पे आते रहिएं धन्यवाद
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Short Essay on 'My Favourite Leader' in Hindi | 'Mera Priya Neta' par Nibandh (173 Words)
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- Essay : (मेरा प्रिय नेता) MERA PRIYA NETA Nibandh in Hindi
मेरा प्रिय नेता पर निबंध ( Mera Priya Neta Essay in Hindi ): Given below some lines of Short Essay / Nibandh on Mera Priya Neta in Hindi. मेरे प्रिय नेता महात्मा गांधी जी हैं। महात्मा गाँधी जी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गाँधी था। महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर सन 1869 में पोरबन्दर में हुआ था। मैट्रिक परीक्षा पास करने के बाद वह उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैण्ड गए। वहां से लौटने पर उन्होंने वकालत प्रारंभ क़ी। गाँधी जी का सार्वजानिक जीवन दक्षिण अफ्रीका में प्रारंभ हुआ। उन्होंने भारतीयों क़ी सहायता क़ी। उन्होंने सत्याग्रह आन्दोलन प्रारंभ किया। उन्होंने अनेक कष्ट सहे। उनको अपमानित किया गया। अंत में उन्हें सफलता मिली। गाँधी जी भारत वापस आये और स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। वह कई बार जेल गए। अब सारा देश उनके साथ था। लोग उन्हें राष्ट्रपिता कहने लगे। अंत में भारत को 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त हुई। गाँधी जी सादा जीवन बिताते थे। वह 'सादा जीवन, उच्च विचार' को मानने वाले थे। उन्होंने हमको 'अहिंसा' का पाठ पढ़ाया। वह एक समाज सुधारक थे। उन्होंने छुआ-छूत को दूर करने का प्रयत्न किया। उन्होंने गॉवों कि दशा सुधारने का पूरा प्रयत्न किया। उन्हें भारत के 'राष्ट्रपिता' के रूप में जाना जाता है।
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Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Mera Priya Neta”, ”मेरा प्रिय नेता” Complete Hindi Anuched for Class 8, 9, 10, Class 12 and Graduation Classes
मेरा प्रिय नेता
Mera Priya Neta
निबंध नंबर :- 01
राजेन्द्रबाबू को मैने 1947 से जाना, जब वे कुछ दिन क लिए वर्धा आए थे। उस समय से हमारा परिचय और सम्बन्ध बढ़ता ही गया। धीरे धीरे मै उनके परिवार का सदस्य ही नही बेटी बन गई। जब वे वर्धा आए तब मेरा बच्चा केवल एक डेढ़ वर्ष का था। बाबूजी नित्य उसे पलंग पर बैठाकर साथ ही नाश्ता करते। उनकी इस कृति में मैने उनके सहज बालप्रेम का परिचय पाया, कभी कभी ऐसा भी होता कि वह स्वयं ही उनके पास पहुँच जाता और उनकी पीठ पर चढ़कर घोडे का खेल खेलने लगता। बाबू जी को दमा था, इसलिए हम उसे हटाने के प्रयत्न करते। पर वे उसे कभी न हटाते और कहते, “खेलने दो।”
आगे चलकर जब वे राष्ट्रपति बने तो मैंने राष्ट्रपति भवन में भी यही दृश्य देखा। बाबू जी कितने ही काम में व्यस्त क्यों न हों यदि उनकी पोतियों के नन्हें बच्चे उनके पास आते तो वे उन्हें अपने पास बिठा लेते और उनके साथ खेलते। इतना ही नही कई बार स्टाफ के व्यक्ति भी अपने बच्चों को बाबूजी की गोद में रख देते। बाबूजी बडी खुशी और आनंद के साथ उन्हें खिलाते, प्यार करते और आशीर्वाद देते। काम करते हुए भी बच्चे उनके कमरे में कितना भी शोर करें कुछ भी बिगाडे, कुछ भी छुएं उनके मुंह से कड़ा शब्द नहीं निकलता था।
बच्चों का तो क्या? वे बड़ों का भी दिल नही दुखाते थे। मुझे याद आता है कि एक बार जब वे बहुत बीमार हुए तो उनकी दिन चर्या में रहने वाली एक नर्स उनसे दूध पीने की आग्रह कर रही थी। बाबूजी की तनिक भी इच्छा नहीं थी। जब उसने हाथ मे लेकर कप उनकी ओर बढाया तब वे खीझ उठे। जोर से कप हटा दिया। तब उन्होंने इतना ही कहा था कि “इच्छा नहीं तो क्यों पिलाती हो?’ कुछ समय बाद वे बडे दुखी हुए। कहने लगे- “आजकल हमें न जाने क्या हो गया है, इस पर बिगड़ पडे।” उनकी आत्माको तभी शान्ति मिली जब उन्होंने नर्स से क्षमा मांग ली। इतनी छोटी सी बात उनके हृदय की कोमलता का परिचय देती है।
सदबाब बड़े समदर्शी थे। छोटे-बडे, धनवान-गरीब सब उनके बराबर थे। कई बार देखा गया कि जिस प्रकार अपने परिवार के किसी सदस्य के बीमार पड़ने पर वे व्याकुल हो जाते थे, उसी प्रकार अपने चपरासी और कर्मचारी अथवा उनके परिवार के किसी सदस्य की बीमारी से व्यथित हो उठते थे। कई बार उनसे वे पूछताछ करते थे। रुपए पैसे से भी उनकी सहायता करते थे। अपने नौकरों के प्रति उनका यह व्यवहार कितना मानवीय था?
वास्तव में अपने जीवन में उन्होने छोटे-बडे का भेद नहीं किया। अपनी पोती की शादी में उन्होने चपरासी से लेकर बड़े अफसरों तक को एक ही पंगत बैठाकर भोज दिया। उन्ही के बीच नीचे आसन पर बैठ उन्होने स्वयं भी खाना खाया। वे कभी-कभी कहा करते थे”हमें ऐसा लगता ही नहीं कि हम राष्ट्रपति हैं और अमुक छोटा है, अमुक बडा”। उनकी अहंकार शून्यता की यह पराकाष्ठा थी।
राजेन्द्रबाबू जैसे निरभिमानी थे, वैसे ही ईमानदार भी। जीवन की छोटी छोटी बातों में भी वे इसका ध्यान रखते थे। उन्होंने अपने निजी सहायक से एक पत्र लिखाया- “अमुक व्यक्ति को मैंने पत्र लिख दिया है।” उस व्यक्ति का पत्र भी तभी लिखा गया था। बाबूजी ने निजी सहायक से कहा- “पहले उस पत्र को डाक मे डाल देना, तब यह पत्र लिखना, नहीं तो ऐसा लिखना गलत होगा।” जब इतनी छोटी बातों में वे सच्चाई बरतते थे तब बडी बातें तो स्वयं सत्य बनकर उनके सामने आ जाती थी।
उनकी ईमानदारी की एक बहुत छोटी पर बहुत ऊँची बात हैएक बार उनके सैनिक सचिव एक हिसाब की अडचन लेकर उनके पास आए। उन्हें दो एक बातों या मदों के विषय में चिन्ता थी। वे नहीं समझ पा रहे थे कि उस खर्च को सरकारी व्यय में लिखें या व्यक्तिगत व्यय में?
बाबूजी ने उनकी समस्या सुलझाने में क्षण भर भी नहीं लगाया। उन्होंने हिसाब भी नहीं देखा। उन्होंने शंका का समाधान इस प्रकार किया- “जब कभी आपको शक हो वहाँ आप हमारे विरुद्ध निर्णय दीजिएं। अर्थात उस व्यय को सरकारी खर्चा में नहीं हमारे निजी व्यय में लिखिए। राष्ट्रपति और राजेन्द्रबाबू इन दो व्यक्तित्वों के समन्वय और ईमानदारी का इससे अच्छा क्या उदाहरण हो सकता है।”
इतने महान आदर्श एवं सदगुण इतने बड़े नेता में होने के कारण ही डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद जो कि भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे, मेरे प्रिय नेता बने हुए है। सादा जीवन उच्च विचार उनके चरित्र पर पूर्ण रूप से चरितार्थ होती है।
निबंध नंबर :- 02
भारत ने कई महान नेताओं को जन्म दिया। इसके स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास नेताओं से अटा पड़ा है। उन्होंने देश की तन-मन से सेवा की। उन्होंने अंग्रेज़ों से देश को स्वतंत्रता दिलवाने के लिए अपने जीवन बलिदान कर दिए। कइयों पर अत्याचार किए गए और कइयों को फांसी पर लटका दिया गया। उन्होंने वक्त रेत पर अपने कदमों के निशान छोड़े। मेरे प्रिय नेता हैं-महात्मा गांधी।
महात्मा गांधी का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ। अपनी स्कूली शिक्षा खत्म करने के बाद वे कानून की पढ़ाई करने के लिए विलायत चले गए। वहां से बैरिस्टर बन कर वे भारत लौटे। जब वे वापिस आए तो उन्हें दक्षिण अफ्रीका भेज दिया गया। अफ्रीका में उन्होंने देखा कि भारतीयों के साथ बहुत ही अमानवीय व्यवहार होता था। उन्हें स्वयं को कई बार अपमानित होना पड़ा। उन्होंने भारतीयों के सम्मान को बहाल रखने के लिए कई आंदोलन किए। वे भारत लौट आए और उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष करने का निर्णय लिया।
महात्मा गांधी ने अपने देश के लोगों को इकट्ठा करना शुरू किया। उन्होंने उन्हें देश की आज़ादी के लिए संघर्ष करने के लिए तैयार किया। उन्होंने सरकार के नियमों को तोड़ना शुरू किया। उन्होंने असहयोग आंदोलन और भारत छोड़ो जैसे आंदोलन शुरू किये। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा जेल में बिताया। उन्होंने अहिंसा को एक हथियार के रूप में अपनाया।
महात्मा गांधी आम आदमी के सच्चे प्रतिनिधि थे। उन्होंने स्वयं आम आदमियों की तरह जीवन व्यतीत किया। उन्होंने गरीबों के मुद्दों को उठाया। हालांकि वे शारीरिक रूप से काफी कमज़ोर दिखाई देते थे लेकिन उनके भीतर एक मज़बूत आत्मा थी। वे एक दृढ़ इच्छा शक्ति के मालिक थे। अंग्रेज़ उनसे भयभीत थे। अंतत: वे अपना लक्ष्य प्राप्त करने में सफल रहे। अंग्रेजों को उनके आगे झुकना पड़ा। 1947 में वे सदा के लिए भारत से चले गए। दुर्भाग्य से 30 जनवरी, 1948 को उनकी गोली मार कर हत्या कर दी। गांधी जैसे लोग कभी नहीं मरते। वे लोगों के दिलों में सदा जिंदा रहते हैं। उन्हें उचित ही राष्ट्रपिता के रूप में याद किया जाता है।
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Essay On Mahatma Gandhi In Hindi For Class 5,6,7 And 8
भूमिका : राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी भारत के ही नहीं बल्कि संसार के महान पुरुष थे। वे आज के इस युग की महान विभूति थे। महात्मा गाँधी जी सत्य और अहिंसा के अनन्य पुजारी थे और अहिंसा के प्रयोग से उन्होंने सालों से गुलाम भारतवर्ष को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त करवाया था। विश्व में यह एकमात्र उदाहरण है कि गाँधी जी के सत्याग्रह के समक्ष अंग्रेजों को भी झुकना पड़ा।
To Read In Full Details : Mahatma Gandhi Essay In Hindi
गाँधी जी का जन्म : महात्मा गाँधी जी का जन्म 2 अक्तूबर , 1869 को गुजरात राज्य के काठियावाड़ जिले में स्थित पोरबन्दर नामक स्थान पर हुआ था। गाँधी जी का पूरा नाम मोहनदास करमचन्द गाँधी था। गाँधी जी के पिता का नाम करमचन्द गाँधी था और उनकी माता का नाम पुतलीबाई गाँधी था।
प्रारंभिक शिक्षा : गाँधी जी की प्रारम्भिक शिक्षा पोरबन्दर में हुई थी। अपनी कक्षा में वे एक साधारण विद्यार्थी थे। गाँधी जी अपने सहपाठियों से बहुत कम बोलते थे लेकिन अपने शिक्षकों का पूरा आदर करते थे। गाँधी जी ने मैट्रिक की परीक्षा अपने स्थानीय विद्यालय से उत्तीर्ण की थी।
विवाह : गाँधी जी जब 13 साल की उम्र के थे और स्कूल में पढ़ते थे तब उनका विवाह पोरबंदर के एक व्यापारी की पुत्री कस्तूरबा देवी जी से हुआ था।
स्वदेश आगमन : सन् 1915 में गाँधी जी भारत लौटे थे। उस समय पर अंग्रेज बहुत तेजी से भारत का दमन कर रहे थे। रोलैक्त एक्ट जैसे काले कानून को भी उसी समय पर लागू किया गया था।
भारत छोड़ो आन्दोलन : द्वितीय विश्वयुद्ध का अंत सन् 1942 में हुआ था। जब अंग्रेज अपने दिए हुए वचन से पीछे हट रहे थे तो उन्होंने ” अंग्रेजो! भारत छोड़ो ” का नारा लगाया था। गाँधी जी ने यह कहा था कि यह मेरी अंतिम लड़ाई है।
स्वतंत्रता प्राप्ति : जब सन् 1920 में तिलक जी का निधन हो गया था उसके बाद स्वतंत्रता आन्दोलन का पूरा भार गाँधी जी पर आ गया था। वे आन्दोलन का पूर्ण संचालन अहिंसा की नीतियों पर चलकर करने लगे थे। इसी समय पर उन्होंने देश में असहयोग आन्दोलन को चलाया था जिसमें हजारों की संख्या में वकील , शिक्षक , विद्यार्थी , व्यापारी शामिल हुए।
महान बलिदान : गाँधी जी जब तक जीवित रहे थे तब तक देश के उद्धार के लिए कार्य करते रहे थे। बहुत से लोग गाँधी जी की हिन्दू-मुस्लिम एकता की भावना के विरुद्ध थे। गाँधी जी जब 30 जनवरी , 1948 को दिल्ली में स्थित बिरला भवन की प्रार्थना सभा में आ रहे थे तो नाथूराम गोडसे नामक व्यक्ति ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी।
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Mahatma Gandhi Essay in hindi | महात्मा गांधी पर निबंध
Mahatma Gandhi Essay in hindi – महात्मा गांधी पर निबंध : जैसा कि पोस्ट के टाइटल से ही स्पष्ट हो जाता है कि आज हम महात्मा गांधी जी के बारे मे बात करने वाले हैं। आज की इस पोस्ट में हम महात्मा गांधी के बारे में हर प्रकार के निबंध जैसे “महात्मा गांधी पर निबंध 100 शब्दों में”, “Mahatma Gandhi par nibandh 150 shabdon me”, “महात्मा गांधी पर निबंध 200 शब्दों में”, “Mahatma Gandhi par nibandh 250 shabdon me”, “महात्मा गांधी पर निबंध 300 शब्दों में”, “Mahatma Gandhi par nibandh 400 shabdon me”, “महात्मा गांधी पर निबंध 500 शब्दों में”, महात्मा गांधी पर निबंध 1000 शब्दों में प्रदान करेंगे जिससे की सभी कक्षाओं के Students उनके अनुसार निबंध लिख सके।
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महात्मा गांधी निबंध 10 लाइन में Mahatma Gandhi Essay 10 Lines in Hindi – Set 1
- महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को पोरबंदर, गुजरात, भारत में हुआ था।
- महात्मा गांधी जी के पिता का नाम करमचंद गांधी था और उनकी माता का नाम पुतलीबाई था
- वह करमचंद गांधी और पुतलीबाई के सबसे छोटे पुत्र थे।
- गांधी की शिक्षा पोरबंदर और राजकोट में हुई थी।
- 1887 में, वे कानून का अध्ययन करने के लिए इंग्लैंड गए।
- 1891 में भारत लौटने के बाद, उन्होंने बंबई में कानून का अभ्यास शुरू किया।
- 1893 में, वह एक अदालती मामले में एक मुस्लिम मुवक्किल का प्रतिनिधित्व करने के लिए दक्षिण अफ्रीका गए।
- दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए, वे नस्लीय भेदभाव के खिलाफ भारतीय प्रवासियों के संघर्ष में शामिल हो गए।
- उन्होंने अहिंसक प्रतिरोध, या सत्याग्रह के दर्शन को विकसित किया, जिसका उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में बहुत प्रभाव डाला।
- 30 जनवरी, 1948 को एक हिंदू उग्रवादी द्वारा गांधी की हत्या कर दी गई थी।
महात्मा गांधी पर निबंध 10 लाइन में Mahatma Gandhi Essay in Hindi 10 Lines – Set 2
- महात्मा गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को हुआ था।
- महात्मा गांधी जी को मोहनदास करमचंद गांधी के नाम से भी जाना जाता है
- उनका जन्म पोरबंदर, गुजरात में हुआ था।
- उनके माता-पिता करमचंद गांधी और पुतलीबाई थे।
- उनका विवाह कस्तूरबा गांधी से हुआ था।
- उन्हें भारत के पिता के रूप में जाना जाता है।
- उन्होंने ब्रिटिश शासन से भारत की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी।
- उन्होंने अहिंसा को अपने हथियार के रूप में इस्तेमाल किया।
- उन्हें भारत का सबसे महान नेता माना जाता है।
- उन्हें उनकी शांति और प्यार के लिए याद किया जाता है।
महात्मा गांधी पर निबंध 100 शब्दों में Mahatma Gandhi Essay in 100 Words.
महात्मा गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। उन्होंने ब्रिटिश नियंत्रण से भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभाई। भारत लौटने से पहले उन्होंने लंदन में कानून की पढ़ाई की। 1893 में, वह एक अदालती मामले में एक मुस्लिम मुवक्किल का प्रतिनिधित्व करने के लिए दक्षिण अफ्रीका गए। दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए, महात्मा गांधी जी नस्लीय भेदभाव के खिलाफ भारतीय डायस्पोरा के संघर्ष में शामिल हुए। उन्होंने विरोध और हड़तालों का आयोजन किया, और उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में पहली भारतीय राजनीतिक संस्था, नेटाल इंडियन कांग्रेस की भी स्थापना की।
वर्ष 1915 में, गांधी जी भारत लौट आए और जल्द ही स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए। उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध का नेतृत्व किया और उन्होंने ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार भी किया। गांधी के अहिंसक प्रतिरोध के तरीके 1947 में भारतीय स्वतंत्रता जीतने में सफल रहे।
गांधी जी की हत्या 1948 में एक हिन्दू ने की थी। उनकी विरासत अभी भी दुनिया भर के लोगों को प्रेरित करती है। उन्हें समकालीन भारत का संस्थापक माना जाता है।
महात्मा गांधी पर निबंध 150 शब्दों में Mahatma Gandhi Essay in 150 Words.
महात्मा गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर, गुजरात में एक हिंदू परिवार में हुआ था और उनकी जन्मतिथि को भारत में राष्ट्रीय अवकाश के रूप में मनाया जाता है। उनके पिता पोरबंदर के मुख्यमंत्री थे।
जब महात्मा गांधी जी 13 वर्ष के थे, तब उनका विवाह कस्तूरबा माखनजी से हुआ था, और उनके 4 पुत्र हुए। महात्मा गांधी जी नागरिक अधिकार प्राप्त करने के लिए अहिंसा के मार्ग पर चले। वह बहुत विनम्र और विनम्र व्यक्ति थे। वह ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार के खिलाफ राष्ट्रवादी आंदोलन के महान नेता बने।
उन्होंने 1891 में लंदन विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की और भारत वापस आ गए। गांधी जी एक भारतीय वकील, सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक और एक महान राजनीतिक नेता थे। गांधी जी ने सत्याग्रह, दांडी के लिए नमक मार्च किया। सत्याग्रह अहिंसक प्रतिरोध या नागरिक प्रतिरोध का एक रूप है जो सत्य की शक्ति पर जोर देता है। 1930 में 12 मार्च से 6 अप्रैल तक सत्याग्रह चला। 30 जनवरी 1948 की तारीख को उनका निधन हो गया।
महात्मा गांधी पर निबंध 300 शब्दों में Mahatma Gandhi Essay in 300 Words
2 अक्टूबर, 1869, महात्मा गांधी जी का जन्म भारत के पोरबंदर में हुआ था, उनके पिता का नाम करम चंद गांधी जी था। महात्मा गांधी जी का पूरा नाम मोहन दास करमचंद गांधी जी था। इनकी माता का नाम पुतली बाई था। राजकोट में स्कूल जाने से पहले, महात्मा गांधी जी पोरबंदर में पढ़े थे। महात्मा ने कभी झूठ नहीं बोला, तब भी नहीं जब वे युवा थे। 18 साल की उम्र में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की।
13 साल की उम्र में कस्तूरबा और मोहन दास की शादी हो गई। गांधी जी कानून का अध्ययन करने के लिए इंग्लैंड गए और अंततः बैरिस्टर के रूप में स्नातक हुए। इंग्लैंड में भी, उन्होंने काफी सीधा जीवन व्यतीत किया। कानून की डिग्री हासिल करने के बाद वे भारत लौट आए।
गांधी जी ने अपने पेशेवर जीवन की शुरुआत एक वकील के रूप में की थी। एक कानूनी लड़ाई के दौरान, उन्होंने दक्षिण अफ्रीका की यात्रा की। उन्होंने स्थानीय मूल अमेरिकियों की स्थिति का अवलोकन किया। गोरे लोगों ने उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया। उन्हें विशिष्ट स्थानों, क्लबों और अन्य प्रतिष्ठानों में जाने के साथ-साथ रेलमार्गों पर प्रथम श्रेणी में यात्रा करने से मना किया गया था। एक बार प्रथम श्रेणी में ट्रेन में सवार होने के दौरान गांधी जी पर हमला किया गया था और उन्हें गाड़ी से बाहर फेंक दिया गया था। अहिंसा और सत्याग्रह आंदोलन तब महात्मा द्वारा सभी भारतीयों को एक साथ लाने के प्रयास में शुरू किया गया था। आंदोलन ने तेजी से गति पकड़ी।
गांधी जी अपने देश लौटने के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में फिर से शामिल हो गए। उन्होंने यहां अहिंसा और असहयोग आंदोलनों की भी शुरुआत की। उन्होंने भारत के हर हिस्से का दौरा किया। वंचितों की स्थितियों को देखने के लिए, उन्होंने पूरे भारत में, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर दौरा किया।
रौलट एक्ट का विरोध करने के लिए महात्मा गांधी जी द्वारा जलियाँ-वाला-बाग में गोलीबारी और सत्याग्रह आंदोलन दोनों शुरू किए गए थे। कई विपत्तियों के बाद, अधिनियम बनाया गया था। नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलनों की शुरुआत उनके द्वारा की गई थी। आखिरकार गांधी जी ने हमें आजादी दिलाई। 15 अगस्त, 1947 को भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई। “राष्ट्रपिता” की उपाधि उन्हें दी गई है। नाथूराम गोडसे, एक कट्टरपंथी हिंदू, ने दुर्भाग्य से 30 जनवरी, 1948 को गांधी जीजी को गोली मार दी।
महात्मा गांधी पर निबंध 400-500 शब्दों में Mahatma Gandhi Essay in 400 – 500 Words
महात्मा गांधी जी को भारतीय राष्ट्रपिता के रूप में जाना जाता है, वे एक प्रतिष्ठित नेता, दार्शनिक और समाज सुधारक थे। ब्रिटिश शासन से भारत की आजादी के लिए उनका अहिंसक संघर्ष दुनिया भर में शांतिपूर्ण प्रतिरोध का प्रतीक बन गया। यहां हम महात्मा गांधी जी के जीवन, शिक्षाओं और विरासत पर 400 शब्दों में महात्मा गांधी निबंध प्रदान कर रहे हैं, जो अहिंसा के माध्यम से प्रेरक परिवर्तन में उनकी भूमिका पर जोर देते हैं।
महात्मा गांधी जी का प्रारंभिक जीवन:
2 अक्टूबर, 1869 को पोरबंदर, गुजरात में जन्मे, मोहनदास करमचंद गांधी जी का पालन-पोषण एक पारंपरिक हिंदू परिवार में हुआ था। कानून की शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने दक्षिण अफ्रीका की यात्रा की, जहाँ उन्होंने पहली बार भारतीय समुदाय के साथ होने वाले भेदभाव का अनुभव किया। इन अनुभवों ने अन्याय और असमानता के खिलाफ लड़ने के उनके दृढ़ संकल्प को हवा दी।
अहिंसक प्रतिरोध:
महात्मा गांधी जी राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन प्राप्त करने के साधन के रूप में अहिंसा की शक्ति में दृढ़ता से विश्वास करते थे। उनका दर्शन, जिसे सत्याग्रह के रूप में जाना जाता है, शांतिपूर्ण प्रतिरोध के पीछे ड्राइविंग बलों के रूप में सत्य, प्रेम और करुणा की वकालत करता है। गांधी जी के सिद्धांतों ने हिंसा और उत्पीड़न से मुक्त समाज बनाने के उद्देश्य से व्यक्तियों और समुदायों के नैतिक और आध्यात्मिक जागरण पर जोर दिया।
नमक मार्च और सविनय अवज्ञा (Salt March and Civil Disobedience):
गांधी जी के सविनय अवज्ञा के सबसे प्रसिद्ध कृत्यों में से एक नमक मार्च था, जो 1930 में हुआ था। नमक पर ब्रिटिश एकाधिकार के विरोध में, गांधी जी ने अनुयायियों के एक समूह का नेतृत्व करते हुए अरब सागर की 240 मील की यात्रा की, जहां उन्होंने समुद्री जल को वाष्पित करके अपना नमक बनाया। इस अधिनियम ने ब्रिटिश नमक कानूनों का उल्लंघन किया और भारतीय आबादी को प्रेरित किया, ब्रिटिश शासन के खिलाफ व्यापक सविनय अवज्ञा को प्रेरित किया।
भारतीय स्वतंत्रता के चैंपियन:
स्वतंत्रता के लिए भारतीय जनता को लामबंद करने में गांधी जी का नेतृत्व और अथक प्रयास महत्वपूर्ण थे। अहिंसक प्रतिरोध की अपनी रणनीति के माध्यम से, उन्होंने धर्म, जाति और वर्ग की बाधाओं को पार करते हुए विविध पृष्ठभूमि के लोगों को एकजुट किया। गांधी जी की न्याय और समानता के प्रति अटूट प्रतिबद्धता ने लाखों भारतीयों को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने और ब्रिटिश कब्जे का शांतिपूर्वक विरोध करने के लिए प्रेरित किया।
विरासत और वैश्विक प्रभाव:
महात्मा गांधी जी की विरासत भारत की सीमाओं से बहुत आगे तक फैली हुई है। उनके दर्शन और अहिंसक प्रतिरोध के तरीकों ने कई नागरिक अधिकार आंदोलनों को प्रभावित किया और मार्टिन लूथर किंग जूनियर, नेल्सन मंडेला और आंग सान सू की जैसे नेताओं को प्रेरित किया। अहिंसा, सांप्रदायिक सद्भाव और मानवाधिकारों पर गांधी जी की शिक्षाएं प्रासंगिक बनी हुई हैं और दुनिया भर में सामाजिक न्याय और शांति के लिए प्रयास करने वाले व्यक्तियों और आंदोलनों को प्रेरित करती हैं।
संघर्ष और विभाजन से चिह्नित दुनिया में, महात्मा गांधी जी के अहिंसा और शांतिपूर्ण प्रतिरोध के सिद्धांत एक मार्गदर्शक प्रकाश के रूप में काम करते हैं। सत्य, न्याय और समानता के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता जीवन के सभी क्षेत्रों के लोगों के साथ प्रतिध्वनित होती रहती है। अपने निःस्वार्थ कार्यों से उन्होंने यह साबित कर दिया कि हिंसा का सहारा लिए बिना वास्तविक परिवर्तन प्राप्त किया जा सकता है।
Also Read: Biography of Mahatma Gandhi in English
महात्मा गांधी पर निबंध 1000 शब्दों में Mahatma Gandhi Essay in 1000 Words.
महात्मा गांधी जी, भारतीय इतिहास में एक सम्मानित व्यक्ति हैं, वे देश के स्वतंत्रता आंदोलन को आकार देने और अहिंसा, शांति और समानता के आदर्शों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण थे। यहां हम 1000 शब्दों में महात्मा गांधी जी पर एक निबंध की खोज करेंगे। हम उनकी शिक्षाओं के महत्व, नेतृत्व के प्रति उनके दृष्टिकोण और पीढ़ियों को प्रेरित करने वाली उनकी स्थायी विरासत के बारे में जानेंगे।
महात्मा गांधी जी कौन थे?
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा.
मोहनदास करमचंद गांधी जी, जिन्हें आमतौर पर महात्मा गांधी जी के नाम से जाना जाता है, का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को पोरबंदर, गुजरात, भारत में हुआ था। उनका पालन-पोषण एक समर्पित हिंदू परिवार में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा भारत में प्राप्त की और बाद में लंदन, इंग्लैंड में कानून का अध्ययन किया। गांधी जी के पालन-पोषण और शिक्षा ने उनके विश्वदृष्टि को आकार देने और ईमानदारी, करुणा और न्याय के मूल्यों को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रभाव और परिवर्तनकारी अनुभव
इंग्लैंड में रहने के दौरान, गांधी जी को विभिन्न अनुभवों का सामना करना पड़ा जिसने उनके दृष्टिकोण को गहराई से प्रभावित किया। उन्होंने पहली बार नस्लीय भेदभाव का सामना किया, जिससे सभी प्रकार के अन्याय और उत्पीड़न के खिलाफ लड़ने की उनकी प्रतिबद्धता जगी। इसके अतिरिक्त, गांधी जी ने लियो टॉल्स्टॉय और हेनरी डेविड थोरो जैसे महत्वपूर्ण बुद्धिजीवियों से भी प्रेरणा ली, जिनकी अहिंसा और सविनय अवज्ञा में विश्वास ने उन पर एक स्थायी प्रभाव डाला।
महात्मा गांधी जी के आदर्श और शिक्षाएं
अहिंसा: अहिंसा एक हथियार के रूप में.
महात्मा गांधी जी के दर्शन का केंद्र अहिंसा या अहिंसा का सिद्धांत था। उनका मानना था कि हिंसा केवल अधिक हिंसा को जन्म देती है और यह कि सच्चा परिवर्तन केवल शांतिपूर्ण तरीकों से ही प्राप्त किया जा सकता है। गांधी जी की अहिंसा के प्रति अटूट प्रतिबद्धता औपनिवेशिक शासन और सामाजिक अन्याय के खिलाफ उनकी लड़ाई में एक शक्तिशाली उपकरण बन गई। प्रत्येक मनुष्य के निहित मूल्य और गरिमा में उनके विश्वास ने उनकी शिक्षाओं की नींव रखी।
सत्याग्रह: सत्य की शक्ति
सत्याग्रह, जिसका अर्थ है “सत्य बल” या “आत्मा बल”, गांधी जी की शिक्षाओं का एक और मूलभूत पहलू था। उन्होंने अन्याय का सामना करने और चुनौती देने के लिए अहिंसक प्रतिरोध के उपयोग की वकालत की। सत्याग्रह में निष्क्रिय प्रतिरोध, सविनय अवज्ञा और अपने विश्वासों के लिए पीड़ित होने की इच्छा शामिल थी। सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों का पालन करके, गांधी जी का उद्देश्य समाज के नैतिक विवेक को जगाना और अत्याचारियों को अपने तरीके बदलने के लिए मजबूर करना था।
स्वराजः स्वशासन और स्वतंत्रता
महात्मा गांधी जी स्वराज की अवधारणा में दृढ़ता से विश्वास करते थे, जिसका अनुवाद “स्व-शासन” या “स्व-शासन” के रूप में किया जाता है। उन्होंने एक ऐसे समाज की कल्पना की, जहां व्यक्तियों के पास खुद पर शासन करने की शक्ति हो, जो बाहरी प्रभुत्व से मुक्त हो। गांधी जी की स्वराज की दृष्टि राजनीतिक स्वतंत्रता से परे थी; उन्होंने व्यक्तिगत और सामुदायिक दोनों स्तरों पर आत्म-अनुशासन, आत्मनिर्भरता और आत्मनिर्भरता के महत्व पर जोर दिया। गांधी जी के लिए स्वराज केवल भारत तक ही सीमित नहीं था, बल्कि सभी के कल्याण और सशक्तिकरण को शामिल करता था।
सर्वोदय : सबका कल्याण
सर्वोदय, जिसका अर्थ है “सभी का उत्थान,” महात्मा गांधी जी द्वारा प्रतिपादित एक अवधारणा थी। उनका मानना था कि सच्ची प्रगति और विकास तभी प्राप्त किया जा सकता है जब समाज के सबसे कमजोर सदस्यों के कल्याण को प्राथमिकता दी जाए। गांधी जी ने गरीबी, भेदभाव और असमानता के मुद्दों को संबोधित करते हुए सामाजिक और आर्थिक समानता की वकालत की। प्रत्येक व्यक्ति की भलाई और गरिमा पर उनका जोर एक न्यायपूर्ण और समावेशी समाज बनाने की उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
महात्मा गांधी की नेतृत्व शैली
उदाहरण द्वारा लीड करें: वाकिंग द टॉक.
उदाहरण के लिए नेतृत्व करने की महात्मा गांधी जी की क्षमता उनके सबसे उत्कृष्ट नेतृत्व गुणों में से एक थी। उनका मानना था कि नेताओं को उन मूल्यों को धारण करना चाहिए जिनका वे समर्थन करते हैं और जो वे उपदेश देते हैं उसका अभ्यास करना चाहिए। सादगी, विनम्रता और अहिंसा के प्रति प्रतिबद्धता सहित गांधी जी के व्यक्तिगत जीवन शैली विकल्पों ने उनके अनुयायियों के लिए एक शक्तिशाली उदाहरण के रूप में कार्य किया। अपने सिद्धांतों के अनुरूप जीवन जीकर, गांधी जी ने दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित किया और केवल शब्दों के बजाय अपने कार्यों के माध्यम से नेतृत्व किया।
समावेशी नेतृत्वः वंचितों का सशक्तिकरण
गांधी जी के नेतृत्व में समावेशिता और समाज के हाशिए के वर्गों को सशक्त बनाने पर एक मजबूत ध्यान केंद्रित किया गया था। उन्होंने उस समय भारतीय समाज में प्रचलित पदानुक्रम और सामाजिक विभाजन को खत्म करने की मांग की। गांधी जी ने स्वतंत्रता और सामाजिक सुधार की लड़ाई में जाति, धर्म या लिंग की परवाह किए बिना जीवन के सभी क्षेत्रों के लोगों को सक्रिय रूप से शामिल किया। हाशिए पर पड़े लोगों को आवाज देकर, गांधी जी ने मौजूदा सत्ता संरचनाओं को चुनौती दी और एक अधिक समतामूलक समाज का मार्ग प्रशस्त किया।
सुनना और संवाद: संघर्षों को शांतिपूर्ण ढंग से हल करना
अहिंसक समाधानों की अपनी खोज में, गांधी जी ने बातचीत को सुनने और उसमें शामिल होने के महत्व पर जोर दिया। उनका मानना था कि सच्ची समझ केवल सम्मानजनक संचार और सक्रिय श्रवण से ही उभर सकती है। गांधी जी ने शांतिपूर्ण वार्ताओं को प्रोत्साहित किया और महत्वपूर्ण असहमतियों के बावजूद भी आम जमीन तलाशने की कोशिश की। संवाद और शांतिपूर्ण संघर्ष समाधान को बढ़ावा देकर, उन्होंने स्थायी परिवर्तन लाने में कूटनीति और अनुनय की शक्ति का प्रदर्शन किया।
महात्मा गांधी जी और भारत की आजादी
नमक मार्चः सविनय अवज्ञा का प्रतीक.
भारतीय स्वतंत्रता के लिए महात्मा गांधी जी की लड़ाई में सबसे प्रतिष्ठित घटनाओं में से एक नमक मार्च था, जिसे दांडी मार्च भी कहा जाता है। 1930 में, गांधी जी और अनुयायियों के एक समूह ने तटीय शहर दांडी की 240 मील की यात्रा शुरू की। उनका उद्देश्य समुद्री जल से नमक का उत्पादन करके ब्रिटिश नमक एकाधिकार को चुनौती देना था। सविनय अवज्ञा के इस कृत्य ने व्यापक ध्यान आकर्षित किया और पूरे देश में विरोध की लहर दौड़ गई। नमक मार्च औपनिवेशिक शासन के खिलाफ अवज्ञा का प्रतीक बन गया और लाखों भारतीयों के बीच प्रतिरोध की भावना को प्रज्वलित कर दिया।
भारत छोड़ो आंदोलन: राष्ट्र को एक करना
1942 में, महात्मा गांधी जी ने भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की, अंग्रेजों से भारत छोड़ने का आग्रह किया। इस सामूहिक सविनय अवज्ञा अभियान का उद्देश्य ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक संयुक्त मोर्चा बनाना था। इस आंदोलन ने लाखों भारतीयों को हड़तालों, विरोध प्रदर्शनों और असहयोग के कार्यों में सक्रिय रूप से भाग लेते देखा। जबकि ब्रिटिश अधिकारियों ने बलपूर्वक जवाब दिया, गांधी जी और अन्य नेताओं को कैद कर लिया, भारत छोड़ो आंदोलन ने स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष में एक महत्वपूर्ण मोड़ दिया। इसने स्वतंत्रता की लड़ाई में भारतीय लोगों के अटूट दृढ़ संकल्प और एकता को प्रदर्शित किया।
विभाजन और गांधी जी की सद्भावना की वकालत
1947 में भारत का विभाजन, जिसके परिणामस्वरूप भारत और पाकिस्तान का निर्माण हुआ, एक अत्यंत विभाजनकारी और दुखद घटना थी। बढ़ते सांप्रदायिक तनाव और हिंसा के बीच, महात्मा गांधी जी ने शांति, सद्भाव और धार्मिक एकता की अथक वकालत की। उन्होंने सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देने और हिंसा को रोकने के लिए उपवास किया और प्रार्थना सभाओं में भाग लिया। गांधी जी का दृढ़ विश्वास था कि हिंदू और मुसलमान एक साझा समाज में सह-अस्तित्व में रह सकते हैं और सक्रिय रूप से सुलह और समझ की दिशा में काम किया। अपार चुनौतियों के बावजूद, अहिंसा और सांप्रदायिक सद्भाव के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने राष्ट्र पर स्थायी प्रभाव छोड़ा।
दुनिया पर महात्मा गांधी जी का प्रभाव
नागरिक अधिकार आंदोलनों के लिए प्रेरणा.
महात्मा गांधी जी के अहिंसा और सविनय अवज्ञा के सिद्धांतों ने दुनिया भर में कई नागरिक अधिकार आंदोलनों को प्रेरित किया। संयुक्त राज्य अमेरिका में मार्टिन लूथर किंग जूनियर, दक्षिण अफ्रीका में नेल्सन मंडेला और म्यांमार में आंग सान सू की जैसे नेताओं ने गांधी जी के शांतिपूर्ण प्रतिरोध के तरीकों से प्रेरणा ली। गांधी जी की विरासत नस्लीय भेदभाव, रंगभेद और दमनकारी शासन के खिलाफ लड़ने वालों के लिए एक मार्गदर्शक बन गई। उनकी शिक्षाएँ न्याय, समानता और मानवाधिकारों के लिए प्रयासरत व्यक्तियों और आंदोलनों के साथ प्रतिध्वनित होती रहती हैं।
वैश्विक नेताओं पर प्रभाव
महात्मा गांधी जी का प्रभाव आंदोलनों से परे फैला और वैश्विक नेतृत्व के उच्चतम सोपानों तक पहुंचा। मार्टिन लूथर किंग जूनियर जैसे नेताओं ने गांधी जी को एक आदर्श माना और उनके सिद्धांतों का अनुकरण करने की मांग की। गांधी जी के आदर्शों ने नेल्सन मंडेला जैसी विश्व विभूतियों को प्रभावित किया, जिन्होंने अहिंसा को परिवर्तन के लिए एक शक्तिशाली शक्ति के रूप में देखा। उनके शांतिपूर्ण प्रतिरोध के दर्शन और नैतिक नेतृत्व पर उनके जोर ने विभिन्न महाद्वीपों और पीढ़ियों के नेताओं की सोच और कार्यों को आकार दिया है।
आधुनिक दुनिया में विरासत
महात्मा गांधी जी की विरासत आज भी आधुनिक दुनिया में प्रासंगिक है। अहिंसा, सत्य और सामाजिक न्याय पर उनका जोर संघर्ष और असमानता से चिह्नित युग में बहुत महत्व रखता है। गांधी जी की शिक्षाएं व्यक्तियों को शांतिपूर्ण तरीकों से अन्याय का सामना करने, सहानुभूति को बढ़ावा देने और संवाद को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित करती हैं। एक सामंजस्यपूर्ण और समावेशी समाज की उनकी दृष्टि प्रेम, करुणा और नैतिक साहस की परिवर्तनकारी शक्ति की निरंतर याद दिलाती है।
महात्मा गांधी के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
महात्मा गांधी का जन्म कब और कहाँ हुआ.
महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर गाँव में हुआ था।
महात्मा गांधी का नारा क्या है?
8 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन छेड़ते समय महात्मा गांधी द्वारा ‘ करो या मरो’ का नारा दिया गया था।
महात्मा गांधी का निधन कब हुआ?
महात्मा गांधी का निधन 30 जनवरी 1948 को हुआ।
महात्मा गांधी का पूरा नाम क्या है?
महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी है।
महात्मा गांधी ने कितने आंदोलन किए थे?
महात्मा गांधी ने 6 प्रमुख आंदोलन किए थे?
1. चंपारण आंदोलन (1917) 2. खेड़ा आंदोलन (1918) 3. खिलाफत आंदोलन (1919) 4. असहयोग आंदोलन (1920) 5. सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930) 6. भारत छोड़ो आंदोलन (1942)
महात्मा गांधी की मृत्यु किसने की थी?
महात्मा गांधी की हत्या नाथूराम गोडसे (नाथूराम गोडसे) ने गोली मार कर की थी।
महात्मा गाँधी की मृत्यु कहाँ हुई थी?
महात्मा गांधी की मृत्यु नई दिल्ली में स्थित बिरला हाउस में हुई थी जिसे अब गांधी स्मृति के नाम से जाना जाता है
महात्मा गांधी की मां का क्या नाम था?
महात्मा गांधी की मां का नाम पुतलीबाई था।
महात्मा गांधी ने कौन कौन सी पुस्तक लिखी है?
- हिन्द स्वराज
- प्रकृति इलाज
- ग्राम स्वराज
- गीता का संदेश
- सच्चाई भगवान है
- कानून और वकील
- मेरे सपनों का भारत
- दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह
- सांप्रदायिक सद्भावना का रास्ता
- पंचायत राज भगवान के लिए मार्ग हिंदू धर्म का सार
महात्मा गांधी को ‘राष्ट्रपिता’ क्यों कहा जाता है?
महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता के रूप में जाना जाता है क्योंकि उन्हें अपने आदर्शों और सर्वोच बलिदानों के साथ स्वतंत्रता भारत की वास्तविक छाया राखी है।
महात्मा गांधी को सर्वप्रथम बापू किसने कहा था?
महात्मा गांधी को सर्वप्रथम बापू चंपारण के राजकुमार शुक्ला ने कहा था। जो की एक किसान थे। अंग्रेजों के द्वारा किए गए अत्याचारों के खिलाफ बापूजी के आंदोलन की शुरुआत चंपारण से ही हुई थी। बापू को चंपारण बुलाने में सबसे बड़ा योगदान चंपारण के किसान राजकुमार शुक्ला का माना जाता है।
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कृष्णभक्त सन्त कवि सूरदास मेरे सर्वप्रिय कवि हैं। सूरदास आजीवन श्रीनाथ जी के मन्दिर में भजन-कीर्तन करते रहे। अपने कृष्ण-लीलाओं के पदों के बल पर अपने समय की ही नहीं, आज भी भारतीय जनता के कष्टहार हैं। पाँच-सौ वर्ष बीत जाने पर भी सूरदास के पद भक्त और काव्य प्रेमी आनन्द-विभोर और रस-मग्न कर रहे हैं ।
परिचय अधिकतर विद्वान सूरदास का जन्म संवत् 1535 में दिल्ली के पास सीही गाँव में हुआ मानते हैं, कुछ लोग आगरा-मथुरा के बीच रुणकता गाँव को उनकी जन्मभूमि कहते हैं। सूरदास जन्म से अन्धे थे या बाद में अन्धे हुए, इस विषय में विवाद है। रूप-रंग, शरीर के विभिन्न अंगों, प्रकृति के पदार्थों और दृश्यों, वेषभूषा तथा सुन्दरता आदि का जैसा वर्णन सूरदास के पदों में मिलता है, उसे पढ़-सुनकर यही लगता है कि सूरदास बाद में अन्धे हुए होंगे। सूरदास की शिक्षा आदि के विषय में भी कुछ नहीं कहा जा सकता, केवल इतना ही ज्ञात है कि वे वल्लभाचार्य के शिष्य थे और उन्हीं की प्रेरणा से कृष्ण लीलाओं के मधुर गीत गाने आरम्भ किए थे।
सूरदास की तीन रचनाएँ कही जाती हैं—सूरसागर, साहित्यलहरी और सूर- सारावली। इसमें ‘सूरसागर’ उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना है। कहते हैं सूरसागर में कृष्ण की बाललीला, सौन्दर्य और प्रेमलीलाओं के सवा लाख पद थे, परन्तु आजकल लगभग जो छः हजार पद मिलते हैं, वे भी उनकी अक्षय कीर्ति के लिए कम नहीं हैं।
बच्चों के स्वभाव तथा उनके खेल-कूद, चंचल क्रीड़ाओं के जैसे स्वाभाविक, सच्चे और मोहक चित्र सूरदास ने प्रस्तुत किए हैं, वैसे संसार का और कवि नहीं कर सका। इसके साथ ही माँ के हृदय को भी उन्होंने अपने पदों में ज्यों का त्यों रख दिया है।
उदाहरण के लिए- (क) चन्द खिलौना लेहि हौं । (ख) कज़री को पय पियहु लला तेरी चोटी बढ़े । (ग) मैया कबहुँ बढ़े भी चोटी ? घ) मैया मैं नहीं माखन खायो । (ङ) डारि साँरि मुस्काय जसोदा हरि को कण्ठ लगाये । (च) रुटि करै तासों को खेले ?
जैसे पदों को देखा जा सकता है। इसीलिए कहा गया है “सूर जैसा वात्सल्य- स्नेह का भावुक चित्रकार न हुआ है न होगा ।”
राधा-कृष्ण और गोपियों की प्रेम लीलाओं का वर्णन भी बहुत मोहक और हृदयहारी है ।
सूर सागर का एक अंश ‘भ्रमर गीत’ बहुत प्रसिद्ध है । भ्रमरगीत में गोपियों और उद्धव के बीच हुए वार्तालाप के माध्यम से वियोग शृंगार का वर्णन है । ब्रज भाषा का जितना कोमल और सुन्दर रूप सूरदास ने प्रस्तुत किया है, वैसा कहीं और देखने से नहीं मिलता । संगीत सूरदास के पदों की बड़ी विशेषता है । वे शास्त्रीय संगीत की हर कसौटी पर खरे उतरते हैं ।
कहा जा सकता है कि सूरदास भक्त-शिरोमणि हैं, वात्सल्य और शृंगार के बेजोड़ कवि तथा संगीताचार्यों के आदर्श हैं।
Essay on Surdas in Hindi
Essay on Tulsidas in Hindi
( Essay -3 ) Mera Priya Kavi Nibandh | मेरे प्रिय कवि पर निबंध हिंदी में
सूर-सूर तुलसी ससी, उडगन केशवदास । अब के कवि खद्योत सम, जँह तँह करें प्रकाश ।।
सूरदास जी को हिन्दी में सूर्य के समान स्थान प्राप्त है।
मैंने अब तक हिन्दी में सूरदास, कबीर दास, रहीम, सुभद्राकुमारी चौहान आदि कुछ ही कवियों की कविताएँ पढ़ी हैं। मैंने आकाशवाणी से प्रसारित होने वाले सूरदास तथा मीराबाई के भजन भी सुने हैं। मुझे इन सबमें सूरदास की कविता ही सबसे अच्छी लगी है। सूरदास मेरे ही नहीं हिन्दी के असंख्य पाठकों के प्रिय कवि हैं।
मेरे प्रिय कवि सूरदास का जन्म संवत् 1535 में दिल्ली के निकट सीही नामक गाँव में हुआ था। यह गाँव आजकल हरियाणा प्रदेश में है। सूरदास जन्म से ही अन्धे थे या बाद में अन्धे हुए इस विषय में बहुत मतभेद है। कुछ साहित्यकार इन्हें जन्म से अन्धा मानते हैं। इनके साहित्य में बाल-लीला तथा प्रकृति के सजीव चित्रण को देखकर साहित्यकारों का कहना है कि जन्मांध इस प्रकार का चित्रण नहीं कर सकता, परन्तु जो इन्हें जन्मांध मानते हैं उनका तर्क है कि इतना तो सब मानते हैं कि जब सूरदास श्रीनाथ के मन्दिर में थे तब वे अन्धे थे। जो व्यक्ति अन्धा होते हुए भगवान के दर्शन कर सकता है वह अपने दिव्य नेत्रों से सब कुछ देख सकता है। उसके लिए प्रकृति का सजीव चित्रण करना असम्भव नहीं। मेरे विचार से सूरदास जन्म से ही अन्धे थे।
प्रारम्भ में सूरदास जी मथुरा तथा आगरा के बीच स्थित गऊ घाट पर करुणा भरे दीनता के भजन गाया करते थे। वहीं इनकी भेंट महाप्रभु वल्लभाचार्य से हुई। वल्लभाचार्य ने इनसे कहा – “सूर इतना क्यों गिड़गिड़ाते हो, कुछ भगवान की लीलाओं का गुणगान करो। ” उन्होंने सूरदास को अपना शिष्य बनाकर वल्लभ सम्प्रदाय में दीक्षित किया तथा श्रीनाथ के मन्दिर की -अर्चना का भार सौंपा। महाप्रभु पूजा- के आदेश पर ही सूरदास जी ने कृष्ण की लीलाओं का चित्रण किया। सूरदास द्वारा रचित तीन काव्य ग्रन्थ माने जाते हैं-सूर-सागर, साहित्य लहरी तथा सूरसारावली। परन्तु इस तीनों काव्य में ‘सूरसागर’ सूरदास की अक्षय कीर्ति का कारण है। ऐसा माना जाता है कि सूरदास ने सवा लाख पद रचने का निश्चय किया था। इनके अन्तिम दिन निकट आ गए थे। अतः बाकी पदों की रचना स्वयं श्री कृष्ण ने की थी। जिन पदों में कवि का नाम ‘सूर’ के स्थान पर ‘सूर-स्याम’ लिखा हुआ है, उन्हें श्री कृष्ण द्वारा रचे माना जाता है। आज सूरदास जी के पाँच हजार के लगभग पद ही प्राप्त हैं।
सूरदास ने विनय के पदों के अतिरिक्त श्री कृष्ण की बाल-लीला तथा शृंगार के पदों की रचना भी की है। तीनों ही तरह के पदों का हिन्दी में बड़ा महत्त्व है। सूर की बाल लीला का चित्रण तो इतना सजीव है कि हिन्दी में ही नहीं विश्व की किसी भी भाषा में ऐसा चित्रण नहीं है। सूरदास को वात्सल्य सम्राट कहा जाता है। बाल-लीला के कुछ पद तो देखते ही बनते हैं :-
मैया मैं नहिं माखन खायो । भोर भयो बंसीबट भटक्यो, साँझ परे घर आयो ।
मैया, मैं तो चन्द्र खिलौना लै हों।
मैया कबहि बढ़ेगी चोटी ? किती बेर मोहि दूध पिबत भई, यह अजहूँ है छोटी।
श्रृंगार के वर्णन में सूर का संयोग और वियोग दोनों अवस्थाओं का चित्रण अनुपम बन पड़ा है। राधा कृष्ण के प्रथम मिलन का चित्रण कितना सुन्दर बन पड़ा है-
बूझत स्याम, कौन तू गोरी। कहाँ रहती काकी तू बेटी, देखी नहीं कबहुँ ब्रजकेरि । काँहे को हम ब्रज तन आवती खेलती रहती अपनी पौराण,
वियोग श्रृंगार का उदाहरण प्रस्तुत है- मधुवन तुम कत रहत हरे । विरह वियोग श्याम सुन्दर के ठाढे क्यों न जरै।
सूरदास ने अपने काव्य की रचना ब्रजभाषा में की है। सूरदास ब्रजभाषा के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। आज चार सौ वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद भी सूर के पद जन-जन के कंठाहार हैं तथा भारत की सभी भाषाओं के संगीत प्रेमी इन्हें प्रेम तथा भक्ति के साथ गाते तथा सुनते हैं।
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