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भगत सिंह / Bhagat Singh

भगत सिंह : हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक - इतिहास | Bhagat Singh : Hindi PDF Book - History (Itihas)

पुस्तक का विवरण / Book Details
भगत सिंह / Bhagat Singh
, , , , ,
25
Good
2 MB
Available

पुस्तक का विवरण : तुम क्या कर रहे हो ? – उन्होंने पूछा। “देखिये पिताजी, मैं इस खेत में सब तरफ बन्दूक उपजाऊंगा। बच्चे ने भोला-भाला उत्तर दिया। उसकी आँखें चमक रही थी। उनमे उसका दृण विश्वास झलक रहा था कि खेत में बन्दुक जरूर पैदा होगीं। उस नन्‍हें से बच्चे के शब्दों से दोनों बुजुर्ग आश्चर्यचकित थे। वह बच्चा भगत सिंह था, जिसने बाद में भारत की स्वाधीनता के लिए वीरतापूर्वक लड़ाई लड़ी………

Pustak ka vivaran : tum kya kar rahe ho – unhonne poochha. dekhiye pitaji, main is khet mein sab taraph bandook upjaoonga. bachche ne bhola-bhala uttar diya. usaki ankhen chamak rahee thee. uname usaka drn vishvas jhalak raha tha ki khet mein bandook jaroor paida hogin. us nanhen se bachche ke shabdon se donon bujurg aashcharyachakit the. vah bachcha bhagat sinh tha, jisane bad mein bharat kee svadheenata ke liye veeratapoorvak ladai ladi……….., description about ebook : what are you doing – he asked. “see, father, i will grow guns in this field everywhere.” the child answered innocently. his eyes were glowing. his vision was reflected in them that guns would definitely be born in the field. both elders were surprised by the words of the child from that little one. the child was bhagat singh, who later fought bravely for india’s independence ………...

“जिंदगी का मेरा सूत्र बहुत ही सरल है। मैं सुबह जागता हूं तथा रात को सो जाता हूं। इसके बीच में मैं जितना हो सके स्वयं को व्यस्त रखता हूं।” -केरी ग्रांट
“My formula for living is quite simple. I get up in the morning and I go to bed at night. In between, I occupy myself as best I can.” – Cary Grant

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bhagat singh biography book in hindi

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भगत सिंह का इतिहास व जीवनी | Bhagat Singh Biography in Hindi

भगत सिंह (अंग्रेजी: Bhagat Singh; जन्म: 27 सितम्बर 1907, मृत्यु: 23 मार्च 1931) एक महान क्रांतिकारी नेता थे जिन्होंने सुखदेव व राजगुरु के साथ मिलकर जॉन सांडर्स नामक ब्रिटिश अधिकारी की हत्या की। उन्होंने भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त करवाने के लिए क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया। 

भगत सिंह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन संगठन से जुड़ गए और संगठन के एक सक्रिय सदस्य बन गए। 23 साल की उम्र में भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु को ब्रिटिश सरकार ने जॉन सांडर्स व एक भारतीय-ब्रिटिश सैनिक की हत्या का दोषी ठहराते हुए 23 मार्च 1931 को फांसी की सजा दी।

Table of Contents

भगत सिंह का परिचय (Introduction to Bhagat Singh)

नामभगत सिंह (Bhagat Singh)
जन्म27 सितम्बर 1907, बंगा, पंजाब (भारत)
माताविद्यावती
पिताकिशन सिंह संधु
वैवाहिक स्थितिअविवाहित
क्रांतिकारी साथी ,
आंदोलनभारतीय स्वतंत्रता आंदोलन
संगठनहिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन संगठन
प्रसिद्धि का कारणक्रांतिकारी, राष्ट्रभक्त
मृत्यु23 मार्च 1931, लाहौर, पाकिस्तान
मृत्यु का कारणब्रिटिश अधिकारी की हत्या के अपराध में ब्रिटिश सरकार के द्वारा फांसी
जीवनकाल23 वर्ष

भगत सिंह एक महान क्रांतिकारी थे जिनका जन्म 27 सितम्बर 1907 को पंजाब के बंगा नामक गांव (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था। उनके पिता किशन सिंह संधु तथा माता विद्यावती थी। वह अपने पिता की दूसरी संतान थे। भगत सिंह के 3 भाई व 3 बहिनें थी। 

सिंह के पिता व चाचा अजीत सिंह भी राष्ट्र की स्वतंत्रता में सक्रिय थे। उनके कारण सिंह भी देशभक्ति के प्रति प्रेरित हुए। 

सिंह ने अपनी शुरुआत पढ़ाई अपने गांव बंगा से ही की और उसके बाद वे लाहौर के दयानंद एंग्लो वैदिक स्कूल में दाखिल हुए। 1923 में उन्होंने लाला लाजपत राय के द्वारा स्थापित लाहौर के नेशनल कॉलेज में प्रवेश लिया। इस कॉलेज ने छात्रों को ब्रिटिश सरकार के कॉलेजों व स्कूलों को त्यागने का मौका दिया। 

मई 1927 में ब्रिटिश पुलिस ने भगत सिंह को गिरफ्तार कर लिया। 60,000 रुपये की गारंटी पर उन्हें छोड़ा गया। उनकी गिरफ्तारी का कारण 1926 में लाहौर की बोंब घटना बताई गई। 

यह भी पढ़ें: भगत सिंह के अनमोल वचन

जॉन सांडर्स की हत्या में भागीदारी (Contribution in the killing of John Saunders)

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख कार्यकर्ता लाला लाजपत राय को पूरे भारत में पंजाब केसरी के नाम से जाना जाता था। 

राय व उनके क्रांतिकारियों ने साइमन कमीशन गो-बैक के नारे लगाए जिसके बाद जेम्स स्कोट नाम के अंग्रेज अधिकारी ने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज करने का आदेश दिया। इस लाठीचार्ज में पुलिस ने लाला लाजपत राय पर व्यक्तिगत हमले किये। पुलिस के द्वारा किए गए हमलों से 17 नवंबर 1928 को लाला लाजपत राय की हृदयाघात के कारण मृत्यु हो गई थी।

लाला लाजपत राय की मृत्यु होने से क्रांतिकारियों में रोष फैल चुका था और उन्होंने उनकी मृत्यु का बदला लेने की ठान ली। 

चंद्रशेखर आजाद ने हिंदुस्तान रिपब्लिकन संगठन का नाम बदलकर के हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन संगठन कर दिया था। हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन संगठन ने लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने की सौगंध ली।

भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु ने लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए, 17 दिसंबर 1928 को ब्रिटिश सरकार के पुलिस अधिकारी जॉन सांडर्स की गोली मारकर हत्या कर दी।

चानन सिंह की हत्या (Killing of Channan Singh)

जॉन सांडर्स की हत्या करने के बाद, क्रांतिकारियों का समूह डीएवी कॉलेज से जा रहा था। ब्रिटिश सरकार का एक भारतीय जन्मजात सैनिक क्रांतिकारियों के इस समूह का पीछा कर रहा था। उस सैनिक का नाम चानन सिंह था। चंद्रशेखर आजाद की गोली से चानन सिंह की हत्या हो गई।

पुलिस ने उन सभी क्रांतिकारियों को पकड़ने के लिए लाहौर के हर रास्ते पर नाकाबंदी लगा दी। क्रांतिकारी लाहौर के सुव्यवस्थित व सुरक्षित घरों में पहुंच चुके थे।

यह भी पढ़ें: चंद्रशेखर आजाद के अनमोल वचन

लाहौर से भागना (Running Away from Lahore)

लाहौर में दो दिनों तक छिपे रहने के बाद, सुखदेव ने दुर्गावती देवी से मदद मांगी। दुर्गावती देवी को दुर्गा भाभी के नाम से भी जाना जाता है जो हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन संगठन के ही एक सदस्य की पत्नी थी। उन्होंने बठिंडा जाने वाली ट्रेन के माध्यम से लाहौर से बाहर जाने की योजना बनाई। 

अगले दिन सुबह ही भगत सिंह व राजगुरु भरे हुए पिस्तौल लेकर निकल पड़े। किसी भी ब्रिटिश पुलिस अधिकारी को पता ना चल जाए इसलिए भगत सिंह ने अपने बाल कटवा लिये, अपनी दाढ़ी बनवाली और एक पश्चिमी रिवाज की टोपी भी पहन ली। 

दुर्गा भाभी व सिंह पति पत्नी बन गए और नवजात बच्चे को साथ लेकर चल दिये। राजगुरु समान उठाने वाला सेवक बन गया। तीनों वहां से कानपुर की ट्रेन में बैठ गए और कानपुर से वे लखनऊ चले गए। उसके बाद राजगुरु बनारस के लिए तथा सिंह व देवी अपने बच्चे के साथ हावड़ा की ओर चले गए। कुछ दिनों बाद सिंह को छोड़कर के सभी वापस लाहौर आ गए।

अन्य क्रांतिकारी गतिविधि (Other Revolutionary Activity)

भगत सिंह के मन में विचार आया कि वह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन संगठन की प्रसिद्धि को आम जनता में बहुत तेजी से बढ़ा सकते हैं। उन्होंने संगठन को यह प्रस्ताव दिया कि उन्हें ड्रामे से भरे हुए कार्य करने चाहिए ताकि संगठन को प्रसिद्धि प्राप्त हो।

सिंह के मुताबिक, उन्हें सेंट्रल लेजिसलेटिव असेंबली के अंदर एक आंसू बोंब डालना चाहिए। इसका उद्देश्य पब्लिक सेफ्टी बिल तथा ट्रेड डिस्प्यूट एक्ट के प्रति विरोध जताना था। इन बातों को असेंबली के द्वारा नकारा गया, परंतु वायसराय के द्वारा इन्हें कार्य में लाया गया। असेंबली से बदला लेने के लिए उन्होंने असेंबली में आंसू बम डालना चाहा। 

8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह व बटुकेश्वर दत्त ने असेंबली के अंदर दो बॉम्बे फेंके। ये बम इस तरह से बनाए गए थे कि कोई जान-माल का नुकसान नहीं हो परंतु असेंबली के कुछ सदस्यों को इससे नुकसान पहुंचा। असेंबली में बोम से धुआं उत्पन्न हुआ और सिंह व उनके साथी ने वहां से इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाए। 

भगत सिंह के साथी क्रांतिकारी पकड़े गए (Arrest of Fellow Revolutionary of Bhagat Singh)

1929 में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन संगठन ने लाहौर व सहारनपुर में बम फैक्ट्री की स्थापना की थी। 15 अप्रैल 1929 को लाहौर की बम फैक्ट्री के बारे में पुलिस को पता चल गया और उन्होंने इस फैक्ट्री के कुछ मुख्य सदस्य सुखदेव, किशोर लाल व जय गोपाल को गिरफ्तार कर लिया। 

कुछ समय बाद ही सहारनपुर की बम फैक्ट्री का भी पता चल गया और कई क्रांतिकारियों को भी गिरफ्तार कर लिया गया। 

जॉन सांडर्स की हत्या, असेंबली पर किए गए हमले व बम निर्माण का आपस में संबंध पता करने में पुलिस कामयाब हो गई थी। जिसके बाद उन्होंने सिंह, सुखदेव, राजगुरु व 21 अन्य क्रांतिकारियों को जॉन सांडर्स की हत्या का दोषी माना। 

लाहौर जेल में भगत सिंह व उनके साथी (Bhagat Singh and his associates in Lahore Jail)

भगत सिंह व उनके साथियों को लाहौर जेल में भेजने से पहले वह मियांवाली जेल में थे जहां पर उन्होंने भूख हड़ताल की शुरुआत थी। जेल के वासियों के लिए कुछ अच्छी सुविधाएं व खाद्य पदार्थों के लिए की गई यह भूख हड़ताल भगत सिंह के नेतृत्व में थी। 

सिंह को लाहौर की बोरस्टल जेल में भेज दिया गया। भूख हड़ताल पर रहने के कारण सिंह के वास्तविक वजन (60 किलो) से 6.4 किलो घट गया। 

सिंह ने 5 अक्टूबर 1929 को 116 दिन के बाद अपने पिता की प्रार्थना को स्वीकार करते हुए अपनी भूख हड़ताल खत्म की। 

7 अक्टूबर 1930 को न्यायाधिकरण कोर्ट ने 300 शब्दों का न्याय पत्र दिया जिसमें सिंह, सुखदेव व राजगुरु को जॉन सांडर्स की हत्या के मुख्य दोषी ठहराए गए। उन तीनों को फांसी की सजा सुनाई गई और अन्य क्रांतिकारियों को कई वर्षों की सजा दी गई। 

भगत सिंह की मृत्यु (Death of Bhagat Singh)

सिंह, राजगुरु और सुखदेव को लाहौर षड्यंत्र के केस में 24 मार्च 1931 को फांसी देने की सजा सुनाई गई थी। परंतु ब्रिटिश सरकार ने तीनों क्रांतिकारियों की सजा के समय को 11 घंटे पहले कर दिया ताकि आम जनता सरकार के खिलाफ कोई विद्रोह ना कर दे।

इसलिए, 23 मार्च 1931 को शाम 7:30 बजे भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव को लाहौर जेल में फांसी दी गई। सिंह व अन्य 2 क्रांतिकारियों की मृत्यु हो जाने के बाद जेल के अधिकारियों ने उन तीनों के शवों को रात्रि के अंधेरे में ले जाकर के गंदा सिंह वाला गांव के बाहर उनका अंतिम संस्कार कर दिया। अंतिम संस्कार के बाद, उनके पुष्प चिन्हों (राख) को सतलज नदी में बहा दिया गया।

जब तीनों वीर क्रांतिकारियों की मृत्यु की सूचना प्रेस व न्यूज़ में आई तब युवाओं ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ रोष जाहिर किया। कुछ सूचनाओं के मुताबिक, महात्मा गांधी को भी इस हत्याकांड का दोषी भी ठहराया गया था।

भगत सिंह (अंग्रेजी: Bhagat Singh; जन्म: 27 सितम्बर 1907, मृत्यु: 23 मार्च 1931) एक महान क्रांतिकारी नेता थे जिन्होंने सुखदेव व राजगुरु के साथ मिलकर जॉन सांडर्स नामक ब्रिटिश अधिकारी की हत्या की। भगत सिंह का जन्म 27 सितम्बर 1907 को पंजाब के बंगा नामक गांव (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था। उनके पिता किशन सिंह संधु तथा माता विद्यावती थी। वह अपने पिता की दूसरी संतान थे। भगत सिंह के 3 भाई व 3 बहिनें थी।  23 साल की उम्र में भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु को ब्रिटिश सरकार ने जॉन सांडर्स व एक भारतीय-ब्रिटिश सैनिक की हत्या का दोषी ठहराते हुए 23 मार्च 1931 को फांसी की सजा दी।

7 अक्टूबर 1930 को न्यायाधिकरण कोर्ट ने 300 शब्दों का न्याय पत्र दिया जिसमें सिंह, सुखदेव व राजगुरु को जॉन सांडर्स की हत्या के मुख्य दोषी ठहराए गए। उन तीनों को फांसी की सजा सुनाई गई और अन्य क्रांतिकारियों को कई वर्षों की सजाएं अलग-अलग तरह से दी गई। 

23 मार्च 1931 को, लाहौर जेल, पाकिस्तान।

3 मार्च 1931 को शाम 7:30 बजे भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव को लाहौर जेल में फांसी दी गई। सिंह व अन्य 2 क्रांतिकारियों की मृत्यु हो जाने के बाद जेल के अधिकारियों ने उन तीनों के शवों को रात्रि के अंधेरे में ले जाकर के गंदा सिंह वाला गांव के बाहर उनका अंतिम संस्कार कर दिया। अंतिम संस्कार के बाद, उनके पुष्प चिन्हों (राख) को सतलज नदी में बहा दिया गया।

भगत सिंह एक महान क्रांतिकारी थे जिनका जन्म 27 सितम्बर 1907 को पंजाब के बंगा नामक गांव (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था। उनके पिता किशन सिंह संधु तथा माता विद्यावती थी। वह अपने पिता की दूसरी संतान थे। भगत सिंह के 3 भाई व 3 बहिनें थी। 

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भगतसिंह जीवन परिचय – Bhagat Singh Biography Hindi

भगतसिंह जीवन परिचय – Bhagat Singh Biography Hindi

भगत सिंग एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष किया। उनका जन्म 27 सितंबर 1907 को पंजाब के जिले लायलपुर (अब पाकिस्तान) में हुआ था। उनके पिता का नाम किशन सिंग था और माता का नाम वीरमती कौर था। उनका पूरा नाम शहीद-ए-आजम सरदार भगत सिंह था। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए अपनी जान की आहुति दी और उनकी शहादत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का महत्वपूर्ण घटना बन गई।

भगत सिंग ने भारतीय राजवंशों की अत्याचारों और ब्रिटिश साम्राज्य की दुर्दशा को देखते हुए उनका उद्देश्य स्वतंत्रता और समाज के उत्थान का था। भगत सिंग ने अंग्रेजों के खिलाफ अपने आक्रमणी एवं बहादुरी से अपार उत्साह जगाया। उन्होंने जलियांवाला बाग के नाटक को नकारते हुए, अपने साथियों के साथ योजनाबद्ध रूप से विद्रोह आरंभ किया।भगत सिंग, राजगुरु और सुखदेव के साथ जुलूस के दौरान गिरफ्तार हो गए थे और उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। उनकी शौर्य और वीरता को याद करते हैं, और उन्हें आजादी के वीर शहीदों में शामिल किया जाता है।

अमर शहीद भगतसिंह जीवनी (Shahid Bhagat Singh) Download

27 सितंबर, 1907; दिन शनिवार; पंजाब के लायलपुर जिले का बंगा गाँव; प्रात: लगभग 9 बजे । बंद कमरे में दर्द से छटपटाती विद्यावती का क्रंदन गूंज रहा था। पास बैठी सास जयकौर माथे को सहलाते हुए उन्हें धीरज बँधा रही थीं। दाई तेजी से अपने काम में व्यस्त थी। कमरे के बाहर सरदार अर्जुन सिंह बड़ी बेचैनी से इधर-उधर टहलते हुए किसी शुभ समाचार की प्रतीक्षा कर रहे थे। बुदबुदाते होंठों से ‘वाहेगुरु’ का जाप करते हुए कभी-कभी वे बंद दरवाजे की ओर देख लेते। तभी नवजात शिशु की किलकारियों से आँगन गूंज उठा। अर्जुन सिंह ने शांति की साँ ली और हाथ उठाकर वाहेगुरु का शुक्रिया अदा किया।

थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला और दाई ने खुशखबरी दी, “बधाई हो, सरदार साहब! पोता हुआ है।” सूर्य की तप्त किरणों से चेहरा जगमगा उठा; बूढ़ी हिंयों में जैसे जवानी की लहर दौड़ गई। सरदार अर्जुनसिंह पुन: उस समय में लौट आए, जब उनके घर किशनसिंह का जन्म हुआ था। वे हँसते हुए दाई से बोले, “यह मेरा पोता नहीं बल्कि मेरा पुनर्जन्म है। मुझे विश्वास है कि मेरा यह जीवन पूरी तरह से देशसेवा में समर्पित होगा।” कुछ ही देर में बधाई देनेवालों से पूरा आँगन भर गया।

भगत सिंह ने क्या कहा था? (Sardar Bhagat Singh Ne Kaha)

  • “संसार के सभी गरीबों के चाहे वे किसी भी जाति, वर्ण, धर्म या राष्ट्र के हों अधिकार समान हैं। ” (1927)
  • “चारों ओर काफी समझदार लोग नजर आते हैं; लेकिन हरेक को अपनी जिंदगी खुशहाली से बिताने की फिक्र है। तब हम अपने हालात, देश के हालात सुधरने की क्या उम्मीद कर रहे हैं।” (1927)
  • “वे लोग, जो महल बनाते हैं और झोंपड़ियों में रहते हैं। वे लोग, जो सुंदर-सुंदर आरामदायक चीजें बनाते हैं, खुद पुरानी और गंदी चटाइयों पर सोते हैं। ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए? ऐसी स्थितियाँ यदि भूतकाल में रही हैं तो भविष्य में क्यों नहीं बदलाव आना चाहिए? अगर हम चाहते हैं कि देश के हालात आज से अच्छे हों तो ये स्थितियाँ बदलनी होंगी। हमें परिवर्तनकारी होना होगा।” (अगस्त 1928)
  • “हमारा देश बहुत आध्यात्मिक है; लेकिन हम मनुष्य को मनुष्य का दर्जा देते हुए भी हिचकते हैं। ” (1928)
  • “उठो, अछूत कहलानेवाले असली जनसेवको एवं भाइयो, उठो! तुम ही तो देश का मुख्य आधार हो, वास्तविक शक्ति हो। सोए हुए शेरों! उठो और बगावत खड़ी कर दो।” (अछूत समस्या पर 1928)
  • “धर्म व्यक्ति का निजी मामला है, इसमें दूसरे का कोई दखल नहीं, न ही इसे राजनीति में घुसना चाहिए।” (1927)
  • “जब गतिरोध की स्थिति लोगों को अपने शिकंजे में जकड़ लेती है तो किसी भी पुरकार के परिवर्तन से लोग हिचकिचाते हैं। इस जड़ता और घोर निष्क्रियता को तोड़ने के लिए एक क्रांतिकारी भावना पैदा करने की जरूरत होती है, अन्यथा पतन और बरबादी का वातावरण छा जाता है।” (मार्च 1931)
  • “मैं पुरजोर कहता हूँ कि में आशाओं और आकांक्षाओं से भरपूर जीवन की समस्त रंगीनियों से ओत-प्रोत हूँ। लेकित वक्त आते पर मैं सबकुछ कुरबान कर दूँगा। सही अर्थों में यही बलिदान है।  (सुखदेव को पत्र, 13 अप्रैल, 1929)
  • “जहाँ तक प्यार के नैतिक स्तर का संबंध है, मैं कह सकता हूँ कि नौजवान युवक-युवतियाँ आपस में प्यार कर सकते हैं और वे अपने प्यार के सहारे अपने आवेगों से ऊपर उठ सकते हैं।” (सुखदेव को पत्र, 1928)
  • “अंग्रेजों की जड़ें हिल गई हैं और पंद्रह साल में वे यहाँ से चले जाएँगे। बाद में काफी अफरा-तफरी होगी, तब लोगों को मेरी याद आएगी।” (12 मार्च, 1931)

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भगतसिंग की जीवनी

भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी और शहीद-ए-आजम के रूप में विख्यात भगत सिंह ने महज 23 साल की उम्र में देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहूति दे दी। भगत सिंह नौजवानों के दिलों में आजादी का जुनून भरने वाले सच्चे देश भक्त थे। इन्होंने हर भारतीय के दिल में देश प्रेम की भावना विकसित की।

गुलाम भारत को आजाद करवाने के लिए भगत सिंह द्धारा किए गए त्याग और बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।

शहीद-ए-आजम भगत सिंह एक ऐसे क्रांतिकारी थे, जो देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते फांसे के फंदे पर चढ़ गए थे। भगत सिंह की शहादत उस समय हुई थी, जब देश को क्रान्ति के सुनामी की सख्त जरूरत थी और वहीं यही सुनामी अंग्रेजों के शासन के तबाही का कारण बनी उनकी शहादत से ना केवल देश के युवाओं में बल्कि बच्चे-बच्चे में अंग्रेजों के खिलाफ रोष भर गया था।

यही नहीं भारत की आजादी के समय भगत सिंह सभी नौजवानों के लिए यूथ आइकॉन थे, जो उन्हें देश की रक्षा की लिए आगे आने के लिए प्रेरित करते थे। महान क्रांतिकारी भगत सिंह का अल्प जीवन भी वाकई प्रेरणा देने वाला है, जिन्होंने अपने बेहद कम समय के ही जीवनकाल में अटूट संघर्ष देखा था।

आज हम अपने इस लेख में इस महान क्रांतिकारी भगत सिंह के जीवन के बारे में बताएंगे जिनका नाम स्वर्ण अक्षरों में इतिहास के पन्नों में अमर है। उनके नाम से ही अंग्रेज डर जाते थे और उनकी पैरों तले जमीन खिसक जाती थी। जिनका कहना था कि –

लिख रहा हूं अंजाम, जिसका कल आगाज आएगा। मेरे लहू का एक एक कतरा इन्कलाब लाएगा।।

भगतसिंग की जीवनी – Bhagat Singh Biography in Hindi

Bhagat Singh

सरदार भगत सिंह
27 सितम्बर 1907
बंगा, जरंवाला तहसील, पंजाब, ब्रिटिश भारत,
(अब पकिस्तान में)
विद्यावती कौर
सरदार किशन सिंह सिन्धु
23 मार्च 1931, लाहौर
विवाह नही किया।

महान क्रांतिकारी भगत सिंह का  प्रेरक वाक्य;

“सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है”

जन्म, परिवार और प्रारंभिक जीवन – 

महान क्रांतिकारी और सच्चे देश भक्त भगत सिंह पंजाब के जंरवाला तहसील के एक छोटे से गांव बंगा में 27 सितंबर 1907 को जन्मे थे। वह सिख परिवार से तालोक्कात रखते थे। इनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था।

आपको बता दें कि जिस समय भगत सिंह का जन्म हुआ था, उस समय इनके पिता किशन सिंह जी जेल में थे। भगतसिंह बचपन से भी आक्रमक स्वभाव के थे। बचपन में वे अनोखे खेल खेला करते थे। जब वह 5 साल के थे तो अपने साथियों को दो अलग-अलग ग्रुप में बांट देते थे और फिर आपस में एक-दूसरे पर आक्रमण कर युद्ध का अभ्यास करते थे।

वहीं भगतसिंह के हर काम में उनके वीर, धीर और निर्भीक होने का प्रमाण मिलता है। भगत सिंह अपने बचपन से ही हर किसी को अपनी तरफ आर्कषित कर लेते थे।

वहीं एक बार जब भगत सिंह अपने पिता के मित्र से मिले तो वे भी इनसे अत्याधित प्रभावित हुए और प्रभावित होकर सरदार किशन सिंह से बोले कि यह बालक संसार में अपना नाम रोशन करेगा और देशभक्तों में इसका नाम अमर रहेगा। और आगे चलकर यही हुआ।

आपको बता दें कि भगत सिंह ने बचपन से ही अपने परिवार में देश भक्ति की भावना देखी थी। अर्थात उनका बचपन क्रांतिकारियों के बीच बीता था, इसलिए बचपन से ही भगत सिंह के अंदर देश प्रेमी का बीज बो दिया था। भगत सिंह के बारे में यह भी कहा जाता है उनके खून में ही देश भक्ति की भावना थी।

Family Tree

Bhagat Singh Family Tree

शहीद भगत सिंह के परिवार ने भी भारत की आजादी की लड़ाई के लिए कई बड़ी कुर्बानियां दी है। भगत सिंह के चाचा का नाम सरदार अजीत सिंह था जो कि एक जाने-माने क्रांतिकारी थे, जिनसे अंग्रेज भी डरते थे। दरअसल उन्होंने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था।

भगत सिंह के चाचा सरदार अजीत सिंह ने अंग्रेजी हुकुमत से खिलाफत की थी, जिससे वे अंग्रेजी सरकार की आंख की किरकिरी बन गए थे। इसीलिए सरकार उनको किसी भी तरह से खत्म करना चाहती थी।

लेकिन अंग्रेजी सरकार की इस चाल को अजीत सिंह ने भाप लिया था और वह देश छोड़कर इरान चले गए और वह वहां से भी अपने देश की आजादी के लिए लड़ते रहे।

इन्होंने भारतीय देशभक्ति एसोसिएशन भी बनाई थी। इसके साथ ही आपको यह भी बता दें कि इसमें उनके साथ सैयद हैदर रजा शामिल थे। अपने चाचा अजीत सिंह का भगत सिंह पर गहरा प्रभाव पड़ा था और उन्हीं से उनके अंदर देशप्रेम की भावना जागृत हुई थी।

हम आपको यह भी बता दें कि भगत सिंह के जन्म के बाद उनकी दादी ने उनका नाम ‘भागो वाला’ रखा था। जिसका मतलब होता है ‘अच्छे भाग्य वाला’। बाद में उन्हें ‘भगतसिंह’ कहा जाने लगा।

भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह पर करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय का भी काफी प्रभाव पड़ा था। 1919 में हुए जलियांवाला बाग हत्याकां ड ने भगतसिंह के मन पर गहरा प्रभाव डाला था।

इस हत्याकांड में कई बेकसूर भारतीय मारे गए थे और कई लोगों ने अपना परिवार खो दिया था जिसे देख भगत सिंह के मन में अंग्रेजी शासकों के खिलाफ भारी रोष पैदा हो गया था और उसी वक्त से वह भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद करवाने के बारे में सोचने लगे थे।

पढ़ाई-लिखाई – 

देश के महान क्रांतिकारी भगत सिंह जी के पिता ने सरदार किशन सिंह सिंधु ने शुरुआत में अपने बेटे का दाखिला दयानन्द एंग्लो वैदिक हाई स्कूल में करवाया था। आपको बता दें कि भगत सिंह बचपन से ही बेहद बुद्धिमान और कुशाग्र बुद्धि के थे।

उन्होंने अपनी 9वीं तक की परीक्षा डी.ए.वी. स्कूल से पास की है। इसके बाद साल 1923 में उन्होंने अपनी इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की। वहीं इसके बाद उन्होनें अपनी आगे की ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए लाहौर के नेशनल कॉलेज में एडमिशन लिया था।

उसी दौरान उनके परिवार वाले उनकी शादी की तैयारियां कर रहे थे। लेकिन शहीद-ए-आजम ने अपनी शादी के प्रस्ताव को यह कर ठुकरा दिया था कि यदि “मैं आजादी से पहले विवाह करूँगा, तो मौत मेरी दुल्हन होगी” वहीं इसके बाद उनके माता – पिता ने उनपर शादी करने के लिए दबाव डालना बंद कर दिया था।

और फिर, वे इसके बाद लाहौर से वापस कानपुर आ गए थे। उस दौरान जलियाँ वाला बाग़ हत्या कांड से भगत सिंह को गहरा सदमा पहुंचा था और इसके बाद उनके मन में अंग्रेजों द्धारा किये गए आत्याचार के खिलाफ विद्राह ने जन्म ले लिया था।

इसके बाद भगत सिंह पर देश की आजादी का जूनून इस कदर सवार हो गया था कि उन्होंने महात्मा गांधी द्वारा चलाये गए असहयोग आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और अपना भरपूर योगदान दिया था।

भगत सिंह खुले आम अंग्रेजों को ललकारा करते थे, और गांधी जी के कहने पर ब्रिटिश बुक्स को जला दिया करते थे।

लेकिन बाद में “चौरी – चौरा काण्ड” ( Chauri Chaura incident ) में क्रांतिकरियों द्वारा पुलिस चौकी में आग लगा देने की वजह से और अन्य हिंसात्मक गतिविधियों की वजह से गांधी जी ने इस आन्दोलन को वापस ले लिया क्योंकि गांधी जी शांति से आजादी की लड़ाई लड़ना चाहते थे।

वहीं आन्दोलन वापस लेने की वजह से भगत सिंह काफी दुखी हो गए थे और उन्होंने महात्मा गांधी की अहिंसावादी बातों को छोड़ कर दूसरी पार्टी ज्वाइन करने कर ली थी।

सुखदेव से मुलाकात –

सरदार भगत सिंह जब लाहौर के नेशनल कॉलेज से B.A. की पढ़ाई कर रहे थे, तभी उनकी मुलाकात सुखदेव , भगवती चरन समेत अन्य कई लोगों से हुई। और फिर उनकी सुखदेव से गहरी दोस्ती हो गई।

और उस समय आजादी की लड़ाई अपने चरम सीमा पर थी। वहीं देशप्रमी भगत सिंह भी बाद में पूरी तरह इस लड़ाई में कूद पड़े थे और देश की स्वतंत्रता के लिए खुद का जीवन समर्पित कर दिया था।

स्वतंत्रता के लिए संघर्ष और क्रांतिकारी गतिविधियां –

सच्चे देश भक्त सरदार भगत सिंह के मन में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की भावना तो तभी से भड़क उठी थी जब से जलियांवाला हत्याकांड, में कई बेकसूर भारतीयों की मौत हो गई थी।

आपको बता दें कि यह वह दौर था जब अंग्रेज शासकों का भारतीयों के खिलाफ अत्याचार बढ़ रहा था और देश की हालत बेहद बुरी हो गई थी और यही वह समय भी था जब हर कोई गुलाम भारत को अंग्रेजों की बेड़ियों से आजाद करवाना चाहता था।

यह सब देखकर भारत के महान क्रांतिकारी भगत सिंह ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और खुद को स्वतंत्रता संग्राम में पूरी तरह समर्पित कर दिया।

देश की आजादी के लिए भगत सिंह देश के सभी युवाओं को जागरूक करना चाहते थे और इस लड़ाई के लिए उनके अंदर जोश भरना चाहते थे, लेकिन हर युवा तक सन्देश पहुंचाने के लिए उन्हें किसी माध्यम की जरूरत थी।

इसके लिए भगत सिंह ने लाहौर में “कीर्ति किसान पार्टी” (KIRTI KISAN PARTY) ज्वाइन कर ली और वे अपने इस मकसद को पूरा करने के लिए किसान कीर्ति पार्टी द्दारा प्रकाशित मैगजीन के लिए काम करने लगे।

शुरुआत में भगत सिंह ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आक्रामक लेख लिखे और पंपलेट छपवाए और ज्यादा से ज्यादा लोगों को बांटे जिससे वह अंग्रेज सरकार की भी नजरों में चढ़ गए थे।

कीर्ति मैग्जीन के माध्यम से भगत सिंह अपना संदेश तमाम युवाओं तक पहुंचाने लगे, वहीं इसी का युवाओं पर इतना प्रभाव हुआ कि कई युवा भारतीयों ने स्वतंत्रता की लड़ाई में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया।

आपको बता दें कि भगत सिंह एक बहुत अच्छे लेखक भी थे और मैगजीन के अलावा वह पंजाबी उर्दू पेपर के लिए भी लेख लिखा करते थे।

भारत को स्वतंत्रता दिलवाने का उद्देश्य लिए सरदार भगत सिंह ने 1925 में यूरोपियन नेशनलिस्ट मूवमेंट के दौरान “नौजवान भारत सभा” (Naujawan Bharat Sabha) पार्टी का गठन किया, इसके वह सेक्रेटरी थे।

HSRA पार्टी का गठऩ – 

उस समय देश में हिंसात्मक घटनाएं जन्म ले रही थी और अंग्रेजों का अत्याचार भारतीयों के खिलाफ बढ़ रहा था। उसी दौरान काकोरी कांड में चंद्रशेखर आजाद की पार्टी “हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन” के राम प्रसाद बिस्मिल समेत 4 क्रांतिकारियों को फांसी और अन्य 16 को जेल की सजा सुना दी गई जिसका भगत सिंह पर गहरा सदमा पहुंचा था।

इसके बाद वे इतने ज्यादा बेचैन हो गए थे कि उन्होंने चन्द्रशेखर आजाद के साथ मिलकर दोनों पार्टियों के विलय की योजना बनाई थी।

इसके बाद सितंबर 1928 में दिल्ली के फिरोज़ शाह कोटला मैदान में एक गुप्त बैठक हुई। जिसमें भगत सिंह की नौजवान भारत सभा के सभी सदस्यों का विलय “हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एस्सोसिएशन” में किया गया।

और काफी विचार-विमर्श के करने के बाद सभी की सहमति से पार्टी का नया नाम “हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन – Hindustan Socialist Republican Association (HSRA) ” रखा गया। आपको बता दें कि “हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA)” एक मौलिक पार्टी थी जिसमें भारत की आजादी के महानायक लाला लाजपत राय भी थे।

साइमन कमीशन का विरोध और लाला लाजपत राय की मौत का बदला –

30 अक्टूबर साल 1928 में ब्रिटिश सरकार द्धारा साइमन कमीशन के भारत आने पर इसके बहिष्कार के लिये देश में कई जगह प्रदर्शन हुए। दरअसल साइमन कमीशन भारत में संविधान की चर्चा करने के लिए बनाया गया एक कमीशन था, जिसके पैनल में एक भी भारतीय सदस्य को शामिल नहीं किया गया।

जिसके चलते इसका विरोध किया जा रहा था। वहीं इन प्रदर्शनों में हिस्सा लेने वाले भारतीयों पर अंग्रेजी सरकार ने लाठी चार्ज करवा दिया था और इसी लाठी चार्ज के दौरान लाला लाजपत राय जी गंभीर रूप से घायल हो गए थे और उनकी मौत हो गई।

जिसके बाद भगत सिंह का अंग्रेजों के खिलाफ गुस्सा और भी ज्यादा बढ़ गया क्योंकि भगत सिंह लाला लाजपत राय जी से बहुत प्रभावित थे और इसके बाद उन्होंने और उनकी पार्टी ने भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय जी के मौत का बदला लेने का ठान लिया था।

इसके बाद भगत सिंह जी ने लाला जी की मौत का बदला लेने के लिए अपने क्रांतिकारियों के साथ मिलकर जेपी सांडर्स को मारने की गुप्त योजना बनाई लेकिन यह योजना ठीक तरीके से अंजाम तक नहीं पहुंच पाई।

दरअसल भगत सिंह ने अपने साथियों के साथ मिलकर भूल से सांडर्स की जगह पुलिस अधिकारी स्कॉट को मार दिया। जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने उनको ढूंढने के लिए चारों तरफ जाल बिछा दिया।

और फिर वह खुद को बचाने के लिए लाहौर से भाग निकले, लेकिन उन्होंने खुद को बचाने के लिए बाल और दाढ़ी कटवा दी, जो कि उनके सामाजिक, धार्मिकता के खिलाफ थी। लेकिन भगत सिंह का मकसद देश को आजाद करवाना था।

सबक सिखाने के लिए ब्रिटिश सरकार की असेम्बली पर किया हमला –

भारत की आजादी के महानायक भगत सिंह कार्ल मार्क्स के सिद्धान्तों से अत्याधिक प्रभावित थे और वे समाजवाद के पक्के पोषक भी थे। इसीलिए वो पूंजीपतियों द्वारा मजदूरों पर हो रहे शोषण की नीति के खिलाफ थे।

वहीं उसी दौरान अंग्रेजी हुकूमत और उनके नुमाईन्दों द्वारा मजदूरों पर अत्याचार करना बढ़ता जा रहा था। वहीं उनकी पार्टी मजदूरों के लिए बनी इन नीतियों के खिलाफ थी और मजदूर विरोधी ऐसी नीतियों को ब्रिटिश संसद में पारित न होने देना उनके दल का मुख्य मकसद था।

उसी दौरान यह सभी चाहते थे कि अंग्रेजी शासन को इस बात का पता चलना चाहिए कि हिन्दुस्तान की जनता के दिल में अंग्रेजों के बढ़ रहे अत्याचार और उनकी नीतियों के खिलाफ भारी रोष है। वहीं ऐसा करने के लिए उनकी पार्टी ने दिल्ली की केन्द्रीय एसेम्बली में बम फेंकने का प्लान बनाया।

वहीं इस दौरान चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ये सब मिल चुके थे लेकिन भगत सिंह इस काम को बिना किसी खून-खराबे के अंग्रेजों तक अपनी आवाज़ पहुंचाना चाहते थे।

इसलिए उन्होंने बड़ा धमाका करने के बारे में सोचा क्योंकि भगत सिंह कहते थे कि अंग्रेज बहरे हो गए हैं और उन्हें ऊंचा सुनाई देता है, जिसके लिए बड़ा धमाका करना जरूरी है।

वहीं उन्होंने सिर्फ अंग्रेजों के कान तक अपनी आवाज करने के उद्देश्य से यह फैसला लिया कि वे लोग ब्रिटिश सरकार की क्रेन्द्रीय असेम्बली पर हमला कर देंगे।

हालांकि, शुरुआत में भारत के वीर सपूत सरदार भगत सिंह के इस विचार से उनकी पार्टी के अन्य लोग सहमत नहीं थे, लेकिन बाद में सबकी सहमति से भगत सिंह ने अपने साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर 1929 को अंग्रेज सरकार की केन्द्रीय असेम्बली हॉल में बम फेंका, आपको बता दें कि यह बम खाली जगह पर फेंका गया था जहां कोई भी शख्स मौजूद नहीं था। वहीं बम फेंकते ही तेज आवाज के साथ पूरा हॉल धुएं से भर गया।

अपने फैसले के मुताबिक भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त बम फेंकने के बाद अपनी जगह से भागे नहीं बल्कि वहां खड़े होकर उन्होंने इंकलाब-जिन्दाबाद, साम्राज्यवाद-मुर्दाबाद!” का नारा लगाया और अपने साथ लाये हुए पर्चे हवा में उछाल दिए।

बहरी हो गयी ब्रिटिश सरकार तक उसकी नीतियों के खिलाफ आवाज उठाने के मकसद से भगत सिंह ने यह कदम उठाया था। वहीं इस कदम के लिए भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त दोनों को पुलिस ने ग़िरफ़्तार कर लिया था।

वहीं सजा का ऐलान होने के तुरंत बाद ब्रिटिश पुलिस ने लाहौर में HSRA की बम की फैक्ट्रियों पर छापे मारने शुरु कर दिए थे जिसके बाद उस समय देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे बहुत से क्रांतिकारियों को उसमें पकड़ा गया था।

जिनमें हंसराज वोहरा,जय गोपाल और फणीन्द्र नाथ घोष प्रमुख थे। इसके अलावा 21 अन्य क्रांतिकारियों को भी पुलिस ने गिरफ्तार किया था।

जिनमें से सुखदेव जतिंद्र नाथ दास और राजगुरु भी शामिल थे। इसके साथ ही आपको यह भी बता दें कि लाहौर कांस्पीरेसी केस,असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट सांडर्स के मर्डर की योजना और बम बनाने के जुर्म में भी भगत सिंह की गिरफ्तारी का आदेश दिया गया था।

शहीद भगत सिंह और उनके साथियों की कारावास में भूख हड़ताल:

भगत सिंह ब्रिटिश सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ थे और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने से वे कभी पीछे नहीं होने वाले भारत के वीर योद्धाओं में एक थे।

यही वजह है कि जब वह जेल की सजा काट रहे थे तो उन्होंने जेल में अंग्रेजी कैदियों और भारतीय कैदियों के बीच होने वाले भेद-भाव और उनके साथ हो रहे बुरे व्य्वहार और अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज उठाई थी।

और इसके साथ ही जेल में कैदियों के लिए उचित सुविधाएं देने के मांग की थी। इसके लिए भगत सिंह और उनके साथियों ने जेल में 64 दिनों की भूख हड़ताल कर दी।

वहीं उस भूख हड़ताल की वजह से जेल में उनके एक साथी जतीन्द्रनाथ ने अपने प्राण त्याग दिए, जिससे आम लोगों में क्रूर ब्रिटिश शासकों के खिलाफ और भी ज्यादा रोष भर गया।

इसके अलावा उन्हें और उनके अन्य साथियों को जेल में रहते हुए कई यातनाओं से गुजरना पड़ा था लेकिन देश की रक्षा के लिए मर मिटने वाले शहीद भगत सिंह के फौलादी इरादों के सामने क्रूर ब्रिटिश सरकार भी कुछ नहीं कर सकी।

देश की आजादी के लिए इस युवा क्रांतिकारी ने अपना पूरा जीवन देश के लिए समर्पित कर दिया था, और इस दौरान भगत सिंह के फौलादी इरादे और भी ज्यादा मजबूत हो गए थे। वह गुलाम भारत को आजाद करवाने के लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार थे।

जिससे वह अंग्रेजी सरकार की आंखों में खटकने लगे थे और भगत सिंह को इसी वजह से अपने देश प्रेम की कीमत भी चुकानी पड़ी थी। उन्हें करीब 2 साल जेल में बिताने पड़े थे।

असेम्बली की घटना के बाद करना पड़ा आलोचनाओं का सामना:

ब्रिटिश सरकार की केन्द्रीय असेम्बली में बन बिस्फोट करने की घटना के बाद राजनीतिक क्षेत्र में भगत सिंह को काफी आलोचना का भी सामना करना पड़ा था। लेकिन भगत सिंह एक सच्चे देश भक्त की तरह अपने देश को आजाद करवाने की लड़ाई करते रहे।

आपको बता दें कि भगत सिंह ने इस घटना के आलोचकों को जवाब देते हुए कहा था कि आक्रामक रूप से लागू होने पर बल “हिंसा’ है और नैतिक रूप से अन्यायपूर्ण है, लेकिन जब इसका इस्तेमाल किसी वैध कारण से किया जाता है, तो इसका नैतिक औचित्य खुद व खुद विकसित हो जाता है।

इसके बाद इस केस की सुनवाई हुई थी। जिसमें भगत सिंह ने अपने केस की पैरवी खुद ही की थी जबकि उनके साथ बटुकेश्वर दत्त का केस अफसर अली ने लड़ा था।

Bhagat Singh Image

फांसी –

पूरी कानूनी कार्यवाही बेहद धीमी गति से हो रही थी, जिसको देखते हुए 1 मई 1930 को वायसराय लॉर्ड इरविन ने निर्देश दिया था। जिससे जस्टिस जे. कोल्डस्ट्रीम, जस्टिस आगा हैदर और जस्टिस जीसी हिल्टन समेत एक खास ट्रिब्यूनल स्थापित किया गया था।

ट्रिब्यूनल को बिना दोषी की उपस्थिति के भी आगे बढ़ने का अधिकार था, वहीं ये पूरा मामला एक तरफा परीक्षण था जो कि शायद ही कोई सामान्य कानूनी अधिकार दिशानिर्देशों का पालन करता था।

वहीं ट्राइब्यूनल ने 7 अक्टूबर 1930 को अपने 300 पेज का फैसला सौंपा। जिसमें कोर्ट ने यह फैसला सुनाया था कि अंग्रेज सरकार के पुलिस अधिकारी सांडर्स हत्या के मामले में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को दोषी पाया गया है।

जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। जिसके बाद भगत सिंह, सुखदेव एवं राजगुरु के खिलाफ मुकदमा चलाया गया।

वहीं 7 अक्टूबर 1930 को अदालत ने भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को भारतीय दंड संहिता की धारा 129, 302 और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 4 और 6एफ के तहत फांसी की सजा सुनायी गई। वहीं इन तीनों क्रांतिकारियों को फांसी पर लटकाने का दिन 24 मार्च 1931 को तय किया गया।

वहीं उस समय पूरे देश में भगत सिंह की रिहाई के लिए प्रदर्शन हो रहे थे जिसके चलते अंग्रेज सरकार को डर था कि इन तीनों क्रांतिकारियों को फांसी की सजा से कहीं बवाल न हो जाए और फैसला बदल न जाए।

इसलिए अंग्रेजों ने उन्हें एक दिन पहले 23 मार्च 1931 की शाम को करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह और उनके साथियों सुखदेव और राजगुरु को लाहौर की जेल में फांसी दे दी।

आपको बता दें कि भगत सिंह फाँसी पर जाने से पहले लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे और जब उनसे उनकी आखरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने लेनिन की जीवनी को पूरा करने का समय मांगा और जब जेल के अधिकारियों ने जब उन्हें यह सूचना दी कि उनके फाँसी का वक्त आ गया है।

तब उन्होंने कहा था- “जरा ठहरिये! “पहले एक क्रान्तिकारी दूसरे से मिल तो ले”। और फिर चंद समय बाद ही उन्होंने अपनी किताब बंद कर हवा में उछाल दी और बोले, ठीके है, अब चलो।

इसके साथ ही भगत सिंह ने फांसी दिए जाने के कुछ समय पहले ही जेल के एक मुस्लिम सफ़ाई कर्मचारी बेबे से अनुरोध किया था कि वो उनके लिए फांसी दिए जाने से एक दिन पहले शाम को अपने घर से खाना ले आए लेकिन भगत सिंह की यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी क्योंकि उन्हें 12 घंटे पहले ही फांसी देने का फैसला ले लिया गया था और सफाई कर्मचारी बेबे जेल के गेट के अंदर भी नहीं घुस पाया था।

इसके साथ ही भगत सिंह ने अपना आखिरी संदेश साम्राज्यवाद मुर्दाबाद और इंकलाब जिंदाबाद दिया।

तीनों क्रांतिकारियों ने गाए आज़ादी का गीत – 

भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु तीनों क्रांतिकारियों को फांसी की तैयारी के लिए उनकी कोठरियों से बाहर निकाला गया। जिसके बाद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने अपने हाथ जोड़े और अपना प्रिय आज़ादी गीत गाने लगे-

कभी वो दिन भी आएगा कि जब आज़ाद हम होंगें ये अपनी ही ज़मीं होगी ये अपना आसमाँ होगा।।

फिर इन तीनों का एक-एक करके वज़न लिया गया। जिसमें सब के वज़न बढ़ गए थे। इसलिए कि वे अपने अंतिम दिनों में काफी खुश थे, क्योंकि वे अपने देश के लिए कुर्बान होने जा रहे थे लेकिन जब इन्हें फांसी देने का ऐलान किया गया तो जेल के अन्य कैदी रो रहे थे।

वहीं फांसी दिए जाने से पहले भगत सिंह को उनके साथियों को उनका आखिरी स्नान करने के लिए कहा गया और फिर उनको काले कपड़े पहनाए गए। लेकिन उनके चेहरे खुले रहने दिए गए।

इस तरह तीनों क्रांतिकारियों ने देश की रक्षा करते हुए अपने जीवन की कुर्बानी दे दी। वहीं शहीदों की फांसी देने के बाद अंग्रेजों द्धारा तीनों शहीदों के शवों को अंतिम संस्कार के लिए सतलुज नदी के किनारे चुपचाप तरीके से ले जाया गया।

और फिर इन तीनों क्रांतिकारी के शवों कों नदी के किनारे जलाया जाने लगा। जिसके बाद वहां गांव वालों की काफी भीड़ इकट्ठी होगी। जिसे देख अंग्रेज जलते हुए शवों को नदी में फेंक कर भाग खड़े हुए।

जिसके बाद गांव के लोगों ने ही विधिवित तरीके से तीनों शहीदों के शवों का अंतिम संस्कार किया और उनकी आत्मा की शांति की प्रार्थना की। महान क्रांतिकारी के शब्दों को कभी नहीं भुलाया जा सकता है ” खुश रहो, हम तो सफर करते हैं ….

भगत सिंह की फांसी और गांधी जी का विरोध:

आपको बता दें कि देश के लिए मर मिटने वाले शहीद भगत सिंह को फांसी दिए जाने पर लोगों ने अंग्रेजों के साथ-साथ भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को दोषी ठहराया। यही नहीं गांधी जी जब लाहौर के कांग्रेस अधिवेशन में शामिल होने जा रहे थे।

तब इससे क्रोधित हुए लोगों ने काले झंडों के साथ गांधी जी का स्वागत किया और कई जगह तो गांधी जी पर हमला तक किया गया।

दरअसल, गांधी जी का ब्रितानी सरकार के साथ समझौता हुआ था। इस समझौते में अहिंसक तरीके से संघर्ष करने के दौरान पकड़े गए सभी कैदियों को छोड़ने की बात कही गई लेकिन राजकीय हत्या के मामले में फांसी की सज़ा पाने वाले भगत सिंह को माफ़ी नहीं मिल पाई।

और फिर इसके बाद लोगों ने गांधी जी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करना शुरु कर दिया और यह सवाल उठाया कि जिस समय भारत के महान क्रांतिकारी भगत सिंह और उनके दूसरे साथियों को सजा दी जा रही है उस समय ब्रितानी सरकार के साथ समझौता कैसे किया जा सकते हैं।

वहीं गांधी जी और इरविन के इस समझौता का कांग्रेस के अंदर स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस समेत कई लोगों ने जमकर विरोध किया। क्योंकि उन लोगों का मानना था कि अगर अंग्रेज सरकार भगत सिंह की फांसी की सजा को माफ नहीं कर रही थी तो समझौता करने की कोई जरूरत नहीं थी। हालांकि, कांग्रेस वर्किंग कमेटी पूरी तरह से गांधी जी के इस फैसले के समर्थन में थी।

इस तरह से लोगों के विरोध के बाद गांधी जी ने इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रयाएं दी है और कहा है कि ‘अंग्रेजी सरकार गंभीर रूप से उकसा रही है। लेकिन समझौते की शर्तों में फांसी रोकना शामिल नहीं था। इसलिए इससे पीछे हटना ठीक नहीं है।

इसके अलावा गांधी जी ने अपनी किताब ‘स्वराज’ में इस बात का भी उल्लेख किया है कि”मौत की सज़ा नहीं दी जानी चाहिए”

इसके अलावा गांधी जी ने भगत सिंह की बहादुरी को मानते हुए उन्होंने उनके मार्ग का साफ शब्दों में विरोध किया और गैर कानूनी बताते हुए यह भी कहा था कि “भगत सिंह और उनके साथियों के साथ बात करने का मौका मि ला होता तो मैं उनसे कहता कि उनका चुना हुआ रास्ता ग़लत और असफल है।

ईश्वर को साक्षी रखकर मैं ये सत्य ज़ाहिर करना चाहता हूं कि हिंसा के मार्ग पर चलकर स्वराज नहीं मिल सकता सिर्फ मुश्किलें मिल सकती हैं।

वहीं यह भी कहा जाता है कि जब गांधी जी ने भगत सिंह की फांसी की सजा को बचाने के लिए ब्रिटिश सरकरा को चिट्ठी लिखी थी जब तक बहुत देर हो चुकी थी वहीं दूसरी तरफ भगत सिंह नहीं चाहते थे कि उनकी फांसी की सजा माफ की जाए क्योंकि भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी का मानना था कि “उनकी शहादत से भारतीय जनता और उद्विग्न हो जाएगी जो कि स्वतंत्रता के लिए जरूरी है।

और ऐसा उनके जिन्दा रहने से शायद ही हो पाये” इसी वजह से उन्होंने मौत की सजा सुनाने के बाद भी माफ़ीनामा लिखने से साफ मना कर दिया था।

गांधीजी उनकी सज़ा माफ़ नहीं करा सके, इसे लेकर गांधीजी से भगत सिंह की नाराजगी से जुड़े साक्ष्य नहीं मिले हैं।

भगत सिंह, भारत के एकमात्र ऐसे युवा क्रांतिकारी थे जिन्होंने देश के हर युवा में देश को गुलामी की बेडि़यों से आजाद करने का जुनून भर दिया था और अपने फौलाद इरादों से उनको प्रेरित किया था।

वे देशभक्ति और कुर्बानी की वो मिसाल थे जिनके बहादुर व्यक्तित्व को उनके द्धारा लिखे गए लेखों से ठीक तरह से समझा जा सकता है।

क़िताबें – 

आपको बता दें कि भगत सिंह ने साल 1930 में लाहौर के सेंद्रल जेल में एक लेख लिखा था – ”मै नास्तिक क्यों हूं ?”(Why I am an Atheist?) । उनके इस लेख में व्यक्तित्व की झलक साफ देखी जा सकती है।

भारत के नौजवानों को प्रेरणा देने के लिए जेल में रहते हुए भी भगत सिंह कई लेख लिखते रहे और अपने लेखों के माध्यम से अपने क्रान्तिकारी विचार व्यक्त करते रहे।

जिससे हर भारतीय नौजवान में न सिर्फ अपनी देश प्रति सम्मान की भावना पैदा हुई बल्कि आजाद भारत में रहने की भी अलख जगी जो कि वाकई प्रेरणादायी है।

धरोहर –

Bhagat Singh Photo

भारत के महान क्रांतिकारी भगत सिंह के सम्मान में देश की कई धरोहर का नाम उनके नाम पर रखा गया। जिससे उन्हें युगों-युगों तक याद किया जा सकेगा।

आपको बता दें कि पंजाब में शहीद भगत सिंह के जिले के खटकार कालन में इनके नाम पर सरदार भगत सिंह म्यूजियम हैं। जहां पर इनकी यादों को संजो कर रखा गया है।

जिनमें कुछ आधी जली हुई हड्डियाँ, भगत सिंह की हस्ताक्षरित भगवद गीता, लाहौर षड्यंत्र के जजमेंट की पहली कॉपी जैसी कुछ अविस्मरणीय धरोहर संरक्षित की गयी हैं।

यही नहीं भगत सिंह के लिखे पत्र, कविताएं और लेख देश के लिए वो अमूल्य धरोहर हैं जो हर पल देशप्रेमियों को प्रेरित करती हैं।

फ़िल्में – 

इसके अलावा भारत के महान क्रांतिकारी भगत सिंह पर कुछ फ़िल्में भी बनाई गयी हैं। जैसे – शहीद (1965) और दी लिजेंड ऑफ़ भगत सिंह (2002)। वहीं “मोहे रंग दे बसंती चोला” और “सरफरोशी की तम्मना” भगत सिंह से जुड़े वो गाने हैं जो हर भारतीय में देशभक्ति की भावना पैदा करते हैं।

इसके अलावा भी उन पर बहुत सी किताबें और लेख भी लिखें जा चुके हैं।

भारत के महान क्रांतिकारी भगत सिंह के देश के लिए किए गए त्याग और बलिदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता है। भगत सिंह जैसे महान क्रांतिकारी की वीरगाथा भारत देश को गौरान्वित करती है और देश का सिर गर्व से ऊंचा करती है।

उनकी बलिदान की कहानी इतिहास के पन्नों पर अमर है और लाखों नौजवान उन्हें अपना प्रेरणास्त्रोत मानते हैं। भारत के महान क्रांतिकारी और सच्चे देशभक्त को ज्ञानी पंडित की टीम शत-शत नमन करती है।

एक नजर में – 

  • 1924 में भगतसिंग / Bhagat Singh कानपूर गये। वह पहलीबार अखबार बेचकर उन्हें अपना घर चलाना पडा। बाद में एक क्रांतिकारी गणेश शंकर विद्यार्थी इनके संपर्क में वो आये। उनके ‘प्रताप’ अखबार के कार्यालय में भगतसिंग को जगा मिली।
  • 1925 में भगतसिंग / Bhagat Singh और उनके साथी दोस्तों ने नवजवान भारत सभा की स्थापना की।
  • दशहरे को निकाली झाकी ने कुछ बदमाश लोगोने बॉम्ब डाला था। इस के कारण कुछ लोगोकी मौत हुयी। इस के पीछे क्रांतिकारीयोका हात होंगा, ऐसा पुलिस को शक था। उसके लिये भगतसिंग को पड़कर उनको जेल भेजा गया पर न्यायालय से वो बेकसूर छुट कर आये।
  • ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन असोसिएन’ इस क्रांतिकारी संघटने के भगतसिंग सक्रीय कार्यकर्ता हुये।
  • ‘किर्ती’ और ‘अकाली’ नाम के अखबारों के लिये भगतसिंग लेख लिखने लगे।
  • समाजवादी विचारों से प्रभावित हुये युवकोंने देशव्यापी क्रांतिकारी संघटना खडी करने का निर्णय लिया। चंद्रशेखर आझाद, भगतसिंग, सुखदेव आदी। युवक इस मुख्य थे। ये सभी क्रांतिकारी धर्मनिरपेक्ष विचारों के थे।
  • 1928 में दिल्ली के फिरोजशहा कोटला मैदान पर हुयी बैठक में इन युवकोने ‘हिन्दुस्थान सोशॅलिस्ट रिपब्लिकन असोसिएशन’ इस संघटने की स्थापना की भारत को ब्रिटीशो के शोषण से आझाद करना ये उस संघटना का उददेश था।

उसके साथ ही किसान – कामगार का शोषण करने वाली अन्यायी सामाजिक – आर्थिक व्यवस्था को भी बदलना था। संघटने के नाम में ‘सोशॅलिस्ट’ इस शब्द का अंतर्भाव करने की सुचना भगतसिंग ने रखी और वो सभी ने मंजूर की।

शस्त्र इकठ्ठा करना और कार्यक्रमों की प्रवर्तन करना ये कम इस स्वतंत्र विभाग के तरफ सौपी गयी। इस विभाग का नाम ‘हिंदुस्तान सोशॅलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी’ था और उसके मुख्य थे चंद्रशेखर आझाद।

8) 1927 में भारत में कुछ सुधारना देने के उद्दश से ब्रिटिश सरकार ने ‘सायमन कमीशन’ की नियुक्ति की पर सायमन कमीशन में सातो सदस्य ये अंग्रेज थे। उसमे एक भी भारतीय नही था। इसलिये भारतीय रास्ट्रीय कॉग्रेस ने सायमन कमीशन पर ‘बहिष्कार’ डालने का निर्णय लिया।

उसके अनुसार जब सायमन कमीशन लाहोर आया तब पंजाब केसरी लाला लजपतराय इनके नेतृत्त्व में निषेध के लिये बड़ा मोर्चा निकाला था। पुलिस के निर्दयता से किये हुये लाठीचार्ज में लाला लजपत राय घायल हुये और दो सप्ताह बाद अस्पताल में उनकी मौत हुयी।

9) लालाजि के मौत के बाद देश में सभी तरफ लोग क्रोधित हुये। ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन असोसिएशन ने तो लालाजी की हत्या का बदला लेने का निर्णय लिया। लालाजी के मौत के जिम्मेदार स्कॉट इस अधिकारी को मरने की योजना बनायीं गयी। इस काम के लिए भगतसिंग, चंद्रशेखर आझाद, राजगुरु, जयगोपाल इनको चुना गया।

उन्होंने 17 दिसंबर 1928 को स्कॉट को मरने की तैयारी की लेकिन इस प्रयास में स्कॉट के अलावा सँडर्स ये दूसरा अंग्रेज अधिकारी मारा गया। इस घटना के बाद भगतसिंग भेष बदलके कोलकता को गये। उस जगह उनकी जतिंद्रनाथ दास से पहचान हुई उनको बॉम्ब बनाने की कला आती थी। भगतसिंग और जतिंद्रनाथ इन्होंने बम बनाने की फैक्टरी आग्रा में शुरु किया।

10) उसके बाद भगतसिंग और उनके सहयोगी इनके उपर सरकार ने अलग – अलग आरोप लगाये। पहला आरोप उनके उपर  कानून बोर्ड के हॉल में बम डालने का था। इस आरोप में भगतसिंग और बटुकेश्वर दत्त इन दोनों को आजन्म कारावास की सजा हुयी। लेकिन सँडर्स के खून के आरोप में भगतसिंग, सुखदेव और राजगुरु इन्हें दोषी करार करके फासी की सजा सुनाई गयी।

11) 23 मार्च 1931 को भगतसिंग, सुखदेव और राजगुरु इन तीनो को महान क्रांतिकारीयोको फासी दी गयी। ‘ इन्कलाब जिंदाबाद ’, ‘भारत माता की जय’ की घोषणा देते हुये उन्होंने हसते-हसते मौत को गले लगाया।

कथन/विचार – 

Bhagat Singh Quotes

  • “सीने पर जो जख्म हैं, सब फूलो के गुच्छे हैं। हमें पागल ही रहने डॉ हम पागल ही अच्छे हैं।”
  • “मैं एक मानव हू और जो कुछ भी मानवता को प्रभावित करता हैं उससे मुझे मतलब हैं।”
  • “जिंदगी अपने दम पर जी जाती हैं, दूसरो के कंधो पर तो जनाजे निकलते हैं।”
  • “मै यह मानता हु के मै महत्वाकांक्षी, आशावादी एवं जिवन के प्रति उत्साही हु, लेकिन आवश्यकता के अनुसार मै इस सबका परित्याग भी कर सकता हु और वही सच्चा त्याग होगा।”
  • “प्रेमी, पागल और कवी एक ही थाली के चट्टे बट्टे होते है, मतलब के एक सामान होते है।”
  • “व्यक्तियों को कुचल कर उनको विचारो को नहीं मार सकते है।”
  • “निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार ये क्रांतिकारी सोच के दो अहम् लक्षण होते है।”
  • “क्या तुम्हे पता है की दुनिया में सबसे बड़ा पाप गरीब होना है?गरीबी एक अभिशाप है यह एक सजा है।”
  • “सारे जहा से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा।”

कार्य – 

यह तिनो भी युवा क्रांतिकारी थे जिनकी सोच तत्कालीन गाँधीवादी विचारधारा से थोडा अलग थी।इन नौजवानों का स्पष्ट रूप से मानना था के केवल अहिंसा के मार्ग से आजादी मिलना होता तो ये बहुत पहले हो चूका होता। अंग्रेजो की गुलामी भरे एवं लुट के शासन के विरुध्द तत्कालीन समाज में क्रांतिकारी प्रवाह भी मौजूद था जिसके ये तिन युवा काफी सक्रीय कार्यकर्ता थे।

बात करे सशस्त्र क्रांतिकारी मुहीम की तो सेंट्रल असेम्बली में बम फेकना हो या, सौन्डर्स की हत्या की इन तिनो का खासा सहयोग रहा।जेल में भारतीय कैदियों को दिये जाने वाले अमानवीय वर्तन के खिलाफ अन्नत्याग कर किये गए भगत सिंह के आन्दोलन ने उस समय की अंग्रेज शासन व्यवस्था को हिला दिया। अंत में उनकी मांग ब्रिटिश सरकार को माननी भी पड़ी।

पंजाब के प्रखर स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपतराय के साथ शुरुवाती दिनों में इन युवाओ ने आन्दोलन में भी हिस्सा लिया।जहा सायमन कमीशन के खिलाफ आन्दोलन में ब्रिटिश पुलिसों द्वारा किये गए लाठीचार्ज से बुजुर्ग लाला लाजपतराय की मौत हुई थी। इस घटना ने इन युवाओ के मन पर गहरा आघात किया था। वही से शांति से आंदोलन के मार्ग से कुछ भी हासिल नहीं होता ऐसे सोच से इन युवाओ ने अंग्रेजो के खिलाफ सशस्त्र क्रांति के मार्ग को चुना।

“हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी” जिसके ये तिनो और अन्य युवा क्रांतिकारी कार्यकर्ता थे, उसका नाम बदलकर “हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन असोसिएशन” ऐसा रखा गया।

लगभग बहुत से मुहीम में सुखदेव,राजगुरु और भगत सिंह का साथमे सहयोग रहा और इन तिनो देशभक्त क्रांतिकारियों को एक ही दिन २३ मार्च १९३१ को साथमे फांसी की सजा दी गई।  

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान –

पर साथ ही गांधीजी ने चौरीचौरा घटना की वजह से असहयोग आंदोलन रोक दिया था, ये बात भगत सिंह को बिलकुल रास नहीं आई थी। महाविद्यालय के दिनों से युवाओ को संघटित कर देश प्रेम और एकता का भाव उनमे जगाने के प्रयास भगत सिंह द्वारा होते थे।

इसी परिवेश में उनकी मुलाकात सुखदेव और अन्य क्रांतिकारियों से होना एवं बादमे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी से जुड़ना इन सभी चिजो ने भगत सिंह को भारतीय क्रांतिकारी इतिहास के पटल पर अलग ही स्थान दिलाया।

शुरूमें सत्याग्रह एवं शांतता पूर्ण आन्दोलन को समर्थन देने वाले इस युवा क्रांतिकारी का मन तब और क्षुब्ध हुआ जब अंग्रेजो द्वारा किये गए अमानवीय लाठीचार्ज में बुजुर्ग स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपतराय की मृत्यु हुई।

इस घटना ने भगत सिंह के मनमे बसे चिंगारी को हवा देने का काम किया जिसका नतीजा ये हुआ की सौन्डर्स की हत्या को अंजाम दिया गया।

भगत सिंह जात,धर्म,पंथ एवं सामाजिक विषमता से उठकर अलग समाज व्यवस्था निर्माण के पक्ष में थे।उनका मकसद केवल अंगेजो से आजादी हासिल करने तक सिमित नहीं था,बल्कि जात धर्म और आर्थिक विषमता को दूर कर सर्व समावेशक समाज के निर्माण के वे पक्ष में थे।

उस समय क्रांतिकारियों के बारे में लोगो के मन में अनेक संभ्रम थे एवं बहुत से लोगो को ये मार्ग ठिक से समझ में नही आता था।

इसीलिए क्रांतिकारियों का सही मकसद आम जनता तक पहुचाने एवं लोगो को क्रांति का महत्व समझाने हेतु सेंट्रल असेम्बली में बम विस्फोट किये गए। यहाँ भगत सिंह लोगो को सन्देश देना चाहते थे के हम इंसानी जान की कदर करते है,इसलिए बम विस्फोट किसी को क्षति पहुचाने के हेतू से नहीं किया गया था।

भगत सिंह का कहना था , “हमारा मकसद केवल अंग्रेज मुक्त भारत है जिसे हासिल करने हेतु क्रांति का पथ हमने चुना है,क्योंकि अंग्रेज सरकार बहरी है और बहरो को सुनाने हेतु ऊचे धमाकेदार आवाज की जरूरत होती है।”

भारतीय कैदियों को जेल में अत्यंत बुरी तरह की से रखा जाता था एवं उनसे निचले स्तर का बरताव होना उस समय आम सी बात थी।ना ही इन कैदियों को स्वच्छ कपडे पहनने को दिये जाते थे और नाही भोजन स्वच्छ और सही मिलता था।

इसी के विरोध में भगत सिंह ने उनके जेल के दिनों में अन्नत्याग कर आन्दोलन किया जिससे उन्हें काफी कष्ट और दुःख का सामना करना पड़ा।पर अनेक दिनों तक भूका रहने के बावजूद भी वो उनके मकसद से नहीं हटे थे अंततः अंग्रेज सरकार को उनकी मांगो को मानना पड़ा।

जो के एक सामाजिक सुधार ही माना जाना चाहिए, क्योंकि अमानवीय बरताव को न्याय मिल चूका था वो भी केवल और केवल भगत सिंह द्वारा किये गए के कठिन प्रयासों से।

भगत सिंह के मृत्यु के बाद भी भारतीय समाज में वो क्रांति का सैलाब आया के साल १९४७ आने तक अंग्रेजो को अनेक जन असंतोष का सामना करना पड़ा और इसका नतीजा तख्ता पलट के रूप में हुआ।

भगत सिंह तो गए थे पर उनके द्वारा तैयार किये गये क्रांति के पथ पर बहुत सारे युवा आगे चलकर अग्रेसर हुए, और क्रांतिकारी भूमिका एवं विचारो का लोहा सरकार और अन्य विचारधाराओ को पता चला तथा मानना पड़ा।

भारतीय इतिहास में भगत सिंह जैसे व्यक्ती विरले ही हुए है, जो एक प्रखर देशभक्त तो थे पर उच्च विचार, मानवीय मूल्यों और आदर्शो के धनि भी थे।

ये वो व्यक्ती थे जो फांसी पर भी हसते हसते झूल गए क्योंकि इनकी जिन्दगी और मौत केवल आजादी के ही इर्द गिर्द सिमित थी और दूसरा खयाल शायद ही इन्होने जिवन में किया हो।

भारत माता के सुपुत्र एवं सर्वोच्च बलिदानी महान क्रांतिकारक भगत सिंह जी को ज्ञानी पंडित की पूरी टीम के तरफ से कोटि कोटि नमन एवं आभार के साथ भावपूर्ण श्रद्धांजली।

जवाब: भगत सिंह किशन सिंह संधू।

जवाब: २३ साल।

जवाब: नही।

जवाब: २७ सितम्बर १९०७।

जवाब: २३ मार्च १९३१।

जवाब: मै नास्तिक क्यों हु यानि के व्हाय आय एम् अन अथेइस्ट।

जवाब: हा, जैसे के द लिजंड ऑफ़ भगत सिंह, शहीद २३ मार्च १९३१ और अमर शहीद भगत सिंह इत्यादि।

जवाब: कुलतार सिंह, रणबीर सिंह, जगत सिंह, राजिंदर सिंह और कुलबीर सिंह।

जवाब: बीबी प्रकाश कौर, बीबी अमन कौर, बीबी शकुंतला कौर।

जवाब: साल १९७५ में।

40 thoughts on “भगतसिंग की जीवनी”

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बेहतरीन एवं जानकारी पूर्ण लेख .. आज के इस शोशल मिडिया के दौर में जहाँ युवकों और युवतियों के आदर्श फ़िल्मी सितारे और शोशल मीडिया स्टार होतें वहीं भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों को भी आदर्श मानने वाले लोग है .. और इस बात का प्रमाण है आपकी वेबसाइट पर लिखा इतना बेहतरीन लेख । निःसंदेह .. आप जैसे लेखक अभी भी युवा पीढ़ी को इन क्रांतिकारियों से परिचित करवाकर बहुत सुन्दर कार्य कर रहें है .. आप भविष्य में भी इतने उम्दा लेखों द्वारा सतत प्रेरणा प्रदान करते रहें .. यही शुभकामना है .. धन्यवाद

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शहीद भगत सिंह की जीवनी

bhagat singh biography book in hindi

शहीद भगत सिंह के अदभुत साहसिक कार्यों ने भारतीय युवाओं को भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए बहुत अधिक प्रेरित किया था। वह आज भी आधुनिक भारत के नवयुवकों के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं। शहीद भगत सिंह की जयंती के उपलक्ष्य में रिर्जव बैंक ने पाँच रुपये का नया सिक्का जारी किया, जिसमें भगत सिंह के नाम व चित्र को हिंदी व अंग्रेजी शब्दों के साथ प्रदर्शित किया गया था।

शहीद भगत सिंह को अक्सर ‘युवाओं के प्रतीक’ या ‘युवाओं के क्रांतिकारी’ के रूप में जाना जाता है लेकिन उनकी महानता, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल कुछ प्रमुख नामों के बराबर है। उनकी देशभक्ति अंग्रेजों के खिलाफ हिंसा विरोधी भयंकर विस्फोटों तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि उनके पास विचार और बुद्धि की एक अपूर्व प्रतिभा भी थी, जिससे वे सांप्रदायिक तर्ज पर भारत के विभाजन का पूर्वानुमान लगा सकते थे, उस समय के बहुत से प्रमुख नेता भी इस बात का अनुमान लगाने में असमर्थ थे। धर्म से ज्यादा देश के हितों को ध्यान में रखते हुए परिपक्व और तर्कसंगत विचार उनके एक प्रमुख गुण को प्रदर्शित करते थे। उनकी शैक्षिक योग्यता इस तथ्य को प्रदर्शित करती है कि वह केवल उन्मादी जनांदोलनों के जनक ही नहीं थे, बल्कि अपनी राय और विचारों को अच्छी तरह से सोच-समझ कर प्रकट करते थे।

भगत सिंह का व्यक्तिगत जीवन

भारत के सबसे प्रमुख क्रांतिकारियों में से एक माने जाने वाले भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को लयालपुर जिले के बंगा गाँव (जो इस समय पाकिस्तान में है) के एक सिख परिवार में हुआ था। भगत सिंह, पिता सरदार किशन सिंह और माँ विद्यावती के तीसरे पुत्र थे। उनके पिता और चाचा गदर पार्टी के सदस्य थे।

भगत सिंह पर प्रभाव

वह समाजवाद की ओर आकर्षित होने लगे थे। भारत के शुरुआती मार्क्सवादियों में से एक माने जाने वाले भगत सिंह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचएसआरए) के नेताओं और संस्थापकों में से एक थे। 1919 में जलियाँ वाला बाग हत्याकांड से भगत सिंह बहुत दुखी हुए। हालांकि उन्होंने असहयोग आंदोलन में भी हिस्सा लिया था परन्तु जब चौरी-चौरा घटना के बाद गाँधीजी ने यह आंदोलन बंद कर दिया, तो भगत सिंह उनके इस फैसले से काफी निराश हुए थे। जब वह लाहौर के नेशनल कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे तभी उनकी मुलाकात भगवती चरण, सुखदेव और अन्य क्रांतिकारियों से हुई। वह विवाह से बचने के लिए घर से भाग गए और नौजवान भारत सभा के सदस्य बने गये थे।

भगत सिंह के कार्य

भगत सिंह आतंकवाद के व्यक्तिगत नियमों के खिलाफ थे। उन्होंने जन-समुदाय को एकत्रित करने का एक संकल्प लिया। 1928 में उनकी मुलाकात एक प्रसिद्ध क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद के साथ हुई। भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद दोनों क्रांतिकारियों ने ‘हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ’ बनाने के लिए संगठन तैयार किया और फरवरी 1928 में साइमन कमीशन की भारत यात्रा के दौरान, लाहौर में साइमन कमीशन की यात्रा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था। इन विरोध प्रदर्शनकारियों में लाला लाजपत राय भी शामिल थे, जो पुलिस द्वारा की गई लाठी चार्ज में घायल हो गए और बाद में इन्हीं चोटों के कारण उनकी मृत्यु भी हो गयी थी। भगत सिंह ने लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए उनकी हत्या के लिए जिम्मेदार ब्रिटिश अधिकारी, उप निरीक्षक जनरल स्कॉट को मारने का फैसला कर लिया। परन्तु उन्होंने गलती से सहायक अधीक्षक सॉन्डर्स को ही स्कॉट समझ कर  गोली मार दी थी।

भगत सिंह ने 8 अप्रैल 1929 को केंद्रीय विधान सभा में एक बम फेंका और उसके बाद स्वयं गिरफ्तार हो गये थे। अदालत ने भगत सिंह, सुख देव और राज गुरु को उनकी विद्रोही गतिविधियों के कारण मौत की सजा सुनाई। उन्हें 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी गई थी। भगत सिंह को भारत में आज भी बड़ी संख्या में युवाओं के द्वारा एक आदर्श के रूप में देखा जाता है। उनकी बलिदान की भावना, देशभक्ति और साहस कुछ ऐसा है जिसे आने वाली पीढ़ियों में सम्मान से देखा जाएगा।

शहीद भगत सिंह के बारे में तथ्य और जानकारी

 जन्म 27 सितम्बर 1907
 धर्म  सिख
 जन्म स्थान बंगा, जरनवाला तहसील, लयालपुर जिला, पंजाब, ब्रिटिश भारत
 राष्ट्रीयता भारतीय
 मृत्यु 23 मार्च 1931 (23 साल), लाहौर, पंजाब, ब्रिटिश भारत
 शिक्षा उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज में अध्ययन किया जहाँ वह अन्य क्रांतिकारियों जैसे भगवती चरण से संपर्क में आए,
राजनीति में शामिल होने से पहले व्यावसाय यूरोपीय क्रांतिकारी आंदोलनों और अराजकतावादी और मार्क्सवादी विचारधाराओं के प्रति आकर्षित थे।
सम्बंधित हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन
राजनीतिक कैरियर नौजवान भारत सभा, कीर्ति किसान पार्टी,
प्रकाशन और लेखन उन्होंने अमृतसर से प्रकाशित उर्दू और पंजाबी अख़बारों को लिखा और संपादित किया, साथ ही अंग्रेजों को उकसाने के लिए नौजवान भारत सभा द्वारा प्रकाशित कम कीमत वाली पुस्तिकाओं में भी योगदान दिया। उन्होंने दिल्ली में प्रकाशित वीर अर्जुन समाचार पत्रऔर कीर्ति किसान पार्टी (“श्रमिक और किसान पार्टी”) की पत्रिका के लिए संक्षेप में लिखा था। उन्होंने अक्सर बलवंत, रणजीत और विदर्रो जैसे नामों सहित छद्म नामों का भी प्रयोग किया।

 

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  • पुष्पलता दास की जीवनी
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  • तानाजी की जीवनी

It's Hindi

जन्म : 27 सितम्बर, 1907 निधन : 23 मार्च, 1931

उपलब्धियां : भारत के क्रन्तिकारी आंदोलन को एक नई दिशा दी, पंजाब में क्रांति के सन्देश को फ़ैलाने के लिए नौजवान भारत सभा का गठन किया, भारत में गणतंत्र की स्थापना के लिए चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ का गठन किया, लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए पुलिस अधिकारी सॉन्डर्स की हत्या की, बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर केन्द्रीय विधान सभा में बम फेका

शहीद भगत सिंह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख क्रांतिकारियों में से एक थे। मात्र 24 साल की उम्र में देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाला यह वीर सदा के लिए अमर हो गया। उनके लिए क्रांति का अर्थ था – अन्याय से पैदा हुए हालात को बदलना। भगत सिंह ने यूरोपियन क्रांतिकारी आंदोलन के बारे में पढ़ा और समाजवाद की ओर अत्यधिक आकर्षित हुए। उनके अनुसार, ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेकने और भारतीय समाज के पुनर्निमाण के लिए राजनीतिक सत्ता हासिल करना जरुरी था।

हालाँकि अंग्रेज सरकार ने उन्हें आतंकवादी घोषित किया था पर सरदार भगत सिंह व्यक्तिगत तौर पर आतंकवाद के आलोचक थे। भगत सिंह ने भारत में क्रांतिकारी आंदोलन को एक नई दिशा दी। उनका तत्कालीन लक्ष्य ब्रिटिश साम्राज्य का विनाश करना था। अपनी दूरदर्शिता और दृढ़ इरादे जैसी विशेषता के कारण भगत सिंह को राष्ट्रीय आंदोलन के दूसरे नेताओं से हटकर थे। ऐसे समय पर जब गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ही देश की आजादी के लिए एक मात्र विकल्प थे, भगत सिंह एक नयी सोच के साथ एक दूसरे विकल्प के रूप में उभर कर सामने आये।

प्रारंभिक जीवन भगत सिंह का जन्म पंजाब के नवांशहर जिले के खटकर कलां गावं के एक सिख परिवार में 27 सितम्बर 1907 को हुआ था। उनकी याद में अब इस जिले का नाम बदल कर शहीद भगत सिंह नगर रख दिया गया है। वह सरदार किशन सिंह और विद्यावती की तीसरी संतान थे। भगत सिंह का परिवार स्वतंत्रता संग्राम से सक्रिय रूप से जुड़ा हुआ था। उनके पिता किशन सिंह और चाचा अजित सिंह ग़दर पार्टी के सदस्य थे। ग़दर पार्टी की स्थापना ब्रिटिश शासन को भारत से निकालने के लिए अमेरिका में हुई थी। परिवार के माहौल का युवा भगत सिंह के मष्तिष्क पर बड़ा असर हुआ और बचपन से ही उनकी नसों में देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भर गयी।

1916 में लाहौर के डी ऐ वी विद्यालय में पढ़ते समय युवा भगत सिंह जाने-पहचाने राजनेता जैसे लाला लाजपत राय और रास बिहारी बोस के संपर्क में आये। उस समय पंजाब राजनैतिक रूप से काफी उत्तेजित था। जब जलिआंवाला बाग़ हत्याकांड हुआ तब भगत सिंह सिर्फ १२ वर्ष के थे। इस हत्याकांड ने उन्हें बहुत व्याकुल कर दिया। हत्याकांड के अगले ही दिन भगत सिंह जलिआंवाला बाग़ गए और उस जगह से मिट्टी इकठ्ठा कर इसे पूरी जिंदगी एक निशानी के रूप में रखा। इस हत्याकांड ने उनके अंग्रेजो को भारत से निकाल फेंकने के संकल्प को और सुदृढ़ कर दिया।

क्रन्तिकारी जीवन 1921 में जब महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ असहयोग आंदोलन का आह्वान किया तब भगत सिंह ने अपनी पढाई छोड़ आंदोलन में सक्रिय हो गए। वर्ष 1922 में जब महात्मा गांधी ने गोरखपुर के चौरी-चौरा में हुई हिंसा के बाद असहयोग आंदोलन बंद कर दिया तब भगत सिंह बहुत निराश हुए। अहिंसा में उनका विश्वास कमजोर हो गया और वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सशस्त्र क्रांति ही स्वतंत्रता दिलाने का एक मात्र उपयोगी रास्ता है। अपनी पढाई जारी रखने के लिए भगत सिंह ने लाहौर में लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित राष्ट्रीय विद्यालय में प्रवेश लिया। यह विधालय क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र था और यहाँ पर वह भगवती चरण वर्मा, सुखदेव और दूसरे क्रांतिकारियों के संपर्क में आये।

विवाह से बचने के लिए भगत सिंह घर से भाग कर कानपुर चले गए। यहाँ वह गणेश शंकर विद्यार्थी नामक क्रांतिकारी के संपर्क में आये और क्रांति का प्रथम पाठ सीखा। जब उन्हें अपनी दादी माँ की बीमारी की खबर मिली तो भगत सिंह घर लौट आये। उन्होंने अपने गावं से ही अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को जारी रखा। वह लाहौर गए और ‘नौजवान भारत सभा’ नाम से एक क्रांतिकारी संगठन बनाया। उन्होंने पंजाब में क्रांति का सन्देश फैलाना शुरू किया। वर्ष 1928 में उन्होंने दिल्ली में क्रांतिकारियों की एक बैठक में हिस्सा लिया और चंद्रशेखर आज़ाद के संपर्क में आये। दोनों ने मिलकर हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ का गठन किया। इसका प्रमुख उद्देश्य था सशस्त्र क्रांति के माध्यम से भारत में गणतंत्र की स्थापना करना।

फरवरी 1928 में इंग्लैंड से साइमन कमीशन नामक एक आयोग भारत दौरे पर आया। उसके भारत दौरे का मुख्य उद्देश्य था – भारत के लोगों की स्वयत्तता और राजतंत्र में भागेदारी। पर इस आयोग में कोई भी भारतीय सदस्य नहीं था जिसके कारण साइमन कमीशन के विरोध का फैसला किया। लाहौर में साइमन कमीशन के खिलाफ नारेबाजी करते समय लाला लाजपत राय पर क्रूरता पूर्वक लाठी चार्ज किया गया जिससे वह बुरी तरह से घायल हो गए और बाद में उन्होंने दम तोड़ दिया। भगत सिंह ने लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए ब्रिटिश अधिकारी स्कॉट, जो उनकी मौत का जिम्मेदार था, को मारने का संकल्प लिया। उन्होंने गलती से सहायक अधीक्षक सॉन्डर्स को स्कॉट समझकर मार गिराया। मौत की सजा से बचने के लिए भगत सिंह को लाहौर छोड़ना पड़ा।

ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों को अधिकार और आजादी देने और असंतोष के मूल कारण को खोजने के बजाय अधिक दमनकारी नीतियों का प्रयोग किया। ‘डिफेन्स ऑफ़ इंडिया ऐक्ट’ के द्वारा अंग्रेजी सरकार ने पुलिस को और दमनकारी अधिकार दे दिया। इसके तहत पुलिस संदिग्ध गतिविधियों से सम्बंधित जुलूस को रोक और लोगों को गिरफ्तार कर सकती थी। केन्द्रीय विधान सभा में लाया गया यह अधिनियम एक मत से हार गया। फिर भी अँगरेज़ सरकार ने इसे ‘जनता के हित’ में कहकर एक अध्यादेश के रूप में पारित किये जाने का फैसला किया। भगत सिंह ने स्वेच्छा से केन्द्रीय विधान सभा, जहाँ अध्यादेश पारित करने के लिए बैठक का आयोजन किया जा रहा था, में बम फेंकने की योजना बनाई। यह एक सावधानी पूर्वक रची गयी साजिश थी जिसका उद्देश्य किसी को मारना या चोट पहुँचाना नहीं था बल्कि सरकार का ध्यान आकर्षित करना था और उनको यह दिखाना था कि उनके दमन के तरीकों को और अधिक सहन नहीं किया जायेगा।

8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने केन्द्रीय विधान सभा सत्र के दौरान विधान सभा भवन में बम फेंका। बम से किसी को भी नुकसान नहीं पहुचा। उन्होंने घटनास्थल से भागने के वजाए जानबूझ कर गिरफ़्तारी दे दी। अपनी सुनवाई के दौरान भगत सिंह ने किसी भी बचाव पक्ष के वकील को नियुक्त करने से मना कर दिया। जेल में उन्होंने जेल अधिकारियों द्वारा साथी राजनैतिक कैदियों पर हो रहे अमानवीय व्यवहार के विरोध में भूख हड़ताल की। 7 अक्टूबर 1930 को भगत सिंह, सुख देव और राज गुरु को विशेष न्यायलय द्वारा मौत की सजा सुनाई गयी। भारत के तमाम राजनैतिक नेताओं द्वारा अत्यधिक दबाव और कई अपीलों के बावजूद भगत सिंह और उनके साथियों को 23 मार्च 1931 को प्रातःकाल फांसी दे दी गयी।

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भगत सिंह को भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन के सबसे प्रभावशाली क्रांतिकारियों में से एक माना जाता है. वह कई क्रांतिकारी संगठनों के साथ जुड़ गए और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. महज 23 साल की उम्र में शहीद हो गए. उनके निष्पादन के बाद, 23 मार्च, 1931 को, भगत सिंह के समर्थकों और अनुयायियों ने उन्हें माना जाता हैं.

नाम (Name)भगत सिंह
जन्म दिनांक(Birth Date)28 सितंबर 1907
जन्म स्थान (Birth Place)ग्राम बंगा, तहसील जरनवाला, जिला लायलपुर, पंजाब
पिता का नाम (Father Name)किशन सिंह
माता का नाम (Mother Name)विद्यावती कौर
शिक्षा (Education)डी.ए.वी. हाई स्कूल, लाहौर, नेशनल कॉलेज, लाहौर
संगठननौजवान भारत सभा, हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन, कीर्ति किसान पार्टी, क्रांति दल
राजनीतिक विचारधारासमाजवाद, राष्ट्रवाद
मृत्यु (Death)23 मार्च 1931
मृत्यु का स्थान (Death Place)लाहौर
स्मारक (Memorial)द नेशनल शहीद मेमोरियल, हुसैनवाला, पंजाब

भगत सिंह का जन्म और प्रारंभिक जीवन (Bhagat Singh Birth & Childhood)

भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 को लायलपुर जिले (अब पाकिस्तान) के बंगा में किशन सिंह और विद्यापति के यहाँ हुआ था. उनके जन्म के समय उनके पिता किशन सिंह, चाचा अजीत और स्वर्ण सिंह 1906 में लागू किए गए औपनिवेशीकरण विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन के लिए जेल में थे. उनके चाचा सरदार अजीत सिंह, आंदोलन के नेता थे और उन्होंने भारतीय देशभक्त संघ की स्थापना की. चेनाब नहर कॉलोनी बिल के खिलाफ किसानों को संगठित करने में उनके मित्र सैयद हैदर रज़ा ने उनका अच्छा साथ दिया. अजीत सिंह के खिलाफ 22 मामले दर्ज थे और उन्हें ईरान भागने के लिए मजबूर किया गया था. इसके अलावा उनका परिवार ग़दर पार्टी का समर्थक था और घर में राजनीतिक रूप से जागरूक माहौल ने युवा भगत सिंह के दिल में देशभक्ति की भावना पैदा करने में मदद की.

भगत सिंह की शिक्षा (Bhagat Singh Education)

भगत सिंह ने अपने गाँव के स्कूल में पाँचवीं कक्षा तक पढ़ाई की. जिसके बाद उनके पिता किशन सिंह ने उन्हें लाहौर के दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल में दाखिला दिलाया. बहुत कम उम्र में, भगत सिंह ने महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए असहयोग आंदोलन का अनुसरण किया. भगत सिंह ने खुले तौर पर अंग्रेजों को ललकारा था और सरकार द्वारा प्रायोजित पुस्तकों को जलाकर गांधी की इच्छाओं का पालन किया था. यहां तक ​​कि उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज में दाखिला लेने के लिए स्कूल छोड़ दिया.

उनके किशोर दिनों के दौरान दो घटनाओं ने उनके मजबूत देशभक्ति के दृष्टिकोण को आकार दिया – 1919 में जलियांवाला बाग मसकरे और 1921 में ननकाना साहिब में निहत्थे अकाली प्रदर्शनकारियों की हत्या. उनका परिवार स्वराज प्राप्त करने के लिए अहिंसक दृष्टिकोण की गांधीवादी विचारधारा में विश्वास करता था. भगत सिंह ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और असहयोग आंदोलन के पीछे के कारणों का भी समर्थन किया. चौरी चौरा घटना के बाद, गांधी ने असहयोग आंदोलन को वापस लेने का आह्वान किया. फैसले से नाखुश भगत सिंह ने गांधी की अहिंसक कार्रवाई से खुद को अलग कर लिया और युवा क्रांतिकारी आंदोलन में शामिल हो गए. इस प्रकार ब्रिटिश राज के खिलाफ हिंसक विद्रोह के सबसे प्रमुख वकील के रूप में उनकी यात्रा शुरू हुई.

Bhagat Singh Biography in Hindi

वह बी.ए. की परीक्षा में थे. जब उनके माता-पिता ने उसकी शादी करने की योजना बनाई. उन्होंने सुझाव को अस्वीकार कर दिया और कहा कि, “यदि उनकी शादी गुलाम-भारत में होने वाली थी, तो मेरी दुल्हन की मृत्यु हो जाएगी.”

मार्च 1925 में यूरोपीय राष्ट्रवादी आंदोलनों से प्रेरित होकर भोज सिंह के साथ, इसके सचिव के रूप में नौजवान भारत सभा का गठन किया गया था. भगत सिंह एक कट्टरपंथी समूह हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एच.आर.ए.) में भी शामिल हुए. जिसे बाद में उन्होंने साथी क्रांतिकारियों चंद्रशेखर आज़ाद और सुखदेव के साथ हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एच.एस.आर.ए.) के रूप में फिर से शुरू किया. शादी करने के लिए मजबूर नहीं करने के आश्वासन मिलने के बाद वह अपने माता-पिता के घर लाहौर लौट आए. उन्होंने कीर्ति किसान पार्टी के सदस्यों के साथ संपर्क स्थापित किया और अपनी पत्रिका “कीर्ति” में नियमित रूप से योगदान देना शुरू कर दिया. एक छात्र के रूप में भगत सिंह एक उत्साही पाठक थे और वे यूरोपीय राष्ट्रवादी आंदोलनों के बारे में पढ़ते थे. फ्रेडरिक एंगेल्स और कार्ल मार्क्स के लेखन से प्रेरित होकर, उनकी राजनीतिक विचारधाराओं ने आकार लिया और उनका झुकाव समाजवादी दृष्टिकोण की ओर हो गया.

राष्ट्रीय आंदोलन और क्रांतिकारी गतिविधियाँ में योगदान (Role in National Movement and Revolutionary Activities)

प्रारंभ में भगत सिंह की गतिविधियाँ ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध संक्षिप्‍त लेख लिखने, सरकार को उखाड़ फेंकने के उद्देश्य से एक हिंसक विद्रोह के सिद्धांतों को रेखांकित करने, मुद्रित करने और वितरित करने तक सीमित थीं. युवाओं पर उनके प्रभाव और अकाली आंदोलन के साथ उनके सहयोग को देखते हुए, वह सरकार के लिए एक रुचि के व्यक्ति बन गए. पुलिस ने उन्हें 1926 में लाहौर में हुए बमबारी मामले में गिरफ्तार किया. उन्हें 5 महीने बाद 60,000 रुपये के बॉन्ड पर रिहा कर दिया गया.

30 अक्टूबर 1928 को लाला लाजपत राय ने सभी दलों के जुलूस का नेतृत्व किया और साइमन कमीशन के आगमन के विरोध में लाहौर रेलवे स्टेशन की ओर मार्च किया. पुलिस ने प्रदर्शनकारियों की प्रगति को विफल करने के लिए एक क्रूर लाठीचार्ज का सहारा लिया. टकराव ने लाला लाजपत राय को गंभीर चोटों के साथ छोड़ दिया और उन्होंने नवंबर 17, 1928 को अपनी चोटों के कारण दम तोड़ दिया. लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए, भगत सिंह और उनके सहयोगियों ने जेम्स ए स्कॉट की हत्या की साजिश रची, जो पुलिस अधीक्षक थे. माना जाता है कि लाठीचार्ज का आदेश दिया है. क्रांतिकारियों ने स्कॉट के रूप में सहायक पुलिस अधीक्षक जे.पी. सौन्डर्स को गलत तरीके से मार डाला. भगत सिंह ने अपनी गिरफ्तारी से बचने के लिए जल्दी से लाहौर छोड़ दिया. बचने के लिए उन्होंने अपनी दाढ़ी मुंडवा ली और अपने बाल काट दिए, जो सिख धर्म के पवित्र सिद्धांतों का उल्लंघन था.

डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट के निर्माण के जवाब में, हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन ने विधानसभा परिसर के अंदर एक बम विस्फोट करने की योजना बनाई, जहां अध्यादेश पारित होने वाला था. 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने असेंबली के गलियारों में बम फेंका, ‘इंकलाब ज़िंदाबाद!’ और हवा में अपनी मिसाइल को रेखांकित करते हुए पर्चे फेंके. बम किसी को मारने या घायल करने के लिए नहीं था और इसलिए इसे भीड़ वाली जगह से दूर फेंक दिया गया था, लेकिन फिर भी कई परिषद सदस्य हंगामे में घायल हो गए. धमाकों के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त दोनों ने गिरफ्तारी दी.

Bhagat Singh Biography in Hindi

1929 विधानसभा हादसा ट्रायल (1929 Assembly Incident Trial)

विरोध का नाटकीय प्रदर्शन राजनीतिक क्षेत्र से व्यापक आलोचनाओं के साथ किया गया था. सिंह ने जवाब दिया – “जब आक्रामक तरीके से लागू किया जाता है तो यह ‘हिंसा’ है और इसलिए नैतिक रूप से यह अनुचित है, लेकिन जब इसका इस्तेमाल वैध कारण के लिए किया जाता है, तो इसका नैतिक औचित्य है.”

मई में ट्रायल की कार्यवाही शुरू हुई जिसमें सिंह ने अपना बचाव करने की मांग की, जबकि बटुकेश्वर दत्त ने अफसर अली का प्रतिनिधित्व किया. अदालत ने विस्फोटों के दुर्भावनापूर्ण और गैरकानूनी इरादे का हवाला देते हुए उम्रकैद की सजा के पक्ष में फैसला सुनाया.

लाहौर षड़यंत्र केस एंड ट्रायल (Lahore Conspiracy Case and Trial)

सजा सुनाए जाने के तुरंत बाद पुलिस ने लाहौर में एचएसआरए बम फैक्ट्रियों पर छापा मारा और कई प्रमुख क्रांतिकारियों को गिरफ्तार किया. इन व्यक्तियों हंस राज वोहरा, जय गोपाल और फणींद्र नाथ घोष ने सरकार के लिए अनुमोदन किया, जिसके कारण सुखदेव सहित कुल 21 गिरफ्तारियां हुईं. जतीन्द्र नाथ दास, राजगुरु और भगत सिंह को लाहौर षडयंत्र मामले, सहायक अधीक्षक सॉन्डर्स की हत्या और बम निर्माण के लिए फिर से गिरफ्तार किया गया था.

28 जुलाई, 1929 को न्यायाधीश राय साहिब पंडित श्री किशन की अध्यक्षता में विशेष सत्र अदालत में 28 आरोपियों के खिलाफ मुकदमा शुरू हुआ.

इस बीच, सिंह और उनके साथी कैदियों ने श्वेत बनाम देशी कैदियों के उपचार में पक्षपातपूर्ण अंतर के विरोध में अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल की घोषणा की और ‘राजनीतिक कैदियों’ के रूप में मान्यता देने की मांग की. भूख हड़ताल ने प्रेस से जबरदस्त ध्यान आकर्षित किया और अपनी मांगों के पक्ष में प्रमुख सार्वजनिक समर्थन इकट्ठा किया. 63 दिनों के लंबे उपवास के बाद जतिंद्र नाथ दास की मृत्यु, नकारात्मक जनमत के कारण अधिकारियों के प्रति तीव्र हो गई. 5 अक्टूबर 1929 को भगत सिंह ने अंततः अपने पिता और कांग्रेस नेतृत्व के अनुरोध पर अपना 116 दिन का उपवास तोड़ा.

कानूनी कार्यवाही की धीमी गति के कारण, न्यायमूर्ति जे. कोल्डस्ट्रीम, न्यायमूर्ति आगा हैदर और न्यायमूर्ति जीसी हिल्टन से युक्त एक विशेष न्यायाधिकरण की स्थापना 1 मई 1930 को वायसराय, लॉर्ड इरविन के निर्देश पर की गई थी. न्यायाधिकरण को आगे बढ़ने का अधिकार दिया गया था. अभियुक्तों की उपस्थिति के बिना और एकतरफा मुकदमे थे जो शायद ही सामान्य कानूनी अधिकार दिशानिर्देशों का पालन करते थे.

ट्रिब्यूनल ने 7 अक्टूबर 1930 को अपना 300 पन्नों का फैसला सुनाया. इसने घोषणा की कि सॉन्डर्स हत्या में सिंह, सुखदेव और राजगुरु के शामिल होने की पुष्टि के लिए अकाट्य प्रमाण प्रस्तुत किया गया है. सिंह ने हत्या की बात स्वीकार की और परीक्षण के दौरान ब्रिटिश शासन के खिलाफ बयान दिए. उन्हें मौत तक की सजा सुनाई गई थी.

भगत सिंह को फांसी की सजा (Bhagat Singh Death)

23 मार्च 1931 को सुबह 7:30 बजे भगत सिंह को उनके साथियों राजगुरु और सुखदेव के साथ लाहौर जेल में फांसी दी गई थी. ऐसा कहा जाता है कि तीनों अपने पसंदीदा नारों जैसे “इंकलाब जिंदाबाद” और “ब्रिटिश साम्राज्यवाद के साथ नीचे” का उच्चारण करते हुए फांसी के लिए काफी खुश थे. सतलज नदी के तट पर हुसैनीवाला में सिंह और उनके साथियों का अंतिम संस्कार किया गया.

भगत सिंह की लोकप्रियता और विरासत (Popularity and legacy of Bhagat Singh)

भगत सिंह उनकी प्रखर देशभक्ति, जो कि आदर्शवाद से जुडी थी. जिसने उन्हें अपनी पीढ़ी के युवाओं के लिए एक आदर्श आइकन बना दिया. ब्रिटिश इंपीरियल सरकार के अपने लिखित और मुखर आह्वान के माध्यम से वह अपनी पीढ़ी की आवाज बन गए. गांधीवादी अहिंसक मार्ग से स्वराज की ओर जाने की उनकी आलोचना अक्सर कई लोगों द्वारा आलोचना की गई है फिर भी शहादत के निडर होकर उन्होंने सैकड़ों किशोर और युवाओं को पूरे स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया. वर्तमान समय में उनकी प्रतिष्ठा इस तथ्य से स्पष्ट है कि भगत सिंह को 2008 में इंडिया टुडे द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में, सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी से आगे महान भारतीय के रूप में वोट दिया गया था.

फिल्मे और नाट्य रूपांतरण (Films and theatrical adaptations)

भगत सिंह ने भारतीयों की आत्मा के भीतर अभी भी जो प्रेरणा दी है, वह फिल्मों की लोकप्रियता और उनके जीवन पर नाट्य रूपांतरण में महसूस की जा सकती है. “शहीद” (1965) और “द लीजेंड ऑफ भगत सिंह” (2002) जैसी कई फिल्में 23 वर्षीय क्रांतिकारी के जीवन पर बनी थीं. भगत सिंह से जुड़े “मोहे रंग दे बसंती चोला” और “सरफ़रोशिकी तमन्ना” जैसे लोकप्रिय गीत आज भी भारतीयों में देशभक्ति की भावनाएं जगाते हैं. उनके जीवन, विचारधाराओं और विरासत के बारे में कई किताबें, लेख और पत्र लिखे गए हैं.

इसे भी पढ़े :

  • सुभाष चंद्र बोस की जीवनी
  • अजीत डोभाल (राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार) की जीवनी
  • रामकृष्ण परमहंस की जीवनी

1 thought on “भगत सिंह की जीवनी | Bhagat Singh Biography in Hindi”

So length .BTW I feel really bad and cried cz bts member V or taehyung grandma and grandpa died about 3 yrs ago . I realised so late and ….. 🥲🥲 R.I.P

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Biography :

Published By : Jivani.org
    
   : २८ सितंबर १९०७ बंगा (जि. लायलपुर, अभी पाकिस्तान मे)
पिता
 : किशनसिंग
माता
 : विद्यावती

        भगत सिंह भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। भगतसिंह ने देश की आज़ादी के लिए जिस साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया, वह आज के युवकों के लिए एक बहुत बड़े आदर्श है। इन्होंने केन्द्रीय संसद (सेण्ट्रल असेम्बली) में बम फेंककर भी भागने से मना कर दिया। जिसके फलस्वरूप इन्हें २३ मार्च १९३१ को इनके दो अन्य साथियों, राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फाँसी पर लटका दिया गया।

        सारे देश ने उनके बलिदान को बड़ी गम्भीरता से याद किया। पहले लाहौर में साण्डर्स-वध और उसके बाद दिल्ली की केन्द्रीय असेम्बली में चन्द्रशेखर आजाद व पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ बम-विस्फोट करके ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुले विद्रोह को बुलन्दी प्रदान की। भगत सिंह को अराजकतावादी और मार्क्सवादी विचारधारा में रुचि थी।



आरंभिक जीवन:

        भगत सिंह का जन्म २७ सितंबर १९०७ को हुआ था। उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था। यह एक सिख परिवार था। अमृतसर में १३ अप्रैल १९१९ को हुए जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड ने भगत सिंह की सोच पर गहरा प्रभाव डाला था। लाहौर के नेशनल कॉलेज़ की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने भारत की आज़ादी के लिये नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी। काकोरी काण्ड में राम प्रसाद 'बिस्मिल' सहित ४ क्रान्तिकारियों को फाँसी व १६ अन्य को कारावास की सजाओं से भगत सिंह इतने अधिक उद्विग्न हुए कि पण्डित चन्द्रशेखर आजाद के साथ उनकी पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन से जुड गये और उसे एक नया नाम दिया हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन।

        उनका परिवार राजनितिक रूप से सक्रीय था। उनके दादा अर्जुन सिंह, हिंदु आर्य समाज की पुनर्निर्मिति के अभियान में दयानंद सरस्वती के अनुयायी थे। इसका भगत सिंह पर बहोत प्रभाव पड़ा। भगत सिंह के पिता और चाचा करतार सिंह और हर दयाल सिंह द्वारा चलाई जा रही ग़दर पार्टी के भी सदस्य थे। अरजित सिंह पर बहोत सारे क़ानूनी मुक़दमे होने के कारण उन्हें निर्वासित किया गया जबकि स्वरण सिंह की 1910 में लाहौर में ही जेल से रिहा होने बाद मृत्यु हो गयी।

        1919 में, जब वे केवल 12 साल के थे, सिंह जलियांवाला बाग़ में हजारो निःशस्त्र लोगो को मारा गया। जब वे 14 साल के थे वे उन लोगो में से थे जो अपनी रक्षा के लिए या देश की रक्षा के लिए ब्रिटिशो को मारते थे। भगत सिंह ने कभी महात्मा गांधी के अहिंसा के तत्व को नहीं अपनाया, उनका यही मानना था की स्वतंत्रता पाने के लिए हिंसक बनना बहोत जरुरी है। वे हमेशा से गांधीजी के अहिंसा के अभियान का विरोध करते थे, क्यू की उनके अनुसार 1922 के चौरी चौरा कांड में मारे गये ग्रामीण लोगो के पीछे का कारण अहिंसक होना ही था। तभी से भगत सिंह ने कुछ युवायो के साथ मिलकर क्रान्तिकारी अभियान की शुरुवात की जिसका मुख्य उद्देश हिसक रूप से ब्रिटिश राज को खत्म करना था।

        भगत सिंह में बचपन से ही देशसेवा की प्रेरणा थी। उन्होंने हमेशा ब्रिटिश राज का विरोध किया। और जो उम्र खेलने-कूदने की होती है उस उम्र में उन्होंने एक क्रांतिकारी आन्दोलन किया था। भगत सिंह की बहादुरी के कई किस्से हमें इतिहास में देखने मिलेंगे। वे खुद तो बहादुर थे ही लेकिन उन्होंने अपने साथियों को भी बहादुर बनाया था और ब्रिटिशो को अल्पायु में भी धुल चटाई थी। वे भारतीय युवायो के आदर्श है और आज के युवायो को भी उन्ही की तरह स्फुर्तिला बनने की कोशिश करनी चाहिये।

        भगत सिंह ने सबसे पहले नौजवान भारत सभा ज्वाइन की. जब उनके घर वालों ने उन्हें विश्वास दिला दिया कि वे अब उनकी शादी का नहीं सोचेंगे, तब भगत सिंह अपने घर लाहौर लौट गए. वहां उन्होंने कीर्ति किसान पार्टी के लोगों से मेल जोल बढ़ाया, और उनकी मैगजीन “कीर्ति” के लिए कार्य करने लगे. वे इसके द्वारा देश के नौजवानों को अपने सन्देश पहुंचाते थे, भगत जी बहुत अच्छे लेखक थे, जो पंजाबी उर्दू पेपर के लिए भी लिखा करते थे, 1926 में नौजवान भारत सभा में भगत सिंह को सेक्रेटरी बना दिया गया.

        इसके बाद 1928 में उन्होंने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) ज्वाइन कर ली, जो एक मौलिक पार्टी थी, जिसे चन्द्रशेखर आजाद ने बनाया था. पूरी पार्टी ने साथ में मिलकर 30 अक्टूबर 1928 को भारत में आये सइमन कमीशन का विरोध किया, जिसमें उनके साथ लाला लाजपत राय भी थे. “साइमन वापस जाओ” का नारा लगाते हुए, वे लोग लाहौर रेलवे स्टेशन में ही खड़े रहे. जिसके बाद वहां लाठी चार्ज कर दिया गया, जिसमें लाला जी बुरी तरह घायल हुए और फिर उनकी म्रत्यु हो गई.

        लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिये क्रान्तिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर भगत सिंह ने वर्तमान नई दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेण्ट्रल एसेम्बली के सभागार संसद भवन में 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज़ सरकार को भागने के लिये बम और पर्चे फेंके थे। बम फेंकने के बाद वहीं पर दोनों ने अपनी गिरफ्तारी भी दी। और उन्हें 116 दिनों की जेल भी हुई थी। भगत सिंह को महात्मा गांधी की अहिंसा पर भरोसा नही था। 23 मार्च 1931 को शाम में करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फाँसी दे दी गई। और मरते वक्त भी उन्हीने फाँसी के फंदे को चूमकर मौत का ख़ुशी से स्वागत किया था।

        8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने केन्द्रीय विधान सभा सत्र के दौरान विधान सभा भवन में बम फेंका। बम से किसी को भी नुकसान नहीं पहुचा। उन्होंने घटनास्थल से भागने के वजाए जानबूझ कर गिरफ़्तारी दे दी। अपनी सुनवाई के दौरान भगत सिंह ने किसी भी बचाव पक्ष के वकील को नियुक्त करने से मना कर दिया। जेल में उन्होंने जेल अधिकारियों द्वारा साथी राजनैतिक कैदियों पर हो रहे अमानवीय व्यवहार के विरोध में भूख हड़ताल की। 7 अक्टूबर 1930 को भगत सिंह, सुख देव और राज गुरु को विशेष न्यायलय द्वारा मौत की सजा सुनाई गयी। भारत के तमाम राजनैतिक नेताओं द्वारा अत्यधिक दबाव और कई अपीलों के बावजूद भगत सिंह और उनके साथियों को 23 मार्च 1931 को प्रातःकाल फांसी दे दी गयी।

        1921 में जब महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ असहयोग आंदोलन का आह्वान किया तब भगत सिंह ने अपनी पढाई छोड़ आंदोलन में सक्रिय हो गए। वर्ष 1922 में जब महात्मा गांधी ने गोरखपुर के चौरी-चौरा में हुई हिंसा के बाद असहयोग आंदोलन बंद कर दिया तब भगत सिंह बहुत निराश हुए। अहिंसा में उनका विश्वास कमजोर हो गया और वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सशस्त्र क्रांति ही स्वतंत्रता दिलाने का एक मात्र उपयोगी रास्ता है। अपनी पढाई जारी रखने के लिए भगत सिंह ने लाहौर में लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित राष्ट्रीय विद्यालय में प्रवेश लिया। यह विधालय क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र था और यहाँ पर वह भगवती चरण वर्मा, सुखदेव और दूसरे क्रांतिकारियों के संपर्क में आये।

        भगत सिंह ने अपने तकरीबन दो साल के जेल-कारावास के दौरान कई पत्र लिखे थे। और अपने कई लेख मे पूंजीपतियों की शोषण युक्त नितियों की कड़ी निंदा की थी। जेल मे कैदीयो  को कच्चे-पके खाने और अस्वछ निर्वास मे रखा जाता था। भगत सिंह और उनके साथियो ने इस अत्याचार के खिलाफ आमरण अनशन – भूख हड़ताल का आहवाहन किया। और तकरीबन दो महीनों (64 दिन) तक भूख हड़ताल जारी रखी। अंत मे अंग्रेज़ सरकार ने घुटने टेक दिये। और  उन्हे मजबूर हो कर भगत सिंह और उनके साथियो की मांगे माननी पड़ी। पर भूख हड़ताल के कारण क्रांतिकारी यातींद्रनाथ दास शहीद हो गए।

        काकोरी कांड के आरोप मे गिरफ्तार हुए तमाम आरोपीयो मे से चार को मृत्यु दंड की सजा सुनाई गयी और, अन्य सोलह आरोपीयो को आजीवन कारावास की सजा दी गयी। इस खबर ने भगत सिंह को क्रांति के धधकते अंगारे मे बदल दिया। और उसके बाद भगत सिंह ने अपनी पार्टी “नौजवान भारत सभा” का विलय “हिंदुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन”कर के नयी पार्टी “हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन”का आहवाहन किया।


रोचक तथ्य :

• बचपन में जब भगत सिंह अपने पिता के साथ खेत में जाते थे तो पूछते थे कि हम जमीन में बंदूक क्यों नही उपजा सकते.
• 
जलियावाला बाग हत्याकांड के समय भग़त सिंह की उम्र सिर्फ 12 साल थी। इस घटना ने भगत सिँह को हमेशा के लिए क्रांतिकारी बना दिया.
• 
भगत सिंह ने अपने काॅलेज के दिनो में ‘National Youth Organisation‘ की स्थापना की थी.
• 
काॅलेज के दिनो में भग़त सिंह एक अच्छे अभिनेता भी थे. उन्होने बहुत से नाटकों में हिस्सा लिया. भग़त सिंह को कुश्ती का भी शौक था.
• 
भग़त सिंह एक अच्छे लेखक भी थे वो उर्दू और पंजाबी भाषा में कई अखबारों के लिए नियमित रूप से लिखते थे.
• 
हिन्दू-मुस्लिम दंगों से दुःखी होकर भग़त सिंह ने घोषणा की थी कि वह नास्तिक हैं.
• 
भग़त सिंह को फिल्में देखना और रसगुल्ले खाना काफी पसंद था। वे राजगुरु और यशपाल के साथ जब भी मौका मिलता था, फिल्म देखने चले जाते थे। चार्ली चैप्लिन की फिल्में बहुत पसंद थीं।
• 
‘इंकलाब जिंदाबाद’ का नारा भग़त सिंह ने दिया था.
• 
भगत सिंह की अंतिम इच्छा थी कि उन्हें गोली मार कर मौत दी जाए। हालांकि, ब्रिटिश सरकार ने उनकी इस इच्छा को भी नज़रअंदाज़ कर दिया.

विचार :

• मैं एक मानव हूँ और जो कुछ भी मानवता को प्रभावित करता है उससे मुझे मतलब है।
• 
क़ानून की पवित्रता तभी तक बनी रह सकती है जब तक की वो लोगों की इच्छा की अभिव्यक्ति करे।
• 
क्रांति मानव जाती का एक अपरिहार्य अधिकार है। स्वतंत्रता सभी का एक कभी न ख़त्म होने वाला जन्म-सिद्ध अधिकार है। श्रम समाज का वास्तविक निर्वाहक है।
• 
ज़िन्दगी तो अपने दम पर ही जी जाती है … दूसरो के कन्धों पर तो सिर्फ जनाजे उठाये जाते हैं।
• 
बुराई इसलिए नहीं बढ़ती की बुरे लोग बढ़ गए है बल्कि बुराई इसलिए बढ़ती है क्योंकि बुराई सहन करने वाले लोग बढ़ गये है।
• 
राख का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है मैं एक ऐसा पागल हूँ जो जेल में भी आज़ाद है।
• 
मेरी कलम मेरी भावनावो से इस कदर रूबरू है कि मैं जब भी इश्क लिखना चाहूं तो हमेशा इन्कलाब लिखा जाता है।


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Bhagat Singh Biography In Hindi भगत सिंह जीवन परिचय (जीवनी)

Bhagat Singh Biography In Hindi – भगत सिंह एक महान स्वतंत्रता सेनानी व क्रन्तिकारी ब्यक्ति थे। इन्होने भारत के क्रन्तिकारी आंदोलन को एक नई दिशा दी, पंजाब में क्रांति को लेकर भगत सिंह ने नौजवान भारत सभा का गठन किया, हिंदुस्तान में गणतंत्र की स्थापना के लिए चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ का गठन करने में इनकी बहुत बड़ी भूमिका रही। लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह ने पुलिस अधिकारी सॉन्डर्स की हत्या की, उसके बाद बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर केन्द्रीय विधान सभा में बम फेका, यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख क्रांतिकारियों में से एक थे।

Bhagat Singh Biography In Hindi – (जीवनी)

Bhagat Singh Biography In Hindi

पूरा नाम – भगत सिंह जन्म – 27 सितम्बर, 1907, पंजाब के नवांशहर जिले के खटकर कलां गावं के एक सिख परिवार पिता – किशन सिंह माता – विद्यावती स्कूली शिक्षा – लाहौर के डी ऐ वी विद्यालय परिवार – भगत सिंह का परिवार एक आर्य-समाजी सिख परिवार था। आंदोलन में शामिल – असहयोग आंदोलन, साइमन कमीशन

विकिपीडिया पर देखें – भगत सिंह

भगत सिंह का जन्म 27 सितम्बर, 1907, पंजाब के नवांशहर जिले के खटकर कलां गावं के एक सिख परिवार में हुआ था, बचपन से ही इनके अंदर देश भकित कूट – कूट कर भरी थी जिसकी वजह से यह देश सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहा करते थे। इनके जन्म के बारे में कुछ और बातें भी कही जाती है जैसे की इनका जन्म लायलपुर ज़िले के बंगा में (अब पाकिस्तान में) हुआ था पिता का नाम किशन सिंह और माता का विद्यावती था। भगत सिंह विद्यावती की तीसरी संतान थे।

Bhagat Singh Biography In Hindi स्कूली शिक्षा –

भगत सिंह 1916 में लाहौर के डी ऐ वी (DAV) विद्यालय में पढाई करते थे पढाई के दिनों में ही भगत सिंह जाने-पहचाने राजनेता जैसे लाला लाजपत राय और रास बिहारी बोस के साथ उठते बैठते थे यानि उनका संपर्क बड़े नेताओं से था। उसके बाद भगत सिंह ने बहुत सारे क्रन्तिकारी काम किये और भारत स्वतंत्र राष्ट्र बने इसके लिए उन्होंने देश के बड़े बड़े नेताओं और महान विचारों के साथ मिलकर देश को आजाद कराने में अपना योग्यदान दिया।

13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड होने के बाद से भगत सिंह के मन पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा, उनका मन इस भयंकर अमानवीय कृत को देखकर बहुत बिचलित हो गया और उन्होंने देश को स्वतंत्र कराने के बारे में मन बना लिया। इसके बाद वो चंद्रशेखर आज़ाद के साथ मिलकर क्रांतिकारी गतिविधियों और संगठनों पर काम करने लगे।

हलाकि अंग्रेजी हुकूमत ने उनको एक आतंकवादी घोषित किया था , पर भगत सिंह खुद आतंकवाद के आलोचक थे। उनका तत्कालीन लक्ष्य ब्रिटिश सरकार व साम्राज्य का विनाश करना था। अपनी एक अच्छी दूरदर्शिता और दृढ़ इरादे जैसी विशेषता के साथ भगत सिंह दूसरों से बहुत अलग देखे जाते थे। ऐसे समय में जब गाँधी जी ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लिए आजादी के एक विकल्प थे उस समय भगत सिंह एक दूसरे विकल्प के रूप में उभर कर सामने आये।

क्रन्तिकारी जीवन –

1921 में जब महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ असहयोग आंदोलन की शुरुआत की तब भगत सिंह ने अपनी पढाई छोड़कर उनके साथ आने का फैसला किया। और आंदोलन में सक्रिय हो गए। 1922 में गोरखपुर के चौरी-चौरा में हुई हिंसा के बाद असहयोग आंदोलन बंद करने पर वो बहुत उदास हो गए फिर लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित राष्ट्रीय विद्यालय में प्रवेश लिया। यह विधालय क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र था और यहाँ पर वह भगवती चरण वर्मा, सुखदेव और दूसरे क्रांतिकारियों के संपर्क में आये।

एक बार की बात है भगत सिंह की शादी की बात चल पड़ी थी इसकी सूचना जैसे ही भगत सिंह को मिली वो कानपूर भाग गए थे। वहीँ पर उनकी मुलाकात गणेश शंकर विद्यार्थी नामक क्रांतिकारी से हुई उनके संपर्क में आकर भगत सिंह ने क्रांति का प्रथम पाठ सीखा। उसके बाद उनको, उनकी दादी की बीमारी का पता चला जिसके बाद वो घर वापस आ गए, जहाँ उन्होंने अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को जारी रखा, फिर वो लाहौर चले गए और ‘नौजवान भारत सभा’ नाम से एक क्रांतिकारी संगठन बनाया।

वर्ष 1928 में इंग्लैंड से साइमन कमीशन नामक एक आयोग भारत दौरे पर आया। उनके कामों को लेकर भारत के लोगों में विरोध था जिसकी वजह से अंग्रेजों ने लाला लाजपत राय पर क्रूरता पूर्वक लाठी चार्ज किया जिससे वह बुरी तरह से घायल हो गए और बाद में उन्होंने दम तोड़ दिया। इसके बाद भगत सिंह ने क्या किया उसके बारे में आपने ने ऊपर की लाइन में जरूर पढ़ा होगा।

लाहौर मामले में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फाँसी की सज़ा सुनाई गई व बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास दिया गया। भगत सिंह को 23 March 1931 की शाम 7:00 सुखदेव और राजगुरू के साथ फाँसी पर लटका दिया गया। तीनों ने हँसते-हँसते देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया।

भगत सिंह बहुत ही अच्छे वक्ता, पाठक व लेखक भी थे। उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं के लिए लेख लिखा और उसका संपादन भी किया।

उनके द्वारा लिखी गयी मुख्य कृतियां कुछ इस प्रकार है ‘एक शहीद की जेल नोटबुक (संपादन: भूपेंद्र हूजा), सरदार भगत सिंह : पत्र और दस्तावेज (संकलन : वीरेंद्र संधू), भगत सिंह के संपूर्ण दस्तावेज (संपादक: चमन लाल)।

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भगत सिंह की जीवनी | Bhagat Singh Biography Book Pdf in Hindi

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भारत देश का एक ऐसा पुत्र जिसने अपनी पूरी जिंदगी सिर्फ इसलिए कुर्बान की क्योकि वह अपने देश के आने वाले भविष्य को एक आजाद दिन देना चाहता था| वह चाहता कि भारत में कोई भी बच्चा अग्रेजों की गुलामी में न बड़ा हो|

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Bhagat Singh Biography Book Pdf in Hindi | भगतसिंह जीवन परिचय

भगत सिंह , महान सेनानियों में बहुत ही अहम भूमिका निभाने वाले भारतीय थे| इनका जन्म 28 सितम्बर 1907 को हुआ और भारत का यह वीर पुत्र 23 मार्च 1931 को हसते-हसते वीरगति को प्राप्त हुआ| भगत सिंह ने चन्द्रशेखर आजाद के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर भारत की स्वतंत्रता के लिए साहस के साथ ब्रिटिशो का मुक़ाबला किया। पहले लाहौर में सैंडर्स की हत्या और उसके बाद दिल्ली की संसद में बम-विस्फोट करके ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह को बुलन्दी प्रदान की। भगत सिंह असेम्बली में बम फेंककर भागे नहीं और इनको अंग्रेज सरकार ने इन्हें इनके ही साथ के दो और महान सेनानियों राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फाँसी पर लटका दिया गया।

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भगत सिंह की जीवनी हिंदी में | Biography of Bhagat Singh in Hindi

नमस्कार भगत सिंह की जीवनी हिंदी में Biography of Bhagat Singh in Hindi में आपका स्वागत हैं. आज का आर्टिकल शहीद भगतसिंह जी के जीवन परिचय जीवनी इतिहास उनके बारे में दिया गया हैं.

इस लेख में हम उनके जीवन स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका आदि को जानेगे.

भगत सिंह की जीवनी Biography of Bhagat Singh in Hindi

भगत सिंह की जीवनी हिंदी में | Biography of Bhagat Singh in Hindi

जब भी स्वतंत्रता आंदोलन या क्रांति का नाम आता हैं, तो यक़ीनन सभी के जेहन में इंकलाब जिंदाबाद का नारा बुलंद करने वाले सरदार भगत सिंह की छवि सामने आ जाती हैं.

आजादी के पूर्व अंग्रेजी हुकुमत के अत्याचार को सीधी चुनौती देकर ब्रिटिश सम्राज्य के अंत की नीव रखने वाले भगत सिंह आज भी करोड़ो भारतीयों के आदर्श हीरो हैं.

देशभक्ति की कहानियों में गांधी, नेहरु और बोस जैसे नेताओं की जीवनी और स्वतंत्रता प्राप्ति में योगदान की कहानियां पढ़ने को मिलती हैं. भगत सिंह उनमे से ऐसे देशभक्त नौजवान देशभक्त थे, जिन्होंने मात्र 23 वर्ष की आयु में ही राष्ट्र की वेदी पर कुर्बान कर दिया था.

अपने वतन से प्रेम करने वाले देशभक्त हमेशा देश के लिए कुछ कर गुजरने की बात हमेशा अपने दिल में रखते है, उन्हें अपने इस कार्य में जान से भी इतना प्यार नही होता जितना कि वतन से.

भारत का स्वतंत्रता संग्राम इस तरह के वीरों की कहानियों से अटा पड़ा है, उन्ही में से एक ऐसें देशभक्त थे, सरदार भगत सिंह. युवा दिलों की धडकन शहीद भगत सिंह जैसे वीरों ने सोये पड़े दिलों में देशभक्ति  जोश भरकर भारत को अंग्रेजों की गुलामी से स्वतंत्र करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. भगत सिंह की जीवनी में एक नजर उनके आदर्श व्यक्तित्व पर.

दो सौ वर्षों से स्थापित अंग्रेजी हुकुमत के अंत का बिगुल बजाने वाले सरदार भगत सिंह को आदर्श मानने वालों की संख्या आज करोड़ो में है.

भगत सिंह अपने समय के बेहद लोकप्रिय युवा देशभक्त थे, इनके बारे में किसी ने ठीक ही कहा है ” यह कहना अतिश्योक्ति नही होगी, कि भगत सिंह का नाम भारत में उतना ही प्रसिद्ध था, जितना कि गांधीजी का था.

भगत सिंह जीवन परिचय

देशभक्ति की मिसाल कहे जाने वाले भगत सिंह की कई पीढियां अंग्रेजो के खिलाफ थी. भगत सिंह जी का जन्म 27 सितम्बर 1907 पंजाब के बंगा नामक गाँव के एक सिख परिवार में हुआ था.

इनके पिता सरदार किशन सिंह चाचा अजित सिंह उस समय जेल में थे. सरदार भगत सिंह के जन्म के समय ही उनके चाचा अजित सिंह जेल से आजाद हुए थे. इस तरह इनके जन्म को भाग्यशाली मानकर सभी ने भक्त नाम से पुकारना शुरू कर दिया था.

इनके माता-पिता का नाम क्रमश विद्यावती, सरदार किशन सिंह सिन्धु था. भगत के परिवार में सात भाई और एक बहिन का भरा पूरा परिवार था. एक देशभक्त परिवार में जन्में भक्त के चाचा अजित सिंह और पिता किशन singh महान स्वतंत्रता सेनानी थे.

चाचा अजित सिंह जी ने सैयद हैदर रजा के साथ मिलकर अंग्रेजो के विरुद्ध एक सगठन खड़ा किया था. भक्त के चाचा पर 22 से अधिक पुलिस केस दर्ज थे. पुलिस से बचने के लिए उन्होंने कुछ वर्षो के लिए भारत छोड़ दिया था. इस प्रकार के देशभक्ति के माहौल में जन्मे और पले बड़े भगत सिंह जैसा देशभक्त इस देश को मिला.

भगत सिंह का आरम्भिक जीवन (Bhagat Singh’s date of birth and biography)

शहीद भगत सिंह का जन्म 27 सितम्बर 1907 के दिन बिर्टिश कालीन भारत के पंजाब प्रान्त के लायलपुर जिले के बंगा नामक गाँव में हुआ था. उनका जन्म स्थल वर्तमान में पाकिस्तान का हिस्सा है.

इनका परिवार पीढ़ियों से अंग्रेजो के विरुद्ध जंग लड़ रहा था. इनके जन्म के समय पिता किशन सिंह, चाचा अजीत सिंह एवं स्वर्ण सिंह भी अंग्रेजो के कैद में थे.

यह एक संयोग ही था, कि जिस दिन शहीद भगत सिंह जन्में उसी दिन अर्जुनसिंह एवं अजीत सिंह को रिहा किया गया, परिवार में माना जाने लगा, कि भाग्यशाली बालक का जन्म हुआ है.

इनकी दादीजी ने ही इनका नाम भगत सिंह रखा. ऐसे देशभक्त परिवार में जन्में भगत का बचपन स्वतंत्रता एवं देशभक्तिपूर्ण किस्सों के बिच व्यतीत हुआ.

भगत सिंह की शिक्षा एवं बचपन (Bhagat Singh’s education and childhood)

भगत सिंह की प्रारम्भिक शिक्षा बंगा गाँव के ही एक स्कूल में हुई, यही से इन्होने पांचवी तक की शिक्षा प्राप्त की, तत्पश्चात 1926-17 में आगे की पढाई के लिए इन्हें लाहौर के DAV स्कूल में दाखिला दिलाया गया, स्कूली शिक्षा के दुसरे ही साल 1919 में 13 अप्रैल के दिन रोलेट एक्ट के विरुद्ध भारतभर में विरोध हो रहे थे, पंजाब एवं लाहौर इसका केंद्र था.

यह भारतीय इतिहास का वही काला दिन था, जब जनरल डायर के हुक्म पर पंजाब के जलियावाला बाग़ में शांतिपूर्ण सभा कर रहे हजारों नागरिकों पर पुलिस की गोलिया चलवा दी, डायर के इस खुनी खेल में वहां मौजूद लोगों में से शायद ही कोई जिन्दा घर लौट आया.

इस नरसंहार की देश विदेश में बड़ी भर्त्सना की गई. जलियावाला बाग़ हत्याकांड की घटना ने ही शहीद भगतसिंह को अंग्रेजो का दुश्मन बना दिया, वे स्वयं को अमृतसर जाने से नही रोक पाए. वहां जाकर इन्होने उस मिट्टी को एक बोतल में भरा जिनमे हजारों भारतीयों का खून था, एवं प्रण लिया जब तक वो इस अत्याचार का बदला नही ले लेते शांत नही बैठेगे.

असहयोग आंदोलन में भगत सिंह की भूमिका (Role of Bhagat Singh in Non-Cooperation Movement)

अंग्रेज सरकार द्वारा भारतीयों पर ढाए जा रहे जुल्मों से भगत सिंह बहुत परेशान हुए, उनका मन पढाई में नही लग रहा था. उसी समय महात्मा गांधी अंग्रेजो के विरुद्ध असहयोग आंदोलन शुरू कर रहे थे.

भगतसिंह ने भी अपनी पढाई छोड़ कर राष्ट्र सेवा का संकल्प लेकर आंदोलन में कूद पड़े.इसी समय पंजाब प्रान्त के प्रसिद्ध नेता लाला लाजपत राय ने लाहौर में नेशनल कॉलेज की स्थापना की एवं देश के नौजवानों को इसमे दाखिल होने का आग्रह किया तो भगतसिंह ने भी प्रवेश कर लिया.

नेशनल कॉलेज में कई देशभक्त क्रन्तिकारी युवा अध्ययन के लिए आया करते थे, जिनमे यशपाल, सुखदेव, तीर्थराम एवं झंडासिंह के साथ भगत सिंह की गहरी दोस्ती हो गई.

साइमन कमीशन गो बैक एवं पुलिस लाठीचार्ज (Simon Commission Go Back and Police Lathi Charge)

वर्ष 1928 में अंग्रेज अधिकार साइमन के नेतृत्व में साइमन कमिशन भारत आया, सबसे पहले लाहौर में आने के साथ ही महान नेता लाला लाजपत राय के नेतृत्व में साइमन गो बैक के नारे के साथ विरोध प्रदर्शन किया गया.

लाखों की तादाद में लोग इस विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए. लाहौर में पुलिस का जिम्मा सोल्डेर्स के पास थी, बड़ी संख्या में लोगों को आते देख पुलिस के हाथ पाँव फूलने लगे. कानूनी व्यवस्था के संकट महसूस करते हुए. उसने भीड़ पर लाठीचार्ज करने के आदेश दे दिए.

निर्दयी पुलिस के इस लाठीचार्ज के शिकार लाला लाजपत राय बने, उनके सिर पर जानबूझकर लाठियाँ बरसाई गई, परिणाम स्वरूप 17 नवम्बर 1928 को लाहौर के अस्पताल में लालाजी की मृत्यु हो गई.

भगत सिंह एवं उनके साथियो के लिए अब तक का यह सबसे बड़ा आघात था. इन्होने सोल्डेर्स से इसका बदला लेने की योजना बनाई. राजगुरु, सुखदेव एवं चन्द्रशेखर आजाद के साथ मिलकर भगत सिंह ने सोल्डर्स की गोली मारकर हत्या कर दी. इस घटना के बाद भगतसिंह एवं उनके साथी लोकप्रिय क्रन्तिकारी के रूप में सभी भारतीयों के प्रेरणा के केंद्र बन गये.

भगत सिंह द्वारा असेम्बली में बम फेकना व सजा (Bhagat Singh Bombing of the Assembly and Punishment)

भगत सिंह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन के सदस्य थे. इस संगठन द्वारा देशभर में क्रन्तिकारी गतिविधियों के लिए योजना बनाने का कार्य किया जाता था. इस सभा ने पब्लिक सेफ्टी एवं डिस्प्यूट बिल के विरोध को जताने के लिए दिल्ली की केन्द्रीय असेम्बली में बम फेकने का निर्णय लिया.

तथा योजनानुसार इस कार्य को करने का जिम्मा भगतसिंह एवं बटुकेश्वर दत्त को दिया गया. योजना के अनुसार भगत सिंह एवं उनके साथियों ने असेम्बली में बम फेककर भागे, नही पुलिस के हाथो स्वयं की गिरफ्तारी करवा ली.

भगत सिंह सहित उनके सभी साथियो पर सेंशन कोर्ट में मुकदमा चलाया गया, 12 जून 1929 को इंडियन पैनल कोड एक्ट 307 के तहत विस्फोटक पदार्थ के उपयोग को लेकर बटुकेश्वर दत्त को कैद की सजा दी गई.

अंग्रेज सरकार इन क्रांतिकारियों को आजीवन कारावास देने के फैसले से खुश नही थी. इन्होने केस के नए सिरे से खोला एवं नए आरोपों के साथ सजा ए मौत की साजिश में फसाने की कोशिश शुरू की गई.

भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी (Bhagat Singh, Rajguru and Sukhdev hanged on March 23, 1931)

तीनों क्रांतिकारियों को फसाने के लिए कोर्ट में मामला फिर से दायर किया गया, कई माह तक कोर्ट की कार्यवाही चलती रही, 26 अगस्त 1930 को कोर्ट ने अपनी सुनवाई प्रक्रिया पूरी कर ली, कोर्ट द्वारा 7 अक्टूबर 1930 को 68 पेज के दस्तावेज के साथ अपना फैसला सुनाया गया.

जिसमे भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा का हुक्म दिया गया. कोर्ट के इस निर्णय के विरुद्ध भारतीयों द्वारा प्रिवी काउंसिल में भी याचिका लगवाई, गई मगर 10 जनवरी 1931 के दिन इसे खारिज कर दिया गया.

अतः सरकार द्वारा 24 मार्च 1931 को इन तीनों क्रांतिकारियों को फांसी देने का एलान कर दिया गया. जब यह खबर देशभर में फैली तो एक क्रांति का स्वरूप तैयार हो गया, अंग्रेज सरकार भारत में अपने पुराने अनुभवो से वाकिफ थी.

वो इस तरह के संकट की स्थति को फिर से पैदा करना नही चाहती थी. कानून की स्थति को खतरे की आशंका के चलते अंग्रेज सरकार ने नियत समय से एक दिन पूर्व 23 मार्च को शाम 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव को फांसी दे दी गई.

भगत सिंह का प्रेरक व्यक्तित्व (Bhagat Singh’s motivational personality)

अंग्रेज सरकार भगत सिंह को फांसी देकर स्वयं को दिलासा दे रही थी, कि अब उनकी सारी मुश्किलों का समाधान हो गया है. परन्तु यह उनकी नादानी ही थी. शहीद भगत सिंह का बलिदान भारत में स्वतंत्रता का अध्याय शुरू कर अंग्रेजो के शासन के खात्मे का श्री गणेश कर चुके थे.

ऐसें देशभक्त कभी मरते नही, वे हमेशा अपने देशवासियों के प्रेरक बनकर युवाओं को राह दिखाते है. इन्कलाब जिंदाबाद भगत सिंह का नारा था, जो भारतीय क्रांति में हमेशा से युवाओं में जोश और जूनून पैदा कर रहा था.

कहते है कि जब भगत सिंह को फांसी देने का समय हो रहा था, तो पुलिस अधीक्षक उनकी कोठरी में गया, तो देखकर अचरज में पड़ गया, शहीद ऐ आजम उस समय लेनिन का जीवन चरित्र पढ़ रहे थे,

जब उस अधिकारी ने उनसे फांसी के समय हो जाने की बात कही तो वे हंसते हुए कहने लगे- एक क्रांतिकारी दूसरे क्रांतिकारी से मिलने जा रहा है. भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु फांसी के समय एक सुर में गा रहे थे.

दिल से निकलेगी न मरकर भी वतन की उल्फत मेरी मिट्टी से भी खुशबु ऐ वतन आएगी

सोल्डर्स तथा उनके साथियों की हत्या (Soldiers and their accomplices killed)

अपने आदर्श नेता और मार्गदर्शक लाला लाजपत राय की मृत्यु संदेश ने भगत सिंह को पूरी तरह झंकझोर दिया. इस घटना से पहुचे आघात से पूरा देश व्यतीत था. अतः चन्द्रशेखर आजाद, बटुकेश्वर दत्त, राजगुरु और भगत सिंह ने लालाजी की मौत के जिम्मेदार स्कोट को गोली से मारने की योजना बनाई.

योजना के मुताबिक़ उन्होंने पुलिस चौकी से बाहर निकलते सोणडर्स और उनके साथियो की हत्या कर दी. इस तरह की हत्या के बाद उन्होंने हजारों पर्चे छपवाएं और रातों-रात जगह-जगह पर लगा दिए, कि लालाजी की मौत का बदला ले लिया गया हैं.

जब इस घटनाक्रम की सुचना पुलिस और अंग्रेज सरकार तक पहुची तो भगत सिंह और उनके साथियो के कारण उत्पन्न किसी बड़े खतरे से बचने के लिए पुरे शहर की पुलिस उनके पीछे लगा दी तथा घर-घर छापे मारे जाने लगे. मगर भगत सिंह पुलिस से बचने के लिए अपनी दाड़ी और बाल कटवाकर शहर से बाहर चले गये.

इस घटना के बाद भगत सिंह की ख्याति देशभर में एक उग्र क्रन्तिकारी के रूप में फ़ैल गई. सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन की बैठक में जन सुरक्षा बिल और डिस्प्यूट बिल का विरोध करने के लिए इन्होने असेम्बली में बम फेकने की योजना बनाई.

योजना के मुताबिक बम को खाली जगह पर फेका जाएगा, तथा इन्कलाब जिंदाबाद के नारे लगाते हुए बिना भागे पुलिस के हाथो गिरफ्तार हों जाएगे. अंग्रेजी न्याय व्यवस्था पर थोड़ा सा विशवास करने वाले भगत सिंह, राजगुरु और बटुकेश्वर दत्त ने योजना के अनुसार बम फेक कर गिरफ्तार हो गये.

12 जून 1929 को सेशन कोर्ट द्वारा सुनाए गये निर्णय के अनुसार बटुकेश्वर दत्त को उम्र कैद की सजा सुनाई गई. मगर अंग्रेज सरकार नही चाहती थी कि राजगुरु और भगत सिंह जेल से बाहर रहे. अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए नकली केस तैयार किया गया.

भगत सिंह को फांसी (Hanging of Bhagat Singh)

असेम्बली में बम फेके जाने के कारण कोर्ट ने तक़रीबन 1 साल तक चली केस की सुनवाई के बाद 7 अक्टूबर 1930 को निर्णय सुनाया गया. अपने अनुसार केस तैयार कर अंग्रेज सरकार भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा दिलावने में सफल हो गई.

हालांकि कोर्ट के इस निर्णय के विरुद्ध प्रिवी काउंसलिंग में अपील भी की गई, मगर उन्हें स्वीकार नही किया गया. 24 मार्च 1931 को तीनों स्वतंत्रता सेनानियों को फासी देने का निश्चय हुआ. भगत सिंह को फांसी की सजा दिलवाकर भी अंग्रेजी हुकूमत हार चुकी थी.

उन्हें यह भय था कि भगत सिंह को फांसी देने से पुरे देश में स्थति नियन्त्रण से बाहर हो सकती है. इसलिए सजा निर्धारण के एक दिन पूर्व 23 मार्च को शाम सात बजे ही भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को एक साथ फांसी दे दी गई.

इस तरह भले ही एक महान स्वतंत्रता सेनानी की जीवन यात्रा समाप्त हो गई, मगर उनकी सजा ने देश में चल रहे अंग्रेज विरोधी माहौल में आग में घी डालने का काम किया. अंग्रेजो में मन में मौत का खौफ भरने वाले हमारे आदर्श देशभक्त भगतसिंह को शत शत नमन.

भगत सिंह के नारे-  Biography

इंकलाब जिंदाबाद
साम्राज्यवाद मुर्दाबाद
ये अत्याचारी सरकार लोगों की पुकार नही सुन सकती , इनके लिए बम धमाकों की आवश्यकता है.

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Bhagat Singh Biography in Hindi | अमर शहीद भगत सिंह की जीवनी

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Bhagat Singh Biography in Hindi

Bhagat Singh Biography in Hindi : भगत सिंह भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के एक बहादुर स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी थे। उनकी देशभक्ति की भावना न केवल ब्रिटिश शासन के खिलाफ बल्कि सांप्रदायिक तर्ज पर भारत के विभाजन के प्रति भी सीमित थी।

वह इसका पूर्वाभास कर सकते थे और ऐसे सम्मानित नेता को ढूंढना मुश्किल है। वह प्रतिभाशाली, परिपक्व था और हमेशा समाजवाद की ओर आकर्षित होता था। उन्होंने वास्तव में असहयोग आंदोलन में भाग लिया।

वह अराजकतावादी और मार्क्सवादी विचारधाराओं के प्रति आकर्षित थे जो उनके दिमाग में क्रांतिकारी विचार लाते हैं। वह एक उज्ज्वल छात्र था, एक पाठक था और हमेशा पाठ्येतर गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेता था।

उनका जन्म 28 सितंबर, 1907 को पंजाब, भारत (अब पाकिस्तान) में एक सिख परिवार में हुआ था। वह कई क्रांतिकारी संगठनों से जुड़े थे और देश में देशभक्ति की मिसाल कायम की।

उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन समर्पित करने के लिए तेरह साल की उम्र में स्कूल छोड़ दिया और 23 वर्ष की आयु में निधन हो गया। लोकप्रिय रूप से उन्हें शहीद-ए-आज़म भगत सिंह के नाम से जाना जाता है। उन्हें एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी की हत्या का दोषी पाया गया और 23 मार्च, 1931 को फांसी दे दी गई। यहाँ, हम भगत सिंह के बारे में कुछ प्रेरक और अज्ञात तथ्य प्रस्तुत कर रहे हैं।

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भगत सिंह के बारे में 10 कम ज्ञात तथ्य

1. 12 साल की उम्र में जलियांवाला बाग की घटना के बाद, उन्होंने स्कूल बंक किया और एक दुखद जगह पर चले गए। वहां उन्होंने भारतीयों के खून से गीली मिट्टी की एक बोतल इकट्ठा की और रोज उसकी पूजा की। कॉलेज में, वह एक महान अभिनेता थे और ‘राणा प्रताप’ और ‘भारत-दुर्दशा’ जैसे नाटकों में कई भूमिकाएँ निभाईं।

2. भगत सिंह अपने बचपन में हमेशा बंदूकों के बारे में बात करते थे। वह खेतों में बंदूकें उगाना चाहता था, जिसके इस्तेमाल से वह अंग्रेजों से लड़ सकता था। जब वह 8 साल का था, तो खिलौनों या खेल के बारे में बात करने के बजाय वह हमेशा भारत से ब्रिटिश ड्राइविंग के बारे में बोलता है।

3. जब भगत सिंह के माता-पिता चाहते थे कि वे शादी कर लें, तो वह कानपुर भाग गए। उन्होंने अपने माता-पिता से कहा कि “यदि मैं औपनिवेशिक भारत में शादी करूंगा, जहां ब्रिटिश राज है, तो मेरी दुल्हन मेरी मृत्यु होगी। इसलिए, कोई आराम या सांसारिक इच्छा नहीं है जो मुझे अब लुभा सके ‘। इसके बाद, इसके बाद, वह। “हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन” में शामिल हो गए।

4. वे कम उम्र में लेनिन के नेतृत्व वाले समाजवाद और समाजवादी क्रांतियों से आकर्षित हुए और उनके बारे में पढ़ना शुरू कर दिया। भगत सिंह ने कहा at वे मुझे मार सकते हैं, लेकिन मेरे विचारों को नहीं। वे मेरे शरीर को कुचल सकते हैं, लेकिन मेरी आत्मा को कुचलने में सक्षम नहीं होंगे ‘।

5. भगत सिंह ने अंग्रेजों से कहा था कि “फांसी के बजाय उन्हें गोली मार देनी चाहिए” लेकिन अंग्रेजों ने इस पर विचार नहीं किया। उन्होंने अपने अंतिम पत्र में इसका उल्लेख किया है। भगत सिंह ने इस पत्र में लिखा, “चूंकि मुझे युद्ध के दौरान गिरफ्तार किया गया था। इसलिए, मुझे फांसी की सजा नहीं दी जा सकती। मुझे तोप के मुंह में डाल दिया जाए।” यह उनकी बहादुरी और राष्ट्र के लिए भावना को दर्शाता है।

6. साथियों के साथ, भगत सिंह ने सेंट्रल असेंबली, दिल्ली में बम फेंके। वे किसी को घायल नहीं करना चाहते। बम निम्न श्रेणी के विस्फोटक से बने थे।

7. भगत सिंह ने 116 दिनों तक जेल में उपवास किया था। आश्चर्य की बात है कि इस दौरान वह अपना सारा काम नियमित रूप से करते थे, जैसे गाना, किताबें पढ़ना, हर दिन कोर्ट जाना, आदि।

8. भगत सिंह ने एक शक्तिशाली नारा ‘इंकलाब जिंदाबाद’ गढ़ा, जो भारत के सशस्त्र संघर्ष का नारा बन गया।

9. उन्हें 23 मार्च, 1931 को आधिकारिक समय से एक घंटे पहले फांसी दी गई थी। ऐसा कहा जाता है कि जब भगत सिंह को फांसी दी गई थी, तब वे मुस्कुरा रहे थे। वास्तव में, यह “ब्रिटिश साम्राज्यवाद को कम करने” के लिए एक निडरता के साथ किया गया था। कहा जाता है कि भगत सिंह की फांसी की निगरानी के लिए कोई भी मजिस्ट्रेट तैयार नहीं था। मूल मृत्यु वारंट की समय सीमा समाप्त होने के बाद, एक मानद न्यायाधीश ने निष्पादन आदेश पर हस्ताक्षर किए और उसका निरीक्षण किया।

10. जब उनकी मां जेल में उनसे मिलने आई थीं, तो भगत सिंह जोर-जोर से हंस रहे थे। यह देखकर जेल अधिकारी हैरान रह गए कि यह व्यक्ति कैसा है जो मौत के इतने करीब होने के बावजूद खुलकर हंस रहा है।

उनकी विरासत कई लोगों के दिलों में बनी रहेगी। ये अज्ञात तथ्य निश्चित रूप से गहरा सम्मान देंगे और उनके जीवन और उसकी क्रांति के बारे में भी विचार देंगे।

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महान क्रांतिकारी भगत सिंह का जीवन परिचय | Bhagat Singh Biography in Hindi

About Bhagat Singh: सरदार भगत सिंह भारत के महान व युवा स्वतंत्रता सेनानीयो मे से एक है, इनका जन्म २8 सितम्बर 1907 ई0 को पंजाब प्रांत के लायलपुर जिले के बंगा नामक गांव में हुआ था जो की अब पाकिस्तान मे है।

Bhagat Singh

सरदार भगत सिंंह के माता का नाम विद्यावती और पिता का नाम सरदार किशन सिंह है। इनका जन्म एक सिक्ख परिवार में हुआ था। इसलिये इनको सरदार नाम से सम्बोधन किया जाता है। आइये सरदार भगद सिंह के जीवनी ( Sardar Bhagat Singh Jivani ) को विस्तार से जानते है।

शहीद भगत सिंह जी का परिचय – Bhagat Singh Biography

  • नाम- सरदार भगत सिंह
  • जन्म- 28 सितम्बर 1907
  • जन्म स्थान- बंगा, लायलपुर, पंजाब (अब पाकिस्तान)
  • माता का नाम – विद्यावती कौर
  • पिता का नाम – सरदार किशन सिंह सिन्धु
  • विवाह- नहीं किए थे।
  • मृत्यु- २३ मार्च १९३१

भगत सिंह का बचपन व परिवार – Chilhood & Family of Bhagat Singh

कहते हैं पूत के पांव पालने में ही दिखाई पड़ जाते हैं। भगतसिंह के खेल भी बड़े अनोखे थे। पांच साल की उम्र में वह अपने साथियों को दो टोली में बांट देता था, और वे परस्पर एक दूसरे पर आक्रमण करके युद्ध का अभ्यास किया करते। भगतसिंह के हर कार्य में उसके वीर धीर और निर्भीक होने का अभ्यास मिलता था।

भगत सिंह के पिता तीन भाई थे, सरदार किशन सिंह, भगत सिंह के पिता, सरदार स्वर्ण सिंह, भगत सिंह के चाचा, और सरदार अजीत सिंह, उनके दोनों चाचा अंग्रेजों के खिलाफ होने वाले क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने के कारण जेल में बंद थे। पर उनके जन्म के दिन उनके दोनों चाचा जेल से रिहा कर दिए गए। जिससे परिवार बहुत खुश था। भगत सिंह की दादी बहुत खुश थी इसलिये वो अपने नाती यानी भगत सिंह को भाग्यवान कहकर बुलाती थी बाद में उन्हें भगत सिंह कहा जाने लगा।।

शहीद भगत सिंह के जीवन की घटनाएं

भगतसिंह एक सच्चे देशभक्त थे। उन्होंने देश की आजादी के लिए अंग्रेजों से संघर्ष किया।उस समय देश में व्याप्त साम्राज्यवाद एवं पूंजीवाद का भी कड़ा विरोध किया।वह हमेशा दलितों एवं शोषित लोगों के पक्ष में लड़ते रहे और अंग्रेजों के अन्याय का विरोध करते रहे ।

भगत सिंह जी का कहना था कि हमें सिर्फ अंग्रेजों के खिलाफ नहीं लडना है बल्कि अंग्रेजी प्रवृत्ति के खिलाफ भी लड़ना है, चाहें ओ हमारे अपने देशवासी ही क्यों ना हो।आज भी उनके शब्द उतने ही उपयोगी है, जितना ग़ुलाम भारत के समय था।

अंग्रेजों द्वारा उन्हें फांसी की सज़ा सुनाए जाने पर भी वे मुस्कुराए थे। उनका कहना था कि मेरी कुर्बानी देशवासियों में एक सैलाब लायेंगी जिससे हमारे जैसे हजारों भगतसिंह माई के लाल इस धरती पर आयेंगे।

भगत सिंह का क्रान्तिकारी जीवन – Freedom Fighter Bhagat Singh

भगत सिंह ने अपना सम्पूर्ण जीवन एक क्रान्तिकारी के रुप मे जिया, जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड की घटना का उनके जीवन पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा था। १९१९ की ये घटना उन्हें शिक्षा से क्रान्तिकारी जीवन की ओर बढ़ने में मजबूर कर दी।

बारह वर्ष की उम्र में वे कई किलोमीटर पैदल चलकर जलियांवाला बाग पहुंचे, वहां हिन्दुस्तानियों के खून से सनी मिट्टी को बोतल में भरकर ले आएं, और पूजा के स्थान पर रखकर पूजते थे, और मन ही मन इसका बदला लेने के लिए खुद को तैयार करने लगे।

भगत सिंह का जेल जीवन – Jail life of Bhagat Singh

किसान विरोधी विधेयक को केन्द्र सभा में पारित न होने देने के लिए भगत सिंह ने चलती हुई सभा में खाली जगह पर बम फेंक दिया था, और अपने आप को पुलिस के हवाले कर दिया था इस प्रकार वे जेल गये।

यदि बहरों को सुनाना हैं तो आवाज तेज करनी होगी, जब हमने बम फेका था तब हमारा इरादा किसी को जान से मारने का नहीं था, हमने ब्रिटिश सरकार पर बम फेका था क्योकी ब्रिटिश सरकार को भारत छोड़ना होगा और उसे स्वतंत्र करना होगा। भगत सिंह कोट्स

भगत सिंह का जेल में जीवन – जेल में रहने के दौरान भगत सिंह ने भारतीय कैदियों पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई।जेल में रहने वाले अन्य भारतीय कैदियों ने भी इनका साथ दिया।

इसी बीच जेल की अमानवीय व्यवस्था देखकर वे भूख हड़ताल पर बैठ गए। इस भूख हड़ताल का समर्थन करने के लिए सभी भारतीय कैदियों ने और जेल के बाहर भारत के लोगों ने भी भोजन करना छोड़ दिया। इस ऐतिहासिक भूख हड़ताल के आगे अंग्रेजी सरकार झुक गई। और उनकी सभी शर्ते मान ली।

भगत सिंह: मैं नास्तिक क्यों हू? – Bhagat Singh Book

आपको दू भगत सिंह नास्तिक थे, अर्थात वो ईश्वर को नही मानते थे। अगर आप इसका कारण जानना चाहते है तो आपको भगत सिंह द्वारा लिखी मै नास्तिक क्यू हू? पुस्तक को पढना होगा, जिसे भगत सिंह ने जेल मे रहते हुये लिखा था।

महान क्रांतिकारी भगत सिंह का जीवन परिचय | Bhagat Singh Biography in Hindi

मैं नास्तिक क्यों हूं? यह लेख भगत सिंह जेल में लिखे थे, जो लाहौर से प्रकाशित समाचार पत्र द पीपल में २७ सितम्बर १९३१ के अंक में प्रकाशित हुई। भगतसिंह ने अपने इस लेख में ईश्वर के बारे में अनेक तर्क किए हैं इसमे सामाजिक परिस्थितियां का भी विश्लेषण किया गया है।

भगत सिंह के जन्म पर मतभेद

भगतसिंह के जन्म दिवस पर मतभेद हैं।क ई पुस्तकों में इनका जन्म २८ सितम्बर और क ई में २८ अक्टूबर भी दिया गया है वैसे पुरानी पुस्तकों व पत्रिकाओं में भगतसिंह का जन्म आशिवनी शुक्ल तेरस संवत १९६४ को शनिवार के दिन सुबह ६ बजे बताया गया है।इस तिथि को कुछ विद्वानों ने २७ सितम्बर १९०७ तो कुछ ने २८ सितम्बर बताया है।

सरदार भगत सिंह की मृत्यु

भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी सरदार भगत सिंह जी २३ वर्ष की उम्र में देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दें दी। भगत सिंह सभी देशवासियों के दिलों में आजादी का जुनून भरने वाले सच्चे देशभक्त थे। उन्होंने हर भारतीय के दिलों में देश प्रेम की भावना विकसित की शहीद भगत सिंह (shahid bhagat singh) का नाम भारत के प्रमुख क्रान्तिकारियों एवं देशभक्तों में सम्मान के साथ लिया जाता है।

भगत सिंह के सुविचार – Bhagat Singh Quotes in Hindi

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मेरी गर्मी के कारण राख का एक-एक कण चलायमान हैं मैं ऐसा पागल हूँ जो जेल में भी स्वतंत्र हैं। Bhagat Singh Quotes
क्रांति में सदैव संघर्ष हो यह आवश्यक नहीं, और ना ही यह बम और पिस्तौल की राह हैं। Bhagat Singh Quotes
कोई व्यक्ति तब ही कुछ करता हैं जब वह अपने कार्य के परिणाम को लेकर आश्वस्त होता हैं जैसे हम ब्रिटिश सरकार के असेम्बली में बम फेकने पर थे Bhagat Singh Quotes

महापुरुषो के सुविचार

कठोरता और आजाद सोच ये दो क्रातिकारी होने के गुण हैं Bhagat Singh Quotes
मैं एक इंसान हूँ और जो भी चीज़े इंसानियत पर प्रभाव डालती हैं मुझे उनसे फर्क पड़ता हैं। Bhagat Singh Quotes
जीवन अपने दम पर चलता हैं दूसरों का कन्धा अंतिम यात्रा में ही साथ देता हैं Bhagat Singh Quotes

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नमस्कार मित्रो आज हम Bhagat Singh Biography In Hindi बताएँगे। अपनी मातृभूमि को स्वतंत्रता दिलाने के लिए फांसी पर चढ़ने वाले भगत सिंह का जीवन परिचय हिंदी में बताने वाले है।

भगत सिंह real photo

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भगत सिंह का जन्म और बचपन –

Bhagat singh ka parichay In Hindi में बतादे की भगत सिंह का जन्म कहां हुआ था ? तो लायलपुर जिले के बंगा गांव में हुआ था। bhagat singh birth date 28 सितंबर 1907 है। और उन महान विभूति भगत सिंह जयंती भी उसी दिन मनाई जाती है। भगत सिंह का परिवार जहा रहता था। वह स्थान भारत पाकिस्तान के बटवारे में अब पाकिस्तान में है। लेकिन उनका मूल गांव खटकड़ कला है। वह गांव अभी भी पंजाब राज्य में है। जब भगत सिंह 5 साल के थे तब उनके बचपन में उनके खेल कूद भी अनोखे थे।

वह अपने दोस्तो के साथ साथ खेलते थे। तब वे दो टोलिया बनाते थे। और सामने सामने युद्ध करते थे ऐसे खेल वो बचपन में खेला करते थे। उनके पिता सरदार किशन सिंह एक किसान थे। और माता का नाम विद्यावती कौर था। जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड होने के पश्यात उनके जीवन में बहुत बदलाव आया उन्होंने तत्काल लाहौर से अपनी पढाई छोड़ के भारत देश की स्वतंत्रता के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना करदी। 

स्वतंत्रता की लड़ाई –

Information about bhagat singh in hindi देखे तो 1922 में चौरी-चौरा कांड में महात्मा गाँधी ने किसानो को साथ नहीं देने के कारन भगत सिंह को बहुत ही दुःख था। उसके पश्यात अहिंसा से उनका भरोसा टूट चूका था। और सशस्त्र क्रांति का रास्ता अपना लिया था। भले गाँधी एसा कहते थे। की उनके अहिंसा से आजादी मिली तो हम हम नहीं मानते उनसे आजादी नहीं मिली थी। आजादी मिलने का मुख्य कारन अंग्रेजो की खुलेआम क़त्ल मुख्य कारन था। उन्होंने तय  करलिया की सशस्त्र क्रांति ही स्वतंत्रता दिलाने में कामियाब होने वाली है। 

गांघीजी से अलग होने के बाद वह चन्द्रशेखर आजाद के साथ मिलके उन्होंने  गदर दल के नेतृत्व में कार्य करना शुरू किया था। काकोरी कांड ( kakori kand )मे 4 क्रांतिकारियों को सजा – ये – मौत सुनाई गयी थी और अन्य 13 लोगो को कारावास की सजा हुई थी। इस को सुनते ही भगत सिंह दुखी हुए की कोई सीमाही नहीं थी उनके दुःख की। और हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन से जुड़के भारत के नौजवानो को तैयार करके देश के लिए समर्पित हो जाना था।

भगत सिंह फोटो

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सांडर्स को मारा-

राजगुरु के साथ हो करके 17 दिसम्बर 1928 के दिन लाहौर में अंग्रेज पुलिस अधीक्षक जे० पी० सांडर्स को मारडाला था। उसमे चन्द्रशेखर आज़ाद ने उनकी बहुत मदद की थी। उनके साथी स्वतन्त्र सेनानी बटुकेश्वर दत्त से मिल के ब्रिटिश सरकार की सेण्ट्रल एसेम्बली के सभागार संसद भवन में पर्चे और बम फेंके थे। जिनसे अंग्रेज़ सरकार की नींदे हराम हो चुकी थी। वह काम उन्होंने 8 अप्रैल 1921 के दिन किया और अपनी गिरफ्तारी करवाई थी ताकि अंग्रेजो को पता चल सके।

लाला लाजपत राय की हत्या का लिया बदला –

भगत सिंह ने अपनी पार्टी से मिलके 30 अक्टूबर 1928 के दिन सइमन कमीशन का जमकर विरोध किया। उसमे लाला लाजपत राय भी मौजूद थे। वह सब “साइमन वापस जाओ” जैसे भगत सिंह के नारे लगाया करते थे। लाहौर रेलवे स्टेशन पर लाठी चार्ज किया और उसमे लाला जी बहुत घायल हुए। और म्रत्यु हो गई। उनकी मौत से उनकी पार्टी और भगत सिंह ने अंग्रेजों से मौत का बदला लेने के लिए  ज़िम्मेदार ऑफीसर स्कॉट को मारदेने का तख्ता तैयार कर लिया था।

लेकिन गलती से भगत सिंह ने असिस्टेंट पुलिस सौन्देर्स को मार गिराया था। खुदको बचाने के लिए भगत सिंह लाहौर से भाग निकले थे। फिरभी ब्रिटिश सरकार ने उन्हें पकड़ ने के लिए चारोओर  जाल सा बिछा रखा था।भगत सिंह खुद को बचाने के लिए बाल व दाढ़ी कटवा दी। जोकि वह अपनी धार्मिकता केविरुद्ध था। लेकिन भगत सिंह को देश देश की आजादी के अलावा कुछ दिखाई ही नहीं देता था। 

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शहीद भगत सिंह कविता – 

भारत माता के वीर पुत्र भगत सिंह पर कई कविताओं का निर्माण हुआ है। जो आज भी लोगो की जुबा पर अक्सर सुनाई देती है। उसमे मुख्य  इस मुताबिक है। 

(1)डरे न कुछ भी जहां की चला चली से हम। गिरा के भागे न बम भी असेंबली से हम।

(2)सख़तियों से बाज़ आ ओ आकिमे बेदादगर, दर्दे-दिल इस तरह दर्दे-ला-दवा हो जाएगा ।

(3)बम चख़ है अपनी शाहे रईयत पनाह से इतनी सी बात पर कि ‘उधर कल इधर है आज’

Bhagat Singh Biography In Hindi

भगत सिंह को फांसी की सजा हुई –

Bhagat singh rajguru sukhdev fasi केश चलाया गया था। और इनके नतीजे पर कोर्ट ने तीनो को फांसी की सजा सुनाई थी। फिरभी Bhagat Singh Slogan लगा रहे थे। की इंकलाब जिंदाबाद मौत सामने होते हुए भी उनकी वीरता में  कोई कमी नहीं दिखाई दी थी। जेल में उन्हें बहुत तकलीफो का सामना करना पड़ा था। उस वक्त भारतीय कैदियों के साथ बहुत ख़राब व्यवहार किया जाते थे। ऐसा कहा जाता था की उन्होंने जेल में रहते हुए भी आंदोलन शुरू किया था।अंग्रेज अधिकारियो के जुर्म को रोकने और अपनी मांग पूरी कराने के लिए। कई समय तक खाना तो ठीक पानी तक नही पिया करते थे। अंग्रेज अफसर अक्सर उन्हें ज्यादा मारपीट किया करते थे।

Bhagat singh photo

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Bhagat Singh Death –  भगत सिंह की मृत्यु

भगत सिंह की मृत्यु कब हुई थी ? उन्हें बहुत यातनाये दी जाती थी। फिरभी उन्होंने कभी हार नहीं मानी। अपने अंतिम दिनों यानि 1930 की साल मे भगत सिंह पुस्तकें लिखी उसका नाम Why I Am Atheist था। Bhagat singh fasi date 24 मार्च 1931 को फिक्स हुई थी। लेकिन B hagat singh death date 23 मार्च 1931 के मध्यरात्रि में उन्हें फांसी दी गयी थी। और उसका मुख्य कारन समग्र भारत में उनकी रिहाई के लिए हो रहे प्रदर्शन थे। उनसे ब्रिटिश सरकार इतना डरती थी। की उनके समय से पहले उन्हें फांसी दी और अंतिम संस्कार भी करवा दिये गए थे।

The Legend Of Bhagat Singh Movie –

बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्रीज़ ने शहीद वीर भगत सिंह पर बहुत फिल्मो का निर्माण किया है। उसमे शहीद (1965), शहीद-ए-आज़म (2002), शहीद (2002), 23 मार्च 1931, और The Legend of Bhagat Singh (2002) है। 

Bhagat Singh Biography In Hindi Video –

Bhagat Singh Interesting Facts –

  • जेल डायरी भगत सिंह की दस्तावेजों को संग्रह विभाग द्वारा अभी तक सरंक्षित रखा गया है।
  • भगत सिंह को फांसी दी गई थी वह स्थान भारत पाकिस्तान बटवारे में अब पाकिस्तान का हिस्सा है।
  • भगत सिंह ने 116 दिनों तक अपनी हड़ताल जारी रखी लेकिन पिता के कहने पर ख़त्म कर दी। 
  • जेल में रहते हुए अपने अंतिम समय में एक नास्तिक हो गए थे।
  • भगत सिंह के अनमोल विचार देखे तो उसका जवाब अपनी पुस्तक में नास्तिक होने के की वजह बताई है।
  • भगत सिंह केस के गवाह शादी लाल और शोभा सिंह थे।
  • वीर भगत सिंह का मुकदमा राय बहादुर सूरज नारायण ने लड़ा था।
  • लाहौर षड़यंत्र मामले में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फांसी की सज़ा सुनाई गई।

Bhagat Singh Questions –

1 .bhagat sinh ka janm kahan hua tha ?

भगत सिंह का जन्म लयालपुर, बंगा, पंजाब (वर्तमान में पाकिस्तान) हुआ था। 

2 .bhagat sinh ko phaansi kyon di gai ?

लाहौर षड़यंत्र के लिए भगत सिंह को फांसी दी गई थी। 

3 .bhagat singh kaun the ?

भगत सिंह भारतीय क्रांतिकारी यानि स्वतंत्रता सेनानी थे। 

4 .Bhagat singh ko fansi kab di gai thi  ?

भगत सिंह की मृत्यु 23 मार्च 1931 के दिन मध्यरात्रि में हुई थी। 

5 .भगत सिंह जयंती कब है ? 

भगत सिंह जयंती 28 सितंबर के दिन मनाई जाती है। 

6 .Bhagat singh ka janm kahan hua tha ?

भगत सिंह का जन्म स्थान लयालपुर, बंगा, पंजाब है।

7 .भगत सिंह का जन्म कब हुआ था ?

28 सितंबर 1907 को भगत सिंह का जन्म हुआ था। 

इसके बारेमे भी जानिए :- एलन मस्क की जीवनी हिंदी

Conclusion –

आपको मेरा Bhagat Singh Biography In Hindi बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा। 

लेख के जरिये Bhagat singh siblings और Bhagat Singh Quotes In Hindi से सबंधीत  सम्पूर्ण जानकारी दी है।

अगर आपको अन्य व्यक्ति के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है।

हमारे आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शयेर जरूर करे। जय हिन्द।

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शहीद भगत सिंह की जीवनी | Bhagat Singh Biography in Hindi

Photo of author

  • 1 भगत सिंह की जीवनी, जीवन परिचय, शिक्षा, राष्ट्रीय आंदोलन और क्रांतिकारी गतिविधियाँ में योगदान | Bhagat Singh Biography, Education, Role in Independence & Revolutionary activities in Hindi
  • 2 भगत सिंह का जन्म और प्रारंभिक जीवन (Bhagat Singh Birth & Early Education)
  • 3 राष्ट्रीय आंदोलन और क्रांतिकारी गतिविधियाँ में योगदान (Role in National Movement and Revolutionary Activities)
  • 4 1929 विधानसभा हादसा ट्रायल (1929 Assembly Incident Trial)
  • 5 लाहौर षड़यंत्र केस एंड ट्रायल (Lahore Conspiracy Case and Trial)
  • 6 भगत सिंह को फांसी की सजा (Bhagat Singh Death)
  • 7 भगत सिंह की लोकप्रियता और विरासत (Popularity and legacy of Bhagat Singh)
  • 8 फिल्मे और नाट्य रूपांतरण (Films and theatrical adaptations)
  • 9 Join us on Telegram

भगत सिंह की जीवनी, जीवन परिचय, शिक्षा, राष्ट्रीय आंदोलन और क्रांतिकारी गतिविधियाँ में योगदान | Bhagat Singh Biography, Education, Role in Independence & Revolutionary activities in Hindi

भगत सिंह को भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन के सबसे प्रभावशाली क्रांतिकारियों में से एक माना जाता है. वह कई क्रांतिकारी संगठनों के साथ जुड़ गए और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. महज 23 साल की उम्र में शहीद हो गए. उनके निष्पादन के बाद, 23 मार्च, 1931 को, भगत सिंह के समर्थकों और अनुयायियों ने उन्हें माना जाता हैं.

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नाम (Name)भगत सिंह
जन्म दिनांक (Date of birth)28 सितंबर 1907
जन्म स्थान (Birth Place)ग्राम बंगा, तहसील जरनवाला, जिला लायलपुर, पंजाब
पिता का नाम (Father Name)किशन सिंह
माता का नाम (Mother Name)विद्यावती कौर
शिक्षा (Education)डी.ए.वी. हाई स्कूल, लाहौर, नेशनल कॉलेज, लाहौर
संगठन (Organization)नौजवान भारत सभा, हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन, कीर्ति किसान पार्टी, क्रांति दल
राजनीतिक विचारधारा (Political Mindset)समाजवाद, राष्ट्रवाद
मृत्यु (Death)23 मार्च 1931
मृत्यु का स्थान (Death Place)लाहौर
स्मारक (Memorial)द नेशनल शहीद मेमोरियल, हुसैनवाला, पंजाब

भगत सिंह का जन्म और प्रारंभिक जीवन (Bhagat Singh Birth & Early Education)

भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 को लायलपुर जिले (अब पाकिस्तान) के बंगा में किशन सिंह और विद्यापति के यहाँ हुआ था. उनके जन्म के समय उनके पिता किशन सिंह, चाचा अजीत और स्वर्ण सिंह 1906 में लागू किए गए औपनिवेशीकरण विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन के लिए जेल में थे. उनके चाचा सरदार अजीत सिंह, आंदोलन के नेता थे और उन्होंने भारतीय देशभक्त संघ की स्थापना की. चेनाब नहर कॉलोनी बिल के खिलाफ किसानों को संगठित करने में उनके मित्र सैयद हैदर रज़ा ने उनका अच्छा साथ दिया. अजीत सिंह के खिलाफ 22 मामले दर्ज थे और उन्हें ईरान भागने के लिए मजबूर किया गया था. इसके अलावा उनका परिवार ग़दर पार्टी का समर्थक था और घर में राजनीतिक रूप से जागरूक माहौल ने युवा भगत सिंह के दिल में देशभक्ति की भावना पैदा करने में मदद की.

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भगत सिंह ने अपने गाँव के स्कूल में पाँचवीं कक्षा तक पढ़ाई की. जिसके बाद उनके पिता किशन सिंह ने उन्हें लाहौर के दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल में दाखिला दिलाया. बहुत कम उम्र में, भगत सिंह ने महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए असहयोग आंदोलन का अनुसरण किया. भगत सिंह ने खुले तौर पर अंग्रेजों को ललकारा था और सरकार द्वारा प्रायोजित पुस्तकों को जलाकर गांधी की इच्छाओं का पालन किया था.

यहां तक ​​कि उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज में दाखिला लेने के लिए स्कूल छोड़ दिया.उनके किशोर दिनों के दौरान दो घटनाओं ने उनके मजबूत देशभक्ति के दृष्टिकोण को आकार दिया – 1919 में जलियांवाला बाग मसकरे और 1921 में ननकाना साहिब में निहत्थे अकाली प्रदर्शनकारियों की हत्या. उनका परिवार स्वराज प्राप्त करने के लिए अहिंसक दृष्टिकोण की गांधीवादी विचारधारा में विश्वास करता था. भगत सिंह ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और असहयोग आंदोलन के पीछे के कारणों का भी समर्थन किया.

चौरी चौरा घटना के बाद, गांधी ने असहयोग आंदोलन को वापस लेने का आह्वान किया. फैसले से नाखुश भगत सिंह ने गांधी की अहिंसक कार्रवाई से खुद को अलग कर लिया और युवा क्रांतिकारी आंदोलन में शामिल हो गए. इस प्रकार ब्रिटिश राज के खिलाफ हिंसक विद्रोह के सबसे प्रमुख वकील के रूप में उनकी यात्रा शुरू हुई.

वे बी.ए. की परीक्षा में थे. जब उनके माता-पिता ने उसकी शादी करने की योजना बनाई. उन्होंने सुझाव को अस्वीकार कर दिया और कहा कि, “यदि उनकी शादी गुलाम-भारत में होने वाली थी, तो मेरी दुल्हन की मृत्यु हो जाएगी.”मार्च 1925 में यूरोपीय राष्ट्रवादी आंदोलनों से प्रेरित होकर भोज सिंह के साथ, इसके सचिव के रूप में नौजवान भारत सभा का गठन किया गया था.

भगत सिंह एक कट्टरपंथी समूह हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एच.आर.ए.) में भी शामिल हुए. जिसे बाद में उन्होंने साथी क्रांतिकारियों चंद्रशेखर आज़ाद और सुखदेव के साथ हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एच.एस.आर.ए.) के रूप में फिर से शुरू किया. शादी करने के लिए मजबूर नहीं करने के आश्वासन मिलने के बाद वह अपने माता-पिता के घर लाहौर लौट आए.

उन्होंने कीर्ति किसान पार्टी के सदस्यों के साथ संपर्क स्थापित किया और अपनी पत्रिका “कीर्ति” में नियमित रूप से योगदान देना शुरू कर दिया. एक छात्र के रूप में भगत सिंह एक उत्साही पाठक थे और वे यूरोपीय राष्ट्रवादी आंदोलनों के बारे में पढ़ते थे. फ्रेडरिक एंगेल्स और कार्ल मार्क्स के लेखन से प्रेरित होकर, उनकी राजनीतिक विचारधाराओं ने आकार लिया और उनका झुकाव समाजवादी दृष्टिकोण की ओर हो गया.

राष्ट्रीय आंदोलन और क्रांतिकारी गतिविधियाँ में योगदान (Role in National Movement and Revolutionary Activities)

प्रारंभ में भगत सिंह की गतिविधियाँ ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध संक्षिप्‍त लेख लिखने, सरकार को उखाड़ फेंकने के उद्देश्य से एक हिंसक विद्रोह के सिद्धांतों को रेखांकित करने, मुद्रित करने और वितरित करने तक सीमित थीं. युवाओं पर उनके प्रभाव और अकाली आंदोलन के साथ उनके सहयोग को देखते हुए, वह सरकार के लिए एक रुचि के व्यक्ति बन गए. पुलिस ने उन्हें 1926 में लाहौर में हुए बमबारी मामले में गिरफ्तार किया. उन्हें 5 महीने बाद 60,000 रुपये के बॉन्ड पर रिहा कर दिया गया.

30 अक्टूबर 1928 को लाला लाजपत राय ने सभी दलों के जुलूस का नेतृत्व किया और साइमन कमीशन के आगमन के विरोध में लाहौर रेलवे स्टेशन की ओर मार्च किया. पुलिस ने प्रदर्शनकारियों की प्रगति को विफल करने के लिए एक क्रूर लाठीचार्ज का सहारा लिया. टकराव ने लाला लाजपत राय को गंभीर चोटों के साथ छोड़ दिया और उन्होंने नवंबर 17, 1928 को अपनी चोटों के कारण दम तोड़ दिया. लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए, भगत सिंह और उनके सहयोगियों ने जेम्स ए स्कॉट की हत्या की साजिश रची, जो पुलिस अधीक्षक थे. माना जाता है कि लाठीचार्ज का आदेश दिया है. क्रांतिकारियों ने स्कॉट के रूप में सहायक पुलिस अधीक्षक जे.पी. सौन्डर्स को गलत तरीके से मार डाला. भगत सिंह ने अपनी गिरफ्तारी से बचने के लिए जल्दी से लाहौर छोड़ दिया. बचने के लिए उन्होंने अपनी दाढ़ी मुंडवा ली और अपने बाल काट दिए, जो सिख धर्म के पवित्र सिद्धांतों का उल्लंघन था.

डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट के निर्माण के जवाब में, हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन ने विधानसभा परिसर के अंदर एक बम विस्फोट करने की योजना बनाई, जहां अध्यादेश पारित होने वाला था. 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने असेंबली के गलियारों में बम फेंका, ‘इंकलाब ज़िंदाबाद!’ और हवा में अपनी मिसाइल को रेखांकित करते हुए पर्चे फेंके. बम किसी को मारने या घायल करने के लिए नहीं था और इसलिए इसे भीड़ वाली जगह से दूर फेंक दिया गया था, लेकिन फिर भी कई परिषद सदस्य हंगामे में घायल हो गए. धमाकों के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त दोनों ने गिरफ्तारी दी.

1929 विधानसभा हादसा ट्रायल (1929 Assembly Incident Trial)

विरोध का नाटकीय प्रदर्शन राजनीतिक क्षेत्र से व्यापक आलोचनाओं के साथ किया गया था. सिंह ने जवाब दिया – “जब आक्रामक तरीके से लागू किया जाता है तो यह ‘हिंसा’ है और इसलिए नैतिक रूप से यह अनुचित है, लेकिन जब इसका इस्तेमाल वैध कारण के लिए किया जाता है, तो इसका नैतिक औचित्य है.”

मई में ट्रायल की कार्यवाही शुरू हुई जिसमें सिंह ने अपना बचाव करने की मांग की, जबकि बटुकेश्वर दत्त ने अफसर अली का प्रतिनिधित्व किया. अदालत ने विस्फोटों के दुर्भावनापूर्ण और गैरकानूनी इरादे का हवाला देते हुए उम्रकैद की सजा के पक्ष में फैसला सुनाया.

लाहौर षड़यंत्र केस एंड ट्रायल (Lahore Conspiracy Case and Trial)

सजा सुनाए जाने के तुरंत बाद पुलिस ने लाहौर में एचएसआरए बम फैक्ट्रियों पर छापा मारा और कई प्रमुख क्रांतिकारियों को गिरफ्तार किया. इन व्यक्तियों हंस राज वोहरा, जय गोपाल और फणींद्र नाथ घोष ने सरकार के लिए अनुमोदन किया, जिसके कारण सुखदेव सहित कुल 21 गिरफ्तारियां हुईं. जतीन्द्र नाथ दास, राजगुरु और भगत सिंह को लाहौर षडयंत्र मामले, सहायक अधीक्षक सॉन्डर्स की हत्या और बम निर्माण के लिए फिर से गिरफ्तार किया गया था.

28 जुलाई, 1929 को न्यायाधीश राय साहिब पंडित श्री किशन की अध्यक्षता में विशेष सत्र अदालत में 28 आरोपियों के खिलाफ मुकदमा शुरू हुआ.

इस बीच, सिंह और उनके साथी कैदियों ने श्वेत बनाम देशी कैदियों के उपचार में पक्षपातपूर्ण अंतर के विरोध में अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल की घोषणा की और ‘राजनीतिक कैदियों’ के रूप में मान्यता देने की मांग की. भूख हड़ताल ने प्रेस से जबरदस्त ध्यान आकर्षित किया और अपनी मांगों के पक्ष में प्रमुख सार्वजनिक समर्थन इकट्ठा किया. 63 दिनों के लंबे उपवास के बाद जतिंद्र नाथ दास की मृत्यु, नकारात्मक जनमत के कारण अधिकारियों के प्रति तीव्र हो गई. 5 अक्टूबर 1929 को भगत सिंह ने अंततः अपने पिता और कांग्रेस नेतृत्व के अनुरोध पर अपना 116 दिन का उपवास तोड़ा.

कानूनी कार्यवाही की धीमी गति के कारण, न्यायमूर्ति जे. कोल्डस्ट्रीम, न्यायमूर्ति आगा हैदर और न्यायमूर्ति जीसी हिल्टन से युक्त एक विशेष न्यायाधिकरण की स्थापना 1 मई 1930 को वायसराय, लॉर्ड इरविन के निर्देश पर की गई थी. न्यायाधिकरण को आगे बढ़ने का अधिकार दिया गया था. अभियुक्तों की उपस्थिति के बिना और एकतरफा मुकदमे थे जो शायद ही सामान्य कानूनी अधिकार दिशानिर्देशों का पालन करते थे.

ट्रिब्यूनल ने 7 अक्टूबर 1930 को अपना 300 पन्नों का फैसला सुनाया. इसने घोषणा की कि सॉन्डर्स हत्या में सिंह, सुखदेव और राजगुरु के शामिल होने की पुष्टि के लिए अकाट्य प्रमाण प्रस्तुत किया गया है. सिंह ने हत्या की बात स्वीकार की और परीक्षण के दौरान ब्रिटिश शासन के खिलाफ बयान दिए. उन्हें मौत तक की सजा सुनाई गई थी.

भगत सिंह को फांसी की सजा (Bhagat Singh Death)

23 मार्च 1931 को सुबह 7:30 बजे भगत सिंह को उनके साथियों राजगुरु और सुखदेव के साथ लाहौर जेल में फांसी दी गई थी. ऐसा कहा जाता है कि तीनों अपने पसंदीदा नारों जैसे “इंकलाब जिंदाबाद” और “ब्रिटिश साम्राज्यवाद के साथ नीचे” का उच्चारण करते हुए फांसी के लिए काफी खुश थे. सतलज नदी के तट पर हुसैनीवाला में सिंह और उनके साथियों का अंतिम संस्कार किया गया.

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भगत सिंह की लोकप्रियता और विरासत (Popularity and legacy of Bhagat Singh)

भगत सिंह उनकी प्रखर देशभक्ति, जो कि आदर्शवाद से जुडी थी. जिसने उन्हें अपनी पीढ़ी के युवाओं के लिए एक आदर्श आइकन बना दिया. ब्रिटिश इंपीरियल सरकार के अपने लिखित और मुखर आह्वान के माध्यम से वह अपनी पीढ़ी की आवाज बन गए. गांधीवादी अहिंसक मार्ग से स्वराज की ओर जाने की उनकी आलोचना अक्सर कई लोगों द्वारा आलोचना की गई है फिर भी शहादत के निडर होकर उन्होंने सैकड़ों किशोर और युवाओं को पूरे स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया. वर्तमान समय में उनकी प्रतिष्ठा इस तथ्य से स्पष्ट है कि भगत सिंह को 2008 में इंडिया टुडे द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में, सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी से आगे महान भारतीय के रूप में वोट दिया गया था.

फिल्मे और नाट्य रूपांतरण (Films and theatrical adaptations)

भगत सिंह ने भारतीयों की आत्मा के भीतर अभी भी जो प्रेरणा दी है, वह फिल्मों की लोकप्रियता और उनके जीवन पर नाट्य रूपांतरण में महसूस की जा सकती है. “शहीद” (1965) और “द लीजेंड ऑफ भगत सिंह” (2002) जैसी कई फिल्में 23 वर्षीय क्रांतिकारी के जीवन पर बनी थीं. भगत सिंह से जुड़े “मोहे रंग दे बसंती चोला” और “सरफ़रोशिकी तमन्ना” जैसे लोकप्रिय गीत आज भी भारतीयों में देशभक्ति की भावनाएं जगाते हैं. उनके जीवन, विचारधाराओं और विरासत के बारे में कई किताबें, लेख और पत्र लिखे गए हैं.

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