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सामाजिक न्याय क्या है – Social Justice Meaning in Hindi

हिंदी असिस्टेंट ब्लॉग पर आपका फिर से स्वागत है. आज हम सामाजिक न्याय क्या है, सामाजिक न्याय के सिद्धांत, सामाजिक न्याय के मुद्दे, सामाजिक न्याय के प्रावधान, सामाजिक न्याय के तत्व, सामाजिक न्याय के महत्व, सामाजिक न्याय की स्थापना विस्तार से समझेंगे.

हमने सामाजिक न्याय से संबंधित लगभग हर टॉपिक कवर करने की कोशिश की है तो मैं आपसे यही कहूंगा कि आप या लेख पूरा पढ़ें तब आपको सामाजिक न्याय अच्छे से समझ में आ जाएगा

हमने इस लेख Social Justice Meaning in Hindi, सामाजिक न्याय क्या है को विभिन्न भागों में विभाजित कर दिया है आपके सहूलियत के लिए.

विषयों की सूची

सामाजिक न्याय जाति, नस्ल, रंग, धर्म आदि के आधार पर भेदभाव के बिना सभी के साथ समान व्यवहार को दर्शाता है. यह व्यक्ति और समाज के बीच निष्पक्ष और न्यायपूर्ण संबंध से संबंधित है.

उम्मीद है की आपको सामाजिक न्याय क्या है समझ आ गया होगा तो चलिए अब उससे जुड़ी और भी जानकारी समझते है.

सामाजिक न्याय के सिद्धांत लिखिए – Principles of Social Justice Meaning in Hindi

● संसाधनों तक पहुंच ( Access to Resources ) – संसाधनों तक पहुंच सामाजिक न्याय का एक मूलभूत सिद्धांत है और यह दर्शाता है कि विभिन्न सामाजिक आर्थिक समूहों की किस हद तक समान पहुंच है ताकि सभी के जीवन में समान शुरुआत हो. दुर्भाग्य से, समाज के कई क्षेत्रों में, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, शिक्षा, रोजगार और पर्यावरण जैसे कारकों के आधार पर समुदायों की पहुंच के विभिन्न स्तर हैं और एक स्वस्थ समाज को सेवाओं और संसाधनों की पेशकश करनी चाहिए इनमें शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, आश्रय और भोजन शामिल हैं. हालांकि, कई समाजों में असमान पहुंच है.

● समानता (Equity) – समानता(Equity) समानता(Equality) से भिन्न है. उदाहरण के लिए, कॉलेज की डिग्री पूरी करने वाला कोई छात्र हो सकता है जिसे अपने साथियों की तुलना में अधिक समर्थन और शैक्षिक संसाधनों की आवश्यकता हो सकती है और सामाजिक न्याय प्राप्त करने और सफलता के समान अवसर सुनिश्चित करने के लिए, समान संसाधन प्रदान करना महत्वपूर्ण है जिससे समाज में समानता आये जबकि “असमान” एक सख्त परिभाषा के अनुसार समानता कम असमानता वाले समाज की ओर ले जाती है.

● सह-भागिता ( Participation ) – भागीदारी व्यक्तियों के लिए उनकी भलाई को प्रभावित करने वाली नीतियों के निर्माण में भाग लेने के अवसर और मंच को संदर्भित करती है. सभी व्यक्ति समुदाय में और उनके जीवन को प्रभावित करने वाले निर्णयों में भाग लेने के हकदार हैं, और किसी भी कारण से उन्हें बाहर नहीं किया जा सकता है. सभी व्यक्तियों को समुदाय में और उनके जीवन को प्रभावित करने वाले निर्णयों में भाग लेने का अधिकार है, और किसी भी कारण से इसे बाहर नहीं किया जा सकता है और सामाजिक अन्याय तब होता है जब कुछ लोग अपनी राय व्यक्त करने में असमर्थ होते हैं.

● मानवाधिकार (Human rights ) – मानवाधिकार सामाजिक न्याय के सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांतों में से एक हैं. अधिकार उस चीज से उत्पन्न होते हैं जो हमें जीने के लिए चाहिए. मानवाधिकार और सामाजिक न्याय अनिवार्य रूप से आपस में जुड़े हुए हैं, और एक के बिना दूसरे का होना असंभव है. इस देश में, ये अधिकार उन कानूनों में प्रकट होते हैं जो बोलने की स्वतंत्रता, मतदान के अधिकार, आपराधिक न्याय सुरक्षा और अन्य बुनियादी अधिकार प्रदान करते हैं.

सामाजिक न्याय के मुद्दे – Issues of Social Justice Meaning in Hindi

● नस्लीय भेदभाव (Racial Discrimination) – आइए यहां नस्लीय भेदभाव के कुछ उदाहरण देखें.

ननस्लीय भेदभाव का एक उदाहरण गुलामी (Slavery) है. दासता, ऐसी स्थिति जिसमें एक मनुष्य दूसरे के सम्पति की तरह होता है. यह दुनिया भर में पाया जाने वाला एक सामाजिक अन्याय का मुद्दा है.

रूढ़िबद्धता (stereotyping) भी एक नस्लीय भेदभाव का उदाहरण है. रूढ़िबद्धता एक ऐसी चीज है जो किसी भी नस्लीय समूह के साथ हो सकती है और यह किसी विशेष समूह या लोगों के वर्ग के बारे में एक निश्चित, अति सामान्यीकृत विश्वास है.

● आयुवाद (Ageism) – उम्रवाद एक व्यक्ति की उम्र के आधार पर भेदभाव है और माना जाता है कि दुनिया में हर दूसरा व्यक्ति उम्रवादी दृष्टिकोण रखता है. हालांकि, इसका किसी भी अन्य प्रकार के भेदभाव के समान आर्थिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव हो सकता है. चलिए इसके कुछ उदाहरण देखे जैसे काम से, सेवाएं और सुविधाएं, अनुबंध और व्यापार और व्यावसायिक संघों में सदस्यता से वंचित किया जाना और या समाज पर बोझ के रूप में देखा जाना.

● भूख और खाद्य असुरक्षा (Hunger and food insecurity) – भूख और खाद्य असुरक्षा जटिल समस्याएं हैं, क्योंकि यह गरीबी से से जुड़ी हुई हैं और यह कोई नयी बात नहीं है ऐसी स्थिति इतिहास की शुरुआत से चली आ रही है. एक सर्वेक्षण में पाया गया कि गरीबी और भूख बहुत बड़े मुद्दे है जबकि पुरानी पीढ़ी इसे सामाजिक मुद्दों की सूची में कम रखा करती है.

● स्वास्थ्य सेवा (Healthcare) – जैसा कि आप जानते हैं, सामाजिक न्याय का अर्थ है कि सभी को समान अधिकारों और अवसरों का अधिकार है, जिसमें अच्छे स्वास्थ्य का अधिकार भी शामिल है। फिर भी, स्वास्थ्य में ऐसी असमानताएं आज भी मौजूद हैं, और ये असमानताएं अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तरों पर नीतियों और प्रथाओं का परिणाम हैं जो अन्य कारकों के साथ-साथ जाति, वर्ग, लिंग, स्थान और धन के आधार पर समुदायों के बीच अंतर करती हैं और हमें इसे बड़े पैमाने पर संबोधित करने की जरूरत है.

सामाजिक न्याय के प्रावधान – Provisions of Social Justice Meaning in Hindi

संवैधानिक प्रावधान – constitutional provision.

● अनुच्छेद 23 (Article 23) – सामाजिक न्याय के संदर्भ में, संविधान के प्रारूप के अनुसार मानव तस्करी और जबरन मजदूरी पर प्रतिबंध है.

● अनुच्छेद 24 (Article 24) – सामाजिक न्याय के संदर्भ में, संविधान के प्रारूप के अनुसार बाल श्रमिक को काम करना कानून जुर्म हैम, मानीवय दोष और प्रतिषिद्ध है.

● अनुच्छेद 37 (Article 37) – सामाजिक न्याय के संदर्भ में ,इस अनुच्छेद को राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत(DPSP) भाग में रखा गया है.

● अनुच्छेद 38 (Article 38) – सामाजिक न्याय के संदर्भ में, राज्य को लोगों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए एक सामाजिक व्यवस्था को सुरक्षित करने के लिए काम करना चाहिए.

● अनुच्छेद 39 (Article 39) – सामाजिक न्याय के संदर्भ में, संविधान के प्रारूप के अनुसार राज्य द्वारा पालन किए जाने वाले नीति के कुछ सिद्धांत के बारे में कहा गया है.

● अनुच्छेद 39A (Article 39A) – सामाजिक न्याय के संदर्भ में , इस अनुच्छेद में समान न्याय और मुफ्त कानूनी सहायता के बारे में कहा गया है.

● अनुच्छेद 46 (Article 46) – सामाजिक न्याय के संदर्भ में, संविधान के प्रारूप के अनुसार अनुसूचित जातियों और जनजातियों और अन्य कमजोर वर्गों की शिक्षा के क्षेत्र और शिक्षा और आर्थिक मामलों से संबंधित हर चीज को बढ़ावा देने के लिए कहा गया है और उन्हें सामाजिक अन्याय और सभी प्रकार के शोषण से बचाएगा.

सामाजिक सुरक्षा – Social Safeguards

● अनुच्छेद 17 (Article 17) – इस अनुच्छेद में अस्पृश्यता का अंत की बात कही गयी है.

● अनुच्छेद 25 (Article 25) – इस अनुच्छेद में अंतरात्मा की स्वतंत्रता और धर्म के स्वतंत्र अभ्यास और प्रचार के बारे में बात करता है.

राजनीतिक सुरक्षा उपाय – Political Safeguards

● अनुच्छेद 330 (Article 330) – इस अनुच्छेद में कहा गया है कि लोकसभा में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए सीटों का आरक्षण दिया जाना चाहिए.

● अनुच्छेद 332 (Article 332) – इस अनुच्छेद में राज्यों की विधानसभाओं में अनुसूचित और अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों का आरक्षण के बारे में चर्चा किया गया है.

● अनुच्छेद 332 (Article 334) – इस अनुच्छेद में कहा गया है कि सीटों का आरक्षण और विशेष प्रतिनिधित्व साठ साल बाद समाप्त हो जाएगा.

● अनुच्छेद 243D (Article 243D) – इस अनुच्छेद में पंचायतों में की सीटों का आरक्षण के बारे में कहा गया है.

● अनुच्छेद 243T (Article 342T) – इस अनुच्छेद में नगर पालिकाओं में की सीटों का आरक्षण के बारे में कहा गया है.

Agency for Monitoring Safeguards – सुरक्षा उपायों की निगरानी के लिए एजेंसी

● अनुच्छेद 243T (Article 338) – राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग

सामाजिक न्याय के तत्व – Elements of Social Justice Meaning in Hindi

● आत्म-प्रेम और ज्ञान (Self Admiration & Wisdom) – यह तत्व छात्रों को अपने बारे में यह जानने के लिए कहता है कि वे कौन हैं और वे कहाँ से हैं और एक बार जब छात्र अपने इतिहास, विरासत और सांस्कृतिक पहलुओं के बारे में समझ जाते है फिर वो कहाँ से आये है व उनका रंग दूसरों से अलग क्यों है उन्हें इन सब चीज़ो की जानकारी प्राप्त हो जाती है और वे उसकी उसकी सरहाना भी कर सकते है. बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए उन्हें अपने बारे में जानने की बहुत जरुरत है क्यूंकि आत्म-प्रेम और ज्ञान छात्रों को खुद को तलाशने और प्यार करने के बारे में सिखाता है.

● सामाजिक अन्याय के मुद्दे (Issues of Social Injustice) – यह तत्व छात्रों को नस्लवाद, लिंगवाद, वर्गवाद, धार्मिक सहिष्णुता, समलैंगिकता, इत्यादि के इतिहास के बारे में सिखाता है. यह तत्व छात्रों को यह जानने की अनुमति देता है कि ये परिस्थितियाँ कैसे हुईं और वे इसका अनुभव करने वालों के जीवन को कैसे प्रभावित किया.

● सामाजिक आंदोलन और सामाजिक परिवर्तन (Social Movements and Social Change) – यह तत्व बताता है कि हम नस्लवाद, और लिंगवाद के विभिन्न पहलुओं के बारे में सीखने से आगे बढ़ते हैं, और यह छात्र को सिखाता है कि यदि आप एक साथ रहते हैं, तो परिवर्तन हो सकता है और उन्हें उनके बारे में भी सीखने को मिलता है जो सामाजिक अन्याय के खिलाफ संघर्ष करते हैं और फिर वे चर्चा कर सकते हैं लोगों द्वारा किए गए कार्यों और सफलता या असफलताओं के बारे में.

सामाजिक न्याय के महत्व – Importance of Social Justice Meaning in Hindi

समान मानवाधिकार, समान उपचार, समान अवसर और निष्पक्षता, रोजगार, स्वास्थ्य देखभाल हमारे समाज के प्रमुख पहलू हैं और जब समाज अधिकारों पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश करता है तो इसे महत्वपूर्ण माना जाना चाहिए. यह एक स्पष्ट तथ्य है कि समानता सभी के लिए नहीं आती है. कुछ परिस्थितियाँ या यहाँ तक कि कुछ परिस्थितियाँ ऐसी होती हैं जो हमें मानवीय समानता के संदर्भ में मानवीय समानता का अनुभव करने से रोकती हैं.

स्वास्थ्य सेवा से लेकर शिक्षा तक रोजगार और विभिन्न अन्य क्षेत्रों में जहां इसकी आवश्यकता है, सामाजिक न्याय प्राप्त करने की दिशा में काम करना वास्तव में आवश्यक है.

● शैक्षिक अवसरों में सुधार – शिक्षा कौशल का निर्माण करती है और भविष्य में रोजगार के द्वार खोलती है. दुर्भाग्य से कई वंचित क्षेत्रों में विकसित होने वाले व्यक्ति पर्याप्त शैक्षिक अवसर प्राप्त नहीं कर सकते हैं. इसलिए उनके भविष्य को उज्ज्वल बनाने और उनके जीवन को रंगों से भरने के लिए इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है.

● उपयुक्त स्वास्थ्य देखभाल सुनिश्चित करना – यह मूल रूप से हमारे देश के सबसे बड़े और सबसे महत्वपूर्ण उद्योग में से एक है जो कुल पिछड़ेपन का अनुभव करता है. यह निश्चित रूप से चिकित्सा देखभाल तक पहुँचने के लिए सस्ती बीमा योजनाओं के साथ स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रम प्राप्त करने में सक्षम है.

● भेदभाव के विभिन्न रूपों से रक्षा करना – नस्ल, जातीयता और लिंग और जातियों के सभी प्रकार के भेदभाव को निष्पक्ष रूप से कम करने के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण फोकस में से एक होना चाहिए. हालांकि यह पेशेवर दुनिया के भीतर है, लेकिन दुर्भाग्य से हर रोज होता है.

● यह विकलांग लोगों की रक्षा करता है – कई वर्षों से विकलांगता अधिकारों की अनदेखी की गई है, लेकिन सामाजिक न्याय के उदय के साथ, लोगों को अंततः एक आवाज मिल रही है, अक्सर इनके साथ उनके कार्यस्थल, स्वास्थ्य देखभाल, और अधिक भेदभाव किया जाता है. सामाजिक न्याय के लिए सभी के लिए सही मायने में न्याय होने के लिए, विकलांगता अधिकारों को शामिल करने की आवश्यकता है.

● यह लोगों को उम्रवाद से बचाता है – जैसे-जैसे लोग बड़े होते जाते हैं, अक्सर उनकी उम्र के कारण समाज में उनके साथ भेदभाव किया जाता है और उनके साथ दैनिक जीवन में अनादर के साथ व्यवहार किया जा सकता है. इसलिए आयुवाद सामाजिक न्याय के दायरे में आता है.

● यह लोगों को सेक्सुअलिटी के आधार पर भेदभाव से बचाता है – LGBTQIA समुदाय के सदस्यों को अक्सर उनके दैनिक जीवन के हर क्षेत्र में भेदभाव किया जाता है सामाजिक न्याय का एक बड़ा हिस्सा इसे संबोधित करने पर केंद्रित है और आपको बता दे किसी समाज को “न्यायपूर्ण” माने जाने के लिए उसे LGBTQIA लोगों के साथ उचित व्यवहार करना चाहिए.

● यह लिंगों के बीच समानता को बढ़ावा देने में मदद करता है – लिंग के आधार पर भेदभाव दुनिया भर में अन्याय कोई नयी बात नहीं है यह बहुत दिनों से चलता आ रहा है. महिलाएं और लड़कियां इतिहास में सबसे अधिक उत्पीड़ित समूह हैं और सामाजिक न्याय अंतर को ठीक करने और महिलाओं को सशक्त बनाने का प्रयास करता है.

सामाजिक न्याय की स्थापना – Establishment of Social Justice Meaning in Hindi

सामाजिक न्याय और समानता हमारे संविधान के महत्वपूर्ण उद्देश्य हैं और सामाजिक न्याय की स्थापना का मतलब है कि सभी लोगों के साथ बिना किसी भेदभाव के कानून की नजर में समान व्यवहार किया जाना चाहिए और प्रत्येक व्यक्ति और विभिन्न प्रावधानों के विकास के लिए एक निष्पक्ष वातावरण की स्थापना सुनिश्चित करना चाहिए. हमारे समाज में सामाजिक न्याय की स्थापना के लिए बनाए गए हैं, तो आइए देखते हैं इनमें से कुछ प्रकार:

● आरक्षण की नीति – इस प्रावधान में कहा गया है की समाज के कमजोर व पिछड़ा वर्ग के लिए सीटें आरक्षित की जाए ताकि उन्हें शिक्षा और सरकारी सेवाओं के समान और निष्पक्ष अवसर मिल सकें तभी सभी को विकास के समान अवसर मिल सकेंगे.

● अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम – इस प्रावधान में कहा गया है की अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों के खिलाफ किए गए अन्याय और अत्याचार के किसी भी कार्य को रोका जाना चाहिए.

● अल्पसंख्यक के लिए प्रावधान – यह प्रावधान कहता है कि अल्पसंख्यकों के समानता, स्वतंत्रता, शिक्षा, शोषण के खिलाफ अधिकार और उनकी संस्कृति को संरक्षित करने के अधिकार के मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है.

● महिलाओं के लिए कानून – यह प्रावधान कहता है कि महिलाओं की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए और उनके विकास के लिए समान अवसर प्राप्त करने के लिए विभिन्न नीतियां बनाई गई हैं जिसमे महिलाओं के लिए अनुकूल वातावरण बनाने के लिए अपने पिता और पति की संपत्ति में समान हिस्सेदारी का अधिकार, दहेज निषेध अधिनियम, घरेलू हिंसा निषेध अधिनियम आदि की अवधारणा की गई है.

मुझे उम्मीद है की आपको सामाजिक न्याय क्या है समझ आया होगा और इससे जुड़ी और भी जानकारी समझ आयी होगी. इसी तरह के लेख पढ़ने के लिए हमारे वेबसाइट से जुड़े रहे, हम इसी तरह आपके लिए नए नए लेख लाते रखेंगे.

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सामाजिक न्याय की अवधारणा पर निबन्ध | Essay on Social Justice in Hindi

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सामाजिक न्याय की अवधारणा पर निबन्ध | Essay on Social Justice in Hindi!

ADVERTISEMENTS:

सामाजिक न्याय की संकल्पना बहुत व्यापक शब्द है जिसके अन्तर्गत ‘सामान्य हित’ के मानक से सम्बन्धित सब कुछ आ जाता है जो अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा से लेकर निर्धनता और निरक्षरता के अन्मूलन तक सब कुछ पहलुओं को द्वंगित करता है ।

यह न केवल विधि के समक्ष समानता के सिद्धान्त का पालन करने और न्यायपालिका की स्वतंत्रता से सम्बन्धित है, जैसा हम पश्चिमी देशों में देखते हैं, बल्कि इसका सम्बन्ध उन कुत्सित सामाजिक कुरीतियों जैसे द्ररिद्रता, बीमारी, बेकारी और भुखमरी आदि के दूर करने से भी है जिसकी तीसरी दुनिया के विकासशील देशों पर गहरी चोट पड़ी है ।

इसके साथ, इसका सम्बन्ध उन निहित स्वार्थो को समाप्त करने से है जो लोकहित को सिद्ध करने के मार्ग में और यथास्थिति बनाए रखने के पक्ष में है । इस दृष्टि से दुनिया के पिछड़े और विकासशील देशों में सामाजिक न्याय का आदर्श राज्य के लिए यह आवश्यक बना देता है कि वह पिछड़े और समाज के कमजोर वर्गो की हालत सुधारने के लिए ईमानदारी से प्रयास करें ।

सामाजिक न्याय अवधारणा का अभिप्राय यह है कि नागरिक, नागरिक के बीच सामाजिक स्थिति के आधार पर किसी प्रकार का भेद न माना जाए और प्रत्येक व्यक्ति को अन्य विकास के पूर्ण अवसर सुलभ हों । सामाजिक न्याय की धारणा में एक निष्कर्ष यह निहित है कि व्यक्ति का किसी भी रुप में शोषण न हो और उसके व्यक्तित्व को एक पवित्र सामाजिक न्याय की सिद्धि के लिए माना जाए मात्र साधन के लिए नहीं ।

सामाजिक न्याय की व्यवस्था में सुधारु और सुसंस्कृत जीवन के लिए आवश्यक परिस्थितियों का भाव निहित है और इस संदर्भ में समाज की राजनीतिक सत्ता से अपेक्षा की जाती है कि वह अपने विद्यार्थी तथा कार्यकारी कार्यक्रमों द्वारा क्षमतायुक्त समाज की स्थापना करें ।

सामाजिक न्याय की मांग है कि समाज के सुविधाहीन वर्गो को अपनी सामाजिक- आर्थिक असमर्थताओं पर काबू पाने और अपने जीवन स्तर में सुधार करने के योग्य बनाया जाए, समाज के गरीबी के स्तर से नीचे के सर्वाधिक सुविधावंचित वर्गो विशेषरूप से निर्धनों के बच्चों, महिलाओं ओर सशक्त व्यक्तियों की सहायता की जाए और इस प्रकार शोषणविहीन समाज की स्थापना की जाए ।

समाज के दूर्लभ वर्गो को ऊंचा उठाए बिना, हरिजनों पर अत्याचार को रोके बिना, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़े वर्गो का विकास किए बिना सामाजिक न्याय की स्थापना नहीं हो सकती । सामाजिक न्याय का अभिप्राय है कि मनुष्य मनुष्य के बीच सामाजिक स्थिति के आधार पर किसी प्रकार का भेद न माना जाए, प्रत्येक व्यक्तियों को अपनी शक्तियों के समुचित विकास के समान अवसर उपलब्ध हों, किसी भी व्यक्ति का किसी भी रुप मे शोषण न हो, समाज के प्रत्येक व्यक्ति की न्यूनतम आवश्यकताएं पूरी हों, आर्थिक सत्ता चन्द हाथों में केन्द्रित न हो, समाज का कमजोर वर्ग अपने को असहाय महसूस न करे ।

मार्क्सवादियों के अनुसार, न्याय का यह सिद्धान्त कार्ल मार्क्स के चिन्तन में मन्त्र-तन्त्र विखरा पड़ा है । मार्क्स द्वारा प्रतिपादित समाजवादी समाज में बुर्जुआ स्वामित्व और शोषण को समाप्त कर दिया गया है, उसमें यह माना जाता है कि वह वितरण न्यायपूर्ण है जिसमें हरेक को सामाजिक उत्पाद में दिए गए श्रम के योगदान के अनुसार अपना हिस्सा प्राप्त हो ।

इस प्रकार सामाजिक न्याय का आदर्श एक न्यायपूर्ण सामाजिक व्यवस्था को सुरक्षित और विकसित करके लोगों के कल्याण को बढ़ावा देने की परिकल्पना करता है । इस नाते ”कानून समाज विज्ञान बन जाता है और वकीलों को अपने लिए समाज वैज्ञानिक समझना चाहिए” ।

इस कारण, कानून के शासन के आधार वाक्य व्यापक हो जाते हैं । लोगों की समानता और स्वतंत्रता को सुनिचित करने के साथ-साथ यहां ऐसी सामाजिक व्यवस्था लाने के लिए प्रोत्साहित करता है जिसमें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय राष्ट्रीय जीवन की संस्थाओं को अनुप्राणित करें ।

सामाजिक न्याय की अवधारणा ने आधुनिक युग में लोगों में जागृति उत्पन्न करने में प्रभावक भूमिका उत्पन्न की है । भारत में महात्मा गांधी और भीमराव अम्बेडकर के विचारों में सामाजिक न्याय की मांग पर जोर दिया गया थ । महात्मा गांधी तो सामाजिक न्याय की स्थापना कै लिए आजीवन संघर्ष करते रहे ।

उनके संरक्षता सिद्धांत में समाज सुधार कार्यो में हमें सामाजिक न्याय के प्रति उनकी जागरुकता स्पष्ट परिलक्षित होती है । जवाहर लाल नेहरु का मानवतावाद सामाजिक न्याय के विचार में ओत प्रोत था । उनका समाजवादी दर्शन सामाजिक-आर्थिक न्याय का ही प्रतिबिम्ब था उन्होंने सदैव इस बात पर बल दिया कि सामाजिक न्याय की प्रस्तावना के लिए आर्थिक शक्ति का केन्द्रीकरण न हो और विकास कार्यो का लाभ समाज के सभी वर्गों के लोगों को मिले।

भारतीय संविधान में मंत्र तंत्र सामाजिक न्याय के सिद्धान्त बिखरे पड़े हैं । द्वितीय महायुद्ध के बाद विकासशील देशों में बढ़ती हुई आर्थिक विषमता की खाई में आर्थिक विकास बनाम समाजिक न्याय के सवाल को ओर भी तेज कर दिया । सामाजिक न्याय सुलभ करने के लिए यह आवश्यक है कि देश की राजसत्ता विद्यार्थी और कार्यकारी कृत्यों द्वारा समतायुक्त समाज की स्थापना का प्रयत्न करें ।

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क्या है सामाजिक न्याय | सामाजिक न्याय के प्रकार – Social Justice Definition And Types In Hindi

क्या है सामाजिक न्याय जानिए पूरी जानकारी हिंदी में , meaning of social justice in hindi.

दर्ज नैतिक और कानूनी विचार की शुरुआत में न्याय शब्द का इस्तेमाल सामान्य रूप से धार्मिकता के बराबर किया जाता था। न्याय में नैतिक आचरण के स्वीकृत पैटर्न के साथ संपूर्ण सद्गुण और पूर्ण अनुरूपता शामिल थी।

तर्कसंगत विश्लेषण के प्रयोजनों के लिए, अरस्तू का अनुसरण करने वाले क्लासिक दार्शनिकों ने न्याय और इक्विटी के बीच या न्याय और दान के बीच अंतर करने वाले एक विशेष गुण के संदर्भ में सीमित करना पसंद किया। सामान्य अर्थों में न्याय अभी भी अपनी मूल व्यापकता के महत्वपूर्ण अंशों को बरकरार रखता है।

प्लेटो के अनुसार न्याय अन्य सद्गुणों को नियंत्रित और संतुलित करता है। व्यक्तिगत मानस के भीतर रिट चाहे छोटा हो या राजनीतिक राज्य के कामकाज में बड़ा हो, इसके कार्यों में सामंजस्य स्थापित करना और संतुलन बनाए रखना है। इन चीजों को करने के लिए मन को मानस के भीतर शासन करना चाहिए और राज्य के भीतर कारण के अवतार को शासन करना चाहिए।

न्याय का परिणाम समाज के प्रत्येक तत्व से उचित कार्य करने, उसे अच्छी तरह से करने और करने से ही होता है। प्लेटो से प्रभावित बाद के दार्शनिकों ने स्थापित मूल नियमों के निष्पक्ष अनुप्रयोग के रूप में न्याय और ऐसे नियमों के एक आदर्श मानदंड या सुधारक के रूप में न्याय के बीच तनाव पर ध्यान केंद्रित किया है।

क्या है न्याय जानिए पूरी जानकारी हिंदी में – What is Justice In Hindi

क्या है न्याय – justice meaning in hindi.

रिकॉर्ड किए गए नैतिक और कानूनी विचार की शुरुआत में, न्याय शब्द का इस्तेमाल सामान्य रूप से धार्मिकता के बराबर किया जाता था। न्याय में नैतिक आचरण के स्वीकृत पैटर्न के साथ संपूर्ण सद्गुण और पूर्ण अनुरूपता शामिल थी।

तर्कसंगत विश्लेषण के प्रयोजनों के लिए, अरस्तू का अनुसरण करने वाले क्लासिक दार्शनिकों ने न्याय और इक्विटी के बीच या न्याय और दान के बीच अंतर करने वाले एक विशेष गुण के संदर्भ को सीमित करना पसंद किया। प्लेटो के अनुसार न्याय अन्य सद्गुणों को नियंत्रित और संतुलित करता है। चाहे व्यक्तिगत मानस के भीतर रिट-छोटा हो या राजनीतिक राज्य के कामकाज में बड़ा हो, इसका कार्य सद्भाव प्राप्त करना और संतुलन बनाए रखना है।

इन चीजों को करने के लिए मन को मानस के भीतर शासन करना चाहिए और राज्य के भीतर कारण के अवतार को शासन करना चाहिए। न्याय का परिणाम समाज के प्रत्येक तत्व द्वारा उचित कार्य को अच्छी तरह से करने से होता है।

न्याय के प्रकार – Types of Justice In Hindi

न्याय के प्रक्रियात्मक प्रकार- substantial types of justice in hindi.

प्रक्रियात्मक न्याय में किसी विशेष मामले के तथ्यों का पता लगाने के लिए आचरण के नियमों को विकसित करने के लिए सही तरीकों को नियोजित करना या अंतिम निर्णय में नियमों और तथ्यों को अवशोषित करने वाले कुल प्रशंसा को तैयार करना शामिल है।

क्लासिक दार्शनिकों में से केवल अरस्तू और थॉमस एक्विनास ने प्रक्रियात्मक न्याय के सिद्धांतों की देखभाल के साथ जांच करने के लिए मानकों और नियमों, साक्ष्य और तथ्यों और निर्णयों के बीच कार्यात्मक संबंधों के बारे में पर्याप्त जागरूकता दिखाई।

न्याय के पर्याप्त प्रकार : हालांकि अरस्तू ने न्याय को एक विशेष गुण और राज्य के कल्याण के लिए सबसे आवश्यक माना, लेकिन उन्होंने लोकप्रिय उपयोग में सामान्य न्याय की व्यापकता को मान्यता दी। उन्होंने न्याय की दो श्रेणियों को निहित किया जो इस प्रकार हैं:

• न्याय के वितरणात्मक प्रकार: यह सम्मान, धन और अन्य सामाजिक वस्तुओं के आवंटन पर लागू होता है और नागरिक योग्यता के अनुपात में होना चाहिए।

• न्याय के सुधारात्मक प्रकार: यह पहली बार में कानून अदालतों के बाहर निजी, स्वैच्छिक आदान-प्रदान पर लागू हो सकता है, विशेष रूप से न्यायपालिका को दिया जाता है जिसका कर्तव्य है कि जब भी पार्टियों के बीच इसकी कमी हो तो समानता के मध्य बिंदु को बहाल करना है।

सामाजिक अन्याय की भावना तर्क और सहानुभूति का एक अविभाज्य मिश्रण है, इसकी अभिव्यक्तियों में विकासवादी। यह केवल अंतर्ज्ञान नहीं है। बिना कारण के अन्याय की भावना उन लेन-देन की पहचान नहीं कर सकती है जो इसे उत्तेजित करते हैं, न ही यह सहानुभूति के बिना सामाजिक उपयोगिता के हितों की सेवा कर सकता है, इसमें भावनात्मक गर्मी और पुरुषों को कार्य करने के लिए प्रेरित करने की क्षमता का अभाव होगा।

इस परिप्रेक्ष्य में सामाजिक न्याय का अर्थ अन्याय की भावना को जगाने वाली रोकथाम या उपचार की सक्रिय प्रक्रिया है। इस प्रकार अन्याय की भावना का अनुभव अपने आप में एक नाटकीय है क्योंकि यह लोगों को एक दूसरे के साथ जुड़ने के लिए आमंत्रित करता है ताकि इसका विरोध करने में और एक प्राप्त सफलता पर खुशी मनाई जा सके, जो सभी एकजुटता के सार्वजनिक कार्य हैं।

सामाजिक न्याय एक स्थिर संतुलन या मानवीय इच्छा के गुण से कहीं अधिक है। यह एक सक्रिय प्रक्रिया या एजेंडा या उद्यम है। कठोर और अप्रिय निर्णय लेने के लिए विधायिका और कार्यपालिका की अनिच्छा ने न्यायपालिका को सक्रिय होने के लिए मजबूर किया है।

जब संवेदनशील मुद्दे अनसुलझे रह जाते हैं और अनसुलझे लोग बेचैन हो जाते हैं और अदालतों से समाधान निकालने की मांग करते हैं

भारत में न्यायिक समीक्षा – Judicial Review in India In Hindi

किसी कानून या आदेश की वैधता की समीक्षा करने और उसे निर्धारित करने की न्यायपालिका की शक्ति को न्यायिक समीक्षा की शक्ति के रूप में वर्णित किया जा सकता है। इसका अर्थ है कि संविधान देश का सर्वोच्च कानून है और इससे असंगत कोई भी कानून शून्य है।

यह किसी देश की अदालतों द्वारा सरकार के विधायिका, कार्यकारी और प्रशासनिक अंगों के कार्यों की जांच करने और यह सुनिश्चित करने की शक्ति है कि इस तरह की कार्रवाई देश के संविधान के प्रावधानों के अनुरूप है।

न्यायिक समीक्षा में सरकारी कार्रवाई को वैध बनाने और सरकार द्वारा किसी भी अनुचित अतिक्रमण के खिलाफ संविधान की सुरक्षा के दो महत्वपूर्ण कार्य हैं।

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न्याय पर निबंध | Essay On Justice In Hindi

Essay On Justice In Hindi : नमस्कार दोस्तों आज हम न्याय पर निबंध लेकर आए हैं. आज के निबंध, स्पीच, अनुच्छेद लेख में हम न्याय इसके प्रकार, स्वरूप अवधारणा और सिद्धांत के बारें में पढ़ेगे.

अक्सर न्याय के जिस पहलू के बारें में अधिक चिन्तन करते है वह social justice अर्थात सामाजिक न्याय होता हैं. इस निबंध में हम न्याय के बारें में पढ़ेगे.

न्याय पर निबंध Essay On Justice In Hindi

300 शब्द : न्याय निबंध

डॉक्टर बाबा साहब भीमराव अंबेडकर और अन्य लोगों के द्वारा तैयार किए गए भारतीय संविधान में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि भारत के सभी लोगों को न्याय पाने का अधिकार है और यह प्रयास किया जाए कि भारत के किसी भी व्यक्ति के साथ अन्याय ना हो फिर चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, मत, मजहब का क्यों ना हो।

हमारे भारतीय संविधान के द्वारा न्याय व्यवस्था का सही प्रकार से पालन हो सके, इसके लिए अदालत की व्यवस्था की गई है। अदालत में बैठे हुए न्यायाधीश लोगों को न्याय देने का काम करते हैं और अपराधी व्यक्ति को सजा सुनाने का काम करते हैं।

भारतीय दंड संहिता में न्याय की कई धाराएं शामिल की गई है। हालांकि जिस प्रकार से भारत में न्याय होना चाहिए,उस प्रकार से न्याय नहीं हो रहा है क्योंकि दबंग और पैसे वाले लोग अक्सर गरीब लोगों का शोषण करते हैं और जब गरीब लोग नजदीकी पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराने के लिए जाते हैं तो उनकी शिकायत दबंग लोगों के प्रभाव में दर्ज नहीं होती है।

कई बार तो पीड़ित व्यक्ति को ही पुलिस के द्वारा दबंग व्यक्ति के प्रभाव में फंसा दिया जाता है और उनसे पैसे लिए जाते हैं, जिसकी वजह से हमारे भारत देश की न्याय व्यवस्था पूरी दुनिया भर में बदनाम है।

हमारे देश में न्याय पाने के लिए व्यक्ति को कई सालों लग जाते हैं। कई बार तो व्यक्ति की मृत्यु होने के पश्चात भी उसे न्याय नहीं मिलता है जो कि भारत के लचर कानून सिस्टम को उजागर करता है।

इसलिए सरकार को यह प्रयास करना चाहिए कि वह भारतीय कानून व्यवस्था और न्याय व्यवस्था में सुधार करें और ऐसे कानून का निर्माण करें जिसके द्वारा किसी भी वर्ग के व्यक्ति को न्याय प्राप्त हो सके और दुनिया में भारत की न्याय व्यवस्था की तारीफ हो।

800 शब्द : न्याय निबंध

बहुत से लोगों से अक्सर यह सवाल सुनने को मिलता है कि न्याय कहाँ मिलता हैं. इस प्रश्न का होना भी यह बताता है कि आज भी आम आदमी को आसानी से न्याय नहीं मिल पा रहा हैं.

आधुनिक सामाजिक स्वरूप ने न्याय व्यवस्था की जिम्मेदारी कोर्ट अर्थात अदलिया पर डाल दी है वे ही न्याय के एकमात्र एवं सर्वोपरि स्रोत माने जाते हैं.

भारतीय संस्कृति में न्याय का एक स्पष्ट विधान और इसका समृद्ध अतीत रहा हैं अक्सर राजा महाराजे ही न्यायिक मामलों को देखते थे, विस्तृत साम्राज्य की स्थिति में एक अलग से विभाग की व्यवस्था होती थी जो आज भी देखने को मिलती हैं.

मगर इनसे असंतुष्ट व्यक्ति सच्चे न्याय की अपेक्षा केवल ईश्वर से रखता हैं, भगवान सब देखता है अथवा ईश्वर न्यायकारी है ये बेबसी भरे सबक उस इन्सान के दिल की पीड़ा को दर्शाते है जिसे हमारी न्याय व्यवस्था न्याय नहीं दे पाई हैं.

आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्था में कानून के शासन के तहत अदालतों को न्याय एवं अन्याय में फर्क करने का अधिकार हासिल हैं. सही क्या है तथा गलत क्या है यह अदालत विधान की पुस्तकों के आधार पर तय करती हैं.

आज लम्बित मामलों की संख्या को देखकर कहा जा सकता है इंसाफ चाहने वाले पीड़ित लोगों की संख्या दिन ब दिन बढ़ती जा रही हैं. न्याय की देरी व अभाव ही इसकी मांग को उतरोत्तर बढ़ा रहा हैं.

हमारे देश की विधायी व्यवस्था में न्याय की शीर्षस्थ संस्था न्यायालय हैं स्वाभाविक रूप से सभी स्तरों पर उत्पन्न न्याय की अभिलाषा यहाँ एकत्रित हो जाती हैं.

जिसका अर्थ है कि न्यायालय में कई वर्षों से जमा विचाराधीन मामले इस बात का प्रमाण है कि न्यायालय न्याय प्राप्ति के विश्वसनीय स्रोत हैं.

मगर जेहन में एक सवाल यह भी आता है क्या न्याय प्रणाली मात्र अदालतों तक ही सिमित हैं. क्या हमारें समाज में इसके अतिरिक्त अन्य न्यायिक संस्थाओं की आवश्यकता या व्यवस्था हैं.

  • न्याय की अवधारणा (Concept Of Justice in Hindi)

हमारे सवाल का जवाब हाँ में होगा. देश में अलग अलग स्तरों पर मनमुटाव रोकने और व्यवस्था व्यवस्था बहाल करने के लिए अलग अलग निकाय हैं.

जिनमें पुलिस  प्रशासन पंचायत स्थानीय शासन आदि ऐसे संस्थान है जो अपनी सीमाओं में  न्यायिक मामलों की सुनवाई करते हैं. अपने कार्यक्षेत्र के बाहर के मामले को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किये जाने की व्यवस्था कायम हैं.

न्याय में देर ही अंधेर

एक अनुमान के मुताबिक़ भारत में उच्च न्यायालय एक मुकदमें का निर्णय सुनाने में लगभग चार वर्ष से अधिक का समय लेते हैं. उच्च न्यायालय से निम्न स्तरीय अदालतों का हाल तो इससे कही बुरा हैं.

जिला कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक चलने वाले एक मुकदमें का अंतिम फैसला 7 से 10 साल में आता हैं. राजस्थान, इलाहाबाद, कर्नाटक और कलकत्ता हाईकोर्ट देश के सबसे अधिक समय लेने वाले कोर्ट बन चुके हैं. वही निचली अदालतों की धीमी कार्यवाहियों वाले राज्यों की बात करे तो इसके गुजरात पहले पायदान पर हैं.

न्यायालय की कार्यप्रणाली को लेकर एक संस्था ने शोध किया जिसके नतीजे हैरतअंगेज करने वाले हैं. इस शोध में यह बात सामने आई कि किसी मुकदमें में लगने वाले कुल समय का ५५ प्रतिशत हिस्सा मात्र तारीख और समन में व्यय हो जाता हैं शेष मात्र ४५ प्रतिशत समय में ही मुकदमें की सुनवाई होती हैं.

  • न्याय पर सुविचार अनमोल वचन

न्याय व्यवस्था में सुधारों की आवश्यकता

न्याय के बारे में एक पुरानी अंग्रेजी उक्ति है- ‘न्याय में देरी करना न्याय को नकारना है और न्याय में जल्दबाजी करना न्याय को दफनाना है. यदि इस कहावत को हम भारतीय न्याय व्यवस्था के परिपेक्ष्य में देखे तो पाएगे कि इसका पहला भाग पुर्णतः सत्य प्रतीत होता हैं.

सिमित संख्या में हमारे जज और मजिस्ट्रेट मुकदमों के बोझ तले दबे प्रतीत होते हैं. एक मामूली विवाद कई सालों तक चलता रहता है तथा पीड़ित को दशकों तक न्याय का इतजार करना पड़ता हैं.

यही वजह है कि लोगों में न्याय के प्रति गहरे असंतोष के भाव हैं वे अपने साथ हुए अन्याय के विरुद्ध इसलिए कोर्ट नहीं जाते क्योंकि उनके यह भरोसा नहीं रहा कि न्याय उसके लिए मददगार होगा.

न्याय एडियाँ रगड़ते रगड़ते कई साल बाद मिलेगा जिसमें इतना समय तो व्यय हो ही जाएगा जो उसके वांछित न्याय मूल्य या सहायता से अधिक होगा.

जब भी कोई समस्या जन्म लेती है तो यकीनन एक नहीं कई समाधान भी उसके साथ आते हैं. हमें जरूरत होती है उस सही समाधान की तलाश की जो समस्या के प्रभाव को समाप्त कर दे.

बहुत से विद्वान् मानते है कि भारत की न्याय प्रणाली में अधिक समय खर्च होने का मूल कारण मामलों की अधिकता हैं बल्कि ऐसा नहीं है मामलों का शीघ्र निपटान न होना असल समस्या हैं.

इसके लिए सबसे बड़े जिम्मेदार वकील ही है जो केस को लम्बा खीचने के लिए कानून की सहूलियत का फायदा उठाकर तारीख पर तारीख ले लेते हैं.

जितना दोष वकीलों का है उतना माननीय न्यायधीशों का भी है जो पर्याप्त कारणों के बीना भी इन वकीलों को तारीखे देकर केस को अनावश्यक लम्बा खीचने में मदद करते हैं.

केवल यह कहकर कि हमारे न्यायिक तन्त्र में खामियां है उसे कोसते रहना उचित नहीं हैं. सभी नागरिकों, जजो, वकीलों तथा हमारी सरकारों का यह दायित्व है कि हम न्याय व्यवस्था को दुरुस्त करे कोर्ट की तारीख पर तारीख देने की प्रवृत्ति को हर हाल में रोकना होगा, अन्यथा जल्दी न्याय की अपेक्षा व्यर्थ है भले ही फास्ट ट्रेक कोर्ट बनाए या कुछ और.

साथ ही वादी तथा प्रति वादी द्वारा अधिकतम समय लेने की सीमा भी निर्धारित की जानी चाहिए. तारीख लेने की नियत संख्या निर्धारित होने के बाद उस समयावधि में न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत गवाहों एवं सबूतों के आधार पर फैसला दे देना चाहिए.

ऐसा नहीं है कि न्यायालय की इच्छा शक्ति का कोई महत्व नहीं हैं. राम मन्दिर विवाद का निर्णय इसकी मिसाल है जज महा शय द्वारा केस की सुनवाई का समय निर्धारित हो गया था जिसके बाद किसी डेट पर सुनवाई नहीं होगी,

वाकई इस पद्धति को प्रत्येक मामले पर लागू किया जाए तो हमारी न्याय व्यवस्था में अभूतपूर्व बदलाव देखे जा सकते हैं. इससे पीड़ित व्यक्ति को न केवल समय पर न्याय मिल सकेगा बल्कि आमजन का न्याय में विश्वास बढ़ेगा जो बड़ी बात हैं.

  • न्यायिक पुनरावलोकन पर निबंध
  • आर्थिक न्याय का अर्थ क्या है
  • सामाजिक न्याय का अर्थ क्या है
  • अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के बारे में जानकारी

उम्मीद करता हूँ दोस्तों Essay On Justice In Hindi का यह लेख आपकों पसंद आया होगा. न्याय/ सामाजिक न्याय पर निबंध में दी गई जानकारी आपकों अच्छी लगी हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.

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सामाजिक न्याय से क्या तात्पर्य है? | Social Justice in Hindi

सामाजिक न्याय से क्या तात्पर्य है? | Social Justice in Hindi

अनुक्रम (Contents)

सामाजिक न्याय से क्या तात्पर्य है?

सामाजिक न्याय ( Social Justice ) – सामाजिक न्याय से तात्पर्य, सभी मनुष्यों को समान मानकर किसी भी व्यक्ति के सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक स्थिति के आधार पर भेदभाव न करने से है। सभी व्यक्तियों के पास इतने न्यूनतम संसाधन होने चाहिये, जिससे वे अपनी पुरानी रूढ़िगत परम्पराओं को समाप्त कर जीवन जीने की आजादी प्राप्त होनी चाहिये। सामाजिक न्याय के सन्दर्भ में अनेक विद्वानों के अलग अलग दृष्टिकोण हैं जिन्हें मुख्य रूप से तीन रूपों में विभक्त किया गया है जो निम्न प्रकार हैं

1. सामाजिक अनुबन्ध स्वरूप-

इस मत के अनुसार, जो ज्यादा उत्पादक होगा वह ज्यादा सुख प्राप्त करेगा साथ ही जो उत्पादक नहीं होगा वह कष्ट सहेगा तथा वह समाज से बाहर हो जायेगा। परन्त अपनी खामियों के चलते यह मत सर्वव्यापी नहीं है।

2. व्यावहारिक स्वरूप –

इस मत के अनुसार, समाज एक संस्था है जो अपने सदस्यों को आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराता है। इसका प्रत्येक सदस्य अकेला होता है। इसका मुख्य उद्देश्य वस्तुओं एवं सेवाओं को ज्यादा से ज्यादा उत्पादित करना है। समाज इस मत को स्वीकार नही करता है क्योंकि इसके अनुसार इस दृष्टिकोण को अपनाने से सामाजिक स्वार्थ के लिये व्यक्तिगत सुखों तथा सामूहिक सुखों का त्याग करना आवश्यक है। इस प्रकार यह मत व्यवसायीकरण को बढ़ावा देता है।

3. श्रद्धात्मक स्वरूप-

इस मत के अनुसार, समाज व्यक्तियों के लिये सामाजिक व्यवस्थाओं के माध्यम से सम्मान का भाव निहित रखता है।समाज में सभी लोग समान हैं तथा संसाधन पर सभी को समान अधिकार है। समाज का कर्तव्य है कि समाज में सभी को सुखी रहने का समान अवसार प्रदान करें। इसी मत के आधार पर मूल अधिकार, राजनीतिक समानता, अधिकारों का बिल आदि पारित हुये तथा ‘अस्तित्व में आये।

  • भारत में शैक्षिक अवसरों की असमानता | शैक्षिक अवसरों की असमानता के कारण | शैक्षिक असमानता को दूर करने के उपाय
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Important Links

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  • वैश्वीकरण के लाभ | Merits of Globlisation
  • वैश्वीकरण की आवश्यकता क्यों हुई?
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  • सामाजिक अभिरुचि को परिवर्तित करने के उपाय | Measures to Changing of Social Concern
  • जनसंचार के माध्यम | Media of Mass Communication
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  • पारस्परिक सौहार्द्र एवं समरसता में बाधाएँ | Obstacles in Communal Rapport and Equanimity
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  • पुस्तकालय की अवधारणा, महत्व एवं कार्य | Concept, Importance & functions of library- in Hindi
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विश्व सामाजिक न्याय दिवस 2024 महत्व, निबंध, इतिहास | World Day of Social Justice in Hindi

विश्व सामाजिक न्याय दिवस 2024, क्यों मनाया जाता है, महत्व व इतिहास, निबंध, कब मनाया जाता है  (World Day of Social Justice Day in Hindi) (Date, Significance, History & Theme, Quotes)

दुनिया में लोगों के बीच कई तरह के भेदभाव पैदा हो रहे हैं, जो कि लोगों के बीच एक दूरी का कारण बन गया हैं. इन भेदभाव के कारण कई लोगों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. वहीं दुनिया में इस तरह की बुराइयों को खत्म करने के लिए हर साल ‘ विश्व सामाजिक न्याय दिवस ’ मनाया जाता है. इस दिवस को कई उद्देश्यों को प्राप्त करने के मकसद के लिए बनाया गया है. इस दिवस के दिन कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन करके लोगों को जागरूक किया जाता है. ये दिवस मुख्य तौर से नस्ल , वर्ग , लिंग , धर्म , संस्कृति, भेदभाव, बेरोजगारी से जुड़ी हुई कई समस्याओं को हल करने के उद्द्श्ये से हर साल मनाया जाता है.

World Day of Social Justice Importance

Table of Contents

विश्व सामाजिक न्याय दिवस (World Social Justice Day)

दुनिया से बुराइयों को ख़त्म करने के लिए विश्व सामाजिक न्याय दिवस की शुरुआत की गई है. इसकी शुरुआत कब हुई और कब ये दिन मनाया जाता है. इसकी पूरी जानकारी आपको हम यहां दे रहे हैं. आइये जानते हैं इसके बारे में पूरी जानकरी.

विश्व सामाजिक न्याय दिवस कब मनाया जाता है (World Social Justice Day Celebration)

हर साल 20 फरवरी के दिन ये दिवस पूरी दुनिया में मनाया जाता है. संयुक्त राष्ट्र द्वारा साल 2007 में इस दिन को मनाने की घोषणा की गई थी.

विश्व सामाजिक न्याय दिवस का इतिहास (World Social Justice Day History)

साल 1995 में कोपेनहेगन, डेनमार्क में सोशल डेवलपमेंट के लिए विश्व शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया था. इस शिखर सम्मेलन में 100 से अधिक राजनीतिक नेताओं ने गरीबी, पूर्ण रोजगार के साथ-साथ लोगों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने का लक्ष्य रखा था. इसके अलावा समाज के लिए कार्य करने के लक्ष्य को हासिल करने का उद्देश्य भी इस आयोजन में रखा गया था. जिसके बाद साल 26 नवंबर, 2007 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने कोपेनहेगन में हुए इस शिखर सम्मेलन के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए 20 फरवरी को विश्व सामाजिक न्याय दिवस के रूप में नामित किया था. वहीं साल 2009 में सबसे पहले इस दिन को पूरे विश्व में मनाया गया था.

विश्व सामाजिक न्याय दिवस का लक्ष्य (Importance of World Day of Social Justice)

विश्व सामाजिक न्याय दिवस के उद्देश्यों को पूरा करने के मकसद से संयुक्त राष्ट्र और अंतर्राष्ट्रीय श्रम कार्यालय एक साथ मिलकर कार्य कर रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र और अंतर्राष्ट्रीय श्रम कार्यालय द्वारा लोगों के बीच इस दिन के महत्व को फैलाने के लिए कई कार्य किए जा रहे हैं. वहीं हर साल दुनिया के लगभग हर देश में विश्व सामाजिक न्याय दिवस को मनाया जाता है और इसके प्रति अपने देश के लोगों के बीच जागरूकता पैदा करने का कार्य किया जाता है.  

विश्व सामाजिक न्याय दिवस विषय 2024 (World day of Social Justice 2024 Theme)

हर साल विश्व सामाजिक न्याय दिवस के लिए एक विषय का चयन किया जाता है. इस विषय के माध्यम से लोगों को जागरूक बनाने की कोशिश की जाती है. सन 2024 में विश्व सामाजिक न्याय दिवस के विषय की घोषणा अभी नहीं की गई है.

सन 2022 में विश्व सामाजिक न्याय दिवस का विषय ‘अचीविंग सोशल जस्टिस थ्रू फॉर्मल एम्प्लॉयमेंट’ है जिसका मतलब है औपचारिक रोजगार के माध्यम से सामाजिक न्याय प्राप्त करना. साल 2018 के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा विश्व सामाजिक न्याय दिवस के लिए जो विषय चुना गया है, वो है ‘वर्कर ऑन द मूव: द क्वेस्ट फॉर सोशल जस्टिस’. इस विषय के जरिए दूसरे देशों से अन्य देशों में कार्य करने आए लोगों के साथ सामाजिक न्याय करने की पहल संयुक्त राष्ट्र द्वारा की गई है. अंतर्राष्ट्रीय श्रम कार्यालय के अनुसार इस वक्त करीब 25 करोड़ लोग दूसरे देशों में जाकर बसे हुए हैं, जिनमें से लगभग 15 करोड़ प्रवासी लोग कार्य कर रहे हैं. दूसरे देश में कार्य कर रहे इन 15 करोड़ लोगों के ऊपर ही इस साल का विश्व सामाजिक न्याय का विषय रखा गया है.

विश्व सामाजिक न्याय दिवस भारत में (World Day of Social Justice in India)

भारत सरकार ने कई ऐसे आयोगों का गठन किया है जो कि सामाजिक न्याय के हितों के लिए कार्य करते हैं.  भारत के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा कई योजनाओं की मदद से भी लोगों की सहायता की जाती है. वहीं राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से लकेर राष्ट्रीय महिला एवं बाल विकास आयोग जैसे सराकरी संगठन दिन रात हमारे समाज से भेदभाव,बेरोजगारी और बच्चों की सुरक्षा के लिए कार्य कर रहे हैं. वहीं 20 फरवरी के दिन इन संगठनों द्वारा कई कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है. इसके अलावा स्कूल में भी इस दिन को लेकर कई तरह की प्रतियोगिता बच्चों के बीच रखी जाती है. जैसी की निंबध लिखना, इस दिन को चित्र के जरिए समझाना और इत्यादि.

विश्व सामाजिक न्याय दिवस भारत द्वारा उठाये गये कदम

भारत के सविधान को बनाते समय देश में सामाजिक न्याय का खासा ध्यान रखा गया था. वहीं इस वक्त हमारे देश के सविधान में कई ऐसा प्रावधान मौजूद हैं, जो कि सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए हैं. वहीं सुंयक्त राष्ट्र के साथ कदम से कदम मिलाकर भारत सरकार सामाजिक न्याय के लिए कई कार्य कर रही है. भारत देश में कई तरह की जाति के लोग मौजूद हैं, इसके अलावा हमारे देश में कई ऐसी प्रथाएं हैं जो की सामाजिक न्याय के लिए खतरा हैं और इन्हीं चीजों से लड़ने के लिए भारत ने कई महत्वपूर्ण कार्य भी किए हैं.

भारत में सामाजिक न्याय की आवश्यकता (World Social Justice Day Importance in India)

भारत सरकार द्वारा हमारे देश से गरीबी, बेरोजगारी, लोगों के बीच असमानता जैसी चीजों को खत्म करने की काफी जरूरत है. वहीं हमारी सरकार द्वारा इन चीजों को खत्म करने के लिए कई कोशिशें की जा रही हैं. लेकिन अभी भी हमारे देश में इन समस्याओं से पूरी तरह से निपटा नहीं गया है. वहीं इस दिवस के मकसद से भारत सरकार लोगों को शिक्षा का महत्व, भेदभाव नहीं करने जैसी चीजों के बारे में जागरूक करने में लगी हुई है और उम्मीद है कि आनेवाले सालों में भारत सरकार अपने इन लक्ष्यों में कामयाब हो जाएगी.

राष्ट्रीय सामाजिक न्याय दिवस (National Social Justice Day)

जिस तरह से पूरे विश्व में 20 फरवरी को सामाजिक न्याय मनाया जाता है. ठीक उसी तरह भारत सरकार 25 सिंतबर को भी ये दिवस मनाती है. हर साल इस दिन हमारे देश में राष्ट्रीय सामाजिक न्याय दिवस मनाया जाता है. जिसके उद्देश्य विश्व सामाजिक न्याय से मिलते जुलते ही हैं.

Ans : 20 फरवरी

Ans : जल्द ही अपडेट किया जायेगा

Ans : सन 2009 में

Ans : जी हां, किन्तु भारत में राष्ट्रीय सामाजिक न्याय दिवस भी मनाया जाता है.

Ans : 25 सितंबर को

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UPSC Mains Social Justice Questions in Hindi (सामाजिक न्याय)

Upsc mains social justice questions: सामाजिक न्याय प्रश्न.

  • गति-शक्ति योजना को संयोजकता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सरकार और निजी क्षेत्र के मध्य सतर्क समन्वय की आवश्यकता है। विवेचना कीजिए।  (150 शब्द / 10 अंक)
  • दिव्यांगता के संदर्भ में सरकारी पदाधिकारियों और नागरिकों की गहन संवेदनशीलता के बिना दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 केवल विंधिक दस्तावेज बनकर रह जाता है। टिप्पणी कीजिए।  (150 शब्द / 10 अंक)
  • प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना के माध्यम से सरकारी प्रदेय व्यवस्था में सुधार एक प्रगतिशील कदम है, किन्तु इसकी अपनी सीमाएँ भी हैं। टिप्पणी कीजिए।  (150 शब्द / 10 अंक)
  • कल्याणकारी योजनाओं के अतिरिक्त भारत को समाज के वंचित वर्गों और गरीबों की सेवा के लिए मुद्रास्फीति और बेरोजगारी के कुशल प्रबंधन की आवश्यकता है। चर्चा कीजिए।  (250 शब्द / 15 अंक)
  • क्या आप इस मत से सहमत हैं कि विकास हेतु दाता अभिकरणों पर बढ़ती निर्भरता विकास प्रक्रिया में सामुदायिक भागीदारी के महत्व को घटाती है? अपने उत्तर के औचित्य को सिद्ध कीजिए।  (250 शब्द / 15 अंक)
  • स्कूली शिक्षा के महत्व के बारे में जागरूकता उत्पन्न किए बिना, बच्चों की शिक्षा में प्रेरणा-आधारित पद्धति के संवर्धन में निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 अपर्याप्त है। विश्लेषण कीजिए।  (250 शब्द / 15 अंक)
  • विविधता, समता और समवेशिता सुनिश्चित करने के लिए उच्चतर न्यायपालिका में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने की वांछनीयता पर चर्चा कीजिए।  (150 शब्द)
  • क्या लैंगिक असमानता, गरीबी और कुपोषण के दुष्चक्र को महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को सूक्ष्म वित्त (माइक्रोफाइनेंस) प्रदान करके तोड़ा जा सकता है? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।  (150 शब्द)
  • “यद्यपि स्वतंत्रयोत्तर भारत में महिलाओं ने विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्टता हासिल की है, इसके बावजूद महिलाओं और नारीवादी आंदोलन के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण पितरसत्तात्मक रहा है।” महिला शिक्षा और महिला सशक्तिकरण की योजनाओं के अतिरिक्त कौन- से हस्तक्षेप इस परिवेश के परिवर्तन में सहायक हो सकते हैं?  (250 शब्द)
  • सामाजिक विकास की संभावनाओं को बढ़ाने के क्रम में, विशेषकर जराचिकित्सा एवं मातृ स्वास्थ्य देखभाल संबंधी नीतियों की आवश्यकता है। विवेचना कीजिए।
  • “सूक्ष्म-वित्त एक गरीबी-रोधी टीका है जो भारत में ग्रामीण दरिद्र की परिसंपत्ति निर्माण और आयसुरक्षा के लिए लक्षित है”। स्वयं सहायता समूहों की भूमिका का मूल्यांकन ग्रामीण भारत में महिलाओं के सशक्तिकरण के साथ-साथ उपरोक्त दोहरे उद्देश्यों के लिए कीजिए।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 धारणीय विकास लक्ष्य-4 (2030) के साथ अनुरूपता में है। उसका ध्येय भारत में शिक्षा प्रणाली की पुनःसंरचना और पुनःस्थापना है। इस कथं का समालोचनात्मक निरीक्षण कीजिए।
  • उच्च संवृद्धि के लगातार अनुभव के बावजूद, भारत के मानव विकास के निम्नतम संकेतक चल रहे हैं। उन मुद्दों का परीक्षण कीजिए, जो संतुलित और समावेशी विकास को पकड़ में आने नहीं दे रहे हैं।
  • भारत में निर्धनता और भूख के बीच संबंध में एक बढ़ता हुआ अंतर है। सरकार द्वारा सामाजिक व्यय को संकुचित किए जाना, निर्धनों को अपने खाद्य बजट को निचोडते हुए खाद्येतर अत्यावश्यक मदों पर अधिक व्यय करने के लिए मजबूर कर रहा है। स्पष्ट कीजिए।
  • भारत में सभी के लिए स्वास्थ्य को प्राप्त कारणे के लिए समुचित स्थानीय सामुदायिक स्तरीय स्वास्थ्य देखभाल का मध्यक्षेप एक पूर्वापेक्षा है। व्याख्या कीजीए।
  • समाज के कमजोर वर्गों के लिए विभिन्न आयोगों की बहुलता, अतिव्यापी अधिकारिता और प्रकार्यों के दोहरेपन की समस्याओं की ओर ले जाती है। क्या यह अच्छा होगा कि सभी आयोगों को एक व्यापक मानव अधिकार आयोग के छत्र में विलय कर दिया जाए? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए।
  • नागरिक चार्टर संगठनात्मक पारदर्शिता एवं उत्तरदायित्व का एक आदर्श उपकरण है, परंतु इसकी परिसीमाएं है। परिसीमाओं की पहचान कीजीए तथा नागरिक चार्टर की अधिक प्रभावित के लिए उपायों का सुझाव दीजिए ।
  • भारतीय राजनीतिक प्रक्रम को दबाव समूह किस प्रकार प्रभावित करते हैं? क्या आप इस मत से सहमत हैं की हाल के वर्षों में अनौपचारिक दबाव समूह, औपचारिक दबाव समूह की तुलना में ज्यादा शक्तिशाली रूप में उभरे है? (150 शब्द)
  • “वर्तमान समय में स्वयं-सहायता समूहों का उद्भव राज्य के विकसात्मक गतिविधियों से धीरे परंतु निरंतर पीछे हटने का संकेत है।” विकसात्मक गतिविधियों मे स्वयं-सहायता समूहों की भूमिका का एवं भारत सरकार द्वारा स्वयं-सहायता समूहों को प्रोत्साहित करने के लिए किए गए उपायों का परीक्षण कीजिए। (250 शब्द)
  • प्रारम्भिक तौर पर भारत में लोक सेवाएं तटस्थता और प्रभावशीलता के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अभिकल्पित की गई थी, जिनका वर्तमान संदर्भ मे अभाव दिखी देता है । क्या आप इस मत से सहमत है की लीक सेवाओं में कड़ी सुधारों की आवशक्त है? टिप्पणी कीजिए। (250 शब्द)
  • प्रोफेसर अमर्त्य सेन ने प्राथमिक शिक्षा तथा प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्रे में महत्वपूर्ण सुधारों की वकालत की है। उनकी स्थिति और कार्य-निष्पादन में सुधार हेतु आपके क्या सुझाव है?
  • “ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनलय् के ईमानदारी सूचकांक में, भारत काफी नीचे के पायदान पर है। संक्षेप में उन विधिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक कारकों पर चर्चा कीजिए, जिनके कारण भारत में सार्वजानिक नैतिकता का ह्वास हुआ है।
  • “पारंपरिक अधिकारीतंत्रीय संरचना और संस्कृति ने भारत में सामाजिक-आर्थिक विकास की प्रक्रिया में बाधा डाली है।” टिप्पणी कीजिए।
  • “भारत में जनांकिकीय लाभांश तब तक सैद्धांतिक ही बना रहेगा जब तक कि हमारी जनशक्ति अधिक शिक्षित, जागरूक, कुशल और सृजनशील नहीं हो जाती।” सरकार नें हमारी जनसंख्या को अधिक उत्पादनशील और रोजगार-योग्य बनने की क्षमता में वृद्धि के लिए कौन कौन से उपाय किये है?
  • पर्यावरण की सुरक्षा से संबंधित विकास कार्यों के लिए भारत में गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका को किस प्रकार मजबूत बनाया जा सकता है? मुख्य बाध्यताओं पर प्रकाश डालते हुए चर्चा कीजिए।
  •   भारत में उच्च शिक्षा की गुणता को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगी बनाने के लिए उसमें भारी सुधारों की आवश्यकता है। क्या आपके विचार में विदेशी शैक्षिक संस्थाओं का प्रवेश देश में उच्च और तकनीकी शिक्षा की गुणता की प्रोन्नति में सहायक होगा? चर्चा कीजिए।
  • सार्विक स्वास्थ्य संरक्षण प्रदान करने में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की अपनी परिसीमाएँ हैं। क्या आपके विचार में खाई को पाटने में निजी क्षेत्रक सहायक हो सकता है? आप अन्य कौन-से व्यवहार्य विकल्प सुझाएँगे?
  •   यद्यपि भारत में निर्धनता के अनेक विभिन्न प्राक्कलन किए गए हैं, तथापि सभी समय गुजरने के साथ निर्धनता स्तरों में कमी आने का संकेत देते हैं। क्या आप सहमत हैं? शहरी और ग्रामीण निर्धनता संकेतकों का उल्लेख के साथ समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
  • ग्रामीण क्षेत्रें में विकास कार्यक्रमों में भागीदारी का प्रोन्नति करने में स्वावलंबन समूहों के प्रवेश को सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। परीक्षण कीजिए।
  • खिलाड़ी औलंपिक्स में व्यक्तिगत विजय और देश के गौरव के लिए भाग लेता हैः वापसी घर, विजेताओं पर विभिन्न संस्थाओं द्वारा नकद प्रोत्साहनों की बौछार की जाती है। प्रोत्साहन के तौर पर पुरस्कार कार्यविधि के तर्काधार के मुकाबले, राज्य प्रायोजित प्रतिभा खोज और उसके पोषण के गुणावगुण पर चर्चा कीजिए।
  • क्या आई.आई.टी./आई.आई.एम. जैसे प्रमुख संस्थानों को अपनी प्रमुख स्थिति को बनाए रखने की, पाठ्यक्रमों को डिजाइन करने में अधिक शैक्षिक स्वतंत्रता की और साथ ही छात्रों को चयन की विधाओं/कसौटियों के बारे में स्वयं निर्णय लेने की अनुमति दी जानी चाहिए? बढ़ती हुई चुनौतियों के प्रकाश में चर्चा कीजिए।
  •   प्रभावक-समूह राजनीति को कभी-कभी राजनीति का अनौपचारिक मुखपृष्ठ माना जाता है। उपर्युक्त के संबंध में, भारत में प्रभावक-समूहों की संरचना व कार्यप्रणाली का आकलन कीजिए।
  • स्वयं सहायता समूहों की वैधता एव जवाबदेही और उनके संरक्षक, सूक्ष्म-वित्त पोषक इकाइयों का, इस अवधारणा की सतत सफलता के लिए योजनाबद्ध आकलन व संवीक्षण आवश्यक है। विवेचना कीजिए।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी सुविधाओं का प्रावधान (पुरा) का आधार संयोजकता (मेल) स्थापित करने में निहित है। टिप्पणी कीजिए।
  • उन सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों को पहचानिए जो स्वास्थ्य से संबंधित है। इनहें पूरा करने के लिए सरकार द्वारा की गई कार्रवाई की सफलता की विवेचना कीजिए।
  •   यद्यपि अनेक लोक सेवा प्रदान करने वाले संगठनों ने नागरिकों के घोषणा-पत्र (चार्टर) बनाए है, पर दी जाने वाली सेवाओं की गुणवत्ता और नागरिकों के संतुष्टि स्तर में अनुकूल सुधार नहीं हुआ है। विश्लेषण कीजिए।

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सामाजिक न्याय पर निबंध | Social Justice Essay in Hindi

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Published on: April 9, 2024

Social Justice Essay in Hindi   :   इस लेख में हमने  सामाजिक न्याय पर निबंध के बारे में जानकारी प्रदान की है। यहाँ पर दी गई जानकारी बच्चों से लेकर प्रतियोगी परीक्षाओं के तैयारी करने वाले छात्रों के लिए उपयोगी साबित होगी।

 सामाजिक न्याय निबंध: सामाजिक न्याय की चर्चा इस शब्द की परिभाषा से शुरू होनी चाहिए। कहा जाता है कि ये काम कठिन हो सकता है. यदि आप सामाजिक न्याय के बारे में Google पर खोज करते हैं, तो प्राथमिक परिणाम सामाजिक न्याय का अर्थ प्रस्तुत करता है।

यह सामाजिक न्याय को प्रथागत कानून को समायोजित करने वाले कानूनों के उचित और उचित संगठन के रूप में परिभाषित करेगा, जिसमें जातीय जन्मस्थान, लिंग संपत्ति, नस्ल, धर्म आदि से स्वतंत्र सभी लोगों के साथ समान रूप से और बिना पूर्वाग्रह के व्यवहार किया जाना है। सामाजिक न्याय आम जनता का एक विचार है जहां प्रत्येक व्यक्ति के साथ बजटीय स्थिति, जाति, लिंग, राष्ट्रीयता आदि पर निर्भर अलगाव के बिना निष्पक्षता से व्यवहार किया जाता है।

  • 1 सामाजिक न्याय पर लंबा निबंध  (500 शब्द)
  • 2 सामाजिक न्याय पर लघु निबंध (150 शब्द)
  • 3 सामाजिक न्याय पर 10 पंक्तियाँ
  • 4 सामाजिक न्याय पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

सामाजिक न्याय पर लंबा निबंध  (500 शब्द)

सामाजिक न्याय व्यक्ति और समाज के बीच उचित या समायोजित संबंधों का एक विचार है, जैसा कि बहुतायत के संप्रेषण से अनुमान लगाया जाता है जिसमें व्यक्तिगत कार्रवाई और सामाजिक लाभ के अवसर शामिल होते हैं। पश्चिमी और साथ ही अधिक स्थापित एशियाई समाजों में, सामाजिक न्याय का विचार नियमित रूप से यह सुनिश्चित करने की ओर इशारा करता है कि लोग अपनी सांस्कृतिक नौकरियों को पूरा करें और उन्हें समाज से उनका हक मिले।

सामाजिक न्याय “हम बनाम वे” मानसिकता नहीं है; बल्कि, यह “हम इसमें एक साथ हैं” रवैया है जहां अद्भुत और कमजोर एक साथ काम करते हैं।

लुइगी टापरेली नाम के एक जेसुइट पुजारी ने सबसे पहले यह शब्द 1780 के दशक में गढ़ा और 1848 की क्रांति के दौरान फैल गया। औद्योगिक क्रांति के अंत में, नवोन्मेषी अमेरिकी कानूनी विद्वानों ने इस शब्द का अधिक उपयोग करना शुरू कर दिया, विशेष रूप से लुई ब्रैंडिस और रोस्को पाउंड ने। सामाजिक न्याय के विभिन्न विचार, जैसा कि पुरानी पश्चिमी सोच में जांचा गया था, आम तौर पर समुदाय पर केंद्रित थे। प्लेटो का मानना ​​था कि अधिकार केवल स्वतंत्र लोगों के बीच ही होते हैं। मध्य युग के दौरान, कुछ धार्मिक विद्वान विभिन्न तरीकों से न्याय की चर्चा करते हैं, पुनर्जागरण और सुधार के बाद, मानव क्षमता के निर्माण के रूप में सामाजिक न्याय का उन्नत विचार, रचनाकारों की एक श्रृंखला द्वारा तैयार किया गया।

आज, सामाजिक न्याय का विचार अक्सर बुनियादी स्वतंत्रता की ओर इशारा करता है, जो जाति, पहचान, जातीयता, लिंग, यौन दिशा, उम्र, धर्म और विकलांगता पर निर्भर समूहों के जीवन को बेहतर बनाने के इर्द-गिर्द घूमता है। सामाजिक न्याय के पांच सिद्धांत समानता, पहुंच, विविधता, भागीदारी, मानवाधिकार हैं। सामाजिक न्याय मानव अधिकारों और समानता की अवधारणाओं पर आधारित है।

उदाहरण के लिए, आय असमानता एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जो सामाजिक न्याय की छत्रछाया में शामिल है। आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले तीस वर्षों से आय असमानता बढ़ रही है। सामाजिक न्याय कई मुद्दों को समझ सकता है, लेकिन अंततः, यह दुनिया द्वारा अनुभव किए जा रहे कई गहरे विभाजनों को ठीक करने का एक महत्वपूर्ण घटक है। हालांकि कुछ लोग सामाजिक न्याय के विचार या कुछ गंभीर आर्थिक और नस्लीय मुद्दों को हल करने के लिए त्वरित कार्रवाई की आवश्यकता की आलोचना कर सकते हैं, लेकिन सामाजिक न्याय पर मतदान या विरोध जैसे सक्रिय दृष्टिकोण से एक बेहतर, उज्जवल देश का निर्माण होगा।

जबकि कई वैश्विक समूह सभी को समान अधिकार प्रदान करना चाह रहे हैं, नस्लीय भेदभाव फिर भी एक गर्म विषय है। दुनिया भर में इस क्षेत्र में कानून हैं, लेकिन कई घटनाएं यह दर्शाती हैं कि नस्लीय भेदभाव को खत्म नहीं किया गया है। भेदभाव सभी रूपों में आता है। आपके द्वारा अर्जित जन्मदिनों की संख्या एक और उदाहरण है।

आयुवाद, जहां वृद्धों के साथ भेदभाव किया जाता है, वृद्धों के कमजोर, कमजोर या बदलने में असमर्थ होने की नकारात्मक रूढ़िवादिता पैदा करता है। उम्र के आधार पर भेदभाव के अलावा, अन्य गर्म विषय लिंग और कामुकता हैं। हाल के वर्षों में, लिंग एक जटिल विषय बन गया है जो पुरुष और महिला के द्विआधारी पदनामों से परे है।

सामाजिक न्याय हमारे समाज की संस्थाओं में अधिकारों और कर्तव्यों का आवंटन करता है, जो लोगों को सहयोग के बुनियादी लाभ और बोझ प्राप्त करने में सक्षम बनाता है। यह हमें अपने समुदायों और देश में विविधता का जश्न मनाने की दिशा में काम करने में मदद करता है।

सामाजिक न्याय पर लघु निबंध (150 शब्द)

सामाजिक न्याय व्यक्ति और समाज के बीच भेदभाव रहित और निष्पक्ष संबंधों की एक परिकल्पना है। देखने योग्य लेकिन अनकही शर्तें इसे धन के वितरण, व्यक्तिगत गतिविधि के अवसरों और सामाजिक विशेषाधिकारों के लिए निर्धारित करती हैं।

लुइगी टापरेली ने सबसे पहले यह शब्द 1780 के दशक में गढ़ा और 1848 की क्रांति के दौरान इसका प्रसार हुआ। सामाजिक अनुबंध के विचार को विकसित करने का श्रेय सुकरात को दिया जाता है। पुनर्जागरण और सुधार के बाद, मानव क्षमता के निर्माण के रूप में सामाजिक न्याय का उन्नत विचार, रचनाकारों की एक श्रृंखला द्वारा तैयार किया गया।

आधुनिक युग के साथ सामाजिक न्याय का चेहरा बदल गया है। जबकि रैलियाँ और मार्च अभी भी प्रचलित हैं, सामाजिक न्याय के मुद्दों को प्रकाश में लाने के लिए इंटरनेट का भी उपयोग किया जाता है। इसे #blacklivesmatter और यौन उत्पीड़न के खिलाफ #metoo आंदोलन जैसे आंदोलनों के माध्यम से देखा जा सकता है। ये अभियान मुद्दों को बड़े आंदोलनों में विस्तारित करने का काम करते हैं जो कार्यकर्ताओं को एक साथ लाते हैं। मतदान के अलावा, प्रचार करना सामाजिक न्याय का बुनियादी दृष्टिकोण है।

सामाजिक न्याय पर निबंध | Social Justice Essay in Hindi

सामाजिक न्याय पर 10 पंक्तियाँ

  • लुइगी टापरेली ने सबसे पहले यह शब्द 1780 के दशक में गढ़ा था।
  • सामाजिक न्याय शब्द का प्रसार 1848 की क्रांति के दौरान हुआ।
  • #metoo मूवमेंट का असर पूरी दुनिया पर पड़ा.
  • सामाजिक न्याय उन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए दूसरों के साथ संगठित हो सकता है जिससे पूरे समुदाय को लाभ हो।
  • आय असमानता अब सबसे बड़ी सामाजिक समस्याओं में से एक है।
  • सामाजिक न्याय हमें अपने समुदायों और देश में विविधता का जश्न मनाने की दिशा में काम करने में मदद करता है।
  • सामाजिक न्याय में सबसे उपयोगी चीज़ वोट है।
  • दुनिया भर के तेईस देश वर्तमान में सामाजिक न्याय के माध्यम से समलैंगिक विवाह की अनुमति देते हैं।
  • नेपाल कम से कम पांच देशों में से एक है जहां आपका लिंग अब आधिकारिक बयानों में “अन्य” के रूप में दिखाई दे सकता है।
  • 20 फरवरी विश्व सामाजिक न्याय दिवस है।

सामाजिक न्याय पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

प्रश्न 1. सामाजिक न्याय का उदाहरण क्या है?

उत्तर:   #MeToo और #ब्लैकलाइव्समैटर आंदोलन संयुक्त राज्य अमेरिका में चल रहे सामाजिक न्याय के दो उदाहरण हैं.

प्रश्न 2. अब महत्वपूर्ण पाँच सामाजिक समस्याएँ क्या हैं?

उत्तर: गरीबी, नशीली दवाओं का दुरुपयोग, वेश्यावृत्ति, नस्लीय भेदभाव सामाजिक समस्याओं के उदाहरण हैं।

प्रश्न 3.  क्या सामाजिक न्याय अच्छा है?

उत्तर: सामाजिक न्याय उन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए दूसरों के साथ संगठित हो सकता है जिससे पूरे समुदाय को लाभ हो।

प्रश्न 4. शक्ति या शक्ति की कमी किस हद तक व्यक्तियों को प्रभावित करती है?

उत्तर: शक्ति या शक्ति की कमी व्यक्तियों को बुरे और अच्छे तरीके से प्रभावित कर सकती है। उदाहरण के लिए, शक्ति आपको भ्रष्ट बना सकती है, और शक्ति की कमी आपको महत्वाकांक्षी बना सकती है।

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मैं इतिहास विषय की छात्रा रही हूँ I मुझे विभिन्न विषयों से जुड़ी जानकारी साझा करना बहुत पसंद हैI मैं इस मंच बतौर लेखिका कार्य कर रही हूँ I

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मानव अधिकार पर निबंध (Human Rights Essay in Hindi)

मानव अधिकार मूल रूप से वे अधिकार हैं जो प्रत्येक व्यक्ति को इंसान होने के कारण मिलते हैं। ये नगरपालिका से लेकर अंतरराष्ट्रीय कानून तक कानूनी अधिकार के रूप में संरक्षित हैं। मानवाधिकार सार्वभौमिक हैं इसलिए ये हर जगह और हर समय लागू होते हैं। मानवाधिकार मानदंडों का एक समूह है जो मानव व्यवहार के कुछ मानकों को चित्रित करता है। नगर निगम के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय कानून में कानूनी अधिकारों के रूप में संरक्षित, इन अधिकारों को अनौपचारिक मौलिक अधिकारों के रूप में जाना जाता है जिसका एक व्यक्ति सिर्फ इसलिए हकदार है क्योंकि वह एक इंसान है।

मानव अधिकार पर बड़े तथा छोटे निबंध (Long and Short Essay on Human Rights, Manav Adhikar par Nibandh Hindi mein)

निबंध 1 (300 शब्द) – मूलभूत मानव अधिकार.

मानव अधिकार वे मानदंड हैं जो मानव व्यवहार के मानकों को स्पष्ट करते हैं। एक इंसान होने के नाते ये वो मौलिक अधिकार हैं जिनका प्रत्येक व्यक्ति स्वाभाविक रूप से हकदार है। ये अधिकार कानून द्वारा संरक्षित हैं।

मूलभूत मानव अधिकार

हमारे यहां कुछ बुनियादी मानवाधिकारों को विशेष रुप से सुरक्षित किया गया है। जिनकी प्राप्ति देश के हर व्यक्ति होनी चाहिए, ऐसे ही कुछ मूलभूत मानव अधिकारों के विषय में नीचे चर्चा की गयी है।

  • जीवन का अधिकार

प्रत्येक व्यक्ति के पास अपना स्वतन्त्र जीवन जीने का जन्मसिद्ध अधिकार है। हर इंसान को किसी अन्य व्यक्ति द्वारा नहीं मारे जाने का भी अधिकार है।

  • उचित परीक्षण का अधिकार

प्रत्येक व्यक्ति को निष्पक्ष न्यायालय द्वारा निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार है। इसमें उचित समय के भीतर सुनवाई, जन सुनवाई और वकील के प्रबंध आदि के अधिकार शामिल हैं।

  • सोच, विवेक और धर्म की स्वतंत्रता

प्रत्येक व्यक्ति को विचार और विवेक की स्वतंत्रता है उसे अपने धर्म को चुनने की भी स्वतंत्रता है और अगर वह इसे किसी भी समय बदलना चाहे तो उसके लिए भी स्वतंत्र है।

  • दासता से स्वतंत्रता

गुलामी और दास प्रथा पर क़ानूनी रोक है। हालांकि यह अभी भी दुनिया के कुछ हिस्सों में इसका अवैध रूप से पालन किया जा रहा है।

  • अत्याचार से स्वतंत्रता

अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत यातना देने पर प्रतिबंध है। हर व्यक्ति यातना न सहने से स्वतंत्र है।

अन्य सार्वभौमिक मानव अधिकारों में स्वतंत्रता और व्यक्तिगत सुरक्षा, भाषण की स्वतंत्रता, सक्षम न्यायाधिकरण, भेदभाव से स्वतंत्रता, राष्ट्रीयता का अधिकार और इसे बदलने के लिए स्वतंत्रता, विवाह और परिवार के अधिकार, आंदोलन की स्वतंत्रता, संपत्ति का अधिकार, शिक्षा के अधिकार, शांतिपूर्ण विधानसभा और संघ के अधिकार, गोपनीयता, परिवार, घर और पत्राचार से हस्तक्षेप की स्वतंत्रता, सरकार में और स्वतंत्र रूप से चुनाव में भाग लेने का अधिकार, राय और सूचना के अधिकार, पर्याप्त जीवन स्तर के अधिकार, सामाजिक सुरक्षा का अधिकार और सामाजिक आदेश का अधिकार जो इस दस्तावेज़ को अभिव्यक्त करता हो आदि शामिल हैं।

हालांकि कानून द्वारा संरक्षित इन अधिकारों में से कई का लोगों द्वारा, यहां तक ​​कि सरकारों के द्वारा भी, उल्लंघन किया जाता है। हालांकि मानवाधिकारों के उल्लंघन पर नजर रखने के लिए कई संगठन बनाए गए हैं। ये संगठन इन अधिकारों की सुरक्षा के लिए कदम उठाते हैं।

कई बार ऐसा देखने को मिलता है कि जिन लोगों के ऊपर मानव अधिकारों की रक्षा की जिम्मेदारी होती है वही अपने शक्ति का दुरुपयोग कर लोगो के मानव अधिकारों का हनन करने लगते है। इसलिए इस बात को सुनिश्चित किया जाना चाहिए की देश के सभी व्यक्तियों को उनके मानव अधिकारों की प्राप्ति हो।

निबंध 2 (400 शब्द) – सार्वभौमिक मानव अधिकार व मानवाधिकारों का उल्लंघन

मानवाधिकार वे अधिकार हैं जोकि इस पृथ्वी पर हर व्यक्ति केवल एक इंसान होने के कारण ही प्राप्त हुए हैं। ये अधिकार विश्व्यापी हैं और वैश्विक कानूनों द्वारा संरक्षित हैं। सदियों से मानवाधिकार और स्वतंत्रता का विचार अस्तित्व में है। हालांकि समय के बदलने के साथ-साथ इनमें भी परिवर्तन हुआ है।

सार्वभौमिक मानव अधिकार

मानव अधिकारों में वे मूल अधिकार शामिल हैं जो हर जाति, पंथ, धर्म, लिंग या राष्ट्रीयता की परवाह किए बिना हर इंसान को दिए जाते हैं। सार्वभौमिक मानवाधिकारों का विस्तृत वर्णन इस प्रकार है:

  • जिंदगी जीने, आज़ादी और निजी सुरक्षा का अधिकार
  • समानता का अधिकार
  • सक्षम न्यायाधिकरण द्वारा बचाव का अधिकार
  • कानून के सामने व्यक्ति के रूप में मान्यता के अधिकार
  • भेदभाव से स्वतंत्रता
  • मनमानी गिरफ्तारी और निर्वासन से स्वतंत्रता
  • अपराध सिद्ध न होने तक निर्दोष माने जाने का अधिकार
  • उचित सार्वजनिक सुनवाई का अधिकार
  • आंदोलन की स्वतंत्रता
  • गोपनीयता, परिवार, गृह और पत्राचार में हस्तक्षेप से स्वतंत्रता
  • अन्य देशों में शरण का अधिकार
  • राष्ट्रीयता को बदलने की स्वतंत्रता का अधिकार
  • विवाह और परिवार के अधिकार
  • शिक्षा का अधिकार
  • खुद की संपत्ति रखने का अधिकार
  • शांतिपूर्ण सभा और एसोसिएशन बनाने का अधिकार
  • सरकार में और नि: शुल्क चुनावों में भाग लेने का अधिकार
  • विश्वास और धर्म की स्वतंत्रता
  • सही तरीके से रहने/जीने का अधिकार
  • समुदाय के सांस्कृतिक जीवन में भाग लेने का अधिकार
  • सामाजिक सुरक्षा का अधिकार
  • वांछनीय कार्य और ट्रेड यूनियनों में शामिल होने का अधिकार
  • अवकाश और विश्राम का अधिकार
  • ऊपर दिए अधिकारों में राज्य या व्यक्तिगत हस्तक्षेप से स्वतंत्रता

मानवाधिकारों का उल्लंघन

यद्यपि मानव अधिकार विभिन्न कानूनों द्वारा संरक्षित हैं पर अभी भी लोगों, समूहों और कभी-कभी सरकार द्वारा इसका उल्लंघन किया जाता है। उदाहरण के लिए पूछताछ के दौरान पुलिस द्वारा यातना की आज़ादी का अक्सर उल्लंघन किया जाता है। इसी प्रकार गुलामी से स्वतंत्रता को मूल मानव अधिकार कहा जाता है लेकिन गुलामी और गुलाम प्रथा अभी भी अवैध रूप से चल रही है। मानव अधिकारों के दुरुपयोग की निगरानी के लिए कई संस्थान बनाए गए हैं। सरकारें और कुछ गैर-सरकारी संगठन भी इनकी जांच करते हैं।

हर व्यक्ति को मूल मानवाधिकारों का आनंद लेने का हक है। कभी-कभी इन अधिकारों में से कुछ का सरकार द्वारा दुरूपयोग किया जाता है। सरकार कुछ गैर-सरकारी संगठनों की सहायता से मानवाधिकारों के दुरुपयोगों पर नजर रखने के लिए उपाय कर रही है।

निबंध 3 (500 शब्द) – मानवाधिकार के प्रकार

मानवाधिकारों को सार्वभौमिक अधिकार कहा जाता है जिसका प्रत्येक व्यक्ति अपना लिंग, जाति, पंथ, धर्म, संस्कृति, सामाजिक/आर्थिक स्थिति या स्थान की परवाह किए बिना हकदार है। ये वो मानदंड हैं जो मानव व्यवहार के कुछ मानकों का वर्णन करते हैं और कानून द्वारा संरक्षित हैं।

मानवाधिकार के प्रकार

मानव अधिकारों को दो व्यापक श्रेणियों में विभाजित किया गया है। ये नागरिक और राजनीतिक अधिकार हैं। इनमें सामाजिक अधिकार भी हैं जिनमें आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकार शामिल हैं। यहां हर व्यक्ति को दिए गए बुनियादी मानवाधिकारों पर विस्तृत जानकारी दी गई है:

पृथ्वी पर रहने वाले हर इंसान को जीवित रहने का अधिकार है। प्रत्येक व्यक्ति को किसी के द्वारा नहीं मारे जाने का अधिकार है और यह अधिकार कानून द्वारा संरक्षित है। हालांकि इसमें मौत की सजा, आत्मरक्षा, गर्भपात, इच्छामृत्यु और युद्ध जैसे मुद्दे शामिल नहीं हैं।

  • बोलने की स्वतंत्रता

हर इंसान को स्वतंत्र रूप से बोलने का और जनता में अपनी राय की आवाज उठाने का अधिकार है हालांकि इस अधिकार में कुछ सीमा भी है जैसे अश्लीलता, गड़बड़ी और दंगा भड़काना।

हर देश अपने नागरिकों को स्वतंत्र रूप से सोचने और ईमानदार विश्वासों का निर्माण करने का अधिकार देता है। हर व्यक्ति को अपनी पसंद के किसी भी धर्म का पालन करने का अधिकार है और समय-समय पर किसी भी समय अपनी स्वतंत्र इच्छा के अनुसार इसे बदलने के लिए स्वतंत्र है।

इस अधिकार के तहत हर व्यक्ति को निष्पक्ष अदालत द्वारा निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार, उचित समय के भीतर सुनना, वकील के अधिकार, जन सुनवाई के अधिकार और व्याख्या के अधिकार हैं।

अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अत्याचार से स्वतंत्रता का अधिकार है। 20वीं शताब्दी के मध्य से इस पर प्रतिबंध लगाया गया है।

इसका मतलब यह है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने देश के किसी भी हिस्से में यात्रा करने, रहने, काम या अध्ययन करने का अधिकार है।

इस अधिकार के अनुसार गुलामी और गुलामी के व्यापारियों को हर रूप में प्रतिबंधित किया गया है। हालांकि दुर्भाग्य से ये दुर्व्यवहार अब भी अवैध तरीके से चलते हैं।

मानवाधिकार का उल्लंघन

जहाँ हर इंसान मानव अधिकार का हकदार है वहीँ इन अधिकारों का अब भी अक्सर उल्लंघन किया जाता है। इन अधिकारों का उल्लंघन तब होता है जब राज्य द्वारा की गई कार्रवाईयों में इन अधिकारों की उपेक्षा, अस्वीकार या दुरुपयोग होता है।

मानव अधिकारों के दुरुपयोग की जांच करने के लिए संयुक्त राष्ट्र समिति की स्थापना की गई है। कई राष्ट्रीय संस्थान, गैर-सरकारी संगठन और सरकार भी यह सुनिश्चित करने के लिए इन पर नजर रखती हैं कि कहीं किसी व्यक्ति के मूल अधिकारों का हनन तो नहीं हो रहा हैं।

ये संगठन मानव अधिकारों के बारे में जागरूकता फैलाने की दिशा में काम करते हैं ताकि लोगों को उनके अधिकारों के बारे में अच्छी जानकारी मिल सके। उन्होंने अमानवीय प्रथाओं के खिलाफ भी विरोध किया है। इन विरोधों के कारण कई बार कार्रवाई देखने को मिली है जिससे स्थिति में सुधार हुआ है।

मानव अधिकार हर व्यक्ति को दिए गए मूल अधिकार हैं। सार्वभौमिक होने के लिए इन अधिकारों को कानून द्वारा संरक्षित किया जाता है हालांकि, दुर्भाग्य से कई बार राज्यों, व्यक्तियों या समूहों द्वारा उल्लंघन किया जाता है। इन मूल अधिकारों से एक व्यक्ति को वंचित करना अमानवीय है। यही कारण है कि इन अधिकारों की सुरक्षा के लिए कई संगठन स्थापित किए गए हैं।

Essay on Human Rights in Hindi

निबंध 4 (600 शब्द) – मानव अधिकार व इस का महत्व

मानवाधिकार निर्विवाद अधिकार है क्योंकि पृथ्वी पर मौजूद हर व्यक्ति इंसान होने के नाते इसका हकदार है। ये अधिकार प्रत्येक इंसान को अपने लिंग, संस्कृति, धर्म, राष्ट्र, स्थान, जाति, पंथ या आर्थिक स्थिति के बंधनों से आज़ाद हैं। मानवाधिकारों का विचार मानव इतिहास से ही हो रहा है हालांकि इस अवधारणा में पहले के समय में काफ़ी भिन्नता थी। यहाँ इस अवधारणा पर एक विस्तृत नज़र डाली गई है:

मानव अधिकारों का वर्गीकरण

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों को व्यापक रूप से वर्गीकृत किया गया है: नागरिक और राजनीतिक अधिकार तथा सामाजिक अधिकार जिसमें आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकार शामिल हैं। हर व्यक्ति के सरल तथा सामान्य जीवन के लिए यह काफी आवश्यक है कि हर हालात में उसे आवश्यक मानव अधिकारों की प्राप्ति अवश्य हो। इन्हीं के आधार पर विभिन्न तरह के मानव अधिकारों का वर्गीकरण किया गया है।

नागरिक और राजनीतिक अधिकार

यह अधिकार व्यक्ति की स्वायत्तता को प्रभावित करने वाले कार्यों के संबंध में सरकार की शक्ति को सीमित करता है। यह लोगों को सरकार की भागीदारी और कानूनों के निर्धारण में योगदान करने का मौका देता है।

सामाजिक अधिकार

ये अधिकार सरकार को एक सकारात्मक और हस्तक्षेपवादी तरीके से कार्य करने के लिए निर्देश देते है ताकि मानव जीवन और विकास के लिए आवश्यक जरूरतें पूरी हो सकें। प्रत्येक देश की सरकार अपने सभी नागरिकों की भलाई सुनिश्चित करने की उम्मीद करती है। प्रत्येक व्यक्ति को सामाजिक सुरक्षा का अधिकार है।

मानव अधिकार का महत्व

आज के समय में मानव अधिकार एक ऐसी सुविधा है, जिसके बिना हमारा जीवन काफी भयावह और दयनीय हो जायेगा क्योंकि बिना मानव अधिकारों के हम पर तमाम तरह के अत्यार किये जा सकते है और बिना किसी भय के हमारा शोषण किया जा सकता है। वास्तव में मानव अधिकार सिर्फ आज के समय में ही नही पूरे मानव सभ्यता के इतिहास में भी काफी आवश्यक रहे है। भारत में भी प्रचीनकाल में कई सारे गणतांत्रिक राज्यों के नागरिकों को कई विशेष मानव अधिकार प्राप्त थे। आज के समय में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कैदियों से लेकर युद्धबंदियों तक के मानव अधिकार को तय किया गया है। इन अधिकारों की देखरेख और नियमन कई प्रमुख अंतराष्ट्रीय संस्थाओं और संगठनों द्वारा किया जाता है।

यदि मानव अधिकार ना हो तो हमारा जीवन पशुओं से भी बदतर हो जायेगा, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हमें आज के समय में कई तानाशाही और धार्मिक रुप से संचालित होने वाले देशों में देखने को मिलता है। जहां सिर्फ अपने विचार व्यक्त कर देने पर या फिर कोई छोटी सी गलती कर देने पर किसी व्यक्ति को मृत्युदंड जैसी कठोर सजा सुना दी जाती है क्योंकि ना तो कोई वहा मानव अधिकार नियम है ना तो किसी तरह का कानून, इसके साथ ही ऐसे देशों में सजा मिलने पर भी बंदियों के साथ पशुओं से भी बुरा सलूक किया जाता है।

वही दूसरी तरफ लोकतांत्रिक देशों में मानव अधिकारों को काफी महत्व दिया जाता है और हरके व्यक्ति चाहे फिर वह अपराधी या युद्धबंदी ही क्यों ना हो उसे अपना पक्ष रखने का पूरा अवसर दिया जाता है, इसके साथ ही सजा मिलने पर भी उन्हें मूलभूत सुविधाएं अवश्य दी जाती है। इस बात से हम अंदाजा लगा सकते है कि मानव अधिकार हमारे जीवन में कितना महत्व रखते है।

मानवाधिकार, व्यक्तियों को दिए गए मूल अधिकार हैं, जो लगभग हर जगह समान हैं। प्रत्येक देश किसी व्यक्ति की जाति, पंथ, रंग, लिंग, संस्कृति और आर्थिक या सामाजिक स्थिति को नज़रंदाज़ कर इन अधिकारों को प्रदान करता है। हालांकि कभी-कभी इनका व्यक्तियों, समूहों या स्वयं राज्य द्वारा उल्लंघन किया जाता है। इसलिए लोगों को मानवाधिकारों के किसी भी उल्लंघन के खिलाफ खुद आवाज़ उठाने की जरूरत है।

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उत्तर- प्रत्येक वर्ष 10 दिसंबर को।

उत्तर- 12 अक्टूबर 1993 को।

उत्तर- नई दिल्ली में।

उत्तर- रंगनाथ मिश्र

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Justice Quotes in Hindi : महान लोगों के द्वारा कहे गए न्याय पर अनमोल विचार

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  • Updated on  
  • जुलाई 18, 2023

Justice Quotes in Hindi

न्याय की अवधारणा हममें से अधिकांश लोगों के मन में गहराई तक व्याप्त है। न्याय एक सभ्य समाज की नींव बनाता है। अरस्तू ने ‘ काव्यात्मक न्याय ‘ का वर्णन इस प्रकार किया है कि ” अवांछनीय होने पर अच्छे या बुरे भाग्य पर दर्द महसूस किया जाता है, या यदि योग्य हो तो उन पर खुशी महसूस की जाती है”। विश्व अंतरराष्ट्रीय न्याय दिवस के अवसर पर आईये जानें कुछ Justice Quotes in Hindi. 

“न्याय तब तक नहीं मिलेगा जब तक कि जो लोग अप्रभावित हैं वे उन लोगों की तरह क्रोधित न हों जो प्रभावित हैं।” – बेंजामिन फ्रैंकलिन

Justice Quotes in Hindi

“यदि आप हर अन्याय पर आक्रोश से कांपते हैं तो आप मेरे साथी हैं।” – अर्नेस्टो चे ग्वेरा

Justice Quotes in Hindi

“मैंने हमेशा पाया है कि दया सख्त न्याय की तुलना में अधिक समृद्ध फल देती है।” – अब्राहम लिंकन

Justice Quotes in Hindi

हर अन्याय को पता है कि एक दिन उसे न्याय परास्त करेगा।

Justice Quotes in Hindi

“किसी निर्दोष को सजा होने से अच्छा है कि न्याय में थोड़ी देरी हो “

Justice Quotes in Hindi

“न्याय वह है जो कि दूध का दूध, पानी का पानी कर दे, यह नहीं कि खुद ही कागजों के धोखे में आ जाए, खुद ही पाखंडियों के जाल में फँस जाए” -प्रेमचंद

Justice Quotes in Hindi

“सही सही है, भले ही हर कोई इसके खिलाफ हो, और गलत गलत है, भले ही हर कोई इसके पक्ष में हो।”
“लेकिन पुरुष अक्सर हत्या और बदला लेने को न्याय समझने की गलती करते हैं। उनके पास शायद ही कभी न्याय पाने की हिम्मत होती है।” -रॉबर्ट जॉर्डन
“गरीबों की पुकार हमेशा न्यायपूर्ण नहीं होती, लेकिन अगर आप इसे नहीं सुनेंगे, तो आप कभी नहीं जान पाएंगे कि न्याय क्या है।” – हॉवर्ड ज़िन, ए पीपल्स हिस्ट्री ऑफ़ द युनाइटेड स्टेट्स

Justice Quotes in Hindi

“दोषियों पर दया करना निर्दोषों पर देशद्रोह है।” – टेरी गुडकाइंड, फेथ ऑफ द फॉलन
“जहां न्याय से इनकार किया जाता है, जहां गरीबी लागू की जाती है, जहां अज्ञानता व्याप्त है, और जहां किसी एक वर्ग को यह महसूस कराया जाता है कि समाज उन्हें दबाने, लूटने और अपमानित करने की एक संगठित साजिश है, वहां न तो व्यक्ति और न ही संपत्ति सुरक्षित होगी।” -फ्रेडरिक डगलस
“लोगों के बीच न्याय स्वाभाविक नहीं है, लेकिन न्याय के लिए संघर्ष समाज में सबसे महान कार्य है। क्योंकि न्याय संभव नहीं हो सकता है, लेकिन चूंकि यह प्रत्येक व्यक्ति के रहने के लिए वांछित समाज की ओर जाने का रास्ता है, इसलिए इसका संघर्ष महान है और इसे सर्वोच्च कार्य माना जाता है।”

Quotes on Justice in Hindi : न्याय से जुड़े अनमोल कथन 

न्याय की रक्षा कर पाने की क्षमता ही न्याय और अन्याय में फर्क करती है। न्याय से जुड़े कुछ अनमोल कथन (Quotes on Justice in Hindi) यहाँ प्रस्तुत हैं। 

अपनी आखों के सामने अन्याय होता हुआ देखकर चुप रहना अन्याय करने के ही समान हैं। 

Justice Quotes in Hindi

यदि आप अन्याय के खिलाफ़ खड़े नहीं हो सकते हैं तो न्याय की उम्मीद न करें। 

Justice Quotes in Hindi

सत्य का क्रियान्वन ही न्याय है। 

Justice Quotes in Hindi

किसी भी जगह होने वाला अन्याय सर्वत्र न्याय के लिए एक खतरा है।  -मार्टिन लूथर किंग 

Justice Quotes in Hindi

“सच्ची शांति केवल युद्ध की अनुपस्थिति नहीं है, यह न्याय की उपस्थिति है।” – जेन एडम्स

Justice Quotes in Hindi

“मनुष्य की न्याय की क्षमता लोकतंत्र को संभव बनाती है, लेकिन मनुष्य का अन्याय के प्रति झुकाव लोकतंत्र को आवश्यक बनाता है।” – रेनहोल्ड निबुहर
“एक राष्ट्रपति किसी राष्ट्र की रक्षा नहीं कर सकता यदि उसे उसके कानूनों के प्रति जवाबदेह नहीं ठहराया जाता है।” – डेशेन स्टोक्स
“न्याय और बदले के बीच का अंतर इस बात पर निर्भर करता है कि कहानी कौन सुना रहा है।” – जूली क्लार्क

Justice Quotes in Hindi

“एक बार जब आप न्याय के मंदिर तक पहुंच जाएंगे, तो आप भगवान के स्वर्ग तक पहुंच जाएंगे” – पी.एस. -जगदीश कुमार
“न्याय का श्रेय उसकी क्षमता या किसी व्यक्ति के योग्य होने पर दिया जा सकता है। सच्ची समानता को क्षमताओं से परे जाना चाहिए और पृष्ठभूमि, लिंग और रंग की परवाह किए बिना सभी नागरिकों को समान रूप से सेवा देनी चाहिए।” -म्वानन्देके किंडेम्बो
“जब तक अदालतों पर पुरुषों का नियंत्रण रहेगा, महिलाएं पीड़ित होती रहेंगी। आज कानूनी व्यवस्था में काम करने वाली कई महिला न्यायाधीश और वकील पुरुषों को खुश करने के लिए काम करती हैं…न्याय की सेवा के लिए नहीं।” -मिट्टा ज़िनिंडलु
“न्याय की भी जांच होगी” – पी.एस. -जगदीश कुमार
“हिंसा कभी न्याय नहीं होती” – पी.एस. -जगदीश कुमार

Justice Quotes in Hindi

यह भी देखें – विश्व अंतरराष्ट्रीय न्याय दिवस

Justice Quotes in Hindi for Students

अधिकांश मनुष्यों में न्याय के प्रति प्रेम इस भय के कारण होता है कि उन्हें अन्यायपूर्ण दंड न भुगतना पड़े
“केवल न्याययुक्त व्यक्तियों के कार्य उनकी शाख में मधुर गंध देते है और फूल की तरह खिलते हैं”
“भले ही आसमान गिर पड़े, परन्तु न्याय किया जाना चाहिए”
“परमात्मा के यहाँ देर है अंधेर नही”
” जो व्यक्ति वही कहता है जो वह न्यायपूर्ण समझता है, अंत में ठीक वही प्राप्त करता है, जिसका वह अधिकारी होता है “
” पूर्ण स्वतंत्रता न्याय का उपहास करती है और न्याय स्वतंत्रता को अस्वीकार करता है “
” न्याय सभ्य समाज की स्थायी नीति होता है “
“न्याय के मूलभूत सिद्धांत यह है कि किसी को गलत रूप में कष्ट न भोगना पड़े और सार्वजनिक कल्याण की सेवा की जाए”
“समस्त नैतिक कर्तव्यों के योग का नाम न्याय है”
” न्याय में देर करना न्याय न करना है “

Justice Quotes in Hindi for Success

“जब शक्ति का प्रयोगन्याय के लिए हो तो वह शक्ति सार्थकता का परिचय देती है”
” यदि आपका न्याय रिश्तों और परिस्थिति के अनुसार बदलता हो तो यकीन जानिये आप सबसे बड़े अन्यायी हैं “
” ज़्यादा दया अपराध को बढ़ाती है, न्याय को पहले रखिये, दया बाद में “
“कभी-कभी स्वार्थी होना, बहुत जरूरी हो जाता है सबके साथ न्याय के चक्कर में, खुद के साथ अन्याय हो जाता है”
” एक अशिक्षित व्यक्ति अपने जीवन में कई प्रकार के अन्याय को सहता है क्योंकि वह अपने अधिकारों के बारें में नहीं जानता है “
” बहुमत हमेशा न्याय ही करेगा, यह जरूरी नहीं। सुकरात को बहुमत से जहर का प्याला दिया गया था और हिटलर भी बहुमत से ही चांसलर बना था “
” त्याग, न्याय, आदर्श और नैतिकता समाज के उत्थान के पर्याय होते हैं “
” अन्याय की ज्वालायें न्याय को जला नहीं पाती है, जब इंसान न्याय करने में असफल होता है तब प्रकृति न्याय करती है “
” शिक्षित व्यक्ति मौन रहकर जब न्याय की लड़ाई लड़ता है, तब उसके विचार आने वाले युग के लिए आदर्श बन जाते हैं “
” न्यायलय की प्रक्रिया को इतना जटिल नहीं बनाना चाहिए, कि उसका फायदा अपराधी उठा ले “

Justice Quotes in Hindi 2 Line

“हकीकत में गरीबो को न्याय मिलता नहीं, पर यह सच कोई किसी से कहता नहीं”
” ना किसी जाति, ना धर्म का शोषण होता है, सदियों से सिर्फ़ गरीबों का शोषण होता है “
” न्याय मिलने तक ये मोमबत्तियाँ जलायेंगे, सत्ता सुख में सोई सरकार को नींद से जगाएँगे “
” हैवानों और कातिलों को मजहब से न जोड़ा जाए, मुजरिम जो भी हो उसे किसी कीमत पर न छोड़ा जाए
” ऐसे तौर-तरीके मुझे भाते नहीं, जिसमें न्याय गरीबों के हक में आते नहीं “

Justice Quotes in Hindi with Emoji

” जब हम गलत होते हैं तो हम समझौता चाहते हैं, और जब दूसरे गलत होते हैं तब हम न्याय चाहते हैं “
” बहरों की अदालत में, गूंगे की गुहार है, सजा मिली है उसे, तीर जिसके जिगर के आर-पार हैं “
ईमानदारी किसी कायदे कानून की मोहताज़ नहीं होती।
अन्याय, असत्य और कपट की बुनियाद पर स्थायी शक्ति प्राप्त करना असंभव है। -डिमास्थनीज
अन्याय में सहयोग देना अन्याय करने के ही समान है। प्रेमचंद

Justice Quotes in Hindi on Life

कोई अन्याय केवल इसलिए मान्य नहीं हो सकता कि लोग उसे परम्परा से सहते आएं हैं। प्रेमचंद
अन्याय सहने वाले की अपेक्षा अन्याय करने वाला अधिक दुखी होता है। प्लेटो
केवल न्याय में ही स्वास्तविक सुख है। अन्याय करने वाले को कभी न कभी दुखी होना पड़ता है। सुकरात
अन्याय सहने से अन्याय करना ज्यादा अच्छा है। अरस्तु
अन्याय को मिटाइए, पर अपने को मिटाकर नहीं। प्रेमचंद

यह था Justice Quotes in Hindi (Quotes on Justice in Hindi) पर हमारा ब्लॉग। इसी तरह के अन्य ट्रेंडिंग इवेंट्स आर्टिकल्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बनें रहें।

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विशाखा सिंह

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