Bhagat Singh Biography In Hindi – भगत सिंह एक महान स्वतंत्रता सेनानी व क्रन्तिकारी ब्यक्ति थे। इन्होने भारत के क्रन्तिकारी आंदोलन को एक नई दिशा दी, पंजाब में क्रांति को लेकर भगत सिंह ने नौजवान भारत सभा का गठन किया, हिंदुस्तान में गणतंत्र की स्थापना के लिए चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ का गठन करने में इनकी बहुत बड़ी भूमिका रही। लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह ने पुलिस अधिकारी सॉन्डर्स की हत्या की, उसके बाद बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर केन्द्रीय विधान सभा में बम फेका, यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख क्रांतिकारियों में से एक थे।
पूरा नाम – भगत सिंह जन्म – 27 सितम्बर, 1907, पंजाब के नवांशहर जिले के खटकर कलां गावं के एक सिख परिवार पिता – किशन सिंह माता – विद्यावती स्कूली शिक्षा – लाहौर के डी ऐ वी विद्यालय परिवार – भगत सिंह का परिवार एक आर्य-समाजी सिख परिवार था। आंदोलन में शामिल – असहयोग आंदोलन, साइमन कमीशन
विकिपीडिया पर देखें – भगत सिंह
भगत सिंह का जन्म 27 सितम्बर, 1907, पंजाब के नवांशहर जिले के खटकर कलां गावं के एक सिख परिवार में हुआ था, बचपन से ही इनके अंदर देश भकित कूट – कूट कर भरी थी जिसकी वजह से यह देश सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहा करते थे। इनके जन्म के बारे में कुछ और बातें भी कही जाती है जैसे की इनका जन्म लायलपुर ज़िले के बंगा में (अब पाकिस्तान में) हुआ था पिता का नाम किशन सिंह और माता का विद्यावती था। भगत सिंह विद्यावती की तीसरी संतान थे।
भगत सिंह 1916 में लाहौर के डी ऐ वी (DAV) विद्यालय में पढाई करते थे पढाई के दिनों में ही भगत सिंह जाने-पहचाने राजनेता जैसे लाला लाजपत राय और रास बिहारी बोस के साथ उठते बैठते थे यानि उनका संपर्क बड़े नेताओं से था। उसके बाद भगत सिंह ने बहुत सारे क्रन्तिकारी काम किये और भारत स्वतंत्र राष्ट्र बने इसके लिए उन्होंने देश के बड़े बड़े नेताओं और महान विचारों के साथ मिलकर देश को आजाद कराने में अपना योग्यदान दिया।
13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड होने के बाद से भगत सिंह के मन पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा, उनका मन इस भयंकर अमानवीय कृत को देखकर बहुत बिचलित हो गया और उन्होंने देश को स्वतंत्र कराने के बारे में मन बना लिया। इसके बाद वो चंद्रशेखर आज़ाद के साथ मिलकर क्रांतिकारी गतिविधियों और संगठनों पर काम करने लगे।
हलाकि अंग्रेजी हुकूमत ने उनको एक आतंकवादी घोषित किया था , पर भगत सिंह खुद आतंकवाद के आलोचक थे। उनका तत्कालीन लक्ष्य ब्रिटिश सरकार व साम्राज्य का विनाश करना था। अपनी एक अच्छी दूरदर्शिता और दृढ़ इरादे जैसी विशेषता के साथ भगत सिंह दूसरों से बहुत अलग देखे जाते थे। ऐसे समय में जब गाँधी जी ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लिए आजादी के एक विकल्प थे उस समय भगत सिंह एक दूसरे विकल्प के रूप में उभर कर सामने आये।
1921 में जब महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ असहयोग आंदोलन की शुरुआत की तब भगत सिंह ने अपनी पढाई छोड़कर उनके साथ आने का फैसला किया। और आंदोलन में सक्रिय हो गए। 1922 में गोरखपुर के चौरी-चौरा में हुई हिंसा के बाद असहयोग आंदोलन बंद करने पर वो बहुत उदास हो गए फिर लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित राष्ट्रीय विद्यालय में प्रवेश लिया। यह विधालय क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र था और यहाँ पर वह भगवती चरण वर्मा, सुखदेव और दूसरे क्रांतिकारियों के संपर्क में आये।
एक बार की बात है भगत सिंह की शादी की बात चल पड़ी थी इसकी सूचना जैसे ही भगत सिंह को मिली वो कानपूर भाग गए थे। वहीँ पर उनकी मुलाकात गणेश शंकर विद्यार्थी नामक क्रांतिकारी से हुई उनके संपर्क में आकर भगत सिंह ने क्रांति का प्रथम पाठ सीखा। उसके बाद उनको, उनकी दादी की बीमारी का पता चला जिसके बाद वो घर वापस आ गए, जहाँ उन्होंने अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को जारी रखा, फिर वो लाहौर चले गए और ‘नौजवान भारत सभा’ नाम से एक क्रांतिकारी संगठन बनाया।
वर्ष 1928 में इंग्लैंड से साइमन कमीशन नामक एक आयोग भारत दौरे पर आया। उनके कामों को लेकर भारत के लोगों में विरोध था जिसकी वजह से अंग्रेजों ने लाला लाजपत राय पर क्रूरता पूर्वक लाठी चार्ज किया जिससे वह बुरी तरह से घायल हो गए और बाद में उन्होंने दम तोड़ दिया। इसके बाद भगत सिंह ने क्या किया उसके बारे में आपने ने ऊपर की लाइन में जरूर पढ़ा होगा।
लाहौर मामले में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फाँसी की सज़ा सुनाई गई व बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास दिया गया। भगत सिंह को 23 March 1931 की शाम 7:00 सुखदेव और राजगुरू के साथ फाँसी पर लटका दिया गया। तीनों ने हँसते-हँसते देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया।
भगत सिंह बहुत ही अच्छे वक्ता, पाठक व लेखक भी थे। उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं के लिए लेख लिखा और उसका संपादन भी किया।
उनके द्वारा लिखी गयी मुख्य कृतियां कुछ इस प्रकार है ‘एक शहीद की जेल नोटबुक (संपादन: भूपेंद्र हूजा), सरदार भगत सिंह : पत्र और दस्तावेज (संकलन : वीरेंद्र संधू), भगत सिंह के संपूर्ण दस्तावेज (संपादक: चमन लाल)।
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भारत देश का एक ऐसा पुत्र जिसने अपनी पूरी जिंदगी सिर्फ इसलिए कुर्बान की क्योकि वह अपने देश के आने वाले भविष्य को एक आजाद दिन देना चाहता था| वह चाहता कि भारत में कोई भी बच्चा अग्रेजों की गुलामी में न बड़ा हो|
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भगत सिंह , महान सेनानियों में बहुत ही अहम भूमिका निभाने वाले भारतीय थे| इनका जन्म 28 सितम्बर 1907 को हुआ और भारत का यह वीर पुत्र 23 मार्च 1931 को हसते-हसते वीरगति को प्राप्त हुआ| भगत सिंह ने चन्द्रशेखर आजाद के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर भारत की स्वतंत्रता के लिए साहस के साथ ब्रिटिशो का मुक़ाबला किया। पहले लाहौर में सैंडर्स की हत्या और उसके बाद दिल्ली की संसद में बम-विस्फोट करके ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह को बुलन्दी प्रदान की। भगत सिंह असेम्बली में बम फेंककर भागे नहीं और इनको अंग्रेज सरकार ने इन्हें इनके ही साथ के दो और महान सेनानियों राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फाँसी पर लटका दिया गया।
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नमस्कार भगत सिंह की जीवनी हिंदी में Biography of Bhagat Singh in Hindi में आपका स्वागत हैं. आज का आर्टिकल शहीद भगतसिंह जी के जीवन परिचय जीवनी इतिहास उनके बारे में दिया गया हैं.
इस लेख में हम उनके जीवन स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका आदि को जानेगे.
जब भी स्वतंत्रता आंदोलन या क्रांति का नाम आता हैं, तो यक़ीनन सभी के जेहन में इंकलाब जिंदाबाद का नारा बुलंद करने वाले सरदार भगत सिंह की छवि सामने आ जाती हैं.
आजादी के पूर्व अंग्रेजी हुकुमत के अत्याचार को सीधी चुनौती देकर ब्रिटिश सम्राज्य के अंत की नीव रखने वाले भगत सिंह आज भी करोड़ो भारतीयों के आदर्श हीरो हैं.
देशभक्ति की कहानियों में गांधी, नेहरु और बोस जैसे नेताओं की जीवनी और स्वतंत्रता प्राप्ति में योगदान की कहानियां पढ़ने को मिलती हैं. भगत सिंह उनमे से ऐसे देशभक्त नौजवान देशभक्त थे, जिन्होंने मात्र 23 वर्ष की आयु में ही राष्ट्र की वेदी पर कुर्बान कर दिया था.
अपने वतन से प्रेम करने वाले देशभक्त हमेशा देश के लिए कुछ कर गुजरने की बात हमेशा अपने दिल में रखते है, उन्हें अपने इस कार्य में जान से भी इतना प्यार नही होता जितना कि वतन से.
भारत का स्वतंत्रता संग्राम इस तरह के वीरों की कहानियों से अटा पड़ा है, उन्ही में से एक ऐसें देशभक्त थे, सरदार भगत सिंह. युवा दिलों की धडकन शहीद भगत सिंह जैसे वीरों ने सोये पड़े दिलों में देशभक्ति जोश भरकर भारत को अंग्रेजों की गुलामी से स्वतंत्र करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. भगत सिंह की जीवनी में एक नजर उनके आदर्श व्यक्तित्व पर.
दो सौ वर्षों से स्थापित अंग्रेजी हुकुमत के अंत का बिगुल बजाने वाले सरदार भगत सिंह को आदर्श मानने वालों की संख्या आज करोड़ो में है.
भगत सिंह अपने समय के बेहद लोकप्रिय युवा देशभक्त थे, इनके बारे में किसी ने ठीक ही कहा है ” यह कहना अतिश्योक्ति नही होगी, कि भगत सिंह का नाम भारत में उतना ही प्रसिद्ध था, जितना कि गांधीजी का था.
देशभक्ति की मिसाल कहे जाने वाले भगत सिंह की कई पीढियां अंग्रेजो के खिलाफ थी. भगत सिंह जी का जन्म 27 सितम्बर 1907 पंजाब के बंगा नामक गाँव के एक सिख परिवार में हुआ था.
इनके पिता सरदार किशन सिंह चाचा अजित सिंह उस समय जेल में थे. सरदार भगत सिंह के जन्म के समय ही उनके चाचा अजित सिंह जेल से आजाद हुए थे. इस तरह इनके जन्म को भाग्यशाली मानकर सभी ने भक्त नाम से पुकारना शुरू कर दिया था.
इनके माता-पिता का नाम क्रमश विद्यावती, सरदार किशन सिंह सिन्धु था. भगत के परिवार में सात भाई और एक बहिन का भरा पूरा परिवार था. एक देशभक्त परिवार में जन्में भक्त के चाचा अजित सिंह और पिता किशन singh महान स्वतंत्रता सेनानी थे.
चाचा अजित सिंह जी ने सैयद हैदर रजा के साथ मिलकर अंग्रेजो के विरुद्ध एक सगठन खड़ा किया था. भक्त के चाचा पर 22 से अधिक पुलिस केस दर्ज थे. पुलिस से बचने के लिए उन्होंने कुछ वर्षो के लिए भारत छोड़ दिया था. इस प्रकार के देशभक्ति के माहौल में जन्मे और पले बड़े भगत सिंह जैसा देशभक्त इस देश को मिला.
शहीद भगत सिंह का जन्म 27 सितम्बर 1907 के दिन बिर्टिश कालीन भारत के पंजाब प्रान्त के लायलपुर जिले के बंगा नामक गाँव में हुआ था. उनका जन्म स्थल वर्तमान में पाकिस्तान का हिस्सा है.
इनका परिवार पीढ़ियों से अंग्रेजो के विरुद्ध जंग लड़ रहा था. इनके जन्म के समय पिता किशन सिंह, चाचा अजीत सिंह एवं स्वर्ण सिंह भी अंग्रेजो के कैद में थे.
यह एक संयोग ही था, कि जिस दिन शहीद भगत सिंह जन्में उसी दिन अर्जुनसिंह एवं अजीत सिंह को रिहा किया गया, परिवार में माना जाने लगा, कि भाग्यशाली बालक का जन्म हुआ है.
इनकी दादीजी ने ही इनका नाम भगत सिंह रखा. ऐसे देशभक्त परिवार में जन्में भगत का बचपन स्वतंत्रता एवं देशभक्तिपूर्ण किस्सों के बिच व्यतीत हुआ.
भगत सिंह की प्रारम्भिक शिक्षा बंगा गाँव के ही एक स्कूल में हुई, यही से इन्होने पांचवी तक की शिक्षा प्राप्त की, तत्पश्चात 1926-17 में आगे की पढाई के लिए इन्हें लाहौर के DAV स्कूल में दाखिला दिलाया गया, स्कूली शिक्षा के दुसरे ही साल 1919 में 13 अप्रैल के दिन रोलेट एक्ट के विरुद्ध भारतभर में विरोध हो रहे थे, पंजाब एवं लाहौर इसका केंद्र था.
यह भारतीय इतिहास का वही काला दिन था, जब जनरल डायर के हुक्म पर पंजाब के जलियावाला बाग़ में शांतिपूर्ण सभा कर रहे हजारों नागरिकों पर पुलिस की गोलिया चलवा दी, डायर के इस खुनी खेल में वहां मौजूद लोगों में से शायद ही कोई जिन्दा घर लौट आया.
इस नरसंहार की देश विदेश में बड़ी भर्त्सना की गई. जलियावाला बाग़ हत्याकांड की घटना ने ही शहीद भगतसिंह को अंग्रेजो का दुश्मन बना दिया, वे स्वयं को अमृतसर जाने से नही रोक पाए. वहां जाकर इन्होने उस मिट्टी को एक बोतल में भरा जिनमे हजारों भारतीयों का खून था, एवं प्रण लिया जब तक वो इस अत्याचार का बदला नही ले लेते शांत नही बैठेगे.
अंग्रेज सरकार द्वारा भारतीयों पर ढाए जा रहे जुल्मों से भगत सिंह बहुत परेशान हुए, उनका मन पढाई में नही लग रहा था. उसी समय महात्मा गांधी अंग्रेजो के विरुद्ध असहयोग आंदोलन शुरू कर रहे थे.
भगतसिंह ने भी अपनी पढाई छोड़ कर राष्ट्र सेवा का संकल्प लेकर आंदोलन में कूद पड़े.इसी समय पंजाब प्रान्त के प्रसिद्ध नेता लाला लाजपत राय ने लाहौर में नेशनल कॉलेज की स्थापना की एवं देश के नौजवानों को इसमे दाखिल होने का आग्रह किया तो भगतसिंह ने भी प्रवेश कर लिया.
नेशनल कॉलेज में कई देशभक्त क्रन्तिकारी युवा अध्ययन के लिए आया करते थे, जिनमे यशपाल, सुखदेव, तीर्थराम एवं झंडासिंह के साथ भगत सिंह की गहरी दोस्ती हो गई.
वर्ष 1928 में अंग्रेज अधिकार साइमन के नेतृत्व में साइमन कमिशन भारत आया, सबसे पहले लाहौर में आने के साथ ही महान नेता लाला लाजपत राय के नेतृत्व में साइमन गो बैक के नारे के साथ विरोध प्रदर्शन किया गया.
लाखों की तादाद में लोग इस विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए. लाहौर में पुलिस का जिम्मा सोल्डेर्स के पास थी, बड़ी संख्या में लोगों को आते देख पुलिस के हाथ पाँव फूलने लगे. कानूनी व्यवस्था के संकट महसूस करते हुए. उसने भीड़ पर लाठीचार्ज करने के आदेश दे दिए.
निर्दयी पुलिस के इस लाठीचार्ज के शिकार लाला लाजपत राय बने, उनके सिर पर जानबूझकर लाठियाँ बरसाई गई, परिणाम स्वरूप 17 नवम्बर 1928 को लाहौर के अस्पताल में लालाजी की मृत्यु हो गई.
भगत सिंह एवं उनके साथियो के लिए अब तक का यह सबसे बड़ा आघात था. इन्होने सोल्डेर्स से इसका बदला लेने की योजना बनाई. राजगुरु, सुखदेव एवं चन्द्रशेखर आजाद के साथ मिलकर भगत सिंह ने सोल्डर्स की गोली मारकर हत्या कर दी. इस घटना के बाद भगतसिंह एवं उनके साथी लोकप्रिय क्रन्तिकारी के रूप में सभी भारतीयों के प्रेरणा के केंद्र बन गये.
भगत सिंह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन के सदस्य थे. इस संगठन द्वारा देशभर में क्रन्तिकारी गतिविधियों के लिए योजना बनाने का कार्य किया जाता था. इस सभा ने पब्लिक सेफ्टी एवं डिस्प्यूट बिल के विरोध को जताने के लिए दिल्ली की केन्द्रीय असेम्बली में बम फेकने का निर्णय लिया.
तथा योजनानुसार इस कार्य को करने का जिम्मा भगतसिंह एवं बटुकेश्वर दत्त को दिया गया. योजना के अनुसार भगत सिंह एवं उनके साथियों ने असेम्बली में बम फेककर भागे, नही पुलिस के हाथो स्वयं की गिरफ्तारी करवा ली.
भगत सिंह सहित उनके सभी साथियो पर सेंशन कोर्ट में मुकदमा चलाया गया, 12 जून 1929 को इंडियन पैनल कोड एक्ट 307 के तहत विस्फोटक पदार्थ के उपयोग को लेकर बटुकेश्वर दत्त को कैद की सजा दी गई.
अंग्रेज सरकार इन क्रांतिकारियों को आजीवन कारावास देने के फैसले से खुश नही थी. इन्होने केस के नए सिरे से खोला एवं नए आरोपों के साथ सजा ए मौत की साजिश में फसाने की कोशिश शुरू की गई.
तीनों क्रांतिकारियों को फसाने के लिए कोर्ट में मामला फिर से दायर किया गया, कई माह तक कोर्ट की कार्यवाही चलती रही, 26 अगस्त 1930 को कोर्ट ने अपनी सुनवाई प्रक्रिया पूरी कर ली, कोर्ट द्वारा 7 अक्टूबर 1930 को 68 पेज के दस्तावेज के साथ अपना फैसला सुनाया गया.
जिसमे भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा का हुक्म दिया गया. कोर्ट के इस निर्णय के विरुद्ध भारतीयों द्वारा प्रिवी काउंसिल में भी याचिका लगवाई, गई मगर 10 जनवरी 1931 के दिन इसे खारिज कर दिया गया.
अतः सरकार द्वारा 24 मार्च 1931 को इन तीनों क्रांतिकारियों को फांसी देने का एलान कर दिया गया. जब यह खबर देशभर में फैली तो एक क्रांति का स्वरूप तैयार हो गया, अंग्रेज सरकार भारत में अपने पुराने अनुभवो से वाकिफ थी.
वो इस तरह के संकट की स्थति को फिर से पैदा करना नही चाहती थी. कानून की स्थति को खतरे की आशंका के चलते अंग्रेज सरकार ने नियत समय से एक दिन पूर्व 23 मार्च को शाम 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव को फांसी दे दी गई.
अंग्रेज सरकार भगत सिंह को फांसी देकर स्वयं को दिलासा दे रही थी, कि अब उनकी सारी मुश्किलों का समाधान हो गया है. परन्तु यह उनकी नादानी ही थी. शहीद भगत सिंह का बलिदान भारत में स्वतंत्रता का अध्याय शुरू कर अंग्रेजो के शासन के खात्मे का श्री गणेश कर चुके थे.
ऐसें देशभक्त कभी मरते नही, वे हमेशा अपने देशवासियों के प्रेरक बनकर युवाओं को राह दिखाते है. इन्कलाब जिंदाबाद भगत सिंह का नारा था, जो भारतीय क्रांति में हमेशा से युवाओं में जोश और जूनून पैदा कर रहा था.
कहते है कि जब भगत सिंह को फांसी देने का समय हो रहा था, तो पुलिस अधीक्षक उनकी कोठरी में गया, तो देखकर अचरज में पड़ गया, शहीद ऐ आजम उस समय लेनिन का जीवन चरित्र पढ़ रहे थे,
जब उस अधिकारी ने उनसे फांसी के समय हो जाने की बात कही तो वे हंसते हुए कहने लगे- एक क्रांतिकारी दूसरे क्रांतिकारी से मिलने जा रहा है. भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु फांसी के समय एक सुर में गा रहे थे.
दिल से निकलेगी न मरकर भी वतन की उल्फत मेरी मिट्टी से भी खुशबु ऐ वतन आएगी
अपने आदर्श नेता और मार्गदर्शक लाला लाजपत राय की मृत्यु संदेश ने भगत सिंह को पूरी तरह झंकझोर दिया. इस घटना से पहुचे आघात से पूरा देश व्यतीत था. अतः चन्द्रशेखर आजाद, बटुकेश्वर दत्त, राजगुरु और भगत सिंह ने लालाजी की मौत के जिम्मेदार स्कोट को गोली से मारने की योजना बनाई.
योजना के मुताबिक़ उन्होंने पुलिस चौकी से बाहर निकलते सोणडर्स और उनके साथियो की हत्या कर दी. इस तरह की हत्या के बाद उन्होंने हजारों पर्चे छपवाएं और रातों-रात जगह-जगह पर लगा दिए, कि लालाजी की मौत का बदला ले लिया गया हैं.
जब इस घटनाक्रम की सुचना पुलिस और अंग्रेज सरकार तक पहुची तो भगत सिंह और उनके साथियो के कारण उत्पन्न किसी बड़े खतरे से बचने के लिए पुरे शहर की पुलिस उनके पीछे लगा दी तथा घर-घर छापे मारे जाने लगे. मगर भगत सिंह पुलिस से बचने के लिए अपनी दाड़ी और बाल कटवाकर शहर से बाहर चले गये.
इस घटना के बाद भगत सिंह की ख्याति देशभर में एक उग्र क्रन्तिकारी के रूप में फ़ैल गई. सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन की बैठक में जन सुरक्षा बिल और डिस्प्यूट बिल का विरोध करने के लिए इन्होने असेम्बली में बम फेकने की योजना बनाई.
योजना के मुताबिक बम को खाली जगह पर फेका जाएगा, तथा इन्कलाब जिंदाबाद के नारे लगाते हुए बिना भागे पुलिस के हाथो गिरफ्तार हों जाएगे. अंग्रेजी न्याय व्यवस्था पर थोड़ा सा विशवास करने वाले भगत सिंह, राजगुरु और बटुकेश्वर दत्त ने योजना के अनुसार बम फेक कर गिरफ्तार हो गये.
12 जून 1929 को सेशन कोर्ट द्वारा सुनाए गये निर्णय के अनुसार बटुकेश्वर दत्त को उम्र कैद की सजा सुनाई गई. मगर अंग्रेज सरकार नही चाहती थी कि राजगुरु और भगत सिंह जेल से बाहर रहे. अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए नकली केस तैयार किया गया.
असेम्बली में बम फेके जाने के कारण कोर्ट ने तक़रीबन 1 साल तक चली केस की सुनवाई के बाद 7 अक्टूबर 1930 को निर्णय सुनाया गया. अपने अनुसार केस तैयार कर अंग्रेज सरकार भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा दिलावने में सफल हो गई.
हालांकि कोर्ट के इस निर्णय के विरुद्ध प्रिवी काउंसलिंग में अपील भी की गई, मगर उन्हें स्वीकार नही किया गया. 24 मार्च 1931 को तीनों स्वतंत्रता सेनानियों को फासी देने का निश्चय हुआ. भगत सिंह को फांसी की सजा दिलवाकर भी अंग्रेजी हुकूमत हार चुकी थी.
उन्हें यह भय था कि भगत सिंह को फांसी देने से पुरे देश में स्थति नियन्त्रण से बाहर हो सकती है. इसलिए सजा निर्धारण के एक दिन पूर्व 23 मार्च को शाम सात बजे ही भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को एक साथ फांसी दे दी गई.
इस तरह भले ही एक महान स्वतंत्रता सेनानी की जीवन यात्रा समाप्त हो गई, मगर उनकी सजा ने देश में चल रहे अंग्रेज विरोधी माहौल में आग में घी डालने का काम किया. अंग्रेजो में मन में मौत का खौफ भरने वाले हमारे आदर्श देशभक्त भगतसिंह को शत शत नमन.
इंकलाब जिंदाबाद
साम्राज्यवाद मुर्दाबाद
ये अत्याचारी सरकार लोगों की पुकार नही सुन सकती , इनके लिए बम धमाकों की आवश्यकता है.
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Bhagat Singh Biography in Hindi : भगत सिंह भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के एक बहादुर स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी थे। उनकी देशभक्ति की भावना न केवल ब्रिटिश शासन के खिलाफ बल्कि सांप्रदायिक तर्ज पर भारत के विभाजन के प्रति भी सीमित थी।
वह इसका पूर्वाभास कर सकते थे और ऐसे सम्मानित नेता को ढूंढना मुश्किल है। वह प्रतिभाशाली, परिपक्व था और हमेशा समाजवाद की ओर आकर्षित होता था। उन्होंने वास्तव में असहयोग आंदोलन में भाग लिया।
वह अराजकतावादी और मार्क्सवादी विचारधाराओं के प्रति आकर्षित थे जो उनके दिमाग में क्रांतिकारी विचार लाते हैं। वह एक उज्ज्वल छात्र था, एक पाठक था और हमेशा पाठ्येतर गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेता था।
उनका जन्म 28 सितंबर, 1907 को पंजाब, भारत (अब पाकिस्तान) में एक सिख परिवार में हुआ था। वह कई क्रांतिकारी संगठनों से जुड़े थे और देश में देशभक्ति की मिसाल कायम की।
उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन समर्पित करने के लिए तेरह साल की उम्र में स्कूल छोड़ दिया और 23 वर्ष की आयु में निधन हो गया। लोकप्रिय रूप से उन्हें शहीद-ए-आज़म भगत सिंह के नाम से जाना जाता है। उन्हें एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी की हत्या का दोषी पाया गया और 23 मार्च, 1931 को फांसी दे दी गई। यहाँ, हम भगत सिंह के बारे में कुछ प्रेरक और अज्ञात तथ्य प्रस्तुत कर रहे हैं।
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1. 12 साल की उम्र में जलियांवाला बाग की घटना के बाद, उन्होंने स्कूल बंक किया और एक दुखद जगह पर चले गए। वहां उन्होंने भारतीयों के खून से गीली मिट्टी की एक बोतल इकट्ठा की और रोज उसकी पूजा की। कॉलेज में, वह एक महान अभिनेता थे और ‘राणा प्रताप’ और ‘भारत-दुर्दशा’ जैसे नाटकों में कई भूमिकाएँ निभाईं।
2. भगत सिंह अपने बचपन में हमेशा बंदूकों के बारे में बात करते थे। वह खेतों में बंदूकें उगाना चाहता था, जिसके इस्तेमाल से वह अंग्रेजों से लड़ सकता था। जब वह 8 साल का था, तो खिलौनों या खेल के बारे में बात करने के बजाय वह हमेशा भारत से ब्रिटिश ड्राइविंग के बारे में बोलता है।
3. जब भगत सिंह के माता-पिता चाहते थे कि वे शादी कर लें, तो वह कानपुर भाग गए। उन्होंने अपने माता-पिता से कहा कि “यदि मैं औपनिवेशिक भारत में शादी करूंगा, जहां ब्रिटिश राज है, तो मेरी दुल्हन मेरी मृत्यु होगी। इसलिए, कोई आराम या सांसारिक इच्छा नहीं है जो मुझे अब लुभा सके ‘। इसके बाद, इसके बाद, वह। “हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन” में शामिल हो गए।
4. वे कम उम्र में लेनिन के नेतृत्व वाले समाजवाद और समाजवादी क्रांतियों से आकर्षित हुए और उनके बारे में पढ़ना शुरू कर दिया। भगत सिंह ने कहा at वे मुझे मार सकते हैं, लेकिन मेरे विचारों को नहीं। वे मेरे शरीर को कुचल सकते हैं, लेकिन मेरी आत्मा को कुचलने में सक्षम नहीं होंगे ‘।
5. भगत सिंह ने अंग्रेजों से कहा था कि “फांसी के बजाय उन्हें गोली मार देनी चाहिए” लेकिन अंग्रेजों ने इस पर विचार नहीं किया। उन्होंने अपने अंतिम पत्र में इसका उल्लेख किया है। भगत सिंह ने इस पत्र में लिखा, “चूंकि मुझे युद्ध के दौरान गिरफ्तार किया गया था। इसलिए, मुझे फांसी की सजा नहीं दी जा सकती। मुझे तोप के मुंह में डाल दिया जाए।” यह उनकी बहादुरी और राष्ट्र के लिए भावना को दर्शाता है।
6. साथियों के साथ, भगत सिंह ने सेंट्रल असेंबली, दिल्ली में बम फेंके। वे किसी को घायल नहीं करना चाहते। बम निम्न श्रेणी के विस्फोटक से बने थे।
7. भगत सिंह ने 116 दिनों तक जेल में उपवास किया था। आश्चर्य की बात है कि इस दौरान वह अपना सारा काम नियमित रूप से करते थे, जैसे गाना, किताबें पढ़ना, हर दिन कोर्ट जाना, आदि।
8. भगत सिंह ने एक शक्तिशाली नारा ‘इंकलाब जिंदाबाद’ गढ़ा, जो भारत के सशस्त्र संघर्ष का नारा बन गया।
9. उन्हें 23 मार्च, 1931 को आधिकारिक समय से एक घंटे पहले फांसी दी गई थी। ऐसा कहा जाता है कि जब भगत सिंह को फांसी दी गई थी, तब वे मुस्कुरा रहे थे। वास्तव में, यह “ब्रिटिश साम्राज्यवाद को कम करने” के लिए एक निडरता के साथ किया गया था। कहा जाता है कि भगत सिंह की फांसी की निगरानी के लिए कोई भी मजिस्ट्रेट तैयार नहीं था। मूल मृत्यु वारंट की समय सीमा समाप्त होने के बाद, एक मानद न्यायाधीश ने निष्पादन आदेश पर हस्ताक्षर किए और उसका निरीक्षण किया।
10. जब उनकी मां जेल में उनसे मिलने आई थीं, तो भगत सिंह जोर-जोर से हंस रहे थे। यह देखकर जेल अधिकारी हैरान रह गए कि यह व्यक्ति कैसा है जो मौत के इतने करीब होने के बावजूद खुलकर हंस रहा है।
उनकी विरासत कई लोगों के दिलों में बनी रहेगी। ये अज्ञात तथ्य निश्चित रूप से गहरा सम्मान देंगे और उनके जीवन और उसकी क्रांति के बारे में भी विचार देंगे।
दोस्तों आशा करता हूँ कि आप को भगत सिंह की जीवनी इस पोस्ट से अवश्य लाभ हुआ होगा। अगर आपको ये पोस्ट पसंद आयी है तो इसे आप अपने सभी Friends के साथ शेयर जरूर करें। हमें Comment करके ज़रूर बताये। इस पोस्ट को लास्ट तक पड़ने के लिए दिल से आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद।
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About Bhagat Singh: सरदार भगत सिंह भारत के महान व युवा स्वतंत्रता सेनानीयो मे से एक है, इनका जन्म २8 सितम्बर 1907 ई0 को पंजाब प्रांत के लायलपुर जिले के बंगा नामक गांव में हुआ था जो की अब पाकिस्तान मे है।
सरदार भगत सिंंह के माता का नाम विद्यावती और पिता का नाम सरदार किशन सिंह है। इनका जन्म एक सिक्ख परिवार में हुआ था। इसलिये इनको सरदार नाम से सम्बोधन किया जाता है। आइये सरदार भगद सिंह के जीवनी ( Sardar Bhagat Singh Jivani ) को विस्तार से जानते है।
कहते हैं पूत के पांव पालने में ही दिखाई पड़ जाते हैं। भगतसिंह के खेल भी बड़े अनोखे थे। पांच साल की उम्र में वह अपने साथियों को दो टोली में बांट देता था, और वे परस्पर एक दूसरे पर आक्रमण करके युद्ध का अभ्यास किया करते। भगतसिंह के हर कार्य में उसके वीर धीर और निर्भीक होने का अभ्यास मिलता था।
भगत सिंह के पिता तीन भाई थे, सरदार किशन सिंह, भगत सिंह के पिता, सरदार स्वर्ण सिंह, भगत सिंह के चाचा, और सरदार अजीत सिंह, उनके दोनों चाचा अंग्रेजों के खिलाफ होने वाले क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने के कारण जेल में बंद थे। पर उनके जन्म के दिन उनके दोनों चाचा जेल से रिहा कर दिए गए। जिससे परिवार बहुत खुश था। भगत सिंह की दादी बहुत खुश थी इसलिये वो अपने नाती यानी भगत सिंह को भाग्यवान कहकर बुलाती थी बाद में उन्हें भगत सिंह कहा जाने लगा।।
भगतसिंह एक सच्चे देशभक्त थे। उन्होंने देश की आजादी के लिए अंग्रेजों से संघर्ष किया।उस समय देश में व्याप्त साम्राज्यवाद एवं पूंजीवाद का भी कड़ा विरोध किया।वह हमेशा दलितों एवं शोषित लोगों के पक्ष में लड़ते रहे और अंग्रेजों के अन्याय का विरोध करते रहे ।
भगत सिंह जी का कहना था कि हमें सिर्फ अंग्रेजों के खिलाफ नहीं लडना है बल्कि अंग्रेजी प्रवृत्ति के खिलाफ भी लड़ना है, चाहें ओ हमारे अपने देशवासी ही क्यों ना हो।आज भी उनके शब्द उतने ही उपयोगी है, जितना ग़ुलाम भारत के समय था।
अंग्रेजों द्वारा उन्हें फांसी की सज़ा सुनाए जाने पर भी वे मुस्कुराए थे। उनका कहना था कि मेरी कुर्बानी देशवासियों में एक सैलाब लायेंगी जिससे हमारे जैसे हजारों भगतसिंह माई के लाल इस धरती पर आयेंगे।
भगत सिंह ने अपना सम्पूर्ण जीवन एक क्रान्तिकारी के रुप मे जिया, जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड की घटना का उनके जीवन पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा था। १९१९ की ये घटना उन्हें शिक्षा से क्रान्तिकारी जीवन की ओर बढ़ने में मजबूर कर दी।
बारह वर्ष की उम्र में वे कई किलोमीटर पैदल चलकर जलियांवाला बाग पहुंचे, वहां हिन्दुस्तानियों के खून से सनी मिट्टी को बोतल में भरकर ले आएं, और पूजा के स्थान पर रखकर पूजते थे, और मन ही मन इसका बदला लेने के लिए खुद को तैयार करने लगे।
किसान विरोधी विधेयक को केन्द्र सभा में पारित न होने देने के लिए भगत सिंह ने चलती हुई सभा में खाली जगह पर बम फेंक दिया था, और अपने आप को पुलिस के हवाले कर दिया था इस प्रकार वे जेल गये।
यदि बहरों को सुनाना हैं तो आवाज तेज करनी होगी, जब हमने बम फेका था तब हमारा इरादा किसी को जान से मारने का नहीं था, हमने ब्रिटिश सरकार पर बम फेका था क्योकी ब्रिटिश सरकार को भारत छोड़ना होगा और उसे स्वतंत्र करना होगा। भगत सिंह कोट्स
भगत सिंह का जेल में जीवन – जेल में रहने के दौरान भगत सिंह ने भारतीय कैदियों पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई।जेल में रहने वाले अन्य भारतीय कैदियों ने भी इनका साथ दिया।
इसी बीच जेल की अमानवीय व्यवस्था देखकर वे भूख हड़ताल पर बैठ गए। इस भूख हड़ताल का समर्थन करने के लिए सभी भारतीय कैदियों ने और जेल के बाहर भारत के लोगों ने भी भोजन करना छोड़ दिया। इस ऐतिहासिक भूख हड़ताल के आगे अंग्रेजी सरकार झुक गई। और उनकी सभी शर्ते मान ली।
आपको दू भगत सिंह नास्तिक थे, अर्थात वो ईश्वर को नही मानते थे। अगर आप इसका कारण जानना चाहते है तो आपको भगत सिंह द्वारा लिखी मै नास्तिक क्यू हू? पुस्तक को पढना होगा, जिसे भगत सिंह ने जेल मे रहते हुये लिखा था।
मैं नास्तिक क्यों हूं? यह लेख भगत सिंह जेल में लिखे थे, जो लाहौर से प्रकाशित समाचार पत्र द पीपल में २७ सितम्बर १९३१ के अंक में प्रकाशित हुई। भगतसिंह ने अपने इस लेख में ईश्वर के बारे में अनेक तर्क किए हैं इसमे सामाजिक परिस्थितियां का भी विश्लेषण किया गया है।
भगतसिंह के जन्म दिवस पर मतभेद हैं।क ई पुस्तकों में इनका जन्म २८ सितम्बर और क ई में २८ अक्टूबर भी दिया गया है वैसे पुरानी पुस्तकों व पत्रिकाओं में भगतसिंह का जन्म आशिवनी शुक्ल तेरस संवत १९६४ को शनिवार के दिन सुबह ६ बजे बताया गया है।इस तिथि को कुछ विद्वानों ने २७ सितम्बर १९०७ तो कुछ ने २८ सितम्बर बताया है।
भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी सरदार भगत सिंह जी २३ वर्ष की उम्र में देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दें दी। भगत सिंह सभी देशवासियों के दिलों में आजादी का जुनून भरने वाले सच्चे देशभक्त थे। उन्होंने हर भारतीय के दिलों में देश प्रेम की भावना विकसित की शहीद भगत सिंह (shahid bhagat singh) का नाम भारत के प्रमुख क्रान्तिकारियों एवं देशभक्तों में सम्मान के साथ लिया जाता है।
मेरी गर्मी के कारण राख का एक-एक कण चलायमान हैं मैं ऐसा पागल हूँ जो जेल में भी स्वतंत्र हैं। Bhagat Singh Quotes
क्रांति में सदैव संघर्ष हो यह आवश्यक नहीं, और ना ही यह बम और पिस्तौल की राह हैं। Bhagat Singh Quotes
कोई व्यक्ति तब ही कुछ करता हैं जब वह अपने कार्य के परिणाम को लेकर आश्वस्त होता हैं जैसे हम ब्रिटिश सरकार के असेम्बली में बम फेकने पर थे Bhagat Singh Quotes
महापुरुषो के सुविचार
कठोरता और आजाद सोच ये दो क्रातिकारी होने के गुण हैं Bhagat Singh Quotes
मैं एक इंसान हूँ और जो भी चीज़े इंसानियत पर प्रभाव डालती हैं मुझे उनसे फर्क पड़ता हैं। Bhagat Singh Quotes
जीवन अपने दम पर चलता हैं दूसरों का कन्धा अंतिम यात्रा में ही साथ देता हैं Bhagat Singh Quotes
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नमस्कार मित्रो आज हम Bhagat Singh Biography In Hindi बताएँगे। अपनी मातृभूमि को स्वतंत्रता दिलाने के लिए फांसी पर चढ़ने वाले भगत सिंह का जीवन परिचय हिंदी में बताने वाले है।
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Bhagat singh ka parichay In Hindi में बतादे की भगत सिंह का जन्म कहां हुआ था ? तो लायलपुर जिले के बंगा गांव में हुआ था। bhagat singh birth date 28 सितंबर 1907 है। और उन महान विभूति भगत सिंह जयंती भी उसी दिन मनाई जाती है। भगत सिंह का परिवार जहा रहता था। वह स्थान भारत पाकिस्तान के बटवारे में अब पाकिस्तान में है। लेकिन उनका मूल गांव खटकड़ कला है। वह गांव अभी भी पंजाब राज्य में है। जब भगत सिंह 5 साल के थे तब उनके बचपन में उनके खेल कूद भी अनोखे थे।
वह अपने दोस्तो के साथ साथ खेलते थे। तब वे दो टोलिया बनाते थे। और सामने सामने युद्ध करते थे ऐसे खेल वो बचपन में खेला करते थे। उनके पिता सरदार किशन सिंह एक किसान थे। और माता का नाम विद्यावती कौर था। जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड होने के पश्यात उनके जीवन में बहुत बदलाव आया उन्होंने तत्काल लाहौर से अपनी पढाई छोड़ के भारत देश की स्वतंत्रता के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना करदी।
Information about bhagat singh in hindi देखे तो 1922 में चौरी-चौरा कांड में महात्मा गाँधी ने किसानो को साथ नहीं देने के कारन भगत सिंह को बहुत ही दुःख था। उसके पश्यात अहिंसा से उनका भरोसा टूट चूका था। और सशस्त्र क्रांति का रास्ता अपना लिया था। भले गाँधी एसा कहते थे। की उनके अहिंसा से आजादी मिली तो हम हम नहीं मानते उनसे आजादी नहीं मिली थी। आजादी मिलने का मुख्य कारन अंग्रेजो की खुलेआम क़त्ल मुख्य कारन था। उन्होंने तय करलिया की सशस्त्र क्रांति ही स्वतंत्रता दिलाने में कामियाब होने वाली है।
गांघीजी से अलग होने के बाद वह चन्द्रशेखर आजाद के साथ मिलके उन्होंने गदर दल के नेतृत्व में कार्य करना शुरू किया था। काकोरी कांड ( kakori kand )मे 4 क्रांतिकारियों को सजा – ये – मौत सुनाई गयी थी और अन्य 13 लोगो को कारावास की सजा हुई थी। इस को सुनते ही भगत सिंह दुखी हुए की कोई सीमाही नहीं थी उनके दुःख की। और हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन से जुड़के भारत के नौजवानो को तैयार करके देश के लिए समर्पित हो जाना था।
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राजगुरु के साथ हो करके 17 दिसम्बर 1928 के दिन लाहौर में अंग्रेज पुलिस अधीक्षक जे० पी० सांडर्स को मारडाला था। उसमे चन्द्रशेखर आज़ाद ने उनकी बहुत मदद की थी। उनके साथी स्वतन्त्र सेनानी बटुकेश्वर दत्त से मिल के ब्रिटिश सरकार की सेण्ट्रल एसेम्बली के सभागार संसद भवन में पर्चे और बम फेंके थे। जिनसे अंग्रेज़ सरकार की नींदे हराम हो चुकी थी। वह काम उन्होंने 8 अप्रैल 1921 के दिन किया और अपनी गिरफ्तारी करवाई थी ताकि अंग्रेजो को पता चल सके।
भगत सिंह ने अपनी पार्टी से मिलके 30 अक्टूबर 1928 के दिन सइमन कमीशन का जमकर विरोध किया। उसमे लाला लाजपत राय भी मौजूद थे। वह सब “साइमन वापस जाओ” जैसे भगत सिंह के नारे लगाया करते थे। लाहौर रेलवे स्टेशन पर लाठी चार्ज किया और उसमे लाला जी बहुत घायल हुए। और म्रत्यु हो गई। उनकी मौत से उनकी पार्टी और भगत सिंह ने अंग्रेजों से मौत का बदला लेने के लिए ज़िम्मेदार ऑफीसर स्कॉट को मारदेने का तख्ता तैयार कर लिया था।
लेकिन गलती से भगत सिंह ने असिस्टेंट पुलिस सौन्देर्स को मार गिराया था। खुदको बचाने के लिए भगत सिंह लाहौर से भाग निकले थे। फिरभी ब्रिटिश सरकार ने उन्हें पकड़ ने के लिए चारोओर जाल सा बिछा रखा था।भगत सिंह खुद को बचाने के लिए बाल व दाढ़ी कटवा दी। जोकि वह अपनी धार्मिकता केविरुद्ध था। लेकिन भगत सिंह को देश देश की आजादी के अलावा कुछ दिखाई ही नहीं देता था।
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भारत माता के वीर पुत्र भगत सिंह पर कई कविताओं का निर्माण हुआ है। जो आज भी लोगो की जुबा पर अक्सर सुनाई देती है। उसमे मुख्य इस मुताबिक है।
(1)डरे न कुछ भी जहां की चला चली से हम। गिरा के भागे न बम भी असेंबली से हम।
(2)सख़तियों से बाज़ आ ओ आकिमे बेदादगर, दर्दे-दिल इस तरह दर्दे-ला-दवा हो जाएगा ।
(3)बम चख़ है अपनी शाहे रईयत पनाह से इतनी सी बात पर कि ‘उधर कल इधर है आज’
Bhagat singh rajguru sukhdev fasi केश चलाया गया था। और इनके नतीजे पर कोर्ट ने तीनो को फांसी की सजा सुनाई थी। फिरभी Bhagat Singh Slogan लगा रहे थे। की इंकलाब जिंदाबाद मौत सामने होते हुए भी उनकी वीरता में कोई कमी नहीं दिखाई दी थी। जेल में उन्हें बहुत तकलीफो का सामना करना पड़ा था। उस वक्त भारतीय कैदियों के साथ बहुत ख़राब व्यवहार किया जाते थे। ऐसा कहा जाता था की उन्होंने जेल में रहते हुए भी आंदोलन शुरू किया था।अंग्रेज अधिकारियो के जुर्म को रोकने और अपनी मांग पूरी कराने के लिए। कई समय तक खाना तो ठीक पानी तक नही पिया करते थे। अंग्रेज अफसर अक्सर उन्हें ज्यादा मारपीट किया करते थे।
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भगत सिंह की मृत्यु कब हुई थी ? उन्हें बहुत यातनाये दी जाती थी। फिरभी उन्होंने कभी हार नहीं मानी। अपने अंतिम दिनों यानि 1930 की साल मे भगत सिंह पुस्तकें लिखी उसका नाम Why I Am Atheist था। Bhagat singh fasi date 24 मार्च 1931 को फिक्स हुई थी। लेकिन B hagat singh death date 23 मार्च 1931 के मध्यरात्रि में उन्हें फांसी दी गयी थी। और उसका मुख्य कारन समग्र भारत में उनकी रिहाई के लिए हो रहे प्रदर्शन थे। उनसे ब्रिटिश सरकार इतना डरती थी। की उनके समय से पहले उन्हें फांसी दी और अंतिम संस्कार भी करवा दिये गए थे।
बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्रीज़ ने शहीद वीर भगत सिंह पर बहुत फिल्मो का निर्माण किया है। उसमे शहीद (1965), शहीद-ए-आज़म (2002), शहीद (2002), 23 मार्च 1931, और The Legend of Bhagat Singh (2002) है।
1 .bhagat sinh ka janm kahan hua tha ?
भगत सिंह का जन्म लयालपुर, बंगा, पंजाब (वर्तमान में पाकिस्तान) हुआ था।
2 .bhagat sinh ko phaansi kyon di gai ?
लाहौर षड़यंत्र के लिए भगत सिंह को फांसी दी गई थी।
3 .bhagat singh kaun the ?
भगत सिंह भारतीय क्रांतिकारी यानि स्वतंत्रता सेनानी थे।
4 .Bhagat singh ko fansi kab di gai thi ?
भगत सिंह की मृत्यु 23 मार्च 1931 के दिन मध्यरात्रि में हुई थी।
5 .भगत सिंह जयंती कब है ?
भगत सिंह जयंती 28 सितंबर के दिन मनाई जाती है।
6 .Bhagat singh ka janm kahan hua tha ?
भगत सिंह का जन्म स्थान लयालपुर, बंगा, पंजाब है।
7 .भगत सिंह का जन्म कब हुआ था ?
28 सितंबर 1907 को भगत सिंह का जन्म हुआ था।
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आपको मेरा Bhagat Singh Biography In Hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा।
लेख के जरिये Bhagat singh siblings और Bhagat Singh Quotes In Hindi से सबंधीत सम्पूर्ण जानकारी दी है।
अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है।
हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।
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भगत सिंह को भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन के सबसे प्रभावशाली क्रांतिकारियों में से एक माना जाता है. वह कई क्रांतिकारी संगठनों के साथ जुड़ गए और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. महज 23 साल की उम्र में शहीद हो गए. उनके निष्पादन के बाद, 23 मार्च, 1931 को, भगत सिंह के समर्थकों और अनुयायियों ने उन्हें माना जाता हैं.
नाम (Name) | भगत सिंह |
जन्म दिनांक (Date of birth) | 28 सितंबर 1907 |
जन्म स्थान (Birth Place) | ग्राम बंगा, तहसील जरनवाला, जिला लायलपुर, पंजाब |
पिता का नाम (Father Name) | किशन सिंह |
माता का नाम (Mother Name) | विद्यावती कौर |
शिक्षा (Education) | डी.ए.वी. हाई स्कूल, लाहौर, नेशनल कॉलेज, लाहौर |
संगठन (Organization) | नौजवान भारत सभा, हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन, कीर्ति किसान पार्टी, क्रांति दल |
राजनीतिक विचारधारा (Political Mindset) | समाजवाद, राष्ट्रवाद |
मृत्यु (Death) | 23 मार्च 1931 |
मृत्यु का स्थान (Death Place) | लाहौर |
स्मारक (Memorial) | द नेशनल शहीद मेमोरियल, हुसैनवाला, पंजाब |
भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 को लायलपुर जिले (अब पाकिस्तान) के बंगा में किशन सिंह और विद्यापति के यहाँ हुआ था. उनके जन्म के समय उनके पिता किशन सिंह, चाचा अजीत और स्वर्ण सिंह 1906 में लागू किए गए औपनिवेशीकरण विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन के लिए जेल में थे. उनके चाचा सरदार अजीत सिंह, आंदोलन के नेता थे और उन्होंने भारतीय देशभक्त संघ की स्थापना की. चेनाब नहर कॉलोनी बिल के खिलाफ किसानों को संगठित करने में उनके मित्र सैयद हैदर रज़ा ने उनका अच्छा साथ दिया. अजीत सिंह के खिलाफ 22 मामले दर्ज थे और उन्हें ईरान भागने के लिए मजबूर किया गया था. इसके अलावा उनका परिवार ग़दर पार्टी का समर्थक था और घर में राजनीतिक रूप से जागरूक माहौल ने युवा भगत सिंह के दिल में देशभक्ति की भावना पैदा करने में मदद की.
भगत सिंह ने अपने गाँव के स्कूल में पाँचवीं कक्षा तक पढ़ाई की. जिसके बाद उनके पिता किशन सिंह ने उन्हें लाहौर के दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल में दाखिला दिलाया. बहुत कम उम्र में, भगत सिंह ने महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए असहयोग आंदोलन का अनुसरण किया. भगत सिंह ने खुले तौर पर अंग्रेजों को ललकारा था और सरकार द्वारा प्रायोजित पुस्तकों को जलाकर गांधी की इच्छाओं का पालन किया था.
यहां तक कि उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज में दाखिला लेने के लिए स्कूल छोड़ दिया.उनके किशोर दिनों के दौरान दो घटनाओं ने उनके मजबूत देशभक्ति के दृष्टिकोण को आकार दिया – 1919 में जलियांवाला बाग मसकरे और 1921 में ननकाना साहिब में निहत्थे अकाली प्रदर्शनकारियों की हत्या. उनका परिवार स्वराज प्राप्त करने के लिए अहिंसक दृष्टिकोण की गांधीवादी विचारधारा में विश्वास करता था. भगत सिंह ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और असहयोग आंदोलन के पीछे के कारणों का भी समर्थन किया.
चौरी चौरा घटना के बाद, गांधी ने असहयोग आंदोलन को वापस लेने का आह्वान किया. फैसले से नाखुश भगत सिंह ने गांधी की अहिंसक कार्रवाई से खुद को अलग कर लिया और युवा क्रांतिकारी आंदोलन में शामिल हो गए. इस प्रकार ब्रिटिश राज के खिलाफ हिंसक विद्रोह के सबसे प्रमुख वकील के रूप में उनकी यात्रा शुरू हुई.
वे बी.ए. की परीक्षा में थे. जब उनके माता-पिता ने उसकी शादी करने की योजना बनाई. उन्होंने सुझाव को अस्वीकार कर दिया और कहा कि, “यदि उनकी शादी गुलाम-भारत में होने वाली थी, तो मेरी दुल्हन की मृत्यु हो जाएगी.”मार्च 1925 में यूरोपीय राष्ट्रवादी आंदोलनों से प्रेरित होकर भोज सिंह के साथ, इसके सचिव के रूप में नौजवान भारत सभा का गठन किया गया था.
भगत सिंह एक कट्टरपंथी समूह हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एच.आर.ए.) में भी शामिल हुए. जिसे बाद में उन्होंने साथी क्रांतिकारियों चंद्रशेखर आज़ाद और सुखदेव के साथ हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एच.एस.आर.ए.) के रूप में फिर से शुरू किया. शादी करने के लिए मजबूर नहीं करने के आश्वासन मिलने के बाद वह अपने माता-पिता के घर लाहौर लौट आए.
उन्होंने कीर्ति किसान पार्टी के सदस्यों के साथ संपर्क स्थापित किया और अपनी पत्रिका “कीर्ति” में नियमित रूप से योगदान देना शुरू कर दिया. एक छात्र के रूप में भगत सिंह एक उत्साही पाठक थे और वे यूरोपीय राष्ट्रवादी आंदोलनों के बारे में पढ़ते थे. फ्रेडरिक एंगेल्स और कार्ल मार्क्स के लेखन से प्रेरित होकर, उनकी राजनीतिक विचारधाराओं ने आकार लिया और उनका झुकाव समाजवादी दृष्टिकोण की ओर हो गया.
प्रारंभ में भगत सिंह की गतिविधियाँ ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध संक्षिप्त लेख लिखने, सरकार को उखाड़ फेंकने के उद्देश्य से एक हिंसक विद्रोह के सिद्धांतों को रेखांकित करने, मुद्रित करने और वितरित करने तक सीमित थीं. युवाओं पर उनके प्रभाव और अकाली आंदोलन के साथ उनके सहयोग को देखते हुए, वह सरकार के लिए एक रुचि के व्यक्ति बन गए. पुलिस ने उन्हें 1926 में लाहौर में हुए बमबारी मामले में गिरफ्तार किया. उन्हें 5 महीने बाद 60,000 रुपये के बॉन्ड पर रिहा कर दिया गया.
30 अक्टूबर 1928 को लाला लाजपत राय ने सभी दलों के जुलूस का नेतृत्व किया और साइमन कमीशन के आगमन के विरोध में लाहौर रेलवे स्टेशन की ओर मार्च किया. पुलिस ने प्रदर्शनकारियों की प्रगति को विफल करने के लिए एक क्रूर लाठीचार्ज का सहारा लिया. टकराव ने लाला लाजपत राय को गंभीर चोटों के साथ छोड़ दिया और उन्होंने नवंबर 17, 1928 को अपनी चोटों के कारण दम तोड़ दिया. लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए, भगत सिंह और उनके सहयोगियों ने जेम्स ए स्कॉट की हत्या की साजिश रची, जो पुलिस अधीक्षक थे. माना जाता है कि लाठीचार्ज का आदेश दिया है. क्रांतिकारियों ने स्कॉट के रूप में सहायक पुलिस अधीक्षक जे.पी. सौन्डर्स को गलत तरीके से मार डाला. भगत सिंह ने अपनी गिरफ्तारी से बचने के लिए जल्दी से लाहौर छोड़ दिया. बचने के लिए उन्होंने अपनी दाढ़ी मुंडवा ली और अपने बाल काट दिए, जो सिख धर्म के पवित्र सिद्धांतों का उल्लंघन था.
डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट के निर्माण के जवाब में, हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन ने विधानसभा परिसर के अंदर एक बम विस्फोट करने की योजना बनाई, जहां अध्यादेश पारित होने वाला था. 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने असेंबली के गलियारों में बम फेंका, ‘इंकलाब ज़िंदाबाद!’ और हवा में अपनी मिसाइल को रेखांकित करते हुए पर्चे फेंके. बम किसी को मारने या घायल करने के लिए नहीं था और इसलिए इसे भीड़ वाली जगह से दूर फेंक दिया गया था, लेकिन फिर भी कई परिषद सदस्य हंगामे में घायल हो गए. धमाकों के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त दोनों ने गिरफ्तारी दी.
विरोध का नाटकीय प्रदर्शन राजनीतिक क्षेत्र से व्यापक आलोचनाओं के साथ किया गया था. सिंह ने जवाब दिया – “जब आक्रामक तरीके से लागू किया जाता है तो यह ‘हिंसा’ है और इसलिए नैतिक रूप से यह अनुचित है, लेकिन जब इसका इस्तेमाल वैध कारण के लिए किया जाता है, तो इसका नैतिक औचित्य है.”
मई में ट्रायल की कार्यवाही शुरू हुई जिसमें सिंह ने अपना बचाव करने की मांग की, जबकि बटुकेश्वर दत्त ने अफसर अली का प्रतिनिधित्व किया. अदालत ने विस्फोटों के दुर्भावनापूर्ण और गैरकानूनी इरादे का हवाला देते हुए उम्रकैद की सजा के पक्ष में फैसला सुनाया.
सजा सुनाए जाने के तुरंत बाद पुलिस ने लाहौर में एचएसआरए बम फैक्ट्रियों पर छापा मारा और कई प्रमुख क्रांतिकारियों को गिरफ्तार किया. इन व्यक्तियों हंस राज वोहरा, जय गोपाल और फणींद्र नाथ घोष ने सरकार के लिए अनुमोदन किया, जिसके कारण सुखदेव सहित कुल 21 गिरफ्तारियां हुईं. जतीन्द्र नाथ दास, राजगुरु और भगत सिंह को लाहौर षडयंत्र मामले, सहायक अधीक्षक सॉन्डर्स की हत्या और बम निर्माण के लिए फिर से गिरफ्तार किया गया था.
28 जुलाई, 1929 को न्यायाधीश राय साहिब पंडित श्री किशन की अध्यक्षता में विशेष सत्र अदालत में 28 आरोपियों के खिलाफ मुकदमा शुरू हुआ.
इस बीच, सिंह और उनके साथी कैदियों ने श्वेत बनाम देशी कैदियों के उपचार में पक्षपातपूर्ण अंतर के विरोध में अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल की घोषणा की और ‘राजनीतिक कैदियों’ के रूप में मान्यता देने की मांग की. भूख हड़ताल ने प्रेस से जबरदस्त ध्यान आकर्षित किया और अपनी मांगों के पक्ष में प्रमुख सार्वजनिक समर्थन इकट्ठा किया. 63 दिनों के लंबे उपवास के बाद जतिंद्र नाथ दास की मृत्यु, नकारात्मक जनमत के कारण अधिकारियों के प्रति तीव्र हो गई. 5 अक्टूबर 1929 को भगत सिंह ने अंततः अपने पिता और कांग्रेस नेतृत्व के अनुरोध पर अपना 116 दिन का उपवास तोड़ा.
कानूनी कार्यवाही की धीमी गति के कारण, न्यायमूर्ति जे. कोल्डस्ट्रीम, न्यायमूर्ति आगा हैदर और न्यायमूर्ति जीसी हिल्टन से युक्त एक विशेष न्यायाधिकरण की स्थापना 1 मई 1930 को वायसराय, लॉर्ड इरविन के निर्देश पर की गई थी. न्यायाधिकरण को आगे बढ़ने का अधिकार दिया गया था. अभियुक्तों की उपस्थिति के बिना और एकतरफा मुकदमे थे जो शायद ही सामान्य कानूनी अधिकार दिशानिर्देशों का पालन करते थे.
ट्रिब्यूनल ने 7 अक्टूबर 1930 को अपना 300 पन्नों का फैसला सुनाया. इसने घोषणा की कि सॉन्डर्स हत्या में सिंह, सुखदेव और राजगुरु के शामिल होने की पुष्टि के लिए अकाट्य प्रमाण प्रस्तुत किया गया है. सिंह ने हत्या की बात स्वीकार की और परीक्षण के दौरान ब्रिटिश शासन के खिलाफ बयान दिए. उन्हें मौत तक की सजा सुनाई गई थी.
23 मार्च 1931 को सुबह 7:30 बजे भगत सिंह को उनके साथियों राजगुरु और सुखदेव के साथ लाहौर जेल में फांसी दी गई थी. ऐसा कहा जाता है कि तीनों अपने पसंदीदा नारों जैसे “इंकलाब जिंदाबाद” और “ब्रिटिश साम्राज्यवाद के साथ नीचे” का उच्चारण करते हुए फांसी के लिए काफी खुश थे. सतलज नदी के तट पर हुसैनीवाला में सिंह और उनके साथियों का अंतिम संस्कार किया गया.
भगत सिंह उनकी प्रखर देशभक्ति, जो कि आदर्शवाद से जुडी थी. जिसने उन्हें अपनी पीढ़ी के युवाओं के लिए एक आदर्श आइकन बना दिया. ब्रिटिश इंपीरियल सरकार के अपने लिखित और मुखर आह्वान के माध्यम से वह अपनी पीढ़ी की आवाज बन गए. गांधीवादी अहिंसक मार्ग से स्वराज की ओर जाने की उनकी आलोचना अक्सर कई लोगों द्वारा आलोचना की गई है फिर भी शहादत के निडर होकर उन्होंने सैकड़ों किशोर और युवाओं को पूरे स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया. वर्तमान समय में उनकी प्रतिष्ठा इस तथ्य से स्पष्ट है कि भगत सिंह को 2008 में इंडिया टुडे द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में, सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी से आगे महान भारतीय के रूप में वोट दिया गया था.
भगत सिंह ने भारतीयों की आत्मा के भीतर अभी भी जो प्रेरणा दी है, वह फिल्मों की लोकप्रियता और उनके जीवन पर नाट्य रूपांतरण में महसूस की जा सकती है. “शहीद” (1965) और “द लीजेंड ऑफ भगत सिंह” (2002) जैसी कई फिल्में 23 वर्षीय क्रांतिकारी के जीवन पर बनी थीं. भगत सिंह से जुड़े “मोहे रंग दे बसंती चोला” और “सरफ़रोशिकी तमन्ना” जैसे लोकप्रिय गीत आज भी भारतीयों में देशभक्ति की भावनाएं जगाते हैं. उनके जीवन, विचारधाराओं और विरासत के बारे में कई किताबें, लेख और पत्र लिखे गए हैं.
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