विश्व शांति और भारत पर निबंध Essay on World Peace & India in Hindi

विश्व शांति और भारत पर निबंध Essay on the World Peace and India in Hindi

इस लेख में हमने विश्व शांति और भारत पर निबंध (Essay on the World Peace and India in Hindi) हिंदी में लिखा है। अगर आप विश्व शांति में भारत की योगदान तथा भारत की जरूरत जैसे मुद्दों वाले निबंध की तलाश कर रहे हैं तो यह लेख आपके लिए बेहद मददगार साबित होने वाला है।

Table of Contents

प्रस्तावना (विश्व शांति और भारत पर निबंध Essay on the World peace and india in Hindi)

भौगोलिक आधार पर इंसानों ने अपने अनुकूल रहने के लिए जगह का निर्माण किया। जब वे समूह में रहने लगे तो उसे कबीले का नाम दिया गया लेकिन जब समूह बेहद ही बड़ा हो गया तो उसे एक देश का नाम दे दिया गया। देशों के समूह को विश्व कहा जाता है।

पूरी दुनिया में एकमात्र भारत ऐसा देश है जिसने सभी धर्मों तथा संप्रदाय के लोगों को आश्रय दिया। यहां पर आने वाले लोग भी यहां के होकर रह गए।

भारत एक ऐसा देश है जिसने कभी विस्तार वादी नीति के लिए किसी पर हमला नहीं किया या किसी धर्म का प्रचार करने के लिए किसी पर शारीरिक या मानसिक दबाव नहीं बनाया।

भारत ने हमेशा ही विश्व में शांति का संदेश दिया है। भारत से ही दुनिया में शुद्ध संस्कृति का प्रचार हुआ। दुनिया में जितने भी ज्ञान का प्रसार हुआ वह सब भारत से ही हुआ है।

भारत लंबे समय तक स्वयं आजादी के लिए संघर्ष करता रहा है लेकिन कभी भी किसी देश पर हमला नहीं किया। आज के समय में विश्व शांति के लिए भारत की आवश्यकता सबसे ज्यादा है।

भारत को विश्व गुरु इसलिए कहा जाता था कि भारत सत्य तथा शांति का उद्गम स्थल रहा है। भारत में जन्मे महापुरुषों के कर्मों का केंद्र जन कल्याण तथा विश्व कल्याण ही रहा है।

विश्व शांति में भारत का योगदान India’s Contribution to World Peace in Hindi

बृहस्पति शास्त्र में भारतवर्ष की बहुत ही आकर्षक परिभाषा बताई गई है। इस परिभाषा को सभी इतिहासकार एकमत से मान्यता देते हैं। बृहस्पति शास्त्र कहता है कि।

“हिमालयं समारभ्य यावद् इंदु सरोवरम् तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानाम प्रचक्षते”

हिमालय से शुरू होकर हिंद महासागर तक फैली हुई पवित्र भूमि जिसका निर्माण देवताओं ने किया है ऐसी भूमि को हिंदुस्थान या हिंदुस्तान कहा जाता है।

इतना विशाल राष्ट्र होने के बावजूद भी भारत ने सभी को शांति का संदेश दिया तथा सभी के विकास में भरपूर योगदान दिया।

भारत की भूमि से जन्मे महात्मा बुद्ध, भगवान महावीर और गुरु नानक देव ने जग को शांति का संदेश दिया। उन्होंने जनसमूह को सत्य तथा धर्म की रक्षा के लिए संगठित किया।

वे सभी जगह जगह जाकर लोगों को दया करुणा तथा शांति का संदेश दिया करते थे। बहुत से जगह उन्हें सम्मान मिलता था लेकिन उसके साथ उन्हें काफी जगह अपमान भी मिलता था। इसके बाद भी उन्होंने आजीवन सत्य तथा शांति का मार्ग नहीं छोड़ा।

आज पूरी दुनिया दो भागों में बट चुकी है एक तरफ अमीर तथा विकसित देश तथा दूसरी ओर गरीब तथा विकासशील देश आते हैं।

लेकिन ज्यादातर युद्ध इन विकसित देशों के बीच ही हुए हैं। चाहे वह प्रथम विश्वयुद्ध हो या द्वितीय विश्व युद्ध। संपन्न देश अपनी ताकत के दम पर अन्य देशों को दबाने तथा शोषित करने में यकीन रखते हैं। 

लेकिन एक समय पर विश्व का सबसे अमीर देश माना जाने वाला भारत ने कभी भी किसी के खिलाफ पहले युद्ध नहीं छेड़ा।

आज धनवान देश धन के दम पर सब कुछ हथिया लेने के चक्कर में हैं। आज इन देशों ने इतने खतरनाक हथियार या गोली बारूद का जखीरा खड़ा कर लिया है जिसके माध्यम से पूरी दुनिया का आठ बार नाश किया जा सकता है।

लेकिन भारत देश आज भी विश्व शांति के लिए अपना पूरा योगदान दे रहा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण कोरोना काल है। जिसमें पूरी दुनिया भयभीत होकर अपनी दवाओं को अपने लोगों के बीच तक नियंत्रित कर दिया था। तो वही दूसरी ओर भारत अपने पड़ोसी तथा अन्य गरीब देशों को मुफ्त में दवाइयां तथा वैक्सीन मुहैया करवा रहा था।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक पहल के रूप में गरीब देशों को मुफ्त में वैक्सीन बांटने का कार्यक्रम शुरू किया था लेकिन विश्व के संपन्न देश डब्ल्यूएचओ को वैक्सीन देने से मना कर दिया लेकिन भारत डब्ल्यूएचओ को अकेले के दम पर तीस प्रतिशत से ज्यादा वैक्सीन मुहैया करवाया।

जब-जब विश्व को आवश्यकता पड़ी है तब तक भारत ने दुनिया की मदद की है। लेकिन जब बात भारत की सुरक्षा की आती है तो विश्व के अन्य संपन्न देश स्वार्थ वश अपना मुंह फेर लेते हैं।

विश्व शांति की जरूरत क्यों? Need for World Peace in Hindi

सबसे बड़े उदाहरण के रूप में भारत का पड़ोसी देश चीन है।  जिसने अपनी ताकत के दम पर छोटे-छोटे देशों को अपने कब्जे में ले लिया है और जिसने महामारी के समय में भी अपने विस्तार वादी नीति को जारी रखा।

दूसरे उदाहरण के रूप में हाल में ही हुए तुर्की के पड़ोसी देश अज़रबैजान और आर्मेनिया के बीच हुआ भयंकर युद्ध है। एक छोटी सी जमीन के लिए दोनों देशों ने हजारों जाने ली। सबसे महत्वपूर्ण बात की इन दो छोटे देशों के युद्ध में संपन्न देश अपना व्यवसायिक फायदा खोजने में लगे थे।

लेकिन दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी सैन्य सेना और जानी-मानी आर्थिक शक्ति होने के बावजूद भी भारत ने कभी किसी भी देश को धमकी तक नहीं दी। इसलिए आज विश्व शांति के लिए भारत की जरूरत बहुत ही ज्यादा है।

आज दुनिया युद्ध के मुहाने पर खड़ी हुई है। ऐसा कहा जा सकता है कि दुनिया के विनाश के रूप में सिर्फ एक उंगली की दूरी है। दुनिया की कमान भारत जैसे देश के हाथ में होना बहुत ही जरूरी है क्योंकि भारत ही दुनिया को सच्चाई तथा अहिंसा का असली पाठ पढ़ा सकता है।

विश्व शांति दिवस World Peace Day in Hindi

हर वर्ष 21 सितंबर को विश्व शांति दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन हर कोई आपस की बैर भूल कर भाईचारे की भावना कायम करता है।

कहा जाए तो शांति के बिना जीवन का कोई आधार ही नहीं है। वैसे आमतौर पर इस शब्द का इस्तेमाल अंतरराष्ट्रीय संदर्भ में युद्ध विराम या संघर्ष में ठहराव के लिए किया जाता है।

शांति दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सभी देशों और नागरिकों के बीच शांति व्यवस्था कायम करना और अंतरराष्ट्रीय संघर्षों और झगड़ों पर विराम लगाना है।

निष्कर्ष  Conclusion

इस लेख में आपने विश्व शांति और भारत पर निबंध (Essay on the World Peace and India in Hindi) पढ़ा आशा ही आलेख आपको सरल लगा हो। अगर इस लेख के माध्यम से आपकी सहायता हुई हो तो इसे शेयर जरूर करें।

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शांति और सदभाव पर निबंध (Peace and Harmony Essay in Hindi)

शांति और सदभाव किसी भी देश की बुनियादी आवश्यकता है। देश के नागरिक खुद को तभी सुरक्षित महसूस कर सकते हैं तथा केवल तभी समृद्ध हो सकते हैं जब माहौल को शांतिपूर्ण बनाए रखा जाए। हालांकि भारत में सभी तरह के लोगों के लिए काफी हद तक शांतिपूर्ण माहौल है लेकिन फ़िर भी विभिन्न कारकों के कारण देश की शांति और सदभाव कई बार बाधित हो जाता है। भारत में विविधता में एकता देखी जाती है। विभिन्न धर्मों, जातियों और पंथों के लोग देश में एक साथ रहते हैं। भारत का संविधान अपने नागरिकों को समानता की स्वतंत्रता देता है और देश में शांति और सरकार द्वारा सदभाव सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न कानून लागू किए गए हैं।

शांति और सदभाव पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Peace and Harmony in Hindi, Shanti aur Sadbhav par Nibandh Hindi mein)

निबंध 1 (300 शब्द).

शांति और सद्भाव किसी भी समाज के निर्माण के आधार हैं। अगर देश में शांति और सदभाव होगा तो हर जगह विकास हो सकता है। देश की सरकार देश में शांति और सदभाव सुनिश्चित करने का पुरज़ोर प्रयास करती है लेकिन निहित स्वार्थों के कारण यह अक्सर बाधित होता है। यहां उन सभी कारणों पर एक नज़र डाली गई है और उदाहरण दिया गया है जब देश में शांति भंग हुई थी।

शांति और सदभाव पर प्रभाव डालने वाले कारक:-

  • आतंकवादी हमलें देश में शांति और सदभाव के विघटन के प्रमुख कारणों में से एक रहे है।
  • देश में शांति और सदभाव अक्सर धर्म के नाम पर बाधित होता है। कुछ धार्मिक समूह दूसरे धर्मों को बदनाम करने की कोशिश करते है जिससे समाज में असंतोष पैदा हो जाता है।
  • राजनीतिक दल अक्सर अपने स्वयं के स्वार्थ को पूरा करने के लिए अन्य दलों के खिलाफ लोगों को भड़काते है जिससे राज्य में शांति बाधित होती है।
  • आरक्षण प्रणाली ने सामान्य श्रेणी के लोगों के बीच बहुत अधिक अशांति पैदा की है। कुछ समुदायों ने अपने लोगों के लिए भी आरक्षण की मांग करते हुए समय समय पर विरोध प्रदर्शन किया है।

इसी तरह मुद्रास्फीति, बेरोजगारी और अंतर-राज्य के मुद्दों ने भी समय-समय पर समाज में अशांति पैदा की है।

शांति और सदभाव के भंग होने के उदाहरण

कई उदाहरण हैं जब देश की शांति और सदभाव बिगड़ गया था। इनमें से कुछ निम्नानुसार हैं:

  • 1957 में रामनाद दंगे
  • 1967 रांची-हटिया दंगे
  • 1987 में हरियाणा में हत्याएं
  • 1990 के हैदराबाद दंगे
  • 1993 बॉम्बे बम विस्फोट
  • लाल किले पर 2000 में आतंकवादी हमले
  • 2001 भारतीय संसद पर हमला
  • 2002 गुजरात दंगे
  • 2006 वड़ोदरा दंगे
  • 2007 दिल्ली बम विस्फोट
  • 2008 जयपुर बम धमाके
  • 2008 गुज्जर आंदोलन
  • 2012 पुणे बम विस्फोट
  • 2013 मुजफ्फरनगर दंगे
  • 2013 बोधगया बम विस्फोट
  • 2016 जाट आरक्षण आंदोलन

देश में शांति और सदभाव बनाए रखना मुश्किल है, जब तक हम में से हर एक अपनी आवश्यकता के बारे में संवेदनशील नहीं हो जाता है और इसके लिए योगदान नहीं देता। अकेले सरकार समाज में भाईचारे और मित्रता की भावना को सुनिश्चित नहीं कर सकती है।

निबंध 2 (400 शब्द)

किसी भी समाज को सुचारु रूप से कार्य करने के लिए शांति और सदभाव बहुत महत्वपूर्ण है। अपने नागरिकों के लिए एक सुरक्षित वातावरण देने के लिए भारत सरकार देश में शांति बनाए रखने के कदम उठाती है। हालांकि अक्सर शांति और सदभाव विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक कारकों के कारण बाधित होती है। यहां इन कारकों पर एक नजर डाली गई है और उदाहरण दिए गये हैं जब देश में शांति और सदभाव बाधित हुए है।

शांति और सद्भाव को प्रभावित करने वाले कारक

  • राजनैतिक मुद्दे

अपने स्वार्थ को पूरा करने के प्रयास में राजनीतिक दलों ने आम तौर पर लोगों को आपस में भड़काते है जिससे अक्सर देश में अशांति और गड़बड़ी का माहौल बनता है।

आतंकवादी हमलों ने हमेशा ही देश में शांति और सदभाव को बाधित किया है। इस तरह के हमले से लोगों के बीच काफी भय पैदा हो जाता है।

कुछ धार्मिक समूह अन्य धर्म के लोगों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं और उन्हें अपने धर्म का पालन करने या अन्य धर्मों की निंदा करने के लिए मजबूर करते हैं। इससे कई बार सांप्रदायिक हिंसा भी हुई है। इनके अलावा अंतर-राज्य के मुद्दों, आरक्षण प्रणाली, मूल्य वृद्धि, गरीबी और बेरोजगारी ने भी देश में शांति और सदभाव को बाधित किया है।

  • 1967 रांची हटिया दंगे

ये सांप्रदायिक दंगे अगस्त 1967 में रांची और उसके आसपास हुए थे। वे लगभग एक सप्ताह तक जारी रहे। इस दौरान 184 लोग मारे गए थे।

  • 1969 गुजरात दंगे

भारत के विभाजन के बाद सबसे घातक हिंदू-मुस्लिम दंगे गुजरात के दंगे थे। ये सितंबर-अक्टूबर 1969 के दौरान हुए।

मुंबई में शिवसेना और दलित पैंथर के सदस्यों के बीच आरक्षण के मुद्दे पर ये दंगे हुए थे। 1974 में दलित पैंथर नेता भागवत जाधव की हत्या हुई थी।

  • मोरादाबाद दंगे

अगस्त 1980 के दौरान हुए ये दंगे आंशिक रूप से हिंदू-मुस्लिम और आंशिक रूप से मुस्लिम-पुलिस के बीच का संघर्ष था। दंगों की शुरुआत तब हुई जब मुसलमानों ने पुलिस पर पत्थर फेंके क्योंकि पुलिस ने स्थानीय इदगाह से सुअर निकालने से इंकार कर दिया था। नवंबर 1980 तक हिंसक यह घटनाएं जारी रही।

  • 1993 बॉम्बे बम ब्लास्ट

12 मार्च 1993 को बॉम्बे में 12 बम विस्फोट की एक श्रृंखला हुई थी। भारत में सबसे विनाशकारी बम विस्फोटों में से एक बॉम्बे बम ब्लास्ट को 1992 की बाबरी मस्जिद विध्वंस की प्रतिक्रिया में अंजाम दिया गया था।

  • 2000 चर्च बम विस्फोट

यह बम विस्फोट गोवा, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के राज्यों में सीरियल बम ब्लास्ट थे। ये बम विस्फोट वर्ष 2000 में इस्लामवादी चरमपंथी समूह देन्द्र अंजुमन ने किया था।

भारत के हर नागरिक के लिए देश में शांति और सदभाव के महत्व को समझना आवश्यक है। हम सभी को शांति बनाए रखने के लिए काम करना चाहिए।

निबंध 3 (500 शब्द)

भारत अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था और धर्मनिरपेक्षता के लिए जाना जाता है जो देश में शांति और सद्भाव सुनिश्चित करने के लिए अपने सभी नागरिकों को राजनीतिक और धार्मिक समानता देती है। हालांकि कई ऐसे कारक हैं जो देश में शांति को भंग करते हैं। यहां हमने बताया है कि कैसे संविधान विभिन्न पृष्ठभूमि के लोगों के एक साथ बांधे रखता है और देश की शांति और सदभाव को बाधित करने वाले कौन से कारण हैं।

धर्मनिरपेक्षता शांति और सदभाव को बढ़ावा देती है

भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। भारत का संविधान अपने प्रत्येक नागरिक को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार देता है। देश में कोई आधिकारिक धर्म नहीं है। सभी धर्मों का समान रूप से आदर किया जाता है। सभी धर्मों का सम्मान देश में शांति और सदभाव को बढ़ावा देने का एक तरीका है। विभिन्न धर्मों के लोग एक-दूसरे के साथ को पसंद करते हैं और सभी उत्सवों को समान उत्साह के साथ मनाते हैं। स्कूलों में, काम के स्थानों और विभिन्न अन्य स्थानों पर लोग एक साथ मिलकर काम करते हैं।

निम्नलिखित कारक शांति और सदभाव पर प्रभाव डालते हैं-

भारत के नागरिक बड़े पैमाने पर एक दूसरे के साथ सदभाव में रहते हैं। हालांकि ऐसा कई बार देखा गया है जब विभिन्न कारणों से शांति बाधित होती है। इनमें से कुछ कारण नीचे वर्णित हैं:

आतंकवादी हमलों ने समाज में आतंक पैदा कर दिया है। इन हमलों के माध्यम से आतंक फैल रहा है जिससे देश में शांति और सामंजस्य को प्रभावित करने वाले दिन आ गए हैं। भारत में आतंकवादी हमलों के कई उदाहरण हैं।

हालांकि भारत में कोई आधिकारिक धर्म नहीं है और इसके नागरिकों को अपनी इच्छा के अनुसार अपने धर्म को चुनने या बदलने की आजादी है लेकिन कुछ ऐसे धार्मिक समूह हैं जो उनके धर्म का प्रचार करते हैं और उनके स्तर को बढ़ावा देते हैं ताकि वे दूसरे लोगों के धर्म को अपमानित करें। इससे अक्सर सांप्रदायिक हिंसा होने का डर रहता है।

  • राजनीतिक हथकंडे

अक्सर राजनीतिक दलों में सिद्धांतों की कमी देखी जाती है। एक पार्टी सत्ता में आने के प्रयास में दूसरे को बदनाम करने की कोशिश करती है। राज्य में अनावश्यक अशांति पैदा करने वाले लोग एक विशेष धर्म से जुड़े हुए हैं।

  • आरक्षण प्रणाली

निम्न वर्गों के लोगों के लिए सामाजिक और आर्थिक समानता सुनिश्चित करने के प्रयास में, संविधान ने आरक्षण प्रणाली शुरू की इस प्रणाली का काफी हद तक विरोध किया गया और अन्य जातियों से संबंधित बहुत से लोग भी अपने समुदाय के लिए आरक्षण मांगने के लिए आगे आए। इसके कारण कई बार अशांति और बाधा उत्पन्न हुई है।

  • राज्यों के आपसी मुद्दे

शिवसेना जैसे राजनीतिक दलों ने महाराष्ट्र में अन्य राज्यों के लोगों को महाराष्ट्र में काम करने की अनुमति देने के प्रति असहिष्णुता दिखाई है। राज्यों के बीच इस तरह के मुद्दे भी शांति के विघटन को जन्म देते हैं।

वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी, विशेष रूप से जो दैनिक उपयोग के लिए आवश्यक हैं, समाज में अशांति का एक और कारण है। अक्सर लोग कीमतों में अचानक बढ़ोतरी के विरोध में सड़कों पर उतर आते हैं और समाज का सामान्य कामकाज अक्सर इस वजह से बाधित होता है।

जहां तक ​​भारत सरकार की बात है वह देश में शांति और सदभाव को सुनिश्चित करने के लिए हर संभव कोशिश करती है लेकिन हमें अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है। यह तब होगा जब प्रत्येक नागरिक समाज के खतरों को पहचान देश में पूर्ण शांति और सामंजस्य के लिए अपना योगदान देगा।

Essay on Peace and Harmony in Hindi

निबंध 4 (600 शब्द)

विभिन्न धर्मों और जातियों के लोग भारत के विभिन्न हिस्सों में रहते हैं। हालांकि ये लोग बड़े पैमाने पर एक-दूसरे के साथ सदभाव में रहते हैं लेकिन कई कारणों के चलते अक्सर देश की शांति और सामंजस्य बाधित हो जाती है। यहां नीचे बताया गया है कि विविधता के बीच सदभाव कैसे बनाए रखा जाता है और कौन से कारण शांति को प्रभावित करते हैं

शांति और सदभाव को प्रभावित करने वाले कारक

जहां ​​भारत सरकार देश में शांति और सदभाव को बनाए रखने के हर संभव कदम उठा रही है वहीं कई कारक हैं जो इसे प्रभावित करते हैं। यहां उन पर एक विस्तृत नज़र डाली गई है:

भारत का संविधान किसी भी धर्म का आधिकारिक तौर पर पालन नहीं करता है और अपने नागरिकों को किसी भी समय अपने धर्म को चुनने या बदलने की इजाजत देता है। हालांकि यहाँ कुछ ऐसे धार्मिक समूह हैं जो अपने धर्म को उस सीमा तक फैलातें हैं जो देश की शांति और सदभाव में अस्थिरता लाता है।

  • जाति व्यवस्था

भारत में व्यक्ति की जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव करना आम बात है हालांकि संविधान सभी को समानता का अधिकार देता है। यह भेदभाव कभी-कभी सामाजिक संतुलन को बिगाड़ता है जिससे शांति बाधित होती है।

अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लोगों के जीवन स्तर को बढ़ाने के उद्देश्य से देश में आरक्षण प्रणाली शुरू की गई थी लेकिन अन्य जातियों जैसे कि गुज्जर और जाट बिरादरी के लोगों ने भी आरक्षण की मांग शुरू कर दी है जिससे शांति व्यवस्था बिगड़ गई है।

कई क्षेत्रीय पार्टियां अन्य राज्यों के लोगों को अपने इलाके में बसने के लिए प्रोत्साहित नहीं करते हैं। यह अक्सर शिव सेना के सदस्यों और महाराष्ट्र के अन्य राज्यों के लोगों के बीच बहुत तनाव पैदा करता है।

  • बेरोजगारी और गरीबी

शिक्षा का अभाव और अच्छे रोजगार के अवसरों की कमी से बेरोजगारी हो जाती है, जो अंततः गरीबी में वृद्धि करती है और देश में अपराध की दर को बढ़ाती है।

  • राजनीतिक खतरा

कई बार विपक्ष जनता को अपने स्वयं के स्वार्थी उद्देश्यों को पूरा करने के लिए सत्ता में मौजूद पार्टी के खिलाफ उकसाता है जो अंततः अशांति और गड़बड़ी के मुख्य कारक है।

मूल्य वृद्धि एक और समस्या है जो एक समाज के सुचारु संचालन को बाधित कर सकती है। कई उदाहरण सामने आए हैं जब लोग अनुचित कीमतों में बढ़ोतरी के खिलाफ विद्रोह करने के लिए आगे आए हैं जिससे शांति बाधित हो चुकी है।

भारत ने कई बार आतंकवादी हमलों का सामना किया है जो नागरिकों के बीच डर पैदा कर चुके हैं। इस तरह के हमलों के कारण बनी परेशानी समाज के सामान्य कामकाज को बाधित करती है।

शांति और सदभाव के विघटन के उदाहरण

कई उदाहरण हैं जब देश की शांति और सदभाव को विभिन्न समूहों और समुदायों के साथ समझौता किया गया था। कुछ ऐसे ही उदाहरणों को नीचे साझा किया गया है:

1969 के गुजरात दंगे: भारत के गुजरात राज्य ने सितंबर-अक्टूबर 1969 के बीच हिंदू और मुस्लिमों के बीच सांप्रदायिक हिंसा देखी। यह राज्य में पहली बड़ा दंगा था जिसमें बड़े पैमाने पर नरसंहार और लूट शामिल थी।

1984 के सिख दंगे : हिंसक भीड़ ने देश में सिक्खों पर हमला किया। यह सिख अंगरक्षकों द्वारा पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के जवाब के रूप में किया गया था।

2008 का मुंबई : इस्लामी आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के कुछ सदस्यों ने मुंबई में प्रवेश किया और चार दिनों के तक गोलीबारी और बम धमाकों की बौछार की।

जाट आरक्षण आंदोलन: फरवरी 2016 में हरियाणा में जाट लोगों द्वारा कई विरोध प्रदर्शन किए गए। उन्होंने अन्य पिछड़ा वर्ग की श्रेणी में अपनी जाति को शामिल करने की मांग की। इसने राज्य के सामान्य कार्य को बाधित किया और आज भी आंदोलन पूर्ण रूप से खत्म नहीं हुआ है।

हालांकि भारत का संविधान अपने सभी नागरिकों को समानता का अधिकार देता है, ताकि उनके बीच पूर्ण सामंजस्य सुनिश्चित किया जा सके लेकिन कई सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक कारणों के कारण शांति भंग हो गई है। अकेले सरकार देश में शांति और सदभाव बनाए रखने के लिए ज़िम्मेदार नहीं हो सकती। हम में से हर एक को यह चाहिए कि हम अपनी नागरिकता के साथ भाईचारे की भावनाओं का पोषण करने की जिम्मेदारी भी लें।

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विश्व शान्ति की समस्या पर निबंध। World Peace Essay in Hindi

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विश्व शान्ति की समस्या पर निबंध। World Peace Essay in Hindi

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विश्व-शान्ति के प्रति एक मानवीय दृष्टिकोण पर निबंध | A Human Approach to World Peace – Essay in Hindi

world peace essay in hindi

विश्व-शान्ति के प्रति एक मानवीय दृष्टिकोण पर निबंध | A Human Approach to World Peace – Essay in Hindi!

जब हम प्रात: काल उठते हैं और रेडियो सुनते हैं या समाचारपत्र पढ़ते हैं, तो हमारा सामना हिंसा अपराध विपदा और युद्ध के समाचारों से होता है । मुझे ऐसा एक भी दिन याद नहीं आता जब संसार में कहीं-न-कहीं कोई भयावह घटना न घटी हो ।

आधुनिक युग में एक बात तो स्पष्ट है कि हमारा बहुमूल्य जीवन असुरक्षित है । आज जिस प्रकार से हम बुरी खबरों का सामना करते हैं पहले की पीढ़ी को नहीं करना पड़ता था । अनवरत डर और तनाव के माहौल के कारण कोई भी संवदेनशील और सहृदय व्यक्ति इस आधुनिक दुनिया के विकास के विषय में गम्भीर प्रश्न उठा सकता है ।

यह विडम्बना ही है कि उन्नत औद्योगिक समाज से ही गम्भीर समस्याएं उत्पन्न होती हैं । विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने कई क्षेत्रों में चमत्कार कर दिखाया है, लेकिन बुनियादी मानव समस्याएं वैसे की वैसी ही बनी हुई हैं ।  साक्षरता दर में अभूतपूर्व तरीके से वृद्धि हुई है, इसके बाबुजूद सार्वभौमिक शिक्षा से अच्छाई आने की अपे क्षा मानसिक अशान्ति और असन्तोष में वृद्धि हुई है ।

ADVERTISEMENTS:

इसमें कोई सन्देह नहीं कि दिन-प्रतिदिन हमारे भौतिक विकास में वृद्धि हो रही है और प्रौद्योगिकी उन्नत हो रही है । लेकिन यह काफी नहीं है; क्योंकि हम सुख-शान्ति लाने या दु:खों से निजाद पाने में कामयाब नहीं हुए है । हम केवल यही निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि हमारी प्रगति और विकास में कोई गम्भीर कमी है और यदि हम वक्त रहते इस कमी को दूर नहीं करेंगे तो मानवता के भविष्य के लिए इसके घातक परिणाम निकल सकते हैं ।

मैं विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विरुद्ध बिकुल नहीं हू; क्योंकि इन्होंने मानव जाति के विकास भौतिक सुख और कल्याण में अमूल्य योगदान किया है । इनसे हमें अपनी दुनिया को बेहतर ढंग से समझने में सहायता मिली है । लेकिन यदि हम विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर आवश्यकता से अधिक बल देंगे तो मनुष्य ज्ञान और समझ के उन पहलुओं से विमुख हो सकते हैं, जो हमें ईमानदारी और परोपकार की ओर ले जाते हैं ।

हालांकि विज्ञान और प्रौद्योगिकी में असीमित भौतिक सुख के निर्माण का सामर्थ्य है, लेकिन वे विश्व सभ्यता को आकार देने वाले सदियों पुराने आध्यात्मिक और लोकोपकारी मूल्यों का स्थान नहीं ले सकते । विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अभूतपूर्व लाभ से कोई भी व्यक्ति इनकार नहीं कर सकता । लेकिन बुनियादी मानव समस्याएं वैसे की वैसी ही बनी हुई है ।

हम अब भी दु:ख डर और तनाव झेल रहे हैं, इसलिए भौतिक विकास और आध्यात्मिक मानव-मूल्यों के विकास के मध्य तर्कसंगत सन्तुलन आवश्यक है । इस महान् तालमेल को सम्भव बनाने के लिए हमें अपने मानवीय मूल्यों को दोबारा से जीवित करने की आवश्यकता है । कई लोग वर्तमान विश्वव्यापी नैतिक संकट के विषय में मेरी चिन्ता से सहमत होंगे ।

इसलिए मैं अपनी इस चिन्ता से सहमत होने वाले सभी लोकोपकारियों और धार्मिक लोगों से अपील करता हूं कि वे हमारे समाज को और अधिक करुणामय न्यायसंगत एवं समतामूलक बनाने में सहायता करें ।  मैं किसी बौद्ध या तिब्बती की तरह नहीं बोल रहा हूं और न ही मैं अन्तर्राष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ के रूप में बोल रहा हूं (हालांकि मैं इन मामलों पर टिप्पणी अवश्य करता हूं) ।

इसके विपरीत मैं मनुष्य के रूप में मानवीय मूल्यों की पैरवीकर्ता के रूप में बोल रहा हूँ । ये मूल्य न केवल महायान बौद्ध धर्म अपितु दुनिया के सभी महान् धर्मों के मूल आधार हैं । मैं इस परिप्रेक्ष्य में आपके सामने अपना व्यक्तिगत दृष्टिकोण प्रस्तुत कर रहा हूं:

1. वैश्विक समस्याओं का समाधान करने के लिए सार्वभौमिक मानवतावाद आवश्यक है ।

2. करुणा विश्व की शान्ति का स्तम्भ है ।

3. सभी धर्मों में विश्व की शान्ति और मानवता की बात कही गयी है ।

4. मनुष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने वाले संस्थानों को मजबूत बनाने के लिए हर व्यक्ति की सार्वभौमिक उत्तरदायित्व है ।

मानव मनोवृत्ति में बदलाव द्वारा मानव समस्याओं को हल करना । आज हम जिन समस्याओं का सामने कर रहे हैं, उनमें से कुछ प्राकृतिक आपदाएं हैं । उन्हें स्वीकार करते हुए उनका सामना धैर्य से किया जाना चाहिए । दूसरी समस्याएं हमारी स्वयं की देन है, जो नादानी या मूर्खता से उत्पन्न हुई हैं । इन्हें ठीक किया जा सकता है ।

इस प्रकार की एक समस्या राजनीतिक या धार्मिक विचारधाराओं के टकराव से उत्पन्न होती है । लोग एकल मानव परिवार से जोड़ने वाली बुनियादी मानवता को भूलकर छोटे-छोटे स्वार्थों के लिए एक-दूसरे से लड़ते है । लेकिन हमें स्मरण रखना चाहिए कि दुनिया के विभिन्न धर्म विचारधाराएं और राजनीतिक व्यवस्थाएं मानव जाति के लिए हैं तथा उनका उद्देश्य सुख-शान्ति लाना है ।

हमें इस बुनियादी लक्ष्य को नहीं भूलना चाहिए । साथ ही हमें लक्ष्य के ऊपर साधन को कभी नहीं रखना चाहिए । भौतिक पदार्थ और विचारधारा पर मानवता की उच्चता सदैव बनी रहनी चाहिए । आज धरती पर मानव सहित सभी प्राणियों को परमाणु हथियारों से सबसे ज्यादा खतरा है । मैं इस खतरे के विस्तार में नहीं जाऊंगा ।

लेकिन परमाणु शक्ति समृद्ध देशों के सभी नेताओं-जिनके हाथ में वास्तव में दुनिया का भविष्य है, वैज्ञानिकों एवं तकनीशियनों जो आश्चर्यजनक विध्वंसक अस्त्रों को बनाना जारी रखे हुए हैं और सामान्य रूप से सभी लोगों जो अपने नेताओं पर दबाव डालने की स्थिति में हैं से अपील करता हूं कि वे बुद्धिमत्ता से काम लें और सभी परमाणु हथियारों को नष्ट कर दें ।

हम जानते हैं कि परमाणु युद्ध की स्थिति में कोई भी विजेता नहीं होगा; क्योंकि इस धरती पर कोई भी जीवित नहीं बचेगा । इस प्रकार के अमानवीय और  क्रूर विध्वंस के बारे में सोचते हुए क्या दिल नहीं कांपता ?  क्या यह तर्कसंगत नहीं है कि समय रहते हुए हम अपने विनाश के कारणों को दूर कर दें ?

हम अकसर अपनी समस्याओं से मुक्ति नहीं पाते; क्योंकि हमें या तो उसका कारण पता नहीं होता या कारण मालूम होता भी है, तो उसे समाप्त करने का हमारे पास साधन नहीं होता । लेकिन परमाणु खतरे के बारे में ऐसा नहीं है । चाहे मनुष्य हो या अन्य प्राणी सभी सुख-शान्ति और सुरक्षा चाहते हैं ।

जीवन जितना मानव को प्यारा है, उतना ही पशु-पक्षियों को भी है । यहां तक कि कीड़े-मकोड़े भी अपने प्राणों को खतरे में पाकर बचने का प्रयास करते हैं । जिस प्रकार हम जीवित रहना चाहते हैं और मरना नहीं चाहते उसी प्रकार ब्रह्माण्ड के अन्य जीव भी जीवित रहना चाहते हैं, हालांकि उनके पास अपनी रक्षा का तरीका अलग होता है । सुख और दु:ख दो प्रकार के होते हैं: शारीरिक और मानसिक ।

मेरे विचार से इन दोनों में मानसिक दु:ख और सुख बहुत महत्त्वपूर्ण होता है । इसलिए मैं धैर्य से मानसिक पीड़ा सहने और स्थायी सुख प्राप्त करने पर बल देता हूं । मेरे पास सुख के बारे में एक सामान्य और ठोस विचार भी है: आन्तरिक शान्ति और आर्थिक विकास के साथ विश्व-शान्ति । इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सार्वभौमिक उत्तरदायित्व की भावना का विकास होना आवश्यक है ।

इसके अलावा प्रत्येक व्यक्ति-चाहे वह किसी भी नस्ल, रंग, लिंग या राष्ट्रीयता का हो-के प्रति गहरा लगाव होना चाहिए । सार्वभौमिक उत्तरदायित्व के पीछे मूल विचार यह है कि मेरी इच्छाओं की भांति ही सबकी इच्छाएं हैं । प्रत्येक व्यक्ति सुख चाहता है, दु:ख नहीं । यदि हम अकलमन्द व्यक्ति के रूप में इस तथ्य को स्वीकार नहीं करेंगे तो हमें इस धरती पर और ज्यादा दु:ख भोगना पड़ेगा ।

यदि हम जीवन के प्रति आत्म-केन्द्रित तरीका अपनाते हैं और अपने स्वार्थ के लिए दूसरों का लगातार प्रयोग करते हैं, तो हमें भले ही अस्थायी फायदा हो परन्तु अन्त में हम व्यक्तिगत सुख प्राप्त नहीं कर पायेंगे और विश्व की शान्ति का स्वप्न कभी पूरा नहीं होगा ।

अनेक सुख के लिए मानव ने कई तरीके प्रयोग किये हैं । ये सभी तरीके अकसर कूर और घिनौने रहे हैं । मानवता को भूलकर वह अपने फायदे के लिए अन्य व्यक्तियों और प्राणियों को दु:ख देता है ।  इस प्रकार के दूर तक न सोचे जाने वाले कामों से आखिर में दूसरों के साथ-साथ स्वयं को भी दु:ख भोगना पड़ता है । मानव का जन्म बड़े भाग्य से मिलता है ।

इसलिए जहा तक सम्भव हो सके, मानव-जन्म का सदुपयोग करना चाहिए । सार्वभौमिक जीवन की प्रक्रिया के बारे में हमारा एक समुचित परिप्रे क्ष्य होना चाहिए ताकि कोई व्यक्ति या समूह दूसरों की कीमत पर सुख और सम्पन्नता प्राप्त न करे । लेकिन यह तभी होगा जब हम दुनिया की समस्याओं के विषय में एक नया नजरिया अपनायें ।

त्वरित प्रौद्योगिकीय विकास अन्तर्राष्ट्रीय विकास और बढ़ते राष्ट्रपारीय सम्बन्धों के कारण रोजाना सिकुड़ती और एक-दूसरे पर अवलम्बित होती जा रही है । आज हम पूर्णरूप से एक-दूसरे पर बहुत निर्भर हैं । प्राचीनकाल में अधिकतर समस्याएं परिवार के आकार से सम्बन्धित होती थीं और उनका पारिवारिक स्तर पर ही समाधान कर लिया जाता था लेकिन आज स्थिति बहुत अलग है ।

आज हम इतने एक-दूसरे पर अवलम्बित हैं, एक-दूसरे से इतने जुड़े हुए हैं कि सार्वभौमिक दायित्व वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना के बिना अपने अस्तित्व के खतरे से निपटने की आशा नहीं कर सकते सुख-शान्ति की बात तो छोड़ ही दीजिये ।

कोई राष्ट्र अपनी समस्याओं को सन्तोषजनक तरीके से  स्वयं नहीं सुलझा सकता । दूसरे राष्ट्रों के हित तरीके और सहयोग पर बहुत कुछ निर्भर करता है । विश्व-शान्ति के लिए दुनिया की समस्याओं के प्रति मानवीय दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए । इसका तात्पर्य क्या है ? हम पहले ही कह चुके हैं कि सभी व्यक्ति सुख की कामना करते हैं, न कि दु:ख की ।

दूसरे लोगों की आकांक्षाओं और भावनाओं को विस्मृत कर केवल अपने सुख के लिए प्रयत्न करना नैतिक दृष्टि से गलत और व्यावहारिक रूप से बेबुकूफी है । अक्लमन्दी की बात तो यह है कि हमें अपने सुख के साथ-साथ दूसरों के बारे में भी सोचना चाहिए । इस प्रकार की सोच हमें ‘विवेकपूर्ण स्वार्थ’ की तरफ ले जायेगी और फिर स्वयं को ‘परस्पर हित’ में बदल लेगी ।

हालांकि राष्ट्रों के मध्य बढ़ती परस्पर निर्भरता से और ज्यादा सहानुभूतिपूर्ण सहयोग की आशा की जा सकती है, लेकिन जब तक लोग दूसरों की भावनाओं और प्रसन्नता के प्रति उदासीन बने रहेंगे उनमें वास्तविक सहयोग की भावना उत्पन्न नहीं होगी ।

जब लोग लालच और नफरत से प्रेरित होते हैं, तो वे सौहार्दपूर्ण जीवन नहीं जी सकते । स्वार्थ के कारण उत्पन्न हुई राजनीतिक समस्याओं का आध्यात्मिक उपायों से समाधान नहीं किया जा सकता है । लेकिन आज हम जिन समस्याओं से जूझ रहे हैं, आध्यात्मिक  ढंग से धीरे-धीरे उनकी जड़ों को समाप्त किया जा सकता है ।

दूसरी ओर यदि मानव जाति अपनी समस्याओं का अस्थायी ढंग से निवारण करेगी तो भावी पीढ़ियों को गम्भीर दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा । दुनिया की जनसंख्या बढ़ रही है और हमारे संसाधन तीव्रता से कम होते जा रहे हैं ।

उदाहरण के लिए पेड़ों को देखिये कोई नहीं जानता कि जंगलों की बड़े पैमाने पर कटाई से जलवायु मिट्टी और वैश्विक परिस्थिति पर क्या प्रतिकूल असर होगा । आज हमारे सामने समस्याएं इसलिए मुह खोले खड़ी हैं; क्योंकि लोग समस्त मानव परिवार की अपेक्षा केवल अपने थोड़े समय के स्वार्थों पर ध्यान दे रहे हैं ।

लोग पृथ्वी और सार्वभौमिक जीवन पर पड़ने वाले लम्बे समय के प्रभावों के विषय में नहीं सोच रहे हैं । यदि वर्तमान पीढ़ी के लोग आज इन प्रभावों के बारे में नहीं सोचेंगे तो भावी पीढ़ी सम्भवत: इनसे मुक्ति नहीं पा सकेगी ।

मैंने अभी तक जिन सिद्धान्तों की चर्चा की है, वे दुनिया के सभी धर्मों की नैतिक शिक्षाओं के अनुरूप हैं । मेरा मानना है कि दुनिया के सभी प्रमुख धर्म-बौद्ध, ईसाई, कन्फ़्यूशिन हिन्दू, इसलाम, जैन यहूदी, सिख ताओ, जरथुस्त-प्रेम का पाठ पढ़ाते हैं ।

उनका लक्ष्य आध्यात्मिकता द्वारा मनुष्य का उद्धार करना है और वे अपने अनुयायियों को अच्छा मानव बनने के लिए प्रेरित करते हैं । सभी धर्म दिमाग, शरीर और वाणी के कामों को सम्पूर्ण बनाने के लिए नैतिकता का उपदेश देते हैं । वे हमें मिथ्या न बोलने, चोरी न करने दूसरों की जान न लेने आदि की शिक्षा देते हैं ।

मानवता के महान् पैरवीकर्ताओं ने नैतिकता के जो उपदेश दिये हैं, वे सभी नि स्वार्थ हैं । महान् व्यक्ति चाहते थे कि उनके अनुयायी गलत मार्ग से दूर रहें और अच्छाई के मार्ग पर चलें । सभी धर्मों का कहना है कि अपना हित साधने की उग्र भावना और विपत्ति के कारकों को जन्म देने वाले अनुशासनहीन दिमाग पर नियन्त्रण आवश्यक है । प्रत्येक धर्म हमें आध्यात्मिक अवस्था में-जो कि शान्तिपूर्ण अनुशासित नैतिक और विवेकपूर्ण है-जाने का मार्ग दिखाता है ।

इसलिए मेरा मानना है कि सभी धर्मों का सन्देश एक जैसा है । वक्त और हालात के बदलने तथा संस्कृति के प्रभावों के कारण ही सम्भवत: धर्मों के सिद्धान्तों में फर्क आया । इस बात में कोई शक नहीं कि जब हम विशुद्ध रूप से धर्म के तात्त्विक पक्ष पर विचार करते हैं, तो ऐसी बहस का कोई अन्त दिखायी नहीं देता ।

बहरहाल सभी धर्मों के दृष्टिकोण में छोटे-मोटे अन्तर पर बहस करने की अपेक्षा हमें अपनी रोजाना की दिनचर्या में उनके बताये अच्छाई के मार्ग पर चलने का प्रयास करना चाहिए । जिस प्रकार विभिन्न बीमारियों के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार की चिकित्सा होती है, उसी प्रकार मानवता की बेहतरी के लिए अनेक धर्मों में कई मार्ग बताये गये हैं ।

सभी धर्म प्राणियों को दु:ख से बचाने और उन्हें सुख-शान्ति के मार्ग पर लाने के लिए अपनी ओर से सहायता करते हैं । हो सकता है, किन्हीं कारणों से हमें कुछ धार्मिक सचाइयों की व्याख्याएं बहुत अच्छी लगती हों परन्तु मनुष्य के हृदय से निकली एकता की भावना महान् होती है । प्रत्येक धर्म अपने ढंग से मानव के दु:ख को कम और विश्व सभ्यता में योगदान करता है । यहां धर्मान्तरण मुद्दा नहीं है ।

उदाहरण के लिए मैं दूसरों को बौद्ध धर्म का हिस्सा बनने के लिए प्रेरित नहीं करता या मैं केवल बौद्ध धर्म की वकालत नहीं करता । इसके विपरीत मैं यह सोचता हूं कि बौद्ध लोकोपकारी होने के कारण मैं मनुष्य के हित में किस प्रकार भागीदार बन सकता हूं ।

मैं विश्व धर्मों के मध्य बुनियादी समानताओं का वर्णन करते हुए अन्य धर्मों के मूल्यों पर किसी विशेष धर्म की वकालत नहीं करता और न ही किसी नये ‘विश्व धर्म’ की खोज करता हूं । आज आवश्यकता इस बात की है कि विश्व के विभिन्न धर्म मानव-अनुभव और विश्व सभ्यता को सम्पन्न बनायें ।

विभिन्न क्षमता और प्रवृत्ति वाले मानव मस्तिष्क को सुख-शान्ति के विभिन्न दर्शन की आवश्यकता है । यह भोजन की तरह है । कुछ लोग ईसाई धर्म को ज्यादा प्रभावशाली मानते हैं, तो अन्य लोग बौद्ध धर्म को; क्योंकि इसमें कोई सृजनकर्ता नहीं है और प्रत्येक वस्तु आपके कर्मों पर आश्रित है ।

हम दूसरे धर्मों के बारे में भी इसी प्रकार का तर्क दे सकते हैं । इससे स्पष्ट है कि मानव को अपनी जीवनशैली अनेक आध्यात्मिक आवश्यकताओं और उत्तराधिकार के रूप में प्राप्त राष्ट्रीय परम्पराओं के अनुकूल सभी विश्व धर्मों की आवश्यकता है ।

मैं इस सन्दर्भ में सभी धर्मों के बीच अच्छी सूझ-बूझ के लिए दुनिया के विभिन्न भागों में किये जा रहे प्रयत्नों का स्वागत करता हूं । आज इसकी बहुत आवश्यकता भी है । यदि सभी धर्म मनुष्य की बेहतरी को अपनी चिन्ता का मुख्य कारण बना. लेंगे तो वे विश्व-शान्ति के लिए सौहार्दपूर्वक एक साथ कार्य कर सकेंगे । परस्पर विश्वास से एकता आयेगी जो एक साथ कार्य करने के लिए आवश्यक है ।

हालांकि यह एक उपयोगी कदम है, लेकिन हमें स्मरण रखना चाहिए कि समस्याओं का कोई भी त्वरित या आसान हल नहीं है! हम विभिन्न निष्ठाओं के मध्य सैद्धान्तिक अन्तर को नहीं छिपा सकते और न ही किसी नये विश्व-धर्म से मौजूदा धर्मों को हटाने की उम्मीद कर सकते हैं । प्रत्येक धर्म का अपना विशिष्ट योगदान रहा है । प्रत्येक धर्म के अपने विशिष्ट अनुयायी हैं ।

इसलिए समस्त संसार को सभी धर्मों की आवश्यकता है । विश्व की शान्ति के बारे में चिन्ता करने वाले धार्मिक व्यक्तियों के समक्ष दो बुनियादी कार्य हैं-प्रथम हमें सभी धर्मों के मध्य एकता लाने के लिए एक-दूसरे की निष्ठा को भली प्रकार समझना चाहिए । एक-दूसरे की निष्ठा का सम्मान करते हुए और मनुष्य के कल्याण के अपने साझा लक्ष्य पर बल देते हुए उसे कदम-दर-कदम प्राप्त किया जा सकता है ।

दूसरा हमें प्रत्येक मानव हृदय के स्पर्श करने और मानव सुख-शान्ति को बढ़ाने वाले बुनियादी आध्यात्मिक मूल्यों के बारे में सहमति बनानी चाहिए । इसका तात्पर्य यह है कि हमें सभी धर्मों के साझा मानवीय आदर्शों पर बल देना चाहिए ।

हमें इन दो कदमों से विश्व-शान्ति के लिए जरूरी आध्यात्मिक स्थितियों के निर्माण में सहायता मिलेगी । इन स्थितियों का निर्माण हम व्यक्तिगत रूप से और एकजुट होकर भी कर सकते हैं । जब हम विभिन्न धर्मों को दूसरों के प्यार और सम्मान सामुदायिक भावना के विकास के जरूरी साधन के रूप में देखेंगे तो हम एक साथ विश्व-शान्ति के लिए कार्य कर सकते हैं ।

सबसे उपयोगी वस्तु धर्म के उद्देश्य को देखना है, न कि धर्मशास्त्र और तत्त्व विज्ञान के मूल में जाना है, यदि इनके विवरण में जाना केवल बुद्धिवाद होगा । मेरा मानना है कि यदि हम छोटे तत्त्व-मीमांसक मतभेदों को पृथक् कर दें तो दुनिया के सभी प्रमुख धर्म विश्व-शान्ति में योगदान करते हैं और मानवता के कल्याण में एक साथ कार्य करते हैं । तत्त्व-मीमांसा प्रत्येक धर्म का अपना आन्तरिक मामला है ।

यद्यपि विश्व में फैले हुए आधुनिकीकरण से पंथनिरपेक्षता का विस्तार हो रहा है और दुनिया के कुछ भागों में योजनाबद्ध ढंग से आध्यात्मिक मूल्यों को समाप्त किया जा रहा है, इसके बाबुजूद बड़ी संख्या में लोग किसी-न-किसी धर्म में भरोसा करते हैं ।

यहा तक कि गैर-धार्मिक राज्यों में भी लोगों की धार्मिक निष्ठा खत्म नहीं हुई है । इससे धर्म की शक्ति सिद्ध होती है । इस धार्मिक ऊर्जा और शक्ति का प्रयोग विश्व-शान्ति के लिए जरूरी आध्यात्मिक स्थितियों के निर्माण में किया जा सकता है । इस सन्दर्भ में दुनिया के सभी धार्मिक नेताओं और मानवतावादियों को एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी है ।

विश्व-शान्ति प्राप्त हो या न हो हमें इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए कार्य करते रहना चाहिए । यदि हमारे दिमाग में क्रोध भरा है, तो हम मानव बुद्धि के बेहतरीन भाग-बुद्धिमत्ता यानी सही और गलत के मध्य निर्णय करने की क्षमता को खो देंगे ।

आज दुनिया जिन गम्भीर समस्याओं से जूझ रही है, गुस्सा भी उनमें से एक है । वर्तमान उपस्थित टकरावों के लिए गुस्सा ही उत्तरदायी है । मध्य-पूर्व दक्षिण-पूर्व एशिया उत्तर-दक्षिण समस्या आदि इसके उदाहरण हैं । ये टकराव एक-दूसरे की मानवता को न समझने के कारण उत्पन्न होते हैं । इनका उत्तर न तो विकास और सैन्य बल का प्रयोग है और न ही अस्त्रों की होड़ ।

इनका उत्तर विशुद्ध रूप से राजनीतिक या प्रौद्योगिकीय भी नहीं है । इन टकरावों को आध्यात्मिकता से ही दूर किया जा सकता है । हमें आम व्यक्ति की स्थिति पर संवेदनशीलता के साथ विचार करने की आवश्यकता है । नफरत और युद्ध से किसी को सुख-शान्ति नहीं मिल सकती युद्ध में विजयी होने वालों को भी नहीं ।

हिंसा से घोर पीड़ा-तकलीफ ही उत्पन्न होती है । इसलिए विश्व के नेताओं को नस्ल संस्कृति और विचारधारा से ऊपर उठकर आम व्यक्ति की स्थिति को ध्यान में रखना चाहिए और एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए । इससे लोगों समुदायों राष्ट्रों को ही नहीं अपितु समस्त संसार को फायदा होगा ।

मेरी सलाह है कि विश्व नेताओं को किसी सुन्दर स्थान पर बिना किसी एजेण्डे के मिलना चाहिए मानव के रूप में केवल एक-दूसरे को जानने के लिए । इसके पश्चात् उन्हें आपसी और वैश्विक समस्याओं पर बातचीत के लिए बैठक करनी चाहिए । कई अन्य व्यक्ति मेरे इस विचार से सहमत होंगे कि विश्व नेताओं को परस्पर सम्मान और एक-दूसरे की मानवता की समझ के वातावरण में कांग्रेस टेबल पर मिलना

संसार में मनुष्य जाति के मध्य सम्बन्धों को मधुर बनाने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए । जनसंचार माध्यम भी विशेषतौर पर लोकतान्त्रिक देशों में मानव कल्याण के समाचार को ज्यादा जगह देकर विश्व-शान्ति में योगदान कर सकते हैं ।

इस प्रकार के समाचारों से मानवता को बढ़ावा मिलता है । अन्तर्राष्ट्रीय संसार में कुछ बड़ी शक्तियों के विस्तार से अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों की मानवीय भूमिका को अनदेखा किया जा रहा है । मैं आशा करता हूं कि इस स्थिति में परिवर्तन आयेगा और सभी अन्तर्राष्ट्रीय संगठन विशेषतौर पर संयुक्त राष्ट्र संघ मानव-हित और अन्तर्राष्ट्रीय समझ को बढ़ावा देने के लिए सक्रिय और महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायेंगे ।

यदि कुछ ताकतवर देश अपने मतलब के लिए संयुक्त राष्ट्र जैसे विश्व संगठनों का सही उपयोग नहीं करेंगे तो यह दुखदायी होगा । संयुक्त राष्ट्र को विश्व-शान्ति का माध्यम बनना चाहिए । सभी लोगों को संयुक्त राष्ट्र का सम्मान करना चाहिए; क्योंकि यह विश्व संस्था छोटे उत्पीड़ित राष्ट्रों और इस धरती के लिए एकमात्र उम्मीद की किरण है ।

चूंकि सभी राष्ट्र पहले की अपेक्षा अब एक-दूसरे पर आर्थिक रूप से ज्यादा निर्भर हैं, इसलिए मानवीय सोच राष्ट्रीय सीमाओं से दूर जानी चाहिए और अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय को गले लगाया जाना चाहिए । इस बात में कोई आशंका नहीं कि जब तक हम वास्तविक सहयोग का वातावरण नहीं बनायेंगे धमकी देने या सेना के प्रयोग की अपेक्षा दिलों को नहीं जीतेंगे दुनिया की समस्याएं बढ़ती ही जायेंगी ।

यदि निर्धन देशों में लोगों को सुख-शान्ति से वंचित रखा जायेगा तो उनमें निश्चित रूप से असन्तोष पैदा होगा और वे सम्पन्न देशों के लिए मुसीबत खड़ी करेंगे । यदि न चाहने वाले लोगों पर अवांछित सामाजिक राजनीतिक और सांस्कृतिक ढांचों को थोपा जायेगा तो विश्व-शान्ति सम्भव नहीं होगी । लेकिन यदि हम दिल से दिल के स्तर पर लोगों को सन्तुष्ट करेंगे तो शान्ति अवश्य ही आयेगी ।

प्रत्येक राष्ट्र में प्रत्येक व्यक्ति को सुख-शान्ति का अधिकार दिया जाना चाहिए और राष्ट्रों के मध्य छोटे-से-छोटे राष्ट्रों की भलाई के लिए भी समान रूप से चिन्ता होनी चाहिए । मेरे कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि कोई प्रणाली दूसरी प्रणाली से अच्छी है और सभी को उसे अपनाना चाहिए ।

इसके विपरीत विभिन्न प्रकार की राजनीतिक प्रणाली और विचारधाराएं वांछनीय हैं, जो मनुष्य समुदाय के अन्दर व्यवस्थाओं से मिलती-जुलती हों । इस विविधता से सुख-शान्ति के लिए मनुष्य की कोशिशों में तीव्रता आयेगी । इसलिए प्रत्येक समुदाय आत्मनिर्णय पर आधारित अपनी राजनीतिक सामाजिक और आर्थिक प्रणाली की प्रगति के लिए आजाद होना चाहिए ।

समरसता न्याय और शान्ति अनेक कारकों पर निर्भर करती है । हमें मनुष्य के हित को ध्यान में रखते हुए इनके लम्बे समय तक फायदों के बरि में विचार करना चाहिए । मुझे पता है कि हमारे समक्ष बहुत कठिन कार्य है । लेकिन इसका अन्य कोई रास्ता भी नहीं है । मेरा सुझाव सामान्य मानवता पर आधारित है ।

दूसरों के हित से मतलब रखने के अतिरिक्त राष्ट्रों के सामने और कोई विकल्प नहीं है । इसी में सबका कल्याण है । यूरोपीय आर्थिक समुदाय और दी क्षण-पूर्व एशियाई राष्ट्र सरीखे क्षेत्रीय या अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के गठन से इस नये सत्य की पुष्टि होती है ।

मुझे आशा है कि इस प्रकार के और ज्यादा राष्ट्रपारीय संगठनों का गठन होगा विशेषतौर पर उन क्षेत्रों में जहां आर्थिक विकास और क्षेत्रीय स्थिरता की कमी है । वर्तमान परिस्थितियों में मानवीय सम्बन्ध और सार्वभौमिक दायित्व की आवश्यकता में वृद्धि हो रही है ।

इस प्रकार के विचारों को मूर्त रूप देने के लिए हमें साफ और दयालु दिल बनना होगा अन्यथा न तो सार्वभौमिक सुख-प्राप्ति हो सकती है और न ही स्थायी विश्व-शान्ति मिल सकती है । हम पेपर पर शान्ति की स्थापना नहीं कर सकते ।

सार्वभौमिक दायित्व और वसुधैव कुटुम्बकम् की वकालत करते हुए मैं कहना चाहूंगा कि प्रत्येक राष्ट्रीय समाज को विश्व-शान्ति की दिशा में कार्य करना चाहिए । समाज को ज्यादा न्यायसंगत और समतामूलक बनाने के लिए अतीत में प्रयत्न किये गये हैं ।

समाज की विरोधी ताकतों से लड़ने के लिए महान् चार्टरों वाले संस्थान स्थापित किये गये हैं । लेकिन अच्छी किस्मत न होने से अपने स्वार्थ के कारण इन विचारों के उद्देश्य पूरे नहीं हुए । आज हम देख रहे हैं कि अपना हित साधन वालों की कुदृष्टि ने नैतिक और आदर्श सिद्धान्तों को किस प्रकार धुंधला बना दिया है, विशेषतौर पर राजनीति के क्षेत्र में ।

एक विचारधारा हमें राजनीति से दूर करने की चेतावनी देती है; क्योंकि राजनीति अनैतिकता का पर्याय बन गयी है । नैतिकताविहीन राजनीति मनुष्य के हित की ओर से आखें बन्द कर लेती है और नैतिकताविहीन जीवन मनुष्य को पशु के स्तर पर ला खड़ा कर देता है । वैसे राजनीति अपने आप में ‘गन्दी वस्तु’ नहीं है, अपितु हमारी राजनीतिक संस्कृति के संस्थानों ने मनुष्य के हित को आगे बढ़ाने वाले उच्च आदर्शों और साफ विचारों को विचारयुक्त बना दिया है ।

आध्यात्मिक लोग धार्मिक नेताओं पर राजनीति में ‘गन्दगी’ फैलाने का इलाम लगाते है; क्योंकि उन्हें डर है कि गन्दी राजनीति से धर्म में विष घुल जायेगा । मैं इस चर्चित अवधारणा पर प्रश्न उठाता रहा हूं कि राजनीति में धर्म और नैतिकता का कोई स्थान नहीं है और धार्मिक लोगों व संन्यासियों को एकान्तवासी होना चाहिए । धर्म के बारे में यह विचार पूरी तरह से एकतरफा है । इसमें समाज के साथ व्यक्ति के सम्बन्ध और हमारे जीवन में धर्म की भूमिका को नजरअन्दाज किया गया है ।

किसी राजनेता के लिए नैतिकता उतनी ही आवश्यक है, जितनी की किसी धार्मिक व्यक्ति के लिए । जब राजनेता और शासक नैतिक सिद्धान्तों को स्मरण नहीं रखते तो इसके भयंकर परिणाम निकलते हैं । हम चाहे भगवान् में भरोसा करें या कर्म में नीतिशास्त्र का ज्ञान एवं उसके अनुरूप किया जाने वाला आचरण प्रत्येक धर्म की बुनियाद है ।

दया, भले-बुरे का ज्ञान नैतिकता नम्रता आदि मानव गुण सभी सभ्यताओं की बुनियाद रहे हैं । इन गुणों की रक्षा की जानी चाहिए और अनुकूल सामाजिक वातावरण में योजनाबद्ध नैतिक शिक्षा के जरिये इन्हें बनाये रखा जाना चाहिए ।

इससे संसार में मानवता फैलेगी । मानवीय दुनिया के निर्माण के लिए इन गुणों को बाल्यावस्था से आत्मसात् किया जाना चाहिए । इस बदलाव के लिए हम अगली पीढ़ी की प्रतीक्षा नहीं कर सकते । बुनियादी मानव मूल्यों को दोबारा से जीवित करने की जिम्मेदारी वर्तमान पीढ़ी को उठानी चाहिए ।

यदि कोई आशा है, तो वह वर्तमान पीढ़ी से है, लेकिन इसके लिए हमें अपनी शिक्षा-प्रणाली में विश्व स्तर पर बदलाव लाना होगा । हमें सार्वभौमिक मानवीय मूल्यों के प्रति अपनी वचनबद्धता को क्रान्तिकारी बनाने की आवश्यकता है ।

नैतिकता के हास को रोकने के लिए केवल शोर मचाना काफी नहीं है । हमें इसके लिए कुछ तो करना ही चाहिए । चूंकि आज की सरकारें इस प्रकार के ‘धार्मिक’ उत्तरदायित्व अपने ऊपर नहीं लेतीं इसलिए मानवीय और आध्यात्मिक मूल्यों को दोबारा से जीवित करने के लिए वर्तमान नागरिक सामाजिक, सांस्कृतिक शैक्षिक और धार्मिक संगठनों को दृढ़ बनाने का उत्तरदायित्व लोकोपकारी और धार्मिक लीडरों पर है ।

इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए जहां जरूरी हो हमें नये संगठन बनाने चाहिए । हम ऐसा करके ही विश्व-शान्ति के लिए एक स्थायी बुनियाद के निर्माण की आशा कर सकते हैं । हमें समाज में रहते हुए अपने साथी नागरिकों की पीड़ा को बांटना चाहिए दया और धीरज का भाव न केवल अपनी के प्रति अपितु दुश्मन के प्रति रखना चाहिए । यह हमारी नैतिक शक्ति की कसौटी है ।

हमें अपनी करनी से उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए; क्योंकि हम केवल शब्दों से धर्म के मूल्य के बारे में दूसरों को निरुत्तर करने की आशा नहीं कर सकते । हमें ईमानदारी और बलिदान के उन उच्च मानकों का स्वयं पालन करना चाहिए जिनकी आशा हम दूसरों से करते हैं ।

सभी धर्मों का परम लक्ष्य मानवता की सेवा और भलाई करना है । इसीलिए धर्म का प्रयोग लोगों की सुख-शान्ति के लिए करना चाहिए न कि अन्यों के धर्म परिवर्तन करने के लिए । धर्म में राष्ट्रीय सीमाएं नहीं होतीं । जो कोई भी धर्म को कल्याणकारी पाता है, वह उसका अनुसरण कर सकता है । उपयोगी बात है, अपने लिए सबसे सही धर्म का चुनाव करना ।

लेकिन किसी विशेष धर्म को अपनाने का तात्पर्य दूसरे धर्म या अपने समुदाय से अलग होना नहीं है । किसी धर्म को अपनाने के बाबुजूद व्यक्ति को अपने समाज से अलग नहीं होना चाहिए ।  उसे अपने समाज में अन्य व्यक्तियों के साथ मित्रता से रहना चाहिए । अपने समुदाय से दूर जाकर आप दूसरों का कल्याण नहीं कर सकते । दूसरों का कल्याण करना ही धर्म का मुख्य उद्देश्य है ।

इस सम्बन्ध में दो बातों को ध्यान में रखना चाहिए: आत्मपरीक्षण और आत्मसुधार । हमें दूसरों के प्रति अपने व्यवहार पर निरन्तर दृष्टि रखनी चाहिए सावधानी से आत्मनिरीक्षण करना चाहिए और अपनी गलती को फौरन सुधारना चाहिए ।

अन्त में मैं कुछ शब्द भौतिक विकास के बारे में कहना चाहूंगा । मैंने पश्चिम के लोगों से भौतिक विकास के बारे में बहुत सारी शिकायतें सुनी हैं । लेकिन विरोधाभास यह है कि पश्चिमी संसार को भौतिक विकास पर ही गर्व रहा है ।

मैं भौतिक विकास में कोई बुराई नहीं देखता बशर्ते मानव हित को सबसे ऊंचा रखा जाये । मेरा मानना है कि मानवीय समस्याओं का समाधान करने के लिए आर्थिक प्रगति और आध्यात्मिक प्रगति के मध्य समुचित सन्तुलन होना चाहिए । लेकिन हमें इसकी सीमाएं भी ज्ञात होनी चाहिए ।

यद्यपि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के रूप में भौतिकवादी ज्ञान से मनुष्य के हित के लिए बहुत कुछ किया है, लेकिन इससे स्थायी सुख-शान्ति नहीं आ सकती ।  उदाहरण के लिए, अमेरिका में प्रौद्योगिकीय प्रगति दूसरों देशों की तुलना में सम्भवत: ज्यादा उन्नत है । इसके बाबुजूद वहां मानसिक अशान्ति बहुत है ।

इसका कारण यह है कि भौतिकवादी ज्ञान केवल शारीरिक सुख ही दे सकता है, आन्तरिक विकास से उत्पन्न मानसिक सुख नहीं । आन्तरिक प्रगति बाह्य कारकों से आजाद होती है । मानवीय मूल्यों को दोबारा से जीवित करने और स्थायी सुख-शान्ति प्राप्त करने के लिए हमें संसार में साझी मानवीय विरासत को देखने की आवश्यकता है । हमें इस धरती पर एक एकल परिवार के रूप में जोड़ने वाले मानव-मूल्यों को सदैव याद रखना चाहिए ।

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International Day of Peace Essay In Hindi – विश्व शांति दिवस पर निबंध

अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस, जिसे कभी-कभी अनौपचारिक रूप से विश्व शांति दिवस के रूप में जाना जाता है, जो कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्वीकृत अवकाश है जिसे प्रतिवर्ष 21 सितंबर को मनाया जाता है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा संकल्प 36/67 के माध्यम से 1981 में अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस की शुरुआत की गई थी। दो दशक बाद 2001 में, महासभा ने सर्वसम्मति से इस दिन को अहिंसा और संघर्ष विराम की अवधि के रूप में नामित करने के लिए मतदान किया।

संयुक्त राष्ट्र सभी देशों और लोगों को दिन के दौरान शत्रुता की समाप्ति का सम्मान करने के लिए और अन्यथा शांति से संबंधित मुद्दों पर शिक्षा और जन जागरूकता के माध्यम से दिवस मनाने के लिए आमंत्रित करता है।

History of International Day of Peace Essay in Hindi / अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस का इतिहास पर निबंध 

संघर्षों को समाप्त करने और शांति को बढ़ावा देने के लिए व्यक्तियों, संगठनों और सरकारों के प्रयासों को मान्यता देने के लिए संयुक्त राष्ट्र का अंतर्राष्ट्रीय शांति और अहिंसा दिवस प्रतिवर्ष 21 सितंबर को मनाया जाता है।

कबूतर एक प्रतीक है जो अक्सर अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस से जुड़ा होता है। दिन का उद्घाटन करने के लिए, न्यूयॉर्क शहर में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में संयुक्त राष्ट्र की शांति की घंटी बजाई जाती है।

परंपरागत रूप से इसे साल में केवल दो बार ही बजाया जाता है। प्रकृति के सामंजस्य का प्रतीक और पृथ्वी की शांति और देखभाल के लिए दुनिया की प्रतिबद्धता को फिर से समर्पित करने के लिए वसंत का पहला दिन। फिर, ठीक छह महीने बाद, 21 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस मनाने के लिए।

पहला शांति दिवस 1982 में मनाया गया था और हर साल सितंबर के तीसरे मंगलवार को 2002 तक आयोजित किया गया था, जब 21 सितंबर शांति के अंतर्राष्ट्रीय दिवस की स्थायी तिथि बन गई।

यह दुनिया भर में लाखों लोगों को शामिल करने के लिए विकसित हुआ है और इस दिन को मनाने और मनाने के लिए हर साल कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

कुछ समूह इस शुभ दिन पर दुनिया भर के हर समय क्षेत्र में दोपहर में एक मिनट का मौन रखते हैं। अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस बनाकर, संयुक्त राष्ट्र ने खुद को विश्वव्यापी शांति के लिए समर्पित कर दिया और लोगों को इस लक्ष्य के लिए सहयोग में काम करने के लिए प्रोत्साहित किया।

शांति के अंतर्राष्ट्रीय दिवस पर, संयुक्त राष्ट्र महासचिव 60 देशों द्वारा दान किए गए सिक्कों से बनी एक घंटी बजाते हैं और इस विशेष दिन को मनाने के लिए एक विशेष समारोह आयोजित करते हैं।

विषय-वस्तु: शांति और अहिंसा का अंतर्राष्ट्रीय दिवस

इस दिन के बारे में लोगों में रुचि पैदा करने के लिए हर साल विभिन्न विषयों के साथ शांति और अहिंसा का यह अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है।

2017 का विषय था “एक साथ शांति के लिए: सम्मान, सुरक्षा और सभी के लिए सम्मान।” यह विषय एक साथ वैश्विक अभियान पर आधारित है जो बेहतर जीवन की तलाश में अपने घरों से भागने के लिए मजबूर हर किसी के लिए सम्मान, सुरक्षा और सम्मान को बढ़ावा देता है।

2018 के वर्ष में संयुक्त राष्ट्र के शांति दिवस की थीम “शांति का अधिकार – 70 पर मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा” थी।

अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस 2019 की थीम “शांति के लिए जलवायु कार्रवाई” थी। इस विषय को संयुक्त राष्ट्र द्वारा चुना गया था। संयुक्त राष्ट्र की वेबसाइट के अनुसार, “संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए सभी से कार्रवाई करने का आह्वान करता है।” विषय दुनिया भर में शांति की रक्षा और बढ़ावा देने के तरीके के रूप में जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने की आवश्यकता पर बल देता है।

अंतर्राष्ट्रीय शांति और अहिंसा दिवस के लिए 2020 की थीम “शेपिंग पीस टुगेदर” है। इसलिए, महामारी के बावजूद सहानुभूति, विचार और अपेक्षा फैलाकर इस दिन को मनाएं। भेदभाव या घृणा को बढ़ावा देने के लिए वायरस का उपयोग करने के प्रयासों के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र के साथ खड़े हों।

जीवन में शांति क्यों जरूरी है? – Why peace is important in life?

तो, शांति क्या है? शांति हिंसा और उत्पीड़न से मुक्ति है। लिंग, यौन पहचान, नस्ल, धर्म और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना शांति समानता है। शांति प्रत्येक व्यक्ति की अंतर्निहित गरिमा का सम्मान करना है।

आज आपके लिए इसका क्या मतलब है? केवल मेरे लिए शांति वैश्विक स्थिरता है और लोग एक-दूसरे की आवाज का सम्मान करते हैं। यह इतना ही सरल है। शांति आपको परिवेश को समझने में मदद करती है। यह मन को घर के आधार के समान बनाता है, जड़ को वृक्ष के समान।

शांति के बिना हमारे दोस्त हमारे दुश्मन हो सकते हैं। उस समय जब हमारे जीवन में शांति होती है, हम सभी के साथ एक-दूसरे के बगल में रह सकते हैं, मानव जाति के लिए कुछ सुखद या उपयोगी बनाने का प्रयास कर सकते हैं। इसलिए हमारे जीवन में शांति का बहुत महत्व है।

यदि हमारे मन में और सबके मन/जीवन में शांति है तो कोई भी जीवन शक्ति और पैसा ईर्ष्या, पैर खींचने, लड़ने और युद्धों पर खर्च नहीं करेगा। शांति आपको अन्य लोगों के साथ बेहतर ढंग से जोड़ती है। जीवन के बारे में मदर टेरेसा द्वारा दिया गया एक बहुत ही प्रसिद्ध उद्धरण है। अर्थात्,

  • जीवन एक अवसर है, इससे लाभ लें।
  • जीवन एक सुंदरता है, इसकी प्रशंसा करें।
  • जीवन एक सपना है, इसे साकार करें।
  • जीवन एक चुनौती है, इसे पूरा करें।
  • जीवन एक कर्तव्य है, इसे पूरा करें।
  • जीवन एक खेल है, इसे खेलें।
  • जीवन एक प्रतीज्ञा है, इसे निभाएं।
  • जीवन में दुख होते हैं, इनसे ऊपर उठें।

शांति के 6 स्तंभ – Six Pillar Of Peace In Hindi

  • भ्रष्टाचार के निम्न स्तर
  • ध्वनि कारोबारी माहौल
  • अच्छी तरह से काम कर रही सरकार
  • पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध
  • मानव पूंजी का उच्च स्तर
  • संसाधनों का समान वितरण

अहिंसा का क्या महत्व है? – Importance of Non Violance In Hindi

मानवता को दूर करने में अहिंसा सबसे अच्छी शक्ति है। एक बार महात्मा गांधी ने कहा था कि यह मनुष्य की आविष्कारशीलता द्वारा तैयार किया गया सबसे शक्तिशाली हथियार है।

तिब्बती महान गुरु दलाई लामा ने कहा है कि धर्म सहानुभूति के महत्व पर जोर देते हैं, जो जंगलीपन को नियंत्रित करने का एक उपकरण है। पुरुष धर्म के लिए पुरुषों को मारते हैं।

महत्वपूर्ण कारकों में से एक साक्षरता है। अगर दुनिया के सभी लोग साक्षर होंगे तो हिंसा की संभावना कम होगी और हम शांति के बारे में सोच सकते हैं। यदि सभी लोग पढ़ने और लिखने में सक्षम हैं तो वे स्वतंत्र हो जाते हैं, किसी भी समस्या से निपटने में सक्षम होते हैं और खुद को विभिन्न कार्यों में संलग्न करते हैं।

यदि वे अनपढ़ हैं तो वे शांति और हिंसा में अंतर नहीं कर सकते। अशिक्षा बढ़ते संघर्ष का सबसे बड़ा कारक है और हिंसा की ओर ले जाती है। इसलिए, शिक्षा को बढ़ावा देने और साक्षरता के महत्व के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए, 8 सितंबर को दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस भी मनाया जाता है।

Quotes On International Peace Day In Hindi

यहाँ शांति उद्धरणों के कुछ अंतर्राष्ट्रीय दिवस हैं। ये प्रेरणादायक उद्धरण भारत के साथ-साथ भारत के बाहर के विभिन्न प्रसिद्ध लोगों द्वारा दिए गए हैं। तो चलिए शुरू करते हैं-

1. “अहिंसा का अर्थ केवल बाहरी शारीरिक हिंसा से ही नहीं बल्कि आत्मा की आंतरिक हिंसा से भी बचना है। आप न केवल एक आदमी को गोली मारने से इनकार करते हैं, बल्कि आप उससे नफरत करने से भी इनकार करते हैं। ” – मार्टिन लूथर किंग जूनियर।

2. “अहिंसा का मार्ग सम्मान का मार्ग है। यह प्रत्येक प्राणी के प्रति सम्मान है। यह प्रत्येक प्राणी की चेतना को जगाने का मार्ग है।” — अमित राय

3. “शांति की शुरुआत मुस्कान से होती है।” – मदर टेरेसा

4. “हम उस समय की प्रतीक्षा कर रहे हैं जब प्रेम की शक्ति शक्ति के प्रेम का स्थान ले लेगी। तब हमारी दुनिया को शांति का आशीर्वाद मालूम होगा?” – विलियम इवार्ट ग्लैडस्टोन

5. “यदि आप अपने दुश्मन के साथ शांति बनाना चाहते हैं, तो आपको अपने दुश्मन के साथ काम करना होगा। फिर वह आपका साथी बन जाता है।” – नेल्सन मंडेला

6. “अहिंसा हमारे समय के महत्वपूर्ण राजनीतिक और नैतिक प्रश्नों का उत्तर है; उत्पीड़न और हिंसा का सहारा लिए बिना उत्पीड़न और हिंसा पर काबू पाने के लिए मानव जाति की आवश्यकता। मानव जाति को सभी मानवीय संघर्षों के लिए एक ऐसा तरीका विकसित करना चाहिए जो प्रतिशोध, आक्रामकता और प्रतिशोध को अस्वीकार करता हो। ऐसी पद्धति का आधार प्रेम है।” – मार्टिन लूथर किंग

7. “मुझे पता है, किसी के सीने से क्रोध को पूरी तरह से दूर करना एक मुश्किल काम है। इसे शुद्ध व्यक्तिगत प्रयास से हासिल नहीं किया जा सकता है। यह केवल ईश्वर की कृपा से ही किया जा सकता है।” – महात्मा गांधी

8. “जीवन का मुख्य उद्देश्य सही तरीके से जीना, सही सोचना, सही काम करना है। जब हम अपना सारा विचार शरीर को देते हैं तो आत्मा को मरना चाहिए। ” – महात्मा गांधी

9. “अहिंसा बलवानों का हथियार है। अहिंसा मानव जाति के निपटान में सबसे बड़ी शक्ति है। यह मनुष्य की चतुराई से तैयार किए गए विनाश के सबसे शक्तिशाली हथियार से भी अधिक शक्तिशाली है।” – महात्मा गांधी

10. “मैं तुम्हें हिंसा नहीं सिखा सकता, क्योंकि मैं स्वयं उस पर विश्वास नहीं करता। मैं आपको केवल यह सिखा सकता हूं कि अपने जीवन की कीमत पर भी किसी के सामने अपना सिर न झुकाएं। ” – महात्मा गांधी

11. “अहिंसा केवल दुनिया के वीर पुरुषों और महिलाओं के लिए है क्योंकि जीवन की सुंदरता, मानवता की सुंदरता और दुनिया की सुंदरता से प्यार करने के लिए साहस की आवश्यकता होती है।” – अमित रे, अहिंसा: द ट्रांसफॉर्मिंग पावर

12. “अहिंसा का मतलब यह नहीं है कि हमें अन्याय को निष्क्रिय रूप से स्वीकार करना होगा। हमें अपने अधिकारों के लिए लड़ना है, हमें अन्याय का विरोध करना है। – दलाई लामा

13. “जब प्रेम की शक्ति शक्ति के प्रेम पर विजय प्राप्त करती है, तो दुनिया को शांति के रूप में जाना जाएगा।” – जिमी हेंड्रिक्स

सारांश: शांति और अहिंसा के अंतर्राष्ट्रीय दिवस की शुभकामनाएं – Happy International Day of Peace & Non-Violence In Hindi

यह एक ऐसा दिन है जिसे संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा दुनिया भर के सभी लोगों के लिए अलग रखा गया था ताकि वे किसी भी मतभेद के बावजूद शांति बनाए रखने के लिए समर्पित हों, साथ ही एक शांति संस्कृति के निर्माण में एक भूमिका निभाएं जो पीढ़ियों तक चलेगी। आइए। साथ ही, यह शांति के आदर्शों को मजबूत करने के लिए समर्पित दिन है।

इस वर्ष हम मानवाधिकारों की घोषणा की 73वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। हमारे इतिहास का एक टुकड़ा जिसने हमारे सामने आने वालों को उनके जीवन, स्वतंत्रता और व्यक्ति की सुरक्षा के अधिकार के लिए लड़ने की अनुमति दी है।

संघर्ष और अपराधों ने कई लोगों को अपने समुदायों की सुरक्षा खोने के लिए मजबूर किया है। अब शांति और अहिंसा 2020 के इस अंतर्राष्ट्रीय दिवस पर, यह हमारा समय है कि हम हिंसा के बजाय लोगों की संस्कृति को बढ़ावा दें।

यदि आप और अधिक पढ़ना चाहते हैं, जैसे अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस, अंतर्राष्ट्रीय शांति भाषण, अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस आदि के लिए गतिविधियाँ, तो कृपया नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स पर टिप्पणी करें। हम निश्चित रूप से इस पर काम करेंगे। अगर अच्छा लगे तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।

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विश्व शांति और समझ दिवस (साल 23 फरवरी)

दुनिया में शांति बनाए रखने के लिए जरूरी समझ और सद्भावना पर जोर देने के हर साल 23 फरवरी को  विश्व शांति और समझ दिवस ( World Peace and Understanding Day) मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य दुनिया में प्रेम-भाईचारा और शांति को बनाए रखना है। अविश्वास समाज को गलतफहमी , विद्रोह , लड़ाई और संघर्ष की ओर ले जाता है। समाज में एकजुटता की भावना को बनाए रखने के लिए शांति और समझ होना बेहद आवश्यक है। इसलिए हिंसा से रहित दुनिया में शांति लाने के उद्देश्य के लिए हर साल इस दिवस को मनाया जाता है। इस दिवस पर दुनिया भर के देशों में कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

विश्व शांति और समझ दिवस के उद्देश्य

हिंसा या क्रूरता से रहित दुनिया के निर्माण व विश्व में शांति लाने के उद्देश्य के लिए इस दिवस को मनाया जाता है। दुनिया में शांति और समझ पैदा करना पूरी मानव जाति का कर्तव्य है। समाज में समझ से ही शांति स्थापित की जा सकती है। इसके लिए सामूहिक प्रयास करने की आवश्तकता है। इसके विपरित यदि, पूरी दुनिया के लोग एक दूसरे को घृणा और नफरत की दृष्टि से देखेंगे तो उसका परिणाम युद्ध औऱ विनाश के रूप में सामने आएगा। संघर्ष, अविश्वास, गलतफहमी और विद्रोह समजा को बांटता है और उसे एक अन्नत संघर्ष की खाई में धकेल देता है। इसलिए समाज में विश्वास और शांति स्थापित करने के लिए सभी मनुष्यों को एक दूसरे के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सहयोगी के रूप में कार्य करना होगा।

UPSC अपने उम्मीदवारों से अक्सर इस तरह के अंतर्राष्ट्रीय दिवसों और संगठनों के बारे में प्रश्न पूछते रहती है। इसलिए IAS प्रारंभिक परीक्षा के करेंट अफेयर्स के सेक्शन में इस विषय से संबंधि प्रश्न पूछे जाने की प्रबल संभावना है।

नोट: UPSC 2023 परीक्षा नजदीक आ रही है , इसलिए अपनी तैयारी को बढ़ाने के लिए BYJU’s के The Hindu Newspaper के दैनिक वीडियो विश्लेषण का उपयोग करें।

आप अपनी IAS परीक्षा की तैयारी शुरू करने से पहले UPSC Prelims Syllabus in Hindi को गहराई से समझ लें और उसके अनुसार अपनी तैयारी की योजना बनाएं।

विश्व शांति और समझ दिवस का इतिहास

विश्व में शांति और समझ की भावना विकसित करने को लेकर 23 फरवरी 1905 को पहली रोटरी बैठक हुई थी। इसके लिए शिकागो शहर की यूनिटी बिल्डिंग के रूम नंबर 711 में पॉल हैरिस , गुस्तावस लोएहर , सिल्वेस्टर शिएले और हीराम शोरे लोहर जैसी हस्तियां एकत्रित हुई थी। अटॉर्नी पॉल हैरिस एक पेशेवर संघ बनाना चाहते थे इसलिए उन्होंने यह सभा बुलाई थी। इन हस्तियों के मिलने के स्थान “रोटेट” होते रहते थे इसलिए हैरिस , गुस्तावस लोहर , सिल्वेस्टर शिएले और हीराम शौरी ने अपने इस क्लब का नाम रोटरी क्लब रखा था।

बाद में इस क्लब में मानवीय मूल्यों के लिए अपनी इच्छा साझा करने वाले लोगों का समूह जुड़ता गया। हालांकि रोटरी क्लब ने औपचारिक रूप से साल 1922 में ‘ रोटरी इंटरनेशनल ’ नाम को अपनाया था। विश्व शांति और समझ दिवस दुनिया के सबसे बड़े धर्मार्थ संगठनों में से एक के निर्माण की वर्षगांठ की याद दिलाता है। इस संगठन की स्थापना की याद में हर साल ‘ विश्व शांति और समझ दिवस ‘  मनाया जाता है।

इस साल विश्व शांति और समझ दिवस की 117वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है। इन वर्षों के दौरान पूरी दुनिया ने विश्व शांति और सद्भावना को लेकर लंबा रास्ता तया किया है। वहीं दुनिया भर के लोगों में सद्भावना , शांति और समझ विकसित करने के लिए अभी और लंबा रास्ता तय करना है।   

नोट: यह विषय राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनो दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है, इसलिए आईएएस परीक्षा में इस विषय के बारे में बुनियादी तथ्य पूछे जा सकते हैं।  

नोट: करेंट अफेयर्स पर प्रश्नोत्तरी का अभ्यास करने के लिए आप संलग्न लिंक पर जा सकते हैं।

विश्व शांति और समझ दिवस का महत्व

दुनिया भर के लोगों के बीच शांति और सामान्य समझ को बढ़ावा देने के लिए यह दिवस बेहद महत्वपूर्ण है। इस दिवस पर दुनिया में शांति और समझ विकसित करने के लिए प्रयासों को बढ़ावा दिया जाता है। दुनिया भर में लोगों और राष्ट्रों के बीच शांति और संघर्षों के बीच प्रचलित गलतफहमी को देखते हुए इस दिवस का  महत्व और बढ़ जाता है।

नोट: नवीनतम UPSC Current Affairs in Hindi के साथ खुद को अपडेट रखने के लिए BYJU’S के साथ जुड़ें , यहां हम प्रमुख जानकारियों को आसानी से समझ में आने वाले तरीकों से समझाते हैं।

UPSC की तैयारी के लिए महत्वपूर्ण राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दिनों और तिथियों की सूची प्राप्त करने के लिए , लिंक किए गए लेख पर जाएं।

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संयुक्त राष्ट्र और शांति की संभावनाएँ पर निबन्ध | Essay on The U.N.O. & the Possibility of World Peace in Hindi

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संयुक्त राष्ट्र और शांति की संभावनाएँ पर निबन्ध | Essay on The U.N.O. & the Possibility of World Peace in Hindi!

पच्चीस वर्षों में दो विश्वयुद्धों के कड़वे अनुभवों के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की आवश्यकता को महसूस किया गया । अक्तूबर 1944 में डूबरटन ओक कांफ्रेस में पहली बार इसकी चर्चा की गई ।

26 जून, 1945 को सेन फ्रांसिस्कों में 51 राष्ट्रों के प्रतिनिधियों के सम्मेलन में इसको अंतिम रूप प्रदान किया । संयुक्त राष्ट्र संघ नाम का सुझाव राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने दिया । 24 अक्तूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र संघ वास्तव में स्थापित हुआ ।

संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के बाद आज लगभग पांच दशक बीत गए हैं । इस दौरान विश्व में बड़ा भारी परिवर्तन आ गया है । परमाणु बम आदि जैसे विध्वंसकारी शस्त्रों का आविष्कार होने के कारण मानव जाति विनाश के कगार पर खड़ी हो गई है ।

प्रारंभ में संयुक्त राष्ट्र संघ में केवल 51 देश शामिल थे जो अब बढ़कर 188 हो गए हैं । पिछले पचास वर्षो में विश्व की जनसंख्या दोगुनी से भी अधिक हो गई है और विश्व अर्थव्यवस्था का क्षेत्र विस्तृत हो गया है । विज्ञान और तकनीकी में उन्नति के कारण मानव जीवन में भी सुधार आया है ।

संयुक्त राष्ट्र संघ की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि पिछले पांच दशकों में इसके कारण द्वितीय विश्वयुद्ध जैसी घटना पुन: घटित नही हुई है । द्वितीय विश्वयुद्ध ने विश्व के कई देशों को पूरी तरह नष्ट कर दिया था, जिसमें लगभग 3 करोड़ लोग मौत का शिकार हुए थे ।

इसने पूरी तरह विश्व में मैत्री-बंधुत्व का वातावरण तैयार किया और उनके मतभेदों को दूर कर तीसरे विश्वयुद्ध जैसी स्थिति के उभरने में रोक लगाई है । भारत-चीन युद्ध, अरब-इस्राइल युद्ध, ईरान-इराक युद्ध और 1991 में ईराक-कुवैत युद्ध के विवाद में संयुक्त राष्ट्र संघ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी ।

ADVERTISEMENTS:

विश्व के सामाजिक और आर्थिक स्तर को ऊँचा उठाने और संबंधित समस्याओं को सुलझाने में संयुक्त राष्ट्र की ‘यूनेस्को’ और ‘आई. एल. ओ.’ जैसी संस्थाओं का विशेष योगदान है । संयुक्त राष्ट्र संघ की ‘शांति सेनाएं’ और ‘संयुक्त राष्ट्र पुनर्वास संगठन’ युद्ध ओर क्षेत्रीय विवादों में उलझे देशों को राहत दिलाने के कार्यो में जुटे हुए हैं ।

विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय विकास संस्थाएँ अविकसित राष्ट्रों को आत्मनिर्भर बनने के लिए सरल किश्तों पर ऋण उपलब्ध कराती है । भारत को इन ऋणों का लाभ प्राप्त हो रहा है । कई देशों की अर्थव्यवस्था इन्हीं ऋणों की सहायता से सुदृढ़ हो गई है ।

इसकी कमियों के संबंध में चर्चा करते हुए यह कहा जाता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ अमरीका और रूस के मध्य का अंतर मिटाने में असफल रहा है । ऐसा माना जाता है कि इस पर अमरीका और उसके उपग्रहों का अधिक प्रभाव है । दूसरी ओर रूस इसकी सुरक्षा परिषद् द्वारा सर्वसम्मति से लिए निर्णयों पर अपने वीटों के अधिकार का प्रयोग कर लेता है ।

निशस्त्रीकरण के सभी उपाय निष्फल हो गए हैं । ‘नाटो’ और वार्सा संधि को स्वीकार कर कई महाशक्तियाँ इस संगठन से निकल गर्ड है । ईरान-इराक युद्ध, नामीबिया, अरब-इजराइल विवाद आदि जैसी मह्त्वपूर्ण समस्याओं पर अभी भी कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया है ।

इस परमाण्विक युग में दो देशों के बीच के विवाद को युद्ध के माध्यम से सुलझाना संभव नहीं रह गया है, क्योंकि युद्ध से आक्रमणकारी और जिस पर आक्रमण हुआ है, सभी का विनाश हो जाता है । आज इतनी संख्या में परमाणु अस्त्रों का निर्माण हो चुका है, जो पृथ्वी को एक बार नहीं हजारों बार नष्ट कर सकते है । इस प्रकार आज के युग में युद्ध छेड़ना आत्महत्या के समान है ।

इसलिए मानव जाति को युद्ध के विरूद्ध लड़ाई लड़नी चाहिए, अन्यथा मानव जाति का विनाश हो जाएगा । कुछ वरिष्ठ विचारकों का मत है कि यदि विश्व में युद्ध हुआ तो सम्पूर्ण मानवजाति नष्ट हो जाएगी । इससे बचने का एकमात्र उपाय विश्व एकता की विचारधारा को प्राणिमात्र तक पहुँचाना है ।

संयुक्त राष्ट्र संघ सम्पूर्ण विश्व को एक परिवार की भांति मानने पर बल देता है । इस संगठन के प्रयासों की सहायता से हम धीरे-धीरे इस लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं । विज्ञान और तकनीक के चमत्कारों के कारण आज विश्व के सभी देश एक-दूसरे के करीब आ गए है । आर्थिक दृष्टि से विश्व के अधिकांशत: सभी देश स्वतंत्र हैं । लेकिन एक देश की आर्थिक स्थिति का प्रभाव दूसरे देश पर अवश्य पड़ता है ।

द्ध में होने वाले विनाश को देखकर लोगों में अपने भविष्य की सुरक्षा की भावना उत्पन्न हो रही है, जोकि युद्ध प्रतिबंध और विश्व एकता की स्वीकृति के द्वारा ही संभव है । विश्व के विभिन्न देशों में अंतरराष्ट्रीय नियमों, राजनयिक संबंधों तथा विवादों को सुलझाने वाली संस्थाओं के निर्माण द्वारा अंतरराष्ट्रीय की भावना को बढ़ावा मिल रहा है ।

विश्व में एकता और सामंजस्य स्थापित करने का सबसे अच्छा तरीका संयुक्त राष्ट्र संघ को विश्व सरकार के रूप में मान्यता देना है । विश्व सरकार के कानूनों का निर्माण अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के निर्णय पर आधारित होगा । वर्तमान आम सभा विश्व-संसद मे परिवर्तित हो जाएगा, जिसके सदस्यों की संख्या देश की जनसंख्या के हिसाब से तय होगी । सुरक्षा परिषद् को विश्व सरकार के उच्च सैन्य संगठन में परिवर्तित कर दिया जाएगा जिसे परमाणु ऊर्जा के उत्पादन में निर्णय लेने का अधिकार होगा ।

पिछले पाँच दशकों से संयुक्त राष्ट्र संघ की विश्व-मंच पर सराहनीय भूमिका रही है । इसके प्रभाव को और अधिक बढ़ाने के लिए इसकी कमियों की ओर ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है । विश्व की पांच प्रमुख शक्तियों को वीटो का अधिकार है । रूस तथा पश्चिमी शक्तियाँ वीटो शक्ति का मनमाना प्रयोग करती हैं । इन पर नियंत्रण लगाना आवश्यक है । संयुक्त राष्ट्र संघ के संधि पत्र में परिवर्तन अथवा सुधार के बिना संयुक्त राष्ट्र संघ सफलता की ओर बढ़ने में अक्षम है ।

संयुक्त राष्ट्र संघ के संधि पत्र की छठी धारा के अनुसार किसी भी सदस्य राष्ट्र द्वारा संधिपत्र में वर्णित नियमों के उल्लंघन की स्थिति में वह राष्ट्र संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता से निष्कासित हो जाएगा । इन नियमों का प्रयोग मानव अधिकारों और स्वतंत्रता के जन्म सिद्ध अधिकार की रक्षा के लिए करना चाहिए, इससे दक्षिणी अफ्रीका, नामीबिया आदि के विवाद सुलझ सकते है ।

इसी प्रकार इस संधिपत्र की चतुर्थ धारा में भी परिवर्तन किया जाना चाहिए ताकि इसमें शामिल होने की इच्छा रखने वाले राष्ट्र बिना किसी औपचारिकता के इसमें शामिल हो सके । दूसरा सुझाव अंतरराष्ट्रीय न्यायलय को विशेष अधिकार प्रदान करना है ।

इन परिवर्तनों और सुधारों को लागू करना सुगम नहीं है । फिर भी युद्ध का भय बढ़ने पर लोग शांति के महत्व को समझ सकेंगे । धीरे-धीरे छोटे देश शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के मूल्य को समझेंगे और अपनी राष्ट्रीय द्वेष भावना, डर और महत्वाकांक्षा को त्याग देंगे । इस प्रकार मानवजाति के एक अध्याय का शुभारंभ होगा और संयुक्त राष्ट्र के स्वप्न वास्तविकता में परिवर्तित हो जाएँगें ।

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10 Lines on World Peace Day in Hindi । अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस

10 Lines on World Peace Day in Hindi

आज हम “विश्व शांति दिवस पर 10 लाइन्स निबंध” लेकर आपके समक्ष आये है, इस आर्टिकल में आप ’ 10 Lines on World Peace Day in Hindi ’ में पढ़ेंगे।

Table of Contents

World Peace Day in Hindi

शांति एक ऐसा आध्यात्मिक शब्द है, जिसे सभी अपने जीवन में पाना चाहते हैं। हर कोई शांति से जीवन यापन करना चाहता है, लेकिन जीवन संघर्षों से भरपूर होता है। इसीलिए संघर्ष ही जीवन का एक अहम हिस्सा है। आजकल की तनावपूर्ण जीवन में जनसंख्या में तो बहुत वृद्धि हुई है पर मनुष्य भीड़ में खोया अकेला हो गया है। निराश और उदास है। शांति की तलाश में कोई घर छोड़ रहा है, कोई पारिवारिक जीवन का त्याग कर रहा है। फिर भी मनुष्य को शांति नहीं मिल रही। आज अगर विश्व में देखें तो चारो और टेक्नोलॉजी की भरमार है। फिर हमेशा आतंकवाद, खून, डकैती, बलात्कार, फरेब हिंसा, हत्या से दुनिया अशांति से भरी पड़ी है। यह भी मनुष्य है और इन्हें भी शांति चाहिए पर गलत दिशा निर्देशों के कारण अपने पथ से भटक गए हैं और गुमनामी के अंधेरों में खो गए हैं। 

वर्तमान परिपेक्ष्य में जिस चीज की सबसे ज्यादा आवश्यकता है वह है शांति। इस शांति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ही हर वर्ष 21 सितंबर को विश्व शांति दिवस मनाया जाता है। 

विश्व शांति दिवस का इतिहास

 अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस की स्थापना 1985 में की गई थी। 1985 से लेकर 2000 तक सितंबर के तीसरे सप्ताह में विश्व शांति दिवस मनाया जाता था। विश्व शांति दिवस वर्ष 2001 से विश्व शांति दिवस की अधिकारिक तिथि 21 सितंबर घोषित कर दी गई थी। इस दिन को मनाने के लिए न्यूयॉर्क शहर में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में संयुक्त राष्ट्र शांति घंटी बजाई जाती है। यह घंटी जून 1954 में जापान के संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा प्रदान की गई थी। बेल टावर को हनमीदा फूलों से सजा हुआ छोटा सा मंदिर की तर्ज पर बनाया गया है जो उस स्थान का प्रतीक है जहां गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था।

 11 सितंबर उग्रवादी इस्लामी आतंकवाद अलकायदा द्वारा चार आतंकवादी द्वारा अमेरिका पर हमले किए गए थे। उसी वर्ष में तारीख विश्व शांति दिवस की तारीख बदल दी गई।

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  कबूतर है शांति का प्रतीक

 कबूतरों को शांति का प्रतीक बनने के पीछे भी ऐतिहासिक कथाएं हैं। ऐसा माना जाता है कि बाइबल में के प्रसंग में एक भयानक बाढ़ के समय कबूतर मानवता की सहायता के लिए प्रकट हुए थे। ऐसा भी माना जाता है कि मशहूर कलाकार पाब्लो पिकासो द्वारा अपनी पेंटिंग्स में कबूतरों के उपयोग के शांति के दूत के तौर पर उनकी लोकप्रियता बढ़ाने में व्यापक योगदानकारी रहा। युद्ध के त्रासदी दर्शाने वाली उनकी प्रसिद्ध Guernica वाली उनकी पेंटिंग में मरहम लगाते हुए पेंटिंग में कबूतरों को घायल घोड़ों और मवेशियों को मरहम लगाते हुए दिखाया गया है। इसके अलावा 1949 में पिकासो ने पेरिस में आयोजित वर्ल्ड कांग्रेस के लिए बनाए पोस्टर में सफेद कबूतर का चित्र था।

विश्व शांति दिवस को मनाने का उद्देश्य

 अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस 21 सितंबर को वैश्विक स्तर पर मनाया जाता है। इस दिन संयुक्त राष्ट्र महासभा 24 घंटे युद्ध को विराम देते हैं। राष्ट्रों तथा लोगों के बीच शांति के नियमों को बढ़ावा देकर इस दिन का पालन किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार साल 2022 का थीम था ‘नस्लवाद खत्म करो शांति का निर्माण करो’ संयुक्त राष्ट्र के अनुसार वास्तविक सच्ची शांति प्राप्ति के लिए ना सिर्फ अहिंसा का होना जरूरी होता है बल्कि ऐसे समाज के निर्माण की आवश्यकता होती है जहां सभी सदस्य समान हो तथा सभी को विकास के पर्याप्त अवसर भी मिलते हों। इस दिन के पालन का मकसद ऐसी दुनिया बनाना है जहां सभी अपनी जाति की परवाह किए बिना समान व्यवहार किया जाता हो। इस दिन संयुक्त राष्ट्र संघ सभी मतभेदों से ऊपर शांति के लिए प्रतिबंध होने और शांति की संस्कृति के निर्माण में योगदान करने के लिए सभी मानवता के लिए वैश्विक स्तर पर सांझा करता है। 

भारत की भूमिका

विश्व शांति दिवस के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरू ने शांति के 5 मूल मंत्र दिए थे, जिसे पंचशील सिद्धांत का नाम दिया गया जिसमें शामिल हैं –

  • एक दूसरे की प्रादेशिक अखंडता और प्रभुता का सम्मान करो 
  • समानता और परस्पर लाभ की नीति का पालन
  • एक दूसरे के आंतरिक विषयों में हस्तक्षेप ना करना
  •  शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की नीति में विश्वास रखना
  • एक दूसरे के विरुद्ध आक्रामक कार्यवाही ना करना

 क्यों मनाया जाता है अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस ?

इस दिन के माध्यम से दुनिया और दुनिया वालों के बीच शांति का संदेश प्रचार किया जाता है । सफेद कबूतर को शांति का दूत माना जाता है। दुनियाभर में शांति का संदेश पहुंचाने के लिए विश्व शांति दिवस पर सफेद कबूतर उड़ाकर शांति का पैगाम दिया जाता है तथा एक दूसरे से भी शांति कायम रखने की अपेक्षा की जाती है।

10 Lines on World Peace Day in Hindi

  • विश्व शांति दिवस प्रतिवर्ष 21 सितंबर को मनाया जाता है।
  • भारत एक शांतिप्रिय देश है ।
  • विश्व शांति दिवस के दिन विभिन्न समारोहों का आयोजन किया जाता है।
  • शांति किसी भी समाज तथा देश के निर्माण के आधार होते हैं ।
  • आज विश्व शांति की आवश्यकता बहुत अधिक और तेज हो गई है ।
  • विश्व शांति दिवस की स्थापना संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 1881 में की गई थी ।
  • स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने शांति के 5 मूल मंत्र दिए थे।
  • इस दिन का पालन घंटी बजा कर किया जाता है।
  • इस दिन युद्ध को 24 घंटे के लिए विराम दिया जाता है ।
  • इसे पहले वनडे पीस के नाम से नामकरण किया गया था।

5 Lines on World Peace Day in Hindi

  • इस दिन को मनाने का मकसद दुनिया के शांति तथा भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना है।
  • आज पूरी दुनिया में अशांति का ही बोलबाला है।
  • रुस यूक्रेन युद्ध युद्ध अभी भी जारी है।
  • यूरोप और  दुनिया के लोग त्राहि-त्राहि कर रहे है। 
  • ऐसे मे एक दिन शांति की आवश्यकता है।

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FAQ on World Peace Day in Hindi

1) विश्व शांति दिवस से आप क्या समझते हैं .

उत्तर -विश्व शांति दिवस प्रतिवर्ष 21 सितंबर को वैश्विक स्तर पर तथा उसके लोगों के बीच में शांति कायम रखने के उद्देश्य से मनाया जाता है ।इस दिन की शुरुआत 1993 में हुई, जिसका थीम राइट टू पीस ऑफ पीपल था। 

2) विश्व शांति दिवस की स्थापना कब हुई?

उत्तर, -विश्व शांति दिवस की स्थापना दो 21 सितंबर 1983 में हुई ,जिसमें कई देश राजनीतिक समूह के लोग शामिल थे।

3)  विश्व शांति क्यों आवश्यक है?

 उत्तर- मानव जाति के विकास के लिए विश्व में शांति आवश्यक है। शांति के अभाव में मानव जाति का विकास संभव नहीं। प्रत्येक देश का स्वर्णिम युग उसे कहा जाता है जहाँ पूर्ण शांति और सुख हो।

4)विश्व शांति दिवस की प्रमुख विशेषता बताइए।

उत्तर- विश्व शांति दिवस की प्रमुख उद्देश्य दुनिया वालों के बीच शांति कायम करना है।दुनिया वालों के अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष के बीच शांति कायम करना है।अंतरराष्ट्रीय संघर्ष रोकने और शांति की संस्कृति विकसित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र का जन्म हुआ है ।

5)विश्व शांति ने भारत का कौन सा स्थान है?

उत्तर-न्यूयॉर्क के 168 देशों को शामिल किया गया है इसमें आइलैंड को सिर्फ स्थान प्राप्त हुआ है न्यूयॉर्क में भारत ने 135 वा स्थान मिला है। 

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Hindi Grammar by Sushil

विश्व शांति दिवस पर निबंध | Essay on International Peace Day in Hindi

Essay on International Peace Day in Hindi : विश्व शांति दिवस ‘ या ‘ अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस’हर वर्ष 21 सितंबर को मनाया जाता है विश्व शांति दिवस वर्ष 1981 से मनाया जा रहा है। जिसमें तमाम दुनिया भर के देश और उनके लोगों के बीच शांति कायम रखने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र के द्वारा इसे घोषित किया गया । उसे वक्त इसे ‘Right to Peace of People ‘ थीम से संबोधित किया गया था।

1982 से लेकर 2001 तक विश्व शांति दिवस को हर वर्ष सितंबर माह के तीसरे सप्ताह के मंगलवार के दिन मनाया जाता है। 2002 के बाद से हर साल विश्व शांति दिवस 21 सितंबर के दिन में मनाया जाता है। बहुत ही पहले के समय से हमारे देश में सफेद कबूतरों को शांति दूत माना जाता है, इसीलिए विश्व शांति दिवस 21 सितंबर के दिन कबूतर उड़ाने की भी परंपरा है।

विश्व शांति दिवस पर निबंध | Essay on International Peace Day in Hindi

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विश्व शांति दिवस पर निबंध (Essay on International Peace Day in Hindi)

‘ पंडित जवाहरलाल नेहरू’ ने पूरे विश्व मैं शांति और अमन की स्थापना करने के उद्देश्य से पांच मूल मंत्र दिए थे, इन पांच मूल मंत्रों को ‘ पंचशील के सिद्धांत ‘ भी कहा जाता है। यह सिद्धांत मानव कल्याण तथा विश्व में शांति बनाए रखने के उद्देश्य से विभिन्न राजनीतिक सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था वाले देशों में पारस्परिक सहयोग में लाये जाने वाले पांच आधारभूत सिद्धांत निम्नप्रकार के है-

1. परस्पर एक दूसरे की अखंडता और प्रभुसत्ता का सम्मान करना।

2. एक दूसरे के प्रति आक्रामक कार्यवाही न करना।

3. एक दूसरे के आंतरिक विषयों में ना पड़ना।

4. एक दूसरे से समानता और परस्पर लाभ की नीति का पालन करना।

5. पूर्ण तरीके से शांतिपूर्ण सह – अस्तित्व की नीति में विश्वास रखना।

पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा कहा गया है कि यदि विश्व में इन पांच सूत्रों पर अमल किया जाए तो विश्व में चैन सुख – शान्ति और अमन का ही वास होगा।

विश्व शांति दिवस का अर्थ

विश्व शांति दिवस या अंतरराष्ट्रीय दिवस का मुख्य उद्देश्य, शांति और संघर्ष समाधान के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा व्यक्तियों , समुदायों और राष्ट्रों के बीच संवाद, समझ और सहयोग को बढ़ावा देना है । विश्व शांति का अर्थ केवल हिंसा न होना नहीं है बल्कि एक ऐसे समाज का निर्माण करना है जहां लोगों मे जात-पात, ऊंच – नीच, धर्म की परवाह किए बिना सभी के साथ समान व्यवहार किया जाए।

विश्व शान्ति दिवस को अन्य देशों तथा सभी लोगो के बीच स्वतंत्रता , शान्ति और खुशी का आदर्श माना जाता है। विश्व शांति दिवस समारोह आयोजित किए जाने का एक मात्र उद्देश्य पूरे विश्व में शांति बनाए रखना है। क्यों कि जब मन शांत होता है तो जटिल से जटिल समस्याओं का भी समाधान आसानी से निकाला जा सकता है ।

विश्व शांति में भारत की भूमिका

भारत हमेशा से ही संयुक्त राष्ट्र शांति सेना के हर मिशन में शामिल होता आ रहा है भारत संयुक्त राष्ट्र की शांति के लिए बड़ी संख्या में सैनिकों और पुलिस का योगदान देने वाले विभिन्न देशों में से एक देश भारत नाम भी शामिल है।

भारत अब तक विश्व शांति दिवस अभियान के लिए 1,80,000 सैनिकों को भेज चुका है। विश्व शांति दिवस के वर्तमान में नई थीम्स को लेकर भारत पहले से ही इस आभियान से जुड़ा हुआ है भारत में क्लाइमेंट के बदलाव को बढ़ती परेशानियों से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र सरकार सस्टेनेबल डेवलपमेंट के अनुसारअपनी योजनाएं बना रही है।

सरकार द्वारा सिंगल उसे प्लास्टिक को जल्द से जल्द रोक लगाने की तैयारी में जुटी हुई है। हमारे भारत में’ स्वच्छ भारत ‘ जैसे प्रोग्राम का सफल रहना भी यहीं से दर्शाया जाता है। हमारे भारत सरकार के साथ-साथ नागरिकों मैं भी एक जागरूकता बनी हुई है की अभी भी देश में बहुत कुछ करना जरूरी है । हमारे भारत में प्रकृति प्रेम और विश्व शांति बहुत महत्वपूर्ण है, तब यूएन द्वारा “Climate Action for Peace” का नारा दिया गया तब भारत की जो जिम्मेदारियां हैं वह पहले से और अधिक बढ़ जाती हैं क्योंकि’ सबका हित और सबका सुख ‘ वाली हमारी भारतीय परंपरा हमें इसके प्रति काम करने के लिए प्रेरित करती है।

विश्व शांति का उद्देश्य

विश्व शांति का मुख्य उद्देश्य व्यक्तियों को आपस में मिलजुल कर रहना समाज और राष्ट्र को आपसी द्वेष, असंतोष , जातपात आदि से दूर रखकर शांति ,सहिष्णुता , धर्म आदि का पाठ पढ़ाना है। विश्व शांति हमारे जीवन के लिए बहुत ही जरूरी है क्योंकि शांत वातावरण के द्वारा ही मनुष्य अपने लक्ष्यों पर ध्यान देता है और उसे अपना लक्ष्य स्पष्ट नजर आने लगता है।और व्यक्ति की रचनात्मक शैली और व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान करती है। क्योंकि जब हमारा मन शांत होता है तो हमारे सोचने समझने की क्षमता बढ़ जाती है।

विश्व शांति का कारण

हमारे विश्व में, शांति बनाए रखने का एक मात्र आधार परोपकार है । परोपकार एक मानवीय भावना या गुण होता है जो किसी भी मनुष्य को संकट काल में सहयोग करने की भावना के उद्देश्य से उत्पन्न होता है।जिससे आपस में प्रेमभाव बना रहता है।

विश्व शांति में आने वाली चुनौतियां

विश्व शांति में अगर देखा जाए तो वैश्विक शांति को एक चुनौती के रूप में देखा जा सकता है। हमारे पड़ोसी राष्ट्रों के आपसी विवाद और उनके हस्तक्षेप है । उत्तर कोरिया- दक्षिण कोरिया, इजराइल फिलिस्तीन, भारत – पाकिस्तान ,अज़रबैजान, चीन का दक्षिण चीन सागर में अवैध दावा ,चीन ताइवान तथा मुख्य रूप से रूस – यूक्रेन के युद्ध से जो शांति की समस्या के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा,ऊर्जा संकट,तेल पेट्रोल जैसी चुनौतियों को बढ़ा दिया है।जिससे गरीबों और मध्यम वर्ग के लोगों की जीवन शैली में बहुत प्रभाव पढ़ा है।

शांति दिवस के रूप में हमें दुनिया भर में हिंसा और संघर्षों को रोकते हुए मिलजुलकर भाईचारे के साथ शांति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र द्वारा जो हर साल 21 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस या विश्व शांति दिवस मनाया जाता है ,उसमें अपना योगदान देकर अपने देश को बेहतर बनाने के लिए एक छोटी सी पहल करनी चाहिए। जब तक लोगो के मन ईर्ष्या और अहिंसा की की भावना रहेगी तब तक विश्व में शान्ति नही आएगी। इसलिए सबको मिलकर शांत मन से सुखमय और शांतिमय राष्ट्र की स्थापना के लिए हर सम्भव प्रयास किया जाना चाहिए।

प्रश्न 1- विश्व शांति का अर्थ क्या है?

उत्तर – विश्व शांति का अर्थ केवल इंसान ना होना नहीं है बल्कि ऐसे समाज का निर्माण करना है जहां सभी लोग एक साथ मिलजुल कर और एक दूसरे को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करें।

प्रश्न 2- शांति में महत्वपूर्ण योगदान किसका है?

उत्तर – विश्व शांति स्थापना में सबसे अहम योगदान ‘ संयुक्त राष्ट्र संघ’ का है।

प्रश्न 3- विश्व शांति दिवस कब मनाया जाता था इसकी शुरुआत कब हुई?

उत्तर – विश्व शांति दिवस 21 सितंबर को मनाया जाता है तथा इसकी शुरुआत 1981 में की गई थी तथा 1982 में पहली बार अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस या विश्व शांति दिवस मनाया गया।

प्रश्न 4- भारत में पहला विश्व शांति केंद्र कहां खोला गया?

उत्तर – भारत में पहला विश्व शांति केंद्र ‘ हरियाणा के गुरुग्राम ‘ में खोला गया।

प्रश्न 5- विश्व शांति दिवस में भारत की क्या भूमिका है ?

उत्तर – संयुक्त राष्ट्र संघ के शान्ति रक्षा मिशनों हेतु बड़ी संख्या में सैनिकों और पुलिस का योगदान देने वाले देशों में से भारत का नाम भी शामिल है।

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Neha

नमस्‍कार दोस्‍तों! Hindigrammar.in.net ब्‍लॉग पर आपका हार्दिक स्‍वागत हैं। मेरा नाम नेहा हैं और मुझे हिंदी में लेख लिखना और पढ़ना बहुत पसंद हैं और मैं इस वेबसाइट के माध्‍यम से हिंदी में निबंध लेखन से संबंधित जानकारी शेयर करती हूँ।

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War and peace essay in hindi युद्ध और शांति पर निबंध.

Many people are searching for War and Peace Essay in Hindi ( युद्ध और शांति पर निबंध ), so we are sharing War and Peace Essay in Hindi युद्ध और शांति पर निबंध for students of class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 and college students.

War and Peace Essay in Hindi

War and Peace Essay in Hindi 800 Words

मनुष्य को गुण, कर्म और स्वभाव से शान्त प्रकृति वाला प्राणी माना जाता है; यद्यपि हर आदमी के भीतरी कोने में अज्ञान रूप से एक हिंसक प्राणी भी छिपा रहा करता है। प्रायः मनुष्य भरसक चेष्टा कर के भी उसे जागने नहीं देता। जब किसी कारणवश वह जाग ही पड़ता है, तभी तरह-तरह की संघर्षात्मक क्रिया-प्रक्रियाओं और प्रतिक्रियाओं का भी जन्म हुआ करता है। उन्हीं के घर्षण-प्रत्याघर्षण से उत्पन्न हुआ करती है युद्धों की ज्वाला। यह घर्षण-प्रयाघर्षण जब व्यक्ति या व्यक्तियों के बीच हुआ करता है, तब तो इस सामान्य लड़ाई, गुटीय या साम्प्रदायिक झगड़े जैसे नाम दे दिये जाते हैं। लेकिन जब इस प्रकार की बातें दो देशों के बीच हो जाया करती हैं, तब उसे नाम दिया जाता है-युद्ध! इस प्रकार युद्ध और शान्ति आपस में विलोम कहे और माने जाते हैं। एक के रहते दूसरे का रह पाना कतई संभव नहीं हुआ करता।

सामान्य जीवन जीने के लिए, जीवन में स्वाभाविक गति से प्रगति एवं विकास करने के लिए शान्ति का बना रहना बहुत आवश्यक हुआ करता है। संस्कृति, साहित्य तथा अन्य सभी तरह की ललित एवं उपयोगी कलाएँ भी तभी विकास पा सकती हैं, जब चारों ओर का वातावरण शान्त एवं सामान्य रूप से सुखद हो। हर प्रकार के व्यापार की उन्नति भी शान्त वातावरण में ही संभव हुआ करती है। इन सभी की उन्नति और विकास कोई एक-दो दिन में ही नहीं हो जाया करता। हजारों वर्षों की निरन्तर साधना और प्रयत्न के बाद ही ज्ञान-विज्ञान, साहित्य-कला और संस्कृति आदि का कोई स्वरूप बन पाया करता है। लेकिन युद्ध का एक ही झटका युग-युगों की इस साधना को देखते-ही-देखते मटिया-मेट कर दिया करता है। कला-संस्कृति के सभी रूप खण्डहर बन कर रह जाया करते हैं। युद्ध के समय तो विनाश हुआ ही करता है, उसके समाप्त हो जाने के बाद भी वर्षों तक उसका प्रभाव बना रहता है। इसी कारण युद्ध का मनुष्य हमेशा विरोध करता रहता है। शान्ति हमेशा मानव-जाति का इच्छित विषय रहा और आज भी है।

आरम्भ से मनुष्य युद्धों का विरोध करता आ रहा है। युद्ध न होने देने की मानव-जाति ने सदा भरसक चेष्टाएँ भी की हैं, फिर भी तो युद्धों को सदा के लिए समाप्त कर शान्ति बनाए रख पाने में मानव कभी पूर्ण काम नहीं हुआ। महाभारत का युद्ध आरम्भ होने से पहले श्रीकृष्ण भगवान् स्वयं शान्ति-दूत बनकर कौरव-सभा में गए थे। उन्होंने पाँच पाण्डव भाइयों के लिए मात्र पाँच गाँव की मांग रखकर महायुद्ध को टालने का प्रयास किया था; लेकिन दुर्योधन जैसे दुवृत्तों ने उन का प्रयास सफल नहीं होने दिया। खैर, वह तो बीते युगों की बात है। आधुनिक काल में भी प्रथम विश्व युद्ध के बाद ‘लीग आफ नेशन्स’ जैसी संस्था का गठन युद्धों की विभीषिका हमेशा के लिए समाप्त कर शान्ति बनाए रखने और उसके क्षेत्र का अनवरत विकास करते रहने के लिए किया गया था। पर कहाँ रहने दी शान्ति युद्ध-पिपासुओं ने! दूसरा विश्व युद्ध हुआ और पहले से कहीं बढ़ कर विनाशकारी प्रमाणित हुआ। उसके बाद फिर ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ (United Nations Organisation) जैसी, संस्था का गठन युद्ध से छुटकारा पाकर शान्ति-कामना से ही किया गया; पर क्या युद्धों का अन्त और शान्ति की स्थापना संभव हो पाई है? वह तो क्या होती थी, आज उसी की आड में छोटे राष्ट्रों पर युद्ध तो थोपे ही जा रहे हैं, दादा-राष्ट्रों द्वारा तरह-तरह की धमकियाँ भी दी जा रही हैं। छोटे-छोटे तो कई युद्ध हो भी चुके हैं। तीन-चार बार तो भारत जैसे स्वभाव से शान्ति प्रेमी देश को युद्ध के लिए बाध्य होना पड़ चुका है। अभी भी सीमाओं पर हमेशा भयावह युद्ध के बादल मण्डराते रहते हैं।

एक सत्य यह भी है कि कई बार शान्ति बनाए रखने के लाख प्रयत्न करते रहने पर भी राष्ट्रों को अपनी अस्मिता, सार्वभौमिकता, स्वतंत्रता और स्वाभिमान की रक्षा के लिए युद्ध लड़ने पड़ते हैं। जैसे द्वापर युग में पाण्डवों को, त्रेता युग में श्रीराम को और आज के युग में कई बार भारत को लड़ने पड़े हैं। इस प्रकार शान्ति यदि मान का स्वभाव एवं काम्य विषय है, तो युद्ध परीस्थितिजन्य अनिवार्यता बन जाया करती है। यानि न चाहते हुए भी व्यक्तियों-राष्ट्रों को युद्ध करना ही पड़ता है। फिर भी इतना तो निश्चत है कि किसी भी हाल में युद्ध अच्छी बात नहीं। पराजित और विजेता दोनों को इसके दुष्परिणामों से अनिवार्यतः दो-चार होना पड़ता है। फिर भी मानव का प्रयत्न इसी दिशा में रहना चाहिए कि युद्ध न हों, शान्ति बनी रह सके।

यह एक तथ्य है कि सत्य, अहिंसा, प्रेम, भाईचारा, मानवता, विश्व बन्धुत्व जैसे शब्दों का आविष्कार भावना के स्तर पर शान्ति-प्रेमियों द्वारा शान्ति बनाए रखने के लिए ही किया गया है। असत्य, हिंसा, घृणा आदि का विरोध वास्तव में सभी तरह के लड़ाई-झगड़े और युद्ध भी समाप्त करने के लिए किया गया है। धर्म, उदारता, मानवीयता जैसी कल्पनाएँ भी शान्ति की स्थापना और विस्तार के लिए ही की गई हैं। फिर भी युद्ध समाप्त नहीं, किए जा सके। शान्ति स्थापित नहीं हो सकी। दो विलोम परस्पर नीचा दिखाने को कार्यरत हैं और सदा रहेगे – यह एक चरम सत्य हैं।

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युद्ध और शांति पर निबंध War and Peace OR Yudh Aur Shanti Essay in Hindi

हेलो दोस्तों आज फिर मै आपके लिए लाया हु Yudh Aur Shanti Essay in Hindi पर पुरा आर्टिकल। युद्ध केवल नाश तथा नष्ट कर सकता है, किसी की भलाई कभी भी नहीं कर सकता।इसलिए हम आपके लिए लाये है आइये पढ़ते है युद्ध और शांति पर निबंध

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  • युद्ध और शांति पर निबंध

प्रस्तावना :

प्रत्येक मनुष्य स्वभाव, कर्म एवं गुणों से शान्त प्रकृति वाला  होता है, परन्तु उसके शान्त हृदय के भीतर कहीं न कहीं एक अशान्त प्राणी भी छिपा रहता है, जो थोड़ा सा भी भड़काने पर हिंसक रूप धारण कर लेता है। वैसे तो हर मनुष्य हृदय से यही चाहता है कि वह हमेशा शान्त व्यवहार  करे लेकिन परिस्थितियां उसे हिंसक बना देती है। मनुष्य की यह प्रवृत्ति ही अनेक युद्धों को जन्म देती है।

युद्ध का अभिप्राय :

जब लड़ाई-झगड़े घर के सदस्यों के बीच होते हैं तो वे घरेलू झगड़े कहलाते हैं तथा अधिक हानिकारक नहीं होते क्योंकि घर का ही कोई समझदार व्यक्ति दोनों पक्षों में सुलह करवा देता है और मामला वही शान्त हो जाता है। जब युद्ध कुछ व्यक्तियों के मध्य होते हैं | तो वे जातीय या साम्प्रदायिक झगड़े कहलाते हैं, जो कभी-कभी तो आसानी से काबू में आ जाते हैं, लेकिन कभी-कभी विकराल रूप धारण कर लेते हैं। लेकिन जब यही युद्ध दो देशों अथवा अनेक देशों के बीच हो जाते हैं, तो वे ‘युद्ध’ अथवा ‘महायुद्ध’ कहलाते हैं।

युद्ध के परिणाम :

युद्ध के परिणाम निःसन्देह बहुत जानलेवा होते हैं, जिनसे हर तरफ हाहाकार मच जाता है। हजारों वर्षों के अथक प्रयासों व साधनों से ज्ञान-विज्ञान, साहित्य-कला आदि का किया गया विकास कार्य युद्ध के एक झटके से ही तहस-नहस हो जाता है। बसे-बसाए घर तो क्या, गाँव के गाँव नष्ट हो जाते हैं, उनका नामोनिशान भी नहीं दिखता। युद्ध के इन्हीं विकराल कारणों एवं दुष्परिणामों के कारण ही एक सभ्य मनुष्य युद्ध से दूर ही रहना चाहता है, लेकिन कुछ पशु-प्रवृत्ति के लोग युद्ध की आग को भड़काकर ही शान्त होते हैं।

प्राचीन काल से ही युद्ध अपना भयंकर रूप दिखाते आए हैं तथा महापुरुषों ने इन युद्धों को रोकने की भरसक कोशिश की है। तभी तो महाभारत के युद्ध से पहले भगवान श्रीकृष्ण स्वयं शान्तिदूत बनकर कौरवों की सभा में गए थे। लेकिन कभी कभी शान्ति चाहते हुए भी राष्ट्रों को अपनी स्वतन्त्रता तथा स्वाभिमान की रक्षा हेतु मजबूरीवश युद्ध लड़ने पड़ते हैं। इसका एक उदाहरण द्वापर युग में पाण्डवों द्वारा, त्रेता युग में श्रीराम द्वारा तथा आज के आधुनिक भारतवर्ष में अंग्रेजों तथा आतंकवादियों के खिलाफ लड़े गए युद्ध हैं।

शान्ति की स्थापना :

खुशहाल तथा शान्त जीवन जीने के लिए प्रगति तथा विकास के पथ पर आगे बढ़ने के लिए तथा देश की उन्नति के लिए शान्त वातावरण अति आवश्यक है। देश की संस्कृति, कला, विज्ञान, साहित्य तभी विकसित हो पाते है, जब चहुमुंखी शान्ति का वातावरण है। अशान्त मन से तो कोई भी कार्य सफलतापूर्वक सम्पन्न होना असम्भव ही है।

खेल, मनोरंजन, मस्ती, हंगामा भी तो सुखी तथा शान्तचित्त में ही पसन्द आते हैं। इसके अतिरिक्त देश में व्यापार की उन्नति व आर्थिक विकास भी शान्त वातावरण में ही सम्भव है अर्थात् सर्वांगीण विकास के लिए शान्ति एवं सौहार्द ही आवश्यक है।

शान्ति स्थापना :

इस बात से तो कोई भी इंकान नहीं कर सकता कि युद्ध किसी के भी हित में नहीं होता। युद्ध केवल नाश तथा नष्ट कर सकता है, किसी की भलाई कभी भी नहीं कर सकता। इसीलिए शान्ति स्थापना के लिए अनेक प्रयास किए गए। सर्वप्रथम, प्रथम विश्वयुद्ध समाप्त होने पर लीग नेशन्स’ नामक संस्था गठित की गई। लेकिन कुछ समय की शान्ति के बाद द्वितीय विश्वयुद्ध हुआ। इसकी समाप्ति पर संयुक्त राष्ट्र संघ’ नामक संस्था गठित की गई।

मनुष्य की प्रवृत्ति ही ऐसी है वह बहुत जल्दी भूल जाता है तभी तो आज संसार तीसरे विश्वयुद्ध की तैयारी में है। आजकल तो खुले आम मानव दूसरों के लिए टाइमबमों का निर्माण कर रहा है। आज अनेक देश जैसे पाकिस्तान अमेरिका, ईरान इत्यादि लड़ने के लिए तैयार है और अपने आतंकवादी भेज रहे हैं। परन्तु यह बात सदा स्मरण रहनी चाहिए कि युद्ध में हानि तो विजेता तथा पराजित पक्ष दोनों की ही होती है।

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मनुष्य को स्वभाव, कर्म व गुणों के आधार पर शान्त प्रकृति वाला प्राणी माना जाता है। यद्यपि प्रत्येक मनुष्य के हृदय के भीतरी भाग में कहीं-न-कहीं एक हिंसक प्राणी भी छिपा रहता है। परन्तु मनुष्य का भरसक प्रयत्न रहता है कि वह भीतर का हिंसक प्राणी किसी प्रकार भी जागे नहीं। यदि किसी कारणवश वह जाग पड़ता है तो तरह-तरह की संघर्षात्मक क्रिया-प्रक्रियाओं तथा प्रतिक्रियाओं का जन्म होने  लगता है, तब उनके घर्षण तथा प्रत्याघर्षण से युद्धों की ज्वाला धधक उठती है।

इस प्रकार के युद्ध यदि व्यक्ति या व्यक्तियों के मध्य होते हैं तो वे गुटीय या साम्प्रदायिक झगड़े कहलाते हैं। परन्तु जब इस प्रकार के युद्ध दो देशों के मध्य हो जाते हैं तो वे कहलाते हैं – युद्ध।

सामान्य जीवन जीने के लिए तथा जीवन में स्वाभाविक गति से प्रगति एवं विकास करने के लिए शान्ति का बना रहना अत्यन्त आवश्यक होता है। देश में संस्कृति, साहित्य तथा अन्य उपयोगी कलाएँ तभी विकास पा सकती हैं जब चारों ओर शान्त वातावरण हो। देश में व्यापार की उन्नति व आर्थिक विकास भी शान्त वातावरण में ही संभव हो पाता है। सहस्त्र वर्षों के अथक प्रयत्न व साधन से ज्ञान-विज्ञान, साहित्य-कला आदि का किया गया विकास युद्ध के एक ही झटके से मटिया-मेट हो जाता है।

युद्ध के इस विकराल रूप को देखकर तथा इसके परिणामों से परिचित होने के कारण मनुष्य सदैव से इसका विरोध करता रहा है। युद्ध न होने देने के लिए मानव ने सदैव से प्रयत्न किए हैं। महाभारत का युद्ध होने से पहले श्रीकृष्ण भगवान् स्वयं शान्ति दूत बनकर कौरव सभा में गए थे।

आधुनिक युग में भी प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद लीग आफ नेशन्स’ जैसी संस्था का गठन किया गया। परन्तु मानव की युद्ध-पिपासा भला शान्त हुई क्या? अर्थात् फिर दूसरा विश्व युद्ध हुआ। इसके बाद शान्ति की स्थापना के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ (UN.O.) जैसी संस्था का गठन हुआ। परन्तु फिर भी युद्ध कभी रोके नहीं जा सके।

एक सत्य यह भी है कि कई बार शान्ति चाहते हुए भी राष्ट्रों को अपनी सार्वभौमिकता, स्वतंत्रता और स्वाभिमान की रक्षा के लिए युद्ध लड़ने पड़ते हैं। जैसे द्वापर युग में पाण्डवों को, त्रेता युग में श्रीराम को तथा आज के युग में भारत को लड़ने पड़े हैं। परन्तु यह तो निश्चित ही है कि किसी भी स्थिति में युद्ध अच्छी बात नहीं।

इसके दुष्परिणाम पराजित व विजेता दोनों को भुगतने पड़ते हैं। अतः मानव का प्रयत्न सदैव बना रहना चाहिए कि युद्ध न हों तथा शान्ति बनी रहे।

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मानव और शक्ति-संचय-वर्तमान में मनुष्य ने देवताओं के समान शक्ति प्राप्त करने का प्रयत्न प्रारंभ किया है। उसने देवता कहलाने वाले चाँद पर भी विजय प्राप्त कर ली है, किंतु वह प्राप्त शक्ति का दुरुपयोग कर रहा है। आज मनुष्य अधिक-से-अधिक शक्तिशाली एवं सुदृढ़ बनने के लिए प्रयत्नशील है, जिससे वह समस्त विश्व पर शासन कर सके। शक्ति एवं धन के लिए मानव आज इतना अधिक व्याकुल है कि वह अपने कर्तव्यों तक को भूल गया है। सर्वत्र भय और घृणा का वातावरण व्याप्त है, जिससे युद्ध को बल मिलता है।

मानव और स्वार्थ-मानव स्वार्थ-प्रवृत्ति से युक्त है। वह कब चाहता है कि उसका पड़ोसी देश फूले-फले? यही ईर्ष्या की आग एक-दूसरे को नष्ट करने के लिए अपनी जीभ लपलपाती रहती है। एक राष्ट्र अपने सिद्धांत और विचारधारा को दूसरे राष्ट्र पर थोपना चाहता है। एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र से अपने सभी उचित-अनुचित कार्यों में समर्थन चाहता है। आज संसार में अस्त्र-शस्त्र के निर्माण तथा उन्हें एकत्रित करने की होड़ लगी हुई है, आखिर क्यों? केवल अपनी दानवी आसुरी पिपासा को युद्ध के रक्त से शांत करने के लिए। धन की प्राप्ति तथा क्षेत्र विस्तार की कामना भी युद्ध के मूल में है।

अनेक धनलिप्सुओं ने इस पावन धरती को पदाक्रांत कर रक्तरंजित किया है। आरंभ में अनेक मुस्लिम आक्रांता भारत के धन की लूटमार के लिए ही यहाँ आए। सिकंदर के हृदय में विश्व-विजय की लालसा अत्यंत बलवती थी। इससे प्रेरित होकर अनेक देशों को युद्धों की लपटों से झुलसाता हुआ वह भारत तक आ पहुँचा था।

प्राचीन और आधुनिक युद्ध में अंतर- प्राचीनकाल में भी शक्तिशाली व्यक्तियों ने अशक्तों पर आक्रमण एवं अत्याचार किए हैं। परंतु उन युद्धों एवं आधुनिक युद्धों में आकाश-पाताल का अंतर है। आज युद्ध-साधनों की व्यापकता इतनी अधिक बढ़ गई कि कब क्या हो जाए, इस विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता। आज युद्ध केवल पृथ्वी तक ही सीमित नहीं, अपितु आकाश भी रणक्षेत्र बना हुआ है। जल, थल और नभ तीनों प्रकार के युद्धकला के नवीन आविष्कारों ने युद्ध के प्रकार में आमूल-चूल परिवर्तन कर दिया है।

युद्ध मानव-जाति के मस्तक पर कलंक है, ईश्वरीय सृष्टि के प्रति पाप है। प्राचीनकाल में मुख्यतः युद्ध अपनी क्षमता, साहस तथा चरित्र के उत्थान के लिए किए जाते थे। आदर एवं यश का एकमात्र साधन युद्ध ही था। महान् ‘शूरवीर ईश्वर की तरह पूजे जाते थे। भारतवर्ष में यह विश्वास किया जाता था कि युद्ध-क्षेत्र में जो वीरगति को प्राप्त करते हैं, वे सीधे स्वर्ग को जाते हैं।

भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में अर्जुन को उपदेश दिया है-

हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्। तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय: 2/371

युद्ध की विनाश-लीला-लेकिन युद्ध का कल्पनातीत नरसंहार कितनी माताओं की गोद के इकलौते लाड़लों को, कितनी प्रेयसियों के जीवनाधार अमर स्वरों को, कितनी सधवाओं के सौभाग्य-बिंदुओं को, कितनी बहिनों की राखियां को अपने क्रूर हाथों से क्षणभर में ही छीन लेता है। चारों ओर करुण-क्रंदन और चीत्कार सुनाई पड़ता है। कितने बच्चे अनाथ होकर दर-दर की ठोकरें खाते फिरते हैं, कितनी विधवाएँ अपने जीवन को सारहीन समझकर आत्महत्या कर लेती हैं, कितने परिवारों का दीपक हमेशा के लिए बुझ जाता है। युवकों के अभाव में देश का उत्पादन बंद हो जाता है।

बचे हुए वृद्ध न खेती कर सकते हैं और न कल-कारखानों में काम। परिणाम यह होता है कि युद्ध के बाद न कोई किसी कला का दक्ष बच पाता है और न वीर। देश में सर्वत्र गरीबी अपना विकराल मुँह फाडकर उसे डसने को तैयार रहती है। विस्फोटों के कारण भूमि की उर्वरा शक्ति नष्ट हो जाती है, उत्पादन कम होता है,

कल-कारखाने बंद हो जाते हैं। बम-विस्फोट से भव्य भवन धराशायी हो जाते हैं। सर्वत्र अशांति का राज्य छा जाता है। उत्पादन के अभाव में मूल्य इतने बढ़ जाते हैं कि किसी भी वस्तु को खरीदना संभव नहीं रहता। देश में अकाल की स्थिति आ जाती है। देश की जनता का नैतिक चरित्र गिर जाता है- ‘वुभुक्षितः किं न करोति पापम्।’ अतः युद्ध तथा युद्धोत्तर दोनों ही परिस्थितियाँ जनता के लिए अभिशाप बनकर सामने आती हैं।

युद्ध की आवश्यकता- यह युद्ध का एक पहलू है। यदि हम युद्ध के। | दूसरे पक्ष की ओर दृष्टिपात करें तो हम देखते हैं कि युद्ध हमारे लिए वरदान भी सिद्ध हो सकता है। इसका प्रमाण हमें उस समय मिला, जब पड़ोसी देश चीन ने भारत पर आक्रमण किया। पं. नेहरू की एक पुकार पर ही सारा देश सोना लिए खड़ा था। इसी प्रकार पाकिस्तान के आक्रमण के समय समस्त देश अपने सुख-वैभव को छोड़कर देश की रक्षा के लिए कटिबद्ध हो गया। यहाँ तक कि बंगला देश की लड़ाई में कितनी माताओं ने अपने वात्सल्य की परवाह न करके अपने गोद को सूना कर लिया।

कितनी बहिनों ने अपने स्नेह की परवाह न करके अपने भाइयों को देश की रक्षा के लिए प्रेषित किया एवं कितनी ही महिलाओं ने अपने सिंदूर की परवाह न करके अपने सुहाग को देश की रक्षा के लिए स्वेच्छा से अर्पित कर दिया। तात्पर्य यह है कि युद्ध से जन-जागरण एवं भावात्मक एकता की स्थापना में सहयोग मिलता है। युद्ध से देश की जनसंख्या कम होती है, युद्ध के समय बेकारी दूर हो जाती है, मनुष्यों

में आत्मबल का उदय होता है। यदि धार्मिक दृष्टि से देखा जाए तो पापियों, अधर्मियों एवं भ्रष्टाचारियों के विनाश के लिए युद्ध एक वरदान बन जाता है। निःशस्त्रीकरण अनिवार्य-जो भी हो, युद्ध मानव-कल्याण के लिए नहीं वरन् विनाश के लिए है। यदि विश्व में मानवता की रक्षा करनी है तो इसके लिए अनिवार्य है- शांति। नि:शस्त्रीकरण आज के युग में विश्व-शांति के लिए अनिवार्य है। वस्तुत: मानव का जीवन शांति से प्रारंभ होता है। देश में शांति की स्थापना दार्शनिकों का स्वप्न है। विश्व-प्रगति शांति पर ही निर्भर है।

इतिहास में स्वर्ण-युग की कल्पना शांति, प्रगति एवं समृद्धि के युग की ही कल्पना है। विज्ञान एवं कलाओं की उन्नति तभी संभव है, जब मानव मस्तक शांत हो। अतः देश के चतुर्मुख विकास के लिए शांति आवश्यक है।

विश्वशांति की माँग-आज का युद्ध संपूर्ण मानव-सभ्यता और समाज का विनाश कर देगा। इसीलिए विश्व के समस्त राष्ट्र एक स्वर से विश्व-शांति की माँग कर रहे हैं। महात्मा गांधी ने भारत में अहिंसा का प्रयोग किया। वे अहिंसा के सच्चे पुजारी थे। देश में शांति स्थापित करने के लिए हमारे प्रधानमंत्री पं. नेहरू ने पंचशील को जन्म दिया। अहिंसा एवं शांति के अभाव में युद्ध आज विश्व का वरण करने के लिए तैयार है। घर में, पुर में, प्रदेश में ।

सर्वत्र शांति की आवश्यकता है। यदि कलह का बीज पनप गया, द्वेष की अग्नि भड़क उठी तो सभ्यता का गगनचुंबी प्रासाद क्षण-भर में धराशायी हो जाएगा। इस विनाशकारी परिस्थिति से विश्व की रक्षा का एकमात्र उपाय है- शांति।

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Romi Sharma

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Hindi Essay (Hindi Nibandh) 100 विषयों पर हिंदी निबंध लेखन

Hindi Essay (Hindi Nibandh) | 100 विषयों पर हिंदी निबंध लेखन – Essays in Hindi on 100 Topics

हिंदी निबंध: हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा है। हमारे हिंदी भाषा कौशल को सीखना और सुधारना भारत के अधिकांश स्थानों में सेवा करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। स्कूली दिनों से ही हम हिंदी भाषा सीखते थे। कुछ स्कूल और कॉलेज हिंदी के अतिरिक्त बोर्ड और निबंध बोर्ड में निबंध लेखन का आयोजन करते हैं, छात्रों को बोर्ड परीक्षा में हिंदी निबंध लिखने की आवश्यकता होती है।

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इसलिए, यह जानना और समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि विषय के बारे में संक्षिप्त और कुरकुरा लाइनों के साथ एक आदर्श हिंदी निबन्ध कैसे लिखें। साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं। तो, छात्र आसानी से स्कूल और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए हिंदी में निबन्ध कैसे लिखें, इसकी तैयारी कर सकते हैं। इसके अलावा, आप हिंदी निबंध लेखन की संरचना, हिंदी में एक प्रभावी निबंध लिखने के लिए टिप्स आदि के बारे में कुछ विस्तृत जानकारी भी प्राप्त कर सकते हैं। ठीक है, आइए हिंदी निबन्ध के विवरण में गोता लगाएँ।

हिंदी निबंध लेखन – स्कूल और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए हिंदी में निबन्ध कैसे लिखें?

प्रभावी निबंध लिखने के लिए उस विषय के बारे में बहुत अभ्यास और गहन ज्ञान की आवश्यकता होती है जिसे आपने निबंध लेखन प्रतियोगिता या बोर्ड परीक्षा के लिए चुना है। छात्रों को वर्तमान में हो रही स्थितियों और हिंदी में निबंध लिखने से पहले विषय के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं के बारे में जानना चाहिए। हिंदी में पावरफुल निबन्ध लिखने के लिए सभी को कुछ प्रमुख नियमों और युक्तियों का पालन करना होगा।

हिंदी निबन्ध लिखने के लिए आप सभी को जो प्राथमिक कदम उठाने चाहिए उनमें से एक सही विषय का चयन करना है। इस स्थिति में आपकी सहायता करने के लिए, हमने सभी प्रकार के हिंदी निबंध विषयों पर शोध किया है और नीचे सूचीबद्ध किया है। एक बार जब हम सही विषय चुन लेते हैं तो विषय के बारे में सभी सामान्य और तथ्यों को एकत्र करते हैं और अपने पाठकों को संलग्न करने के लिए उन्हें अपने निबंध में लिखते हैं।

तथ्य आपके पाठकों को अंत तक आपके निबंध से चिपके रहेंगे। इसलिए, हिंदी में एक निबंध लिखते समय मुख्य बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करें और किसी प्रतियोगिता या बोर्ड या प्रतिस्पर्धी जैसी परीक्षाओं में अच्छा स्कोर करें। ये हिंदी निबंध विषय पहली कक्षा से 10 वीं कक्षा तक के सभी कक्षा के छात्रों के लिए उपयोगी हैं। तो, उनका सही ढंग से उपयोग करें और हिंदी भाषा में एक परिपूर्ण निबंध बनाएं।

हिंदी भाषा में दीर्घ और लघु निबंध विषयों की सूची

हिंदी निबन्ध विषयों और उदाहरणों की निम्न सूची को विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया गया है जैसे कि प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, सामान्य चीजें, अवसर, खेल, खेल, स्कूली शिक्षा, और बहुत कुछ। बस अपने पसंदीदा हिंदी निबंध विषयों पर क्लिक करें और विषय पर निबंध के लघु और लंबे रूपों के साथ विषय के बारे में पूरी जानकारी आसानी से प्राप्त करें।

विषय के बारे में समग्र जानकारी एकत्रित करने के बाद, अपनी लाइनें लागू करने का समय और हिंदी में एक प्रभावी निबन्ध लिखने के लिए। यहाँ प्रचलित सभी विषयों की जाँच करें और किसी भी प्रकार की प्रतियोगिताओं या परीक्षाओं का प्रयास करने से पहले जितना संभव हो उतना अभ्यास करें।

हिंदी निबंधों की संरचना

Hindi Essay Parts

उपरोक्त छवि आपको हिंदी निबन्ध की संरचना के बारे में प्रदर्शित करती है और आपको निबन्ध को हिन्दी में प्रभावी ढंग से रचने के बारे में कुछ विचार देती है। यदि आप स्कूल या कॉलेजों में निबंध लेखन प्रतियोगिता में किसी भी विषय को लिखते समय निबंध के इन हिस्सों का पालन करते हैं तो आप निश्चित रूप से इसमें पुरस्कार जीतेंगे।

इस संरचना को बनाए रखने से निबंध विषयों का अभ्यास करने से छात्रों को विषय पर ध्यान केंद्रित करने और विषय के बारे में छोटी और कुरकुरी लाइनें लिखने में मदद मिलती है। इसलिए, यहां संकलित सूची में से अपने पसंदीदा या दिलचस्प निबंध विषय को हिंदी में चुनें और निबंध की इस मूल संरचना का अनुसरण करके एक निबंध लिखें।

हिंदी में एक सही निबंध लिखने के लिए याद रखने वाले मुख्य बिंदु

अपने पाठकों को अपने हिंदी निबंधों के साथ संलग्न करने के लिए, आपको हिंदी में एक प्रभावी निबंध लिखते समय कुछ सामान्य नियमों का पालन करना चाहिए। कुछ युक्तियाँ और नियम इस प्रकार हैं:

  • अपना हिंदी निबंध विषय / विषय दिए गए विकल्पों में से समझदारी से चुनें।
  • अब उन सभी बिंदुओं को याद करें, जो निबंध लिखने शुरू करने से पहले विषय के बारे में एक विचार रखते हैं।
  • पहला भाग: परिचय
  • दूसरा भाग: विषय का शारीरिक / विस्तार विवरण
  • तीसरा भाग: निष्कर्ष / अंतिम शब्द
  • एक निबंध लिखते समय सुनिश्चित करें कि आप एक सरल भाषा और शब्दों का उपयोग करते हैं जो विषय के अनुकूल हैं और एक बात याद रखें, वाक्यों को जटिल न बनाएं,
  • जानकारी के हर नए टुकड़े के लिए निबंध लेखन के दौरान एक नए पैराग्राफ के साथ इसे शुरू करें।
  • अपने पाठकों को आकर्षित करने या उत्साहित करने के लिए जहाँ कहीं भी संभव हो, कुछ मुहावरे या कविताएँ जोड़ें और अपने हिंदी निबंध के साथ संलग्न रहें।
  • विषय या विषय को बीच में या निबंध में जारी रखने से न चूकें।
  • यदि आप संक्षेप में हिंदी निबंध लिख रहे हैं तो इसे 200-250 शब्दों में समाप्त किया जाना चाहिए। यदि यह लंबा है, तो इसे 400-500 शब्दों में समाप्त करें।
  • महत्वपूर्ण हिंदी निबंध विषयों का अभ्यास करते समय इन सभी युक्तियों और बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए, आप निश्चित रूप से किसी भी प्रतियोगी परीक्षाओं में कुरकुरा और सही निबंध लिख सकते हैं या फिर सीबीएसई, आईसीएसई जैसी बोर्ड परीक्षाओं में।

हिंदी निबंध लेखन पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

1. मैं अपने हिंदी निबंध लेखन कौशल में सुधार कैसे कर सकता हूं? अपने हिंदी निबंध लेखन कौशल में सुधार करने के सर्वोत्तम तरीकों में से एक किताबों और समाचार पत्रों को पढ़ना और हिंदी में कुछ जानकारीपूर्ण श्रृंखलाओं को देखना है। ये चीजें आपकी हिंदी शब्दावली में वृद्धि करेंगी और आपको हिंदी में एक प्रेरक निबंध लिखने में मदद करेंगी।

2. CBSE, ICSE बोर्ड परीक्षा के लिए हिंदी निबंध लिखने में कितना समय देना चाहिए? हिंदी बोर्ड परीक्षा में एक प्रभावी निबंध लिखने पर 20-30 का खर्च पर्याप्त है। क्योंकि परीक्षा हॉल में हर मिनट बहुत महत्वपूर्ण है। इसलिए, सभी वर्गों के लिए समय बनाए रखना महत्वपूर्ण है। परीक्षा से पहले सभी हिंदी निबन्ध विषयों से पहले अभ्यास करें और परीक्षा में निबंध लेखन पर खर्च करने का समय निर्धारित करें।

3. हिंदी में निबंध के लिए 200-250 शब्द पर्याप्त हैं? 200-250 शब्दों वाले हिंदी निबंध किसी भी स्थिति के लिए बहुत अधिक हैं। इसके अलावा, पाठक केवल आसानी से पढ़ने और उनसे जुड़ने के लिए लघु निबंधों में अधिक रुचि दिखाते हैं।

4. मुझे छात्रों के लिए सर्वश्रेष्ठ औपचारिक और अनौपचारिक हिंदी निबंध विषय कहां मिल सकते हैं? आप हमारे पेज से कक्षा 1 से 10 तक के छात्रों के लिए हिंदी में विभिन्न सामान्य और विशिष्ट प्रकार के निबंध विषय प्राप्त कर सकते हैं। आप स्कूलों और कॉलेजों में प्रतियोगिताओं, परीक्षाओं और भाषणों के लिए हिंदी में इन छोटे और लंबे निबंधों का उपयोग कर सकते हैं।

5. हिंदी परीक्षाओं में प्रभावशाली निबंध लिखने के कुछ तरीके क्या हैं? हिंदी में प्रभावी और प्रभावशाली निबंध लिखने के लिए, किसी को इसमें शानदार तरीके से काम करना चाहिए। उसके लिए, आपको इन बिंदुओं का पालन करना चाहिए और सभी प्रकार की परीक्षाओं में एक परिपूर्ण हिंदी निबंध की रचना करनी चाहिए:

  • एक पंच-लाइन की शुरुआत।
  • बहुत सारे विशेषणों का उपयोग करें।
  • रचनात्मक सोचें।
  • कठिन शब्दों के प्रयोग से बचें।
  • आंकड़े, वास्तविक समय के उदाहरण, प्रलेखित जानकारी दें।
  • सिफारिशों के साथ निष्कर्ष निकालें।
  • निष्कर्ष के साथ पंचलाइन को जोड़ना।

निष्कर्ष हमने एक टीम के रूप में हिंदी निबन्ध विषय पर पूरी तरह से शोध किया और इस पृष्ठ पर कुछ मुख्य महत्वपूर्ण विषयों को सूचीबद्ध किया। हमने इन हिंदी निबंध लेखन विषयों को उन छात्रों के लिए एकत्र किया है जो निबंध प्रतियोगिता या प्रतियोगी या बोर्ड परीक्षाओं में भाग ले रहे हैं। तो, हम आशा करते हैं कि आपको यहाँ पर सूची से हिंदी में अपना आवश्यक निबंध विषय मिल गया होगा।

यदि आपको हिंदी भाषा पर निबंध के बारे में अधिक जानकारी की आवश्यकता है, तो संरचना, हिंदी में निबन्ध लेखन के लिए टिप्स, हमारी साइट LearnCram.com पर जाएँ। इसके अलावा, आप हमारी वेबसाइट से अंग्रेजी में एक प्रभावी निबंध लेखन विषय प्राप्त कर सकते हैं, इसलिए इसे अंग्रेजी और हिंदी निबंध विषयों पर अपडेट प्राप्त करने के लिए बुकमार्क करें।

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Days After U.N. Cease-Fire Resolution, Has Anything Changed in Gaza?

The United Nations Security Council passed a resolution on Monday that demands an immediate cease-fire in the Gaza Strip. Here’s a closer look at where the situation stands.

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People sit on the ground in the midst of rubble and destroyed buildings.

By Matthew Mpoke Bigg

  • March 29, 2024

Although the United Nations Security Council passed a resolution on Monday that demands an immediate cease-fire in the Gaza Strip, it remains to be seen whether ​i​t ​w​ill have a concrete effect on the war or prove merely to be a political statement.

The measure, Resolution 2728, followed three previous attempts that ​t​he United States ​had blocked. It passed by 14 votes, after the United States abstained from voting and did not employ its veto.

The resolution also calls for the unconditional release of all hostages and the end to barriers to humanitarian aid.

Israel’s government condemned the vote, and early indications are that the U.N.’s action has changed little on the ground or spurred diplomatic progress.

Days after the vote, here’s a look at what has changed and what might happen next:

Has the resolution affected fighting?

Senior Israeli officials said that they would ignore the call for a cease-fire, arguing that it was imperative to pursue the war until it has dismantled the military wing of Hamas, the militant group that led the Oct. 7 attack on Israel.

Since Monday, there has been no apparent shift in the military campaign . Israel’s air force continues to pound Gaza with strikes, and Hamas is still launching attacks.

Israel’s military is pressing on with a raid at Al-Shifa Hospital in northern Gaza, the territory’s biggest medical facility, as well as its offensive in Khan Younis, the largest city in the south, where fighting has been fierce.

If Israel doesn’t heed the resolution, what can the U.N. do?

The Security Council has few means to enforce its resolutions. The Council can take punitive measures, imposing sanctions against violators. In the past, such measures have included travel bans, economic restrictions and arms embargoes.

In this case, however, legal experts said that any additional measure would require a new resolution and that passing it would require consent from the council’s five veto-holding members, including the United States, Israel’s staunchest ally.

There may be legal challenges as well. While the United Nations says that Security Council resolutions are considered to be international law, legal experts debate whether all resolutions are binding on member states, or only those adopted under chapter VII of the U.N. charter , which deals with threats to peace. The resolution passed on Monday did not explicitly mention Chapter VII.

U.N. officials said it was still binding on Israel, but some countries disagreed. South Korea said on Monday that the resolution was not “ explicitly coercive under Chapter VII,” but that it reflected a consensus of the international community.

Crucially, the U.S. ambassador to the United Nations, Linda Thomas-Greenfield, maintained that the resolution was nonbinding . The United States, which holds significant power on the Security Council because of its permanent seat, likely views the passage of the resolution as more a valuable political instrument than a binding order, experts said.

The U.S. abstention sends a powerful signal of its policy priorities even if, in the short term, the Security Council is unlikely to take further steps, according to Ivo H. Daalder, a former American ambassador to NATO.

“Neither Israel or Hamas is going to be swayed by a U.N. resolution,” Mr. Daalder said.

What about aid?

Israel controls the flow of aid into Gaza, and after five months of war, Gazans are facing a severe hunger crisis bordering on famine, especially in the north, according to the United Nations and residents of the territory.

Aid groups have blamed Israel, which announced a siege of the territory after Oct. 7. They say officials have impeded aid deliveries through inspections and tight restrictions.

Israel argues that it works to prevent aid reaching Hamas and says that its officials can process more aid than aid groups can distribute within the territory. Growing lawlessness in Gaza has also made the distribution of aid difficult, with some convoys ending in deadly violence.

Little has changed this week. The number of aid trucks entering Gaza on Tuesday from the two border crossings open for aid roughly matched the average daily number crossing this month, according to U.N. data. That figure, about 150 trucks per day, is nearly 70 percent less than the number before Oct. 7.

How has the resolution affected diplomacy?

Israel and Hamas appear to still be far apart on negotiations aimed at brokering a halt in fighting and an exchange of hostages for Palestinian prisoners.

Mediators have been in Qatar to try to narrow the gaps. But late Monday, Hamas rejected Israel’s most recent counterproposal and its political leader, on a visit to Tehran this week, said the resolution showed that Israel was isolated diplomatically.

Prime Minister Benjamin Netanyahu of Israel has argued that the resolution set back negotiations, emboldening Hamas to hold out for better terms.

The biggest sticking point in the cease-fire talks had recently been the number of Palestinian prisoners to be released, in particular those serving extended sentences for violence against Israelis, U.S. and Israeli officials have said.

Matthew Mpoke Bigg is a correspondent covering international news. He previously worked as a reporter, editor and bureau chief for Reuters and did postings in Nairobi, Abidjan, Atlanta, Jakarta and Accra. More about Matthew Mpoke Bigg

Our Coverage of the Israel-Hamas War

News and Analysis

A deadly Israeli strike  on an aid convoy run by World Central Kitchen  in Gaza is already setting back attempts  to address a hunger crisis in the territory, with aid agencies saying they are being more cautious and at least two suspending operations.

​​The Biden administration is pressing Congress to approve a plan to  sell $18 billion worth of F-15 fighter jets to Israel , as President Biden resists calls to limit U.S. arms sales to Israel over its military offensive in Gaza.

The Israeli police clashed with antigovernment protesters  outside Prime Minister Benjamin Netanyahu’s home in Jerusalem, on the third day of demonstrations  calling for early elections.

Internal Roil at TikTok: TikTok has been dogged for months by accusations that its app has shown a disproportionate amount of pro-Palestinian and antisemitic content to users. Some of the same tensions  have also played out inside the company.

Palestinian Detainees: Israel has imprisoned more than 9,000 Palestinians suspected of militant activity . Rights groups say that some have been abused or held without charges.

A Hostage’s Account: Amit Soussana, an Israeli lawyer, is the first former hostage to speak publicly about being sexually assaulted  during captivity in Gaza.

A Power Vacuum: Since the start of the war, Prime Minister Benjamin Netanyahu of Israel has done little to address the power vacuum that would appear after Israeli forces leave Gaza. The risks of inaction are already apparent in Gaza City .

Finished Papers

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