hindimeaning.com

परोपकार पर निबंध-Essay On Paropkar In Hindi (100, 200, 300, 400, 500, 700, 1000+ Words)

परोपकार पर निबंध-essay on paropkar in hindi, परोपकार पर निबंध 1 (100 शब्द).

जिस समाज में दूसरों की सहायता करने की भावना जितनी अधिक होगी वह समाज उतना ही सुखी और समृद्ध होगा। परोपकार की भावना मनुष्य का एक स्वाभाविक गुण होता है।परोपकार अर्थात् दूसरों के काम आना इस सृष्टि के लिए अनिवार्य है।

वृक्ष अपने लिए नहीं, औरों के लियेफल धारण करते हैं। नदियाँ भी पाना जल स्वयं नहीं पीतीं। परोपकारी मनुष्य संपति का संचय भी औरों के कल्याण के लिए करते हैं। साडी प्रकुर्ती निस्वार्थ समपर्ण का संदेश देती है। सूरज आता है, रोशनी देकर चला जाता है। चंद्रमा भी हमसे कुछ नहीं लेता, केवल देता ही देता है।

परोपकार पर निबंध 2 (200 शब्द)

मानवता का असली मतलब परोपकार है। जीवन विकास के सभी गुणों में यह सबसे अच्छा गुण है। पर + उपकार =परोपकार। यह दो शब्दों का मिलन है। इसका का अर्थ होता है दूसरों का भला करना करना और दूसरों की सहयता करना। किसी की व्यक्ति या जानवर की मुसीबत में मदद करना ही परोपकार कहा जाता है। हमारे मानव जीवन का यही उद्देश है हम किसी भी प्रकार से दूसरों की मदद करे।

ईश्वर ने प्रकृति की रचना दवारा हमें परोपकार का मूल्य बखूबी समझाया है। पेड़- पौधे कभी अपना फल नहीं खाते। सूर्य खुद जलकर दूसरों को प्रकाश देता है। परोपकार से हमारे हृदय को शांति तथा सुख का अनुभव होता है। समाज में परोपकार से बढकर कोई धर्म नहीं है। सभी धर्म परोपकार के आगे तुच्छ है।

परोपकार व्यक्ति को निस्वार्थ रूप से दूसरे लोगों की सेवा अथवा सहायता करना सिखाता है। परोपकार समाज में प्रेम सन्देश और भाईचारा फैलाता है। एक समृद्ध समाज के लिए हमें परोपकार का महत्व समझना होगा। परोपकारी व्यक्ति को लोगों द्वारा आदर सत्कार मिलता है। दया, प्रेम, अनुराग और करुणा के मूल में परोपकार की भावना है।

जीवन में परोपकार का बहुत महत्व है। समाज में परोपकार से बढकर कोई धर्म नहीं होता । ईश्वर ने प्रकृति की रचना इस तरह से की है कि आज तक परोपकार उसके मूल में ही काम कर रही है।

परोपकार पर निबंध 3 (300 शब्द)

भूमिका :  परोपकार एक ऐसी भावना होती है जो हर किसी को अपने अन्दर रखना चहिये। इसे हर व्यक्ति को अपनी आदत के रूप में विकसित भी करनी चाहिए। यह एक ऐसी भावना है जिसके तहत एक व्यक्ति यह भूल जाता है की क्या उसका हित है और क्या अहित, वह अपनी चिंता किये बगैर निःस्वार्थ भाव से दूसरों की मदद करता है और बदले में उसे भले कुछ मिले या न मिले कभी इसकी चर्चा भी नहीं करता।

परोपकार की महत्वता: जीवन में परोपकार का बहुत महत्व है। समाज में परोपकार से बढकर कोई धर्म नहीं होता । ईश्वर ने प्रकृति की रचना इस तरह से की है कि आज तक परोपकार उसके मूल में ही काम कर रही है।

परोपकार प्रकृति के कण-कण में समाया हुआ है। जिस तरह से वृक्ष कभी भी अपना फल नहीं खाता है, नदी अपना पानी नहीं पीती है, सूर्य हमें रोशनी देकर चला जाता है। परोपकार एक उत्तम आदर्श का प्रतीक है। पर पीड़ा के समान कुछ भी का अधम एवं निष्कृष्ट नहीं है।

उपसंहार :  तुलसीदास जी की युक्ति “परहित सरिस धर्म नहीं भाई” से यह निष्कर्ष निकलता है परोपकार ही वह मूल मंत्र है। जो व्यक्ति को उन्नति के शिखर पर पहुंचा सकता है तथा राष्ट्र समाज का उत्थान कर सकता है। परोपकार से बढ़ के कुछ नहीं है और हमे दूसरों को भी प्रेरित करना चाहिए की वे बढ़-चढ़ कर दूसरों की मदद करें। आप चाहें तो अनाथ आश्रम जा के वहां के बच्चों को शिक्षा दे सकते हैं या अपनी तनख्वा का कुछ हिस्सा गरीबों में बाँट सकते हैं।

परोपकार पर निबंध 4 (400 शब्द)

भूमिका :  मानव जीवन में परोपकार का बहुत महत्व होता है। समाज में परोपकार से बढकर कोई धर्म नहीं होता है। ईश्वर ने प्रकृति की रचना इस तरह से की है कि आज तक परोपकार उसके मूल में ही काम कर रहा है। परोपकार प्रकृति के कण-कण में समाया हुआ है।

जिस तरह से वृक्ष कभी भी अपना फल नहीं खाता है, नदी अपना पानी नहीं पीती है, सूर्य हमें रोशनी देकर चला जाता है। इसी तरह से प्रकृति अपना सर्वस्व हमको दे देती है। वह हमें इतना कुछ देती है लेकिन बदले में हमसे कुछ भी नहीं लेती है। किसी भी व्यक्ति की पहचान परोपकार से की जाती है।

परोपकार का वास्तविक स्वरूप :  आज के समय में मानव अपने भौतिक सुखों की ओर अग्रसर होता जा रहा है। इन भौतिक सुखों के आकर्षण ने मनुष्य को बुराई-भलाई की समझ से बहुत दूर कर दिया है। अब मनुष्य अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए काम करता है। आज के समय का मनुष्य कम खर्च करने और अधिक मिलने की इच्छा रखता है।

आज के समय में मनुष्य जीवन के हर क्षेत्र को व्यवसाय की नजर से देखता है। जिससे खुद का भला हो वो काम किया जाता है उससे चाहे दूसरों को कितना भी नुकसान क्यों न हो। पहले लोग धोखे और बेईमानी से पैसा कमाते हैं और यश कमाने के लिए उसमें से थोडा सा धन तीरथ स्थलों पर जाकर दान दे देते हैं। यह परोपकार नहीं होता है।

मानवता का उद्देश्य :  मानवता का उद्देश्य यह होना चाहिए कि वह अपने साथ-साथ दूसरों के कल्याण के बारे में भी सोचे। मनुष्य का कर्तव्य होना चाहिए कि खुद संभल जाये और दूसरों को भी संभाले। जो व्यक्ति दूसरों के दुखों को देखकर दुखी नहीं होता है वह मनुष्य नहीं होता है वह एक पशु के समान होता है।

जो गरीबों और असहाय के दुखों को और उनकी आँखों से आंसुओं को बहता देखकर जो खुद न रो दिया हो वह मनुष्य नहीं होता है। अगर तुम्हारे पास धन है तो उसे गरीबों का कल्याण करो।

उपसंहार : परोपकारी मानव किसी बदले की भावना अथवा प्राप्ति की आकांक्षा से किसी के हित में रत नहीं होता। वह इंसानियत के नाते दूसरों की भलाई करता है। “सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया “ के पीछे भी परोपकार की भावना ही प्रतिफल है।

परोपकार सहानुभूति का पर्याय है। यह सज्जनों की विभूति होती है, परोपकार मानव समाज का आधार होता है। परोपकार के बिना सामाजिक जीवन गति नहीं कर सकता। हर व्यक्ति का धर्म होना चाहिए कि वह एक परोपकारी बने। दूसरों के प्रति अपने कर्तव्य को निभाएं और कभी-भी दूसरों के प्रति हीन भावना ना रखे।

परोपकार पर निबंध 5 (500 शब्द)

भूमिका :  समाज में परोपकार से बढकर कोई धर्म नहीं होता, यह ऐसा काम है जिसके द्वारा शत्रु भी मित्र बन जाता है। यदि शत्रु पर विपत्ति के समय उपकार किया जाए ,तो वह सच्चा मित्र बन जाता है। विज्ञान ने आज इतनी उन्नति कर ली है कि मरने के बाद भी हमारी नेत्र ज्योति और अन्य कई अंग किसी अन्य व्यक्ति के जीवन को बचाने का काम कर सकते है।

इनका जीवन रहते ही दान कर देना महान उपकार है। परोपकार के द्वारा ईश्वर की समीपता प्राप्त होती है। मानव जीवन में इसका बहुत महत्व होता है। ईश्वर ने प्रकृति की रचना इस तरह से की है कि आज तक परोपकार उसके मूल में ही काम कर रहा है। परोपकार प्रकृति के कण-कण में समाया हुआ है।

परोपकार में जीवन का महत्व : परोपकारी व्यक्ति संसार के लिए पूज्य बन जाता है समाज तथा देश की उन्नति के लिए परोपकारी सबसे बड़ा साधन है आज के वैज्ञानिक युग मैं विश्वकर्मा परोपकार की भावना कम होती जा रही है। भारतीय संस्कृति में परोपकार को सर्वोपरि माना गया है परहित को एक मानव कर्तव्य मंगाया भारतीय संस्कृति में तो कहा गया है।

परोपकार के विभिन्न प्रकार : परोपकार की भावना अनेक रूपों में प्रकट होती हैं. धर्मशालाएं, धर्मार्थ, औषधालय, जलाशयों, पाठशालाओं आदि का निर्माण तथा भोजन, वस्त्र आदि का दान देना –परोपकार के ही विभिन्न रूप हैं. इनके पीछे सर्वजन हित एवं प्राणिमात्र के प्रति प्रेम की भावना निहित हैं।

परोपकारी का जीवन आदर्श माना जाता है. उनका यह सदैव बना रहता है। मानव स्वभाव से यश की कामना करता है। परोपकार द्वारा उसे समाज में सम्मान तथा यश मिलता है। महर्षि दधीचि, महाराज शिवि, राजा रंतिदेव जैसे पौराणिक चरित्र आज भी याद किए जाते हैं।

परोपकार से लाभ : रोपकार से मानव का व्यक्तित्व विकास होता है. वह परोपकार की भावना के कारण स्व के स्थान पर अन्य (पर) के लिए सोचता है. इसमें आत्मा का विस्तार होता है. भाईचारे की भावना बढ़ती है. विश्व बंधुत्व की भावना का विकास होता है. परोपकार से अलौकिक आनंद मिलता है. किसी को संकट से निकाले, भूखे को भोजन दें तो इसमें सर्वाधिक सुख जी अनुभूति होती हैं. परोपकार को बड़ा पुण्य और परपीडन को पाप माना गया हैं।

परोपकार पर निबंध 6 (700 शब्द)

परिभाषा : परोपकार शब्द ‘पर+उपकार’ इन दो शब्दों के योग से बना है, जिसका अर्थ है नि:स्वार्थ भाव से दूसरों की सहायता करना. अपनी शरण में आए मित्र, शत्रु, कीट-पतंग, देशी-परदेशी, बालक-वृद्ध सभी के दु:खों का निवारण निष्काम भाव से करना परोपकार कहलाता है

प्रकृति और परोपकार :  ईश्वर हमें प्रकृति द्वारा जीवन विकास के कई गुण सीखना चाहते है इसलिए उन्होंने प्रकृति के कण कण में परोपकार का महत्व समझाया है। प्रकृति के सभी घटक का उनके द्वारा किया गया कर्म सदैव दूसरों के लिए होता है। जैसे कि वृक्ष के ऊपर फल तो होते है लेकिन वो हमेशा दूसरों के लिए ही है । नदियां मनुष्य, पशु पक्षी, और पेड़ पौधों को जीवन देने के लिए निरंतर बहती रहती है। सूर्य हमारे जीवन का एकमात्र स्त्रोत है लेकिन वो हमेशा दूसरों को ऊर्जा देने के लिए खुद जलता है। रात में चन्द्रमा शीतलता प्रदान करने के लिए ही उदित होता है।

परोपकार क्यों करना चाहिए :   अगर आपके पास कोई चीज है तो आपको स्वयं को भाग्यशाली समझना चाहिए कि आपके पास वह चीज है। जिसकी आवश्यकता किसी और को भी है और उसे आपसे वह चीज मांगनी पड़ रही है। जिंदगी यदि परोपकार के लिए जाएगी तो आपको कोई भी कमी नहीं रहेगी।

आपकी जो-जो इच्छाएँ हैं, वे सभी पूरी होगी और सिर्फ खुद के लिए जिये तो एक भी इच्छा पूरी नहीं होगी। क्योंकि वह रीति आपको नींद ही नहीं आने देगी।

परोपकार से मन की शांति और आनंद : परोपकार करने से मन और आत्मा को बहुत शांति मिलती है। परोपकार से भाईचारे की भावना और विश्व-बंधुत्व की भावना भी बढती है। मनुष्य को जो सुख का अनुभव गरबों की मदद करने में होता है, वह किसी और काम को करने से नहीं होता है।

जो व्यक्ति दूसरों के सुख के लिए जीते हैं, उनका जीवन प्रसन्नता और सुख से भर जाता है। समाज में परोपकार करने वाले व्यक्ति की ही पहचान होती है। निश्वार्थ भाव से दूसरों के हित के लिए तत्पर रहने वालों का यश दूर-दूर तक फैलता है। पीडि़त को संकट से उबारना नेक कार्य है।

परोपकार के उदाहरण : इतिहास तथा पुराणों के अनुसार महान व्यक्तियों ने परोपकार के लिए अपने शरीर का त्याग कर दिया। वृत्तासुर वध के लिए महर्षि दधीचि ने इंद्र को प्राणायाम द्वारा अपना शरीर अर्पित कर दिया था। इसी प्रकार महाराज शिवि ने एक कबूतर के लिए अपने शरीर का मांस भी दे दिया था।

ऐसे महापुरुष धन्य हैं जिन्होंने परोपकार के लिए अपने प्राण त्याग दिए. संसार में अनेकानेक महान कार्य परोपकार की भावना से ही हुए है। आजादी प्राप्त करने के लिए भारत माता के अनेक सपूतों ने अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया।

महान संतो ने लोक कल्याण के लियें अपना जीवन अर्पित कर दिया था। उनके ह्रदय में लोक कल्याण की भावना थी। इसी प्रकार वैज्ञानिको ने भी अपने आविष्कारों से जन-जन का कल्याण किया।

उपसंहार : मनुष्य जीवन ईश्वर का आशीर्वाद है। इसलिए हमें अपनी शक्ति और सामर्थ्य का उपयोग लोगों की सेवा और उनके दुःख दर्द को मिटाने के लिए करना चाहिए। हमें हमारे मित्रों, परिचितों और अपरिचितों के लिए हमेशा परोपकारी की भावना दिखानी चाहिए। अपने सुनहरे और समृद्ध भविष्य के लिए अपने बच्चों को बचपन से ही परोपकार के पाठ सिखाने चाहिए। परोपकार के लिए किये गए कार्य के आनंद की तुलना किसी भी भौतिक सुख से नही की जाती।

जीवन की सार्थकता उसी में है की हम अपना जीवन लोगों की भलाई के लिए अर्पण करें। परोपकार हमें महापुरुषों की श्रेणी में लाकर खड़ा करता है।

परोपकार पर निबंध 7 (1000+ शब्द)

भूमिका : मानव जीवन में परोपकार का बहुत महत्व होता है। समाज में परोपकार से बढकर कोई धर्म नहीं होता है। ईश्वर ने प्रकृति की रचना इस तरह से की है कि आज तक परोपकार उसके मूल में ही काम कर रहा है। परोपकार प्रकृति के कण-कण में समाया हुआ है। जिस तरह से वृक्ष कभी भी अपना फल नहीं खाता है, नदी अपना पानी नहीं पीती है, सूर्य हमें रोशनी देकर चला जाता है।

इसी तरह से प्रकृति अपना सर्वस्व हमको दे देती है। वह हमें इतना कुछ देती है लेकिन बदले में हमसे कुछ भी नहीं लेती है। किसी भी व्यक्ति की पहचान परोपकार से की जाती है। जो व्यक्ति परोपकार के लिए अपना सब कुछ त्याग देता है वह अच्छा व्यक्ति होता है। जिस समाज में दूसरों की सहायता करने की भावना जितनी अधिक होगी वह समाज उतना ही सुखी और समृद्ध होगा। परोपकार की भावना मनुष्य का एक स्वाभाविक गुण होता है।

परोपकार का अर्थ : परोपकार दो शब्दों से मिलकर बना होता है : पर+उपकार। परोपकार का अर्थ होता है दूसरों का अच्छा करना या दूसरों की सहयता करना। जब मनुष्य खुद की या ‘स्व’ की संकुचित सीमा से निकलकर दूसरों की या ‘पर’ के लिए अपने सर्वस्व का बलिदान दे देता है उसे ही परोपकार कहा जाता है। परोपकार की भावना ही मनुष्यों को पशुओं से अलग करती है नहीं तो भोजन और नींद तो पशुओं में भी मनुष्य की तरह पाए जाते हैं।

दूसरों का हित्त चाहते हुए तो ऋषि दधिची ने अपनी अस्थियाँ भी दान में दे दी थीं। एक कबूतर के लिए महाराज शिवी ने अपने हाथ तक का बलिदान दे दिया था। गुरु गोबिंद सिंह जी धर्म की रक्षा करने के लिए खुद और बच्चों के साथ बलिदान हो गये थे। ऐसे अनेक महान पुरुष हैं जिन्होंने लोक-कल्याण के लिए अपने जीवन का बलिदान दे दिया था।

मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ धर्म : मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ धर्म परोपकार होता है। मनुष्य के पास विकसित दिमाग के साथ-साथ संवेदनशील ह्रदय भी होता है। मनुष्य दूसरों के दुःख को देखकर दुखी हो जाता है और उसके प्रति सहानुभूति पैदा हो जाती है। वह दूसरों के दुखों को दूर करने की कोशिश करता है तब वह परोपकारी कहलाता है।

परोपकार का संबंध सीधा दया, करुणा और संवेदना से होता है। हर परोपकारी व्यक्ति करुणा से पिघलने की वजह से हर दुखी व्यक्ति की मदद करता है। परोपकार के जैसा न ही तो कोई धर्म है और न ही कोई पुण्य। जो व्यक्ति दूसरों को सुख देकर खुद दुखों को सहता है वास्तव में वही मनुष्य होता है। परोपकार को समाज में अधिक महत्व इसलिए दिया जाता है क्योंकि इससे मनुष्य की पहचान होती है।

मानव का कर्मक्षेत्र : परोपकार और दूसरों के लिए सहानुभूति से ही समाज की स्थापना हुई है। परोपकार और दूसरों के लिए सहानुभूति से समाज के नैतिक आदर्शों की प्रतिष्ठा होती है। जहाँ पर दूसरों के लिए किये गये काम से अपना स्वार्थ पूर्ण होता है वहीं पर समाज में भी प्रधानता मिलती है।

मरने वाले मनुष्य के लिए यही समाज उसका कर्मक्षेत्र होता है। इसी समाज में रहकर मनुष्य अपने कर्म से आने वाले अगले जीवन की पृष्ठ भूमि को तैयार करता है। संसार में 84 लाख योनियाँ होती है। मनुष्य अपने कर्म के अनुसार ही इनमे से किसी एक योनी को अपने अगले जन्म के लिए इसी समाज में स्थापित करता है। भारतीय धर्म साधना में जो अमरत्व का सिद्धांत होता है उसे अपने कर्मों से प्रमाणित करता है।

लाखों-करोड़ों लोगों के मरणोपरांत सिर्फ वही मनुष्य समाज में अपने नाम को स्थायी बना पाता है जो इस जीवन काल को दूसरों के लिए अर्पित कर चुका होता है। इससे अपना भी भला होता है। जो व्यक्ति दूसरों की सहायता करते हैं वक्त आने पर वे लोग उनका साथ देते हैं। जब आप दूसरों के लिए कोई कार्य करते हैं तो आपका चरित्र महान बन जाता है।

परोपकार से अलौकिक आनंद और सुख का आधार : परोपकार में स्वार्थ की भावना के लिए कोई स्थान नहीं होता है। परोपकार करने से मन और आत्मा को बहुत शांति मिलती है। परोपकार से भाईचारे की भावना और विश्व-बंधुत्व की भावना भी बढती है।

मनुष्य को जो सुख का अनुभव नंगों को कपड़ा देने में, भूखे को रोटी देने में, किसी व्यक्ति के दुःख को दूर करने में और बेसहारा को सहारा देने में होता है वह किसी और काम को करने से नहीं होता है। परोपकार से किसी भी प्राणी को आलौकिक आनंद मिलता है। जो सेवा बिना स्वार्थ के की जाती है वह लोकप्रियता प्रदान करती है। जो व्यक्ति दूसरों के सुख के लिए जीते हैं उनका जीवन प्रसन्नता और सुख से भर जाता है।

परोपकार का वास्तविक स्वरूप : आज के समय में मानव अपने भौतिक सुखों की ओर अग्रसर होता जा रहा है। इन भौतिक सुखों के आकर्षण ने मनुष्य को बुराई-भलाई की समझ से बहुत दूर कर दिया है। अब मनुष्य अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए काम करता है। आज के समय का मनुष्य कम खर्च करने और अधिक मिलने की इच्छा रखता है।

ईसा मसीह जी ने कहा था कि जो दान दाएँ हाथ से किया जाये उसका पता बाएँ हाथ को नहीं चलना चाहिए वह परोपकार होता है। प्राचीनकाल में लोग गुप्त रूप से दान दिया करते थे। वे अपने खून-पसीने से कमाई हुई दौलत में से दान किया करते थे उसे ही वास्विक परोपकार कहते हैं।

पूरे राष्ट्र और देश के स्वार्थी बन जाने की वजह से जंग का खतरा बना रहता है। आज के समय में चारों तरफ स्वार्थ का साम्राज्य स्थापित हो चुका है। प्रकृति हमे निस्वार्थ रहने का संदेश देती है लेकिन मनुष्य ने प्रकृति से भी कुछ नहीं सीखा है। हजारों-लाखों लोगों में से सिर्फ कुछ लोग ही ऐसे होते हैं जो दूसरों के बारे में सोचते हैं।

परोपकार जीवन का आदर्श : जो व्यक्ति परोपकारी होता है उसका जीवन आदर्श माना जाता है। उसे कभी भी आत्मग्लानी नहीं होती है उसका मन हमेशा शांत रहता है। उसे समाज में हमेशा यश और सम्मान मिलता है। हमारे बहुत से ऐसे महान पुरुष थे जिन्हें परोपकार की वजह से समज से यश और सम्मान प्राप्त हुआ था।

ये सब लोक-कल्याण की वजह से पूजा करने योग्य बन गये हैं। दूसरों का हित चाहने के लिए गाँधी जी ने गोली खायी थी, सुकृत ने जहर पिया था और ईसा मसीह सूली पर चढ़े थे। किसी भी देश या राष्ट्र की उन्नति के लिए परोपकार सबसे बड़ा साधन माना जाता है। जो दूसरों के लिए आत्म बलिदान देता है तो वह समाज में अमर हो जाता है। जो व्यक्ति अपने इस जीवन में दूसरे लोगों के जीवन को जीने योग्य बनाता है उसकी उम्र लंबी होती है।

वैसे तो पक्षी भी जी लेते हैं और किसी-न-किसी तरह से अपना पेट भर लेते हैं। लोग उसे ही चाहते हैं जिसके दिल के दरवाजे उनके लिए हमेशा खुले रहते हैं। समाज में किसी भी परोपकारी का किसी अमीर व्यक्ति से ज्यादा समान किया जाता है। दूसरों के दुखों को सहना एक तप होता है जिसमें तप कर कोई व्यक्ति सोने की तरह खरा हो जाता है। प्रेम और परोपकार व्यक्ति के लिए एक सिक्के के दो पहलु होते हैं।

मानवता का उद्देश्य : मानवता का उद्देश्य यह होना चाहिए कि वह अपने साथ-साथ दूसरों के कल्याण के बारे में भी सोचे। मनुष्य का कर्तव्य होना चाहिए कि खुद संभल जाये और दूसरों को भी संभाले। जो व्यक्ति दूसरों के दुखों को देखकर दुखी नहीं होता है वह मनुष्य नहीं होता है वह एक पशु के समान होता है।

जो गरीबों और असहाय के दुखों को और उनकी आँखों से आंसुओं को बहता देखकर जो खुद न रो दिया हो वह मनुष्य नहीं होता है। जो भूखों को अपने पेट पर हाथ फेरता देखकर अपना भोजन उनको न दे दे वह मनुष्य नहीं होता है। अगर तुम्हारे पास धन है तो उसे गरीबों का कल्याण करो।

अगर तुम्हारे पास शक्ति है तो उससे कमजोरो का अवलंबन दो। अगर तुम्हारे पास शिक्षा है तो उसे अशिक्षितों में बांटो। ऐसा करने से ही तुम एक मनुष्य कहलाने का अधिकार पा सकते हो। तुम्हारा कर्तव्य सिर्फ यही नहीं होता है कि खाओ पियो और आराम करो। हमारे जीवन में त्याग और भावना बलिदान करने की भी भावना होनी चाहिए।

मानव जीवन की उपयोगिता : मानव जीवन में लोक सेवा, सहानुभूति, दयालुता प्राय: रोग, महामारी सभी में संभव हो सकती है। दयालुता से छोटे-छोटे कार्यों, मृदुता का व्यवहार, दूसरों की भावनाओं को ठेस न पहुँचाना, दूसरों की दुर्बलता के लिए आदर होना, नीच जाति के लोगों से नफरत न करना ये सभी सहानुभूति के चिन्ह होते हैं।

मानव की केवल कल्याण भावना ही भारतीय संस्कृति की पृष्ठभूमि में निहित होती है। यहाँ पर जो भी कार्य किये जाते थे वे बहुजनहिताय और सुखाय की नजरों के अंतर्गत किये जाते थे। इसी संस्कृति को भारत वर्ष की आदर्श संस्कृति माना जाता है।

इस संस्कृति की भावना ‘वसुधैव कटुम्बकम्’ के पवित्र उद्देश्य पर आधारित थी। मनुष्य अपने आप को दूसरों की परिस्थिति के अनुकूल ढाल लेता है। जहाँ पर एक साधारण व्यक्ति अपना पूरा जीवन अपना पेट भरने में लगा देता है वहीं पर एक परोपकारी व्यक्ति दूसरों की दुखों से रक्षा करने में अपना जीवन बिता देता है।

Related posts:

  • परीक्षाओं में बढती नकल की प्रवृत्ति पर निबंध-Hindi Nibandh
  • प्रातःकाल का भ्रमण पर निबंध-Paragraph On Morning Walk In Hindi
  • ई-कॉमर्स व्यवसाय पर निबंध
  • भारत के गाँव पर निबंध-Essay On Indian Village In Hindi
  • डॉ मनमोहन सिंह पर निबंध-Dr. Manmohan Singh in Hindi
  • मानव और विज्ञान पर निबंध-Science and Human Entertainment Essay In Hindi
  • पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं पर निबंध-Hindi Essay on Paradhi Supnehu Sukh Nahi
  • नर हो न निराश करो मन को पर निबंध
  • ईद पर निबंध-Essay On Eid In Hindi
  • लोकमान्य गंगाधर तिलक पर निबंध-Bal Gangadhar Tilak In Hindi
  • प्रदूषण पर निबंध-Essay On Pollution In Hindi
  • दशहरा पर निबंध-Essay On Dussehra In Hindi
  • बाल दिवस पर निबंध-Essay On Children’s Day In Hindi
  • मेक इन इंडिया पर निबंध-Make In India Essay In Hindi
  • हॉकी पर निबंध-Hockey In Hindi
  • कुत्ते पर निबंध-Essay On Dog In Hindi
  • जवाहर लाल नेहरु पर निबंध-Essay On Jawaharlal Nehru In Hindi
  • मेरी माँ पर निबंध-My Mother Essay In Hindi
  • Hindi Nibandh For Class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7 And 8
  • Beti Bachao Beti Padhao In Hindi-बेटी बचाओ बेटी पढाओ से जुडी कुछ महत्वपूर्ण बातें

परोपकार पर निबंध

परोपकार पर छोटे-बडे निबंध (Short and Long Essay on Philanthropy in Hindi)

#1. [100,150, 250 words] परोपकार पर निबंध

परिचय: परोपकार एक ऐसी भावना होती है जो हर किसी को अपने अन्दर रखना चहिये। इसे हर व्यक्ति को अपनी आदत के रूप में विकसित भी करनी चाहिए। यह एक ऐसी भावना है जिसके तहत एक व्यक्ति यह भूल जाता है की क्या उसका हित है और क्या अहित, वह अपनी चिंता किये बगैर निःस्वार्थ भाव से दूसरों की मदद करता है और बदले में उसे भले कुछ मिले या न मिले कभी इसकी चर्चा भी नहीं करता।

परोपकार की महत्वता:- जीवन में परोपकार का बहुत महत्व है। समाज में परोपकार से बढकर कोई धर्म नहीं होता । ईश्वर ने प्रकृति की रचना इस तरह से की है कि आज तक परोपकार उसके मूल में ही काम कर रही है। परोपकार प्रकृति के कण-कण में समाया हुआ है। जिस तरह से वृक्ष कभी भी अपना फल नहीं खाता है, नदी अपना पानी नहीं पीती है, सूर्य हमें रोशनी देकर चला जाता है। परोपकार एक उत्तम आदर्श का प्रतीक है। पर पीड़ा के समान कुछ भी का अधम एवं निष्कृष्ट नहीं है।

पृथ्वी पर सभी प्राणी ईश्वर के अभिन्न अंग है। मनुष्य अपनी भावनाओ को प्रकट कर सकता है। मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो समाज के सभी जीवो के हित में कार्य कर सकता है। दुनिया से दुःख , गरीबी और दर्द दूर करने के लिए सभी मनुष्य को परोपकार के मार्ग पर चलना चाहिए। मनुष्य का जीवन तभी सफल हो पाता है , जब वह भले काम करता है। इसलिए बच्चो को भी बचपन से भले काम करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। जब बच्चे अपने अभिभावकों को अच्छा कार्य करते हुए देखेंगे , तो वह भी एक अच्छे और परोपकारी इंसान बनेगे।

#2.[350 words] परोपकार पर निबंध .

परोपकार शब्द का अर्थ है दूसरों का भला करना। अपनी चिन्ता किए बिना, शेष सभी (सामान्य-विशेष) के भले की बात सोचना, आवश्यकतानुसार तथा यथाशक्ति उनकी भलाई के उपाय करना ही परोपकार कहलाता है। परोपकार के लिए मनुष्य को कुछ-न-कुछ त्याग करना पड़ता है।

परोपकार की यह शिक्षा हमें प्रकृति से मिली है। प्रकृति के प्रत्येक कार्य में हमें सदैव परोपकार की भावना निहित दिखाई पड़ती है। नदियां अपना जल स्वयं न पीकर दूसरों की प्यास बुझाती हैं, वृक्ष अपने फलों को दूसरों के लिए अर्पण करते हैं, बादल पानी बरसा कर धरती की प्यास बुझाते हैं। गऊएं अपना दूध दूसरों में बांटती हैं। सूर्य तथा चन्द्रमा भी अपने प्रकाश को दूसरों में बांट देते हैं। इसी प्रकार सज्जनों का जीवन परोपकार में ही लगा रहता है।

यदि हम अपने प्राचीन इतिहास पर दृष्टिपात करें तो हमें अनेक ऐसे उदाहरण मिलेंगे जिनसे ज्ञात होता है कि किस तरह यहां के लोगों ने परोपकार के लिए अपनी धन-सम्पत्ति तो क्या अपने घर-द्वार, राजपाट और आवश्यकता पड़ने पर अपने शरीर तक अर्पित कर दिए। महर्षि दधीचि के उस अवदान को कैसे भुला सकते हैं जिन्होंने देवताओं की रक्षा के लिए अपने प्राण सहर्ष ही न्यौछावर कर दिए थे अर्थात् उनकी हड्डियों से वज्र बनाया गया जिससे वृत्रासुर राक्षस का वध हुआ। राजा शिवि भी ऐसे ही परोपकारी हुए हैं, उन्होंने कबूतर के प्राणों की रक्षा के लिए भूखे बाज को अपने शरीर का मांस काट-काट कर दे दिया था।

हम भी छोटे-छोटे कार्य करके अनेक प्रकार परोपकार कर सकते हैं। भूखे को रोटी खिलाकर, भूले-भटके को राह बतला कर, अशिक्षितों को शिक्षा देकर, अन्धे व्यक्ति को सड़क पार करा कर, प्यासे को पानी पिला कर, अबलाओं तथा कमजोरों की रक्षा करके तथा धर्मशालाए आदि बनवाकर परोपकार किया जा सकता है।

परोपकार की महिमा अपरम्पार है। परोपकार से आत्मिक व मानसिक शान्ति मिलती है। परोपकारी मनुष्य मर कर भी अमर रहते हैं। दानवीर कर्ण, भगवान बुद्ध, महावीर स्वामी, गुरुनानक, महर्षि दयानन्द, विनोबा भावे, महात्मा गांधी आदि अनेक महापुरुष इसके उदाहरण हैं। परोपकार के द्वारा सुख, शान्ति, स्नेह, सहानुभूति आदि गुणों से मानव-जीवन परिपूर्ण हो सकता है। सच्चा परोपकार वही है जो कर्त्तव्य समझकर किया गया हो। अतः परोपकार ही मानव का सबसे बड़ा धर्म है।

-:धन्यवाद :-

#3. [600 words] परोपकार पर निबंध

प्रस्तावना :- परोपकार शब्द ‘ पर + उपकार ‘ दो शब्दों के मेल से बना है। परोपकार का अर्थ होता है दूसरों का अच्छा करना। परोपकार का अर्थ होता है दूसरों की सहयता करना। परोपकार की भावना मानव को इंसान से फरिश्ता बना देती है। यथार्थ में सज्जन दूसरों के हित साधन में अपनी संपूर्ण जिंदगी को समर्पित कर देते है। परोपकार के समान कोई धर्म नहीं। मन, वचन और कर्म से परोपकार की भावना से कार्य करने वाले व्यक्ति संत की श्रेणी में आते है। ऐसे सत्पुरुष जो बिना किसी स्वार्थ के दूसरों पर उपकार करते है वे देवकोटि के अंतर्गत कहे जा सकते है। परोपकार ऐसा कृत्य है जिसके द्वारा शत्रु भी मित्र बन जाता है।

परोपकार की महत्वता:- जीवन में परोपकार का बहुत महत्व है। समाज में परोपकार से बढकर कोई धर्म नहीं होता । ईश्वर ने प्रकृति की रचना इस तरह से की है कि आज तक परोपकार उसके मूल में ही काम कर रही है। परोपकार प्रकृति के कण-कण में समाया हुआ है। जिस तरह से वृक्ष कभी भी अपना फल नहीं खाता है, नदी अपना पानी नहीं पीती है, सूर्य हमें रोशनी देकर चला जाता है। परोपकार एक उत्तम आदर्श का प्रतीक है। पर पीड़ा के समान कुछ भी का अधम एवं निष्कृष्ट नहीं है। गोस्वामी तुलसीदास ने परोपकार के बारे में लिखा है.

“परहित सरिस धर्म नहिं भाई। पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।”

दूसरे शब्दों में, परोपकार के समान कोई धर्म नहीं है। विज्ञान ने इतनी उन्नति कर ली है कि मरने के बाद भी हमारी नेत्र ज्योति और अन्य कई अंग किसी अन्य व्यक्ति के जीवन को बचाने का काम कर सकते है। इनका जीवन रहते ही दान कर देना महान उपकार है। परोपकार के द्वारा ईश्वर की समीपता प्राप्त होती है। इस प्रकार यह ईश्वर प्राप्ति का एक सोपान भी है।

भारतीय संस्कृति का मूलाधार : भारतीय संस्कृति की भावना का मूलाधार परोपकार है। दया, प्रेम, अनुराग, करुणा, एवं सहानुभूति आदि के मूल में परोपकार की भावना है। गांधी, सुभाष चंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू तथा लाल बहादुर शास्त्री का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है इन महापुरुषों ने इंसान की भलाई के लिए अपने घर परिवार का त्याग कर दिया था।

प्रकृति में परोपकार का भाव : प्रकृति मानव के हित साधन में निरंतर जुटी हुई है। परोपकार के लिए वृक्ष फलते – फूलते हैं, सरिताये प्रवाहित है। सूर्य एवं चंद्रमा प्रकाश लुटाकर मानव के पथ को आलोकित करते है। बादल पानी बरसाकर थे को हरा-भरा बनाते हैं, जो जीव- जंतुओं को राहत देते हैं। प्रकृति का कण-कण हमें परोपकार की शिक्षा देता है- नदियाँ परोपकार के लिए बहती है, वृक्ष धूप में रहकर हमें छाया देता है, चन्द्रमा से शीतलता, समुद्र से वर्षा, गायों से दूध, वायु से प्राण शक्ति मिलती है।

परोपकार से लाभ : परोपकारी मानव के हृदय में शांति तथा सुख का निवास है। इससे ह्रदय में उदारता की भावना पनपती है। संतों का हृदय नवनीत के समान होता है। उनमे किसी के प्रति द्वेष तथा ईर्ष्या नहीं होती। परोपकारी स्वम् के विषय में चिंतन ना होकर दूसरों के सुख दुख में भी सहभागी होता है। परोपकार की ह्रदय में कटुता की भावना नहीं होती है। समस्त पृथ्वी ही उनका परिवार होती है। गुरु नानक, शिव, दधीचि, ईसा मसीह, आदि ऐसे महान पुरुष अवतरित हुए जिन्होंने परोपकार के निमित्त अपनी जिंदगी कुर्बान कर दिया।

उपसंहार :-  परोपकारी मानव किसी बदले की भावना अथवा प्राप्ति की आकांक्षा से किसी के हित में रत नहीं होता, वरन् इंसानियत के नाते दूसरों की भलाई करता है। “सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया “ के पीछे भी परोपकार की भावना ही प्रतिफल है। परोपकार सहानुभूति का पर्याय है। यह सज्जनों की विभूति होती है। परोपकार आंतरिक सुख का अनुपम साधन है। हमें “स्व” की संकुचित भावना से ऊपर उठा कर “पर” के निमित्त बलिदान करने को प्रेरित करता है।

इस हेतु धरती अपने प्राणों का रस संचित करके हमारी उदर पूर्ति करती है मेघ प्रतुपकार में पृथ्वी से अन्य नहीं मांगते। वे युगो – युगो से धरती के सूखे तथा शुष्क आँगन को जलधारा से हरा भरा तथा वैभव संपन्न बनाते हैं। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की हमे परोपकार करने की निम्नलिखित शब्दों में प्रेरणा दे रहे है वो इस प्रकार है।

“यही पशु प्रवृत्ति है कि आप – आप ही चरे। वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।”

#4. [800+ Words] परोपकार का महत्व निबंध Paropkar par nibandh

प्रस्तावना : परोपकार यानी दूसरो  का भला करना। पर + उपकार = परोपकार। यह दो शब्दों को जोड़कर परोपकार शब्द बनता है।  इंसानियत और मानवता की भावना परोपकार कहलाता है। मनुष्य एक समाजिक प्राणी है। जब किसी को मदद की ज़रूरत होती है और कोई भला इंसान उसकी सही समय पर मदद करता है , उसे परोपकार कहते है।  परोपकारी व्यक्ति निस्वार्थ रूप से दूसरे लोगो की सेवा अथवा सहायता करता है।  उसके मन में सबके प्रति प्रेम भावना रहती है। वह किसी भी आदमी को परेशानी में नहीं देख सकता है। परोपकार व्यक्ति समाज में प्रेम सन्देश और भाईचारा फैलाता है। एक मनुष्य तभी एक सच्चा मनुष्य कहलाता है , जब वह दूसरो का भला करता है।

प्रकृति में भी सूर्य गर्मी और प्रकाश , पृथ्वी को देता है।  इसकी वजह से हम सब प्राणी जिन्दा है। आसमान में छाये  बादल पृथ्वी पर वर्षा करते है।  इससे सभी प्राणियों को जल प्राप्त होता है।  अर्थात , सृष्टि भी इसी प्रकार से निर्मित है और परोपकार की भावना का समर्थन करती है। परोपकार की भावना , लोगो में भाईचारे को बढ़ावा देती है। किसी का भला करने से मन को जो शान्ति मिलती है , उसे बयान नहीं किया जा सकता है। परोपकार करने से मनुष्य के मन को संतुष्टि मिलती है।

किसी  गरीब आदमी के बेटे की शिक्षा के लिए आर्थिक मदद करना या तेज़ धूप और गर्मी में प्यासे को ठंडा पानी पिलाना , परोपकार है। मनुष्य के रूप में हम जन्म इसलिए लेते है ताकि हम समाज में लोगो की सहायता  कर सके। हमे सैदव यह चेष्टा करनी चाहिए कि हमारे दरवाज़े पर अगर कोई व्यक्ति किसी मुसीबत में हो तो जितना हमसे हो सके , हम उसकी मदद करे। दान देने के लिए धनवान होने की ज़रूरत नहीं होती है , सिर्फ उसकी नीयत ही काफी होती है।

परोपकार करने से मनुष्य पुण्य करता है। धर्मशाला , मुफ्त चिकित्सा केंद्र में बहुत लोग भोजन , कपड़े , दवाईयां इत्यादि का दान करते है। यह परोपकार कहलाता है। सबका भला करने से मन में उत्पन्न द्वेष कम हो जाते है। समाज में  झगड़े खत्म हो जाते है। मनुष्य सिर्फ ज़रूरतमंद लोगो का ही नहीं बल्कि पशुओं की भी देखभाल करते  है। गर्मियों के समय पक्षिओं को पानी नहीं मिल पाता है।  ऐसे में कुछ लोग अपने छतों पर पानी का पात्र रख देते है।  इससे पक्षियों की प्यास बुझ जाती है। ऐसे परोपकार मनुष्य कर सकते है।  भूखे को खाना और प्यासे को पानी पीला सकते है।

मानवता ही परोपकार है। जिस इंसान में मानवता की भावना नहीं है , वह इंसान कहलाने योग्य नहीं है। मानवता की भावना मनुष्य को सभी प्राणियों से अलग बनाती है। परोपकार करने के कई तरीके है। किसी गरीब की सहायता करना , उसे काम पर रखना , रोजगार देना और भोजन देना , परोपकार है।  कोई रोगी अपना शुल्क अस्पताल में चुकाने में असमर्थ है , उसकी आर्थिक मदद करना , परोपकार है। लोगो को हमेशा दूसरो के प्रति सहानभूति , दयाभाव रखना चाहिए , तभी एक अच्छे समाज का निर्माण होता है।

किसी भी ज़रूरतमंद आदमी को संकट में पाकर , उसकी तुरंत मदद करना , एक जिम्मेदार और परोपकारी मनुष्य का कर्त्तव्य है। अगर कोई गलत और बुरे पथ पर चल रहा है , उसे सही राह दिखाना , परोपकारी मनुष्य का दायित्व है।  किसी भी परेशान आदमी के दुःख को बाँटना , उसका साथ देना , उसे समझाना इत्यादि परोपकार के विभिन्न रूप है।

मानव को अपनी प्रगति और समाज  में समृद्धि  लाने  के लिए परोपकार की आवश्यकता है। समाज में रह रहे सभी लोगो को एक दूसरे के प्रति दयाभाव रखना चाहिए। समाज में लोगो को एक दूसरे की  चिंता करनी होगी , तभी एक अच्छे , सभ्य और संवेदनशील समाज का गठन हो पायेगा। हमेशा समाज में लोगो को नेक काम करने होंगे, तभी एक सकारात्मक समाज बनेगा।  अगर  मनुष्य स्वार्थी बनेगा तो एक अच्छा समाज का निर्माण ना हो पायेगा। मनुष्य को जिन्दगी में अच्छे कर्म करने चाहिए। अच्छे कर्म और परोपकार की भावना लोगो को अच्छा इंसान बनाती है।

परोपकार करने से मनुष्य के आत्मा को शान्ति मिलती है। जब वह सभी गरीबो और ज़रूरतमंदो की मदद करते है , तो उन्हें उनका आशीर्वाद मिलता है।  उनके मन को तसल्ली मिलती है कि अगर दुनिया में आये है , तो अच्छे कार्य करने चाहिए।जो लोग परोपकार करते है , समाज उनका आदर सम्मान करते है। उनकी हर जगह तारीफ़ की जाती है। सभी लोग उन्हें अपने दुआओं में याद करते है। परोपकार से जब लोगो की प्रगति होती है , तो एक उन्नत समाज भी बनता है। दूसरे व्यक्ति परोपकार करने वाले  व्यक्ति की इज़्ज़त करते है।  अन्य लोगो के लिए परोपकारी व्यक्ति का जीवन प्रेरणादायक बन जाता है। परोपकार करने वाले इंसान के जीवन में कभी दुःख नहीं होता है क्यों कि उनकी मुसीबत में भी लोग उनके साथ खड़े रहते है। यह एक चक्र जैसा  है। कई बार लोग धन देकर भी इतना सम्मान हासिल नहीं कर पाते है , जो परोपकारी व्यक्ति प्राप्त कर लेता है।

#सम्बंधित:- Hindi Essay, हिंदी निबंध। 

  • मानव अधिकार पर निबंध
  • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
  • कानून व्यवस्था पर निबंध
  • मेरा भारत महान हिंदी निबंध
  • शिक्षा का महत्व
  • सड़क स्वच्छता पर निबंध
  • मेरी मौसी की शादी पर निबंध/एस्से
  • देश की उन्नति, प्रगति का वर्णन और हिंदी निबंध
  • महान व्यक्तियों पर निबंध
  • पर्यावरण पर निबंध
  • प्राकृतिक आपदाओं पर निबंध
  • सामाजिक मुद्दे पर निबंध
  • स्वास्थ्य पर निबंध
  • महिलाओं पर निबंध

Related Posts

होली पर निबंध-Holi Essay March 2024

‘मेरा स्टार्टअप एक सपना’ निबंध

जी-20 पर निबंध | G20 Essay in Hindi

बेरोजगारी पर निबंध- Unemployment Essay in Hindi

मेरा प्रिय कवि तुलसीदास पर निबंध

Leave a Comment Cancel reply

परोपकार पर निबंध (Paropkar Essay In Hindi)

परोपकार पर निबंध (Paropkar Essay In Hindi Language)

आज के इस लेख में हम परोपकार पर निबंध (Essay On Paropkar In Hindi) लिखेंगे। परोपकार पर लिखा यह निबंध बच्चो (kids) और class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए लिखा गया है।

परोपकार पर लिखा हुआ यह निबंध (Essay On Paropkar In Hindi) आप अपने स्कूल या फिर कॉलेज प्रोजेक्ट के लिए इस्तेमाल कर सकते है। आपको हमारे इस वेबसाइट पर और भी कही विषयो पर हिंदी में निबंध मिलेंगे, जिन्हे आप पढ़ सकते है।

प्रस्तावना 

समाज में परोपकार से बढकर कोई धर्म नहीं होता, यह ऐसा काम है जिसके द्वारा शत्रु भी मित्र बन जाता है।यदि शत्रु पर विपत्ति के समय उपकार किया जाए ,तो वह सच्चा मित्र बन जाता है| विज्ञान ने आज इतनी उन्नति कर ली है कि मरने के बाद भी हमारी नेत्र ज्योति और अन्य कई अंग किसी अन्य व्यक्ति के जीवन को बचाने का काम कर सकते है।

इनका जीवन रहते ही दान कर देना महान उपकार है। परोपकार के द्वारा ईश्वर की समीपता प्राप्त होती है। मानव जीवन में इसका बहुत महत्व होता है। ईश्वर ने प्रकृति की रचना इस तरह से की है कि आज तक परोपकार उसके मूल में ही काम कर रहा है। परोपकार प्रकृति के कण-कण में समाया हुआ है।

जिस तरह से वृक्ष कभी भी अपना फल नहीं खाता, नदी अपना पानी नहीं पीती, सूर्य हमें रोशनी देकर चला जाता है, उसी प्रकार से प्रकृति अपना सर्वस्व हमको दे देती है। वह हमें इतना कुछ देती है लेकिन बदले में हमसे कुछ भी नहीं लेती।

किसी भी व्यक्ति की पहचान परोपकार से की जाती है। जो व्यक्ति परोपकार के लिए अपना सब कुछ त्याग देता है वह अच्छा व्यक्ति होता है। जिस समाज में दूसरों की सहायता करने की भावना जितनी अधिक होगी, वह समाज उतना ही सुखी और समृद्ध होगा। यह भावना मनुष्य का एक स्वाभाविक गुण होता है।

परोपकार का अर्थ

परोपकार दो शब्दों से मिलकर बना है, पर + उपकार। इसका का अर्थ होता है दूसरों का अच्छा करना और दूसरों की सहयता करना। किसी की मदद करना ही परोपकार कहा जाता है।

परोपकार की भावना ही मनुष्यों को पशुओं से अलग करती है, नहीं तो भोजन और नींद तो पशुओं में भी मनुष्य की तरह पाई जाती हैं। अच्छा कर्म करने वालों का न यहां और ना ही परलोक में विनाश होता है।

अच्छा कर्म करने वाला दुर्गति को प्राप्त नहीं होता है। दुसरो की मदद करने वाला सच्चा वही व्यक्ति है, जो प्रतिफल की भावना न रखते हुए मदद करता है। मनुष्य होने के नाते हमारा यह नैतिक कर्तव्य बन जाता है कि हम सब मनुष्यता का परिचय दें। मनुष्य ही मनुष्यता की रक्षा कर सकता है। इस कार्य के लिए कोई दूसरा नहीं आ सकता।

परोपकार का महत्व

जीवन में परोपकार का बहुत महत्व है। समाज में परोपकार से बढकर कोई धर्म नहीं होता। ईश्वर ने प्रकृति की रचना इस तरह से की है कि आज तक परोपकार उसके मूल में ही काम कर रही है।

परोपकार प्रकृति के कण-कण में समाया हुआ है। जिस तरह से वृक्ष कभी भी अपना फल नहीं खाता है, नदी अपना पानी नहीं पीती है, सूर्य हमें रोशनी देकर चला जाता है। परोपकार एक उत्तम आदर्श का प्रतीक है। पर पीड़ा के समान कुछ भी का अधम एवं निष्कृष्ट नहीं है।

भारतीय संस्कृति का मूलाधार व जीवन का आदर्श

जो व्यक्ति परोपकारी होता है उसका जीवन आदर्श माना जाता है। उसका मन हमेशा शांत रहता है। उसे समाज में हमेशा यश और सम्मान मिलता है। भारतीय संस्कृति की भावना का मूलाधार परोपकार है। दया, प्रेम, अनुराग, करुणा, एवं सहानुभूति आदि के मूल में परोपकार की भावना है।

हमारे बहुत से ऐसे महान पुरुष थे, जिन्हें परोपकार की वजह से समाज से यश और सम्मान प्राप्त हुआ था। महात्मा गांधी , सुभाष चंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू तथा लाल बहादुर शास्त्री का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। इन महापुरुषों ने मनुष्य जाती की भलाई के लिए अपने घर परिवार का त्याग कर दिया था।

ये सब लोक-कल्याण की वजह से पूजा करने योग्य बन गये हैं।दूसरों का हित चाहने के लिए गाँधी जी ने गोली खायी थी, सुकृत ने जहर पिया था और ईसा मसीह सूली पर चढ़े थे। किसी भी देश या राष्ट्र की उन्नति के लिए परोपकार सबसे बड़ा साधन माना जाता है।

जब कोई दूसरों के लिए आत्म बलिदान देता है, तो वह समाज में अमर हो जाता है। जो व्यक्ति अपने इस जीवन में दूसरे लोगों के जीवन को जीने योग्य बनाता है उसकी उम्र लंबी होती है।

समाज में किसी भी परोपकारी का किसी अमीर व्यक्ति से ज्यादा सम्मान किया जाता है। प्रेम और परोपकार व्यक्ति के लिए एक सिक्के के दो पहलु होते हैं। मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ धर्म परोपकार होता है। मनुष्य के पास विकसित दिमाग के साथ-साथ संवेदनशील ह्रदय भी होता है|

मनुष्य दूसरों के दुःख को देखकर दुखी हो जाता है और उसके प्रति सहानुभूति पैदा हो जाती है। वह दूसरों के दुखों को दूर करने की कोशिश करता है, तब वह परोपकारी कहलाता है।

प्रकृति में परोपकार का भावभाव

प्रकृति मानव के हित साधन में निरंतर जुटी हुई है। कुछ सीख हमें प्रकृति से भी लेनी चाहिए, जैसे-परोपकार के लिए वृक्ष फलते – फूलते हैं, सरिताये प्रवाहित है, सूर्य एवं चंद्रमा प्रकाश लुटाकर मानव के रास्ते को आलोकित करते है, बादल पानी बरसा कर वातावरण को हरा-भरा बनाते हैं, जो जीव- जंतुओं को राहत देते हैं।

प्रकृति का कण-कण हमें परोपकार की शिक्षा देता है। नदियाँ परोपकार के लिए बहती है, वृक्ष धूप में रहकर हमें छाया देता है, चन्द्रमा से शीतलता, समुद्र से वर्षा, गायों से दूध, वायु से प्राण शक्ति मिलती है।

परोपकार से लाभ

परोपकारी मानव के हृदय में शांति तथा सुख का निवास होता है। संतों का हृदय नवनीत के समान होता है। उनमे किसी के प्रति द्वेष तथा ईर्ष्या नहीं होती थी। परोपकार के ह्रदय में कटुता की भावना नहीं होती है।

समस्त पृथ्वी ही उनका परिवार होता है। गुरु नानक, शिव, दधीचि, ईसा मसीह आदि ऐसे महान पुरुष अवतरित हुए जिन्होंने परोपकार के निमित्त अपनी जिंदगी कुर्बान कर दि।परोपकार को समाज में अधिक महत्व इसलिए दिया जाता है, क्योंकि इससे मनुष्य की पहचान होती है।

लाखों-करोड़ों लोगों के मरणोपरांत सिर्फ वही मनुष्य समाज में अपने नाम को स्थायी बना पाता है, जो इस जीवन काल को दूसरों के लिए अर्पित कर चुका होता है। इससे अपना भी भला होता है।

जो व्यक्ति दूसरों की सहायता करते हैं, वक्त आने पर वे लोग उनका साथ देते हैं। जब आप दूसरों के लिए कोई कार्य करते हैं तो आपका चरित्र महान बन जाता है।

परोपकार क्यों करना चाहिए?

अगर आपके पास कोई चीज है तो आपको स्वयं को भाग्यशाली समझना चाहिए कि आपके पास वह चीज है। जिसकी आवश्यकता किसी और को भी है और उसे आपसे वह चीज मांगनी पड़ रही है। जिंदगी यदि परोपकार के लिए जाएगी तो आपको कोई भी कमी नहीं रहेगी।

आपकी जो-जो इच्छाएँ हैं, वे सभी पूरी होगी और सिर्फ खुद के लिए जिये तो एक भी इच्छा पूरी नहीं होगी। क्योंकि वह रीति आपको नींद ही नहीं आने देगी।

परोपकार से मन की शांति और आनंद

परोपकार करने से मन और आत्मा को बहुत शांति मिलती है। परोपकार से भाईचारे की भावना और विश्व-बंधुत्व की भावना भी बढती है। मनुष्य को जो सुख का अनुभव गरबों की मदद करने में होता है, वह किसी और काम को करने से नहीं होता है।

जो व्यक्ति दूसरों के सुख के लिए जीते हैं, उनका जीवन प्रसन्नता और सुख से भर जाता है। समाज में परोपकार करने वाले व्यक्ति की ही पहचान होती है। निश्वार्थ भाव से दूसरों के हित के लिए तत्पर रहने वालों का यश दूर-दूर तक फैलता है। पीडि़त को संकट से उबारना नेक कार्य है।

उदास चेहरों पर खुशी लाना सबसे बड़ा धर्म है। किए गए उपकार के बदले अपेक्षा का भाव रखना उपकार की श्रेणी में नहीं आता। व्यक्ति को परोपकारी बनना चाहिए। परोपकारी व्यक्ति की सर्वत्र पूजा होती है। इसके लिए न तो कोई आयु निश्चित हैं न ही तय कक्षाएं।

मानवता का उद्देश्य

मानवता का उद्देश्य यह होना चाहिए कि वह अपने साथ-साथ दूसरों के कल्याण के बारे में भी सोचे। अगर तुम्हारे पास शक्ति है तो उससे कमजोरो का अवलंबन दो। अगर तुम्हारे पास शिक्षा है तो उसे अशिक्षितों में बांटो। जो व्यक्ति दूसरों के दुखों को देखकर दुखी नहीं होता है, वह मनुष्य नहीं होता वह एक पशु के समान होता है। हमारे जीवन में त्याग और बलिदान करने की भी भावना होनी चाहिए।

परोपकारी मानव किसी बदले की भावना अथवा प्राप्ति की आकांक्षा से किसी के हित में रत नहीं होता। वह इंसानियत के नाते दूसरों की भलाई करता है। “सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया “ के पीछे भी परोपकार की भावना ही प्रतिफल है।

परोपकार सहानुभूति का पर्याय है। यह सज्जनों की विभूति होती है, परोपकार मानव समाज का आधार होता है। परोपकार के बिना सामाजिक जीवन गति नहीं कर सकता। हर व्यक्ति का धर्म होना चाहिए कि वह एक परोपकारी बने। दूसरों के प्रति अपने कर्तव्य को निभाएं और कभी-भी दूसरों के प्रति हीन भावना ना रखे।

इन्हे भी पढ़े :-

  • मानवता पर निबंध (Humanity Essay In Hindi)
  • शिष्टाचार पर निबंध (Good Manners Essay In Hindi)

तो यह था परोपकार पर निबंध, आशा करता हूं कि charity पर हिंदी में लिखा निबंध (Hindi Essay On Paropkar) आपको पसंद आया होगा। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा है, तो इस लेख को सभी के साथ शेयर करे।

Sharing is caring!

Related Posts

इंद्रधनुष पर निबंध (Rainbow Essay In Hindi Language)

इंद्रधनुष पर निबंध (Rainbow Essay In Hindi)

ओणम त्यौहार पर निबंध (Onam Festival Essay In Hindi)

ओणम त्यौहार पर निबंध (Onam Festival Essay In Hindi)

ध्वनि प्रदूषण पर निबंध (Noise Pollution Essay In Hindi Language)

ध्वनि प्रदूषण पर निबंध (Noise Pollution Essay In Hindi)

Unique Knowledge In Hindi Gk, Study, Gyan, & More.

Paropkar Essay in Hindi | परोपकार पर निबंध

Paropkar Essay in Hindi: परोपकार अर्थात पर + उपकार। पर का अर्थ है दूसरा तथा उपकार का अर्थ है भलाई। इस तरह परोपकार का अर्थ हुआ – दूसरों की भलाई करना। परोपकार पर निबंध.

परोपकार एक सामाजिक भावना है। इसकी मदद से हमारा सामाजिक जीवन सुखी और सुरक्षित रहता है। परोपकार की भावना से ही हम अपने साथियों, मित्रों, परिचितों और अजनबियों की निःस्वार्थ भाव से मदद करते हैं।

Table Of Contents

  • 1 Paropkar Par Nibandh in Hindi | परोपकार पर निबंध
  • 2 Paropkar Essay in Hindi | परोपकार पर निबंध

Paropkar Par Nibandh in Hindi | परोपकार पर निबंध

Paropkar Essay in Hindi | परोपकार पर निबंध

गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है- परित सरिस धर्म नहीं है भाई। यानी दान से बड़ा कोई धर्म नहीं है। मैथिलीशरण गुप्ता जी भी यही बात कहते हैं-

मनुष्य वह है जो मनुष्य के लिए मरता है

यह पशु वृत्ति है कि आप अपने आप को खिलाते हैं।

वास्तव में मनुष्य वही है जिसका हृदय मानवीय गुणों से परिपूर्ण हो। उसे दूसरों के प्रति दया और करुणा रखनी चाहिए। बचपन में सिद्धार्थ खुद लोगों की बदहाली देखकर दुखी हो गए थे।

इस दुख से मुक्ति पाने का भाव उनके मन में जाग उठा और अंत में उन्होंने लोगों को इस दुख से छुटकारा पाने का उपाय भी बताया।

इसके पीछे परोपकार की भावना के अलावा और कुछ नहीं था। सिद्धार्थ ने दूसरों के लिए अपने सभी सुखों को त्याग दिया और गौतम बुद्ध के रूप में जाना जाने लगा।

प्रकृति हमें परोपकार भी सिखाती है। सूरज हमें रोशनी देता है, चांद अपनी चांदनी फैलाकर हमें ठंडक देता है, निरंतर गति से बहने वाली हवा हमें जीवन देती है और बारिश का पानी धरती को हरा-भरा बनाता है और हमारी खेती को फलता-फूलता है।

हमें प्रकृति से परोपकार की शिक्षा लेकर परोपकार की भावना भी अपनानी चाहिए। भारत देश अपनी परोपकारी परंपरा के लिए विश्व प्रसिद्ध रहा है।

समुद्र मंथन में मिले विष को पीकर भगवान शंकर ने स्वयं पृथ्वी के कष्ट दूर किए। महर्षि दधीचि ने राक्षसों का संहार करने के लिए अपने शरीर की अस्थियों तक दान कर दिया।

दूसरों का भला करने से परोपकारी की आत्मा का विस्तार होता है। दान करने से आत्मा को सच्चे आनंद की प्राप्ति होती है। परोपकारी व्यक्ति अलौकिक आनंद की अनुभूति करता है।

परोपकार के इस आनंद की तुलना भौतिक सुखों से नहीं की जा सकती। ईसा मसीह ने एक बार अपने शिष्यों से कहा था –

“स्वार्थी बाहरी रूप से खुश दिखाई दे सकता है, लेकिन उसका मन उदास और चिंतित रहता है।” परोपकारी लोगों को सच्चा सुख मिलता है।

संसार में जितने भी मनुष्य महापुरुष कहलाने के योग्य हुए हैं, उन सभी में परोपकार के गुण थे। सच तो यह है कि परोपकार की भावना से ही उनका पालन-पोषण महापुरुषों की श्रेणी में हुआ।

परोपकार मानव जीवन को सार्थक बनाता है। इसलिए हमें भी परोपकारी होना चाहिए। दूसरों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहें। इसी में जीवन का अर्थ निहित है।

अठारह पुराणों में ब्यास के केवल दो शब्द हैं – दान पुण्य की ओर ले जाता है और दुख से पाप होता है। गोस्वामी तुलसीदास ने इस प्रकार कहा है-

। परहित सरिस धरम नहि भाई। पर पीड़ा सम नहि अधमाई। Paropkar Essay in Hindi

दान सर्वव्यापी की भूमिका है। परिवार, समाज, राष्ट्र और दुनिया के कल्याण के लिए ‘स्व’ का त्याग करना परोपकार का सुंदर लक्ष्य है, एक पवित्र साधन है।

दान के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति पहले स्वयं में शक्ति उत्पन्न करे। यह त्याग और बलिदान में सक्षम है। जब तक स्वयं दीया न जले, वह दूसरों को प्रकाश नहीं दे सकता।

रात के सन्नाटे में सोए और स्वप्न देखने वाली यशोधरा को पीछे छोड़ सिद्धार्थ को स्वार्थी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि लोगों के कल्याण के लिए उन्हें पहले सिद्धि की क्षमता विकसित करनी थी।

परोपकारी व्यक्ति का हृदय दयालु होता है। तन और मन की हानि दूसरों की चिन्ता में लीन रहती है। उसका हृदय स्वच्छ मन्दिर बन जाता है। संपत्ति का महत्व यह है कि यह सभी के लाभ की सेवा करती है। जयशंकर प्रसाद की “कामायनी” में श्रद्धा मनु को उपदेश देती है –

दूसरों को हंसते देख मनु, हंसो और सुख ढूंढो। अपनी खुशियों को भूल जाओ, सबको खुश करो। Paropkar Essay in Hindi

हमारी संस्कृति का मूल दान था। दूसरों को हंसता देख अपने दुख को भुलाने की सहज भावना हमारी संस्कृति में अंतर्निहित थी। दान की भावना स्वर्ग की सीढ़ी है।

स्वार्थ पशुता का आधार है, यह उसे भ्रष्टता के गहरे गड्ढे में धकेल देता है, लेकिन दान सार्वभौमिक कल्याण की ओर प्रगति के पथ पर आगे बढ़ता है। दान मानव जाति का सर्वोच्च गुण और आभूषण है।

Hindi Grammar

Leave a Comment Cancel reply

Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.

Paropkar Essay in Hindi- परोपकार पर निबंध

In this article, we are providing Paropkar Essay in Hindi | Paropkar Par Nibandh.  परोपकार का अर्थ, मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ धर्म, परोपकार से अलौकिक आनंद, परोपकार का वास्तविक स्वरूप, परोपकार जीवन का आदर्श, परोपकार पर निबंध  in 100, 200, 300,400, 500, 800 words For Students & Children.

दोस्तों आज हमने Paropkar  | Essay on Paropkar in Hindi लिखा है, परोपकार पर निबंध हिंदी में कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, और 11, 12 के विद्यार्थियों के लिए है।

Paropkar Essay in Hindi

Paropkar Par Nibandh- परोपकार पर निबंध हिंदी में ( 250 words )

परोपकार (पर+उपकार) का अर्थ दूसरों का उपकार है। दूसरों के कष्टों, दुखों आदि दूर करना परोपकार है। जो परोपकार करता है, उसे परोपकारी कहते हैं। निस्वार्थ बुद्धि से किया गया परोपकार उत्तम श्रेणी का है।

जब बच्चा माँ के गर्भ में रहता है तभी परमात्मा उसके भोजन के लिए आवश्यक दूध से माँ के स्तनों को भर देता है । वह हमें स्वच्छ जल, स्वच्छ हवा, प्रकाश आदि देकर अपने परोपकार की बुद्धि का परिचय देता है।

प्रकृति में परोपकार की महिमा देखने को मिलती है। रहीम ने परोपकार का महत्व इस प्रकार बताया है : तरुवर फल नहिं खात हैं, सरवर पिये न पान। कह रहीम, परं काज हित, संपति संचहि सुजान ॥

पेड़ फल नहीं खाते । सरोवर पानी नहीं पीता। पेड़ दूसरों को अपने . फल देते। जीव-जंतु सरोवर का पानी पीकर संतुष्ट होते हैं । इसी प्रकार सज्जन दूसरों के लिए संपत्ति का संग्रह करते हैं।

शिबि ने तोते को बाज़ से रक्षा करने के लिए अपने शरीर का मांस काटकर दिया था। राक्षसों को मारने के लिए इंद्र को दधीचि ने अपनी हड्डी का दान किया था। इसी कारण वे परोपकार के लिए प्रसिद्ध हैं।

परोपकार एक उत्तम गुण है। जिसमें यह गुण होता है, वह लोगों की प्रशंसा पाता। परोपकार के बिना यह समाज नहीं चल सकता। वह अनेक प्रकार का होता है। वह शारीरिक, आर्थिक, बौद्धिक आदि अनेक प्रकार का है। अकाल, भूकंप, युद्ध, संक्रामक रोग आदि से पीडित लोगों को परोपकार से राहत मिलती है।

भूखे को रोटी देना, सर्दी में नंगे को गरम कपड़े देना, बूढ़े को सरकारी अस्पताल ले जाना, अनाथ को सांत्वना देना आदि भी परोपकार हैं। विद्यार्थियों में इस गुण का विकास करना आवश्यक है।

जरूर पढ़े- Parishram Ka Mahatva Essay

Paropkar Par Nibandh – परोपकार पर निबंध हिंदी में ( 300 to 400 words )

परोपकार ‘पर+उपकार’ शब्दों के मेल से बना है। इसका अर्थ है। दूसरों का उपकार (हित) करना। अपने निजी हित को महत्त्व न देकर किसी अन्य व्यक्ति या समाज के हित के लिए किया गया कार्य ही परोपकार कहा जाता है। परोपकार के लिए कुछ न कुछ त्याग अवश्य करना पड़ता है। इसलिए त्याग भावना परोपकार भावना का प्राण है।

परोपकार की भावना हमें प्रकृति के कण-कण में दिखाई देती है। सूर्य हमको प्रकाश और गर्मी देता है, चन्द्रमा प्रकाश और अमृत सी शीतलता देता है। मेघ जल बरसा कर प्राणियों की प्यास बुझाते हैं, अन्न उत्पन्न करते हैं, नदियाँ जल देती हैं, भूमि अन्न, फल, रत्न देती है। वायु प्राण दान करता है। वृक्ष हमें फल-फूल और छाया देते हैं। पशु भी परोपकार में पीछे नहीं। गाय-भैंस दूध देती हैं। बैल हल चलाते हैं। घोड़े गाड़ी खींचते हैं। कुछ प्राणी अपने शरीर से अन्य प्राणियों की भूख शान्त करते हैं। पशुओं के चमड़े से जूता बनता है, जो काँटों से हमारे पैरों की रक्षा करता है। इस प्रकार हमें सब जगह परोपकार की भावना दिखाई देती है।

इतिहास में भी परोपकारी व्यक्तियों के अनेक उदाहरण हैं महाष दधीचि ने देवता-समाज की रक्षा के लिए सहष अपने प्राण दे दिए । उनका हड्डियों से वज्र बना और उससे वृत्रासुर का वध हुआ। राजा शिाव न कबूतर के प्राणों की रक्षा के लिए भूखे बाज को अपने शरीर का माँस काट-काट कर दे दिया। रन्तिदेव ने भी स्वयं भूखे रहते हुए भी अपने हिस्से का भोजन भूखे याचक को दे दिया। भामाशाह ने भी मेवाड़ की रक्षा के लिए अपनी सम्पत्ति महाराणा प्रताप को अर्पित कर दी थी। परोपकार के कारण ही आज उनका यश सर्वत्र व्याप्त है। भूखे को भोजन देना, प्यासे को पानी पिलाना, अन्धों को मार्ग दिखाना, अशिक्षितों को शिक्षा दिलवाना, धर्मशाला, औषधालय और कुएँ बनवाना आदि परोपकार के ही रूप हैं।

परोपकार करने से हृदय प्रसन्न होता है, मन को संतुष्टि मिलती है। परोपकारी मनुष्य ही मनुष्य कहलाने का अधिकारी है। अतः अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को परोपकार अवश्य करना चाहिए। क्योंकि- ‘परहित सरिस धर्म नहिं भाई।

जरूर पढ़े- Satsangati Essay in Hindi

Long Paropkar Essay in Hindi परोपकार पर निबंध हिंदी में ( 600 to 700 words )

कविवर रहीम लिखते हैं-

‘तरुवर फल नहिं खात हैं, सरबर पियहिं न पान।।

कहि रहीम परकाज हित, संपत्ति संचहि सुजान।।

भगवान ने प्रकृति की रचना इस प्रकार की है कि उसके मूल में परोपकार ही काम कर रहा है। उसके कण-कण में परोपकार का गुण समाया है। वृक्ष अपना फल नहीं खाते, नदी अपना जल नहीं पीती, बादल जलरूपी अमृत हमें देते हैं, सूर्य रोशनी देकर चला जाता है। इस प्रकार सारी प्रकृति परहित के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करती रहती है।

‘परोपकार’ दो शब्दों ‘पर’ + ‘उपकार’ के मेल से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है-दूसरों का भला । जब मनुष्य ‘स्व’ की संकुचित सीमा से बाहर निकलकर ‘पर’ के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर देता है, वही परोपकार कहलाता है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने भी कहा है-‘मनुष्य वही जो मनुष्य के लिए मरे’ । परोपकार की भावना ही मनुष्य को पशुओं से अलग करती है अन्यथा आहार, निद्रा आदि तो मनुष्यों और पशुओं में समान रूप से पाए जाते हैं। परहित के कारण ऋषि दधीचि ने अपनी अस्थियाँ तक दान में दे दी थीं। महाराज शिवि ने एक कबूतर के लिए अपने शरीर का माँस तक दे दिया था तथा अनेक महान् संतों ने लोक-कल्याण के लिए अपना जीवन अर्पित कर दिया था।

परोपकार मानव का सर्वश्रेष्ठ धर्म है। मनुष्य के पास विकसित मस्तिष्क तथा संवेदनशील हृदय होता है। दूसरों के दुःख से दुखी होकर उसके मन में उनके प्रति सहानुभूति पैदा होती है और वह उनके दुःख को दूर करने का प्रयत्न करता है तथा परोपकारी कहलाता है। परोपकार का सीधा संबंध दया, करुणा और संवेदना से है। सच्चा परोपकारी करुणा से पिघलकर हर दुखी प्राणी की सहायता करता है। ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’ उक्ति भी परोपकार की ओर संकेत करती है।

परोपकार में स्वार्थ की भावना नहीं रहती। परोपकार करने से मन और आत्मा को शांति मिलती है। भाईचारे तथा विश्व-बंधुत्व की भावना बढ़ती है। सुख की जो अनुभूति किसी व्यक्ति का संकट दूर करने में, भूखे को रोटी देने में, नंगे को कपड़ा देने में, बेसहारा को सहारा देने में होती है, वह किसी अन्य कार्य करने से नहीं मिलती। परोपकार से अलौकिक आनंद मिलता है।

आज का मानव भौतिक सुखों की ओर बढ़ता जा रहा है। इन भौतिक सुखों के आकर्षण ने मनुष्य को बुराई-भलाई से दूर कर दिया है। अब वह केवल स्वार्थ-सिद्धि के लिए कार्य करता है। आज मनुष्य थोड़ा लगाने तथा अधिक पाने की इच्छा करने लगा है। जीवन के हर क्षेत्र को व्यवसाय के रूप में देखा जाने लगा है। जिस कार्य से स्वहित होता है, वही किया जाता है, उससे चाहे औरों को कितना ही नुकसान उठाना पड़े । पहले छल-कपट, धोखे, बेईमानी से धन कमाया जाता है और फिर धार्मिक स्थलों अथवा गरीबों में थोड़ा धन इसलिए बाँट दिया जाता है कि समाज में उनका यश हो जाए। इसे परोपकार नहीं कह सकते। महात्मा ईसा ने परोपकार के विषय में कहा था कि दाहिने हाथ से किए गए उपकार का पता बाएँ हाथ को नहीं लगना चाहिए। पहले लोग गुप्त दान दिया करते थे। अपनी मेहनत की कमाई से किया गया दान ही वास्तविक परोपकार होता है। न केवल मनुष्य अपितु राष्ट्र भी स्वार्थ केंद्रित हो गए हैं, इसीलिए चारों ओर युद्ध का भय बना रहता है। चारों ओर अहम् और स्वार्थ का राज्य है। प्रकृति द्वारा दिए  गए निःस्वार्थ समर्पण के संदेश से भी मनुष्य ने कुछ नहीं सीखा। हजारों-लाखों लोगों में से विरले इंसान ही ऐसे होते हैं, जो पर-हित के लिए सोचते हैं।

परोपकारी व्यक्ति का जीवन आदर्श माना जाता है। वह सदा प्रसन्न तथा पवित्र रहता है। उसे कभी आत्मग्लानि नहीं होती, वह सदा शांत मन रहता है। उसे समाज में यश और सम्मान मिलता है। वर्तमान युग के महान् नेताओं महात्मा गांधी, सुभाषचंद्र बोस, बाल गंगाधर तिलक आदि को लोक-कल्याण करने के लिए सम्मान तथा यश मिला। ये सबै पूजा के योग्य बन गए। परहित के कारण गांधी ने गोली खाई, ईसा सूली पर चढ़े, सुकरात ने ज़हर पिया। किसी भी समाज तथा देश की उन्नति के लिए परोपकार सबसे बड़ा साधन है। हर व्यक्ति का धर्म है कि वह परोपकारी बने। कवि रहीम ने परोपकार की महिमा का वर्णन इस प्रकार किया है

‘हिमन यों सुख होत है उपकारी के अंग।

बाटन वारे को लगे ज्यों मेंहदी के रंग।

अर्थात् जिस प्रकार मेंहदी लगाने वाले अंगों पर भी मेंहदी का रंग चढ़ जाता है, उसी प्रकार परोपकार करने वाले व्यक्ति के शरीर को भी सुख की प्राप्ति होती है।

———————————–

इस लेख के माध्यम से हमने Paropkar Par Nibandh | Paropkar Essay in Hindi का वर्णन किया है और आप यह निबंध नीचे दिए गए विषयों पर भी इस्तेमाल कर सकते है।

Essay on Philanthropy in Hindi Hindi essay Paropkar Paropkar par nibandh in Hindi Paropkar par anuched in Hindi

ध्यान दें – प्रिय दर्शकों Paropkar Essay in Hindi article आपको अच्छा लगा तो जरूर शेयर करे ।

Leave a Comment Cancel Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

hindi essay paropkar

Dil Se Deshi

परोपकार पर निबंध हिंदी में | Essay on Paropkar in Hindi

Essay on Paropkar in Hindi

परोपकार पर निबंध हिंदी में | Essay on Paropkar in Hindi | Paropkar Par Nibandh

परिभाषा (Defination)

परोपकार शब्द ‘पर+उपकार’ इन दो शब्दों के योग से बना है, जिसका अर्थ है नि:स्वार्थ भाव से दूसरों की सहायता करना. अपनी शरण में आए मित्र, शत्रु, कीट-पतंग, देशी-परदेशी, बालक-वृद्ध सभी के दु:खों का निवारण निष्काम भाव से करना परोपकार कहलाता है

प्रस्तावना (Introduction)

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है. परस्पर सहयोग उसके जीवन का एक आवश्यक एवं महत्वपूर्ण अंग है. प्राचीन काल से मानव में दो प्रवृत्तियां कार्य कर रही हैं. इनमें से एक है स्वार्थ साधन की तथा दूसरी है परमार्थ की. परमार्थ की भावना से किया गया कार्य परोपकार के अंतर्गत आता है. गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है-

परहित सरिस धर्म नहीं भाई पर पीड़ा सम नहिं अधमाई परहित बसै जिनके मन माहीं, तिन्ह कहुं जग दुर्लभ कछु नाही.

जिनके ह्रदय में परोपकार की भावना रहती है वह संसार में सब कुछ कर सकते हैं उनके लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं है ईश्वर द्वारा बनाए गए सभी मानव समान है सभी को परस्पर प्रेम भाव से रहते हुए संकट में परस्पर मदद करनी चाहिए अपने लिए ही भोग विलास में लिप्त रहना पशु प्रवृत्ति है मानव मात्र के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करना ही मानव प्रवृत्ति है.

यही पशु प्रवृत्ति है कि आप ही आप चरे, वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे.

प्रकृति और परोपकार (Nature and Paropkar)

प्रकृति के क्षेत्र में सर्वत्र परोपकार का दर्शन होता है. सूर्य सभी को प्रकाश देता है, चंद्रमा की शीतलता सभी का ताप हरती हैं, बादल सभी के लिए वर्षा करते हैं, वायु सभी के लिए जीवनदायिनी है, फूल सभी को सुगंध देते हैं, वृक्ष कभी अपना फल नहीं खाता, नदियां अपना पानी नहीं पीती, इस प्रकार सत्पुरुष भी दूसरों के हित के लिए शरीर धारण करते हैं.

कवि रहीम के अनुसार

तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान.

परोपकार के अनेक उदाहरण (Paropkar Example)

इतिहास तथा पुराणों के अनुसार महान व्यक्तियों ने परोपकार के लिए अपने शरीर का त्याग कर दिया. वृत्तासुर वध के लिए महर्षि दधीचि ने इंद्र को प्राणायाम द्वारा अपना शरीर अर्पित कर दिया था. इसी प्रकार महाराज शिवि ने एक कबूतर के लिए अपने शरीर का मांस भी दे दिया था. ऐसे महापुरुष धन्य हैं जिन्होंने परोपकार के लिए अपने प्राण त्याग दिए. संसार में अनेकानेक महान कार्य परोपकार की भावना से ही हुए है. आजादी प्राप्त करने के लिए भारत माता के अनेक सपूतों ने अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया. महान संतो ने लोक कल्याण के लियें अपना जीवन अर्पित कर दिया था. उनके ह्रदय में लोक कल्याण की भावना थी. इसी प्रकार वैज्ञानिको ने भी अपने आविष्कारों से जन-जन का कल्याण किया.

परोपकार से लाभ (Benefits of Paropkar)

परोपकार से मानव का व्यक्तित्व विकास होता है. वह परोपकार की भावना के कारण स्व के स्थान पर अन्य (पर) के लिए सोचता है. इसमें आत्मा का विस्तार होता है. भाईचारे की भावना बढ़ती है. विश्व बंधुत्व की भावना का विकास होता है. परोपकार से अलौकिक आनंद मिलता है. किसी को संकट से निकाले, भूखे को भोजन दें तो इसमें सर्वाधिक सुख जी अनुभूति होती हैं. परोपकार को बड़ा पुण्य और परपीडन को पाप माना गया हैं.

कवि रहींम ने परोपकार की महिमा को स्वीकारते हुए कहा हैं कि

रहिमन यों सुख होत है उपकारी के अंग बाटनवारे को लगे ज्यों मेहंदी कौ रंग.

उपकार करते समय उपकार करने वाले शरीर को सुख की प्राप्ति होती हैं, जिस प्रकार मेहँदी बाटने वाले के अंगों पर भी मेहंदी का रंग अनचाहे लग जाता हैं.

परोपकार के विभिन्न प्रकार (Types of Paropkar)

परोपकार की भावना अनेक रूपों में प्रकट होती हैं. धर्मशालाएं, धर्मार्थ, औषधालय, जलाशयों, पाठशालाओं आदि का निर्माण तथा भोजन, वस्त्र आदि का दान देना –परोपकार के ही विभिन्न रूप हैं. इनके पीछे सर्वजन हित एवं प्राणिमात्र के प्रति प्रेम की भावना निहित हैं.

परोपकारी का जीवन आदर्श माना जाता है. उनका यह सदैव बना रहता है. मानव स्वभाव से यश की कामना करता है. परोपकार द्वारा उसे समाज में सम्मान तथा यश मिलता है. महर्षि दधीचि, महाराज शिवि, राजा रंतिदेव जैसे पौराणिक चरित्र आज भी याद किए जाते हैं. भगवान बुद्ध बहुजन हिताय बहुजन सुखाय का चिंतन करने कारण ही पूज्य माने जाते हैं. वर्तमान युग में लोकमान्य गंगाधर तिलक, महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, पंडित मदन मोहन मालवीय परोपकार और लोक कल्याण की भावना के कारण ही अमर है. जिस समाज में जितने परोपकारी व्यक्ति होंगे उतना ही सुखी होगा. समाज में सुख शांति के विकास के लिए परोपकार की भावना के विकास की परम आवश्यकता है.

परोपकार में जीवन का महत्व (Paropkar Significance)

परोपकारी व्यक्ति संसार के लिए पूज्य बन जाता है समाज तथा देश की उन्नति के लिए परोपकारी सबसे बड़ा साधन है आज के वैज्ञानिक युग मैं विश्वकर्मा परोपकार की भावना कम होती जा रही है. भारतीय संस्कृति में परोपकार को सर्वोपरि माना गया है परहित को एक मानव कर्तव्य मंगाया भारतीय संस्कृति में तो कहा गया है

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्.

उपसंहार (Conclusion)

तुलसीदास जी की युक्ति “परहित सरिस धर्म नहीं भाई” से यह निष्कर्ष निकलता है परोपकार ही वह मूल मंत्र है. जो व्यक्ति को उन्नति के शिखर पर पहुंचा सकता है तथा राष्ट्र समाज का उत्थान कर सकता है. वसुदेव कुटुंब की भावनाओं को लेकर निस्वार्थ भाव से देश एवं समाज की सेवा करनी चाहिए. भारत भूमि पर ऐसे अनेक महापुरुषों का आविर्भाव हुआ जिन्होंने परोपकार के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया. दधीची का स्थान, रन्तिदेव का अन्नदान, शिवि का माँसदान भारतीय संस्कृति की महानता को प्राप्त करते हैं. आज के युग में परोपकार और विश्व बंधुत्व की भावना ही समाज में व्याप्त बुराइयों की विभीषिका से बचा सकती है.

इसे भी पढ़े :

  • एम. विश्वेश्वरय्या का जीवन परिचय
  • महात्मा गांधी का जीवनी परिचय
  • सूरदास का जीवन परिचय

Leave a Comment Cancel reply

You must be logged in to post a comment.

परोपकार पर निबंध | Essay on Paropkar In Hindi

नमस्कार दोस्तों आपका स्वागत हैं, आज हम परोपकार पर निबंध  Essay on Importance of Charity in Hindi [Essay on Paropkar] पढ़ेंगे.

इस निबंध, अनुच्छेद, भाषण स्पीच में हम जानेगे कि परोपकार का अर्थ क्या हैं, जीवन में इस का अर्थ और महत्व क्या हैं आदि के बारें में विस्तार से यहाँ समझने का प्रयास करेंगे.

परोपकार पर निबंध Essay on Importance of Charity in Hindi

परोपकार पर निबंध | Essay on Paropkar In Hindi

प्रस्तावना – संसार के हर धर्म में परोपकार की महिमा गाई गयी हैं. महामुनि व्यास कहते हैं- परोपकार पुण्याय पापाय पर पीडनम्. परोपकार ही सबसे बड़ा पुण्य है और पर पीड़न ही सबसे बड़ा पाप हैं. महाकवि तुलसीदास भी कहते हैं परहित सरिस धरम नहिं भाई, परपीड़ा सम नहिं अधमाई.

परोपकार क्या है – पर अर्थात दूसरों का उपकार ही परोपकार है. मनुष्य को पशु स्तर से उठाकर मानवीयता के महिमामय स्वरूप से मंडित करने वाला परोपकार ही हैं. दूसरों का उपकार स्वार्थ भावना से भी किया जाता हैं.

यश प्राप्ति या प्रसिद्धि के लिए भी लोग दूसरों की सहायता किया करते हैं. किन्तु कोई भी कार्य तब तक उपकार की श्रेणी में नहीं आ सकता. जब तक कि निस्वार्थ भाव से न किया गया हो.

परोपकार के मूल में त्याग है और त्याग के लिए साहस आवश्यक हैं. अतः साहस के साथ स्वयं कष्ट सहते हुए भी दूसरों की भलाई में रत रहना ही परोपकार हैं.

परोपकार एक दैवी गुण -परोपकार एक उच्च कोटि का असाधारण गुण है जो विरले ही व्यक्तियों में देखा जाता हैं. हर व्यक्ति के लिए इस व्रत को धारण कर पाना संभव भी नहीं हैं.

जब मनुष्य की दृष्टि व्यापक हो जाती है. स्व और पर भेद समाप्त हो जाता हैं. उसे जीव मात्र में एक ही विभूति के दर्शन होते हैं. तभी परोपकार का सच्चा स्वरूप सामने आता हैं.

एक महात्मा बार बार नदी में बहते बिच्छू को बचाने के लिए उठाते है और वह मुर्ख हर बार उनको डंक मार नदी में जा गिरता है लेकिन परोपकारी संत असहय पीड़ा सहन करके भी उसे बचाते हैं. ऐसे परोपकारी संत देवताओं के तुल्य हैं.

परोपकारी महापुरुष – भारत को परोपकारी महात्माओं की दीर्घ परम्परा ने गौरवान्वित किया हैं. महर्षि दधीचि तथा महाराजा रन्ति देव के विषय में यह उक्ति देखिये “क्षुधार्त रन्ति देव ने दिया करस्थ थाल भी, तथा दधीचि ने दिया परार्थ अस्थि जाल भी.

शिवी राजा का उदाहरण भी कम उज्ज्वल नहीं, जिन्होंने एक पक्षी की रक्षार्थ अपना माँस ही नहीं, शरीर तक दान में दे दिया. परोपकारियों को इसकी चिंता नहीं होती कि संसार उनके विषय में क्या कह रहा है या कर रहा हैं. उनका स्वभाव ही परोपकारी होता है.

तुलसी संत सुअब तरु, फूल फलहिं पर हेत, इतते ये पाहन हनत उतते वे फल देत

परोपकार का महत्व- आज के घोर भौतिकवादी युग में तो परोपकार का महत्व और भी बढ़ गया हैं. विकसित और विकासशील देशों की कटु स्पर्धा को रोकने और संसार में आर्थिक संतुलन तथा सुख सम्रद्धि लाने के लिए राष्ट्रों को चाहिए कि वे परोपकार की भावना से काम लें परन्तु उस उपकार के पीछे राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि एवं प्रभाव विस्तार की भावना नहीं होनी चाहिए.

उपसंहार – परोपकार धर्मों का धर्म कहलाता हैं. अन्य धर्म अफीम हो सकते हैं जिसके नशे में भले बुरे का ज्ञान होना संभव नहीं किन्तु परोपकार धर्म वह अमृत है जो जीव मात्र को संतोष तथा आनन्द की संजीवनी से ओत प्रेत कर देता हैं.

परोपकारी व्यक्ति स्वयं स्वार्थ हीन होता हैं, उसका परोपकार ही उसकी अमर निधि बन जाता हैं. हरि अनंत हरि कथा अनंता की भांति परोपकार की कथा भी अनंत हैं.

वह द्रोपदी का चीर है जिसका कोई अंत नहीं. अंत में महाकवि तुलसीदास के शब्दों को उद्घृत करते हुए हम कह सकते हैं.

परहित लागि तजहिं जो देहि सन्तत संत प्रशंसहि तेही.

परोपकार पर निबंध Essay on Charity in Hindi

हमारे यहाँ प्रसिद्ध कहावत है “परहित सरिस धर्म नहिं भाई” अर्थात औरों के हित (दूसरो के लिए भलाई) के सिवाय कोई बड़ा धर्म नहीं हैं.

मानवता का मूल सिद्धांत परोपकारी जीवन पर आधारित हैं. हिन्दू सनातन धर्म का मूल सार सहअस्तित्व और परोपकार की बात करता हैं, हमारे आधुनिक समाज में भी परोपकार को एक स्वीकार्य सामाजिक मूल्य के रूप में अनुग्रहित किया जाता हैं.

धर्म भी मानव मात्र के साथ एकमत होकर उसकी सेवा करने की बात करता हैं, यथा किसी भूखे को अन्न खिलाना, कपड़े दान करना, बीमार एवं वृद्धों की सेवा करना, आगन्तुक मेहमान की सेवा करना, दान पुण्य के पथ पर चलना आदि धर्म के कार्य हैं.

परोपकार क्या हैं  इसकी परिभाषा? Definition of Word Paropkar?

मूल शब्द परोपकार दो शब्द पर और उपकार के संयोग से बनता हैं. जिसका आशय यह हैं कि बिना किसी लोभ या लालच के दूसरों की भलाई करना उनकी मदद करना परोपकार कहा जाता हैं.

इसे अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि भलाई के कार्य को परोपकार की संज्ञा दी जाती हैं, मानव के मूल भावों में निहित करुणा ही औरों के विषय में सोचने उनके प्रति सहानुभूति जताने और उनकी मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाने के लिए हमें अग्रसर करती हैं.

हमारे परिवार में जन्म से बच्चों में परोपकारी भाव के गुण संस्कारों में ही सिखाएं जाते हैं. ताकि वे बड़े होकर मनुष्य मात्र के दुःख दर्द में भागीदार बन सके.

बच्चों को बचपन से ही महापुरुषों के परोपकारी और मानव की भलाई मात्र के कार्यों की गाथाएं बताने से भी उनमें इस गुण का भाव मजबूत होकर उभरता हैं तथा वे भी इस राह पर चलने के लिए प्रेरित होते हैं.

परोपकार का अर्थ? Meaning of Charity in Hindi?

पर उपकार का सरल सा अर्थ यह हैं कि जब हम मनुष्य के रूप में इस पृथ्वी पर जन्म लेते हैं, तो ईश्वर द्वारा निर्मित इस सृष्टि में हम जैसे करोड़ों मानव एवं जीव जन्तु इस पर विद्यमान हैं.

हमारा जीवन एक दूसरे के अस्तित्व के साथ जुड़ा हैं. हम बिना किसी लालच पीड़ित और जरूरतमंद की मदद के लिए आगे आए, जिससे कभी हम भी संकट में हो तो कोई हमारी मदद के लिए भी अपने हाथ बढ़ाएगा.

इस तरह से परोपकार इस हाथ से देना और उस हाथ से लेने की तरह ही हैं. पर मानव की सेवा को नारायण अर्थात ईश्वर की सेवा के समतुल्य माना जाता हैं. किसी की मदद या सहायता के अनगिनत तरीके हो सकते हैं.

यदि आप वाहन से कही जा रहे हैं और राह में किसी थके राहगीर को अपने साथ बिठा लेते हैं. आपके द्वार पर किसी दूसरे शहर गाँव से कोई अजनबी आया हैं और उसे एक रात गुजारनी हैं आप सहर्ष उसे अपने घर रखने के लिए राजी हो जाते हैं,

यही परोपकार हैं, बेशर्त आप उस मदद को बिना किसी स्वार्थ के कर रहे हैं. यदि आप उससे कुछ भी पाने की उपेक्षा नहीं करते हैं और उनकी मदद करते हैं तो यही परोपकार हैं और धर्म व कर्तव्य की राह पर चलने वाला प्रत्येक मानव इस तरह हजारो अवसरों पर दूसरों की मदद करता रहता हैं.

परोपकार का महत्व Importance of Charity in Hindi

हमारे जीवन निर्माण में परोपकार अर्थात चैरिटी का बड़ा महत्व हैं. इसके दो नजरिये हैं यदि पश्चिम में हम परोपकार के अंग्रेजी शब्द चैरिटी को समझे तो यह सरलता से समझ आ जाता हैं.

संस्थाओं को वित्तीय सहायता देकर अधिकतर लोग परोपकार का काम करते हैं, जैसे कोई NGO अनाथ बच्चों का पालन कर रहा हैं तो लोग उसे डोनेट करते हैं. मगर हमारी सनातन परम्परा में परोपकार को एक जीवनचर्या माना गया हैं.

घरों में जब चूल्हा जलाया जाता हैं तो पहली रोटी गाय व कुत्ते के लिए बनाई जाती हैं. हर तीज त्यौहार पर दान पुण्य की परम्परा यहाँ के जीवन का आधार हैं.

गरीबों को रोटी कपड़े आदि देने, जरूरतमंद की मदद के लिए हमारा समाज सदैव तैयार नजर आता हैं. हमारी और पश्चिम के सामाजिक ढाँचे में मूलभूत अंतर हैं. हम पड़ोसी को परमेश्वर मानते हैं, सुख दुःख में एक दूसरे के साथ खड़े नजर आते हैं.

खुद के लिया जिया तो क्या जिया सच में जीवन के आनन्द की प्राप्ति करनी हैं तो औरों के लिए जीकर देखना चाहिए, सचमच जीवन और उसका नजरिया बदला हुआ मिले.

आपका सम्मान, महानता और ख्याति धन कमाने और अपना घर भरने में नहीं हैं बल्कि जरूरतमंद लोगों के मसीहा बनकर जीने में ही हैं.

परोपकार की शक्ति अतुल्य हैं, एक साधारण सा मानव भी इस राह पर चलकर महानता को प्राप्त कर अपने जीवन को सफल बना सकता हैं. हमारे महापुरुषों का जीवन इसका उदाहरण हैं,

यदि वे अपने लिए ही जीते तो उन्हें आज कोई याद नहीं करता, पेड़, नदी आदि की तरह परोपकार और विनम्रता के भाव यदि हर मानव में हो तो संसार में कोई दुखो से दुखी और भूख से कोई व्याकुल नहीं रहेगा.

यहाँ ध्यान देने योग्य यह हैं कि परोपकार का आशय किसी की सहायता करना भर नहीं हैं, बल्कि उस नियति से मदद की जाए कि बदले में हम उससे कुछ भी अपेक्षा न करें अर्थात निस्वार्थ भाव से जरूरतमंद की मदद करना ही परोपकार हैं, मनुष्य होने के नाते यह हमारा पहला धर्म हैं.

  • महर्षि दधीचि का जीवन परिचय
  • दयालुता पर निबंध
  • सत्संगति पर निबंध
  • वृद्धों की सेवा ईश्वर सेवा पर निबंध

उम्मीद करता हूँ दोस्तों परोपकार पर निबंध Essay on Paropkar In Hindi का यह निबंध आपकों पसंद आया होगा. यदि आपकों इस निबंध में दी गई जानकारी पसंद आई हो तो प्लीज इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें, अपने सुझाव कमेंट के जरिये जरुर बताएं.

Leave a Comment Cancel Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

परोपकार पर निबंध(paropkar essay in hindi)

परोपकार निबंध का रूपरेखा :- १. भूमिका २. प्रकृति और परोपकार ३. मनुष्य जीवन की सार्थकता ४. परोपकर संबंधित कुछ उदाहरण ५. उपसंहार ।

“अहा! वही उदार है परोपकार जो करें,

वही मनुष्य है कि जो एक मनुष्य के लिए मरे।”

इन पंक्तियों में राष्ट्रीय कवि मैथिलीशरण गुप्त ने निसंदेह परोपकार का अमर उद्घोष किया है। परोपकार का सीधा अर्थ है दूसरे का उपकार। यस सर्व मंगल की भूमिका है। परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व के कल्याण के लिए स्व की बलि दे देना ही परोपकार का सुंदर लक्ष्य है, पवित्र साधना है। आदि काल से ही भारत परोपकार के दिव्य संदेश से अनुप्राणित है। भारतीय महर्षियों ने कहा हैं – “परोपकाराय सतां विभूतय:।”शताब्दियों पहले तुलसीदास ने इसी बात को बड़ी मार्मिक शब्दों में दोहराया है –

“परहित सरिस धर्म नहिं भाई।

परपीड़ा सम नहीं अधमाई ।।”

२.प्रकृति और परोपकार

वृक्ष, नदी, सूरज, चांद, वर्षा और वायु, मिट्टी और पानी सभी परोपकार में रत हैं। स्वयं की तृप्ति के लिए किस जलद सेजल भरा है? किस वृक्ष से फल धारण किये हैं? नदिया अपने गर्भतल में इतना पानी अपनी तृप्ति के लिए संचित नहीं करती।

३. मनुष्य जीवन की सार्थकता

दूसरों के लिए प्राण दान कर देना मनुष्यता है। दूसरों के लिए जीवन का उत्सर्ग कर देना मनुष्यता है। दूसरों के लिए जान पर खेल जाना मनुष्यता है। अपने लिए जीना और अपने लिए मरना क्या जीना और मरना है? सच्चे मनुष्य की संपूर्ण विभूति परोपकार के लिए होता है। हमारे महर्षियों ने ‘मनुष्य तन’ की सबसे अच्छी विशेषता यह बताई गई है कि परमार्थ की सेवा में विसर्जित हो जाना ही सच्चे मनुष्यता की पहचान है। पानी के बुलबुले की तरह यह जीवन क्षणभंगुर है। व्यक्ति स्वयं के लिए नहीं विश्व के लिए जीता है। प्रसाद जी कहते हैं कि “यदि तुमने एक भी रोते हुए को हंसा दिया है तो तुम्हारे हृदय में सहस्त्रों स्वर्ग विकसित होंगे।”

4. परोपकर संबंधित कुछ उदाहरण

परहित हिंदू सभ्यता एवं हिंदू संस्कृति का प्रधान अंग है। हमारे यहां “वसुधैव कुटुंबकम” का सिद्धांत कार्यवित्त हुआ है। विश्व का साहित्य उन महान आत्माओं की पुनीत गाथाओं से जगमगा रहा है। जिन्होंने मानव मात्र और उससे भी आगे बढ़कर प्राणी मात्र के रक्षार्थ प्राणोत्सर्ग करने में दुविधा को वरण नहीं किया और हंसते हंसते मृत्यु का स्वागत किया। ईसा मसीह के शरीर में जिस समय खूटियां गाड़ी जा रही थीं उस समय भी उनके मुंह से यह शब्द निकल रहे थे “प्रभु इन्हीं क्षमा कर दो क्योंकि इन्हें नहीं मालूम की ये क्या कर रहे हैं।” बुद्ध ने परमार्थ के लिए सब कुछ छोड़ा। महाराजा दधीचि ने अपनी हड्डियां तक दान कर दीं। कर्ण जैसे महान परोपकारी ने मृत्यु शैय्या पर पड़े हुए भी याचक ब्राह्मण के लिए अपना स्वर्ण मंडित दांत तोड़ने से मुंह नहीं मोड़ा। आधुनिक काल में महात्मा गांधी ने मुसलमानों के रक्षार्थ अपने प्राणों का बलिदान किया। हमारी पथ प्रदर्शिनी इंदिरा गांधी ने भारत की एकता, अखंडता और अन-बन के लिए हंसते गाते गोलियों का वरण किया। भारतीय इतिहास के पृष्ठ पर परोपकार के ऐसे उदाहरण अनेकों मिलते हैं।

मनुष्य होने के नाते हमारा कर्तव्य है कि हम अपने भाई बहनों के भार में अपना कंधा लगाएं, उनके दुख दर्द को तन-मन-धन से दूर करने का पर्यटन करें। “बसुधैव कुटुम्बकम”का अर्थ है एक ही परिवार में सभी लोग मिलजुलकर समान भाव से रहना। इस नियम को हमारे पूर्वजों ने बनाया है और इसका अभी तक पालन किया जाता है। इस प्रकार के नियम का पालन कर हम अपनी गौरवपूर्ण शोहरत को बनाकर रख सकते है। हमें चाहिए कि हम व्यक्तिगत संकुचित घेरे से निकलकर स्वार्थ परायणता का परित्याग कर अपने सुख-दुख, हानि-लाभ की चिंता ना करके मानव समाज का हित करें।परोपकार से बढ़कर विश्व में दूसरा कोई धर्म नहीं। परोपकार मनुष्य जीवन का आभूषण है वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरता है।

Leave a Comment Cancel reply

Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.

Hindikeguru

मेरा नाम विवेकानंद है।  मैं एक शिक्षक हूँ, साथ ही एक भावुक ब्लॉगर और Hindikeguru.com का संस्थापक हूँ।  आप इस ब्लॉग के माध्यम से B.Ed. एवं हिंदी से संबंधित सभी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इस ब्लॉग का मुख्य उद्देश्य आपकी शिक्षा को बढ़ावा देना तथा आपके लक्ष्य को पूरा करना है।  

बी. एड. नोट्स

Privacy Policy

© Hindikeguru | All rights reserved

Privacy Policy | Disclaimer

HindiKiDuniyacom

परोपकार पर निबंध (Philanthropy Essay in Hindi)

किसी भी व्यक्ति को अपने जीवन में परोपकारी बनना चाहिए यह एक ऐसी भावना है जो शायद कोई सिखा नहीं सकता, यह किसी के भीतर खुद आती है। परोपकार मानवता का दूसरा नाम है और हमे बढ़ चढ़ कर इस क्रिया में भाग लेना चाहिए।

परोपकार पर छोटे-बडे निबंध (Short and Long Essay on Philanthropy in Hindi, Paropakar par Nibandh Hindi mein)

निबंध – 1 (250 – 300 शब्द).

किसी व्यक्ति की सेवा या उसे किसी भी प्रकार के मदद पहुंचाने की क्रिया को परोपकार कहते हैं। ऐसा उपकार जिसमें कोई अपना स्वार्थ न हो उसे परोपकार कहते हैं। परोपकार को सबसे बड़ा धर्म कहा गया है और करुणा, सेवा सब परोपकार के ही पर्यायवाची हैं। जब किसी व्यक्ति के अन्दर करुणा का भाव होता है तो वह परोपकारी भी होता है।

परोपकार का अर्थ

परोपकार शब्द ‘पर और उपकार’ शब्दों से मिल कर बना है जिसका अर्थ है दूसरों पर किया जाने वाला उपकार।कहते हैं की मनुष्य जीवन हमे इसलिये मिलता है ताकि हम दूसरों की मदद कर सकें। हमारा जन्म सार्थक तभी कहलाता है जब हम अपने विवेक,कमाई या बल की सहायता से दूसरों की मदद करें। जरुरी नहीं की जिसके पास पैसे हो या जो अमीर हो केवल वही दान दे सकता है।

एक साधारण व्यक्ति भी किसी की मदद अपने बुद्धि के बल पर कर सकता है। सब समय-समय की बात है, की कब किसकी जरुरत पड़ जाये। अर्थात जब कोई जरुरत मंद हमारे सामने हो तो हमसे जो भी बन पाए हम उसके लिये करें। यह एक जरूरतमंद, जानवर भी हो सकता है और मनुष्य भी।

हमें बच्चों को शुरू से यह सिखाना चाहिए और जब वे आपको इसका पालन करता देखेंगे, वे खुद भी इसका पालन करेंगे। परोपकारी बनें और दुसरो को भी प्रेरित करें।

निबंध – 2 (400 शब्द)

परोपकार एक ऐसी भावना होती है जो हर किसी को अपने अन्दर रखना चहिये। इसे हर व्यक्ति को अपनी आदत के रूप में विकसित भी करनी चाहिए। यह एक ऐसी भावना है जिसके तहत एक व्यक्ति यह भूल जाता है की क्या उसका हित है और क्या अहित, वह अपनी चिंता किये बगैर निःस्वार्थ भाव से दूसरों की मदद करता है और बदले में उसे भले कुछ मिले या न मिले कभी इसकी चर्चा भी नहीं करता।

हमारी संस्कृति

हमारी भारतीय संस्कृति इतनी धनि है की यहाँ बच्चे को परोपकार की बातें बचपन से ही सिखाई जाती हैं। अपितु यहाँ कई वंशों से चला आ रहा है, परोपकार की बातें हम अपने बुजुर्गों से सुनते आये है और यही नहीं इससे सम्बंधित कई कहानियां हमारे पौराणिक पुस्तकों में भी लिखे हुए हैं। हम यह गर्व से कह सकते हैं की यह हमारी संस्कृति का हिस्सा है। हमारे शास्त्रों में परोपकार के महत्त्व को बड़ी अच्छी तरह दर्शाया गया है। हमे अपनी संस्कृति को भूलना नहीं चाहिये अर्थात परोपकार को नहीं भूलना चाहिए।

सबसे बड़ा धर्म

आज कल के दौर में सब आगे बढ़ने की होड़ में इस कदर लगे हुए हैं की परोपकार जैसे सबसे पुण्य काम को भूलते चले जा रहे हैं। इंसान मशीनों के जैसे काम करने लगा है और परोपकार, करुणा, उपकार जैसे शब्दों को जैसे भूल सा गया है। चाहे हम कितना भी धन कमा ले परन्तु यदि हमारे अन्दर परोपकार की भावना नहीं है तो सब व्यर्थ है। मनुष्य का इस जीवन में अपना कुछ भी नहीं, वह अपने साथ यदि कुछ लाता है तो वे उसके अच्छे कर्म ही होते हैं। पूजा पाठ इन सब से बढ़ कर यदि कुछ होता है तो वो है परोपकार की भावना और यह कहना गलत नहीं होगा की यह सबसे बड़ा धर्म है।

परोपकार की भावना हम सबके अन्दर होनी चाहिए और हमे अपने अगले पीढ़ी को भी इससे भलीभांति परिचित कराना चाहिए। हमे बच्चों को शुरू से बाटने की आदत लगानी चाहिए। उन्हें सिखाना चाहिए की सदैव जरुरत मंदों की मदद करें और यही जीवन जीने का असली तरीका है। जब समाज में कोई हमारे छोटी सी मदद से एक अच्छा जीवन व्यतीत कर सकता है तो क्यों न हम इसे अपनी आदत बना लें। और समाज के कल्याण का हिस्सा गर्व से बने। हमारे छोटे-छोटे योगदान से हम जीवन में कई अच्छे काम कर सकते हैं।

निबंध – 3 (500 शब्द)

परोपकार एक ऐसा शब्द है जिसका अर्थ शायद ही कोई न जानता हो, यह एक ऐसी भावना है जिसका विकास बचपन से ही किया जाना चाहिए। हम सबने कभी न कभी किसी की मदद जरुर की होगी और उसके बाद हमे बड़ा की गर्व का अनुभव हुआ होगा, बस इसी को परोपकार कहते हैं। परोपकार के कई रूप हैं, चाहे यह आप किसी मनुष्य के लिये करें या किसी जीव के लिये।

आज कल के समय की आवश्यकता

आज-कल लोग अधिक व्यस्त रहने लगे हैं और उनके पास अपने लिये समय नहीं होता ऐसे में वे दूसरों की मदद कैसे कर पाएंगे। ऐसे में यह आवश्यक है की परोपकार को अपनी आदत बना लें इससे आप खुद तो लाभान्वित होंगे ही अपितु आप दूसरों को भी करेंगे। राह चलते किसी बुजुर्ग की मदद करदें तो कभी किसी दिव्यांग को कंधा देदें।

यकीन मानिए कर के अच्छा लगता है, जब इसके लिये अलग से समय निकालने की बात की जाये तो शयद यह कठिन लगे। आज कल के दौर में लोग दूसरों से सहायता लेने से अच्छा अपने फोन से ही सारा काम कर लेते हैं परन्तु उनका क्या जिनके पास या तो फोन नहीं है और है भी तो चलाना नहीं आता। इसी लिये परोपकारी बनें और सबकी यथा संभव मदद अवश्य करें।

मानवता का दूसरा नाम

परोपकार की बातें हमारे धर्म ग्रंथों में भी लिखी हुई हैं और यही मानवता का असल अर्थ है। दुनिया में भगवन किसी को गरीब तो किसी को अमीर क्यों बनाते हैं? वो इस लिये ताकि जिसके पास धन है, वो निर्धन की मदद करे। और शायद इसी वजह से वे आपको धन देते भी हैं, ताकि आपकी परीक्षा ले सकें। जरुरी नहीं की यह केवल धन हो, कई बार आपके पास दूसरों की अपेक्षा अधिक बल होता है तो कभी अधिक बुद्धि। किसी भी प्रकार से दूसरों की मदद करने को परोपकार कहते हैं और यही असल मायनों में मानव जीवन का उद्देश होता है। हम सब इस धरती पर शायद एक दुसरे की मदद करने ही आये हैं।

कई बार हमारे सामने सड़क दुर्घटनाएं हो जाती हैं और ऐसे में मानवता के नाते हमें उस व्यक्ति की सहायता करनी चाहिए। किसी भी व्यक्ति को सबकी निस्वार्थ मदद करनी चाहिए और फल की चिंता न करते हुए अपना कर्म करते रहना चाहिए।

परोपकार से बढ़ के कुछ नहीं है और हमे दूसरों को भी प्रेरित करना चाहिए की वे बढ़-चढ़ कर दूसरों की मदद करें। आप चाहें तो अनाथ आश्रम जा के वहां के बच्चों को शिक्षा दे सकते हैं या अपनी तनख्वा का कुछ हिस्सा गरीबों में बाँट सकते हैं। परोपकार अथाह होता है और इसका कोई अंत नहीं है इस लिये यह न सोचें की केवल पैसे से ही आप किसी की मदद कर सकते हैं। बच्चों में शुरू से यह अदत विकिसित करनी चाहिए। बच्चों को विनम्र बनायें जिससे परोपकार की भावना स्वतः उनमें आये। एक विनम्र व्यक्ति अपने जीवन में बहुत आगे जाता है और मानवता को समाज में जीवित रखता है।

Essay on Philanthropy

संबंधित पोस्ट

मेरी रुचि

मेरी रुचि पर निबंध (My Hobby Essay in Hindi)

धन

धन पर निबंध (Money Essay in Hindi)

समाचार पत्र

समाचार पत्र पर निबंध (Newspaper Essay in Hindi)

मेरा स्कूल

मेरा स्कूल पर निबंध (My School Essay in Hindi)

शिक्षा का महत्व

शिक्षा का महत्व पर निबंध (Importance of Education Essay in Hindi)

बाघ

बाघ पर निबंध (Tiger Essay in Hindi)

Leave a comment.

Your email address will not be published. Required fields are marked *

परोपकार पर निबंध – Paropkar Essay in Hindi

परोपकार अर्थात पर + उपकार। पर का अर्थ है दूसरा तथा उपकार का अर्थ है भलाई। इस तरह परोपकार का अर्थ हुआ – दूसरों की भलाई करना ।

परोपकार एक सामाजिक भावना है। इसी के सहारे हमारा सामाजिक जीवन सुखी और सुरक्षित रहता है। परोपकार की भावना से ही हम अपने साथियों, मित्रों, परिचितों और अपरिचितों को निस्वार्थ सहायता करते हैं।

परोपकार पर निबंध – Paropkar Par Nibandh in Hindi

गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है – परहित सरिस धर्म नहीं भाई। अर्थात परोपकार से बड़ा कोई धर्म नहीं होता है। मैथिलीशरण गुप्त जी भी यही कहते हैं –

मनुष्य है वही कि जो मनुष्य के लिए मरे

यह पशु प्रवृति है कि आप आप ही चरे।

वास्तव में मनुष्य वही है जिसका हृदय मानवीय गुणों से भरा हो। उसमें दूसरों के लिए दया और करुणा की भावना हो। बचपन में सिद्धार्थ लोगों के दुख को देख कर स्वयं दुखी हो उठा।

उसके हृदय में लोगों को इस दुख से छुटकारा दिलाने की भावना जाग उठी और अंततः उन्होंने लोगों को इस दुख से छुटकारा पाने का उपाय भी बताया।

इसके पीछे और कुछ नहीं बल्कि परोपकार की भावना ही थी। सिद्धार्थ ने दूसरों के लिए अपने सभी सुखों को त्याग कर दिया और गौतम बुद्ध के नाम से विख्यात हुए।

प्रकृति भी हमें परोपकार की शिक्षा देती है। सूर्य हमें प्रकाश देता है, चंद्रमा अपनी चाँदनी छिटकाकर शीतलता प्रदान करता है, वायु निरंतर गति से बहती हुई हमें जीवन देती है तथा वर्षा का जल धरती को हरा-भरा बनाकर हमारी खेती को लहलहा देती है।

प्रकृति से परोपकार की शिक्षा ग्रहण कर हमें भी परोपकार की भावना को अपनाना चाहिए। भारत देश अपनी परोपकारी परंपरा के लिए जगत प्रसिद्ध रहा है।

भगवान शंकर ने समुद्र-मंथन में मिले विष का पान करके धरती के कष्ट को स्वयं उठा लिया था। महर्षि दधीचि ने राक्षसों के नाश करने के लिए अपने शरीर की हड्डियां तक दान कर दी थी।

दूसरे का कल्याण करने से परोपकारी की आत्मा विस्तृत हो जाती है। परोपकार करने से आत्मा को सच्चे आनंद की प्राप्ति होती है। परोपकारी को अलौकिक आनंद की अनुभूति होती है।

परोपकार के इस आनंद की तुलना भौतिक सुखों से नहीं की जा सकती। ईसा मसीह ने एक बार अपने शिष्यों से कहा था –

“स्वार्थी बाहरी रूप से भले ही सुखी दिखाई पड़ता है, परन्तु उसका मन दुखी और चिंतित रहता है।” सच्चा आनंद तो परोपकारियों को प्राप्त होता है।

संसार में आज जितने भी मनुष्य महापुरुष कहलाने योग्य हुए हैं, उन सभी में परोपकार के गुण थे। सच तो यह है कि परोपकार की भावना से ही उन्हें महापुरुषों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया गया।

परोपकार मनुष्य जीवन को सार्थक बनाता है। अतः हमें भी परोपकारी बनना चाहिए। दूसरों की मदद के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए। जीवन की सार्थकता इसी में है।

परोपकार पर निबंध – Paropkar Essay in Hindi

अठारहों पुराणों में ब्यास के दो ही सार वचन है – परोपकार से पुण्य होता है और परपीड़न से पाप। गोस्वामी तुलसीदास ने इस प्रकार कहा है कि –

परहित सरिस धरम नहि भाई। पर पीड़ा सम नहि अधमाई।।

परोपकार सर्वमंगल की भूमिका है। परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व के कल्याण के लिए ‘स्व’ की बलि दे देना ही परोपकार का सुंदर लक्ष्य है, पवित्र साधन है।

परोपकार हेतु यह आवश्यक है कि व्यक्ति पहले अपने में सामर्थ्य उत्पन्न कर ले। यह समर्थ है त्याग और बलिदान की। दीपक स्वयं नहीं जलता तब तक वह दूसरे को आलोक (प्रकाश) नहीं दे सकता।

रात के सन्नाटे में सोती और स्वप्न निहारती यशोधरा को छोड़कर चले जाने वाले सिद्धार्थ स्वार्थी नहीं कहा जा सकते, क्योंकि लोक-कल्याण हेतु उन्हें पहले सिद्धि की योग्यता उत्पन्न करनी थी।

परोपकारी व्यक्ति का दिल दरिया होता है। तन-मन हरण दूसरों की चिंता में रमा रहता है। उसका हृदय स्वच्छ मंदिर बन जाता है। संपत्ति की महत्ता इसी में है कि वह सबका हित करें। जयशंकर प्रसाद की “कामायनी” में श्रद्धा मनु को उपदेश देती है –

औरों को हँसते देखो मनु, हँसो और सुख पाओ। अपने सुख को विस्मृत कर लो, सबको सुखी बनाओ।।

हमारी संस्कृति का मूल भाव था परोपकार। दूसरे को हंसते देखकर अपना दुख भूल जाने का सहज भाव हमारी संस्कृति में निहित था। परोपकार की भावना स्वर्ग की सीढ़ी है।

स्वार्थ पशुता का आधार है, यह अवनीति के गहरे गड्ढे में धकेल देता है, पर परोपकार सार्वभौम कल्याण के प्रशस्त प्रगति-पथ पर आगे बढ़ता है। परोपकार मानवमात्र का उच्चतम गुण और आभूषण है।

Final Thoughts – 

यह हिंदी निबंध भी अवश्य पढ़े –

  • देश भक्ति पर निबंध हिंदी में – Desh Bhakti Par Nibandh in Hindi
  • शिक्षक (टीचर) पर निबंध हिंदी में – Essay on Teacher in Hindi
  • मेरा प्रिय मित्र पर निबंध हिंदी में – My Best Friend Essay in Hindi

Leave a Comment Cancel reply

Home » Essay Hindi » परोपकार पर निबंध लेखन पढ़े Essay On Paropkar In Hindi

परोपकार पर निबंध लेखन पढ़े Essay On Paropkar In Hindi

इंसानियत का दूसरा नाम परोपकार है। अगर एक इंसान दूसरे इंसान की निस्वार्थ भाव से मदद करता है, तो यही परोपकार (Philanthropy) कहलाता है। परोपकार मनुष्य होने का गुण है। माता पिता बच्चों में परोपकार की भावना विकसित करना चाहते है। उनके लिए परोपकार पर निबंध लेखन यहां पर संक्षिप्त में देने का पूरा प्रयास है। Essay On Paropkar In Hindi में परोपकार पर निबंध और परोपकार का महत्व पर पैराग्राफ लेखन है।

बच्चों के लिए परोपकार पर निबंध एक बेहतर अनुभव होगा। तो आइए मित्रों, परोपकार पर निबंध पैराग्राफ (Paropkar Paragraph In Hindi) लिखने का प्रयास करते है।

परोपकार पर निबंध – Essay On Paropkar In Hindi

जीव दया दिखाना प्रत्येक मनुष्य का धर्म है। परोपकार भी मनुष्य धर्म का ही एक हिस्सा है। परोपकार का अर्थ उपकार करना होता है। जरूरतमंद की हर सम्भव सहायता करना ही परोपकार है। सामान्य शब्दों में कहे तो दान करना ही परोपकार है। परोपकार करने वाला परोपकारी होता है। “परोपकार” दो शब्दों “पर” और “उपकार” से मिलकर बना है। “पर” का अर्थ दूसरों का जबकि “उपकार” का अर्थ मदद करना होता है। अर्थात दूसरों की मदद करना ही परोपकार (Philanthropy) है।

परोपकार की भावना दया और करुणा से आती है। अगर मनुष्य में दूसरों के प्रति दया है तो वह मनुष्य परोपकारी होता है। परोपकारी होना एक सज्जन पुरुष की निशानी है। मानव कल्याण की सोच रखने वाला मनुष्य परोपकारी होता है। परोपकारी व्यक्ति की आत्मा शुद्ध होती है जिस कारण वह निस्वार्थ भाव से जरूरतमंदों की सेवा करता है।

मनुष्य कर्तव्य का निर्वाह ही परोपकार है। ईश्वर भी उसकी सहायता करते है जो दूसरों की सहायता करते है। परोपकार दिखाकर शत्रु के ह्रदय को भी आपके प्रति कोमल किया जा सकता है। परोपकार में शक्ति होती है। एक आदर्श जीवन में परोपकार की भावना होनी चाहिए। परोपकार करने पर परम् आनंद की अनुभूति होती है। जो सुख दूसरों की भलाई करने में है वो कही नही है।

परिवार में कोई दुखी होता है तो आप उसकी मदद करते है। यह पूरी दुनिया आपका परिवार है और आप इस परिवार का हिस्सा है। परिवार पर मुसीबत आने पर मदद करना हम मनुष्यों का दायित्व है। “वसुधैव कुटुंबकम” की भावना प्रत्येक मनुष्य में होनी चाहिए। समस्त संसार परिवार के समान है। जीवन सार्थक तभी होता है जब जीवन दूसरों की भलाई में खर्च होता है।

परोपकार का महत्व – Importance Of Paropkar In Hindi

परोपकारी सत्पुरुष हमेशा दूसरों की मदद करते है। मदद करके भूल जाना ही महानता की निशानी है। महान पुरूष किसी गरीब की मदद करके भूल जाते है। इन महापुरुषों पर एक कहावत चरितार्थ होती है “नेकी कर दरिया में डाल”। किसी की मदद करके कभी भी जताना नही चाहिए। किसी जरूरतमंद की मदद करके आप कोई अहसान नही करते है। यह मनुष्य का मनुष्य के प्रति कर्तव्य है।

परोपकार की भावना ईश्वर ने प्रकति में भी दी है। प्रकृति की मूल भावना ही परोपकार है। अनन्तकाल से प्रकति हमें फल, भोजन, हवा, पानी इत्यादि दे रही है। परन्तु कभी अहसान नही जताया क्योंकि यह उसका कर्तव्य है। इसलिए परोपकार कर्तव्य है। प्रकृति निस्वार्थ भाव से मनुष्य की सेवा करती है। ठीक इसी तरह से प्रत्येक मनुष्य को दूसरों की सेवा करनी चाहिए।

ईश्वर ने अगर आपको धन से सम्पन्न किया है तो इंसानियत की राह में खर्च करना आपका फर्ज है। अगर आप ताकतवर है तो कमजोर की रक्षा करना आपका कर्तव्य है। मनुष्य जीवन का अर्थ ही परोपकार है। ईश्वर की प्राप्ति मानव सेवा से ही होती है।

परोपकार दिखाने से क्या लाभ होगा? कुछ लोगों के मन में यह प्रश्न भी आता होगा। लेकिन दोस्तों, परोपकार में लाभ की आशा नही करनी चाहिए। जहां लोभ लालच आता है वहां परोपकार नही होता है। परोपकारी मनुष्य के ह्रदय में लाभ की आशा नही होती है। परंतु मित्रों, ईश्वर सब देख रहा है। वही आपको परोपकार के बदले लाभ देगा। परोपकार गुण आपको समाज में इज्जत और सम्मान देता है।

परोपकार पर निबंध लेखन हिंदी में

मनुष्य को संकीर्ण मानसिकता से उबरना होगा तभी वह परोपकारी बन सकता है। संकीर्ण सोच वाला इंसान स्वयं की भलाई की सोचता है। इसलिए संकीर्ण सोच का त्याग करना चाहिए। स्वार्थी लोग दूसरों की मदद करने की बजाय उनका अहित करते है। ऐसे लोग ना समाज में सम्मान पाते है और ना ही ईश्वर उन्हें सम्मान देता है। खुले हाथों से परोपकार करना चाहिए। यही मानव जीवन है जो ईश्वर ने दिया है।

इतिहास में कई महान संत हुए है जिन्होंने परोपकार की मिसाल कायम की है। उन महापुरुषों का ह्रदय दया से परिपूर्ण था। छत्रपति शिवाजी महाराज हो या फिर  महात्मा गांधी सभी महापुरुषों ने दूसरों की भलाई के लिए अपना जीवन समर्पित किया था। महापुरुषों ने परोपकार करने के लिए अपने प्राणों की भी आहुति दी थी।

समाजसेवी सन्त मदर टेरेसा ने अपना पूरा जीवन दीन दुखियों की सेवा में लगा दिया था। राजा शिवि ने कबूतर को बचाने के लिए अपने शरीर से मांस काटकर बांज को खिला दिया था। भगत सिंह , राजगुरु, चन्द्रशेखर आजाद जैसे महान क्रांतिकारियों ने देश के लिए अपने प्राणों का बलिदान किया था। दोस्तों इतिहास में परोपकार करने वाले महान लोगों की कमी नही है। ऐसे ही महान लोगों की तरह आप भी महान बन सकते है। परोपकार वह गुण है जो इंसान को महान बनाता है।

किसी को दुखी देखकर अगर आप दुखी होते है। अगर आपके मन में दया और सहानुभूति की भावना प्रबल हो जाती है। तो यही परोपकार है। भूखे को खाना देना, नंगे को कपड़े देना,बेघर को छत देना, निर्धन को धन देना, परोपकार ही है।

परोपकार पर पैराग्राफ – Paropkar Paragraph In Hindi

परोपकार की भावना पर मैथलीशरण गुप्तजी की कविता कुछ पद याद आ रहे है।

“यही पशु प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे, वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।”

यहां पर मैथलीशरण गुप्तजी ने मनुष्य और पशु में अंतर बताया है। सच्चा मनुष्य वही है जो दूसरे मनुष्य की मदद करता है। अगर कोई मनुष्य दया और परोपकार नही रखता है तो वह पशु समान है।

हर मनुष्य महर्षि दाधीच नही होता जिन्होंने इंसानियत की भलाई के लिए अपनी हड्डियों का दान कर दिया था। इसलिए हर मनुष्य परोपकारी नही होता है। दुनिया में ऐसे भी मनुष्य है जो केवल स्वंय का हित साधते है। ऐसे लोगो को स्वार्थी कहना सही रहेगा। परोपकारी होना बहुत आसान है बस आपको मनुष्य कर्तव्यों का ईमानदारी से निर्वाह करना है। मानव जीवन परोपकार को समर्पित रहना चाहिए। प्राणी मात्र पर दया ही जीवन का उद्देश्य होना चाहिए।

दुनिया में परोपकारी लोगों की कमी नही है। मुक्त शिक्षा के लिए विद्यालय, मुक्त इलाज के लिए अस्पताल जैसे कई काम परोपकारी व्यक्ति करते है। हर धर्म मे परोपकार के महत्व की प्रशंसा की गई है। मनुष्य का चरित्र परोपकार से अमर हो जाता है। परोपकारी लोगों को इतिहास में हमेशा याद रखा जाता है। वह जीवन, जीवन नही जो दूसरों के काम ना आये। वही जीवन सार्थक है जो दूसरों के लिए जिया जाए।

अन्य महत्वपूर्ण निबंध

  • ईमानदारी पर निबंध
  • अनुशासन पे निबंध
  • बेरोजगारी पर निबंध

Note – परोपकार पर निबंध हिंदी में पर यह पोस्ट Essay On Paropkar In Hindi आपको कैसी लगी। यह आर्टिकल “परोपकार पर पैराग्राफ (Paropkar Paragraph In Hindi)” अच्छा लगा हो तो इसे शेयर भी करे।

Related Posts

महत्वपूर्ण विषयों पर निबंध लेखन | Essay In Hindi Nibandh Collection

ऑनलाइन शिक्षा पर निबंध | डिजिटल एजुकेशन

समय का सदुपयोग पर निबंध (समय प्रबंधन)

राष्ट्रीय पक्षी मोर पर निबंध लेखन | Essay On Peacock In Hindi

ईद का त्यौहार पर निबंध | Essay On Eid In Hindi

चिड़ियाघर पर निबंध लेखन | Long Essay On Zoo In Hindi

मेरा परिवार विषय पर निबंध | Essay On Family In Hindi

' src=

Knowledge Dabba

नॉलेज डब्बा ब्लॉग टीम आपको विज्ञान, जीव जंतु, इतिहास, तकनीक, जीवनी, निबंध इत्यादि विषयों पर हिंदी में उपयोगी जानकारी देती है। हमारा पूरा प्रयास है की आपको उपरोक्त विषयों के बारे में विस्तारपूर्वक सही ज्ञान मिले।

Leave a comment Cancel reply

Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.

Pariksha Point

परोपकार पर निबंध (Paropkar Par Nibandh) | Paropkar Essay In Hindi

Photo of author

परोपकार पर निबंध (Paropkar Par Nibandh)- मकर संक्रांति का दिन था। रोहित आज अपनी छत पर खड़ा पतंग उड़ा रहा था। उसके आस-पड़ोस के लोग भी पतंग उड़ाने में मशगूल थे। किसी को इस बात की परवाह तक नहीं थी कि आकाश में भी कोई गोते लगा रहा था। कि तभी रोहित को किसी की फड़फडाने की आवाज सुनाई दी। रोहित ने जब पीछे मुड़कर देखा तो पाया कि एक कबूतर घायल हुआ जमीन पर पड़ा था। उस कबूतर को देखते ही रोहित ने आव देखा ना ताव और उस कबूतर को लेकर वेटरनरी अस्पताल चला गया।

परोपकार (Essay On Paropkar In Hindi)

रोहित ने उस पक्षी की जान बचा ली। बस उस दिन से रोहित ने कसम खा ली थी कि वह जीवन में कभी भी पतंग नहीं उड़ाएगा। उसने धर्म का रास्ता चुना। रोहित की यह कहानी परोपकार को दर्शाती है। परोपकार बहुत ही अच्छा गुण है। परोपकार से हम सारे जगत को जीत सकते हैं। दया और सेवा भाव को हम परोपकार की श्रेणी में भी गिन सकते हैं। जिस मनुष्य के दिल में दया भाव ना हो वह अच्छा इंसान नहीं कहलाया जा सकता है। उदार दिल का होना बहुत आवश्यक है। एक उदार व्यक्ति अपनी हर परिस्थिति में लोगों की मदद के लिए तैयार रहता है। उदारता के लिए यह जरूरी नहीं कि आपके पास खूब सारा धन हो। आप गरीब होकर भी उच्च कोटि की उदारता प्राप्त कर सकते हैं। बस इसके लिए आपको चाहिए कि आपका दिल बहुत बड़ा होना चाहिए।

Join Telegram Channel

परोपकार पर निबंध

इस पोस्ट में हमने परोपकार पर निबंध एकदम सरल, सहज और स्पष्ट भाषा में लिखने का प्रयास किया है। परोपकार पर निबंध के माध्यम से आप जान पाएंगे कि परोपकार क्या होता है, हमारे समाज में परोपकार की क्या भूमिका है, परोपकार के लाभ क्या हैं आदि। तो आइए हम परोपकार के विषय पर निबंध पढ़ते हैं।

हमारे देश की संस्कृति में उदारता सदा से चली आ रही है। हम जब छोटे से होते हैं तभी से हमें परोपकार का ज्ञान दिया जाता है। आपने कभी यह देखा होगा कि आप जब किसी जरूरतमंद की मदद करते हो तो आपका दिन कितना अच्छा जाता है। आप पूरे दिन खुशी महसूस करते हो। परोपकार का गुण होने पर आपका जीवन सुखमय बन जाता है। परोपकारी इंसान बदले में कुछ भी नहीं चाहता है। वह हर पल लोगों की भलाई के बारे में सोचता है। परोपकारी इंसान को हर कोई अपना आदर्श मानता है।

ये निबंध भी पढ़ें

हम परोपकार का सच्चा उदाहरण अपने समाज में देख सकते हैं। आज वायु हमें जब बिन कुछ मांगे शीतल हवा प्रदान करती है तो हमें कितना अच्छा लगता है। तालाब हमें पानी प्रदान करता है। जरा सोचकर देखो कि अगर प्रकृति हमें हर प्रकार के संसाधन देना बंद कर दे तो क्या होगा। लेकिन प्रकृति ऐसा कभी भी नहीं करती। प्रकृति मनुष्य से बिना कोई आकांक्षा के परोपकार का काम करती रहती है। जो बिन कुछ चाहे ही दूसरों के काम आए उसे ही सच्चा इंसान कहा जाता है। मददगार लोगों की सच्चे दिल से सहायता करके हम पुण्य का काम करते हैं।

परोपकार क्या है?

परोपकार शब्द अपने आप में ही महान है। परोपकार करके हम बुराई को भी हराने की ताकत रखते हैं। परोपकार शब्द आखिर है क्या? परोपकार का अर्थ है दूसरों के लिए भलाई का काम करना। जब हम दूसरों के हित के लिए काम करते हैं तो वह काम परोपकार में गिना जाता है। परोपकार मनुष्य के लिए सर्वश्रेष्ठ गुण है। यह गुण मनुष्य के जीवन को खुशहाल बना देता है। परोपकारी व्यक्ति ताउम्र लोगों की भलाई के लिए काम करता है। वह परोपकार को कार्य नहीं बल्कि सेवा के समान मानता है।

दरअसल भगवान हमें मानव के रूप में इसलिए पैदा करता है ताकि हम लोगों की सेवा कर सकें। मनुष्य को जानवरों से ज्यादा समझदार माना जाता है। मानव में सब कुछ करने की ताकत होती है, इसलिए मानव को परोपकार भी करना चाहिए। दया भाव, सेवा भाव और करूणा यह सभी परोपकार के ही प्रकार हैं। उपकार का सच्चा उदाहरण हम हमारे देश के सैनिकों में देख सकते हैं। एक देश का सैनिक पूरे तन और मन से देश की सेवा करता है। बदले में वह कुछ भी नहीं चाहता। बस वह निस्वार्थ भाव से देश की रक्षा में हर पल खड़ा रहता है।

समाज में परोपकार की भूमिका

नीना के टहलते हुए कदम अचानक रूक से गए। एकाएक उसकी नजर एक व्यक्ति पर गई जो कि फुटपाथ के किनारे बैठा सिसक रहा था। वह व्यक्ति बुजुर्ग था। उसके शरीर पर पुराना सा फटा हुआ शाॅल था। ठंड के चलते वह दुबक कर बैठा था। नीना उस बुजुर्ग के पास गई और उससे उसका हालचाल पूछने लगी। हालचाल जानने पर पता चला कि उस बुजुर्ग को उसके बेटे ने छोड़ दिया था। नीना ने पास की ही एक दुकान से स्वेटर खरीदा और बुजुर्ग को दे दिया।

नीना का यह कदम परोपकार को दर्शाता है। आज के भागदौड़ भरे समय में किसी को भी किसी के लिए समय नहीं है। आज हर कोई व्यक्ति आपको तनाव में दिखेगा। तनाव के चलते दयाभाव शायद खत्म सा हो गया है। दया की जगह कहीं-कहीं स्वार्थ ने ले ली है। स्वार्थ के चलते ही लोग अपनों से दूर हो रहे हैं और परोपकार के संस्कार भूल रहे हैं। इसलिए यह जरूरी है कि दया और सेवा भाव के बीज बचपन से ही बो दिए जाएं। दयाभाव रखने वाले व्यक्ति का कल्याण होता है।

परोपकार के लाभ

परोपकारी इंसान अपने जीवन में सदैव खुश रहता है। परोपकारी व्यक्ति को किसी भी प्रकार की चिंता नहीं सताती है। आज हम बहुत से वीर लोगों के नाम सुनते हैं जिन्होंने अपने देश की खातिर अपने जीवन का बलिदान देना उचित समझा। भगत सिंह, झांसी की रानी, सुखदेव, महात्मा गांधी जैसे लोग उन महान इंसानों में गिने जाते हैं जिन्होंने अपने जीवन से ज्यादा अपने देश को महत्व दिया।

परोपकार से हम सबका दिल जीत सकते हैं। यहां तक कि परोपकार और दया भाव रखने से आप अपने बड़े से बड़े शत्रु पर भी विजय प्राप्त कर सकते हो। जब हम सारे संसार के लिए अच्छा सोचते हैं तो हमारे जीवन के सारे कार्य बिना किसी परेशानी के होते रहते हैं। हम सभी मनुष्यों के जीवन का मूल उद्देश्य परोपकार ही होना चाहिए। परोपकारी व्यक्ति का दृष्टिकोण सकारात्मक रूप से बदल जाता है। परोपकारी व्यक्ति हर पल सकारात्मक और आशावादी सोच रखता है। परोपकारी व्यक्ति को स्वयं भगवान का आशीर्वाद प्राप्त हो जाता है।

परोपकार पर राजा शिवि चक्रवर्ती की कहानी

यह बहुत पहले की बात है जब उशीनगर का राजा शिवि चक्रवर्ती हुआ करता था। वह जनता के बीच इसलिए जाना जाता था क्योंकि वह बहुत ही दयालु राजा था। उसकी दयालुता के चर्चे चारों ओर थे। राजा शिवि की दरियादिली की खबर जब इंद्रदेव और अग्निदेव के पास पहुंची तो उन दोनों ने सोचा कि क्यों ना राजा की परीक्षा ली जाए। इंद्रदेव बाज के रूप में आ गए और अग्निदेव एक भोले से कबूतर बन गए। अब कबूतर के रूप में फूर्ती से उड़ते हुए अग्निदेव राजा शिवी के महल पहुंचे और जाकर राजा शिवी की गोद में बैठ गए। कबूतर ने राजा से कहा,

“हे राजन! मेरी जान बचा लिजिए। एक बाज मेरी जान के पीछे पड़ा है। वह कभी भी यहां पहुंचाता होगा।”

राजा शिवि ने कबूतर से यह वादा किया कि वह कबूतर को कुछ भी नहीं होने देगा। फिर बाज वहां पहुंचा और राजा शिवि से कहा,

“राजन, यह कबूतर मेरा शिकार है। आप कृपा करके यह कबूतर मुझे दे दीजिए।”

राजा शिवि ने कबूतर देने से मना कर दिया। राजा बोला,

“मैंने कबूतर से यह वादा किया है कि मैं उसे कुछ नहीं होने दूंगा। तो हे बाज, तुम अगर चाहो तो कबूतर के बराबर मेरा मांस ले सकते हो।”

बाज इस बात के लिए राजी हो गया। फिर राजा शिवि ने अपने सैनिकों को बुलाकर एक तराजू मंगवाया और उसने कबूतर को तराजू के एक पलड़े पर बिठाया और दूसरे पलड़े को उसने मांस से तोलना शुरू किया। वह अपने शरीर का मांस काटता गया लेकिन तब भी तराजू का पलड़ा बराबर ना हुआ। ऐसा ना होने पर राजा शिवि खुद ही तराजू पर बैठ गए। उनके तराजू पर बैठते ही पलड़ा एकदम बराबर हो गया। राजा शिवि ने बाज से कहा कि वह उसका पूरे शरीर का मांस ले ले और इसके बदले में इस कबूतर की जान बख्श दे। राजा शिवि ने यह कहा और उतने में ही कबूतर और बाज अपने असली रूप में आ गए। राजा ने अग्निदेव और इंद्रदेव को देखते ही प्रणाम किया। इंद्रदेव बोले,

“हे राजन, मैं तुम्हारी दयालुता की परीक्षा लेने आया था। तुम उस परीक्षा में पास हुए।”

ऐसे में राजा शिवि की दयालुता की जीत हुई।

परोपकार का सच्चा अर्थ है कि किसी जरूरतमंद व्यक्ति की बिना किसी स्वार्थ के मदद करना। परोपकार का गुण होना बहुत जरूरी है। बिना दया भाव के यह जीवन नहीं चल सकता है। जब हम दूसरों की मदद करते हैं, तो हमारे जीवन में भी हर काम सफल होते हैं। सेवा करना एक पुण्य का काम है। सेवा और परोपकार में ही हमारी भलाई है। परोपकारी इंसान जीवन में कभी भी हारता नहीं है। हम सभी को परोपकार करते रहना चाहिए। हम मनुष्य रूपी शरीर में इसलिए पैदा हुए हैं ताकि हम हर किसी की सेवा कर सकें। परोपकार ही सच्चा धन होता है।

परोपकार पर निबंध 200 शब्दों में

परोपकार एक बहुत ही सुंदर गुण माना जाता है। परोपकार का गुण होना बहुत जरूरी है। दयाभाव रखने से ही हम एक सच्चे इंसान कहलाए जा सकते हैं। समस्त धरती के लिए दया और करूणा रखना बहुत जरूरी होता है। भगवान हमें ईश्वर के रूप में धरती पर इसलिए भेजता है ताकि हम अपने हाथों से पुण्य के काम कर सके। पुण्य करना हर किसी के लिए बस की बात नहीं है। पुण्य और दया भाव ऐसी चीज है जिसे सिखाया नहीं जाता। बल्कि यह अपने आप ही सीखा जाता है।

यह एक ऐसी भावना है जो अंदर से ही उत्पन्न होती है। परोपकार करने से हमें बहुत अच्छा महसूस होता है। परोपकारी व्यक्ति हर जगह सराहा जाता है। उदारता से दुष्ट व्यक्ति का दिल भी पिघल जाता है। हमें जीवन में हर किसी के लिए उदारता दिखानी चाहिए। परोपकार व्यक्ति का जीवन सुखमय तरीके से बीतता है। हमारे देश में भी अनेकों महापुरुषों ने जन्म लिया था जिन्होंने अपना जीवन परोपकार करते हुए बीता दिया था। वह सिर्फ समाज के हित के लिए ही काम करते हैं।

परोपकार पर 10 लाइनें

(1) परोपकार हमारे जीवन के लिए सबसे अच्छा गुण माना जाता है।

(2) हमें जीवन में हमेशा परोपकार करते रहना चाहिए।

(3) हमारा जीवन उदारता से खुशनुमा बन जाता है।

(4) भारत देश में अनेक उदार लोगों ने जन्म लिया है।

(5) भगवान ने हमें मनुष्य रूपी शरीर में इसलिए भेजा है ताकि हम हर किसी का काम निस्वार्थ भावना से कर सकें।

(6) आज के भागदौड़ भरे समय में हमें परोपकार को अपनाना चाहिए।

(7) परोपकार को हम एक तरह का धर्म कह सकते हैं।

(8) हमारे देश में अनेकों महापुरुष ऐसे हुए हैं जिन्होंने अपना जीवन उपकार करने में बिता दिया।

(9) परोपकारी व्यक्ति अपने जीवन के हर कार्य में सफल होता है।

(10) जरूरी नहीं है कि परोपकारी होने के लिए आपको अमीर होने की जरूरत है। एक निर्धन व्यक्ति भी उदार हो सकता है।

उत्तर- परोपकार का अर्थ है दूसरों के लिए भलाई का काम करना। जब हम दूसरों के हित के लिए काम करते हैं तो वह काम परोपकार में गिना जाता है। परोपकार मनुष्य के लिए सर्वश्रेष्ठ गुण है। यह गुण मनुष्य के जीवन को खुशहाल बना देता है। परोपकारी व्यक्ति ताउम्र लोगों की भलाई के लिए काम करता है। वह परोपकार को कार्य नहीं बल्कि सेवा के समान मानता है।

उत्तर- महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, डाॅ. बी.आर. अम्बेडकर, मदर टेरेसा, जवाहर लाल नेहरू आदि।

Leave a Reply Cancel reply

Recent post, सीजी पीपीटी 2024 (cg ppt 2024) | cg polytechnic admission 2024, डेली करेंट अफेयर्स 2024 (daily current affairs in hindi), 70+विषयों पर निबंध (essay in hindi) | nibandh, गणेश चतुर्थी पर निबंध (essay on ganesh chaturthi in hindi), कला और संस्कृति सामान्य ज्ञान प्रश्न (art & culture gk questions in hindi), बिहार ओपन बोर्ड 10वीं रिजल्ट (bbose 10th result 2023-24).

Join Whatsapp Channel

Subscribe YouTube

Join Facebook Page

Follow Instagram

hindi essay paropkar

School Board

एनसीईआरटी पुस्तकें

सीबीएसई बोर्ड

राजस्थान बोर्ड

छत्तीसगढ़ बोर्ड

उत्तराखंड बोर्ड

आईटीआई एडमिशन

पॉलिटेक्निक एडमिशन

बीएड एडमिशन

डीएलएड एडमिशन

CUET Amission

IGNOU Admission

डेली करेंट अफेयर्स

सामान्य ज्ञान प्रश्न उत्तर

हिंदी साहित्य

[email protected]

A-840/ Chirag Dilli, New Delhi -110030

© Company. All rights reserved

About Us | Contact Us | Terms of Use | Privacy Policy | Disclaimer

Home

  • Website Inauguration Function.
  • Vocational Placement Cell Inauguration
  • Media Coverage.
  • Certificate & Recommendations
  • Privacy Policy
  • Science Project Metric
  • Social Studies 8 Class
  • Computer Fundamentals
  • Introduction to C++
  • Programming Methodology
  • Programming in C++
  • Data structures
  • Boolean Algebra
  • Object Oriented Concepts
  • Database Management Systems
  • Open Source Software
  • Operating System
  • PHP Tutorials
  • Earth Science
  • Physical Science
  • Sets & Functions
  • Coordinate Geometry
  • Mathematical Reasoning
  • Statics and Probability
  • Accountancy
  • Business Studies
  • Political Science
  • English (Sr. Secondary)

Hindi (Sr. Secondary)

  • Punjab (Sr. Secondary)
  • Accountancy and Auditing
  • Air Conditioning and Refrigeration Technology
  • Automobile Technology
  • Electrical Technology
  • Electronics Technology
  • Hotel Management and Catering Technology
  • IT Application
  • Marketing and Salesmanship
  • Office Secretaryship
  • Stenography
  • Hindi Essays
  • English Essays

Letter Writing

  • Shorthand Dictation

Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Paropkar”, ”परोपकार” Complete Hindi Anuched for Class 8, 9, 10, Class 12 and Graduation Classes

तरुवर फल नहिं खात है , सरवर पियहिं न पानि ।

कहि ‘ रहीम ‘ पर काजहित , सम्पत्ति संचहिं सुजान।।

परोपकार की महिमा रहीम के इस दोहे से प्रकट होती है। परोपकार का ऐसा सटीक उदाहरण इसमें दिया गया है। वृक्ष फल पैदा करते है पर स्वयं नहीं खाते। वृक्षों का जीवन परोपकार में ही व्यतीत होता है। तालाब अपना पानी स्वयं ही नहीं पीते। उनका पानी पशु पक्षी ही पीते हैं। मानव जाति भी उस पानी का लाभ उठाती है। इसी प्रकार परोपकारी सज्जन भी अपनी सम्पत्ति का उपयोग अन्य लोगों की भलाई के लिए करता है।

परोपकार एक पवित्र भावना है। यह हृदय की गहराई से उत्पन्न होती है। अच्छे नैतिक गुणों से सम्पन्न व्यक्ति ही परोपकार में प्रवृत्त होता है। स्वार्थ की भावना को तिलांजाल देकर ही परमार्थ, परोपकारी भावना का जन्म होता है। हमारे देश में परोपकारी सज्जनों की कमी नहीं है। ऐसे अनेकों महापुरुष भारत में जन्मे हैं, जो परोपकार ही जीवन का उद्देश्य बना चुके थे।

शिक्षा के लिए पाठशालाएँ खोलना, यात्रियों की सुविधा के लिए धर्मशालाएँ बनवाना, कुएँ खुदवाना, अस्पतालों को खोलकर दीन दुखियों को सहायता देना, भूखों को अन्नदान, नंगों को वस्त्र दान करना सभी परोपकार के उदाहरण है। हमारे देश में इस प्रकार की संस्थाओं की भरमार है। ये सभी कर्म परोपकार की भावना से ही किए जाते।

प्राचीन काल से इस देश में परोपकार की भावना को प्रमुखता दी । जाती रही है। एक थे दधीचि मुनि। जब देवताओं को पता चला कि दधीचि मुनि की हड्डियों से बना वज्र ही राक्षसों को मारने में सहायक होकर उनकी रक्षा कर सकेगा तो वे दधीचि मुनि के पास पहुँचे। देवताओं की इच्छा जानकर दधीचि मुनि ने अपने प्राण त्यागने में भी संकोच नहीं किया। उनकी हड्डियों से वज्र बनाकर देवताओं ने राक्षसों का संहार कर अपनी रक्षा की । परोपकार का इतना उत्कृष्ट उदाहरण क्या किसी देश में उपलब्ध हो सकता है।

राजा शिवि भी भारतीय ही थे। उन्होंने शरणागत कबूतर की बाज से रक्षा करने के लिए अपने हाथों से ही अपना माँस काटकर दे डाला। परोपकार का यह कितना उत्कृष्ट उदाहरण है।

लोग परोपकार क्यों करते हैं। परोपकार की भावना चरित्र का नैतिक उत्थान है। हृदय की उदात्त भावनाओं में से परोपकार एक है। यह गुण ही मनुष्य का वास्तविक आभूषण है।

“ आभरण नर देह का बस एक पर उपकार है ,

हार को भूषण कहे उस बुद्धि को धिक्कार है।”

परोपकारी व्यक्ति को परोपकार करने से क्या मिलता है। वह परोपकार क्यों करता है? उसे कोई भौतिक प्राप्ति तो होती नहीं। हृदय में सुख और शान्ति ही उसकी परिणति है। संतोष एवं आत्मसुख ही। की ओर उन्मुख हो पाता है। परोपकारी की सम्पत्ति बनती है। कोई सदाचारी व्यक्ति ही परोपकार।

स्काउटों में परोपकार की भावना उत्पन्न कराने के लिए उनको एक डायरी रखने को उत्साहित किया जाता है। उनसे कहा जाता है।

प्रतिदिन कोई परोपकार का काम करके उसका उल्लेख डायरी में करें। इस प्रकार उनमें परोपकार की प्रवृत्ति बढ़ती है। रास्ते से कांटे हटाना, अंधों की सड़क पार कराना, किसी दुर्घटना पीड़ित की प्रथम चिकित्सा करना, उसको अस्पताल तक पहुँचाना, भिखारी को भिक्षा देना सभी संतोष और सुख प्राप्त होता है। छोटे छोटे परोपकार के कार्य हैं। ऐसा करने में खर्च तो कुछ नहीं होता

परोपकारी व्यक्ति समाज में आदर पाता है। उसके नैतिक गुणों के कारण सभी उसको सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। उसकी प्रतिष्ठा बढ़ती है। सभी लोग उसके साथ उठने बैठने के लिए लालायित रहते हैं। सभी मामलों में उसकी राय लेते हैं।

परोपकार का गुण मानव को देवता बना देता है। सभी देशवासियों को ऐसे परोपकारियों से प्रेरणा लेनी चाहिए। हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हमारे कारण किसी को कोई कष्ट तो नहीं पहुँच रहा। इस प्रकार के आचरण से मनुष्य दूसरों की सेवा करने में प्रवृत्त हो सकेगा।

इस युग में स्वार्थ की प्रबलता के कारण परोपकार का गुण लुप्त होता जारहा है। यह हमारा नैतिक हास है। हमें प्रयत्न पूर्वक इस प्रवृत्ति को रोकना चाहिए। ऐसा न करने पर देश में अनेक विपत्तियों के आने की सम्भावना है।

About evirtualguru_ajaygour

hindi essay paropkar

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Quick Links

hindi essay paropkar

Popular Tags

Visitors question & answer.

  • Gangadhar Singh on Essay on “A Journey in a Crowded Train” Complete Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
  • Hemashree on Hindi Essay on “Charitra Bal”, “चरित्र बल” Complete Hindi Essay, Paragraph, Speech for Class 7, 8, 9, 10, 12 Students.
  • S.J Roy on Letter to the editor of a daily newspaper, about the misuse and poor maintenance of a public park in your area.
  • ashutosh jaju on Essay on “If there were No Sun” Complete Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
  • Unknown on Essay on “A Visit to A Hill Station” Complete Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

Download Our Educational Android Apps

Get it on Google Play

Latest Desk

  • The Future of Democracy in India | Social Issue Essay, Article, Paragraph for Class 12, Graduation and Competitive Examination.
  • Democracy Recedes as a Global Ideal | Social Issue Essay, Article, Paragraph for Class 12, Graduation and Competitive Examination.
  • Centre-State Financial Relations | Social Issue Essay, Article, Paragraph for Class 12, Graduation and Competitive Examination.
  • Presidential System is More Suitable to India | Social Issue Essay, Article, Paragraph for Class 12, Graduation and Competitive Examination.
  • Sanskrit Diwas “संस्कृत दिवस” Hindi Nibandh, Essay for Class 9, 10 and 12 Students.
  • Nagrik Suraksha Diwas – 6 December “नागरिक सुरक्षा दिवस – 6 दिसम्बर” Hindi Nibandh, Essay for Class 9, 10 and 12 Students.
  • Jhanda Diwas – 25 November “झण्डा दिवस – 25 नवम्बर” Hindi Nibandh, Essay for Class 9, 10 and 12 Students.
  • NCC Diwas – 28 November “एन.सी.सी. दिवस – 28 नवम्बर” Hindi Nibandh, Essay for Class 9, 10 and 12 Students.
  • Example Letter regarding election victory.
  • Example Letter regarding the award of a Ph.D.
  • Example Letter regarding the birth of a child.
  • Example Letter regarding going abroad.
  • Letter regarding the publishing of a Novel.

Vocational Edu.

  • English Shorthand Dictation “East and Dwellings” 80 and 100 wpm Legal Matters Dictation 500 Words with Outlines.
  • English Shorthand Dictation “Haryana General Sales Tax Act” 80 and 100 wpm Legal Matters Dictation 500 Words with Outlines meaning.
  • English Shorthand Dictation “Deal with Export of Goods” 80 and 100 wpm Legal Matters Dictation 500 Words with Outlines meaning.
  • English Shorthand Dictation “Interpreting a State Law” 80 and 100 wpm Legal Matters Dictation 500 Words with Outlines meaning.

ESSAY KI DUNIYA

HINDI ESSAYS & TOPICS

Essay on Paropkar in Hindi – परोपकार पर निबंध

June 14, 2018 by essaykiduniya

Here you will get Paragraph and Short Essay on Paropkar in Hindi Language for students of all Classes in 200 and 500 words. यहां आपको सभी कक्षाओं के छात्रों के लिए हिंदी भाषा में परोपकार पर निबंध मिलेगा।

Essay on Paropkar in Hindi

Short Essay on Paropkar in Hindi Language – परोपकार पर निबंध ( 200 words )

परोपकार का अर्थ है दुसरों का भला करना। समाज में रहने के लिए मनुष्य जीवन में परोपकार का होना जरूरी है। परोपकार के अंतर्गत दया और संवेदनशीलता आता है। परोपकार मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म है जिसके अंदर वह स्वार्थ छोड़कर दुसरों के हित के लिए कार्य करता है। प्रकृति भी दुसरों के परोपकार के लिए ही कार्य करती है। पेड़ कभी भी अपना फल खुद नहीं खाते, नदी कभी अपना पानी खुद नहीं पाती, सूर्य भी दुसरों को ही रोशनी देता है। मनुष्य को भी प्रकृति से निस्वार्थ भाव से कार्य करना सिखना चाहिए।

अमीर को अपना धन गरीबों के कल्याण के लिए प्रयोग करना चाहिए। ताकतवर इंसान को कमजोर व्यक्ति की सहायता करनी चाहिए। परोपकार के बिना किसी भी समाज की गति नहीं हो सकती। बिना परोपकार के मनुष्य का जीवन पशु के समान है। खाना और सोना तो पशु भी करते ही है। परोपकारी व्यक्ति का जीवन आदर्श माना जाता है। परोपकार करने वाले व्यक्ति को समाज में सम्मान और यश की प्राप्ती होती है। बहुत से महान पुरूष हुए है जिन्होंने परोपकार के बल पर यश और कीर्ति को प्राप्त किया है। हमें भी अपने जीवन में परोपकार को अपनाना चाहिए और दुसरों के हित के लिए भी कार्य करना चाहिए ।

परोपकार पर निबंध –  Essay on Paropkar in Hindi in  500 words 

परोपकार दो शब्दों से मिलकर बना है। पर और उपकार। पर का अर्थ है दुसरों का और उपकार का अर्थ है भला करना। परोपकार का अर्थ होता है दुसरों का भला करना ,उनकी सहायता करना, उनके हित के लिए कार्य करना है। मनुष्य जीवन में परोपकार सबसे सर्वश्रेष्ठ धर्म है। परोपकार की भावना हर व्यक्ति के हृदय में होनी चाहिए। समाज में रहने के लिए परोपकार का मनुष्य के जीवन में होना बहुत जरूरी है। परोपकार ही है जो मनुष्य को पशुओं से अलग करता है वरना खाना और सोना तो उन्हें भी आता है।

प्रकृति भी परोपकार के धर्म को मानती है। वह कोई भी कार्य अपने लिए नहीं करते बल्कि दूसरों के हित के लिए करते हैं। पेड़ कभी अपने फल खुद नहीं खाते, नदियाँ कभी अपना जल खुद नहीं पीती, सूर्य हमेशा दुसरों को ही प्रकाश देता है। परोपकार मनुष्य के अंदर एक स्वाभाविक गुण होता है। परोपकार का अभिप्राय मनुष्य में दया और संवेदनशीलता से है। भगवान ने मनुष्य को तेज दिमाग के साथ साथ संवेदनशील दिल भी दिया है जो कि दुसरों के दुखों को अपना दुख समझता है। अगर हम मुसीबत में किसी पर परोपकार करते है तो वक्त आने पर वह हमारी सहायता भी अवश्य ही करते है। परोपकार मनुष्य का कर्म है जिसे करने से उसका मन शांत रहता है और आत्मा भी तृप्त रहती है। परोपकारी मनुष्य के जीवन को आदर्श माना जाता है।

परोपकार करने वाले व्यक्ति को कभी भी आत्मग्लानि नहीं होती और वह समाज में यश और सम्मान को प्राप्त करते हैं। हमारे इतिहास में बहुत से महा पुरूष हुए है जिन्होंने परोपकार के बल पर ही समाज में सम्मान प्राप्त किया है। अगर आप अमीर है तो अपने धन को गरीबों को कल्याण के लिए प्रयोग करें। भूखे को अन्नदान करे। आप लोगों की यथासंभव सहायता कीजिए तभी समाज में परोपकार की भावना आएगी।

आज के युग में हर व्यक्ति स्वार्थी बनता जा रहा है। वह सिर्फ अपने हित का सोचता है और यह भी ध्यान नहीं रखता कि उसे किए गए कार्य से कहीं किसी को नुकसान न हो रहा हो। पुरे समाज मे स्वार्थ बढ़ने से जंग की संभावना बढ़ती जा रही है। लोग जो पैसे कमाते है उनका कुछ हिस्सा जाकर तीर्थ स्थलों में जाकर दान कर देतें है जो कि परोपकार नहीं है। असली परोपकार एक मनुष्य का दुसरे मनुष्य की सहायता करने में ही है। एक सच्चा परोपकारी व्यक्ति वह है जो केवल अपने लिए न जिए बल्कि दुसरों के हित के लिए भी कार्य करे और उनके लिए भी जिए।

मनुष्य में दया और सहनशीलता तो होनी ही चाहिए। प्रकृति हमें निस्वार्थ रहना सिखाती है और दुसरों का भला करना सिखाती है लेकिन मनुष्य ने उससे भी कुछ नहीं सिखा। परोपकार समाज के लिए बहुत ही जरूरी है। बिना परोपकार के समाज की गति नहीं हो सकती। हर मनुष्य को अपने अंदर परोपकार की भावना रखनी चाहिए और सभी को सम्मान समझना चाहिए। हमें किसी के लिए भी हीन भावना नहीं रखनी चाहिए। परोपकार ही वह कर्म है जो तय करता है कि हमें 84 लाख योनियों में से किस योनी में जन्म प्राप्त होगा।

हम आशा करते हैं कि आप इस निबंध ( Essay on Paropkar in Hindi – परोपकार पर निबंध ) को पसंद करेंगे।

More Articles:

Essay on Satsangati in Hindi – सत्संगति पर निबंध

Essay on Self Confidence in Hindi – आत्मविश्वास पर निबंध

Speech on Discipline in Hindi Language – अनुशासन पर भाषण

Essay on Good Manners in Hindi – शिष्टाचार पर निबंध

Short Paragraph on Good Manners in Hindi – शिष्टाचार पर अनुच्छेद

  • Now Trending:
  • Nepal Earthquake in Hind...
  • Essay on Cancer in Hindi...
  • War and Peace Essay in H...
  • Essay on Yoga Day in Hin...

HindiinHindi

Paropkar essay in hindi परोपकार पर निबंध.

Know information about Philanthropy in Hindi ( परोपकार ). Write an essay on Charity in Hindi for students of class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12. परोपकार पर निबंध। Read essay on Paropkar Essay in Hindi or Essay on Philanthropy in Hindi.

hindiinhindi Paropkar Essay in Hindi

Paropkar Essay in Hindi

विचार-बिंदु – परोपकार का अर्थ • परोपकार का महत्त्व • परोपकार से प्राप्त अलौकिक सुख • परोपकार के विविध रूप और उदाहरण • परोपकार में ही जीवन की सार्थकता।

परोपकार का शाब्दिक अर्थ है – दूसरों का भला। दूसरों की भलाई के बारे में सोचना तथा उसके लिए कार्य करना महान गुण है। यदि सभी अपने गुणों को अपनी मुट्टियों में कैद कर लें तो यह सृष्टि-चक्र पल-भर के लिए भी न चले। वृक्ष अपने लिए नहीं, औरों के लिए फल धारण करते हैं। नदियाँ भी अपना जल स्वयं नहीं पीतीं। परोपकारी मनुष्य संपत्ति का संचय भी औरों के कल्याण के लिए करते हैं। मानव-जीवन भी एक-दूसरे के सहयोग पर निर्भर है। परोपकार का सुख लौकिक नहीं, अलौकिक है।

जब कोई व्यक्ति निस्वार्थ भाव से किसी घायल की सेवा करता है तो उस क्षण वह मनुष्य नहीं, दीनदयालु के पद पर पहुँच जाता है। वह दिव्य सुख प्राप्त करता है। उस सुख की तुलना में धन-दौलत कुछ भी नहीं है। अपने प्रियजनों के लिए कुछ करना अलग बात है। परंतु अपने-पराए सबके लिए कर्म करना सच्चा परोपकार है। भारत में परोपकारी महापुरुषों की कमी नहीं है। यहाँ दधीचि जैसे ऋषि हुए जिन्होंने अपनी जाति के लिए अपने शरीर की हड्डियाँ दान में दे दीं । बुद्ध, महावीर, अशोक, गाँधी, अरविंद जैसे महापुरुषों के जीवन परोपकार के कारण ही महान बन सके हैं। परोपकारी व्यक्ति सदा प्रसन्न, निर्मल और हँसमुख रहता है। वह पूजा के योग्य हो जाता है।

More Essays in Hindi

Paryayvachi Shabd

Essay on Chhayavad in Hindi

Essay on trees in Hindi

Yatharthvad in Hindi

Essay on Liberalisation in Hindi

Thank you for reading. Don’t forget to write your review.

अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारे फेसबुक पेज को लाइक करे।

Share this:

  • Click to share on Facebook (Opens in new window)
  • Click to share on Twitter (Opens in new window)
  • Click to share on LinkedIn (Opens in new window)
  • Click to share on Pinterest (Opens in new window)
  • Click to share on WhatsApp (Opens in new window)

About The Author

hindi essay paropkar

Hindi In Hindi

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Email Address: *

Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.

Notify me of follow-up comments by email.

Notify me of new posts by email.

HindiinHindi

  • Cookie Policy
  • Google Adsense

Hindi Essay on “Paropkar”, “परोपकार”, for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

4 Hindi Essay on “Paropkar” Charity

निबंध नंबर :- 01

“परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम्” महर्षि व्यास ने अट्ठारह पुराणों में इस बात को स्पष्ट किया है कि स्वार्थ और परमार्थ मानव मन की दो प्रवृत्तियाँ हैं। एक को अपनाने से इंसान पुण्य प्राप्त करता है और दूसरे को अपनाने से व्यक्ति पाप एकत्र करता है। हम लोग अधिकांश काम अपने लिए करते हैं। ‘पर’ के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करना ही सच्ची मानवता है। यही धर्म है, यही पुण्य है, यही परोपकार है। प्रकृति हमें परोपकार का संदेश देती है।नदियाँ अपना जल स्वयं नहीं पीतीं, वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाता, बादल पृथ्वी से कुछ नहीं माँगते बल्कि अपनी अमृत वर्षा से उसे शस्य श्यामला बना जाते हैं। हमारी संस्कृति का मूल आधार त्याग और बलिदान है। दधीचि का अस्थिदान, रंतिदेव का अन्नदान, शिवि का मांसदान  इसके अनुपम उदाहरण हैं। मानव जीवन का उद्देश्य धर्म-पालन द्वारा पुण्य अर्जित करते हुए मोक्ष प्राप्त करना है।

मनुज दुग्ध से दनुज रुधिर से अमर सुधा से जीते हैं, (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); किंतु हलाहल भवसागर का शंकर ही पीते हैं।

मन, कर्म एवं वचनों से दूसरों की भलाई करना ‘परोपकार’ कहलाता है। परोपकारी व्यक्ति दुखियों के प्रति उदार, निर्बलों के रक्षक तथा जन-कल्याण की भावना से ओत-प्रोत होते हैं। वे ‘बहुजन हिताय बहुजन सुखाय’ की भावना से प्रेरित होकर कर्तव्य-पथ पर अग्रसर होते हैं। परोपकार की भावना ही समाज को मनुष्यता एवं पवित्रता का। आचरण करने के लिए प्रेरित करती है। मनुष्य स्वार्थ त्यागकर उदारवादी दृष्टिकोण अपनाता है। वास्तव में परोपकारी व्यक्ति ही मनुष्य कहलाने का अधिकारी है। गुप्त जी ने भी कहा है-‘वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।” भगवान श्री राम, श्री कृष्ण, महात्मा बुद्ध, महावीर स्वामी, महर्षि दधीचि, राजा शिवि, महात्मा गांधी जैसे परोपकारी एवं त्यागी पुरुषों ने अपना संपूर्ण जीवन परोपकार के लिए ही उत्सर्ग कर दिया। वर्तमान युग में परोपकार का विशेष महत्त्व है। आज का मनुष्य अधिक स्वार्थी हो गया है एवं संकीर्णताओं से घिर गया है। संकीर्ण विचारों एवं निहित स्वार्थों के कारण ही ईष्र्या, द्वेष, वैर आदि दुष्प्रवृत्तियों का जन्म होता है और वैमनस्य बढ़ता है। इसी कारण आज चारों ओर अविश्वास और युद्ध का-सा वातावरण बना हुआ है। परोपकार से मनुष्य में त्याग एवं बलिदान की भावना का विकास होता है। अतः परोपकार से ही विश्व-कल्याण संभव है।

निबंध नंबर :- 02

मानव एक सामाजिक प्राणी है। परस्पर सहयोग ही सामाजिक जीवन का आधार है। पारिस्परिक सहयो बिना समाज का कार्य सुचारू रूप स नहीं चल सकता। इसीलिए व्यक्ति को चाहिए कि मन, कर्म, वचन और । से दूसरों का हित करने का प्रयास करें। तुलसीदास जी ने कहा है- ‘परहित सरिस धरम नहीं भाई’। प्रकृति कार । कण परोपकार में लगा हुआ है। नदी अपना पानी स्वयं नहीं पीती- दूसरों की प्यास बुझाती है। वृक्ष अपने फल नहीं खाते- दूसरों के खिलाते हैं। सूर्य स्वयं आग में जलकर दूसरों को प्रकाश देता है। वृक्ष स्वयं, धूप, आंधी करते हैं लेकिन दूसरों का छांव देते हैं। स्वार्थ में लिप्त व्यक्ति पशु के समान होता है। परोपकार के कारण सु को जहर पीना पड़ा। परोपकार के कारण ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया। परोपकार के लिए गाँधी जं गोलियां खानी पड़ी। मदर टरेसा ने तो अपना सारा जीवन ही परोपकार में लगा दिया है। भारतीय संस्कृति में परो को मानव कर्त्तव्य बताया गया है। हमारी संस्कृति ने सबके सुख तथा सबके कल्याण की कामना की जाती है पूरी पृथ्वी को ही एक कुटुम्ब के रूप में माना जाता है। सच्चा मनुष्य वही है जो स्वयं के लिए ही न जीए, : अपने जीवन काम में परोपकार भी करें। जिस देश में परोपकारी मनुष्य होते हैं, वे सदैव उन्नति को प्राप्त कर परोपकार के लिए गाँधी जी को गोलियां खानी पड़ी। मदर टरेसा ने तो अपना सारा जीवन ही परोपकार में लगा है। भारतीय संस्कृति में परोपकार को मानव कर्त्तव्य बताया गया। हमारी संस्कृति ने सबके सुख तथा सबके क की कामना की जाती है तथा पूरी पृथ्वी को ही एक कुटुम्ब के रूप में मानाजाता है। सच्चा मनुष्य वही है जो के लिए ही न जीए, अपितु अपने जीवन काव्य में परोपकार भी करें। जिस देश में परोपकारी मनुष्य होते हैं, वे उन्नति को प्राप्त करता है।

निबंध नंबर :- 03

संसार में परोपकार से बढ़कर कोई धर्म नहीं है। अपने संकुचित स्वार्थ से ऊपर उठकर मानव जाति का नि:स्वार्थ उपकार करना मनुष्य का प्रधान कर्तव्य है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज से अलग उसका कोई अस्तित्व नहीं है। समाज में रहकर उसे अपने कार्यों की पूर्ति के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है इसलिए उसे दूसरों की सहायता के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए।

परोपकार से तात्पर्य है-दूसरों की भलाई करना। जब हम स्वार्थ से प्रेरित होकर कोई कार्य करते हैं तो वह परोपकार नहीं होता। किसी गरीब पर दया करना, भूखे को भोजन देना, बीमार की सेवा करना आदि सभी परोपकार के अंतर्गत आते हैं।

परोपकार की भावना मनुष्य का स्वाभाविक गुण है। मनुष्य ही नहीं, प्रकृति भी परोपकार करती है-वृक्ष फल देते हैं, नदियाँ जल देती हैं और सूर्य प्रकाश एवं ताप देता है। परोपकार मानव का धर्म है। भूखों को अन्न देना, नंगों को वस्त्र देना, प्यासे को पानी पिलाना, रोगियों करना-मनुष्य का परम धर्म है। इस धर्म का पालन करने वाला ही मानव है। संसार में उन्हीं व्यक्तियों का नाम अमर होता है, जो दसों लिए जीते और मरते हैं।

परोपकार से अनेक लाभ हैं। इससे व्यक्ति और समाज दोनों का कल्याण होता है। परोपकार से व्यक्ति को सम्मान और संपदा मिली है। परोपकार करने से आत्मिक शांति मिलती है, हृदय पवित्र हो जाता है और मन की सारी पीड़ा दूर हो जाती है। फिर मनुष्य अपने स्वार्थ के विषय में सोचना छोड़ के दूसरों के हित के विषय में सोचने लगता है। परोपकार से ही विश्व-प्रेम की भावना का उदय होता है और सारा संसार कुटुंब के समान दिखाई देने लगता है।

प्राचीन काल से हमारा देश धर्म-प्रधान रहा है। इस देश का इतिहास परोपकारी, त्यागी और तपस्वी लोगों की पावन गाथा से भरा पड़ा है। महर्षि दधीचि ने परोपकार करते हुए अपने शरीर की हड्डियाँ दान में दे दी थीं। राजा रंतिदेव ने 45 दिन भूखे रहकर भी अपने भोजन का थाल एक याचक को दे दिया था। इसी प्रकार कर्ण और हरिश्चंद्र ने भी परोपकार के लिए अपना सबकुछ दान कर दिया था। ईसा मसीह जन-उद्धार के लिए सूली पर चढ़े थे। सुकरात ने मानव हित के लिए विष का प्याला पिया था। महात्मा गाँधी और अन्य देशभक्तों ने देश की स्वतंत्रता के लिए अनेकों कष्ट झेले थे। इस प्रकार इतिहास का एक-एक पृष्ठ परोपकारी महापुरुषों की महान गाथाओं से भरा पड़ा है।

वास्तव में परोपकार मानव जाति के लिए सुख-शांति प्रदान करता है। यह वह मंत्र है जिससे मनुष्य दूसरों के दुखों को अपना दुःख समझ कर उसे दूर करने के प्रयत्न करता है। हमारा कर्तव्य है कि हम परोपकारी लोगों से प्रेरित होकर अपने जीवन-पथ को प्रशस्त करें।

राष्ट्र कवि की कविता की यह पंक्ति हमें यही संदेश देती है –

“ वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।”

निबंध नंबर :- 04

रूप – रेखा  

परोपकार का अर्थ , परोपकार पुण्य और खशी पाने का उपाय है , प्रकृति परोपकार में लगी है , दूसरों की मदद के लिए कष्ट उठाना अच्छा है , परोपकार सबसे बड़ा धर्म है , परोपकार की भावना कम हो रही है।

दूसरों के हित के लिए किया गया स्वार्थ रहित कार्य परोपकार कहलाता है । परोपकार में निजी हित के लिए कोई स्थान नहीं होता है, बल्कि इसके द्वारा दूसरों का कष्ट दूर किया जाता है । मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है । समाज में रहकर उसका कर्त्तव्य बनता है कि वह दु:खी मनुष्यों तथा जीवों की सहायता करे । दीन, दुखी और निर्बल व्यक्तियों की सहायता परोपकार है।

महर्षि व्यास जी ने कहा है कि ‘परोपकाराय पुण्याय पापाय पर पीड़नम् ।’ अर्थात् परोपकार पुण्य है और दूसरों को दुःख देना पाप है । यह कथन पूरी तरह सत्य है क्योंकि परोपकार की बात सभी धर्मों में कही गई है। जिनके हृदय में परोपकार करने की भावना रहती है, वे सज्जन पुरुष कहलाते हैं । सज्जन पुरुषों की विपत्तियाँ अपने-आप नष्ट हो जाती हैं । एक विद्वान हरबर्ट का विचार है कि परोपकार करने की खुशी से दुनिया की सारी खुशियाँ छोटी हैं । सचमुच परोपकार करने से हृदय को वास्तविक खुशी मिलती है।

प्रकृति भी परोपकार में लगी हुई है । सूर्य बिना किसी आशा के हमें प्रकाश और गर्मी देता है । रात के समय चंद्रमा हमें शीतल चाँदनी देता है। वृक्ष जीव-समुदाय के लिए फल प्रदान करते हैं । मिट्टी अनाज देती है। नदियाँ जल भेंट करती हैं । वायु लगातार बहते हुए हमें जीवन देती है । समुद्र अपना जल देकर वर्षा कराता है। इस तरह प्रकृति सदा दूसरों के उपकार में लगी रहती है । बदले में वह कुछ भी नहीं माँगती।

परोपकार में कुछ कष्ट सहना ही पड़ता है । भगवान शंकर ने दूसरों के कल्याण के लिए विष पी लिया था । महर्षि दधीचि ने देवताओं की रक्षा के लिए अपनी हड्डियाँ भेंट कर दी थीं। ईसा मसीह सूली पर चढ़ गए थे। गाँधी जी ने अपने सभी निजी सुखों का त्याग कर दिया था । ये सब उदाहरण बताते हैं कि परोपकार के कार्यों में दु:ख उठाना ही पड़ता है । बदले में परोपकारियों को समाज में सम्मान मिलता है । लोग युगों-युगों तक उन्हें स्मरण करते हैं।

तुलसीदास जी कहते हैं – “ परहित सरिस धर्म नहिं भाई । “ अर्थात परोपकार से बढ़कर और कोई दूसरा धर्म नहीं है । जब कोई परहित का कार्य करता है तो उसकी आत्मा प्रसन्न होती है । परोपकारी दूसरों की सहानुभूति का पात्र बनता है । परन्तु जो दूसरों को सताने में लगा हुआ है वह नरक की ओर एक और कदम बढ़ा देता है । वह धरती पर एक बोझ बनकर जीता है । लोग उसे घृणा की दृष्टि से देखते हैं । उसे समाज में सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता । इसलिए परोपकार को जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य मानकर हमें सदा ऐसे कार्य करने चाहिए जिससे दूसरों की तकलीफ़ कुछ कम होती हो।

आज के समाज में परोपकार की भावना कम हो गई है । बलवान कमजोरों को सताकर अपने कों श्रेष्ठ सिद्ध करने में लगा हुआ है । उसे धर्म-अधर्म की चिन्ता नहीं है । धर्म के नाम पर हट्टे-कट्टे लोगों को भिक्षा दी जाती है । भोजन उसे कराया जाता है जिसके पेट भरे होते हैं । गरीब और दुखी जनता के आँसू पोंछने वाला कोई नहीं है । राष्ट्र-हित के नाम पर अपनी जेबें भरने वालों की कोई कमी नहीं है । आधुनिक संस्कृति में परोपकार के लि, बहुत कम स्थान रह गया है । परन्तु कुछ लोग ऐसे भी हैं जो सच्चे मन से देश और समाज की सेवा कर रहे हैं । ऐसे लोग सचमुच महान होते हैं।

Related Posts

10-Lines-Essay

Absolute-Study

Hindi Essay, English Essay, Punjabi Essay, Biography, General Knowledge, Ielts Essay, Social Issues Essay, Letter Writing in Hindi, English and Punjabi, Moral Stories in Hindi, English and Punjabi.

Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.

1Hindi

परोपकार का महत्व निबंध Essay on Importance of Charity in Hindi

परोपकार का महत्व निबंध Essay on Importance of Charity in Hindi

इस लेख में आप परोपकार का महत्व निबंध Essay on Importance of Charity in Hindi हिन्दी में पढ़ेंगे। इसमे आप परोपकार का अर्थ, इसका महत्व, मानव जीवन का इसमें उद्देश्य, इसके लाभ, प्रकृति में परोपकार का भाव के विषय में पूरी जानकारी।

Table of Content

“परहित सरिस धर्म नहिं भाई”। अर्थात – परोपकार (दूसरों की भलाई) करने जैसा कोई दूसरा धर्म नहीं है।

सभी धर्मो में और परिभाषाओं में अच्छा बनने और अच्छा करने पर जोर दिया गया है, साथ ही दूसरों की भलाई करना तो निस्संदेह ही अच्छा करना है।

सभी मजहबों ने भी एकमत होकर मानवता की सेवा की बात की है, जैसे भूखे को भोजन कराना, वस्त्रहीनों को वस्त्र देना, बीमार लोगों की देखभाल करना, भटकों को सही मार्ग पर लगाना आदि धर्म का कार्य करना है, जो एक परोपकार का भी कार्य हैl दोस्तों आज हम बात करेंगे कि परोपकार का क्या महत्व है और इसके क्या लाभ हैl 

प्रस्तावना शब्द की परिभाषा? Definition of Word Paropkar?

परोपकार शब्द हिंदी के दो शब्द “पर” और “उपकार” से मिलकर बना हैl जिसका शाब्दिक अर्थ बिना स्वार्थ के किसी दूसरे का भला करना, या सहायता करना हैl इसका दूसरा नाम करुना या सेवा भी है, जब मनुष्य के भीतर दूसरे के प्रति सेवा का भाव हो तो उसे ही परोपकार की संज्ञा दी जाती हैl

बचपन से ही हमारे माता-पिता द्वारा हमें यह सिखाया जाता है कि जरुरत के समय हमें दुसरो की मदद करना चाहिएl जो एक मानवता का भी कार्य है, इस विषय पर कई कवियायें और कहानिया भी प्रचलित हैl

परोपकार का अर्थ? Meaning of Charity in Hindi?

ईश्वर द्वारा जब श्रृष्टि की रचना की गयी थी तो उस समय ईश्वर का उद्देश्य यह था कि मनुष्य आपस में एक दूसरे की निस्वार्थ मदद करके अपना विकास करें, क्योंकि परोपकार का अर्थ किसी व्यक्ति की सेवा या उसकी किसी भी प्रकार के मदद करने से हैl

यह गर्मी के समय में प्यासे को पानी पिलाने से लेकर किसी गरीब की बेटी के विवाह में अपना योगदान देना भी हो सकता है। इसका सीधा सा अर्थ यह है कि किसी की मदद करना और उस मदद के एवज़ में उससे किसी भी प्रकार की प्राप्ति की उम्मीद न रखना ही है परोपकार कहलाता हैं।

परोपकार का महत्व Importance of Charity in Hindi

आखिर परोपकार का क्या महत्व है और यह हमारे जीवन में क्यों महत्वपूर्ण है ? यदि देखा जाये तो हमारे जीवन में परोपकार की भावना होना बहुत ही आवश्यक है, दूसरे की जरुरत पर मदद करना ही एक व्यक्ति को महान बनाती है जिसके कारण व्यक्ति समाज में पूजा जाता हैl

यही वो भावना है जो एक साधारण व्यक्ति को असाधारण बना देती है और ऐसे व्यक्ति दुसरो के लिए अपनी जिंदगी लगा देते है और समाज में एक नयी मिसाल कायम करते हैl परोपकार की भावना निस्वार्थ होती है, किसी स्वार्थ के वशीभूत होकर की गयी मदद परोपकार की श्रेणी में नही आतीl शायद ही कोई ऐसा धर्म है जो इससे बढ़कर हैl

भारतीय इतिहास में भी हमें परोपकार के प्रमाण देखने को मिलते है जैसे महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू तथा लाल बहादुर शास्त्री का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है इन महापुरुषों द्वारा मनुष्य की भलाई के लिए अपने घर परिवार का त्याग कर दिया गया था।

मानव जीवन का उद्देश्य Purpose of human life

ईश्वर द्वारा प्रदत्त इस मानवीय जीवन का उददेश है कि हम एक दूसरे की मदद करे। हम अपने बुद्धि, विवेक, कमाई या बल की मदद से परोपकार कर सकते हैl परोपकार से मतलब केवल आर्थिक सहायता करने से नही है, आप चाहे तो अपने बुद्धि, विवेक के सहारे भी किसी की मदद कर सकते हैl

मनुष्य वही है जो दूसरों के लिए काम आए। अंपने लिए तो सभी जीते हैं लेकिन जीवन उसका सफल है जो दूसरों की भलाई करे। संसार में परोपकार ही वह गुण है जिससे मनुष्य के जीवन में सुख की अनुभूति होती है। समाज सेवा की भावना, देश प्रेम की भावना, देश भक्ति की भावना, दुख में पीड़ित लोगों की सहायता करने की भावना यह सब कार्य परोपकारी व्यक्तियों की निशानी है।

इसके विपरीत परपीड़ा अर्थात दूसरों को कष्ट पहुंचाने से बढ़कर कोई नीचता का कार्य नही हो सकता । परहित नि:स्वार्थ होना चाहिए। जहां स्वार्थ का भाव आ गया, वहां परहित रहता ही नही । यदि किसी की भलाई, बदले में कुछ लेकर की तो वह भलाई नहीं एक प्रकार का व्यापार है।

परोपकार से लाभ Benefits of Charity in Hindi

परोपकार की भावना से मनुष्य के हृदय में सुख की अनुभूति होती है और उदारता की भावना पनपती है। इसके लगातार अभ्यास से किसी के प्रति द्वेष तथा ईर्ष्या नहीं होती। परोपकारी मनुष्य न केवल अपने बारे में सोचता है बल्कि दुसरो के सुख दुख का ध्यान भी रखता हैl

ईश्वर ने सभी प्राणियों में सबसे योग्य मनुष्य को बनाया है और परोपकार का गुण ही मनुष्य को पशु से अलग करता है और पूजनीय बनाता है। जीव जंतु भी अपने ऊपर किए गए उपकार के प्रति कृतज्ञ होते हैं ।

परोपकार का सबसे बड़ा लाभ है आत्म संतुष्टि, आत्मा को शांति मिलना कि मैंने दूसरों के हित के लिए यह काम किया है। परोपकार निस्वार्थ भाव से किया जाता है किंतु इसके बदले में परोपकारी प्राणी को वो संपत्ति प्राप्त हो जाती है जो लाखों रुपए देकर भी नहीं खरीदी जा सकती वह संपत्ति है मन का सुख।

परोपकार से आत्मिक व मानसिक शान्ति मिलती है। परोपकारी मनुष्य मर कर भी अमर रहते हैं। इतिहास में कई ऐसे महापुरुष हुए जो अपनी परोपकारिता के लिए जाने जाते है जैसे दानवीर कर्ण, भगवान बुद्ध , महावीर स्वामी , गुरुनानक , महर्षि दयानन्द, विनोबा भावे, महात्मा गांधी आदिl  

प्रकृति में परोपकार का भाव A Sense of Philanthropy in Nature

प्रकृति का कण-कण हमें परोपकार की शिक्षा देता है और प्रकृति के प्रत्येक कार्य में हमें सदैव परोपकार की भावना निहित दिखाई पड़ती है। प्रकृति लगातार रूप से मनुष्य जाति के साथ साथ सभी प्रकार के जीव जंतु के लिए परोपकार का कार्य जारी रखती है।

जैसे नदियाँ परोपकार के लिए बहती है, वृक्ष फलते – फूलते है और धूप में रहकर हमें छाया देता है, सूर्य की किरने सम्पूर्ण संसार को प्रकाशित करती है और प्रकृति को आलोकित रखती है । चन्द्रमा से शीतलता, समुद्र से वर्षा, पेड़ों से फल-फूल और सब्जियाँ, गायों से दूध, वायु से प्राण शक्ति मिलती है।

बादल वर्षा करके पेड़ो को हरा-भरा बनाते हैं, जो जीव- जंतुओं को राहत देते हैं।l इस प्रकार प्रकृति का कण-कण हमें परोपकार की शिक्षा देता हैl यह भी प्रकृति में देखने को मिलता है, कि नदी अपना पानी स्वयं न पीकर प्यासे की प्यास बुझाती है, पेड़ अपना फल स्वयं न खाकर भूखे का पेट भरता हैl

परोपकारी मनुष्य किसी प्राप्ति की आशा से किसी की मदद नही करता बल्कि इंसानियत के नाते दूसरों की भलाई करता है। विज्ञान आज इतना विकसित हो चूका है की आज किसी व्यक्ति के मरने के बाद वो अपनी आंखे किसी को दान में देकर उसके जीवन में प्रकाश ला सकता हैl

दोस्तों आज से हम भी छोटे-छोटे परोपकारी कार्यो को कर सकते हैं। जैसे प्यासे को पानी पीलाना, भूखे को भोजन कराना, अशिक्षितों को शिक्षा देना, जरुरतमं की मदद करना आदि कार्यो को करके परोपकार किया जा सकता है।

आशा करते हैं आपको परोपकार का महत्व निबंध Essay on Importance of Charity in Hindi पढ़कर अच्छा लगा होगा। अपने सुझाव कमेन्ट के माध्यम से हमने जरूर भेजें।

Leave a Comment Cancel reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed .

Net Explanations

परोपकार ही जीवन है पर निबंध (Paropkar hi Jeevan hai Essay in Hindi)

अपने जीवन में हर एक व्यक्ति को परोपकारी बनना जरूरी है। परोपकार एक ऐसा रूप है, जिसके फल हमारे जीवन में मिठास भर देते हैं।परोपकार मानव का धर्म है यह किसी को सीखने की जरूरत नहीं होती, दिन-ब-दिन यह हमारे अंदर खुद ब खुद बने बढ़ती जाती है। परोपकार एक ऐसी भावना है। जो कोई सीख नहीं सकता है। हमारे जीवन में आने वाले अनुभव समय के साथ हमें सिखा देते हैं।

परोपकार ही जीवन है पर लघु और दीर्घ निबंध (Short and Long Essay on Paropkar hi Jeevan hai in Paropkar hi Jeevan hai par Nibandh Hindi mein)

परोपकार पर और उपकार इन दो शब्दों से परोपकार शब्द बनता है। दूसरों के लिए किया गया काम उसके लिए उपकार का रूप होता है। जो हम निस्वार्थ से करते हैं। उसे उपकार कहते हैं। परोपकार मानव जाति के लिए सबसे बड़ा धर्म कहलाता है। हम किसी व्यक्ति को मदद करते हैं या किसी की अच्छे मन से सेवा करते हैं। उसे परोपकार कह सकते हैं। हमारे समाज में परोपकार से अच्छा कोई भी धर्म नहीं माना जाता है।

मानव जीवन में परोपकार बहुत महत्वपूर्ण है। पर उपकार हमारे प्रकृति का ही एक हिस्सा है। जो हमारे भीतर कण-कण में समाया तु है।परोपकार जिस तरह से वृक्ष कभी भी अपना फल नहीं खाते हैं। नदी कभी अपना अपना पानी नहीं पीती है। सूर्य हमें उजाला देकर जाता है। इसी तरह प्रकृति अपना सर्वस्व हमको देखकर हमसे बदले में कुछ भी पानी की कोई भी अपेक्षा नहीं करती है। किसी की भी व्यक्ति की पहचान उसके किए गए परोपकार से की जाती है। जो मनुष्य परोपकार करने के लिए अपना सब कुछ त्याग देता है, वह एक परोपकारी मानव बनकर रह जाता है। अगर हम समाझ में दूसरों की सहायता करने की भावना जितना अधिक कर सकेंगे,उनके लिए हमारा समाज सुखी, समृद्ध ,समाधान कारक बनेगा। परोपकार की भावना मनुष्य का एक स्वाभाविक गुण होता है। दूसरों का अच्छा करना दूसरों की सहायता करना मदद करना ही परोपकार करना होता है जो व्यक्ति दूसरों के लिए अपना सर्वस्व कर बलिदान देता है। उसे हम परोपकारी कहते हैं।

परोपकारी व्यक्ति में दया करूणा होती है।जिसे पिघलने से वह व्यक्ति दूसरों की मदद करता है। जिसे उसके मन को शांति और समाधान होता है। परोपकार के जैसा कोई पुण्य नहीं है।हमारे संस्कृत में जो व्यक्ति खुद दुखी होकर दूसरों को सुखी करता है।वही परोपकारी कहलाता है। परोपकार मानव समाज का एक आधार है। हर व्यक्ति को परोपकारी होना चाहिए, कि दूसरों की मदद करनी चाहिए।यह हमारा मानवी हक है जिसे हमारा समाज सुख समृद्ध हो। हमें खुद परोपकारी बनाकर दूसरों को भी परोपकार के लिए उत्साहित करना चाहिए।

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.

हिंदीपथ - हिंदी भाषा का संसार

परोपकार पर निबंध

“परोपकार पर निबंध” न केवल पाठ्यक्रम की दृष्टि से, बल्कि जीवन-विकास की दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज की प्रगति बिना आत्मत्याग और उपकार की भावना के असंभव है। वस्तुतः यह दैवीय गुण ही आत्म-विकास का सबसे मुख्य साधन है। पढ़ें परोपकार पर निबंध हिंदी में–

परोपकार का अर्थ

परोपकार का अर्थ है स्वार्थ-निरपेक्ष और दूसरों के हितार्थ किया गया कार्य। परपीड़ा-हरण परोपकार है। पारस्परिक विरोध की भावना घटाना, प्रेमभाव बढ़ाना परोपकार है। दीन, दुःखी, दुर्बल की सहायता परोपकार है। आवश्यकता पड़ने पर निःस्वार्थ भाव से दूसरों को सहयोग देना परोपकार है। मन, वचन, कर्म से परहित साधन परोपकार है।

यह भी पढ़ें – दीपावली पर निबंध

परोपकार में प्रवृत्त रहना जीवन की सफलता का लक्षण है (जीवितं सफल तस्य यः परार्थोद्यतः सदा)। महर्षि व्यास जी के कथनानुसार “परोपकारः पुण्याय” अर्थात्‌ परोपकार से पुण्य होता है। परोपकार करने का पुण्य सौ यज्ञों से बढ़कर है। आचार्य चाणक्य मानते हैं कि “जिनके हृदय में सदा परोपकार करने की भावना रहती है, उनकी विपत्तियाँ नष्ट हो जाती हैं और पग-पग पर सम्पत्ति प्राप्त होती है।” स्वामी विवेकानंद अपनी प्रसिद्ध पुस्तक कर्मयोग में कहते हैं कि परोपकार में वस्तुतः हमारा ही उपकार है ।

यह भी पढ़ें – दहेज प्रथा पर निबंध

प्रकृति, देवताओं और महापुरुषों द्वारा उपकार

सूर्य देव की किरणें जगत्‌ को प्रकाश और जीवन प्रदान करती हैं। रात्रि का राजा चन्द्रमा अमृत की वर्षा करता है। वृक्ष मानव-मात्र के लिए फल प्रदान करते हैं। खेती अनाज देती है। सरिताएँ जल अर्पित करती हैं। वायु निरन्तर बहकर जीवन देती है। समुद्र अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति वर्षा रूप में जन-कल्याण के लिए समर्पित करता है। इस प्रकार प्रकृति के सभी तत्त्व पर-हित के लिए समर्पित हैं, इनका निजी स्वार्थ कुछ नहीं। इससे सहज ही परोपकार का महत्व समझ आता है।

भगवान् शंकर ने देव-दानव कल्याणार्थ विष-पान किया। महर्षि दधीचि ने देवगण की रक्षार्थ अपनी हड्डियाँ दान कर दीं। दानवीर कर्ण ने अपने कवच-कुंडल विप्र रूपधारी इन्द्र को दान दे दिए। राजा शिवि ने कबूतर की प्राण-रक्षा के लिए अपना अंग-अंग काट कर दे दिया। राजा रन्तिदेव ने स्वयं भूखे होते हुए भी अपने भाग का भोजन एक भूखे ब्राह्मण को दे दिया। ईसा मसीह सूली पर चढ़े । सुकरात ने जहर पी लिया। भारत की एकता और अखंडता के लिए डॉ. श्यामाप्रसाद मुकर्जी कश्मीर में जाकर बलि हुए। महात्मा गाँधी जनहित के लिए संघर्ष करते रहे। आचार्य विनोबा भावे दरिद्र-नारायण के लिए भूदान माँगते रहे। गोस्वामी तुलसीदास का कथन है–”परहित सरिस धर्म नहिं भाई।” उन्होंने हिन्दू जाति, धर्म और संस्कृति के लिए सर्वस्व-न्यौछार कर अपना धर्म निभाया। उनका ‘ मानस’ हिन्दू जाति का रक्षक कवच बन गया, धर्म-प्रेरक बन गया, मोक्ष-मार्ग का पथ-प्रदर्शक बन गया।

यह भी पढ़ें – माँ पर निबंध

परोपकार का महत्व

परोपकार करते हुए कष्ट तो सहना ही पड़ता है, परन्तु इसमें भी परोपकारी को आत्म संतोष और विशेष सुख मिलता है। प्रत्येक कर्म का चरित्र पर प्रभाव पड़ता है और परोपकार के लिए किया गया कर्म चरित्र को महान बना देता है। कर्म को कर्मयोग में रूपांतरित कर देता है। किरार्तार्जुनीय में कहा गया है, “परोपकार में लगे हुए सज्जनों की प्रवृत्ति पीड़ा के समय भी कल्याणमयी होती है।” माँ कष्ट न उठाए, तो शिशु का कल्याण नहीं होगा। वृक्ष पुराने पत्तों का मोह त्यागें नहीं, तो नव-पल्लवों के दर्शन असम्भव हैं।

परोपकार करने से आत्मा प्रसन्‍न होती है। परोपकारी दूसरों की सहानुभूति का पात्र बनता है। समाज के दीन-हीन पीड़ित वर्ग को जीवन का अवसर देकर समाज में सम्मान प्राप्त करता है। समाज के विभिन्‍न वर्गों में शत्रुता, कटुता और वैमनस्य दूर कर शांति दूत बनता है। धर्म के पथ पर समाज को प्रवृत्त कर ‘मुक्तिदाता’ कहलाता है। राष्ट्र-हित जनता में देश-भक्ति की चिंगारी फूँकने वाला ‘देश-रत्न’ की उपाधि से अलंकृत होता है।

उपकार से कृतज्ञ होकर किया गया प्रत्युपकार परोपकार नहीं। वह सज्जनता का द्योतक हो सकता है। उपकार के बदले अपकार करने वाला न सज्जनता से परिचित है, न परोपकार से। इनसे तो पशु ही श्रेष्ठ हैं, जिनका चमड़ा मानव की सेवा करता है। भगवान्‌ सूर्य की आत्मा कितनी निर्मल है। धरती के जल को कर रूप में जितना ग्रहण करते हैं उसको हजार गुना बनाकर वर्षा के रूप में धरती के कल्यार्थ लौटा देते हैं। उपकार करके प्रत्युपकार की आशा न रखना, “नेकी कर दरिया में डाल देना” परोपकार की सच्ची भावना है।

यह भी पढ़ें – कोविड 19 पर निबंध

सज्जनता और सहानुभूति – परोपकार पर निबंध

परोपकार पर निबंध तब तक पूर्ण नहीं हो सकता, जब तक हम आज की स्थिति का विश्लेषण न करें। आज परोपकार के मानदंड बदल गये हैं; परिभाषा में परिवर्तन आ गया है। धार्मिक नेता धर्म के नाम पर मठाधीश बन स्वर्ण-सिंहासन पर विराजमान हैं! सामाजिक नेता समाज को खंड-खंड कर रहे हैं। राजनीतिक नेता ‘ग़रीबी हटाओ’ के नाम पर अपना घर भर रहे हैं। बाढ़ पीड़ितों के दान से अपना उद्धार कर रहे हैं। ‘अन्त्योदय’ के कार्यक्रम से ग़रीबों का अन्त कर रहे हैं।

रेल के डिब्बे में लेट हुआ यात्री जब बाहर खड़े यात्री को कहता है ‘आगे डिब्बे खाली पड़े हैं’, तो वह कितना उपकार करता है? जब सड़क पर खड़े दुर्घटनाग्रस्त असहाय व्यक्ति से जनता मुख मोड़कर आगे बढ़ जाती है, तो उपकार की वास्तविकता का पता लगता है। आग की लपटों से बचे घर या दुकान के सामान को दर्शक उठाकर ले जाते हैं, तो परोपकार की परिभाषा समझ में आती है। इसीलिए शास्त्रों का कथन है–“जिस शरीर से धर्म न हुआ, यज्ञ न हुआ और परोपकार न हो सका, उस शरीर को धिक्कार है, ऐसे शरीर को पशु-पक्षी भी नहीं छूते।” कबीर परोपकार का महत्व बताते हुए और ऐसे व्यक्तियों को धिक्कारते हुए कहते हैं–

बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर। पंछी को छाया नहीं, फल लागत अति दूर॥

राष्ट्रववि मैथिलीशरण गुप्त ने परोपकार और परोपकारी भावना की कैसी सुन्दर व्याख्या की है–

मरा वही नहीं कि जो जिया न आपके लिए। वही मनुष्य है कि जो, मरे मनुष्य के लिए॥

परोपकार पर निबंध (Paropkar essay in Hindi) आपको कैसा लगा? यदि आप चाहते हों कि इसमें किन्हीं अन्य बिंदुओं का समावेश भी किया जाए, जिससे यह निबंध और उपयोगी हो सके, तो कृपया टिप्पणी करके हमें अवश्य अपनी राय बताएँ।

यह भी पढ़ें – वंडर ऑफ साइंस का निबंध

  • विद्यार्थी जीवन पर निबंध
  • हिंदी दिवस पर निबंध

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

ख्याल रखे.com

पाठकों के पसंदीदा लेख

  • राष्ट्रीय युवा दिवस पर निबंध (National Youth Day Essay In Hindi)
  • उठो, जागो और तब तक ना रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए (Utho jago aur tab tak mat ruko jab tak lakshy ki praapti na ho jae)
  • राष्ट्रीय युवा दिवस पर भाषण - Speech On National Youth Day In Hindi
  • क्रिसमस डे पर निबंध - Christmas Essay In Hindi

परहित सरिस धर्म नहिं भाई – Essay on Paropkar In Hindi

परोपकार का अर्थ और जीवन में परोपकार का महत्व पर निबंध.

Paropkar (परोपकार)

परोपकार शब्द का अर्थ है, अपने स्वयं के भले की चिंता किए बिना दूसरों की मदद करना। वो परोपकार नहीं होता जो स्वार्थ के वशीभूत होकर किया जाए। और न ही किसी पर तरस खा कर मदद कर देना परोपकार है, असल में जब किसी को सच में मदद चाहिये हो और आप उसकी मदद बिना किसी अपेक्षा के कर दें तो वह सबसे बड़ा परोपकार है।

चुकि यह परोपकार निस्वार्थ भाव से किया जाता है इसलिए बदले में परोपकारी प्राणी बड़ा आत्म संतुष्टि (लाभ) मिलता है जिसे लाखों रुपए खर्च करके भी नहीं खरीदा जा सकता। इसलिए परोपकार को मानव धर्म में सर्वोपरि कहा जाता है। परोपकार के समान कोई धर्म नहीं है। परोपकार ऐसा कृत्य है जिससे शत्रु भी मित्र बन जाता है।

इस संदर्भ में प्रकृति हमारी सच्ची शिक्षक है। परोपकार प्रकृति के कण-कण में समाया हुआ है। भरी-पूरी प्रकृति में यह भावना सहज और स्वाभाविक रूप ही पायी जाती हैं। प्रकृति का कण-कण हमें परोपकार की शिक्षा देता है। पृथ्वी परोपकार  के लिए अपने प्राणों का रस निचोड़ कर हमारा पेट भरती है। प्राण – वायु प्रदान करके पर्यावरण और वायुमंडल को शुद्ध करने के साथ – साथ हमारी श्वसन क्रिया में सहायक होता है। इसी प्रकार, अनन्त जल-राशि का भार वहन करती हुई नदियाँ अपने जीवन के प्रभात से सन्ध्या तक अनवरत रूप से एक स्थान से दूसरे स्थान तक आजीवन प्रभावित होती रहती हैं, केवल दूसरों के कल्याण के लिए।

आँधी और तूफानों के अत्याचारों को वृक्ष मौन होकर सह लेते हैं, वे सोचते हैं संभवतः कभी वह दिन भी आयेगा जब थके – माँदे मुसाफिरों को हम अपनी छाया प्रदान कर तथा क्षुधार्तों को अपने मधुर फल देकर अपना जीवन सफल कर सकेंगे। जबकि इसमें उनका कोई लाभ नहीं होता है।

मेघों ने धरिणी से प्रत्युपकार में कभी अन्न की याचना नहीं की, युग – युग से वे इसी प्रकार का जल भर कर लाते हैं और धरिणी के अंचल को आर्द्र करके एक बार फिर लौट जाते हैं, परन्तु प्रतिदान का शब्द कभी उनके मुख तक नहीं आता है। जिस वृक्ष को पतझड़ ठूँठ बना देता है, वसंत के पत्ते उसे निःस्वार्थ स-वसना नारी की भाँती शोभायमान बना देता है।

संतोष ही सच्चा धन Click Here

जाको राखे साइयां मार सके न कोय Click Here

प्रकृति को लक्ष्य कर के हमारे कहने का आशय बस इतना है कि जब प्रकृति अपनी परोपकार वृत्ति का निर्वाह निरन्तर करती रहती हैं। प्रकृति पदार्थ के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर देती है। तब व्यक्ति तो एक विवेकशील प्राणी हैं। जिसके भीतर परोपकार, सहयोग की भावना संबंधी मूल प्रवृत्ति के रूप में मौजूद होती है। इस मौलिक और ताकतवर भावना को उसे भी निःस्वार्थ और निराभिमानता से अपने भीतर उपजने का मौका देना चाहिए। यही मानवता का सच्चा आदर्श है। यही सच्ची मनुष्यता है।

हमारे राष्ट्र कवि मैथलीशरण गुप्त ने भी कहा है कि ‘वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।’ अर्थात मनुष्य वही है जो केवल अपने सुख – दुःख की चिंता में लीन नहीं रहता, केवल अपने स्वार्थ की बात नहीं सोचता, जिसका शरीर लेने के लिए नहीं देने के लिए है जिसके जीवन का अर्थ खाना, पीना और मौज करना नहीं है, अपितु निःस्वार्थ भाव से मनुष्य की सेवा करना है।

यह परोपकार किसी भी रूप में कर सकते है। धन है तो निर्धनों की सहायता करके। शिक्षा है तो उसको अशिक्षितों में वितरित कर के। बल है तो आशक्तों की मदद कर के। अर्थात परहित साधना ही मनुष्यता है, यही सबसे बड़ा भगवन भजन है। वास्तव में परोपकार के समानं न कोई दूसरा धर्म है और न पुण्य। परोपकार  एक उत्तम आदर्श का प्रतीक है।

महाकवि संत सूरदास का जीवन परिचय Click Here

संत कबीर दास का जीवन परिचय Click Here

संत कबीर दास के दोहे अर्थ सहित Click Here

मानवता का उद्देश्य और मानव जीवन की सार्थकता, केवल इसी में है कि वह अपने कल्याण के साथ दूसरों के कल्याण की सोचे। उसका कर्तव्य है कि स्वयं उठे और दूसरों को भी उठाए। जीवन में कुछ भी स्वत: हासिल नहीं होता, परोपकार की भावना से ही मानव समाज फलता – फूलता है, मानव समाज की उन्नति परोपकार पर ही टिकी हुई है।

यदि समाज में रहने वाले व्यक्ति सामाजिक हित के स्थान पर अपनी व्यक्तिगत स्वार्थ – साधना में लिप्त रहें, समाज के सुख – दुःख से नाता तोड़ दें, तो ऐसी स्थिति से हमारा समस्त समाज आँधी के प्रबल वेग से उड़ते हुए तिनकों की भाँती छिन्न – छिन्न हो जाएगा। अत: समाज की उन्नति के लिए यह आवश्यक है कि समाज में जीवन यापन करने वाले प्रत्येक व्यक्ति परोपकार के आदर्श से अपने जीवन का निर्माण करे।

आत्म-शक्ति और जीवन का सच्चा आनन्द परोपकार से ही प्राप्त होता है। परोपकारी पुरुषों की यशचंद्रिका ही संसार में छिटकती है। सभी लोग श्रद्धा और आदर की निगाहों से उन्हें देखतें हैं। देवताओं के समान उनकी पूजा करते हैं। राजा केवल शक्ति के बल पर मनुष्य शरीर पर अधिकार करता है, परन्तु परोपकारी मनुष्य गरीबों से लेकर अमीरों तक के हृदय पर शासन करता है। वह अपने जीवनकाल में ही यश का भागी नहीं बनता, अपितु मृत्यु के उपरांत भी उसका यश संसार में छाया रहता है। वह मरकर भी अमर बनता है।

भारत भूमि पर ऐसे बहुत से महान लोग हुए हैं जिन्होंने बहुत परोपकार के कार्य किये हैं, यहाँ सभी का नाम गिनाना मुश्किल है पर महात्मा गाँधी , गौतम बुद्ध, महावीर स्वामी, ईसा मसीह ऐसी विभूतियाँ हैं जिन्होंने मानव जाति के सम्मान लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया। अत: हमारा भी कर्तव्य हैं कि हम अपने इन महापुरुषों के जीवन का अनुसरण करें । यही हमारे जीवन का सबसे बड़ा धर्म है।

संत कबीर दास के दोहे Click Here

परोपकार पर निबंध  के इस प्रेरणादायी लेख के साथ हम चाहते है कि हमारे Facebook Page को भी पसंद करे | और हाँ यदि future posts सीधे अपने inbox में पाना चाहते है तो इसके लिए आप हमारी  email subscription  भी ले सकते है जो बिलकुल मुफ्त है |

' src=

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

परोपकार पर निबंध Essay on paropkar in hindi

Essay on paropkar in hindi.

हेलो दोस्तों कैसे हैं आप सभी,दोस्तों आज का हमारा आर्टिकल हमारा सबसे महत्वपूर्ण आर्टिकल है आज के हमारे इस आर्टिकल nibandh on paropkar in hindi में हम परोपकार के बारे में जानेंगे.परोपकार के ऊपर लिखे हमारे इस निबंध का उपयोग विद्यार्थी अपने स्कूल,कॉलेज की परीक्षा में निबंध लिखने के लिए यहां से जानकारी ले सकते हैं साथ में अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए भी आप इस निबंध को पढ़िए

Essay on paropkar in hindi

परोपकार मनुष्य की एक ऐसी भावना है जिसमें वह दूसरों के बारे में,दूसरों के भले के बारे में,दूसरो के अच्छे के बारे में सोचता है कहने का मतलब यह है कि दूसरों पर किया गया उपकार ही परोपकार कहलाता है वास्तव में परोपकार की भावना हर एक इंसान के अंदर होनी चाहिए परोपकार जो भी व्यक्ति करता है वास्तव में वह दूसरों के लिए खास होता है उसका मान सम्मान भी होता है हम सभी को जीवन में परोपकार करना चाहिए क्योंकि मानव का धर्म परोपकार करना है.

आज हम देखें तो बदलते जमाने के साथ लोग अपने आप में व्यस्त हो गए हैं उनके पास खुद को,अपने परिवार वालों को समय देने के लिए समय नहीं है वह दूसरों के बारे में क्या सोचेंगे लेकिन सच्चा मनुष्य वही है जो दूसरों पर उपकार करें,परोपकार करें.परोपकार वास्तव में हर एक मनुष्य को करना चाहिए.

सिर्फ मनुष्य ही नहीं बल्कि हर कोई परोपकार कर सकता है.आज हम देखें तो बादल पानी बर्षाते हैं जो मनुष्य और हर एक जीव जंतु के लिए जरूरी है,फूल हमें खुशबू प्रदान करते हैं जो हम ईश्वर के चरणों में चढ़ाते हैं गाय माता हमें दूध देती है उसका भी हम पर उपकार होता है,नदी हमें शीतल जल प्रदान करती है जिससे हमारा शरीर शीतल होता हैं, वायु श्वास लेने के काम आती है,पेड़-पौधे बिना अपने फायदे के राहगीरों को फल,छाये उपलब्ध करवाते हैं वास्तव में यह सभी प्रकृति की देन है जो दूसरों पर उपकार ही करते रहते हैं मनुष्य का जन्म भी दूसरों पर उपकार करने के लिए ही हुआ है हमें दूसरों पर उपकार जरूर करना चाहिए.

दूसरों पर परोपकार कैसे करें-

दूसरों पर परोपकार करने के लिए हमें चाहिए कि हम गरीबों को दान दें उनकी सहायता करें,भिखारियों को भिक्षा दे,जरूरतमंद की मदद करें निसहायो की सहायता करें. हमें चाहिए कि हम अंधो को रास्ता दिखाएं, अपंगों की सहायता करें जो इंसान शरीर से किसी भी प्रकार से सक्षम नही है उसकी हम मदद करके परोपकार कर सकते हैं.

हमें चाहिए कि हम जीव जंतुओ की मदद करें गर्मियों के मौसम में घर के बाहर जीव जंतुओं के लिए पानी की व्यवस्था करें जिससे उनकी मदद हो सके.अगर हमारे पास धन दौलत अधिक है तो हमें चाहिए कि हम किसी चैरिटी में दान करें, बुजुर्गों की मदद करें उन्हें हर तरह से सहायता उपलब्ध करें. हमें चाहिए कि हम भूखो को खाना खिलाएं,प्यासे को पानी पिलाएं यहां तक किसी भी जीव जंतु की हर तरह से मदद करने की कोशिश करें क्योंकि मानव का यही कर्तव्य है.

कुछ परोपकारी महान लोगों के बारे में-

हमारे इस संसार में बहुत सारे ऐसे महान लोग अवतरित हुए हैं जिन्होंने वास्तव में परोपकार किया है वह युग युग तक हमेशा याद रहेंगे राजा शिवि जो कि एक महान राजा थे जो गरीबों की सहायता करते थे उन पर परोपकार किया करते थे उन्होंने एक कबूतर की जान बचाने के लिए यानी कबूतर पर परोपकार करने के लिए अपने शरीर का मांस भी एक बाज को दे दिया था .

महात्मा गांधी ने अपना पूरा जीवन देश की स्वतंत्रता के लिए लगा दिया था यहां तक कि अपने प्राणों का बलिदान भी उन्होंने देश की मदद के लिये किया. दानवीर कर्ण जो कि किसी को भी अपने यहां से वापस नहीं लौटाते थे उन्होंने अपने कवच और कुंडल दान कर दिए थे उन्होंने अपने प्राणों के बारे में भी एक पल के लिए नहीं सोचा . ऐसे महान लोगों को यह दुनिया हमेशा याद रखती हैं .

परोपकार से लाभ-

परोपकार से एक नहीं कई सारे लाभ हैं जब हम किसी दूसरे पर परोपकार करते हैं जो समाज में हमारी छवि बनती है लोग हमेशा हमारा सम्मान करते हैं और हमेशा हमें याद रखते हैं परोपकार की वजह से ही ईश्वर हम पर खुश होता है हमें बहुत पुण्य मिलता है परोपकार जब हम करते हैं तभी हम एक सच्चे इंसान कहलाते हैं.

परोपकार करने से दूसरों को लाभ मिलता है आज हमारी इस दुनिया में बहुत सारे लोग निसहाय हैं उनकी मदद होती है जब हम परोपकार करते हैं तब हमें आत्म शांति मिलती है,दिल से खुशी मिलती है परोपकार करने से ही घर में सुख समृद्धि आती है जब हम किसी दूसरे पर परोपकार करते हैं तो वास्तव में हमारी भी मदद होती है जब भी हम किसी विपरीत परिस्थिति में पडते हैं तो वह हमारी भी सहायता करता है.

दया और प्रेम की भावना है परोपकार-

वास्तव में परोपकार दया और प्रेम की भावना है जो इंसान दूसरों पर परोपकार करता है उसमें दूसरों के प्रति दया और प्रेम की भावना जरूर होती है वह खुद से ज्यादा दूसरों के बारे में सोचता है वह कभी भी दूसरों का बुरा नहीं सोचता और हमेशा दूसरों को दुखी देखकर उसके अंदर दया भाव उत्पन्न होती है और वह उसपर उपकार करता है.

वास्तव में परोपकार इंसान का एक बहुत ही महत्वपूर्ण गुण है जो इंसान परोपकार करता है वह बहुत सारे पुण्यो को एकत्रित कर लेता है परोपकारी व्यक्ति हमेशा हमेशा के लिए दुनिया को याद रहता है,लोग उसे हमेशा याद रखते हैं,सम्मान देते हैं उसकी पूजा करते हैं हमें भी हमारे जीवन में परोपकार जरूर करना चाहिए.

  • परोपकार पर आधारित कविता Poem on paropkar in hindi
  • परोपकार पर अनमोल वचन “paropkar quotes in hindi”

दोस्तों अगर आपको हमारा यह आर्टिकल Essay on paropkar in hindi पसंद आए तो इसे शेयर जरूर करें और हमारा Facebook पेज लाइक करना ना भूले और हमें कमेंटस के जरिए बताएं कि आपको हमारा यह आर्टिकल nibandh on paropkar in hindi कैसा लगा इसी तरह नए-नए आर्टिकल को सीधे अपने ईमेल पर पाने के लिए हमें सब्सक्राइब जरूर करें ।

Related Posts

hindi essay paropkar

kamlesh kushwah

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Email Address: *

Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.

Hindi Facts

2 Best Essay on Paropkar in Hindi | परोपकार पर निबंध

हैल्लो दोस्तों कैसे है आप सब आपका बहुत स्वागत है इस ब्लॉग पर। हमने इस आर्टिकल में Essay on Paropkar in Hindi पर 2 निबंध लिखे है जो कक्षा 5 से लेकर Higher Level के बच्चो के लिए लाभदायी होगा। आप इस ब्लॉग पर लिखे गए Essay को अपने Exams या परीक्षा में लिख सकते हैं ।

क्या आप खुद से अच्छा निबंध लिखना चाहते है – Essay Writing in Hindi

परोपकार पर निबंध | Essay on Paropkar in Hindi (900 Words)

Paropkar के सम्बन्ध में हमारे ऋषि-मुनियों ने, हमारे धर्म-ग्रन्थों में अनेक प्रकार से चर्चाएँ की हैं। केवल चर्चाएँ ही नहीं की, अपतुि उसके अनुसार अपने जीवन को जिया। जीवन की सार्थकता परोपकार में ही निहित है, इसके लिए उन्होंने जो सिद्धान्त बनाए उसके अनुसार स्वयं उस पर चले। महाभारत के प्रणेता, पुराणों के रचनाकार श्री वेदव्यास जी ने परोपकार के महत्त्व को विशेष रूप से स्वीकारते हुए कहा कि

अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनंद्वयम् । परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम्।

इसी सन्दर्भ में श्री तुलसीदास जी ने कहा है

परहित सरिस धर्म नहिं भाई। पर पीड़ा सम नहि अधमाई।।

परोपकार और प्रकृति

Paropkar के प्रति तो प्रकृति भी सदैव तत्पर रहती है। प्रकृति की परोपकार भावना से ही सम्पूर्ण विश्व चलायमान है। प्रकृति से प्रेरित होकर मनुष्य को परोपकार के लिए तत्पर रहना उचित है। प्रकृति के उपादानों के बारे में कहा जाता है कि वृक्ष दूसरों को फल देते हैं, छाया देते हैं, स्वयं धूप में खड़े रहते हैं। कोई भी उनसे निराश होकर नहीं जाता है उनका अपना सब कुछ परार्थ के लिए होता है। इसी प्रकार नदियाँ स्वयं दूसरों के लिए निरन्तर निनाद करती हुई बहती रहती हैं। इस विषय में कवि ने कहा है

वृक्ष कबहुँ नहिं फल भखै, नदी न संचे नीर। परमारथ के कारने साधुन धरा शरीर।।

इस प्रकार सम्पूर्ण प्रकृति अपने आचरण से लोगों को सन्देश देती हुई दिखाई देती है और परार्थ के लिए प्रेरणा लेनी प्रतीत होती है। प्रकति से प्रेरित होकर महापुरुषों का भी जीवन परोपकार में व्यतीत होता है उनकी संपत्ति का संचय दान के लिए होता है। प्रकति के उपादान निरन्तर परोपकार करते हुए दिखाई देते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि उनका कार्य ही परोपकार है। चन्द्र उदय होता है शीतलता प्रदान करता है चला जाता है। सूर्य उदाय होता है प्रकाश फैलाता है और चला जाता है। पष्प खिलते हैं. सगन्ध फैलाते हैं और मुझी जाते हैं। परोपकार में ही अलौकिक सुख की अनुभूति होती है।

परोपकार और भारतीय संस्कृति

भारतीय-संस्कृति में परोपकार के महत्त्व को सर्वोपरि माना है। भारत के मनीषियों ने जो उदाहरण प्रस्तुत किए, ऐसे उदाहरण धरती क्या सम्पर्ण ब्रह्माण्ड में भी नहीं सुने जाते हैं। यहाँ महर्षि दधीचि से उनकी परोपकार भावना से विदित होकर देवता भी सहायता के लिए याचना करते हैं और महर्षि अपने जीवन की चिन्ता किए बिना सहर्ष उन्हें हड्डियाँ तक देते हैं। याचक के रूप में आए इन्द्र को दानवीर कर्ण अपने जीवन-रूप कवच और कुण्डलों को अपने हाथ से उतारकर देते हैं।

राजा रन्तिदेव स्वयं भूखे होते हुए आए अतिथि को भोजन देते हैं। इस परोपकार की भावना से यहाँ की संस्कृति में अतिथि को देवता समझते है। विश्व में भारतीय संस्कृति ऐसी है जिसमें परोपकार को सर्वोपरि धर्म माना गया है। इसलिए तो हमारे धर्म-ग्रन्थों में सभी के कल्याण की कामना की गई है

सर्वेभवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभागभवेत।

Paropkar और स्वार्थ

इस तरह त्याग और बलिदान के लिए भारत-भूमि विश्व क्या सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में अप्रतिम हैं। अतः जीवन की सार्थकता कविवर मैथिलीशरण गुप्त ने परोपकार में ही बताई है

“वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे” कि यदि परोपकार की प्रक्रिया समाप्त हो जाए तो संसार ही समाप्त हो जाएगा। इसलिए प्रकृति भी लोगों को निरन्तर प्रेरित करती है कि सुखमय जीवन जीना चाहते हो तो यथा सम्भव परोपकार करें। परोपकार में स्वार्थ की भावना नहीं होती है। आज परोपकार में मनुष्य अपना स्वार्थ देखने लगा है। वणिक-बुद्धि से अपने हानि की गणना कर परोपकार की ओर प्रेरित होता है। इस भावना के अद्भूत होने से पारस्परिक वैमनस्यता बढ़ी है। द्वेष, ईर्ष्या ने स्थान ले लिया है। लोगों में दूरियाँ बढ़ी हैं। आपद्-समय में सहायता करना भूलते जा रहे हैं जिससे मनुष्य एकाकी जीवन जीने का आदी होता जा रहा है।

सामूहिकता की भावना नष्ट होती जा रही है, क्योंकि आज मनुष्य परोपकार से दूर होता जा रहा है। एक-दूसरे से दूरियाँ बनाने लगे हैं। उसे डर लगने लगा है कि व्यक्ति परोपकार की भावना लेकर हमसे परोपकार की अपेक्षा न करे। अतः Paropkar के सूत्र इतने ढीले हो गए हैं कि परोपकार में भी लोग, लोगों का स्वार्थ देखते हैं। इसका कारण है कि दो से चार बनाने में लगा मनुष्य इतना स्वार्थी हो गया है कि पर-पीड़ा का अनुभव नहीं होता है। प्रकृति समय-समय पर सावधान कर रही है। कि परोपकार से दूर मत हो, अन्यथा जीवन सरस न होकर नीरस हो जाएगा।

जीवन में सुख की अनुभूति परोपकार से होती है। तो परोपकार का महत्त्व स्वयं ही प्रतीत होने लगता है। स्वयं प्रगति की ओर बढ़ते हुए दूसरों को अपने साथ ले चलना मनुष्य का ध्येय होगा तो सम्पूर्ण मानवता धन्य होगी। मात्र अपने स्वार्थ में डूबे रहना तो पशु प्रवृत्ति है। मनुष्यता से ही मनुष्य होता है। भूखे को भोजन देना, प्यासे को पानी देना ऐसी भावना तो मनुष्य में होनी चाहिए। इतनी भावना भी समाप्त हो जाती है तो पशुवत जीवन है।

जिस दिन Paropkar की भावना पूर्णतः समाप्त हो जाएगी उस दिन धरती की शस्य-स्यामला न रहेगी, माता का मातृत्व स्नेह समाप्त हो जाएगा। पुत्र अपनी मर्यादा को भूल जाएगा। अन्ततः मानव बूढ़े सिंह समूह की तरह इधर-उधर ताकता हुआ, पानी के लिए पुकार लगाता हुआ अपने ही मैल की दुर्गन्ध में सांस लेने के लिए विवश हो जाएगा। अतः सम्पर्ण सष्टि आज भी सहयोग की भावना से चल रही है। यह भावना समाप्त होते ही सब उलट-पुलट हो जाएगा। इसलिए श्री तुलसी ने कहा

परहित सरिस धर्म नहिं भाई। पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।।

Paropkar in Hindi Par Bhashan (250 Words)

अध्यक्ष महोदय, प्रबुद्ध श्रोताओ और सुबुद्ध मित्रो!

मेरे लिए आज विशेष प्रसन्नता ओर गर्व का अवसर है कि मुझे आपके सामने आज परोपकार जैसे महत्वपूर्ण विषय पर अपने विचार प्रकट करने का अवसर मिल रहा है। आशा है कि आप मेरे विचारों को ध्यान से सुनकर मुझे अनुगृहीत करेंगे।

Paropkar शब्द बड़ा महिमाशाली शब्द है, बड़ा अद्भूत ! यह दो पदों से बना है-” पर’ और ‘उपकार’! ‘पर’ यानी दूसरा, यानी गैर और अपरिचित। उपकार तो हम अपने भाई-बहनों पुत्र-पुत्रियों और सगे-संबंधियों पर भी करते हैं, पर वह परोपकार नहीं है। परोपकार वह है जो हम परायों के साथ करते हैं, अपरिचितों के साथ करते हैं; क्योंकि अपनों के साथ किए गए उपकार में कहीं न कहीं हमारा कोई न कोई स्वार्थ छिपा रहता है। जब हम किसी गैर के साथ कोई भलाई का काम करते हैं, जब हम किसी अनजान के आ· पोंछते हैं, जब हम किसी अपरिचित के होठों पर मुस्कान बिखेरते हैं, तब हम सच्चे अर्थों में Paropkar करते हैं।

जब हम किसी व्यक्ति के कष्टों, पीड़ाओं और अभावों को किसी भी अपने संबंध अथवा स्वार्थ-सीमा से बाहर रखकर दूर करने का प्रयत्न करते हैं तभी हम परोपकार करते हैं। कुछ लोग तो अपने शत्रु और विरोधी तक को दुख-कष्ट में देखकर उस पर उपकार करने से नहीं कतराते। स्वामी दयानंद सरस्वती को जिस रसोइये ने दूध में विष दिया था, उसी को उन्होंने रुपयों की एक थैली देते हुए कहा था, “जितना दूर हो सके, भाग जाओ, नहीं तो सुबह होते ही राजा तुम्हें फाँसी पर लटका देंगे।”

अनेक महापुरुषों ने अपने प्राण देकर मानव जाति की सेवा की। महर्षि दधीचि ने देवजाति के कल्याण के लिए अपनी अस्थियों को दान में दे-दिया था।

तो दोस्तों आपको यह Essay on Paropkar in Hindi पर यह निबंध कैसा लगा। कमेंट करके जरूर बताये। अगर आपको इस निबंध में कोई गलती नजर आये या आप कुछ सलाह देना चाहे तो कमेंट करके बता सकते है।

जीवनी पढ़ें अंग्रेजी भाषा में – Bollywoodbiofacts

Leave a Comment Cancel reply

Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.

Humhindi.in

परोपकार पर निबंध ? Essay on Paropkar in Hindi ?

हेलो दोस्तों आज हम आपके लिए लाये है एक नयी तरह के आर्टिकल जिसका नाम है Essay on Paropkar in Hindi । इसमें हम आपको बातयेंगे की परोपकार पर निबंध कैसे लिखते है जो की आपके लिए बहुत उपयोगी होग। 

Essay on Paropkar in Hindi

essay on paropkar in hindi

प्रस्तावना :

परोपकार दो शब्दों पर + उपकार के मेल से बना है, जिसका अर्थ है ‘दूसरों का हित’ अपने व्यक्तिगत हित की परवाह किए बिना दूसरों की भलाई के लिए कार्य करना ही परोपकार है। परोपकार के लिए त्याग की भावना का होना बहुत आवश्यक है। परोपकार की महिमा का गुणगान तुलसीदास ने भी किया है

‘परहित सरस धर्म नहि भाई। पर पीडा सम नहिं अधमाई।’

अर्थात् दूसरों का उपकार करने से बड़ा कोई धर्म नहीं है तथा दूसरों को पीड़ा देने से बढ़कर कोई पाप नहीं है।

प्रकृति तथा परोपकार : परोपकार की सच्ची शिक्षा हमें प्रकृति से ही मिलती है। प्रकृति तो केवल परोपकार ही करना जानती है। वृक्ष अपने फलों को स्वयं नहीं खाते, फूल अपनी सुगंध स्वयं नहीं ग्रहण करते। नदियाँ दूसरों की प्यास बुझाती है। सूर्यचन्द्रमा, तारे सब निमित्त समय पर निकल आते घरती सबका वो चुपचाप सहती है, वृक्ष अपनी छाया थके पथिक को निस्वार्थ भाव से देते हैं ठीक इसी प्रकार महापुरुषों का पूरा जीवन परोपकार करने में ही व्यतीत हो जाता है।

  • विषैले फलों का पेड़ की ज्ञान वर्धन वाली कहानी Short Story For Kids
  • आलस्य पर निबंध – Essay on Laziness in Hindi @ 2018
  • आदर्श सूक्तियां और अनमोल वचन Suktiyan in Hindi 2018
  • स्वास्थ्य ही धन है पर भाषण Speech on Health is Wealth in Hindi
  • शिक्षक दिवस पर भाषण Teachers Day Speech in Hindi @ 2018

परोपकार कैसे किया जाए :

प्रकृति की ही तरह हम सब भी परोपकार कर सकते हैं। भूखे को रोटी खिलाकरप्यासे को पानी पिलाकरकिसी बुजुर्ग को सड़क पार कराकरकिसे भूलेभटके को सही राह दिखाकरकिसी रोगी को अस्पताल पहुँचाकरकुंए खुदवाकरअशिक्षितों को शिक्षा देकर, बच्चों को खिलोने देकरअबलाओं तथा पीड़िताओं की सहायता करके हम परोपकार ही कर रहे होते हैं। यदि हमारे पास धन की बहुतायत है तो निर्धनों तथा जरुरतमंदों में धन बाँटकर और यदि धन की कमी है तो अपने तन और मन से उनकी सहायता करके परोपकार कर सकते हैं।

परोपकार के उदाहरण

हमारे इतिहास में परोपकारी व्यक्तियों के अनेक उदाहरण हैं। महर्षि दधीचि ने देवताओं की रक्षा के लिए अपनी अस्थियों को भी दान में दे दिया था। राजा शिवि ने एक घायल कबूतर के प्राणों की रक्षा के लिए भूखे बाज को अपने शरीर का माँस काटकर दे दिया था। महान दानवीर कर्ण ने खुशीखुशी अपने कवच और कुंडल सुरपति को दान परोपकार की महत्ता : परोपकार की महिमा अवर्णनीय है। परोपकार करने से हमें आत्मिक तथा मानसिक शान्ति मिलती है। परोपकारी कार्य करने से हमें यश की प्राप्ति तो होती ही , साथसाथ हम जनजन के हदय में श्रद्धा के पात्र बन जाते हैं। हर इंसान की पहचान उसके कायों से ही होती है। अपने लिए तो सभी जीते हैं, लेकिन सच्चा जीवन तो वही जीत है जो दूसरों के काम आता है। अपने परोपकारी कार्यों के द्वारा ही मानव समाज तथा राष्ट्र दोनों ऊपर उठ सकता है। दानवीर कर्णमहावीर, गौतम रामचन्द्रजीमहात्मा गाँधी, दयानन्द सरस्वतीगुरुनानक, मदर टेरेसा, विनोवा भावे ऐसे ही व्यक्ति थे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन दूसरों की भलाई में लगा दिया था।

समय तथा पात्र को ध्यान में रखकर किया गया परोपकार सबसे बड़ी सम्पत्ति है। जिस प्रकार मेंहदी बाँटने वाले व्यक्ति के स्वयं के हाथ भी लाल हो जाते , उसी प्रकार दूसरों का परोपकार करतेकरते इंसान अपना भी परोपकार कर लेता है, अर्थात् उसका परलोक सुधर जाता है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को परोपकारी कार्य कर्तव्य समझकर पूरी निष्ठा अपना से करने चाहिएकिसी निजी स्वार्थ के वशीभूत होकर किया गया परोपकार किसी काम का नहीं होता है।

' src=

Romi Sharma

I love to write on humhindi.in You can Download Ganesha , Sai Baba , Lord Shiva & Other Indian God Images

Related Posts

essay on Taj Mahal

ताजमहल पर निबंध Essay on Taj Mahal in Hindi

Essay on Technology in Hindi

विज्ञान और तकनीकी पर निबंध Essay on Technology in Hindi

Essay on Television in Hindi

टेलीविजन पर निबंध Essay on Television in Hindi @ 2018

Essay on Summer Vacation in Hindi

गर्मी की छुट्टी पर निबंध Essay on Summer Vacation in Hindi

One thought on “ परोपकार पर निबंध essay on paropkar in hindi ”.

I know this web site offers quality depending articles or reviews and extra information, is there any other web page which provides these things in quality?

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed .

IMAGES

  1. Paropkar Essay in Hindi

    hindi essay paropkar

  2. Paropkar Essay in Hindi

    hindi essay paropkar

  3. परोपकार पर निबंध

    hindi essay paropkar

  4. परोपकार पर हिंदी निबंध

    hindi essay paropkar

  5. Images Meaning Of Paropkar In Hindi Ideas

    hindi essay paropkar

  6. परोपकार पर निबंध (Paropkar Essay In Hindi Language)

    hindi essay paropkar

VIDEO

  1. paropkar Param dharm

  2. KRUSHNA GURU

  3. Ese paropkar se bhagwan bachaye #vishnu #maharaj

  4. paropkar kaise karen yah Chidiya batati hai

  5. Lesson 8 Paropkar Chaturthi Vibhakti (Sanskrit) Surabhi " Class 6th " Mp Board Ncert

  6. हिन्दी सप्रसंग व्याख्या

COMMENTS

  1. परोपकार पर निबंध-Essay On Paropkar In Hindi (100, 200, 300, 400, 500

    परोपकार पर निबंध-Essay On Paropkar In Hindi परोपकार पर निबंध 1 (100 शब्द) जिस समाज में दूसरों की सहायता करने की भावना जितनी अधिक होगी वह समाज उतना ही सुखी और समृद्ध होगा ...

  2. परोपकार पर निबंध » हिंदी निबंध, Nibandh

    परोपकार पर छोटे-बडे निबंध (Short and Long Essay on Philanthropy in Hindi) #1. [100,150, 250 words] परोपकार पर निबंध परिचय: परोपकार एक ऐसी भावना होती है जो हर किसी को अपने अन्दर रखना चहिये। इसे हर ...

  3. परोपकार पर निबंध (Paropkar Essay In Hindi Language)

    परोपकार पर लिखा हुआ यह निबंध (Essay On Paropkar In Hindi) आप अपने स्कूल या फिर कॉलेज प्रोजेक्ट के लिए इस्तेमाल कर सकते है। आपको हमारे इस वेबसाइट पर और भी कही विषयो पर ...

  4. Paropkar Essay in Hindi

    Paropkar Essay in Hindi: परोपकार अर्थात पर + उपकार। पर का अर्थ है दूसरा तथा उपकार का अर्थ है भलाई। इस तरह परोपकार का अर्थ हुआ - दूसरों की भलाई करना। परोपकार

  5. Paropkar Essay in Hindi- परोपकार पर निबंध

    Long Paropkar Essay in Hindi परोपकार पर निबंध हिंदी में ( 600 to 700 words ) भगवान ने प्रकृति की रचना इस प्रकार की है कि उसके मूल में परोपकार ही काम कर रहा है। उसके ...

  6. परोपकार पर निबंध हिंदी में

    परोपकार के विभिन्न प्रकार (Types of Paropkar) परोपकार की भावना अनेक रूपों में प्रकट होती हैं. धर्मशालाएं, धर्मार्थ, औषधालय, जलाशयों, पाठशालाओं ...

  7. परोपकार पर निबंध

    नमस्कार दोस्तों आपका स्वागत हैं, आज हम परोपकार पर निबंध Essay on Importance of Charity in Hindi [Essay on Paropkar] पढ़ेंगे.. इस निबंध, अनुच्छेद, भाषण स्पीच में हम जानेगे कि परोपकार का अर्थ ...

  8. परोपकार पर निबंध(paropkar Essay In Hindi) » Hindikeguru

    परोपकार पर निबंध (paropkar essay in hindi) March 14, 2021 by Hindikeguru. परोपकार निबंध का रूपरेखा :- १. भूमिका २. प्रकृति और परोपकार ३. मनुष्य जीवन की सार्थकता ४. परोपकर ...

  9. परोपकार पर निबंध (Philanthropy Essay in Hindi)

    परोपकार पर निबंध (Philanthropy Essay in Hindi) By कनक मिश्रा / March 26, 2020. किसी भी व्यक्ति को अपने जीवन में परोपकारी बनना चाहिए यह एक ऐसी भावना है जो शायद कोई ...

  10. परोपकार पर निबंध

    परोपकार पर निबंध - Paropkar Par Nibandh in Hindi. गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है - परहित सरिस धर्म नहीं भाई। अर्थात परोपकार से बड़ा कोई धर्म नहीं होता है ...

  11. परोपकार पर निबंध लेखन पढ़े Essay On Paropkar In Hindi

    परोपकार पर निबंध लेखन पढ़े Essay On Paropkar In Hindi. June 27, 2020 by Knowledge Dabba. इंसानियत का दूसरा नाम परोपकार है। अगर एक इंसान दूसरे इंसान की निस्वार्थ भाव से मदद ...

  12. परोपकार पर निबंध (Paropkar Par Nibandh)

    परोपकार पर निबंध (Paropkar Par Nibandh)- मकर संक्रांति का दिन था। रोहित आज अपनी छत पर खड़ा पतंग उड़ा रहा था। उसके आस-पड़ोस के लोग भी पतंग ... (Essay On Paropkar In Hindi)

  13. Hindi Essay, Paragraph, Speech on "Paropkar", "परोपकार" Complete Hindi

    Hindi Essay, Paragraph, Speech on "Paropkar", "परोपकार" Complete Hindi Anuched for Class 8, 9, 10, Class 12 and Graduation Classes

  14. Essay on Paropkar in Hindi Language

    Short Essay on Paropkar in Hindi Language - परोपकार पर निबंध ( 200 words ) परोपकार का अर्थ है दुसरों का भला करना। समाज में रहने के लिए मनुष्य जीवन में परोपकार का होना ...

  15. Paropkar Essay in Hindi परोपकार पर निबंध

    Paropkar Essay in Hindi. विचार-बिंदु - परोपकार का अर्थ • परोपकार का महत्त्व • परोपकार से प्राप्त अलौकिक सुख • परोपकार के विविध रूप और उदाहरण • परोपकार में ही जीवन की ...

  16. Hindi Essay on "Paropkar", "परोपकार", for Class 10, Class 12 ,B.A

    परोपकार Paropkar. 4 Hindi Essay on "Paropkar" Charity. निबंध नंबर :- 01 "परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम्" महर्षि व्यास ने अट्ठारह पुराणों में इस बात को स्पष्ट किया है कि स्वार्थ और ...

  17. परोपकार का महत्व निबंध Essay on Importance of Charity in Hindi

    आप परोपकार का महत्व निबंध Essay on Importance of Charity in Hindi हिन्दी में पढ़ेंगे। परोपकार का अर्थ, इसका महत्व, मानव जीवन का इसमें उद्देश्य ... Definition of Word Paropkar?

  18. परोपकार ही जीवन है पर निबंध (Paropkar hi Jeevan hai Essay in Hindi)

    परोपकार ही जीवन है पर लघु और दीर्घ निबंध (Short and Long Essay on Paropkar hi Jeevan hai in Paropkar hi Jeevan hai par Nibandh Hindi mein) परोपकार पर और उपकार इन दो शब्दों से परोपकार शब्द बनता ...

  19. परोपकार पर निबंध

    मरा वही नहीं कि जो जिया न आपके लिए।. वही मनुष्य है कि जो, मरे मनुष्य के लिए॥. परोपकार पर निबंध (Paropkar essay in Hindi) आपको कैसा लगा? यदि आप चाहते हों ...

  20. प्रकृति-सा 'परोपकारी' बनें (Essay on Paropkar In Hindi)

    Paropkar, परोपकार के लाभ, परोपकार का महत्व, परोपकार की भावना पर निबंध, परोपकार विषय पर निबंध, परोपकार पर निबंध, Essay on Paropkar in Hindi

  21. परोपकार पर निबंध Essay on paropkar in hindi

    Essay on paropkar in hindi हेलो दोस्तों कैसे हैं आप सभी,दोस्तों आज का हमारा आर्टिकल हमारा सबसे महत्वपूर्ण आर्टिकल है आज के हमारे इस आर्टिकल nibandh on paropkar in hindi में हम परोपकार ...

  22. 2 Best Essay On Paropkar In Hindi

    Essay on Paropkar in Hindi पर आपको इस वेबसाइट में 2 अच्छा निबंध (Essay) मिलेंगे। जो की कक्षा 5 से लेकर Higher Level Exam के students के लिए उपलब्ध हैं।

  23. परोपकार पर निबंध ? Essay on Paropkar in Hindi

    Essay on Paropkar in Hindi. प्रस्तावना : परोपकार दो शब्दों पर + उपकार के मेल से बना है, जिसका अर्थ है 'दूसरों का हित' अपने व्यक्तिगत हित की परवाह किए ...