Kushal Pathshala

शोध प्रक्रिया के चरण (Step of Research Process)

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  • Post category: Research Aptitude

शोध नया ज्ञान प्राप्त करने का एक माध्यम है। शोध में शोधार्थी को अनुसंधान कार्य पूरा करने के लिए शोध के विभिन्न चरणों से गुजरना पड़ता है। शोधार्थी को शोध प्रक्रिया में प्रत्येक चरण पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है जिससे सही ढंग शोध कार्य संपन्न हो सके। शोध प्रक्रिया के प्रत्येक चरण की विस्तृत कार्य योजना तैयार करना चाहिए तथा प्रत्येक चरणों को ध्यान पूर्वक अवलोकन कर और जांच कर आवश्यकता अनुसार परिवर्तन एवं संशोधन कर लेना चाहिए। जैसा कि हम लोग जानते हैं कि शोध एक सतत चलने प्रक्रिया है इसमें कोई कार्य अन्तिम नहीं होता। शोध प्रक्रिया में शोधार्थी को विभिन्न स्तर पर निम्नलिखित चरणों से गुजरना होता है।

research problem in hindi

Table of Contents

1. शोध समस्या की पहचान करना ( Identifying of the Research Problem)

प्रथम चरण में शोधार्थी को शोध समस्या की पहचान करना होता है अर्थात जिसे विशिष्ट क्षेत्र में उसे शोध कार्य करना है उसकी पहचान करना होता है। शोध समस्या ऐसी होनी चाहिए जिससे किसी नये ज्ञान की आविर्भाव हो और समसामयिक रूप से उपयोगी हो।इसमें शोधार्थी विशेष शोध समस्या का चयन करता है अर्थात वह एक विशेष विषय क्षेत्र पर कार्य करने के लिए मन:स्थिति बनाता है और विशिष्ट शोध समस्या का प्रतिपादन परिष्कृत तकनीकी शब्दों में करता है। शोधार्थी को ध्यान रखना चाहिए कि शोध समस्या का प्रतिपादन प्रभाव कारी एवं स्पष्ट तकनीकी शब्दावली में किया जाए। इसके साथ-साथ शोधार्थी को शोध समस्या में समाहित उप समस्याएं कौन-कौन सी हैं। इसका भी विस्तार से वर्णन करना चाहिए एवं शोधार्थी को विषय शोध विषय क्षेत्र में विशिष्ट साहित्य खोज करना चाहिए जिससे शोध विषय के बारे में स्पष्ट ज्ञान हो सके।

2. संबंधित साहित्य का सर्वेक्षण ( Review of Relevant Literature)

शोधार्थी अपने विशेष शोध समस्या से संबंधित विषय पर गहन अध्ययन करता है। अन्य शोधकर्ताओं और विद्वानों द्वारा अद्यतन किए गए शोध कार्य का गहन अध्ययन व अवलोकन करता है। शोधकर्ता शोध से संबंधित शोध प्रबंधों, लेखों व अन्य स्वरूपों में उपलब्ध सामग्री का गहन सर्वेक्षण करता है। जिससे शोधार्थी को शोधकार्य करने की दिशा निर्देश मिलता है। इसमें शोधकर्ता अपने शोध समस्या से जुड़ी हुई अभी तक किए गए शोध प्रविधि, आंकड़ों का संकलन विधि और तकनीकी, आंकड़े विश्लेषण तकनीकी आदि का भी सार तैयार करता है।

शोधार्थी को इस चरण में यह भी स्पष्ट उल्लेख कर लेना चाहिए कि उसका शोध कार्य पूर्वर्ती शोध कार्य से किस तरह भिन्न है। इस चरण में संबंधित विषय क्षेत्र पर महत्वपूर्ण जानकारी प्राथमिक, द्वितीयक व तृतीयक सूचना स्रोत तथा अन्य स्रोत से प्राप्त कर गहन चिंतन और साहित्य सर्वेक्षण कर लेना आवश्यक होता है, ताकि शोधार्थी को शोध कार्य करने में एक दिशा निर्देश मिल सके।

3. उपयुक्त शोध प्रविधि का चयन (Selection of Appropriate Research Method)

इस चरण में शोधार्थी को उपयुक्त शोध प्रविधि का चयन करना होता है। हर शोध समस्या एक विशिष्ट प्रकार की होती है और उसका समाधान भी एक विशेष शोध प्रविधि की सहायता से खोजा जा सकता है यदि हम समय विस्तार के आधार पर संबंधित समस्याओं के उत्तर खोजने का प्रयास करें तो निम्न मुख्य तीन शोध प्रविधि को अपनाना होता है -ऐतिहासिक शोध प्रविधि (Historical Method), सर्वेक्षण शोध प्रविधि  (Survey Method), प्रयोगात्मक शोध प्रविधि (Experimental Method)

  • ऐतिहासिक शोध प्रविधि उस शोध समस्या का समाधान के लिए उपयोगी होता है जिसमें शोधार्थी को भूतकाल में उत्तर या समाधान खोजना होता है। उदाहरण स्वरूप भारतीय स्वतंत्रता से पूर्व पुस्तकालयों की स्थिति, डॉ एस आर रंगनाथन का पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान के विकास में योगदान आदि इस शोध प्रविधि में वर्तमान परिस्थिति और समस्याओं का हल भूतकाल में हुए संबंधित विषय का अध्ययन के आधार पर खोजने का प्रयास किया जाता है।
  • सर्वेक्षण शोध प्रविधि में उन समस्याओं का अध्ययन किया जाता है। जिसका हल वर्तमान परिस्थिति में से खोजना होता है। यह प्रविधि सामाजिक विज्ञान में सबसे अधिक प्रयोग होता है जैसे पाठक-अध्ययन, पुस्तकालय सर्वेक्षण, ग्रामीण पाठकों का सूचना खोजने संबंधी व्यवहार आदि शोध समस्याओं का समाधान खोजने का प्रयास किया जाता है।

4. शोध परिकल्पना का प्रतिपादन ( Formulation of Research Hypothesis)

शोध प्रक्रिया को सही दिशा प्रदान करने के लिए शोध प्राककल्पना का प्रतिपादन करना अत्यंत आवश्यक है। शोध में आंकड़े के संकलन और विश्लेषण के पूर्व शोध के परिणामों का अनुमान करना परिकल्पना है। यह एक बुद्धिमत्ता पूर्ण भविष्यवाणी होती है। यह परिकल्पना पूर्व निर्धारित सिद्धांतों अपना व्यक्तिगत अनुभवों अथवा आनुभविक विचारों के आधार पर शोध प्राक्कलन का निर्माण किया जाता है।

5. आंकड़ा संकलन तकनीक और उपकरणों का चयन ( Selection of Data Collection Tools and Techniques)

शोध के लिए आंकड़ा संकलन की अनेक विधियां हैं। शोधार्थी को अपनी शोध समस्या के अनुरूप तकनीकों का सहारा लेने की आवश्यकता होती है। प्रत्येक तकनीक और उपकरण एक विशिष्ट प्रकार के शोध के लिए उपयोगी होता है। अतः शोधार्थी को अपने शोध समस्या के अनुरुप तकनीक और उपकरण का चयन करना होता है ताकि आसानी से शोध समस्या का हल निकाला जा सके। शोध समस्या के समाधान हेतु आंकड़े का संकलन हेतु निम्नलिखित तकनीक और उपकरण का प्रयोग करते हैं।

  • अवलोकन (Observation)
  • मापन (Measurement) एवं
  • प्रश्नावली (Questionnaire)
  • अवलोकन (Observation) आंकड़ा संकलन का एक महत्वपूर्ण तकनीक है। यह तकनीक व्यक्ति या समूह के व्यवहार अध्ययन व विशेष परिस्थिति अध्ययन करने में अत्यंत ही उपयोगी होता है। कृष्ण कुमार इसके तीन घटक बताएं है – अनुभूति (Sensation), मनोयोग (Attention), एवं प्रत्यक्ष ज्ञान (Perception)। अनुभूति में हम संवेदी अंगों जैसे आंख, कान, नाक, त्वचा आदि का उपयोग किया जाता है। मनोयोग से तात्पर्य अध्ययन की जा रही विषय वस्तु पर एकाग्रता की क्षमता से है। प्रत्यक्ष ज्ञान एक व्यक्ति को तथ्यों को पहचानने में, अनुभव, आत्म-विश्लेषण, अनुभूति के उपयोग के द्वारा समर्थ बनाता है।
  • मापन (Measurement) का प्रयोग शोध समस्या के समाधान में प्रयोग करते हैं। शोधार्थी द्वारा निर्धारित उद्येश्य की पूर्ति हेतु मापन की विभिन्न विधियों का अनुसरण किया जाता है। इसके अन्तर्गत सूचियां, समाजमिति, संख्यात्मक मापनी, वर्णनात्मक मापनी, ग्राफिक मापनी, व्यक्ति से व्यक्ति मापनी इत्यादि का उपयोग करते हैं।
  • प्रश्नावली (Questionnaire) का प्रयोग शोधार्थी प्रश्न पूछने में प्रश्नावली, अनुसूची अथवा साक्षात्कार तकनीक करते हैं। प्रश्नावली शोधार्थी प्रश्न माला तैयार कर उत्तर दाताओं को डाक, ईमेल अथवा व्यक्तिगत रूप से देता है। उत्तरदाता प्रश्नावली को पढ़कर उत्तर पूरित करते हैं। अनुसूची में शोधार्थी उत्तरदाताओं से स्वयं प्रश्न पूछकर उत्तर की प्राप्त करता है जबकि साक्षात्कार में उत्तरदाता एवं शोधार्थी आमने-सामने बैठकर संवाद करते हैं।

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अनुसंधान समस्या का चयन एवं निरूपण | अनुसंधान की अवस्थायें | समस्या का निरूपण एवं चयन की आवश्यकता

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अनुसंधान समस्या का चयन एवं निरूपण | अनुसंधान की अवस्थायें | समस्या का निरूपण एवं चयन की आवश्यकता | Selection and formulation of research problem in Hindi | Research Conditions in Hindi | Problem formulation and need for selection in Hindi

Table of Contents

अनुसंधान समस्या का चयन एवं निरूपण

(Research Problem: Selection and Formulation)

जॉन टी. टाइनसेंड के शब्दों में, “समस्या समाधान के लिये प्रस्तावित एक प्रश्न है।” जब किसी प्रश्न का उत्तर नहीं मिल पाता तो वह प्रश्न समस्या का रूप ले लेता है। वैज्ञानिक अनुसंधान में अनुसंधानकर्ता दो या अधिक चरों के बीच क्या सम्बन्ध है इसका पता लगाना चाहता है और जब इन सम्बन्धों का ज्ञान नहीं हो पाता उसके लिये यह एक समस्या होती है।

समस्या चयन का महत्व ( Importance) – अनुसंधान सर्वेक्षण में समस्या का चयन व सूत्रीकरण या निरूपण का कार्य अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है। उपयुक्त समस्या का चयन सरल कार्य नहीं होता।

समस्या- चयन की कठिनाइयाँ ( Difficulties of the Selection of Problem) – अनेक बार अनुसंधानकर्ताओं को समस्या के चयन में कठिनाई अनुभव होती है, क्योंकि उन्हें ऐसा प्रतीत होता है कि उस क्षेत्र की सभी समस्याओं पर अनुसंधान का कार्य हो चुका है। इस स्थिति के लिये अनुसंधानकर्ता ही अधिकांशतः उत्तरदायी होते हैं। अकुशल होने के कारण उन्हें इस कठिनाई का आभास होता है।

अनुसंधान की अवस्थायें

(Research Phases)

अनुसंधान के अन्तर्गत तीन अवस्थायें आती हैं –

(1) कठिनाई की अनुभूति (Feeling of difficulty),

(2) समस्या अभिज्ञान (Problem Identification),

(3) समस्या सूत्रीकरण (Problem formulation)

यें तीनों अवस्थायें साथ-साथ घटित होती हैं

अनुसंधान की प्रथम अवस्था में अनुसंधानकर्त्ता असुविधा की अवस्था में होता है और उसके समक्ष एक अस्पष्ट चित्र होता है।

द्वितीय अवस्था के अन्तर्गत समस्या का अभिज्ञान प्राप्त करना होता है और उस समस्या का ज्ञान हो जाता है जिस पर अनुसंधान करना होता है।

तृतीय अवस्था में समस्या का सूत्रीकरण या निरूपण होता है और उसे समुचित ढंग से परिभाषित किया जाता है।

समस्या का निरूपण एवं चयन की आवश्यकता

(Necessity of Formulation and Selection of a Problem)

समस्या का निरूपण एवं चयन निम्नलिखित प्रमुख कारणों से आवश्यक है।

(1) वैज्ञानिक-विधि-सम्मत ( In accordance with Scientific Method)- विषय और समस्या का चयन इस प्रकार से होना चाहिये कि वैज्ञानिक विधियों द्वारा उसका अध्ययन सम्भव हो।

(2) समस्या का क्षेत्र ( Scope of the Problem)- समस्या चयन में इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि वह निर्धारित क्षेत्र से बाहर की न हो।

(3) विषय-वस्तु की सुलभता ( Availability of the Subject Matter)- अनुसंधान के लिये ऐसे विषय का चयन करना चाहिये जिसके लिये अध्ययन सामग्री सुलभ हो।

(4) सामाजिक उपयोगिता ( Social Utility)- अध्ययन के लिये चयनित विषय की सामाजिक उपयोगिता पर ध्यान रखना चाहिये अन्यथा अनुसंधान में किया गया परिश्रम व्यर्थ जाता है।

(5) निश्चित पक्ष ( Certain Aspect) – अध्ययन के लिये चुना गया विषय समस्या के निश्चित पक्ष पर आधारित होना चाहिये।

(6) समस्या की उपयुक्तता ( Problem being proper)- अनुसंधान के लिये चुना गया विषय या समस्या शाश्वत होनी चाहिये और विधि एवं सामग्री की दृष्टि से उसे व्यावहारिक होना चाहिये।

यंग के अनुसार अध्ययन के लिये समस्या का चुनाव करते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक होता है

(i) अध्ययनकर्त्ता में लक्ष्यों और रुचियों का होना।

(ii) अनुसंधान के लिये आवश्यक सामग्री की उपलब्धता।

(iii) अध्ययन के संदर्भ में निर्मित सैद्धांतिक मान्यताओं का जटिल न होना।

(iv) अध्ययन विषय से सम्बन्धित तथा पूर्व अनुसंधानों के आधार पर सीमित होना चाहिये।

सम्बन्धित अन्य सामग्री का अध्ययन- समस्या के चयन के लिये समस्या-सम्बन्धी अन्य उपलब्ध सामग्री का अध्ययन लाभदायक होता है। इससे इसके पूर्व के अनुसंधानकर्ताओं के विचार और उनके द्वारा उपयोग में लायी गयी अनुसंधान पद्धतियों का ज्ञान होता है।

पी० वी० यंग के विचार से इस आधार पर निम्नलिखित उपब्धियाँ होती हैं-

(1) अध्ययन के विषय में अन्तर्दृष्टि और सामान्य ज्ञान प्राप्त होते हैं।

(2) अवधारणा सम्बन्धी चिन्तन और उपकल्पनाओं के परीक्षण में सुगमता होती है।

(3) एक ही अनुसंधान कार्य की पुनरावृत्ति नहीं होती और अब तक उपेक्षित पक्षों पर भी ध्यान आकर्षित होता है।

समस्या का चयन और निरूपण अनुसंधान का प्रारम्भिक महत्वपूर्ण चरण है। नार्थथीप के शब्दों में, “अनुसंधानकर्ता बाद के स्तरों में कठिन पद्धतियों को प्रयोग में ला सकता है, लेकिन अध्ययन का आरम्भ गलत होने पर बाद में केवल पद्धतियाँ ही स्थिति को सुधार नहीं सकतीं। अनुसंधान कार्य उस जलयान की भाँति है जो बन्दरगाह से किसी लक्ष्य की ओर चलता है। यदि आरम्भ में ही दिग्भ्रम हो जाये तो उसके पथभ्रष्ट होने की सम्भावना प्रबल हो जाती है भले ही यान कितनी ही कुशलता से निर्मित हो और उसका कप्तान कितना ही योग्य क्यों न हो।”

समस्या के प्रमुख तत्व –

एकॉफ ने किसी भी समस्या के लिये निम्नलिखित तत्वों की उपस्थिति आवश्यक मानी है –

(1) अनुसंधान- प्रत्येक समस्या किसी व्यक्ति या समूह से सम्बन्धित होती है और अनुसंधान का विषय होती है। यह केवल कल्पना नहीं होती।

(2) उद्देश्य समस्या- समाधान द्वारा कोई उद्देश्य प्राप्त करना लक्ष्य होता है। यदि उद्देश्य ही न होगा तो अनुसंधानकर्ता को यह ज्ञान न हो सकेगा कि उसे किस दिशा में जाना है।

(3) उद्देश्य प्राप्ति हेतु विकल्प- अनुसंधानकर्त्ता के पास उद्देश्य की प्राप्ति के विकल्प भी होने चाहिये तभी वह सर्वाधिक उपयुक्त मार्ग का चयन कर सकता है।

(4) विकल्पों के प्रति संदेह- अनुसंधानकर्ता को विकल्पों की छानबीन करने के बाद उपयुक्त विकल्प ग्रहण करना चाहिये। यदि वह सभी विकल्पों को उपयुक्त मानकर चलेगा तो अनुसंधान का कार्य बाधित हो जायेगा।

(5) समस्या से सम्बन्धित पर्यावरण- प्रत्येक समस्या से सम्बन्धित एक विशेष पर्यावरण होता है। पर्यावरण का परिवर्तन समस्या का समाधान प्रस्तुत करता है।

उदाहरण: उपयुक्त तत्वों को निम्नलिखित उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है –

एक समस्या है कि छात्रों को किस अध्ययन विधि द्वारा अधिक ज्ञानार्जन कराया जा सकता है। दो विकल्प हैं-प्रश्नों का उत्तर लिखवाकर शिक्षा दी जाये या प्रत्यक्ष व्याख्या द्वारा। दोनों की उपयुक्तता में अभी भी संदेह है। अब प्राध्यापक अपना अनुसंधान कार्य प्रारम्भ करता है और क्रमशः दोनों विधियों को अपनाकर उनमें से अधिक प्रभावशाली विधि का पता कर लेता है।

अनुसंधान क्रियाविधि – महत्वपूर्ण लिंक

  • शोध या अनुसन्धान की अवधारणा | शोध की विधि | शोध के स्रोत की विधि एवं महत्व
  • अनुसंधान या शोध प्रक्रिया | शोध प्रक्रिया के प्रमुख चरण | शोध की सीमायें
  • शोधकर्ता | शोधकर्ता के गुण | शोधकर्त्ता से आशय
  • अनुसन्धान के प्रकार | विशुद्ध या मौलिक अनुसन्धान | व्यावहारिक अनुसन्धान | अर्द्धसामाजिक अनुसन्धान | विशुद्ध और व्यावहारिक अनुसन्धान में अन्तर
  • अनुसंधान या शोध की अवधारणा | अनुसंधान या शोध की परिभाषाएं | शोध के उद्देश्य | उद्देश्य के आधार पर शोध के प्रकार
  • अनुसंधान समस्या का चयन करते समय ध्यान देने योग्य बातें | अनुसंधान-समस्या के चयन के मौलिक अधिकारों का विवरण

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Contents in the Article

अनुसंधान का अर्थ ( Meaning of Research)

अनुसंधान के द्वारा उन मौलिक प्रश्नों के उत्तर देने के प्रयास किया जाता है जिनका उत्तर अभी तक उपलब्ध नहीं हो सका है। यह उत्तर मानवीय प्रयासों पर आधारित होता है इस प्रत्यय को चन्द्रमा के एक उदाहरण से स्पष्ट किया जा सकता है। कुछ वर्ष पहले जब तक मनुष्य चन्द्रमा पर नहीं पहुँचा था, चन्द्रमा वास्तव में क्या हैं ? इस सम्बन्ध में सही जानकारी नहीं थी। यह एक समस्या भी थी जिसका कोई समाधान भी नहीं था। मनुष्य को चन्द्रमा के सम्बन्ध में मात्र आवधारणाएं ही थी, शुद्ध ज्ञान नहीं था। परन्तु मनुष्य अपने प्रयास से चन्द्रमा पर पहुंच गया है। इस प्रकार शोध कार्यों द्वारा उन प्रश्नों का उत्तर खोजने का प्रयास किया जाता है जिनका उत्तर साहित्य में उपलब्ध नहीं है अथवा मनुष्य की जानकारी में नहीं है। उन समस्याओं का समाधान खोजने का प्रयत्न किया जाता है जिसका समाधान उपलब्ध नहीं है और न ही मनुष्य की जानकारी में है।

अनुसंधान की परिभाषा ( Definition of Research)

अनेक परिभाषाएं अनुसन्धान की गई है प्रमुख परिभाषा इस प्रकार हैं-

रेडमेन एवं मोरी के अनुसार- “नवीन ज्ञान की प्राप्ति के लिए व्यावस्थित प्रयास ही अनुसंधान हैं।”

पी० एम० कुक के अनुसार- ‘अनुसंधान किसी समस्या के प्रति ईमानदारी, एवं व्यापक रूप में समझदारी के साथ की गई खोज है। जिसमें तथ्यों, सिद्धान्तों तथा अर्थों की जानकारी की जाती है। अनुसंधान की उपलिब्ध तथा निष्कर्ष प्रामाणिक तथा पुष्टि करने योग्य होते हैं। जिससे ज्ञान में वृद्धि होती है।

उद्देश्य ( Objectives of Research)

शोध समस्याओं की विविधता अधिक है इसके चार प्रमुख उद्देश्य होते हैं- सैद्धान्तिक उद्देश्य, तथ्यात्मक उद्देश्य, सत्यात्मक उद्देश्य तथा व्यावहारिक उद्देश्य इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-

  • सैद्धान्तिक उद्देश्य ( Theoretical Objectives)- अनुसंधान में वैज्ञानिक शोध कार्य द्वारा नये सिद्धान्तों तथा नये नियमों का प्रतिपादन किया जाता है। इस प्रकार के शोध कार्य में अर्थापन होता है। इसमें चरों के सम्बन्धों को प्रगट किया जाता है और उनके सम्बन्ध में सामान्यीकरण किया जाता है। इससे नवीन ज्ञान की वृद्धि होती है, जिनका उपयोग शिक्षण तथा निर्देशन की प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाता है।
  • तथ्यात्मक उद्देश्य ( Factual Objectives)- शिक्षा के अन्तर्गत ऐतिहासिक शोध-कार्यो। द्वारा नये तथ्यों की खोज की जाती है। इनके आधार पर वर्तमान को समझने में सहायता मिलती है। इन उद्देश्यों की प्रकृति वर्णनात्मक होती है। क्योंकि तथ्यों की खोज करके, उनका अथवा घटनाओं का वर्णन किया जाता है। नवीन तथ्यों की खोज शिक्षा-प्रक्रिया के विकास तथा सुधार में सहायक होती है, निर्देशन प्रक्रिया का विकास तथा सुधार किया जाता है।
  • सत्यात्मक उद्देश्य ( Establishment of Truth Objective)- दार्शनिक शोध कार्यों द्वारा नवीन सत्यों का प्रतिपादन किया जाता है। इनकी प्राप्ति अन्तिम प्रश्नों के उत्तरों से की जाती है। दार्शनिक शोध-कार्यों द्वारा शिक्षा के उद्देश्यों, सिद्धान्तों तथा शिक्षण विधियों तथा पाठ्यक्रम की रचना की जाती है। शिक्षा की प्रक्रिया के अनुभवों का चिन्तन बौद्धिक स्तर पर किया जाता है। जिससे नवीन सत्यों तथा मूल्यों को प्रतिपादन किया जा सकता है।
  • व्यावहारिक उद्देश्य ( Application Objectives)- शैक्षिक अनुसंधा निष्कर्षों का व्यावहारिक प्रयोग होना चाहिए। परन्तु कुछ शोध-कार्यों में केवल इन्हें विकासात्मक अनुसन्धान भी कहते है। क्रियात्मक अनुसन्धान से शिक्षा की प्रक्रिया में सुधार तथा विकास किया जाता है अर्थात् इनका उद्देश्य व्यावहारिक होता है। स्थानीय समस्या के समाधान से इसका उपयोग अधिक होता है। स्थानीय समस्या के समाधान से भी इस उद्देश्य की प्राप्ति की जाती है। निर्देशन में इसकी उपयोगिता अधिक होती है।

अनुसन्धान का वर्गीकरण (Classification of Research)

अनुसन्धान के उद्देश्यों से यह स्पष्ट है कि अनुसन्धानों का वर्गीकरण कई प्रकार से किया जा सकता है। प्रमुख वर्गीकरण मानदण्ड पर आधारित है-

योगदान की दृष्टि से (Contribution Point of View)

शोध कार्यों के योगदान की दृष्टि से शैक्षिक अनुसन्धानों को दो भागों में विभाजित कर सकते हैं-

मौलिक अनुसंधान ( Basic or Fundamental Research)- इन शोध कार्यों द्वारा नवीन ज्ञान की वृद्धि की जाती है-नवीन सिद्धान्तों का प्रतिपादन नवीन तथ्यों की खोज, नवीन तथ्यों का प्रतिपादन होता है। मौलिक-अनुसन्धानों से ज्ञान के क्षेत्र में वृद्धि की जाती है। इन्हें उद्देश्यों की दृष्टि से तीन भागों में बाँटा जा सकता है-

  • प्रयोगात्मक शोध-कार्यों से नवीन सिद्धान्तों तथा नियमों का प्रतिपादन किया जाता है। सर्पक्षण शोध से इसी प्रकार का योगदान होता है।
  • ऐतिहासिक शोध कार्यो से नवीन तथ्यों की खोज की जाती है। जिनमें अतीत का अध्ययन किया जाता है और उनके आधार पर वर्तमान को समझने का प्रयास किया जाता है।
  • दार्शनिक शोध कार्यों से नवीन सत्यों एवं मूल्यों का प्रतिपादन किया जाता है। शिक्षा का सैद्धान्तिक दार्शनिक अनुसन्धानों से विकसित किया जा सकता है।

महत्वपूर्ण लिंक

  • निर्देशन (Guidance)- अर्थ, परिभाषा एवं विशेषतायें, शिक्षा तथा निर्देशन में सम्बन्ध
  • सूक्ष्म-शिक्षण- प्रकृति, प्रमुख सिद्धान्त, महत्त्व, परिसीमाएँ
  • निर्देशन के उद्देश्य (Aims of Guidance in Hindi)
  • शैक्षिक निर्देशन (Educational Guidance)-परिभाषा, विशेषताएँ, सिद्धान्त
  • शैक्षिक निर्देशन-उद्देश्य एवं आवश्यकता (Objectives & Need)
  • व्यावसायिक निर्देशन (Vocational guidance)- अर्थ, उद्देश्य, शिक्षा का व्यावसायीकरण
  • परामर्श (Counselling)- परिभाषा, प्रकार, उद्देश्य, विशेषताएँ
  • विशेष शिक्षा की आवश्यकता | Need for Special Education
  • New Education Policy- Characteristics & Objectives in Hindi
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति-1992 की संकल्पनाएँ या विशेषताएँ- NPE 1992
  • सूक्ष्म शिक्षण- परिभाषा, सूक्ष्म शिक्षण प्रक्रिया, प्रतिमान, पद
  • व्यावसायिक निर्देशन- आवश्यकता एवं उद्देश्य (Need & Objectives)

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Target Notes

क्रियात्मक अनुसंधान के सोपान एवं प्रविधियाँ | Steps of Action Research in Hindi

क्रियात्मक अनुसंधान के सोपान एवं प्रविधियाँ | Steps of Action Research in Hindi

इतिहास शिक्षण में क्रियात्मक अनुसंधान के प्रमुख सोपानों की विवेचना कीजिए।

क्रियात्मक अनुसंधान के सोपान एवं प्रविधियाँ (Steps of Action Research)

क्रियात्मक अनुसंधान के प्रमुख सोपान एवं प्रविधियाँ निम्नलिखित हैं-

  • समस्या की पहचान एवं परिभाषीकरण (To Identify and Define the Problem),
  • समस्या के सम्बद्ध कारणों का विश्लेषण (Analysis of Causes of the Problem),
  • क्रियात्मक परिकल्पना का निर्माण (Formulation of the Action Hypothesis),
  • क्रियात्मक परिकल्पना के परीक्षण हेतु अनुसंधान की रूपरेखा तैयार करना (Preparation of Research Design to Test the Action Hypothesis)
  • निष्कर्ष निकालना (Deriving Conclusion )

(1) समस्या की पहचान एवं परिभाषीकरण – प्रत्येक सोपान का सबसे पहला सोपान यह होता है कि जिस समस्या का समाधान करना है उसे भली-भाँति पहचान लिया जाय। यह कार्य इस हेतु आवश्यक है कि जब तक समस्याओं की पहचान नहीं होगी तब तक उसका समाधान नहीं ढूँढ़ा जा सकेगा। प्रायः यह देखा जाता है कि विद्यालय के प्रधानाचार्य और शिक्षक समस्या से पूर्णतः परिचित नहीं होते। उन्हें समस्या का भली-भाँति ज्ञान नहीं होता फलस्वरूप उन्हें सर्वप्रथम समस्याओं को पहचानना चाहिए और तत्पश्चात् उसका ठीक प्रकार से विश्लेषण करके उसका परिभाषित एवं सीमांतित रूप प्रस्तुत करना चाहिए। समस्या को परिभाषित करते समय उसके अन्तर्गत बहुअर्थक और जटिल शब्दों का सरल अर्थ स्पष्ट कर लेना चाहिए। समस्या सीमांकन करने के लिए उसके अत्यन्त व्यापक स्वरूप को थोड़ा विशिष्ट बना लेना चाहिए।

(2) समस्या से सम्बद्ध कारणों का विश्लेषण – अनुसंधानकर्ता को यह चाहिए कि जब उसके द्वारा समस्या का विशिष्ट रूप निश्चित कर लिया जाय तो साक्ष्यों सहित उससे सम्बद्ध कारणों का विश्लेषण करें। उसके द्वारा सम्बद्ध कारणों की एक सुस्पष्ट और विस्तृत सूची तैयार की जानी चाहिए तथा कारणों के सामने उनके साक्ष्यों का भी उल्लेख किया जाना चाहिए।

(3) क्रियात्मक परिकल्पना का निर्माण- समस्या से सम्बद्ध कारणों का विश्लेषण कर लेने के पश्चात् उसके समाधान पर विचार किया जाता है। यह विचार किया जाता है कि यदि हमारे द्वारा ऐसा कार्य किया जायेगा तो समस्या का समाधान निकल आयेगा। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि समस्या का एक सम्भावित समाधान निकाला जाता है और एक निश्चित दिशा में कार्य करने हेतु कदम बढ़ाया जाता है। इस तरह संक्षेप में, क्रियात्मक परिकल्पना किसी समस्या के सम्भावित समाधान हेतु दिया गया सुझाव है।

(4) क्रियात्मक परिकल्पना के परीक्षण हेतु अनुसंधान की रूपरेखा तैयार करना- परिकल्पना का निर्माण करने के बाद उसके यथार्थ और प्रभावशीलता का परीक्षण करना आवश्यक है। इस कार्य के लिए अनुसंधान की एक रूपरेखा तैयार की जाती है। इस तरह की रूपरेखा तैयार कर लेने से अनुसंधानकर्ता को काफी आसानी हो जाती है। इस कल्पना की यथार्थता का पता लगाने में अशुद्धियों के होने की बहुत कम सम्भावना रहती है। अनुसंधानकर्त्ता अपनी कार्य-विधियों में होने वाली भूलों को सफलतापूर्वक पहचान लेता है और कुछ निश्चित परिणामों तक पहुँच जाता है। यही नहीं बल्कि सम्पूर्ण अनुसंधान कार्य पूरी तरह से वैज्ञानिक हो जाता है।

क्रियात्मक परिकल्पना के परीक्षण के लिए तैयार की गयी रूपरेखा में निम्न बातों का समावेश होता है-

  • क्रियाएँ जो प्रारम्भ करनी हैं-क्रियात्मक परिकल्पना के परीक्षण के हेतु जिन •क्रियाओं को प्रारम्भ करना है उनका स्पष्ट रूप से उल्लेख कर दिया जाता है।
  • विधि-इन क्रियाओं को सम्पादित करने हेतु जिस विधि का प्रयोग किया जायेगा उसका वर्णन किया जाता है।
  • अपेक्षित साधन-इन क्रियाओं के सफलतापूर्वक सम्पादन के लिये जिन साधनों की आवश्यकता होती है उनका उल्लेख किया जाता है।
  • अनुमानित समय-क्रियाओं के सम्पादन में जो अनुमानित समय लगता हैं उसका उल्लेख किया जाता है।

(5) निष्कर्ष निकालना- परिकल्पना का परीक्षण करने के पश्चात् उसका निष्कर्ष निकाला जाता है, सामान्यीकरण प्राप्त किए जाते हैं तथा उनका पुनर्परीक्षण किया जाता है। प्राप्त परिणाम के आधार पर परिकल्पना को सत्य अथवा असत्य घोषित किया जाता है। यदि उस परिकल्पना के अन्तर्गत सम्पादित क्रियाओं द्वारा लक्ष्य की प्राप्ति होती है तो परिकल्पना को सत्य माना जाता है, परन्तु जब लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती तो परिकल्पना को असत्य अथवा अस्वीकृत मान लिया जाता है। परिकल्पना को अस्वीकार कर देने के पश्चात् दूसरी नई परिकल्पना का निर्माण किया जाता है और तत्पश्चात् उसका परीक्षण करके निष्कर्ष निकाला जाता है।

क्रियात्मक अनुसंधान के प्रमुख तत्त्व (Important Elements of Action Research)

क्रियात्मक अनुसंधान के सोपानों का परिचय प्राप्त करने के पश्चात् उसके प्रमुख तत्त्वों की जानकारी भी आवश्यक हो जाती है। इसके प्रमुख तत्व निम्न हैं-

  • क्रियात्मक अनुसंधान का प्रमुख तत्त्व ऐसे समस्या क्षेत्र से परिचित होना है जो कि एक व्यक्ति अथवा समूह को इतना महत्त्वपूर्ण लगे कि वह किसी क्रिया को करने हेतु तैयार हो।
  • एक विशिष्ट समस्या का चयन तथा उससे सम्बन्धित परिकल्पना का निर्माण।
  • एक उद्देश्य का निर्धारण और उस उद्देश्य की पूर्ति हेतु उपयुक्त विधि का चयन।
  • प्रदत्त सामग्री का एकत्रीकरण और उसका विश्लेषण।
  • विश्लेषण के आधार पर यह देखना कि उद्देश्य की प्राप्ति किस सीमा तक हो सकी है।
  • सामान्यीकरण प्राप्त किया जाना चाहिए और यह देखा जाना चाहिए कि प्रारम्भ की गयी क्रिया और वांछित उद्देश्य में क्या सम्बन्ध है।
  • प्राप्त सामान्यीकरणों का क्रियात्मक परिस्थितियों में परीक्षण किया जाना चाहिए।

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शोध समस्या की प्रकृति एवं चयन |शोध समस्या के उद्भव स्त्रोत | Nature and selection of research Problem

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शोध समस्या की प्रकृति एवं चयन, शोध समस्या के उद्भव स्त्रोत

शोध समस्या की प्रकृति एवं चयन |शोध समस्या के उद्भव स्त्रोत | Nature and selection of research Problem

शोध समस्या की प्रकृति एवं चयन  प्रस्तावना :

वैज्ञानिक समस्या का प्रतिपादन निश्चित रूप से किसी भी शोधकर्ता के लिये कठिन कार्य होता है। इस कठिन कार्य को आसान बनाने के लिये वह कुछ ऐसे स्रोतों का सहारा लेता है जिससे शोध समस्या का प्रतिपादन करना आसान हो जाता है। शोध समस्या की उत्पत्ति परस्पर विरोधी उपलब्धियों की परिस्थितियों में पायी जाती है। (वेस्ट एण्ड कोहन , 1992) ने शोध समस्या की उत्पति के साठ क्षेत्रों का वर्णन किया है जिसमें निम्नलिखित प्रमुख है अध्ययन-अध्यापन की - विधायें , अधिगम मूल्यांकन , शैक्षिक नवाचार सीखने के तरीके , पाठ्येत्तर क्रियाकलाप , निदेशन एवं परामर्श कार्यक्रम , शैक्षिक संगठन , मुक्त अधिगम शिक्षक समस्यायें , यौन शिक्षण , विशिष्ट शिक्षा , शैक्षिक प्रशासन एवं नेतृत्व शैक्षिक उपलब्धि को प्रभावित करने वाले कारक , धर्म और शिक्षा , सेवाकालीन कार्यक्रम , पाठ्यचर्या विकास , निजी शिक्षा व्यवस्था , शिक्षा तथा समुदाय आदि।

शोध समस्या की प्रकृति एवं चयन

किसी भी शैक्षिक शोध की शुरूआत एक शोध समस्या की स्पष्ट पहचान से होती है। शोध समस्या की स्पष्ट रूप से पहचान कर उसका उल्लेख करना शोधकर्ता के लिए एक कठिन कार्य होता है। फिर भी वह परिस्थितियों की समझ , अपने अनुभवों एवं पहले किये गये शोधों की समीक्षा करके किसी स्पष्ट तथा ठोस समस्या का निर्धारण कर पाता है।

सर्वप्रथम यह जानना आवश्यक है कि शोध समस्या किसे कहते हैं ? सामान्यतः शोध समस्या एक ऐसी समस्या होती है जिसके द्वारा दो या दो से अधिक चरों के बीच एक प्रश्नात्मक सम्बन्ध ( Interrogative Relationship) की अभिव्यक्ति होती है। करलिंगर के अनुसार समस्या एक ऐसा प्रश्नात्मक वाक्य या कथन होता है जो दो या दो से अधिक चरों के बीच कैसा सम्बन्ध है यह देखता है।"

टाउनसेण्ड ( John C. Townsend) ने समस्या की परिभाषा देते हुए कहा है कि "समस्या तो समाधान के लिए एक प्रस्तावित प्रश्न है।" 

वास्तव में जब किसी प्रश्न का कोई उत्तर प्राप्त नहीं होता है तो समस्या  उपस्थित हो जाती है।

किसी भी वैज्ञानिक समस्या में सदैव दो या दो से अधिक चल राशियों ( variables) के बीच क्या सम्बन्ध है , देखा जाता है। उदाहरण के लिये पुरस्कार का सीखने की क्रिया पर क्या प्रभाव पड़ेगा यह देखना वैज्ञानिक समस्या का उदाहरण है यहाँ पुरस्कार एक चलराशि तथा दूसरी चलराशि सीखने में प्रभाव है।

समस्या की पहचान

मैक्गुइन ( Mc. Guigan) के अनुसार , " एक (समाधान - योग्य) समस्या ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर व्यक्ति की सामान्य क्षमताओं के प्रयोग से दिया जा सकता है।"

इनके अनुसार समस्या की अभिव्यक्ति के तीन कारण है -

1 ज्ञान में दरार ( Gap) हो

कोई भी समस्या उस समय स्वयं अभिव्यक्त हो उठेगी जब व्यक्ति का ज्ञान किसी जानकारी की तर्कयुक्त ढंग से व्याख्या न कर सके। ऐसी परिस्थिति में व्यक्ति यद्यपि अपने ज्ञान ( knowledge) से परिचित होता है तथा साथ ही वह इस सत्य से भी इन्कार नहीं करता है कि उसके ज्ञान में कुछ कमी है। जिसके कारण वह किसी घटना की उचित व्याख्या नहीं कर पा रहा है। उदाहरण के लिये शिक्षण की कौन सी विधि सर्वोत्तम है ? अथवा चिकित्सा क्षेत्र में कौन सी चिकित्सा प्रणाली सर्वश्रेष्ठ है ? आदि प्रश्नों से यह स्पष्ट है कि ज्ञान में वास्तव में दरार है। मनुष्य के

2 विरोधी परिणाम ( Contradictory Results )

कभी-कभी ऐसा होता है जब किसी एक ही समस्या पर विभिन्न प्रयोगों द्वारा विभिन्न परिणाम निकलते हैं। इस परिणामों में अन्तर के कई कारण हो सकते हैं , जैसे प्रयोगकर्ता या अनुसंधानकर्ता द्वारा प्रयोग को ठीक ढंग से न करना या चरों पर पूरी तरह से नियंत्रण न कर पाना आदि प्रयोगकर्ता की ये त्रुटियां भी समस्या अभिव्यक्ति का कारण बन जाती है।

3  किसी तथ्य की व्याख्या ( Explaining a 'fact' ) - 

जब कोई भी नया तथ्य वैज्ञानिक को प्राप्त होता है , तो वह उसे अपना ज्ञान से सम्बन्धित करने का प्रयास करता है । किन्तु वह अपने प्रयास में पूर्ण रूप से सफल नहीं हो पाता यहाँ उसका असफल हो जाना ही समस्या की अभिव्यक्ति करता है। ऐसी परिस्थिति में वह अतिरिक्त जानकारी एकत्रित करता है जिसके द्वारा वह इस नये तथ्य की व्याख्या कर सके।

इस प्रकार शिक्षाशास्त्रियों , समाज वैज्ञानिकों तथा मनोवैज्ञानिकों के विचारों में केवल शब्दावली का ही अन्तर दिखाई देता है अन्यथा इस बात को सभी स्वीकार करते है कि आवश्यकता की संतुष्टि के मार्ग में बाधा ही समस्या है , चाहे यह आवश्यकता जिज्ञासा की संतुष्टि मात्र हो , जो सभी मूलभूत अनुसंधानों का आधार है अथवा किसी उपयोगिता पर आधारित हो ।

समस्या का मूल्यांकन :

अनुसंधानकर्ता को जाँच में ली जाने वाली समस्या पर विचार करते हुये उसे इस सम्बन्ध में स्वयं से श्रृंखलाबद्ध कुछ प्रश्न पूछने चाहिये। ये प्रश्न उसकी व्यक्तिगत उपयुक्तता व सामाजिक मूल्यों के आधार पर समस्या का मूल्याकंन करने में सहायक होते हैं। अध्ययन पर कार्य आरम्भ करने से पहले इन सभी प्रश्नों के सकारात्मक उत्तर मिल जाने चाहिये।

1. क्या समस्या ऐसी है जिसे शोध के द्वारा सुलझाया जा सकता है ? अर्थात् क्या समस्या ऐसी है जिसके बारे में संगत आँकड़े एकत्रित किये जा सकते हैं और उनका उचित उत्तर दिया जा सकता है ?

2. क्या समस्या सार्थक है ? क्या समस्या में इतने चर सम्मिलित है जिन पर अनुसंधान किया जा सकता है ? क्या समस्या के समाधान से वर्तमान शैक्षिक , मनोवैज्ञानिक तथा सामाजिक सिद्धान्त में महत्वपूर्ण परिवर्तन आ सकता है ?

3. क्या समस्या नयी है ? अगर समस्या ऐसी है जिसका अनुसंधान पहले हो चुका है तो उस पर पुनः शोध करने से शोधकर्ता का समय एवं धन दोनों की ही बर्बादी होगी। इसलिये समस्या को नयी एवम् मौलिक होना चाहिये ताकि शोधकर्ता एक नये निष्कर्ष पर पहुँच सके ।

4. क्या समस्या का कोई सैद्धान्तिक मान है ? अर्थात् क्या समस्या ऐसी है • जिससे क्षेत्र में उत्पन्न अज्ञानता की खाई भरी जा सकती है ? क्या समस्या के समाधान से किसी सिद्धान्त के विकास में मदद मिलेगी ?

5. क्या समस्या ऐसी है जिस पर शोध किया जा सके ? अर्थात् कोई समस्या अच्छी हो सकती है परन्तु यह कई कारणों जैसे शोधकर्ता में प्रशिक्षण की कमी , उसके पास समय तथा धन की कमी , उपयुक्त ऑकड़े संग्रहण के उपकरणों का अभाव आदि से भी शोध के योग्य नहीं हो सकती है।

यदि उपर्युक्त प्रश्नों का उत्तर हाँ में मिलता है तो समझना चाहिये कि शोध समस्या उपयुक्त एवं वैज्ञानिक है। यदि इनका उत्तर ' नहीं ' में मिलता है , तो ऐसी समस्या एक अच्छी शोध समस्या नहीं मानी जायेगी ।

शोध समस्या के उद्भव स्त्रोत :

किसी भी शोधार्थी के लिये एक वैज्ञानिक समस्या का प्रतिपादन निश्चित रूप से एक कठिन कार्य है। फिर भी वह इस कठिन कार्य के लिये कुछ ऐसे स्रोतों ( Sources) का सहारा ले सकता है जिससे उसे समस्या को ढूँढ़ने में मदद मिल सके। ये स्त्रोत निम्नवत हैं

(1). शिक्षकों , छात्रों एवं अभिभावकों द्वारा अनुभव की जा रही है दिन-प्रतिदिन की समस्यायें किसी भी शोधकर्ता के लिये एक उपयोगी समस्या का स्रोत हो सकते हैं। उदाहरण के लिये वर्तमान समय में छात्र अनुशासनहीनता की समस्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है और इस समस्या से शिक्षक एवं अभिभावक दोनों ही परेशान हैं। अतः ये समस्या शोध का विषय हो सकता है कि उन कारणों का पता लगाया जाये जिन कारणों से छात्रों में अनुशासनहीनता बढ़ रही है तथा जो छात्र अनुशासनहीन है उनका व्यक्तित्व कैसा है ? उनका पारिवारिक वातावरण , मित्र , अभिभावक , आर्थिक स्तर इत्यादि किस प्रकार के हैं एवं इन सभी का छात्र के जीवन पर क्या और किस प्रकार का प्रभाव है , का अध्ययन करके उपरोक्त समस्या का समाधान प्राप्त किया जा सकता है।

(2). पाठ्य पुस्तक , शोध-पत्र , शोध जर्नल आदि को पढ़कर भी संभावित शोध समस्या का संकेत प्राप्त किया जा सकता है। क्योंकि इन स्रोतों में कुछ ऐसी प्रविधियों एवं कार्यविधियों का भी उल्लेख रहता है जिनसे शोध की नयी समस्या की झलक तो मिलती ही है साथ ही उन्हें सुलझाने में भी शोधकर्ता को विशेष सहायता मिलती है।

(3) वरिष्ठ शिक्षक एवं विशय विशेषज्ञ भी अच्छी एवं वैज्ञानिक समस्या के प्रतिपादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

बेस्ट एवं काहन ( Best & Kahn, 1992) ने शोध की उत्पत्ति के साठ क्षेत्रों तथा कुछ सामान्य चयन के स्रोतों का वर्णन किया है जिनमें से कुछ प्रमुख स्रोत निम्नवत हैं -

1. पाठ्य पुस्तकें ( Text Books)  

2. पाठ्येत्तर क्रियायें ( Extracurricular Activities) 

3. स्वतंत्र अध्ययन ( Independent Studies)  

4. शोध लेख ( Research Papers)  

5. शोध सारांश ( Researc Abstracts)  

6. शोध प्रकाशन ( Research Publications)  

7. संगोष्ठी प्रपत्र ( Seminar Papers)  

8. शोध पत्रिकायें ( Research Journals )  

9. विभिन्न प्रकार के सर्वेक्षण ( Different Suves) 

10. सामाजिक आर्थिक अध्ययन एवं शैक्षिक लेख ( Socio-economic studies and educational writings)  

11. कार्यक्षेत्र के अनुभव ( Work Experiences)  

12. सरकारी निर्णय एवं नीतियाँ ( Government Decisions & Policies )  

13. अन्तर्राष्ट्रीय अभिलेख ( International Reports)  

14. छात्रों के वाद-विवाद ( Students Discussion)  

15. इण्टरनेट एवं दैनिक पत्र ( Internet and News Papers) उपरोक्त कुछ ऐसे सामान्य स्रोत है जिनमें शोध समस्याओं को ढूँढ़ा जा सकता है।

शोध समस्या की प्रकृति एवं चयन |शोध समस्या के उद्भव स्त्रोत | Nature and selection of research Problem

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रिसर्च डिज़ाइन क्या है?

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  • Updated on  
  • नवम्बर 14, 2022

विज्ञान और टेक्नोलॉजी, कला और संस्कृति, मीडिया अध्ययन, भूगोल, गणित और अन्य विषय हों, रिसर्च हमेशा अज्ञात को खोजने का मार्ग रहा है। वर्तमान निराशाजनक परिस्थितियों में जब कोरोनावायरस ने दुनिया को तहस-नहस कर दिया है, इसके इलाज के लिए टीके खोजने के लिए भारी मात्रा में रिसर्च किया जा रहा है। इस ब्लॉग में, हम समझेंगे कि विभिन्न प्रकार के रिसर्च डिज़ाइन और उनके संबंधित फैक्टर क्या है।

This Blog Includes:

एक रिसर्च डिज़ाइन क्या है, रिसर्च डिज़ाइन के लाभ, रिसर्च डिजाइन के तत्व, रिसर्च डिजाइन की विशेषताएं, ग्रुपिंग द्वारा रिसर्च डिज़ाइन प्रकार, जनसंख्या वर्ग स्टडी, क्रॉस सेक्शनल स्टडी, लोंगिट्यूडनल स्टडी, क्रॉस-सेक्युएंशियल स्टडी, क्वांटिटेटिव वर्सेस क्वालिटेटिव रिसर्च डिजाइन, फिक्स्ड बनाम फ्लेक्सिबल रिसर्च डिजाइन, रिसर्च डिज़ाइन ppt.

शोध’ शब्द से, हम समझ सकते हैं कि यह डेटा का एक कलेक्शन है जिसमें रिसर्च मेथड्स को ध्यान में रखते हुए महत्वपूर्ण जानकारी शामिल है। दूसरे शब्दों में, यह एक हाइपोथिसिस स्थापित करके खोजी गई जानकारी या डेटा का संकलन (कंपाइलेशन) है और इसके परिणामस्वरूप एक संगठित तरीके से वास्तविक निष्कर्ष सामने आता है। रिसर्च अकादमिक के साथ-साथ वैज्ञानिक आधार पर भी किया जा सकता है। आइए पहले समझते हैं कि रिसर्च डिज़ाइन का वास्तव में क्या अर्थ है।

रिसर्च डिजाइन एक रिसर्चर को अज्ञात में अपनी यात्रा को आगे बढ़ाने में मदद करता है लेकिन उनके पक्ष में एक सिस्टेमेटिक अप्रोच के साथ। जिस तरह से एक इंजीनियर या आर्किटेक्ट एक स्ट्रक्चर के लिए एक डिजाइन तैयार करता है, उसी तरह रिसर्चर विभिन्न तरीकों से डिजाइन को चुनता है, ताकि यह जांचा जा सके कि किस प्रकार का रिसर्च किया जाना है।

रिसर्च डिज़ाइन के कुछ लाभ इस प्रकार हैं:

  • एक रिसर्च डिज़ाइन तैयार करने से रिसर्चर को अध्ययन के प्रत्येक चरण में सही निर्णय लेने में मदद मिलती है।
  • यह अध्ययन के प्रमुख और छोटे कार्यों की पहचान करने में मदद करता है।
  • यह शोध अध्ययन को प्रभावी और रोचक बनाता है।
  • इससे एक रिसर्चर आसानी से शोध कार्य के उद्देश्यों को तैयार कर सकता है।
  • एक अच्छे रिसर्च डिज़ाइन का मुख्य लाभ यह है कि यह शोध को संतुष्टि,आत्मविश्वास, एक्यूरेसी, रिलियाबिलिटी, कंटीन्यूटी और वैलिडिटी  प्रदान करता है।
  • इसके द्वारा लिमिटेड रिसोर्सेज  में भी सभी कार्यों को बेहतर तरीके से किया जा सकता है।
  • इससे रिसर्च में कम समय लगता है।

यहाँ एक रिसर्च डिज़ाइन के सबसे महत्वपूर्ण तत्व दिए हैं:

  • एकत्रित विवरण का एनालिसिस  करने के लिए लागू की गई विधि
  • रिसर्च मेथड का प्रकार
  • सटीक उद्देश्य कथन
  • शोध के लिए संभावित आपत्तियां
  • रिसर्च के संग्रह और एनालिसिस के लिए लागू की जाने वाली तकनीकें
  • एनालिसिस का मापन
  • शोध अध्ययन के लिए सेटिंग्स

रिसर्च डिज़ाइन

रिसर्च डिजाइन के प्रकार

अब जब हम व्यापक रूप से क्लासीफाइड प्रकार के रिसर्च को जानते हैं, तो क्वांटिटेटिव और क्वालिटेटिव रिसर्च को निम्नलिखित 4 प्रमुख प्रकार के research design in Hindi में विभाजित किया जा सकता है-

  • डिस्क्रिप्टिव रिसर्च डिजाइन
  • कॉरिलेशनल रिसर्च डिजाइन
  • एक्सपेरिमेंटल रिसर्च डिजाइन 
  • डायग्नोस्टिक रिसर्च डिजाइन
  • एक्सप्लेनेटरी रिसर्च डिजाइन 

अध्ययन डिजाइन प्रकारों का एक अन्य क्लासिफिकेशन इस पर आधारित है कि प्रतिभागियों को कैसे क्लासीफाइड किया जाता है। ज्यादातर स्थितियों में, समूहीकरण रिसर्च के आधार और व्यक्तियों के नमूने के लिए उपयोग की जाने वाली विधि द्वारा निर्धारित किया जाता है। प्रायोगिक रिसर्च डिजाइन के आधार पर एक विशिष्ट अध्ययन में आम तौर पर कम से कम एक प्रयोगात्मक और एक नियंत्रण समूह होता है। चिकित्सा रिसर्च में, उदाहरण के लिए, एक समूह को चिकित्सा दी जा सकती है जबकि दूसरे को कोई नहीं मिलता है। तुम मेरा फॉलो समझो। हम प्रतिभागी समूहन के आधार पर चार प्रकार के अध्ययन डिजाइनों में अंतर कर सकते हैं:

एक को होर्ट अध्ययन एक प्रकार का अनुदैर्ध्य रिसर्च है जो पूर्व निर्धारित समय अंतराल पर एक समूह के क्रॉस-सेक्शन (एक सामान्य लक्षण वाले लोगों का एक समूह) लेता है। यह पैनल रिसर्च का एक रूप है जिसमें समूह के सभी लोगों में कुछ न कुछ समान होता है।

सामाजिक विज्ञान, चिकित्सा रिसर्च और जीव विज्ञान में, एक क्रॉस-अनुभागीय अध्ययन प्रचलित है। यह अध्ययन दृष्टिकोण किसी विशिष्ट समय पर जनसंख्या या जनसंख्या के प्रतिनिधि नमूने के डेटा की जांच करता है।

एक अनुदैर्ध्य अध्ययन एक प्रकार का अध्ययन है जिसमें एक ही चर को कम या लंबी अवधि में बार-बार देखा जाता है। यह आमतौर पर अवलोकन संबंधी शोध है, हालांकि यह दीर्घकालिक रेंडम  प्रयोग का रूप भी ले सकता है।

क्रॉस-अनुक्रमिक रिसर्च डिजाइन अनुदैर्ध्य और क्रॉस-अनुभागीय रिसर्च विधियों को जोड़ती है, दोनों में निहित कुछ दोषों की कंपनसेशन के लक्ष्य के साथ।

क्वांटिटेटिव वर्सेस क्वालिटेटिव research design in Hindi के बीच अंतर निम्नलिखित हैं-

स्थिर और फ्लेक्सिबल research design in Hindi के बीच एक अंतर भी खींचा जा सकता है। क्वांटिटेटिव (निश्चित डिजाइन) और क्वालिटेटिव  (लचीला डिजाइन) डेटा एकत्र करना अक्सर इन दो अध्ययन डिजाइन श्रेणियों से जुड़ा होता है। आपके द्वारा डेटा एकत्र करना शुरू करने से पहले ही रिसर्च डिज़ाइन एक निर्धारित अध्ययन डिजाइन के साथ पूर्व-निर्धारित और समझा जाता है। दूसरी ओर, लचीले डिज़ाइन, डेटा संग्रह में अधिक लचीलापन प्रदान करते हैं – उदाहरण के लिए, आप निश्चित उत्तर विकल्प प्रदान नहीं करते हैं, इसलिए उत्तरदाताओं को अपने स्वयं के उत्तर देने होंगे।

Research design in Hindi के लिए PPT नीचे दी गई है-

चूंकि हम रिसर्च डिज़ाइन के प्रकारों से निपट रहे हैं, इसलिए यह समझना अनिवार्य है कि रिसर्च करने का अभ्यास कितना फायदेमंद है और इसके कुछ प्रमुख लाभ हैं: 1. रिसर्च विषय की गहरी समझ प्राप्त करने में मदद करता है। 2. आप इसके विविध पहलुओं के साथ-साथ इसके विभिन्न स्रोतों जैसे प्राथमिक और माध्यमिक के बारे में जानेंगे। 3. यह महत्वपूर्ण एनालिसिस और अनसुलझी समस्याओं के मापन के माध्यम से किसी भी क्षेत्र में जटिल समस्याओं को हल करने में मदद करता है।  4. आप यह भी जान पाएंगे कि संरक्षित मान्यताओं को तौलकर एक परिकल्पना कैसे बनाई जाती है।

रिसर्च ‘ शब्द से, हम समझ सकते हैं कि यह डेटा का एक संग्रह है जिसमें शोध पद्धतियों को ध्यान में रखते हुए महत्वपूर्ण जानकारी शामिल है। दूसरे शब्दों में, यह एक परिकल्पना स्थापित करके खोजी गई जानकारी या डेटा का संकलन है और इसके परिणामस्वरूप एक संगठित तरीके से वास्तविक निष्कर्ष सामने आता है।

यहाँ एक रिसर्च डिज़ाइन के सबसे महत्वपूर्ण तत्व है: 1. एकत्रित विवरण का एनालिसिस  करने के लिए लागू की गई विधि 2. रिसर्च पद्धति का प्रकार 3. सटीक उद्देश्य कथन 4. रिसर्च के लिए संभावित आपत्तियां 5. रिसर्च के संग्रह और एनालिसिस के लिए लागू की जाने वाली तकनीकें 6. समय 7. एनालिसिस का मापन 8. रिसर्च स्टडीज के लिए सेटिंग्स

एक सुनियोजित शोध डिजाइन  यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि आपके तरीके आपके शोध के उद्देश्यों से मेल खाते हैं, कि आप उच्च-गुणवत्ता वाले डेटा एकत्र करते हैं, और यह कि आप विश्वसनीय स्रोतों का उपयोग करते हुए अपने प्रश्नों का उत्तर देने के लिए सही प्रकार के विश्लेषण का उपयोग करते हैं  । यह आपको वैध, भरोसेमंद निष्कर्ष निकालने की अनुमति देता है।

रिसर्च के 5 घटक परिचय, साहित्य समीक्षा, विधि, परिणाम, चर्चा, निष्कर्ष है ।

उम्मीद है कि रिसर्च डिज़ाइन के बारे में आपको सभी जानकारियां मिल गई होंगी। यदि आप रिसर्च डिजाइन करना चाहते हैं तो Leverage Edu एक्सपर्ट्स के साथ 30 मिनट का फ्री सेशन 1800 572 000 बुक करें और बेहतर गाइडेंस पाएं।

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देवांग मैत्रे

स्टडी अब्रॉड फील्ड के हिंदी एडिटर देवांग मैत्रे को कंटेंट और एडिटिंग में आधिकारिक तौर पर 6 वर्षों से ऊपर का अनुभव है। वह पूर्व में पोलिटिकल एडिटर-रणनीतिकार, एसोसिएट प्रोड्यूसर और कंटेंट राइटर रह चुके हैं। पत्रकारिता से अलग इन्हें अन्य क्षेत्रों में भी काम करने का अनुभव है। देवांग को काम से अलग आप नियो-नोयर फिल्म्स, सीरीज व ट्विटर पर गंभीर चिंतन करते हुए ढूंढ सकते हैं।

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What is Research Problem? Components, Identifying, Formulating,

  • Post last modified: 13 August 2023
  • Reading time: 10 mins read
  • Post category: Research Methodology

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What is Research Problem?

A research problem refers to an area or issue that requires investigation, analysis, and resolution through a systematic and scientific approach. It is a specific question, gap, or challenge within a particular field of study that researchers aim to address through their research endeavors.

Table of Content

  • 1 What is Research Problem?
  • 2 Concept of a Research Problem
  • 3 Need to Define a Research Problem
  • 4 Conditions and Components of a Research Problem
  • 5 Identifying a Research Problem
  • 6 Formulating a Research Problem

Concept of a Research Problem

The first step in any research project is to identify the problem. When we specifically talk about research related to a business organisation, the first step is to identify the problem that is being faced by the concerned organisation. The researchers need to develop a concrete, unambiguous and easily comprehensible definition of the problem that requires research.

If the research problem is not well-defined, the research project may be affected. You may also consider defining research problem and carrying out literature review as the foundation on which the entire research process is based.

In general, a research problem refers to a problem that a researcher has witnessed or experienced in a theoretical or real-life situation and wants to develop a solution for the same. The research problem is only a problem statement and it does not describe how to do something. It must be remembered that a research problem is always related to some kind of management dilemma

Need to Define a Research Problem

The researchers must clearly define or formulate the research problem in order to represent a clear picture of what they wish to achieve through their research. When a researcher starts off his research with a well-formulated research problem, it becomes easier to carry out the research.

Some of the major reasons for which a research problem must be defined are:

  • Select useful information for research
  • Segregate useful information from irrelevant information
  • Monitor the research progress
  • Ensure research is centred around a problem
  • What data should be collected?
  • What data attributes are relevant and need to be analysed?
  • What relationships should be investigated?
  • Determine the structure of the study
  • Ensure that the research is centred around the research problem only

Defining a research problem well helps the decision makers in getting good research results if right questions are asked. On the contrary, correct answer to a wrong question will lead to bad research results.

Conditions and Components of a Research Problem

Conditions necessary for the existence of a research problem are:

  • Existence of a problem whose solution is not known currently
  • Existence of an individual, group or organisation to which the given problem can be attributed
  • Existence of at least two alternative courses of action that can be pursued by a researcher
  • At least two feasible outcomes of the course of action and out of two outcomes, one outcome should be more preferable to the other

A research problem consists of certain specific components as follows:

  • Manager/Decision-maker (individual/group/institution) and his/ her objectives The individual, group or an institution is the one who is facing the problem. At times, the different individuals or groups related to a problem do not agree with the problem statement as their objectives differ from one another. The decision makers must agree on a concrete and clearly worded problem statemen.
  • Environment or context of the problem
  • Nature of the problem
  • Alternative courses of problem
  • A set of consequences related to courses of action and the occurrence of events that are not under the control of the manager/decision maker
  • A state of uncertainty for which a course of action is best

Identifying a Research Problem

Identifying a research problem is an important and time-consuming activity. Research problem identification involves understanding the given social problem that needs to be investigated in order to solve it. In most cases, the researchers usually identify a research problem by using their observation, knowledge, wisdom and skills. Identifying a research problem can be as simple as recognising the difficulties and problems in your workplace.

Certain other factors that are considered while identifying a research problem include:

  • Potential research problems raised at the end of journal articles
  • Large-scale reports and data records in the field may disclose the findings or facts based on data that require further investigation
  • Personal interest of the researcher
  • Knowledge and competence of the researcher
  • Availability of resources such as large-scale data collection, time and finance
  • Relative importance of different problems
  • Practical utility of finding answers to a problem
  • Data availability for a problem

Formulating a Research Problem

Formulating a research problem is usually done under the first step of research process, i.e., defining the research problem. Identification, clarification and formulation of a research problem is done using different steps as:

  • Discover the Management Dilemma
  • Define the Management Question
  • Define the Research Question
  • Refine the Research Question(s)

You have already studied why it is important to clarify a research question. The next step is to discover the management dilemma. The entire research process starts with a management dilemma. For instance, an organisation facing increasing number of customer complaints may want to carry out research.

At most times, the researchers state the management dilemma followed by developing questions which are then broken down into specific set of questions. Management dilemma, in most cases, is a symptom of the actual problem being faced by an organisation.

A few examples of management dilemma are low turnover, high attrition, high product defect rate, low quality, increasing costs, decreasing profits, low employee morale, high absenteeism, flexibility and remote work issues, use of technology, increasing market share of a competitor, decline in plant/production capacity, distribution of profit between dividends and retained earnings, etc.

If an organisation tracks its performance indicators on a regular basis, it is quite easy to identify the management dilemma. Now, the difficult task for a researcher to choose a particular management dilemma among the given set of management dilemmas.

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