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कार्यालयी हिंदी/कार्यालयी हिंदी

कार्यालयी हिंदी

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और 'भाषा' समाज के सदस्यों के बीच संपर्क एवं संवाद का माध्यम बनती है। बिना संपर्क और संवाद के कोई भी समाज जीवंत नहीं माना जा सकता अर्थात् बिना भाषा के किसी भी समाज का अस्तित्व संभव ही नहीं है। जिस प्रकार मनुष्य को खाने के लिए अन्न, पीने के लिए पानी, पहनने के लिए कपड़े की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार आपस में सम्पर्क और संबंध बनाए रखने के लिए भाषा की आवश्यकता होती है। भाषा से ही मनुष्य अपना जीवन सुगम बनाता है।

वर्षों की यात्रा के पश्चात् भाषा में निरन्तर परिवर्तन होते रहे हैं और भाषा का महत्त्व भी लगातार बढ़ता गया है। समाज के बीच संवाद-सम्प्रेषण और संबंध स्थापन भाषा का प्राथमिक कार्य है, किन्तु भाषा समाज की एक सीधी और सरल रेखा में चलने वाली इकाई नहीं है । समाज तथा इसके सदस्यों के अस्तित्व और चरित्र के अनेक आयाम होते हैं और इन सभी आयामों के संदर्भ में भाषा की विशिष्ट भूमिका होती है।

भारत में विभिन्न भाषाओं में संवाद होता है। इन सभी भाषाओं की अपनी एक यात्रा रही है लेकिन भारतीय समाज की सम्पर्क भाषा 'हिन्दी' ने जहाँ वैदिक संस्कृत से यात्रा करते हुए आधुनिक हिन्दी का स्वरूप ग्रहण किया है वह एक सामाजिक क्रिया का आधार है। समाज निरन्तर अपने विकास के साथ-साथ भाषाओं का भी विकास करता है। समाज में होने वाले परिवर्तन की तरह ही उसकी अपनी भाषा में भी कभी स्थैर्य नहीं रहा। इसीलिए निरन्तर परिवर्तनों की धार पर चलकर हिन्दी अपने अनेक रूपों के साथ वर्तमान में समाज के सम्मुख उपस्थित है। हिन्दी की प्रयोजनीयता के आधार पर उसके विभिन्न रूप इस प्रकार हैं-

1. साहित्यिक हिन्दी

2. कार्यालयी हिन्दी

3. व्यावसायिक हिन्दी

4. विधिपरक हिन्दी

5. जनसंचार के माध्यमों की हिन्दी

6. वैज्ञानिक और तकनीकी हिन्दी

7. सामाजिक हिन्दी

वैसे तो कार्यालयी हिन्दी अपने आप में एक व्यापक अर्थ की अभिव्यक्ति रखता है। चूँकि साहित्यिक क्षेत्र हो अथवा व्यावसायिक, पत्रकारिता का क्षेत्र हो ज विज्ञान और तकनीकी का क्षेत्... सभी क्षेत्रों से सम्बद्ध कार्यालयों में काम करने वाले व्यक्ति एक तरह से कार्यालयी हिन्दी का ही प्रयोग करते हैं। इसलिए कार्यालयी हिन्दी अपने-आप में व्यापक अर्थ की अभिव्यंजना रखती है।

कार्यालयी हिन्दी का अभिप्राय

भाषा मनुष्य की अभिव्यक्ति का एक माध्यम है। अलग-अलग क्षेत्रों में भाषा का रूप भी बदलता है। दैनिक जीवन में मनुष्य अपने सम्प्रेषण के लिए जिस भाषा का प्रयोग करता है वह मौखिक व बोलचाल की भाषा होती है। वैसे तो भाषा के प्रत्येक रूप में मानकता का निर्वाह होना आवश्यक है लेकिन बोलचाल की भाषा में यदि मानकता का प्रयोग नहीं भी किया जाता तब भी वह सामाजिक जीवन में लगातार प्रयोग में अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त आधार रहती है। इसी तरह सांस्कृतिक संदर्भं में भाषा का रूप लोकगीतों में जिस प्रकार होता है वह मौखिक परम्परा के कारण मानकता का निर्वाह भले ही न करती हो लेकिन हमारी सांस्कृतिक अस्मिता को संजोए रखने में उसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। इसी तरह साहित्यिक हिन्दी का स्वरूप जहाँ अपनी परिनिष्ठता के कारण अपनी अलग पहचान रखता है वहीं आंचलिक साहित्य में क्षेत्रीतया के प्रभाव के कारण साहित्यिक हिन्दी एक नए रूप में भी हमारे सामने आती है। इसलिए साहित्यिक हिन्दी का रूप भी पूर्णतः निर्धारित नहीं किया जा सकता।

वर्तमान दौर में तकनीकी के आगमन के बाद जनसंचार के विभिन्न माध्यमों में हिन्दी का वर्चस्व तेजी से बढ़ने लगा है। जनसंचार के इन माध्यमों की हिन्दी सामान्य बोलचाल के निकट होती है। लेकिन मानकता की दृष्टि से वह भी नि्धारित मापदण्ड पर सही नहीं ठहरती। इसका कारण है कि जनसंचार का मुख्य उद्दश्य समाज के विशाल वर्ग तक सामाजिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों की सूचना को सम्प्रेषण करना है और भारत जैसे विशाल राष्ट्र में सरल और सुबोध भाषा के द्वारा ही विशाल जनसमुदाय तक अभिव्यक्ति सम्भव हो सकती है। इसीलिए जनसंचार के माध्यमों में हिन्दी के अतिरिक्त अन्य भाषाओं के शब्दों का व्यावहारिक प्रयोग उसे मानकता से परे करता है।

इन रूपों के अतिरिक्त व्यापार, वाणिज्य, विधि, खेल आदि अनेक क्षेत्रों में हिन्दी के रूप पारिभाषिक के साथ-साथ स्वतंत्र भी थे। इन क्षेत्रों की अपनी विशिष्ट भाषा के कारण इसका प्रयोग सीमित रूप में ही किया जा सकता था। इन क्षेत्रों से सम्बन्धित लोगों में ही इस भाषा के अर्थ को समझने की क्षमता होती है। लेकिन इन क्षेत्रों में हिन्दी का मानकीकृत रूप ही स्वीकार्य होता है

हिन्दी के इन विभिन्न रूपों और अनेक अन्य रूपों में भाषा का जो स्वरूप होता है वह कार्यालयी हिन्दी में प्रयुक्त नहीं होता। कार्यालयी हिन्दी इससे भिन्न पूर्णतः मानक एवं पारिभाषिक शब्दों को ग्रहण करके चलती है। कार्यालयी हिन्दी सामान्य रूप से वह हिन्दी है जिसका प्रयोग कार्यालयों के दैनिक कामकाज में व्यवहार में लिया जाता है। विभिन्न विद्वानों ने यह माना है कि चाहे वह किसी भी क्षेत्र का कार्यालय हो, उसमें प्रयोग में ली जाने वाली हिन्दी कार्यालयी हिन्दी ही कहलाती है। डॉ. डी.के. जैन का मत है कि-"वह हिन्दी जिसका दैनिक व्यवहार, पत्राचार, वाणिज्य, व्यापार, प्रशासन, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, चिकित्सा, योग, संगीत, ज्योतिष, रसायनशास्त्र आदि क्षेत्रों में प्रयोग होता है, उसे कार्यालयी या कामकाजी हिन्दी कहा जाता है।" (प्रयोजनमूलक हिन्दी, पृष्ठ 9) इसी तरह डॉ. उषा तिवारी का मानना है कि "सरकारी कामकाज में प्रयुक्त होनें वाली भाषा को प्रशासनिक हिन्द्री या कार्यालयीन हिन्दी कहा जाता है। हिन्दी का वह स्वरूप जिसमें प्रशासन के काम में आने वाले शब्द, वाक्य अधिक प्रयोग में आते हों।

इनु दोनों परिभाषाओं में देखा जाए तो एक. परिभाषा कार्यालय के कार्यक्षेत्र को अत्यन्त विस्तृत दिखाता है वहीं दूसरी परिभाषा में बह केवल सरकारी कार्यालयों में प्रयोग में ली जाने वाली भाषा ही है। समाज के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यालयों की उपस्थित के कारण कार्यालय को किसी भी परिभाषा के वृत्त में समेटना बहुत कठिन कार्य है किन्तु प्रचलन की दृष्टि से कार्यालयी हिन्दी को सरकारी कार्यालयों में प्रयोग में ली जाने वाली भाषा के रूप में ही जाना है । इन सरकारी कार्यालयों में केन्द्र अथवा राज्य सरकारों के अपने अथवा उनके अधीनस्थ आने वाले विभिन्न मंत्रालय तथा उनके अधीन आने वाले संस्थान, विभाग अथवा उपविभाग एवं सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों आदि को शामिल किया जाता है। सरकार का कोई भी कार्यालय, चाहे वह उसकी अधीनस्थ हो अथवा सम्बद्ध हो, वह सरकारी कार्यालय ही कहा जाएगा। इसलिए इन कार्यालयों के कामकाज में प्रयोग की जाने वाली हिन्दी को कार्यालयी हिन्दी का जाता है।

• सावैधनिक रूप से कार्यालयी हिन्दी के लिए 'राजभाषा हिन्दी' का प्रयोग किया जाता है। इसलिए कार्यालयी हिन्दी के उद्देश्य को समझने के लिए राजभाषा हिन्दी तथा उसके संवैधानिक प्रावधानों को जानना आवश्यक है। सामान्य नागरिक 'राजभाषा हिन्दी' को भ्रमवश राज्यों की हिन्दी मानते आए हैं। लेकिन राजभाषा का प्रयोग अंग्रेजी में 'Official Language' के रूप में किया जाता है। इसका तात्पर्य 'राज' की भाषा से है। 'राज की भाषा' से यहाँ अभिप्राय राज-काज की भाषा, प्रशासन की भाषा, सरकारी काम-काज की भाषा या कार्यालय की भाषा से है।

यह विदित ही है हिन्दी भाषा पिछले एक हजार वर्षों में भारत की प्रधान भाषा रही है। ब्रिटिश काल में अंग्रेजों ने सबसे पहले राजकाज के लिए हिन्दी भाषा का ' ही प्रयोग किया था क्योंकि उस समय तक भारत की जनता अंग्रेजी नहीं जानती थी। लेकिन धीरे-धीरे अंग्रेजी भाषा को वर्चस्व की भाषा बनाने तथा अपनी सभ्यता और संस्कृति के प्रति आकर्षित करने के लिए सन् 1835 ई. में लॉर्ड मैकाले ने अंग्रेजी को शासन की भाषा के रूप में स्थापित किया। मैकाले की उस नीति का ही परिणाम रहा कि भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् राजभाषा के लिए हुई बैठक में हिन्दी के साथ-साथ अंग्रेजी का नाम भी चर्चा में रखा गया। लेकिन गांधी जी किसी भी तरह से अंग्रेजी के पक्ष में नहीं थे। उन्होंने खुले तौर पर हिन्दी को राजभाषा बनाने का समर्थन किया। किन्तु अंग्रेज सरकार के पिट्ठू रहने वाले अनेक राजनीतिज्ञों ने भारत की राजभाषा के रूप में हिन्दी के साथ ही अंग्रेजी को भी रखा।

सन् 1947 में संविधान सभा के गठन के बाद से ही राजभाषा पर चर्चा की जाने लगी। उस समय हिन्दुस्तानी या अंग्रेजी में से किसी एक को राजकाज की भाषा बनाने पर बहस हुई। बाद में 'हिन्दुस्तानी' के स्थान पर 'हिन्दी' शब्द को रख दिया गया। किन्तु लम्बे समय तक चली बहसों के बाद आखिरकार 14 सितम्बर, 1949 को हिन्दी को 'राजभाषा' के रूप में स्वीकार कर लिया गया। उसी दौरान उस प्रावधान में यह भी सम्मिलित कर दिया गया कि अंग्रेजी पन्द्रह वर्षों तक हिन्दी की सह-राजभाषा के रूप में काम करती रहेगी। लेकिन विभिन्न संशोधनों और आपसी असहमतियों के कारण संवैधानिक रूप से हिन्दी 'राजभाषा' होते हुए भी अंग्रेजी ही शासन व्यवस्था की भाषा बनी हुई है।

14 सितम्बर, 1949 को भारतीय संविधान में अनुच्छेद 343 से 351 तक राजभाषा सम्बन्धी प्रावधानों का उल्लेख किया गया है। इन अनुच्छेदों को अध्यायों में विभाजित किया गया। उन संवैधानिक प्रावधानों को यथानुरूप यहाँ दिया जा रहा है

1.संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी, संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग किए जाने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतरराष्ट्रीय रूप होगा।

2.खण्ड ( 1 ) में किसी बात के होते हुए भी, इस संविधान के प्रारम्भ से पन्द्रह वर्ष की अवधि तक संघ के उन सभी शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का • प्रयोग किया जाता रहेगा जिनके लिए उसका ऐसे प्रारम्भ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था। परन्तु राष्ट्रपति उक्त अवधि के दौरान, आदेश द्वारा संघ के शासकीय प्रयोजनों में से किसी के लिए अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिन्दी भाषा का और भारतीय अंकों के अंतरराष्ट्रीय रूप के अतिरिक्त देवनागरी रूप का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा।

3.इस अनुच्छेद में किसी बात के होते हुए भी, संसद उक्त पन्द्रह वर्ष की अवधि के पश्चात् विधि द्वारा,

(क) भाषा का या

(ख) अंकों के देवनागरी रूप का

ऐसे प्रयोजनों के लिए प्रयोग उपवन्धित कर सकेगी जो ऐसी विधि में विनिर्दिष्ट किए जाये।

"अनुच्छेद 344- राजभाषा के सम्बन्ध में आयोग और संसद की समिति" 1.राष्ट्रपति, इस संविधान के प्रारम्भ से पाँच वर्ष की समाप्ति पर और तत्पश्चात् ऐसे प्रारम्भ से दस वर्ष की समाप्ति पर, आदेश द्वारा एक आयोग गठित करेगा जो एक अध्यक्ष और आठवीं अनुसूची में उल्लिखित विभिन्न भाषाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले ऐसे अन्य सदस्यों से मिलकर बनेगा जिनको राष्ट्रपति नियुक्त करे और आदेश में आयोग द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया परिनिश्चित की जाएगी।

2.आयोग का यह कर्तव्य होगा कि वह राष्ट्रपति को:-

(क) संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए हिन्दी भाषा के अधिकाधिक प्रयोग;

(ख) संघ के सभी या किन्हीं शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा के प्रयोग पर निर्बन्धनों;

(ग) अनुच्छेद 348 में उल्लिखित सभी या किन्हीं प्रयोजनों के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा;

(घ) संघ के किसी एक या अधिक उल्लिखित प्रयोजनों के लिए प्रयोग किया जाने वाले अंकों के रूप;

(ड) संघ की राजभाषा तथा संघ और किसी राज्य के बीच या एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच पत्रदि की भाषा और उनके प्रयोग के सम्बन्ध में राष्ट्रपति द्वारा आयोग को निर्देशित किए गए किसी अन्य विषय के बारे में सिफारिश करें।

3.खण्ड (2) के अधीन अपनी सिफारिशें करने में आयोग भ औद्योगिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक उन्नति का और लोक सेवाओं के सम्बन्ध में भारत की अहिन्दी भाषी क्षेत्रों के व्यक्तियों के न्यायसंगत दावों और हितों का सम्यक ध्यान रखेगा।

4. एक समिति गठित की जाएगी जो तीस सदस्यों से मिलकर बनेगी जिनमें से बीस लोकसभा के सदस्य होंगे और दस राज्यसभा के सदस्य होंगे जो क्रमशः • लोकसभा के सदस्यों और राज्यसभा के सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति एकल संक्रमणीय मत द्वारा निर्वाचित होंगे।

5. समिति का कर्तव्य होगा कि वह खण्ड (1) के अधीन गठित आयोग की सिफारिशें की परीक्षा करे और राष्ट्रपति को उन पर अपनी राय के बारे में प्रतिवेदन दे।

6. अनुच्छेद 343 में किसी बात के होते हुए भी राष्ट्रपति खण्ड (5) में निर्दिष्ट प्रतिवेदन पर विचार करने के पश्चात् उस सम्पूर्ण प्रतिवेदन के या उसके किसी भाग के अनुसार निर्देश दे सकेगा। के

अध्याय-2 प्रादेशिक भाषाएँ "अनुच्छेद 345 राज्य की राजभाषा या राजभाषाएँ"

अनुच्छेद 346) और अनुच्छेद (347) के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, हुए, किसी राज्य का विधान-मण्डल, विधि द्वारा, उस राज्य में प्रयोग होने वाली भाषाओं में से किसी एक या अधिक भाषाओं को या हिन्दी को उस राज्य के सभी या किन्हीं शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा या भाषाओं के रूप में अंगीकार किया जा सकेगा। परन्तु जब तक राज्य का विधान-मण्डल, विधि द्वारा अन्यथा उपबन्ध न करे तब तक राज्य के भीतर उन शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा जिनके लिए उसका इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था।

संघ में शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग किए जाने के लिए तत्समय प्राधिकृत भाषा एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच तथा किसी राज्य और संघ के बीच पत्रादि की राजभाषा होगी। परन्तु यदि दो या अधिक राज्य यह करार करते हैं कि उन राज्यों के बीच पत्रादि की राजभाषा हिन्दी भाषा होगी तो ऐसे पत्रादि के लिए उस भाषा का प्रयोग किया जा सकेगा।

"अनुच्छेद 347 किसी राज्य की जनसंख्या के किसी अनुभाग द्वारा बोली - जाने वाली भाषा के सम्बन्ध में विशेष उपबन्ध" यदि इस निमित्त मांग किए जाने पर राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता है कि किसी राज्य की जनसंख्या का पर्याप्त भाग यह चाहता है कि उसके द्वारा बोली जाने वाली भाषा को राज्य द्वारा मान्यता दी जाए तो वह निर्देश दे सकेगा कि ऐसी भाषा को भी उस राज्य में सर्वत्र या उसके किसी भाग में ऐसे प्रयोजन के लिए, जो वह विनिर्दिष्ट करें, शासकी मान्यता दी जाए।

अध्याय 3 उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों आदि की भाषा "अनुच्छेद 348 उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में और अधिनियमों,विधेयकों आदि के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा"

1.इस भाग के पूर्वगामी उपबन्धों में किसी बात के होते हुए भी, जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा, उपबन्ध न करें तब तक:-

(क) उच्चतम न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालय में सभी कार्यवाहियाँ अंग्रेजी भाषा में होंगी।

(ख)(i) संसद के प्रत्येक सदन या किसी राज्य के विधान-मण्डल के सदन या प्रत्येक सदन में पुनः स्थापित किए जाने वाले सभी विधेयकों या प्रस्तावित किए जाने वाले उनके संशोधनों के, (ii) संसद या किसी राज्य के विधान-मण्डल द्वारा पारित सभी अधिनियमों के और राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल द्वारा प्रख्यापित सभी अध्यादेशों के, और (iii) इस संविधान के अधीन अथवा संसद या किसी राज्य के विधान-मण्डल द्वारा बनाई गई किसी विधि के अधीन निकाले गए या बनाए गए सभी आदेशों, नियमों, विनियमों और उपविधियों के प्राधिकृत पाठ अंग्रेजी भाषा में होंगे।

2.खण्ड (1) के उपखण्ड (क) के किसी बात की होते हुए भी, किसी राज्य का राज्यपाल राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से उस उच्च न्यायालय की कार्यवाहियों में, जिसका मुख्य स्थान उस राज्य में है, हिन्दी भाषा का या उस राज्य के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाली किसी अन्य भाषा का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा। परन्तु इस खण्ड की कोई बात ऐसे उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए किसी निर्णय, डिक्री या आदेश पर लागू नहीं होगी।

3.खण्ड (1) के उपखण्ड (ख) में किसी बात के होते हुए भी, जहाँ किसी राज्य के विधान-मण्डल ने, उस विधान-मण्डल में पुनः स्थापित विधेयकों या उसके द्वारा पारित अधिनियमों में अथवा उस राज्य के राज्यपाल द्वारा प्रख्यापित अध्यादेशों में अथवा उस उपखण्ड के पैरा (पअ) में निर्दिष्ट किसी आदेश, नियम, विनियम या उपविधि में प्रयोग के लिए अंग्रेजी भाषा से भिन्न कोई भाषा विहित की है वहीं उस • राज्य के राजपत्र में उस राज्य के राज्यपाल के प्राधिकार से प्रकाशित अग्रेजी भाषा में उसका अनुवाद उस अनुच्छेद के अधीन उसका अंग्रेजी भाषा में प्राधिकृत पाठ समझा जाएगा।

"अनुच्छेद 349 भाषा से सम्बन्धित कुछ विधियाँ, अधिनियमित करने के लिए विशेष प्रक्रिया"

इस संविधान के प्रारम्भ से पन्द्रह वर्ष की अवधि के दौरान, अनुच्छेद 348 के खण्ड (1) में उल्लिखित किसी प्रयोजन के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा के लिए उपबन्ध करने वाला कोई विधेयक या संशोधन संसद के किसी सदन में राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी के बिना पुनः स्थापित या प्रस्तावित नहीं किया जाएगा और राष्ट्रपति किसी ऐसे विधेयक को पुनः स्थापित या किसी ऐसे संशोधन को प्रस्तावित किए जाने की मंजूरी अनुच्छेद 344 के खण्ड (1) के अधीन गठित आयोग की सिफारिशों पर और उस अनुच्छेद के खण्ड (1) के अधीन गठित समिति के प्रतिवेदन पर विचार करने के पश्चात ही देगा, अन्यथा नहीं।

अध्याय-4 विशेष निर्देश - "अनुच्छेद 350 व्यथा के निवारण के लिए अध्यावेदन में प्रयोग की जाने वाली भाषा"

प्रत्येक व्यक्ति किसी व्यथा के निवारण के लिए संघ या राज्य के किसी अधिकारी या प्राधिकारी को, यथास्थिति, संघ में या राज्य में प्रयोग होने वाली किसी भाषा में अभ्यावेदन देने का हकदार होगा।

"अनुच्छेद 350 (क) प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधाएं"

प्रत्येक राज्य और राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के बालकों को शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की पर्याप्त सुविधाओं की व्यवस्था करने का प्रयास करेगा और राष्ट्रपति किसी राज्य को ऐसे निर्देश दे सकेगा जो वह ऐसी सुविधाओं का उपबन्ध सुनिश्चित कराने के लिए आवश्यक या उचित समझता है।

"अनुच्छेद 350 (ख) भाषायी अल्पसंख्यक वर्गों के लिए विशेष अधिकारी"

1.भाषायी अल्पसंख्यक वर्गों के लिए एक विशेष अधिकारी होगा जिसे राष्ट्रपति नियुक्त करेगा। 2.विशेष अधिकारी का यह कर्तव्य होगा कि वह इस संविधान के अधीन भाषायी अल्पसंख्यक-वर्गों के लिए उपबन्धित रक्षोपायों से सम्बन्धित सभी विषयों का अन्वेषण करे और उन विषयों के सम्बन्ध में ऐसे अन्तरालों पर जो राष्ट्रपति निर्दिष्ट करें, राष्ट्रपति को प्रतिवेदन दे और राष्ट्रपति ऐसे सभी प्रतिवेदनों को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगा और सम्बन्धित राज्यों की सरकारों को भिजवाएगा।

"अनुच्छेद 351 हिन्दी भाषा के विकास के लिए निर्देश"

संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिन्दी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामाजिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना हिन्दुस्तानी में और आठवीं अनुसूची में विर्निदिष्ट भारत की अन्य भाषाओं में रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहाँ आवश्यक या वांछनीय हो वहाँ उसके शब्द भण्डार के लिए मुख्यतः संस्कृत से और गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करे। " उपर्युक्त प्रावधानों के अतिरिक्त अनुच्छेद 120 में 'संसद में प्रयुक्त होने वाली भाषा' के सम्बन्ध में निर्देश दिया गया कि संसद में कार्य हिन्दी या अंग्रेजी में किया • जाएगा। किन्तु राज्यसभा का सभापति या लोकसभा का अध्यक्ष अथवा ऐसे रूप में कार्य करने वाला व्यक्ति किसी सदस्य को जो हिन्दी या अंग्रेजी में अपनी पर्याप्त अभिव्यक्ति नहीं कर सकता, अपनी मातृभाषा में सदन को सम्बोधित करने की अनुज्ञा दे सकेगा। इसी तरह अनुच्छेद 210 के द्वारा विधान मण्डल में प्रयुक्त होने वाली भाषा के सम्बन्ध में निर्देश देते हुए लिखा गया है कि राज्य के विधान मण्डल अपना कार्य राज्य की भाषा या भाषाओं में या हिन्दी अथवा अंग्रेजी में कर सकेंगे। समय-समय पर अनेक अनुच्छेदों तथा उपबन्धों द्वारा कार्यालयी हिन्दी के समुचित प्रयोग के सम्बन्ध में भी सरकार द्वारा दिशा निर्देश जारी किए गए। जिससे हिन्दी को कार्यलय में प्रयोग की भाषा बनाया जा सके।

भारत चूँकि एक विशाल राष्ट्र है जिसकी अधिकांश जनता हिन्दी भाषी है और शासन के साथ उसका सीधा सम्बन्ध स्थापित करने के लिए सम्पर्क भाषा के रूप में हिन्दी से बेहतर कोई भाषा हो ही नहीं सकती। इसलिए यह आवश्यक था दि • स्वतंत्रता के पश्चात् से ही शासन और समाज के बीच 'एक भाषा' द्वारा समन्या स्थापित किया जा सके। इसलिए राजभाषा के रूप में हिन्दी भाषा को रखना और राजभाषा प्रावधानों के अनुसार अन्य क्षेत्रों में भी हिन्दी के प्रचार-प्रसार द्वारा उसे राष्ट्रीय और वैश्विक बनाना इसका वास्तविक उद्देश्य रहा। लेकिन राजभाषा सम्बन्धी संवैधानिक प्रावधानों में अनेक उपबन्धों द्वारा अंग्रेजी को पन्द्रह वर्षों और उसके उपरान्त निरन्तर सह-राजभाषा बनाए रखना हिन्दी के लिए अहितकारी हुआ।

● भारत की अधिकांश जनता गांवों में बसती है और ग्रामीण प्रदेशों में हिन्दी को । वह विभिन्न बोलियाँ वहाँ की बोलचाल की भाषा के रूप में अभिव्यक्ति का आधार बनती हैं। लेकिन इन्हीं क्षेत्रों में एक ऐसा तबका भी है जो अभी तक अशिक्षित है। हिन्दी बोल और समझ तो सकता है, उसका मौखिक प्रयोग भी कर सकता है लेकिन उसके लिए रोजगार का महत्त्व अन्य चीजों से अधिक है। ऐसे में राजभाषा सम्बन्धी प्रावधानों को बनाते हुए हिन्दी के प्रचार-प्रसार की दिशा में यह भी निर्दिष्ट किया गया कि भारत के सभी भाषा-भाषी लोगों को हिन्दी पढ़ना लिखना सिखाया जा सके। लेकिन अनेक भाषाओं का राष्ट्र होने के कारण और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के चलते हिन्दी राजभाषा तो बन गई किन्तु उसे अभी तक वह सम्मान प्राप्त नहीं हो सका जो वास्तव में किसी एक राष्ट्र की प्रधान भाषा को मिलना चाहिए।

वास्तव में राजभाषा के रूप में हिन्दी को स्थापित करने के पीछे आरम्भिक उद्देश्य भी यही था कि भारत के सभी शासकीय कार्य 'कार्यालयी हिन्दी' के माध्यम से इसलिए किए जायें जिससे भारत की अधिकांश जनता शासन द्वारा लिए गए नीतिगत निर्णयों से परिचित हो सके। इन नीतिगत निर्णयों का सम्बन्ध सीधे-सीधे आम सामाजिक से होता है। ऐसे में आम सामाजिक तक यदि सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों की जानकारी पूर्ण रूप से न पहुँच सके तो आम सामाजिक शासन की सुविधाओं का लाभ उठाने से वंचित रह जाएगा। सरकार का कार्य समाज और सामाजिकों का विकास करना है। वैश्विक स्तर पर भारत की पहचान अभी तक विकासशील राष्ट्र के रूप में ही है और विश्व के कई ऐसे देश हैं जिनकी जनसंख्या भारत के एक छोटे से राज्य की जनसंख्या से भी बहुत कम है, किन्तु वे राष्ट्र विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में रखे जाते हैं। उन राष्ट्रों ने अपनी राष्ट्र की प्रधान भाषा को ही अपने काम-काज की भाषा में प्रयोग में लिया, जिससे वहाँ का शासन-तंत्र एक ओर तो सामाजिकों से सीधे संवाद कर पाने में सक्षम हुआ वहीं दूसरी ओर सामाजिक भी अपनी भाषा में ही सरकार द्वारा बनाए गए नियमों और प्रावधानों को सहजता से समझ पाने से अपने अधिकारों के प्रति सचेत हुए।

भारत में इसके विपरीत स्थिति आज तक बनी हुई है। ऐसे राज्यों में जहाँ उस राज्य की कार्यालयी भाषा हिन्दी है वहाँ भी अभी तक उच्च पदों पर अंग्रेजी मानसिकता वाले लोगों का आधिपत्य है। ऐसे में न तो वे अपने अधिकारों को जान पाते हैं और न हीं शासन से सीधा संवाद कर पाते हैं।

इतना ही नहीं, भारत के न्यायालयों को अंग्रेजी में कार्य करने की स्वतंत्रता प्रदान की गई। यह दुर्भाग्य ही है कि भारत में विधि के क्षेत्र में हिन्दी की जितनी उपेक्षा की गई उतनी किसी अन्य क्षेत्र में नहीं। अधिकांश न्यायालयों में प्रस्तुत किए जाने वाद और होने वाली बहसें आज भी अंग्रेजी में होती है। अपने-अपने वाद के • सम्बन्ध में वादी या प्रतिवादी को यह भी नहीं पता चल पाता कि न्यायालय में प्रस्तुत उसके बाद को अधिवक्ता (वकील) द्वारा कितनी मजबूती से प्रस्तुत किया है और उसने उस वाद को उसके पक्ष में प्रस्तुत किया भी है अथवा नहीं यह भी विचार का विषय हो सकता है। ऐसे में न्यायालयों में यदि काम-काज की भाषा हिन्दी होती तो निश्चित रूप से समाज के आम नागरिक को अपने वाद के समय अपने अधिवक्ताओं द्वारा रखे जाने वाले तर्कों की जानकारी पूर्ण रूप से मिल सकती और वह अपने लिए उचित न्याय की आशा कर सकता। इसीलिए कार्यालयी हिन्दी का यह भी उद्देश्य होता है कि वह आम सामाजिक के साथ होने वाले अन्याय को रोक सके और उसे न्याय दिला पाने में समर्थ हो ।

• जिस समय राजभाषा सम्बन्धी प्रावधानों को रखा गया था उस समय उसमें यह भी सुनिश्चित किया गया कि जहाँ भी राजभाषा हिन्दी में कार्य करते हुए कर्मचारी को परेशानी का सामना करना पड़े वहाँ अंग्रेजी के शब्दों को यथावत् देवनागरी में लिख सकता है। चूँकि प्रशासन की अपनी सुनिश्चित शब्दावली होती है ऐसे में अंग्रेजी के अनेक शब्दों का अनुवाद सम्भव ही नहीं हो सकता। इसीलिए उन शब्दों के स्थान पर किसी अन्य शब्द की अपेक्षाकृत अंग्रेजी के शब्द को देवनागरी में लिप्यंतरित कर उसका प्रयोग किया जा सकता है जिससे सामान्य व्यक्ति उस पत्र के मंतव्य को समझ सके।

इसलिए देखा जाए तो कार्यालयी हिन्दी का वास्तविक उद्देश्य समाज के बहुसंख्यक वर्ग तक शासन की नीतियों को सहज रूप से पहुँचाते हुए सामान्य नागरिक को उनके अधिकारों के प्रति जानकारी देना; शासन और प्रजा के बीच सीधा-संवाद स्थापित करना तथा राष्ट्र के विकास में सामान्य नागरिक की सीधी भागीदारी सुनिश्चित करना रहा है। कार्यालयी हिन्दी द्वारा प्रशासन की व्यवस्था में सामान्य नागरिकों को प्रत्यक्ष लाभ प्राप्त कराना सहज है। जब तक प्रशासन और प्रजा में प्रत्यक्ष संवाद नहीं होगा तब तक बिचौलियों की भूमिका समाज में भ्रष्टाचार

राजभाषा का अर्थ है संविधान द्वारा स्वीकृत सरकारी कामकाज की भाषा। किसी देश का सरकारी कामकाज जिस भाषा में करने का कोई निर्देश संविधान के प्रावधानों द्वारा दिया जाता है, वह उस देश की राजभाषा कही जाती है।

भारत के संविधान में हिन्दी भाषा को राजभाषा का दर्जा दिया गया है, किन्तु साथ ही यह भी प्रावधान किया गया है कि अंग्रेजी भाषा में भी केन्द्र सरकार अपना कामकाज तब तक कर सकती है जब तक हिन्दी पूरी तरह राजभाषा के रूप में स्वीकार्य नहीं हो जाती।

प्रारम्भ में संविधान लागू होते समय सन् 1950 में यह समय सीमा 15 वर्ष के लिए थी अर्थात अंग्रेजी का प्रयोग सरकारी कामकाज के लिए सन् 1965 तक ही हो सकता था, किन्तु बाद में संविधान संशोधन के द्वारा इस अवधि को अनिश्चितकाल के लिए बढ़ा दिया गया। यही कारण है कि संविधान द्वारा हिन्दी को राजभाषा घोषित किये जाने पर भी केन्द्र सरकार का अधिकांश सरकारी कामकाज अंग्रेजी में हो रहा है और वह अभी तक अपना वर्चस्व बनाए हुए है।

केन्द्र सरकार की राजभाषा के अतिरिक्त अनेक राज्यों की राजभाषा के रूप में भी हिन्दी का प्रयोग स्वीकृत है। जिन राज्यों की राजभाषा हिन्दी स्वीकृत है, वे हैं- उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ एवं उत्तरांचल। इन राज्यों के अलावा अन्य राज्यों ने अपनी प्रादेशिक भाषा को राजभाषा का दर्जा दिया है। यथा-पंजाब की राजभाषा पंजाबी, बंगाल की राजभाषा बंगला, आन्ध्र प्रदेश की राजभाषा तैंलुगू तथा कर्नाटक की राजभाषा कन्नड़ है। इन प्रान्तों में भी सरकारी कामकाज में प्रान्तीय भाषा में होने के साथ-साथ अंग्रेजों में हो रहा है।

निष्कर्ष यह है कि अंग्रेजी संविधान द्वारा भले ही किसी राज्य की राजभाषा स्वीकृत न की गई हो, किन्तु व्यावहारिक रूप में उसका प्रयोग एक बहुत बड़े सरकारी कर्मचारी वर्ग द्वारा सरकारी कामकाज के लिए किया जा रहा है।

इस अधिनियम के अन्तर्गत हिन्दी का अधिकाधिक प्रयोग • करने के लिए कुछ प्रभावी कदम उठाये गये है। इस अधिनियम के मुख्य प्रावधान इस प्रकार हैं:- 1.भारत संघ के राज्य तीन वर्गों में विभक्त किये गए हैं:-

(क) उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान, हरियाणा, • हिमाचल प्रदेश और संघ क्षेत्र दिल्ली। (ये सभी हिन्दी भाषी प्रदेश हैं।)

(ख) इस श्रेणी में पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र, चण्डीगढ़, अण्डमान-निकोबार को रखा गया है।

(ग) शेष सभी प्रदेश एवं संघ शासित क्षेत्र 'ग' श्रेणी में. रखे गये।

इस वर्गीकरण के उपरान्त यह निर्देश दिया गया कि:-

1.केन्द्रीय कार्यालयों से 'क' श्रेणी के राज्यों को भेजे जाने वाले सभी पत्र हिन्दी में देवनागरी लिपि में भेजे जायेंगे। यदि कोई पत्र अंग्रेजी में भेजा जा रहा है, तो हिन्दी में अनुवाद भी अवश्य भेजा जायेगा।

2.'ख' श्रेणी के राज्यों से पत्र व्यवहार हिन्दी अंग्रेजी दोनों भाषाओं में किया जा सकता है

3.'ग' श्रेणी के राज्यों से पत्र व्यवहार अंग्रेजी में किया जायेगा।

4.केन्द्रीय कार्यालयों में हिन्दी में आगत पत्रों का उत्तर अनिवार्यतः हिन्दी में दिया जायेगा।

5.केन्द्र सरकार के कार्यालयों में सभी प्रपत्र, रजिस्टर, हिन्दी, अंग्रेजी दोनों में होंगे।

6.केन्द्रीय सरकार के कर्मचारी हिन्दी या अंग्रेजी में टिप्पणी लिख सकेंगे।

7.जहां 80 प्रतिशत से अधिक कर्मचारी हिन्दी में कार्य करते हों, वहां टिप्पणी, प्रारूप आदि काम केवल हिन्दी में ही करने को कहा जा सकता है।

8.प्रत्येक कार्यालय के प्रधान का यह दायित्व होगा कि वह राजभाषा अधिनियमों एवं उपबन्धों का समुचित अनुपालन कराये।

स्पष्ट है कि संवैधानिक दृष्टि से हिन्दी की स्थिति बड़ी मजबूत है, किन्तु अंग्रेजी जानने वाले प्रशासनिक अधिकारियों के षड्यन्त्र के कारण अभी भी हिन्दी में शत-प्रतिशत काम केन्द्र सरकार के कार्यालय में नहीं हो पा रहा है। राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में हिन्दी अपना राजभाषा का दर्जा पूरी तरह प्राप्त नहीं कर सकी है।

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Assignment मीनिंग : Meaning of Assignment in Hindi - Definition and Translation

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ASSIGNMENT MEANING IN HINDI - EXACT MATCHES

Other related words, definition of assignment.

  • a duty that you are assigned to perform (especially in the armed forces); "hazardous duty"
  • the instrument by which a claim or right or interest or property is transferred from one person to another
  • the act of distributing something to designated places or persons; "the first task is the assignment of an address to each datum"

RELATED SIMILAR WORDS (Synonyms):

Related opposite words (antonyms):, information provided about assignment:.

Assignment meaning in Hindi : Get meaning and translation of Assignment in Hindi language with grammar,antonyms,synonyms and sentence usages by ShabdKhoj. Know answer of question : what is meaning of Assignment in Hindi? Assignment ka matalab hindi me kya hai (Assignment का हिंदी में मतलब ). Assignment meaning in Hindi (हिन्दी मे मीनिंग ) is समनुदेशन.English definition of Assignment : a duty that you are assigned to perform (especially in the armed forces); hazardous duty

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Synonym/Similar Words : designation , assigning , naming , appointment , beat , mission , charge , homework , job , practice , post , position , stint , duty , commission , chore

Antonym/Opposite Words : discharge , unemployment , keeping

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Kya Antar Hai ?

उपसर्ग और प्रत्यय में क्या अंतर है.

  • शब्द के अर्थ में नई विशेषता लाना
  • शब्द के अर्थ को विपरीत बनाना
  • शब्द के अर्थ को प्रभावशाली और जोर प्रदान करना
  • एक नए शब्द की रचना करना

संस्कृत भाषा से आये उपसर्ग

  • कृत प्रत्यय
  • तद्धित प्रत्यय
  • कर्तृवाचक कृत प्रत्यय
  • विशेषणवाचक कृत प्रत्यय
  • कर्मवाचक कृत प्रत्यय
  • भाववाचक कृत प्रत्यय
  • करणवाचक कृत प्रत्यय
  • क्रियावाचक कृत प्रत्यय
  • कर्तृवाचक
  • भाववाचक
  • गुणवाचक
  • सम्बन्धवाचक
  • अपत्यवाचक
  • स्थानवाचक
  • उनवाचक
  • अव्ययवाचक

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natak or kahani me antar

Kahani or Natakme Antar, कहानी और नाटक में अंतर लिखिए

नाटक और कहानी में क्या भिन्नता है? यह पहचान बेहद सरल तरीके से किया जा सकता है। लोगों को यह भ्रांति होती है कि नाटक और कहानी एक है, जबकि साहित्य की दृष्टि से दोनों में बहुत बड़ा अंतर है। प्रस्तुत लेख में आप नाटक और कहानी में विभिन्न प्रकार के अंतर का अध्ययन करेंगे। इस लेख के माध्यम से आपका नाटक तथा कहानी के बीच भिन्नता की जानकारी व्यापक रूप से हो सकेगी।

कहानी और नाटक में अंतर

कहानी के तत्व की पूरी जानकारी

नाटक के तत्व की पूरी जानकारी

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जनसंचार माध्यम

नाटक प्राचीन विधा है जबकि कहानी आधुनिक। नाटक के लिए रंगमंच की आवश्यकता होती है वही कहानी के लिए ऐसे कोई रंगमंच की आवश्यकता नहीं होती। बल्कि इसे एक ही बैठक में समाप्त किया जा सकता है वही नाटक कई दिनों और महीनों का हो सकता है। नाटक में  पात्रों की भरमार होती है प्रस्तुत लेख के माध्यम से आपने नाटक तथा कहानी के बीच अंतर को समझ लिया होगा। आशा है उपरोक्त लेख आपके परीक्षा तथा आपके ज्ञान की वृद्धि में कारगर होगी। अपने सुझाव तथा विचार कमेंट बॉक्स में लिखें ताकि हम लेख को विद्यार्थियों के लिए और अधिक सुगम बना सकें।

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औपचारिक एवं अनौपचारिक शिक्षा में अंतर

औपचारिक एवं अनौपचारिक शिक्षा में अंतर .

हैण्डरसन ने औपचारिक और अनौपचारिक अभिकरणों इन दोनों मे इस प्रकार अंतर स्पष्ट किया है," जब बालक व्यक्तियों के कार्यों को देखता है, उनका अनुसरण करता है और उनमें भाग लेता है तब वह अनौपचारिक रूप से शिक्षित होता हैह जब उसको सचेत करके और जान-बूझकर पढ़ाया जाता है, तब वह अनौपचारिक रूप से शिक्षा प्राप्त करता हैं।"

औपचारिक और अनौपचारिक शिक्षा अभिकरण मे में निम्न अंतर हैं-- 

1. औपचारिक शिक्षा का क्षेत्र संकीर्ण होता है, जबकि अनौपचारिक शिक्षा का क्षेत्र विस्तृत होता है। 

2. औपचारिक शिक्षा सुनियोजित और व्यवस्थित ढंग से संस्थाओं के द्वारा दी जाती है। अनौपचारिक शिक्षा मे पहले से कोई योजना नहीं बनाई जाती है। इसे व्यक्ति आकस्मिक रूप से प्राप्त करता हैं।

2 . औपचारिक शिक्षा के अभिकरण बहुत सीमित हैं। विद्यालय एवं पुस्तकालय इत्यादि इस शिक्षा के अभिकरण है। अनौपचारिक शिक्षा के अभिकरण परिवार, मित्र, पड़ोसी, राज्य, समुदाय एवं धार्मिक संस्थान आदि प्रमुख शिक्षा के अभिकरण हैं। 

4. औपचारिक शिक्षा मे मुख्यतः बालक के बौद्धिक विकास पर बल दिया जाता हैं। अनौपचारिक शिक्षा बालक के सर्वांगीण विकास मे सहायक होती है। 

5. औपचारिक अभिकरण द्वारा बालक के आचरण को परिवर्तित करने के लिए जानबूझकर व्यवस्थित रूप मे कार्य किया जाता है इस कारण ये व्यवस्थित अभिकरण है। अनौपचारिक अभिकरणों द्वारा बालक के आचरण को अप्रत्यक्ष एवं आकस्मिक ढंग से परिवर्तित किया जाता है। इस कारण ये अवस्थित या आकस्मिक विधियाँ हैं। 

6. औपचारिक शिक्षा मे शिक्षण-विधियाँ कक्षा, स्तर एवं विषय के अनुसार निश्चित की जाती हैं। अनौपचारिक शिक्षा में शिक्षण विधियाँ निश्चित नही होती हैं। अनुभव ही बालक को शिक्षा प्रदान करते हैं। 

7. औपचारिक शिक्षा अभिकरणों को निश्चित ढाँचे के अनुसार पहले से ही निर्धारित किया जाता हैं। अतः ये बालक के आचरण को सचेत होकर परिवर्तित एवं नियंत्रित करते हैं। अतः ये सचेत अभिकरण हैं। अनौपचारिक अभिकरण पूर्व निर्धारित नहीं होते हैं। अतः ये बालक के आचरण के परिवर्तन एवं नियंत्रण के संबंध में सचेत होकर कार्य नही करते है। अतः ये अचेतन साधन हैं। 

8. औपचारिक अभिकरणों पूर्व नियोजित होते हैं और इनके अपने नियम एवं निर्धारित कार्यक्रम होते हैं। अनौपचारिक अभिकरणों का कोई निर्धारित कार्यक्रम नही होता और न ही इनके अपने नियम ही होते हैं, जिसके अनुसार वे बालक के आचरण को रूपांतरित करने के लिए बाध्य होंगे। 

9. औपचारिक शिक्षा अभिकरण मे प्रत्येक कक्षा अथवा स्तर के पाठ्यक्रम को एक निश्चित अवधि में पूरा करना होता है। औपचारिक अभिकरण की कोई निश्चित अवधि या सीमा नही होती। बालक अपने जन्म से लेकर मृत्यु तक इनसे सीखता रहता हैं। 

11. औपचारिक शिक्षा अभिकरण में शिक्षा को प्रदान करने का कार्य विभिन्न विषयों के प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्ति करते है। औपचारिक शिक्षा अभिकरण मे शिक्षा में सभी व्यक्ति शिक्षक होते है क्योंकि वे किसी न किसी रूप में अपना प्रभाव छोड़ते है। 

12. औपचारिक अभिकरण मे शिक्षा केवल विद्यालय में ही दी जाती है। अनौपचारिक शिक्षा अभिकरण मे कोई निश्चित स्थान नही होता हैं। 

13. औपचारिक शिक्षा अभिकरण मे शिक्षा में परीक्षा सफलता प्राप्त होने पर प्रमाण-पत्र दिया जाता हैं, जबकि अनौपचारिक शिक्षा अभिकरण में किसी भी प्रकार का प्रमाण-पत्र नही दिया जाता है। 

14. औपचारिक अभिकरण प्रत्यक्ष रूप से बालक के आचरण को रूपांतरित करते हैं अतः ये प्रत्यक्ष साधन कहलाते हैं। अनौपचारिक अभिकरण अप्रत्यक्ष रूप से बालक के आचरण को रूपांतरित करते हैं। अतः ये अप्रत्यक्ष साधन कहलाते हैं। 

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उपन्यास और कहानी में क्या अंतर है? (Novel Vs. Story difference in Hindi)

Kahani Aur Upanyas Mein Antar (Novel Vs. Story difference in Hindi) – “कहानी ( Story )” और “उपन्यास ( Novel )” दोनों ही साहित्य ( Literature ) के महत्वपूर्ण अंग हैं। यह दोनों विभिन्न लेखनीकि रचनाओं के प्रकार होते हैं, लेकिन उनका साहित्यिक महत्व और भूमिका अद्वितीय होती है।

आज के लेख में आप जानेंगे कहानी और उपन्यास की परिभाषा क्या है, कहानी और उपन्यास में क्या अंतर: है, कहानी क्या है (कहानी की परिभाषा), कहानी के प्रकार, कहानी के तत्व, उपन्यास क्या है (उपन्यास की परिभाषा), उपन्यास के प्रकार, उपन्यास  के तत्व, कहानी और उपन्यास में अंतर आदि महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं।

Table of Contents

कहानी किसे कहते हैं? “कहानी” का क्या अर्थ होता है? 

“कहानी” शब्द का मुख्य अर्थ “कुछ कहना” या “किसी घटना, क्रिया या विचार को शब्दों में पिरोना” है। कहानी किसी कथा या गतिविधि का एक संक्षिप्त, जीवंत आख्यान होता है, जो किसी कथानक या घटनाओं को बताता है जो एक विशेष परिप्रेक्ष्य के आसपास घटित होता है। इसका उद्देश्य पाठकों का मनोरंजन करने के साथ-साथ विचारशीलता और संदेश देना भी हो सकता है।

कहानी आमतौर पर एक छोटी और संक्षिप्त रचना होती है, जिसमें किसी क्षणिक घटना या दृश्य का वर्णन किया जाता है। यह एक ही विषय पर केंद्रित होती है और अक्सर एक ही चरित्र के इर्द-गिर्द घूमती है। कहानियाँ अक्सर एक संदेश या सबक देने की कोशिश करती हैं और पाठकों को सोचने पर मजबूर करती हैं।

कुछ देर में कहानी ख़त्म हो जाती है। जब भी कोई घटना घटित होती है तो उसके बारे में एक कहानी लिखी जाती है। जिससे इसे कम शब्दों में और कम समय में समझाया जा सकता है।

कहानी किसी घटना, विचार या परिप्रेक्ष्य को एक समयावधि में संक्षेप में बताने का एक साधन है। ये खास तौर पर

  • किसी घटना का सारांश: एक कहानी किसी स्थिति या घटना के आसपास की प्रासंगिक घटनाओं को इस रूप में सारांशित करती है कि वर्णनकर्ता या श्रोता तुरंत समझ सके।
  • किसी संदेश का प्रस्तुतन: कहानियाँ अक्सर किसी संदेश, सीख या विचार को सार्थक तरीके से प्रस्तुत करती हैं, और पाठकों को किसी चीज़ के बारे में सोचने पर मजबूर करती हैं।
  • विचारशीलता और व्यक्तिगत अनुभव: कहानियाँ अक्सर विचारशीलता और व्यक्तिगत अनुभव को छूने का प्रयास करती हैं, और व्यक्तिगत पात्रों के माध्यम से व्यक्त की जाती हैं।
  • शिक्षा और मनोरंजन: कहानियों का उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जाता है, जैसे शिक्षा, मनोरंजन और मनोविकास।
  • लोकप्रियता: कहानियाँ अक्सर पाठकों और श्रोताओं के बीच लोकप्रिय होती हैं क्योंकि वे कम समय में पढ़ने या सुनने में सुविधाजनक होती हैं।

कहानियाँ अक्सर कहने और दोबारा सुनाने के रूप में भी प्रस्तुत की जाती हैं, और इनमें समाज के विभिन्न पहलुओं के बारे में रुचि और समझ बढ़ाने का अवसर होता है। कहानियाँ साहित्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और विभिन्न समाजों और संस्कृतियों में लोकप्रिय हैं, क्योंकि वे मनोरंजन के साथ-साथ जीवन के अनगिनत पहलुओं को मार्मिकता से छू सकती हैं।

कहानी के प्रकार (Types of story in Hindi)

कहानियाँ कई प्रकार की होती हैं, और उन्हें उनकी सामग्री, संरचना और उद्देश्य के आधार पर विभिन्न तरीकों से वर्गीकृत किया जा सकता है। यहां कुछ सामान्य प्रकार की कहनियों के बारे में समझाया गया हैं:

  • काल्पनिक कहानियाँ ( Fictional Stories )
  • गैर-काल्पनिक कहानियाँ ( Non-Fiction Stories )
  • लोककथाएँ और मिथक ( Folktales and Myths )
  • ऐतिहासिक कहानियाँ ( Historical Stories )
  • बच्चों की कहानियाँ ( Children’s Stories )
  • मनोवैज्ञानिक कहानियाँ ( Psychological Stories )
  • रोमांचक कहानियाँ ( Adventure Stories )
  • डरावनी कहानियां ( Horror Stories )
  • व्यंग्यात्मक कहानियाँ ( Satirical Stories )
  • पत्र-पत्रिका कहानियाँ ( Epistolary Stories )

काल्पनिक कहानियाँ (Fictional Stories)

काल्पनिक कहानियाँ ऐसी कथाएँ होती हैं जो लेखक की कल्पना से बनाई जाती हैं और वास्तविक घटनाओं या वास्तविक लोगों पर आधारित नहीं होती हैं। ये कहानियाँ पूरी तरह से काल्पनिक (Fictional) होती हैं और किसी काल्पनिक दुनिया या परिवेश में घटित हो सकती हैं। काल्पनिक कहानियाँ शैलियों और प्रकारों की एक विस्तृत श्रृंखला को कवर कर सकती हैं, और उनमें अक्सर लेखक द्वारा आविष्कृत पात्र, घटनाएँ और कथानक शामिल होते हैं।

काल्पनिक कहानियाँ साहित्य और कहानी कहने का एक मौलिक रूप हैं, और वे लेखकों को कल्पना के लेंस के माध्यम से भावनाओं, विचारों और अनुभवों को व्यक्त करने की अनुमति देती हैं। पाठक विभिन्न दुनियाओं का पता लगाने, नए दृष्टिकोण प्राप्त करने और कहानी कहने की शक्ति का अनुभव करने के लिए काल्पनिक कहानियों से जुड़ते हैं।

गैर-काल्पनिक कहानियाँ (Non-Fiction Stories)

गैर-काल्पनिक कहानियाँ ऐसी कथाएँ होती हैं जो वास्तविक घटनाओं, लोगों और तथ्यों पर आधारित होती हैं। काल्पनिक कहानियों के विपरीत, जो लेखक की कल्पना से बनाई जाती हैं, गैर-काल्पनिक कहानियां वास्तविकता में निहित होती हैं और सटीक जानकारी, अनुभव या दृष्टिकोण व्यक्त करने का लक्ष्य रखती हैं। ये कहानियाँ वास्तविक घटनाओं, व्यक्तियों और घटनाओं का प्रतिबिंब हैं, और इनका उपयोग अक्सर वास्तविक दुनिया को सूचित करने, शिक्षित करने या अंतर्दृष्टि प्रदान करने के लिए किया जाता है।

ऐतिहासिक घटनाओं और व्यक्तियों का दस्तावेजीकरण करने से लेकर स्व-सहायता सलाह देने, व्यक्तिगत अनुभव साझा करने या पाठकों को किसी विशिष्ट क्षेत्र में ज्ञान प्रदान करने तक, गैर-काल्पनिक कहानियाँ कई प्रकार के उद्देश्यों की पूर्ति करती हैं।

लोककथाएँ और मिथक (Folktales and Myths)

लोककथाएँ पारंपरिक कहानियाँ होती हैं जो किसी विशिष्ट संस्कृति या समुदाय में पीढ़ियों से मौखिक रूप से चली आ रही हैं। उनमें अक्सर सामान्य चरित्र, जानवर या पौराणिक जीव शामिल होते हैं और उनका उपयोग नैतिक शिक्षा, सांस्कृतिक मूल्यों को बताने या दर्शकों का मनोरंजन करने के लिए किया जाता है। 

लोककथाओं का आम तौर पर कोई एक पहचानने योग्य लेखक नहीं होता है और विभिन्न क्षेत्रों में इसके कई संस्करण हो सकते हैं। उनकी सादगी, सीधे कथानक और कालातीत परिवेश उनकी विशेषता होती हैं, जो उन्हें व्यापक दर्शकों के लिए सुलभ बनाती हैं।

दूसरी ओर, मिथक किसी विशेष संस्कृति या सभ्यता की मान्यताओं में गहराई से निहित पवित्र या धार्मिक आख्यान होते हैं। वे अस्तित्व के मूलभूत पहलुओं की व्याख्या करते हैं, जैसे कि दुनिया का निर्माण, देवताओं और मानवता की उत्पत्ति, और दिव्य प्राणियों और नश्वर प्राणियों के बीच संबंध। 

मिथकों में अक्सर देवताओं और अलौकिक संस्थाओं को केंद्रीय पात्रों के रूप में दिखाया जाता है और वे विशिष्ट धार्मिक अनुष्ठानों और ब्रह्मांड विज्ञान से जुड़े होते हैं। उन्हें मूलभूत आख्यान माना जाता है जो समाज के विश्वदृष्टिकोण और धार्मिक प्रथाओं को आकार देते हैं, और उन्हें अक्सर लिखित ग्रंथों या धर्मग्रंथों में संरक्षित किया जाता है। मिथक रोजमर्रा की दुनिया और परमात्मा के बीच की दूरी को पाटते हैं, अस्तित्व के रहस्यों में गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।

ऐतिहासिक कहानियाँ (Historical Stories)

ऐतिहासिक कहानियाँ विशिष्ट ऐतिहासिक कालखंडों में स्थापित कथाएँ होती हैं और इनमें अक्सर वास्तविक ऐतिहासिक घटनाएँ शामिल होती हैं। इन कहानियों का उद्देश्य पाठकों को बीते युग में ले जाना, अतीत और उस दौरान रहने वाले लोगों के जीवन की झलक दिखाना होता है। 

वे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं, युद्धों, क्रांतियों, सांस्कृतिक आंदोलनों या विभिन्न सामाजिक पृष्ठभूमि के व्यक्तियों के दैनिक जीवन का पता लगा सकते हैं। ऐतिहासिक कहानियों के लेखक उस अवधि के ऐतिहासिक संदर्भ, रीति-रिवाजों और सामाजिक मानदंडों को चित्रित करने में सटीकता सुनिश्चित करने के लिए व्यापक शोध करते हैं। 

ऐतिहासिक कहानियाँ न केवल पाठकों को मनोरंजन प्रदान करती हैं बल्कि विभिन्न समय अवधियों के बारे में जानने, मानव इतिहास में अंतर्दृष्टि प्राप्त करने और अतीत की सांस्कृतिक और सामाजिक गतिशीलता की सराहना करने का अवसर भी प्रदान करती हैं। ये आख्यान ऐतिहासिक कथा उपन्यासों और जीवनियों से लेकर फिल्मों और वृत्तचित्रों तक कई शैलियों में फैले हो सकते हैं, जो उन्हें समकालीन दर्शकों के साथ इतिहास की समृद्धि को संरक्षित करने और साझा करने का एक मूल्यवान माध्यम बनाते हैं।

बच्चों की कहानियाँ (Children’s Stories)

बच्चों की कहानियाँ विशेष रूप से तैयार की गई कथाएँ होती हैं जो युवा पाठकों या श्रोताओं को संलग्न करने और उनका मनोरंजन करने के लिए निर्मित की जाती हैं। ये कहानियाँ बच्चों की विशिष्ट आवश्यकताओं और रुचियों को पूरा करती हैं, जिनमें आम तौर पर आयु-उपयुक्त सामग्री, भाषा और विषय-वस्तु शामिल होती है। समझ बढ़ाने और युवा कल्पनाओं को मोहित करने के लिए वे अक्सर रंगीन चित्र शामिल करते हैं। 

बच्चों की कहानियाँ कई प्रकार की शैलियों को कवर करती हैं, जिनमें नैतिक कहानियों और दंतकथाओं से लेकर साहसिक कहानियों, फंतासी और जीवंत दृश्यों से भरी चित्र पुस्तकें शामिल होते हैं। ये कहानियाँ प्रारंभिक साक्षरता, भाषा विकास और संज्ञानात्मक कौशल को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वे बच्चों में पढ़ने, रचनात्मकता और कल्पना के प्रति प्रेम पैदा करते हैं, जिससे उन्हें विभिन्न दुनियाओं और संस्कृतियों का पता लगाने में मदद मिलती है। बच्चों की कहानियों के लेखक और चित्रकार यादगार चरित्र और प्रासंगिक परिदृश्य बनाते हैं जो युवा पाठकों से जुड़ते हैं, उनके बचपन पर स्थायी प्रभाव छोड़ते हैं और बड़े होने पर उनके साहित्यिक स्वाद को आकार देते हैं।

मनोवैज्ञानिक कहानियाँ (Psychological Stories)

मनोवैज्ञानिक कहानियाँ मानव मन, भावनाओं और व्यवहार के जटिल और अक्सर उलझन वाले पहलुओं पर प्रकाश डालती हैं। ये कथाएँ पात्रों की मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक गहराई का पता लगाती हैं, अक्सर उनके आंतरिक संघर्षों, भय, इच्छाओं और प्रेरणाओं को उजागर करती हैं। मनोवैज्ञानिक कहानियों में मानसिक स्वास्थ्य, पहचान, आघात और व्यक्तिगत विकास से संबंधित विषय आम हैं। लेखक कथात्मक तकनीकों का उपयोग करते हैं जो पात्रों के मानस में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं, जैसे आंतरिक एकालाप, अविश्वसनीय कथावाचक और प्रतीकवाद।

मनोवैज्ञानिक थ्रिलर, मनोवैज्ञानिक कहानियों की एक उपशैली, रहस्य और तनाव को मनोवैज्ञानिक अन्वेषण के साथ जोड़ती है। वे अक्सर बाहरी खतरों या रहस्यों का सामना करते हुए मनोवैज्ञानिक दुविधाओं से जूझते पात्रों को दिखाते हैं। ये कहानियाँ भावनात्मक रूप से गहन और विचारोत्तेजक हो सकती हैं, जो पाठकों को मानव स्वभाव की जटिलताओं और मन की पेचीदगियों पर विचार करने के लिए आमंत्रित करती हैं। मनोवैज्ञानिक कहानियाँ पाठकों को पात्रों के आंतरिक संघर्षों के प्रति सहानुभूति रखने और आत्म-प्रतिबिंब और मानवीय स्थिति की गहरी समझ के अवसर प्रदान करने की चुनौती देती हैं।

रोमांचक कहानियाँ (Adventure Stories)

साहसिक कहानियाँ रोमांचकारी और मनोरम कथाएँ होती हैं जो पाठकों को रोमांचक और अक्सर खतरनाक यात्राओं पर ले जाती हैं। इन कहानियों की विशेषता एक्शन, उत्साह और अन्वेषण की भावना होती है। इनमें आमतौर पर साहसी नायक शामिल होते हैं जो खोज, अभियान या रोमांच पर निकलते हैं जो उन्हें अज्ञात या चुनौतीपूर्ण वातावरण में ले जाते हैं। साहसिक कहानियाँ विभिन्न उपशैलियों में फैली हुई होती हैं, जिनमें एक्शन-एडवेंचर, अन्वेषण और उत्तरजीविता कहानियाँ शामिल हैं।

ये कहानियाँ विभिन्न प्रकार की घटनाओं में घटित हो सकती हैं, विदेशी स्थानों और ऐतिहासिक कालखंडों से लेकर काल्पनिक क्षेत्रों और बाहरी अंतरिक्ष तक। साहसिक कहानियाँ अक्सर व्यक्तिगत विकास, लचीलेपन और विपरीत परिस्थितियों में मानवीय भावना की जीत पर जोर देती हैं। वे पाठकों को सामान्य से मुक्ति प्रदान करते हैं, खोज की भावना को प्रज्वलित करते हैं, और रोमांच और साहसिकता की भावना को प्रेरित करते हैं।

डरावनी कहानियां (Horror Stories)

डरावनी कहानियाँ साहित्य की एक शैली है जो पाठकों में भय, डर और बेचैनी की भावना पैदा करने के लिए बनाई जाती है। इन आख्यानों में अक्सर अलौकिक, भयावह और अज्ञात के तत्व शामिल होते हैं। उनका उद्देश्य मौलिक भय का पता लगाना और जो परिचित और सुरक्षित है उसकी सीमाओं को चुनौती देना है।

डरावनी कहानियाँ विभिन्न प्रकार की उपशैलियाँ शामिल कर सकती हैं, जिनमें भूत कहानियाँ, मनोवैज्ञानिक डरावनी और शारीरिक डरावनी कहानियाँ शामिल हैं। उनमें बुरी आत्माएं, राक्षस, पिशाच, लाश या अन्य अलौकिक घटक शामिल हो सकते हैं। माहौल और परिवेश पूर्वाभास की भावना पैदा करने में महत्वपूर्ण हैं, अक्सर अंधेरे, अलग-थलग या भयानक स्थानों की विशेषता होती है।

व्यंग्यात्मक कहानियाँ (Satirical Stories)

व्यंग्यात्मक कहानियाँ साहित्य का एक रूप है जो व्यक्तियों, संस्थानों, सामाजिक मानदंडों या राजनीतिक विचारधाराओं की आलोचना, उपहास या व्यंग्य करने के लिए हास्य, विडंबना, कटाक्ष और बुद्धि का उपयोग करती है। ये आख्यान अक्सर अपनी बात कहने के लिए अतिशयोक्ति और बेतुकेपन का इस्तेमाल करते हैं, जिन विषयों को वे लक्षित करते हैं उनकी खामियों और विरोधाभासों को उजागर करते हैं।

व्यंग्यात्मक कहानियाँ उपन्यास, लघु कथाएँ, नाटक और निबंध सहित कई प्रकार के रूप ले सकती हैं। वे सामाजिक टिप्पणी और आलोचना के माध्यम के रूप में काम करते हैं, लेखकों को प्रचलित विचारों और दृष्टिकोणों को चुनौती देने का साधन प्रदान करते हैं। चतुर शब्दों के खेल और हास्यप्रद स्थितियों के माध्यम से, व्यंग्यात्मक कहानियाँ पाठकों को यथास्थिति पर सवाल उठाने और उसका पुनर्मूल्यांकन करने के लिए प्रेरित करती हैं।

पत्र-पत्रिका कहानियाँ (Epistolary Stories)

पत्र-पत्रिका कहानियाँ, जिन्हें पत्र-पत्रिका उपन्यास भी कहा जाता है, पत्र, डायरी प्रविष्टियाँ, ईमेल या अन्य लिखित दस्तावेज़ों के रूप में प्रस्तुत की जाने वाली अद्वितीय साहित्यिक कृतियाँ हैं। ये आख्यान पात्रों के बीच लिखित पत्राचार के माध्यम से सामने आते हैं, जो पाठकों को पात्रों के विचारों, भावनाओं और अनुभवों पर प्रत्यक्ष नजर डालते हैं।

पत्र-संबंधी कहानियों में, प्रत्येक पत्र या दस्तावेज़ एक बड़ी कथा पहेली के एक टुकड़े के रूप में कार्य करता है, जो धीरे-धीरे कथानक, चरित्र संबंधों और सामने आने वाली कहानी को प्रकट करता है। यह प्रारूप अंतरंगता और तात्कालिकता की भावना पैदा कर सकता है, क्योंकि पाठकों को ऐसा लगता है मानो उन्हें पात्रों के आंतरिक विचारों और निजी जीवन तक सीधी पहुंच प्राप्त हो रही है।

उपन्यास किसे कहते हैं? “उपन्यास” का क्या अर्थ होता है? 

उपन्यास एक बड़ी, गहरी और लंबी कहानी संरचना होती है जिसमें विभिन्न पात्र, कथानक और उपकथाएँ शामिल होती हैं। यह कथा पात्रों के व्यक्तिगत अनुभवों का विस्तार से विकास और अन्वेषण करती है। उपन्यास अक्सर जीवन के विभिन्न पहलुओं को छूने और समाज, संगठन और मानवीय समस्याओं पर गहरा प्रकाश डालने का प्रयास करते हैं।

“उपन्यास” एक विशेष प्रकार की साहित्यिक रचना होती है जिसमें किसी प्रमुख घटना, व्यक्ति, विषय, वस्तु या स्थान की विस्तृत और व्यापक व्याख्या की जाती है। इसमें कई पात्र, कथानक और उपकथानक शामिल होते हैं, और कथा को गहरे और व्यापक परिप्रेक्ष्य से प्रस्तुत करने का प्रयास किया जाता है। उपन्यास अक्सर लंबा होता है और पाठकों को विभिन्न पहलुओं को समझने और विचार करने के लिए प्रोत्साहित करता है।

यह साहित्यिक कृति विभिन्न विषयों, सामाजिक मुद्दों और व्यक्तिगत अनुभवों को छूने का माध्यम भी हो सकती है और पाठकों को कहीं और ले जाने और उनकी दुनिया में गहराई से प्रवेश करने का अवसर प्रदान कर सकती है।

उपन्यास और कहानी दोनों साहित्यिक रूप हैं, लेकिन इनका मुख्य अंतर यह है कि उपन्यास बड़े विस्तार और व्यापकता के साथ लिखा जाता है, जबकि कहानी समय की दृष्टि से संक्षिप्त और छोटी होती है।

उपन्यास एक बड़ी कथा कहलाता है जिसमें कई पात्र, घटनाएँ और कथानक शामिल होते हैं। यह कहानी के विभिन्न पहलुओं को गहराई से छूने की कोशिश करता है और इसके लिए बहुत अधिक समय और पृष्ठों की आवश्यकता होती है। उपन्यास पाठक को एक दिलचस्प और गहरी कहानी में ले जाता है और उन्हें विभिन्न पहलुओं को समझने का अवसर प्रदान करता है।

उपन्यास किसी भी विशेष स्थान का विस्तार से वर्णन करता है और पाठकों को उस स्थान के व्यक्तिगत, सांस्कृतिक और सामाजिक पहलुओं का सशक्त अनुभव करने की अनुमति देता है। उपन्यास पाठक को उस स्थान के सभी पहलुओं को समझने और महसूस करने का अवसर प्रदान करता है, और उसे उस स्थान के अद्भुत वातावरण, भूगोल और लोगों के जीवन का अनुभव करने का मौका देता है। इसके माध्यम से उपन्यास उस स्थान के विशेष और प्राकृतिक पहलुओं को जीवंत बनाता है और इसे पाठकों के लिए दिलचस्प और इंटरैक्टिव बनाता है।

उपन्यासों के माध्यम से लेखक किसी स्थान के वातावरण, लोगों, संस्कृति और समाज को गहराई से जानने का अवसर प्रदान करते हैं और पाठकों को वहां के वातावरण को समझने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। परिणामस्वरूप, उपन्यास स्थान की सुंदरता, इतिहास और जीवन की विविधता को खूबसूरती से व्यक्त करने का एक अनूठा माध्यम है।

उपन्यास हमारे साहित्य में एक महत्वपूर्ण और गहरा योगदान देता है और साहित्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह कवियों और लेखकों के लिए मानवीय अनुभव, समाज, संस्कृति और मानवता के विभिन्न पहलुओं को छूने का एक माध्यम है। उपन्यास पाठकों को उस समय की स्थिति, परिवेश और व्यक्तिगत अनुभव के साथ विशेष रूप से जोड़कर एक गहरा और सामाजिक परिप्रेक्ष्य देता है।

उपन्यास का प्राचीन भारतीय साहित्य में भी महत्वपूर्ण स्थान था और भाणदेव, बाणभट्ट, और बिल्वमङ्गल जैसे लेखकों ने उपन्यास लिखे थे। उन्होंने भारतीय साहित्य के विभिन्न पहलुओं को छूने के लिए इस माध्यम का उपयोग किया।

आज भी भारतीय साहित्य के कई प्रमुख लेखक उपन्यास लिखते हैं और उनके द्वारा लिखे गए उपन्यास हमारे साहित्य का अहम हिस्सा बने हुए हैं। इन उपन्यासों में समाज के विभिन्न मुद्दों, सांस्कृतिक विविधता और मानवता के महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाया गया है, जो पाठकों को सोचने और विचारने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

उपन्यासों के आधार पर लिखी गई पुस्तकें और उपन्यासों का अध्ययन साहित्य प्रेमियों और विद्वानों के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है और यह भारतीय साहित्य की समृद्धि और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

उपन्यास के प्रकार (Types of novel in Hindi)

उपन्यासों के कई प्रकार और शैलियाँ हैं, प्रत्येक की अपनी अनूठी विशेषताएँ और विषयवस्तु हैं। यहां उपन्यासों के कुछ सबसे सामान्य प्रकार दिए गए हैं:

रहस्यमय उपन्यास ( Mystery Novels ): रहस्यमय उपन्यास किसी रहस्य, अपराध या पहेली को सुलझाने पर केंद्रित होते हैं। उनमें अक्सर एक जासूस या शौकिया जासूस को दिखाया जाता है जो सच्चाई को उजागर करने की कोशिश करता है।

थ्रिलर उपन्यास ( Thriller Novels ): थ्रिलर तेज़ गति वाले और रहस्यपूर्ण होते हैं, जिनमें अक्सर खतरनाक स्थितियाँ, जासूसी या पात्रों के जीवन के लिए ख़तरा शामिल होता है।

रोमांस उपन्यास ( Romance Novels ): रोमांस उपन्यास रोमांटिक रिश्तों और प्यार के इर्द-गिर्द घूमते हैं। वे पात्रों के बीच भावनात्मक और रोमांटिक संबंधों को उजागर करते हैं।

विज्ञान कथा उपन्यास ( Science Fiction Novels ): विज्ञान कथा उपन्यास उन्नत प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष यात्रा और अलौकिक जीवन जैसी काल्पनिक और भविष्य की अवधारणाओं पर आधारित होते हैं।

काल्पनिक उपन्यास ( Fantasy Novels ): काल्पनिक उपन्यासों में जादुई या अलौकिक तत्व होते हैं, जो अक्सर अद्वितीय नियमों और प्राणियों के साथ काल्पनिक दुनिया में स्थापित होते हैं।

ऐतिहासिक कथा ( Historical Fiction Novels ): ऐतिहासिक कथा विशिष्ट ऐतिहासिक अवधियों पर आधारित होती है और इसमें अक्सर वास्तविक ऐतिहासिक घटनाएं, आंकड़े और परिवेश शामिल होती हैं।

साहसिक उपन्यास ( Adventure Novels ): साहसिक उपन्यास एक्शन, उत्साह से भरपूर होते हैं और अक्सर इसमें शारीरिक चुनौतियाँ या अज्ञात स्थानों की यात्राएँ शामिल होती हैं।

डिस्टोपियन उपन्यास ( Dystopian Novels ): डिस्टोपियन उपन्यास अंधेरे और दमनकारी भविष्य के समाजों को दर्शाते हैं जहां पात्र सत्तावादी शासन या सामाजिक पतन के खिलाफ संघर्ष करते हैं।

युवा वयस्क उपन्यास ( Young Adult (YA) Novels ): युवा वयस्क उपन्यास किशोरों और युवा वयस्कों के लिए लिखे जाते हैं, जो अक्सर आने वाली उम्र के विषयों और उस आयु वर्ग से संबंधित मुद्दों से संबंधित होते हैं।

साहित्यिक गल्प उपन्यास ( Literary Fiction Novel ): साहित्यिक गल्प लेखन की गुणवत्ता और चरित्र विकास पर जोर देता है। ये उपन्यास अक्सर जटिल विषयों पर आधारित होते हैं और शैली श्रेणियों में सटीक रूप से फिट नहीं हो सकते हैं।

ऐतिहासिक रोमांस उपन्यास ( Historical Romance Novels ): ऐतिहासिक कल्पना और रोमांस के तत्वों को मिलाकर, ये उपन्यास विशिष्ट ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित रोमांटिक रिश्तों को पेश करते हैं।

कामुक उपन्यास ( Erotic Novels ): कामुक उपन्यास अक्सर कहानी के केंद्रीय भाग के रूप में स्पष्ट यौन विषयों और रिश्तों पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

पश्चिमी उपन्यास ( Western Novel ): अमेरिकी, पुराने पश्चिम में स्थापित, पश्चिमी उपन्यासों में अक्सर काउबॉय, डाकू और सीमांत जीवन को दिखाया जाता है।

हास्य उपन्यास ( Humorous Novels ): हास्य उपन्यासों का उद्देश्य हास्य, बुद्धि और विनोदी स्थितियों के माध्यम से पाठकों का मनोरंजन करना है।

राजनीतिक थ्रिलर ( Political Thriller Novels ): राजनीतिक थ्रिलर में केंद्रीय कथानक तत्वों के रूप में राजनीतिक साज़िश, जासूसी और सत्ता संघर्ष शामिल होते हैं।

मनोवैज्ञानिक थ्रिलर ( Psychological Thriller Novels ): मनोवैज्ञानिक थ्रिलर पात्रों के मनोवैज्ञानिक पहलुओं को उजागर करते हैं और अक्सर रहस्य, तनाव और मानव मानस की खोज को शामिल करते हैं।

जीवनी संबंधी उपन्यास ( Biographical Novels ): जीवनी संबंधी उपन्यास वास्तविक लोगों के जीवन का काल्पनिक विवरण होते हैं, जो उनके अनुभवों और व्यक्तित्वों के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं।

व्यंग्यात्मक उपन्यास ( Satirical Novel ): व्यंग्यात्मक उपन्यास सामाजिक या राजनीतिक मुद्दों की आलोचना और उपहास करने के लिए हास्य, व्यंग्य या उपहास का उपयोग करते हैं।

पत्र-पत्रिका उपन्यास ( Epistolary Novels ): पत्र-पत्रिका उपन्यास पत्रों, डायरी प्रविष्टियों, ईमेल या अन्य लिखित दस्तावेजों के रूप में प्रस्तुत किए जाते हैं।

डरावने उपन्यास ( Horror Novels ): डरावने उपन्यासों का उद्देश्य अलौकिक या मनोवैज्ञानिक तत्वों के माध्यम से पाठकों में भय और आतंक पैदा करना है।

उपन्यास और कहानी में क्या अंतर है? Key distinctions between a novel and a story in Hindi

कहानियों और उपन्यासों में बुनियादी अंतर हैं और ये दोनों मिलकर साहित्य को बहुत मजबूत और आकर्षक बनाते हैं। “उपन्यास (Novel)” और “कहानी (Story)” दो अलग-अलग प्रकार की लिखित कृतियाँ हैं और इनमें कई अंतर हैं जो इस प्रकार हैं।

एक उपन्यास आमतौर पर एक लंबी और गहरी कहानी होती है, जो कई हफ्तों या महीनों तक चल सकती है, जबकि एक कहानी छोटी होती है और कुछ पन्नों तक सीमित होती है। 

उपन्यासों में आमतौर पर बड़ी संरचना और जटिलता होती है, जिसमें कई पात्र, कथानक और उपकथानक होते हैं। कहानी आमतौर पर सरल संरचना का अनुसरण करती है और अधिक सीमित होती है।

उपन्यास आमतौर पर एक व्यापक विचारधारा, विचारों के विकास और विचारशीलता का परिचय देने का प्रयास करता है, जबकि कहानी आमतौर पर मनोरंजन या संवाद के माध्यम से एक संचार संदेश प्रस्तुत करती है।

उपन्यासों में अक्सर बड़ी संख्या में प्रमुख और महत्वपूर्ण पात्र होते हैं, जबकि कहानियों में पात्रों की संख्या सीमित होती है।

उपन्यास आमतौर पर अलग-अलग समय और स्थानों पर घटित होता है, जबकि कहानी आमतौर पर एक ही समय और स्थान पर घटित होती है।

उपन्यास आमतौर पर एक गहरी विचारधारा और संदेश का परिचय देता है, जबकि कहानी आमतौर पर एक विशेष संदेश को प्रमुखता से प्रस्तुत करती है।

उपन्यास आम तौर पर एक चरित्र के व्यक्तिगत अनुभव और विकास में गहराई से उतरता है, जबकि कहानी अक्सर व्यक्तिगत अनुभव के अधिक सार्थक प्रतिनिधित्व की ओर बढ़ती है।

संक्षेप में, उपन्यास और कहानियाँ दो अलग-अलग प्रकार की साहित्यिक कृतियाँ हैं, जो अपने लक्ष्य, संरचना और साहित्यिक प्रक्रिया में भिन्न हैं।

इन दोनों रचनाओं का महत्व उनके स्वरूप और उनकी विशिष्ट भूमिका में है। कहानियाँ आमतौर पर तुरंत पढ़ी जा सकती हैं और उनमें एक संदेश या पाठ होता है, जबकि उपन्यासों में गहन अध्ययन और विचार के लिए अधिक समय और प्रयास की आवश्यकता होती है। इन दोनों का साहित्यिक यात्रा में अपना-अपना विशिष्ट स्थान है और ये पाठकों को भिन्न-भिन्न प्रकार से प्रभावित कर सकते हैं।

कहानी और उपन्यास में अंतर (Story Vs Novel difference in Hindi)

कहानी और उपन्यास दोनों की दशा और दिशा अलग-अलग होती है, दोनों अलग-अलग ढंग से रचे जाते हैं। लेकिन दोनों का साझा मूल साहित्य (Literature) ही है। कहानी (Story) और उपन्यास (Novel) दोनों साहित्यिक रूप हैं, लेकिन इनमें कुछ महत्वपूर्ण अंतर होते हैं:

इन मतभेदों के बावजूद, कहानी और उपन्यास दोनों साहित्य के महत्वपूर्ण और सम्मानित रूप हैं, और वे विभिन्न प्रकार की कहानियों के माध्यम हैं जो पाठकों को सोचने और प्रतिबिंबित करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

भारतीय साहित्य में कहानियाँ और उपन्यास की भूमिका 

भारतीय साहित्य में कहानियाँ और उपन्यास दोनों ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और दोनों का अपना-अपना महत्व है। कहानियों और उपन्यासों का मिश्रण भारतीय साहित्य को एक विशेष सुंदरता और गहराई प्रदान करता है, जिसमें संवाद, साहित्यिक अलंकरण और विचारधारा के विविध पहलू मौजूद हैं। इन दोनों से साहित्यिक लोकप्रियता और भाषा का विकास होता है।

भारत अनेक भाषाओं, संस्कृतियों और परंपराओं वाला एक विविधतापूर्ण देश है। विभिन्न भारतीय भाषाओं की कहानियों और उपन्यासों ने विभिन्न क्षेत्रीय पहचानों और संभावना में गहरी पहुँच प्रदान करते हुए, इस विविधता का पता लगाया है।

भारत एक बहुभाषी देश है और इसका साहित्य इस भाषाई विविधता को दर्शाता है। विभिन्न भाषाओं की कहानियाँ और उपन्यास इन भाषाओं के प्रचार और संरक्षण में योगदान करते हैं, जिससे पाठकों को व्यापक भाषाई परंपराओं से जुड़ने का अवसर मिलता है।

कहानियों और उपन्यासों ने सांस्कृतिक अभिव्यक्ति, सामाजिक टिप्पणी और कलात्मक रचनात्मकता के लिए शक्तिशाली माध्यम के रूप में कार्य करके भारतीय साहित्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारतीय साहित्य में कहानियों और उपन्यासों की कुछ प्रमुख भूमिकाएँ इस प्रकार हैं:

कहानियाँ और उपन्यास अक्सर भारतीय संस्कृति, परंपराओं और पौराणिक कथाओं का सार दर्शाते हैं। उन्होंने सांस्कृतिक ज्ञान को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक संरक्षित और प्रसारित करने में मदद की है। उदाहरण के लिए, महाभारत ( Mahabharata ) और रामायण ( Ramayana ) जैसे महाकाव्य न केवल साहित्यिक उत्कृष्ट कृतियाँ हैं, बल्कि प्राचीन भारतीय मूल्यों और मान्यताओं के भंडार भी हैं।

भारतीय कहानियाँ और उपन्यास अक्सर गंभीर सामाजिक मुद्दों और चुनौतियों को संबोधित करते हैं। रवीन्द्रनाथ टैगोर, मुल्क राज आनंद और आरके नारायण जैसे प्रसिद्ध लेखकों ने अपने कार्यों का उपयोग सामाजिक मानदंडों, जाति भेदभाव और उपनिवेशवाद की आलोचना करने के लिए किया। अपने लेखन के माध्यम से, उनका उद्देश्य विचार को प्रेरित करना और सामाजिक परिवर्तन को प्रेरित करना था।

कई भारतीय उपन्यास और कहानियाँ आध्यात्मिक और दार्शनिक विषयों पर आधारित हैं, जो देश की समृद्ध दार्शनिक विरासत को दर्शाते हैं। हरमन हेस्से की “सिद्धार्थ ( Siddhartha )” और रॉबिन शर्मा की “द मॉन्क हू सोल्ड हिज फेरारी ( The Monk Who Sold His Ferrari )” जैसी रचनाएँ ऐसे उपन्यासों के उदाहरण हैं जो भारतीय आध्यात्मिक विचारों पर आधारित हैं।

सलमान रुश्दी, अरुंधति रॉय और चेतन भगत द्वारा लिखे गए कई भारतीय उपन्यासों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा हासिल की है और उनका कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है। उन्होंने भारतीय संस्कृति और साहित्य को वैश्विक दर्शकों से परिचित कराने में मदद की है।

भारतीय साहित्य में, विशेषकर हाल के दशकों में, कहानियों और उपन्यासों में नारीवादी आवाज़ों का उदय देखा गया है। इस्मत चुगताई, कमला दास और अरुंधति रॉय जैसे लेखकों ने अपने कार्यों के माध्यम से लिंग, पितृसत्ता और महिला सशक्तिकरण के मुद्दों को संबोधित किया है।

कहानियों और उपन्यासों सहित भारतीय साहित्य कलात्मक और साहित्यिक शिल्प कौशल का प्रदर्शन करता है। लेखक अक्सर ऐसी रचनाएँ बनाने के लिए समृद्ध कल्पना, प्रतीकवाद और काव्यात्मक भाषा का उपयोग करते हैं जो न केवल विचारोत्तेजक होती हैं बल्कि सौंदर्य की दृष्टि से भी मनभावन होती हैं।

कहानियों और उपन्यासों ने पाठकों की पीढ़ियों की कल्पना को शक्ति प्रदान की है। उन्होंने लेखकों, कलाकारों और फिल्म निर्माताओं के लिए प्रेरणा स्रोत के रूप में काम करते हुए रचनात्मकता और आलोचनात्मक सोच को प्रोत्साहित किया है।

संक्षेप में, कहानियों और उपन्यासों ने भारतीय साहित्य में बहुमुखी भूमिका निभाई है, वे समाज के दर्पण, सांस्कृतिक विरासत के वाहक और कलात्मक अभिव्यक्ति के लिए मंच के रूप में कार्य करते हैं। वे भारतीय साहित्यिक परिदृश्य में कहानी कहने और विविध विषयों की खोज के लिए एक महत्वपूर्ण माध्यम बने हुए हैं।

निष्कर्ष (Conclusion): Kahani aur upanyas mein kya antar hai?

कहानियां और उपन्यास प्राचीन काल से ही लिखे जाते रहे हैं। दोनों का अपना-अपना महत्व है और दोनों का एक दूसरे में अलग-अलग महत्व है। कहानी शब्द का अर्थ है “कुछ कहना, उसे मर्यादित शब्दों में व्यक्त करना”। उपन्यास का अर्थ किसी प्रमुख घटना, व्यक्ति, विषय वस्तु या स्थान के बारे में विस्तार से बताना है।

भारतीय साहित्य में कहानी और उपन्यास दोनों ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और इनका इतिहास बहुत प्राचीन है। इन दोनों का साहित्य में महान योगदान है और ये भारतीय साहित्य के अनूठे और दिलचस्प हिस्से हैं।

कहानियाँ और उपन्यास पाठकों को मनोरंजन के साथ-साथ चिंतन, मनन और समझने के लिए भी प्रोत्साहित करते हैं। ये कहानियाँ और कहानियाँ विभिन्न प्रकार की भावनाएँ, मनोदशाएँ और संदेश प्रस्तुत कर सकती हैं, जिससे पाठक के दृष्टिकोण का विस्तार होता है।

पाठकों को कथा साहित्य के माध्यम से गहरे और व्यापक विचारों को संप्रेषित करने का अवसर प्रदान किया जाता है, जबकि कहानियाँ अक्सर छोटे संदेश और प्रशासनिक परिवर्तन प्रस्तुत करती हैं।

साहित्य में कहानी और उपन्यास का योगदान महत्वपूर्ण है क्योंकि ये विभिन्न प्रकार की कहानियों और विचारों को साझा करने का माध्यम हैं और भारतीय साहित्य की समृद्धि और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

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कहानी और उपन्यास में अंतर || kahani aur upanyas mein antar

नमस्कार दोस्तों आज की इस पोस्ट में हम आपको बताएंगे कि उपन्यास किसे कहते हैं, कहानी किसे कहते हैं,और कहानी तथा उपन्यास में क्या-2 अंतर होते है। आपसे अनुरोध है कि इस पोस्ट को अंत तक अवश्य पढ़े ताकि आपको यह विषय पूरी तरीके से समझ में आ जाए और आप परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकें।

उपन्यास क्या है?

उपन्यास शब्द 'उप' उपसर्ग और 'न्यास' पद के योग से बना है। जिसका अर्थ है उप = समीप, न्याय रखना स्थापित रखना (निकट रखी हुई वस्तु)। अर्थात् वह वस्तु या कृति जिसको पढ़ कर पाठक को ऐसा लगे कि यह उसी की है, उसी के जीवन की कथा, उसी की भाषा में कही गई है। उपन्यास मानव जीवन की काल्पनिक कथा है।

कहानी क्या है?

कहानी गद्य साहित्य की वह सबसे अधिक रोचक एवं लोकप्रिय विधा है, जो जीवन के किसी विशेष पक्ष का मार्मिक, भावनात्मक और कलात्मक वर्णन करती है। ‌"हिंदी गद्य की वह विधा है जिसमें लेखक किसी घटना, पात्र अथवा समस्या का क्रमबद्ध ब्यौरा देता है, जिसे पढ़कर एक समन्वित प्रभाव उत्पन्न होता है, उसे कहानी कहते हैं।

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सभ्यता और संस्कृति में अंतर [civilization and culture in hindi]

Posted by P B Chaudhary | 💫 Key Differences

सभ्यता और संस्कृति दोनों व्यापक रूप से इस्तेमाल होने वाले शब्द है, हालांकि आम तौर पर हम इनके बीच के अंतर को लेकर अंजान रहते हैं और इन दोनों शब्दों को एक पर्याय के रूप में इस्तेमाल कर देते हैं;

इस लेख में हम संस्कृति और सभ्यता (civilization and culture) पर सरल एवं सहज चर्चा करेंगे एवं इसके मध्य कुछ मूल अंतरों को स्पष्ट करेंगे, तो लेख को अंत तक जरूर पढ़ें; और साथ ही रोज़ नए-नए Content के लिए हमारे Facebook Page को लाइक जरूर करें। 

सभ्यता और संस्कृति

सभ्यता और संस्कृति

सभ्यता और संस्कृति में अंतर क्या है? - [Key Difference] WonderHindi.Com

हम किस धर्म को फॉलो करते हैं, हम क्या भोजन करते हैं, हम क्या पहनते हैं, हम इसे कैसे पहनते हैं, हमारी भाषा, विवाह, संगीत, जो हम सही या गलत मानते हैं, हम कैसे मेज पर बैठते हैं, हम आगंतुकों का अभिवादन कैसे करते हैं, हम प्रियजनों के साथ कैसे व्यवहार करते हैं और अन्य लाखों चीज़ें जिससे हमारी पहचान जुड़ी है, संस्कृति है।

ऊपर के वाक्यों से आप समझ सकते हैं संस्कृति किस स्तर की चीज़ है। और सभ्यता की बात करें तो जितनी भी चीजों का हमने ऊपर जिक्र किया है और इसके अलावे अन्य लाखों चीज़ें जो हम करते हैं या हम उसमें संलग्न (engage) होते हैं; उससे हम प्रत्यक्ष रूप से एक समन्वित भौतिक उन्नति की प्राप्ति करते हैं, जिसे हम सभ्यता कहते हैं।

यूरोप, भारत, रूस और चीन आदि अपनी समृद्ध संस्कृतियों के लिए ही तो जाने जाते हैं, ख़ासकर के भारत जो कि अपनी सांस्कृतिक विविधता के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है, और पर्यटकों को निरंतर आकर्षित करते हैं। [आइये इसे विस्तार से समझते हैं।]

यह भी पढ़ें – लैंगिक भेदभाव : समस्या एवं समाधान

संस्कृति (Culture )

⚫ संस्कृति का संबंध संस्कार से है। और संस्कार का मतलब होता है भद्दापन अथवा त्रुटियों को दूर कर सही जीवन मूल्यों को स्थापित करना ताकि वे समाज के लिए उपयोगी बन सकें। 

⚫ दूसरे शब्दों में कहें तो जीवन को सुंदर बनाने के लिए मानव द्वारा किया जानेवाला बौद्धिक प्रयास संस्कृति है। संस्कृति किसी सभ्यता का मूल तत्व होता है।

जैसा कि हम जानते हैं संस्कृति के लिए इंग्लिश में “Culture” शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। शब्द “Culture” एक फ्रांसीसी शब्द “ colere ” से निकला है, जिसका अर्थ है पृथ्वी की ओर बढ़ना, या खेती करना और पोषण करना।

⚫ अगर हम इंसान को एक सभ्यता माने तो उसकी आत्मा संस्कृति है, अगर एक फूल को सभ्यता माने तो उसकी खुशबू संस्कृति है। कहने का अर्थ ये है कि मनुष्य की जीवन यात्रा को सरल बननेवाली आर्थिक, राजनीतिक, वैज्ञानिक और सामाजिक उपलब्धियाँ (जो कि प्रत्यक्ष भौतिक उपलब्धियां है) सभ्यता कहलाता है। वहीं मानव जीवन को अप्रत्यक्ष रूप से समृद्ध बनानेवाली आध्यात्मिक, नैतिक, बौद्धिक और मानसिक उपलब्धियां संस्कृति कहलाता है। 

⚫ कहा जाता है कि सभ्यता और संस्कृति दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू है यानी कि अगर सभ्यता है तो देर-सवेर संस्कृति विकसित हो ही जाती है। 

यह भी पढ़ें – भारत में आरक्षण [Reservation in India] [1/4]

संस्कृति का उदाहरण –

पाश्चात्य संस्कृति (Western culture) – इसका इस्तेमाल आमतौर पर यूरोपियन देशों की संस्कृति और उससे प्रभावित अन्य देशों की संस्कृति के लिए किया जाता है। जैसे कि अमेरिका, इस तरह की संस्कृति को उसके शारीरिक खुलापन, फास्ट फूड इत्यादि से जाना जाता है।

सभ्यता और संस्कृति

भारतीय संस्कृति (Indian culture) – इसका इस्तेमाल आमतौर पर भारतीय उप-महाद्वीप के देशों की संस्कृति के लिए किया जाता है। इसकी खासियत है अपनी समृद्ध परंपराओं को साथ लेकर आज की मान्यताओं एवं धारणाओं के साथ आगे बढना।

पूर्वी संस्कृति (Eastern culture) – पूर्वी संस्कृति आम तौर पर सुदूर पूर्व एशिया (चीन, जापान, वियतनाम, उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया सहित) और कुछ हद तक भारतीय उपमहाद्वीप के देशों के सामाजिक मानदंडों को संदर्भित करती है। पश्चिम की तरह, पूर्वी संस्कृति अपने प्रारंभिक विकास के दौरान धर्म और साथ ही कृषि कार्यों से काफी प्रभावित रही है। इसीलिए यहाँ की संस्कृति में कृषि एक मूल तत्व है।

अफ्रीकन संस्कृति (african culture) – भारतीय उप-महाद्वीप की संस्कृति की तरह ही अफ्रीकी संस्कृति न केवल राष्ट्रीय सीमाओं के बीच, बल्कि उनके भीतर भी भिन्न होती है। इस संस्कृति की प्रमुख विशेषताओं में से एक महाद्वीप के 54 देशों में बड़ी संख्या में जातीय समूह हैं। उदाहरण के लिए, अकेले नाइजीरिया में 300 से अधिक जनजातियां हैं। इसीलिए पूरे अफ्रीका के संस्कृति को एक ही साँचे में डालना बहुत मुश्किल है।

ब्रिटानिका के अनुसार, कुछ पारंपरिक उप-सहारा अफ्रीकी संस्कृतियों में तंजानिया और केन्या के मासाई, दक्षिण अफ्रीका के ज़ुलु और मध्य अफ्रीका के बटवा शामिल हैं। इन संस्कृतियों की परंपराएं बहुत अलग वातावरण में विकसित हुईं। उदाहरण के लिए, बटवा, जातीय समूहों में से एक है जो परंपरागत रूप से वर्षावन में वनवासी जीवन शैली जीते हैं। दूसरी ओर, मासाई, खुले क्षेत्र में भेड़ और बकरियां चराते हैं।

लैटिन संस्कृति (Latin Culture) – लैटिन अमेरिका को आमतौर पर मध्य अमेरिका, दक्षिण अमेरिका और मैक्सिको के उन हिस्सों के रूप में परिभाषित किया जाता है जहां स्पेनिश या पुर्तगाली प्रमुख भाषाएं हैं। ये सभी स्थान स्पेन या पुर्तगाल के उपनिवेश थे। इसीलिए यहाँ की संस्कृति में कैथीलिक परंपराओं के साथ-साथ वहाँ की स्थानीय संस्कृति और अफ्रीकियों द्वारा लाए गए संस्कृति का मिश्रण मिलता है।

मध्य पूर्वी संस्कृति (Middle Eastern culture) – मोटे तौर पर, मध्य पूर्व में अरब प्रायद्वीप के साथ-साथ पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र शामिल है। यह क्षेत्र यहूदी धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम का जन्मस्थान है और अरबी से हिब्रू से तुर्की से पश्तो तक दर्जनों भाषाओं का घर है। विषम मौसमी परिस्थिति और आम जीवन पर शरिया कानून के प्रभाव के कारण यहाँ की संस्कृति एक अलग ही रूप में उभर कर आती है।

यह भी पढ़ें – झंडे फहराने के सारे नियम-कानून

सभ्यता (Civilization )

⚫ सभ्य , सभा से विकसित हुआ है। प्राचीन काल में शिष्ट-जनों की या राजाओं की सभा हुआ करती थी जिसमें उस समय के उच्च वर्ग के लोग या फिर जिसे अभिजात वर्ग ( Aristocrat class ) कहते हैं वहीं शामिल हो पाते थे।

इन सब लोगों को और इनके अलावे भी जिस किसी व्यक्ति को इस सभा में शामिल होने के काबिल समझा जाता था उसे सभ्य कहा जाता था।

सभ्यता और संस्कृति

⚫ कालांतर में अच्छे विचार रखनेवाला और भले लोगों जैसा व्यवहार करने वाला व्यक्ति सभ्य कहा जाने लगा। इसी सभ्य से सभ्यता बना है।

⚫ इन्सानों के शीलवान और सज्जन होने की अवस्था ही सभ्यता है। जैसे हम अगर सिंधु घाटी सभ्यता की बात करें तो उस समय के लोगों के आचार, व्यवहार, जीवनशैली, सामाजिक ताना बाना, आर्थिक गतिविधियों को सामान्य रूप से हम उसकी सभ्यता कहते हैं। 

⚫ दूसरे शब्दों में कहें तो यह मानव समाज की बाहरी और भौतिक उन्नति है, जिसे मनुष्य ने आदिम युग से अब तक लौकिक, व्यावहारिक और सामाजिक क्षेत्र में प्राप्त की है।

⚫ सभ्यता में वे सभी उपलब्धियाँ सम्मिलित हैं, जिन्हे मनुष्य ने प्रकृति पर विजय पाने और जीवन निर्वाह को सुगम बनाने के लिए हासिल की है। जैसे नदी पर बांध बनाना, सड़कें बनाना, घर एवं नालियाँ बनाना, बेहतरीन कपड़े बनाना इत्यादि।

⚫ सभ्यता के लिए इंग्लिश में Civilization शब्द का इस्तेमाल किया जाता है और विकिपीडिया के अनुसार , एक सभ्यता एक जटिल समाज है जिसके पास शहरी विकास, सामाजिक स्तरीकरण, सरकार का एक रूप, और संचार की प्रतीकात्मक प्रणालियाँ होती है।

इसके अलावा सभ्यताएं केंद्रीकरण, पौधों और जानवरों की प्रजातियों (मनुष्यों सहित), श्रम की विशेषज्ञता, प्रगति की सांस्कृतिक रूप से निहित विचारधारा, स्मारकीय वास्तुकला, कराधान, खेती पर सामाजिक निर्भरता और विस्तारवाद जैसी अतिरिक्त विशेषताओं से भी जुड़ी हुई होती है।

एथेंस के एक्रोपोलिस को व्यापक रूप से पश्चिमी सभ्यता के पालने और लोकतंत्र के जन्मस्थान के रूप में जाना जाता है। उसी तरह से सिंधु-सरस्वती सभ्यता को भारतीय सभ्यता से जोड़कर देखा जाता है।

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| सभ्यता और संस्कृति में कुल मिलाकर अंतर

⚫ कुल मिलाकर देखें तो मनुष्य की जीवन यात्रा को सरल बननेवाली आर्थिक, राजनीतिक, वैज्ञानिक और सामाजिक उपलब्धियाँ सभ्यता है। यानी कि ये मनुष्य की प्रत्यक्ष और भौतिक उपलब्धियाँ है, वहीं मानव जीवन को अप्रत्यक्ष रूप से समृद्ध बनानेवाली आध्यात्मिक , नैतिक, बौद्धिक और मानसिक उपलब्धियां संस्कृति है। 

⚫ व्यक्तित्व को समृद्ध और परिष्कृत करनेवाला दर्शन, चिंतन, आकलन, साहित्य आदि का संबंध संस्कृति से है। इसीलिए जब हम जीवन मूल्यों, सिद्धांतों, आदर्शों, रीति-रिवाजों एवं प्रथाओं आदि की बात करते हैं तो इसको संस्कृति कहते है।

⚫ वहीं जब सभ्यता की बात करते हैं तो इसे एक वृहद पैमाने पर देखते हैं, ऐतिहासिक रूप से, “एक सभ्यता” को अक्सर एक बड़ी और “अधिक उन्नत” संस्कृति के रूप में समझा जाता है, जैसे कि  पश्चिमी सभ्यता , भारतीय सभ्यता, रोमन सभ्यता आदि।

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[उम्मीद है आप इस लेख के माध्यम से सभ्यता और संस्कृति को अच्छे से समझ पाये होंगे, हमारे अन्य लेखों को भी पढ़ें और इसे शेयर जरूर करें।]

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